ब्रह्मा बाप के विशेष पाँच कदम


ओम शांति।

किसी व्यक्ति का एक गधा था । और एक दिन वह बीमार पड़ गया उसे तेज बुखार और सर्दी लग गई । उस गधे को लेकर, व्यक्ति जानवरों के डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने बहुत अच्छी तरह से जांच पड़ताल की। तो पास किया, और फिर कुछ गोलियां दी । और यह कहा, यह जो गोलिया है, यह गधे के सीधा पेट में जानी चाहिए। इसलिए मैं तुम्हें एक नली देता हूं। तो नली गधे की मुँह में रखना और दूसरी तरफ तुम्हारा मुँह। और जोर से फूंकना, ताकि वो गोलियां सीधा गधे के पेट में जाए, और याद रखना यह गोलियां बहुत तेज है । शाम तक गधा ठीक हो जाएगा।

शाम को चिल्लाकर कर वह व्यक्ति, डॉक्टर के घर पहुंचता है । जोर-जोर से दरवाजा ठोकता है, यह आपने क्या कर दिया। डॉक्टर पूछता है, क्या कर दिया मैंने। वह कहता है आपने बताया क्यों नहीं ? डॉक्टर पूछता है, क्या बताया क्यों नहीं ? वह व्यक्ति कहता है आपने जिस तरह बताया उस तरह नली मैंने रखी, और गधे ने पहले फूंक दिया। डॉक्टर ने पूछा तुम कर क्या रहे थे। वह कहता है, मैंने नली लगा कर रखी । दवाइयां नली के अंदर एक छोर गधे के मुंह में दूसरा मेरे, और मैं किन्ही खयालों में खो गया। दूसरे दूसरे विचार आ गए । और एक बेहोशी सी छा गई, अभी अभी यहां है, परंतु जैसे ही विचार आया, यहां नहीं है। मुरली सुन रहे हैं, और बीच में ही दूसरे विचार , और कहीं। और क्लास में बैठे हैं , और फिर दूसरे विचार और हो गए। जो पॉइंट चल रही थी वो मिस। और सारे दिन भर इतना समय नहीं की अवलोकन किया जाए। डीवैल्युएशन किया जाए। ढूंढा जाए वह कौन सी बात थी, जो खो गई। जो मिस हो गई । सारा पुरुषार्थ अनकॉन्शियसनेस से कॉन्शियसनेस की आने की तरफ है। बेहोशी, जब तक यह भटकना नहीं रुकता, तब तक गलतियां होती रहेंगी । इसके लिए क्या चाहिए ? सतत जागरण, अगर जागे हुए नहीं रहे तो गोलियां हमारे पेट के अंदर। और फिर उस व्यक्ति का क्या हुआ , वह उससे ही पूछना पड़ेगा ।

कल की अव्यक्त वाणी, पार्टियों से मुलाकात, मैं कौन हूं, मैं कौन हूं। स्वमान, जैसे ही विस्मृति, उसी समय भूल, गलती, मिस्टेक, ब्लेंडर, विकर्म। जब जब हम होश में है, अवेयरनेस में है, स्मृति स्वरूप में है, तब तक कोई गलती नहीं। जैसे ही यह भूल गए हम मैं कौन हूं । गलती होनी चालू हो जाती है । कौन सा स्वमान लिया। कल की अव्यक्त वाणी, कौन सी कल की सुबह की, सुबह की। मैं पूज्य आत्मा हूं, मैं वही हूं, जिसे भक्त पूजा रहे हैं। जितना स्वमान में है, उतना अभिमान नहीं, अहंकार नहीं अपमान भी नहीं, और जो स्वमान में है, वह दूसरों का अपमान भी नहीं करेंगे। अगर दूसरों की ग्लानि हमसे हो रही है, इसका एक अर्थ यह भी है कि हम स्वमान में नहीं है, हम बेहोशी में हैं। स्वमान अर्थात जागरण, स्वमान अर्थात सेल्फ अवेयरनेस। मैं आत्मा हूं कहना काफी नहीं है, कौन सी आत्मा, बहुत ऊंच बहुत श्रेष्ठ हूं। सुबह की साकार मुरली, संसार में क्या है इस समय मुसीबत, मुसीबत पर मुसीबत । यह संसार मुसीबतों में गिरा हुआ है । तुम कौन हो ? कल की अव्यक्त वाणी,जो शाम को चली । दयालु कृपालु रहमदिल, सकाश दो। तो निरंतर स्वयं को याद कराते रहना, मैं कौन हूं। क्योंकि यही भूल जाता है । बार- बार बार-बार । मैं श्रेष्ठ हूं, मैं पूज्य हूं, वही हूं जिसकी भक्त पूजा कर रहे हैं। अलग-अलग चित्रों द्वारा । जैसी जिसकी भावना है वैसे। जो जिसकी पूजा हो रही ह, उसके नयन कैसे होंगे? निर्मल, जिसकी पूजा हो रही है उसके नयन कैसे होंगे ? नयन, दृष्टि से सृष्टि बनती है। जिस दृष्टी में देहभान है, वहां पर बाप नहीं। जिस दृष्टि में बाप समाया हुआ है वहां पर देहभान नहीं। यदि शरीर की ओर ध्यान जाता है और शरीर आकर्षित करता है शरीर का रूप रंग खींचता है। किसी मुरली में बाबा ने कहा था, एक - एक इंद्रियां एक- एक सृष्टि है, आंखों की सृष्टि है, छोटी सी है, परंतु जाल है। कान छोटे से हैं, परंतु जाल है। कुछ अच्छा लगता है सुनना पकड़ लेते हैं। एक ही गीत गुनगुनाते रहते हैं। गीत ही माया बन जाती है, है बहुत अच्छा, परंतु आशक्ति

