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मैं एक ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हूँ जिसको बाबा ने संसार में भेजा हैं, कि जाओं संसार में सुख शांति का साम्राज्य स्थापित करो। तो याद करेंगे, “मैंने अवतार लिया हैं बाबा के साथ संसार में शांति स्थापन करने के लिए। “इसको अपने अंतरमन में बहुत अच्छी तरह समा ले। "जब मैं आई हूँ शांति की स्थापना के लिए तो मेरा मन अशांत कैसे हो सकता हैं..! किसी भी मनुष्य के बोल मुझें कैसे अशांत कर सकते हैं..! संसार की कोई भी अशांति मुझ पर कैसे प्रभाव डाल सकती हैं..! "

तो इससे बहुत फ़ायदा होगा। हमारे अंदर शांति की शक्ति समा जायेगी और हम किसी भी परिस्थिति में अपनी शांति को नष्ट नहीं होने देंगे। सुख-शांति से संपन्न जीवन ही एक ज्ञानी आत्मा का वास्तव में सच्चा लक्षण हैं। यदि ज्ञानी बन कर भी चित्त शांत न हुआ, यदि यह जानने के बाद कि मैं आत्मा शांत स्वरुप हूँ, किसी ने अपने चित्त को शांत न किया तो सत्य ज्ञान लेने का लाभ ही क्या हुआ..! बाबा अभी आया हैं इस धरा पर शांति की स्थापना के लिए हैं। हम जितना अपने चित्त को शांत करेंगे, हमे संसार में शांति स्थापन करने में बहुत मदद मिलेगी।

बाबा ने हमे शांत रहने का संपूर्ण ज्ञान दिया हैं और यह हर मनुष्य के अपने हाथ में हैं। केवल अपने चित्त को शांत रखे। यदि किसी ने अपनी शांति दूसरो के हाथ में दे दी हो, यदि किसी की शांति परिस्थितियों के वश नष्ट हो जाती हो, यदि कोई चाहता हो में अकेला रहूँ, कोई मुझे कुछ कहे नहीं क्योंकि मेरी शांति समाप्त हो जाती हैं तो उसके पास तो शांति की शक्ति हैं ही नहीं..! जिस मनुष्य के पास शांति की शक्ति होगी वो तो यह कहेगा कि संसार में कोई ऐसी बात नहीं, कोई ऐसा मनुष्य नहीं जो मेरी शांति को नष्ट कर सके, चाहे कितनी भी परिस्थिति आ जाये, चाहे कोई भी मुझे कुछ भी बोल दे, चाहे किसी का व्यवहार कैसा भी हो, मेरी शांति तो शांति ही रहेगी।

मेरा सुख कोई छिन नहीं सकता क्योंकि मुझें स्वयं भगवान ने सुख प्रदान किया हैं। शांति भी मुझें शांति के सागर से मिली हैं, मेरी शांति ऐसी कमजोर नहीं हैं जिसे कोई भी समाप्त कर डाले..! मेरी शांति तो मेरी शक्ति हैं।

तो आज सारा दिन हम लक्ष्य रखेंगे यह अभ्यास करने का। हर घंटे में दो बार, “मैं आत्मा हूँ, शांत स्वरुप हूँ, शांति मेरा स्वभाव हैं। “इसे स्वीकार करेंगे बहुत अच्छी तरह कि शांति मेरी नेचर हैं। बार-बार जब अशरीरी होने का अभ्यास करेंगे तो डीप(deep) साइलेन्स (शांति) की गहरी अनुभूति होती रहेगी और इससे सभी संकल्प इस अशरीरी अवस्था में समा जाएंगे और हम अपने को सारा दिन व्यर्थ से मुक्त और निर्संकल्प महसूस करेंगे।

याद रखेंगे, जिसका चित्त जितना ज्यादा शांत होता हैं, जिसका मन जितना ज्यादा निर्संकल्प होता हैं, उससे उतने ही पावरफ़ुल वाइब्रेशन सारे संसार में फ़ैलते हैं। और वह संसार का कल्याण करता हैं। साथ-साथ हम कल्पवृक्ष की जड़ो में बैठ कर बाबा से शांति की किरणे ले कर इस संसार में भी फैलायेंगे। पूरे कल्पवृक्ष में भी फ़ैलायेंगे, क्योंकि हम पूर्वज हैं।

तो आज कम से कम पाँच बार कल्पवृक्ष की जड़ो में बैठ कर पूरे कल्पवृक्ष को शांति का दान देंगे और हर घंटे में दो बार अशरीरी होने का अभ्यास करेंगे और स्वयं को शांति की शक्ति से संपन्न करेंगे ताकि संसार में पुन: शांति स्थापित हो सके और संसार में अनेक तड़पती हुई आत्माओ के चित्त शांत हो सके।

ओम शांति



 

2

ब्रह्मा बाबा सदा अचल-अडोल स्थिति में रहे और उनकी अचल अडोल स्थिति का एक आधार था, सत्यता की शक्ति। बाबा ने हमे सत्य ज्ञान दिया हैं, हमारे सत्य स्वरुप की पहचान दी हैं, बाप के सत्य स्वरुप का संपूर्ण ज्ञान दे दिया हैं, ड्रामा का, सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का, तीनो लोको के बारे में सब कुछ सत्य बता दिया हैं। इस सत्य की शक्ति हमारे पास होनी चाहिए। सत्य की शक्ति का अर्थ केवल सच बोलने की शक्ति नहीं, सच बोलने वाले तो कभी-कभी परेशान और निराश भी होते हैं, अपने को असफ़ल पाते हैं। लेकिन, जो अपने सत्य स्वरुप में स्थित हैं, जो बाबा के सत्य स्वरुप पर स्थिर हैं उनमे सत्यता की शक्ति आ जाती हैं और इसी सत्यता की शक्ति के आधार से हम अचल अडोल रह सकते हैं। बाबा का महावाक्य कभी ना भूले, “सत्य के सूर्य को असत्य के काले बादल ढक नहीं सकते। “असत्य के काले बादल बिखरेंगे और सत्य का सूर्य प्रगट होगा। सत्य में शक्ति हैं स्वत: सिद्ध होने की, उसे सिद्ध करने की भी जरुरत नहीं हैं। संगठनो में कभी-कभी यह समस्या आती हैं कि कई लोग मिलकर ईर्ष्यावश या किसी और कारण से स्वार्थवश किसी के बारे में गलत प्रचार कर देते हैं और सुननेवाला परेशान हो जाता हैं कि यह लोग मेरी छबी को नष्ट कर रहे हैं, लोग मेरे बारे क्या सोचेंगे..? मुझें बदनाम कर रहे हैं, मेरा इंप्रेशन खराब हो जाएगा और यह सोच-सोच कर मनुष्य अपनी स्थिति को बिगाड़ लेता हैं। लेकिन, हमे प्रेक्टिस करनी चाहिए, हमे गहन चिंतन करना चाहिए, “यदि मैं सत्य हूँ तो सत्य के सूर्य को असत्य के काले बादल ढक नहीं सकते, यदि मैं अपनी स्थिति में अचल अडोल रहूँ तो उनके वाइब्रेशन्स जल्दी ही समाप्त हो जाएंगे। मेरी अचल अडोल स्थिति को देख कर सुननेवाले समझ जाएंगे, हम वेसे नहीं हैं जैसा लोग प्रचार कर रहे हैं। “इसलिए बहोतो की बातो को सुनकर, उनके गलत कमेंट्स (टिका-टिप्पणी) देख कर हमे अपनी स्थिति को नहीं बिगाड़ देना चाहीये। अगर हम अपनी स्थिति को बिगाड़ देते हैं तो मान लिया जाएगा हम सत्य नहीं हैं। हमारे सत्य होने का प्रुफ़ ही यह होना चाहीये कि हम अचल अडोल रहे, जैसे बाबा रहे। लोगो ने उनके बारे में क्या क्या नहीं कहा, अगर आप सुने तो शायद सुनने को भी तैयार ना हो, आपको क्रोध आने लगे कि बाबा के बारे में लोग ऐसा ऐसा बोलते थे..! लेकिन बाबा के चेहरे पर शिकन नहीं पड़ी। बाबा की स्थिति को कभी बिगड़ते नहीं देखा, बाबा के मुख से कभी यह बोल नहीं निकले कि यह मेरे बारे में ऐसा क्यों बोल रहे हैं..? नहीं, हम सत्य हैं तो हमे सत्य की शक्ति के आधार पर अचल अडोल रहना ही हैं।

तो हम सभी अपने अंदर यह शक्ति को बढाये और याद रखे, जैसे चारो ओर बदबू फ़ैली हो और एक अगरबत्ती की सुगंध उस बदबू को नष्ट कर देती हैं। चाहे आपके बारे में हजारो लोग बुरा प्रचार कर रहे हो, लेकिन आपके श्रेष्ठ संकल्पो कि शक्ति, आपके सत्य स्वरुप में स्थित होने कि शक्ति, आपके शुभ भावनाओ कि शक्ति उन हजारो लोगो के नेगेटिव वाइब्रेशन को समाप्त करने में समर्थ होगी।

तो आज हम सारा दिन अपने सत्य स्वरुप में स्थित रहेंगे, “मैं परम पवित्र आत्मा हूँ, यह हमारा सत्य स्वरुप हैं। मैं सुख स्वरुप हूँ, यह हमारा सत्य स्वरुप हैं। “आज विशेषरुप से इन दो बातो पर चिंतन भी करेंगे और मैं सत्यस्वरुप हूँ, मैं सुखस्वरुप हूँ, तो मुझें सदा सुखी ही रहना हैं। मेरे सुख को छिनने की शक्ति किसी के पास नहीं हैं, मैं परमपवित्र हूँ, तो विकार मुझ पर अटेक नहीं कर सकते। मेरी पवित्रता की शक्ति इन विकारो से बहुत ज्यादा प्रबल हैं। तो अपने आत्मिक स्वरुप में रहेंगे और यह अभ्यास करेंगे कि परमधाम से बाबा की पवित्रता की शक्ति मुझ में निरंतर समा रही हैं, जैसे उसकी शक्तियो की, उसकी पवित्रता की वाइब्रेशन की मुझ पर बरसात हो रही हैं।

ओम शांति



 

3

जीवन एक बहुत सुंदर यात्रा हैं और जैसे जैसे हम इस पर आगे बढते हैं, उंचाइ की ओर चलते हैं, अपनी महान मंज़िल की ओर चलते हैं, तो किसी को थोड़ा बहुत संघर्षो का सामना भी करना पड़्ता हैं। वास्तवमें जीवन में आनेवाले चेलेंजीस (चुनौतीया) मनुष्य को बहुत शक्तिशाली बनाती हैं। पर आवश्यक्ता इस बात की हैं कि हम उन्हें बहुत बड़ा समझकर ना ले। जिस चुनौती को हम छोटा समजेंगे, जिस समस्या को हम छोटा समझेंगे, वह छोटी होकर जल्दी ही समाप्त हो जायेगी। परंतु यदि हम बहुत सेन्सिटिव (संवेदनशील) होकर यह सोचने लगेंगे कि, “कितना बड़ा तूफ़ान आ गया... हाय क्या हो गया... मेरा क्या होगा...मेरी स्थिति कैसे बनेगी..! “तो वह बात बड़ी लगेगी। हम बड़े तूफ़ान आने पर अपनी स्थिति को भी बड़ा बना ले। संघर्ष जीवन में बड़ा हो जायें, हम अपनी शक्तियों को ओर उंचा उठा दे। और इसका तात्पर्य हैं कि हम अपने मास्टर सर्वशक्तिवान के स्वमान को ओर सुद्र्ढ कर ले। ब्रह्मा बाबा को देखो, एक सुंदर कारवाँ को ले कर वह एक मनुष्य चला। छोटे-छोटे बच्चो का एक समूह ले कर वो महान आत्मा आगे बढी़। उसके अपने साथी तो एक-दो ही थे बड़ी उम्र के, बाक़ी सब छोटे थे और वह भी माता और बहनो का संगठन। उसको संभालना कितनी बड़ी चुनौती रही होगी। शुरु से ही उन्हे संघर्षो से गुजरना पड़ा, लोगो के कमेंट (टिका-टिप्पणी) सुनने पड़े। यज्ञ के इस विशाल जहाँज में, इस सुंदर रक्स को हप्प करने के लिए चिड़ीयाए, तूफ़ान भी बहुत आते गए। लेकिन वह थे एक ऐसे महान पुरुष जो एक बल एक भरोसे चलते रहे। जिन्हे सदा यह नशा रहा कि यह कारवाँ प्रभु के डाइरेक्शन में चल रहा हैं, इसके उपर सर्वशक्तिवान की छत्र-छाँया है, जिसने यह यज्ञ रचा हैं वह स्वयं इसकी संभाल करनेवाला हैं। चाहे बैगरी पार्ट आया, उनको सदा यह नशा रहता था कि जिसके यह बच्चे हैं वो इन्हे अवश्य खिलाएगा, इन्हे कभी भूखा नहीं रहने देगा। एक बल एक भरोसे। यह बहुत सुंदर स्थिति हैं। और हमे याद रखना चाहिए कि यदि समस्याए आने पर हम अचल अडोल स्थिति के सिंहासन पर बिराजमान रहते हैं, तो यह भगवानुवाच हैं कि समस्याए यह सिंहासन के नीचे दबकर नष्ट हो जाती हैं। यही कुछ सभी ने देखा, ब्रह्माबाबा के साथ। सचमुच वह इस संसार की सबसे महान और सबसे शक्तिशाली आत्मा थी। हो भी क्यों नहीं..! नेक्स्ट टु गोड जो थे..! सृष्टि के पहले

नंबर की आत्मा जो थी..! इसलिए सारे संसार में इसको ही लोगोने भक्तिमार्ग में भगवान मान लिया था। तो हम सभी अपनी स्थिति को बहुत अचल अडोल बनाये। विचार करें, बाबा के सामने बैगरी पार्ट आ गया, खाने को कुछ नहीं, 380 बच्चे और यज्ञ में पैसा नहीं..! लेकिन सोचो कितनी बड़ी मनोस्थिति होगी उनकी, कितना श्रेष्ठ मनोबल रहा होगा उनका, जो भगवान के भरोसे, जो सर्वशक्तिवान के सहारे सभी की पालना करते रहे। किसीको यह आभास नहीं होने दिया कि कल क्या होगा? हम भी जीवन में आनेवाली परिस्थितियो को बड़ा ना समझकर, वह पार होनेवाली हैं, बाबा हमारे साथ हैं, हमने अपनी जीवन नैया उसके हाथो में सोंपी हैं, वो डगमगा सकती हैं पर डूब नहीं सकती, परिक्षाए हो सकती हैं पर हम भूखे नहीं रहेंगे। बाबा ने कह दिया हैं कि संसार को आग लगेगी और बाबा के बच्चे बिल्ली के बच्चो की तरह सुरक्षित रहेंगे।

लेकिन वह जो बाबा पर संपूर्ण विश्वास रखेंगे, निश्चय रखेंगे। जो उसको अपनी छत्र छाँया बनाकर रखेंगे। तो आज सारा दिन बहुत अच्छी तरह अभ्यास करेंगे। मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ और सर्वशक्तिवान बाबा मेरे सर के उपर छत्रछाँया हैं। बाबा का आह्वान करेंगे कि बाबा परमधाम से नीचे आकर हमारी छत्रछाँया बन जाओ। और फिर विज्युलाइज करेंगे, देखेंगे, सर्वशक्तिवान धीरे धीरे नीचे उतर रहे हैं। इसे देखने का आनंद ले। और धीरे धीरे आकर स्थित हो गये हमारे सिर के ऊपर। बहुत सुंदर अनुभव होंगे। हम दोनो कंबाइंड हो गये। इसका अभ्यास आप जितना करेंगे उतने स्वयं को शक्तिशाली पाएंगे।

ओम शांति



 

4

हमे अपने मन में द्र्ढ संकल्प रखना हैं। चाहे कुछ भी हो जायें, मुझें अपनी स्थिति को नहीं बिगाड़्ना हैं। हमे ब्रह्माबाबा के समान अचल अडोल बनना हैं। देखिए छोटा सा चिंतन करे, जो बाते हमारे सामने आती हैं उनकी वेल्यू कितनी होती हैं ..? और जो हमारी श्रेष्ठ स्थिति हैं उसकी वेल्यू कितनी जबरदस्त हैं। ऐसा समझ सकते हैं हमारे सामने आनेवाली बाते पाँच-दस रुपये की और हमारी स्थिति की वेल्यू करोडो रुपये की हैं। तो क्या पाँच-दस रुपये के कारण हम अपनी करोडो की संपत्ति को नष्ट कर देंगे..! अगर हम ऐसा करते हैं तो क्या हम अपने को समझदार और बुद्धिमान कह सकेंगे..? तो द्रढ संकल्प कर ले, कुछ भी हो जायें, बाते तो आयेगी और जायेगी, माया भी आयेगी और चली जायेगी, विघ्न भी आयेंगे और समाप्त हो जायेंगे परंतु मुझें अपनी श्रेष्ठ स्थिति को खोना नहीं हैं। और यह बहुत सुंदर अनुभव होगा कि जितनी हमारी स्थिति श्रेष्ठ रहेगी, यह परिस्थिति और समस्याए नष्ट हो जायेगी, बदल जायेगी।

बाबा ने पहले ही बता दिया कि जितना तुम आगे बढोगे, माया के पेपर उतने ही ज्यादा आयेंगे। यह आगे बढने का हमारा एक चिन्ह भी हैं और हम इससे अपनी शक्तियो को भी बढाते चले। तो कुछ भी हो जायें, हमे अचल अडोल रहना हैं। यही फ़ॉलो फ़ाधर करने का एक बहुत सुंदर तरीका होगा। हमारी स्थिति पर्वत के चट्टान की तरह शक्तिशाली बन जायें। अगर कोई पर्वत से टकरायेगा तो पर्वत थोड़ा ही टूटेगा..! उसका ही सिर फ़ुटेगा। हम भी इतने शक्तिशाली बन जायें कि बाते आए, हम से टकराये और नष्ट हो कर समाप्त हो जायें, चली जायें, बिलकुल लोप हो जायें सदा के लिए। हमे याद रखना हैं, हम मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, हमे कौन साथ दे रहा हैं..! अपने अंदर संकल्पो की द्रढता को बढाते चले। यह द्रढता बहुत इंपोर्टंट चीज़ हैं। परंतु यदि हमे अपनी स्थिति को ऐसी अचल अडोल और शक्तिशाली बनानी हैं जिस पर कोई भी प्रभाव ना पड़े, तो हमे त्रिकालदर्शी बनना होगा। मैं कभी-कभी श्री कृष्ण की जो कहानीयाँ पढ़ता या सुनता हूँ, तो मैं देखता हूँ कि वह महान पुरुष भिन्न भिन्न परिस्थितियो में मुसकुरा रहा हैं, उसकी स्थिति नहीं बिगड़ रही हैं, वह अचल अडोल हैं क्योंकि वह हर घटना को त्रिकालदर्शी हो कर देखता हैं। उसे पता

हैं, यह जो घटना हो रही हैं इसके बाद भविष्य कैसा होनेवाला हैं। सहजभाव से हर चीज़ ले लेता हैं। तो अपने अंदर इसी तरह साक्षीभाव बढ़ाते चले। हर बात को पोजिटिव (सकारात्मक) लेते चले। किसी भी बात से परेशान होने की जरुरत नहीं हैं। परिवारो में एक व्यक्ति ज्ञान में चलता हैं, दूसरा साथ नहीं देता हैं, आपको कमेंट्स सुनने पड़्ते हैं, आपको दूसरो की बुरी दृष्टि का सामना करना पड़्ता हैं, आपको विरोध का सामना करना पड़्ता हैं। तो अपने स्वमान को जरा उंचा उठा दे, और याद रखेंगे कि जो आत्मायें श्रेष्ठ पोजीशन (स्थिति) में रहती हैं उनका कहीं भी ओपोजीशन (विरोध) नहीं होता। परंतु यदि कभी आपको ऐसा लगता हो कि स्वमान में रहने के बाद भी लोग बुरा बोलते हैं, तो आप अपने स्वमान को ना छोड़े। जब बुरा बोलने वाला अपनी आदत को नहीं छोड़्ता, तो हम अपनी श्रेष्ठ स्थिति को, अपने श्रेष्ठ स्वमान को भला क्यों छोड़े।

तो आज सारा दिन अभ्यास करेंगे घर जाने का और वापस आने का। संकल्प करेंगे, जो कुछ इन आँखो से दिखाई देता हैं, कुछ समय के बाद यह सबकुछ नहीं रहेगा, एक नया संसार हमारे सामने होगा। हमे विनाशकाल को भी देखना हैं और उसके बाद स्वर्णिमयुग में भी प्रवेश कर लेना हैं। तो साक्षीभाव बढ़ाते चले। अभ्यास करेंगे, “मैं आत्मा इस देह को छोड़ कर उड़ान भरती हूँ ऊपर की ओर, अपने घर परमधाम में जाकर बैठ गई। वहाँ की डीप साईलेन्स (गहरी शांति) की, स्वीट साईलेन्स के अनुभव में आने लगी। बहुत स्वीटनेस हैं इस साईलेन्स में। बहुत गहराई हैं इस साईलेन्स में। फिर सूक्ष्मलोक आ जाये।”फिर नीचे अपने देह में प्रवेश कर ले। तीनो लोको में ऐसे रमण करें कि तीनो लोक ही हमारे घर हैं। यह देह भी मेरा घर, सूक्ष्मलोक भी मेरा घर, परमधाम भी मेरा घर। तीनो में रहने का चैन सुख शांति अनुभव करेंगे।

ओम शांति



 

5

हम सभी को अपनी भिन्न भिन्न परिस्थितियो के समय अचल अडोल स्थिति को धारण करना हैं। यह हमारा एक सुंदर लक्ष्य हैं। इसके लिए हमे चाहिए ज्ञान का बल और योग का बल। आत्मा जितनी शक्तिशाली बनेगी योगबल से, हम परिस्थितियो को, समस्याओ को सहज भाव से लेंगे। हमे बहुत अच्छा अपने में कोंफिडन्स (आत्मविश्वास) रहेगा कि यह बाते आई हैं, चली जायेंगी। हम उन्हें सिरियसली (गंभिरता से) लेंगे ही नहीं और यह परिस्थितिया ऐसा अनुभव करायेगी कि इनसे हमारा विवेक ओर जागृत होता हैं, रिफ़ाइन होता हैं, हमारे अनुभव बढ़्ते है। इसलिए जीवन में ऐसा ना हो कि समस्या और परिस्थिति जैसे हमको बेहोश कर दे, हम पे दबाव बना ले, हमारी खुशी को छिन ले जायें, हमारे इश्वरीय नशे को लोप कर दे। और इसके लिए चाहिए ज्ञान चिंतन। इसलिए जो आत्माये रोज़ मुरली का रस लेती हैं और मुरली के सुंदर सुंदर पोइंट्स को अपने जीवन में लाने की प्रेक्टिस करती हैं, उनका चिंतन करती हैं, वह अचल अडोल हो जाती हैं। ज्ञान चिंतन से, ज्ञान एक शक्ति के रुप में हमारे विवेक में समा जाता हैं। अगर ज्ञान का चिंतन नहीं होता तो ज्ञान विस्मृत होता रहता हैं। ज्ञान को हम जीवन में प्रयोग नहीं कर पाते हैं। लेकिन जितना जितना हमारा ज्ञान का चिंतन चलता हैं, मुरलीयों से हम सुंदर बाते नोट कर के अपनी प्रेक्टिस में लाते हैं, उतनी उतनी हमारे जीवन की यात्रा सरल हो जाती हैं। हमे ज्ञान का बल प्राप्त होने लगता हैं और ज्ञान के सब्जेक्ट में बहुत मार्क्स मिलने लगते हैं। तो हम सार दिन बहुत अच्छी इस गुड फ़िलींग में रहेंगे कि हम समस्याओ से अधिक शक्तिशाली हैं। हमारे साथ तो स्वयं भगवान हैं। समस्याए तो आई-गई हैं, आज हैं, कल नहीं होंगी। और जो व्यक्ति भी संसार में आजतक महान बने हैं, उन्हें अनेक बाधाओ को तो पार करना ही पड़ता हैं। देखिए जब कोई व्यक्ति एक नये मार्ग पर कदम रखता हैं, उसे सहन करना पड़्ता हैं, सुनना पड़्ता हैं। वैसे भी यह कलियुग का अंत हैं, असत्यता का युग हैं, कांटो का जंगल हैं। यहाँ सत्य को ज्यादा ही सहन करना पड़्ता हैं, सत्य को ज्यादा ही सुनना पड़्ता हैं। परंतु सत्य में शक्ति होती हैं। सुनने की भी, सहन करने की भी। इसलिए अपने सत्य पर सदा अचल अडोल रहना हैं। दूसरो की ऐसी वैसी बाते सुनकर अपने सत्य स्वरुप को भूल नहीं जाना हैं। अपने में विश्वास को कम नहीं कर देना हैं। बहुत आत्माओ

के साथ यह हो जाता हैं कि दूसरो की बाते सुनकर, माया से थोड़ी बहुत हार खाकर मनुष्य अपनी शक्ति को भूल जाता हैं, निराशा के अंधकार में चला जाता हैं। परंतु हमे माया को भी जीतना हैं क्योंकि माया को जीत प्राप्त करानेवाला सर्वशक्तिवान भी हमारे साथ हैं। सोच ले, वह आया ही हैं हमे विजय बनाने। केवल हमारे अंदर यदि विजय होने का संकल्प होगा तो विजय हमारी ही होगी। जब भगवान स्वयं इस धरा पर आत्माओ को पावन बनाने आया हो तो बस केवल इतनीसी बात हैं कि स्वयं में पावन बनने की इच्छा हो। उसके हम पोइंट्स ढूँढ़ ले, मार्ग ढूँढ़ ले तो हमारी विजय भी होगी, हम पावन भी बनेंगे और हमारा आत्मविश्वास भी बहुत अधिक बढ़्ता जायेगा।

तो अचल अडोल होकर हम अभ्यास करेंगे अपने पाँचो स्वरुपो का। हम देव स्वरुप में थे, उसे अपने सामने लाकर अपने को यह गुड फ़िलींग देंगे कि मैं यह थी, मैं यह था। यह हैं मेरा असली स्वरूप। पूज्य स्वरूप, हमारे जिस स्वरूपो में मंदिरो में पूजा हो रही हैं। उस स्वरूप को सामने लायेंगे और मैं आपको याद दिलाऊ, हम अपने विश्णु स्वरूप को सामने लायेंगे, विश्णुजी शेष शय्या पर विराजमान हैं। साँपो ने शय्या बना दी हैं, छत्र छाँया बना दी हैं, अचल अडोल स्थिति हैं, सागर में तूफ़ान हैं, लहरे हैं। लेकिन विश्णुजी मग्न, अचल अडोल स्थित हैं अपनी शेष शय्या पर। तो यह हम सब की यादगार हैं। इसको आज सामने रखते हुए अपने पूज्य स्वरुप को याद करेंगे। अपने फ़रिश्ते स्वरुप को, ब्राह्मण स्वरुप को, पाँचो स्वरुपो को एक बार घंटे में अवश्य याद करेंगे। सबेरे श्याम 5-5 बार याद करेंगे।

ओम शांति



 

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हमे बाप समान बनना हैं। ब्रह्मा बाबा को फ़ाँलो करना हैं और शिवबाबा के समान निराकार बनना हैं। ब्रह्मा समान निर्विकारी, निर्हंकारी, कल्याणकारी, शुभ भावनाओ से भरपूर संपूर्ण पवित्र बनना हैं। तो बाबा ने जिस तरह जीवन में समर्पणभाव अपनाया, उसी तरह हमे भी समर्पणभाव अपनाना हैं। इसमे कंफ़्युज (उलझने की) होने की जरुरत नहीं कि हम सबकुछ कैसे छोड़ दे अपना... समर्पणभाव... सबकुछ तेरा... मन में जो मेंरापन हैं, जो पदार्थो में आसक्ति हैं, जो यह फ़िलींग हैं कि सबकुछ मेरा हैं। बच्चे भी मेरे, धन भी मेरा, मकान भी मेरा, बिजनेस भी मेरा। इससे अपनी बुद्धि को निकालकर, सबकुछ तेरा... ऐसी गुड फ़िलींग कर देनी हैं। इसमे एक बहुत अच्छा अभ्यास आज सारा दिन करेंगे, "मेरा हर कर्म तेरे लिए, मेरा संपूर्ण जीवन तुम्हारे लिए, मैं हर कर्म भी तुम्हारे लिए करुंगा/करुंगी, मेरा हर संकल्प भी तुम्हारे लिए होगा। “सबसे सूक्ष्म समर्पणता तो मन-बुद्धि की समर्पणता हैं, अपनी भावनाओ की समर्पणता हैं, हमारा प्यार भी बाबा के लिए संपूर्ण रूप से समर्पित। हमारा संपूर्ण आकर्षण एक में। जो कुछ हमे लेना हैं वह उस एक से ही लेना हैं। तो मेरा हर संकल्प वही हो जो बाबा को प्रिय हैं। ऐसा सोचे कि मुझें हर संकल्प और बोल ऐसा करना हैं अपना जीसे बाबा स्वीकार करें, जिसका भोग बाबा को लगाया जा सके। जीसे सुनकर, जीसे देखकर भगवान प्रसन्न हो जायें। यह हैं मन की समर्पणता। और इसको अगर सहजभाव से करना हैं तो हमे बोल वही बोलने हैं जो बाबा की आज्ञा हैं। हमे संकल्प वही करने हैं जो बाबा की इच्छा हैं। तो तन को भी समर्पित करेंगे, मन को भी समर्पित करेंगे, बुद्धि को भी समर्पित करेंगे, देह के संबंधो को भी समर्पित करेंगे, अपने कर्म को भी समर्पित करेंगे और कर्म के परिणाम को भी समर्पित करेंगे। यह बहुत सूक्ष्म और सुंदर बात हैं कि कर्म हमने किया उसका परिणाम चाहे कैसा भी निकला हो, हमारी इच्छा के अनुकुल या प्रतिकुल, हमारी आशाओ से अनुकुल या प्रतिकुल। जो भी परिणाम निकला उसे भी बाबा को अर्पित कर के अपने को निर्संकल्प कर देना चाहिए। मान लो हमारी प्रशंशा हुई, वह भी बाबा को अर्पित। हमारी ग्लानि हो गई, वह भी बाबा को अर्पित। हमे बहुत सफ़लता मिली वो भी प्रभु अर्पण। हमे सफ़लता ना मिली वो भी प्रभु के हवाले। इससे हम बहुत निश्चिंत रहेंगे और कर्मो के परिणाम के प्रभाव से आत्मा मुक्त हो जायेगी। यह निर्लिप्त अवस्था हैं। जो बहुत सुंदर स्थिति हैं आध्यात्म की। इसकी हमे बहुत अच्छी प्रेक्टिस करते चलना हैं।

तो आज सारा दिन, मेरा हर कर्म तुम्हारे लिए हैं, यह संकल्प... दूसरा, मेरा यह तन तुमको अर्पण। देखो, जैसे बापदादा हमारे सामने खड़े हैं और हम अपना तन बाबा को दे रहे हैं। तो बच गई, मैं चमकती हुई आत्मा। और फ़िर अभ्यास करें, तन बाबा को दे कर मैं आत्मा उड़ चली अपने प्राणेश्वर के पास, और पहुँच गई परमधाम में, उसको टच कर दिया। उसकी संपूर्ण शक्ति मुझ में समाने लगी। उसकी शक्तियो को स्वयं मैं भरकर मैं आत्मा पुन: आ गई नीचे, यह देह हैं मेरा जो मैंने बाबा को दे दिया था। फ़िर से मैंने इसमे प्रवेश कर लिआ, अब यह देह बाबा ने मुझें वापिस दिया हैं कि, "लो बच्चे, इसमे प्रवेश करके तुम विश्व कल्याण का कार्य करो। इस संसार में निर्लिप्तभाव से विचरण करो।”फिर मैं आत्मा यह देह बाबा को दे कर चली परमधाम, स्वयं में उसकी शक्तिया भरकर नीचे वापिस आ गई। यह ड्रिल करेंगे और बहुत सुंदर आज इसको एंजोय करेंगे।

ओम शांति...



 

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18 जनवरी विशेष...

