ब्राह्मण जीवन का फाउंडेशन - दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि


ओम शांति ।
किसी नदी के तट पर लकड़ी का एक तना एक लट्ठा खड़ा हुआ पड़ा था। और उस लकड़ी के तने पर थोड़ी ही देर में चार मेंढक आकर बैठ गये । थोड़ी ही देर में, जब नदी का प्रवाह तेज हुआ तो लकड़ी का वह लट्ठा नदी के साथ बहने लगा, और साथ-साथ वह चार मेंढक। पहला मेंढक कहता है, ऐसा यह लकड़ी का तना मैंने पहले कभी नहीं देखा। इतनी अच्छे से यह बह रहा है, और और यह अनुभव भी कितना सुखद है, यह जो वुडन लोग है यह बह रहा है। दूसरा मेंढक कहता है, इसमें इस लकड़ी के तने की क्या महानता। वह बह नहीं रहा वास्तव में पानी है जो बह रहा है । वह तो वही खड़ा है और बहने वाला कौन है, पानी। तीसरा मेंढक दोनों को शांति से सुन रहा है, और कहता है, ना तो पानी बह रहा है, और ना ही लकड़ी का वह तना। तुम्हारा मन बह रहा है, योर माइंड इज मूविंग। तीनों आपस में लड़ाई करने लगते है।

लड़ाई का आगाज तेज होता है, और वह तीनों देखते हैं, यह जो चौथा मेंढक है, यह तो चुपचाप बैठा हुआ है । उससे पूछते हैं तुम क्या सोचते हो, पहले का कहना है कि वह जो वुडन लोग हैं, लकड़ी का टुकड़ा है, वह बह रहा है। दूसरे का कहना है, वह नहीं बह रहा पानी बह रहा है। मूविंग वाटर की है। तीसरे का कहना है, ना पानी ना ही वह लट्ठा मन मूव कर रहा है, चौथे से पूछा जाता है तुम क्या सोचते हो। वह कहता है, तुम में से हर एक सही है और हर एक गलत भी। अगर एक रीति से देखा जाए, तो लट्ठा भी बह रहा है और मन भी बह रहा है, परंतु और थोड़ी गहराई में जाओ, और सोचो, तो ना तो पानी बह रहा है, और ना वो तना और ना ही मन। कुछ भी नहीं बह रहा है । तीनों बहुत गुस्सा होते हैं, क्योंकि वह यह नहीं स्वीकार करना चाहते कि हम अपूर्ण सत्य हैं हर एक चाहता है कि मैं जो सोचता हूं, और संपूर्ण सत्य सोचता हूं। अर्ध सत्य भी नहीं संपूर्ण सत्य। और वो यह भी नहीं मानना चाहते, कि हम तीनों ही गलत है। और यह जो चौथा है, यह सही है। अहंकार को बड़ी ठेस पहुंची, वह तीनों मिलकर चौथे को ढकेल देते हैं, बिचारा पानी में डूब के मर जाता है।

जब जब सत्य द्वार पर दस्तक देगा, उसके साथ लगभग ऐसा ही होता है। हमारी अब तक की मान्यताएं, हमारी अब तक की समझ, ज्ञान और योग की, हमारे अब तक का सारा ज्ञान, सारा अनुभव जीवन का अगर कोई चैलेंज करें, अगर कोई कहे कि यह तुम गलत तरीके से योग करते हो, या तुम्हारी अंडरस्टैंडिंग गलत है, तो क्या हम उसका सम्मान करते हैं , क्या करते हैं, उसके साथ क्योंकि उसने ठेस पहुंचाई है, किसको ठेस पहुंचाई है। हमारी अब तक की सारी मान्यताओं को, अब तक की सारी विचारधाराओं को, अब तक जिस पर हमारा विश्वास था, निष्ठा थी, फेथ था। वह सबको उसने ठेस पहुंचाई है। और हमें यह स्वीकार बिल्कुल भी नहीं है, जो जो हमें जगाने आता है, उसको हम क्या समझते हैं, अपना मित्र या दुश्मन। नींद से जो जगाता है उसके प्रति किस तरह के भाव होते हैं, अच्छी नींद आ रही थी, कितनी थकान थी। दिन में नींद नहीं हुई थी, और अभी अभी अभी भी नींद लगी थी और रात को कोई 1:00 बजे कोई उठा दे, उठो चलो आज 2:00 बजे से अमृतवेला करेंगे और बहुत गहराई से बाबा को याद करेंगे, तो हम क्या सोचते हैं, उसके बारे में, बहुत अच्छा किया तुमने उठा दिया । जब जब सत्य दस्तक देता है हम उसे नहीं स्वीकार करना चाहते। मन में आक्रोश विरोध जागता हैं । क्योंकि अंदर जो मैं बैठा है, जो समझता हैं, मैंने बहुत कुछ जान लिया है, समझ लिया है और मेरी जो समझ है वह कैसी है, पूर्ण है, सर्वश्रेष्ठ है यह जो श्रीमत है, और इसको मैंने जैसा समझा है, बस जी ऐसी ही है। अगर कोई कुछ बताएं तो हम हमें कहेंगे, तुम्हारी मन मत है। तुमने मिक्स किया है इसमें बुद्धि अहंकार से भर जाती है। जब तक बुद्धि अहंकार से खाली नहीं होती, ज्ञान की यात्रा चालू ही नहीं होती । ज्ञान इतना विशाल और इतना विराट है, उसके लिए निरंतर एक जिज्ञासा एक पिरामाता एक प्यास, जब जब कोई यह कहे कि हमने जान लिया समझ लिया, तब सीखना बंद । यह एंड है। इतना इतना हमने उतार-चढ़ाव देखे हैं । इस जीवन में ब्राम्हण जीवन में, ब्रह्मा जीवन में ही इतने ups एंड डाउन देखे। इतने लोगो के रंग बिरंगे चेहरे देखे हैं । कि हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं , कि यही सत्य है । ये सब ऐसे ही माना, इन्होंने भगवान को पाया हो सकता है, उन्होंने तपस्या भी बहुत की हो। परंतु, अब वह उनका स्वरूप नहीं है । और यह भाव हमें नेगेटिविटी की ओर ले चलता है भर देता है नेगेटिविटी से। और हम कह देते हैं कि, यह जो हम कह रहे हैं कि अपने अनुभव के कारण कह रहे हैं। और अनुभव भी हमारा है, संपूर्ण नहीं है वह । और हमारा अनुभव हमारा तो छोटा सा ज्ञान छोटी सी छोटी सी समझ है। उस आधार पर निकला हुआ वह अनुभव है । इसलिए वो अनुभव भी पूर्ण नहीं है । उस अनुभव में भी दोष है। इसलिए ज्ञान, मैं भरेगा तब जो दिखना चाहिए, वह दिखना बंद हो जाता है। इसलिए बाबा ने जन्म से हम सब को कौन सा वरदान दिया है। दिव्य बुद्धि का वरदान।

