ओम शांति!
महात्मा बुद्ध एक बार कपिलवस्तु आए। उनका एक शिष्य था, एक बौद्ध भिक्षु
अनिरुद्ध। उसी गांव में अनिरुद्ध के लौकिक संबंधी रहते थे। वह सभी संबंधी
अनिरुद्ध से मिलने आए। पर उसकी जो लौकिक बहन थी, वह नहीं आई। उसका नाम
रोहिणी था। और वह आई भी तो अंत में आई। और उसका चेहरा घूंघट से ढका हुआ था।
उसने पूछा तुम मुझसे मिलने इतनी देर से क्यों आई? और आई भी तो अपना चेहरा
इस तरह क्यों ढका हुआ है? रोहिणी ने कहा लज्जा के कारण। मुझे एक ऐसा रोग हो
गया है कि मेरे चेहरे पर फफोले उठ आए हैं, विकृत हो गया है चेहरा। इसलिए
मैं नहीं आई। अनिरुद्ध ने कहा - यह कोई बात नहीं है। अब तुम ऐसा करो कि
महात्मा बुद्ध यहां आए हुए हैं और कुछ समय यहां रहेंगे, उनके साथ 10,000
भिक्षु है। उनके रहने के लिए एक भवन का निर्माण करना है। तुम बस उस भवन के
कार्य में लग जाओ। रोहिणी के पास जो कुछ था, जो कुछ पैसे, जेवर, वो सब कुछ
उसने बेच दिए और उस भवन की सेवा में, निर्माण कार्य में वह लग गई। कई महीनों
तक कार्य चला और कार्य पूरा होते-होते उसके चेहरे पर वो सारे जो रोग के
निशान थे, फफोले थे वह सारे मिट गए। लगभग 99% मिट गए, बस 1% रह गया। महात्मा
बुद्ध ने उसे अपने पास बुलाया और पूछा कि आप अब तक मुझसे मिलने नहीं आईं?
उसने वही उत्तर दिया कि मेरा चेहरा विकृत हो गया था, पता नहीं क्यों? परंतु
अब तो ठीक हो गया है। लगभग 1% केवल बचा है। महात्मा बुद्ध उससे कहते हैं
क्या तुम जानती हो यह रोग तुम्हें क्यों आया? तो वह कहती है नहीं। तुम्हारा
जो क्रोधी स्वभाव था, तुम्हारे भीतर जो आग थी निरंतर, उसी मन के क्रोध ने
शरीर का रूप धारण किया था, रोग का। शरीर का रोग लक्षण था, शरीर पर जो हो रहा
था वह केवल लक्षण था, रोग मन में था और उसी वजह से वह रोग तुम पर आया। परंतु
जैसे ही तुम सेवा के कार्य में लग गई, जैसे ही तुम्हारे मन में करुणा का
भाव जागा , जैसे ही तुम्हारे मन में प्रेम का भाव जागा, धीरे-धीरे तुम्हें
भी नहीं पता चला अज्ञात में ही वह क्रोध कहीं ना कहीं विलीन हो गया। उसने
प्रेम का रूप धारण कर लिया। इसलिए वो रोग चला गया क्योंकि रोग मन में था,
ऑपरेशन मन का हो गया। परंतु क्योंकि तुमने यह अज्ञान में किया, एक मूर्छा
की अवस्था में किया, इसलिए 1% अभी भी बचा है। और वह स्त्री जैसे ही महात्मा
बुद्ध को सुनते जाती है, सुनते जाती है, अचानक से अंदर कोई परिवर्तन होता
है। महात्मा बुद्ध उससे कहते हैं कि अब तक जो तुम्हारी करुणा थी, जो प्रेम
था, वह अज्ञात में था, मुरछा में हुआ, अब उसे ही होश में करो। वही सेवा! और
यह सुनते सुनते ही जो 1% रोग उसके चेहरे पर था वह भी विलीन हो गया।
जब मन में किसी भी विकार का अंश या वंश हो, तो उसकी अभिव्यक्ति रोग के रूप
में शरीर पर होती है। मनोचिकित्सक कहते हैं 99% सारे रोग मन में हैं।
शुरुआत कहीं ना कहीं से हुई थी, शरीर पर जो प्रकट हुआ वह केवल लक्षण है। और
किसी भी चिकित्सा के पास जाओ, यदि चमड़ी का कोई रोग हुआ तो वह चमड़ी का
इलाज करेगा, चमड़ी का रोग ठीक हो गया। रोग कहीं और बह जाएगा और कहीं और से
प्रकट होगा। फिर उसका इलाज चालू होगा वह वहां से विलीन होगा, कहीं और से
प्रकट होगा। एक रोग जाता है तो दूसरा आता है, दूसरा जाता है, तो तीसरा है।
क्योंकि रोग वहां नहीं है, रोग कहां है? रोग मन में है। जब तक इलाज मन का
ना हो, केवल चिकित्सक के पास जाने से नहीं होगा, मनोचिकित्सक के पास जाना
पड़ेगा और हर व्यक्ति का मनोचिकित्सक वह स्वयं है। Physician heal
thyselves(yourself).. जितना हम अपने बारे में जानते है उतना और कोई नहीं
जानता। हमें अपने रोगों का निदान खुद करना है और खुद ही उसका इलाज करना है।
जो परिधि पर प्रकट हो रहा है, वह केवल लक्षण मात्र है। जड़े गहरी हैं। कोई
पेड़ है जिसकी जड़ें सड़ रही है, रोग हो गया है और हम पत्तों को पानी दे रहे
हैं, पत्तों का इलाज कर रहे हैं, फूलों का इलाज किए जा रहे हैं। तो काम नहीं
होगा। गहराई में उतरना होगा। मन के किस तल पर हलचल हो रही है? मन के किस तल
पर रोग समाविष्ट है? ऐसे रोगिस्ट मन को ठीक करना और निर्विकार हो जाना।
बाबा ने आज कहा चिमनी का रंग कौन सा होता है? काला! काला-काला! New York