तो कल की अव्यक्त वाणी सुबह की । क्या कहा था बाबा ने ? याद है ? पांच कदम, पांच थे या छह थे ? पांच। त्याग, आज्ञा, वफा चौथा विश्व कल्याणकारी सेवा धारी और पांचवा कर्म बंधन, कर्म संबंध मुक्त।

विश्व स्नेही बाप किस को देख रहा है, जो उसके अति स्नेही है। और अति समीप है। भगवान को कौन से बच्चे प्रिय हैं? कौन से बच्चे प्रिय हैं? जो फॉलो करने वाले हो, कदम पर कदम रखने वाले हो ।

यज्ञ का इतिहास त्याग का इतिहास है । 18 तारीख, बाबा अव्यक्त हुए। 19th जनवरी, पहली अव्यक्त मुरली चली । 19th जनवरी पहेली अव्यक्त वाणी चली। शाम को 7:00 बजे सन्तरी दादी, निर्मला शांति दादी के साथ मधुबन पहुंचे थे, रात को 1:00 बजे बस तो बस स्टेशन तक आती थी, पर उनको उस रात यहां तक छोड़ दिया, बाबा गया भी एक ही दिन में था। और अचानक दादी को खींच हुई । दादी बैठी, हिस्ट्री हॉल और अव्यक्त और बाबा प्रवेश। सवा घंटा मुरली चली। बाबा ने कहा, कि ब्रह्मा बाबा आराम कर रहे हैं। इसलिए जो अंतिम संस्कार का कार्यक्रम है, वह 21 को किया जाए। पहली पदरामणि संत्री दादी के तन में, सभी ने कहा दादी को, अब ये पार्ट आप ले लो, बाबा को अपने शरीर में आवाहन करने का, यह आपके द्वारा ही अब अव्यक्त वाणी और अव्यक्त पार्ट आपके द्वारा । ब्रिजेंद्र दादी, निर्मल शांता दादी, प्रकाशमणि दादी सबने कहा। संत्री दादी से, संत्री दादी ने मना कर दिया, क्यों । दादी ने कहा मैं बाबा की प्राइवेट सेक्रेटरी रही हूं। मेरे पेट में दादा के सभी राज है, यदि बाबा मेरे द्वारा किसी और से कुछ कहना चाहे डायरेक्शन देना चाहिए, तो यह सोचेगा इसे तो पहले ही पता था । दूसरा कारण, संत्री दादी विश्व किशोर भाउ की युगल थी। यह आरोप यह कलंक लोग लगा सकते थे बाबा ने अपने ही परिवार वालों को ले लिया। इसलिए यह पार्ट मैं नहीं लूंगी त्याग का इतिहास है, समर्पण का इतिहास है। एक एक घटना जो यहां हुई है, वह हमें त्याग सिखाती है। शिव बाबा ने ब्रह्मा को सिखाया, ब्रह्मा ने मम्मा को मम्मा और बाबा ने सभी दादियों को सभी दादियों ने उनके बाद आने वाली सभी बड़ी बहनों और भाइयों को और उन्होंने आगे। यह त्याग की परंपरा है। संसार में ऐसी कोई संस्था नहीं है, की जहां त्याग वर्षा के रूप में प्राप्त हो। वह केवल त्याग नहीं है। इतिहास वास्तव में त्याग नहीं है परंतु भाग्य है। तो बाबा के 5 कदम,

पहला सरवंश अंश सहित समर्पण । मन बुद्धि का समर्पण। समर्पण को त्याग से जोड़ा है। समर्पित कर देना, अर्थात त्याग स्वतः हो जाना, दे देना, मन को कितना कठिन है, सूक्ष्म है, यह पांच कदम वास्तव में ब्रह्मा के जीवन के 5 कदम है । अगर देखा जाए तो, पहला, त्याग, स्थूल रीती से देखा जाए तो, धन-संपत्ति बिजनेस सब त्याग कर दिया। आज्ञा मानी, हुआ रेल का राही आ गए वापिस हैदराबाद। वफा भयंकर विरोध। परंतु, एक बल एक भरोसा और उसके बाद में आबू आए सेवा, विश्व सेवा, और अंत में कर्मातीत,बंधन मुक्त, कर्म संबंध मुक्त फरिश्ते, द स्टोरी ऑफ़ ब्रह्मा इन 5 चैप्टर्स ।