तो आज सुबह की अव्यक्त वाणी किस विषय पर है, दिव्य बुद्धि और दिव्य, दृष्टि, दृष्टि की चर्चा कम हुई है, ज्यादा चर्चा किसकी है, दिव्य बुद्धि की चर्चा है। लगभग 14 बातें है, जिसमें हम चर्चा करेंगे।

पहली बात, दिव्य बुद्धि है वरदान । दिव्य बुद्धि क्या है सभी को मिला है फिर भी भिन्नता है, कार्य प्रमाण, मनसा वाचा कर्मणा और सफाई करनी है, उसकी और सफाई भी ऊपर ऊपर से नहीं, गहरी सफाई, गहराई से सफाई यह दो काम है। उसकी हम चर्चा करेंगे की सफाई कैसे करें । सफाई अभियान में डल हो जाती है वो। अगर कोई इंस्ट्रूमेंट है यह माइक ऐसे ही रख दो 10 साल जैसा अभी रखा है, निकलेगा क्या यहां से, नहीं। जिस भी चीज का यूज नहीं होगा, Disuse atrophy मेडिकल में कहते हैं, वो अंग शक्तिहीन हो जाता है शिथिल हो जाता है, उसी तरह बुद्धि भी मसल की तरह है। इंटरेक्ट इस लाइक मसल। उसका भी क्या होना चाहिए, यूज़ । दिन भर यूज़ करते रहना उसको ।
बुद्धि के 7 काम है कौन-कौन से,
पहला- जज करना, फैसला।
दूसरा- ग्रहण करना, इनवाइब। ज्ञान पढ़ लिया । पर ग्रहण किया शायद नहीं।
तीसरा
- निर्णय, बुद्धि क्या करती है, निर्णय।
चौथा- परखना
, बुखार जैसा लग रहा है, सो जाता हूं ,है नहीं लग रहा है, कोई कहता है थर्मामीटर से देखो नहीं, नहीं आया तो। उससे अच्छा यह मान लो कि है, और बढ़ता है जाना चाहिए कि नहीं जाना चाहिए, एक मन कहता है कि जाना चाहिए क्योंकि कुछ तो नया सीखने को मिलता है बुद्धि के कपाट खुल जाते हैं दूसरा कहता है अगर यह ऐसा है, तो फिर यह ऐसा क्यों कहते हैं, तर्क। और जब तर्क से हार हो जाती है तो फिर मुश्किल है, यह काम ही बुद्धि का है, और
लास्ट बुद्धि क्या करती है याददाश्त, मेमोराइज कर लेना। कविता पढ़ी, मेमोराइज कोई वाक्य पड़ा मेमोराइज कर लेना। मेमोराइजेशन की आदत ब्राह्मणों की कम हो गई है । जब भी कोई स्लोगन देखो कहीं पर लिखा हुआ, कई बार उसको पढ़ो मेमोराइज करने की कोशिश करो । अभी अभी पड़ा भोजन में जाते समय पड़ा , फिर खाते-खाते याद करो क्या था क्या था क्या था। भूल अगर गया तो जाते समय फिर पढ़ लो। क्या होगा यह मेमोरी शार्प होगी जो लोग मेमोरी गेम खेलते हैं, मेमोरी को काम देते हैं उन्हें बुढ़ापे में एक बीमारी आती है। alzemus करके, थोड़ी कम आती है कई लोगों को जल्दी चालू हो जाती है 50 साल की उम्र में ही चालू हो जाती है भूलना चालू हो जाता है कुछ भी याद नहीं रहता है चाबी कहां रखी है किसी से मिलने जा रहे थे जाते-जाते यही भूल जाते हैं। किस से मिलने जा रहे हैं, गाड़ी तो ले ली कार। और निकल पड़े पर कहां जा रहा हूं, वह भूल गया, वापस। Early alcimus, और इस बीमारी की कोई दवा नहीं है। संसार में जिसके कई सारे कारण हैं। पर यदि यह ना आए इसका एक मेथड यह भी है, कि मेमोरी को क्या करो काम देते रहो । स्लोगन पढा याद करने की कोशिश करो कि क्या था। मुरली पूरी सुनके हो गई एकांत में याद करो इस पूरी मुरली में उदाहरण क्या क्या थे, एकदम स्ट्रांग पॉइंट कौन से थे जो टच करने वाले है । नयी पॉइंट्स कौन से थे और जिस निमित्त आत्मा ने मुरली सुनाएं उसने मुरली के अतिरिक्त कहां-कहां कौन-कौन सी बातें बताई जो उससे संबंधित थी और जो बहुत काम की थी, मुरली सुनते समय मैं बैठा कहां पर था, और बाजू में कौन था, सब कुछ उस सीन को फिर से क्रिएट करना है । जैसे डिटेक्टिव लोग होते हैं, सीआईडी क्राइम सींस क्रिएट करते हैं, यहां चोरी हुई, फिर से, फिर भी वैसा ही सीन क्रिएट करो, जो मुरली सुबह सुनी, फिर से टाइम ट्रैवल पीछे चले जाओ। उस सीन को फिर से क्रिएट करो, मैं कहां बैठा था शुरुआत कहां से हुई थी मुरली की, धीरे धीरे धीरे मन कहां कहां भटका था, सब कुछ, तो बुद्धि के यह 7 काम है, पहला जज करना, दूसरा (इनवाइब) धारण करना । इसलिए बुद्धि अगर जितनी स्वच्छ होगी तो यह सातों काम कैसे होंगे बहुत सहज। The purer the mind, the easier it is to control। जितनी बुद्धि स्वच्छ है उतना उसको बस में करना भी सहज है तीसरा- निर्णय करना, डिसीजन लेना।
पांचवा अंडरस्टैंड समझ। एक बार पढ़ा नहीं समझ में आया ठीक है दूसरी बार पढ़ो तीसरी बार चौथी बार कभी तो समझ में आएगा । इतने भी बुद्धू नहीं है हम। अगला rationalize, realise नहीं, rationalize कर दिया, लॉजिक, reason करना, तर्क वितर्क करना। ये शक्ति है अंधश्रद्धा का ज्ञान नहीं है जो भी कहा जाए हो चुपचाप सहन कर लो तर्क करो चिंतन करो मनन करो ऐसा क्यों, इसलिए तर्क नहीं कर रहे हैं हम संशयबुद्धि है, संशयबुद्धि की स्टेज क्रॉस कर चुके हैं। अब समझने के लिए तर्क कर रहे हैं यह है क्या। अगला
मेमोराइज । यह एक बहुत अच्छा काम है, वरदान पढ़ो आंखें बंद करके याद करो क्या था। भूल गया फिर पढ़ो फिर याद करो फिर पढ़ो फिर याद करो जो चीज हमने बहुत अच्छी याद की है वह समय पर काम आ जाती है ।
अचानक जब जीवन में परिस्थिति आ जाए, या छोटा सा वाक्य याद आ जाए।

