Murli Revision - Bk Dr. Sachin - 20-2-2022


ओम शांति

डॉ अरुण गांधी, जो कि महात्मा गांधी के ग्रैंडसन थे, मणिलाल गांधी जो थे, उन्होंने अपने जीवन का एक संस्मरण प्योर टोरिको यूनिवर्सिटी भाषण के समय बताया था। वह कहते हैं कि मैं अपने माता-पिता सहित साउथ अफ्रीका में, हम सब लोग, हमारा परिवार शिफ्ट हो गया। तरबन के लगभग 18 मील दूर हमारा घर था। वह गांव जैसा था। वहां से टर्बन लगभग 18 मील दूरी पर था और जहां हम रहते थे वहां मनोरंजन के कोई साधन नहीं थे। और एक बार पिताजी ने कहा कि मैं शहर जा रहा हूं तुम भी साथ चलो। तो तरुण गांधी कहते हैं कि मैं बहुत खुश हो गया। मेरी उम्र 16 बरस की थी और माँ ने बहुत बड़ी एक लिस्ट दे दी, किराना सामान की जो चीजें शहर से लानी थी। वहां कॉन्फ्रेंस थी 1 दिन की। पिताजी ने कहा की कार की सर्विसिंग करनी है। कान्फ्रेंस के बाद हमें छोड़ दिया वहां से और पिता जी ने कहा कार की सर्विसिंग कर लो और 5:00 बजे तक कार लेकर वापस आ जाओ। 5:30 बज गया और बेटा वह सारी खरीदारी करता है जो मां ने कही थी। कार सर्विसिंग को दे दिया और फिर उसको लगता है कि बड़े शहर में आए हैं, फिर फिल्म देखी जाए और वो वेस्टर्न टॉकीज जो होती है वहां पर चला जाता है, क्योंकि छोटे गांव में तो फिल्म होती नहीं और वह फिल्म देखते देखते 5:30 हो जाते हैं। और फिर वो गैराज पर पहुंचते-पहुंचते 6:00 बज जाते है। सोचता है अब क्या करूं और कार लेकर पहुंचता है। पिताजी पूछते हैं इतना लेट क्यों हो गया तो वो कहता है कार तैयार नहीं थी। उसे फिर बाद में पता चलता है कि उसके पिताजी ने पहले ही वहां फोन कर लिया था।

डॉक्टर अरुण गांधी लिखते हैं, अपने पिता के लिए, मणिलाल गांधी के लिए कि उनकी आंखों से आंसू आ गए। और वह यह कहने लगे पता नहीं मेरी शिक्षा में कहां गलती हो गई कि मैंने तुम्हें सत्य की शिक्षा नहीं दी। और उसके बाद उसके पिता पैदल घर तक आते हैं। वह कहता हैं लेखक, डॉक्टर अरुण कहते हैं कि मैं गाड़ी चलाता हुआ सामने था और पिताजी पैदल पैदल। एक प्रायश्चित की कि मेरे बेटे को मैं सत्य की शिक्षा नहीं दे पाया। साढ़े पांच घंटे मैं धीरे धीरे गाड़ी चलाता रहा और पिताजी पैदल पैदल पैदल पीछे लेक्चर में उन्होंने कहा कि अगर पिताजी ने उस दिन मुझे डांटा होता, कहा होता कि तुम झूठ बोलते हो, तो शायद इतना असर मुझ पर नहीं होता। पर उस रात वह 5:30 -6 घंटा मैं गाड़ी चलाता रहा। बीच-बीच में देखता था पिताजी पीछे पैदल आ रहे हैं।
सत्य के एक बीज का अंकुरण हुआ। उसके पिता भी उसके ग्रैंडफादर की तरह सत्य के पथ पर चलने वाले थे। यह संस्मरण यूनिवर्सिटी ऑफ यूट्यूरीको मे उन्होंने सुनाया था। बड़ा ही मार्मिक प्रसंग है।

बोल। बोल की शिक्षा, बोल कैसे हो…. शब्दों में ऊर्जा होती है। स्वरों में ऊर्जा होती है,शक्ति। स्वर ही आरती, अरदास, अजान बनती है। स्वर ही शब्द ही संकल्प की अभिव्यक्ति है।

तो आज सुबह की अव्यक्त वाणी कौन किसको देख रहा है? भगवान ने अपने लिए एक नया टाइटल दिया। कौन सा? अनादि रचयिता। ब्राह्मणों का अनादि रचयिता। और हम कौन? उसकी समीप और श्रेष्ठ और तीसरा? डायरेक्ट। डायरेक्ट रचना। भगवान के द्वारा रचे हुए। टीचर्स से मुलाकात। किसके बने, किसने बनाया यह नशा।

तो बाबा ने क्या देखा? कितने दिन का रिकॉर्ड देखा? (तीन-चार दिन) बस! उस पर से सारा निष्कर्ष निकाल लिया। कितने दिन का रिकॉर्ड? तीन-चार दिन का रिकॉर्ड। अगर हो सकता है उस समय कोई मधुबन में आया हो तो उसका तो अच्छा ही होगा। अगर दो चार का रिकॉर्ड, दो चार दिनों का देखा तो ये मिला, दो चार साल का देखता तो क्या मिलता। उसे अपने रिकॉर्ड चेंज करने पड़ते। क्या पाया उसने अपनी चेकिंग में? 40-60 का हिसाब। क्या पाया उसने, दो प्रकार के बच्चे। उसे कभी दो प्रकार के दिखते, कभी तीन, कभी चार, कभी पांच। फर्स्ट डिवीजन, सेकंड डिवीजन पुरुषार्थी, पुरूषार्थी, तीव्र पुरूषार्थी। प्राप्ति पालना और पढ़ाई समान फिर भी अंतर। लक्ष्य लक्षण में अंतर।

