कितनी भी चाहे बीमारी या कष्ट हो, किसी से भी वर्णन न करें - किसी भी रोग से परेशान हैं तो अवश्य पढ़ें


ओम शांति ।

जीवन में चलते-चलते कभी-कभी हमें कोई ऐसी बीमारी या कोई शारीरिक कष्ट हो जाता है, कि उस बीमारी से हम उदास हो जाते हैं। हमारे मन में कई व्यर्थ और नेगेटिव संकल्प चलने लगते हैं, कि मुझे ही ऐसा क्यों हुआ? मैंने ऐसा क्या बुरा कर्म किया? यह कष्ट मुझे ही क्यों हो रहा है? इन नेगेटिव संकल्पों के साथ हम कई बार इन बीमारी या कष्ट का वर्णन दूसरों के साथ भी करते हैं। जितना हम इस बीमारी का वर्णन करेंगे, उतना यह बीमारी, कष्ट बढ़ती जाएगी। यह प्रकृति का नियम है, कि जितना हम इस बीमारी के बारे में नेगेटिव सोचेंगे, और इसका दूसरों के साथ वर्णन करेंगे, उतना यह बीमारी और कष्ट बढ़ती जाएगी। तो ऐसी सिचुएशन में हमें अपने मन को कुछ ऐसे पॉजिटिव संकल्प देने हैं, जिससे हमारा मन स्वस्थ और पॉजिटिव बन जाए। और हमारा मन स्वस्थ और पॉजिटिव बनते ही इसका इफेक्ट स्वत: शरीर पर दिखने लगेगा और धीरे-धीरे यह तन की जो भी बीमारी या कष्ट है, वह सूली से कांटा बन जाएगी। अर्थात हम मन और तन से पूरी तरह तंदुरुस्त महसूस करने लगेंगे और धीरे-धीरे यह तन की बीमारी और कष्ट शांत हो जाएगी।

अव्यक्त मुरली 29-10-1987 में हमें बाबा इस कर्म भोग या बीमारी के बारे में बहुत ही गहरी बात समझाते हैं। बाबा कहते हैं - "जब आत्मा स्वस्थ है तो तन का हिसाब-किताब वा तन का रोग सूली से कांटा बनने के कारण, स्व-स्थिति के कारण स्वस्थ अनुभव करता है। उनके मुख पर, चेहरे पर बीमारी के कष्ट के चिन्ह नहीं रहते। मुख पर कभी बीमारी का वर्णन नहीं होता, कर्मभोग के वर्णन के बदले कर्मयोग की स्थिति का वर्णन करते हैं। क्योंकि बीमारी का वर्णन भी बीमारी की वृद्धि करने का कारण बन जाता है। वह कभी भी बीमारी के कष्ट का अनुभव नहीं करेगा, न दूसरे को कष्ट सुनाकर कष्ट की लहर फैलायेगा। और ही परिवर्तन की शक्ति से कष्ट को सन्तुष्टता में परिवर्तन कर सन्तुष्ट रह औरों में भी सन्तुष्टता की लहर फैलायेगा। अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान बन शक्तियों के वरदान में से समय प्रमाण सहन शक्ति, समाने की शक्ति प्रयोग करेगा और समय पर शक्तियों का वरदान वा वर्सा कार्य में लाना - यही उसके लिए वरदान अर्थात् दुआ दवाई का काम कर देती है।"

ओम शांति।