आज 18 जनवरी का दिवस हैं, यह दिवस वरदानी दिवस होता हैं। आज सवेरे ही जो चाहे वह वरदान बाबा से ले ले। याद रखे, वरदान बहुत बड़ी चीज़ हैं। वरदान में शक्ति हैं आग को भी पानी में बदलने की। अर्थात आग जैसी कोई समस्या हो, भयानक समस्या हो, उसको शीतल, उसको सरल किया जा सकता हैं वरदान की शक्ति से। मान लो किसी के पास विघ्न विनाशक का वरदान हैं, वह संकल्प से इस वरदान को स्मृति में रखकर अपने विघ्नो को नष्ट कर सकते हैं, दूसरो के विघ्नो को भी नष्ट कर सकते हैं। दूसरी बात, वरदानो को धारण करने की शक्ति उसकी ही बुद्धि में आती हैं जो लंबा काल इश्वरीय नशे में रहते हैं, इश्वरीय नशे से आप भलीभाति परिचित हैं। "कौन मुझें पढ़ाता हैं, स्वयं भगवान मुझें पढ़ाने के लिए आया हैं..! मैं गोडली स्टुडेंट हूँ..! मैं भगवान का अधिकारी बच्चा हूँ... मैं स्वराज्य अधिकारी हूँ..! “यह सब इश्वरीय नशे हैं। इश्वरीय नशे में रहने से बुद्धि में वह सामर्थ्य आ जायेगा कि जो वरदान बाबा हमे देंगे वह हमारी बुद्धि में सदा के लिए धारण हो जायेगा। तो आज सवेरे उठकर बाबा से कोई एक, दो, तीन वरदान लें ले। और उसको फ़लिभूत करने का यह सुंदर तरीका रहेगा कि आज सारा दिन उसे कम से कम दस बार उसी स्वरुप में याद करेंगे, उसकी स्मृति में भी आयेंगे और उसके नशे में भी रहेंगे, उसे स्वीकार भी करेंगे कि मुझें आज बाबा से यह वरदान मिल गया हैं सदा के लिए, मैं इस वरदान से संपन्न हो गई हूँ/हो गया हूँ। और उस वरदान को सदा के लिए अपने अंदर समाने के लिए सारा दिन मौन अभ्यास में रहते हूए अच्छे चिंतन में रहेंगे। वैसे भी यह दिन प्रभुप्रेम में मग्न होने का दिन होता हैं। ब्रह्मा बाबा की महान विशेषताओ को स्मृति में लाने का दिन होता हैं। सारा दिन याद करते रहे, “बाबा ने मेरे उपर क्या क्या उपकार किये। “उसके उपकारो को याद करेंगे तो उसके प्रेम में लंबे काल के लिए मग्न हो जायेंगे। तो सवेरे ही, चाहे आँख खुलते ही, चाहे किसी भी समय, चाहे 6 बजे तक यह अभ्यास करेंगे, “मैं फ़रिश्ते की गोल्डन ड्रेस पहनकर सूक्ष्मलोक में चला गया। बापदादा के सामने, बाबा मुझें द्रष्टि दे रहे हैं। बहुत अच्छी तरह द्रष्टि लेंगे... बाबा ने वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख दिया है... मस्तक पर तिलक लगाया और वरदान दिया... बच्चे, विजय भव... (कोई भी एक या दो, तीन वरदान चुने) सफ़लतामूर्त भव... निर्विघ्न भव... विघ्नविनाशक भव... मायाजीत भव... श्रेष्ठ योगी भव... स्थिर बुद्धि भव... संपूर्ण पवित्र भव... सदा खुशनसीब भव... भाग्यवान आत्मा भव... सदा सुखी भव... “ऐसे कोई भी वरदान चुन ले। उसकी गहराई में चले जाये जैसे उसको समा ले अपने अंदर में। फिर देखे बाबा द्रष्टि दे रहे हैं। जैसे की उस वरदान को अंदर में भर रहे हैं, समा रहे हैं।

तो आज का दिन इश्वरीय वरदान में, इश्वरीय प्रेम में मग्न होने में, उसके साथ रहने में व्यतित करें। ब्रह्मा बाबा की कोई एक विशेषता अपने अंदर संपूर्ण रुप से लाने का संपूर्ण प्रयास करें। उसमे भी संपूर्ण निर्हंकारी, मैं-पन से संपूर्ण त्यागी, मैं-पन से संपूर्ण समर्पण। अगर यह धारणा आज के दिन अपना लेंगे तो बहुत ही अच्छा रहेगा। इससे चित्त निर्मल हो जाता हैं। क्योंकि अहम ही अनेक बुराइयो की, अनेक झगड़ो की जड होती हैं। तो शाम को अव्यक्त बापदादा से मिलने से पहले उनसे वरदान ले। और जब बाबा आये, फिर वरदान ले उसकी द्रष्टि लेते हुए। उस वरदान पर स्टेंप लगवा दे।

ओम शांति



 

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हम सभी को ब्रह्मा बाप समान संपूर्ण स्थिति को प्राप्त करना हैं। हमारा अगर उनसे सच्चा प्यार हैं तो हमे उन्हे फ़ाँलो करना हैं। जैसे उन्होने शिवबाबा से बहुत प्यार लिया और सबको बहुत प्यार दिया। वैसे ही हमे भी शिवबाबा से बहुत प्यार लेना हैं और संसार की आत्माओ को बहुत देना हैं। प्यार लेने के लिए हमे देह से न्यारा होना होगा। जो देह से न्यारे अशरीरी आत्मा बन जाते हैं उन पर ही प्रभु प्यार बरसता हैं। वही परमात्मा के प्यारे होते हैं। वही उसे बहुत प्रिय लगते हैं और वही संसार को भी बहुत प्रिय लगते हैं। हमे सबको प्यार भी बांटना हैं। इस संसार में प्रत्येक आत्मा प्यार की बहुत प्यासी हैं, क्योंकि कहीं भी सच्चा प्यार नहीं रहा हैं। प्यार में वासना समा गई हैं, प्यार में स्वार्थ समा गया हैं, प्यार में लोगो को धोखा मिल रहा हैं, विश्वास समाप्त होता जाता हैं। इसलिए वासनात्मक प्यार में फ़सकर कई युवक डिप्रेशन का शिकार होते जा रहे हैं। हमे सबका ध्यान परमात्म प्यार की ओर खिंचवाना हैं कि अगर तुम्हें सच्चा प्यार चाहिए तो वह केवल एक जगह से ही मिलेगा और वह हैं तुम्हारे परमपिता। उनको पहचानो, उनसे अपना नाता जोडो, कोई संबंध उनसे जोड लो, उन्हें अपना प्रियतम बना लो या उन्हें अपना खुदादोस्त बना लो और उनके प्यार में मग्न हो जाओ तो उनसे सच्चा प्यार तुम्हें मिलेगा। जितना प्यार तुम देहधारीयो को करते हो, जितनी प्यार की कामना तुम देहधारीयो से करते हो, उतना प्यार अगर अपने परमपिता को करो तो संसार में और किसी के प्यार की कामना ही नहीं रहेगी। प्यार का सागर तुम्हें इतना प्यार देगा कि संसार को बांट सको। तुम्हारे प्रेम के खजाने सदा सदा के लिए भरपुर हो जायेंगे। तो हमे फ़ाँलो फ़ाधर करना हैं। सोचो, हम ही तो बाबा को जानते हैं, कितना बड़ा भाग्य हैं हमारा कि हम ब्रह्माबाबा की पालना में भी पल रहे हैं और शिवबाबा की पालना में भी पल रहे हैं..! और दोनो के ही हम कितने समीप आ गये हैं। क्या कभी हमने सोचा था कि भगवान इस तरह हमे प्यार करेगा, हमारी पालना करेगा, हमे बैठकर पढ़ायेगा, हमारी निरंतर मदद करेगा, हमारे सिर पर प्यार भरा हाथ घूमायेगा, भगवान का प्यार मिलेगा हमे, वह हमारा सच्चा मातपिता बन जायेगा और प्यार से हमे बहुत पालना देगा..! हमने तो कभी कल्पना ही नहीं की थी। हम तो केवल यह चाहते थे, क्षणभर के लिए उनके दर्शन हो जाये। पर हो क्या गया..! वह तो हमारा हो गया, हम उसके परिवार के बहुत समीप सदस्य बन गये।

तो आज सारा दिन हम स्वयं को इस देह से न्यारा करने का अभ्यास करेंगे। गुड फ़िलिंग देंगे बार-बार। यह देह अलग और में आत्मा अलग। अपने स्वरुप को देखेंगे। कभी अभ्यास करेंगे, "मैंने इस तन में प्रवेश किया हैं... मैं अवतार हूँ। मैं आत्मा इस देह में अवतरित हुई हूँ। जैसे शिवबाबा ब्रह्मा के तन में अवतरित होते थे, जैसे बापदादा गुलझार दादी के तन में अवतरित होते हैं। मैं इस तन में अवतरित हुई हूँ, विश्वकल्याण के लिए।”तो देह से न्यारापन अनुभव करना हैं। यह न्यारापन हमारे चित्त को बहुत शांत करेगी। हमारे ब्रेन को भी बहुत डिवाइन कर देगी। और साथ साथ हम सूक्ष्मलोक में जाकर यह भी अनुभव करेंगे, “बाबा का प्यारभरा हाथ मेरे सिर पर हैं, वह सिर पर प्यार से हाथ घुमा रहा हैं, अपना प्यार मुझ पर बरसा रहे हैं, प्यार भरी द्रष्टि भी दे रहे हैं”यह दोनो अभ्यास आज सारा दिन करते रहेंगे और परमात्म प्यार में मग्न रहेंगे।

ओम शांति...



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हमे बाप समान संपूर्ण निर्विकारी बनना हैं। अपने चित्त को शांत, निर्मल, प्रेम और शुभ भावनाओ से भरपूर करना हैं। पवित्र तो अनेक आत्माये बन गये, पर पवित्रता का बल थोड़ो के अंदर ही रहता हैं। पवित्र बनना अलग बात, निर्विकारी बनना अलग बात, और पवित्रता का बल अपने में बढ़ाना यह महत्वपूर्ण बात हैं। पवित्रता ब्रह्मचर्य से शुरु होती हैं, निर्विकारी हम तब बन जाते हैं जब सभी विकारो को अंश और वंश सहित नष्ट कर देते हैं। लेकिन पवित्रता का बल किसमे आता हैं..? वास्तव में जो सभी व्यर्थ संकल्पो से भी मुक्त हो जाते हैं। मान लो कोई व्यक्ति अपनी पवित्रता में बहुत ही स्ट्रोंग हो, बिलकुल जब से वह बाबा का बना, उसने अपनी पवित्रता को बहुत अच्छी तरह कायम रखा हैं। लेकिन उसके अंदर व्यर्थ संकल्प बहुत हो, परचिंतन बहुत हो, परदर्शन बहुत हो, ईर्ष्या-द्वेष बहुत हो, उसके बोल अच्छे ना हो, तो उसकी पवित्रता की शक्ति साथ-साथ नष्ट होती रहती हैं। उसके चेहरे पर पवित्रता का तेज, पवित्रता का बल, पवित्रता की दिव्यता कभी नहीं आती। ऐसा बहुतो के साथ हो रहा हैं। जिनकी पवित्रता तो अच्छी हैं और शायद वह सोचते हो हमारी पवित्रता के कारण हम बहुत आगे हैं। परंतु जिसकी पवित्रता बहुत अच्छी होगी, यह सब चीज़े नहीं होगी, उसकी सेवा बहुत तेजी से आगे बढ़ेगी, देवकुल की आत्माये खिंच खिंच कर उनके पास आती रहेगी। उनके स्थान पर बहुत जबरदस्त रुहानी आकर्षण होगा। तो हम ध्यान दे इस बात पर कि पवित्रता धारण करने के साथ कहीं हम परचिंतन या व्यर्थ चिंतन के रोग से पीड़ित तो नहीं हैं। कई लोग बैठे बैठे यूंही सोचते रहते हैं। यदि उनसे पूछा जाये कि तुम क्या सोच रहे हो? तो उन्हें यह भी पता नहीं होता वह क्या सोच रहे हैं..! पर सोच सोच कर वह अपने चेहरे की दिव्यता, उसकी शालिनता को नष्ट किए रहते हैं। ऐसे कई लोग देखने में आते हैं जो बिना मतलब ही बहुत परेशान रहते हैं। उनसे यदि पूछा जाये कि तुम परेशान क्यों हो? तो वह कहते हैं कि हमे भी नहीं पता, पर हमे खुशी नहीं रहती हैं। तो पवित्रता जहाँ हैं वहाँ संपूर्ण सुख, शांति, संतोष और प्रेम, खुशी दिखाई देनी चाहिए। अन्यथा समझ लेना चाहिए कि हमारे पास पवित्रता का बल बहुत कम हैं। हम सभी को अपनी पवित्रता की शक्ति से शुद्ध वाइब्रेशन फैलाकर वायुमंडल को भी पवित्र करना हैं और प्रकृति में भी पुन: उसकी खोई हुई शक्ति को भर देना हैं ताकि प्रकृति जन्म जन्म के लिए हमारी पालना कर सके। उसने 5000 साल हमारी पालना कि हैं। जो कुछ उसके पास था वह सब हमे दे दिया, हमारी पालना में लगा दिया और अब खाली हो चुकी हैं। तो आज सारा दिन हम प्रकृति को भी योगदान करेंगे। दो स्वमान अपने पास रखेंगे, “मैं पवित्रता का फ़रिश्ता हूँ, और प्रकृति का मालिक हूँ”बाबा से पवित्र किरणे मुझ पर पड़ रही हैं और मुझसे चारो ओर फैल रही हैं। संपूर्ण प्रकृति उन्हें ग्रहण कर रही हैं। हमे याद रहे पवित्र आत्मा, योगयुक्त आत्मा जीधर चलती हैं, उसके नैन जिस पर पड़ते हैं, उसकी द्रष्टि जिस पर पड़ती हैं उनको पवित्र वाइब्रेशन मिलते हैं। उनके पैर जहाँ छू लेते हैं वहाँ पवित्र वाइब्रेशन समा जाते हैं, उनके हाथ जहाँ लग जाते हैं हाथो से भी पवित्र वाइब्रेशन निकलकर उन वस्तुओ में, सब्ज़ीओ में, पानी में, वस्त्रो में समाने लगती हैं। उनकी भावनाये चारो ओर के वायुमंडल को परिवर्तित करती हैं।

तो आज का यह बहुत सुंदर अभ्यास रहेगा कि हम प्रकृति को निरंतर पवित्र वाइब्रेशन्स देते रहे, तो हम बाबा के बहुत ही ज्यादा सहयोगी संतान साबीत होंगे। बाबा ने कह दिया हैं कि जो बहुत अच्छे पवित्र बनते हैं वह मेरे बहुत सहयोगी रहते हैं। तो भगवान के कार्यो में सहयोग देने का यह सर्वोत्तम उपाय हैं कि हम व्यर्थ संकल्पो से, परचिंतन से, ईर्ष्या द्वेश से मुक्त होकर वायुमंडल को पावरफ़ुल बनाये।

ओम शांति...



 

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हम सभी संसार में बड़े से बड़े मनुष्य हैं, सृष्टि के आदि मनुष्य, पूर्वज मनुष्य आत्माये। तो हमे बहुत कम बोलना चाहिए। जो रोयल लोग होते हैं वह बहुत ज्यादा नहीं बोलते। हम भी बहुत रोयल हैं। बोल इस संसार में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। किसी के बोल महावाक्य कहलाते हैं, किसी के बोल वरदान बन जाते हैं, किसी के बोल सुखदायी हो जाते हैं, तो किसी के बोल दूसरो को जैसे की मुर्छित से सुर्जित करनेवाले बनते हैं। सोच ले, हमारे बोल कैसे हैं, हम कैसे बोलते हैं, हम ऐसे तो नहीं बोलते कि किसी के जीवन में निराशा आ जाये, हम ऐसे तो नहीं बोलते कि दूसरो के दिल दुःख जाये..! कईयो के बोल सचमुच बहुत कड़वे होते हैं। दुनिया में भी कई लोग ऐसे होते हैं जो दूसरो की ग्लानि करते ही रहते हैं, चाहे अपनी पत्नी क्यों ना हो, उनके परिवारवालो के पीछे ही लगे रहते हैं... तुम्हारे ये भाई, तुम्हारे माँ बाप ऐसे हैं वैसे हैं। कटू वचन बोलकर अपने घर में, वातावरण में कड़वाहट भरते रहते हैं। हमे याद रखना चाहिए, जैसे बोल हम दूसरो को बोलेंगे वैसे ही कभी न कभी हमे भी सुनने पड़ेंगे। अब तो हम भगवान के बच्चे हैं, हम अपने कानो से भगवान की वाणी सुनते हैं, इस मुख से भगवान का संदेश सबको देते हैं। तो जिस मुख से भगवान का संदेश देते हैं उस मुखसे हमे किसी की भी ग्लानि नहीं करनी हैं। यह एक बहुत सुंदर धारणा यदि हम अपना ले कि हमारे मुख के बोल दूसरो को सुख देनेवाले हो, उनके पुरुषार्थ को आगे बढ़ानेवाले हो, उनके जीवन में नई राहे दिखाने वाले हो, हमारे बोल सबको हलका कर दे। भारी आत्माये हमारे पास आये लेकिन हलकी होकर जाये। तो बोल पर बहुत ध्यान देना हैं। हम संकल्प करे आज से हम बहुत अच्छे बोल बोलेंगे ताकि हमारे बोल सुनने के लिए लोग लालाइत रहे, ताकि हमारे बोल भी दूसरो के लिए महावाक्य बन जाये, ताकि हमारे बोल टेप रेकोर्ड करनेवाले बन जाये, ताकि हमारे बोल किसीको नया जीवन देनेवाले बन जाये। कोई जीवन से निराश होकर मरने की सोच रहा हो और हमारे बोल सुनकर उसमे जीने का उमंग आ जाये ऐसे बोल हमारे हो। इससे सभी लोग हमारे समीप आयेंगे, हमारे समीप आयेंगे तो बाबा के समीप आयेंगे, बाबा के लिए उनमे प्यार बढ़ेगा। और जो अंतरमुखी होते हैं, बाबा ने बहुत अच्छी बात कही हैं, “जहाँ 50 बोल बोलने से काम चलना हो वहाँ 5 बोल बोलकर काम चलाये”जिनका लंबा समय ऐसा अंतरमुखता का अभ्यास होता हैं उन्हें वाकसिद्धि प्राप्त हो जाती हैं। बहुत बड़ी चीज़ हैं कि जो कुछ हम बोले वही सत्य हो जाये। वाकसिद्धि इसे कहते हैं। इससे हमारे बोल द्वारा बहुत ही कल्याण होगा इतना ही नहीं, जिसे हम ज्ञान देंगे उस पर भी सीधा तिर लगेगा और वह बाबा के बन जायेंगे। तो विचार कर ले, हमारे बोल कैसे होने चाहिए।

तो आज सारा दिन एक बहुत अच्छी प्रेक्टिस करेंगे, सवेरे शाम बहुत अच्छा अच्छा कर ले- “हम सूक्ष्मलोक में हैं... सामने ब्रह्माबाबा खड़े हैं... उनके संपूर्ण स्वरुप में खड़े हैं, उनके अंग अंग से किरणे फैल रही हैं... चेहरे के चारो ओर लाईट का बहुत सुंदर गोल्डन ताज़ हैं... होठो पर सुंदर मुसकान हैं... ऐसे बाबा खड़े हैं। और उनके सामने हम हैं... हमारी चमक बाबा की चमक से बहुत कम हैं... “दोनो की तुलना करे, कभी बाबा की चमक को देखे, कभी अपनी चमक को देखे। और फिर अभ्यास करें कि परमधाम से शिवाबाबा की किरणे हम पर पड़ने लगी और हमारी चमक बढ़्ने लगी। ऊपर से किरणे लगातार आ रही हैं और हमारी चमक धीरे धीरे बाबा जैसी हो गई, हम हो गये बाप समान... तो स्वमान रखेंगे, "मैं बाप समान फ़रिश्ता हूँ”और यह अभ्यास दिन में कई बार करेंगे।

ओम शांति



 

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हमारा समर्पित जीवन कितना महान हैं..! भगवान जब इस धरा पर आये, तो उन्होने याद दिलाया कि बच्चे तुम भक्ति करके बाप को कहते थे, हे प्रभु... जब आप इस धरा पर आओगे, हम आप पर बलिहार जायेंगे। अब मैं आ गया हूँ... अपना वायदा पूरा करो। भगवान के यह वचन सुनकर अबतक कई हजार आत्माये अपनी जीवन को अर्पित कर चुकी हैं। इस श्रेष्ठ कार्य में, इस दिव्य कार्य में जो शिवबाबा स्वयं करने आए हैं, युग परिवर्तन, कलियुग को सतयुग में बदलने आए हैं। इस महान कार्य में कितनी आत्माओने अपना सर्वस्व समर्पित कर दीया। सचमुच महान हैं, नमन योग्य हैं वो महान आत्माये जिन्होने भगवान को पहचानकर, उसको पाकर अपना सर्वस्व बलिहार कर दीया। तो यह समर्पण जीवन सचमुच बहुत सुंदर हैं। पर सोचना यह हैं जब हमने सबकुछ समर्पित कर दीया, तो अब इसका पूरा फ़ायदा उठाये। कहीं हमारे अंदर मेरापन ना रह जाए। सबसे सूक्ष्म समर्पणता मेरेपन की ही हैं। चाहे हमारे पास किसी सेवाकेंद्र की जिम्मेदारी हैं, चाहे किसी डिपार्टमेंट को हम संभालते हैं, हमे यही समजना हैं कि हम निमित्त हैं, मेरा कुछ भी नहीं हैं, यह सब बाबा का हैं, उसने हमे सौप दिया हैं जैसे श्रीमद्भगवत गीता में कहा हैं प्रजापिता ब्रह्मा ने यज्ञ रचकर ब्राह्मणो को कहा, हे वत्सो, तुम इस यज्ञ की संभाल करो, इस यज्ञ से देवताओ को प्रसन्न करो और देवताए तुम्हे मन इच्छित फ़ल प्रदान करेंगे। तो बाबा ने यह यज्ञ रचकर हम वत्सो के हाथो में सौप दिया, बच्चे अब इस यज्ञ को सफ़ल करो, इसको निर्विघ्न बनाओ और जो देवकुल की आत्माये यहाँ आती हैं, तुम उनको तृप्त करो, वह तुम्हें सबकुछ देते रहेंगे। तो यह समर्पित जीवन सचमुच अति प्रशंसनीय हैं, अनुकरणीय हैं। मेरा कुछ भी नहीं हैं, यह गुड फ़िलींग हैं। एक बहुत सुंदर प्रेक्टिस हम सभी के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। जो कुछ भी आप अपने घर में लाओ, मान लो कि आप कपडे ख़रीदकर लाए... बाबा के आगे रख दो। बाबा का कमरा आपके पास होगा, बाबा के आगे रख दो, समर्पित करो। आप अन्न लाए ख़रीदकर, बाबा के आगे रख दो, बाबा यह तुमको अर्पित हैं... आपको सेलेरी मिली, आप धन लाए, बाबा के आगे रख दो, बाबा यह आपको समर्पित हैं। और भी कोई चीज़, भोजन आपने बनाया, उसको बाबा को अर्पित कर दो... बाबा यह आपको अर्पित हैं, अब हम आपकी ओर से खायेंगे, आपकी ओर से वस्त्र पहनेंगे। आपके धन से हमारी पालना होगी। तो बाबा आपकी इन भावनाओ के अनुरुप आपका सबकुछ स्वीकार कर लेंगे और फिर अपने अंदर यह गुड फ़िलींग बढ़ाते चलना हैं कि हमारी पालना तो स्वयं भगवान कर रहे हैं, उसके धन से हमारी पालना हो रही हैं, उसके अन्न से हम भोजन खा रहे हैं, उसके दिये हुए वस्त्र हम पहन रहे हैं, उसी का दिया हुआ घर हम युज कर रहे हैं। यह समर्पणभाव हमे बहुत उच्च स्थिति में ले चलेगा। इससे बहुत सुंदर अनुभूती होंगी, मेरापन समाप्त होता रहेगा और बाबा का यह परिवार बन जायेगा। बाबा अपने परिवार की, अपने बच्चो की स्वयं संभाल करेगा।

तो आज सारा दिन समर्पण भाव मन में धारण करते हुए हम एक बहुत सुंदर अभ्यास करेंगे और वह हैं फ़रिश्ता सो देवता बनने का। अपने 3 स्वरुप सामने देखेंगे... मैं ब्राह्मण, मेरी एक तरफ़ मेरा देव स्वरुप खड़ा हैं... दूसरी तरफ़ देखेंगे... फ़रिश्ता स्वरुप खड़ा हैं... मैं आत्मा इस ब्राह्मण तन से निकलकर अपने फ़रिश्ते स्वरुप में प्रवेश कर लेती हूँ... अनुभव करें मैं फ़रिश्ता हूँ... फिर उस देह से निकलकर मैं अपने देव स्वरुप में प्रवेश कर लेती हूँ। अनुभव करें... मैं देवता हूँ... फिर इस देव स्वरुप से निकलकर मैं पुन: ब्राह्मण स्वरुप में आ जाती हूँ... अब में प्रभु पालना में हूँ... फिर ब्राह्मण देह से निकलकर फ़रिश्ते की देह में, फ़रिश्ते से निकलकर देवता की देह में। यह खेल करेंगे। बहुत आनंद आयेगा। ऐसा खेल हर घंटे में यदि एक बार किया जाये तो सारा दिन मन आनंद से भरपुर रहेगा।

ओम शांति...



 

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बाबा हम सभी को श्रेष्ठ स्वमानधारी बनाने आये हैं। आते ही याद दिलाया, "बच्चे तुम बहुत रोयल कुल के हो, तुम ब्राह्मण कुल की महान आत्माये हो, तुम देवकुल की महान आत्माये हो, तुम प्रभु पालना में पलने वाले हो”। स्वमान जगाया हम सब का और बाबा कहते हैं कि जितनी ऊँची द्रष्टि से मैं तुम सबको देखता हूँ, तुम भी अपने को वैसी ही ऊँची द्रष्टि से देखो। जरा विचार करें, बाबा हमे किस महान द्रष्टि से देखता हैं। वह देखते हैं कि यह वही हैं जिनकी मंदिरो में पूजा हो रही हैं, यह वही हैं जिनके दर्शन के लिए भक्त लंबी भीड़ लगाते हैं, यह वही हैं जो कभी सृष्टि के हीरो एक्टर रहे हैं। बहुत ऊँची द्रष्टि हैं बाबा की, यह मेरे नैनो के नूर हैं, यह वही हैं जिन्होने मेरे स्वर्ग को दो युग तक संभाला, निश्कंटक रखा, निर्विघ्न रखा, अटल-अखंड साम्राज्य किया। हम अपने स्वमान को जगाए। जिसके पास स्वमान नहीं होता उसके अंदर ही हीन भावनाये रहती हैं, वह सदा दूसरो की ओर प्यासी नजरो से देखते हैं, वह चाहते हैं कि हमे दूसरे कुछ दे... वह माँग भी करते हैं, धन की माँग करते हैं, मान सम्मान की माँग भी करते हैं। लेकिन जो स्वमान में रहते हैं, मान सम्मान तो उनके पीछे परछाई की तरह आता हैं। उनके जीवन में तो बहुत रोयल्टी आ जाती हैं, उनका आत्मविश्वास बहुत बढ़ जाता हैं। उनके छोटे विचार भी सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं। तो अपने इस ज्ञान और योग के यात्रा में आगे बढ़्ते हुए अपनी मंज़िल पर पहुँचने के लिए हमे अपने श्रेष्ठ स्वमान को पहचानना हैं, उसे स्वीकार करना हैं। कभी कभी ऐसा होता हैं कि बचपन से ही मनुष्य के अंदर कुछ हीन भावनाये रही, उसका जन्म ग़रीबी में हुआ, उसको बार-बार असफ़लता मिली, वह पढ़ाई-लिखाई में बहुत होशियार नहीं थे, उनसे लोगोने दुर्व्यवहार किया, उनको नीचा दिखाया... तो उनका स्वमान जाता रहा। लेकिन अब उस सब को भूलकर हम अपने श्रेष्ठ स्वमान को याद करें। मनुष्योने हमे स्वमान भले न दिया हो, लेकिन इस समय तो स्वयं भगवान हमे स्वमान दे रहे हैं, सम्मान दे रहे हैं। हम उसके इश्वरीय नशे में रहा करें और पुरानी बातो को संपूर्ण रुप से विराम लगा दे। जो कुछ भी हुआ, हीन भावनाये चाहे कैसी भी रही, अब बहुत अच्छी तरह से स्वमान का चिंतन करेंगे। चिंतन परम आवष्यक हैं। पहला कदम होता हैं स्वीकार करना, दूसरा कदम होता हैं उसका चिंतन करना। मान लो, बाबा ने हमे स्वमान दिया, "तुम वही हो जिनकी मंदिरो में पूजा हो रही हैं।”हम इसे स्वीकार करें। स्वीकार इसलिए करें कि जो हमे कह रहा हैं वह हमारे आदि-मध्य-अंत को संपूर्ण रुप से जानता हैं, हम तो भूल गये हैं ..! दूसरा हैं, हम इसका चिंतन करें। देखे, विचार करें ... कितने महान हैं हम... हम ऐसे पूजनीय थे कि हमारे मंदिरो में हमारे चेहरो पर भी अबतक दिव्यता और तेज झलकता हैं। यह पूजनीय पद हमे कैसे प्राप्त किया था? स्वयं भगवान जब धरा पर आये तो हम उसके कार्यो में सहयोगी बने थे, हम पवित्र बने थे इसलिए हम पूज्य बन गये, चिंतन करेंगे। तो जिनके दर्शन से ही भक्त प्रसन्न हो जाते थे, वह मैं हूँ..! तो मेरा चेहरा कितना दिव्यता से भरपूर, कितना महान होना चाहिए..!

तो आज सारा दिन हम यह अभ्यास करेंगे, "मैं ईष्ट देव-देवी हूँ... हीरो एक्टर हूँ, इस सृष्टि की महान आत्मा हूँ...”और योग अभ्यास करते हुए अपने को मस्तक सिंहासन पर बैठा हुआ स्वराज्य अधिकारी आत्मा, बहुत तेजस्वी आत्मा देखेंगे... यह देह अलग हैं, मैं अलग हूँ, मैं स्वराज्य अधिकारी हूँ, मन बुद्धि की मालिक हूँ, मन बुद्धि को मेरे आदेश का पालन करना ही हैं। अपने मन को बार बार कहेंगे कि तुम शांत हो जाओ... और बुद्धि को आदेश देंगे, हे मेरी बुद्धि... तुम स्थिर रहो, स्वच्छ हो जाओ, बिलकुल दिव्यता से भरपूर हो जाओ क्योंकि तुम्हें बाप समान बनना हैं..!

ओम शांति



 

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संपूर्ण पवित्र बनने का सुख परमसुख हैं। पवित्रता ही सुख शांति की जननी हैं।  जहाँ पवित्रता हैं वहाँ सुख, शांति, आनंद, प्रेम, संतोष सब पीछे पीछे चले आते हैं।  पवित्रता की कमी मनुष्य को चिड़चिडा बनाती हैं, उसे दुःखी करती हैं, उसके अंदर अशांति पैदा करती हैं। चाहे अशांति का कोई भी कारण हो, चाहे दुःखो का कोई भी कारण हो, परंतु मूल में उनका कारण हैं अपवित्रता..! अर्थात पवित्रता की शक्ति की कमी।  हमारी पवित्रता तो संसार के लिए वरदान हैं, हमारी पवित्रता तो प्रकृति के लिए शक्ति हैं, एक खुराक हैं। हम जितने पवित्र बनते जाते हैं, ईश्वरीय कार्य में उतना ही सहयोग मिलता जाता हैं। हमे अपनी काम वासना को संपूर्ण रुप से नष्ट कर देना हैं। काम की अगर सूक्ष्म इच्छाये भी रह गई हैं, उनको अभी समाप्त कर देना हैं। एक संकल्प करें, "अब यह मेरा सब्जेक्ट ही नहीं हैं... मैने इसको त्याग दिया हैं। मेरी तो नेचर ही संपूर्ण पवित्र हैं...”यह न सोचे "मुझें 5 साल पवित्र रहना हैं, 10 साल रहना हैं...विनाश हो जायेगा... किसी भी तरह रह ले... बाबा की आज्ञा हैं, रह ले..!”नहीं, यह हमारी नेचरल स्थिति हैं। हम हैं ही पवित्र। सोचो हम परमधाम में कैसे थे, जब देवयुग में आये तो हमारी प्युरिटी कैसी थी..! पवित्रता ही तो सबसे बड़ी चीज़ हैं जिसे संसार ने भूला दिया हैं। मनोवैज्ञानीको ने जिसके लिए बहुत गलत काम कर दिया। कह दिया, काम वासना बड़ी नेचरल हैं..! और मनुष्य को अंधकार में डूबो दिया, वासनाओ के गर्थ में डूबो दिया। तो यह मनोवैज्ञानी मनुष्य के विनाश का, उसको पतन की ओर ले जाने का बहुत बड़ा कारण बन गये..! अब बाबा ने स्वयं आकर स्पष्ट कर दिया कि नहीं, पवित्रता तुम्हारा स्वधर्म हैं, तुम्हें इसका सुख लेना हैं। तो संकल्प कर दे, अब पवित्रता ही मेरा जीवन हैं। कोई भी व्यर्थ संकल्प आते हैं, व्यर्थ इच्छाये पूर्ण होती हैं, पास्ट के संस्कार इमर्ज होते हैं या संसार के वातावरण को देखकर उसके प्रभाव में आकर कुछ नेगेटीवीटी (नकारत्मकता) आती हैं, स्वप्नो में कुछ गंदगी आती हैं, इन सबको तेजी से समाप्त करते चलेंगे योगबल के द्वारा, स्वमान के द्वारा, सुंदर चिंतन के द्वारा। तीनो चीज़े अपनायेंगे। योगबल से हमारी शक्तियाँ सूक्ष्म रुप ले लेती हैं।  चिंतन से हमारी शारीरिक शक्तियाँ युज़ (उपयोग) हो जाती हैं। और जो यह शक्तियाँ भोजन से बन रही हैं निरंतर, उसको यदि हम उपयोग करते रहेंगे तो हमारी प्युरिटी उतनी ही सरल होती जायेगी। इसके लिए अपने खान-पान पर भी बहुत ज्यादा ध्यान देना हैं। खान-पान अगर भारी होगा तो पेट को भारी करेगा, कब्जियत लायेगा, गेस पैदा करेगा तो भी प्युरिटी में अंतर पड़ जायेगा। और अगर बहुत लाल मिर्ची खायेंगे, बहुत ज्यादा चाय पियेंगे, बहुत ज्यादा तला-भुना भोजन खायेंगे तो उससे भी हमारी इंप्युरिटी बढ़्नी संभव हैं। इसलिए लहसुन-प्याज को भी बाबा ने मना कर दिया हैं। क्योंकि यह भी वासनाओ में उत्तेजना पैदा करनेवाले पदार्थ हैं। तो हम अपने अंदर प्युरिटी का बल बढ़ाते चले और हमे महसुस होगा जितनी प्युरिटी बढ़ेगी उतना ही योग सरल होगा।  

तो आज सारा दिन बहुत अच्छी फ़िलींग में रहेंगे,”मैं तो पवित्रता का देवता हूँ/देवी हूँ... मैने यहाँ अवतार लिया हैं चारो ओर पवित्रता का, सुख-शांति का साम्राज्य स्थापित करने के लिए... मैं पवित्रता का सूर्य हूँ...”और ड्रिल करेंगे बाबा के पास परमधाम में जाने की, कुछ देर वहाँ बैठेंगे और वापिस आयेंगे, देह में वापिस भृकुटी सिंहासन पर। फिर चलेंगे परमधाम में। बाबा के पास बैठेंगे, निराकार के पास, सर्वशक्तिवान के पास और फिर आयेंगे वापिस अपने देह में। यह ड्रिल सवेरे कम से कम दस बार अवश्य कर ले, और हर घंटे में दो बार करें, एक एक मिनट के लिए। तो सारा दिन योगयुक्त स्थिति में बीत जायेगा।  

ओम शांति



 

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हम सभी आत्माओ को स्वयं भगवान सम्मान दे रहे हैं। सोचो, जिन्हे भगवान सम्मान देते हैं वह भला मनुष्यो से मान की कामना क्यों करे। ब्रह्मा बाबा ने यह सभी कामनाये समाप्त कर दी थी। वह ऐसी रोयल्टि में स्थित हो गये थे जिन्हे किसी से कुछ भी नहीं चाहिए था। हम भी अपने संस्कारो को बहुत रोयल बनाये और इसका आधार हैं स्वमान में स्थित रहना। अपने स्वमान को हमे जगाना हैं। हीन भावनाओ को समाप्त कर देना हैं। हम मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। बाबा के नैनो के नूर हैं, विजयरत्न हैं, कल्पवृक्ष की जड़े हैं। हम बहुत बड़े हैं। हम छोटे नहीं हैं जो किसी की ओर भी प्यासी नज़रो से देखे..! दूसरो से उम्मीद वही रखते हैं जो स्वमानधारी नहीं हैं, दूसरो के आगे पिछे वही घूमते हैं जो स्वमानधारी नहीं हैं, दूसरो के चरण दास भाव से वही छूते रहते हैं कि इनसे हमे कुछ मिल जाये जिनके पास अपना स्वमान नहीं होता। बाबा को देखे, वह बच्चो को इतना स्वमान देते थे, कहते थे, तुम बच्चे मेरे चरण नहीं छू सकते, मैं तो तुम्हारा मोस्ट ओबिडीएंट (आज्ञाकारी) सरवेंट हूँ। क्लास से जब बाहर आते थे बाबा तो पिछे को हटकर आते थे, बच्चो को पीठ नहीं देते थे। आज तो बच्चे न जाने क्या क्या दिखाते हैं दूसरो को..! बाबा कितना सम्मान देते थे हम सबको..! हम भी स्वयं को स्वमान दे और महान बने। स्वमानधारी आत्माओ के आगे संसार झुकेगा, उनकी रोयल्टि को संसार कोपी करेगा। स्वमान से मनुष्य के विचार बहुत महान हो जाते हैं और विचार किसी मनुष्य की बहुत बड़ी संपत्ति हैं। अगर किसी के संकल्प ही महान न हो, चाहे वह कितने भी उंचे पद पर बैठा हो, वास्तव में वह महान नहीं माना जायेगा। अगर विचार महान नहीं हैं तो चेहरे पर भी महानता के चिन्ह दिखाई नहीं देते। इसलिए विचारो को महान बनाए तो हम महान बन जायेंगे और हमारी महानता की छाप दूसरो पर बहुत गहरी पड़ेगी। तो हमे किसी भी कारण से अपने स्वमान को नहीं छोडना हैं। अच्छे अच्छे शक्तिशाली राजा हुए जो अपने स्वाभिमान से कभी नीचे नहीं आते थे, चाहे उनको मृत्यु का वरन करना पड़े, चाहे उन्हें अपना राज छोडना पड़े, परंतु अपने स्वाभिमान को कभी नीचा नहीं होने देते थे। हम भी अपने स्वमान से कभी नीचे न उतरे। स्वमान की सिट ही हमारी शोभा हैं।

तो आज हम सारा दिन बहुत अच्छा अभ्यास करेंगे, "मैं इस विश्व का आधारमूर्त और उद्धारमूर्त हूँ... कल्पवृक्ष की जड़े हूँ... मेरा संपूर्ण प्रभाव, संकल्पो का प्रभाव, स्थिति का प्रभाव, मेरे श्रेष्ठ पुण्यकर्म का प्रभाव, मेरी प्युरिटी का प्रभाव सारे कल्पवृक्ष में फ़ैलता हैं। “तो अपने को महसुस करेंगे, "मैं कल्पवृक्ष के जड़ो में स्थित हूँ...”चाहे नीचे बैठा देखे अपने को, चाहे उलटे कल्पवृक्ष की जड़ो में ऊपर बैठा देखे और संकल्प करें, "मुझें सारे कल्पवृक्ष को श्रेष्ठ वाइब्रेशन्स देने हैं। “हम कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या कर रहे हैं। और बाबा की किरणे हम पर पड़ रही हैं। बहुत गुड फ़िलींग करेंगे और यह बाबा के वाइब्रेशन्स हम में समाकर पूरे कल्पवृक्ष में फैल रहे हैं। तो आओ हम पूर्वज बनकर कल्पवृक्ष की सभी आत्माओ की पालना करें। हम उनको अच्छी सकाश दे ताकि सभी अपने मनुष्य जीवन का सच्चा सुख प्राप्त कर सके। सभी अपने अंदर छिपी हुई, दबी हुई प्युरिटी को पहचान सके और इस माया के जंजाल से स्वयं को मुक्त कर सके। हमारी सकाश ही सभी में जागृती लायेगी, सभी को अपने देव स्वरुप की स्मृति दिलायेगी, सभी को बाबा से जोडेगी और उनको वर्से का अधिकारी बनायेगी।  

  ओम शांति...



