Home

Diamond Dadi

Contact Us



30-Mar-2015

स्वमान

फरवरी 2002 की बात है, मधुबन आते हुए मैं अहमदाबाद में रूकी। कुछ घंटों के बाद दादी जानकी जी भी लोटस हाउस पहँची और हम सब के साथ चिट-चैट करने बैठी। दादी तमिल नाडू में एक मीटींग में भाग लेकर यहां पहुंची थी। उसके बाद दादी ने मदुरई का एक प्रसंग सुनाया जिसे सुनकर हम दंग रह गये।

जब वह मदुरई में थी तब अलौकिक परिवार उन्हें विख्यात मीनाक्षी मंदिर लेकर गया। हम सब जानते हैं कि इस मंदिर में कितने कठोरता से नियमों का पालन किया जाता है ; केवल मनोनित पुजारी जो सभी धार्मिक सिद्धांतों का सख्ती से पालन करता हो वही गृभ-गृह में प्रवेश कर पूजा-पाठ कर सकता था। जब दूसरे बीके भाई बहनों के साथ दादी ने मंदिर में प्रवेश किया तो पुजारी ने दादी को देखा और गृभ-गृह में आने का निमंत्रण दिया! पुजारी ने देवता की आरती उतारी और फिर दादी की आरती उतारी। दादी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ; वह जानती थी कि यह उसका ही यादगार है, उसकी ही मूर्ता की पूजा की जा रही है। दादी ने यह सब बहुत साधारण ढंग से सुनाया जैसे कुछ बड़ी बात नहीं हुई। इससे मुझे यह बात समझ में आई कि दादी को कितना अधिक स्वमान है और ड्रामा पर उनका अटूट निश्चय है। हमारे भविष्य निर्माण में इस संस्कार का अति महप्वपूर्ण योगदान है। शुक्रिया दादी जी।

ज्ञान के मोती

हम सभी को अपने स्वमान के बारे में जागरूक रहने की आवश्यकता है। अपने स्वमान में स्थित रहने के लिए, सच्चा और ब॰डा दिल रखने पर ध्यान दें। जो सच्चे और ब॰डे दिल से सेवा करता है वह हर कदम पर सेवा करता है। चाहे वह कोई भी कार्य करे और उसका परिणाम देखे या नहीं देखे वह सदा अपने स्वमान में स्थित रहेगा। बाबा जानते हैं कि ऐसा बच्चा एक ट्रस्टी की भांती उसकी सेवाओं का ध्यान रखेगा, जिसे सदा इस बात की स्मृती है कि कुछ भी मेरा नहीं है..... सबकुछ बाबा का है।

सच्चाई सफाई से मैं फ़रिश्ता बन जाती हूँ और उसके बाद देवता। जब किसी का मन ऐसी अवस्था तक पहुंच जाता है तो वह शरीर और शरीर के सम्बन्धों से उपर उठ जाता है। उसके बाद बाबा से हम जुड़े रहेंगे और वातावरण भी अच्छा रहेगा।

आप सकाश तभी दे सकते हैं जब आपमें बेहद की वैराग वृति है। अगर थोड़ा भी लगाव है तो आप सेवा नहीं कर सकते। आपकी वृति के प्रकम्पन्न दूर-दूर तक फैलते हैं। हर प्रकार की सेवा के लिए उपस्थित रहें- इसके सिवाय कोई दुसरी खुशी नहीं है। जहां भी आप हैं सेवा वहीं है। जब आप `हाँजी' कहते हैं तो बाबा उपस्थित हो जाते हैं। इसके लिए आपमें सच्चाई और नम्रता का होना आवश्यक है। बाबा की तरह निराकारी, र्निविकारी और निरंहकारी बनो- तभी आप सच्चे साम्राज्य की स्थापना कर सकेंगे।

दृष्टि प्वाँईट

मैं स्वयं के लिए पवित्र दृष्टि रखने का अभ्यास करती हूँ। मैं स्वयं को दीप्तिमान देवता के रूप में देखती हूँ जो कि आध्यात्मिक गुणों और प्रकाश से सम्पन्न है। मैं स्वयं को सबसे श्रेष्ठ हस्ती के रूप में देखती हूँ- जो परमात्मा की पवित्र रचना है जो अदभुत है और उत्कृष्ट सुन्दरता से भरपूर है।

कर्म-योग का अभ्यास

जैसे ही मैं कर्म-क्षेत्र पर आती हूँ तो मैं चलते-फिरते स्वयं के पवित्र, प्रकाशमय फरिश्ते के शरीर के बारे में जागरूता रहती हूँ जो तत्वों को और पृथ्वी की सभी आत्माओं के हृदय को पावन कर रहा है।