ओम शांति। ईसा
के लगभग 700 वर्ष पूर्व बल्क में एक राजा था- इब्राहिम। बल्क जो
अफगानिस्तान में है। जैसे भारत में सिद्धार्थ गौतम है, जिसने राज पाठ का
त्याग कर सन्यास ले लिया था। उसी तरह सूफी परंपराओं में बादशाह इब्राहिम
है, और इब्राहिम के जीवन में कैसे वैराग्य आया, उसकी सूफियों ने ढेर सारी
कहानियां कही है। उसमें से एक कहानी- वो समाज था दास प्रथा का, राजाओं के
पास दास होते थे और कहा जाता था इब्राहिम का जो खास गुलाम था, वह किसी कारण
कहीं चला गया तो किसी दूसरे गुलाम की नियुक्ति करनी थी। इब्राहिम बहुत बड़ा
सम्राट था। साहित्य में लिखा है- उसकी 16000 रानियां थी, 180 करोड़ घोड़े
उसके पास थे।
कुछ चोर किसी
जंगल से गुजर रहे थे। उन्होंने देखा, एक व्यक्ति है बड़ा ही तगड़ा, सुंदर
काया। और वो सारे चोर मिलकर उस व्यक्ति को पकड़ लेते हैं यह सोचकर की इसको
बाजार में बेच देंगे, गुलाम की तरह। वो व्यक्ति वास्तव में एक सूफी फकीर
था। वो चोरों उसे पकड़ने आते हैं वो कुछ नहीं कहता पकड़ने देता है। चोरों
को भी आश्चर्य होता है कि चाहे तो यह व्यक्ति हम सबको पछाड़ सकता है, इतना
बलवान और शक्तिशाली दिखने में है! उसे पकड़ लेते हैं, हाथ में बेड़ियां डाल
देते हैं और उसे ले चलने लगते हैं। वो व्यक्ति कहता है कि इन बेड़ियों की
क्या जरूरत है मैं खुद ही चलने को तैयार हूं। उन चोरों को आश्चर्य लगता है
कि ये ऐसा व्यक्ति है! वह कहता है- मैं जीवन के सहज प्रभावों के साथ बहता
हूं। उसे पकड़ कर वो लोग बाजार में ले आते हैं बेचने के लिए। उसी बाजार में
इब्राहिम गुजर रहा होता है। वह देखता है यह गुलाम तो बहुत अच्छा है और उसको
वो खरीद लेता है, उसे अपने रथ पर बिठाता है और ले चलता है। बातचीत होती है
वह गुलाम से पूछता है तुम्हें भोजन में क्या पसंद है? वो गुलाम कहता है जो
आप खिलाएंगे। इब्राहिम पूछता है तुम्हें पहनने में क्या चाहिए? वह कहता है
जो आप पहनाएंगे! मैंने सब मालिक की इच्छा पर छोड़ दिया है! इब्राहिम को
आश्चर्य होता है लगाव सा हो जाता है इस नए व्यक्ति से। महल पहुंचता है,
इब्राहिम कहता है- तुम्हें किस तरह की व्यवस्था चाहिए यह बताओ। जैसे तुम्हें
व्यवस्था चाहिए वैसे तुमको करके देंगे गुलाम कहता है- "मुझे तो कुछ भी नहीं
चाहिए! जिस तरह आप रखोगे, जहां आप रखोगे वैसे ही मैं रहूंगा! मालिक की मर्जी
ही मेरी मर्जी... मालिक की मर्जी से बहना ही मेरा जीवन।" जैसे ही इब्राहिम
इस बात को सुनता है, चेतना के कपाट खुल जाते हैं। सोचने लगता है इतने सालों
से मैं ढूंढ ही रहा था ऐसे व्यक्तियों को, या फिर ऐसे किसी गुरु को जो मुझे
उस परमात्मा का मार्ग बता दे। अब तक जिन जिन के पास गया सभी अहंकारी थे।
ज्ञान कहीं से नहीं मिला। सच्चा वास्तविक गुरु तो यह है! और इब्राहिम उस
गुरु के चरणों में गिर पड़ता है उस गुलाम के चरणों में। कैसा यह समर्पण है
तुम्हारा, कैसा यह प्रेम है तुम्हारा उस परमात्मा से!
सहज। जीवन
सहज बहे। अपनी मर्जी सहज बहे उसकी मर्जी के साथ। जीवन सहज सतत प्रवाह हो।
और कहा जाता है इब्राहिम के जीवन में, ऐसे तो ढ़ेर प्रसंग है सूफियों ने
बहुत सी कहानियां लिखी हैं, ऐसा वैराग्य आता है कि वह सब कुछ छोड़ देता है।
कहां उसकी 16000 रानियां थी! अर्थात व्यक्ति में सुख नहीं है। अगर होता तो
क्यों यह राजे महाराजे व्यक्तियों को छोड़कर, राज प्रसाद को छोड़कर, वैभवों
को छोड़कर सुख की तलाश में निकलते। सुख व्यक्तियों में नहीं है, वैभव में नहीं
है, शरीरों में नहीं है। कितनी सोचने की बात है! जरूर बड़ा गहरा कारण होगा
कि जिनके पास सब कुछ था वह सब कुछ छोड़कर निकल पड़े! अर्थात वह जो सब कुछ
है, वो सब कुछ नहीं है। जो उसकी मर्जी, जहां वह बिठाए, जहां वो रखें, जो वह
खिलाएं और जो हो पहनाए... राजी तेरी रज़ा में। यही तो समर्पण है! समर्पण
अर्थात संपूर्ण। चक्र अर्थात सर्कल। यदि कोई सर्कल है, उसमें जरा सा भी टूटा
हुआ रहे तो क्या उसे सर्कल कहेंगे? समर्पण अर्थात संपूर्ण समर्पण अर्थात
100% surrender, यदि एक परसेंट भी कमी तो वह सरेंडर नहीं, क्योंकि सर्कल
पूर्ण नहीं हो रहा है। क्या ऐसा प्रभु प्रेम हमारे जीवन में है? क्या ऐसा
परमात्म प्रेम हमारे जीवन में है? कि उस प्रेम के आगे इस संसार का हर सुख,
हर वस्तु, हर वैभव, हर संबंध, हर प्राप्ति गौण लगे, व्यर्थ लगे?!