 

15

ब्रह्माबाबा को इस ईश्वरीय ज्ञान का, इस ईश्वरीय पढ़ाई का कितना महत्व था। हम भी जब उसको फ़ॉलो करने चले हैं तो हमे भी इस पढ़ाई का, इस ज्ञान का संपूर्ण महत्व होना चाहिए। जैसे योग एक महत्व का विषय हैं वैसे ही ज्ञान भी बहुत महत्व का विषय हैं। जो ज्ञानी नहीं हैं वह योगी भी नहीं बन सकते। जिनके पास ज्ञान का रस नहीं, जिनको ज्ञान में रुची नहीं हैं वह ज्ञान का सुख भी नहीं ले सकते, मुरली का सुख भी उन्हे नहीं मिलता। इसलिए फ़ाँलो फ़ाधर करना हैं तो हमे पढ़ाई में भी फ़ुल मार्क्स लेने हैं। ज्ञान को बहुत गहराई से समझना हैं। यह ज्ञान हमारे सदविवेक का निर्माण करता हैं। इस ज्ञान से हमारी बुद्धि दिव्य होती हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि इस ज्ञान से ही हमारी बुद्धि का निर्माण होता हैं और जन्म जन्म हमारी बुद्धि कैसी रहेगी इसका आधार वर्तमान ज्ञान का चिंतन, ज्ञान को बुद्धि में समाना ही हैं।  

तो आओ हम सभी ज्ञान को भी महत्व दे कर बाबा की मुरलीयों का बहुत अच्छा अध्ययन करें। ज्ञान का भण्डार भरा पड़ा हैं ईन मुरलीयों में। अव्यक्त में भी और साकार में भी, क्लास में आकर भी सुने और स्टडी (अध्ययन) भी करें। तो ज्ञान से आत्मा भरपूर रहेगी। सोचने की बात हैं जरा, गहन चिंतन करें, सभी भाई और बहने अपने-अपने लौकिक परिवारो को चलाने के लिए रात-दिन कितनी मेहनत करते हैं। नौकरीयाँ, बिजनेस, काम..! खाने की भी फ़ुर्सत नहीं तो नींद का भी टाईम नहीं, दिन-रात एक किये रखते हैं। आपके बच्चे जो बहुत अच्छी नौकरी चाहते हैं वह कितनी मेहनत करते हैं पढ़ाई में, कोचिंग करते हैं, रात-दिन लगे रहते हैं, अपने शौक भी छोड देते हैं। हम सोचे, बाबा हमे कितना बड़ा भाग्य दे रहा हैं..! इतना बड़ा भाग्य कि दो युग तक तो कुछ कमाना ही नहीं पड़ेगा। ज़रा सोचकर देखो, जो कमाने की मेहनत कर रहे हैं उनको इसकी कितनी वैल्यु हैं। दो युग तक कुछ भी कमाना नहीं पड़ेगा और अथाह धन-संपदा हमारे पास रहेगी..! देते ही रहे इतनी होगी, यधपि हमे किसको देने की जरुरत नहीं होगी। और त्रेतायुग में भी हमे सबकुछ सहज ही मिलेगा..! तो विचार करें, ऐसे महान भाग्य को प्राप्त करने के लिए हम क्या कर रहे हैं..? सोच ले सभी। अगर हम इस समय को महत्व नहीं देंगे, अपने से मेहनत नहीं करेंगे, समय व्यर्थ में ही गवाँते रहेंगे तो हमे क्या मिलेगा..? हम यह नहीं कह सकते कि हमारे पास समय नहीं हैं। समय उसके पास नहीं होता जो समय को ठीक से संभालना नहीं जानते, जो समय को वेस्ट (बरबाद) करते हैं, जो थोड़े से टाईम में बहुत लम्बा-चौड़ा समय बिता देते हैं। इसलिए समय को बचाना यह अपने हाथ में हैं। आप सब जानते हैं जिस काम को हम महत्व देते हैं, जिस कार्य में हमारी रुची होती हैं उसके लिए हमारे पास समय की कोई भी कमी नहीं होती। तो संगमयुग के इस समय को संपूर्ण महत्व देते हुए हम अपनी पुरुषार्थ की गति को तेज करें और अपने अंदर ज्ञान का बल भरे। कम से कम बहुत पावरफ़ुल ज्ञान की पोईण्ट अपनी विशेष डायरी में लिखे। एक पैज पर एक पोइण्ट लिखे, ऐसी पोइण्ट जो आत्मा को सुख दे, नशे में ले चले, उड़ा दे, एकाग्र करें, जागृत कर दे। उनको पढ़ते रहे तो ज्ञान का बल बढ़्ता रहेगा।

तो आज सारा दिन बहुत अच्छी तरह से 5 स्वरुपो को अभ्यास करेंगे। अपने देव स्वरुप को देखेंगे। हम कैसे देवता थे? ऐसे थे, सर्वगुण संपन्न, कंचन काया, चेहरो पर दिव्यता, धन-धान्य से भरपूर..! फिर अपने पूज्य स्वरूप को देखेंगे। हम विघ्न विनाशक गणेश थे, या अष्ट भुजाधारी देवी के रूप में हमारी पूजा हुई, या महान विश्णु के रूप में हमारी मान्यता रही। कोई भी अपना पूज्य स्वरूप अपने सामने लाते रहेंगे। विशेषकर पाँच स्वरुपो में से इन दो स्वरुपो का आज अभ्यास करेंगे। देव स्वरूप और पूज्य स्वरूप। और सारे दिन को आनंद पुर्वक व्यतित करेंगे।  

ओम शांति



 

16

हम सभी राजयोग का अभ्यास करते हुए परमानंद का अनुभव करते हैं। लेकिन यह परमानंद उन्हें सर्वाधिक प्राप्त होता हैं जिनका मन और बुद्धि एकाग्र हो जाते हैं। एकाग्रता इस संसार में पहले से ही एक बहुत बड़ा विषय रहा हैं। कोई मनुष्य सहज एकाग्र हो पाता हैं, कोई बिलकुल नहीं हो पाता हैं। लेकिन एकाग्र होने के लिए जहाँ और बहुत सारी बाते आवश्यक हैं, वही ईश्वरीय नशा भी इसमे अहम भूमिका निभाता हैं। हमे अपने चित्त को ईश्वरीय खुमारी से भरपुर करना होगा। ब्रह्माबाबा जैसे सदा इस नशे में रहते थे, "मैं गोडली स्टुडंट हूँ..!”उनको यह बहुत बड़ा नशा था कि भविष्य में मुझें नारायण बनना हैं, विश्व महाराजन बनना हैं। इस ईश्वरीय नशे ने उनको सचमुच बेफ़िक्र बादशाह बना दिया था। ईश्वरीय प्यार में मग्न कर दिया था। एकाग्रता में परफेक्ट कर दिया था। हम भी ईश्वरीय नशे में रहे, कौन पढ़ाने आया हैं हमे..! किसने आकर हमे सत्य ज्ञान दिया हैं। सवेरे-सवेरे स्वयं भगवान परमशिक्षक बनकर हमे पढ़ाने आता हैं..! तो स्वयं भगवान पढ़ाते हैं और हम गोडली स्टुडंट हैं। यह नशा जितना अधिक से अधिक हमे रहेगा, पढ़ाई पर उतना ही हमारा अटेन्शन रहेगा। उतना ही हमे इस ईश्वरीय ज्ञान के अनमोल रत्नो की वैल्यु भी होगी। नहीं तो कईओ को यह ज्ञान साधारण लगता हैं कि वही तो आत्मा की बात हैं... लेकिन आत्मज्ञान तो अतिगुह्य हैं, यह अनुभव होने लगेगा। हमे अपने भविष्य का नशा भी बाबा की तरह ही रखना हैं। हम यह नहीं कहेंगे कि हमे पता नहीं हैं। हमे पता हैं कि हम भी महान देवता बनने वाले हैं। अपने देव स्वरुप को जितना ज्यादा हम स्मृति में लायेंगे, हमारे अंदर देवत्व उतना ही आता जायेगा। देवत्व निखरता जायेगा, हमे यह नशा चढ़ा रहे कि यह देह छोडकर मैं भी बहुत-बहुत दिव्यता से भरपूर पवित्रता से संपन्न देवता बनूंगा। अपना देव स्वरुप बार-बार याद आता रहे, जैसेकि हमारे सामने खड़ा हैं। बहुत सुंदर अनुभव होंगे। और भी बहुत सारे नशे हमे अपने अंदर रखने हैं। कौन मुझें साथ दे रहा हैं..? कौन मेरी जीवन नैया का खिवैया बना हैं..? किसने मुझें कहा हैं... बच्चे, सारे बोझ मुझें दे दो? मैं तुम्हारे साथ हूँ... किसने हमे कहा हैं... बच्चे, तुम चिंता न करो, मैं बैठा हूँ..! तुम बेफिक्र बादशाह बन जाओ।

तो हम ईश्वरीय खुमारी में चले, ईश्वरीय खुमारी में रहे। हम बोले भी तो हमारे बोल से हमारा ईश्वरीय नशा प्रत्यक्ष झलकता हो। लेकिन ध्यान रहे, यह नशा बहुत सूक्ष्म हैं। यह बोलने का नहीं हैं, हम बार बार दूसरो को बोलेंगे कि हमे भगवान मिला हैं, हमे भगवान पढ़ाता हैं तो लोग शायद इस बात को उतना स्वीकार न कर पाए। लेकिन हम सूक्ष्मरुप से जितना इस नशे में रहेंगे उतना हमारे चेहरे पर एक रोनक रहेगी, एक रुहाव रहेगा।

तो आज सारा दिन हम इस इश्वरीय नशे का अभ्यास करेंगे, "मैं गोडली स्टुडंट हूँ, स्वयं भगवान ने हमे सत्य ज्ञान दिया हैं। बहुत बड़ी संपूर्णता की डिग्री हमे मिलने जा रही हैं। जो डिग्री वास्तव में बहुत बड़ी होगी। संसार में किसी को भी यह डिग्री प्राप्त नहीं हैं।”दूसरा, "मुझें भविष्य एक महान देवता बनना हैं।”इसको याद रखेंगे। और इसके साथ-साथ प्रेक्टिस करेंगे फ़रिश्ता सो देवता बनने की। बस यह अभ्यास करें, "मुझें फ़रिश्ता बनकर घर जाना हैं और देवता बनकर वापिस आ जाना हैं।”कितनी सुंदर बात हैं। ऐसा कौन होगा जो फ़रिश्ते बनकर घर की ओर उड़ान भरे और धरा पर आए तो देवता बन जाए। भरपूर देवता, संपन्न देवता। यह अभ्यास हमे बहुत लाईट करेगा, हमारी समस्याओ को हल करेगा। हर घंटे में एक बार, एक मिनट के लिए अपने फ़रिश्ते स्वरुप और देवता स्वरुप को सामने रखेंगे, उसका अभ्यास करेंगे, और सारा दिन डबल लाईट होकर दिनचर्या को व्यतित करेंगे।

ओम शांति...



 

17

हम भगवान के बच्चे हैं। हम आदिदेव प्रजापिता ब्रह्मा के भी बच्चे हैं। हम इस धरा पर दो युग तक महान देवता रहे। सृष्टि के अनेक जन्मो में हमने हीरो पार्ट बजाए। हम कितने रोयल हैं..! जैसे ब्रह्माबाबा बहुत रोयल थे वैसे हम उसके बच्चे भी रोयल हैं। याद होगा आपको, बाबा को देखकर राजा लोग कहा करते थे कि "दादाजी, भगवान से शायद भूल हो गई। राजा बनाना चाहिए था आपको और बना दिया हमे..!”बाबा का चलना, उनका बोलना, उनका व्यवहार, उनका खान-पान उनकी महान रोयल्टी की झलक दिखाता था। सब पर अमिट छाप पड़ती थी, उन्हें सभी लोग देखते ही रह जाते थे। जिन्होने साकार में ब्रह्माबाबा को देखा, वह जानते हैं कि वह कितने रोयल थे। नैन उनको देखते हुए थकते नहीं थे। उन पर भी एकटिक हो जाते थे। जैसे शिवबाबा सभी को बहुत आकर्षित करते हैं, वैसे ब्रह्माबाबा की पर्सनालिटी (व्यक्तित्व) भी बहुत आकर्षक थी। हम उनके बच्चे हैं..! हम भी बहुत रोयल हैं। तो हमे भी अपनी रोयल्टी को कायम रखना हैं। और यह तभी संभव होगा जब हमे यह नशा चढ़ा रहे कि -'हम भगवान के बच्चे हैं, हम आदिदेव ब्रह्मा के बच्चे हैं। हम विश्व की महान आत्मायें हैं। हम विश्व महाराजन बने थे, हमने कितने बड़े-बड़े काम किये हैं।'- तो अगर हम इस स्वमान में रहेंगे तो सचमुच हम बहुत रोयल रहेंगे। हमारी द्रष्टि से, हमारे व्यवहार से, हमारे चलने से, हमारे बोल से, हमारे खाना खाने के तरीके से सबको रोयल्टी नज़र आयेगी। तो याद रखेंगे, जो रोयल होते हैं वह किसी से कुछ मांगते नहीं। जो रोयल होते हैं उनकी आँख कहीं भी डूबती नहीं। इसका अर्थ होता हैं, कहीं भी उनको आकर्षण नहीं होता, किसी से भी कुछ लेने की कामना भी नहीं करते हैं। किसी की पर्सनालिटी (व्यक्तित्व) की ओर वह झुकते नहीं हैं। हम बहुत रोयल हैं। हम भी अपने को इच्छा मात्रम अविद्या बनाये। किसी से कुछ भी लेने की इच्छा न हो। और माँगना... यह तो भिखारीपन हैं, यह तो एक बैगर की पहचान हैं। जो बहुत महान आत्मायें हैं उन्हें अपने को चेक कर लेना चाहिए कि मन में भी मांग न हो। चाहे धन की मांग, चाहे वस्तुओ की मांग, चाहे साधनो की मांग, चाहे मान-सम्मान की मांग, चाहे 'हमे अवसर/चान्स मिले' इसकी बार-बार मांग करना रोयल आत्माओ का यह लक्षण नहीं हैं। जो रोयल होते हैं वह तो अपने को योग्य बनाते हैं और अपनी शान में स्थित रहते हैं। तो जो इस अलौकिक शान में स्थित रहते हैं, जिन्होने अपने जीवन को योग्यताओ से भर लिया होता हैं, उन्हें सबकुछ स्वत: ही प्राप्त हो जाता हैं। उन्हें मांगने की आवश्यक्ता ही नहीं रहती। हम सब जानते हैं कि बाबा ने पहले दिन से हमे यह बहुत सुंदर बात बार-बार कही, "बच्चे तुम किसी से कभी भी कुछ मांगो नहीं।”फिर लोग पूछते थे की मांगेगे ही नहीं तो सबकुछ कैसे प्राप्त होगा? तो बाबा उत्तर देते थे, तुम्हें प्राप्त होगा योगबल से..!

तो आओ हम सभी बहुत रोयल बने। अपनी चाल से, अपने बोल से, व्यवहार से रोयल्टी की झलक, रोयल्टी की छाप दूसरो पर छोडे।

तो आज सारा दिन अभ्यास करेंगे, परमधाम में ज्ञान सूर्य की किरणो के नीचे रहने का। और याद करेंगे, ज्ञानसूर्य की किरणे ले कर संसार में फैलाने से संसार से माया के किटाणु नष्ट हो जाते हैं। आज सारा दिन हम यह महान सेवा करते रहेंगे। तो बहुत बड़ा योगदान इस संसार को, इस प्रकृति को पवित्र करने में हमारी ओर से प्राप्त होगा।

ओम शांति...



 

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बाबा ने आकर हमे सहज योग सिखाया हैं। और इस सहज योग को एक दूसरा नाम भी दिया जा सकता हैं और वह हैं 'प्रेमयोग'। हमारा बाबा से बहुत प्यार हैं क्योंकि वह हमारा अपना हैं। बाबा ने आ कर हमे यह अहसास दिलाया, "हे बच्चे, मुझें तुम पुकार रहे थे, भक्ति कर रहे थे, याचना कर रहे थे, मांग रहे थे। अपने को दास, पापी, कपटी कह रहे थे। मुझें न जाने क्या क्या सोच रहे थे। लेकिन मैं तो तुम्हारा पिता हूँ। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। मुझें यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता कि तुम हाथ फैलाओ... कभी शांति के लिए, कभी सुख के लिए, कभी विघ्न विनाश के लिए, कभी समस्याओ के निवारण के लिए। जो कुछ मेरा हैं वह सबकुछ तुम्हारा हैं..!”

तो आज सारा दिन हम याद करेंगे, "भगवान तो मेरा हैं... उसका सबकुछ भी मेरा हैं... वह हजार भुजाओ सहित सदा ही मुझें मदद देने के लिए तैयार हैं..! और जब भी मैं उसको बुलाउंगा/बुलाउंगी वह तुरंत दौड़ा चला आयेगा। सोचो, भगवान मेरा हैं..! किसी बड़े आदमी से हमारा नाता जुड़ जाये... प्राईम मिनिस्टर हमे कह दे कि मैं तुम्हारा हूँ, तुम्हारा संबंधी हूँ, तुम्हारा अपना हूँ, जब भी तुम्हें जरुरत पड़े तो मुझें याद कर लेना... तो कितना नशा चढ़ जायेगा..! कितना हम उसका लाभ उठायेंगे, कैसे हमारा जीवन निश्चिंत हो जायेगा। बाबा भी हमे रोज़-रोज़ याद दिलाते हैं-”बच्चे, मैं तुम्हारा हूँ..!”कितना नजदिक संबंध हैं। कहाँ भगवान और भक्त और कहाँ हम उसके और वह हमारा..! उसका सबकुछ हमारा। साथ में हम भी कह दे, मेरा सबकुछ तुम्हारा..! हमारे पास तो हैं भी क्या देने को और उसके पास तो अथाह खज़ाने हैं। हम थोड़ा सा कुछ दे कर उससे अनंत खज़ाने प्राप्त कर लेते हैं। तो हम उसके प्यार में मग्न हो जाये क्योंकि प्यार भी उससे ही होता हैं जो अपना होता हैं। परायो से कभी प्यार नहीं हुआ करता। चाहे हम किसी से भी दोस्ती करें उसमे अपनापन आ जाता हैं तो बहुत प्यार रहता हैं। और उसमे स्वार्थ रहता हैं तो सच्चा प्यार नहीं रहता हैं।

तो बाबा ने आकर हमे बहुत अपनापन दिया हैं। हम भी बाबा को अपना समझें। जब हम उसकी ओर देखे तो इस नज़र से न देखे कि वह भगवान हैं, बहुत दूर हैं..! डरते हैं लोग भगवान से, बड़ा खतरनाक होगा, पता नहीं क्या कर देगा, सज़ा देगा..! नहीं..! वह तो बहुत प्यारा हैं, उस जैसा प्यारा तो कोई होता ही नहीं..! बाबा कहा करते हैं, "मैं तो मीठे(स्वीट) का पहाड़ हूँ। सबको प्यार देनेवाला, सबसे मीठा बर्ताव करने वाला..!"- तो हम सभी एक चीज़ पर बहुत ध्यान देंगे, उससे नाता जोड़े रखे...यह योग की बहुत सहज विधि हैं और उसके प्यार में हम मग्न भी हो जाये। विचार किया करें, वह हमारा हैं...वह हमे कितना प्यार करता हैं... उसने हमारे लिए क्या क्या किया हैं। जैसे लौकिक में एक बाप, माँ अपने बच्चो के लिए बहुत कुछ करते रहते हैं। पर बच्चो को इसका आभास होता ही नहीं। वह कह देते हैं कि तुमने हमारे लिए क्या किया..! लेकिन माँ-बाप जीवन लगा देते हैं। हमारे मात-पिता भी हमारे लिए बहुत कुछ कर रहे हैं। उसको जरा हम अनुभव करें, महसुस करें कहाँ-कहाँ वह हमारी मदद कर रहा हैं, कहाँ-कहाँ वह हमे बचाता हैं।

तो चले आज सारा दिन हम उसके प्यार में मग्न रहे। उसके प्यार में जो हमारा अपना हैं... उसके प्यार में जो हमे बहुत प्यार करता हैं। उसके प्यार में जो हमे सर्वस्व देने आया हैं..! और बस उसके उपकारो को याद करें। न जाने कहाँ-कहाँ उसने हमे जीवनदान दिया होगा, कहाँ-कहाँ हमारी छत्र-छाँया बनकर वह रहता होगा। हमे इसका बिलकुल आभास नहीं होता क्योंकि यह बाते बहुत सूक्ष्म हैं..!

तो आज सारा दिन यह अभ्यास करेंगे- "बाबा हमारी छत्र-छाँया हैं और हमारा हैं।”बाबा का आहवान भी किया करेंगे और बार-बार यह फ़िलींग अपने मन में दोहरायेंगे, "वह तो मेरा हैं..!”

ओम शांति...



 

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कई आत्मायें कहती हैं, हमने ब्रह्माबाप को नहीं देखा, यह हमारा श्रेष्ठ भाग्य मिस हो गया। लेकिन, अगर हम ब्रह्माबाबा को फ़ॉलो करने लगे तो हमारी यह भासना रहेगी कि वह हमारे सदा साथ रहते हैं। और यह जो एक संकल्प चलता हैं कि हमने उनकी पालना नहीं ली, यह समाप्त हो जाता हैं। ब्रह्माबाबा सच्चे अर्थ में मात-पिता थे, केवल कहने के लिए नहीं। उनकी भावनायें, उनका दिल वैसा ही था जैसे मात-पिता का होता हैं। पिता से भी कहीं अधिक वो माँ थे क्योंकि शिवबाबा ने उनको बड़ी माँ बना दिया था। उनके चित्त में सभी के लिए वैसा ही प्यार समाया हुआ था। हम भी उन्हें फ़ॉलो करें, मात-पिता बन जाये, सब की पालना करने वाले, सब को देने वाले। जैसे मात-पिता को बच्चो से कुछ लेने की इच्छा नहीं रहती, केवल देने की रहती हैं। बच्चो को योग्य बनाना हैं, उन्हें प्यार देना हैं, उन्हें हेल्धी रखना हैं, उनकी अच्छी पालना करनी हैं, ताकि बड़े होकर वह बहुत अपना जीवन व्यतित कर सके। वैसे ही बाबा को भी रहता था। और हमे भी सब आत्माओ के लिए वैसा ही रहना चाहिए। हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि हम सभी धर्मो की आत्माओ के पूर्वज हैं। और पूर्वजो को सब की पालना करनी होती हैं। और इस पालना के लिए हम अपने अंदर बहुत अच्छा संकल्प ले ले, "मैं पूर्वज हूँ और विश्व कल्याणकारी हूँ।”जैसे और जगह सभी को इनचार्ज बनने की इच्छा होती हैं, सेवाओ के इनचार्ज, किसी सेवाकेंद्र के इनचार्ज, और बड़े इनचार्ज... क्योंकि उससे मान मिलता हैं, उससे कई सत्ताये अपने पास रहती हैं। परंतु हम अपने को विश्व कल्याण का इनचार्ज मान ले..! भले ही इसमे हमे मान नहीं मिलेगा, भले इसमे हम लोगो की नज़रो में नहीं आयेंगे, पर हम गुप्त रुप से, सूक्ष्मरुप से संसार की सभी आत्माओ की पालना करते रहेंगे और एक दिन आयेगा, सारा संसार हमे सम्मान देगा। प्रकृति भी हमे सम्मान देगी क्योंकि उसकी भी तो हमे पालना करनी हैं, उसको भी तो हमे सतोप्रधान बनाना हैं। प्रकृति अपनी शक्ति खो चुकी हैं। हमे उसकी शक्तियाँ पुन: उसमे भर देनी हैं। और सबको याद रहे प्रकृति की मूल शक्ति हैं पवित्रता। जो आत्मायें जितनी पवित्र हैं, मानो उनके वाइब्रेशन्स प्रकृति की पालना करते रहते हैं। जो आत्मा पवित्र बन भी गई, चाहे उनकी पवित्रता कितनी भी कम हो लेकिन यह पवित्रता प्रकृति की पालना कराती हैं। तो हम विश्व कल्याणकारी हैं, पूर्वज हैं। हमे तो सब का कल्याण करना हैं। जब हमे सब का कल्याण करना हैं तो हमारे मन में किसी के लिए ईर्ष्या कैसे हो सकती हैं, घृणा, नफ़रत कैसे हो सकती हैं, गिराने की भावना कैसे हो सकती हैं..! हम तो विश्व कल्याणकारी हैं, हमे तो सब को आगे बढ़ाना हैं। उन्हें आगे बढ़ते देख प्रसन्न होना हैं, उनको उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ते देख हमारा दिल फ़ुल जाये, हमारा दिल आनंदित हो जाये। हमारा चित्त शीतल हो जाये। यह विश्व कल्याणकारी आत्माओ के लक्षण हैं।

तो आज सारा दिन हम यह स्मृति रखेंगे, "मैं पूर्वज हूँ, विश्व कल्याण की इनचार्ज हूँ। यह मेरा मुख्य कर्तव्य हैं... और सब कर्तव्य तो निमित्त मात्र हैं... मेरा असली कार्य तो आत्माओ को बल देना हैं... मैं तने में हूँ, मैं जड़ो में हूँ, मेरा एक-एक संकल्प संसार की सभी आत्माओ तक पहुँचता हैं।”यह ध्यान रखना हैं। अगर हम स्वमान में रहते हैं तो हमारे श्रेष्ठ संकल्पो का बल संसार की सभी आत्माओ का कल्याण करता रहता हैं। यह सूक्ष्म गति हमको समझ लेनी हैं। यह सब से बड़ा पुण्य हो गया कि हम संकल्पो के द्वारा सभी आत्माओ की निरंतर पालना करते रहे और साथ में यह भी ध्यान रखना हैं कि हमारे व्यर्थ संकल्प, हमारे अपवित्र संकल्प अनेक आत्माओ को नेगेटीव एनर्जी भी देंगे, यह बहुत बड़ा पाप भी हो जायेगा। तो ब्राह्मण आत्माये, पूर्वज आत्माये बहुत बड़ा पुण्य भी कर सकते हैं और बड़ा पाप भी।

तो आज सारा दिन दो स्वरुप की स्मृति विशेष रखेंगे, "मैं पूर्वज और विश्व कल्याणकारी हूँ। और कल्पवृक्ष की जड़ो में बैठकर बाबा से शक्तियाँ ले कर, पवित्रता ले कर पूरे कल्पवृक्ष में फैलाते रहेंगे।”एक बार हर घंटे में कल्पवृक्ष को वाइब्रेशन्स देने का, विश्व कल्याण का कार्य आज सारा दिन करना हैं। इससे महान पुण्य जमा होता रहेगा।

ओम शांति...



 

20

हमे एकांत में जाकर गहन चिंतन करना हैं। यह भाग्य बनाने के दिन, यह ईश्वरीय मौजो के दिन दोबारा कभी नहीं आयेंगे। याद रह जायेगी ये घड़ीयाँ, याद आया करेंगे ये क्षण कि हम भगवान से मिलते थे, उसने हमारी प्यार से पालना की थी। उसने हमे बहुत वरदान दिये थे और कैसे कैसे हमने अपना संगमयुग का सुंदर समय व्यतित किया..! सभी सोच ले, हम अपने संगमयुग के इस अनुपम काल को कैसे बीता रहे हैं..? ईश्वरीय मिलन में या मनुष्य से बाते करने में..! ईश्वरीय सुख लेने में या संसार की तृश्णाओ के पीछे दौड़्ने में। व्यर्थ चिंतन में या बाबा की छत्र-छाँया की सर्वश्रेष्ठ अनुभूती में। टाइम वेस्ट करते हुए या प्रतिपल अपना श्रेष्ठ भाग्य बनाते हुए। याद रखे, जो इस अमूल्य समय को सफ़ल करेंगे, जो अपने को सर्व खज़ानो से भरेंगे वही भगवान के काम आयेंगे। उनके द्वारा ही इस संसार की महान सेवा होगी।

तो हम सभी एक महान सेवा के लिए स्वयं को तैयार करें। हम द्रष्टि के द्वारा सबकी सेवा करेंगे, हम अपने वाईब्रेशन्स के द्वारा सबकी सेवा करेंगे। हम दो मीठे बोल बोलकर दूसरो को वरदानो की प्राप्तियों का अनुभव करा देंगे। ऐसा सुंदर समय हमारे द्वार पर आनेवाला हैं जब अनेक प्यासी आत्मायें, तड़्फती आत्मायें, अशांत और दुःखी आत्मायें हमारे पास आयेगी और याद रहे हमारे द्वार से कोई खाली न जाये। हमारे द्वार से कोई निराश न जाये। हमारे द्वार से सब संतुष्ट होकर जाये। जो जिस भावना और कामना से हमारे पास आये, उसे वही प्राप्त हो जाये। ऐसी योग की शक्ति, ऐसी पवित्रता की शक्ति, ऐसी महान शक्तियाँ हमे स्वयं में धारण करनी हैं। विचार करें, कोई प्यासा व्यक्ति हमारे पास आया हो, हमारे द्वार पर खड़ा हो और कह रहा हो, मुझें एक ग्लास पानी पीला दो नहीं तो मैं मरा जा रहा हूँ और हम उसे पानी न पीला पाये और हमारे द्वार पर ही वो दम तोड़ दे तो हमारी फ़िलींग्स कैसी होती, कि काश हम किसी का जीवन बचा पाते। ऐसा ही अनेक बार हमारे सामने होने जा रहा हैं।

अनेक तड़्फती आत्माये हमारे द्वार पर आयेगी कि हमे द्रष्टि दे दो, हमारे कष्ट हर लो, हमारे ऊपर विघ्नो के पहाड़ टूट चुके हैं, हमारे विघ्न हर लो..! और सोच लो यदि हम उन्हें मदद न कर पायें तो हमारी मनोस्थिती कैसी होगी..? हमे कितनी निराशा होगी कि काश जब भगवान भाग्य बाँट रहा था तो हम भी सचेत रहे होते। काश जब वो सर्व खज़ाने हमे दे रहा था, हमने भी अपनी बुद्धिरुपी झोली को व्यर्थ से खाली कर लिया होता। काश जब वो अपनी शक्तीयॉ और वरदान हमे दे रहा था हमने भी अपने को एकाग्रचित्त बना लिया होता। बहुत सुंदर समय चल रहा हैं। समय को महत्व देनेवाले इस संसार में बहुत महान बन जायेंगे। वह भगवान के काम आयेंगे, वह चारो युगो के लिए हीरो एक्टर बन जायेंगे, वह विश्व के इतिहास में अलग अलग समय पर महान कार्य करनेवाले होंगे। वह नामीग्रामी पर्सनालिटी बन जायेगी। ऐसा सुंदर भाग्य बनाने का समय चल रहा हैं। सभी सोच ले, इन क्षणो को हम कैसे बीता रहे हैं..?

तो आज सारा दिन इसी चिंतन में व्यतित करेंगे और अभ्यास करेंगे बार-बार कि "मैं पवित्रता का फ़रिश्ता हूँ, मैं पवित्रता का सूर्य हूँ... मेरे अंग-अंग से रंगबेरंगी किरणे चारो ओर फ़ैल रही हैं... और मुझें संपूर्ण फ़रिश्ता बन जाना हैं...”अपने संपूर्ण फ़रिश्ते स्वरुप को विज्युलाइज(visualise) करेंगे। और बार बार उसे अपने में मर्ज करेंगे। ऐसा सामने देखेंगे कि मेरा संपूर्ण फ़रिश्ता स्वरुप हैं, धीरे धीरे चलकर मेरी ओर आता है और मुझमे समा जाता हैं और मैं बन गया संपूर्ण फ़रिश्ता..!

ओम शांति...