दादी जानकी ने एक अनुभव सुनाया था दादी जानकी मुंबई में थी, समुद्र का तर्क था बालकनी में खड़ी थी, और उदास सी हो गई यह सोचते हुए बाबा बार बार बीमार पड़ती रहती हूं यह शरीर साथ नहीं देता है कुछ ना कुछ होता ही रहता है । मैं आपकी क्या सेवा करू । शायद कुछ भी सेवा नहीं कर पाऊंगी। वैसे विचार ही चल रहा था तो आभास हुआ, कंधे पर किसी ने हाथ रख दिया। पीछे देखा आभास हुआ बापदादा खड़े हैं, और बाबा ने कहा बच्ची, तुम्हारा भाग्य और तुम्हारा भविष्य भगवान के हाथ में है। और वह भगवान ने पहले से ही लिख रखा है। और वह इतना ऊंचा है जिसे तुम भी नहीं जानती । इसलिए कभी भी इसके बाद ऐसा नहीं सोचना। फिर दादी कहती है उसके बाद मैंने कभी भी अपने लिए हीन भावना, इंप्योरिटी भावना अपने अंदर नहीं आने दी।

भगवान हमारा भविष्य लिख रहा है हमरा भाग्य उसके हाथ में है हाईएस्ट वर्जन लिखा है हमारा। तो हम ये अपने प्रति हीनता का भाव नहीं लाए हीनता का भाव, अपराध का भाव, ये guilt consciousness बिल्कुल भी आगे नहीं बढ़ने देता है। कि मुझसे पाप हो गया है, वह हुआ वह तो माना, जो अभी यह भाव आगे का सारा भविष्य नष्ट कर रहा है। वर्तमान को भी नष्ट कर रहा है, मैंने बहुत बड़ा पाप हुआ है । परंतु अपने आप को भी माफ करना सीखना है । यह बहुत बड़ी कला है दूसरों को माफ करना यह तो ठीक है। इसके लिए बहुत महानता चाहिए , परंतु हमसे इस ब्राह्मण जीवन में ब्राह्मण बनने के बाद यदि किसी की घ्रणा ग्लानि हुई है, नफरत की आग हमने फैलाई है, किसी के मन में बहुत सुंदर विचार थे किसी और के प्रति जो हमने नष्ट कर दिए हैं यह बड़े-बड़े विकर्म हैं, जो करता उसे पता ही नहीं रहता हैं वो क्या कर रहा है। इसलिए सबसे पहले माफी किसको स्वयं को। माना ठीक है। बहुत तुमने पाप किए हैं विकर्म किए श्रीमत का उल्लंघन किया, फिर भी , हे आत्मा, परमात्मा की ओर से मैं तुम्हें माफ करता हूं। अब फिर से नई शुरुआत अपने आप को टाइम देना है। माफ करने के लिए। तो पाँच बातें, दिव्य बुद्धि क्या है।