तो सबसे पहला कदम, क्या, त्याग। हमारा त्याग इतना सूक्ष्म में हो, और उसका कोई वर्णन ना हो। और मुख्यतः जब दूसरे भाई बहनों का कोर्स कराया जाता है, तो कोर्स कराने वाला एक बात का ध्यान हमेशा रखें कि अपने ब्रम्हचर्य का और अपने त्याग का वर्णन ना करे। अपने ब्रम्हचर्य का और अपने त्याग का वर्णन ना करें । तो मन बुद्धि का समर्पण कर दिया। मैं का समर्पण कर दिया, तो यह हद के सारे संबंध स्वता ही समर्पण हो गए । और बाबा ने कहा, जब एग्जांपल पावरफुल होता है, तो उसको फॉलो करना सहज हो जाता है। मगर एग्जांपल पावरफुल हो। वह कोई और बने यह भी ना हम सोचे, हम ही एग्जांपल बन जाए, औरों के लिए। जैसे ब्रह्मा बाबा सभी यज्ञ वत्सो के लिए एग्जांपल बने, वैसे संसार के अभी हमें बनना है, तो यह रिटर्न होगा। केवल लिखना, केवल पढ़ना, केवल पॉइंट से याद रखना या सुनाना यह ज्ञान नहीं। ज्ञान, अर्थात उसकी गहराई में जाना। ज्ञान, अर्थात केवल सुनना नहीं ,परंतु सुनते सुनते गहराई में जाना । गहराई में नहीं गए, तो वह वाक्य केवल वाक्य रहेंगे महावाक्य नहीं । अव्यक्त महावाक्य बाबा के महावाक्य उस पर माया का परछाया पड़ जाएगा, अगर उसकी गहराई में नहीं गए तो। लेट द नॉलेज सिंक इन द इन्टेलेक्ट। ज्ञान बुद्धि में धीरे धीरे धीरे धीरे अंदर जाए । टाइम चाहिए, धीरज धर मनवा... सुबह की मुरली, धीरज! वेट एंड सी। मार्ग पर निकल पड़े हैं, यात्रा बहुत लंबी है, कब पहुंचेंगे पता नहीं। वेटिंग पीरियड बहुत ज्यादा है। बट एक निश्चय है यू आर ऑन द राईट पाथ। हम सही मार्ग पर हैं, चलते जाओ चलते जाओ चलते जाओ चलते जाओ । अंधेरा गहरा है, परंतु प्रकाश इंतजार कर रहा है। त्याग

दूसरा आज्ञाकारी ब्रह्मा की महानता इसलिए नहीं है कि उसमें भगवान आए हैं। ब्रह्मा की महानता इसमें है कि, जब भगवान उसके तन में नहीं है, तब वह क्या कर रहा है। बाबा कईयों के तन में आए। वह छोड़कर भी चले गए बाद में । उसका अपना इंडिविजुअल व्यक्तिगत पुरुषार्थ का संबंध भगवान का उसके तन में आने से नहीं। वह उसका अपना पुरुषार्थ है। सत्य जागृति ज्योत बनकर रहना, सतत स्वयं को जगाते रहना, बहुत बड़ा पुरुषार्थ है। क्योंकि इस संसार में नींद आ जाना बड़ा स्वाभाविक है । चारों तरफ माया ही माया है। इच्छाएं, बाबा ने मुरली में कहा, कि इतने बड़े यज्ञ के निमित्त होते हुए भी इंचार्ज है, हेड है। परंतु कौन सा पार्ट है यस बॉस, हां जी । जी हाजिर का पार्ट है । तो जो भी आज्ञा मिले, हमको यह नहीं समझना कि किसी बहन ने दी है, किसी टीचर ने दी है । यह समझ के सेवा करना यह स्वयं भगवान का मेरे लिए इस समय आदेश है। वह केवल निमित्त है, जो सामने है । और हमें उसमें कोई कल्याण में दिखाई नहीं दे रहा है। क्योंकि हम अपनी छोटी-छोटी आंखों से देख रहे हैं। या फिर अकल्याण दिखाई दे रहा है। परंतु यदि वह आदेश आ रहा है किसी निमित्त के द्वारा तो जरूर उस में सूक्ष्म कल्याण छुपा हुआ है । यदि निमित्त की भी बात छोड़ दो तो रोज की मुरली ही आदेश है। यह करो ऐसे करो उसमें से कुछ ऐसी पॉइंट्स उठानी है, जिस पर हम काम करें काम बहुत गहरा है । और बाकी ऑपरेशन बहुत डीप है।