यूज़ और लूज। अन्तर। कोई यूज़ कर रहें हैं और कोई कोई लूज कर रहे हैं। किनमें? संकल्प में और वाणी में। वाणी कैसी होनी चाहिए, यदि यह प्रश्न किसी ब्राह्मण से पूछा जाए, तो कम से कम एक घंटा हर एक भाषण दे सकता है। वह कैसा बोलता है उसकी बात नहीं चल रही, कैसी होनी चाहिए। तुरंत, बिना रुके बोला जा सकता है कि वाणी कैसी होनी चाहिए। कम होनी चाहिए, धीरे होनी चाहिए, सत्य होनी चाहिए, प्रिय होनी चाहिए, श्रीमत अनुसार होनी चाहिए, आत्माभिमानी स्थिति में होनी चाहिए, मीठा, मधुर, कम, शक्तिशाली, समर्थ, युक्तियुक्त, योगयुक्त, राजयुक्त, त्रिकालदर्शी स्थिति में होनी चाहिए, दूसरों को सुख देने वाली होनी चाहिए, स्वमान वाली होनी चाहिए, वरदानी होनी चाहिए, महावाक्य होने चाहिए तुम्हारे, सादे वाक्य नहीं महावाक्य, अनमोल होने चाहिए। जैसे दूसरे चात्रक हों सुने, ऐसी होनी चाहिए। होनी चाहिए, हम बोलते हैं उसकी बात नहीं कर रहे।

किसी स्कूल में वार्षिक उत्सव में कोई नाटक होने वाला था। और उस नाटक में एक दृश्य ऐसा था कि शिक्षक पढ़ा रहा है और विद्यार्थी सामने बैठे हैं। इसको मंच पर दिखाना था। तो शिक्षक चाहता है कि यह नाटक एकदम रियल दिखे, वास्तविक। तो वह बच्चों को सिखाता है कि मैं ऐसे खड़े रहूंगा, तुम सामने बैठे रहोगे और पीछे जो बैठेंगे वह स्टूडेंट्स इधर आओ। तुम आपस में खुसर फुसुर करते रहना जैसा वास्तविक स्कूलों में होता है ताकि हमारा यह जो नाटक है लाइव, जैसा होता है वैसा वास्तविक दिखे रियल। नाटक चालू होता है और वह दृश्य आता है जिसमें शिक्षक सामने है और वह सारे स्टूडेंट्स विद्यार्थी बैठे हैं और पीछे के विद्यार्थी, उनको कहां गया था खुसुर फुसुर करते रहना तो वह कहते हैं…… खुसुर फुसुर, खुसुर फुसुर, खुसुर फुसुर……। क्योंकि उन्हें यही तो कहा था.. खुसुर फुसुर, जोर-जोर से… खुसुर फुसुर। अरे…! वह करने को कहा गया था, रिपीट करने को नहीं कहा गया था। बाप को याद करो, बाप को याद करो, बाप को याद करो, बाप को याद करो। अरे करना है बोलना नहीं है। तो बाबा ने दो बातों की चेकिंग की
संकल्प शक्ति और वाणी की शक्ति। संकल्प शक्ति के बारे में क्या कहा? कहा ही नहीं, वाणी के लिए कहा है। नहीं, कहा है आगे। क्या कहा? क्या कहा? साइंस के उदाहरण दिए है। विमान। तुम्हारे पास भी यंत्र है, तुम्हारे पास भी यंत्र है, तुम्हारे पास कौन सा यंत्र है, साइंस के पास भी यंत्र हैं। साइंस के यंत्र किस पर निर्भर करता है उसमें पैसा है, उसमें खर्चा है, उसमें समय लगता ह, उसमें मौसम……। अब तुम्हारे पास कौन सा यंत्र है? तुम्हारे पास कौन सा विमान है? तुम्हारे पास यंत्र है विमान है तीव्र बुद्धि का और शुद्ध मन का। जब चाहो तब टेक ऑफ। खर्चा नहीं, पैसा नहीं, समय सेकंड, अभी के अभी, जब चाहो तब। शक्तियां, वर्सा हैं शक्तियां। प्रॉपर्टी है शक्तियां, सर्व शक्तियां। मास्टर सर्वशक्तिमान को कोई भी रोक नहीं सकता। अभी शक्तियां जमा करनी है फिर क्या हो जाएगा? शक्तियों के भिखारी तुम्हारे पास आएंगे। इसके लिए सर्व शक्तियां मेरे पास है? अभ्यास करते रहना सारा स्टाक टू लेट, लेट।

संकल्प शक्ति। संकल्प की शक्ति के प्रयोग।

पहला दूसरों के विचारों को पढ़ना, आत्माओं का आवाहन करना।
दूसर आत्माओं से बात करना।
तीसरा आत्माओं को साक्षात्कार कराना,
आत्माओं में बल भरना, आत्माओं को वरदान देना,
आत्माओं का कनेक्शन बाप से जोड़ना।

संकल्प द्वारा सिद्धि। संकल्प का प्रयोग योग में। कैसे? संकल्प का प्रयोग योग में। टचिंग। बाबा की टचिंग को कैच करने का प्रयत्न, संकल्पों को एकाग्र करने का प्रयत्न, संकल्पों की इकोनॉमी, संकल्पों की स्टेबिलिटी, संकल्पों की सूक्ष्मता, संकल्पों को एकाग्र कर सके, संकल्पों की दृढ़ता, दृढ़ता अर्थात एक संकल्प ले लेना और उसमें टिक जाना। एक-एक दिन की जीत अगले दिन शक्ति भरेगी।
तो सभी भट्टी के लिए आए हैं

पहला संकल्प क्लास पूरी होने के बाद मोबाइल स्विच ऑफ अगले तीन-चार दिन तक।

दूसरा संकल्प इस कैंपस से बाहर इधर जाऊं, उधर जाऊं, इसको मिलूं, उसको मिलूं….. कहीं नहीं जाना है। जाना है तो अपना कमरा, मेडिटेशन हॉल, ओम शांति भवन, चार धाम, डायनिंग हॉल बस। इसी में घूमते रहना है।