में किसी डॉक्टर ने अध्ययन किया था कि न्यूयॉर्क की हवा कैसी है? बहुत सारे
पोस्टमार्टम किए, उस डॉक्टर ने और सबको देखा, सबके फेफड़ों को देखा सभी के
फेफड़ों में जितने भी लोग थे न्यूयॉर्क के जो मरे थे, उस दशक में 70-80 के
दशक में, सभी के फेफड़े काले-काले थे। Impure air of Civilization जो हवा
है वही दूषित है, शुद्ध हवा ही नहीं है फेफड़े ही कमजोर थे काले हो गए थे
टार की तरह। जो लोग ऊपर से बहुत स्वस्थ दिखाई दे रहे थे, जिन लोगो ने वह
किताब लिखी थी कि लंबा कैसे जिया जाए! वह कोई भी 100 तक नहीं पहुंच सका था।
हवा ही अशुद्ध थी और वर्तमान में हवा ही अशुद्ध है। काम शुद्ध हवा पर करना
है, फिर पानी पर, फिर भोजन पर। यह तो स्थूल बात हो गई।
उसी तरह इस समय संसार में विकारों की अशुद्ध हवा चल रही है, और मन रूपी
फेफड़े जो है वह काले काले हो गए हैं। ऊपर से कुछ दिखाई नहीं देता है। एक
नियम है जिसको कहते हैं law of vital adjustment. मनुष्य को कितने भी कठोर
से कठोर और खराब से खराब वातावरण में रखा जाए, वह धीरे-धीरे उसके साथ
एडजस्ट हो जाता है। उसे रोज जहर खिलाओ, थोड़ा थोड़ा थोड़ा वह adjust होने
लगता है। और उसकी बॉडी में धीरे धीरे कोई फर्क नहीं पड़ता। पर फर्क बहुत
लंबे समय के बाद पड़ता है पर पड़ता जरूर है। ऊपर से जो स्वस्थ दिखाई दे रहे
हैं, वह स्वस्थ बिल्कुल भी नहीं है। एक है शारीरिक स्वास्थ्य और एक है मन
का स्वास्थ्य। मन ही रुग्ण है, विकारो से और शरीर रुग्ण है अशुद्ध हवा,
अशुद्ध पानी और अशुद्ध भोजन से।
आज बाबा ने विकारों की बात की है, दो प्रकार के बच्चे देखें:-
1) ज्ञानी
2) अज्ञानी।
अज्ञानियों में भी दो प्रकार है - एक विकार वाला और दूसरे व्यर्थ वाले। एक
बड़ी आग, एक आधी आग, एक पूर्ण आग, एक धुआं।
यह मुरली कब की है? 87th समाप्त हो रहा है और क्या आ रहा है? नया वर्ष शुरू
हो रहा है। तो आज हम इस मुरली का अध्ययन, मनन, चिंतन कहो चर्चा कहो उसको
करेंगे। इस मुरली में बहुत सी गहरी बातें हैं। ऐसी हम 12, दो दो बातें
देखेंगे।
1) सबसे पहली संगम और प्रेरणा। सबसे पहली 3 संगम और प्रेरणा। महात्मा बुद्ध
ने जो धर्म स्थापित किया था, उसे शून्यवाद कहा जाता है, निषेध। भगवान के
विषय में कोई चर्चा नहीं की, जब भी पूछा भगवान के विषय में मौन थे। किसी ने
कहा भगवान है, उन्होंने कहा होगा। किसी ने कहा भगवान नहीं है, तो उन्होंने
कहा शायद नहीं होगा। उनका मार्ग कुछ और ही था। निषेध का मार्ग था एक तरीके
से। आज हम इस मुरली को निषेध के रूप में देखेंगे। कैसे? तो तीन संगम है।
कौन से? एक वर्ष का, एक युग का और एक मिलन का। जो मिलन का संगम है उसमें
प्राप्ति है, भाग्य हैं। जो वर्ष का है उसमें नवीनता है। जो युग का है उसमें
विश्व का परिवर्तन है। यह तीन संगम बाबा देख रहे हैं। तो जो सबसे पहला संगम
है, अगर हम दो कॉलम करें, एक पॉजिटिव एक नेगेटिव। आज हम नेगेटिव क्या-क्या
नहीं हो, उसकी चर्चा करेंगे। तो पॉजिटिव जो जो हो, वह अपने आप होगा।
सबसे पहला - मिलन। भगवान मिल गया फिर भी अप्राप्ति है, भगवान मिल गया फिर
भी दुर्भाग्य यदि है, तो उसे क्या कहेंगे? मिला है पर अनमिला सा है। भगवान
इस समय तुम्हारे सम्मुख है, अभी परसों की मुरली में था। क्या यह सूक्ष्म नशा
है? या अब भी जीवन दुर्भाग्य की तरफ जा रहा है? नियति ने इतना अच्छा अवसर
दिया है तपस्या का। हम क्या कर रहे है? ड्रामा का यह राज़ है, जो सबको घर
पर बिठा कर रखा है। इसलिए शांत हो जाओ, स्वयं में प्रवेश करने के लिए।
दुर्भाग्य ना हो, हमारे कदम दुर्भाग्य की ओर ना जा रहे हो, ऐसा ना हो कि यहां
हैं, परंतु फिर भी अप्राप्ति का अनुभव हो रहा है। स्थूल चीजें यह नहीं है,
वह नहीं है, जितनी हमारी आवश्यकतायें कम होती जाएगी, उतने हम अधिक शक्तिशाली
होते जाएंगे। हर दिन 1-1 आवश्यकता को कम कर देना, जो चीज की कल जरूरत थी आज
वह जरूरत नहीं है। जिस चीज का अब तक यूज कर रहे थे, आज वह नहीं चाहिए। वह
क्या हो वह खुद डिसाइड करनी है। वह छोटी-छोटी हो सकती हैं, एकदम छोटी छोटी।
आज की मुरली में बाबा ने कौन सी मिठाई खाने को कहा है और कौन सी नहीं?
दिलखुश खाओ और बीमारी किससे होती है? वह वाली मिठाई से। White death..
शक्कर को क्या कहा जाता है? सफेद मृत्यु। Addiction है वह भी एक sugar..