 

21

बाबा की हम सभी के लिए शुभ भावना हैं कि मेरे सभी बच्चे निर्विघ्न बन जायें। सोचो, भगवान को कैसा लगता होगा जब वो देखता हैं कि उसके बच्चे भी विघ्नो में जीवन जी रहे हैं, उदासी में जीवन जी रहे हैं, परेशानीयो में जीवन जी रहे हैं..! तो हम अपने स्वमान को पहचाने। हम तो हैं सभी के विघ्न नष्ट करने वाले, हम तो बाबा का स्वरुप बननेवाले हैं... योगी तो नेक्स्ट टु गोड होते हैं, भगवान का स्वरुप होते हैं। हमे अपने जीवन को विघ्नो में नहीं बीता देना हैं। बाबा ने विशेष इशारा दिया कि संकल्पो में भी विघ्न न हो। दो बाते हम याद रखेंगे, हमारे संकल्पो में भी विघ्न न हो और हम किसी के मार्ग में विघ्न डाले भी नहीं। कोई आगे बढ़ रहा हैं तो उसका रास्ता साफ़ कर दे, उसे सहयोग दे, बढ़्ने में मदद करें, न कि ईर्ष्या करें। ईर्ष्या के संकल्प हमारे अपने जीवन में विघ्न बन जाते हैं, नफ़रत के संकल्प हमारे अपने जीवन में विघ्न बन जाते हैं। बाबा ने हमे समय दे दिया हैं एक मास का और हम इस मास में अपनी स्थिति को संपूर्णत: निर्विघ्न बनायेंगे। व्यर्थ संकल्पो के विघ्न हमारे पास न हो। कोई ऐसा संकल्प न हो जो हमारे मन को अशांत करता हो, जो हमारे मन में उद्वेग की ज्वाला जला देता हो, जो हमारे चित्त के चैन को नष्ट कर देता हो। सबसे बड़ी हमारी साधना यही हैं। सबसे सुंदर आध्यात्म का स्वरुप भी यही हैं कि हम अब संकल्पो के विघ्नो से मुक्त हो। जब हम संकल्पो और उसके विघ्नो से मुक्त होंगे तभी तो हम निर्विघ्न जीवन जीयेंगे और तभी हम में शक्ति आयेगी संसार के विघ्नो को नष्ट करने की। यदि हम अपने विघ्नो में ही लगे रहेंगे, यदि छोटी छोटी बात को विघ्न बनाकर अपनी स्थिति को नीचे गिराते रहेंगे तो हम दूसरो के विघ्न कैसे नष्ट कर सकेंगे..? जबकी हमे तो एक दूसरे को सहयोग देना हैं। संसार में भी जो अच्छे मित्र होते हैं, जो अच्छे परिवार में संबंधी, भाई, बहने होते हैं वो एक दूसरे को मदद करते हैं। जो अच्छे नहीं हैं वो विरोध करते हैं, वो दूसरे को आगे बढ़ने से रोकते हैं, उनके मन में जलन पैदा होती हैं। पर हम तो गोडली फ़ेमिली (ईश्वरीय परिवार) के सदस्य हैं। हमे एक दूसरे को प्यार देना हैं और अगर कोई विघ्नो में आ गया हैं तो उसे मदद करनी हैं। संकल्पो के विघ्नो में, अपवित्रता के विघ्नो में कोई आ गया हैं, कोई ब्लेक मेजीक (काला जादू या तंत्र मंत्र) के विघ्नो में आ गया हैं, किसी के जीवन में ऐसे ही अनचाहे विघ्न आने लगे हैं, अकस्मात हो गये हैं, काम-धंधे ठ्प हो गये हैं, सब लोग विरोधी हो गये हैं... यह सब विघ्नो के स्वरुप होते हैं। हम इसमे एक दूसरे को मदद करें। और सबसे अच्छी मदद यही होती हैं कि हम उन्हें उनकी सोई हुई शक्तियो को याद दिलाये। हम उन्हें याद दिलाये कि तुम्हारे साथ तो भगवान हजार भूजाओ के साथ हैं, वो तो तुम्हारी छत्र छाँया हैं। हम उन्हें याद दिलाये कि तुम तो स्वयं विघ्नविनाशक हो, तुम मास्टर सर्वशक्तिवान हो, तुम साधारण नहीं हो, तुम्हें इन विघ्नो से नहीं घबराना हैं, तुमने कल्प-कल्प इन विघ्नो को पार किया हैं। यह स्मृतियॉ दूसरो में जागृति पैदा करेगी।

तो आज सारा दिन हम बहुत अच्छा अभ्यास करें, फ़रिश्ते सो देवता का। बहुत अच्छी यह ड्रिल हैं। एक-दो बार बैठकर कर ले। मेरे लेफ़्ट साइड में मेरा फ़रिश्ता स्वरुप यानी फ़रिश्ते की ड्रेस टंगी हैं। राइट साइड में मेरी देवताई ड्रेस टंगी हैं और यहाँ मैं अपनी ब्राह्मण ड्रेस में हूँ, ड्रेस माना शरीर। अब मैं इस ड्रेस से निकलकर चलता हूँ फ़रिश्ते की ड्रेस में... मैं बन गया फ़रिश्ता... मेरे अंग अंग से प्रकाश की किरणे फैलने लगी, अपने स्वरुप को बहुत क्लिअर देखे। फिर इस फ़रिश्ते स्वरुप से निकलकर देव स्वरुप में... डबल ताज़धारी... बहुत डीवाईन... तेजस्वी शरीर, संपूर्ण पवित्र। अब मैं इस देह में हूँ, फिर ब्राह्मण देह में। तीनो का हमे नशा चढ़ता जाये और फिर सारे दिन में स्मृति रखेंगे कि मैं फ़रिश्ता हूँ और मुझें देवता बनना हैं।

ओम शांति



 

22

हम सभी कितने भाग्यवान हैं कि हमे रोज़ परमात्म दुआयें मिलती हैं। रोज़ सवेरे जब हम उससे नाता जोड़्ते हैं, जब उसकी शक्ति हमे मिलने लगती हैं, जब उसकी सेवाओ में हम दिन-रात अपने को समर्पित कर देते हैं तो हम उसकी दुआओ के पात्र बन जाते हैं। सोचो, जिन्हें भगवान की दुआयें मिल रही हो वो स्वयं कितने महान बन जायेंगे। लेकिन, हमे भगवान से दुआयें माँगनी नहीं हैं, अधिकार से प्राप्त करनी हैं। हम स्वयं को इतना योग्य बना दे, स्वयं को इतना महान बना दे, इतना आज्ञाकारी बना दे कि प्रभुदुआयें हमे स्वत: ही मिलती रहे। और जिनके साथ दुआयें होती हैं उनकी जीवन की यात्रा सरल हो जाती हैं। उन्हें कदम-कदम पर सफ़लता मिलती हैं। विघ्न, बीमारीयाँ, अनेक बाधायें उनको रोक नहीं पाती हैं क्योंकि भगवान की दुआयें उनके साथ चलती रहती हैं। तो सोच ले, हम ऐसा क्या करें जो प्रभुप्रेम के पात्र भी बन जायें और उसके दुआओ के अधिकारी भी बन जायें। इसी तरह हमे अनेक महान आत्माओ की भी दुआयें मिलती हैं। कलियुग में मनुष्य को थोड़ी सी महान आत्मायें किसी को दुआ देती हैं। उनके पास भी बहुत ज्यादा अलौकिक बल नहीं होता और दुआयें लेने वाले भी पवित्र नहीं होते। हम स्वयं भी पवित्र हैं और दुआयें देने वाली अनेक महान आत्माओ ने अपने जीवन को पवित्रता से शृंगार किया हैं। तो महान आत्माओ की भी हम दुआयें ले। यदि हम उनसे बहस करेंगे, यदि हम उनका अपमान करेंगे, यदि हम उनके लिए कटू वचन बोलेंगे तो सोच ले भला उनकी दुआयें हमे कैसे मिलेगी। बड़ो की दुआयें तो बहुत बड़ी होती हैं, बड़ो की दुआयें तो बड़ा काम करती हैं। हम देख सकते हैं, जिन बच्चो के साथ माँ-बाप की दुआयें हैं उन्हें सहज सफ़लता मिलती हैं और जो बच्चे माँ-बाप का अपमान करते रहते हैं, उनसे लड़्ते रहते हैं, उनका सफ़लता का द्वार भी बंद हो जाता हैं। इसलिए हमे ऐसे श्रेष्ठ कर्म करें, स्वयं को इतना उंचा उठाये, दूसरो को सुख दे ताकि हमे महान आत्माओ की दुआयें भी मिलती रहे। और साथ-साथ हमे दुआयें प्राप्त करनी हैं जो ग़रीब हैं, जो असहाय हैं। जो असहाय हैं उनकी मदद करना हमारा परम कर्तव्य हैं। जिनको कोई नहीं पूछता, उन्हें पूछना, जिनकी ओर कोई नहीं देखता उनको मदद करना। यह हम सभी महान आत्माओ का कर्तव्य हैं।

तो आइये हम अपने जीवन को दुआओ से भरे ताकि हमारी जड़ मूर्तियाँ जन्म-जन्म सबको दुआयें देते रहे। हम अपने चेहरो को इतना दिव्य, इतना शांति और खुशी से इतना भरपूर करें ताकि भक्ति में हमारे चेहरे देखकर दूसरो के दुःख दूर होते चले, उनके तनाव समाप्त होते चले।

दुआओ के स्वयं को पात्र बनायें और न केवल दुआयें ले लेकिन हमे यहीं से दुआयें देने का सिलसिला प्रारंभ करना हैं। कोई हमे एक बददूआ दे, हम उसे दस दुआयें दे, कोई हमारी एक बुराई करें, हम उसकी दस महिमा कर दे। दुआयें देने की परंपरा हम यहीं से शुरु करेंगे तो हमारी जड़ मूर्तियों से भी सबको दुआयें मिलती रहेगी।

तो आज सारा दिन हम स्वमान में रहेंगे कि, "मैं वही हूँ जिनकी मंदिरो में पूजा हो रही हैं... जिनके द्वारा भक्तो को दुआयें मिल रही हैं, जिनके द्वारा भक्तो की मनोकामनायें पूर्ण हो रही हैं।”अपने पूज्य स्वरुप को ईमर्ज करेंगे और साथ साथ अभ्यास करेंगे कि, "ऊपर से सर्वशक्तिवान की किरणे मुझ में समा रही हैं... फिर पवित्रता के सागर की पवित्र किरणे मुझ में समा रही हैं और मुझें अथाह सुख मिल रहा हैं, मैं अतिंद्रियों सुखो की गहन अनुभूतियों में जा रही हूँ..!”इस तरह की गुड फ़िलींग करते हुए आज के दिन को पूर्णत: सफ़ल करेंगे।

ओम शांति



 

23

संगमयुग भाग्यवान आत्माओ को ही प्राप्त हुआ हैं। यह अनमोल समय सचमुच कल्प में केवल एक बार ही आता हैं जब भगवान अपने बच्चो का शृंगार करते हैं, जब वो भाग्य बाँटते हैं, वरदान देते हैं और जन्म-जन्म के लिए भरपूर कर देते हैं..! हम पूछे अपने से, "मेरा संगमयुग कैसे बीता..? क्या मेने संगमयुग के एक-एक क्षण को उतना ही महत्व दिया जितना इसका महत्व हैं, जितना इसको बाबा वेल्यु देते हैं..?”-हमारा एक-एक सेकण्ड बहुत ही मूल्यवान हैं, बाबा कहते हैं एक वर्ष के बराबर हैं..! और हमारा एक-एक संकल्प बहुत महान हैं। हमारा एक-एक कर्म भी, हमारा श्रेष्ठ पुरुषार्थ भी, हमारा अमृतवेले का योग, मुरली सुनना, सारा दिन सेवा करना या अपने कार्यो में अलौकिक रुप से निष्कामभाव से रहना..! यह सब इस संगमयुग की महानताये हैं।

तो सभी बहुत गंभीरता से विचार करेंगे। मैंने अपना संगमयुग कैसे बिताया हैं? एक व्यक्ति 16 साल से ज्ञान में थी, इनके जीवन में समस्यायें बहुत हैं। उनको पूछा गया 16 साल में कितने घंटे योग किया होगा? तो उत्तर मिला, "16 घंटे..!”तो देखिए यह तो संगमयुग के महत्व को समझने की बात नहीं हैं।

अगर योग अच्छा नहीं तो जीवन समस्याओ से घिरता जाता हैं, मन परेशान होता रहता हैं क्योंकि अब सभी के कर्मो के हिसाब-किताब पूर्ण होने का समय आ गया हैं।

तो फिर से सोचे, "मैंने अपना संगमयुग कैसे बिताया हैं?”-अलबेलेपन में, दूसरो को देखते हुए, परचिंतन करते हुए, तेरी-मेरी में, सेवाओ में संघर्ष में या सेवाओ का आनंद लेते हुए, अमृतवेले सो कर बिताया या अमृतपान करके बिताया, मुरली का रस लिया या कभी लिया कभी नहीं लिया..! कैसे बिता हमारा दिन, कैसे हम बाबा के साथ अनुभव में रहे, पूरा संगमयुग कैसे हमने बिताया..? ज़रा एक नज़र ड़ाल ले। और अब पुन: ध्यान दे कि हमारा यह पुरुषोत्तम संगयुग कैसे बित रहा हैं? ऐसे तो नहीं कि हम फिर से अलबेलेपन में इस अनमोल समय को व्यतित कर रहे हैं। चेंज (परिवर्तन) करेंगे अपने को। जितना महत्व इस समय को स्वयं भगवान दे रहे हैं उतना ही महत्व हमे भी इस समय को देना हैं।

बस, हम जितना चाहे उतना भाग्य बना ले और विचार कर ले अब अच्छी तरह, गहराई से कि आने वाले संगमयुग के दिनो को हमे कैसे व्यतित करना हैं..? महान स्थिति में या तेरे-मेरे में, उलझनो में या ईश्वरीय मौजो में, प्रतिपल सफ़ल करते हुए या हर क्षण और हर संकल्प दूसरो के बारे में सोच-सोचकर उसे व्यर्थ गवाँते हुए..! अपने जीवन का एक सुंदर प्लान (योजना) बनायेंगे। यह प्लान ही हमे महान लक्ष्य की ओर ले चलेगा। लक्ष्य भी निश्चित करें और सुंदर प्लानिंग (आयोजन) भी करें। लक्ष्य अगर कोई महान बना भी ले, लेकिन उसे प्राप्त करने की प्लानिंग बहुत अच्छी न हो तो लक्ष्य का कोई महत्व नहीं रह जाता, लक्ष्य मनुष्य को निराशा के गर्त में ले चलता हैं। तो सुंदर लक्ष्य भी और उसको प्राप्त करने की सुंदर प्लानिंग बनाये।

तो आइये आज हम सारा दिन इस स्वमान में रहे कि, "मुझ जैसी भाग्यवान आत्माओ को ही यह पुरुषोत्तम संगमयुग का सुंदर काल मिला हैं, सुंदर अवसर मिला हैं जिसमे मैं अपनी स्थिति को महानतम बना सकता हूँ/सकती हूँ और आने वाला समय हमसे माँग करेगा कि हमने संसार को देने के लिए स्वयं में क्या-क्या भरा हैं?

तो आइये आज अभ्यास करें, "इस संगमयुग में सामने बापदादा बैठे हैं (जो साकार स्वरुप को ईमर्ज कर सके वो उसे करे, और जो अव्यक्तरुप में बापदादा से मिले हैं वो उसे देखे) और बाबा ने अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख दिया हैं... बाबा दृष्टि दे रहे हैं और वरदान भी दे रहे हैं कि बच्चे, महान भव... संपूर्ण पवित्र भव... सफ़लतामूर्त भव...”-और आज इस तरह इस नशे में रहेंगे कि स्वयं भगवान का हमे साथ मिला हैं।

ओम शांति...



 

24

बाबा ने आकर हमे माया को जीतने की शक्ति प्रदान की हैं। और साथ-साथ टाईटल भी दिया कि बच्चे तुम मायाजीत हो..! तो हमे काम को जीतने का जज्बा अंदर में होना चाहिए। कामवासनां चाहे कितनी भी प्रबल हो लेकिन हमारे साथ ईश्वरीय शक्ति हैं। हमे उस शक्ति के बल से इस माया को हराना ही हैं। इसलिए पहली चीज़ हैं स्वयं से द्रढ़ प्रतिज्ञा कर ले कि, "मुझें पवित्र बनना हैं... इस काम महावेरी ने मेरा सबकुछ छिन लिया हैं...मेरा राज्य-भाग्य नष्ट कर दिया हैं...अब मैं इसे नष्ट करुंगा...”यह संकल्प, यह प्रतिज्ञा हमे बल प्रदान करेंगी।

हम जानते हैं कि केवल प्रतिज्ञा करने से कामवासना को नहीं जीता जा सकता। दूसरी प्रेक्टिस हम रखेंगे, "मैं आत्मा परमपवित्र हूँ... मैं पवित्रता का देवता/देवी हूँ... पवित्रता का सूर्य हूँ... मैं देवकूल की पवित्र आत्मा हूँ...”अपने देव स्वरुप को याद करेंगे। पवित्र संस्कार जागृत होते जायेंगे।

तीसरी प्रेक्टिस, बहुत अच्छा योग अभ्यास। क्योंकि बिना योगबल के माया को जीतना संभव नहीं हैं। फिर भी हम याद रखेंगे कि माया को एक दिन में नहीं जीता जाता। काम के कोई भी संकल्प आपको आये, उसे दूर करते चले और आगे बढ़्ते चले। निराश होने की आवश्यक्ता नहीं कि यह संकल्प हमे क्यों आ रहे हैं। क्योंकि काम को संपूर्णरुप से जीतना एक लंबी यात्रा हैं। कुछ भी disturbance (विघ्न) नींद में भी होता हैं उसको जल्दी से जल्दी समाप्त करके आगे बढ़े।

तो हमे मायाजीत बनना हैं और जिन्हें इस माया को जीतने का द्रढ़ संकल्प होता हैं, बाबा की बहुत ज्यादा मदद उन्हें मिलती हैं। इसी के लिए बाबा कहते हैं कि जो हिम्मत रखते हैं उनको बाबा की बहुत मदद मिलती हैं। लेकिन हमे एक चीज़ ध्यान रखनी हैं... वासनांओ से जुडी़ हुई जो चीज़े हैं उनका हमे पूरी तरह त्याग कर देना हैं. चाहे खान-पान, चाहे गंदी चीज़े देखना, पिक्चर्स देखना, गंदे चित्र देखना, उसके बारे में चिंतन करना, उसको एंजोय करना... कोई सोचे हम कर्म थोड़ा ही करते हैं, हम तो केवल संकल्पो में एंजोय करते हैं... यह भी कामवासना से हार हैं..! और इससे भी यह वासनाये जागृत हो जाती हैं। इसलिए आओ हम सभी पवित्रता को एक चेलेंज के रुप में स्वीकार करें। हमारा महान कर्तव्य हैं कि संपूर्ण प्रकृति को भी पावन बनाना। इस समय चारो ओर दूषित वायुमण्डल फैला हुआ है। हमारा यह मूल कर्तव्य हैं कि हम इस वायुमण्डल को पावन करेंगे। अन्यथा बच्चे, युवक, बुढे़ सभी के अंदर वासनाये बढ़्ती जा रही हैं। इससे संसार में अनैतिकता का भयानक दौर चल रहा हैं। मानव ने मानवता खो दी हैं। कोई कुछ भी करने पर उतारू हैं। अनेक जगह ऐसे केस आप सुनते ही होंगे, जिसमे मनुष्य अपनी वासनाओ के अधिन होकर अपने बच्चो से भी गलत कार्य कर लेते हैं। तो हमे इस वातावरण को योगबल से समाप्त करना हैं। यह हमारी जिम्मेदारी हैं। साथ-साथ हम यह भी याद रखेंगे, "हम आधारमूर्त हैं... हमारी प्युरिटी इस संसार को पावन बनायेगी... हमारी स्थिति सृष्टि की स्थिति उत्पन्न करती हैं, जैसी हमारी स्थिति वैसी सृष्टि की स्थिति होती हैं"

तो आईये हम महामायाजीत बनने का द्रढ़ संकल्प करें। हम माया को नहीं जीतेंगे तो भला कौन जीतेगा..? चलते चलते माया से हार खानी नहीं हैं। प्रतिज्ञा में अपने को बाँध लेना हैं, कुछ नियमो में अपने को बाँध लेना हैं। नियमो में बंधा हुआ मनुष्य काफ़ी सुरक्षित हो जाता हैं। जो नियम नहीं बनाते वह ढिले रहते हैं।

तो हम सभी आज बहुत अच्छी प्रेक्टिस करेंगे, "मैं पवित्रता का देवता हूँ... पवित्रता का सूर्य हूँ... और परमधाम में पवित्रता के सागर बाबा... हम आत्मा बनकर उड़्कर चलेंगे परमधाम... पवित्रता के सागर की पवित्र किरणो के नीचे बैठेंगे... उनसे पवित्र किरणे रिसिव करेंगे... स्वयं में पवित्र किरणे भरकर वापिस आयेंगे देह में चारो ओर फैलाने के लिए... मस्तक सिंहासन बैठेंगे... और अनुभव करेंगे... मुझसे चारो ओर पवित्रता की सफेद किरणे फैल रही हैं... फिर उपर चलेंगे... बाबा से पवित्र किरणे भरेंगे, नीचे आयेंगे, फैलायेंगे...”यह अभ्यास आज सारा दिन चालु रखेंगे।

ओम शांति



 

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कितनी खुशी और नशे की बात हैं कि स्वयं भगवान परमधाम छोडकर रोज़ हमे पढ़ाने आते हैं। हम सभी को जन्म-जन्म से सत्य ज्ञान की तलाश थी। हम यहाँ वहाँ भटकते थे, शास्त्र-ग्रंथ पढ़्ते थे परंतु हमारी सत्य की पिपासा कभी तृप्त नहीं होती थी। बाबा ने आकर, सत्य ज्ञान देकर हमारी खोज़ समाप्त कर दी। और वह रोज़ आकर हमे पढ़ाते हैं, कितना सुख देते हैं..! सामने बैठकर हमे स्मृत्तियाँ दिलाते हैं, हमारी बंद बुद्धि को खोलते हैं, हमे दिव्य बुद्धि प्रदान करते हैं, हमे स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं और उसी मुरली में अनेक समस्याओ का हमे समाधान भी दे देते हैं। अगर मुरली को हम बहुत आनंद पूर्वक सुने तो यह मुरली का रस, मुरली का सुख जीवन को अनेक कष्टो से मुक्त कर देता हैं।

ध्यान दे, हम गोडली स्टुडंट हैं। क्यों न हम इस स्टुडंट लाईफ़ को एंजोय करें..! पढ़े, लिखे, मनन-चिंतन करें, अपनी स्मृत्तियों में वो सब चीज़े भरे। तो बाबा यह मुरली हम सभी के लिए वरदान ले कर आया हैं।

सचमुच, मुरली रोज़ हम सभी के लिए वरदान हैं। जो लोग मुरली नहीं सुनते, जो लोग क्लास में नहीं जाते, जो अपने काम-धंधो में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें भगवान के महावाक्य सुनने का भी समय नहीं मिलता, वो तो सोच ले... हम उनको क्या कहे..! यह अपने भाग्य को कम करनेवाली बात हैं।

रोज़ भाग्य मिलता हैं हमे ईश्वरीय महावाक्यो से। यही वो मुरली हैं जिसकी तान पर सभी गोप-गोपीयाँ सुधबुध भूल जाते थे और आज भी लाखो गोप गोपीयाँ हैं जो मुरली के बिना रह नहीं सकते..! तो हम क्लास में पहुँचे, मुरली सुने। जो किसी भी कारण से नहीं पहुँच सकते, बहुत ज्यादा परिस्थिति हैं वही केवल नेट पर या टीवी पर देखे-सुने। बाक़ी सभी को ध्यान देना चाहिए कि मुरली का आनंद क्लास में बैठकर ही आता हैं। जब हम अपनी सुंदर स्थिति में बैठे और इस फ़िलींग में बैठे कि बाबा हमे बहुत कुछ याद दिला रहा हैं क्योंकि हमे फ़ुल पास होना हैं।

तो चारो ही सब्जेक्ट्स में हम फ़ुल बने। ज्ञान मनन से ज्ञान का बल प्राप्त करें। ज्ञान का चिंतन हमारे अंदर चलता रहे, ज्ञान की गंगा हमारी बुद्धि में बहती रहे। योग का बल, उससे सब परिचित हैं। धारणायें हम कुछ ऐसी चुन ले जिनके द्वारा हमे धारणा के सब्जेक्ट को संपूर्ण मार्क्स मिले और वह हैं संतुष्टता, सरलता, सहनशीलता, निरहंकारीता। यह सब बहुत सुंदर धारणायें हैं। प्युरिटी, शुभ भावनायें इन पर अगर हम ध्यान देंगे तो बाक़ी सब धारणायें स्वत: ही हमारे जीवन में आती रहेंगी। सेवा का फ़िल्ड भी हमारे लिए बहुत ही सुंदर हैं। लेकिन जो निमित्त भाव से सेवा करते हैं, जो निर्हंकारी होकर सेवा करते हैं, जो सेवाओ में मैं-पन का अभाव रखते हैं, जो सेवा के फ़िल्ड को टकराव का फ़िल्ड नहीं बनने देते, सेवा उनके लिए वरदान बन जाती हैं।

तो इस तरह हम चारो सब्जेक्ट में फ़ुल होने का लक्ष्य रख ले। लेकिन सभी का बीज हैं ज्ञान, ज्ञान की मुरली। इस पर हम विशेष ध्यान दे।

तो आओ हम मुरली का रस स्वयं में भरते हुए ज्ञान के बल से स्वयं को संपन्न करे और आज सारा दिन याद रखे, "मैं गोडली स्टुडंट हूँ... वाह, क्या मेरी तकदीर...स्वयं भगवान मुझें पढ़ाने आते हैं...अपना धाम छोडकर मुझें दिव्य विवेक प्रदान करने आते हैं... मुझें वरदानो से सजाने आते हैं”और फिर परमधाम में बाबा को देखे... "हे प्यारे बाबा... आ जाओ...”और अनुभव करें बाबा नीचे उतर रहे हैं... सूक्ष्मलोक में ब्रह्मा तन में प्रवेश किया... फिर दोनो नीचे आ रहे हैं... और आ गये हमारे सम्मुख... सिर पर अपना वरदानी हाथ रख दिया..!

इस तरह बार-बार बाबा का आह्वान करेंगे। हर घंटे में कम से कम एक बार अवश्य करेंगे और गोडली स्टुडंट लाईफ़ का नशा अवश्य रखेंगे।

ओम शांति



 

26

बाबा ने आकर अपनी महान आत्माओ को चुनकर इस संसार को पुन: देवयुग मे परिवर्तन करने का महान कार्य हम सब को सौंप दिया हैं। ऊपर से जब बाबा ने देखा कौन-कौन सी आत्मायें इस संसार में सबसे अधिक चमक लिए हुए हैं, कौन कौन मेरे काम की हैं..! तो उनकी नज़र पड़ी हमारे ऊपर। उसने देखा की संसार में इन आत्माओ की चमक ही सबसे ज्यादा हैं और यही मेरे काम के हैं... कल्प पहले भी इन्होंने ही मुझें मदद की थी।

उसने हमे निमित्त बना दिया अपने महान कार्यो के। उसने हमे वो योग्यतायें (talents), शक्तियाँ, गुण, धन-संपदा भी दे दी कि हम उनके कार्यो में पूर्णतया: सहयोगी बन सके। तो यह कितने बड़े भाग्य की बात हैं..! हम इस स्वमान को बहुत बढ़ा दे कि "मैं एक महान आत्मा हूँ और बाबा की मुझ पर नज़र हैं... सारे दिन में कई बार वो वतन से मुझें देखता हैं कि बच्चे की स्थिति क्या हैं..? विचार कहाँ है..? बुद्धि कहाँ है..? क्या अपने कर्तव्यो को कर रहे हैं या भूल गये हैं छोटी-मोटी बातो में उलझकर..! "- क्योंकि उसने हमे महान कार्य सौंपा हैं युग को बदलने का, इस धरा को भरपूर करने का, प्रकृति को पावन बनाने का, सभी आत्माओ को दुःखो से मुक्त करने का और अनेक आत्माओ को मुक्ति और जीवनमुक्ति का वरदान दिलाने का..!

यह छोटा काम नहीं हैं। उसकी नज़र हम पर रहती हैं। कोई बड़ी कंपनी हो, उसके जो चैरमेन होंगे या मालिक होंगे उनकी नज़र उन लोगो पर जरुर रहेगी जो उनके उस कार्य को चलाने में मुख्य रोल प्ले करते हैं। जो मेनेजर्स होंगे, जो अधिकारी होंगे, जो जनरल मेनेजर या MD होंगे उन पर विशेष नज़र रहेगी, कृपा भी रहेगी, मदद भी करेंगे, उन्हें अपना बनाकर भी रखेंगे। ऐसे ही भगवान की हम पर नज़र रहती हैं। वो हमे बहुत प्यार भी देता हैं, हमे हर समय मदद भी करता हैं। हम यह बात भूले नहीं कि वो हमे मदद देने के लिए हमेशा ही तैयार रहता हैं, तभी तो बाबा कहा करते हैं कि बाप जब देखता हैं कि यह बच्चे हज़ार भुजा वाले के पास न आकर दो भुजा वालो के पास जा रहे हैं..! तो सोचते हैं कि अब हम इनके लिए क्या करें?

वो बाबा, जो हमे बहुत प्यार करता हैं, हमे कठिनाईयों में देख ही नहीं सकता और संपूर्णरुप से हमे मदद करने के लिए सदा ही तत्पर रहता हैं। हम केवल उसके पास पहुँचे, बुद्धि को उनपर एकाग्र करें, उनके वरदानो को याद करें, स्वयं में उनकी शक्तियाँ भरे तो मदद मिलेगी, मदद के हम स्वरुप ही बन जायेंगे। हमे बाबा इतना शक्तिशाली बना देता हैं कि हमे किसी की भी मदद की जरुरत न पड़े। हम बाबा से मदद ले और संसार को मदद करें।

तो हम सभी अपने इस स्वरुप को पहचानेंगे, बहुत अच्छी तरह इसका अभ्यास करेंगे और आज सारा दिन फ़रिश्ता सो देवता की ड्रिल करेंगे। अपने तीनो स्वरुप देखे, लेफ़्ट साईड में मेरा संपूर्ण फ़रिश्ता स्वरुप हैं... जिसके अंग अंग से किरणे फैल रही हैं... राईट साईड में मेरा सजा-सजाया देव स्वरुप, दिव्य स्वरुप हैं... वो भी संपूर्ण हैं...सिर पर डबल ताज़ हैं...सिर के ऊपर प्रकाश का ताज़ भी चमक रहा हैं... फिर मैं यह ब्राह्मण हूँ... सबसे ज्यादा भाग्यशाली... भगवान के द्वारा चुनी हुई महान आत्मा।

अब अभ्यास करेंगे, "मै आत्मा इस देह से निकलकर जाती हूँ अपने संपूर्ण फ़रिश्ते स्वरुप में... आत्मा को देखे चमकती हुई मणी... वहाँ से निकलकर पहुँच जाती हूँ देव स्वरुप में... कुछ देर उसको एंजोय करे... फिर उससे निकलकर आ जाती हूँ ब्राह्मण शरीर में..."- और इन तीनो में चक्कर लगा ले पाँच बार। बहुत आनंद आयेगा और उनके सारे गुण, प्युरिटी, कलायें हम में आती रहेंगी।

ओम शांति...



 

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हम सभी को बाबा ने अपने महान कार्य की महान जिम्मेदारी दी हैं। जरुर उसने हमे योग्य समझा होगा और वो महान कार्य करने के लिए उसने हमे शक्तियाँ भी दी, सर्व ख़जाने भी दिये ताकि हम दुःखीओ के दुःख दूर कर सके। जो अशांत है उन्हें शांति दे सके, उन्हें शांति का मार्ग दिखा सके, जो परेशान हैं उन्हें श्रेष्ठ शान में स्थित कर सके। बाबा ने हमे सर्व ख़जाने प्रदान किये हैं। हम गिरतो हूओ को उठायें। गिराने वाले तो संसार में अनेक हैं। पर जो दूसरो को गिराते हैं वो स्वयं कभी श्रेष्ठ स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकते। जो दूसरो को आगे बढ़्ने से रोकते हैं, दूसरे आगे बढ़ रहे हो और वो परेशान होते हैं कि हमारा क्या होग।, नाम तो इनका हो जायेगा या आगे बढ़ जायेंगे। ऐसी आत्मायें सदा ही पिछे रहेंगी। भले ही उन्हें पद पोजिशन बड़ा मिल जाये लेकिन संगमयुग पर पद पोजिशन नहीं, श्रेष्ठ स्थिति की सिट पर बैठना एक महान प्राप्ति हैं। जिसने संगमयुग पर अतिंद्रिय सुखो में जीवन जीना सीख लिया, जिसने संगमयुग पर बाबा के महान कार्यो को पूर्ण करना सीख लिया, जिसने बाबा की सभी आज्ञाओ को जीवन में धारण कर लिया, जो मैं-पन से मुक्त हो गये वो महान हैं।

बाबा हमेशा कह रहे हैं, "चाहे कोई कैसा भी हो तुम सभी के लिए शुभ भावना रखो।”बहुत बड़ी बात बाबा ने कही। चाहे रावण से भी हजार गुणा कोई तुम्हारा दुश्मन हो, तुम उसके लिए भी शुभ भावनाये रखो। हम सोचने लगते हैं कि हम ऐसा क्यों रखे, भला ऐसा हो सकता हैं क्या..? लेकिन हमे सोचना यह चाहिए कि यह भगवान की आज्ञा हैं और उसकी आज्ञाओ को पालन करने में हमे बहुत बल मिलता हैं, हमारा कल्याण होता हैं, हमारे द्वारा सेवायें होती हैं क्योंकि आनेवाले समय में सेवायें केवल भाषण से नहीं होगी। सेवायें केवल उनके द्वारा होगी जिन्होंने स्वयं में सर्व ख़जाने जमा किये होंगे, जिनका चित्त दूसरो के लिए शुभ भावनाओ से भर गया होगा। जो योगयुक्त रहकर इस संसार से उपराम हो गये होंगे, बेहद के वैराग्य में आ गये होंगे। तो हमे आने वाले समय की चुनौतीयो को स्वीकार करने के लिए अपने को हर तरफ़ से समेटकर व्यर्थ से मुक्त रखते हुए अब सर्व ख़जाने जमा कर देने हैं।

हे बाबा के बुद्धिमान आत्माओ जिन्हें सदविवेक प्राप्त हुआ हैं वे आत्मायें अब संसार को देने के लिए तैयार हो जाये। ऐसा समय भी आयेगा जब हमे सेकण्ड में बीजरुप बनना पड़ेगा। इससे हमसे बहुत अधिक शक्तियाँ चारो ओर वाईब्रेट होंगी और यह शक्तियाँ अनेक चीज़ो को परिवर्तित करेगी। जैसे शस्त्र से शस्त्र को काटा जा सकता हैं, जैसे युद्ध में विमान को विमान से गिरा दिया जाता हैं वैसे ही हमारे श्रेष्ठ वाईब्रेशन्स लोगो के नेगेटीव वाईब्रेशन्स को बहुत जल्दी सेकण्ड्स में समाप्त कर देंगे। बस जरुरत इस बात की हैं कि हम अपने श्रेष्ठ संकल्पो में अपनी शुभ भावनाओ में शक्तियाँ भरे। योग की शक्ति, प्युरिटी की शक्ति, शुभ भावनाओ की शक्ति, प्रेम की शक्ति।

तो आज सारा दिन हम बार-बार सेकण्ड में बीजरुप होने की प्रेक्टिस करेंगे। बीजरुप का अर्थ हैं निर्संकल्प होकर बाबा के स्वरुप पर स्थिर हो जाना। और यह काम वही कर सकेंगे जो लम्बा काल स्वयं से व्यर्थ से मुक्त रखेंगे। जो श्रेष्ठ संकल्पो में रमण करते हैं वही सब संकल्पो को सेकण्ड में समेटकर बीजरुप हो जाते हैं।

तो आज बार-बार बाबा के स्वरुप पर बुद्धि को स्थिर करेंगे और अनुभव करेंगे कि बाबा से रंगबेरंगी किरणो की पिचकारी, शक्तियों की पिचकारी मेरे ऊपर पड़ रही हैं।

ओम शांति...



