Murli Revision - Bk Dr. Sachin - 13-02-22


ओम शांति।

संसार में भक्ति की अजस्र धारा बहाने वाले चैतन्य महाप्रभु। 15 वी शताब्दी, उनके जीवन में वर्णन है नित्य प्रभु प्रेम में डूबे हुए, परमात्मा गुणगान गाते हुए, चैतन्य महाप्रभु। किसी वट वृक्ष के नीचे, साथी भक्तों के साथ कृष्ण लीला, कृष्ण प्रेम, कृष्ण आराधना, कृष्ण विरह में डूबे थे। चर्चा चल रही थी "भाव विभोर अवस्था" ऐसे समय पर एक बारात वहां से गुजरती है। डोली है, डोली में एक दूल्हा है बैठा है। धूप तेज, विश्राम के लिए वो बराती सोचते हैं इस वृक्ष के पास आराम किया जाए और वह दूल्हा उतरता है और वहां बैठता है और चैतन्य महाप्रभु उस दूल्हे को देखते हैं और कहते हैं। कितना सुंदर यह व्यक्ति है, कितनी सुंदर इसकी आंखें है। कितना सुंदर इसका शरीर है। सुडोल बाहुबल। परंतु अब यह शादी करने जा रहा है। संसार की चक्की में पिसने जा रहा है। संसार की चिंताओं में खपने जा रहा है। दुखों के गर्द में डूबने जा रहा है। हे प्रभु…. हे कृष्ण… यह तुम्हारा भक्त बन जाए। यह तुम्हारे प्रेम में डूब जाए। और वह जो दूल्हा है, वह जो नौजवान है वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। उस समय का विद्वान महाकवि। दिखाया है रामचंद्र पंडित वह था। वह चुपचाप बैठा है, परंतु शब्दों में शक्ति इतनी है, वातावरण ही ऐसा है, प्रभु प्रेम की तरंगे, महाप्रभु के शब्द उसके भीतर घर कर जाते हैं।

बरात आगे बढ़ती है, दूल्हा डोली में घर पहुंच गया। परंतु शब्द गूंजते रहते हैं। गूंजते रहते हैं। मुझे क्या करना है? मैं क्या करूं ? क्या वास्तव में संसार में फस जाऊं, फिर जीवन के लक्ष्य का क्या होगा…. और….. और…. जो इनको देखा, इन की वाणी में जो शक्ति थी जो वहां के जो प्रकंपन थे और जो प्रभु प्रेम वहां पर एक पल में हो गया क्या यह अनुभव खो जाएगा… और तुरंत एक दो दिन में वापस गोरंग को ढूंढते हुए वो उनके पास पहुंच जाते हैं और अपने जीवन को उनके चरणों में समर्पित करते हैं। दिखाया है कि जिस तरह चैतन्य महाप्रभु की भक्ति थी उसी तरह इनका यह जो भक्त था, वह भी ऐसा ही भक्ति पूर्ण। जिसने अपना संपूर्ण जीवन कृष्ण लीला, कृष्ण प्रेम, कृष्ण बिरहा, कृष्ण स्तुति, कृष्ण स्तवन, कृष्ण भक्ति में लगा दिया। यहां तक कि वह चैतन्य महाप्रभु का इतना अंतरंग साथी बन गया कि जो चैतन्य महाप्रभु के मन में विचार आते थे, वह वह पकड़ लेता था और ऐसा दिखाया है, चैतन्य महाप्रभु कभी-कभी एक दिन, कभी-कभी 2 दिन, कभी-कभी 3 दिन भाव समाधि में डूब जाते थे। होश ही नहीं रहता था। तीन अवस्थाओं से गुजरते थे पहली अवस्था जब पूर्ण होश में हैं तब गुणगान करते थे। दूसरी अवस्था थोड़ी सी बेहोशी। पूजा करते थे। चुप बैठते थे। तीसरी अवस्था संपूर्ण समाधि। संसार, शरीर सब भूल जाता था। उस अवस्थाओं में भी उनके मन में क्या चल रहा है। कहते हैं वह कवि राज रामचंद्र को पता चलता था।

शब्द सुने। सत्य को देखा, जाना, समझा, पहचाना और निर्णय लिया। सत्य को जाना, असत्य को जाना, नित्य को जाना, अनित्य को जाना, सार को जाना, असार को जाना, सार को पहचाना, असार को पहचाना। सार को परखा, असार को परखा। निर्णय लिया और सन्यास को ग्रहण किया।

तो आज की मुरली तीन शक्तियों का खेल।

पहली शक्ति परखना
दूसरी शक्ति निर्णय
तीसरी शक्ति ग्रहण

परख, निर्णय, ग्रहण। जीवन का सारा खेल ही इस पर आधारित है। मधुबन की पावन भूमि पर आए। अभी निर्णय करो कि अगले दिन क्या करना है। संसार के वायुमंडल से निकलकर शुद्धतम संस्कृति के तीर्थ पर आए हो। प्रभु प्रेम की भूमि पर आए हो। तो अगले 3 दिन 4 दिन मौन में गुजरे। एकांत में गुजरे। तपस्या में गुजरे। इसके लिए, क्लास के बाद जो बात करना है कर लेना उसके बाद मोबाइल ऑफ। साइलेंट नहीं, वाइब्रेटिंग मोड नहीं, स्विच ऑफ। ऑफ खुलेगा जब जाने का समय होगा तब।
तो कौन किस से मिलने आया है आज? कौन किस से मिलने आया है? होली हंस। लास्ट संडे की मुरली होली हंस की परिभाषा और आज की मुरली होली हंसों की विशेषता। होली हंस की परिभाषा क्या है?
पहला तन से स्वच्छ। आत्मा क्या है? हीरे की मूर्ति। शरीर क्या है? मंदिर। आत्मा है ट्रस्टी।
दूसरा मन। मन का क्या? मन मना भव भटकता हुआ मन अपवित्रता है वांडरिंग माइंड इज इंप्योरिटी। कितनी ऊंची परिभाषा है।
तीसरा दिल। सच्चाई। पुरुषार्थ की सच्चाई, सेवा की सच्चाई, दिखावे की नहीं, मजबूरी से नहीं, स्वार्थ से नहीं, मैंपन से नहीं।
चौथा संबंध में संतुष्टता। हल्के। तो हंस अर्थात स्वच्छ।
 

