दिवाली की तैयारी - दूसरा सप्ताह


आठवां दिन: सोमवार ९ अक्टूबर

धन लक्ष्मी - अथाह धन संपत्ति प्रदान करने वाली।

स्मृति:
धन लक्ष्मी अथाह धन-संपत्ति प्रदान करने वाली है। यह सदा हर तरफ से सोने और भौतिक पदार्थों से घिरी रहती है। इनका स्वाभाव सदा आनंदमय व चेहरे पर मंद मुस्कान रहती है। यह सदा कल्पाणकारी, सदा संतुष्ट व हरेक को संतुष्ट करने वाली है। इनके कत्याण की भावना से भूख-प्यास से तड़पती हुई आत्माओं की दरिद्रता नष्ट हो जाती है व हर प्रकार की कमी कमजोरी दूर हो जाती है।

अभ्यास:
मैं सारे विश्व में सबसे होलीएस्ट, हाइएस्ट और रिचेस्ट आत्मा हूँ। मेरे हर कदम में पदमों का भाग्य है। बाबा से मिलने वाले ज्ञान के एक-एक रतन अमूल्य हैं। मैं आत्माओं के होलीएस्ट, हाइएस्ट और रिचेस्ट बनने के भाग्य को बांटकर आनंद व सन्तुष्टता का अनुभव कर रही हूँ।

 


नवां दिन: मंगलवार, १० अक्टूबर

आरोग्य लक्ष्मी - श्रेष्ठ स्वास्थ्य प्रदान करने वाली।

स्मृति:
आरोग्य अर्थात रोग से मुक्ति। आरोग्य लक्ष्मी उत्तम स्वास्थय सम्पूर्ण तंदुरुस्ती का प्रतीक है। आरोग्य लक्ष्मी स्वास्थ्य वर्धक आदतों को धारण करने की प्रेरणा देती है और बीमारी को उत्पन्न होने से बचाती है। इसके लिए खान- पान की शुद्धत्ता, घर की सफाई, ताजी हवा व नित्य व्यायाम जरूरी है।

अभ्यास:
मैं एक पवित्र आत्मा हूँ। शांति की शक्ति और शुद्ध संकल्पों रुपी अस्त्र द्वारा मैं आसानी से देह के कर्म बंधनों को पार कर रही हूँ। मैं अपने शरीर को खुशी की खुराक खिलाकर स्वस्थ बना रही हूँ। मैं अपने सच्चे व साफ़ स्वभाव से अनेक आत्माओं को अच्छा स्वस्ठ बनाने की प्रेरणा दे रही हूँ।

 


दसवां दिन: बुधवार, ११ अक्टूबर

भाग्य लक्ष्मी - भाग्य बनाने वाली।

स्मृति:
शिशु के जन्म के छटवें दिन पर भाग्य लक्ष्मी शिशु को अपनी गोदी में लेकर उसके कोमल मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की रेखा खींचती है। भाग्य लक्ष्मी स्वयं भाग्य की लकीर खींचकर शिशु की तक़दीर की लकीर को पूरी तरह से बदल सकती है।

अभ्यास:
मैं मास्टर भाग्य-विधाता हूँ। मैं भाग्य-विधाता बाप की संतान हूँ। मैं मास्टर, भाग्य-विधाता की संतान सर्व आत्माओं को ज्ञान, शक्तियां, गुण, रूहानी दृष्टि, रूहानी प्रेम, सहयोग, श्रेष्ठ संग व उमंग -उत्साह से भरपूर कर रही हूँ। मैं उन्हें सौभाग्यशाली बना कर संतुष्ट कर रही हूँ

 


ग्यारहवां दिन: गुरुवार, १२ अक्टूबर

संस्कार लक्ष्मी - श्रेष्ठ संस्कारों को देने वाली।

स्मृति:
संस्कार लक्ष्मी से अच्छे संस्कार मिलना एक अमूल्य गिफ्ट है। यदि किसी के बचपन में अच्छे संस्कार न भी बने हों, लेकिन संस्कार लक्ष्मी की दुआओं से कोई भी मूल्यों से भरा जीवन बना सकता है।