पहला वरदान, वरदान सभी को मिला परंतु वरदान मंत्र की तरह है । गुरु सभी शिष्यों को एक ही मंत्र दे देता है कान में, कुछ उस पर काम करते हैं, कुछ उस पर काम नहीं करते, जो काम करेंगे जो उसका मंत्र जाप करेंगे दिन रात मंत्र का और जब आप मन ही मन जाप करेंगे। कुछ सालों के बाद वह मंत्र क्या हो जाता है जागृत हो जाता है, शक्ति का रूप धारण कर लेता है। और जो काम नहीं करते वह निष्फल हो जाते हैं मंत्र तो सेम था कुछ भी मंत्र ओम नमः शिवाय। मंत्र अपने आप में विद्या है बहोत बड़ी। उसी तरह यह भी वरदान सबको मिला है दिव्य बुद्धि भव। परंतु कोई उस पर काम अगर ना करें तो केवल वरदान मिलने से कुछ भी प्राप्ति नहीं होगी कभी नहीं होगी सफलता भी नहीं होगी। केवल एक झूठा दिलासा रहेगा कि हमारे पास मंत्र है वरदान है । वह भी भगवान का दिया हुआ पर किया क्या सबसे पहला दिव्य बुद्धि क्या है वरदान ।

दूसरा दिव्य बुद्धि है जन्म सिद्ध अधिकार। पथ राइट। क्या है वह मेरा जन्मसिद्ध मैं जन्म से ही जैसे कर्ण का जन्म होते ही उसने कवच जा के लेकर के आया हो किसी दुकान से, कि मेरा कभी युद्ध होगा तो मुझे कवच चाहिए। उसके शरीर का अभिन्न अंग है वह, कवच । उसी तरह जन्म हुआ, और जनम के साथ ही दिव्य बुद्धि भव का वरदान मिल चुका है। तो याद रखना पड़ेगा मेमोराइज करना पड़ेगा पड़ेगा स्मरण करना पड़ेगा, रिपीट करना पड़ेगा बार-बार याद रखने के लिए। कि मेरी बुद्धि साधारण नहीं है। यदि बुद्धि कंफ्यूज हो रही है । अर्थात एकांत की आवश्यकता है।

तीसरा, जीवन का फाउंडेशन। दिव्य बुद्धि क्या है फाउंडेशन। नीव है ब्रह्माणी जीवन की। क्योंकि जब भी विकर्म होता है तब क्या होता है बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। तब समझ में हीं नहीं आता है वह क्या बोल रही है, क्या कर रही है विकर्म पर विकर्म, विकर्म पर विकर्म होते जाते हैं, संगम पर एक नियम है, 100 गुना फायदा तो 100 गुना घाटा, 100 गुना पुण्य तो सो गुना पाप, मधुबन में आए हैं और 100 गुना याद, 100 गुना पुण्य, मधुबन में आए हैं और यहां आकर विकर्म हो गया, तो 100 गुना घाटा भी यही है। अज्ञान में और भक्ति में 1 का 1 गुना, ज्ञान में एक का 100 गुना परंतु दोनों पाप और पुण्य both foundation ।

चौथा, दिव्य बुद्धि जो है वो जीवन परिवर्तन और मरजीवा जन्म का भी आधार है। बाबा ने कहा इसी से नंबरवार बनते हैं। यही तो अंतर है, मर चुके हैं। विजेंद्र दादी थी मुंबई में जो लौकिक में कौन थी, बाबा की बहू राधिका। जब वह मुंबई में थे तब कोई लौकिक रिश्तेदार आ गया एक बार पुराना और उसने कहा मैं बाबा की बहू से मिलने आया हूं। दादी ने कहा बहु मर चुकी है यह दादा की बेटी है। बहु मर चुकी है, कौन बहू, किसकी बहु, यह कौन है यह बेटी है कैसा नशा है। क्या पावर है सारे लौकिक संबंधों से परे निकल चुकी थी सारी आत्माएं वो। जो जितना फंसा हुआ है वो उतना कमजोर है, जो जितना मुक्त है उतना शक्तिशाली है। नहीं तो व्यर्थ के अंबार लगे हुए हैं सब जगह पर करना है मुझे कि नहीं करना है, सुनना है नहीं सुनना है, किस बात में मेरी उन्नति है यह पहला निर्णय । क्या करूं तो उन्नति होगी, कोई कहता है, चलो थोड़ा घूमने चलते हैं । यहां मुझे डिसाइड करना है, कि इससे मेरा टाइम वेस्ट होगा या टाइम सफल होगा। किस तरह की बातें हम कर रहे हैं। डिस्क्रिमिनेशन पावर।

