Murli Revision - Bk Dr. Sachin - 03-04-2022


ओम शांति.. ।
प्राचीन मिस्र की सभ्यता में एक युवक या राजकुमार का गायन है, जो बहुत सुंदर था परंतु विवाह के लिए आए हुए हर प्रस्ताव को उसने अस्वीकार कर दिया था और आखिरकार एक तालाब के तट पर जाकर बैठ गया और वहां पर उसने अपनी ही परछाई देखी और अपने ही परछाई के प्रेम में वो पड़ गया। घंटों तक वो परछाई देखता रहता था और फिर कभी कभार छलांग लगाता था और जैसे ही तालाब में छलांग लगाता परंतु हाथ में कुछ भी नहीं आता, फिर से वापस तट पर आकर बैठता और इंतजार करते रहता, वह परछाई कब आ जाए और जब वह परछाई फिर आ जाती थी वह फिर से उसे देखता रहता था। उस युवक का नाम था नारसिस जो की निरंतर अपनी परछाई को देखते रहता है। परछाई से ही प्यार करता है। एक दिन ऐसा आया वहां पड़े पड़े बार-बार कूदना और फिर तट पर बैठना और एक दिन उसी तालाब के तट पर उसने शरीर छोड़ दिया।

हिंदी में एक झाड़ है, जिसका नाम है नरगिस। वह इस युवक का यादगार है। वह झाड़ तालाब के तट पर होता है, पानी के पास झुका हुआ होता है। अंग्रेजी में, साइकेट्री में पर्सनैलिटी डिसऑर्डर से ग्यारह सब ग्रुप्स में एक डिसऑर्डर ग्रुप में एनार्सिसिटिक डिसऑर्डर, जिसमें व्यक्ति अपने आप से ही बहुत प्रेम करता है। आपने आप से अधिक महत्व और किसी को भी नहीं देता। उसको लगता है मेरे जैसा केवल मैं ही हूं, बाकी सब को हीन भावना से देखता है। ऐसा क्या उसे दिखा था उस परछाई में, उसे इतना प्यार हो गया। परंतु जैसे बताया, जब भी वह कूदता था, तो उसके हाथ में कुछ भी नहीं आता था। वह हाथ पटकते रह जाता, परंतु हाथ में कुछ भी नहीं आता था। कुछ तो आकर्षण था और कुछ ऐसा ही आकर्षण विकारों में भी है, व्यर्थ में भी है, नकारात्मकता में भी है। दूर से बैठो तो वह बहुत आकर्षित करता है और फिर व्यक्ति उसमें कूद जाता है और कूदने के बाद बहुत हाथ पैर पटकता है। उसे वो नही दिखता जो तट पर बैठ कर दिखा था।

विकार सारे विश्व को आकर्षित कर रहा है, कुछ तो आकर्षण है। परंतु जो जो व्यक्ति विकार की ओर आकर्षित होता है वो उसी नार्सेसिस की तरह कुदता है, हाथ पैर पटकता है, हाथ में कुछ भी नहीं आता है फ्रस्ट्रेशन, एक गिल्ट कोन्सिऔस्नेस, एक अपराध भाव। तट पर पवित्रता है, तालाब विकार है, व्यर्थ है, नेगेटिव है और बार बार उसे वो आकर्षित करता है, वो कूदता है हाथ में कुछ भी नही आता है फ्रसट्रेटेड होकर बाहर निकलता है फिर तट पर बैठता है, पर अब फिर से नया इंतजार। पुराना अनुभव है विकारों का, पुरानी स्मृतियों विकारों की, पुराना दुख है, पुराना दर्द है, पुराना फ्रस्ट्रेशन है, पुरानी गिल्ट कॉन्सियोस्नेस है, परंतु फिर भी, फिर फिर कुदता है, फिर फिर दुखी होता है। दूसरों को कूदते हुए देखता है और दूसरों को दुखी होते हुए देखते हुए भी स्वयं फिर कूदता है। स्वयं के भी अनुभव है दूसरों के भी अनुभव है, फिर भी एक अजीब सी मोहिनी, एक अजीब सी माया उस तालाब में है जो उसका ही प्रतिबिंब है और बार-बार की क्रिया एक स्मृति को जन्म देती है विकारों की या फिर उसी को कहो ज्ञान की रोशनी पवित्रता की, सोच स्वरूप की स्मृति की यह आकर्षण ही विकारों के संस्कार कड़े करता है। कर्म कर्म कर्म बार-बार जो कर्म किए जाते हंु वह संस्कार बनता है। बार-बार जो संकल्प किया जाता है वह वृत्ति बन जाती है, तो एक वृत्ति का जन्म होता है और एक संस्कार का जन्म होता है, और व्यक्ति इस चक्र से, विषय साइकल इस दुष्चक्र से बाहर नहीं निकल पाता, निकलना चाहता है निकल नहीं पाता। अपवित्रता आकर्षण और अपवित्रता और आकर्षण स्मृति, संस्कार, एडिक्शन, फिर से वही कर्म और गोल गोल घूमते रहता है। व्यर्थ का भी ऐसा ही चक्र है, विकार का भी ऐसा ही चक्र है और तीसरा नकारात्मकता का, नेगेटिविटी का भी ऐसा ही चक्र है। यह तीनों ही चीजें खींचती है व्यर्थ खीचता है। व्यर्थ से जादा स्पीड नेगेटिविटी की है और नेगेटिविटी से भी ज्यादा स्पीड काम की है, इंटनसेपशन। और जितनी स्पीड अधिक, जितनी इंटेंसिटी अधिक उतना गहरा संस्कार या इतनी गहरी छाप आत्मा पर पड़ती है।