 

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हम सभी को बाबा ने एक महान कार्य सोंपा हैं कि तुम्हें इस संसार में अशांत आत्माओ को शांति देनी हैं। हम अपने को पीस हाउस बनाये, अपने अंदर शांति की शक्ति भर ले ताकि हम आनेवाले समय में और अब भी अनेक अशांत आत्माओ को शांति दे सके। संसार में अशांति बढ़्ती ही जा रही हैं। विकारो ने और पापकर्मो ने संबंधो में कड़वाहट भर दी हैं। बीमारीयाँ उग्र रुप लेती जा रही हैं और संसार अशांति की जपेट में आता जा रहा हैं। आपके पास लोग आयेंगे, आते होंगे... "हमारे सिर पर हाथ रख दो, हमारा चित्त शांत हो जाये... हम पर द्रष्टि डाल दो...अपने घर का पानी पीला दो..!”- हम विचार करें, क्या हमारे अंदर इन सभी आत्माओ के लिए जो शांति की तलाश में हमारे पास आती हैं, शांति देने की शक्ति हैं या अभी तक हमारा अपना मन ही शांति से भरपूर नहीं हुआ हैं? छोटी-मोटी बातें हमे अशांत कर देती हैं, छोटी-मोटी बातें हमे विचलित कर देती हैं। हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि बातें बहुत छोटी हैं, हम बहुत बड़े हैं, हमारा कर्तव्य बहुत बड़ा हैं, बातें बहुत छोटी हैं और शांति की शक्ति बहुत महान हैं। हम छोटी-छोटी बातो के कारण अपनी शांति की शक्ति को नष्ट कैसे कर सकते हैं।

तो चलिए एक सुंदर अभ्यास करते रहे हम कि बातो पर react (प्रतिक्रिया) न करें। अशांत करनेवाली बातें आयेंगी लेकिन हमे यह संकल्प कर लेना हैं, हमे शांति की शक्ति से इन अशांत करनेवाली बातो को समाप्त कर देना हैं। हमे जरा भी Irritate (चिडचिडा) भी नहीं होना हैं, क्रोध में भी नहीं आना हैं क्योंकि क्रोध से हमारी बहुत समय से अर्जित की हुई शक्तियाँ नष्ट हो जाती हैं। काम और क्रोध यह दो ही ऐसे महाशत्रु हैं जो मनुष्य के पुण्य को नष्ट कर देते हैं। काम से पुण्य नष्ट होता हैं और क्रोध से नष्ट होती हैं मनुष्य का सदविवेक। इसलिए दोनो को अपने महान शत्रु समझकर अपने चित्त को शुद्ध और शांत करने का द्रढ़ संकल्प रख लेना चाहिए। चेक करेंगे, कौन सी बातें हमारे मन को अशांत करती हैं, जब योग करते हैं तो क्या मन चारो ओर भटकता रहता हैं, क्या किसी संबंधी की चिंता हमारे चित्त को अशांत कर रही हैं, क्या काम धंधे में किसी का बुरा व्यवहार हमे अशांति की अग्नि में धकेल रहा हैं? या कोई विकार, बहुत बड़ी चीज़ होती हैं काम, क्रोध, मोह, मैं-पन, लोभ यह सब तो हमे अशांत नहीं कर रहे हैं..? अब इनकी विदाय का समय आ गया हैं। हम इनमे न उलझें, स्वयं को शांत करना अपने हाथ में हैं। हम अच्छी तरह विचार करें। यदि हम चाहे तो हम अपने चित्त को विभिन्न परिस्थितिओ में शांत भी रख सकते हैं परंतु इसके लिए चाहिए हमारे पास ज्ञान का सर्वश्रेष्ठ बल और योग की शक्ति। ताकि बातो को हम फ़टाफ़ट उड़ा दे और बातो का प्रभाव हमारी शांति की शक्ति को हम से छिन न ले जाये।

तो आज सारा दिन हम बहुत अच्छा अभ्यास करेंगे, "मैं पीस हाउस हूँ... मैं शांत स्वरुप आत्मा तो हूँ ही लेकिन मैं पीस हाउस हूँ... मेरे अंग अंग से चारो ओर शांति की किरणे फ़ैलती हैं जो इस संसार से अशांति के वाईब्रेशन्स को नष्ट करती हैं"- हमे याद रखना चाहिए, हमारी शांति की शक्ति बहुत प्रबल हैं, उसमे बहुत बड़ी अशांति को नष्ट करने की शक्ति हैं और फिर परमधाम में बाबा को देखेंगे शांति के सागर के स्वरुप में और अनुभव करेंगे उनकी शांति की किरणे मुझ में समा रही हैं और यह शांति की किरणे मुझ में समाकर मुझ पीस हाउस से चारो ओर फैल रही हैं। संकल्प कर देंगे, सभी को शांति प्राप्त हो, सभी के अशांत चित्त शांत हो जाए।

ओम शांति



 

29

हम सभी को बाबा ने सेवा के फ़िल्ड में रखा हैं। सेवा क्या हैं..? युग परिवर्तन करना, सभी को बाबा का संदेश देना, न केवल संदेश देना लेकिन सत्य ज्ञान भी देना, सभी को अपने परमपिता से मिलवाना, सभी के दुःख-दर्द और समस्याए समाप्त करना, उन्हें मार्गदर्शन भी देना और उन्हें अच्छे वाईब्रेशन्स भी देना। वाईब्रेशन्स देना हमारी सबसे महत्वपूर्ण सेवा हैं। हम तीनो सेवायें एक साथ करें। वाचा के द्वारा, हम ज्ञान देते हैं वह सेवा हमारी चलती हैं। साथ-साथ मन्सा के द्वारा सभी को श्रेष्ठ वाईब्रेशन्स मिलते रहे, शुभ भावनाओ का दान मिलता रहे, सबको हमारे पास आते ही ऐसा लगता रहे कि "हम अपने परिवार में आ गये, हम वही आ गये जहाँ हमे आना चाहिए था।”मन्सा वाईब्रेशन्स हम प्रकृति को भी देते रहे, वायुमण्डल को पावन बनाने के लिए भी देते रहे। यह दूसरी सेवा हमारी चलती रहे और तीसरी सेवा हैं कर्मणा। कर्मणा यज्ञसेवा भी हैं। कर्मणा यज्ञ में हम किसी भी तरह का कार्य करते हैं या अपने घर को ही यज्ञ मानकर काम करते हैं तो वह यज्ञसेवा हो जाती हैं। लेकिन जब हम कर्मक्षेत्र पर रहते हैं तो हमारी धारणाये, हमारा गुण स्वरुप जीवन, हमारी पवित्रता, हमारी श्रेष्ठ द्रष्टि दूसरो को बहुत कुछ सिखाये, उनकी सेवा करें। काम तो सभी संसार में करते हैं लेकिन जब वह हमे कार्य करते देखे तो यह महसूस करें कि यह कितने हलके हैं, यह तो ऐसे काम करते हैं जैसे कि मानो कुछ करते ही न हो। संसार में समस्यायें तो सबके सामने आती हैं, पर जब वह हमे देखे तो उन्हें महसूस हो कि यह कितने तनाव से मुक्त हैं, यह कितने पावरफ़ुल हैं, समस्याओ को पार करने में यह कितने समर्थ हैं... हमे भी वैसा ही होना चाहिए..! जब वह आपको परिवार में रहते देखे तो यह देखे कि परिवार में तो सभी रहते हैं परंतु इनके परिवार में कितना प्यार हैं, कितनी समझ-सहमति हैं, कितना खुशी का माहोल हैं, कितना एक-दूसरे के सभी लोग सहयोगी हैं, सब एक दूसरे का सम्मान करते हैं, बड़ा हल्का वातावरण हैं परिवार में..! मैं-पन, मेरा, तु तु- मैं मैं, क्रोध, अहंकार इससे यह मुक्त हैं। हमारा ऐसा परिवारीक जीवन देखकर बहुत बड़ी सेवा होती हैं।

तो हम हर तरह की सेवा लगातार करते चले। जितना हम गुण-स्वरुप बनते जायेंगे, दूसरो पर हमारी अमीट छाप पड़ेगी और दूसरे लोग इससे कुछ न कुछ प्रेरणा अवश्य लेंगे। साथ-साथ अपनी दिनचर्या में 10 मिनट सवेरे, 10 मिनट शाम को इस संसार को या प्रकृति को, दुःखी आत्माओ को या वायुमण्डल को श्रेष्ठ वाईब्रेशन्स अवश्य दे। इस संसार में अनेक लोग रोगो से पीड़ीत हैं उनको वाईब्रेशन्स देकर हम उनकी मदद करें। भले ही रोगो के जिम्मेदार वो स्वयं रहे हो, उन्होने कोई विकर्म किये हो या वर्तमान में गलती की हो लेकिन हमारा कर्तव्य हैं अब उन्हें मदद करना।

तो यह सभी सेवायें हमारी चलती रहे। यह तीनो तरह की सेवा सारा दिन चले। इसको ही कहते हैं एक-साथ तीनो तरह की सेवा करना। और मान लो हम किसी को समझा रहे हैं, प्रदर्शनी समझा रहे हैं तो समझाते हुए आत्मिक द्रष्टि रखना। यह हमारे परिवार के देवकूल के आत्माये आई हैं इस गुड फ़िलींग में रहना और चलते फ़िरते भी उसी समय हमारे गुणो की छाप दूसरो पर पड़्ती रहे ऐसा रहना यह हैं तीनो तरह की सेवा एकसाथ करना।

तो आज सारा दिन हम सभी विशेषरुप से ग्लोब को वाईब्रेशन्स देंगे, "मैं मास्टर सर्वशक्तिवान पूर्वज आत्मा हूँ... मेरे सामने हैं ग्लोब... बाबा की किरणे मुझ पर पड़ रही हैं और मेरे मस्तक से निकलकर जा रही हैं पूरे ग्लोब को... जैसे अब ग्लोब काला हो गया हैं और उसका रंग गोल्डन होता जा रहा हैं।”ऐसे ग्लोब को वाईब्रेशन्स बार-बार देंगे। यह सारे संसार को वाईब्रेशन्स पहुँचाने की श्रेष्ठ सेवा होगी।

ओम शांति...



 

30

बाबा इस धरा को स्वर्ग बनाने के लिए हमारे सम्मुख अवतरीत हुए हैं और उन्होने अपने इस महान कार्य में सहयोगी बना दिया हैं हम सभी को। यह हमारा परम सौभाग्य हैं कि स्वयं भाग्यनियंताने हमे इस महान कार्य के योग्य समझा। उसने हम पर दृष्टि डाली और हममें अनेक शक्तियाँ भर दी कि जाओ बच्चे अवतार बनकर इस जग का कल्याण करो। हमे संसार को संदेश भी देना हैं, सत्य ज्ञान भी देना हैं। यह बताना हैं कि "तुम्हारा परमपिता तुम से मिलने के लिए, तुम्हें सत्य ज्ञान देने के लिए, तुम्हें पावन करने के लिए आ गया हैं और वे तुम्हारे लिए स्वर्ग की सौगात लाये हैं, आ जाओ। हे देवकुल की आत्माओ आप सभी आ जाओ।”

तो हम रोज़ सबेरे योगयुक्त होकर स्वमानधारी बनकर देवकुल की आत्माओ का आह्वान किया करें क्योंकि हम पूर्वज हैं। हमारे आह्वान पर देवकुल की आत्माओ को प्रभु मिलन के लिए आकर्षण होगा। वो अपना सबकुछ छोड़्कर सत्य ज्ञान लेने के लिए तत्पर हो जायेंगे क्योंकि उनके अंदर प्युरीटि के संस्कार हैं और अब उन संस्कारो के उदय होने का समय तेजी से आ गया हैं, बिलकुल समीप आता जा रहा हैं। उन्हें ईश्वरीय ज्ञान की ओर अति अधिक आकर्षण अब होने जा रहा हैं, हो रहा हैं। तो हमे जहाँ ज्ञान देकर दूसरो की सेवा करनी हैं वहीं बहुत बड़ी सेवा हैं वातावरण को पवित्र करने की, प्रकृति को पवित्र वायब्रेशन्स देने की, आत्माओ को भी पवित्रता का ज्ञान देने की। हमे इस प्रकृति को बदलना हैं और ऐसा समय आनेवाला हैं जब हमे संसार की आत्माओ को सकाश देने में ही लग जाना होगा। सकाश वही दे सकेंगे जिनके अंदर बेहद का वैराग्य होगा। वैराग्य को हम बहुत सहज भाव से यूं समझ ले कि वैराग्य माना व्यर्थ से, संसार में आसक्तिओ से, इस संसार की इच्छाओ से और बहुत कुछ पाने से, मान-सम्मान पाने से वैराग्य। हम डिटेच हो... और यह वैराग्य उनको ही आ सकता हैं जिन्हें यह याद रहेगा कि समय अति निकट आ गया हैं और हमे घर जाना हैं और सभी को घर ले जाने में बहुत मदद जरनी हैं, दुःखो से छुड़ाने में बहुत मदद करनी हैं। क्योंकि संसार में त्राही त्राही होने जा रही हैं। हम उस चीज़ की कल्पना भी नहीं कर सकते कि इस धरा को बाबा को अब खाली कराना हैं। जैसा एक दिन उसका ओर्डिनन्स निकल जायेगा कि मेरी देवकुल की आत्माओ के लिए इस वसुंधरा को खाली करो, इसे पवित्र बनाकर यहाँ देवताओ का वास होगा।

तो हम सभी अभी से बहुत अच्छी प्रेक्टिस करें सारे संसार को सकाश देने की, आत्मिक दृष्टि बनाने की और इसके लिए अपने को प्युरिटी से और सर्व ख़जानो से, योग से भरना होगा। जिसके पास शक्तियाँ बहुत होगी वही दूसरो को दे सकेंगे और वायब्रेशन्स देकर सभी के दुःख हर सकेंगे, सभी को मुक्तिधाम पहुँचवा सकेंगे, जो पीड़ित होंगे बहुत सारे लोग, उन्हें बहुत ज्यादा बल दे सकेंगे।

तो आज सारा दिन आत्मिक दृष्टि का बहुत अच्छा अभ्यास करेंगे और यह एक सिंपल सी प्रेक्टिस, "मैं पवित्रता का सूर्य हूँ... मुझ से चारो ओर पवित्र किरणे फैल रही हैं...”और जिसको भी आत्मा देखेंगे, यह पवित्र किरणे उनको जाती रहेगी और बीच-बीच में परमधाम से पवित्रता के सागर की पवित्र किरणे मुझमें समा रही हैं। कभी हम उनके पास चलेंगे परमधाम में और कभी परमधाम से उनके पवित्र वायब्रेशन्स ग्रहण करेंगे।

यह अभ्यास आज सारा दिन बहुत तत्परता से करेंगे और लक्ष्य बना ले कि हे अपने योग को सकाश देने की सेवा में ही बदल देना हैं।

ओम शांति...



 

31

हमे बाप समान महान बनना हैं। ब्रह्माबाबा ने जिस तरह स्वयं को तपस्या में तपा कर खरा सोना बना दिया, संपूर्ण बना दिया। हमे भी त्याग तपस्या के बल से वैराग्य के बल से स्वयं को वेसा ही बना देना हैं। अपना शरीर भी शिवबाबा को दे दिया। यह भान ही मिटा दिया कि यह मेरा शरीर हैं। वैसे ही हम अपने देह को ऐसा ही मान ले कि यह बाबा ने हमे सेवा अर्थ दिया हैं बाक़ी इससे हमारा ओर कुछ लेना-देना नहीं हैं। यह बाबा की अमानत हैं, सेवा पूर्ण होगी और हम यह बाबा को वापिस दे देंगे। तो इस तरह हमारा देहभान मिटता जायेगा, देह का आकर्षण समाप्त होता जायेगा और हम अशरीरी स्थिति में बहुत सहज स्थित होते जायेंगे। ब्रह्माबाबा सचमूच बाप समान बने, शिवबाबा जैसे बने, नेक्ष्ट टु गोड हो गये। सोच ले, उन्हों ने क्या क्या किया होगा। संपूर्ण पवित्रता अपना ली, संपूर्ण निर्हंकारी बन गये, किसी के लिए भी मन में अशुभ भावना नहीं रही, शुभ भावनाओ का दान सबको मिलता रहा। कई बच्चे ऐसे भी आते थे जो बाबा का भी सामना करते थे लेकिन बाबा ने उन्हें भी बहुत प्यार दिया और बुजुर्ग होते हुए भी अंत तक बहुत बड़ी सेवा निरंतर करते रहे। सेवा में कभी भी मैं-पन आने नहीं दिया। बाबा का अपने पर कितना नियंत्रण था यह इस बात से पता चलता हैं कि आख़िरी दिन 18 जनवरी सवेरे जब बाबा को छाती में बहुत दर्द था तो जो भी भाई वहाँ थे उन्हों ने कहा कि बाबा डॉक्टर को बुला ले? तो देखिये बाबा ने कितने नशे से जवाब दिया था कि बच्चे बाप तो सुप्रिम सर्जन से बात कर रहा हैं, डॉक्टर आकर क्या करेगा?

तो बाबा को देहभान से न्यारे होने का बहुत ज्यादा अनुभव था। दर्द तो बाबा को जैसे सता ही नहीं रहा था और वह संसार की पहले नंबर की आत्मा हैं, उन्हें यह आभास था कि इस धरा पर साकार रुप में मेरा यह आख़िरी दिन हैं। वह इस देहभान से पूरी तरह डिटेच हो गये थे। मन खुशीयों से इतना भरा था कि अपने भविष्य को याद करके अकेले में डान्स करते रहते थे कि , "वाह, मैं यह बुढा़ शरीर छोडकर अब जाकर छोटा श्री कृष्ण बनुंगा, गद्दी पर बैठुंगा...”बाबा ने उन्हें कितने जन्मो के राज्य भाग्य का उन्हें साक्षात्कार करा दिया था कि "अनेक जन्म तुम्हारे सिर पर ताज़ आये हैं, तुमने अनेक जन्म राज्य भाग्य का सुख भोगा हैं..!”तो अपने भाग्य की खुशी भी बाबा को निरंतर थी। हम भी उसी तरह अपने भाग्य की खुशी को कायम रखे। यदि बाबा का भाग्य बहुत महान था तो उसके बच्चो का भाग्य भी तो बहुत महान हैं..! हम भी तो इस सृष्टि के हीरो एक्टर हैं, हम मास्टर रचयिता भी हैं। तो यह नहीं भूलना हैं कि हम महान से महान देवपद प्राप्त करने वाले हैं। हमे कितनी प्राप्तियां होगी सतयुग में उसकी तो शायद हम कल्पना भी नहीं कर सकते। हमारा देह ही कितना कांतिवान, कितना तेजस्वी, कितना चमकिला होगा जिसमे रोग, दुःख, शौक का तो नाम ही नहीं होगा। तो बाबा हमे कितना बड़ा भाग्य देकर जाते हैं।

तो आओ, हम बाबा के सारा दिन गुणगान करते हुए उन्हें शुक्रिया करते रहे, "हे बाबा, आपने इस समय आकर हमे क्या क्या दिया और भविष्य में हमे क्या देने जा रहे हो..! इतना योग्य बना देते हो कि अपना स्वर्ग हमारे हाथो में सौंपकर निश्चिंत होकर घर में जाकर विश्राम करते हो..!"

तो आज सारा दिन बाबा को थेंक्स देते हुए, उसका गुणगान करते हुए हम व्यतित करेंगे और फ़ॉलो फाधर करने का संकल्प रखेंगे। विशेषरुप से जैसे ब्रह्माबाबा हमारे सामने बैठा हैं और जिस तरह वह तपस्या में मग्न हैं, बुद्धि निरंतर शिवबाबा के स्वरुप पर स्थिर हैं वैसे ही मुझें भी तपस्या में मग्न रहना हैं।

ओम शांति...



 

32

हम सभी के चेहरे और हमारी चलन, हमारी स्थिति सारे संसार को बाबा का साक्षात्कार कराती हैं। जिसके चेहरे पर दिव्यता हैं, जिसका चेहरा अलौकिक खुशी से सदा चमकता रहता हैं और जिसकी स्थिति महान हैं वही संसार में महान हैं, वही बाबा को अति प्रिय हैं, वही बाबा को बहुत काम के हैं, वही उसका नाम रोशन करनेवाले हैं। तो हम सबसे पहले प्रभु मिलन का प्रत्यक्ष स्वरुप अपने चेहरे से दिखायें। सदा खुशी... खुशी बहुत बड़ा खज़ाना हैं, खुशी की कीमत आंकि नहीं जा सकती, खुशी बहुत बड़ी खुराक भी हैं। खुश रहनेवाला मनुष्य बीमारीयो पर भी सहज विजय प्राप्त कर लेता हैं। परिस्थितियां जिसकी खुशी को छिन न सके वो इस संसार में सबसे शक्तिशाली माना जायेगा।

हम अपने को चेक करे, कौनसी बातें हमारी खुशी को छिनती हैं। क्या हम सदा खुश रहते हैं? क्या प्रभु मिलन की खुशी, क्या भविष्य में सर्वश्रेष्ठ भाग्य प्राप्त करने की खुशी, भगवान स्वयं आकर हमको पढ़ाते हैं यह खुशी, वह हमारा परम सदगुरु बन गया हैं, वह हमारे खुदा दोस्त बन गये हैं, उन्होंने हमे साथ देने का वायदा कर लिया हैं..! यह खुशी हमे कितनी रहती हैं? सोचो, भगवान के बच्चे ही यदि खुश नहीं रहेंगे तो भला कौन खुश रहेगा..? जिन्हें सारे संसार को खुशीयाँ बाँटनी हैं वह ही यदि खुश नहीं रहेंगे तो इस संसार में कौन खुश रहेगा? हम जान ले कि हम इस सृष्टि के आधारमूर्त हैं। कल्पवृक्ष की जड़े हैं। अगर हम खुश हैं तो सारा संसार खुश होता हैं, उनमे खुशी की तरंगे पहुँचती हैं और यदि पूर्वज आत्माये दुःखी हैं तो सारा संसार और ज्यादा दुःखी हो जाता हैं। हमारी स्थिति पर ही सारे संसार की स्थिति का आधार हैं। तो आइये हम सदा खुश रहने का द्रढ़ संकल्प कर ले। खुश रहना हमारे हाथ में हैं। मूलरुप से ध्यान दे कि expectations (आशाये) मनुष्य की खुशी को छिनती हैं। हम अपने साथीयो से ज्यादा expect करते हैं, कामनाये ज्यादा करते हैं तो हमारी खुशी चली जाती हैं क्योंकि एक मनुष्य सदा ही किसी की कामना के अनुसार व्यवहार या काम नहीं कर सकता। हर मनुष्य स्वतंत्र भी हैं, उसके अपने विचार हैं, अपने संस्कार हैं, उसका कार्य करने का तरीका हैं, उसकी जिम्मेदारीया अनेक होती हैं। हम जरा अपनी कामनाओ को कम करेंगे तो खुशी 100% हो जायेगी और यदि हमारी कामनाये 100% हैं तो खुशी 0% रहेगी। तो चाहे बीमारीयाँ हो चाहे परिस्थितियाँ हो, चाहे कोई हमारा अपमान करता हो, चाहे जीवन में विघ्न आ घेरे, चाहे काम-धंधो में रूकावट आ पड़े लेकिन हमे खुशी के ख़जाने को छोड़्ना नहीं हैं। लोग कहते हैं success is the key to happiness (सफ़लता खुशीयो की चाबी हैं) लेकिन हम उसे ऐसा कर दे कि happiness is the key to success (खुशी सफ़लता की चाबी हैं)..! यदि हम बहुत खुश रहेंगे तो सफ़लता हमारे पीछे-पीछे चलेगी और यदि हम सफ़लता की खोज में निकलेंगे, यदि छोटी-छोटी बाते हमारी खुशी को छिनती रहेगी तो हम कभी भी न खुश होंगे की न सफ़ल होंगे।

तो आज सारा दिन खुशीयो में झुमतें रहे। याद रखेंगे सारा दिन कि इस जीवन में कोन मिला हैं? जिसको मिलने के लिए रुषिमुनि और तपस्वी न जाने क्या-क्या करते हैं। वह केवल हमे मिला ही नहीं, हमारा हो गया हैं..! उसके प्यार में हमारा जीवन पलने लगा। इन आँखो से इस संगमयुग पर हमने क्या क्या देखा..! भगवान को नया विश्व रचते देखा..! उसको अपने बच्चो की पालना करते हुए देखा..! सभी का भाग्य निर्माण करते हुए देखा..! आत्माओ के दुःख हरते हुए देखा..! हमने इन आँखो से क्या क्या देखा..! उसे देखा जिसे फिर कभी नहीं देखा जा सकता, वह देख लिया..!

तो आज सारा दिन हम परमधाम में बाबा के पास बैठेंगे और उससे पवित्रता के वाईब्रेशन्स लेंगे। फिर इस संसार में आयेंगे, देह में आयेंगे और वाईब्रेशन्स को चारो ओर फैलायेंगे और बीच में अभ्यास करेंगे कि पवित्रता के सागर से हमारे उपर मानो पवित्रता की बरसात हो रही हैं।

ओम शांति



 

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हमारी शुभ भावनाये हमे महानता की ओर ले चलती हैं। जो विश्व कल्याणकारी हैं, जिन्हें भगवान ने अपने महान कार्य की जिम्मेदारी सौंपी हैं उन्हें अपने चित्त को शांत रखते हुए अपने महान कर्तव्यो की ओर मुख करना चाहिए और उसमे हमारी सब के लिए शुभ भावनाये और शुभ वृत्ति बहुत ही बड़ा काम करती हैं। किसी के लिए भी नकारात्मक वृत्ति न हो, घृणा और ईर्ष्या की वृत्ति न हो। शुभ वृत्ति सबको आगे बढ़ाने की भावना, सबका कल्याण करने की इच्छा, सबको सुख देने की इच्छा। यह महान आत्माओ के लक्षण हैं तो चेक कर ले, हमारे मन में किसी को भी गिराने-चढाने की भावना तो नहीं हैं। ऐसा तो नहीं कि हम इस दलदल में फँस गये हैं। यह दो दलदले हैं- तेरामेरा और गिराना चढ़ाना। इन से उन आत्माओ को मुक्त रहना हैं जो इस संसार को कुछ देना चाहते हैं। संसार प्यासी नज़रो से हमारी ओर देख रहा हैं। जिनकी ओर संसार की अनेक आत्माये निहार रही हैं, वह किसे देख रहे हैं, वह कहाँ हैं? सोच लेना हैं। क्या हम संसार की इन बातो पर खरे उतरेंगे? जिस सब के लिए हमने त्याग किया हैं, यह पवित्र जीवन अपनाया हैं, संसार की तृष्णाओ को लात मारी हैं। क्या वह सब महान बलिदान करके हम कहीं उलझ गये? जो उलझ गये वो तो गये..!

महान कर्तव्य हमारा इंतज़ार कर रहे हैं। यह न भूलो कि बाबा ने हमे अपने खज़ाने दिये हैं, जन्म दिया हैं, वरदान दिया हैं, शक्तियाँ दी हैं। अपना शुभ भावनाओ का हाथ हमारे सिर पर रखा हैं। वह हमे इस संसार में चमकाना चाहते हैं। विश्व की स्टेज पर लाना चाहते हैं। केवल चमकाने के लिए नहीं लेकिन संसार का कल्याण करने के लिए। संसार को दुःखो से मुक्त करने के लिए। हम शुभ भावनाओ से अपने चित्त को भरकर विजयी आत्मा बनने की ओर अपने कदम बढ़ाये। हमे माया के हर स्वरुप पर विजय पाना हैं और विजय पाते पाते विजयीरत्न बन जाना हैं। कोई भी यह न सोचे हम तो देर से आये हैं या हम तो समर्पित नहीं हैं या हम तो अपने गृहस्थ में रहते हैं, हम भला विजयमाला में कैसे आयेंगे?- लेकिन नहीं, बाबा ने स्पष्ट कर दिया हैं कि अंत तक भी 3-4 सिटे खाली रखी जाती हैं ताकि कोई भी अगर तीव्र पुरुषार्थ करके उन सिट पर बैठना चाहे तो उसको खुली ओफ़र होती हैं। कोई यह नहीं कह सकता कि हम तो अंत में आये हैं। अब की बाद भी आनेवालो को सुंदर चान्स रहेगा। केवल लगन से उस ओर कदम बढ़ाने की आवश्यक्ता होगी। सब चीज़ो का त्याग करके, त्याग कोई घर का या धन-संपत्ति या काम धंधे का नहीं लेकिन व्यर्थ का त्याग, झंझटो का त्याग, दूसरो को देखने का त्याग, दूसरो की अवगुणी वृत्ति रखने का त्याग, ईर्ष्या द्वेष का त्याग। इन सब पर भी बहुत सहज विजय पायी जा सकती हैं और विजय पा लेनी हैं। इसलिए सभी अपने कदम तीव्रता से आगे बढ़ाये और विजयमाला को अपने गले की माला बना ले। विजयमाला में सुशोभित हो जाये ताकि हम बाबा के गले का भी हार बन जाये।

याद रखेंगे, विजयमाला तो उनके ही गले में पड़ेगी जो स्व-परिवर्तन करेंगे। जो दूसरो को बदलने की सोचते रहेंगे, उनको कुछ भी हाथ नहीं आयेगा।

तो आज सारा दिन, इस स्वमान में रहेंगे कि "मैं विजयमाला का मणका हूँ”। हो सके तो अपना नंबर फ़िक्स कर देना। विजयमाला में आने के लिए 8 घंटे योग चाहिए। कर्मयोग, चलते-फ़िरते योग, सर्वश्रेष्ठ पवित्रता की धारणा चाहिए, तेरे-मेरे, मैं-पन का संपूर्ण त्याग होना चाहिए, शुभ भावनाओ से जीवन भरा हुआ हो, चित्त निर्मल हो गया हो और हम बाबा के कार्यो में संपूर्ण समर्पणभाव से तत्पर हो तो विजयमाला में आने से हमे कोई नहीं रोक सकेगा और सारा दिन अभ्यास करते रहेंगे कि परमधाम से सर्वशक्तिवान की शक्तियो की रंगबेरंगी किरणे मुझ पर पड़ रही हैं। कभी सूक्ष्म वतन से बापदादा के मस्तक से निकली हुई रंगबेरंगी शक्तियो की किरणे मुझ पर पड़ रही हैं। सारा दिन इस अभ्यास का आनंद लेंगे।

ओम शांति



 

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बाबा ने हम सभी को सहज योगी बना दिया हैं। हमारा जीवन ही योगी जीवन बन जाये। योगी जीवन अर्थात जिसमें हमारा चित्त सभी के लिए आत्मिक प्रेम से भरपूर हो, जिसमें हमारे मन में सभी के लिए समान रुप से शुभ भावनाये हो। चाहे कोई कैसा भी हो, हमसे शुभ भावनाओ का दान सबको मिलता रहे। सहज योगी जीवन माना हम विश्वकल्याणकारी स्थिति में सदा ही स्थित रहे, सदा ही स्मृति रहे कि हमे सब का कल्याण करना हैं। योगी जीवन अर्थात सहजरुप से स्वमानधारी, सहजरुप से हम इस फ़िलींग में रहे कि "मैं देवकूल की महान आत्मा हूँ, ये संसार मेरे लिए नहीं बना हैं।”योगी माना जो इस संसार से उपराम हो, जिसने चारो ओर के किनारे छोड़ दिये हो, जो अनासक्त रहते हो, जो सदा वैराग्य वृत्ति में हो, जिन्हें सदा घर जाने की स्मृति रहती हो। यह योगी जीवन जो बहुत सरल जीवन हैं, योगी जीवन अर्थात मन कहीं भी विचलीत disturb नहीं, मन इच्छाओ के लिए नहीं भाग रहा हो। तो योगी जीवन अर्थात इस संसार में रहते हुए भी कमल समान न्यारे और प्यारे बनकर रहे। ऐसा योगी जीवन हम सभी को बना लेना हैं और इसके लिए ये स्मृति बारबार रखनी होगी "कि हमारा ये 5000 साल का खेल, ये लंबी यात्रा अब पूर्ण हुई, सबकुछ छोड़ कर मुझें अपने घर वापिस चलना हैं। बाबा आ गया हैं मुझें ले जाने के लिए।”साथ में हम बहुत शक्तिशाली हैं, हमारे पास संपूर्ण ज्ञान हैं, हम माया के वश न हो जायें। माया तो बहुत कमज़ोर हैं। हम ऐसा संकल्प करें कि माया तो कागज़ का शेर हैं और कुछ भी नहीं। हमे ये जितनी बड़ी दिखती हैं उतनी बड़ी ये नहीं हैं और कभी भी माया आ जाये तो बाबा को याद कर लें या बाबा का आह्वान कर लें या बाबा के स्वरुप पर बुद्धि को स्थिर कर लें, बहुत ही जल्द माया परास्त होती हुई नज़र आयेगी। हमे स्मृति रखनी हैं कि हमने तो कल्प-कल्प इस माया को जीता हैं, माया को जीतना हमारे लिए खेल हैं। जैसे इस संसार में जो कार्य हमने बार-बार किया हो, हजार बार किया हो उस कार्य को करना कितना सहज और स्वाभावीक प्रतिक होता हैं। ऐसे ही इस माया को हमने अनेक बार पछाड़ा हैं। चाहे काम हो या क्रोध, चाहे अहंकार हो या लोभ, चाहे घृणा, ईर्ष्या, द्वेष हो या टकराव। ये सब माया के स्वरुप हैं। इन्हें हमे बार-बार जीता हैं। इस श्रेष्ठ स्मृति में हम आयेंगे तो माया को जीतने की शक्ति ईमर्ज हो जायेगी। अगर हम ये सोचते हैं कि माया को जितना तो बड़ा कठिन हैं, माया तो मुझें बार-बार हरा देती हैं तो हम कमज़ोर हो जायेंगे। लेकिन हमे यह याद रखना हैं, "मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, माया से अधिक शक्तिशाली हूँ और कल्प-कल्प का विजयरत्न हूँ।”तो मास्टर सर्वशक्तिवान की स्मृति और विजय होने की स्मृति हमारे विजय की शक्तिओ को, विजय के संस्कारो को ईमर्ज कर देगी और उन माया के विकारो पर जिन्हें जीतना कठिन हो रहा हैं, सहज ही विजय हो जायेगी।

तो आज इस नशे में रहे कि माया को जीत प्राप्त कराने के लिए स्वयं परमसदगुरु ने हमे शक्तियाँ और वरदान दिये हैं। वो हमारे पिछे हैं, उसने हमे आशिर्वाद दे दिया हैं, संकल्प दे दिया हैं कि "बच्चे, तुम्हारी माया पर जीत निश्चित हैं।"

तो हम जीत के नशे से माया को जीतेंगे और सारा दिन इस नशे में रहेंगे, "मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, मायाजीत हूँ, विजयरत्न हूँ, इस माया से अधिक शक्तिशाली हूँ।”और साथ-साथ स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए बाबा के साथ कंबाइन स्वरुप में रहेंगे, "मैं नीचे मास्टर सर्वशक्तिवान और सिर के उपर सर्वशक्तिवान शिवबाबा।”ऐसे कंबाइन स्वरुप को देखकर माया हम तक आने का साहस भी नहीं करेगी।

ओम शांति



 

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हम सभी देवी-देवता कूल की महान आत्माये हैं। याद करें हम अपने उन महान संस्कारो को जो जन्म-जन्म हमारे साथ रहे हैं। चाहे वो पवित्रता के संस्कार थे, चाहे सुखदायी संस्कार थे, चाहे परोपकारी संस्कार थे, कल्याणकारी संस्कार थे। हम महान रहे हैं, हमारे संस्कार भी बड़े रोयल रहे हैं। अब पुन: इन संस्कारो को अपने जीवन में उतार रहे हैं। हम सभी को चेक कर लेना हैं, हमारे संस्कार हमारी महानताओ के अनुरुप हैं या नहीं हैं। हम भगवान के बच्चे हैं, हम देवकूल की महान आत्माये हैं, हम पूर्वज हैं, हमे बाबा ने विश्वकल्याण का कार्य भी सौपा हैं, हम जन-जन को प्रभु से मिलाने का काम करते हैं, हमे ही सबको मुक्ति और जीवन-मुक्ति का वरदान भी दिलाना हैं। तो क्या हमारे संस्कार ऐसे रोयल हैं? जो महान हैं, क्या वो फ़िलींग में आना, रुसना-रुठना, परेशान रहना, दुःख देना और लेना- क्या इन संस्कारो के वशीभूत हो सकते हैं? जिन्हें विश्व में शांति का साम्राज्य स्थापित करना हैं, क्या वे क्रोध के, तेरे-मेरे के, टकराव के, लड़ाई झगड़े के संस्कारो में लिप्त रह सकते हैं?