छोड़ दो तो जैसे दारू, बीड़ी पीने वाले को वह दारू बीड़ी खींचती हैं, उसी
तरह चॉकलेट छोड़ने के बाद चॉकलेट खींचता है, मीठा छोड़ने के बाद मीठा खींचता
है। व्यसन समाया हुआ है उसमें। अगर छोड़ दो तो बहुत सारे रोगों से मुक्ति
हो जाएगी। रोग तो छोड़ो परंतु मन बलवान हो जाएगा। संकल्प की आवश्यकता है।
जैसे कहा हर दिन छोटी-छोटी एक एक चीज हटाते जाना है, वह कुछ भी हो सकती है,
कुछ भी। तो आज के मुरली के दिन यह संकल्प किया जा सकता है कि कम से कम 21
दिन तक जीरो शुगर। अध्ययन करो, एक व्यक्ति ने तो बड़ी किताब लिखी है शुगर
पर केवल, कि क्या नुकसान है। बहुत सारे रोगों से मुक्ति हो जाएगी। संकल्प
की आवश्यकता है। शक्कर का संबंध नहीं है, दृढ़ता का संबंध है। शक्कर का कुछ
छोड़ने का उस वस्तु से कोई लेना-देना ही नहीं है, अगर एक रीति से देखा जाए।
मन का वह भाग जो किसी वस्तु से जुड़ा है, उसको वहां से तोड़ो तो उसका वही
भाग जो विकारों से जुड़ा है, वही सामर्थ्य वहां भी आएगा। हमें याद है 2014,
19th फरवरी, उसके बाद कभी शक्कर को टच नहीं किया। छोड़ दिया तो छोड़ दिया।
और बीमारी से बहुत दूर चले गए। तो सबसे पहली पॉइंट - तीन संगम। 3 संगम में
सबसे पहला संगम - बाप और बच्चों का मिलन। उसमें सर्व प्राप्तयां और भाग्य।
दुर्भाग्य की ओर कदम ना जाए और अप्राप्ति की ओर कदम ना जाए। संसार में जो
प्राप्तियां है, वह ब्राह्मण जीवन में अप्राप्तियां है। ब्राह्मण जीवन में
जो प्राप्तियां है वह संसार में अप्राप्ति है। संसार कहता है तुम इतना जल्दी
उठकर क्या करते हो? तुम सोने का सुख छोड़ते हो, पर हमारे लिए वह सोना
अप्राप्ति है, यह प्राप्ति है।
दूसरा संगम है- नवीनता। युग। वर्ष बदल रहा है तो नवीनता। वही पुराना पुराना
पुराना, यदि चल रहा है तो ब्राह्मण जीवन बोरिंग हो जाएगा। इसलिए हर दिन नया
चिंतन हो, हर दिन नई बात हो। हर दिन मन में क्रांतिकारी विचार आए। क्योंकि
विचार ही तो है जो हमें बदल देते हैं। नए विचार, नए विचारों की खोज करनी है
हर दिन। ऐसे विचार जो एकदम से इलेक्ट्रिक शॉक की तरह प्रवेश करें मन में।
और जो एक गहरी आशक्ती है किसी व्यक्ति से, वस्तु से, किसी स्थिति से या
किसी स्मृति से उससे मुक्ति हो जाए। इलेक्ट्रिक शॉक, नए विचार कब आएंगे?
अमृतवेला! सुबह-सुबह! मन जब शांत हो, स्थिर हो। नवीनता, हमेशा खोज हो
नवीनता की। देखते रहना है किसके जीवन में क्या-क्या नवीनता है और वह मैं
कैसे धारण करूं? क्योंकि हर व्यक्ति, हर ब्राह्मण अलग है। Unique है,
उत्कृष्ट कलाकृति है, master piece है। तो पुरानापन ना हो, यह दूसरा संगम।
तीसरा संगम? युग ही बदल रहा है... उसमें क्या? विश्व परिवर्तन की प्रेरणा।
हमें विश्व परिवर्तन करना है और हम अपने ही अंदर छिपा हुआ एक विकार
परिवर्तन नहीं कर पा रहे हैं, तो क्या कहेंगे? तो क्रॉस करना है पुरानापन
क्रॉस करना है। स्व परिवर्तन नहीं कर पा रहे, क्यों? "नामुमकिन शब्द है
नहीं तुम्हारे शब्दकोश में" - वरदान में है ना! "ना मालूम, नामुमकिन".. कुछ
भी कहो.. और पहला मिलन की अनुभूति। यह सबसे पहली पॉइंट है।
2) दूसरी साकारी रूपधारी और आकारी रूपधारी। यह दो बातें हैं। हम दो-दो
बातें लेंगे आज की मुरली से, ऐसी 12, 2-2 बातें। साकारी और आकारी, जो आकारी
रूपधारी है वह कैसे पहुंचे हैं यहां पर? बुद्धि के विमान से। अब इस बुद्धि
के विमान पर काम करना है। यह बुद्धि का विमान कहां जाता है? बुद्धि का
विमान अर्थात कल्पना, बुद्धि का विमान अर्थात visualisation, बुद्धि का
विमान अर्थात हम अपने मन को कहां ले जाते हैं? बुद्धि का विमान किस दिशा
में हम लौटा रहे है, दौड़ रहा है? अतीत में? किसी पुरानी दुखद स्मृति की
तरफ? हमारे हाथ में है। हम पायलट है उस बुद्धि के विमान के! उस विमान को हम
दौड़ाएंगे, कहां दौड़ रहा है? नेगेटिव, अतीत में, दुख में, विकारों की तरफ
आकर्षण है, कहां है? क्यों भागता है विकारों की तरफ यह विमान? इस विमान की
दिशा बदलनी है! इसे सतयुग में ले जाओ इसे सूक्ष्म वतन में ले जाओ , इसे
परमधाम में लेे जाओ। इसे विश्व के आकाश में ले जाओ साकाश के लिए। मैं पायलट
हूं, कहां जा रहा है मेरा विमान?! दुख... हमने देखा है इतने सारे सीरियस
पेशेंट्स है, कि 2-2 घंटे में एक एक पेशेंट आ रहा है, हर 2 घंटे में! जीवन
और मृत्यु के बीच में लटकता हुआ.. असहाय हालत में! 1-1 दिन में 10-10
,12-12 एडमिशन हो रहे हैं। ठीक कौन हो रहा है? जो पहले से ही उदास है, पहले
से ही दुखी है, वह ठीक नहीं हो पाता। या उन्हें ठीक होने में बहुत समय लगता
है और जो ऐसे विश्वास के साथ आता है कि कुछ भी हो जाए हमें ठीक होना ही है।
हमने देखा है 7-7 दिन, 8-8 दिन, 10-10 दिन वेंटिलेटर पर रहकर बाहर आ रहा
है। पकड़ है एक कि मुझे जीना है और जिस दिन वह पकड़ खो जाती है, शरीर छोड़
देता है।
एक मरीज था अभी-अभी जिसने शरीर छोड़ा, कई दिनों तक चला 7-8 दिनों तक, वह
ठीक हो रहा था और एक दिन अचानक खबर आ गई कि उसका जो बचपन का दोस्त है, उसकी
उम्र ही 70-80 वर्ष की थी। उसका जो बचपन का दोस्त है उसने शरीर छोड़ दिया।
जैसे ही खबर सुनी बस उसी दिन, वह जो पकड़ थी वह ढीली हो गई और शाम को
cardiac arrest! बुद्धि का विमान कहां जा रहा है ? दुख में? डर में? अतीत
में ? दर्दनाक स्थिति में? भय की तरफ.. कहां भाग रहा है यह विमान? इसके
पायलट हम हैं! और हम दौड़ाएंगे इसको। 10 दुखी लोग आ गए और हम भी दुखी हो
गए, तो, इसे क्या कहेंगे? वह रो रहे हैं और हम भी रोने लगे, बहुत दुख हुआ!