तो आज होली हंसों की विशेषता क्या है? शक्ति। किन चीजों को परखा। पांच। कौन-कौन से। किन चीजों को पहचाना, किन चीजों को जाना?
पहला स्व को जान लिया मैं कौन। मैं कौन?अधिकारी आत्मा।
दूसरा में के बाद कौन? मेरा कौन? उस परमात्मा को जान लिया जिसके विषय में संसार कुछ भी नहीं जानता। अभी भी भक्ति में लगा हुआ है, हमने उसको जाना है। उस परम को जाना है। उस परम को जाना है पाया है। कौन मिला है यह एक ही पॉइंट कितनी नशे वाली है।
तीसरा समय। समय कौन सा चल रहा है और मैं क्या कर रहा हूं। कितनी बार मुरलीयों में आता है एक-एक सेकंड। अभी शांतिवन में मुरली चली, एक एक सेकंड का संबंध, एक 1 मिनट का संबंध, एक एक जन्म का संबंध किससे है 21 जन्मों से है। टाइम वेस्ट ना करें।
अगला किसको पहचाना। परिवार को पहचाना। कौन सा परिवार है, परमात्मा परिवार, परमात्मा कुटुंब। प्रभु प्रेम परिवार। इस प्रेम को जाना। जहां की एक एक आत्मा विशेष है। अंतिम है फिर भी महान है। क्यों महान है क्योंकि उसमें तीन बातें हैं

(1) एक तो साधारण रूप में आए हुए भगवान को उसने पहचान लिया, जिसे कोई नहीं जानता। साधारण मनुष्य तन में जब वह आता है ऐसे भगवान को उसने जान लिया यह उसकी विशेषता है।
(2)
दूसरी विशेषता प्योरिटी। उसने पवित्रता को अपनाया। इसमें बाकी कोई विशेषता ना हो, संसार के कोई क्वालिफिकेशन ना हो, संसार की दृष्टि से मूर्ख है परंतु संसार के लिए जो अप्राप्ति है वह अध्यात्म में प्राप्ति है और संसार में जो प्राप्ति है वह संसार उसे प्राप्ति कहता है यहां जो मिल जाता है संसार कहता है वेस्ट और वहां जो मिल जाता है हम क्या कहते हैं वह वेस्ट।
(3) तीसरा अपने जीवन को चाहे कहीं भी रहे मन से तो समर्पित किया ही है। बाबा कहते हैं यह एक विशेषता सब में है, चाहे उसमें कितने भी अवगुण हो पर उसने बाबा को, भगवान को पहचाना है इसलिए वह महान है। किसी मुरली में बाबा ने कहा था किसी के वर्तमान संस्कार को देखो ही नहीं। क्या देखो? उसके आदि और अनादि संस्कार को देखो बस।

पांचवा किसको पहचाना कर्तव्य को। मेरा कर्तव्य क्या है। क्या संसार में भागता रहूं। क्या वही करता रहूं जो संसार के लोग कर रहे हैं, वह तुम नहीं कर सकते जो संसार के लोग कर रहे हैं। वह तुम नहीं देख सकते जो संसार के लोग देख रहे हैं। वह तुम नहीं सुन सकते तो संसार के लोग सुनते हैं। वह भोग और विलास का जीवन तुम्हारे लिए नहीं है। तुम्हारा तपस्वी जीवन है। तुम वनवाह में हो। प्रतिपल सजग प्रतिपल तटस्थ। तप कर मन मधुर मधुर मन।
तो यह पांच चीजों को पहचाना। मैं कौन, मेरा कौन, समय कौन, परिवार और कर्तव्य। इस परखने के आधार से क्या हुआ फिर निर्णय किया। फिर निर्णय लिया। क्या निर्णय लिया? क्या निर्णय लिया? "कुछ भी हो जाए बाबा को छोड़ेंगे नहीं" सहन करेंगे, मरेंगे, मिटेंगे, कुछ भी हो जाए, कितना भी सहन करना पड़े, परंतु stay on the path बाइबिल में जीसस क्राइस्ट कहता है The path is narrow यह मार्ग सकरा है बहुत तंग है। छोटा है, जा में दो ना समाए। एक तुम और वह बस दूसरा कोई नहीं है इसमें। और संसार के जो मार्ग है उसमें बहुत भीड़ है इसमें भीड़ ही नहीं है। भीड़ कम। उधर भीड़ ज्यादा है।
निर्णय के बाद फिर क्या हो गया? ग्रहण। क्या ग्रहण कर लिया? होली हंसों ने क्या ग्रहण कर लिया? किस को छोड़ा और किस को पकडा? जान लिया कि अपवित्रता क्या है कंकड़ और पवित्रता क्या है मोती है हीरा है। संसार के लोग बाबा ने कहा सहयोगी बन जाते हैं कहते हैं बहुत अच्छा है बहुत अच्छा है परंतु वह छत पर रख सकती अब तक नहीं आई है आरक्षक परख लेते तो योगी बन जाते केवल सहयोगी नहीं रहते केवल सहयोगी है बस उनकी तुलना में तुम कितने महान हो जो यहां पहुंच गए। जैसे ही बाबा का हीरो का व्यापार था परंतु जो साक्षात्कार हुए उसके बाद बाबा को सब क्या लगने लगा पत्थर का व्यापार और वो हीरे क्या लगने लगे पत्थर। इसमें बड़ा एक सूक्ष्म रहस्य छुपा हुआ है कहीं। उनका जो साथी था उससे उन्होंने कहा कि तुमको जितना चाहिए ले लो और मेरा मुझे दे दो हाफ डिवीजन। उस साथी ने जो किया फाइनेंस की दृष्टि से चीटिंग थी। कैसे? कैसे? उसने आधा-आधा तो दिया परंतु इकोनॉमिक्स की दृष्टि से। व्यापार की दृष्टि से। दैट वाज चीटिंग। कैसे? उसने पैसे खुद रखे और हीरे जो थे स्थूल वह बाबा को दे दिए। यह एक रीति से देखा जाए जो स्थूल है उसको इस तरह से नहीं करना उसने खुद रख लिया और जो हीरे थे बाबा को। परंतु इसके पीछे परमात्मा रहस्य था। वो रहस्य क्या था। उन्हीं हीरो की कीमत बाद में बहुत बढ़ गई। उसी से यज्ञ की पालना हुई वह 14 वर्ष।