अगला, बाबा ने कहा यह जो दिव्य बुद्धि है ये क्या है वाहन क्या है यह, व्हीकल है इससे तुम क्या करते हो, तीनों लोकों की सैर करते हो और यह सबसे तीव्र गति का वाहन है । अगर वाहन की ठीक नहीं है गाड़ी ही ठीक नहीं है तो सैर नहीं कर पाएंगे। इसका दूसरा अर्थ यदि हम सैर नहीं कर पा रहे, तुरंत बुद्धि नहीं टिकती परमधाम में, सूक्ष्म वतन में, शरीर से बाहर इस संसार से परे नहीं जा पाते। शरीर की दुनिया से तत्वों से अर्थात प्रॉब्लम है गाड़ी में, डबल रिफाइंड पेट्रोल डालने की जरूरत है । कुछ तो गड़बड़ है, दो काम करने हैं, यूज और सफाई। उस पर आएंगे हम, यही पूरी मुरली का सार एक ही है सफाई करो और क्या करो इसको यूज़ जितना यूज करेंगे वह पावरफुल होगी, नहीं तो वह डल रह जाएगी और जो डल है उसको कोई भी मार सकता है जो शरीर से कमजोर है कोई भी आ जाएगा उसको गिरा देगा। और जिसने शरीर को ही मजबूत बना रखा है उसे कुछ नहीं होता है । अंगद जैसा पैर रख दिया।

अगला, यह जो दिव्य बुद्धि है बाबा ने क्या कहा यही बुद्धि बल है, क्या है यह, बुद्धि बल कंपैरिजन किसके साथ किया, साइंस बल के साथ साइंस विनाशी है साइंस किसके बारे में सोचता है संसार के बारे में और प्राकृतिक के बारे में ,बस उसी पर काम करता है जो दिखाई देता है वो साइंस का क्षेत्र है । जो दिखाई नहीं देता वह अध्यात्म का क्षेत्र है। साइंस भी तो हमने कितना जाना है, बहुत कम, साइंस भी बहुत विशाल है मैन इस जस्ट स्क्रैच द सरफेस ऑफ साइंस। एक बस लकीर लगाई है साइंस पर अभी तक समझा नहीं है पूरा । और अध्यात्म तो उससे आगे का चैप्टर है। तो बुद्धि बल यदि जमा करना है तो क्या करना पड़ेगा बुद्धि को डिवाइन बनाना पड़ेगा । कितने हो गए, नो।

अगला, दिव्य बुद्धि से मास्टर सर्वशक्तिवान बन जाओगे। क्या बन जाओगे मास्टर सर्वशक्तिमान शक्तियां लेना, पावरफुल बनाना खुद को, संगम युग में एक ही काम है, अगर देखा जाए तो आत्मा को शक्तियों से भरना स्प्रिचुअल पावर से भरना । क्योंकि हार कब होती है जब स्प्रिचुअल पावर कम हो जाती है किसी ने कुछ बोल दिया दुखी हो गए क्यों दुखी हो गए। क्योंकि पावर कम थी हम बहुत पॉजिटिव है, पर दूसरों की नेगेटिविटी हमसे ज्यादा पावरफुल है । जैसे ही उनके संपर्क में जाते हैं, और कम हो जाते हैं हमारा सारा ज्ञान योग खत्म, और उनकी जो नेगेटिविटी है, उसके प्रभाव में हम आ जाते हैं । उनके शब्द इतने कड़े हैं कठोर हैं, व्यवहार इतना नेगेटिव है, वह नेगेटिविटी हमारे पॉजिटिविटी से हम सोचते हैं, हमारा ज्ञान कहां चला गया। अभी तो मुरली सुनकर आए थे अभी तो योग किया था, और जैसे ही इनके संपर्क में आए, खलास। अर्थात नेगेटिविटी की पावर ज्यादा है, पॉजिटिव से, पॉजिटिव सबसे ज्यादा पावरफुल है। पर पॉजिटिव की क्वांटिटी कम है। कितनी है, पॉजिटिव उनकी नेगेटिविटी इतनी है, योग में चिंतन करके कमाई हुई है। हमारे पास इतनी सी है। इसलिए नामोनिशान नहीं रहता है उसका, और फिर हम सोचते हैं क्या हो गया है, हम शाकास भी देते हैं तो छोटी-छोटी शाकास, पहुंचती भी नहीं है उस तक। नेगेटिविटी का कवच हमारी पॉजिटिविटी के तीरों से ज्यादा शक्तिशाली है। क्या करना है डोज को बढ़ाओ। दवाई तो खा रहे है पर होम्योपैथिक डोजेज में खा रहे हैं। थोड़ा सा डोज बढ़ाओ once a day, twice a day, thrice a day, qds four times a day और दवाई काम नहीं कर रही तो इंजेक्शन, उससे भी काम नहीं हो रहा है, एडमिट करना पड़ेगा ज्यादा ही सीरियस है तो आईसीयू। कुछ-कुछ की हालत सीरियस भी है। और हम और बीमार ना ना शुरुआत में बताया ना बुद्धि कहती है, बिल्कुल नहीं । अहंकार है दिव्य बुद्धि क्या बनाती है, मास्टर सर्वशक्तिवान।

