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Diamond Dadi

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02-Mar-2015

दादी के दृढ़, सौम्य, स्पष्ट और स्नेहमय निर्देशन ने मेरे आध्यात्मिक जीवन की पालना करी

दादी के दृढ़, सौम्य, स्पष्ट और स्नेहमय निर्देशन ने मेरे आध्यात्मिक जीवन की पालना करी
मैं इस मार्ग पर बाबा की स्नेहमयी दृष्टि और ज्ञान सागर शिव बाबा के ज़रिये आकर्षित हुई। और फिर परिस्थितियों के इम्तिहान आने शुरू हुए। भाग्यवश मैं अपनी चुनौतियों को दादी के साथ बाँट लेती और उनके आने पर विचार विमर्श कर पाती। उन दिनों दादी की सलाह और जवाब फॅक्स के ज़रिये आते थे।
एक बार मेरी साधारण शिकायत के जवाब में मुझे दादी से एक लाइन का उत्तर मिला। मैने सोचा कि सेंटर इंचार्ज ने मुझे दादी के जवाब का सिर्फ एक हिस्सा ही दिया है। तो मैने उनसे जवाब का बाकी हिस्सा देने का लिये अनुरोध किया।
मुझे फौरन जवाब मिला, "बस इतना ही है"। मैने सोचा "ह्म्म्म्म..........बस इतना ही?" संदेह वश मैने फिरसे पूरा जवाब मांगा लेकिन मुझे कोई भी उत्तर नहीं मिला। मैने दादी का जवाब एक बार फिर से पढ़ने की सोची और मुझे सब कुछ समझ में आ गया।
सचमुच में, मेरी सदा स्नेही दादी ने मुझे एक अनन्त वरदान दिया था। उन्होने लिखा था "मुझे अभी भी विश्वास है कि तुम परिवर्तित होगी।"
दादी के वो अविनाशी शब्द और साकाश आज तक मेरी पालना कर रहें हैं।

ज्ञान के मोती:
अपने अंदर की गहराइओं में परिवर्तन लाओ जिससे तुम्हारे पाँव ज़मीन को ना छुएँ और तुम इस जागरूकता के साथ खुशी में नाचों कि तुम कौन हो और तुम्हारा कौन है...... और अपने साथ-साथ दूसरों को भी यह अनुभव कराओ। मैं जहाँ भी जाती हूँ यही सोचती हूँ कि वहाँ सब अच्छे हैं और बहुत श्रेष्ठ बन रहें हैं। अपनी अवस्था को ऊँचा रखो और अपने ऊपर सर्विस का कोई भी बोझ ना लो।
दादी हमें बतातीं हैं कि बाबा हमें परखने और निर्णय करने की शक्ति कैसे देतें हैं। वो हमारा परिवर्तन करते है और हमें सच और झूठ, सही और गलत और अहिंसा का यथार्थ अर्थ समझने में सक्षम बनातें हैं। प्रेम से हमें नशा चढ़ता है और यह प्रेम ही है जो हमें इतना हल्का बना देता है कि हम उड़ने लगतें हैं।
हमें यह नशा है कि हम राजाओं का राजा बन रहें हैं। बुद्धि विश्वास से भरी है और भाग्य निश्चित है। यह पढ़ाई बहुत ही अच्छी है। हम पढ़ने का आनंद तब उठातें हैं जब हमें कोई संदेह नहीं होता और सम्पूर्ण विश्वास होता है कि हमारी विजय निश्चित है। पूर्व निर्धारित भाग्य की ड्रामा में पहले से ही नूंध है। कभी भी नहीं कहो कि "इसको ऐसा नहीं करना चाहिये" या फिर "वो ऐसा क्यों कर रहा है" आदि आदि.....हमेशा याद रहे कि ड्रामा निश्चित है।

दृष्टि पॉइंट:
मैं अपने आपको भगवान की पवित्र शक्ति और दृष्टि के साथ संरेखित कर सभी को और सब चीज़ों को उनकी सर्वोच्च अवस्था में देखती हूँ। मैं ये नहीं देखती कि दूसरे कैसे प्रतीत होते हैं बल्कि मैं सबके आंतरिक अध्यात्मिक तेज को देखती हूँ।
कर्म योग का अभ्यास:
मैं बाबा के साथ अपने काल्पनिक पूर्णतया परिवर्तित स्वरूप में बैठतीं हूँ.…….मैं अपने आपको उस स्वरूप में परिवर्तित होने की अनुमती देती हूँ…….जिससे मैं उस स्वरूप का अनुभव कर सकूं, उसके द्वारा भूमिका अदा कर सकूं और उस पूर्ण स्वरूप जैसा बन सकूं।