आज की मुरली में दो शब्द है रहस्य और मशीनरी? कौन सा रहस्य और कौन सी मशीनरी ? चलो सोचो तब तक आगे बढ़ते हैं। उसके पीछे एक विशेषण है एक एडजेक्टिव मशीनरी कौन सी और रहस्य कौन सा। तो ब्राह्मणों ने क्या किया पहचाना परखा 5 को, निर्णय लिया जीवन का और ग्रहण किया किसको पवित्रता को। तो यह तीनों को बाबा के प्रति अप्लाई किया। सेकंड सेवा के प्रति। तीसरा आत्माओं के प्रति संबंधों में। बाबा ने सेवा में सफलता का राज सुनाया। चाहे किसी भी आत्मा के संपर्क में हूं परखना बहुत बहुत आवश्यक है। ज्ञानी अज्ञानी। मनसा वाचा कर्मणा तीनों ही प्रकार की सेवा और आत्माओं को परखने की बात की है। यह बहुत ही प्रैक्टिकल मुरली है।

आत्माओं की किन बातों को परखना है। सात बातों को। सात नही आठ बातों को।

एक बूढ़ी महिला थी जिसे थोड़ा कम दिखाई देने लगा था। अकेली रहती थी और बहुत अमीर थी। बुढ़िया भक्ति में बहुत, भगवान में बहुत विश्वास रखती थी उसका कोई था नहीं। एक दिन अचानक सन्यासी वेश में, भक्तिन के वेश में, दो महिलाएं यंग, जवान उसके घर आती हैं। कहती हैं हम भगत हैं। हम सेवा करने आए हैं सत्संग करना चाहते हैं। वह बूढ़ी महिला कहती है आओ बैठो। वह दोनों तपस्वी वेश है। चेहरे पर चमक है। तिलक है, मालाएं हैं और प्रभु प्रेम में इतनी डूबी हुई हैं। भजन करती हैं, कीर्तन करती हैं। पूरे घर का वायुमंडल ही बदल जाता है। धूप अगरबत्ती बूढ़ी मां को इतनी खुशी होती है उस मैया को, भावविभोर हो जाती है और इतना ही नहीं वह दो महिलाएँ फिर उसकी सेवा भी करती है। एक कहती हैं भोजन आज हम बनाएंगे। भोजन बनाते हैं भोग लगाते हैं। वह तो देखती ही रहती है कि कैसे प्रेम से ठाकुर जी को भोग लगाया जा रहा है और फिर प्रेम से उसको खिलाते हैं। उसकी सेवा करते हैं। उसके पाँव दबाते हैं। शाम होते होते तो वह बूढ़ी भैया उनकी भगत बन जाती है और वह इतनी निस्वार्थ उन्हें कुछ देना चाहती है कुछ पैसे कुछ सामान वह कहती हैं हम किसी से कुछ नहीं लेते। हम तो बस कहते हैं आज यहां कल कहीं और। शाम होते ही निकल जाएंगे। शाम का प्रवचन। थोड़ी सी ज्ञान की चर्चा होती है। फिर से ध्यान होता है और फिर उसको भोजन खिलाते हैं और उस माताजी को कहते हैं अब आप सो जाओ। धूप, अगरबत्ती, मंत्र वातावरण ही बदल गया है और माता जी सो जाती हैं। आधी रात को आंख खुलती है तो देखती है घर खाली है। दरवाजा खुला। तिजोरी थोड़ी हुई है। सब कुछ खाली। धोखा।
बाबा ने कहा परखो। आत्माओं को परखो। चाहे ज्ञानी या अज्ञानी परखते जाओ।

परख शक्ति में सात बातें होनी चाहिए।

पहला तीव्र। परख शक्ति को क्या करो तीव्र। शार्प डिसर्नमेंट पावर। पावर टू डिस्क्रिमिनेट, पावर टू डिसर्न। शार्प कर दो उसको।
दूसरा हर आत्मा को, हर समय, हर कर्म परखो।
तीसरा यह पहचानने की, परखने की शक्ति टोटल होनी चाहिए। पूर्ण ।
चौथा विस्तार वाली होनी चाहिए।
पांचवा बेहद की होनी चाहिए,
छठा श्रेष्ठ होनी चाहिए, यथार्थ होनी चाहिए और
सातवां करेक्शन और एडिशन करते रहो।

ऐसी है यह सातों बातें परख शक्ति की होनी चाहिए तो परख शक्ति को क्या करना है तीव्र करना है शार्प करना है, यथार्थ करना है, श्रेष्ठ बनाना है, बेहद का बनाना है, विस्तार वाली बनानी है, टोटल बनानी है सबको देख सके।