तो सारा खेल स्मृति का है और विस्मृति का है, होश का है बेहोशी का है, आत्मा अभिमान का है और देहआत्म बुद्धि का है। एक स्मरण है देह का, उसके नीचे है आत्मा। पर इन दोनों के बीच में बहुत सारी पर्ते है। आत्मा तक पहुँच पाना बहुत सारी चीजो को क्रॉस करना पड़ता है। मुरली में बाबा ने कहा है कि बादल तंग तो नहीं करते लेयर्स।

तो आज सुबह की अव्यक्त मुरली, क्या कहा बाबा ने? किस बात पर मुरली है? गुड साइन। “ब्राम्हण जीवन के गुड साइंस” चिंतन का विषय है। क्या-क्या हो रहा है जीवन में या क्या-क्या हो, तो समझना चाहिए कि सही मार्ग पर हैं। मिलन, यह मिलन कैसा है ? विचित्र और कैसा है ? न्यारा और कैसा है? प्यारा। पूरे मुरली से दो दो बातों पर हम चर्चा करेंगे।

सबसे पहला आत्मा और परमात्मा का मिलन और उसके ऑपोजिट धर्मात्मा का और उनके फॉलोअर्स का मिलन। इन दोनों के मिलन में क्या अंतर है? मिलन में क्या अंतर है, कहां से लाते हैं वो छोडो, मिलन अदृश्य नहीं, मुरली में क्या है? यहां पर स्मृति अटैच है, यहां पर स्मृति नहीं है। यह जो क्राइस्ट के शिष्य उनसे मिल रहे हैं उन्हें यह स्मृति नहीं है कि हम कल्प पहले मिले थे।

अंग्रेजी में साइकोलॉजि में एक सिद्धांत है जिसे कहते हैं डेजाहू। सुना है डेजाहु। डेजाहू अर्थात नए स्थान पर जाने के बाद, नए व्यक्तियों से मिलने के बाद, नई परिस्थितियों के आने के बाद ऐसा लगना यह पहले भी हुआ है। किसी स्थान पर पहुंच जाना और यह लगना यहां मैं पहले आया हूं। किसी व्यक्ति से मिलना और समझना तुम से पहले मैं कभी मिला हूं यह कईयों को होता है इसे डेजाहू कहते हैं। डेजाहू फेनोमीनों। साइंस इसे इतना नहीं मानता, साइंस इसे दो भागों में विभाजित करता है एक सैकोआस, एक बीमारी ये कई लोगों की बीमारी है जिनको मिर्गी की बीमारी है या फिर माइग्रेन, उनको कभी-कभी होता है या जेनेटिक, साइंस यह कहता है। और दूसरा हेल्थी लोगों को भी होता है और यज्ञ में हमने देखा होगा कई भाई-बहन जैसे ही मधुबन पहुंचते हैं फर्स्ट टाइम, तो क्या कहते हैं देखा हुआ सा लग रहा है। शायद सपने में ही देखा होगा साइंस तो यही कहता है कि ऐसा कुछ होता नहीं है परंतु लोगों के अनुभव है। और इस डेजाहू को, यह जो चक्र की पुनरुक्ति है केवल इसी से समझा जा सकता है कि ऐसा क्यों होता है। जो लोग ज्ञान में भी नहीं है उनको भी होता है जिन्हें ज्ञान का कुछ पता नहीं है उनको भी होता है। यहां तक की स्वामी विवेकानंद के जीवन में दिखाया है कि वह जब छोटे थे तो नए स्थान पर जाते ही उन्हें यह लगता था इस स्थान पर में आया हुआ हूँ, मुझे पता है। कईयों ने मधुबन यहां आने से पहले ही सपने में देख लिया था ऐसे भी कई भाई-बहन है। कल्प पहले की स्मृति, पुरानी पहचान, पुराने संस्कार की रिकॉर्डिंग यहां पर है। और भगवान कह रहा है जो सर्वज्ञ है, त्रिलोकी का ज्ञाता है कि तुम यह हो। उसका सारा, भगवान एक ही पुरुषार्थ करता है याद दिलाने का, तुम यह हो। और उसमें कोई पुरुषार्थ नहीं किया अगर देखा जाए तो एक कि स्मृति दिलाई है तुम यह नहीं तुम वह हो देवता थे, तुम ही थे, तुम्हें ही बनना है। जितने धर्म स्थापक आए और जितने उनके फॉलोअर्स है, उनको यह स्मृति नहीं थी कि हम पहले भी मिले हैं, यहां पर जो पहला मिलन है हर एक का, उसमें हर एक ने यह अनुभव तो थोड़ा किया ही होगा की एक बहुत महान पार्ट अब खुलने वाला है, भाग्य ने करवट बदली है, कुछ तो नया होने वाला है अब जीवन वैसा नहीं रहेगा जैसा था तो सबसे पहली चीज दो बातें। स्मृति, आत्मा परमात्मा के मिलन में स्मृति है धर्म स्थापक और उनके फॉलोअर्स के मिलन में वह स्मृति नहीं। तो यह स्मृति को और प्रगाढ़ करना है कल्प पहले भी हम संपूर्ण पवित्र बने थे, अभी पवित्रता असंभव सी लगती है कई बार। इतनी मिलावट, इतने संस्कार भरते हैं कहां-कहां से, कभी घृणा कभी नफरत, कभी ईर्ष्या कभी द्वेष, कभी काम कभी क्रोध, कभी भय, भय भी आपवित्रता है चेतना भयभीत है किससे, ये बताया नही जा सकता पर कोई ना कोई अग्यात सा भय घेरे हुए रहता है, स्वप्न में आता है कई लोग ऐसे हैं की जो अचानक उठते है धड़ धड़ धड़ धड़ धड़ के साथ क्या देखा पता नहीं पर भय था वो भय अपवित्रता की निशानी है। तो यह स्मरण यह स्मृति की हम संपूर्ण पवित्र बने थे। वो यहां है, मैं यहां हूं बीच में यह सब जो है यह सारे बादल हट जाएंगे यह सत्य नहीं है सत्य वही है और मैं वहां पहुंच रहा हूं। यह सबसे पहला