सभी भट्टी वाले आए हैं, यहां पर और ऐसा मौका शायद फिर ना मिले। इसलिए भीतर की यात्रा कर ले 3 दिनों में, बाहर की यात्रा बहुत कर ली। जो हर भट्टी को हम बताते हैं, कि यहां आने वाले जो है, वह तीन नियम है। पहला मोबाइल स्विच ऑफ, ये क्लास पूरी होते ही जिन्हें बड़ी गंभीर साधना करनी है। तपस्या करनी है मधुबन में आए हैं बातें करने के लिए नहीं आए हैं । चर्चाएं करने नहीं आए हैं अंदर बड़ा गहरा काम बाकी है । एक गहरा ऑपरेशन है मन का, वह भी यहां आकर भी वही सब कर रहे हैं, जो वहां करते थे । तो यहां क्यों आए हैं मधुबन तपने के लिए आए हैं मनोरंजन के लिए नहीं केवल। तपोभूमि है, पहला नियम भट्टी वालों के लिए, मोबाइल बंद। क्लास पूरा होते ही जिससे बातें करनी है, और जितनी करनी है, वैसे तो करनी नहीं चाहिए कर लो और उनको कह दो अभी अगले 3 दिन बाय बाय। दूसरा आपस में बातचीत बंद, गहरी साधना के लिए गहरे मौन की आवश्यकता है। दूसरा हमसे बात करें भी तो भी इंटरेस्ट ना दिखाएं । क्योंकि यही समय है 3 दिन का जब गहरी साधना हो सकती है। वहां तो आवाज ही आवाज है संसार की आवाजो से परे, यहां आए हैं । बिना मौन के कुछ भी प्राप्त नहीं होगा । खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाएंगे। बस मिलेगा क्या एंटरटेनमेंट। वह भी विस्मृत हो जाएगा। यह हुआ वह हुआ बहुत अच्छा हुआ, ऐसा मिला, बस अब मिला यह खाया वह खाया, फोटो लिए यह लिया वह किया। यह कुछ ही समय रहेगा, इसका असर इसके लिए नहीं आए हैं।
दूसरे नियम, आपस में बातचीत बंद। तीसरा, इस कैंपस से बाहर नहीं जाना है । जिन्हें गहरी साधना करनी है, जिन्हें नहीं करनी है वह, इन तीनों में से किसी को भी फॉलो नहीं करेंगे। कैद हो जाना, लॉकडाउन। क्योंकि यात्रा भीतर करनी है, बाहर के जगत को तो वहां पर भी देख रहे थे यहां आकर भी वही कर रहे हैं। और यहां वाले जो कर रहे हैं, उसको नहीं देखना है यहां वालों के इंस्पेक्टर बनकर नहीं आए हो। उनका मूल्यांकन करने नहीं आए हो, अंदर कितना गहरा काम बाकी है कितने संस्कार है, विकार है, सूक्ष्म, कहां किसके प्रति ईर्ष्या है, घृणा है, नफरत है, कितना कुछ कुछ भरा हुआ है। इस ब्राह्मण जीवन में जब से आए हैं तब से क्या क्या क्या क्या हुआ है। कितना काम करना है, कितनी प्लानिंग बनानी है । क्या कर रहे हो। भट्टी का नियम है अकेले हो जाना, कोई साथी नहीं, पूर्ण अकेले, पहला कदम त्याग, दूसरा कदम आज्ञाकारी,

तीसरा कदम वफा, बाबा ने कौन सा उदाहरण दिया है । पत्नी का पतिव्रता स्त्री। शरीर भगवान को अर्पित किया है, देहधारी से टच ना करें । दृष्टि से भी हममें ही कुछ है, जो सामने वाले को आकर्षित करता है शरीर की तरफ । वह इच्छा इधर भी है, उधर की इच्छा इधर का प्रक्षेपण है, प्रोजेक्शन। गहरे काम है, जो करने हैं। और यही समय है, यहां केवल क्लासेज सुनने भी नहीं आए हैं ।क्लासेस तो बहुत सुन सकते हैं। और बहुत सुन भी ली है, यहां अनुभव मुख्य बैठ जाओ। लिखा भी बहुत है, सारी डायरिया भर रखी है । चुप एंड turn with in भीतर घुसो, यहां रहते हुए भी जैसे नहीं रह रहे हैं। हां कारोबार के लिए कुछ बात करनी है तो करो। बस इतना ही