तीसरा संकल्प संकल्प वह लेना होता है जो थोड़ा असंभव सा हो। आपस में बातचीत बंद। इतनी दूर से आए है। परमात्मा अवतरण भूमि, तपस्या धाम में आए। बोलते हुए, बातचीत करते हुए तपस्या नहीं होती है। तपस्या के लिए बाहर मौन की आवश्यकता है। 1 दिन कल अगर मौन रह जाओ तो परसों मन सूक्ष्मा हो जाएगा, तीसरा दिन मौन का मन और सूक्ष्म। वाचा की दुनिया में आने की इच्छा नहीं रहेगी और वह दिखाई देगा जीवन का जो अब तक नहीं दिखा था। सूक्ष्म मन, सूक्ष्म चीजों को देख सकता है।जो मन वाचाल है, जो बोल रहा है, जो चर्चा कर रहा है यहां क्या, वहां क्या, यहां आना अर्थात कम से कम इन तीन दिनों के लिए संसार से कनेक्शन कट। जिससे बात करनी है इस क्लास के बाद बात करना और यह भी बोल देना कि अब कॉल मत करना। आप मुंवे मर गई दुनिया। कम से कम 3 दिन मर जाओ। 3 दिन गहरे ऑपरेशन की आवश्यकता है। ऑपरेशन थिएटर मै पहुंचे हो। रोग गहरा है। सुप्रीम सर्जन के ऑपरेशन थिएटर में आए हो। दरवाजा बंद, लाल लाइट चालू बाहर। रिलेटिव नॉट अलाउड. स्वयं वह ऑपरेशन करेगा, पेशेंट को समर्पित करना पड़ता है। वहां बॉडी को समर्पित करते हैं, हम मन को समर्पित करते हैं। उसका छुरा, उसका नाइफ “द काइंड क्रुएल नाइफ ऑफ सर्जन”। अब चीरा लगाएं। पता नहीं क्या, क्या भरा है अंदर। कैसी कैसी वासना। कैसी कैसी घृणा, कैसे-कैसे संस्कार। निकलने दो उनको बाहर।

संकल्प शक्ति का प्रयोग अर्थात संकल्प लेना और दृढ़ हो जाना उसमें। पहला दिन। गिनना उसको आज पहला दिन, संकल्प..... गिरूगा नहीं। इसे पूर्ण कर के रहूंगा। शाम हो जाए, रात हो जाए तो फिर एक आंतरिक खुशी विजय की। दूसरा दिन जब एक दिन जीत लिया तो दूसरा दिन भी जीत लेंगे। शक्ति बढ़ेगी, कांफिडेंस बढ़ेगा। 2 दिन जिसने वह कर दिया, तीसरा दिन और सहज। संकल्पों पर ब्रेक। सबसे पहला संकल्प।

दूसरा क्या बताया बोल। क्या बताया बोल के विषय में? कम धीरे मीठा यह छोड़कर कुछ और बताओ। मधुर, कितना मधुर

व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल की पांच परिभाषा और उसके पांच परिणाम

पहला हंसी, मजाक, जोक्स, लिमिट के अंदर होने चाहिए, अगर करनी है तो। हंसी मजाक व्यक्ति को बाह्यमुखी बना देता है, हां परंतु अत्यंत गंभीरता भी नहीं होनी चाहिए। रमणीकता भी होनी चाहिए, परंतु रूहानियत के साथ। हमारा हंसी मजाक किसी के लिए व्यंग्य बाण ना हो। हमारा हंसी मजाक किसी के लिए दुखदाई ना हो। हमारा हंसी मजाक किसी की खुशी छीनने वाला ना हो। हमारा हंसी मजाक किसी को धोखा देने वाला ना हो, रुलाने वाला ना हो। हमने तो हंसी मजाक में कह दिया परंतु तीर आर पार चला गया। इसलिए हंसी मजाक कैसा हो रुहानियत वाला। हंसी मजाक कैसा हो जिसमें दूसरी आत्माओं की स्तुति, तारीफ, प्रशंसा हो। उसको उठाने वाला, हंसी मजाक में हमारे बोले हुए शब्द उत्साह के आत्माओं में बल भर सकते हैं और हंसी मजाक में बोले हुए हमारे शब्द उनको तोड़ सकता है। इसके लिए बाबा ने कहा दो अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग। अटेंशन और डबल अंडर लाइन। शब्द कैसे हो यह तो हमें पता है, परंतु शब्दों का आधार क्या है? स्पीच का आधार क्या है? वाणी का आधार क्या है? हम कब तक दिनभर चेक करते रहेंगे इसके साथ ऐसा बोलो, उसके साथ ऐसा बोलो, यह आया है इसके साथ ऐसा बोलना है, वह आया है उसके साथ कम, यह आया है इसके साथ ज्यादा, इसके साथ हंसी मजाक, उसके साथ स्ट्रिक्ट। कब तक सोचते रहे।

शब्दों के पीछे क्या काम करता है, शब्दों का आधार क्या है? शब्दों का आधार, वाणी का आधार, स्पीच का आधार है भावनाएं। हम कितना भी सोच ले कि अच्छा बोलेंगे, परंतु भावनाएं दूषित है तो अचानक वह शब्द निकल आएंगे जो गहरे अंदर समाए हुए हैं तो वाणी का आधार है भावनाएं। भावनाओं का आधार क्या है? भावनाएं हमारी कैसे निर्माण होती है? भावनाएं हमारी निर्माण होती है वर्तमान जो ज्ञान हमारे पास है उस आधार पर। जितना हमने जाना श्व के अनुभव से, दूसरों के अनुभव से पढ़कर, वह जो ज्ञान है उस ज्ञान के आधार पर हमने ज्ञान लिया है यह व्यक्ति ठीक नहीं है। हमारा अपना अनुभव दूसरों ने आ आकर बताया, उस ज्ञान के आधार से हमारी भावनाओं की रचना हुई है। और भावनाएं जैसी है वैसे ही अपने आप बोल निकलते, सोचना नहीं पड़ता। इसके लिए बाबा कहते हैं भावनाएं बहुत श्रेष्ठ है बहुत ऊंची है तो फिर सोचना नहीं पड़ेगा इसके साथ ऐसा बोलूं या वैसा बोलूं अपने आप वैसे ही बोल निकलेंगे ऑटोमेटिक।