तो आज की
मुरली में क्या कहा बाबा ने? किस विषय की चर्चा है? ज्ञान की चर्चा है या
प्रेम की चर्चा है? ज्ञान की नहीं है, प्रेममयी ज्ञान की, प्रेम युक्त
ज्ञान की, क्योंकि प्रेम बीज है तो पानी क्या है? स्नेह। और फल क्या है?
प्राप्ति। ज्ञान के बीज को स्नेह से सींचना है, तो प्राप्ति होगी।
कैसा है यह
रूहानी प्रेम? परमात्मा प्रेम कैसा है? क्या विशेषताएं हैं इस प्रेम की?
निस्वार्थ है! और कैसा है ये प्रेम? रूहानी है। अंग्रेजी में शब्द है
platonic love. Platonic अर्थात non physical अपार्थिव, पार्थिव नहीं,
शारीरिक नहीं, दैहिक नहीं.. non physical..! शरीर का कोई particle इस प्रेम
को स्पर्श नहीं करता, ऐसा प्रेम! तो कैसा है यह प्रेम? अविनाशी है। कैसा है
यह प्रेम? आत्मिक। कैसा है यह प्रेम? सच्चा। कैसा है यह प्रेम? क्या करता
है यह प्रेम?
आज के मुरली
में 8 बातें हैं इस प्रेम के विषय में।
1) सबसे पहला-
यह प्रेम आत्मिक प्रेम है, यह प्रेम परमात्म प्रेम है, ये प्रेम रूहानी
प्रेम है, यह प्रेम अविनाशी प्रेम है, ये प्रेम सच्चा प्रेम है! इस प्रेम
की तुलना यदि संसार के प्रेम से किया जाए तो संसार के सभी प्रेम झूठे हैं!
We live in the world of illusion. लेखक कहता है- हम एक भ्रम के जगत में
जीते हैं, जिसे हम सत्य सोचते हैं, वह असत्य है। जो वास्तविकता है उसके
reverse हम सोचते हैं, वह है ही नहीं सत्य। We live in the world of
deceptions! हम एक भ्रम में, एक धोखे में जीते हैं, क्योंकि जो-जो हम सोचते
हैं, वो सब, वास्तविकता उससे कई भिन्न है या फिर विपरीत है। हम सोचते हैं
सब मुझसे कितना प्यार करते हैं, but the reality is reverse. जब तक इस
निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जाता कि मैं भ्रम में हूं, सत्य की यात्रा शुरू ही
नहीं होती। जिसे हम सत्य समझ रहे हैं वह असत्य हैं। तो सबसे पहली बात 8 बातें
हैं इस प्रेम के विषय में। यह जो परमात्मा प्रेम है कैसा है? निस्वार्थ।
संसार के सभी संबंधों में स्वार्थ समाया हुआ है। यह प्रेम सच्चा है,
निस्वार्थ है, अविनाशी है। इसका कोई आदि-अंत नहीं है, संसार के सभी संबंधों
का आदि है और अंत है। A है और Z है। शुरू होते हैं और खत्म होते हैं।
हम सभी ट्रेन
में बैठे हुए हैं, ट्रेन चालू हो गई हमारे जन्म के साथ। एक समय आया, मां का
स्टेशन आ गया, वह उतर गई। फिर बाप का स्टेशन आया वह उतर गया। और कभी-कभी
दोनों एक साथ उतर गए। फिर तो बड़ी पीड़ा होती है ऐसे समय में! पिछले 1 साल
में यह बहुत ज्यादा हुआ है, एक साथ ही ट्रेन से उतर गए। और फिर कोई दूसरा आ
गया वो ट्रेन में बैठा और उससे बहुत अच्छी दोस्ती हो गई और अच्छा लगने लगा
उसका स्वभाव, और फिर एक दिन वो भी उतर गया। फिर दूसरा चढ़ा, फिर वह उतरा।
फिर तीसरा चढ़ा, फिर वह उतरा। और एक दिन हम ही उतर गए! पर ट्रेन तो चालू
है। पर चढ़ना उतरना तो लगा ही है। ना किसी के आने का सुख, ना किसी के जाने
का दुख, ना मान की कामना, ना अपमान का भय - इसे वैराग्य कहा जाता है।
भक्ति मार्ग
में दिखाया है शंकर तपस्या में खोया है। तीन जगह पर, कभी तो पहाड़ों पर है,
सदियां बीत जाती है उसे पता नहीं चलता है, तो कभी घने वनों में है, तो कभी
कहां पर श्मशान में है। यह तीन जगह उसे बड़ी पसंद है, वो श्मशान जो वैराग्य
दिलाती है शरीर में भष्म रमा है। वो जंगल जहां प्रकृति के आवाजों के
अतिरिक्त कोई आवाज नहीं और वह हिमाछादित पर्वत जहां प्रशांत वायुमंडल है।
चढ़ना उतरना चालू ही है। संसार का कोई संबंध अविनाशी नहीं है।
तो सबसे पहली
बात ये प्रभु प्रेम है, ये परमात्मा प्रेम है, ये परमात्मा मोहब्बत, प्रीत,
स्नेह, निस्वार्थ है! सच्चा है! अविनाशी है! आत्मिक है! दैहिक नहीं है। जिस
प्रेम में बीच में शरीर आ जाता है वहां distrubance चालू हो जाते हैं, जिस
प्रेम में अंत तक शरीर आता ही नहीं बीच में, वो लंबा समय चलता है। शरीर के
आते ही हलचल शुरू।
वैराग्य की
एक और परिभाषा है-
• इस शरीर के एक कण से भी मोह नहीं। इस शरीर के किसी एक particle से भी, एक
cell से भी, एक कोशिका से भी मोह नहीं। यह वैराग्य की परिभाषा है। ऐसा