विदेशी यहां आते हैं, हम देखते हैं 10 दिन के लिए आते हैं 10 दिन में इतनी पावर भर के जाते हैं। की उनको 1 साल तक चलती है वह पावर, चुप रहते हैं, मौन में रहते हैं। कहीं इंटरेक्ट नहीं करते किसी से कमरे में बैठे रहते हैं बाबा के चुपचाप, मोबाइल भी नहीं होता है, उनके पास। भारत वाले आते हैं सुबह अमृतवेला उठते ही माताओं की हलचल और बातचीत चालू हो जाती है बातें करते-करते ही मेडिटेशन हॉल में एंट्री होती है । और योग करते हैं। और पाने पाँच होते ही बातें चालू बीच में जैसे डिस्टरबेंस था यह योग। हमारी बातचीत के बीच में आ गया पूरा करो उसको जल्दी। और अपने ओरिजिनल स्वरूप में आ जाओ । कौन से स्वरूप में कचर कचर, पचर पचर, चटपटी न्यूज़ चटपटे खबरें,ब्राह्मण संसार समाचार, मोबाइल न्यूज़पेपर है। अपडेटेड, कहां क्या हो रहा है, और किस डिपार्टमेंट में क्या हो रहा है, सब खबर है ।भीतर की डिपार्टमेंट की खबर लेनी है बाहर कि नहीं।
तीसरा 'वफा' एक- एक का अनुभव करना है, तो एक हो जाओ । अकेले हो जाओ उसके सिवा नहीं हो सकता। झुंड झुंड में बातें करते करते, चर्चा करते चर्चा करने के लिए समय है। जाने आने के बाद चर्चा करना । जितनी ज्ञान की चर्चा करनी है यहां ज्ञान की चर्चा करने नहीं आए हैं तपने आए हैं। फरनैश है, ये ज्वाला भवन है । यहां पर भी वही करेंगे, जो वहां कर रहे थे। तो यहां आने का औचित्य क्या? अनुभव करना है कुटिया अनुभव करो। उन प्रकंपनो का। इसी मुरली में है, शायद नहीं, जो शाम को अव्यक्त वाणी चली निमित्त के वाइब्रेशंस फैलते हैं। यह नहीं समझो कि हमारे वाइब्रेशंस नहीं फैलते। मन में जो जो विचार उठ रहे हैं उसके प्रकंपन फैलते हैं। लोभ उठ रहा है, काम उठ रहा है, आसक्ति उठ रही है, प्रकंपन उस आत्मा तक पहुंच रही है। जिसके प्रति वह हो रहा है। इसलिए काम बहुत गहरा है, चुप हो जाओ । आई सेल स्पीक टू द हील साइलेंस। भगवान कहते हैं मैं तुमसे बात करूंगा , तभी तुम मेरी आवाज सुन सकोगे, जब तुम संसार की आवाज सुनना बंद कर दोगे । उसके सिवा मेरी आवाज तुम तक नहीं पहुंच सकेगी मैं अव्यक्त हूं, आवाज से परे रहने वाला हूं । तुम आवाज में हो मिलन कैसे होगा । एक में सब कुछ एक से सब कुछ, एक के लिए सब कुछ, एक पर सब कुछ। ये अनुभव बड़ा डीप है, और गहरे अनुभव के लिए त्याग की आवश्यकता है। यहां आए हैं, लोग मधुबन एक दिन के लिए आते हैं । एक दिन के लिए और एक दिन में एक रात में भरपूर होकर जाते हैं । आप सब के पास कितना समय है, तीन दिन चार दिन । इन चार दिनों में घर कुछ लेकर जाना है । रात के सन्नाटे में तपस्या होती है इन द सिबिलेंस ऑफ नाइट। सिबिलेनसर अर्थात shhhhhhhhhhh आवाज होती है ना उसमें तपस्या की जाती है। जिसके लिए जल्दी सोना, ताकि 1:30 और 2:00 बजे उठ सको। ताकि अमृत वेले का समय अमृत बन जाए। अतिंद्रीय सुख में आत्मा डूब जाए, अनुभव करें, शरीर और शरीर की आशक्तियां और वासनाएं छूट जाएं नीचे । वो जभी हो सकती है सब अनुभव इतना सस्ता नहीं है, कि सोशल मीडिया पर मिल जाए। अनुभव महंगी चीज है कीमत चुकानी पड़ेगी । अगर मोबाइल में ही लगे रहे और बातें करते रहे, कब नौ दस ग्यारह बज जाए, पता ही नहीं चलता। जल्दी सो जाओ सुबह उठने की विधि जल्दी सो जाओ । विदाउट इलेक्ट्रॉनिक डिस्टरबेंस। वाइब्रेशंस निकलते रहते हैं उसमें से।

चौथा विश्व सेवा धारी एक तरफ अथॉरिटी भी है, दूसरी तरफ सेवा, दूसरी तरफ निर्मानता, दूसरी तरफ बेहद का भाव, बेहद का भाव। विरोधियों ने बहुत विरोध किया । धर्म नेताओं, राजनेताओं, लौकिक संबंधियों परंतु फिर भी अडिग, अडोल । विश्व सेवा धारी और