ज्ञान का आधार क्या है? योग। ज्ञान का आधार क्या है योग। वैसे तो हम कहते हैं पहले ज्ञान फिर योग। परंतु ज्ञान की गहराई को छूना है तो योग की गहराई को छूना पड़ेगा। जितना योग गहरा होगा ज्ञान की समझ…..। आज की मुरली टीचर से क्या कहा बाबा ने समझना अर्थात बनना, वह है समझ। योग….. भगवान से कनेक्शन। योग का आधार क्या है? प्रभु प्रेम…….। जितना अधिक गहरा परमात्मा प्रेम, उतना योग सहज होगा। और प्रभु प्रेम का आधार क्या है? प्रभु प्रेम का आधार… कौन सा दिल उसको बहुत अधिक प्यार कर सकता है? सच्चा दिल तो वह सच्चे दिल से प्यार करता है। हमारी तरफ से…. प्रभु प्रेम का आधार क्या है? प्रभु प्रेम किस हृदय में जन्म लेता है, क्या सभी भगवान से प्यार करते हैं? भोले बालों को वह प्यार करता है सभी भोले भाले उसको प्यार करेंगे यह जरूरी नहीं है। प्रभु प्रेम का आधार क्या है पवित्रता और आत्मभिमानी स्थिति या फिर कहो प्रभु प्रेम का आधार प्योरिटी और प्योरिटी का आधार आत्मा भिवानी स्थिति तो सारा खेल आत्मा पर जितनी आत्मिक स्वरूप में चेतना स्थित है उतनी वह प्योर है, जितनी प्योरिटी है उतना प्रभु प्रेम है और जितना प्रभु प्रेम है योग अपने आप में और जितना योग है उतना ही ज्ञान है और जैसा जैसा ज्ञान गहरा होता है भावनाएं शुद्ध होती जाएंगी और जैसी भावनाएं होंगी बोल वैसे ही होंगे। मन में ही गहरी चोट है तो मन षड्यंत्र करता है, हमें धोखा मिला हम भी धोखा देंगे मरीज डॉक्टर से पूछता है डॉक्टर साहब धोखा खाने के बाद पानी पीना चाहिए क्या? क्या पीना चाहिए सोच लो।

तो सबसे पहले जो बोल नहीं बोलने चाहिए वह कौन से हैं जो व्यर्थ की कैटेगरी है
पहला हंसी मजाक, गंभीरता। पर हमें अभ्यास रमणीक ता का ज्यादा है गंभीरता का कम। और जब हम गंभीर होते हैं तो हमारे मन में तुरंत आता है बैलेंस रखना चाहिए। बैलेंस तब रखा जाता है जब दोनों समान हो। सामान तो है ही नहीं। ज्यादा क्या है हमारे पास.. रमणिका। गंभीरता पहले ही कम है और जैसे ही गंभीर होने लगते हैं तुरंत मन कहता है आदेश देता है श्रीमत, बैलेंस, ऐसा नहीं चलेगा, हठयोगी नहीं बनना है। अरे तुम्हारे पास पहले ही कम है। तो अगले 3 दिन भट्टी में आए हुए जो है और जो यहां रहते हैं वह हमेशा के लिए। गंभीर…… हा हा हा हा करके हंसना नहीं। स्माइल। जब तुम हंसो तो क्या हो? क्या हो? दूसरों को लगे कि जैसे देवता हंस रहे हैं। वह कैसे हंसते हैं? जब तुम हंसो तो लगे कि जैसे फूलों की वर्षा हो रही है, अट्टहास नहीं करना। तो सबसे पहला हंसी मजाक…. कम से पहले की विधि है नो। कहते हैं की जीसस क्राइस्ट कभी हंसे ही नहीं, गंभीर रहते थे। बुद्ध को कभी किसी ने हंसते हुए नहीं देखा। महाराष्ट्र में किसी ने पूछा था डॉ बाबा साहेब अंबेडकर से कि आप कभी हंसते नहीं, कोई हंसता हुआ फोटो ही नहीं है। उन्होंने कहा था मेरा देश दुख में है, दर्द में है, मैं कैसे हसूं।

दूसरा टोंटिंग। ये टोंटिंग क्या होता है? टोंटिंग बता नहीं सकते लेकिन करते जरूर है। टोंट अर्थात क्या टीका टिप्पणी। टोंट अर्थात व्यंग्य बाण। टोंट अर्थात क्या कमेंट, अंदर की घृणा व्यक्त करते हैं। बड़े ही सभ्य ढंग से, ताकि पता भी ना चले। घुमा फिरा कर। टोंटिंग, किसी जमाने में युद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में होते थे लेकिन अभी सोशल मीडिया में होते हैं। ट्रॉल्स, कमैंट्स,.. करते रहते हैं कुछ कुछ। वह केवल यह दर्शाता है के अंदर कितनी नफरत और घृणा है। यह भी दर्शाता है कि अंदर कितना प्रेम है। सब कुछ दर्शाता है जो हम बोलते हैं और जो हम सीखते हैं दोनों ही चीज। तो दूसरा..कमैंट्स में नुकसान क्या है? हमारी शक्ति नष्ट होती है। ऊर्जा कहीं और प्रवाहित होती है। टोंट वाले व्यक्ति को इंतजार करना पड़ता है, प्लानिंग करनी पड़ती है कि कब वह आए सामने से आए और कब मैं उसको एक……, ऑर्गेनाइज करने पड़ते है शब्द कि यह बोलूंगा उसको और बोलने का लक्ष्य एक ही है उसको दुख हो। उसका इंटेंशन ही क्या है अशुद्ध है। इंटेंशन ही यह है कि उसको पता चल जाए कि हमने यह बोला, हमने बोला और उसने सुना ही नहीं प्लानिंग हमारी फेल हो गई, दूसरी प्लानिंग करनी पड़ेगी।