दूसरा स्मृति स्वरूप और विस्मृति स्वरूप। जब स्मृति स्वरूप है तब कैसे है हम शक्तिशाली, समर्थ, पॉवर्फुल और जिस दिन, जिस समय, जिस पल विस्मृति हो जाती है, तब क्या हो जाता है, कमजोर स्वरुप, व्यर्थ स्वरूप मुरली के शब्द है अपने आप व्यर्थ घेर लेता है। इस यज्ञ में तीन प्रकार की आत्मा है।

एक वह जिन्होंने सबसे ऊंचाई पर जाकर उस ऊंचाई को अनुभव कर लिया और वहीं पर स्थित है।
दूसरा नंबर वो जिन्होंने वो जो ऊंचाई पर गए और अनुभव किया और फिर नीचे आ गए। अब प्रयत्न कर रहे हैं ऊंचा चढ़ने का पर अब हो नहीं रहा है, परंतु वह स्मृति है कि हम ऊंचाई पर चढ़े थे वह अनुभव हुआ था और
तीसरे कभी ऊंचाई पर पहुंचे ही नहीं। वही, बीच में ही है, कोशिशें की पर वही तक पहुंच पाए तो उनके पास वह अनुभव ही नहीं है ऊंचाई का, इसलिए वह जो कुछ कर रहे हैं उनका कोई भी दोष नही है।

हां जो दूसरे नंबर वाले हैं वह चुप है पर क्योंकि उन्होंने उस ऊंचाई का अनुभव किया था, अब नीचे आ गए। नीचे आने को भी कई साल लग गए। पर स्मृति तो है। हम कहां पर है? ऊंचाई पर जाकर, ऊंचाई पर टिके रहना यह पुरुषार्थ है। अगर आ भी जाओ नीचे फास्ट ऊपर फिर से चढ जाना। बाबा ने पूछा न विदेशियों को डबल लाइट, स्वतंत्र हो? बंधन तो नहीं है? एक सेकंड में उड़ सकते हो? परमधाम, स्वीट साइलेंट स्टेज । इस मार्ग में हो सकता है कई बार नीचे आना पड़े। पर नीचे ज्यादा समय टिकना नहीं। आए, तुरंत अपने आप को स्मृति दिलाना और फिर से ऊपर। सारे झगड़े कहां है नीचे, ऊपर कोई झगड़ा नहीं है। राम जी और शंकर जी की लड़ाई हो गई तो राम जी बंदर शिव के गण उनकी भी लड़ाई हो गई क्योंकि उनके बोस्सेस की लड़ाई हो गई तो वह भी तो लड़ेंगे ना। ऊपर दोनों की दोस्ती हो गई पर यह लड़ाई जा रही है। लड़ाइयां कहां है? नीचे। जैसे-जैसे स्थिति ऊपर उठती जाएगी वहां कोई लड़ाई नहीं है किसी से लड़ाई नहीं है। आज का वरदान कितना अच्छा है, यह भूल है कौन सी? दूसरों का परिवर्तन करना, यह अच्छा ज्ञानी बन जाए, योगी बन जाए, तपस्वी बन जाए, इसकी बुद्धि ठीक कर दो बाबा, यह पुरुषार्थ ही गलत है यह शुभ चिंतन है ही नहीं। दूसरों के परिवर्तन की सोचना, यह शुभ चिंतन ही नहीं है। शुभ चिंतन क्या है? स्व। कितनी पावरफुल पॉइंट है हो सकता है हमारा सारा पुरुषार्थ बाबा से रोज सुबह जो प्रार्थनाएं हो रही है वह इसीलिए हो रही है, बाबा.... परवश है, कर दो कुछ उसका, यह भूल है बाबा ने कहा। तो दूसरा स्मृति और विस्मृति। बार-बार क्या करना है अपने आपको याद दिलाना है? बोकाजो, जैन मास्टर था, बोकाजो जागे तो हो न? अपने आप को मारता था, जागे हो बोकाजो जागे तो हो ना? उसके शिष्य कहते थे आप अपने आप से बातें करते हो, कमाल है आप यहीं हो, अपने आप से.... वह कहता है कि मैं बार-बार सो जाता हूं अपने आप को जगाता हूं और जब उसकी अंतिम अवस्था आई, तब वह इस तरह से बातें करना बंद हो गया। बाद में उसके शिष्यों ने पूछा, अब आप बात नहीं करते हो? जोर से चिल्लाते नहीं हो? वह कहता है अब मैं निरंतर जागा रहता हूं, अब मुझे जगाने की जरूरत नहीं, मेरा अंतर जागरण सोता भी तो भी जागा रहता हूं और जैसे कहा सारा खेल स्मृति विस्मृति का है, सारे दिन भर स्मृति है, श्रेष्ठ भावना है, पवित्रता है, डिटैचमेंट का भाव है, साक्षी भाव है, 10 मिनट के लिए फैमिलियार्टि आ जाती है, 10 मिनट के लिए व्यर्थ आ जाता है, 10 मिनट के लिए ही विकार आकर्षित करता है और बस वह इंटेंसिटी बहुत ज्यादा है उस 10 मिनट की। वो जो 24 घंटे, 23 घंटे, 50 मिनट थे ज्ञान योग और धारणा और सेवाएं उसके इंटरसिटी कम है और यह जो 10 मिनट का विकार है वह बहुत भारी है। वह 10 मिनट में ही गिरा देता है, 10 मिनट में ही अगले कितने घंटों के लिए गिल्ट कॉन्शसनेस मैं ढकेल देता है। इसके लिए पुरुषार्थ है एक एक कदम फूंक फूंक के रखना। एक एक कदम जागरण का हो। मुर्लियों में आया है जैसे नस नस में क्या होता है? ब्लड। वैसे रग रग में निशपल निशदिन क्या हो? याद। याद भूली, गलती हुई। जहां विस्मृति हो गई, वहां गलती हुई। तो क्या करना है रोज अपने आप को जगाते हुए रहना है? जागो जागो जागते रहो? वो रहता है रात में चिल्लाते रहता है वैसे आवाज गूंजती रहे निरंतर, मुझे जागना है, मुझे जागना है, सोना नहीं है, जागना है सोए की गए। तो दूसरा स्मृति और विस्मृति। विस्मृति होते ही व्यर्थ आ जाता है, विस्मृति होते ही कमजोर स्वरूप बन जाता है। और जहाँ आत्मा कमजोर बन जाती है, जहां आत्माएं कमजोर हो जाती है वहां प्रार्थना चालू हो जाती है, भीख मांगना चालू हो जाता है, किसी का सहारा चाहिए, किसी का सपोर्ट चाहिए, किसी को अपनी बात बताऊं यह सब हो जाता है। दूसरा दो बातें,