स्लोगन त्रिकालदर्शी। त्रिकालदर्शी में क्या करते रहना है दिन भर, चेकिंग और चेकिंग में क्या होनी चाहिए एडीशन और करेक्शन। बाबा ने कहा सारे दिन में चेक करते रहो या दिन के बाद चेक करते रहो और फिर होश आएगा जैसे कहते हो ना, जोश में थे अब होश में आ गए। क्योंकि दिव्य बुद्धि का वरदान तो प्राप्त हो गया है। फिर बाद में पता चलता है कि ऐसे नहीं ऐसे करना चाहिए था परंतु दाग तो नहीं परंतु बिंदी तो लग गई ना। एक पॉइंट तो आ गया ना। रजिस्टर कर्मों का साफ तो नहीं रहा ना। इसके लिए रिफाइंड करते रहना है इस शक्ति को। आत्माओं को परखते रहना है। जिससे हम इतना प्रेम करते हैं, इतनी अटैचमेंट है, क्या वास्तव में यह प्रेम है या मोह है या अटैचमेंट है। क्या है यह, नहीं तो हमारी गति इस बूढ़ी मैया जैसी हो जाएगी। विश्वास विश्वास विश्वास। हां आत्माओं पर विश्वास करना अच्छी बात है परंतु वह ब्लाइंड फेथ ना हो। परख लेना सबको। परख लो।

तो ऐसे ही आठ बातें हैं आत्मा की। उसको परखकर फिर निर्णय और फिर ग्रहण।

पहला आवश्यकता। आत्मा की आवश्यकता क्या है? नीड। मुरलीयों में बहुत सारे उदाहरण है आज। भगवान इस संसार के उदाहरण देता है समझाने के लिए। पांच छह उदाहरण है। आवश्यकता उसकी क्या है। उसकी रुचि किसमें है। वह आया है धारणा की बात समझने और हम समझा रहे सृष्टि चक्कर और 5000 साल की बात। इंटरेस्ट खत्म। वह चाहता है कि मैं लीडरशिप क्वालिटीज बनाऊं। हम चालू कर रहे हैं अखंड ब्रह्मचर्य से। ऐसा भागेगा कि फिर पीछे मुड़कर भी नहीं देखेगा कभी। वह आया है कंसंट्रेशन पावर बढ़ाने के लिए हम उसे बता रहे हैं यह देखो इस्लाम धर्म, हिंदू धर्म। उसे कोई इंटरेस्ट नहीं है तुम्हारे धर्मों में। सबसे पहला आत्मा की आवश्यकता क्या है। दूसरा आत्मा की अवस्था क्या है। आत्मा की स्थिति क्या है। किस स्थिति से आया है। बहुत पावरफुल स्थिति है या पहले ही डिस्टर्ब है, दुखी है और हमने भी निर्णय कर लिया है प्रजा तो बना कर ही छोड़ेंगे तुम अपना कुछ मत सुनाओ। ट्रेन में मिले हो पता नहीं फिर मिलेंगे या नहीं मिलेंगे। एक घंटे का समय है, बाबा शक्ति ऐसे दे दो कि एक घंटे में तुम आत्मा हूँ से चालू करके बाहर का भोजन बंद और संपूर्ण ब्रह्मचर्य और यह सेंटर का एड्रेस कहां रहते हो, यह लो कल पहुंच जाना वहां। रहम करो। बाबा ने कहां पर ऐसी बेरहमी से रहम करते हैं, एक एक की छाती पकड़कर सुनो अब जो मैं सुनाता हूं। बाबा ने कहा
फर्स्ट वह आत्मा क्या हो जाएगी दिल शिकस्त हो जाएगी।
सेकंड ज्ञान को ग्रहण नहीं कर सकेगी।
तीसरा सिद्ध और जिद करने में आ जाएगी फिर

क्योंकि हम खुद ही भूले हुए हैं मैं आत्मा हूं और फिर किसका ज्ञान सुना रहा हूं। और केवल इसलिए सुना रहा हूं क्योंकि तुम को पता नहीं अब मैं तुमको सुनाता हूं। तुम कौन हो बताओ तुम कौन हो? वह कहता है मैं फला हूं तो हमको खुशी होती है, नहीं । अब मैं तुमको समझाउंगा कि तुम आत्मा हो। तुम्हारा बाप कौन है? वह अपने बाप का नाम देता है तो हमें इतने अधिक खुशी होती है कि अब मैं इसको छोडूंगा नहीं। यह हमारे अहंकार की ऐसी तृप्ति अंदर हो रही है। तुम्हारा घर कहां है अब मैं इसको बताऊंगा वास्तव में घर कहां है। किसकी भक्ति करते हो?हनुमान। इतनी खुशी, तुम्हारी भक्ति को आज मैं देखो क्या कर देता हूं, छोड़ो यह सब भक्ति, यह देखो परमात्मा शिव ब्रह्मा तन में आया है। आ जाओ। वो कहते हैं हमारे यहां भी जब हम जिन की भक्ति करते हैं वहां पर भी ऐसा ही सेम अनुभव होता है शांति का। जैसा यहां होता है ना वैसे वहां भी है सेम है दोनों। दिलशिकस्त या तो सेकंड ग्रहण नहीं कर सकता तीसरा जिद करने लगेगा, झगड़ा करने लगेगा, फिर वह कहेगा ऐसा है हम कहेंगे ऐसा नहीं ऐसा है। वह कहेगा किसने बताया 5000 साल का है, हम कहेंगे भगवान ने बताया। कहां लिखा है? झगड़ा चालू।

अगला मूड। उसका मूड क्या है, उस आधार पर परखो। किस मूड में है वह उस आधार पर क्या है।