पांचवा कर्म बंधन और संबंध से मुक्त। और

छठवां छोटी दिल नहीं, कितनी दिल ? कैसी दिल? बड़ी। मेरा सेंटर, मेरे जिज्ञासु, मेरी मधुगिरी, मेरी टीचर, मेरा मधुबन स्वमान से कहो तो बहुत अच्छा है। हद हद हद बाबा को हदें पसंद नहीं है। जहां हद का प्रभाव है, वहां पर बाप नहीं आते। वहां पर बाप का बसेरा नहीं है। सबको समा लो, बाबा ने किस किस को अपना बच्चा बनाया। ब्रह्मा बाबा ने, पांच,

पहला बच्चा खांसी यह खांसी मेरी बच्ची है, आती रहती है जाती रहती है। कैसा भाव है । और हमको बीमारी होती है तो हम बीमारियों को किस नजर से देखते हैं ये बीमारी जाती क्यों नहीं। है यह बीमारी अच्छी नहीं है।

छोटी सी बच्ची थी, आयशा चौधरी शरीर छोड़ दिया। 18 साल की थी, 2015 में ही शरीर छोड़ दिया। मोटिवेशनल स्पीकर रही, अब नहीं है। अभी नहीं है उसको एक ऐसी बीमारी थी lungs की lungs Fibrosis कितनी बार एडमिट होती थी । पर यंगेस्ट मोटिवेशनल स्पीकर कितने लोगों को उसने प्रेरणा दी । अब तो चली गई, 2015 में ही शरीर छोड़ दिया वह कहती है। आई लव माय lungs Fibrosis हैप्पी lungs Fibrosis इफ यू हैव डायबिटीज लेट इट बी हैप्पी डायबिटीज । यदि हाइपोटेंशन है, तो लेट इट बी हैप्पी हाइपोटेंशन। उससे परेशान नहीं होना है। वृत्ति को ही बदल दो। प्रेम से स्वीकार कर लिया । तो पहली बच्ची खांसी।

दूसरा बच्चा टेप । ये टेप क्या हैं मेरा बच्चा है । किस-किस को बच्चा और बच्ची बना दिया। वसुधैव कुटुंबकम उदारचरितानामतु।
तीसरा यह सांप, बृज कोठी में आया था यज्ञ वत्स कितने सांप जानवर थे। बाबा के पास सांप आ गया एक दिन, बाबा ने कहा बच्चे को दूध पिलाओ । चिड़िया क्या है यह, बच्ची।

तीसरा, जानवर

चौथा यह माली बच्चा। कोई भेदभाव नहीं कोई विसंगति नहीं । एटीट्यूट में सबके प्रति समभाव यह बीके ये नॉन बीके, यह वीआईपी यह कम वीआईपी । यह पढ़ा लिखा हुआ है, यह कम पढ़ा लिखा है। सब कौन है, आत्माएं । यह सीआईडी बच्चा, आज की मुरली में भी है । सीआईडी आया था इधर, देखते हैं क्या चल रहा है इधर। वो भी बच्चा, वह भी बच्चे जो अभी है नहीं आने वाले, वह भी आएंगे बच्चे आएंगे । वह भी बच्चे हैं , यह तत्व भी बच्चे हैं । धरती को लोग मां कहते हैं , वह भी बच्ची है । उसके प्रति भी प्रेम से भरा हुआ हो चित् प्रेम वस्तुओं को व्यक्ति बना देता है । और प्रेमहीन व्यक्ति को भी वस्तु बना देता है । बड़ी गहरी बात है जहां प्रेम नहीं वहां वासना और जहां वासना है। तो व्यक्ति व्यक्ति नहीं रह जाता है, वस्तु बन जाता है, उपयोग करो और फेंक दो। और जहां हृदय में प्रेम है। वहां वस्तुएं भी क्या बन जाती है, व्यक्ति पत्थर भी है । तो उसको प्रेम से उठाओ । प्रकंपन उसमें भी है चलो तो प्रेम से । धरती आहत ना हो,