तीसरी दिल और दिमाग एक है दिल से याद करना और एक है दिमाग से याद करना। इसमें क्या अंतर है दिमाग अर्थात नालेज, लॉजिक, रिजनिंग, तर्क, वितर्क और दिल अर्थात मेरे ही हो। तुम मेरे मैं तुम्हारा बस। ज्ञान वगेरह का ज्यादा नहीं है इसमें। प्यार है बस...सतत प्रेम, निरंतर प्रेम। सब कुछ उसके लिए किया जा रहा है। पुरुषार्थ की सबसे सहज विधी बाबा ने कहा है। पुरुषार्थ करना अर्थात याद। याद की सबसे सहज विधि क्या है? इंटेंस लव अत्यंत तीव्र गति का प्रेम बस यही एक मात्र विधि है। और कुछ भी करना नहीं है। क्या करना है इस प्रेम को बढ़ाना है, ईश्वरिय अनुराग अपने आप विषय वैराग होते जाएगा स्वतः सहज अपने आप। यदि हम ईस्ट की तरफ जा रहे हैं तो वेस्ट से दूर जाने का क्या पुरुषार्थ है? उत्तर की ओर जा रहे दक्षिण से दूर जाने का क्या पुरुषार्थ है फिर? कोई पुरुषार्थ ही नहीं है फिर अपने आप भगवान की और बढो, विकारों से अपने आप दूर। एक दूसरा चिंतन है विकारों से कैसे छूटू? बीच में खड़े होकर, विकारों से कैसे छूटे? विकारों से कैसे छूटे? इसको मुझे छोड़ना है, सारी बुद्धि कहाँ है विकारों की तरफ और आकर्षित करते हैं।
दूसरी विधि क्या है? इधर चालू करते हैं जर्नी अबाउट टर्न। आने दो पीछे पीछे। इधर आगे आगे आगे आगे बढ़ते जाओ, क्योंकि विकार अंधेरा है और अंधेरे का मिलन आज तक सूर्य से हुआ ही नहीं है। अँधेरे ने कंप्लेंट भी की थी एक बार भगवान से की सूरज मुझे बहुत तंग करता है। मेरी अभी नींद भी पूरी नहीं होती तो मुझे सुबह-सुबह आ करके हटा देता है कुछ करो। उसके अत्याचार से मुझे छुडाओ। भगवान कहते हैं मेरे राज्य में अत्याचार? सूरज को बुलाते हैं, तुम पर भी इल्जाम है कि तुम क्या करते हो, अंधेरे को बहुत तंग करते हो। सूरज कहता है आई एम सॉरी, बट मैंने तो देखा ही नहीं अंधेरा एक बार मेरे सामने लाओ तो मैं माफी मांगू। पर भगवान के कोर्ट में यह केस अभी भी पेंडिंग है क्योंकि जहां सूरज है वहां अंधेरा आ नहीं सकता। परमात्मा सूरज है, अंधेरा आ नहीं सकता। निर्विकार का सूरज है वहां विकार आ नहीं सकते। तो जैसी यात्रा निर्विकार की ओर चालू हो जाती है, कम से कम लक्ष्य अपने आप विकारों से वैराग्य, विरक्ति आ जाती है, अच्छे नहीं लगते शरीर। शरीर का कोई आकर्षण खींचता नहीं। शरीर से मिलने वाले जो सुख हैं विकार से भोग, इससे बैराग आता है स्वतः बिना पुरुषार्थ किये, क्योंकि योगी इस कंक्लूशन पर पहुंचता है कि शरीर से जो भी प्राप्त होता है सब अनित्य है। थोड़े ही समय के लिए है बस अभी है अभी चला गया। अभी अभी सुख मिला, अभी अभी टेस्ट, अभी-अभी कुछ खाया थोड़े समय के बाद फिनिश, क्या रह गया? संस्कार। तो एक है दिमाग से याद करना, एक है दिल से आत् पुकार हो दिल की, ह्रदय से याद करना, गहराई से। आ जाओ...! ऊपर ऊपर से नहीं, डीप। यह तीसरा