अगला वायुमंडल। वायुमंडल कैसा है? वायुमंडल देखकर ज्ञान दो। बाबा ने कहा नब्ज को पहचानो। डॉक्टरों के बड़े उदाहरण दिए हैं, क्या दिए। एक डॉक्टर के पास मरीज आता है डॉक्टर कहता है मेन डॉक्टर जो है वह तो छुट्टी पर है उसका बेटा है। अभी-अभी डॉक्टर बना है। वह एक्स-रे देखता है, कहता है नो चांस। तुम नहीं बच सकते। वह कहता है कुछ तो करो डॉक्टर। वह कहता है है ही नहीं। इलाज ही नहीं है। इलाज ही नहीं निकला अब तक। एक्स-रे खराब है तुम्हारा। पेशेंट बेचारा चला जाता है उदास होता है। वह कहता है कितना?वह कहता है 1 महीने से ज्यादा नहीं जिओगे। छह मास के बाद वह मरीज घूमता हुआ दिखता है डॉक्टर को। वो डॉक्टर भाग के जाता है अरे! तुम यहां। आपके पास से गया, किसी ने कहा बीस पकौड़े खाओ और मैंने खाया और मैं ठीक हो गया। वह भाग भाग के जाता है डॉक्टर अपनी डायरी में लिखता है यह पेशेंट जो था वो टैलर था, टेलर डबल निमोनिया बीस पकौड़े। कुछ दिन के बाद एक दूसरा मरीज आता है। वही बीमारी वही एक्स-रे वही सब कुछ। एक्स-रे देखकर कहता है कोई चिंता की बात नहीं। अब तक कोई इलाज नहीं था इलाज निकल गया है। बीस पकौड़े खाओ मरीज जाता है कई दिनों तक आता ही नहीं है वापस डॉक्टर खुद उसके घर पर जाता है बाजू वाला कहता है वह तो गया अपने घर आता है डॉक्टर लिखता है 20 पकौड़े टेलर बच गया यह जो था कारपेंटर था परंतु कारपेंटर नहीं बचा कंक्लूजन है एब्स्ट्रेक्ट माइंड चीजों को समझ ना सके परखना सके तो बाबा ने दो उदाहरण दिए। क्या उदाहरण दिए। एक तो बीमारी को समझ ना सके इसलिए एक बीमारी और ज्यादा बढ़ गई और दूसरा इंजेक्शन का यह जो हाई डोज है हम कई समय से सोचते थे, कई ब्राह्मण ओपीडी में आते हैं डॉक्टर साहब यह हाई डोज तो नहीं है ना। यह शब्द यहां से निकला है ब्राह्मणों ने यहां से सीखा है। तो कमजोर बाबा ने यही कहा कि आत्मा देखो। अगर वह कमजोर है देख उसमें इतनी पावर नहीं है कि तुम तुम्हारे जैसा ज्ञान हो धारण कर सकें। उसमें निश्चय नहीं है। संसार की चिंताओं में डूबी हुई है आत्मा। दुख, दर्द चिंतायें, अटैचमेंट, मोह। कहां से समझ पाएगी इतने सूक्ष्म ज्ञान को। कभी मधुबन नहीं देखा, कभी दादिया को नहीं देखा, कभी परमात्मा प्रेम का अनुभव नहीं किया, संसार में फंसी हुई आत्माएं हैं। तो परखना है।

अगला समय। समय को परखो किस समय।

अगला इच्छा। उसकी इच्छा क्या है। मुरलियों में आया है भोजन। उसे प्यास है पानी की और हम भोजन दे रहे हैं। उसे प्यार से मुक्ति की। मुक्त होना चाहता है वह। हम कहेंगे पहले मुक्ति को छोड़ो यह देखो स्वर्ग का वर्षा बाप लेकर आया है। हथेली पर बहिश्त लेकर आया है। वह कहेगा मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा बहिश्त। मुझे मुक्ति चाहिए। सन्यासी होते हैं ना उनको स्वर्ग और यह सब कांसेप्ट बिल्कुल पसंद नहीं आते। अच्छा नहीं लगता है। उनको सुख ही नहीं चाहिए। सुख दुख दोनों में प्रॉब्लम। मुक्ति चाहिए।

अगला आस्था। फेथ मुरली में सब आया है आस्था। उसका फेथ क्या है। जो आया है वह गणेश जी का भक्त है। क्या करेंगे छोड़ दो गणेश को। ना इधर के ना उधर के इसको भी छोड़ दिया उसको भी छोड़ दिया। क्या करेंगे ज्ञान उसकी आस्था को देख कर। उसके सामने शिवबाबा बिंदु रूप में आ जाए तो वह क्या कहेगा हटाओ इस बिंदु को। मेरा गणेश किधर है और हनुमान किधर। जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखी वैसी। उसको वही परमात्मा चाहिए जो मानता है। तो परख कर। तो इतनी बातें क्या क्या हो गई। पहले बताई आत्मा की क्या देखो आवश्यकता को देखो नीड।

अगला अवस्था। आत्मा के अवस्था क्या है। उसकी स्थिति क्या ह।ै

अगला और एक चीज है ग्रहण शक्ति। आठवां आत्मा की ग्रहण शक्ति कितनी है वह देखो। स्थिति, ग्रहण शक्ति, इच्छा और समय, वायुमंडल और क्या देखो आस्था। उसका फेथ किसमें है इसलिए बाबा कहते फॉर्म भराओ पहले सीधे। सेवा -हमारे अंदर जो है यह इच्छा ज्यादा ना हो कि हम दूसरों को वो सुनायें। उसे क्या चाहिए। तो परखना हैँ। ठीक है। परखने की शक्ति। परखने के बाद क्या करेंगे फिर निर्णय और निर्णय के बाद फिर ग्रहण।

