Date |
Title |
28.01.2014 |
अट्ठाईसवाँ स्वरुप
(28-01-2014/Tuesday)
अशरीरीपन के अभ्यास
द्वारा परमधाम की ऊँची स्थिति में स्थित हो, ऊँचे ते ऊँचे बाप
के साथ बैठकर पूरे ग्लोब को सर्चलाइट दो ।
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27.01.2014 |
सत्ताईसवाँ स्वरुप
(27-01-2014/Monday)
अब सेकण्ड में अपने सब
संकल्पों को समेटकर, एकाग्रचित्त हो ज्वालामुखी स्वरूप को
इमर्ज कर वायुमण्डल में सर्व शक्तियों की किरणें फैलाओ ।
मास्टर विश्व रक्षक बन मन्सा द्वारा सर्व आत्माओं को शक्ति दे
सुख का, शान्ति का अनुभव कराओ ।
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26.01.2014 |
छब्बीसवाँ स्वरुप
(26-01-2014/Sunday)
जैसे प्रकृति का सूर्य
सकाश से अंधकार को दूर कर रोशनी में लाता । अपनी किरणों के जल
से कई चीजों को परिवर्तन करता । ऐसे मैं मास्टर ज्ञान सूर्य
हूँ, इस स्मृति से, शक्तिशाली वृत्ति से अपने कड़े सस्कारों को,
दूषित वायुमण्डल को परिवर्तन करो, भटकती हुई आत्माओं को रास्ता
दिखाओ ।
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25.01.2014 |
पच्चीसवाँ स्वरुप
(25-01-2014/Saturday)
अपने अनादि स्वरूप की
स्मृति में स्थित हो संकल्प करो कि मैं प्युरिटी से सम्पन्न
आत्मा हूँ, मुझ आत्मा से पवित्रता की सफेद किरणें निकलकर चारों
ओर दूर-दूर तक प्रवाहित हो रही हैं । संसार के कोने-कोने में
पवित्रता का प्रकाश फैल रहा है, अज्ञानता का अंधकार दूर हो रहा
है ।
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24.01.2014 |
चौबीसवाँ स्वरुप
(24-01-2014/Friday)
जैसे ऊँची टावर से सकाश देते
हैं, लाइट माइट फैलाते हैं । ऐसे आप बच्चे भी अपनी ऊँची स्थिति
अर्थात् ऊँचे स्थान पर बैठ (परमधाम निवासी बन) विश्व को लाइट
माइट दो । जैसे सूर्य विश्व में रोशनी तब दे सकता है जब ऊँचा
है, तो साकार सृष्टि को सकाश देने के लिए को ऊँचे स्थान निवासी
बनो ।
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23.01.2014 |
तेईसवाँ स्वरुप
(23-01-2014/Thursday)
लाइट हाउस, माइट हाउस
बनकर सकाश देने की सेवा करो, चारों ओर लाइट माइट का प्रभाव
फैलाओ । इसके लिए मस्तक अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से
सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई न दे । हर आत्मा के
कल्याण का संकल्प वा भावना इमर्ज रहे ।
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22.01.2014 |
बाईसवाँ स्वरुप (22-01-2014/Wensday)
अपनी बेहद की वृत्ति से,
मनोबल द्वारा विश्व के गोले के ऊपर, बाप के साथ परमधाम की
स्थिति में स्थित हो मन्सा सेवा करो । मास्टर ज्ञान सूर्य की
स्मृति से लाइट माइट सम्पन्न बन पूरे ग्लोब को शक्तियों की
लाइट दो ।
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21.01.2014 |
इक्कीसवाँ स्वरुप (21-01-2014/Tuesday)
जैसे बह्मा बाप को सदा डबल लाइट रूप में देखा, सेवा का भी बोझ
नहीं । सदा अव्यक्त फरिश्ता रूप । ऐसे डबल लाइट बन एक सेकण्ड
में निराकारी स्थिति में स्थित हो पावरफुल योग अभ्यास द्वारा
चारों और शान्ति और शक्ति के वायब्रेशन फ़ैलाओ ।
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20.01.2014 |
बीसवाँ
स्वरुप (20-01-2014/Monday)
कोई भी कार्य डबल लाइट होकर
करो । बुद्धि रूपी पांव पृथ्वी अर्थात् प्रकृति की आकर्षण से
परे रहे । अपने अव्यक्त स्वरूप में स्थित हो, अव्यक्त वतन वासी
बन ब्रह्मा बाप के साथ विश्व की परिक्रमा करो । अपने भक्तों को
भक्ति का फल दो ।
