दादी प्रकाशमणि जी की अनमोल प्रेरणायें:- (स्मृति दिवस पर विशेष)


  1. ईश्वरीय नियम और मर्यादायें हमारे जीवन का सच्चा श्रंगार हैं, इन्हें अपने जीवन में धारण कर सदा उन्नति करते रहना।

  2. सदा यही नशा रखो कि हम भगवान के नयनों के नूर हैं, भगवान के नयनों में छिपकर रहो तो माया के आंधी तूफान स्थिति को हिला नहीं सकेंगे।

  3. हम सबका दिलबर और रहबर एक बाबा है उससे ही दिल की लेन-देन करना, कभी किसी देहधारी को दोस्त बनाकर उसके साथ व्यर्थ-चिंतन और पराचिंतन नहीं करना।

  4. चेहरे पर कभी उदासी, घृणा वा नफरत के चिन्ह न आयें। सदा खुश रहो और खुशी बांटते चलो। अपने सेन्टर का वातावरण ऐसा खुशनसीबी का बनाओ जो हरेक को खुशनसीब बना दे।

  5. जितना अन्तर्मुखी बन मुख और मन का मौन धारण करेंगे उतना स्थान का वायुमण्डल लाइट माइट सम्पन्न बनेगा और आने वालों पर उसका प्रभाव पड़ेगा, यही सूक्ष्म सकाश देने की सेवा है।

  6. कोई भी कारण वश मेरे तेरे में आकर आपसी मतभेद में नहीं आना। आपसी मनमुटाव यही सेवाओं में सबसे बड़ा विघ्न है, इस विघ्न से अब मुक्त बनो और बनाओ।

  7. एक दो के विचारों को सम्मान देकर हर एक की बात पहले सुनो फिर निर्णय करो तो दो मतें नहीं होंगी। हर एक छोटे बड़े को रिसपेक्ट जरूर दो।

  8. अब बाबा के सभी बच्चे सन्तुष्टता की ऐसी खान बनो जो आपको देखकर हर एक सन्तुष्ट हो जाए। सदा सन्तुष्ट रहो और दूसरों को भी सन्तुष्ट करो।

  9. चार मन्त्र सदा याद रखना -
    एक कभी अलबेला नहीं बनना, सदा अलर्ट रहना।
    दूसरा - किसी से भी घृणा नहीं करना सबके प्रति शुभ भावना रखना।
    तीसरा - किसी से भी ईर्ष्या (रीस) नहीं करना, उन्नति की रेस करना।
    चौथा - कभी किसी भी व्यक्ति
    , वस्तु वा वैभव पर प्रभावित नहीं होना, सदा एक बाबा के ही प्रभाव में रहना।

  10. हम सब रॉयल बाप के रॉयल बच्चे हैं, सदा स्वयं में रायल्टी और पवित्रता के संस्कार भरना, गुलामी के संस्कारों से मुक्त रहना। सत्यता को कभी नहीं छोड़ना।