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Diamond Dadi

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For 23-Feb-2015

यथार्थता की सच्ची मालिक

मैं जब मधुबन मे थी तब मुझे पता चला कि दादी काफी दर्द में हैं और उनका स्वास्थ काफी नाज़ुक है। मैं दादी से मिलने गयी लेकिन उनका रूहानी तेज देखकर मुझे बहुत ही आश्चर्य हुआ। ऐसा प्रतीत होता था मानो दादी का कमरा हीरों की लाइट से प्रज्वलित है। अपनी बच्चे जैसी कोमलत्वचा से उन्होने मेरा हाथ लिया और मुस्कुराते हुए मुझसे कहाकी स्वर्णिम युग अब बहुत करीब है। वो सतयुग की मनोहरता वा आनंद की सत्यता मे इतनी गहरी स्थित थीं कि कोई भी पीड़ा का दृश्य उन्हें डगमगा नहीं सकता था।

हम कभी कभी अतीत या वर्तमान दृश्यों की कहानियाँ रचते हैं और क्योंकि वो कहानियाँ काल्पनिक होती हैं इसलिये वो हमें दुख देती हैं। दादी जीवन के दृश्यों से अपने आपको प्रभावित नहीं होने देती चाहें वो जितने भी हद या असत्यता को विश्वसनिये रूप में दर्शायें। दादी ड्रामा के दृश्यों को अपने संकल्पों को चलाने कि अनुमती नहीं देती हैं। मैं अपने आप को इतना भाग्यशाली समझती हूँ कि मैने एक ऐसे सच्चे मास्टर को जाना और उनका हाथ थामा जिनका हर संकल्प एक अध्यात्मिक सच्चाई से उत्पन्न होता है।

ज्ञान के मोती:

"ज़रा सोचो कि माता-पिता से मिली हुई खुशी और टीचर या फिर सतगुरु से मिली हुई खुशी दोनो एक दूसरे से कैसे भिन्‍न है। खुशी होने से हमारी बहुत सारी कमाई होती है और इतनी सारी प्राप्तियाँ हमारे पास और भी ज्यादा खुशियाँ लाती है। बाबा ने हमें यह अनुभव करवाया है। परन्तु कभी कभी कुछ हो जाता है और मेरी खुशी गायब हो जाती है और मैं कहती हूँ: "मुझे पता नहीं क्या हुआ, मुझे पता नहीं क्यों हुआ ..." लेकिन यह कहने से मेरी खुशी और भी कम हो जाती है। अगर असलियत में मैं अपनी खुशी खोने का कारण समझ लेती हूँ तो मैं उसे देखकर तुरंत दूर कर दूंगी। मैं मास्टर सर्वशक्तिवान कि सन्तान हूँ इसलिये "कारण" मुझसे डरकर दूर चला जाता है। कभी-कभी लोग अपनी अप्रसन्नता को उचित सिद्ध करने का कारण बतातें हैं और उस बताये हुए कारण को अपनी अप्रसन्नता से ज्यादा महत्व देतें हैं।"
"सिर्फ एक बाबा से मिली हुई पालना को ही अपने दिल में रखो और कुछ भी नहीं। परिस्थितियाँ आयेंगी लकिन साहस रखो। बाबा ने तीन बातें बताई हैं: १) अपने अतीत को पार (pass) करो और आगे बढ़ो २) कोई भी परिस्थिति आये उसे पार (pass) करो ३) हमेशा बाबा के पास (close) रहो। मुरली को कई बार दोहराओ ताकि यह यथार्थता हमारे मन और नेत्रों में स्पष्ट हो जाये। जो कुछ हुआ वो अच्छा हुआ और जो कुछ भी होने वाला है वो और भी अधिक श्रेष्ठ है।"

दृष्टि पॉइंट:

मैं अपने सम्बंधों के व्रतांत से, जो हर आत्मा के साथ मेरा है, अपने आपको मुक्त करती हूँ और उन आत्माओं को उनकी भूमिका से परे देखती हूँ। मैं उनके अविनाशी और यथार्थ स्वरूप को देखती हूँ। मैं हरेक आत्मा को बेहद, व्यापक और एक ऐसे प्रकाश से परिपूर्ण स्वरूप में देखती हूँ जो विश्व के कोने कोने तक पहुँचता है।

कर्म योग का अभ्यास:

मैं अपने आपको इस जगत के सृष्टि नाटक से अलग कर सिर्फ एक (बाबा) की स्नेह कि किरणों में डुबो देती हूँ - वो जो हमेशा प्रकाशमय है जो हमेशा सत्यमय है और जो एक दिव्य यथार्थता है। इसको करने से मैं भ्रम से मुक्त भी हो जाती हूँ और अपने प्रकाश के पावन और सूक्ष्म स्वरूप में वापस भी पहुँच जाती हूँ।