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Enchanted Murli - Hindi

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08 जून, 2015

स्मृति

मीठे बच्चे, कोई के नाम-रूप के तरफ देखो भी नहीं। भल इन आंखों से देखते हो परन्तु बुद्धि में एक बाप की याद है। तीसरा नेत्र मिला है, इसलिए कि बाप को ही देखो और याद करो। देह अभिमान को छोड़ते जाओ। देखते हुए बुद्धि का योग अपने बिलवेड माशुक की तरफ हो। यह ‘बाबा’ शब्द खूब अच्छी तरह से घोटते रहो। सारा दिन बाबा-बाबा करते रहना चाहिए।

मीठे बाबा, सारा दिन मैं आपको अपनी स्मृति में रखूंगा। मैं आपके साथ चलूँगा, बैठूँगा, खाऊँगा, आपके साथ कार्य करूँगा और आपके साथ ही आराम करूँगा। हरेक अवसर पर मैं आपके नाम का मंत्र जपूँगा। जब भी मैं किसी को भी देखूँगा तो मैं उनके नाम-रूप से पार जाके आप को ही याद करूँगा। ओ प्यारे बाबा, आप मेरे सामने प्रकट हो जाते हो। जब भी मैं आपको याद करता हूँ तो आप मेरे पास आ जाते हो।

स्मृर्थी

ऊपर की स्मर्ती से प्राप्त होने वाली शक्ति से मैं स्वयं को निरंतर सशक्त अनुभव कर रहा हूँ। मुझमें इस बात की जागृती आ रही है कि मेरी स्मृर्ती से मेरा स्वमान बढ़ता जा रहा है। मैं इस बात पर ध्यान देता हूँ कि मेरी स्मृर्ती से मुझमें शक्ति आ रही है और इस परिवर्तनशील संसार में मैं समभाव और धीरज से कार्य करता हूँ।

मनोवृत्ति

बाबा आत्मा से: निरंतर योगी बनना है तो हद के मैं और मेरेपन को बेहद में परिवर्तन करो।

मेरा एक सच्चे योगी की बेहद की वृत्ति अपनाने का दृढ़ संकल्प है। मैं बहुत हल्का महसूस कर रहा हूँ- कुछ भी मेरा नहीं है। जो कुछ भी मेरे पास है बाबा वह सब आपका ही दिया हुआ है। मैं ‘मैं’ और ‘मेरेपन’ के सूक्ष्म बंधन से उपर ऊठ जाता हूँ ताकि पुरानी दुनिया का अंत और नई दुनिया का उदय हो सके। मेरा केवल यही विचार है कि: मैं आत्मा हूँ और बाबा मेरा है। इसी विचार से मैं बेहद वृत्ति वाला निरंतर योगी बन जाता हूँ।

दृष्टि

बाबा आत्मा से: बच्चों को सर्विस का शौक होता है। आपस में मिलकर राय कर निकलते हैं सर्विस पर, मनुष्यों का जीवन हीरे जैसा बनाने। यह कितने पुण्य का कार्य है। सिर्फ हीरे जैसा बनने के लिए बाप को याद करना है।

आज मैं अपनी दृष्टि में जिस भी आत्मा को मिलूँगा उसके और स्वयं के हीरे तुल्य गुण ही रखूँगा। दूसरों को और स्वयं को और स्वयं को हीरे जैसा बनाना और देखना भी महान पुण्य का कार्य है।

लहर उत्पन्न करना

मुझे शाम 7-7:30 के योग के दौरान पूरे ग्लोब पर पावन याद और वृत्ति की सुंदर लहर उत्पन्न करने में भाग लेना है और मन्सा सेवा करनी है। उपर की स्मृर्ति, मनो-वृत्ति और दृष्टि का प्रयोग करके विनिम्रता से निमित् बनकर मैं पूरे विश्व को सकाश दूँगा।