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Diamond Dadi

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06-Apr-2015

धरती पर परमधाम

मैंने ईटली के सरदिनिया द्वीप पर अन्तराष्ट्रीय कलाकारों के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लिया । यह कार्यक्रम ब्रहमाकुमारीज द्वारा आयोजित किया गया था, इसके बारे में मुझे पहले मालूम नहीं था । होटल की आखरी रात मैं नीचे भोजनकक्ष में गया । मेरे अवचेतन मन का ध्यान किसी अत्यन्त शक्तिशाली और विचित्र वस्तु की ओर गया । जैसे कि कुछ प्रकम्पन्न थे । मैं कह सकता हँè जैसे कि गहरे लाल रंग से हॉल का वातावरण भर गया था । यहां दादी जानकी एक कोने में अकेली बैठी रात्रि भोजन कर रही थी । ‘‘यह कौन है?’’ मैंने स्वयं से पूछा । मैंने ऐसी उर्जा को पहले कभी अनुभव नहीं किया था जो कि बहुत अधिक मार्मिक और मेरे अस्तितवात्मक भय को समाप्त करने वाली थी । कुछ समय के बाद मुझे समझ में आया और दादी की योग की शक्ति के कारण उस नजारे को मैंने ‘धरती पर परमधाम’ नाम दिया । बाकी के दिन मुझे उनके साथ और वरिष्ठ बीके भाई बहनों के साथ रहने का अदभुत मौका मिला । बहुत सी बातें जो मैंने दादी जानकी में देखीं उनमें से एक सबसे अलग थी– वह मेरे भीतर की अत्याधिक हलचल, मनोदशाको समझ सकती थी और वह संस्थागत नियमों के पार भी चली जाती थी जिससे मेरी आत्मा का विकसित हुई।

ज्ञान के मोती

शान्ति में रहें और अपने मन और बुद्धि को आपके संस्कारों को परिवर्तन करने के लिए सच्चाई और पवित्रता का प्रयोग करने दें । स्वयं को इस प्रकार परिवर्तन करें कि आप अपने आप से सन्तुष्ट रहें और आपसे सन्तुष्टता के प्रकम्पन्न फैलें । उसके लिए आपको योग में बहुत ईमानदार बनना होगा- अपने आप को सिर्फ यह सोच कर खुश नहीं करें कि ‘आज मेरा योग बहुत अच्छा लगा’। नहीं, मुझे बाबा के साथ बहुत वास्तविक और ईमानदार बनना होगा तभी मैं योगयुक्त बन सकूंगी । मेरी योगयुक्त अवस्था के आधार पर ही मैं लोगों का और परिस्थितयों का व्यवहारकुशलता और सही ढंग से सामना कर सकूँगी जिससे सभी बातों का हल निकल जाएगा ।

सिर्फ लगातार ‘बाबा, बाबा, बाबा’ कहने से ही हम परमधाम पहुंच सकते हैं । पवित्रता और योग से हम वहाँ पहुंच जाते हैं और इनसे ही सारे संसार की आत्माऐं वहां पहुंच सकती हैं । सारे विश्व के मेरे भाई-बहनों से दिल से मेरा ये विशेष अनुरोध है कि: स्वयं को भूतकाल की और पुरानी किसी बात में अटकने मत दें, और दुसरों की कोई भी बात हमें ना सोचनी ना ही देखनी चाहिए । अब चढ़ती कला से उड़ती कला में जाने का समय है । जब कोई एक उ़डने लगता है तो उसके प्रकम्पन्न से वह दूसरों को भी उड़ाने में सहयोगी बन जाता है ।

प्रकम्पन्न किस कारण फैलते हैं? अपने आप अभ्यास कर के देखें और आप पाऐंगे कि कैसे वायुमण्डल बन जाता है क्योंकि आपकी वृत्ति से वायुमण्डल बनता है । बस आपको बाबा के साथ रहना है और यह बहुत सहज है । हमें बाबा के साथ रहने से कितनी खुशी मिलती है इसे श्ब्दों में व्यक्त करना सम्भव नहीं है । हमारा दिल चाहता है कि बैठे रहें और वह अनुभव करते रहें और फिर दूसरों को हमारे प्रकम्पन्न पहुंच जाऐंगे ।

दृष्टि प्वॉईंट

मैं परमधाम को अपनी जागृती में रखती हूँ । जब भी मैं किसी आत्मा को देखूं तो मैं उसे उस पवित्र और शांत क्षेत्र में ही देखूं । जब मैं दूसरों के साथ होती हूँ तो धरती पर ही परमधाम के प्रकम्पन्न उत्पन्न करती हूँ

कर्म योग अभ्यास

मैं वायुमंडल को बदलने की सेवा करती हूँ । मैं यह जागृति रखती हूँ कि मैं रूहानी जादूगर हूँ जिसमें से परमात्मा का प्रकाश निकलकर वायुमंडल में फैल रहा है और जिस प्रकार सूरज की रोश्नी से अंधकार मिट जाता है उसी प्रकार इस रोश्नी से सभी के दुख दूर हो रहे हैं ।