परंतु यह परख शक्ति डिम कब हो जाती है उसके पीछे कारण बताएं। कौन-कौन से? सबने पढ़ी है क्या पहले मुरली कि खाली यात्रा करके आए इसलिए आज छुट्टी। आज अभी मधुबन जा रहे हैं कल से तो तपस्या करनी ही है। एक मनमत, माया की मनमत दूसरा कुसंग आत्माओं का संग हो गया। तीसरा तीसरा, तीसरा वायुमंडल यहां नहीं। तीसरा तीसरी समस्या, समय, परिस्थिति, माया के क्या? माया के क्या हो जाते हैं? बाबा ने कहा परवश बुद्धि। राइट क्या है रॉन्ग क्या है। राइट को रॉन्ग रॉन्ग को राइट, सिद्ध करने लगता है परवश होने लगते हैं। यह परवश बुद्धि की निशानी है। ऐसा होगा। अगर ऐसा होगा तो क्या करो। करेक्शन एडिशन चेकिंग। देखो देखो आज संपन्न के संपर्क में कितनी आत्माएं आई। देखो हमने उनके साथ क्या किया किस तरह का व्यवहार किया। किसको देखने के बाद मन में किस तरह के भाव जागृत हुए। उन सूक्ष्मा भावों को सूक्ष्मता से देखना है। किसी को देखकर ईर्ष्या जागी किसी को देखकर घृणा जागी नफरत जागी, किसी को देखकर लगा इनके जैसा बनना है। कितने भाव थाउजेंड्स ऑफ मूड एक ही दिन में हमारे कितने मूड होते हैं। अलग अलग अलग अलग मूड। अपने आपको देखते रहना देखते रहना देखते रहना यही अध्यात्म है। स्वाध्याय सेल्फ स्टडी सेल्फ ऑब्जरवेशन सेल्फ रिमेंबरिंग। यह मैं हूं यह देखते देखते देखते देखते क्या होगा जो नहीं चाहिए जो नहीं होना चाहिए वह निकलते जाएगा और जो चाहिए वह अगाढ़ होते जाएगा आत्मा में अपने आप। ठीक है यह सब बातें होंगी तो यह बाबा ने क्या कहा फिर भी दिव्य बुद्धि बाद में फिर इमर्ज होगी। क्यों होगी क्योंकि वरदान सबको मिला हुआ है। बाद में पता चलेगा यह कर्म करना नहीं चाहिए था ऐसा होना नहीं चाहिए था।

अब यह 4 दिन है आप सबके पास इन 4 दिनों में दो काम करने हैं। पिछले छह मास क्या-क्या हमारे जीवन में हुआ उसका सूक्ष्म अवलोकन। कौन सी घटनाएं हुई। महत्वपूर्ण कौन सी बातें हुई। कौन से सबसे ज्यादा डिस्टर्ब करने वाली बातें हुई। किसने स्थिति को बिगाड़ दिया। कौन सी धारणा है जिसमें आवश्यकता है और काम करने की। अमृतवेला कैसा रहा। यहां बैठे-बैठे कर कल सुबह अमृतवेला देखो। पिछले छह मास में क्या-क्या हुआ और एक काम अगले 6 मास की प्लानिंग यहां से करके जाना ठीक है। ये दो काम करके जाना हैं। वह प्लानिंग होगी हर चीज की पुरुषार्थ की, घर की, संबंध की, ब्रह्मचारी की, अमृत वेले की, भोजन की, समर्पित जीवन की, सेवा केंद्र की, सेवाओं की, ऑफिस की, पैसों की, हर चीज की प्लानिंग यहां बाबा के घर में करके जाना। यहां आए हो अब तक जो हुआ उसका अवलोकन, निरीक्षण, चेकिंग और यहां से जाने से पहले एक सॉलिड मास्टर प्लान बना कर जाना है पुरुषार्थ का शक्तिशाली प्लान। और क्योंकि इतने सारे ब्राह्मण आत्माओं का संगठन है एक साथ सभी उपस्थित हैं तो सबका संगठित बल। अमृतवेला योग योगी संगठित योग होगा किसी को मिस नहीं करना है। सभी भट्टी में आए हैं तो अभी भट्टी में आएं हैं तो दो तीन बातों का ध्यान। सबसे पहला मोबाइल बंद। दूसरा तपस्या। एक दूसरे से बातें करते हुए नहीं हो सकती है इसलिए आपस में बातें करना बंद। चलो तो डाउनकास्ट आईज। इसको देखो, उसको देखो, यह क्या कर रहे हो, वह क्या कर रहा है, यह कहा, वह कहा, यह साल, यह साल बहुत अच्छी है, यह स्वेटर बहुत अच्छा है, कहां से लिया, एक्स्ट्रा है क्या, और तीसरा इस कैंपस के बाहर कहीं नहीं जाना। लॉक। लॉक डाउन। क्वॉरेंटाइन। जनम जनम से विकारों की बीमारी है अभी आइसोलेशन। ठीक है। इस डिपार्टमेंट में इससे मिलूं उससे मिलूं इसको मिली उसको मिलूँ। किसी को नहीं मिलना है। पूरे हो जाए जब 4 दिन तो सबको मिल लेना अभी नहीं। अभी बड़ा गहरा ऑपरेशन करना है। ऑपरेशन चालू है, लाल बत्ती लगी हुई है, अंदर अलाउड होता है क्या किसी को? मन का ऑपरेशन करना है, चीरा मारना है, पता नहीं क्या निकलेगा, पस, मवाद, क्या-क्या निकलने वाला है। ऐसा गहरा जब ऑपरेशन, ऐसा डीप ऑपरेशन जब होने वाला है मन का उसके लिए उतना ही गहरा मौन। उतना ही गहरा एकांत, उतनी ही गहरी अंतर मुक्ता चाहिए यह भट्टी जीवन की टर्निंग प्वाइंट बन जाए। आखिरी? वह भी हो सकता है। भरोसा नहीं है ना संसार का ना हमारे शरीर का। यह सब हुआ तो क्या करना है, फिर कंफ्यूज हो गए ,वशीभूत हो गए, परेशान हो गए, दुखी हो गए। यहां पर एक सलूशन दिए हैं बाबा ने। कौन सा? कौन सा? सलूशन दिया है निमित्त आत्माएं। क्या कहा निमित्त आत्माओं को क्या करो उनको निमित्त किसने बनाया बाप ने। तुमको बाप से ज्यादा अकल है क्या? बाप से ज्यादा परख शक्ति है? निमित्त किसने बनाया है उनको? भगवान ने निमित्त बनाया है। उस सीट पर उसको किसने बिठाया है। स्वयं भगवान ने बिठाया है कोई बैठ सकता है उस सीट पर।
हमें याद है हॉस्पिटल में कभी बहुत पहले एक बहुत हाईली एजुकेटेड एक लेडी इंग्लिश लिटरेचर हिंदी लिटरेचर सब सब सब सब प्रोफेसर। किसी बहुत बड़े कॉलेज में अभी-अभी कोर्स हुआ था और वह आए थे ज्ञान में और फिर मधुबन आए और फिर हॉस्पिटल में संदली है तो उनको कहा आप संदली पर बैठो और अनुभव सुनाओ। उसने कहा इस संदली पर मैं नहीं बैठ सकती यह ब्रम्हाकुमारी बहनों की संदली है। उनके जैसा पवित्र जीवन इतना ऊंचा जीवन मेरा नहीं है। संसार के सभी सुखों को त्याग कर संसार की सभी इच्छाएं और तृष्णाओं को छोड़कर। शिक्सिक झुक झुक मर मर। एक-एक पल पेपर, संघर्ष। केवल और केवल उस परमात्मा के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर वह ब्रह्माकुमारी बहन वही एक है जो संदली पर बैठ सकती है। untouched purity। ऐसी बाल ब्रह्मचारी। आज की मुरली में बाबा ने सरस्वती को याद किया है क्या कहा? ज्ञान वीणावादिनी। जिन वीणा वादिनीयों का मंदिरों में पूजा होता है वह सभी वह सेवा केंद्रों की बहने हैं। एक बहन और संसार की हजारों। कंपैरिजन नहीं। इतना श्रेष्ठ और पवित्र उनका जीवन है तो बाबा ने कहा क्या करो। अगर वह कोई डायरेक्शन दे तो क्या समझो किस का डायरेक्शन है? बाबा का डायरेक्शन है। अगर वह गलत जैसा तुम सोचते हो तो क्या सोचो बाबा जिम्मेवार है हल्का कर दो। बाबा ने ब्रह्मा का उदाहरण दिया बाप पाप को बदल देगा अभी सुनाओ यहाँ पे दो शब्द अभी सुनायें थे। अभी गुप्त मशीनरी और रहस्य गुह्य। गुह्य रहस्य है और गुप्त मशीनरी है। यह गुहे रहस्य है और गुप्त मशीनरी हैं। बाप पाप को बदल देगा।