चौथा.... दो दो बातें आज की मुरली से। एक है खजानों को यूज करने वाले और एक हैं देखने वाले, रखने वाले, देखने वाले, संभालने वाले, तिजोरी में रखने वाले, मेरे खजाने और दूसरे हैं यूज करना।
तीन चीजों को यूज करने के लिए कहा एक है खजाना को यूज करना,
एक है विशेषताओं को यूज करो,
तीसरा भाग्य को बढ़ाओ पूरी मुरली है।
जो स्किल हमारे पास है, उसको क्या करना सेवा में लगाना, किसी को लिखना आता है वह इस स्किल को बढ़ाते जाओ, किसी को चिंतन आता है, चिंतन को बढ़ाते जाना है, किसी को किसी में विशेष कला है गायन कुछ भी उसे कहां लगाना है ईश्वरीय सेवा में। वह कम नहीं होगा, क्या होगा? बढ़ेगा। कितनी अच्छी बात है हर ज्ञान की पॉइंट को ऐसे देखना है जैसे हम पहली बार सुन रहे हैं एक नवीनता की दृष्टि से। हमें पता ही नहीं था ये अभी पता चला और सुबह चर्चा हो रही थी सेंस ऑफ अर्जेंसी क्रिएट करना है । कब करना है? आज ही कर लेता हूँ अभी, 1 घंटे के अंदर आज ही । आज ही डायरी लिखना, इतने दिनों से पेंडिंग काम है, आज से लिखना चालू, रात्रि सोने से पहले अपनी दिनचर्या, आज क्या-क्या हुआ और उसी में ही याद का चार्ट भी डाल दो और हर हफ्ते एवरी सन्डे उसको रिव्यू करना, क्या क्या हुआ, 6 दिन यह हुआ, यह हुआ, यह हुआ और फिर उन्हीं घटनाओं को साक्षी होकर देखना क्योंकि घटनाएं बहुत सारी रिपीट हो रही है, रिपीट होने के बावजूद हम उनसे सीख नहीं रहे है क्योंकि याद ही नहीं रहता है क्योंकि नई घटनाएं इतनी ज्यादा हो रही है। इसके लिए रिकॉर्ड चाहिए, एक आज यह हुआ, बहुत दुख हुआ और रोना भी आया, वह भी लिख दो और 4 दिन के बाद उसी को पढ़ोगे तो क्या लगेगा? यह कोई रोने की बात है? यह तो कितनी छोटी सी बात थी, पर वह छोटी बात उस मूमेंट में बहुत बड़ी बात लगती है। समय सबसे बड़ा हीलर है। 4 दिन के बाद वही घटना कैसे हो जाती है? छोटी हो जाती है और हमारी ग्रोथ हो गई है उससे। अहंकार को तोड़ने की कर्मों के पास एक विधि है। इतने जख्म देता है, इतने जख्म देता है कि जिस जिस बात मैं अहंकार है उस उस बात में व्यक्ति जब अपमानित होता है, उसे दुख दिया जाता है, तब उसका अहंकार टूटने लगता है। उस उस बात में। यह हम अपने तरफ से नहीं कर रहे, प्रकृति कर्म अपनी तरफ से कर रहे हैं। यह भी अच्छी विधि है। तो दिल से, दिमाग से नहीं दिल से। और खजाने को क्या करना है यूज़। बाबा ने कहा तुम कोन हो? विशेष आत्मा हो और विशेषताओं को क्या करो, यूज करो, लास्ट में कहा ना। खर्च करोगे तो बढ़ेगा। स्प्रिचुअल इकोनॉमिक्स, स्पेशल स्टैटिसटिक्स अलग है। और एक दूसरी बात... जो स्किल हमें आती है उसको क्या करना है दूसरों को सिखाना है, ताकि दूसरे भी क्या हो जाए तैयार हो जाए। जो भी हमें आता है, वह सब... सब कुछ दूसरों को सिखा देना है। हाँ पर जो इंटरेस्टेड है, जबरदस्ती नहीं सिखाना, नहीं तो भाग जाएंगे दूर। जो जो इंटरेस्टेड है, जो सीखना चाहता है उसको सिखाना। तो यह चौथा अगला