अनित्य बोध शरीर के प्रति, ऐसा टठस्त भाव, ऐसी सजगता।
2) दूसरी बात
ये प्रभु प्रेम क्या करता है? सारे कल्प के लिए स्नेही बना देता है! क्योंकि
ये स्नेह ब्रह्मण जीवन की नीव है, foundation है। एक जन्म के लिए स्नेही नहीं
बनाता है, सारे कल्प के लिए स्नेही, लवली बना देता है। लास्ट तक स्वभाव में
स्नेही स्वरूप रहेगा, 5000 साल तक स्नेही समाया रहेगा। अगर वह प्रेम इस समय
उत्पन्न हो जाए हृदय में। यह दूसरी बात स्नेह की।
3) तीसरा- ये
स्नेह क्या करता है? सच्चा आनंद का आधार है। संसार में आनंद तो है ही नहीं।
यह मात्र ऐसा प्रेम है, divine love, जिससे क्या होगा? सच्चा आनंद उत्पन्न
होगा हृदय में! नहीं तो आनंद की झलक कहां? जहां देखो वहां दुख ही दुख है,
पीड़ा ही पीड़ा है, दर्द ही दर्द है, संसार डूबा है दर्द में। आनंद की अनुभूति
कहां है यहां? एक प्रभु प्रेम ही है, जिसमें आत्मा जैसे ही डूब जाती है,
आनंद की लहरें लहराने लगती है। ना सुख ना दुख दोनों से परे- आनंद! यह तीसरी
बात।
4) चौथा - यह
प्रभु प्रेम, ये परमात्म स्नेह क्या है? चुंबक। क्या करता है ये चुंबक? ये
magnet है spiritual, क्या करता है? Transformation! परिवर्तन कर देता है
आत्माओं को। जो अशुद्ध आत्माएं हैं, जो अपवित्र आत्माएं हैं, उनके हृदय में
भी प्रभु प्रेम उत्पन्न कर देता है! पर क्या इतना प्रभु प्रेम हमारे हृदय
में है? जैसा वो चलाएं, जहां वह रखें, जो वो खिलाएं.... क्या करे जो प्रभु
प्रेम सभी हदों को पार कर जाए!
5) पांचवां -
यह प्रभु प्रेम किस चीज का आधार है? अधिकार और नशे का आधार है। जिस ह्रदय
में प्रभु प्रेम होगा, परमात्म स्नेह होगा वह कैसा होगा? अधिकारी होगा।
क्योंकि इस अधिकार से बड़ा इस संसार में और कोई अधिकार नहीं! परमात्मा खुद
ये अधिकार दे रहा है!
एक छोटा सा
बच्चा अपनी मां के साथ किसी दुकान में जाता है। बच्चा दिखने में बहुत ही
cute सलोना है, chubby chubby, उस दुकानदार को बड़ा पसंद आता है। और चॉकलेट
का एक डिब्बा उसके सामने ही रखता है और बच्चे से कहता है कि जितना तुमको
चाहिए ले लो। बच्चा इंकार कर देता है। वह दुकानदार कहता है तो, क्यों? वो
कहता है- आप दो, नहीं तो मैं लूंगा नहीं तो नहीं लूंगा। बच्चे की विनम्रता
देखकर दुकानदार तो और ही खुश हो जाता है और चॉकलेट निकाल कर उसे दे देता
है। मां और बेटा घर आते हैं, मां इतनी खुश होती है मेरा बेटा कितना सयाना,
कितना होशियार! परिचय दिया विनम्रता का। पूछती है कि तुमने ऐसा क्यों किया?
वह कहता है कि जब मैंने चॉकलेट देखें, तो मुझे लगा कि अभी जाकर ले लूं। पर
बाद में सोचा कि मेरा हाथ कितना छोटा है, केवल दो या तीन आएंगे! और अंकल के
जो हाथ है, वो कैसे है? बड़े हैं। इसलिए मैंने उनसे कहा कि आप दे दो। और
मैंने हाथ फैला दिए तो कितने सारी चॉकलेट आ गए! परमात्मा अंकल आया है, उसे
देने दो। भर देगा झोली, तुम केवल फैला कर रख दो। पात्र बन जाओ। खजाना अपने
आप गिरने लगेगा। पांचवा- परमात्मा स्नेह क्या कर देता है? अधिकारी बना देता
है। क्या कर देता है? रूहानी नशे में ला देता है, रूहानी नशे का आधार है।
6) छठवां -
यह परमात्म प्रेम ब्राह्मण जीवन को क्या कर देता है? रमणीक। रूखा-सूखा नहीं,
बंजर भूमि नहीं है यह जीवन, रमणीक जीवन है, हंसते.. नाचते..
गाते..फरिश्ते..अवतार हो तुम, बुद्ध नहीं मीरा, डांसिंग मसीहा। "पग घुंघरू
बांध मीरा नाची रे", ज्ञान मीरा है।
7) सातवा -
संसार ने क्या कर दिया इस दिल का? कितने टुकड़े किए? बात मत पूछो! हर दिन
टुकड़े होते रहे हैं बचपन से, जिसने दिल लगाया उसने एक दिन तलवार चला दी।
जिस-जिस से दिल लगाया, जिस-जिस से प्यार किया, ऐसा कोई है जिससे प्यार किया
और उसने धोखा ना दिया? अगर कोई ऐसा है तो तैयार हो जाओ भविष्य में वह भी हो
जाएगा। टुकड़े-टुकड़े कर दिए और प्रभु प्रेम ने क्या किए सारे टुकड़े को?
जोड़ दिए! दिल के टुकड़े हजार, कोई यहां गिरा कोई वहां, कितने टुकड़े थे
कहां-कहां गिरे थे पता ही नहीं भगवान ने सारे टुकड़ों को जोड़ा!
एक पिता
न्यूज़ पेपर पढ़ रहे हैं। वह बच्चा बार-बार आता है इधर से कुछ करता है, कभी
उधर से कुछ करता है। बहुत डिस्टर्ब करता है, पिताजी को लगता है क्या करें?
