अवतार की यात्रा

सिद्धी स्वरूप सूत्र सेट 5


2 और 3 फरवरी, 2016 के लिए

मैं अर्न्तमुखी होकर एकान्त में नीचे दिये गऐ सूत्र का प्रयोग और अनुभव करता हूँ। एकान्त का यह अर्थ नहीं है कि मैं लोगों से और बातों से दूर हो जाऊँ, इसका अर्थ है संसार में रहते और काम करते मैं एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो जाऊँ। एकान्त का अर्थ है मैं अपने मन और बुद्धि को एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित करूँ।

सूत्र

(मनमनाभव एक पर एकाग्र मन) + (मध्याजीभव –  स्वर्ग के सम्पूर्ण रूप का स्वरूप) + (मनसा सेवा मन से सेवा) = सर्मपण

अभ्यास

मनमनाभव: जैसे ड्रामा हर सेकंड चल रहा है, मेरा मन भी प्रगति कर रहा है। यह कहीं अटकता नहीं है। मेरे मन में मैं बापदादा के गुणों, कर्तव्यों और सम्बन्धों के बारे में सोचता हूँ।

मध्याजीभव: मैं कमल, गदा, शंख और चक्र को धारण कर मध्याजीभव के मंत्र में स्थित हो जाता हूँ।

मनसा सेवा: एक पल में मैं इस शरीर को धारण करता हूँ और अगले ही पल इससे अलग हो जाता हूँ। मैं कल्प वृक्ष की जड़ों में बीज के साथ बीज रूप अवस्था में बैठ कर सारी आत्माओं को सर्व शक्तियों रूपी जल दे रहा हूँ।

प्राप्ति

सर्मपण: अगर आपने अपना मन समर्पित कर दिया है तो इसे श्रीमत के सिवाय प्रयोग नहीं कर सकते। अपने धन को श्रीमत प्रमाण प्रयोग करना सहज है; अपने तन को प्रयोग करना भी सहज है; लेकिन वह अवस्था जब मन बिना श्रीमत के एक भी संकल्प उत्पन्न ना करे वही सम्पूर्ण अवस्था है। अगर मन पूरी तरह समर्पित हो जाता है तो उसी घड़ी आप अपने तन, मन, धन, सम्बन्धों और समय को उस एक की ओर लगा सकते हैं। यही सम्पूर्ण परवाने की निशानी है। जो पूरी तरह समर्पित हैं वे अपने मन में बापदादा के गुणों, कर्तव्यों और सम्बन्धों के बारे में सोचेंगे। ऐसा मन शाश्वत प्रप्तियों से दूसरों के मन की  सूक्ष्म इच्छाऐं भी पूरी कर सकता है।


4 और 5 फरवरी, 2016 के लिए

मैं अर्न्तमुखी होकर एकान्त में नीचे दिये गऐ सूत्र का प्रयोग और अनुभव करता हूँ। एकान्त का यह अर्थ नहीं है कि मैं लोगों से और बातों से दूर हो जाऊँ, इसका अर्थ है संसार में रहते और काम करते मैं एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो जाऊँ। एकान्त का अर्थ है मैं अपने मन और बुद्धि को एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित करूँ।

सूत्र

(रचना पावन विचार) + (पालना अविनाशी संस्कार) + (विनाश पुराने संस्कारों, पुराने स्वभाव, कमज़ोर विचारों का) ­= कल्याणकारी

अभ्यास

रचना: मैं अपने मन और बुद्धि से केवल कल्याणकारी पावन विचार ही उत्पन्न करता हूँ।

पालना: मैं बाब और विश्व के प्रति प्रेम के अनादि और अविनाशी संस्कारों की पालना करता हूँ।

विनाश: मैं अपने पुराने व्यवहार, कमज़ोर विचारों और संस्कारों पर शक्तिशाली पूर्ण विराम लगाने पर पूरा ध्यान देता हूँ। इससे असंख्य आत्माओं के व्यर्थ संकल्प समाप्त होने का मार्ग प्रशस्त होता है।

प्राप्ति

कल्याणकारी: आप अब विश्व कल्याणकारी हो। इसलिए असंख्य आत्माओं के व्यर्थ संकल्प समाप्त करने का और सारे संसार के पाप कर्मों का बोझ हल्का करने का कर्तव्य आप शक्तियों का है। इसलिए, वर्तमान समय विकारों को समाप्त करने का कर्तव्य और साथ में शुद्ध संकल्पों को उत्पन्न करने का कर्तव्य: ये दोनों कर्तव्य बहुत ज़ोर से करने हैं। जब आपके पास बहुत तेज़ मशीन है तो आप किसी भी वस्तु का रूप, रंग, गुण और कर्तव्य एक सेकण्ड में बदल सकते हैं। जैसे ही उसे वस्तु को मशीन में रखा जाता है उसका रूप परिवर्तन हो जाता है। उसी प्रकार स्थापना और विनाश की मशीनरी को बहुत तीव्र गति से कार्य करना है। और आपके अनादि संस्कारों की पालना से एक सेकण्ड में संदेश दे दो। ये एक सेकंड का संदेश बहुत शक्तिशाली होता है। यह संदेश उन आत्माओं में अविनाशी संस्कार के रूप में मर्ज हो जाऐगा।


6 और 7 फरवरी, 2016 के लिए

मैं अर्न्तमुखी होकर एकान्त में नीचे दिये गऐ सूत्र का प्रयोग और अनुभव करता हूँ। एकान्त का यह अर्थ नहीं है कि मैं लोगों से और बातों से दूर हो जाऊँ, इसका अर्थ है संसार में रहते और काम करते मैं एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो जाऊँ। एकान्त का अर्थ है मैं अपने मन और बुद्धि को एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित करूँ।

सूत्र

(याद बिना किसी स्वार्थ के बाबा को याद करना) + (प्यार ऐसा प्रेम जो किसी भूले हुए रिश्ते को फिर से जोड़ दे) + (नमस्ते नम्रता और महानता का संयोग) = रूहानियत

अभ्यास

याद: मीठे बाबा, मेरे जीवन में आपकी मौजूदगी के कारण खुशी में मैं आपको याद करता हूँ। मैं किसी चीज़ को नहीं मांगता हूँ क्योंकि मुझे मालूम है जिस भी वस्तु की मुझे आवश्यकता होगी वह मुझे मिल जाऐगी।

प्यार: मेरे बाबा, प्यारे बाबा, आप मेरे हो और मैं आपका हूँ। यह मीठा प्यार भूले हुए सम्बन्ध को फिर से जागृत कर देता है।

नमस्ते: मैं अनुभव करता हूँ कि बापदादा मुझे नमस्ते कर रहे हैं और मैं भी वापिस जवाब में बाबा को नमस्ते कर रहा हूँ।

प्राप्ति

रूहानियत: प्रतिदिन, सभी बच्चे स्वयं को रूहानी बच्चे कहते हैं और रूहानी बाप को चाहे होंठो द्वारा या मन से याद प्यार और नमस्ते का जवाब देते हैं। इसका अर्थ यह है कि प्रतिदिन रूहानी बाप आपको रूहानी बच्चे कहते हैं और आपको रूहानी शक्ति के सही अर्थ की याद दिलाते हैं क्योंकि इस ब्राहमण जीवन की विशेषता ही रूहानियत है। आप स्वयं को और दूसरों को इस रूहानियत की शक्ति से परिवर्तित करते हो।