पांचवा आज की मुरली से दो बातें, वह नहीं ऑपोजिट वाली दो बातें। आज की मुरली याद करो मन ही मन। बाबा कहते हैं दादिया कहती है की मुरली एक बार पढ़ने से और एक बार सुनने से रंग नहीं चढ़ता। कितनी बार सुननी होती है? कई बार। कितनी बार पढनी होती है? कई बार। तब थोड़ी सी उसकी ग्रिप आती है कि कुछ लग रहा है, कुछ हो रहा है या कुछ हमारे काम का है, नहीं तो सुबह सुन लिया और काम पूरा। नींद में ही थे, क़ुतुब मीनार... सुनाया न उस दिन। बिजी और फ्री यह दो कैटेगरीज और दो कौन सी बातें है एक वह है जो बिजी है, विदेश में बाबा कहते, आ गए ज्ञान में, सीधा सेवा में लग गए, सीधा सेंटर पर आ गए और सेवाओं में बिजी हो गए, लौकिक अलौकिक क्या क्या करें? बाबा कहते हैं बहुत अच्छा, गुड साइन, यह बिजी हो जाना, जो बिजी है उनको विकार ज्यादा तंग नहीं करते।

जिनके पास फुर्सत ही फुर्सत है सेवा कर ली 4 घंटा अभी आराम ही आराम। उनके पास क्या बच जाता है फिर मोबाइल बस और दरवाजा खुल जाता है विकारों का वहां से फिर। वर्तमान समय ब्राह्मण कहो या विश्व कहो सब से बड़ी जो माया है वह कौन सी है? डिजिटल वर्ल्ड। सब कुछ डजिटल, बहू कहती है सास से मैं आपको लाइक करती हूं, सास कहती है व्हाट्सएपवती भव। फेसबुक नहाओ, इंस्टाग्राम फूलो। डिजिटल वर्ल्ड है पूरा उसमें फायदे बहुत है परंतु विकार भी छिपे हुए हैं, इसलिए जो जितना बिजी है और बिल्कुल भी टाइम नहीं है समझना यह क्या है गुड साइन। अच्छा है, बहुत सारी चीजें जो व्यक्ति अकेले में बैठकर सोचता रहता है उससे तो फ्री है कम से कम। वह विकारों के टेम्पटेशन आकर्षण अर्जिस वह आवेग उससे तो मुक्त है। और सेवाओं से क्या है? दुआएं अपने आप तो एक है बिजी और दूसरा है फुर्सत वाले जो बिजी नहीं है। तो जितना हो सके अपनी दिनचर्या ऐसी कर दो कि 5 मिनट भी इधर उधर नहीं। और काम कितना सारा करना है, फ्री कैसे रह सकते हैं, फ्री रह के आलस आता है, व्यर्थ विचार आता है। इतना खुद को बिजी कर लो,

पहले भी सुनाया था, दयानंद सरस्वती उनको पूछा गया कि काम विकार आपको सताता नहीं है? आप ब्रह्मचारी हो, अकेले रहते हो। उन्होंने कहा काम भी कर तो बहुत आता है मेरे दरवाजे पर टक टक टक कहता है मैं हूं मैं कहता हूं रुक जाओ थोड़ी देर कि यह थोड़ा आर्टिकल पूरा करता हूँ फिर आता है क्या कहता है मैं अभी भी थोड़ा बिजी हूं थोड़ी देर बाद आना। रुक रुक के कितना रुकेगा वह, इसलिए चला जाता है। तो एक है बिजी एक है फ्री।