इसको कैसे बिजी करूं? एक चित्र लेते हैं, उसमें बहुत सारी drawing बनी हुई
होती है। उसके टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं, और उसको कहते हैं कि तुम इस को
जोड़ो। और पिताजी को लगता है यह 1 घंटे करते रहेगा। पर वह 5 मिनट में आ जाता
है और जोड़ देता है। वो उसको पूछते हैं कि किया कैसे? वो कहता है बहुत आसान
है, आपने यह जो चित्र दिए हैं ना, इसके पीछे भारत का चित्र था, बस मैंने
उतना जोड़ दिया। तो दिल के टुकड़े जो यहां वहां गिरे थे ना, उस चित्र के
पीछे एक तुम्हारे संपूर्ण स्वरूप का चित्र था। बस वो बाप ने जोड़ दिया और
इतने सारे टुकड़े जो थे, वो जुड़ गए। नहीं तो वो टुकड़े कहां गिरे वो ढूंढना
ही कितना मुश्किल है, कोई यहां कोई वहां, कोई विदेश में कहां गिरा, कोई कहां
गिरा। ये सातवां।
8) आठवां -
ये स्नेह क्या कर देता है? सहज कर देता है। ये स्नेह क्या कर देता है?
मेहनत से मुक्त कर देता है। नहीं तो ये ज्ञान कैसा है, केवल दिमागी ज्ञान
ना हो। दिमागी ज्ञान होगा, अगर केवल दिमाग तक गया हुआ है तो क्या होगा?
मेहनत। क्या होगा? क्या, क्यों, कैसे, ऐसा क्यों, वैसा क्यों, ढेर सारे
प्रश्न। परंतु जहां प्रेम है, जहां स्नेह है, वहां समर्पण है। वह परवाना
है, वह पूछता नहीं है- यह क्या है, यह क्यों है, यह कैसे।
• स्नेही की
बहुत अच्छी परिभाषा इस मुरली में बाबा ने दी है- स्नेह अर्थात अनुभूति के
सागर में समा जाना, स्नेह अर्थात प्राप्तियों के सागर में समा जाना। इस
मुरली में दो ऐसे महावाक्य हैं इतने शक्तिशाली। दूसरा है, वह तो बहुत ही
पावरफुल है जिसको हमलोग सब रिपीट करेंगे एक साथ बाद में। पर पहला वाक्य यह
है स्नेह की परिभाषा- स्नेह अर्थात सागर में डूब जाना, कौन से सागर में?
प्राप्तियों के सागर में डूब जाना। अनुभूतियों के सागर में डूब जाना। स्नेह
एक विशेष अनुभूति है, बाबा ने कहा। यह साधारण अनुभूति नहीं है। स्नेह भगवान
के लिए उत्पन्न हो जाना बहुत बड़ा भाग्य है! बहुत बड़ा भाग्य! पता नहीं
किस-किस जन्म में क्या-क्या पुण्य किए होंगे। कितनी पूजाएं, प्रार्थनाएं,
कितनी तपस्या की होंगी, तब कहीं जाकर यह परमात्म प्रेम इस हृदय में उत्पन्न
हुआ है! Rare is the heart, rarest of the rare activity, act है ये संसार
की। जो सहज, प्राकृतिक, नैसर्गिक, कुदरती, नेचुरल प्रेम है प्रभु के लिए।
जो आनंद उसकी कुटिया में बैठकर मिलता है वह संसार में कहीं बैठकर नहीं मिलता।
जो आनंद शांति स्तंभ पर मिलता है, वह आनंद और कहां पर मिलेगा? जो आनंद
हिस्ट्री हॉल में है, जो आनंद बाबा के कमरे में है.. ये चारों स्थान
पॉवरफुल electric field हैं, magnetic field है वहां पर। सोचो एक ऐसे
electric feild में प्रवेश कर रहे हैं चारों धामों में प्रवेश करते समय, कि
वहां मुझे कुछ नहीं करना है, बस समर्पित कर देना है। जो काम करना है वह
करेगा, वो इलेक्ट्रिक प्रवेश करेगी चेतना में। पूरा बॉडी, पूरा शरीर, पूरा
मन, पूरी वृत्तियां revitalized, चेंज होगी। एक element और दूसरे element
में क्या अंतर है? एटॉमिक नंबर चेंज कर दो। अभी जो ये स्टील के एटॉमिक नंबर
चेंज कर दो, वह गोल्ड बन जाएगा। बस इतना ही तो फर्क है दो धातुओं में, और
क्या फर्क है! तांबे में क्या फर्क है, लोहे में क्या फर्क है? और सोने में
क्या? एटॉमिक नंबर चेंज हो रहे हैं। वैसे ही ये चार धाम इलेक्ट्रिक फील्ड
है, मैग्नेटिक फील्ड है। वहां जाते ही सारे एटॉमिक नंबर इधर-उधर होने लगेंगे,
सारी काया इधर-उधर होने लगेगी, बस उस भाव से प्रवेश करना है, कि मैं कहां
प्रवेश कर रहा हूं? एक electric feild में। और समर्पित कर दो। देखो क्या
होता है। Shock लगना चाहिए। झटके। झुटके नहीं। सहज प्रभु प्रेम उत्पन्न हो
जाए, तपस्या।
योग भट्टी की
परिभाषा है- तपस्या। तपस्या की परिभाषा है- संस्कार परिवर्तन, संस्कार
परिवर्तन अर्थात संस्कृति परिवर्तन। आंतरिक संस्कृति ही परिवर्तन हो जाए।
आत्मा के एटॉमिक नंबर इधर-उधर हो जाए, change हो जाए। यहीं पर अनुभव हो उस
angelic body का, यहीं पर! सतयुग में नहीं, यहीं पर उस देवतायी शरीर का
अनुभव हो, उस कंचन काया का यहीं पर अनुभव हो! यहीं उड़ने का अनुभव हो जाए!