देख ले, जिन्हें प्रकृति को भी पावन करना हैं क्या उनमें अपवित्रता के संस्कार, वाँसना के संस्कार, देह की ओर आकर्षित होने के संस्कार बार-बार आकर्षित कर सकते हैं? हम इन संस्कारो से ऊपर उठ जायें और अपने संस्कारो को बहुत डिवाईन और बहुत रोयल बनाये। हमारे संस्कार तो सुख देने के हैं, हमारे संस्कार तो सब की पीड़ा हरने के हैं, हमारे संस्कार तो बिगड़ी को बनाने के हैं। संस्कारो के साधारण भाषा में आदत कह ले, हमारी आदते तो वरदानी बोल बोलने की हैं, हमारे संस्कार कटू वचन उच्चारण करने के हैं ही नहीं, हम तो शंकर-महादेव की तरह दूसरो का विष पीने वाले हैं, उन्हें अमृत देने वाले हैं। हमे कभी भी विष उगलना नहीं हैं।

तो अपने संस्कारो को आज विशेषरुप से चेक करेंगे, "मेरे पास कोई गलत संस्कार तो नहीं हैं जो मुझें संपूर्णता की राह पर चलने से रोकता हैं, जो महान लक्ष्य को पाने में बाधा उत्पन्न करता हैं, जो संगठन में रहने में मुझें कठनाई पेदा करता हैं, दूसरो को कठनाई पेदा करता हैं या कोई ऐसा छोटा-मोटा संस्कार जो हमे नकारत्मकता की ओर ले चलता हैं जो हमारी महानताओ को विलिन कर देता हैं। जब दूसरे देखते हैं कि इनमे तो ये संस्कार हैं, यह तो जल्दी से रुस जाते हैं, यह तो असंतुष्ट हो जाते हैं, इन्हें सम्मान न दिया गया तो ये बिलकुल विचलीत परेशान हो जायेंगे, तुफ़ान मचाने लगेंगे।”तो यह संस्कार देख ले, क्या महान आत्माओ के, भगवान के बच्चो के हो सकते हैं? अपनी महानताओ को पहचाने, कितने महान हैं हम, किसके हैं हम? जैसे हमारे ब्रह्मा बाबा के संस्कार वेसे ही हमारे संस्कार भी हो, होंगे ही, वो सब हमारे अंदर समाये हुए हैं। जैसे बाबा उदार चित्त, सबको सुख देने वाले, सबका कल्याण करने वाले, सबको उमंग उत्साह दिलाने वाले, सबको प्रेरित करने वाले थे वैसे ही हम भी बन जायें।

तो आज सारा दिन अपने देव स्वरुप को याद करेंगे, इस नशे में रहेंगे कि बाबा मुझें क्या देने आया हैं? एक विज़न/vision बनायेंगे, जैसे बपदादा मेरे सामने खड़े हैं और एक स्वर्ग की प्रतिकृति हाथ पर रखी हैं, ताज़ और तिलक लिए हुए हैं और मुझें प्रदान कर रहे हैं, कह रहे हैं, बच्चे यही सब तुम्हारे लिए लाया हूँ, यह तो तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं। तो अपने देव स्वरुप के नशे में रहेंगे, अपनी भविष्य प्राप्तिओ के नशे में सारा दिन रहेंगे और अपने देव संस्कारो से अपने संस्कारो की तुलना करते हुए अपने संस्कारो को बहुत दिव्य, बहुत रोयल बनायेंगे ताकि हमे देखकर सभी को बापदादा का साक्षात्कार हो।

ओम शांति



 

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संगमयुग पर हम सभी को यह सर्वश्रेष्ठ भाग्य मिला हैं कि स्वयं भगवान हमारा हो गया और उसने वायदा कर लिया, “मैं तुम्हारे साथ हूँ।”इस बात को बहुत गहराई से समझने की आवश्यक्ता हैं। कई लोग यह सोचते हैं कि बाबा साथ हैं इससे क्या होगा? लेकिन हमे यह याद रखना चाहिए कि बाबा स्वयं कह रहे हैं कि मैं बच्चे के साथ रहता हूँ। हमे केवल आवश्यक्ता हैं स्मृति की। लाइटहाउस साथ हैं, सर्वशक्तिवान साथ हैं, बिगड़ी को बनाने वाला साथ हैं, भाग्यविधाता साथ हैं, जो विश्व का रक्षक हैं वो हमारे साथ हैं। अगर ये स्मृति रहेगी तो माया दूर से ही भाग जायेगी। कोई भी डर नहीं रहेगा। अगर कोई शक्तिशाली व्यक्ति भी हमारे साथ रहता हैं तो हम कैसे निर्भय रहते हैं, निश्चिंत रहते हैं। बाबा हमारे साथ हैं, इस सत्य को स्वीकार कर ले। बाबा ने बहुत बार कहा हैं कि, "मैं तुम्हारे साथ रहता हूँ, जुड़ा रहता हूँ।”हंसी में बाबा ने कहा, बहुत अच्छी सीख दी कि बच्चे तो बाप से भी शक्तिशाली हैं, बाप कहते हैं मैं तुम्हारे साथ हूँ और बच्चे बाप को अलग कर देते हैं..! हंसी की बात हैं लेकिन रहस्यमय बात हैं। यह सत्य हैं कि बाबा हमारे साथ रहता हैं, केवल हम इसको याद रखेंगे। परंतु हमे यह भी जान लेना चाहिए कि बाबा किस दिल में बैठेगा? अगर हमने अपने दिल में अन्य लोग बैठाये होंगे, अगर हमारे दिल में किसी और के लिए प्यार होगा, यदि हमने अपने दिल को गंदगी से भरा हुआ होगा, व्यर्थ की गंदगी, परचिंतन की गंदगी, अपवित्रता की गंदगी... तो भला हमारे दिल में भगवान का स्थान कहाँ? किसी ने तो अपनी बुद्धि को इतना भर लिया हैं व्यर्थ से कि बाबा के बैठने की जगह ही नहीं बचती। जिनका योग नहीं लगता वो अपनी बुद्धि को स्वच्छ करें, बहुत सारी चीज़ो को दूर करें, स्थान बनायें, बाबा के लिए स्थान भी चाहिए और बहुत स्वच्छता भी चाहिए क्योंकि वो तो परमपवित्र हैं। परमपवित्र परमात्मा कहाँ बैठेगा इस पर जरा हम ध्यान से, बहुत अच्छी तरह विचार कर ले। और यह हमारी योगयुक्त होने का बहुत सरल तरीका भी हैं। सारा दिन हम यह याद रखेंगे कि बाबा हमारे साथ हैं। इसमे भी हम जोड़ देंगे, बाबा हजार भूजाओ सहित हमारे साथ हैं। तो देखिये कितना सुंदर होगा, बाबा हमारे साथ हैं, निरंतर उसकी दृष्टि हम पर रहती हैं, जब भी हम कोई गलत काम करेंगे, कोई गलत संकल्प करेंगे, किसी तरह की अपवित्रता हमारे पास आ जायेगी, किसी तरह का अहम हमारे पास आ जायेगा तो हमे यदि याद रहेगा कि बाबा हमारे साथ हैं तो यह सब चीज़े हम नहीं कर सकते। देखने वाला साथ हैं तो कोई भी गलत काम हम करेंगे ही नहीं, हमारी सुरक्षा हो जायेगी, यह दूसरा बहुत सुंदर फ़ायदा होगा हमे इस स्मृति से कि बाबा हमारे साथ हैं। बाबा के साथ के भिन्न भिन्न तरह के अनुभव हमे जीवन में रोज़ करते चलने हैं। समस्याए आये तो भी याद करेंगे कि बाबा साथ हैं। बाबा ने यह बहुत ही गहरी बात कह दी हैं कि बच्चे समस्या आने पर इतने उलझ जाते हैं कि यह भी भूल जाते हैं कि मेरे साथ कौन हैं..? सचमूच बड़ा जादूई मंत्र हैं। हम याद रखेंगे आज सारा दिन कि बाबा हजार भूजाओ सहित मेरे साथ हैं... यह नशा ही काफ़ी हैं और कभी प्रेक्टिस करेंगे, वो सर्वशक्तिवान छत्रछाँया बन कर हमारे सिर पर हैं, तो कभी प्रेक्टिस करेंगे उसके हजार भूजाये हमारे सिर पर हैं, वो हजार भूजाओ सहित मेरे साथ हैं... तो आज प्रति घंटे दो बार इन तीनो स्मृतिओ को बहुत बढ़ायेंगे और देखेंगे जीवन में इनका चमत्कार कि परमात्म शक्तियाँ हमारे साथ कैसे काम करती हैं, उससे हमारे कठिन काम सरल होते हैं, दो घंटे का काम एक घंटे में ही पूर्ण हो जाता हैं।

ओम शांति...



 

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जीवन एक सुंदर यात्रा हैं। इस यात्रा में अनेक सिन आते हैं, अनेक पड़ाव आते हैं, कभी सुख मिलता हैं कभी दुःख, कभी हार कभी जीत, कभी मान कभी अपमान। परंतु हमे इन सब बातो को देखकर अपनी स्थिति को कभी भी बिगाड़ नहीं देना हैं। स्वीकार कर लेना हैं इन सब चीज़ो को। एक छोटा सा फ़ोर्मूला आप सब के सामने पेष हैं, A-B-C-D फ़ोर्मूला। इसको आप युज़ (उपयोग) करें और जीवन की यात्रा का भरपूर आनंद ले।

A फॉर Avoid (बचना), A फॉर Acceptance (स्वीकारना), B फॉर Bypass, C फॉर Cancel, D फॉर Doing

A: Accept. कुछ चीज़े जीवन में Accept करके ही चलनी चाहिए। जिन्हें avoid नहीं किया जा सकता, जिन्हें बदला नहीं जा सकता, जिन पर हमारा कोई अधिकार नहीं हैं उन्हें हमे स्वीकार करके अपने चित्त को शांत कर देना चाहिए और कुछ चीज़े ऐसी हैं जिन्हें हम avoid कर सकते हैं, उन्हें avoid कर देना चाहिए, उन पर प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए।

B: कुछ चीज़े ऐसी होती हैं जिनके side/किनारे से हमे निकल जाना हैं। उन्हें देखना नहीं हैं, प्रतिक्रिया नहीं देनी हैं।

C: Cancel, कुछ चीज़ो को हमे अपने पूरे जीवन से cancel ही रखना चाहिए। जैसे हम सभी ब्राह्मणो ने तामसिक भोजन को सदा के लिए cancel कर दिया हैं वैसे ही हम कुछ चीज़ो को cancel कर दे। जैसे हम मुख से कटू वाणी नहीं निकालेंगे, हम किसी का परचिंतन करने यहाँ नहीं आये हैं, इसको cancel रखे, यह हमारा विषय ही नहीं हैं। हम अपने से बाते करते रहे कि यह सब हमारे विषय नहीं हैं, दूसरो को देखना, परेशान रहना।

D: Doing, जो कुछ हम करना चाहते हैं उसे पूरी दृढ़्ता से, आत्मियता से, ईमानदारी से करें तो हमे जीवन में सदा ही सफ़लता प्राप्त होगी। सफ़लता प्राप्त करने का यह सुंदर फ़ॉर्मूला हैं। फिर भी हमे एक चीज़ ध्यान रखनी चाहिए कि बहुत मेहनत करने के बाद भी यदि कहीं हमे सफ़लता नहीं मिलती तो हम निराश न हो। एक उंचा लक्ष्य बनाना मनुष्य का परमलक्ष्य हैं परंतु अगर वो प्राप्त न हो तो परेशान न हो। मान लो आप ने योग भी बहुत अच्छा किया, सबकॉन्श्य्स माइंड (अवचेतन मन) की शक्ति का युज़ (उपयोग) भी बहुत अच्छा किया परंतु फिर भी सफ़लता आपके द्वार पर नहीं आई तो भी आप निराश न हो, न अपने में संशय ले आये, न बाबा की शक्तियो में संशय ले आये, जो कुछ हुआ उसे स्वीकार कर ले। लक्ष्य महान बनाना यह एक बहुत सुंदर बात हैं लेकिन जो कुछ प्राप्त हुआ उसे स्वीकार कर लेना उसमे और भी जीवन सुंदर बन जाता हैं। ऐसी अपनी मानसिकता बना दे कि हम परेशान नहीं होंगे, हम छोटी-छोटी बातो में अपने को विचलीत नहीं करेंगे। ठीक हैं, लक्ष्य तो हमारा महान हैं ही, हम सदा इस खुशी में रहे, जो कुछ न हुआ उसमे भी कुछ कल्याण रहा होगा। वो कल्याण अभी परदे के पिछे छूपा हैं, हमे कुछ ही समय में दिख जायेगा। स्वयं भगवान हमे मिला हैं, सफ़लता का वरदान उसने हमे दिया हैं। उसका दिया हुआ वरदान असफ़ल तो नहीं हो सकता परंतु उसमे विलंब हो सकता हैं, यह हमारी स्थिति पर निर्भर करता हैं।

तो आज सारा दिन हम चेक करेंगे, देहभान का कोई भी अंश तो हमारे अंदर नहीं रह गया हैं, देहभान के सभी अंशो को यदि हम बली चढ़ा देंगे तो हम महाबलवान बन जायेंगे और हमे महाबलवान तो बनना ही हैं। तो आज सारा दिन हम बहुत अभ्यास करेंगे, "मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ।”और "मेने इस देह में अवतार लिया हैं इस धरा पर स्वर्ग स्थापित करने के लिए। जैसे बाबा ब्रह्मातन में अवतरीत हुए, मैं अपने इस तन में अवतरीत हुई आत्मा हूँ।”इससे बहुत सुंदर अनुभव होगा। हम एकदम अशरीरीपन का अभ्यास अनुभव करेंगे और इससे हम चारो ओर से स्वयं को डिटेच्ड/बंधनमुक्त पायेंगे। तो आईये आज सारा दिन मास्टर सर्वशक्तिवान और अवतरीत होने का सुंदर अनुभव करें।

ओम शांति...



 

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हम सभी को संपूर्णता की राह पर निरंतर आगे बढ़्ते रहना हैं और याद रखना हैं संपूर्ण समर्पणता ही संपूर्ण बनने का सबसे सरल साधन हैं। जब मनुष्य स्वयं को संपूर्ण समर्पित कर देता हैं, जब वो कह देता हैं कि बाबा, मेरा सबकुछ तेरा तो बाबा भी कहता हैं कि तुमने मुझें अपना सबकुछ दे दिया तो मैं भी तुम्हें अपना सबकुछ देता हूँ बच्चे, स्वर्ग की बादशाही तुमको अर्पित हैं..!

देख ले, हम तो बाबा को क्या देते हैं? हमारे पास हैं भी क्या? टूटा-फूटा तन, बिगड़ा हुआ मन, कागज़ो का धन और छोटी-छोटी और चीज़े। छोटी-मोटी बुद्धि, अपनी प्रतिभा जो उसीकी देन हैं उसे हम समर्पित कर देते हैं और बाबा बदले में हमे क्या क्या दे देता हैं..! लगभग 4,000 वर्षो से भी ज्यादा समय के लिए हमे सुख शांति और संपदा से, स्वास्थय से, निर्भयता से भरपूर कर देता हैं, निश्चिंत बना देता हैं। सोचे, ऐसे बाप पर क्या हम कुर्बान नहीं होंगे? जन्म जन्म हमने सोचा था कि हे प्रभु, जब आप आओगे तो हम आप पर बलीहार जायेंगे, जब आप आओगे तो हम आपके सिवाये किसीको याद नहीं करेंगे, जब आप आओगे और हमे ज्ञान दोगे तो हम आपके सिवाये किसी की भी बात नहीं मानेंगे। अब बाबा याद दिलाते हैं,- बच्चे वो अपना वायदा पूर्ण करो, मैं आ गया हूँ, मुझ पर बलीहार चढ़ जाओ तो तुम बलवान बन जाओगे, मुझ पर बली चढ़ जाओ तो मैं भी तुम पर सबकुछ बली चढ़ा दूंगा, मेरी सारी शक्तियाँ भी तुम पर बलीहार कर दूंगा, अपना सारा ज्ञान, सारी शांति, सारी पवित्रता सब तुम पर बलीहार कर दुंगा..!

बाबा सागर ही नहीं हैं लेकिन महासागर हैं, महान ज्ञान का सागर, महान शांति का सागर..! वो हमे सबकुछ देने आ गया हैं। तो हम उससे लेते चले।

तो एक हैं समर्पण भाव, दूसरा बहुत ध्यान दे। यह योगयुक्त भोजन बनाने का और योगयुक्त होकर भोजन खानेका। योगयुक्त भोजन जब हमे मिलने लगता हैं तो हमारी बुद्धि बहुत श्रेष्ठ हो जाती हैं, हमारे अनेक विकर्म नष्ट होने लगते हैं, हमारा हृदय शुध्द होने लगता हैं, आत्मा पावन होती हैं और सेवाओ में भी बहुत वृद्धि होती हैं। इसलिए जो भोजन बनायें वह योगयुक्त होकर स्वदर्शन चक्रधारी होकर, स्वमान में स्थित होकर बहुत प्यार से बाबा को समर्पित करते हुए भोजन बनायें तो जो भी इस भोजन को खायेगा उसका बहुत ज्यादा कल्याण हो जायेगा, उसकी बुद्धि शुध्द हो जायेगी, उसके विकार नष्ट होने लगेंगे। "मैं परम पवित्र आत्मा हूँ।"- विशेषरुप से इसको बार-बार याद करते हुए पवित्र भोजन बनायेंगे। तो यह ब्राह्मणो का परम कर्तव्य हैं कि वह पवित्र भोजन ही एक-दूसरे को खीलाये और खाये। साथ में जब हम भोजन खाते हैं तो हमे भी अधिक से अधिक योगयुक्त होकर खाना चाहिए। योग अभ्यास में कठनाई भी लगती हो तो कम से कम प्रारंभ में बाबा का आह्वान कर ले। 7 बार याद कर ले- "मैं परम पवित्र आत्मा हूँ”। प्रकृति को भी धन्यवाद दे दे। उन सबको भी धन्यवाद दे जिन्होंने यह अन्न हम तक पहुँचाया हैं और फिर बाबा को याद करें, भोजन करें, हो सके तो एक एक पीस पर बाबा को याद करते रहे, उसको बुलाते रहे,- लो बाबा, पहले तुम खाओ, फिर हम खायेंगे। इससे हमारी स्थिति बहुत ही सुंदर रहेगी।

तो आज सारा दिन हम बहुत अच्छे स्वमान में रहेंगे, "मैं बाबा के नैनो का नूर हूँ, बाबा मुझें बहुत प्यार करते हैं, भगवान का प्यार मुझें इस जीवन में मिला तो जन्म जन्म सबका प्यार मिलता रहेगा..!"- और साथ में अभ्यास करेंगे, "मैं फ़रिष्ता हूँ, पवित्रता का फ़रिष्ता और इस संपूर्ण प्रकृति का मालिक हूँ, मेरे अंग अंग से पवित्रता की सफेद किरणे, गोल्डन किरणे चारो ओर फैलती हैं।"- ऐसा हर घंटे में दो बार, हर बार एक मिनट अभ्यास करेंगे तो प्रकृति को भी हमारे वायब्रेशन्स जायेंगे और इससे प्रकृति हमे बहुत सुख प्रदान करेंगी।

ओम शांति...



 

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बाबा ने हमे संपूर्ण सत्य ज्ञान देकर स्वदर्शन चक्रधारी बना दिया। कभी हम सोचते थे कि स्वदर्शन चक्र श्री कृष्ण के हाथ में या विश्णु जी के हाथ में हैं और वो उनसे संहार का कार्य करते हैं। परंतु अब हमे पता चल गया कि स्वदर्शन चक्र तो हमारे पास भी हैं और हमे उससे संहार करना हैं व्यर्थ संकल्पो का, मनोविकारो का, दुष्वृत्तियो का, अपने व्यसनो का। बाबा ने ज्ञान देकर हमे भरपूर किया और स्मृतियाँ दिलाइ। एक बहुत बड़ी स्मृति यह दिलाइ कि, "तुम देवकूल की महान आत्मायें हो, तुम तो संपूर्ण पवित्र थे..!”इसको अगर हम याद करते हैं तो व्यसनो को छोड़्ने का बल हमारे पास आ जाता हैं, निर्विकारी बनने की प्रेरणाये तेजी से हमे प्राप्त होने लगती हैं। उससे भी पहले स्मृति दिलाइ थी तुम आत्मा हो, महान हो। आत्मा का ज्ञान तो शास्त्रो में भी थोड़ा बहुत था लेकिन बाबा ने हमे स्वमान भी याद दिलाये कि, "तुम साधारण आत्मा नहीं, तुम महान आत्मा हो, तुम शक्तिसंपन्न हो।”अनेक चीज़े आत्मा की हमे याद दिलाइ और यदि हमे ये याद आती रहे, यदि हमारे अंदर यह जागृति हो जाये तो हमारा देहभान छुटता जायेगा और देहभान से जुड़ी हुइ अनेक समस्या, विकार, मन का भारीपन सब समाप्त होता जायेगा। तीसरी स्मृति दिलायी हमारे पूज्य स्वरुपकी कि सतयुग से तुम चले इस संसार में, सतयुग तुम्हारा बहुत सुंदर बीता, त्रेता भी बहुत सुंदर बीता, तुम वहाँ निर्विकारी थे और फिर द्वापरयुग के बाद पूज्य बनकर सबके इष्ट बन गये क्योंकि तुमने संगमयुग पर दो कार्य किये, स्वयं को पवित्र बनाया और बाबा के महान कार्य में मददगार बने। इस कारण तुम्हारी पूजा होती हैं, तो हम पूज्य बन गये। तो अपने पूज्य स्वरुप को हम याद करें, हम दाता... सबकी मनोकामनायें पूर्ण करनेवाले... सबके विघ्न नष्ट करनेवाले... सबको पापो से मुक्त करनेवाले, सभी को दुःखो से दूर करनेवाले... विद्या देनेवाले... बुद्धि देनेवाले... सफ़लता देनेवाले...- यह हमारा पूज्य स्वरुप हैं। गहराई से इस फ़िलींग में आये, यह मेरा स्वरुप हैं। और चौथा याद दिलाया कि, "तुम अब ब्राह्मण हो, गोडली स्टूडेंट, हम भगवान के बच्चे, उसकी पालना में पलनेवाले, श्रेष्ठ भाग्य का निर्माण करनेवाले और तुम्हें बनना हैं फ़रिष्ता। तुम कल्प पहले भी फ़रिष्ते बने थे।”देखिये हमे पूरे 5000 साल की कहानी बाबा ने याद दिला दी और कितना अच्छा हुआ कि जब हम इस यात्रा के अंत में पहुँचे तो स्वयं भगवान आकर हमारी थकान मिटा दी। उसने कहा, "बच्चे, मैं तुम्हारा साथी हूँ, मैं तुम्हारा सहयोगी हूँ, अब बिलकुल निश्चिंत हो जाओ, तुम्हारे दुःखो के दिन पूरे हुए। अब मैं तुम्हें घर वापिस ले जाने आया हूँ। तुम अथाह शांति में रहोगे और फिर जाकर विश्व पर राज करोगे..!”

तो यह हमारे पाँचो स्वरुप हैं। इनका हम बहुत अच्छी तरह अभ्यास करें। इन पाँचो  स्वरुपो के अभ्यास से हमारे व्यर्थ संकल्प समाप्त हो जायेंगे, हमारे जीवन में दिव्यता आ जायेगी, योग बहुत अच्छा लगेगा।

तो आज सारा दिन बहुत अच्छी तरह हर घंटे में एक बार पाँच स्वरुपो का अभ्यास करेंगे। अपने एक-एक स्वरुप को सामने इमर्ज करेंगे और यह फ़िलींग देंगे कि यह मैं हूँ, यह मेरा स्वरुप हैं। इससे देखे सारा दिन कितनी सुखद फ़िलींग रहेगी, व्यर्थ से पूरी तरह आप मुक्त हो जायेंगे। साथ-साथ जब ब्राह्मण स्वरुप को याद करें तो अपने किसी अच्छे स्वमान को भी याद करेंगे और आज का स्वमान होगा, मैं इस जहाँ का नूर हूँ, मेरे ऊपर सारी सृष्टि का आधार हैं, मैं आधारमूर्त, उद्धारमूर्त भी हूँ...

तो आज इस नशे में रहते हुए सारा दिन बहुत अच्छी तरह पाँचो स्वरुपो का अभ्यास करते रहेंगे।

ओम शांति...



 

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बाबा हमे स्मृतियाँ दिलाकर बहुत-बहुत शक्तिशाली बनाते हैं। माया युगो से बड़ी ही पावरफ़ुल रही हैं। माया के सामने सभी हार मान चुके थे लेकिन बाबा ने हमे स्मृति दिलाकर मायाजीत बना दिया हैं। आज दो स्मृतियों पर हम बात कर रहे हैं, एक हैं- बाबा ने हमे याद दिलाया कि "सर्वशक्तिवान का वर्सा तुम्हें प्राप्त हैं, तुम सर्वशक्तियों के मालिक हो। इसे महसूस करो, स्वीकार करो, इसके नशे में रहो..!”बहुत बड़ी बात हैं। जो शक्तियाँ अब तक शिवबाबा के पास थी वो अब हमारे पास भी हैं क्योंकि हम उसकी संतान बने हैं। तो हम बहुत-बहुत पावरफ़ुल हैं, अपनी शक्तियों को पहचाने।

दूसरी स्मृति दिलायी विजय की। बहुत सुंदर शब्द बोले- "तुम्हारें लिए बाप का वर्सा ही हैं विजय। अगर भगवान के बच्चे ही विजय नहीं बनेंगे तो भला कौन बनेंगा। अगर सर्वशक्तिवान के बच्चे ही विजय नहीं बनेंगे तो और किसकी विजय संसार में होगी..!”तो विजय हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं। हमने कल्प-कल्प विजय पाइ है, अब तो केवल हम दोहरा रहे हैं, नथिंग न्यू..! इस नशे में आ जायें तो हर कदम पर सहज विजय का अनुभव होगा। माया का कैसा भी स्वरुप हो, विघ्नो का कैसा भी स्वरुप हो, विजय हमारी ही होगी। इस नशे का बहुत ज्यादा महत्व हैं। सवेरे उठते ही सात बार याद कर लिया करें, "मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ... कल्प-कल्प की विजयरत्न हूँ, विजय मेरा जन्मसिद्ध अधिकार हैं मैंने इस माया पर कल्प-कल्प विजय पाइ हैं।”सवेरे उठते ही जब ऐसी गुड फ़िलींग में आ जायेंगे तो क्या होगा? मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, इससे सोई हुई शक्तियाँ जागृत हो जायेंगी और मैं विजयरत्न हूँ, यह शक्तियाँ हमे विजय दिलाने के कार्य में लग जायेंगी, तो हमारी विजय बहुत सरल हो जायेंगी।

तो आज सारा दिन हम चेक करें कि कितना हमे नशा रहता हैं? यह दोनो हमारे स्वमान भी हैं और हमारा स्वरुप भी हैं। विजय हमारी होनी ही हैं और यह देखेंगे कि सारे दिन में किसी भी माया के विकार पर, चाहे वो ईर्ष्या-द्वेष हो, परचिंतन हो, परदर्शन हो, दूसरो के लिए अवगुणी दृष्टि हो- इन सब पर हमारी जल्दी जल्दी विजय होती हैं..? क्योंकी यह छोटे छोटे विकार भी हमारी शक्तियों को नष्ट करते जाते हैं और अपनी शक्तियों की स्मृति हमे कितनी रहती हैं? क्या हम छोटी-छोटी बात आने पर घबरा जाते हैं या हम भयभीत हो जाते है? जैसे शक्तिशाली व्यक्ति कभी ड़रता नहीं हैं, उसके अंदर धैर्य बना रहता हैं। क्या हमारे अंदर भी संपूर्ण धैर्य बिराजमान रहता हैं?

तो सारा दिन हम बहुत सुंदर इन दोनो फ़िलींग्स को अपने अंदर लायेंगे। गहराई से समझ लिया होगा आप सभी ने इन दोनो बातो को। तो जिनको माया को जीतना कठिन हो रहा हैं उनको माया को जीतना सरल हो जायेगा। आज सारा दिन हम अभ्यास करेंगे ब्राह्मण सो फ़रिष्ता, फ़रिष्ता सो देवता। यह बहुत सुंदर हमारा खेल हैं, "मैं आत्मा इस ब्राह्मण शरीर में हूँ...”कुछ देर फ़िल करेंगे अपने को। मस्तक के मध्य में, "मैं इस शरीर को छोडकर अपने फ़रिष्ते स्वरुप में चली जाती हूँ जो मेरे बांई ओर सामने खड़ा हैं...”अपने फ़रिष्ते स्वरुप को सामने खड़ा हुआ देखे। प्रकाश के शरीर मैं विराजमान हैं, अंग अंग से रंगबेरंगी किरणे फैल रही हैं। फिर वहाँ से निकलकर अपने देव शरीर में पहुँच गये जो हमारे दाहिने तरफ़ विराजमान हैं। मैं अपने दिव्य देवताई स्वरुप में, सिर पर डबल ताज़, कंचन काया, चमकता हुआ ललाट, अंग-अंग सुगंधित... फिर वापिस ब्राह्मण स्वरुप में..! यह खेल हम सारा दिन करते रहेंगे और आनंद लेंगे।

ओम शांति...



 

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संगमयुग पर भाग्यवान आत्माओ को प्रभुमिलन हुआ हैं और जो इस अनमोल समय को यूं ही गंवा देते हैं उनको तो कोई भी बुद्धिमान नहीं कहेगा। विचार कर ले, भगवान भाग्य बाँटने आया हैं, वो हमे अपने सर्व खज़ाने देने आया हैं, शक्तियों से भरपूर करने आया हैं। जो जो हमने भक्ति मार्ग में माँगा था वो सबकुछ देने आ गया हैं क्योंकि उसे पता हैं हमने क्या माँगा था। तो बुद्धिमानी और समझदारी इसी में हैं कि हम स्वयं को चारो ओर से समेट कर, व्यर्थ से मुक्त कर के बाबा की याद में मग्न होकर उससे सर्वस्व प्राप्त कर ले। व्यर्थ में तो कोई आनंद नहीं हैं। व्यर्थ तो मनुष्य को भटका देता हैं, उसके मन को विचलीत कर देता हैं। इस संसार में समस्यायें तो पहले ही बहुत हैं। मनुष्य का मन तो पहले ही बहुत परेशान रहता हैं। अब भी, भगवान को पाकर भी यदि हम साक्षी न हुए, यदि हमने दूसरो की चिंताये करना न छोड़ा तो भला हमारा कल्याण कैसे होगा। बहुत अच्छी तरह इस गुह्य रहस्य को जान ले कि यदि हम स्वयं की चिंता करेंगे अर्थात अपने श्रेष्ठ पुरुषार्थ करने की चिंता करेंगे, जो कुछ बाबा ने कहा हैं उसे संपूर्णरुप से करने की चिंता करेंगे, प्रतिज्ञा करेंगे तो हमारी सभी चिंताये समाप्त हो जायेगी और आपके परिवार की, काम धंधो की चिंता स्वयं भगवान को होगी। लेकिन जब आप उनकी चिंता में लगे रहते हैं तो बाबा सोचता हैं कि इन्हें लगे रहने दो, मैं इनकी चिंता क्यों करु। उसका ध्यान किसी और की ओर चला जाता हैं।

तो आइये हम सभी बाबा की याद में मग्न होकर इस संगमयुग की अनमोल काल को आनंदो में व्यतित करें। कितना बड़ा भाग्य हैं हमारा। सम्मुख भगवान बैठकर हमे पढ़ाते हैं, वो हमे घर ले जाने के लिए आ गये हैं। कितनी बड़ी चीज़ हैं। रोज़ सवेरे हमसे मिलन करने आ जाते हैं, हमे जगाने आ जाते हैं, हमे बहुत सुख देने, हमारे दुःखो को हरने, हमारे दुःखो के आँसू पोछने के लिए आ जाते हैं। अनुभव करें उनके इस परमपवित्र प्यार को जो वो हमे दे रहे हैं।

तो अपने को चेक कर ले, ऐसे सुंदर समय पर हम कहीं भटक तो नहीं गये हैं, हम कहीं अटक तो नहीं गये हैं या कहीं लटक तो नहीं गये हैं। इन सब से हमे मुक्त होना हैं। देहधारीयो से प्यार तो हम जन्म-जन्म करते आये हैं। अब यदि देहधारीयो से प्यार करते रहेंगे तो वास्तव में रहस्य तो यही हैं कि द्वापरयुग के बाद किसी भी जन्म में हमे सच्चा प्यार देहधारीयो से प्राप्त नहीं होगा। और जो इस समय स्वयं को प्रभुप्रेम में मग्न कर देंगे उन्हें जन्म-जन्म देहधारीयो का भी नि:स्वार्थ प्यार मिलता रहेगा। इसलिए समय के महत्व को समझते हुए अपने संपूर्ण प्यार को एक में बदल दे। जितना प्यार हम देहधारीयो से करते हैं उतना प्यार यदि परमपिता से करें तो कमाल हो जाये।

तो आईये हम चेक करें, हम कहाँ चले गये हैं? हमारी आंतरिक दुनिया कैसी हैं, हमारे मन में क्या-क्या चलता हैं, हमारी भावनाये, हमारा दृष्टिकोण कैसे हैं? उसको शुध्द करें, सकारत्मक करें, प्रेम से भरपूर करें। तो ये जीवन की यात्रा बहुत ही सुखद हो जायेगी। अपने से बात करें, "हम जो बुद्धिमान हैं, हम यदि जीवन का सुख प्राप्त नहीं करेंगे तो भला कौन करेगा। जिनको भगवान साथ दे रहा हैं वही यदि सुखी नहीं होंगे तो भला कौन होगा..!"