तो निर्णय शक्ति, परख शक्ति, ग्रहण शक्ति तीव्र करने के लिए क्या-क्या चाहिए। यहाँ पर आया है आज्ञाकारीपन चेकिंग निर्णय शक्ति, परख शक्ति, ग्रहण शक्ति तीव्र करने के लिए क्या चाहिए एकांत, क्या चाहिए मौन, क्या चाहिए अंतरमुख्ता, अपने आपको ही देखना क्या-क्या किया मैंने। छह मास मुख्य परंतु हो सके अगर मन की अवस्था इस भट्टी के दूसरे और तीसरे दिन और सूक्ष्म में हो जाए तो और पीछे जाओ 1 साल में क्या-क्या किया और पीछे जाओ 2 साल और पीछे जाओ 10 साल पीछे पीछे पीछे पीछे। जहां तक का याद आता है जीवन में। क्योंकि भट्टी अर्थात मौन और मौन में मन सूक्ष्म होते जाता है। इतना हम बोलते हैं मन स्थूल होते जाता है। सुक्ष्म सुक्ष्म सुक्ष्म सुक्ष्म होते जाते जाते फिर वह सब दिखाई देने लगता है। चीजें दिखाई देने लगती हैं चीजें कैसी हैं। things as they are, बोलते समय और सेवाएं करते समय, वातावरण में रहते समय धुंधला सा धूमिल सा हो जाता है। परंतु जब सेवाओं से यहां, यहां पर कोई किसी को सेवा नहीं है, अभी अगले चार दिन। ठीक है ना। एक ही काम है बस। तपस्या, एकांत। तो क्या समझना है निमित्त आत्मा जो है, वो जो कह रही है बस उसको फॉलो करना है। फिर गलत भी है तो वह ठीक हो जाएगा बाप ठीक कर देगा। ठीक है। और क्या कहा इस मुरली में बाबा ने। भयभीत नहीं होना है, डरना नहीं है क्यों नहीं डरना है? क्योंकि जैसे बाप हजार भुजा वाला है तुम भी कैसे हो? हजार भुजाओं वाले। तो आज अनुभव किया इसका। कैसे इधर 500 लगा दो उधर 500 लगा दो। जिसको जैसी अरेंजमेंट करनी है कर सकते हो, ऊपर या तो चार कर लो फोर डिविजंस में। धीरे धीरे चलना, किसी को धक्का ना लगे। तो भट्टी में मौन में चलना। डाउनकास्ट आईज। जहां आंखें जाती हैं एनर्जी वहां प्रवाहित होती है wherever the vision goes the energy flows ठीक है। तो तुम सब कौन हो? हजार भुजाओं वाले, डरना नहीं है।

टीचर्स को और एक बात कही है कर्मों की श्रेष्ठ गति नहीं, कर्मों की श्रेष्ठ लीला वाह मेरे श्रेष्ठ कर्म। वाह वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य वाह। संसार के लोग कर्म कूटते रहते हैं। दुखी रहते हैं। उदास होते रहते हैं, रोते रहते हैं, ऐसा क्यों किया? वैसा क्यों किया? ऐसा नहीं होना चाहिए। कर्म करते हैं पश्चाताप करते हैं, कर्म करते हैं पश्चाताप करते हैं, फिर पश्चाताप फिर संकल्प फिर प्लानिंग करते हैं फिर गिरते हैं। साइकिल है। तुम्हारा ऐसा नहीं है। तुम्हारे कर्म भी साधारण श्रेष्ठ हो जाएँ। साधारण कर्म साधारणता को विशेषता में परिवर्तित कर दो। टीचर्स से मुलाकात तो यह भी चेकिंग करनी है कि कोई भी कर्म एसा ना हो जिसके लिए पश्चात्ताप करना पड़े। तो एक तो संकल्प ये ही रखना है कि हमारी वजह से किसी को भी दुख ना हो। क्योंकि हमारी वजह से यदि किसी को भी दुख होता है तो सूक्ष्म प्रकंपन हमारे पुरुषार्थ को नीचे लाते हैं। इसके लिए कर्मों से सबको सुख देना है, वाणी से सब को सुख देना है। और क्या है मुरली में, जिस से प्यार है उसकी कमी देखी नहीं जाती। तो बाबा यह हम से कह रहे हैं। तो वह ऐसा भी कह सकता है जैसा चलना है चलो, चलते रहो। तो जैसा उसके हृदय में प्यार है वैसा हमारे हृदय में भी हो। तो एक दूसरे की कमी देखते हुए क्या करना है उसको समझो जो कि यह मेरे संस्कार हैं। हमारा भी तो कोई ऐसा संस्कार है जो हमारे सब कुछ करने के बाद भी नहीं जा रहा है उसी तरह उसका वह संस्कार है। हमने सब कुछ कर लिया पर मेरा यह संस्कार अब तक गया? नहीं गया। उसी तरह उसमें वह संस्कार नहीं है परंतु कोई दूसरा है तो जब मुझे सब कुछ करने के बाद, इतना पुरुषार्थ करने के बाद यह संस्कार नहीं मेरा नहीं जाता तो हाउ डू आई एक्सपेक्ट कि उसका भी चला जाए। वह रातो रात ठीक हो जाए। होगा ऐसा? नहीं ना। टाइम लगेगा।
 