एक लिफ्ट में में दो व्यक्ति रोज जाते है। एक सातवीं मंजिल पर उतरता है एक उसके ऊपर चला जाता है। दोनों ही सभ्य। एक लिफ्टमेन वो व्यक्ति आता है, लिफ्ट ऊपर ऊपर जाती है, जैसे ही सातवीं मंजिल वाले का मुकाम आ जाता है, जो दूसरा है उसके शर्ट पर थूक देता है। पहला दिन..... वो कुछ नहीं कहता, पहला दिन, दूसरा दिन,तीसरा दिन, चौथा दिन, हर दिन.....। लिफ्टमैन को अब चिंता होने लगती है यह हो क्या रहा है। वह उस व्यक्ति को पूछता है जिस पर थूका गया की यह दूसरा व्यक्ति तुम पर रोज थूकता है, तुम कुछ कहते क्यों नहीं, तुमको बुरा नहीं लगता? वह कहता है वो प्रॉब्लम उसकी है वो सोंचे। यह उसकी समस्या है वह सोंचे। क्यों थूकता है, कब थूकना है, उसके मन में कुछ प्लानिंग तो चलती होगी न कि यह अभी आएगा, फिर उसका सेवंथ फ्लोर आएगा फिर.... । कमेंट करने वाले को प्लानिंग करनी पड़ती है और कमेंट करना बड़ा आसान है। और दूसरी बात हमने दूसरों को कितना जाना है, हमें कुछ पता ही नहीं दूसरों के विषय में। कुछ पता है? हमें अपने ही विषय में कुछ पता नहीं। हम ही अपने लिए भारी है। दूसरों के विषय में हमें क्या पता है दूसरा जो सामने दिखाई दे रहा है क्या वास्तव में वैसा है, पता नहीं कितनी महानताएं उसमें छुपी हों। हो सकता है उसका पार्ट अभी खुला ही नहीं है और जिस दिन उसका पार्ट खुलेगा तुमको पीछे छोड़ देगा। इसके लिए किसी के विषय में हमें कुछ भी पता नहीं है, कुछ भी नहीं। क्योंकि जो दिख रहा है वह है नहीं सत्य कुछ और है तो नो कमेंट्स।

तीसरा इधर उधर के समाचार इकट्ठा करना, सुनना, सुनाना और शेयर करना और जिसको कुछ भी पता नहीं रहता है उसको किस नजर से देखते हैं तुम बुद्धू ही ठहरे, तुम्हे कुछ पता नहीं। यहां रहते हो और तुम्हारे बाजु के डिपार्टमेंट में क्या हो रहा है, कुछ भी पता नहीं। किसी अव्यक्त मुरली मैं बाबा ने कहा था जितना समाचार इंटरेस्टिंग होगा उतना ही व्यर्थ होगा। चटपटा...... मसालेदार..... ,खट्टा मीठा.......चटनी, नहीं चटनी यहां नहीं, चटनी यहां नहीं यह तीसरे पर है अभी, रुको चटनी बाद में। सुनाना...... । हमें कुछ भी नहीं पता किसी के बारे में, घटनाओं के बारे में भी हमें कुछ पता नहीं जो भी हमने सुना है वह वाया वाया सुना। अच्छा अगर जो सुना है तुमने खुद ही देखा है फिर भी... किसी आत्मा की कमजोरी फैलाना, अगर कोई मां है उसके बेटे मैं कोई कमजोरी है तो वह मां अपने बेटे की कमजोरी सब जगह सुनाती फिरती है क्या? क्या करती है? छुपाती है। जिससे प्यार है उसकी कमजोरी कमी अपनी कमजोरी लगती है लास्ट संडे। तो दूसरा जो गिर रहा है उसे और धक्का देकर और नीचे करना है या उठाना है। फिर चेकिंग करें अमृतवेला। पिछले 6 मास में किस किस पर कमेंट किया है, किस-किस को दुखाया है, किस-किस का अपमान किया इंसल्ट की। कई बार यह भी हो सकता है हमने इंसल्ट नहीं की परंतु उस उसको लगता है हमने की, ऐसा भी होता है। हमारी मंशा बहुत शुद्ध है फिर भी धर्मों में कहा जाता है कहां-कहां व्यवहार में कठोर बनना पड़ता है, कठोर बनो लेकिन कटु नहीं, 2 शब्दों में बहुत अंतर है। अनुशासन के लिए कहां-कहां कठोर रहना पड़ता है। बाबा मैं तो वह कठोरता भी नहीं थी वह बहुत आगे की स्टेज है। प्रशासन में कठोरता, परंतु अंदर में कटुता बिल्कुल नहीं, बिटेरनेस नहीं। तो यहां का समाचार वहां का समाचार, ब्राह्मण संसार समाचार बुलेटिन, ब्राह्मण न्यूज़ बुलेटिन, ब्रेकिंग न्यूज़। जैसे ही कोई खबर मिलती है जब तक सुना ना दूं बेचैनी होती है, कब जा कर सुनाऊं सबको और यह सबसे पहले मैं सुनाऊं। और एक बार सुना दीया की फिर जाकर नींद आती अच्छी सी तब तक नींद नहीं आती। बताऊं सबको कि ऐसा हुआ है। उनको पता ही नहीं। बहुत अच्छा काम नहीं किया है।

चौथा चटनी। क्या करते हैं इसे। डिस्कशन करते हैं यहां क्या हो रहा है, वहां क्या हो रहा है और साथ-साथ क्या-क्या डिस्कशन करते हैं उनकी कमियां, उनकी कमजोरी क्या-क्या........ये ऐसा है ये वैसा है, किसी को देखकर लेट आते ,कहते हैं ये तो हमेशा ही लेटा आता है तुमको क्या पता हमेशा, तुमने कभी देखा भी नहीं उसको। किसी ने एक गलती की, हमने कहा ये तो हमेशा ही ऐसी ही गलतियां करता है, हमें कुछ पता नहीं उसकी पुरानी गलतियों के विषय में। अगर कि भी होगी तो हम कौन हैं? जज नाट एंड हे शेल नाट बी जज्ड। बाइबल कहता है तुम जज मत करो किसी की, तुम्हें कोई अधिकार नहीं है। तुम जज नहीं करो तो तुम्हें भी जज नहीं किया जाएगा। "माइंड योर ओन बिजनेस" इंग्लिश में कहते हैं ना काम से काम रखो। बाइबिल में इसकी पहले कई बार सुनाया है जीसस क्राइस्ट वापस आता है तीन दिन के बाद अपने शिष्यों से मिलने, पीटर से जीसस पूछता है डू यू लव मी? वह कहता है यस लार्ड। फिर पूछता है डू यू लव मी? यस लार्ड। डु यू लव मी? उसको लगता है ये 3 - 3 बार मुझसे क्यों पूंछता है, शायद मेरा प्रेम कम है इसलिए बार बार पूछ रहा है कार्ड डू यू लव मी यस लार्ड यस आई लॉर्ड आई लव यू विथ आल माय माइंड एंड सौल, केवल तुमसे ही प्यार करता हूं और किसी से प्यार नहीं करता। और फिर वह पीटर पूछता है यह जो पीछे जो जॉन आ रहा है ना, प्रभु आप इससे कितना प्यार करते हैं? जीसस कहता है what is that to you तुमको क्या लेना देना? तुम अपना काम करो। मैं उससे कितना प्यार करता हूं उसको पता है और मुझे पता है। "what is that to you तुम्हें क्या करना है" यहॉ किस लिए आए हैं तपस्या करने तो बस तपस्या करके ही लौट जाना है। यहां यह हो रहा है, वहां वह क्यों हो रहा है, यह भाई ऐसा क्यों करता है वह भाई वैसा क्यों करता है। यह सब करने नहीं आए है। इसके लिए कहा इस कैंपस से बाहर कहीं कदम नहीं रखना है अंदर ही रहना चाहिए।