यही लगे की चल नहीं रहा हूं, उड़ रहा हूं। जितना शरीर में प्राण शक्ति होगी,
उतना उड़ने का अनुभव होगा, चार्ज कर दो स्वयं को।
दो विधियां
है प्रभु प्रेम को बढ़ाने की। वैसे तो ढेर है, पर आज हम दो देखेंगे।
• पहली -
भोजन। सारी भोजन की प्रक्रिया को राजयोग का प्रयोग बना लेना। भोजन याद में
बनाया जाए, मौन में बनाया जाए, मौन में खाया जाए तो वह भोजन खाने की क्रिया
प्रार्थना हो जाएगी, यज्ञ हो जाएगी तपस्या हो जाएगी, योग में गिना जाएगा।
अपनी दृष्टि से उस थाली को चार्ज कर दो। एक- एक निवाला, एक-एक कण प्योरिटी
की किरणों से भर दो। और अहोभाव से, कृतज्ञता के भाव से, धन्यवाद के भाव से,
कौन खिला रहा है? उसे खिलाने दो। हमारे हाथ बहुत छोटे हैं, उसके हाथ बड़े
हैं। मुंह खोलो बस, वह खिलाएगा। यह भाव कि मेरी पालना यज्ञ से हो रही है।
किसी देहधारी से पालना नहीं हो रही है, किसी मनुष्य के पैसों से पालना नहीं
हो रही है। जो गृहस्त में रहते हैं, जो मधुबन निवासी नहीं है, वह भी यही
समझे कि हमारे पालना यज्ञ से हो रही है। और उससे भी बड़ा संकल्प है- मैं
स्वयं ही यज्ञ हूं। महायज्ञ से पालना हो रही है। भगवान खिला रहा है।
जल्दी-जल्दी नहीं खाना है, धीरे-धीरे। अभी अभी खाता हूं फिर योग करने जाता
हूं... योग करने जाता हूं नहीं, यही योग है। वह चलना भी राजयोग हो जाए, वह
उठना भी राजयोग हो जाए, खड़ा होना भी राजयोग, खाना भी राजयोग हो जाए, पीना
भी राजयोग, सोना भी राजयोग, जीवन राजयोग की प्रयोगशाला बन जाए। नहाना भी
राजयोग, मैं नहा रहा हूं, पानी का एक-एक कतरा एक-एक विकार को धो रहा है।
सिर्फ शरीर स्वच्छ नहीं हो रहा है, मन स्वच्छ हो रहा है, जन्म जन्म के
विकार दग्ध हो रहे हैं। चेतना प्रज्वलित हो रही है, ऊर्जा का आरोहण हो रहा
है, कुण्डलिनी जाग रही है। यह भाव। उठो और भागो बाबा के कमरे में, नहीं।
उठना ही योग है। नहाना ही योग है। चलना ही योग, बोलना ही योग, हंसना ही योग।
तुम हंसो तो क्या हो जाए? क्या लगे लोगों को, जब तुम हंसों तो क्या लगे?
जैसे फूल झड़ रहे हो। तुम्हारी हंसी में भी प्योरिटी हो, तुम्हारे सोने में
भी प्योरिटी, तुम्हारे जागने में भी प्योरिटी, ऐसा प्योरिटी का बल!
• आज का
वरदान है ना, संकल्प में भी प्योरिटी। यह प्रथा बंद करो, कौन सी प्रथा बंद
करने को कहा बाबा ने? Stop this custom, this tradition of 3 Ps. कौन से 3
P पता है? पहला- पाप, फिर पश्चाताप, फिर माफी( pardon). पाप, पश्चाताप, माफी,
छुट्टी हो गई। नहीं। छुट्टी नहीं होगी। एक-एक कर्म का हिसाब है। जो-जो तुमने
ब्राह्मण बनने के बाद किया उसका लेखा-जोखा है। दाग तो रहेगा। पाप, पश्चाताप
pardon- बाबा ने कहा- इस रीति को खत्म कर दो। Stop this custom, stop this
tradition.
• ऐसी जागृत
अवस्था में रहना है कि पाप ही असंभव हो जाए। प्रति पल सजग, प्रति क्षण सजग।
अंदर ऐसी रूहानी क्रांति निरंतर हो, कि मूर्छा हो ही ना! ऊपर सारे कार्य
चालू है, सर्कल-वर्तुल पर अंदर सजगता है। ऊपर सेवाएं चालू है, ऊपर बातचीत
चालू है, ऊपर बोल रहे हैं पर जैसे ही वो हो जाए, एकदम जैसे एक मौन केंद्र
खींचे। और जहां जैसे ही चेतना प्रवेश करें, फिर किसी से कोई लेना देना नहीं,
कुछ पता नहीं कौन क्या है। परंतु जब कर्म क्षेत्र पर है तो कर्म ही सब कुछ
है। संपूर्ण समर्पण से, complete involvement से, तल्लीनता से किया जा रहा
है। उसके बावजूद भी भीतर सजगता है, भीतर साक्षी भाव है। भीतर संपूर्ण
डिटैचमेंट है। किसी से कोई लेना देना नहीं है। परंतु जब इस सर्कल पर आ रहें
हैं तो complete involvement है। यह एक ऐसा बैलेंस है, एक तरफ संपूर्ण
तल्लीनता दूसरी तरफ सजगता और साक्षी भाव। एक तरफ अटैचमेंट दिखाई दे रही है,
है नहीं, दिख रही है, परंतु अंदर भीतर detached है। क्या यह भाव हो सकता
है? इसका लक्ष्य रखना है। सेवा कर रहे हैं तो सेवा ही सब कुछ है, पूरा उसमें
जी जान से कर रहे हैं, परंतु जैसे ही पूरी हुई, भीतर एक निष्कंप केंद्र है
जो हिलता नहीं है, जो अडोल है, वहां पहुंच जाना।
तो कहां थे
हम? प्रभु प्रेम पर। तो प्रभु प्रेम अर्थात्, परमात्म स्नेह अर्थात? सहज।
बहुत भाग्य से ये प्रेम मिला है। परंतु ये प्रेम मिलने के बाद भी बच्चे बाबा
से क्या कंप्लेन करते हैं- रचता का ज्ञान मिल गया, रचयिता का ज्ञान मिल जाए,