अगला, परमात्म प्रीत है। परमात्म मिलन, परमात्मा प्राप्ति, इन तीनों का आधार भी क्या है, दिव्य बुद्धि। दिव्य बुद्धि ही तो थी जिसने भगवान को पहचाना । जिसने भगवान से मिलन मनाया और प्राप्ति की इसका अर्थ इसी मुरली में बाबा ने एक बड़ी गहरी बात की है । उसी दृष्टि से सब को देखना है, किसी के प्रति घृणा नहीं, अगर कोई गालियां भी दे रहा है तो क्या। फुल स्टॉप, फुल पास, फुल स्टॉक। अपने पास स्टॉक फुल हो तो फुल स्टॉप लगा सकेंगे। और फिर फुल पास होंगे। यह बहुत बड़ा पुरुषार्थ है, जो तारीफ करता है उसके ऊपर ही डाउट है, कि सही में कर रहा है या दिखावा है । उसके लिए ही शुभ भावना रखना इतना कठिन है, और जो खुलेआम निंदा कर रहा है वह तो बहुत बड़ी बात है फिर । बड़ा पुरुषार्थ है । जीवन का पुरुषार्थ है । तो परमात्मा मिलन परमात्मा परिचय मिलन सभी ने परिचय प्राप्त हुआ है। सभी मैं बाबा को जाना, इसलिए सभी ऐसी आत्माएं महान है सभी श्रेष्ठ है। सभी योगी है सभी तपस्वी हैं ।

अगला, असंभव संभव। दिव्य बुद्धि क्या कर देती है, असंभव को संभव । जब चाहो जैसे चाहो ।
अगला, सेवाओं में किस का अनुभव कराती हैं दिव्य बुद्धि, परमात्म प्रेम का । और
लास्ट माया को हार खिलाती है । क्योंकि टचिंग्स कैसी होती हैं, प्योर टचिंग्स होते हैं जिस में मिलावट नहीं है ऐसी टचिंग्स होती है हमें खुद दिया जाएगा कि यह करो यह आदेश है । इस समय के लिए इससे उससे बहुत पूछ लिया सब बाजू में डायरेक्ट कनेक्ट करो उससे।

रमेश भाई जी ने अपना एक बहुत सुंदर अनुभव सुनाया है , कहा कि मैं और ब्रह्मा बाबा, एक बार मुंबई के किसी एक सेंटर पर गए । और फिर बाबा ने प्रश्न पूछा कि बताओ गीता का भगवान कौन है ? सब ने बताया शिव बाबा, शिव बाबा । एक माता एकदम सामने खड़ी थी, वह कहती भगवान श्रीकृष्ण, और उसने कहा आप चाहे जो करना है कर लो मैं मर जाऊंगी पर मैं अपना यह मत बदलूंगी नहीं। अनन्य माता रोज आती है क्लास में ऐसी वैसी नहीं है पक्की एकदम पक्की ब्राह्मण । परंतु भगवान कृष्ण, रमेश भाई ने देखा यह क्या है वहां की सेंटर की बहन को पूछा उसको समझाओ वह समझाया पर वह मानने को तैयार नहीं , चाहे जो करना है कर लो मैं मर जाऊंगी, पर गीता का भगवान भगवान श्री कृष्ण ही है । फिर रमेश भाई बाबा के पास जाते हैं और कहते हैं उसको समझाओ बाबा यह क्या कह रही है। बाबा कहते हैं, देखो यह जो आत्मा है ना यही तो आत्मा है जो जाकर सतयुग में कृष्ण की आत्मा बनेगी, वह इस समय यहां है यही आत्मा कृष्ण की आत्मा। है ठीक है वह जो कह रही है कहने दो ठीक है। पर रमेश भाई को चैन नहीं आई यह सब सुनकर वहां से वह चले जाते हैं। और फिर 1 साल के बाद उसी सेंटर पर वापस आते हैं । इस समय फिर बाबा साथ में है बाबा फिर पूछते हैं कि बताओ गीता का स्वामी भगवान कौन है? वह माता हाथ खड़ा करती है शिव बाबा। तो रमेश भाई पूछते हैं, अरे तुम तो वही माता हो ना ? यह कैसे कर दिया तुमने कैसे हो गया ? वो कहती है मुझे भी नहीं पता कैसे हो गया रोज आती हूं मुरली सुनने तो सुनते सुनते सुनते कब यह बदलाव हो गया पता ही नहीं चला।

सफाई करने की विधि क्या है, रोज ज्ञान डालते जाओ डालते जाओ डालते जाओ डालते जाओ। वह कब वह संस्कार मिट जाएगा , कब वह आदत कब वह मान्यता कब वह कड़ा एडिक्शन खत्म हो जाएगा ,हमें भी नहीं पता चलेगा । अगर उसको समझाया होता तो मानती क्या वो ज्ञान ही छोड़ दिया होता । पर बाबा ने कुछ नहीं कहा, कहा ठीक है, ठीक है । और वह आती रही, लिखती रही पॉइंट्स और धीरे-धीरे बुद्धि में परिवर्तन हो गया । 1-2 के पॉइंट्स फिर है, ट्रैफिक कंट्रोल के बाद 2- 3 मिनट फिर चर्चा करेंगे।
 