दूसरा बाबा ने कहा एक है स्वतंत्र, एक है बंधन वाले। स्वतंत्र... ।

अगला बाद है एक लौकिक सिक्योरिटी, एक है अलौकिक सिक्योरिटी। ब्राम्हण जीवन में सबसे बड़ी सिक्योरिटी कौन सी है? न्यू कमर्स वालों से क्या कहा, वरदानी हाथ....परमात्म वरदानी हाँथ मेरे सिर पर है। संसार में जो सिक्योरिटी वाले होते हैं वही कभी-कभी आक्रमण कर देते हैं ऐसा भी हुआ है । किसको बॉडीगार्ड, भगवान हमारा बॉडीगार्ड है उसको लेकर घूमो कुछ नहीं होगा। बाबा ने क्या कहा यह सबसे बड़ी से बड़ी सिक्योरिटी है परमात्मा वरदानी हस्त और दूसरी सबसे बड़ी सिक्योरिटी कौन सी है प्योरिटी इस सिक्योरिटी, प्योरिटी इज इम्यूनिटी। प्योरिटी ही सिक्योरिटी है और प्योरिटी ही इम्यूनिटी है। दिखाई दे रहा है कि जीवन में जो भी परिस्थितियां आ रही है इनका पवित्रता से क्या संबंध? ऊपर से देखो तो। किसी ने किसी को कुछ बोल दिया उसको दुख हो रहा है या अपमान कर दिया, इसका प्योरिटी तो यहां कहां है, यहाँ ब्रह्माचर्य से कोई लेना देना नहीं है परंतु है.... प्योरिटी कॉन्फिडेंस को बढ़ाता है। प्योरिटी एक शक्ति देता है, उस अपमान को सहन करने की भी। दूर से देखा जाए तो प्योरिटी ब्रह्मचर्य इनका इन छोटी-छोटी परिस्थितियों से क्या संबंध। कोई व्यक्ति इतना बिजी है, इतनी सारी सेवाएं है, यहां प्योरिटी का क्या संबंध? प्योरिटी अर्थात ब्रह्मचर्य दृष्टि वृत्ति प्योर और वह है। पर प्योरिटी जहां होगी वहां थकान कम होगी और जहां प्योरिटी नहीं होगी वहां क्या होगा थकान लगेगी, शरीर में थकान रहेगी, प्योरिटी शरीर को भी मजबूत बनाता है। शरीर के रस संवर्धन करता है, संरक्षण करता है , कांसेर्वेशन करता है। जहां प्योरिटी भंग हुई वहां क्या हो जाता है, एक गिल्ट कोन्सिअस्नेस आ जाता है और वह अपराध भाव इतना बड़ा होता है, कि ना मुरली पढ़ने देता है, न योग करने देता है, ना सेवाए करने देता है। इसके लिए प्योरिटी का संबंध चारों ही सब्जेक्ट से है ज्ञान, योग, धारणा, सेवा । प्योरिटी का संबंध जीवन में जो कुछ हो रहा है, सम टोटल ऑफ एवरीथिंग, इन सब से है । अगला तो यह था सिक्योरिटी लौकिक सिक्योरिटी और अलौकिक सिक्योरिटी।

टीचर से क्या कहा बाबा ने एक है हीरो एक्टर और एक है साधारण एक्टर। हीरो एक्टर के लिए क्या कहा टीचर अर्थात हीरो एक्टर, टीचर अर्थात... निमित्त टीचर अर्थात आज की मुरली में आदर्श टीचर अर्थात नंबर वन सेवधारी, टीचर अर्थात जो क्या करें स्वयं पर जिसका अटेंशन है, क्योंकि हीरो एक्टर है। सब लोगों की नजर है उसके ऊपर। दुआएँ सबसे ज्यादा मिलती है उसे। स्टूडेंट किसको फॉलो करते हैं, स्टूडेंट्स तो मधुबन में पहुंचे नहीं है परंतु रोज किस को देखते हैं टीचर। तो उसी के जैसे होते हैं फॉलो करने वाले। इसलिए टीचर अर्थात श्रेष्ठ स्मृति, हीरो एक्टर की स्मृति, स्टेज पर है बेहद के स्टेज पर। और दो बातें आज कि मुरली से... याद करो... हां

एक है गुलाब जामुन और दूसरा है गुलाब। कौन सा गुलाब जामुन? स्थूल वाला या कोई सूक्ष्म में भी है? जो गरीब होगा बेचारा उसके पास कहां से आएगा और भगवान तो गरीब निवाज है और उसकी मुरली किसी स्थूल चीजों पर तो कभी होती ही नहीं है, अर्थात कोई सूक्ष्म चीज की ओर वो इंगित कर रहा है। मिठास मुख में, वाणी में क्या हो मधुरता। हमारे शब्दों की वजह से, कोई भी आत्मा हर्ट, आहत ना हो। हमारी वजह से किसी का भी अपमान ना हो। परमात्मा महावाक्य है जब मेरे सिकिलधे बच्चे का या मेरे मुरब्बी बच्चे का कोई अपमान करें तो बाप को वह सहन नहीं होता है। बाप के बच्चों के साथ पंगा? और सभी बाप के बच्चे हैं यहां तो, चाहे कैसे भी हो यह भी कहा ना।

एक दूसरी... एक बाप से प्यार और एक परिवार से प्यार। बाप अच्छा लगता है पर परिवार अच्छा नहीं लगता यह कहा ना आज। यह भी दो बात है एक केवल बाप से प्यार और परिवार से प्यार। परिवार... क्या कहा परिवार के लिए? 1-1 को क्या कहा है बाबा ने, चुन-चुन के क्या बनाई है माला और माला कब अच्छी लगती है जब सभी समीप हो। धागा निकला हो बाहर अच्छा नहीं लगता। सभी गोल्डन चांसलर्स है, सभी को चांस मिला है और जो जितनी महान आत्मा है और जितनी महान सेवाओं के निमित्त बनी हुई है, अगर उनके प्रति हमारे मुख से, हमारे मन में नेगेटिविटी भरी हुई है तो यह क्या है? भगवान को पसंद आएगा? कोई मां है और पड़ोसी आ कर कहे कि तुम्हारा यह जो बेटा है ना, हमारी पहले बहुत तारीफ करें, तुम इतनी अच्छी हो, अच्छी हो, ठीक है मैं अच्छी हूं और बाद में फिर हमारे बेटे की ग्लानि करें, अगली बार क्या करोगे? तो भगवान को पसंद नहीं तो परिवार। तो यह भी दो बातें हैं