आत्मा है ये पता चल गया, परमात्मा का ज्ञान मिल गया, ब्राह्मण बन गए, सारी
प्राप्तियां हो गई। और क्या क्या हो गया, मधुबन में आ गए। यहां पर रहने लगे,
यहां सेवा करने लगे, यहां समर्पणमयी जीवन है, सेवा केंद्र पर चले गए, इतने
साल हो गए ज्ञान में, फिर भी.. but, फिर भी.. but.. फिर भी क्या? निरंतर
याद नहीं है, याद में मेहनत है, सहज नहीं है, बाबा क्या करें? सेवाएं बहुत
कर ली, अमृतवेला बहुत उठ लिया, मुरलियां बहुत सुन ली, सुना ली, लिख ली, लिखा
ली। कितनी मुरलियां लिख ली होंगी उसका तो कोई हिसाब ही नहीं है। पता नहीं
अनगिनत डायरियां भर दी जब से ज्ञान में आए तब से आज तक, क्या करें उनका समझ
नहीं आता है कितनी डायरियां भर दी। फिर भी... उत्तर क्या है भगवान का? क्यों
हो रहा है? Heart leakages, heart block तो सुना होगा, heart leakages है
ये। कई-कई लोग होते हैं, बचपन से ही heart की जो valve है leak होती है। जो
खून ऊपर से नीचे बहता है, नीचे के चेंबर में आने के बाद फिर ऊपर चला जाता
है, pure impure मिक्स हो जाता है, गड़बड़ हो जाता है, पेशेंट को chest
pain होते रहता है, धड़कन बढ़ती है, सांस फूलता है। पता चलता है एक valve
leak हो रही है, ट्रीटमेंट - या तो रिपेयर करो या तो रिप्लेसमेंट। अगर कम
लीक हो रही है तो रिपेयर से काम हो जाएगा, अगर बहुत ही खराब हो गई है तो
रिप्लेसमेंट।
बाबा ने कहा-
तुम्हारे प्रॉब्लम क्या है? तुम्हारा heart leakages! जब ह्रदय में प्रभु
प्रेम भरा है वहां से leakage, hole, crack, revise, कारण? क्यों leakages
है heart में? क्या कारण है? कारण क्या है लीकेज का? दो प्रकार के लगाव।
• 1) किसमें
व्यक्ति में, उस व्यक्ति के शरीर में, उस व्यक्ति के विशेषता में, उस
व्यक्ति से हद की प्राप्ति में, यह पहला लगाव। दूसरा वैभवों में लगाव। ये
पहला कारण।
• दूसरा कारण-
घृणा। ईर्ष्या। किससे? व्यक्ति से। वो भी झुकाव की ही अवस्था है। जिससे
बहुत नफरत है, उसको क्रिटिसाइज करते हैं, अवसर देखते हैं कि कब ऐसा कहें कि
जिससे वो आहत हो जाए और हमारा बदला पूरा हो जाए। यह भी तो उसी का चिंतन है!
रावण को अंत में किसका चिंतन रहता था दिन-रात? राम का। कंस दिन-रात क्या
देखते रहता था? कृष्ण.. कृष्ण..कृष्ण। उसी तरह जिससे विरोध है, जिससे घृणा
है, ईर्ष्या है उसका भी चिंतन चालू रहता है। बाबा ने कहा है- याद करेंगे
बाप को, याद आएगा वो। चलाएंगे स्वदर्शन, चलेगा प्रदर्शन। तो ये दूसरा।
और पहला?
लगाव। लगाव है किसी से। अच्छा लगता है वो। खतरनाक तो तब बन जाता है जब उसका
शरीर अच्छा लगने लगता है, उसका रूप अच्छा लगने लगता है, उसकी विशेषता अच्छी
लगने लगती है, उसी से हद की प्राप्ति हो रही है। जब तक वो वहां है हम सेफ
हैं। उसकी छत्रछाया में रह रहे हैं जैसे। वह भी हमारे गांव का, हम भी उसी
गांव के, उसी के साथ काम करना है तो थोड़ा सेफ्टी है, इंचार्ज।
• लगाव जहां
पर है वहां पर परमात्म प्रेम नहीं है। भगवान बड़ा नटखट है कोई दूसरा आ गया
तो वो नहीं टिकता है- "नटखट तेरा लाल यशोदा नटखट तेरा लाल", बहुत ही ज्यादा
नटखट है वो चला जाता है, भाग जाता है।
वो कहता है- मैं। बाइबल में क्या लिखा है? I, God, thy lord, I am a
jealous God. मैं बड़ा ही ईर्ष्यालु परमात्मा हूं। मेरे अतिरिक्त किसी को नहीं
रखना अंदर, रखा तो मैं रूठ जाऊंगा, मैं चला जाऊंगा।
किसी से भी
लगाव, किसी भी व्यक्ति से लगाव। बाबा ने कहा- बच्चे बड़े होशियार हैं। क्या
कहतें हैं- लगाव नहीं है, अच्छा लगता है, उसके साथ सेवा करने में मजा आता
है। अच्छा लगता है, उसका स्वभाव अच्छा है, उसमें ये विशेषता है, उसमें वो
विशेषता है। ये मत भूलना ट्रेन में बैठे हैं, कभी भी उतर सकता है वो, फिर
रोते बैठना पड़ेगा। क्योंकि ट्रेन तो निरंतर चालू ही है। नए यात्री आ रहे
हैं। आज ही की मुरली में बाबा ने कहा- यात्रा पर हो तुम, तुम रूहानी यात्री
हो, बाप तुम्हारा साथी है। और ब्राह्मण परिवार भी तुम्हारा साथी है। यात्रा
चालू है, संगठन में यात्रा करते हैं तो मजा आता है, खुशी होती है, पार्टियों
से मुलाकात।
लगाव, संकल्प
में, कर्म में, बोल में। परिणाम- दो। यदि किसी से भी लगाव है, घृणा है, या
ईर्ष्या है, कुछ भी है तो दो परिणाम है। कौन से? एक fluctuation, दूसरा
dissatisfaction.