तो सारा पुरुषार्थ दो कामों पर है, बुद्धि को यूज करना और बुद्धि की सफाई और सफाई की विधि क्या है ज्ञान डालते जाओ, डालते जाओ। अभी-अभी मुरली चली थी, बाबा ने कहा था जबरदस्ती बैठे रहो। जिस दिन लग रहा है नहीं करूं, फिर भी बैठे रहो फिर भी संगठन में आओ, शक्ति भरेगी सबके प्रकम्पनो से, सबकी वाइब्रेशन से पावर से । सफाई, सफाई कैसे होगी योग से ज्ञान से सफाई कैसे होगी रिपीटेशन से बार-बार दोहराने से सफाई कैसे होगी, चर्चा से। सफाई कैसे होगी सेवा से । सेवा का सबसे बड़ा जो फायदा है। वह वह सेवा अंदर के मैं को तोड़ता है अहंकार को । इसके लिए जितनी सेवाएं है, जिस प्रकार की सेवाएं हैं सभी करते रहना। वह भी चित् की शुद्धि की तरफ ले जाता है । तो हर तरफ से सफाई अभियान अंदर चालू करना है। संकल्प कि मुझे अंदर जो भरी हुई घृणा है, नफरत है, उसको मिटाना है । मिकी माउस नहीं बनना है। आज बाबा ने कहा रंग देते हैं ना अलग अलग अलग अलग रंग से । एक प्रभु के रंग में रंग जाओ बस इतनी सारी ढेर मति, मान्यताएं सब को हटा कर एक । तो सफाई और कैसे सफाई करना है, इसका प्लानिंग खुद ही बनाना है। और वह कहीं ना कहीं टच होगा कि यह करना है ।

और यूज करना है जब भी यूज करना हो जब भी। क्योंकि जीवन में सुबह से लेकर रात तक निर्णय ही निर्णय करना है। अभी क्लास होते ही निर्णय करना है सो जाऊं या कुछ और करूं निर्णय। कितने बजे उठूं, निर्णय । जीवन श्रृंखला है, निर्णयों की । निर्णय शक्ति शक्तिशाली है उसके लिए बुद्धि दिव्य बनानी है।

टीचर्स से क्या कहा बाबा ने, अपने फीचर्स हर समय सेवा में उपस्थित संकल्प से, बोल से, कर्म से, नेचुरल अटेंशन। और एक जगह कहा अविनाशी अटेंशन। पुरुषार्थ की परिभाषा क्या है, नेचुरल सहज निरंतर होता रहे। सहज, यथार्थ होता रहे। नेचुरल हो जाए वह स्वभाव जैसा हो जाए । जैसे वह जादूगर बुद्धि की सफाई करता है, तुम किस की सफाई करो, तुम भी बुद्धि की हथेली पर सिद्धि आएगी । एक बहुत अच्छा उदाहरण दिया है जैसे वह लोग किस को वश में कर लेते हैं शेर को। वह ऋषि मुनि, वैसे वह खिलौना बन जाए वाहन बन जाए। वैसे तुम भी अपनी शक्ति से यह सब सिद्धियां तुम्हारे वस में आ जाएंगी और क्या कहा टीचर से, फीचर्स, फरिश्ते जैसी और क्या कहा ? झलक किसकी दिखाई दे, सुख, शांति और खुशी की झलक दिखाई दे फीचर्स और क्या कहा फरिश्ता, फ्यूचर ।

और क्या कहा डबल फॉरेनर्स से मुलाकात में बिजी रहना यह भी एक विधि है जब भी मन खाली होता है व्यर्थ की तरफ जाता है बिजी अर्थात बिजनेसमैन बिजी रहेंगे तो हिसाब कौन सा कदमों में पदम नशा पर निर्माण भी साथ में दोनों चीजें साथ साथ होंगी। नशा अभी की कि हम खुश नहीं रहेंगे तो और कौन खुश रहेगा। 1-1 मुरली की पॉइंट में इतनी गहराई है, इतनी इतनी बातें हैं। 1 पॉइंट ले लो और चिंतन करो, यह बुद्धि को यूज करना, बुद्धि की जो बुद्धि की जो 7 फंक्शन बताएं हैं 1 - 1 को यूज करना, जजमेंट, डिसीजन, डिस्क्रिमिनेशन, इनवाइब हर चीज रेसनेलाइज करना । यह करूं तो क्या होगा । चार्ट बनाओ उसके फायदे क्या है उसके नुकसान क्या है जिसकी जो सबसे बड़ी कमजोरी है, डिजिटल मूवी सिनेमा फायदे नुकसान यह करूं तो क्या होता है। यह करूं तो क्या होता है, लिखो उसको, तो पावर आएगी चिंतन बढ़ेगा चिंतन बढ़ते बढ़ते बुद्धि विशाल होती जाती है, अपने आप। तो और क्या कहा डबल विदेशियों से आगे बढ़ाते रहो स्वयं भी आगे दूसरों को भी आगे। क्योंकि ज्ञान अनंत है , हमने जितना जाना है वह एक बूंद जाना है । बस पिछले 10 साल 20 साल 30 साल 40 साल यह भाव रहे कि अभी तो बहुत कुछ जानना बाकी है । पूरा सागर पीना है,