पांचवा अयुक्तियुक्त। ये बड़ा कठिन शब्द है ये युक्तियुक्त। इसका क्या अर्थ है डिफाइन करना मुश्किल है पर इसमें सब कुछ आ जाएगा श्रीमत युक्ति है , युक्तियुक्त अर्थात राज युक्त, युक्तियुक्त अर्थात योगयुक्त, युक्तियुक्त अर्थात रहस्य्युक्त,युक्तियुक्त अर्थात श्रीमतयुक्त, युक्तियुक्त अर्थात मर्यादायुक्त, युक्तियुक्त अर्थात समय प्रमाण, परिस्थिति प्रमाण, वायुमंडल प्रमाण, सामने की आत्मा व्यक्ति प्रमाण, संगठन प्रमाण, आगे कहा है ना मुरली में। तो बोल इन सब को देख कर। तो यह पांच प्रकार के बोल ना हो। अगर ऐसे हुए हैं तो क्या करना है हमें अमृतवेला उन सभी आत्माओं से माफी मांगनी है। सामने जाकर माफी मांगने से डर लगता है तो मन से तो चालू कर सकते हैं। सामने माफी मांगने से यहां ठेस पहुंचती है, मतलब हम छोटे है, मतलब वह जो हुआ उसमें हम गलत.........मैं को बड़ी गहरी चोट लगती है।

एक व्यक्ति किसी गुरु के पास आता है कहता है मुझ में सब प्रकार की बुराई है ऐसे कोई बुराई नहीं जो मुझ में ना हो, पर मैं छोड़ना चाहता हूं। आप यह बताओ कि सबसे पहले कौन सी बुराई छोडूं, फर्स्ट टू बिगेन। वह कहते हैं पहले तो यह करो असत्य बोलना छोड़ दो। कहता है और कुछ? नहीं बस इतना ही। वह घर चला जाता है। रात्रि का समय होता है। उसका रूटीन चोरी करने जाने का, वह कहता है चोरी करने जाना है, फिर रुकता है एक मिनट, अगर अभी चोरी करने गया तो कल सुबह उनको बताना पड़ेगा कि गया हूं और फिर सबको पता भी चल जाएगा मैं चोर हूं मैं रुक जाता हूं, 1 दिन से क्या फर्क पड़ता है सो जाता है। दूसरे दिन उठता है फिर विचार आता है कि चलो शराब पीने जाता हूं पर फिर सोचता है कि उनके पास जाकर बताना पड़ेगा मैंने सच बोलने का वादा किया और फिर दूसरों को पता चल जाएगा सब लोग मुझे क्या कहेंगे। ऐसे करते करते करते करते चेकिंग करेक्शन चेक चेंज, चेक चेंज, चेक चेंज, उसकी धीरे-धीरे धीरे-धीरे सूक्ष्म आदतों से वो, जो गन्दी आदते बुरी आदतों से वो मुक्त हो जाता है। दूसरा हमें कोई नहीं सुधार सकता है। हम ही खुद स्वयं की चेकिंग से। इसके लिए बाबा ने कहा चेक करो बोल यथार्थ है? समय अनुसार है? वह सारी चीजें चेक करो। किस तरह के बोल थे और तब चेकिंग नहीं हो सकती तो बाद में चेक करो। रोज रात को इवनिंग चेकिंग, दो चेकिंग एक तो शाम को नुमा शाम योग के पहले चेकिंग या बाबा को अपना मौखिक चार्ट देना और रात को सोने से पहले लिखित चार्ट देना। two types of charts verbal and written, oral chart and written chart नुमा शाम से पहले और एक रात में रिटन।

जो व्यर्थ बोलते हैं उनके साथ पांच बातें हो जाती हैं, कौन-कौन सी?

सबसे पहल तो शारीरिक ऊर्जा व्यर्थ जाती है, क्योंकि व्यर्थ का विस्तार बहुत है। व्यर्थ थोड़ा सा बोल दिया और वहां पूरा नहीं होता है। व्यर्थ मैं एक्सपेंशन है, वो शार्ट एंड स्वीट नहीं हो सकता

किसी आश्रम में एक नियम था दो ही शब्द बोलने हैं छह मास में। जो भी आते हैं विद्यार्थी गुरुकुल में 1 साल में बस दो ही शब्द बाकी समय मौन। एक विद्यार्थी आते हैं 6 मास पूरे होते हैं गुरु के सामने। वो कहते है बोलो। वह कहता है खाना खराब। दो ही शब्द बोलने हैं यहां का खाना खराब है। आउट, चला जाता है। फिर छह मास में आता है, अब बोलो। बिस्तर कठोर, यह जो बिस्तर है न, बहुत कठोर। 6 मार्च बाद फिर आता है बोलो। वह कहता है जाना है। गुरु कहता है पता था।

एक ही बार अवसर मिल रहा है उसमें भी चित्त कंप्लेंट से भरा हुआ है, एक ही बार मधुबन में आने का समय मिला है उसके बाद में भी अगर कोई यहां की गलतियां और यहां की कम्प्लेंट्स बताएं तो उसको क्या कहेंगे। एक ही बार बड़ों से मिलने का अवसर मिलता है दादियों से मिलने का अवसर मिलता था, उसमें भी कंप्लेन लेकर जा रहे हैं। एक ही बार सुबह-सुबह शक्तिशाली योग का समय होता है, वायुमंडल होता है, भगवान से जाकर सम्मुख मिलन का समय होता है उसमें भी हम अपनी कम्प्लेंट्स का पिटारा खोल देते हैं, बेटी को ज्ञान में लाओ बेटे को ज्ञान में लाओ, मां की बुद्धि का ताला खोलो, बाप की बुद्धि का ताला खोलो, घुटने का दर्द थोड़ा तो कम करो ताकि आपको अच्छे से याद कर सकूं,ये दवाइयां मेरी कम करो, बाबा कुछ तो करो मधुबन मैं मुझे ले जाओ और बाबा कुछ बोलता ही नहीं। हमारा योग कंप्लेंट योग है, योगा और कम्प्लेंट्स।फ़रियाद..... यह कर दो, वह कर दो, यह कर दो, वह कर दो, ऐसा कर दो, ऐसा कर दो हम वास्तव में अपने आप से ही बोलते हैं। उधर से कुछ है ही नहीं। हमारा सब यूनीलेटरल चल रहा है। तो सबसे पहला परिणाम ऊर्जा नष्ट।