मौत का बाजार गर्म है! हवाओं में मृत्यु है! संसार में ऐसी स्थिति शायद ही
पहले कभी देखी होगी। आत्मा इतनी डरी हुई है, भयभीत है। तो दूसरी पॉइंट
बुद्धि का विमान वहां नहीं दौड़ाना है जहां दुख और परिणीति है, वहां ले
जाना है जहां सुख है।
3) तीसरी पॉइंट, डबल हीरो! दो बातें - हीरे तुल्य जीवन और इस ड्रामा में
हीरो पार्ट। हीरे तुल्य जीवन है या पत्थर तुल्य हो रहा है? विचारों की
क्वालिटी कैसी है? पत्थरों जैसी है या हीरों जैसी है? Polished विचार हैं,
या दुख वाले हैं, दर्द वाले हैं, पीड़ा वाले हैं, उदासी वाले हैं, बदले
वाले हैं, क्या है? सारे दिन भर जो तरंगे उठती रहती हैं विचारों की कैसी है
उनकी दशा और दिशा? हीरे भर रखे हैं पर्स में या पत्थर?
और दूसरा है हीरो पार्ट। हीरो पार्ट की जगह विलन का पार्ट तो नहीं चालू कर
दिया है? किसी तीव्र पुरुषार्थी आत्मा के पुरुषार्थ में विघ्न डालना अर्थात
विलन बनना। कोई आत्मा उड़ रही है उसे ऐसे शब्द कह देना कि बेचारे के पंख ही
टूट जाए। कोई उमंग उत्साह से कुछ कर रहा है, कुछ तो कर रहा है, कोई क्लास
सुन रहा है, कुछ लिख रहा है, कुछ चिंतन मनन कर रहा है ऐसा कमेंट कर देना कि
बेचारा बिल्कुल घायल होकर नीचे गिर जाए। ब्राह्मण जीवन में बहुत बड़ा बोझ
है यह-किसी के पुरुषार्थ के पंख को काट देना! यह हीरो पार्ट नहीं है, विलन
का पार्ट है! यह तीसरी बात थी।
4) चौथी - बधाई और मुबारक। इसमें कौन सी नेगेटिव बात है? बड़ी महत्वपूर्ण
बात बाबा ने बोली है सब को बधाई दो, किसको? जो काटे दें उनको फूल रूहानी।
अज्ञानी से अज्ञानियों जैसा नहीं, वशीभूत से वशीभूत जैसा नहीं, जैसे को
तैसा वाला नहीं, tit for tat वाला व्यवहार नहीं। कोई दुख दे तो क्या करोगे?
सुख दो। सुनने को कितना अच्छा लगता है, और भाषण देने को तो और ही जोश आता
है। पर कोई दुख दे रहा है उसको सुख दें, सुखदाता के बच्चे हो! दिखाया है
इस्लाम धर्म के संस्थापक मोहम्मद पैगंबर, मुस्लिम धर्म के संस्थापक अली के
साथ कहीं जा रहे थे, son in-law, cousin जो भी कहो, या कहो मोहम्मद पैगंबर
के जीवन काल में पहला ऐसा व्यक्ति जिसने मुस्लिम धर्म को स्वीकार किया।
दोनों साथ में जा रहे थे और अचानक एक व्यक्ति आ गया जो मुस्लिम धर्म का
विरोधी था। और इतनी गालियां देने लगा, इतनी गालियां देने लगा, अली जो है वह
शांत चित्त, एकदम स्थिर, मुस्कुराहट है उसके चेहरे पर। बस सुने जा रहे हैं,
सुने जा रहे हैं, ऐसी ऐसी बातें कह रहा है सामने वाला व्यक्ति पर धीरे-धीरे
यह क्या? अली का धैर्य का बांध टूटने लगा। धीरे-धीरे चेहरे पर अब क्रोध आने
लगा और धीरे-धीरे बदले का भाव जागा और तो फिर हाथ अपनी तलवार पर ले लिया।
और जैसे ही तलवार निकालने गया, मोहम्मद पैगंबर वहां से भाग गए! अली को इतना
आश्चर्य लगा, मैं इनके लिए सब कुछ छोड़ कर इनके साथ चल रहा हूं, अब तक इनके
लिए सुन भी रहा था, सहन कर रहा था इनके भरोसे पर और यह खुद ही भाग खड़े हो
गए। वह उस व्यक्ति को छोड़ता है और मोहम्मद पैगंबर के पीछे भागता है और
पूछता है कि ऐसा नहीं कि खुदा पर जो मेरा इमान है, वह कम हो गया है या फिर
इस बात पर कि आप खुदा के नबी हो, पैगंबर हो। मैं मानता हूं you are the
only one! आप ही अंतिम, last passenger of God हैं, मेरा समपूर्ण निश्चय
है, परंतु यह बात मुझे समझ में नहीं आई, मैं आपके भरोसे पर सब सहन कर रहा
था और आप ही खुद भाग गए। यह क्या है? मोहम्मद पैगंबर कहते हैं - जब तक तुम
उस व्यक्ति को सहन कर रहे थे, चुपचाप खड़े थे, खुदा के फरिश्ते तुम्हारी
हिफाजत कर रहे थे और कयामत-ए खुदा का नूर तुम पर बरस रहा था, पर जैसे ही
तुम में क्रोध प्रवेश कर गया, खुदा के फरिश्ते भाग गए वहां से, और फिर मैं
क्यों रुकता? इसलिए मैं भी भाग गया।
जो कांटे थे, क्या कहा बाबा ने? उसे क्या दो? फूल। बहुत बड़ा हृदय चाहिए इस
बात के लिए। यह तो जीवन भर की साधना या तपस्या है, तब भी हो पाएगा कि नहीं
पता नहीं। क्योंकि मन जो है बड़ा बदले से भरा हुआ है, revenge से। एक छोटी
सी बात में हजारों विचार चलते हैं हमारे।
एक भिखारी है, भूखा है और सामने वाला व्यक्ति भोजन दिखाता है अपने घर से।
मन में कौन से विचार आए उस भिखारी के? वह व्यक्ति बुलाता है आओ आओ। वह जाता
है, दरवाजा बंद हो जाता है। अब मन में कौन से विचार आएं उसी व्यक्ति के
बारे में? दूसरी विचार आ जाएंगे, थोड़ी देर में दरवाजा खोलता है भोजन के