• पहला है
fluctuation- कभी योगी, कभी सहज योगी, कभी मुश्किल योगी। कभी याद, कभी
फरियाद। कभी मस्त, कभी दिलशिकस्त। Fluctuating mind है, हलचल है मन में।
हलचल है इसका अर्थ ही किसी से लगाव है। व्यक्ति से नहीं है तो जरूर वैभव से
है। वैभव से नहीं है तो जरूर किसी स्थान से है। किसी ना किसी में तो है, या
किसी अतीत की स्मृतियों से है। जो मनुष्य का स्वभाव है या तो अतीत में जीता
है, या तो भविष्य में जीता है। वर्तमान में कम जीता है! वर्तमान में जीना
ही जीवन है वास्तव में। परंतु वर्तमान का ये जो मार्ग है बड़ा ही संकरा है।
Narrow is the path.. जीसस कहते हैं, बड़ा ही संकरा है। मन बड़े-बड़े रास्तों
पर चला जाता है क्योंकि अतीत के रास्ते बड़े बड़े हैं, भविष्य के रास्ते भी
बहुत बड़े-बड़े हैं पर जो वर्तमान का है, वह बहुत ही छोटा है। इतनी सी
पगडंडी है, मन कहता है यहां नहीं चलना है मुझे, पीछे जाना है, कभी पीछे चला
जाता है कभी आगे चला जाता है, narrow is the path! तो पहला - यदि मन डवाडोल
हो रहा है, यदि मन डोलते ही रहता है, कभी सहज लगता है, कभी मुश्किल लगता
है, कभी अमृतवेले उठते हैं, कभी नहीं उठते हैं, कभी 3:00 बजे उठते हैं, कभी
2:00 बजे उठते हैं, कभी 3:30 बजे उठते हैं, कभी 4:00, तो कभी फिर बात ही मत
पूछो, चुपचाप किसी को बिना बताए कोई देखे ना, बाबा के कमरे में... क्योंकि
रोज देखने वाले तो सोचेंगे आज कहां है ये! क्यों इतना fluctuating mind है?
जरूर कहीं लगाव है। पहला fluctuation.
• दूसरा है
Dissatisfaction- दूसरे कहेंगे तुम कितने भाग्यशाली हो, तुम कितने सुखी हो।
वो कहेंगे- मेरे जैसा दुखी कोई नहीं। दूसरे कहेंगे- तुम बहुत अच्छे हो, वो
कहेंगे- कहां अच्छा। उसे सिर्फ अप्राप्ति ही अप्राप्ति, असंतुष्टता ही
असंतुष्टता दिखेगी जीवन में। और अपनी असंतुष्टता के लिए किसको दोषी ठहराएगा?
किसी और को। इसकी वजह से ऐसा ही, इसको हटा दो तो सब सुख शांति जीवन में आ
जाएगी। डिपार्टमेंट चेंज हो जाए बस, फिर तो पुरुषार्थ ही पुरुषार्थ। यह
टाइम चेंज कर दो बस, फिर तो ऐसा पुरुषार्थ करूंगा कल सुबह तक कि बाप समान।
बस बाबा यह जो बाजू में योग में बैठा है ना, इसको कहीं से बुलावा आ जाए बस।
कोई बड़ी सेवा में विदेश ही भेज दो इसको, चलेगा। पर भेजो, कुछ तो करो। तो
बाबा ऐसा कहते है ना, बच्चे से, कि "हिसाब बनाओ तुम और चुक्तू करें बाप?!"
दूसरों को दोषी ठहराते हैं।
वह कौन-सा
शक्तिशाली वाक्य है यहां पर भाग्य विधाता के बारे में? कौन बताएगा? बहुत ही
पावरफुल वाक्य है यहां पर एक, कौन सा? ऐसा वाक्य है कि जो जीवन भर याद रखना
है.. यहां पर, भाग्य विधाता के विषय में। बच्चे दूसरों को दोषी ठहराते हैं
कि इसकी वजह से ऐसा हो रहा है। कौन सा वाक्य है? कौन बताएगा? जल्दी। याद करो
मुरली। एक होता है picture thinking, ये पता है क्या होता है? पढ़ते-पढ़ते
शब्दों को नहीं देखना, शब्दों को देखते-देखते ही चित्रों में परिवर्तित कर
देना। इसको कहते हैं picture thinking.