सिकंदर सुनाता है एक व्यक्ति ने भारत में आता है एक साधु है जिसने भगवान को पाया है उसको बुलाता है अपने राज्यसभा में बताओ तुमने भगवान को पाया है कैसा है वह मुझे भी जानना है । वह व्यक्ति कहता है मुझे 1 दिन चाहिए, कल बताऊंगा। दूसरे दिन आता है, अब बताओ, वह कहता है मुझे एक हफ्ता और दो, फिर बताता हूं। एक हफ्ते बाद आता है, अब बताओ। वह कहता है 1 साल चाहिए, वो कहता है, तुमको पता भी है या नहीं । तुमने जाना भी है या नहीं। कहता है, पहले तो सोचता था जाना हूं । पर 1 दिन के बाद पता चला अभी तो बहुत जानना बाकी है। एक हफ्ता लगेगा। 1 हफ्ते के बाद पता चला। एक हफ्ता काफी नहीं है 1 साल लगेगा 1 साल के बारे में भी सोचता हूं, पता नहीं गारंटी नहीं है 1 साल में भी जानूंगा या नहीं । वो विनम्रता का भाव एक तरफ नशा दूसरी तरफ निर्माण की बहुत जानना बाकी है, बहुत समझना बाकी है इस बुद्धि को अभी पूरा दिव्य कहां बनाया है। किसी ना किसी के प्रति घृणा नफरत गहराई में भरी हुई है। किसी एक आत्मा के प्रति घृणा है, तो संपूर्णता अभी तक नहीं आयेगी। दिव्य बुद्धि जहां होगी वही माया को पराजित कर सकते हैं। बाबा ने कहा ना इसमें वह क्या बन जाएगी वरमाला। वरमाला पहनें हो, कहीं ढूंढ तो नहीं रहे हो । जैसे वह रानी की कहानी। वैसा तो नहीं है एक ही मुरली और कितनी सारी बातें। एक काम करना है जब भी कोई मुरली पढ़ो सारी मुरली को कनेक्ट करते रहो । सारे डॉट्स जो बिखरे हैं उनको क्या कर देना है कनेक्ट कर देना है । ऐसे कैसे दिव्य बुद्धि धारी आत्माओं को, दिव्य दृष्टिधारी दिव्य दृष्टि से वृति कृति सब कुछ बदलेगा ।

आत्माओं को, ऐसे वरदानी आत्माओं को नशे में रहने वाली आत्माओं को ऐसे मिकी माउस ना बनने वाली आत्माओं को, ऐसे अचल अडोल आत्माओं को, साक्षी भाव स्थिति में रहने वाली आत्माओं को, ऐसे फ्यूचर से फीचर को दिखाने वाली आत्माओं को, ऐसे फुल स्टॉप लगाने वाली आत्माओं को, ऐसे फुल स्टॉप फुल स्टॉक और फुल पास होने वाली आत्माओं को, ऐसी शांति और खुशी की झलक दिखाने वाली आत्माओं को पुरुषार्थ अर्थात नेचुरल अटेंशन रखने वाली आत्माओं को, निरंतर और सहज अटेंशन रखने वाली आत्माओं को ऐसी अविनाशी पुरुषार्थ करने वाली आत्माओं को ऐसे मरजीवा आत्माओं को ऐसे सदा बिजी रहने वाली आत्माओं को, स्वयं आगे बढ़ना और दूसरों को आगे बढ़ाने वाली आत्माओं को, ऐसे स्वयं को बाप को और आत्माओं को पहचानने वाली आत्माओं को ऐसे माया के खेल को साक्षी होकर देखने वाले आत्माओं को ऐसे माया को रिसीव ना करने वाली आत्माओं को, क्योंकि बिजी रहेंगे तो उसको रिसीव करने का टाइम नहीं मिलेगा ऐसे बड़े से बड़े बिजनेसमैन आत्माओं को ऐसे होली हंसों को, ऐसे कुत्ता बिल्ली को कभी कुत्ता का बिल्ली आती है इसको हटाओ तो वह आता है उसको हटाओ तो यह आता है एक के बाद कुछ ना कुछ लगा ही रहता है तो कुत्ता बिल्ली से दूर रहने वाली आत्माओं को पालने वाली आत्माओं को, ऐसे ऐसे ऐसे फलदार वृक्ष बनने वाली आत्माओं को जो झुका हुआ हो अहंकार नहीं है जिसमें। ऐसे घृणा से मुक्त आत्माओं को, ऐसे मन बुद्धि को मन पर एकाग्र करने वाली आत्माओं को ऐसे अपने आप को माफ करने वाली आत्माओं को, और थोड़ी पनिशमेंट देकर माफ करना हर चीज में माफी नहीं देते रहना थोड़ी सी पनिशमेंट और पनिशमेंट कौन सी देना वह भोजन वाली नहीं, ज्ञान योग की पनिशमेंट देना उसको, नहीं तो लोग आज अमृतवेला में आज नाश्ता नहीं करेंगे फिर दोपहर के भोजन में ऐसा टूट पड़ते हैं कि बात मत पूछो। पनिशमेंट कौन सी देना, ज्ञान योग की मुरली 10 बार पढ़ने पनिशमेंट दो। आज योग 4 घंटा करेंगे बैठकर ।मास्टर सर्वशक्तिमान आत्माओं को बाप दादा का याद प्यार गुड नाइट पर नमस्ते रूहानी बच्चों की रूहानी बापदादा को याद प्यार गुड गुड नाइट और नमस्ते