दूसरा समय नष्ट। क्या चला जाता है एक घंटा बोलने में कब निकल जाता है पता ही नहीं चलता है। 2 लोग बैठ जाए तो दो माताएं, दो भाई, कोई भी हैं, सभी, बाबा ने कहा मैं सब को देखता हूं बूढ़ा, बच्चा ऐसा नहीं। दो बैठ जाए और चर्चा चालू कर दें वहां ऐसा होता है, वैसा होता है, वह बहन ऐसा करती है, वह भाई ऐसे करता है...... इसका कोई अंत है? वह एक बताएगा, वह दूसरा बताएगा, वह दूसरा बताएगा, वह दूसरा बताएगा, पूरी रात निकल सकती है इसमें। कितना माल भरा है अंदर। माल बहुत है। तो दूसरा समय।

तीसरा विस्तार। एक्सपेंशन बहुत है उसमें कथा बन जाती है। रामायण, महाभारत भी छोटे पड़ेंगे इतने बड़े-बड़े शास्त्र हम लिख सकते हैं और किसी को कहो कि थोड़ा ज्ञान का चिंतन करो। नहीं नहीं हमारा चिंतन नहीं होता है हमारा हमारा नहीं होता है चिंतन, थोड़ा इधर माइक के सामने बोलो, नहीं नहीं नहीं नहीं हमारा चिंतन ही नहीं होता है, हम नहीं बोल सकते। ओर रात भर जो चर्चा चलती है उसका क्या? उसमें तो बिल्कुल महारथी है चिंतन में। ज्ञान की चिंतन, वो जो शक्ति अवगुणों के वर्णन में लगा रहे हो वो ज्ञान के चिंतन में।

टीचर से क्या कहा? कौन मिला? भाग्यवान, भगवान और भाग्य बस गुण गाते रहो भाग्य के, बाबा के तो स्वत योगी बन जाएंगे। मजा ही मजा है, कहा ना पार्टियों से किस-किस बातों मैं मजा है, खाने में मजा, सोने में मजा, रहने में मजा, पढ़ने में मजा, मजा ही मजा मौज ही मौज। तो तीसरा एक्सपेंशन बहुत है विस्तार बहुत।

चौथा माया का प्रभाव। क्या होगा उसमें माया का प्रभाव और माया अंत तक आएगी, डायरेक्ट, इनडायरेक्ट, मीठा कड़वा किसी भी रुप से ट्रायल कराती रहेगी। इसलिए तो सोचना ही नहीं कि मैं पहुंच गया। सूक्ष्म रूप से आएगी, अहंकार के रूप से, अहंकार भी बहुत सूक्ष्मा ईगो ऑफ़ द ईगोलेस। मेरे में कोई अहंकार नहीं। मुझमें कोई अहंकार नहीं है मैं निरहंकारी हूं तुम कम निरहंकारी हो। हम जैसा विनम्र इस संसार में कोई नहीं। इगो और द ईगो लेस और

पांचवा एकांत प्रिय नहीं हो सकती हैँ ऐसी आत्माएं। और ज्ञान के समझ के लिए तो एकांत चाहिए। वह एकांत जिसके लिए बाबा बात करते हैं एक के अंत में खो जाना हो वो एकांत तो बहुत सूक्ष्म है उसके पहले स्थूल एकांत। अभी अगले तीन-चार दिन भट्टी में जो आए हैं ऐसे समझो कि मेरे अतिरिक्त इस भट्टी में और कोई नहीं हैं। यह केवल मेरा ऑपरेशन चल रहा है, भगवान ने मुझे बुलाया है, बहुत गहरा काम करना है जो काम पेन्डिंग है कब से, क्योंकि वहा वो हो नहीं पाया है। जिम्मेदारियां, सेवा केंद्र, सेवाएं, कारोबार कितनी सारी चीजें है। अभी यहां कुछ भी नहीं है, इसके लिए टोटल डिवोशन के साथ, डेडीकेशन के साथ भीतर काम करना है। काम बहुत पेंडिंग है लंबे समय का। यहां आए हैं तो यहां से कुछ लेकर जाना है। यहाँ बातचीत करने नहीं आए हैं, मनोरंजन के लिए नहीं आए हैं, यहां तपने के लिए आए हैं। तपोभूमि में, तपस्या स्थली में तप। और तप की शुरुआत मौन से होती है और तप की शुरुआत एकांत से ही होती है।

अन्तर्मुखता का रस, कितना अच्छा वाक्य है यह हम कई समय से ढूंढ रहे थे कि यह वाक्य किस मुरली में है, पढ़ा तो था पर उसमें मुरली को ढूंढ रहे थे। अन्तर्मुखता का रस और बोलचाल का रस, यह मुरली थी आज मिली। बहुत अंतर है तपस्वी मुर्त बनकर अनुभव करो तपस्या का। बोलचाल का रस बोलने में बहुत रस, अच्छा लगता है। परंतु हाईएस्ट स्पीच कौन सा है? मौन। गुरुस्त मौनम व्याख्यानम शिष्यस्तु चिन्नसंशया। गुरु बैठा है मौन में, शिष्य के मन में संशय ही संशय इतने सारे। सुख देव बैठा हुआ, हजारों ऋषि मुनि बैठे, और 12 साल का छोटा बच्चा योगी है, तपस्वी है, कुछ बोल नहीं रहा, परंतु दुरुस्त मोनम व्याख्यानम, मौन ही उसका व्याख्यान है। शिष्यों के जितने संशय अपने आप नष्ट हो गए, इतनी पावर इतनी ऊर्जा द हाईएस्ट पावर द ग्रेटेस्ट कांवर फेड, विवेकानंद ने कभी कहां, हाईएस्ट पावर, जितना मोन शक्तिशाली, उतनी शक्ति और अधिक। तो यह पांच बातें कौन सी बातें बताई? व्यर्थ बोल का परिणाम, शक्ति व्यर्थ जाएगी, समय एक्सपेंशन होगा, विस्तार होगा और माया आएगी और पांचवा एकांत प्रिय नहीं हो सकेंगे।