तो आज हम सभी सारा दिन इस स्वमान का अभ्यास करेंगे, "मैं जहाँ का नूर हूँ, सृष्टि का आधारमूर्त और उद्धारमूर्त हूँ, हमारे एक-एक संकल्प का प्रभाव समस्त संसार में फैलता हैं, हमारी स्थिति का प्रभाव समग्र संसार में जाता हैं। हम आधारमूर्त हैं।”और योग की बहुत अच्छी ड्रिल करेंगे, "मैं आत्मा इस देह से निकलकर चली परमधाम, बाबा को टच/स्पर्श किया, उससे शक्तियाँ भरी और वापिस इस देह में आ गई वायब्रेशन्स चारो ओर फैलाने के लिए।”यह ड्रिल बार बार करते रहेंगे।

ओम शांति



 

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बाबा ने आकर हम सभी को संपूर्ण पवित्र बनने के लिए बहुत श्रेष्ठ प्रेरणाये दी हैं। हम पवित्र थे। अपने पवित्र स्वरुप की स्मृति हमारे अंदर पवित्रता के बीज अंकुरीत करती हैं। हम परम पवित्र आत्मायें हैं। इससे अपवित्रता के सभी किटाणु मर जाते हैं। हम देवकुल की संपूर्ण पवित्र आत्माये हैं। इस स्मृति से पवित्रता को धारण करने का बल प्राप्त होता हैं।

तो आइये हम सभी बाबा को संपूर्ण पवित्रता का वचन दे दे और शक्तिशाली वही हैं, बाबा से वफ़ादार वही कहलायेगा जो एक बार बाबा को वचन दे कर उसे वापिस न ले। तो संकल्प करें, हम जिस पथ पर एक बार चल पड़े, निकल पड़े, अब पिछे मुड़्कर नहीं देखेंगे। चाहे मार्ग कितना ही कटिला-विषेला क्यों न हो लेकिन यही हमारा मार्ग हैं और यही हमे श्रेष्ठ मंज़िल पर पहुँचायेगा। तो हमे अपने अंदर पवित्रता का बल बढ़ाते चलना हैं। कैसे बढ़ेगा ये बल?

बार-बार देही अभिमानी का अभ्यास करने से, बार-बार स्वमान में स्वयं को स्थित करने से और बहुत अच्छा योग अभ्यास करने से, अपने संकल्पो में भी बहुत द्रढ़्ता रहे और चौथी बात हैं दूसरो को आत्मिक द्रष्टि से देखने से। देहिक द्रष्टि से देह का आकर्षण पैदा करती हैं और क्योंकि सभी के देह पतित हैं तो पतितपन के वायब्रेशन्स हमारे अंदर भी आने लगते हैं। इसलिए जिनको संपूर्ण पवित्र बनकर प्रकृति को पावन करना हैं, जिन्हें संपूर्ण पवित्र बनकर वायुमण्डल को पवित्र करना हैं और संपूर्ण योगी बनना हैं वह द्रढ़ संकल्प कर लें कि हम केवल आत्मा को ही देखेंगे और सबको आत्मा देखते हुए उन्हें पवित्र वायब्रेशन्स भी देंगे। इससे हमारा भी फ़ायदा होगा और उनका भी बहुत फ़ायदा होगा। हम पवित्रता के इस मार्ग पर चलते चलते इसमें छोटी-मोटी जो बाते आती हैं उनसे घबरायेंगे नहीं। मान लो, देह का आकर्षण होता हैं, आपको व्यर्थ संकल्प चलते हैं, आपको स्वप्नो में कोई disturbance (विघ्न) होता हैं, यह इस मार्ग पर आनेवाले रूकावटे हैं और यह आयेंगे ही क्योंकि हमे आत्मा और शरीर दोनो को स्वच्छ करना हैं। इन्हें विदाई देते चले। अपने को निराश बिलकुल न करें। जब नेगेटिव संकल्प आयें, उन्हें पोजिटीव संकल्पो में बदलते चले, जब अपवित्र संकल्प आयें तब स्वयं को स्वमान में स्थित करते चले और सवेरे उठकर रोज़ योग अभ्यास बहुत अच्छा करें। जो आत्मायें सवेरे उठकर योग अभ्यास करती हैं, अच्छा योग लगाती हैं, थोड़ा प्रकृति के शीतल वायुमण्डल में भ्रमण करती हैं उनमे पवित्रता का बल बहुत बढ़्ता जाता हैं। उनकी अपवित्रता धीरे-धीरे समाप्त होती जाती हैं, कर्मेंद्रियाँ शीतल होती जाती हैं, वश में हो जाती हैं।

तो हम बहुत अच्छा अभ्यास करेंगे सारा दिन इस स्वमान का, "मैं पवित्रता का सूर्य हूँ या पवित्रता का फ़रिष्ता हूँ... मैंने इस देह में अवतार लिया हैं इस संसार को संपूर्ण पवित्र बनाने के लिए।”हमे जब इस महान कार्य की स्मृति रहती हैं तो पवित्र बनने का बहुत ज्यादा बल रहता हैं। चारो ओर भले ही हमारे अपवित्र वातावरण हैं, गंदी दुनिया हैं इसमे कोई संशय नहीं कि चारो ओर की गंदगी, चारो ओर का अंधकार किसी पर भी असर डाल सकता हैं परंतु हम लाइट-हाउस हैं। अंतत: हमारा प्रकाश ही सबको प्रकाशीत करेगा।

तो आज बार-बार स्वयं को देही अभीमानी बनने की प्रेक्टिस करेंगे और परमधाम में जाकर पवित्रता के सागर के पास बैठेंगे। कुछ देर के लिए उनके वायब्रेशन्स के नीचे बैठेंगे ताकि पवित्रता के सागर के वायब्रेशन्स हम में समा जायें। फिर वापिस आयेंगे इस संकल्प से कि, "मैं आत्मा इस तन में आइ हूँ इस संसार को पावन बनाने के लिए।”यह ड्रिल करते रहेंगे और बहुत हिम्मत, उमंग-उत्साह के साथ जीवन की यात्रा में आगे बढ़ेंगे तो हमारी पवित्रता इस संसार को पवित्र बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभायेंगी। और सबको ज्ञात ही हैं कि पवित्र आत्माओ को ही प्रभु प्रेम प्राप्त होता हैं।

ओम शांति...



 

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भगवानुवाच- "तुम बच्चे पवित्रता की राखी बांधो तो तुम्हें राजाई का तिलक मिले..!"- कितनी बड़ी बात हैं..! हमारी पवित्रता से सब धर्मो को बल मिलता हैं। हमारी पवित्रता धर्म स्थापना में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं। बाबा धर्म की स्थापना करने भी आया हैं और राज्य की स्थापना करने भी आया हैं। जितना जितना हमारे अंदर पवित्रता का बल बढ़्ता जायेगा, इस धर्मस्थापना के कार्य को बल मिलता जायेगा। हमारा यह यज्ञ निर्विघ्न बनता जायेगा। हमे बाबा के संपूर्ण यज्ञ को निर्विघ्न बनाना हैं और इसके लिए पवित्रता एक बहुत बड़ी चीज़ हैं क्योंकि अपवित्रता के कारण ही यज्ञ में विघ्न पड़ रहे हैं। बाबा के जो बच्चे भी यज्ञ में विघ्न डाल रहे हैं वो भी अपवित्रता के कारण, अपने अहंकार के कारण विघ्न डाल रहे हैं। जिनके पास पवित्रता का बल बढ़्ता जाता हैं वो काम, क्रोध और अहंकार पर विजय पाते जाते हैं। पवित्रता के साथ क्रोध और अहंकार को जीतना भी परम आवश्यक हैं। यदि कोई व्यक्ति ने ब्रह्मचर्य तो धारण कर लिया हो लेकिन उसके अंदर क्रोध का उद्वेग अभी भी ज्वालारुप में हो तो उसे पवित्रता का बल कभी प्राप्त नहीं होगा। चाहे वो पूरा जीवन ब्रह्मचर्य पालन करें, उसके चेहरे पर पवित्रता का तेज़ कदापी नहीं आयेगा और जिस व्यक्तिने क्रोध और अहंकार को जीत लिया हो उसकी पवित्रता बहुत दिव्य बन जायेगी, उसके चेहरे पर दिव्यता आ जायेगी, उसका ललाट तेजस्वी हो जायेगा।

तो हम बहुत ध्यान दे, पवित्रता के साथ इन सब चीज़ो को भी अपनाये लेकिन साथ-साथ एक और महत्वपूर्ण बात। जो आत्मा बहुत पवित्र बन जाती हैं वो सुखदायी हो जाती हैं। जो मनुष्य दूसरो को सुख दे रहे हैं, दुःख हर रहे हैं वही वास्तव में संपूर्ण पवित्र हैं। अगर कड़वे वचन से, अपने गलत व्यवहार से या दूसरो को तंग करने के संस्कार से हम दूसरो को कष्ट पहुँचा रहे हैं, वो बाबा के पास आगे बढ़्ने आये हैं और हम उनका मार्ग रोक रहे हैं तो हमारा मार्ग भी अवश्य अवरुद्ध हो जायेगा। हम कदापि आगे नहीं बढ़ पायेंगे। हमे याद रखना हैं, जो कुछ हम दूसरो को देते हैं वही डबल होकर हमारे पास आ जाता हैं। हम दूसरो को सुख देंगे तो सुख डबल होकर हमारे पास आ जायेगा। हम दूसरो को खुशी बाँटेंगे तो हम सदा बहुत बहुत खुश रहेंगे। हम पुण्य कर्म करेंगे, ये पुण्य कर्म डबल होकर हमारे पास शक्ति के रुप में जमा होते रहेंगे। तो हम पवित्र बने। अपने चित्त को निर्मल करें, अपनी भावनाओ को श्रेष्ठ करें। विशेषरुप से दूसरो के दुःखहर्ता बन जाये। सुख देना एक बात और दूसरो के दुःख हरना बहुत महत्वपूर्ण बात हैं। दुःख संसार में सभी एक-दूसरो को दे रहे हैं। हम अच्छे वचन बोलकर दूसरो को हल्का करके, दूसरो की बात सुनकर, उन्हें समाधान देकर, उनके दुःखो को थोड़ा हल्का करते चले। यह भी संपूर्ण पवित्र आत्मा का ही एक उत्तम लक्षण होगा। लेकिन याद रखेंगे कि यदि हम दूसरो के मार्ग में बाधाये डालते रहेंगे, यदि हम दूसरो को कष्ट पहुँचाते रहेंगे, यदि हम दूसरो की ठीक से पालना ही नहीं करेंगे, यदि हम दूसरो का ध्यान ही नहीं रखेंगे तो राजाईकुल 84 जन्मो में हमसे बहुत दूर रहेगा।

तो आइये हम सब संपूर्ण पवित्र आत्मा बनकर इस संसार में चमके और बाबा को चमकायें। आज सारा दिन बहुत अच्छी ड्रिल करेंगे, "बाबा की पवित्र किरणे निरंतर मुझ पर पड़ रही हैं, मैं हूँ परम पवित्र आत्मा, मैं हूँ पवित्रता की देवी/देवता और निरंतर पवित्र किरणे बाबा से मुझमें समा रही हैं। जैसे यह फ़व्वारा निरंतर मुझ पर उतर रहा हैं।”और अभ्यास करेंगे कि, "मैंने तो इस धरा पर अवतार लिया हैं, इस संसार में शांति की स्थापना करने के लिए, सभी को दुःखो से मुक्त करने के लिए, सभी को सुख और चेन देने के लिए।”तो लक्ष रखेंगे सारा दिन ऐसे वायब्रेशन्स चारो ओर फ़ैलाते रहे कि सबको सुख मिलता रहे।

ओम शांति...



 

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आओ हम सभी अपने-अपने घरो को मंदिर बनायें, महान तीर्थ बनायें और स्वयं की स्थिति को इतना महान बना दे कि हम चलते फ़िरते तीर्थ बन जाये। इसके लिए आवश्यक होगा निरंतर योगयुक्त रहना। योगयुक्त स्थिति में कई बातें आ जाती हैं। चाहे हम अशरीरीपन का अभ्यास कर रहे हो, चाहे पाँच स्वरुपो का अभ्यास कर रहे हो, चाहे स्वमान का अभ्यास कर रहे हो, चाहे आत्मिक दृष्टि की प्रेक्टिस कर रहे हो या बाबा से रुह-रुहान कर रहे हो, सूक्ष्मलोक में जाकर बापदादा से बाते कर रहे हो, वरदान ले रहे हो या परमधाम में जाकर पॉवरफूल योग में स्थित हो- यह सब योगयुक्त स्थिति बनाने में सहायक होंगे। हमे योग अभ्यास भी बढ़ाते चलना हैं ताकि हमारी स्थिति योगयुक्त होती रहे। एक हैं योग अभ्यास करना, दूसरा हैं जीवन को योगयुक्त बनाना। कई लोग योग अभ्यास तो बहुत करते हैं पर उनका जीवन योगयुक्त नहीं होता। योगयुक्त माना जो योगी की धारणायें हैं वो सब जीवन में आ जानी चाहिए। अर्थात काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से मुक्त, शुभ भावनाओ से चित्त भरा हुआ, सदा न्यारे और प्यारे, सभीको सकाश देनेवाले, वाणी में मधुरता, कहीं भी आसक्त नहीं, सदा ऊपराम, कर्म करते भी ऐसी महसूसता मानो हम कुछ भी नहीं करते। आप यह बिलकुल न सोचे कि घर गृहस्थ में रहते या कार्य व्यवहार में रहते या सारा दिन सेवाओ में रहते हम इस स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकते? अवश्य प्राप्त कर सकते हैं। केवल लक्ष को महान बनाने की आवश्यक्ता हैं, केवल बार-बार अभ्यास करने की आवश्यक्ता हैं और बाबा ने यह बात कह दी हैं कि कोई भी सेवा यदि स्थिति को नीचे गिराये तो वह सेवा नहीं हैं। यदि कोई कहे कि हम तो बहुत सेवा करते हैं इसलिए योग का टाइम नहीं मिलता तो समझ लेना चाहिए कि उन्हें सेवा करना नहीं आता। वो कर्म कॉन्श्यस ज्यादा रहते हैं, उनके पास मैं-पन और मेरा-पन बहुत ज्यादा हैं। हमे तो निमित्त भाव धारण करना हैं, हमे तो ये लगातार स्मृति रखनी हैं कि "करनकरावनहार बाबा मुझसे करा रहा हैं, मैं निमित्त हूँ।”सारा दिन बाबा को थेंक्स देते रहे। कितना आनंद आयेगा..! तो यह भी सब योगयुक्त स्थिति में आ जायेगा।

अपने अपने घरो में कम से कम दो-तीन बार बैठकर सबको आत्मिक दृष्टि से देखे। इस फ़िलींग से देखे कि यह सब देवकूल की महान आत्माये हैं और मैं भी महान आत्मा हूँ। इससे घर का वातावरण बहुत अलौकिक होता जायेगा। साथ-साथ अपने घर के वावावरण में आध्यात्मिक वायब्रेशन्स भरने के लिए वहाँ बार-बार यह अभ्यास भी करें,"मैं मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ।”

तो हम सभीको बहुत योगयुक्त होना हैं। योगीओ की संसार को बहुत जरुरत हैं।बाबा के कार्यो में योगी आत्माये ही बहुत ज्यादा सहयोगी हैं और योगी तो जैसे बाबा के साथ रहते हैं या बाबा उनके साथ रहते हैं। उनकी छत्र-छायाँ सदा ही सिर पर बनी रहती हैं।

तो आज सारा दिन बार-बार यह अभ्यास करेंगे, बाबा ने हमे जो कुछ दिया हैं उसको याद करते हुए उसको सच्चे मन से शुक्रिया करते रहेंगे। जो कुछ बाबा से हमे मिला हैं उसकी एक बड़ी लिस्ट बन सकती हैं कम से कम पच्चीस बातो की। सबसे पहले सदज्ञान दिया, हमारी सत्य की खोज़ पूर्ण कर दी, हमे दिव्य बुद्धि प्रदान की, हमारे दुःख हरे, हमे नया जीवन दिया, हमारी चिंताये हरी, हमे समस्याओ से मुक्त किया- ऐसी अनेक बाते हैं। उन्हें याद करके बाबा के लिए शुक्रिया करते रहेंगे और हर घंटे में दो बार बापदादा का आह्वान करेंगे। शिवबाबा को निमंत्रण देंगे, प्यारे बाबा अपना धाम छोड़्कर आ जाओ और देखेंगे बाबा नीचे आ रहे हैं, सूक्ष्मलोक में आकर ब्रह्मातन में प्रवेश किया, अब दोनो नीचे आ गये मेरे पास, वरदानी हाथ सिर पर रख दिया, दृष्टि दे रहे हैं। बहुत सुंदर अनुभव होगा। आज सारा दिन इसका आनंद लेंगे।

ओम शांति...



 

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बाबा हम सभी को कैसा देखना चाहता हैं? कि जो भी हमे देखे, हम उसे चलते-फ़िरते फ़रिष्ते नज़र आये। देखिए बाबा की कितनी श्रेष्ठ इच्छा हमारे लिए हैं वेसी श्रेष्ठ हम भी स्वयं के लिए निर्धारण कर ले। तो जल्दी ही हम वेसे ही बन जायेंगे जैसा बाबा हमे बनाना चाहता हैं। तो चलते फिरते फ़रिष्ते अर्थात जो सदा डबल लाइट रहते हो, जिनके चेहरे पर टेंशन की तनिक भी झलक दिखाइ न देती हो, जिनका चेहरा सदा खुशी से भरपूर हो, प्युरिटी की दिव्यता जिनके ललाट पर देदिप्यमान हो और जो सदा योगयुक्त रहते हो, जिनके कदम धरती पर पड़ ही न रहे हो। इसे कहते हैं फ़रिष्ता स्वरुप जो यहाँ से पूरी तरह ऊपराम हो गये हो। तो हम स्वयं को तैयार करें कि चलते-फ़िरते फ़रिष्ते बन जायें ताकि देखने वालो को ऐसा आभास हो कि हमारे अंग अंग से चारो ओर रंगबेरंगी किरणे फैल रही हैं। यह सब होना ही हैं क्योंकि अंतिम समय में सभी धर्मात्माओ को हमारे फ़रिश्ते स्वरुप के द्वारा ही बाबा का दिव्य संदेश प्राप्त होगा। हमारे फ़रिश्ते स्वरुप द्वारा ही चारो ओर सबको सकाश प्राप्त होगी। इसलिए हमे अपना फ़रिश्ता स्वरुप बढ़ाते ही चलना हैं। देह का भान टूटता चले। देह की ओर जो आकर्षण हैं, अपनी देह में मनुष्य का सबसे अधिक आकर्षण होता हैं। यह आकर्षण नष्ट होता चले और हम ऊपराम होते चले।

साथ-साथ अभ्यास भी करते रहे कि, "जैसे हम इस संसार में नहीं हैं, इस संसार से ऊपर हैं, इस संसार का निर्माण हमारे लिए हुआ ही नहीं, यह कलियुगी दुनिया हमारे लिए हैं ही नहीं, हमारे लिए तो बाबा नया संसार रच रहे हैं, हमारा संसार तो सूक्ष्मलोक हैं, हमारा संसार तो मूलवतन हैं।”- ऐसी श्रेष्ठ स्थिति हमे चलते-फ़िरते भी अपना लेनी हैं। तो इसके लिए बहुत सुंदर ज्ञान का चिंतन निरंतर हम रखे। अपने स्थिति को महान बनाने के लिए भी बहुत आवश्यक हैं कि हमारे अंदर ज्ञान का चिंतन चलता रहे इसलिए रोज़ मुरली सुनने के बाद हम मुरली से दो-चार पॉईण्ट अपने साथ ले जायें जिनका हम चिंतन करते रहे। चिंतन का अर्थ हैं उन्हें हम याद करते रहेंगे तो जिस चीज़ को हम स्मरण करते हैं उसका चिंतन हमारे अंदर स्वत: ही होता रहता हैं और इस चिंतन से व्यर्थ की छाँया हम तक आ भी नहीं पायेगी क्योंकि जब हमारा मन दूसरे सुंदर चिंतन में तत्पर रहता हैं तो व्यर्थ चिंतन की ओर हमारा ध्यान जाता ही नहीं। हम अपने लक्ष्य को इतना मज़बूत कर दे कि दूसरो को देखने की हमे आवश्यक्ता न हो। जैसे कोई विद्यार्थी, जिसको बहुत अच्छे मार्क्स लाने होते हैं, जिसको बहुत श्रेष्ठ पोज़ीशन लानी होती हैं वो संसार की ओर कदापी नहीं देखता हैं। उसे तो केवल अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की श्रेष्ठ चाहना रहती हैं। हम भी अपने लक्ष्य को बहुत महान बना दे और उस लक्ष्य में इतने मग्न हो जायें कि हमे और कुछ दिखाइ न दे, सुनाई न दे, हमारा और कुछ चिंतन रह ही न जाये। फिर देखो हमारी स्थिति कितनी श्रेष्ठ फ़रिष्ता स्वरुप बनती हैं।

तो आज सारा दिन हम इस संसार से उपराम रहने का अभ्यास करें- "यह संसार हमारे लिए नहीं हैं। चारो ओर के संसार को देखते हुए हम उपर देखे, हमारा संसार तो वो हैं, हमारा संसार तो स्वर्ग हैं”। और अभ्यास करेंगे, "जैसे मैं आत्मा इस देह में हूँ ही नहीं। मैं तो फ़रिष्ता हूँ। पवित्रता का फ़रिष्ता हूँ।”और फ़रिष्ते स्वरुप द्वारा उड़्कर ऊपर जाने का अभ्यास करेंगे,- मैं फ़रिष्ता कभी आकाश में चला गया, कभी भिन्न-भिन्न देशो के ऊपर चला गया और वहाँ जाकर सकाश देने लगा। कभी मैं फ़रिष्ता सागर के ऊपर चला गया। पूरे जल को पवित्र वायब्रेशन्स देने लगा और कभी चले गये हम फ़रिष्ते सूक्ष्मलोक में बाबा के पास। बाबा से शक्ति लेने लगे। बाबा के साथ सैर करने लगा। बाबा के साथ घूमते हुए खुदादोस्त से मीठी मीठी बाते करने लगे।- आज सारा दिन हम फ़रिष्ते स्वरुप के ये भिन्न-भिन्न अभ्यास करेंगे।

ओम शांति...



 

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हमे बाबा को इस संसार में प्रत्यक्ष करना हैं और अपनी श्रेष्ठ स्थिति के द्वारा अपने परिवार का, अपने संबंधीओ का, अपने समाज का और अपनी संपूर्ण वंशावली का कल्याण भी करना हैं। हम सब रोज़ सुनते आते हैं कि हमारी स्थिति पर ही सारे संसार की स्थिति निर्भर करती हैं। सभी धर्मो की, धर्मपिताओ की, धर्म के नेताओ की स्थिति निर्भर करती हैं। तो हमे बहुत ध्यान देना हैं अपनी श्रेष्ठ स्थिति पर। कुछ हैं हमारी साधनाये, जैसे योगयुक्त होना, आत्मिक दृष्टि रखना, अशरीरी होना और पवित्रता हमारी सबसे बड़ी साधना हैं परंतु इन सब साधनाओ के उपरांत हमारी स्थिति का निर्माण होता हैं। हमे अपनी स्थिति पर बहुत ध्यान देना हैं। श्रेष्ठ स्थिति माना हमारा मन कभी भी विचलीत न हो, हम कभी परेशान न हो जाये, हम तनाव में न आ जाये, हमारा आकर्षण संसार की ओर न हो जाये। हम बिलकुल शांत खुशी में एकरस, शांत चित्त, साक्षीभाव रहे। यह श्रेष्ठ स्थिति हैं। संसार के लोग जब हमे देखते हैं कि यह तो जैसे पहले थे वैसे अब हैं। दस साल हो गये इन्हें ज्ञान में चलते हुए, बीस साल हो गये लेकिन यह वैसे के वैसे ही हैं। तो वह जरुर सोचते हैं कि हमे भी वहाँ जाकर कुछ नहीं मिलेगा। और यह एक तरह से ऐसी आत्माओ के द्वारा होने वाली डिसर्विस ही कहलाइ जायेगी और जिन आत्माओ की स्थिति को देखकर सभी बाबा के समीप आते हैं, जिनकी स्थिति को देखकर जिनका जीवन लाइट हो जाता हैं, सभी जीवन जीने की कला सीख लेते हैं, यह उनकी चलते-फ़िरते सहज भाव की सेवा हो जाती हैं। इससे बाबा की प्रत्यक्षता होती हैं, बाबा का नाम रोशन होता हैं। तो हम इस बात पर ध्यान दे। केवल ज्ञान देने से काम नहीं चलेगा, केवल ब्रह्मचर्य पालन कर लिया इससे काम नहीं चलेगा। बाक़ी कुछ भी धारण न किया, बोल वैसे ही रहे, क्रोध वैसा ही रहा, अहंकार वैसा ही रहा, चिड़्चिड़ापन वैसा ही रहा, संस्कार वैसे ही रहे, दूसरो से व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया तो इससे बाबा का नाम रोशन कदापी नहीं होगा, न अपने को आत्म-संतोष होगा क्योंकि कहीं न कहीं जब हम इश्वरीय महावाक्य सुनेंगे तो हमे यह महसूस अवश्य होगा कि हम तो बहुत पिछे हैं, हमने तो कुछ पाया नहीं हैं।

तो आइये हम श्रेष्ठ स्थिति के द्वारा सबको सुख दे और बाबा से संपूर्ण सुख प्राप्त करें। अगर संगमयुग पर हमने भगवान का बच्चा बनने के बाद इश्वरीय सुख न पाया, अगर हमने अपने साथीओ को प्रेम व सुख न दिया, यदि हम उनको भी संतुष्ट न कर पाये, यदि हम उनका ही ध्यान न रख पाये तो भला हम अपनी प्रजा का ध्यान कैसे रखेंगे, यदि हमारे साथी ही हमसे परेशान रहते हो तो प्रजा कैसे हमसे संतुष्ट रहेगी..? तो जिन्हें महान बनना हैं, जिन्हें विश्व की सेवा करनी हैं, जिन्हें संसार में बाबा का नाम रोशन करना हैं, हर दिल पर बाबा के प्यार का झंडा लहराना हैं उन्हें अपनी श्रेष्ठ स्थिति पर विशेष ध्यान देना चाहिए। केवल यूं ही ज्ञान में चल रहे हैं इससे कुछ भी मिलने वाला नहीं हैं। हम सिर्फ़ चले नहीं लेकिन उन सब बातो पर चले जो बाबा हमे कहते हैं।

तो आज सारा दिन हम अपने अपने परिवारो में, अपने कर्मक्षेत्र पर साक्षात्कारमूर्त बनकर रहे, "मैं इष्ट देवी/देव हूँ और मेरा सभी को साक्षात्कार हो रहा हैं... मेरा वरदानी हाथ ऊपर हैं, सबको मुझसे आशीर्वाद मिल रहा हैं। किसीको भी बददुआये नहीं।”अपने साक्षात्कारमूर्त स्वरुप का सारा दिन अभ्यास करेंगे। याद रखेंगे जो साक्षी स्थिति में स्थित रहते हैं वही साक्षात्कारमूर्त बनते हैं।

तो आज सारा दिन हम अभ्यास करेंगे, मैं इष्ट देव/देवी हूँ, मैं पूजनीय हूँ, मैं परमपवित्र हूँ और सूक्ष्मलोक में जायेंगे, बाबा को सामने देखेंगे और महसूस करेंगे कि बाबा ने अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख दिया हैं और बाबा दृष्टि दे रहे हैं। यह अभ्यास बार-बार करके आज के दिन को सफ़ल करेंगे।

ओम शांति...



 

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अपने संस्कारो को परिवर्तन करो तो तुम्हारा संसार बदल जायेगा। हमारा संसार माना हमारा पारिवारीक जीवन, हमारा कर्मक्षेत्र सबकुछ बदल जायेगा, हमारे जीवन में सहज सफ़लता प्राप्त होने लगेगी, निराशा के बादल छ्ट जायेंगे और हमारे घर में सदा खुशीयो के झुले में सब झुलते रहेंगे। तो हम अपने संस्कारो को बदलेंगे। अच्छी तरह पहचान ले कि मेरा कौन सा संस्कार मुझें कष्ट देता हैं या दूसरो को कष्ट पहुँचाता हैं? ऐसा तो नहीं कि हम अपने किसी संस्कार को बिलकुल राइट समझ रहे हैं और उससे सबको परेशानीयाँ हो रही हैं क्योंकि जिस मनुष्य में अहम बहुत होता हैं वह सदा अपने को राइट ही समझता हैं परंतु यदि हमारे द्वारा दूसरो को कष्ट पहुँच रहा हैं, यदि हमारी वाणी दूसरो का सुख छिन रही हैं, यदि हमारा क्रोध घर में अशांति पेदा कर रहा हैं, यदि सब लोग हमसे दूर भागना चाहते हैं तो हमे समझ लेना चाहिए कि हमारे संस्कारो में कहीं न कहीं गड़बड़ हैं, हमारा स्वभाव चिड़्चिड़ा हैं, हमारे स्वभाव में प्रेम नहीं हैं, अपनापन नहीं हैं, शुभ भावनाये नहीं हैं और हमारे वचन ऐसे नहीं हैं जो दूसरो को प्रिय लगे, दूसरो का उमंग बढ़ाये, दूसरो को शांति दे।

तो हम अपने संस्कारो को बदले तो संसार बदल जायेगा। चेक कर ले हमारे अंदर परिवारो में या संगठन में लड़ाई झगड़ा करने के संस्कार तो नहीं हैं? यदि हम लड़्ते ही रहेंगे तो सतयुग में हमारा पार्ट कदापी नहीं हो सकेगा, हम त्रेतायुग में ही आयेंगे और जब द्वापर के बाद हम नया जन्म लेना शुरु करेंगे तो भी हम लड़्ते ही रहेंगे, हमारा वो संस्कार ईमर्ज हो जायेगा और जो लड़्ते हैं उन्हें स्वयं भी शांति प्राप्त नहीं होती। भले ही उनके द्वारा दूसरो को अशांति मिलती हैं लेकिन हम जानते हैं जो दूसरो को अशांत करते हैं वो कभी शांत रह ही नहीं पाते हैं। यह भी देख ले कि हमारे अंदर कहीं परेशान होने का संस्कार तो नहीं हैं। छोटी-छोटी बातो में हम दुःखी और परेशान होते रहते हैं। तो अगर हम अपनी श्रेष्ठ शान में रहेंगे, अगर हम स्वमान में रहेंगे तो हम परेशान नहीं होंगे। बाबा का यह बहुत सुंदर महावाक्य याद रखेंगे,"जो बच्चे स्वमान में रहते हैं उनका जिम्मेदार बाप हैं और जो अहम में रहते उनके जिम्मेदार आप स्वयं हैं।”तो कितना अच्छा हो, हमारा जिम्मेदार स्वयं भगवान बन कर रहे, वाह..! हम कितने निश्चिंत हो जायेंगे तो क्यों न हम स्वमान में रहे। और टकराव से पूरी तरह मुक्त रहे। टकराव वाली आत्मा सेवाओ में विघ्न ही डालती हैं, वो वातावरण को विषेला कर देती हैं और सेवाओ की सफ़लता धुमिल कर देती हैं, वायब्रेशन्स नेगेटिव हो जाते हैं और कोई भी ऐसे स्थान पर आना नहीं चाहता हैं। इसलिए चेक करें, अगर टकराव हो रहा हैं तो हम दूसरो को जिम्मेदार न ठहरायें, स्वयं की जांच करें कि मुझें स्वयं में कहाँ परिवर्तन करना हैं अगर हम दूसरो को ही देखते रहेंगे कि यह ऐसा बोलते हैं, यह ऐसा करते हैं, यह बार-बार गलती करते हैं...तो हम टकराव से मुक्त माहोल कभी नहीं बना सकेंगे। बहुत अच्छी ये बात सभी को बार-बार याद करनी हैं कि दूसरा बुरे वचन बोले, हम यह सोचने की बजाये कि यह कब बदलेगा? हम यह सोचे कि मुझें अचल अडोल रहना हैं। तो हम उसका पुरुषार्थ करें तो दूसरे की कमी हमे शक्तिशाली बनाने वाली बन जायेंगी।

तो आज सारा दिन हम सुंदर स्वमान का अभ्यास करें,”मैं मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ।”इस स्वमान से हमसे रंगबेरंगी शक्तियो की किरणे चारो ओर फैलने लगती हैं और वातावरण चार्ज हो जाता हैं। फिर ज्ञानसूर्य शिव बाबा का आह्वान करें। "अपना धाम छोड़ सम्मुख आ जाओ।”और देखे "ज्ञानसूर्य महाज्योति निराकार नीचे उतर रहे हैं और आ गये हमारे सामने, ज्ञानसूर्य आँखों के सामने हैं। उनकी रंगबेरंगी किरणे सामने से मुझपर पड़ रही हैं।”ऐसा अभ्यास हर घंटे में एक मिनट दो बार अवश्य करें।

ओम शांति...