अभ्यास:
मैं एक दिव्य आत्मा हूँ। मैं अपने अनादि संस्कारों को स्मृति में ला रही हूँ। याद की शक्ति से मैं प्रत्येक दिव्य गुण को अपना संस्कार बना रही हूँ। मैं पवित्रता, शांति, सुख, प्रेम व सत्यता रुपी दिव्य गुणों को धारण कर श्रेष्ठ कर्म कर रही हूँ। इससे अनेक आत्माओं को अपने दिव्य संस्कारों को इमर्ज करने की प्रेरणा मिल रही है।
 


बारहवां दिन: शुक्रवार,१३ अक्टूबर

सौदंर्य लक्ष्मी- चमक व सुंदरता बढ़ाने वाली।

स्मृति:
सौंदर्य लक्ष्मी घर में सजे हुए अलंकारों में निवास करती है और सुंदरता, चमक व दिव्यता की दुआयें देती है। यथार्थ विधि से आवाहन करने पर सौंदर्य लक्ष्मी सर्व प्रकार की अशुभ शक्तियों को हटा देती है और आपके चेहरे पर आंतरिक पवित्रता की चमक ले आती है।

अभ्यास:
मैं एक खूबसूरत आत्मा हूँ। मेरी आंतरिक सुंदरता मेरे चेहरे पर दिखाई पड़ रही है। श्रेष्ठ स्मृति मेरे मस्तक की सुदरता है। मेरी रूहानी दृष्टि व वृत्ति से मेरे नयनों की खूबसूरती दिखाई दे रही है। मेरी सन्तुष्टता से भरी मुस्कान मेरे होठों की शोभा है। मेरे मधुर बोल मेरे कानों को संगीत दे रहे हैं। मेरा सुन्दर आभा-मंडल मेरी पवित्रता को प्रत्यक्ष कर रहा है। मैं अपनी रूहानी चमक से आत्माओं की सेवा कर रही हूँ।

 


तेरहवाँ दिन: शनिवार, १४ अक्टूबर

गृह लक्ष्मी – घर बनाने वाली माताओं को सम्मान देने वाली।

स्मृति:
कहा जाता है कि हर दुल्हन नए घर में लक्ष्मी के रूप में प्रवेश करती है। गृह लक्ष्मी की दुआओं से दुल्हन श्रेष्ठ गुणों से भरपूर हो जाती है। वह प्रेम, सम्मान, अच्छा व्यवहार व ऊँचे विचार रख एक सुन्दर घर का निर्माण करती है। ऐसे आकर्षक घर का प्रभाव कई पीढ़ियों तक रहता है। ऐसे घर को गृह लक्ष्मी दिव्य प्रेम व सम्पूर्ण सुख-शांति की दुआओं से भर देती है।

अभ्यास:
मैं विश्व-परिवर्तक आत्मा हूँ। मैं शिव के साथ कम्बाइन्ड शक्ति हूँ। हम दोनों मिलकर इस संसार को काँटो के जंगल से फूलों का बगीचा बना रहे हैं। मै पृथ्वी को गृह के रूप में देख रही हूँ। इस पृथ्वी पर जहाँ भी मेरे कदम पड़ रहे हैं, वहाँ कमल का निशान बन रहा है। इससे सारे वातावरण में पवित्रता, सुख, शांति व एकता फैलती जा रही है।

 


चौदहवां दिन: रविवार, १५ अक्टूबर

राज लक्ष्मी - रॉयल्टी के भाग्य को देने वाली।

स्मृति:
राज लक्ष्मी शक्ति व राज्य करने का अधिकार देती है। प्राचीन काल के राजा-महाराजा राज-लक्ष्मी की विशेष रूप से पूजा करते थे। सभी शासक राज-लक्ष्मी को महत्व देते थे और उनका ये दृढ़ विश्वास था कि राज-लक्ष्मी की कृपा व दुआ पर ही उनका भाग्य निर्भर होगा।

अभ्यास:
मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ। मेरे पास कट्रोलिंग पावर व रूलिंग पावर की गिफ्ट है। मैं राज योगी व राज-ऋषि हूँ। सर्व कर्मेन्द्रियां मेरे कंट्रोल में हैं। मेरे मन, बुद्धि और संस्कार में समानता है। मैं इस समय हर आत्मा को
राजयोग का ज्ञान दे कर कट्रोलिंग व रूलिंग पावर को बढ़ाने में सहयोग दे रही हूँ।