और क्या कहा दो दो बात आज की मुरली में और क्या कहा समथिंग और समटाइम इसको क्या करो मधुबन में छोड़ के जाओ समथिंग सोमेटिम। समटाइम अर्थात कभी कभी समथिंग अर्थात कुछ न कुछ बीच में आ गया, सतत। पुरुषार्थ अर्थात ये नही की बहुत ज्यादा कुछ करो वो पुरुषार्थ नहीं । पुरुषार्थ अर्थात जो भी करो वो स्थिर, कंसिस्टेंट। पुरुषार्थ अर्थात ये नहीं की सुबह 2:00 बजे उठना चालू कर दो, अगर 3:30 बजे भी उठ रहें हैं तो उसीमें कंसिस्टेंट, सेम रखो। उसमें जरा भी ऊपर नीचे नहीं होने दो ठाट इज पुरुषार्थ। मोन में भोजन करना है बस इसको पुरुषार्थ बनाओ और देखो कब कब वह भंग होता है। और क्या दो बातें कहीं आज की मुरली में योगी और योग्य। और कौन सी दो बातें केयरफुल और क्लियर। और दो बातें आज की मुरली में और.. याद करो... निरंतर वह हो गया और निश्चय भी तीन प्रकार के जो हमेशा बाबा बताते हैं। गोल्डन चांस और क्या बताया... स्लोगन...

सेवाओं को क्या करो? उमंग उत्साह एक है उमंग उत्साह वाली आत्मा, एक है जीरो उमंग उत्साह। सेवा कर रहे हैं क्यों कर रहे हैं क्योंकि औपचारिक करना है बस, उसमें रस नहीं है, प्राण नहीं है। जो भी सेवा करो चाहे किसी की भी सेवा करो, कैसे करना है दिल से। एक ही मुरली है परन्तु कितनी सारी बातें । उसमें से एक्सट्रैक्ट करना है पॉइंट्स और यह जीवन.. ये मुरली कौन सी बातें यहां की इधर लाऊं जो इसमें परिवर्तन हो, इस पर काम करना है।

मेरा बाबा और और इष्ट देव.. ये भी दो उदाहरण दिए एक है इष्ट देव और दूसरा भगत और बाप। बाप के सिवाय कुछ भी नहीं, दृष्टि वृत्ति सब में बाबा का ही अनुभव हो। और.... जैसे भगत हमारी कितनी भक्ति करेंगे उसी अनुसार अभी जो हम करेंगे उस अनुसार वह भक्ति करेंगे। वह फाउंडेशन यहां है। हर मुरली में 1-1 लाइन में यह ढूंढना है कि इसका प्रैक्टिकल एप्लीकेशन क्या है? ठीक है... ऐसे... कैसे.. स्मृति स्वरूप आत्माओं को, ऐसे... ऐसे न्यारा, प्यारा और विचित्र मिलन मनाने वाली आत्माओं को... ऐसे उमंग उत्साह में रहने वाली आत्माओं को, ऐसे दूसरों को बदलने की भूल ना करने वाली आत्माओं को और खुद को बदलने का पुरुषार्थ करने वाली आत्माओं को, ऐसे सर्व खजानो के मालिक, खजाने को बढ़ाने वाली, भाग्य को बढ़ाने वाली, कितना बढ़ाने वाली, एक को सौ, सौ को हजार, हजार को लाख, लाख को करोड़, करोड़ को पदम, पदम को पदमापदम और पदमापदम को असंख्य, भाग्य को बढ़ाने वाली आत्माओं को, विशेषताओं को कार्य में लगाने वाली आत्माओं को, खजानो को यूज करने वाली आत्माओं को, मास्टर दाता लेवता नहीं नस नस में बाप की याद रहने वाली आत्माओं को, ऐसे ऐसे दिल से याद यह जो ऐसे ऐसे आता है इसी को कल की जो साकार मुरली चलेगी ठीक है.. उसका ऐसे ऐसे बनाना की जो जो स्वमान है पूरी मुरली मैं वह क्या क्या है, ऐसी ऐसी आत्माओं को, जो जो मुरली में कल आएगा, उसके वो सारे पहले स्वमान लिख कर रखेंगे कई बार पढ़ना और फिर उसको क्रिएट करना, ऐसे आ गया ऐसे मीठे बच्चों को, ऐसे मीठे बच्चे वाला नहीं, दूसरा पॉइंट समथिंग समथिंग ना कहने वाली आत्माओं को, ऐसे बिजी रहने वाली आत्माओं को, ऐसे समर्थ स्मृति में रहने वाली आत्माओं को, ऐसे कमजोर स्मृति से मुक्त या व्यर्थ स्मृति से मुक्त आत्माओं को, ऐसे गुलाब जामुन मुख में रखने वाली आत्माओं को, ऐसे कहा किया यह है गुलाब जामुन, ऐसे लास्ट क्लीन क्लियर आत्माओं को, ऐसे हो गया चेयरफुल, दिल दिमाग... दिल से याद करने वाली आत्माओं को, ऐसे आदर्श टीचर को, ऐसे नंबर वन सेवाधारी को ऐसे परिवार को भी प्यार करने वाली आत्माओं को, ऐसे गोल्डन चांसलर आत्माओं को ऐसे दुआएं जमा करने वाली आत्माओं को, ऐसे खर्च करने वाली आत्माओं को, ऐसे.... बापदादा का ऐसी महान आत्माओं को याद प्यार और गुड नाइट और नमस्ते। हम रूहानी बच्चों की रूहानी बापदादा को याद प्यार गुड नाइट और नमस्ते। ओम शांति।