परखना है। स्वयं को पर परखो और दूसरे को भी परखो यह भी मुरली ने कहा है। किस-किस को परखो? अपने खुद को और दूसरों के भी कर्मों को। अपने कर्मों का क्या प्रभाव हुआ है दूसरों पर और दूसरों के कर्मों का हम पर क्या प्रभाव हुआ यह भी परखो। और निमित्त आत्माओं के प्रति सम्मान, आदर्श, उनकी निंदा नहीं, झूठबाजी नहीं। यह बहन ऐसी है, यह बहन ऐसे करती है, इसने यह किया, उसने वह किया, कौन है वह? बिठाया किसने है वहां पर? भगवान ने बिठाया है ना।

कई बार हम उदाहरण देते हैं स्वामी विवेकानंद की एक भविष्यवाणी 1902 में उन्होंने शरीर छोड़ दिया था तब बहुत पहले कहीं कहा था कहीं लिखा हुआ नहीं है पर उनके जो अनन्य शिष्य थे, जब हम उनसे मिले थे, उन्होंने हमें यह बात बताई थी कि उन्होंने एक बार कहा था कि अ डे विल कम एक समय आएगा जब इंडियन लेडी क्लैड इन वाइट जब भारतीय नारी श्वेत वस्त्र धारण करेंगी एंड स्प्रेड द मैसेज ऑफ गॉड इन द वर्ल्ड सारे विश्व में परमात्मा संदेश फैलाएगी। एक भारतीय नारी और वह भारतीय नारी कौन है? बैठी है इधर। बाबा ने कहा तुम एक एक जगदंबा हो। मां समान बनने वाली, ज्ञान वीणावादिनी। मां समान बनने वाली। मैं मां हूं कितना ऊंचा स्वमान है यह। तो मां हूं तो क्या? यह सब कौन है मेरे? बच्चे। इन सब की मुझे क्या करनी है पालना। मातृत्व। मदरहुड।

ऐसे, कैसे? सी फादर करने वालीं आत्माओं को, फॉलो फादर करने वाली आत्माओं को सी ब्रदर सी सिस्टर न करने वाली आत्माओं को, ऐसी परखने की शक्ति वाली आत्माओं को ऐसे निर्णय करने वाली आत्माओं को और ग्रहण करने वाली आत्माओं को, ऐसे होली हंस आत्माओं को, ऐसे शुभ भावना शुभकामना से सफलता मूर्त बनने वाली आत्माओं को, शक्तिशाली आत्माओं को, ऐसे, ऐसे हजार भुजा वाली आत्माओं को, ऐसे वाह रे में श्रेष्ठ आत्माओं को, ऐसी वशीभूत ना होने वाली आत्माओं को, ऐसी प्रभावित ना होने वाली आत्माओं को, ऐसे निर्भय आत्माओं को, ऐसे ज्ञान वीणावादिनी मां सरस्वती समान आत्माओं को, ऐसे सम्मान देने वाली आत्माओं को, ऐसे एकांत, मौन और अंतर्मुक्ता में रहने वाली आत्माओं को, ऐसे अगले 3 दिन के लिए मोबाइल स्विच ऑफ करने वाली आत्माओं को, ऐसे एक दूसरे से बात ना करने वाली आत्माओं को, ऐसे इन इस मधुबन के कैंपस से कहीं भी बाहर ना जाने वाली आत्माओं को, ऐसे हर आत्मा को क्या क्या देखकर मूड, उसकी स्थिति, उसकी आस्था उसकी आवश्यकता, उसकी इच्छा, उसकी नब्ज देखकर ज्ञान सुनाने वाली आत्माओं को या व्यवहार करने वाली आत्माओं को ऐसे हाई डोज ना देने वाली आत्माओं को कम डॉज देने वाली आत्माओं को प्रॉपर डोज देने वाली आत्माओं को, बीमारी को परखने वाली आत्माओं को, एक पेशेंट डॉक्टर से कहता है कि डॉक्टर साहब मेरे जो ऊपर की दाढ़ thiउस में दर्द था आपने नीचे वाली दाढ़ क्यों निकाल दी? वह कहता है वह जो कीड़ा था वह नीचे की दाढ़ पर ही तो खड़ा था और ऊपर की दाढ़ को खा रहा था। ऐसे ऐसे सही इलाज करने वाली आत्माओं को। राइट डायग्नोसिस। अपने विकार का डायग्नोसिस करने वाली आत्माओं को, यह प्रेम नहीं ये मोह है जिसे मैं प्रेम समझ रहा हूँ वह तो प्रेम है ही नहीं वह तो मोह है वासना हैं, लस्ट है,तो राइट डायग्नोसिस करने वाली और बहुत सारे स्वमान वाली आत्माओं को बाप दादा का याद प्यार गुड मॉर्निंग और नमस्ते हम रूहानी बच्चों की रूहानी बापदादा को याद प्यार और गुड मॉर्निंग ओम शांति।