बदले पानी दे देता है,अब विचार कौन से आ रहे हैं? थोड़ी देर के बाद वही
व्यक्ति जूस लेकर आता है, अब विचार कौन से आ रहे हैं उसी व्यक्ति के बारे
में? और थोड़ी देर के बाद में फिर भोजन लेकर आता है और भोजन खाने को दे
देता है। भोजन खाना शुरू करता है तो पता चलता है कि नमक ही नहीं है भोजन
में, तो अब खाते समय कौन से विचार आ रहे हैं? फिर वह व्यक्ति कहता है मुझसे
बहुत गलती हो गई मैं नमक डालना भूल गया। अब कौन से विचार आ रहे हैं? और
भोजन पूरा होने के बाद वह व्यक्ति बिल देता है इतने पैसे हो गए। अब कौन से
विचार आ रहे हैं? घर पर मेहमान बुलाओ और उसको खाना खिलाओ और खाने के बाद
कहो यह बिल है तो क्या मन में लगता है? यह छोटी सी परिस्थिति, साधारण सा ये
वाक्या और उसमें ही कितने, एक ही व्यक्ति के बारे में कितने विचार बदल रहे
हैं! एक ही व्यक्ति के बारे में अभी-अभी कुछ, अभी-अभी कुछ, अभी-अभी कुछ,
अभी-अभी कुछ! यह मन है! और भगवान कह रहा है कोई तुमको दुख दे, यह व्यक्ति
तो दुख भी नहीं दे रहा था। बीच-बीच में, पर उसको लग रहा था यह उसका
षड्यंत्र है, यह दिखाता तो है, पर देता तो कुछ और है। फिर बाद में फिर
बदलता है, फिर बदलता है, फिर बदलता है। और फिर बाद में वही व्यक्ति कहता है
मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रहा था तुमको कैसा लगता है यह देखने के लिए,
पैसे थोड़ी ना मांगे जाते हैं, तुम तो दोस्त हो मेरे। फिर विचार बदल गए।
परमानेंट जो दुख दे रहा है, उसे सुख दो। जो कांटे चुभा रहा है रोज़, एक बार
चुभा दिया चलो उसको फूल दे दिए। पर वही व्यक्ति दिन में 10 बार कांटे
चुभाए, या वही व्यक्ति 10 साल से कांटे चुभा रहा है, अब क्या किया जाए?
बाबा कहते हैं बधाई दो मुबारक दो। कैसे? संकल्प से हर सेकंड में। कठिन काम
है ना यह। सहज राजयोग, यह तो बहुत सहज है, नेचुरल। बाबा कहते हैं सहज
निकले, नेचुरली निकले तुमसे। हां पर कुछ आत्माएं ऐसी है, जो रेडीमेड ऐसी ही
पैदा हुई है, बिना कुछ पुरुषार्थ के ऐसी ही है वह। पर ऐसी 5% होगी, जो 95%
हैं, उन्हें बहुत काम करना पड़ेगा इस पर। क्योंकि हमारे मन में इतना कुछ
भरा रहता है, और प्रतिपल चेंज होते रहता है। हम कहते जरूर है मैं
विश्वकल्याणकारी हूं, पर हैं नहीं। शुभभावना, शुभकामना, शुभचिंतक.. क्या
वास्तव में है? शायद नहीं है। हां पर इनकी विधि यही है कि पहले यह स्वीकार
करना की कुछ भी नहीं है, दिखावा, आडंबर मात्र है बस। अब करता हूं! थोड़ा
थोड़ा, थोड़ा तो कर सकते हैं ना। चौथा - बधाई और मुबारक।
5) पांचवा - दिलखुश मिठाई खाओ भी और खिलाओ भी। दो बातें। अर्थात खुद भी खुश
और दूसरों को भी खुश। दूसरों को खुश वह कर सकते हैं जो स्वयं खुश हैं। जो
स्वयं खुश नहीं है और फिर भी दूसरे को खुश कर रहे हैं, वह वास्तव में खुशी
नहीं दे रहे हैं। क्योंकि हम देंगे वही जो हमारे अंदर है। अंदर झूठी खुशी
है, तो झूठी खुशी दे रहे हैं। अंदर कृत्रिमता है, वही आर्टिफिशियल खुशी,
प्लास्टिक खुशी दे रहे हैं। प्लास्टिक के फ्लावर दे रहे हैं, सुगंध अंदर है
कहां? अंदर दुख है, घर-घर में दुख है। तो बाबा ने कहा - यह मिठाई नहीं। वह
मिठाई खाएंगे तो बीमारी हो सकती है। एक व्यक्ति ने किताब लिखी और उस किताब
में एक बहुत अच्छी बात लिखी है। उसने लिखा है मेरी मां जब मर रही थी, मरते
मरते उसने मुझसे एक वादा लिया बेटे मैं डायबिटीज से मर रही हूं, मुझसे वादा
करो आज के बाद शक्कर कभी मत खाना और मर गई। यह कहानी लिखी है उसने। परंतु
हम कह रहे हैं कहकर कुछ मत करना। जो चीज छोड़नी है, उसका संपूर्ण अध्ययन
किया जाए। किसी के कहने पर कभी भी कुछ मत छोड़ना। पूर्ण अध्ययन, हर रीति से
अध्ययन करना उसका। मेडिकल की रीति से, मन की रीति से, अध्यात्म की रीति से,
हर रीति से उसको देखना। लोगों के अनुभव पूछना, उसके बाद ही कोई कदम उठाना।
हमारे अपने जीवन में जब भी हमने कुछ छोड़ा और अचानक छोड़ दिया, वह कभी सफल
नहीं हुआ। जब भी छोड़ा, जब उसका संपूर्ण अध्ययन किया और बाद में छोड़ा वह
छोड़ना इतना सहज और नेचुरल था कि फिर उस चीज की कभी भी याद नहीं आई।
क्योंकि वह चिंतन और मनन के आधार से छोड़ा गया था। इसलिए कुछ भी छोड़ना हो,
उसके बारे में पढ़ना शुरू करो। दिन रात उसके क्या-क्या नुकसान है बस वही
पढ़ो। फायदे क्या है वह भी पढ़ो। इसी मुरली में है, आगे की पॉइंट है। कार्य
साथी और जीवन साथी। क्या बनाना है ? जीवनसाथी तो नहीं ढूंढ रहा है कोई?
