दिवाली की तैयारी - पहला सप्ताह


पहला दिन : सोमवार, २ अक्टूबर

आदि लक्ष्मी। महा लक्ष्मी - पवित्रता का धन देने वाली।

स्मृति:
आदि लक्ष्मी सदा दयालु व कृपालु है। यह सदा शुभ है व अथाह धन और श्रेष्ठ मन की दाता है। इसकी सूर्य जैसी चमक से मन की सर्व अशुद्धियाँ नष्ट हो जाती हैं, जिससे आत्मा पवित्र बनती है व सर्व कर्मेन्द्रियों पर नियंत्रण कर लेती है।

अभ्यास:
मैं विश्व - कल्याणकारी के स्वरुप में स्थित होकर बाबा के साथ सूक्ष्म वतन में बैठी हूँ। मैं अपने पूज्य स्वरुप को इमर्ज कर श्रेष्ठ संकल्पों की किरणों से सारे संसार की सेवा कर रही हूँ। सूर्य की तरह मेरी श्रेष्ठ संकल्प रुपी किरणों से आत्माओं के मन की अशुद्धि नष्ट हो रही है व उन्हें पवित्रता रुपी धन की प्राप्ति हो रही है।
 


दूसरा दिन: मंगलवार, ३ अक्टूबर

विद्या लक्ष्मी - सत्य व श्रेष्ठ ज्ञान देने वाली।

स्मृति:
विद्या लक्ष्मी वह है जो सृष्टि ड्रामा का विशेष ज्ञान देती है व बुद्धि को पवित्र बनाकर जीवन-मुक्ति दिलाती है। यह आत्मा को सत्य ज्ञान देकर भरपूर कर देती है। आत्मा को श्रेष्ठ संकल्प व बुद्धि रुपी खजानों की पहचान मिल जाती है व सत्य बोल बोलने की प्रेरणा भी मिलती है। इस सत्य ज्ञान से निर्वाण व आदि-मध्य-अंत का रहस्य गहराई से समझा जा सकता है।

अभ्यास:
मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ। मुझे तीनो लोकों का व सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का सम्पूर्ण ज्ञान है। मैं दिव्य बुद्धि की गिफ्ट द्वारा सर्व आत्माओ को सत्य ज्ञान का दान कर रही हूँ।
 


तीसरा दिन: बुधवार, ४ अक्टूबर

विजय लक्ष्मी - मुक्ति व विजय के पथ पर ले जाने वाली।

स्मृति:
विजय लक्ष्मी सर्व शक्तियों का स्वरुप है और यह सूक्ष्म क्षमताओं को बढ़ाकर सफलता दिलाने वाली दाता का भी रूप है। ये ऐसी भगवती है जो मुक्ति चाहने वालों को सत्य मार्ग दिखाकर उन्हें विजय का अनुभव कराती है।

अभ्यास:
मैं विजयी आत्मा हूँ। बाबा ने मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगाया है। ज्ञान व योग की शक्ति से मैं माया के ऊपर विजय पा रही हूँ। अपने विजयी स्वरुप से मैं आत्माओं को माया पर विजय पाने की प्रेरणा दे रही हूँ।
 


चौथा दिन: गुरुवार, ५ अक्टूबर

सन्तना लक्ष्मी - मनुष्य आत्माओं को महान व श्रेष्ठ संतान समझ गुणों का दान करने वाली।

स्मृति:
सन्तना लक्ष्मी बेटा, बेटी व नाती-पोते के स्वरुप को धारण कर मानव मूल्यों को सँभालने वाली है। संतान-भगवान की बड़े ते बड़ी गिफ्ट है जिसे श्रेष्ठ मूल्यों द्वारा अच्छा स्वास्थ व लम्बी आयु देकर संभाल करनी होती है।

अभ्यास:
मैं मास्टर ब्रह्मा व मास्टर क्रिएटर हूँ। मैं निमित्त बन आत्माओं को परमात्मा ज्ञान देकर उनके आतंरिक मूल्य व दिव्यता को जागृत कर रही हूँ। इससे आत्माओं के अंदर छिपे हुए पवित्रता व प्रेम के गुण इमर्ज हो रहे हैं। इस जागृति से आत्माएं अपने वास्तविक स्वरुप का अनुभव कर रही हैं।
 


पाँचवा दिन: शुक्रवार ६ अक्टूबर

गज़ लक्ष्मी - आत्मिक बल व रूहानी शक्ति की दाता।

स्मृति:
गज लक्ष्मी ने सागर मंथन कर खोए हुए खजाने को पुन: प्राप्त करने में इंद्र देव की मदद की थी इसलिए उन्हें सागर की बेटी के रूप में माना जाता है। गज लक्ष्मी गज अर्थात महारथी के समान अविश्वसनीय बल देकर साहस व शक्ति का दान देती है। यह रॉयलटी व अधिकारीपने की भी रक्षक हैं।

अभ्यास:
मैं मास्टर सर्व शक्तिमान ज्ञान सागर की संतान हूँ। मैं सर्व शक्तिवान बाबा से शक्तियां लेकर अपना अधिकारयुक्त वर्सा प्राप्त कर रही हूँ। मैं एक बल, एक भरोसा रख आत्माओं को उस एक से जोड़ रही हूँ। ऐसा सम्बन्ध जोड़कर आत्माओं को अपनी बुराइयों को खत्म करने की शक्ति मिल रही है।
 


छटवां दिन: शनिवार ७ अक्टूबर

धैर्य लक्ष्मी - अनंत साहस व धैर्यता देने वाली।

स्मृति:
धैर्य लक्ष्मी सर्व आत्माओं को ईर्ष्या क्रोध व डर से मुक्त कराती है व अनंत साहस और आत्मिक स्थिरता प्रदान करती है। इनकी बुद्धि किसी भी प्रकार के पक्षपात से मुक्त रहती है। एक माँ की तरह यह सबको स्नेह देकर अत्याधिक धैर्यता से सबकी देखभाल करती है।

अभ्यास:
मैं हिम्मतवान आत्मा हूँ। मेरे एक हिम्मत के कदम से मुझे मेरे पिता से पदमगुणा मदद मिल रही है। हिम्मत व धैर्यता के गुण को धारण कर मैं परिस्थितियों पर विजय पा रही हूँ। मेरे इस साहसी स्वरुप से सर्व आत्माएं भय से मुक्त हो रही है और उन्हें अपनी आतंरिक शक्ति का एहसास हो रहा हैं।
 


सातवां दिन: रविवार, ८ अक्टूबर

धन्य लक्ष्मी - सर्वोत्तम स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक भोजन देने वाली।

स्मृति:
धन्य लक्ष्मी अनाज की बढ़ोत्तरी करती है। यह हमें तन और मन के स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक आहार के महत्व से अवगत कराती है। यह अशुद्धियों व आपदाओं को नष्ट करती है व प्रकृति के पाँच तत्वों द्वारा समृद्धि दिलाती है।

अभ्यास:
मैं प्रकृति पति हूँ। मैं स्व-राज्य अधिकारी हूँ। मैं अपनी श्रेष्ठ वृत्ति व शुभ भावना द्वारा प्रकृति के तत्वों की सेवा कर रही हूँ। मेरी पवित्रता की शक्ति से प्रकृति सतोप्रधान व भरपूर होता जा रही है। इसके बदले में प्रकृति के तत्वों द्वारा मेरी खूब सेवा हो रही है।