माताओं से क्या कहा बाबा ने बहुत ही भोली भाली, कितनी भोली भाली, बहुत ज्यादा भोली भाली। सुशिल भाई बता रहे थे ना एक माता दूसरी माता से पूछ रही थी योग कैसे करने का? दूसरी माता, दोनों ही अनपढ़ माताएं बैठी हुई हैं, पूछती हैं कैसे योग करते हैं, बोली बहुत सिंपल है, ऐसे आत्मा जो है ना, आत्मा निकाल कर बाबा के सामने रख देने का, यह लो, यह है योग, बाबा ने कहा माया की चतुराई बाबा को प्रिय नहीं है, छल कपट वाले बाबा को प्रिय नहीं है, बाबा को कौन प्रिय है जो भोले भाले हैं वह भक्त भगवान को प्रिय है, जिनका हृदय सच्चे दिल वाले जो है वह भगवान को प्रिय है, जो शक्तियां है वह भगवान को प्रिय हैं, अपने आप को शक्ति समझो, यह माताएं साधारण माताएं नहीं है शिव की शक्तियां हैं। पार्टियों से भी यही कहा ना शक्तियों को यूज में लाओ, प्रयोग करो। तो सुबह अमृतवेला क्या करेंगे, बाबा की कुटिया में ऐसे..... यह है योग, देखो क्या करना है अब। बाबा इसकी करो धुलाई, लॉन्ड्री में आए हो बेहद, सिंपलेस्ट योगा, सहज योग, पर सहज योग ऐसा भी नहीं कि अमृतवेला बाबा के पास टीवी है, कैसेट है और ट्यून मे है, सारी रिकॉर्डिंग ऊपर हो रही है, हर एक की ट्यून, रिंगटोन अलग अलग है हर एक की और पोजेस कोई इधर गिरता है कोई उधर.. सब।

ऐसे...... कैसे...? बिना ट्यून वाले... ऐसे सच्ची दिल वाली आत्माओं को, ऐसे ड्रामा में पार्टधारी आत्माओं को, ऐसे माया जिनके सामने पेपर टाइगर है, ऐसी निश्चय बुद्धि आत्माओं को, ऐसे बेफिक्र बादशाहों को, ऐसी मौज में रहने वाली आत्माओं को, ऐसी मौज का जीवन जीने वाली, उड़ने वाली, खाने वाली, सोने वाली, रहने वाली, पढ़ने वाली आत्माओं को, ऐसे भोली भाली माताओं को, ऐसे फर्स्ट डिवीजन में आने वाली आत्माओं को, सेकंड डिवीजन नहीं फर्स्ट डिवीजन, ऐसे तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, ऐसे डायरेक्ट, श्रेष्ठ और हीरो पार्टधारी, श्रेष्ठ रचना बाबा की रचनाओं को, ऐसे विशेष रचनाओं को, ऐसे व्यर्थ मुक्ता आत्माओं को, ऐसे टोंट ना करने वाली आत्माओं को,ऐसे कमेंट ना करने वाली आत्माओं को, ऐसे मधुर बोल बोलने वाली आत्माओं को, ऐसे चटनी ना बनाने वाले और ना चटनी खाने वाले ना दूसरों की चटनी बनाने वाली आत्माओं को, ऐसे रमणीकता और गंभीरता का बैलेंस, रुहानियत हो, ऐसे हंसी मजाक में रमणीकता लाने वाली आत्मा, रूहानियत लाने वाली आत्माओं को, ऐसे विस्तार ना करने वाली आत्माओं को, ऐसे चेकिंग करने वाली आत्माओं को, ऐसे यथार्थ बोल बोलने वाली आत्माओं को, ऐसे समय देखकर आवश्यकतानुसार कम बोलने वाली आत्माओं को, ऐसे चात्रक आत्माओं को, जब तुम बोलो तो दूसरों को इच्छा हो सुनने की, ऐसा नहीं कि दूसरे सोचे कि कब यह बंद करें और हम यहां से छूटे। ऐसे बापदादा का..... बापदादा जैसे बाबा सतगुरु है वैसे तुम मास्टर सतगुरु हो, उसके वाक्य नहीं उसके महावाक्य होते हैं, ऐसे महावाक्य के उच्चारण करने वाली आत्माओं को, मर्यादा पुरुषोत्तम आत्माओं को, ऐसे..... ऐसे.... एकांत प्रिय आत्माओं को, ऐसे मुरली का बताओ, ऐसे.... वो मुरली के बाहर का था ऐसे और एक हफ्ते वाली मुरली नहीं आज का, अब नहीं तो कब नहीं, टू लेट बोर्ड से पहले पहुंचने वाली आत्माओं को,बोलते हैं ना अभी,ऐसे सर्व शक्तियों का स्टाक जमा करने वाली आत्माओं को, मास्टर सर्वशक्तिमान आत्माओं को, मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा को कोई रोक नहीं सकता इस स्वमान में रहने वाली आत्माओं को, ऐसे डायरेक्ट लक्ष्य है समान और समीपता उसको समीप लाने वाली आत्माओं को, यूज करने वाली आत्माओं को, लूज नहीं यूज करने वाली आत्माओं को, ऐसे सेकंड में दिव्य बुद्धि, शुद्ध मन से, यंत्र द्वारा एकदम सेकंड में वहां पहुंचने वाली, कोई वेदर नहीं कोई चीज उसको बाधा नहीं, वह ऊपर से...... निश्चय और निश्चित आत्माओं को और भी बहुत सारे जो बचे हुए हैं स्वमान मुरली में वह सारे स्वमान वाली आत्माओं को बाप दादा का याद प्यार गुड नाइट और नमस्ते हम रूहानी बच्चों की रूहानी बापदादा को याद प्यार और गुड नाइट और नमस्ते।