जीवन साथी कोई मिल जाए, साथ साथ चलें। तो पांचवी पॉइंट - दिलखुश मिठाई
6) और छठवीं पॉइंट यह वाली- कार्य साथी और जीवन साथी। यह भी कईयों का
प्रश्न है to marry or not to marry? शादी करूं या नहीं करूं? किसी को लगता
है यह कुछ नहीं है। यह कोई प्रश्न है भला! हमें तो उसका उत्तर पहले ही पता
है! परन्तु कई सारे ब्राह्मण कुमार कुमारियां जिनके जीवन में यह उज्वलंत
प्रश्न है। हमें तो मजाक ही लगता है। जैसे कोरोना लोगों को मजाक लगता है तब
तक, जब तक वह हो ना जाए खुद को। तब तक मजाक ही लगता है और जब हो जाता है,
तब कुछ और होने लगता है। जिसने अनुभव किया वही यह जान सकता है। बाकियों के
लिए तो ये ऐसे ही है। जैसे हमारा कोई लेना देना ही नहीं है इससे, जो हो रहा
है होने दो। ऐसा नहीं है कि भगवान ने कह दिया नहीं नहीं, नहीं करो, बर्बादी
होगा। इतना जल्दी नहीं मान लेना कोई भी बात, अध्ययन करो, study करो, फायदे
क्या हैं और नुकसान क्या है। अगर फायदे ज्यादा हैं तो go ahead! अगर नुकसान
ज्यादा है तो रुक जाओ, पर खुद अध्ययन करो कोई भी चीज का। तो छठवीं पॉइंट
कार्य साथी नहीं बनाओ। बाबा ने कहा- अगर किसी ब्रह्मण को याद करो.. जैसे
बाबा शब्द कहते ही क्या होता है- मधुरता, मिठास। उसी तरह किसी ब्रह्मण को
याद करो तो क्या हो, खुशी का अनुभव हो! ऐसे आपस में प्रेम के, स्नेह के,
सहयोग के संबंध हो। पर इसका मतलब ये नहीं है कि कार्यसाथी को ही लाइफ
पार्टनर बना दो, क्योंकि उसमें बंधन चालू हो जाता है फिर, तो ये छठवीं
पॉइंट।
7) सातवीं पॉइंट- साथ जाना और साथ आना, दो बातें। ब्रह्मा बाप के साथ जाना
और साथ आना। साथ जाना कैसे? बराती बनकर नहीं, दूर के संबंधी बनकर नहीं,
नजदीक। ताकि रॉयल फेमिली में आए फर्स्ट डिविशन में, तो जाना और आना.. जाना
और आना। इसमें भी कहां जा रहे हैं हम, ये भी प्रश्न है, निषेध, कहां जा
रहें हैं? ब्रह्मण बने हैं पर जा कहां रहें है? ये प्रश्न। ये सातवां।
8) आठवां- आठवां में बाबा ने क्या कहा? 8 और 8.. नया वर्ष चालू हो रहा है,
कौन सा- 1988. आठ का क्या महत्व बताया? अष्ट रत्न, अष्ट शक्तियां, अष्ट
राजधानी... vertical या longitudinal? अष्ट राजधानियां कैसी हैं- एक ही साथ
या एक के नीचे एक? एक साथ अष्ट राजधानी स्थापित होगी। और क्या है अष्ट?
अष्ट डिगज, अष्ट दिक्पाल, अष्ट शक्तियां। इस्लाम में कहा जाता है जो स्वर्ग
है, बहिष्त, उसके आठ द्वार हैं। इस्लाम में कहा जाता है- जो अल्लाह है, जिस
तख्त पर बैठता है उसको आठ फरिश्ते पकड़ के हैं। और आठ क्या है- अष्ट
लक्ष्मियां हैं, अष्ट लक्ष्मी के अलग-अलग नाम हैं। अष्ट दिशाएं, अष्ट
विनायक बहुत सारी चीजें हैं। ब्रह्मण जीवन में आठ बातें हैं अगर जिस
ब्रह्मण जीवन में ये आठ बातें नहीं हैं अर्थात वो दिनचर्या अपूर्ण है-
• पहला- अमृतवेला।
• दूसरा- मुरली चिंतन, अध्ययन।
• तीसरा- भोजन, याद में बनाना, याद में खाना।
• चौथा- ट्रैफिक कंट्रोल।
• पांचवां- कर्मयोग।
• छठवां- नुमा शाम का योग।
• सातवां- स्वाध्याय।
• आठवां- चार्ट लिखना।
ये आठों के आठों चीजें जिसकी दिनचर्या में नहीं है वो ब्रह्मण नहीं, शूद्र
है। पहला अमृतवेला। दूसरा- मुरली चिंतन, पढ़ना, लिखना, अध्यनन करना, सुनना
सबकुछ। तीसरा- भोजन, याद में बनाना, याद में खाना। चौथा- ट्रैफिक कंट्रोल।
पांचवां- कर्मयोग। सबकुछ है पर योग सेवा ही नहीं करते, खाना पीना सोना,
सेवा है ही नहीं। क्या कहेंगे इसको ब्रह्मण कहेंगे क्या? अगला नुमाशाम का
योग, रोज ही मिस हो रहा है, नुमाशाम के योग में ही कुछ कुछ और कर रहे हैं
खेल कूद या भोजन या और कुछ। अगला- स्वाध्याय, अध्यन। और लास्ट चार्ट लिखना,
आठ। इस मुरली में बाबा ने क्या कहा? आठ की स्मृति करके अब दृढ़ संकल्प करो
कि बाप समान बनना ही है। और ब्रह्मा बाप भी क्या था? तुम्हारे जैसा ही,
उसकी भी 84 की कहानी, उसका भी पूज्य-पुजारी का पार्ट, उसका भी पुराने
हिसाब, उसके भी पुराने संबंध, उसका भी पुराने संस्कार, सब कुछ उसका भी वैसे
ही था, उसके भी जैसे सब कुछ तुम्हारा वैसे ही सब कुछ उसका भी संबंध-संपर्क!