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19.01.2014 |
उन्नीसवाँ
स्वरुप (19-01-2014/Sunday)
इस देह की दुनिया में
कुछ भी होता रहे लेकिन फरिश्ता ऊपर से साक्षी हो सब पार्ट
देखते सकाश देता रहे । आप बेहद विश्व कल्याण के प्रति निमित्त
हो तो साक्षी हो सब खेल देखते सकाश अर्थात् सहयोग देने को सेवा
करो ।
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18.01.2014 |
अठारवाँ
स्वरुप (18-01-2014/Saturday)
अन्त:वाहक अर्थात् अन्तिम
स्थिति, पावरफुल स्थिति ही मेरा वाहन है । अपना वह स्वरूप
सामने इमर्ज कर फरिश्ते रूप में चक्कर लगाओ, सबको सकाश दो ।
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17.01.2014 |
सत्रहवाँ स्वरुप (17-01-2014/Friday)
अपनी उड़ती कला द्वारा फरिश्ता बन चारों ओर चक्कर लगाओ और जिसको
शान्ति चाहिए, खुशी चाहिए, सन्तुष्टता चाहिए, फरिश्ते रूप में
उन्हें अनुभूति कराओ । वह अनुभव करें कि इन फरिश्तों द्वारा
शान्ति, शक्ति, खुशी मिल गई ।
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16.01.2014 |
सोलहवाँ स्वरुप (16-01-2014/Thursday)
मेरा कुछ नहीं, सब कुछ बाप का
है, ऐसे बुद्धि से सरेन्डर होकर सब बोझ बाप पर रख दो । फिर डबल
लाइट बन उड़ती कला का अनुभव करो । फरिश्ते स्वरूप में रह चारों
ओर लाइट माइट फैलाओ ।
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15.01.2014 |
पन्द्रहवाँ स्वरुप (15-01-2014/Wednesday)
डबल लाइट बन दिव्य बुद्धि रूपी
विमान द्वारा सबसे ऊंची चोटी की स्थिति में स्थित हो, अव्यक्त
वतन वासी बन विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना और
श्रेष्ठ कामना के सहयोग की लहर फैलाओ ।
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14.01.2014 |
चौदहवाँ स्वरुप (14-01-2014/Tuesday)
विश्व कल्याणकारी मास्टर रचता,
बाप समान पूज्य आत्मा की स्मृति से किसी भी आत्मा की बुराई वा
कमजोरी दिल पर न रख पहले क्षमा करो । उसके बाद ऐसी आत्मा के
कल्याण प्रति उसके वास्तविक स्वरूप और गुण को सामने रखते हुए
महिमा करो अर्थात उस आत्मा को अपनी महानता की स्मृति दिलाओ ।
यही श्रेष्ठ मन्सा सेवा है ।
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13.01.2014 |
तेरहवाँ स्वरुप (13-01-2014/Monday)
सदा इस स्मृति में बैठो कि मैं
पूज्य आत्मा इस शरीर रूपी मन्दिर में विराजमान हूँ फिर अपने
पूर्वज पन की पोजीशन में स्थित हो संकल्प द्वारा पांच विकारों
को ऑर्डर करो कि आधाकल्प के लिए विदाई ले जाओ । हे प्रकृति तुम
सतोप्रधान सुखदाई बन जाओ ।
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12.01.2014 |
बारहवाँ स्वरुप
(12-01-2014/Sunday)
प्रकृति वा आत्माओं के
तमोगुण को परिवर्तन करने के लिए अपने पूज्य व पूर्वज स्वरूप की
स्मृति में स्थित रह पवित्रता की किरणें फैलाओ । मैं पवित्रता
का अवतार, मास्टर शान्तिदाता, शक्ति दाता हूँ, इस स्मृति से
सबको वायब्रेशन दो ।
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11.01.2014 |
ग्यारवाँ स्वरुप (11-01-2014/Saturday)
अपने
पूर्वजपन की स्मृति से अपनी जिम्मेवारी समझ सभी आत्माओ की
शान्ति की शक्ति से पालना करो ।
अशान्ति के वायुमण्डल मे आत्माओ को शान्ति का दान दो । अपनी
वृत्ति द्वारा, मन्सा
शक्ति द्वारा विशेष सेवा करो ।
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10.01.2014 |
दसवाँ
स्वरुप
(10-01-2014/Friday) अपने पूज्य स्वरूप
में स्थित हो, अपने पुकारते हुए भक्तों को सन्तुष्टता का वरदान दो ।
असन्तुष्ट आत्माओं को सुख शान्ति पवित्रता वा ज्ञान की अंचली दो ।
