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Diamond Dadi

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27-Apr-2015

पक्की मित्र

दादी जानकी जी ने मुझे सदा ही बहुत प्रेम और आदर दिया है । जब दादी पहली बार ब्राज़ील आई तो उनके स्वागत में हवाई अड्डे पर हमनेबाबा तेरा बनने मेंगीत गाया । उसके बाद मुझे दादी ने बहुत बार वह गीत गाने के लिए कहा और मधुबन में मैने बहुत बार उनके लिए यह गीत गाया है । दादी हमेशा हमारे प्रेम के भाव का मान रखती है । दादी की पहली ब्राज़ील यात्रा के दौरान दादी ने पूछा कि कौन गहनता से योग करने और मुरली के प्वॉईंटस् को आत्मसात करने के लिए स्वयं को अर्पण करेगा । मैंने हाँ कह दिया क्योंकि उन्होंने सेवा में श्रेष्ठ रीती मदद करने के लिए हमें प्रोत्साहित किया । मेरी मधुबन यात्रा के दौरान (जब मेरी उम्र 50 की थी) दादी जी की ब्राज़ील के भाई-बहनों के साथ बहुत सुंदर मुलाकात हुई और दादी ने मुझे मेरी विशेषताओं के लिए वरदान दिया । यह मेरी रूहानी प्रगति के लिए बहुत प्रेरणादायक रहा । एक और मधुबन यात्रा के दौरान (जब मेरी उम्र 57 साल की थी) दादी ने मुझे वरदान दिया और कहा कि मैं उनकी बैस्ट फ्रैंड हूँ और अंत में मैं साक्षात्कार से अनुभव करवाउँगी । दादी की इन शुभ भावनाओं के कारण मुझमें विश्वास और साहस सदा भरपूर रहा । मैं बाबा की बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने इतनी दिव्य हस्ती को मेरे जीवन और आध्यात्मिक सेवाओं के लिए निमित्त बनाया ।

ज्ञान के मोती

अब हमें एक दुसरे को किस प्रकार देखना है ? बहुत प्रेम और आदर के साथ । क्या आप प्रत्येक को इस दृष्टि से देखते हैं ? इस दृष्टि से देखने ये न केवल आपका चेहरा खिल उठेगा बल्कि आप दुसरों का चेहरा भी खिला देंगे ।

अच्छा बनने के लिए मुझे स्वयं से प्रेम करने में सक्षम बनना होगा । स्वयं को प्रेम करने में कभी थकावट महसूस नहीं करें । जब मैं स्वयं को प्रेम और आदर देती हूँ तो दूसरों को भी प्रेम और आदर दे सकूंगी । जब आपका जीवन उत्कृष्ट बन जाता है तो आप परमात्मा से बहुत प्रेम का अनुभव कर सकेंगे । आप दूसरों से भी प्रेम का अनुभव कर पाऐंगे । हमें इस बात को भली प्रकार समझना होगा । जब आप इन बातों का अभ्यास करते हैं तो आप जानेंगे इसे कब करना है और कैसे करना है ।

हरेक को प्रेम चाहिए । जानवरों को भी प्रेम चाहिए । मुझे ऐसा कोई कार्य नहीं करना है जिसके बाद मुझे किसी भी कर्म के लिए पश्चाताप करना पड़े । परमात्मा मेरा मित्र है, प्रत्येक वयक्ति मेरा मित्र है इस जागृति से यह जीवन बहुत श्रेष्ठ बन जाता है । इस जागृति का विकास करने में अधिक समय नहीं लगता । यह अद्भुत है ! जब मैं अपने विचारों को ईमानदार और सच्चा रखती हूँ तो धैर्यता और मिठास स्वत: अंदर से प्रकट होते हैं । इसके बाद आत्मा में हल्कापन आता है क्योंकि आत्मा अपने पुरूषार्थ में सफल हुई है । इस स्थिति तक पहुंचने के लिए अपने पुरूषार्थ को सिलसिलेवार रखें ।

दुसरों के लिए शुभ भावनाऐं कमाल करती हैं । दुसरों के लिए शुभ भावना रखने से हम उन्हें परिर्वतित होने में मदद करते हैं । शुभ भावनाओं से असम्भव भी सम्भव हो जाता है । असम्भव को सम्भव करने में विश्वास की आवश्यकता है । साहस, विश्वास और शुभ भावनाओं से न केवल मेरा उत्साह और नशा बढ़ता है बल्कि दुसरों को भी बहुत मदद मिलती है ।

दृष्टि प्वॉईंट

मुझे मालूम है कि बाबा मेरा पक्का मित्र है और मुझे उसके साथ जुड़े रहना है ताकि मैं सबके साथ मित्रतापूर्वक व्यवहार करूं और उन्हें शक्ति और उमंग-उत्साह दे सकूँ । मैं सभी को पवित्र दृष्टि शक्ति से देखती हूँ और जिससे भी मैं मिलती हूँ उनके रोल की सराहना करती हूँ ।

कर्म-योग का अभ्यास

मुझ आत्मा को अपनी विशेषताओं में विश्वास है और परमात्म दुआओं की महसूसता हो रही है जिससे मुझमें शक्ति और उत्साह भर रहा है । मैं जानती हूँ कि मैं विजयी बनूंगी और आज जो भी कार्य मैं करूंगी उसमें मुझे विजय का अनुभव हो रहा है ।