उस जैसा बनना किसमें- संकल्प, बोल में और कर्म में। तो ये थी 8। 8 और 8। तो
हमारे ब्राह्मण जीवन में भी ये आठ बातें दिनचर्या में हो।
दूसरे कुछ आठ संकल्प करने है, कुछ 8 बातें छोड़नी हैं। लिस्ट बनानी है कि
मेरे जीवन में कौन सी ऐसी बातें हैं जो होनी नहीं चाहिए और जो है जबरदस्ती।
कुछ भी हो सकती है.. रात को नींद ही नहीं आती, ये भी तो disturbance है।
बार बार बीमार पड़ते रहते हैं, ये भी तो disturbance है। क्यों बीमार पड़ते
रहते हैं? बीमार वास्तव में पड़ना ही नहीं चाहिए। बीमार पड़ रहे हैं अर्थात
कोई सूक्ष्म पाप हो रहा है प्रकृति के खिलाफ, प्रकृति के नियमों का उल्लंघन
कर रहे हैं। ना तो बीमार पड़ना चाहिए, ना तो बूढ़ा होना चाहिए, ना तो
मृत्यु, ऐसा कहा गया है। अगर शरीर में ऐसा कुछ है ही नहीं कि जिससे बीमारी
हो, जिसमें बुढ़ापा आए और जिससे मृत्यु हो। Eternal है फिजिकल बॉडी भी, ऐसा
कहां जाता है। वो तो pollution हो गया उसमें, इसलिए यह सब हो रहा है। Detox
the body, शुद्ध कर दो इस शरीर को। तो कोई कारण ही नहीं है कि वो बूढ़ा हो,
कोई कारण ही नहीं है कि बीमारी हो। बीमार हो रहे हैं अर्थात बहुत बड़ी गलती
हो रही है कहीं ना कहीं। जिनको covid हो गया है और जिन्होंने quarantine
में 14 दिन, 17 दिन बिताए हैं, उसके बाद में भी उनकी दिनचर्या वही है जो
पहले थी, उनका भोजन यदि वही है जो पहले था, अर्थात अध्ययन नहीं किया है
अपने शरीर का! आत्मा का जितना ध्यान दे रहे हैं, उतना शरीर का कम दे रहे
हैं। जितना आत्मा का अध्ययन है, उससे भी अधिक शरीर का अध्ययन करना है।
Mysterious है यह शरीर! क्या है ये? बहुत जादुई है। समझ नहीं आता इसका काम
कैसे चलता है, कैसे सब कुछ हो रहा है इस शरीर में है आश्चर्य है ये। आत्मा
तो आश्चर्य है ही, शरीर उससे भी बड़ा आश्चर्य है। क्यों कोई मरता है, क्यों
कोई नहीं मरता? कोई कुछ-कुछ ऐसे पेशेंट.. अभी भी है दो लोग हैं, जिनको कि
हमने सब बता दिया था कि ये नहीं बचेंगे, उन्होंने भी कहा ठीक है। मान लिया
बेटों ने दोनों। पर माताजी अभी डिस्चार्ज की तैयारी में हैं! क्यों? कौन सा
वह फैक्टर है कि जिसकी वजह से कोई जिंदा रहता है और कोई मर जाता है? ये
मरता क्यों है व्यक्ति? प्रश्न है, आश्चर्य है, मिस्ट्री है यह सारा! कितनी
बार हमने देखा है, अभी अभी 2 same age females 20-20 age, दोनों ही
serious, दोनों ही वेंटिलेटर पर, एक बच गई एक नहीं बची। बहुत आश्चर्य है हर
चीज का। तो कहां थे हम? आठ!
9) उसके बाद में नौवां- दो बातें। बाप का और दादा का पार्ट। बाबा ने है
कहा- इन दोनों का भी पार्ट है और तुम्हारे साथ पार्ट है क्योंकि यह मीठा
बंधन है। और यह कर्म बंधन नहीं है, दुख का बंधन नहीं है, यह पार्ट है। वो
निराकारी है, ये साकारी है पर उसका इसके साथ पार्ट है। इससे भी ये सीखना है
कि हमारा भी कुछ आत्माओं के साथ पार्ट है। सोचो-
एक ट्रेन चालू है। उस ट्रेन में हम बैठे हैं.. उस ट्रेन में मां-बाप बैठे
है, ट्रेन चालू है फिर ट्रेन चलते चलते एक टाइम आ गया मां उतर गई आगे बाप
उतर गया, उनका पार्ट पूरा हो गया उनका स्टेशन आ गया वो निकल गए। फिर दूसरे
लोग आ गए ट्रेन में, हमारी उनसे दोस्ती हो गई, हम आगे बढ़ रहे हैं..हम आगे
बढ़ रहे हैं, वो भी उतरने लगे भाई, बहन, मित्र, संबंधी, पत्नी, बच्चे, उतर
रहे हैं। हो सकता है हम ही उतर गए कहीं बीच में। ये ट्रेन है जीवन की,
जिसमें लोग आ रहे हैं, जा रहे हैं। हमारा आत्माओं के साथ पार्ट है, पार्ट
खत्म हो रहा है A to Z part खत्म हो गया, वो चला गया, वो आ गया। इसमें दुख
कैसा? जिसकी मंजिल आ गई, वो उतर गया। जिसका स्टेशन आ गया, वो उतर गया। वो
क्यों रुकेगा तुम्हारे लिए? उसको वहीं उतरना है, वो नहीं रुकेगा। उसको जाना
है। उसको अपना गांव दिखाई देने लग गया। तुम कहोगे कि नहीं रुको रुको रुको,
वो कहेंगे नहीं, वो मेरा गांव है। या फिर उसके नए हिसाब उन लोगों के साथ
है, वो व्यक्ति वहां भाग कर चला जाऊंगा या चली जाएगी। कितने लोग चले गए!