एक कुबड़ा दांपत्य छोटी सी झोपड़ी में रहते थे बहुत तेज बारिश हो रही थी छोटी सी झोपड़ी है बस दो ही लोग रहते थे वह और उसकी पत्नी दोनों बूढ़े हैं और तेज बारिश हो रही है अचानक दरवाजे पर दस्तक खटखट पति कहते हैं वह योगी है फकीर जैसा हैं पति कहते हैं देखो जरा कौन है शायद कोई मित्र होगा । अपरिचित मित्र और हमारे परिचित भी मित्र नहीं है। उसको अंदर आने दो, पत्नी कहती है पर हमारे पास जगह कहां है हम अगर तीसरे को ले ले तो। मुश्किल से तो हम दोनों लोग सो पा रहे हैं। वह कहता है, यह कोई राजा का महल नहीं है गरीब की झोपड़ी है । इसमें बहुत जगह है, क्योंकि ह्रदय से बड़ा है। प्रेम है जो सब को समा लेता है, उसको आने दो वह व्यक्ति आता है। भीगा हुआ है, पहले दो लोग थे, अब तीन लोग । बारिश तेज हो रही है रात आगे बढ़ती है। थोड़ी देर के बाद फिर दस्तक , अब दो लोग हैं बाहर, अब जगह बिल्कुल नहीं है वह फकीर कहता है दरवाजा खोलो कोई आ रहा है , वह व्यक्ति जो अभी-अभी आया था देखता है कहता है दो लोग है जगह कहां है। अभी अभी थोड़ी देर पहले वही आया था। वह कहता है जगह कहां है? तो फकीर कहता है जिस प्रेम ने तुम को जगह दी वह प्रेम उनको भी जगह देगा , आने दो । वह दोनों आ जाते हैं, अब तक बैठे थे लेटे थे अभी वह बैठ जाते हैं । जगह बहुत कम है, रात आगे बढ़ती है थोड़ी देर में फिर से दस्तक, देखते हैं वह दोनों, गधा है बाहर। बिचारा भीग रहा है, वह भी आना चाहता है । वह भी शरण चाहता है यह तीनों कहते हैं जगह कहां है, उसको आने दो फकीर कहता है पत्नी कहती है जगह ? अभी हम बैठे हैं हम खड़े हो जाएंगे । और अगर कोई और भी आ जाता है, तो मैं बाहर चला जाने को तैयार हूं। उदारचरितानामतु, एक ही कमरे में 10 माताओं के साथ रहना बड़ा भारी पुरुषार्थ है। एक को खिड़की बंद, दूसरे को खिड़की चालू चाहिए । यह कहती है मेरी अलमारी है इसमें अपना सामान हटाओ। यह कहती है, मुझे जल्दी योग करने जाना है निकलो बाथरूम से। वह कहती है नहीं निकलूंगी । एक लाइट चालू तो दूसरी को लाइट बंद । संस्कार मैं पन की रास ।

सातवा कदम, स्पीच, वाणी, इसका विस्तार मुरली में नहीं है, पर बाबा डायरेक्शन दे चुके हैं । अभी-अभी मुरली चली थी तुम्हारी वाणी में 5 चीजें ना हो।
पहला, किसी की हंसी उड़ाना, लिमिट से ज्यादा,
दूसरा टोंट,
तीसरा, न्यूज़। इसने यह किया, उसने वह किया, यहां की न्यूज़ वहां।
चौथा, न्यूज़ के साथ में साथी सेवा धारियों के कमियों का वर्णन। और

पांचवा, अयुक्ति युक्त बोल। इस पर काम करना है। हमारे मुख से ऐसा कोई शब्द ना निकले, जिससे किसी का भी हृदय आहत हो ।
हमारे संपूर्ण ज्ञान योग की यह कसौटी है, कितना भी कोई ज्ञान योग करें 2:00 बजे उठे यह खाए, वह खाए ऐसा करे वैसा करें । परंतु वाणी में यदि मधुरता नहीं आए, तो फिर फेल। पानी में कटुता है, चाहे कोई भी हो बाबा कहते हैं , रावण जैसा भी कोई पापी हो इसी मुरली में कहा है। कैसी दृष्टि रहम की सब के प्रति दृष्टि घृणा नहीं। चाहे कोई कितना भी गिरा हुआ हो, फिर भी उसको उठाना है हजार बार उसने अपमान किया हो। हमारा फिर भी रहम क्योंकि दाता के बच्चे हैं हम बदला कैसे ले सकते हैं। स्पीच ।
आठवां, बैलेंस । स्व सेवा और सेवा विश्व सेवा करते करते यदि स्वयं सेवा नहीं हो रही है । तो वह विश्व सेवा में भी सफलता नहीं मिलेगी। बरकत। क्या कहा बाबा ने बरकत, छोटे दिलवाले हैं सफलता कम मेहनत ज्यादा ,बरकत कम। यह बैलेंस सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट है । सर्वशक्तिमान बाप साथ हैं यह शक्ति ही यह संकल्प ही तुम्हें शक्ति देगा। यह बैलेंस रखने की नहीं तो बाहर विस्तार बहुत है। और भटकने के चांसेस बहुत ज्यादा है। इसलिए, यहां की सेवा प्रथम। सेवा फोर्थ सब्जेक्ट है ।और अभी तो भट्टी में आए हैं उनके लिए कोई भी सेवा नहीं है अगले तीन दिन इसलिए आपके लिए केवल योग ज्ञान यही सब्जेक्ट है। धारणा परिणाम रूप में अपने आप होगी धारणाएं भी यहां तो बहुत सहज है इस पवित्र वायुमंडल में कोई विकार का संकल्प आना ही मुश्किल है । सहज है धारणाएं। भोजन की धारणा सब धारणाएं यहां सहज है । जबकि मधुबन भूमि में हो केवल संकल्प चाहिए। कि मुझे करना है तो ही होगा नहीं तो यहां आकर भी यहां भट्टीआ कर- कर लोग जाते हैं। सेंटर पर संदली पर बैठ कर के अपने ढेर सारे अनुभव सुनाते हैं । और जैसे थे वैसे ही रह जाते हैं। केवल एक यादगार एक एंटरटेनमेंट एक ट्रिप हो जाती है। उनके लिए थोड़ा चेंज बस एक चेंज अच्छा हो गया । बट नो ट्रांसफॉरमेशन इसलिए साइलेंस ।