विदेश में एक
बहुत ही पावरफुल साइंटिस्ट हुआ था कभी- निकोला टेस्ला। हमें लगता है वह इस
समय इसी ब्राह्मण परिवार में कहीं है क्योंकि उसकी सारी विचारधारा ज्ञान से
मिलती है, जिसने इलेक्ट्रिक करंट की खोज की- निकोला टेस्ला। इतनी शक्तिशाली
और इतनी फोटोग्राफिक मेमोरी थी जिसकी, 6-6, 8-8 भाषाएं जानता था.. अनुभव
उसको visions दिखते थे बचपन में। अगर उसको कुछ इन्वेंशन करना है वह
इन्वेंशन करते-करते ही पहले ही उसको मन की आंख में सब कुछ दिखाई देने लगता
था इतना डिटेल में एक-एक चीज। कोई चीज पढ़ता था तो ऐसे पढ़ता था कि वह चित्र
बन जाते थे मन की आंखों में। निकोला टेस्ला 2 घंटे सोता था बस। उतनी ही उसकी
नींद थी। उसके आगे उसको नींद नहीं आती थी और फ्रेश रहता था वो दिन भर।
क्योंकि उसका कहना था हम यह शरीर है ही नहीं, हम ऊर्जा हैं। और ऊर्जा को
केवल चार्जिंग की आवश्यकता है बस। और मेरा चार्जिंग मेरा कर्म है। The
greatest scientist ever in this world. स्वामी विवेकानंद जी की मुलाकात
हुई थी उनसे 1896 में। विवेकानंद जी ने लिखा है कि मेरे जीवन में मुझे नहीं
लगता है इससे अधिक बुद्धिमान व्यक्ति से कभी मैं मिला हूं। Nikola Tesla के
लिए कहा। अगर यह व्यक्ति अध्यात्म में आ जाए, तो वेदांत का विस्तार सारे
विश्व में हो जाएगा, अगर यह निकोला टेस्ला आध्यात्मिक क्षेत्र में आ जाए
तो, ऐसा स्वामी विवेकानंद ने लिखा है। उस प्रतिभा का वो व्यक्ति।
मुरली को
सुनते-सुनते चित्र बनाते जाना है मन में, ताकि याद रह जाए। मुरली को
पढ़ते-पढ़ते ही वो शब्द देखना है वह शब्द उड़ रहें हैं और उसको पंख लग गए
हैं, याद हो जाए। क्या वाक्य था वो? जल्दी बताओ। "जब भाग्य विधाता भाग्य बना
रहा है, परमात्मा शक्ति के आगे आत्मा की शक्ति भाग्य को हिला नहीं सकती।"
अब सब बोलेंगे हमारे पीछे- जब भाग्य विधाता भाग्य बना रहा है, परमात्मा
शक्ति के आगे आत्मा की शक्ति भाग्य को हिला नहीं सकती!" इस वाक्य को याद
करना है और अमृतवेले इसे दोहराना है- जब भाग्य विधाता मेरा भाग्य बना रहा
है, तो संसार की कोई भी आत्मा मेरे भाग्य को कैसे हिला सकती है! मुझे वह
अवश्य मिलेगा जो मेरे भाग्य में है। हो ही नहीं सकता कि यह मेरे मार्ग में
बाधक बन रहा है, मुझे opportunity नहीं मिल रही है सेवा की, मैं तो सेवा
बहुत करना चाहता हूं, चाहती हूं पर यह लोग बाधा बने हुए हैं। अरे परमात्मा
भाग्य विधाता तुम्हारा भाग्य बना रहा है! क्या परमात्मा की शक्ति के आगे
कोई आत्मा की शक्ति ज्यादा है? ना, हो ही नहीं सकता। कितना शक्तिशाली वाक्य
है पूरी मुरली का! तो लगाव, झुकाव, आकर्षण, व्यक्तियों के प्रति हटा दो।
• और दूसरा
है वैभव- राम, सीता और हिरण। हलचल में ना लाए कोई भी साधन। अगर कोई भी साधन,
कोई भी वैभव, कोई भी वस्तु इस संसार की मन को वश में कर रही है, हलचल में
ला रही है, अर्थात हमारा आकर्षण हो गया है उस वैभव की तरफ, फिर ये दो चीजें
होंगी fluctuation और disatisfaction.. होगा ही होगा इसलिए इस संसार का कोई
भी साधन इतना शक्तिशाली ना हो कि वह हमें अपना गुलाम बना दे। प्रकृति के हम
मालिक हैं, प्रकृति हमारी दासी है, साधनों में इतनी शक्ति कहां इसीलिए इसका
भी अभ्यास करना है।
तो वैभव,
व्यक्ति, शरीर, विशेषता, कोई भी हमें खींचे ना। ये लीकेज है। Stop the
leakage. और एक चीज़। यदि भाई और बहन के बीच, यदि पांडव और शक्ति के बीच
बाप है तो कोई भी झगड़ा नहीं। ये भी कहा ना आज- पांडव शक्तियों को आगे रखे,
शक्ति पांडवों को आगे रखें, दोनों के बीच क्या हो? बाप। यदि बाप हट जाए तो
दो चीजें होगी। या तो आकर्षण या तो झगड़ा, या तो लगाव, या तो काम वासना
भड़केगी, या तो घृणा, नफरत ये दो ही है। पर यदि बाप बीच में है तो यह नहीं
होगा।
और लास्ट
पॉइंट- तुम कौन हो? हीरो। डबल हीरो।
ऐसी डबल हीरो
आत्माओं को, ऐसे भाग्यवान आत्माओं को, ऐसे संपूर्ण पवित्र आत्माओं को, ऐसी
रूहानी स्नेह में लवलीन आत्माओं को, ऐसे लगाव मुक्त आत्माओं को, leakage
मुक्त आत्माओं को, ऐसे crack मुक्त आत्माओं को, hole मुक्त आत्माओं को,
सीपेज मुक्त आत्माओं को, ऐसे सच्ची सीताओं को... (सच्ची सीता बनकर रहना, एक
उंगली भी, संकल्प अंगूठा भी उधर ना जाए लकीर के बाहर), ऐसे रूहानी यात्रियों
को, ऐसे बीच में बाप को रखने वाली आत्माओं को... (स्त्री और पुरुष, बीच में
से अगर भगवान चला जाता है तो प्रॉब्लम चालू। स्त्री के अध्यात्मिक प्रगति
में पुरुष का देह सबसे बड़ी बाधा है और पुरुष के अध्यात्मिक प्रगति में
स्त्री का देह सबसे बड़ी बाधा है। इसीलिए ना ही किसी को स्त्री देखो, ना ही
पुरुष देखो, चेतनाएं देखो, शक्तियां देखो और पांडव देखो बस। ऊर्जा के कण
देखो! ये कौन है? ऊर्जा का क्षेत्र है, जिसमें यह सभी ऊर्जा के कण हैं। यह
शरीर भी मेरा शरीर नहीं है, ऊर्जा है। तरंगे ही तरंगे, इसी का अनुभव करना
है। अशरीरी! बाप से प्यार अर्थात अशरीरी हो जाओ, यह बाप से प्यार का प्रणाम
है! यदि बाप से प्यार है तो एक ही शर्त है- अशरीरी हो जाओ!), ऐसे अशरीर
आत्माओं को, ऐसे प्रभु प्रेमी आत्माओं को, परमात्म प्रेमी आत्माओं को, ऐसे
रूहानी, स्नेही, निःस्वार्थ स्नेही, ढेर सारी स्वमान वाली आत्माओं को
बापदादा का याद प्यार गुड नाइट और नमस्ते! हम रूहानी बच्चों की, रूहानी बाप
को याद प्यार, गुड नाइट और नमस्ते। ओम शांति।