रोज जा रहे हैं! मां-बाप बचपन के अपने बच्चों की फोटो देखने में लगे हुए
हैं और बच्चे अपने मां बाप के फोटो देखने में लगे हुए हैं। गहरा दुख है!
कुछ भी समझाओ नहीं समझते, आत्मा परमात्मा का ज्ञान होने वाले भी फेल है, तो
संसार वाले की क्या दशा! जो ये कहते हैं कि आत्मा अजर अमर अविनाशी है वह भी
दुखी हैं! आत्मा की अमरता का ज्ञान देने वाले, तो फिर क्या संसार की
आत्माओं की दशा... तो ये नौवां।
10) दसवां- 10 पॉइंट दो प्रकार की आत्माएं - ज्ञानी और अज्ञानी। ज्ञानी
अर्थात दुआएं, फरिश्ता! और अज्ञानी अर्थात धुआं, विकार! कभी फुल विकार तो
कभी व्यर्थ, यह भी विकार है। यह दो प्रकार की आत्माएं दिखी।
11) 11वां- स्वयं पर कृपा और दूसरे पर कृपा। स्वयं पर कृपा अर्थात ना
व्यर्थ का वर्णन, ना व्यर्थ का चिंतन। ना सोचना ना वर्णन करना। कितना
व्यर्थ चल रहा है अम्बार लगे हैं व्यर्थ के, हर एक का वर्णन करते जाओ तो
ज्ञान योग के लिए तो time ही नहीं है, इसी में जीवन चला जाएगा। सुबह से
लेकर रात तक.. उसने किया, इसने ये किया! ये ऐसा करता है, वो वैसा करता है!
व्यर्थ ही व्यर्थ.... व्यर्थ ही व्यर्थ....व्यर्थ ही व्यर्थ!! संसार ही
व्यर्थ पर खड़ा है इस समय तो, इतनी न्यूज है संसार में इतनी news! दूसरा-
दूसरों पर रहम। कैसे? किसी में कोई कमजोरी है उसकी कमजोरी का वर्णन नहीं,
उसका चिंतन नहीं और ही रहम उसके प्रति। यही फरिश्ता अर्थात embodiment of
blessings is Angel! दुआओं का स्वरूप अर्थात फरिश्ता। तो ज्ञानी और अज्ञानी
ये ग्यारहवीं पॉइंट।
12) और लास्ट पॉइंट आज की मुरली में फिर दो बातें- चोपड़ा कैसा हो
तुम्हारा? साफ और स्पष्ट! रहना यही है पर बाप समान बन कर रहो। जो हिसाब बने
हैं, अब नए नहीं बनाना है फर्स्ट, नए bondages create नहीं करनी है, जो है
वह है अब उनको खत्म करना है और नए नहीं बनाना है। नए-नए संबंध बनाते जाना
अर्थात फिर से धंसते जाना है कार्मिक अकाउंट में। तो ऐसी आज की मुरली में
कितनी बातें थी? 12.. सबसे पहले-
• पहला- संगम और प्रेरणा।
• दूसरा- आकारी और साकारी और बुद्धि का अभिमान।
• तीसरा- डबल हीरो।
• चौथा- बधाई और मुबारक।
• पांचवा- दिलखुश मिठाई, खाना और खिलाना।
• छठवां- साथी, पार्टनर नहीं बना देना किसी को। अभी भी कोई कोई है खोज में,
सिंगल है चतुर्भुज बनना चाहते हैं, संगम पर ही, सतयुग के लिए धैर्य नहीं
है।
• सातवां- जाना और आना।
• आठवां- 8-8,
• नवां- बाप का पार्ट और दादा का पार्ट।
• दसवां- दो प्रकार की आत्माएं। ज्ञानी और अज्ञानी, धुआं यदि निकल रहा है
तो कौन है? धुंधुकारी। मुरली में आता है ना धुंधुकारी आत्मा, धुंधुकारी
नहीं बनना है मैं कौन हूं फरिश्ते से नीचे तो नहीं आ गया बदले का भाव है,
फरिश्ते से नीचे तो नहीं आ गया? क्रोध जागा, बदला जागा, फरिश्ते भाग गए।
• ग्यारहवां- कृपा। खुद पर कृपा करनी है। मैं सबसे बड़ा कृपा का पात्र हूं
संसार में, इतनी दयनीय स्थिति है। मास्टर, merciful, दयालु, कृपालु खुद पर,
और फिर संसार पर।
• और लास्ट प्वाइंट, बारहवां- Accounts को क्या करना है? साफ और स्पष्ट।
ऐसे हिम्मत वाले बच्चों को, ऐसे अकाउंट साफ और स्पष्ट रखने वाले बच्चों को,
ऐसे डॉट लगाने वाले बच्चों को, ऐसे बाप समान बच्चों को, ऐसे साथ आने और
जाने वाले बच्चों को, ऐसे लाइटहाउस माइट हाउस बच्चों को, ऐसे मुबारक हर समय
देने वाले बच्चों को, ऐसे हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना रखने
वाले बच्चों को, ऐसे त्रिमूर्ति बाप के बच्चों को, ऐसे श्रेष्ठ संकल्प बोल
और कर्म वाले बच्चों को, ऐसे दुआओं के स्वरूप बच्चों को, फरिश्ता बच्चों
को, धुआं वाले नहीं, धुआं निकालने वाले नहीं, काले वाले नहीं, चिमनी वाले
नहीं... ऐसे और ढेर सारे स्वमान वाले बच्चों को बापदादा का याद प्यार, गुड
नाइट और नमस्ते। हम रूहानी बच्चों की रूहानी बापदादा को याद प्यार गुड नाइट
और नमस्ते! ओम शांति।