अगला स्प्रिचुअल बजट। नवा कदम बाबा ने कहा स्प्रिचुअल बजट- बजट अर्थात बचत। सबसे ज्यादा ऊर्जा वाणी द्वारा हो जाती है। बोलने में एक दिन पूरा दिन मौन रख कर देखो । सारा दिन मौन रहो फिर नुमा शाम का योग करो । क्या होता है एक दिन पूरे दिन भर बात करते रहो फिर नुमा शाम का योग करो अंतर है, Aggregates manifestation of power is to be calm । शांत हो जाना एक शक्ति की अभिव्यक्ति हैं। स्प्रिचुअल बजट। कुछ भी वेस्ट ना हो, बोल, संकल्प , जीवन ऊर्जा कुमार। जो धमनियों में बह रही है जीवन ऊर्जा जिसकी क्षमता शरीर को निर्माण करने की है, नीचे बह जाए तो व्यर्थ है, ऊपर बहे तो तो वह जिस में परिवर्तित होगी conservation of energy is ब्रम्हचर्य । बहुत पावर है उसमें। अगर वह बहती रहे नीचे, तो शक्ति, शरीर में शायद कुछ ना हो परंतु मन में गिल्ट कॉन्शियसनेस जरूर होगा। और एक गिल्टी मन, तीव्र पुरुषार्थी मन नहीं है। अपराध भाव से भरा हुआ मन, पुरुषार्थ ही नहीं कर सकता। पुरुषार्थ के लिए मन अपराध भाव, हीनता के भाव से मुक्त चाहिए । अपराध भाव, बहुत बड़ी बाधा है इस मार्ग में। बजट पैसों की भी बजट और लास्ट स्वमान, जिससे हमने क्लास की शुरुआत की थी।

ऐसे, कैसे ? पूज्य आत्माओं को, ऐसे सरवंश त्यागी आत्माओं को, ऐसे विश्व कल्याणकारी आत्माओं को, ऐसे वफादार आत्माओं को, ऐसे आज्ञाकारी आत्माओं को, ऐसे फरिश्ता स्वरूप कर्म बंधन मुक्त कर्म संबंध मुक्त आत्माओं को, ऐसे सर्व स्नेही आत्माओं को ऐसे, ऐसे, ऐसे और विश्व कल्याणकारी आत्माओं को, ऐसे, ऐसे बोलो, बैलेंस रखने वाली आत्माओं को, स्प्रिचुअल बजट बनाने वाली आत्माओं को, ऐसे ऐसे, मीठा बोलने वाली आत्माओं को, ऐसे भट्टी में मोबाइल स्विच ऑफ रखने वाली आत्माओं को, ऐसे इस कैंपस से कहीं पर भी बाहर ना जाने वाली आत्माओं को, ऐसे आपस में बात ना करने वाली आत्माओं को, ऐसे , ऐसे ऐसे, बैलेंस रखने वाली आत्माओं को, ऐसे स्वमानधारी आत्माओं को ऐसे, ऐसे अदिव्य को भी दिव्य बनाने वाली आत्माओं को, वरदान आज का ऐसे सेल्फ प्रोग्रेस करने वाली आत्माओं को, सेल्फ ट्रांसफॉरमेशन करने वाली आत्माओं को, ऐसी निर्मल नयन वाली आत्माओं को, ऐसी रहम की दृष्टि वाली आत्माओं को, ऐसी दयालु कृपालु स्वयं को मेहमान समझने वाली आत्माओं को, बेहद की दृष्टि रखने वाली बेहद का भाव रखने वाली आत्माओं को, ऐसे ज्ञान की गहराई में जाने वाली आत्माओं को, ऐसे डीप ऑपरेशन करने वाली आत्माओं को, और ढेर सारे स्वमान वाली आत्माओं को, इंडोर रहने वाली आत्माओं को, अंतर्मुखी, बापदादा का याद प्यार गुड नाइट और नमस्ते। हम रूहानी बच्चों की रूहानी बापदादा को याद प्यार गुड नाइट और नमस्ते। ओम शांति।