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09.01.2014 |
नवाँ
स्वरुप जैसे शरीर को बिठाने के लिए
स्थूल स्थान देते हो, ऐसे अच्छी स्थितियों के अनुभव में मन-बुद्धि
को स्थित कर दो ।
मैं परम पवित्र पूज्य आत्मा हूँ, इस स्वमान में स्थित हो पवित्रता
की किरणें वायुमण्डल में फैलाओ ।
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08.01.2014
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आठवाँ
स्वरुप अपने पूर्वजपन की स्मृति में स्थित हो दुःख दर्द भरे संसार का समाचार सुनते
हुए अपनी एकाग्र बुद्धि से अशान्त, दुःखी आत्माओं को सुख शान्ति के
वायब्रेशन्स दो । अशान्त आत्माऐं अनुभव करें कि सुख शान्ति की किरणें कहीं
से आ रही हैं ।
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07.01.2014
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सातवाँ
स्वरुप
शुभ भावना
अर्थात् शक्तिशाली रहमदिली के संकल्प, रहमदिल स्वरूप में स्थित हो, मन और
बुद्धि को सेकेण्ड में एकाग्र कर एक के अन्त में चले जाओ और सर्व आत्माओं
को शान्ति की सकाश दो ।
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06.01.2014
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छठा स्वरुप
शुद्ध संकल्प की शक्ति द्वारा लाइट हाउस व
सर्चलाइट बनकर विश्व की सेवा करो । बेहद की तरफ दृष्टि और वृत्ति रख विश्व
की आत्माओं तरफ़ अपने पावरफुल वायब्रेशन्स पहुंचाओ ।
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05.01.2014
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पाँचवाँ
स्वरुप
अपनी मनसा शक्ति द्वारा शुभ
भावनाओं की दुआयें सर्व आत्माओं को दो जिससे उनके जीवन की छोटी मोटी
समस्यायें समाप्त हो जाएं । हर आत्मा के प्रति
हर समय दुआयें निकलती रहें ।
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04.01.2014
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चौथा
स्वरुप
अपने अनादि आदि संस्कारों को स्वरूप में लाते हुए हर आत्मा के प्रति स्नेह
भरे शुभ भावना सम्पन्न संकल्प करो कि हर एक अपने अनादि आदि संस्कारों को
पहचाने, अपना खोया हुआ जन्म सिद्ध अधिकार लेकर सदा संन्तुष्टमणि बने
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03.01.2014
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तीसरा
स्वरुप
हद की कामनाओं से मुक्त बन संतुष्टता की विधि से अपने चेहरे द्वारा सदा प्रसन्नता की झलक दिखाओ | अपने मन से, दिल से, सर्व से, बाप से और ड्रामा से सदा संतुष्ट रह संकल्प करो हर आत्मा सदा संतुष्ट रहे, तन और मन द्वारा प्रसन्नता की लहर फैलाओ
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02.01.2014
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दूसरा
स्वरुप
अपने असली सतोप्रधान संस्कारों को वा ईश्वरीय संस्कारों को स्मृति में रख
संकल्प करो कि हर आत्मा अपने निजी पवित्र स्वरूप को वा सर्वशक्तिवान बाप को
पहचानकर डबल
अहिंसक बने ।
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01.01.2014
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पहला स्वरुप
साइलेन्स की
शक्ति का विशेष यन्त्र है
''शुभ संकल्प वा शुभचिंतक वृत्ति''
। इसी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा शुभ भावना सम्पन्न संकल्प करो कि हर
आत्मा का कल्याण हो । हर आत्मा अपने स्वधर्म अथवा स्वरूप को पहचाने
। सर्व आत्माओं की जन्म-जन्म
की आश पूरी हो ।
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