 

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शिव बाबा हमे मनुष्य से देवता बनाने आये हैं। हमारे मन को, हमारी बुद्धि को, हमारे संस्कारो को पूरा स्वच्छ करने, उन्हें मूल स्थिति पर ले जाने के लिए ज्ञान दे रहे हैं। हम पहचानते चले स्वयं को और अपने मन को निर्मल करते चले, बुद्धि को स्वच्छ और सदविवेक से भरपूर करते चले और अपने संस्कारो को बड़ा सुखदायी, बहुत पवित्र और जैसे हमारे संस्कार सतयुग में थे वेसे ही बनाते चले।

कईयो के संस्कार उनको बहुत परेशान करते हैं। किसी में काम का संस्कार बहुत होता हैं तो विषय विकारो के बिना रह ही नहीं पाते। किसी में क्रोध करने का संस्कार होता हैं। छोटी-छोटी बातो में भी क्रोध करते रहते हैं। किसी में रूसने का संस्कार होता हैं, किसी में जिद्द करने का संस्कार होता हैं, किसी में दुःखी रहने का संस्कार होता हैं। किसी में कड़वे वचन बोलने का संस्कार होता हैं, दूसरो को देखने का संस्कार, सदा दूसरो के बारे में सोचने का संस्कार यानी परचिंतन का संस्कार। यह सब संस्कार अब हमे बदलने हैं। हमारे संस्कार तो बहुत डिवाइन हैं। याद करें अपने उस सुंदर स्वरुप को, सतयुगी स्वरुप को। याद करें अपने पूज्य स्वरुप को जिसमे हम दाता हैं, जिसमे किसीसे कुछ भी लेने की इच्छा हमारे पास नहीं हैं, केवल देने वाले हैं। कईयो में माँगने के संस्कार होते हैं, मान-शान के पिछे भागने के संस्कार होते हैं। वे कोई भी कर्म तभी करते हैं जब वहाँ से मान मिलता हो। यदि मान नहीं मिलता तो वो सेवा को छोड देते हैं। इन सब संस्कारो का हमे संपूर्णरुप से त्याग करना हैं।

तो अपना एक संपूर्ण स्वरुप अपने सामने इमर्ज करें, अपने से कुछ दूरी पर एक चित्र बना ले अपना, यह मेरा संपूर्ण स्वरुप जिसमे मेरे संस्कार संपूर्ण सुखदायी, विदेही स्थिति के संस्कार, संपूर्ण पावन और निर्मल, बिलकुल निश्चिंत जिसमे कोई मेल नहीं, जिसे कोई चिंताये नहीं, जो बहुत लाइट हैं, हल्के रहने के संस्कार हैं। ऐसा अपना स्वरुप सामने बनाये और संकल्प दे कि "मेरे संस्कार तो ये हैं, ये वर्तमान संस्कार मेरे संस्कार नहीं हैं...”बहुत अच्छी ये मनोवैज्ञानिक विधि हैं अपने को प्रशिक्षित करने का, तो जो हमारे वर्तमान संस्कार हैं जिनके कारण हम अपने संगठनो में, अपने परिवारो में या सेवाओ में सफ़ल नहीं हो पाते, शांतिमय वातावरण नहीं रख पाते और उन संस्कारो के लिए हम रोज़ कम से कम पाँच बार यह फ़िलींग दिया करे कि यह मेरे संस्कार नहीं हैं। यह तो रावण के संस्कार हैं। इन पराये संस्कारो को मेने अपना कैसे मान लिया, मैं कैसे कह सकता/सकती हूँ कि मेरे अंदर बहुत फ़िलींग का संस्कार हैं। ये संस्कार मेरे अंदर हैं ही नहीं, यह तो मायावी संस्कार हैं, मेरे संस्कार तो यह हैं जो सामने खड़े हैं..! ऐसे अपने स्वरुप को देखते हुए अपने को जब बार-बार पॉवरफ़ुल स्मृति दिलायेंगे कि मेरे संस्कार ये नहीं, ये हैं। तो संस्कार बदलते जायेंगे। जो गलत संस्कार हमारे अंदर आ गये हैं क्योंकि हमने उन्हें रीजेक्ट कर दिया, ये मेरे नहीं हैं तो वो मेरा साथ छोड़्कर चले जायेंगे और जिन्हें हम एक्सेप्ट/ स्वीकार कर लेंगे कि यह संस्कार मेरे हैं वह पुन: पुन: हमारे अंदर भरते जायेंगे।

तो आज सारा दिन अपने दिव्य संस्कारो को देखेंगे। विशेषरुप से अपने भविष्य स्वरुप के नशे में रहेंगे, "मेरा स्वरुप तो यह हैं।”अपने देव स्वरुप को बार-बार इमर्ज करेंगे और बाबा से बुद्धियोग लगायेंगे कि, "बाबा आप हमे इतना बड़ा भाग्य देते हो, हमारे सोये हुए भाग्य को जगाते हैं।”आज बाबा से बाते करते रहेंगे, उसे थेंक्स देते रहेंगे और महसूस करेंगे कि बाबा, सर्वशक्तिवान तो हमारे सिर के उपर छत्रछाँया हैं।

ओम शांति



 

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अमृतवेले का समय प्रभुमिलन का सुंदर समय हैं। इसको अमृतवेले इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमे हम अपने मन को सवेरे-सवेरे ज्ञानामृत से भर लेते हैं। दूसरा इसका नाम ब्रह्मुहुर्त हैं। यह ऐसा काल हैं जब हम ब्रह्मलोक में अपनी बुद्धि को परमपिता शिवबाबा पर स्थिर कर सकते हैं। वहाँ विचरण कर सकते हैं, तीनो लोको की सैर कर सकते हैं। तो जो आत्माये अमृतवेले को पूरा महत्व देते हैं, बाबा उन पर प्रसन्न रहता हैं और जो अमृतवेले को संपूर्ण सुखदायी और आनंदकारी बना देते हैं, उनका तो कहना ही क्या..!

तो सवेरे उठकर बाबा को गुड मोर्निंग कर के और उसने हमे जो कुछ दिया उन प्राप्तिओ के लिए उसको 'सच्चे मन से', खुले मन से शुक्रिया करे। आनंदित कर ले अपने मन को, खुशीयो से भर ले, "ओ प्राणेश्वर, तुने आकर हमे जीवनदान दिया। आपको बहुत-बहुत शुक्रिया। आपने आकर हमे ज्ञानरत्न प्रदान किये, सत्य ज्ञान दिया, हमारी जन्म-जन्म की सत्य की खोज़ समाप्त कर दी। आपको बारंबार शुक्रिया। हे सर्वशक्तिवान, परमसदगुरु बनकर आप हमारे सहारे बन गये। हमारी जीवन नैया के खिवैया बन गये। आपने हमे वरदान दिये, शक्तियो से हमारा श्रृंगार किया। आपको कोटी-कोटी बार धन्यवाद। हम आपको पाकर बहुत सुखी हो गये...”इस तरह बाबा को सवेरे-सवेरे शुक्रिया करेंगे। मन प्यार से भरपूर हो जायेगा और बाबा की समीपता का सुंदर अनुभव होगा। साथ ही साथ तीन बिंदियों की स्मृति दिलाये अपने को। बाबा बिंदु स्वरुप, अति सूक्ष्म, मैं आत्मा अति सूक्ष्म ज्योति स्वरुप और ड्रामा का ज्ञान कितना सुंदर बाबा ने दिया। उसको स्मरण करके हम अपने चित्त को शांत कर दे अर्थात संकल्पो को बिंदु लगा देते हैं। यह तीनो बिंदु रोज़ सवेरे हम स्वयं को स्मृति में दिलाये। आत्मिक स्थिति में स्थित होने से भी हमारे सभी संकल्प शांत हो जाते हैं और शिवबाबा जो महाज्योति हैं, जो सूक्ष्मातिसूक्ष्म हैं, उन पर अपनी बुद्धि को स्थिर करने से मन पूरी तरह शांत होने लगता हैं। तो रोज़ सवेरे स्वयं को स्मृति दिलाये, स्मृति स्वरुप होना श्रेष्ठ स्थिति बनाने का सर्वोत्तम उपाय हैं। जो आत्माये अपनी स्थिति को श्रेष्ठ नहीं बना पा रहे हैं वो स्मृति स्वरुप बने, अर्थात अपने को स्मृति दिलाये रोज़ सवेरे और उसका सरलतम तरीका हैं अपने पाँचो स्वरुपो की स्मृति स्वयं को दिलाना। पाँच बार रोज़ सवेरे स्वयं को सवेरे यह याद दिलाये कि, "मैं एक चमकती हुई आत्मा, मेरा देवस्वरुप। भविष्य में मैं क्या बनने जा रही/रहा हूँ। मेरा परमपूज्य स्वरुप। मैं कितना परमपवित्र, भक्ति मैं मेरी मूर्तिओ के दर्शन करने से ही सब सुखी हो गये, उनकी मनोकामना पूर्ण हो गई... अब मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण...”स्वमानो को याद करें, "बाबा ने मुझें क्या बना दिया और अब मुझें बनना हैं फ़रिष्ता।”अपने फ़रिष्ते स्वरुप को देखे। "मैं चमकती हुई आत्मा प्रकाश के शरीर में विराजमान हूँ, कमल-आसन पर हूँ।”यह पाँचो स्वरुपो की स्मृति हमारे चित्त को रोज़ सवेरे शांत करेगी। ज्ञान के बल से, स्वमान के बल से भरपूर करेगी। जितना हम श्रेष्ठ स्मृति में रहते हैं उतना ही हम में समर्थी आती हैं।

तो आज सारा दिन इन पाँचो स्वरुपो की स्मृति स्वयं को दिलायेंगे। घंटे में एक बार, एक मिनट के लिए और स्वयं को आनंद से भरपूर करेंगे।

ओम शांति...



 

50

बाबा ने हम सभी को निर्विघ्न जीवन जीने की बहुत सुंदर प्रेरणा दी हैं। जो स्वयं विघ्नविनाशक हैं उनके आगे भी यदि विघ्न आयेंगे तो बाक़ी संसार के लोगो का क्या हाल होगा। हम अपनी शक्तियों को पहचाने, उनकी स्मृति में रहे और विघ्नो को योगबल से, संकल्प बल से और पवित्रता के बल से समाप्त करें। लक्ष्य बना ले, बाह्य विघ्न तो भले ही आते हैं लेकिन हमारी स्थिति में विघ्न न हो। हमारे संकल्पो में विघ्न न हो। हमारे अपने संस्कार हमारे लिए और दूसरो के लिए विघ्नकारी न बने हुए हो। हमारा जीवन जीने का तरीका इतना सुंदर और सरल हो कि हम छोटी-मोटी बातो को सहज ही पार करते चले, उनमे किसी भी तरह की विघ्न की हमे महसूसता न हो। विघ्न तो आते हैं, बहुत सारे विघ्न पूर्वजन्मो के कर्मो के कारण आते हैं। बहुत सारे विघ्न मनुष्य के मनोविकारो के कारण आते हैं, क्रोध के कारण आते हैं, लोभ के कारण आते हैं, अपवित्रता के कारण आते हैं। हम अपनी पवित्रता को मज़बूत करते चले। पवित्रता हमारा सबसे सुंदर विषय हैं। बाबा आया ही हैं हमे पवित्र बनाने और पवित्रता का सुख परमसुख होता हैं। पवित्रता के आधार पर ही पूजा होती हैं। पवित्रता स्थापना के कार्य में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं क्योंकि हम धर्म की भी स्थापना कर रहे हैं और दैवी स्वराज्य की स्थापना भी कर रहे हैं। पवित्रता के द्वारा धर्म की स्थापना में बल मिलता हैं और बाबा ने हम सभी को, अनेक बच्चो को पवित्र बना दिया हैं श्रेष्ठ धर्म की स्थापना के लिए।

तो हम चेक करेंगे, हमारे अंदर कोई सूक्ष्म भी अपवित्रता तो नहीं हैं, काम की इच्छाये तो नहीं हैं, देह का आकर्षण तो नहीं हैं, हमारे स्वप्न पवित्र होते जाते हैं? कोई कह सकता हैं कि स्वप्न थोड़ा ही हमारे हाथ में होते हैं, परंतु यदि हमारी स्थिति श्रेष्ठ हो, अगर हम अपने योगभ्यास में बहुत ध्यान दे, अगर हम अपनी दृष्टि को आत्मिक बनाये। देहिक दृष्टि से अपने को मुक्त करते चले तो हमारे स्वप्न भी बहुत श्रेष्ठ होंगे, सतोप्रधान होंगे। हमारी स्वपनो की पवित्रता हमारी बाह्य पवित्रता को प्रत्यक्ष करती हैं अर्थात अगर हम बाह्यरुप से बहुत पवित्र हैं तो स्वप्न भी पवित्र हैं। और अगर स्वप्नो में भी किसी तरह की अपवित्रता हैं तो हमे समझ लेना चाहिए कि आत्मा में, मन में, संस्कारो में कहीं न कहीं अपवित्रता बाक़ी हैं। तो एक तरह से स्वप्न हमारी स्थिति के दर्पण होते हैं। हम स्वप्न जिस तरह के देखते हैं, हम अपनी स्थिति को उस आधार से जांच करें। बहुत सारे स्वप्न तो अनावश्यक होते हैं, अर्थहीन होते हैं, कोई अर्थ उनका नहीं होता। उन पर हम ध्यान न दे परंतु कुछ स्वप्न अवश्य हमे हमारी स्थिति का एक आईना दिखा देते हैं।

तो आइये हम सभी अपने जीवन को निर्विघ्न बनायें। अपनी पवित्रता के प्रकाश को संसार में फैलायें। हमारी पवित्रता का प्रकाश बहुत जबरदस्त प्रकाश हैं। हम इसके महत्व को समझें और आज सारा दिन हम इस पवित्रता को बढ़ाने के लिए आत्मिक दृष्टि का अभ्यास करेंगे, अशरीरीपन का अभ्यास करेंगे ताकि हमारी कर्मेंद्रियाँ भी शीतल हो जायें। और साथ-साथ स्वमान लेंगे, "मैं पवित्रता का फ़रिष्ता हूँ।”अपने स्वरुप को देखेंगे कि "मेरे अंग-अंग से पवित्रता की गोल्डन किरणे चारो ओर फैल रही हैं। मैं आत्मा इस देह से बिलकुल न्यारी हूँ। यह देह अलग और मैं आत्मा अलग।”और सबको भी जब देखे इस नज़र से कि यह सब पवित्र आत्मायें हैं, मूलरुप में सभी आत्मायें पवित्र हैं।

तो आज सारा दिन इसकी धून लगायेंगे, इससे पवित्रता की शक्ति भी बढ़ेगी और हमारा जीवन निर्विघ्न भी बनेगा।

ओम शांति...



 

51

स्वयं भगवान हमे पढ़ाने आये, हमे यह बहुत नशा होना चाहिए। कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि हम कम पढ़े लिखे हैं। अरे जिन्हें भगवान पढ़ाता हो उन जैसा शिक्षित भला ओर कौन हो सकता हैं। बाबा ने आकर हमे अनेक अधिकार भी प्रदान किये हैं। इन अधिकारो को हम अनुभव करें, महत्व को समझें, स्वीकार करें और इनका उपयोग करें। कई आत्माये संगमयुग पर स्वयं भगवान से प्राप्त अधिकारो को नहीं जानती हैं। उसने हमे अधिकार दिया हैं, "तुम तीनो लोको की सैर कर सकते हो। तुम चारो युगो में रमण कर सकते हो। यह तीनो लोक तो तुम्हारे घर हैं। सूक्ष्मलोक भी तुम्हारा घर हैं, ब्रह्मलोक भी तुम्हारा घर हैं और इस दुनिया में तो तुम रहते ही हो।”तो हम अभ्यास किया करें। जैसे हम घर में सहज ही प्रवेश कर लेते हैं तो कभी हम आत्मा बन कर चले जायें ब्रह्मलोक घर में, शांतिधाम में और अनुभव करें वहाँ की अनुपम शांति को, परमशांति को। जैसे हम किसी बर्फ़ की बड़ी सिल्ली के पास बैठ जाये तो उसके थंडे वायब्रेशन्स हमे भी थंडे कर देते हैं। हमारा घर तो शांतिधाम हैं जहाँ चारो ओर मानो शांति का सागर लहरा रहा हैं। हम वहाँ जा कर बैठ जाये और गहरी शांति में स्वयं को अनुभव करें। कुछ देर यह अनुभव करने के बाद हम सूक्ष्मलोक में आ जाये और देखे की बापदादा हमारे समक्ष हैं। बहुत स्पष्ट दृष्य होना चाहिए। "ब्रह्मा बाबा सामने खड़े हैं। उनके अंग-अंग से दिव्य प्रकाश फैल रहा हैं। परम आनंद हैं... उनके मस्तक में ज्ञानसूर्य चमक रहे हैं... यह दोनो इस सृष्टि का नवनिर्माण कर रहे हैं सूक्ष्मवतन को अपना मंच बना कर। (बैठे उनके सामने, दृष्टि ले, सिर पर हाथ रखाये और वरदान ग्रहण करें)”बहुत अच्छे अनुभव होंगे, फिर नीचे आ जायें, "मैं आत्मा इस देह में हूँ, यह देह भी मेरा घर हैं, मैं भृकुटी सिंहासन पर विराजमान हूँ।”बहुत सुंदर अनुभव करें और याद रखे कि, "मुझें तो बाबा ने भेजा हैं इस धरा पर जैसे वो स्वयं आये हैं, मुझें भी साथ लाये हैं सृष्टि के नवनिर्माण के कार्य में सहयोग देने के लिए।"

तो आइये हम तीनो लोको के सैर करें, चारो युगो में भी रमण कर ले जैसे चारो युग हमारे सामने स्पष्ट खड़े हो। "हम सतयुग में थे। क्या दिव्यता थी..! कंचन काया थी। संपन्नता थी, संपूर्ण पवित्रता थी, प्रकृति दासी थी। कोई कमी नहीं थी। द्वापर तक हम बहुत सुखी संपन्न और महान पार्टधारी रहे। उसके बाद कलियुग में ही थोड़ा बहुत कष्ट हुआ हैं। हम हीरो एक्टर हैं।”यह हम याद करें "और जब संगमयुग पर आये तो स्वयं भगवान हमारा साथी बन गया।”सोचो, जब हमारी पाँच हजार साल की लंबी यात्रा का अंत होने को आया तो स्वयं भगवान आ गये हमे ले जाने के लिए कि "बच्चे चलो, तुम भूल गये हो कि तुम कहाँ के हो, तुम इस संसार में लिप्त हो गये हो, मैं आ गया हूँ तुम्हें पुन: वापिस घर ले जाने के लिए।”और उसने आकर हमारी थकान मिटा दी, हमे शक्तियो से भरपूर कर दिया, हमे आनंदित कर दिया। प्रभुमिलन की जन्म-जन्म की हमारी प्यास बुझा दी। हमे वो सब कुछ दे दिया जो किसी भी जन्म में नहीं चाहा था। सैर करें इस तरह।

तो आइये आज हम ये दोनो प्रेक्टिस करें। इसे संपूर्ण स्वदर्शन चक्र कहा जायेगा। तीनो लोको की सैर, चारो युगो की सैर और देखे अपने दिव्य स्वरुप को। गहन अनुभूती का अनुभव करें और व्यर्थ से इस तरह पूरा मुक्ति पाये। अगर हम हर घंटे में एक बार, कोई भी एक ड्रिल करते रहेंगे तो हमारा सारा दिन एक अनुपम और अलौकिक अनुभवो में बितेगा।

तो हम सर्वशक्तिवान की संतान हैं। सर्वशक्तिवान की संतान शक्तिहीन कैसे हो सकती हैं। अपनी शक्तियो को पहचाने, हम बहुत शक्तिशाली हैं। जो अभ्यास चाहे कर सकते हैं और आज इसका संपूर्ण आनंद ले।

ओम शांति...



 

52

हमारी अंतिम स्थिति सर्वशक्तियो से संपन्न, मास्टर सर्वशक्तिवान और मास्टर नोलेजफ़ुल हैं। जब सभी शक्तियाँ नेचरल रुप से हमारे पास काम करेगी और नोलेज पूरी तरह से हमारे अंदर ईमर्ज रहेगी, हम संपूर्ण गीताज्ञान का स्वरुप बन जायेंगे। हमारी अंतिम स्थिति यह भी हैं कि हम सेकण्ड में फ़ुलस्टोप लगा सके और सेकण्ड में फ़ुलस्टोप लगाने के लिए हमे एक बहुत सुंदर अभ्यास चालु रखना चाहिए कि अपनी बुद्धि को जहाँ चाहे, जिस स्वरुप पर चाहे और जितने लंबे समय के लिए स्थित करना चाहे, हम स्थित कर सके। यह एक ऐसी सुंदर कला हैं कि यह कला जिनके पास आ जाती हैं, सर्व कलाये स्वत: ही उनमे आने लगती हैं। हम अपने मन को पूरी तरह स्थिर करें। मन को भटकाना संगमयुग पर सबसे बुरी बात हैं। जिसने संगमयुग पर भी अपना मन भटकाये रखा उनका मन द्वापरयुग के बाद भी बहुत भटकता रहेगा इसलिए अपनी चित्त को ज्ञान और योग के बल से शांत करें। उन्हें पोज़िटिव दिशा दे, ज्ञान के चिंतन में रहे। यदि हम मास्टर सर्वशक्तिवान के अभ्यास करते हुए अपना बुद्धियोग सर्वशक्तिवान से जोड़े रखेंगे तो हमे सर्वशक्तियाँ प्राप्त होती रहेगी। हम बहुत पॉवरफ़ुल बनते जायेंगे, हमारी सोई हुई शक्तियाँ जागृत रहेगी क्योंकि बाबा ने हमे बहुत सारी शक्तियाँ पहले से ही दे दी हैं। वो सोई रहती हैं, हमे उन्हें जगाये रखना हैं। पर बहुत महत्वपूर्ण बात हैं, हमे मास्टर नॉलेजफ़ुल बनकर रहना हैं। ज्ञान तो हम सभी के पास हैं लेकिन ज्ञान मर्ज रहता हैं, समय पर ज्ञान की सुंदर बाते विस्मृत हो जाती हैं इसलिए मनुष्य धोखा खा लेता हैं लेकिन परमात्म ज्ञान जो सर्वश्रेष्ठ ज्ञान हमे प्राप्त हुआ हैं वो हमारे अंदर सदा ईमर्ज रहे इसके लिए एक छोटा सा काम सभी को करना हैं, बहुत सारे दिनो में करें। कम से कम बाबा की ज्ञान की 50 सुंदर बाते अपने पास लिखे। रोज़ मुरली सुने, मुरलीयों में वो सुंदर बाते आती रहती हैं उन्हें नोट करें और बीच-बीच में उन्हें पढ़्ते रहे, कुछ दिन रोज़ पढ़ ले। इससे ज्ञान हमारी बुद्धि में ईमर्ज रहने लगेगा, हमे याद रहने लगेगा और जब जिस बात की आवश्यक्ता पड़ेगी, मान लो चिंता की कोई बात आ गई तो वो बात हमे निश्चिंत करेगी। मान लिजिए हम ढीले हो गये तो वो बात हमे उमंग उत्साह दिलायेगी। तो ऐसी ज्ञान की पॉईण्ट्स हम नोट करें जो हमे चेतन करती रहे, जो हमे ईश्वरीय नशे में लाते रहे जो हमे हमारी शक्तियो की याद दिलाती रहे। जिनसे हम निरंतर आगे बढ़्ते रहे, ज्ञान का भी नशा हमे चढ़्ता रहे।

तो आज से ही हम शुरु कर देंगे ज्ञान की वो बहुत सुंदर अनेक बाते लिखना जो आपको बहुत प्रिय लगती हो। इस तरह हम नॉलेजफ़ुल बनकर रहेंगे। ज्ञान का चिंतन अवश्य हमारी बुद्धि में चलता रहे। ऐसे न हो कि इतना श्रेष्ठ ज्ञान होते हुए भी हम ऐसे बनकर रहे जैसे हमे कुछ नहीं आता हैं। नहीं, ज्ञान का चिंतन होता रहे। यह चिंतन हमे सूक्ष्मरुप से शक्तिशाली बनाता रहता हैं। ज्ञानबल भी बहुत बड़ा बल हैं। यही बल हमे व्यर्थ संकल्पो से मुक्त भी रखता हैं।

तो आज सारा दिन हम एक बहुत सुंदर ड्रिल करेंगे, "मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन पर बिराजमान हूँ... बहुत तेजस्वी... मैं मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ... (फिर इस देह से निकलकर) मैं आत्मा ऊपर की ओर चली और पहुँच गई शिवबाबा के पास...”शिवबाबा को विज़्युलाईज करेंगे,"उसकी किरणो के नीचे में बैठ गई... उसकी किरणे मुझमें समाने लगी... अपने को ईश्वरीय शक्तियो से भरपूर कर मैं आत्मा वापिस नीचे आ गई अपने इस देह में।”यह आने और जाने की ड्रिल करते रहेंगे और सारे दिन को एंजोय (आनंदित अनुभव) करेंगे।

ओम शांति...



 

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बाबा की हम सभी के लिए एक बहुत सुंदर शिक्षा हैं कि बच्चे, याद का ऐसा लम्बा अभ्यास करो कि अंत में सिवाये एक बाप के कुछ भी याद न आये। ये बहुत ही उंची स्थिति हैं कि हम चारो ओर से ममत्व निकालते चले, देहधारीयो से भी अपनी बुद्धि हटाते चले, मोह-ममता को भी छोडते चले, वस्तुओ, पदार्थ और साधनो से भी अपनी आसक्तिओ को समाप्त करते चले। अंत में केवल एक की याद आयें। यही कर्मातित अवस्था हैं, यही पास विथ ऑनर होने की पहचान हैं क्योंकि अंत में यदि एक की याद नहीं होगी तो आत्मा इस देह में उलझ जायेगी जब की आवश्यक्ता होगी एक सेकण्ड में देह का त्याग करने की। बाबा हमे बुला रहा होगा, आओ बच्चे मेरे साथ चलो। और जिनको देहधारीओ की याद होगी, जो मोह ममता में अटके होंगे उनके वायब्रेशन्स, उनके बंधन उनको देह से जकडे रखेंगे। विचार करें, एक ओर बाबा का आह्वान होगा, दूसरी ओर आत्माओ का, वस्तुओ का, साधनो का बंधन होगा। ऐसे में आत्मा को बड़ा कष्ट होगा कि चाहते हुए भी आत्मा देह से मुक्त नहीं हो पाती। ऐसे समय में उसे धर्मराज की कड़ी सज़ाओ की अनुभूती होगी। और जो भगवान के साथ चलेंगे उनकी वो अंतिम यात्रा बहुत सुखकारी होगी। इस अंतिम यात्रा का बड़ा भारी महत्व हैं क्योंकि पुनर्जन्म भी मनुष्य का इसी आधार पर होता हैं हर बार भी कि उसकी अंतिम स्थिति क्या हैं। अंतिम स्थिति जैसी होगी, अंतिम संकल्प जैसे होंगे वेसा ही दूसरा जन्म प्राप्त होगा। तो यह कल्प का अंत हैं। इसमे अंतिम स्थिति हमारी जैसी होगी वैसा ही पूरा कल्प चलेगा। यह सूक्ष्म रहस्य हमे याद रखना हैं। इसलिए बहुत अच्छी एक प्रेक्टिस करेंगे आज ही, देखो एक-एक को जिससे आपका ममत्व हैं। पहले मनुष्यो को देखो। वो आपके प्रियजन होंगे। संकल्प करें, इन सब को छोड कर हमे जाना हैं। इसका अर्थ यह कदापि नहीं की हम अपने जीवन को निरसता से भर दे, उदासी से भर दे। लेकिन इसका अर्थ हैं कि हम बंधनमुक्त हो जाये। यह डिटेचमेंट, यह देह से न्यारापन बहुत प्यारा बना देता हैं सब का। फिर वस्तुओ को देखे, साधनो को देखे, उन सब चीज़ो को देखे जिनसे आपका बहुत लगाव हैं। चाहे वो गहने हो, धन-संपदा हो, आपके मकान, कार, कोई और सुंदर चीज़े हो, किसीको अपनी घड़ी से ही बहुत ममत्व होता हैं, किसी को अपने वस्त्रो से ही बहुत ममत्व होता हैं। उन सब पर एक नज़र डाले और अपने को यह संकल्प दे कि हम सब को यह छोड़्ना हैं, यह सब विनाशी चीज़े हैं, यह हमारे साथ नहीं चलने वाली हैं, छोड़्कर हमे जाना हैं... कुछ समय ऐसे प्रेक्टिस करेंगे तो चित्त अनासक्त वृत्तिओ से भरपूर होता जायेगा।

तो इस तरह हम अपने को ट्रेन (प्रशिक्षित) करते चले। अपने को न्यारा बनाते चले, बुद्धि को अनासक्त करते चले। यह एक बहुत सुंदर प्रेक्टिस हैं। इसमे बड़ा आनंद भी आयेगा। जीवन ईश्वरीय रसो से भी भरता चलेगा। धीरे धीरे हमारी बुद्धि चारो ओर से बंधनमुक्त होगी और यह हमारे लिए एक बहुत ही श्रेष्ठ उपलब्धी होगी।

तो आज सारा दिन हम अभ्यास करेंगे, "सृष्टि का यह खेल पूरा हुआ, 84 जन्मो की हमारी यात्रा पूर्ण हुई। अब यह सब कुछ छोड़ कर, मेरे और मेरा, सब कुछ छोड़ कर। ईश्वरीय शक्तियो से, खज़ानो से भरपूर होकर और व्यर्थ, विकर्म, अपवित्रता से मुक्त होकर मुझें घर वापिस जाना हैं। (अपने को जाते हुए देखेंगे, आत्मा उपर जा रही हैं परमधाम)। पहुँच गई बाबा के पास, कुछ देर उनके पास बैठ गये, उनके वायब्रेशन्स हम में भर गये। फिर नीचे आ गये देवता बनने, सतयुग में...”यह अभ्यास आज बार बार करेंगे।

ओम शांति...



 

54

हमारे पूरे कल्प का ये पुरुषोत्तम संगमयुगी जीवन सर्वश्रेष्ठ हैं। इसमे हमे अपने जन्म जन्म का भाग्य बनाना हैं। अपने को ईश्वरीय खज़ानो से संपन्न करना हैं। याद रखे, यह समय दोबारा नहीं आयेगा और हम सभी जिन्होंने बहुत प्रभुपालना ली हैं वो इस समय को याद किया करेंगे कि वाह ऐसे भी दिन आये थे जब भगवान हमारे सम्मुख बैठा था, जब उसने हमारी पालना की थी, जब हमारा पूरा ध्यान रखा था, हमे शक्तियाँ दी थी, हमे गाईड/मार्गदर्शन किया था, हमे पढ़ाया था और हमे बहुत प्यार दिया था। याद किया करेंगे हम सभी इन दिनो को। कैसे हमने संगमयुग के दिन बिताये? हमने इसका भरपूर फ़ायदा उठाया या व्यर्थ में अपना अनमोल समय गवाँ दिया? अपने को देखने में सुंदर समय व्यतित किया या दूसरो को देखने में अपनी खुशी को नष्ट कर दिया? भगवान से बाते करने का परम आनंद लिया या दूसरो को बातो में बह कर हम अपने पथ से विमुख हो गये? हमने अपने में शक्तियाँ भरी या दूसरो को देखते हुए हम भी अलबेले हो गये? यदि हमने ये भाग्य बनाने के दिन यूं ही बिता दिये होंगे तो हमे पश्र्चाताप के सिवाए कुछ भी नहीं मिलेगा।

तो आईये, स्वयं से बाते करें, "मेरा एक-एक क्षण बहुत मूल्यवान हैं और मेरा एक-एक संकल्प बहुत ही महान हैं, भाग्य निर्माता हैं, जन्म-जन्म के लिए मुझें एनर्जी देनेवाला हैं। क्यों न मैं इस समय का भरपूर फ़ायदा ऊठाउ। ये खेलने कूदने के दिन तो फिर आ जायेंगे। ये खाने पीने क्षण तो चारो युग हमारे हाथ में रहेंगे। ये मनुष्यो से बाते करने की वेला तो रोज़ हमारे पास आयेगी परंतु प्रभुमिलन के ये सुनहरे क्षण दोबारा नहीं आयेंगे। क्या कर रहे हैं हम? कहीं हम इधर उधर उलझ तो नहीं गये हैं? कहीं तेरी-मेरी में, कहीं मान-शान की कामना में, कहीं स्वार्थ में, कहीं कल्पना और अनुमान के चक्कर में हम अपने अनमोल क्षणो को यूं ही कौडी के बदले गवाँ तो नहीं रहे हैं? "

सोच ले, न यह धन काम आयेगा, न यह पद पोजीशन, न मान-सम्मान, कुछ भी नहीं। काम आयेगी केवल महान स्थिति, काम आयेंगे अपने पुण्य कर्म और पुण्य कर्म भी वे जो हमने निष्काम भाव से किये होंगे। यदि पुण्य कर्म करके हमने उनका वखान किया होगा, यदि पुण्य कर्मो के पिछे हमारा स्वार्थ रहा होगा, नाम की इच्छा रही होगी, हमने दूसरो को आगे बढ़्ने ही नहीं दिया होगा। केवल मैं ही मैं रहू तो हमारे पुण्य कर्मो का खाता भी क्षीण होता जायेगा। तो हम बाबा के बुद्धिमान बच्चे जिन्हें सदविवेक प्राप्त हुआ हैं, चिंतन करें इन अनमोल सुंदर क्षणो का लाभ हम कैसे कैसे उठायें। और आज सारा दिन एक बहुत सुंदर अभ्यास करें सूक्ष्मलोक में। बापदादा हमे बुला रहे हैं, देखो बाबा को। कह रहे हैं आओ बच्चे, और हम उड़ कर चले जाते हैं बापदादा के पास... दृष्टि देते हैं बाबा और बाबा ने हमारे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख दिया। उनके हाथ से सुखद वायब्रेशन्स मुझमें समाने लगे... फिर हम नीचे आ जाते हैं और देखो फिर हम बाबा को बुला रहे हैं। आओ बाबा, आ जाओ और सूक्ष्मवतन से बापदादा हमारे पास आ जाते हैं। और फिर हमारे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख दिया हैं। और ये आने और जाने की ड्रिल सारा दिन करेंगे।

ओम शांति



 

55

हम सभी ब्राह्मणकूलभूषण इस संसार की महान आत्माये हैं जिन पर रोज़ भगवान की नज़र पड़्ती हैं। सभी को याद रखना चाहिए कि रोज़ सवेरे-सवेरे बाबा अपने हर बच्चे को दृष्टि देते हैं, उनका शृंगार करते हैं, समस्याओ का हल सूझाते हैं। अगर सवेरे-सवेरे हम अपनी बुद्धि को शांत कर के, स्थिर कर के योग में बैठेंगे तो बाबा के बहुत ही सुंदर अनुभव होते रहेंगे। इस सुंदर अमृतवेले को कभी भी हमे छोड़ नहीं देना चाहिए क्योंकि यही हमे आत्मा और परमात्मा के मिलन का सुंदर अनुभव कराता हैं।

हम सभी ध्यान दे, यह जीवन एक बहुत सुंदर यात्रा हैं। इस यात्रा में सुख-दुःख, मान-अपमान, हार-जीत, निंदा-स्तुति सब होती हैं और होगी ही। हमे उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। हम यह न सोचे, कभी हमारी हार हो ही नहीं, कभी हमारी ग्लानी हो नहीं, हमारा अपमान कभी हो नहीं..! देखिए, जो भी मनुष्य आज तक महान बना हैं, जिसका इतिहास में या आध्यात्म के क्षेत्र में बहुत नाम हैं उनको इन सभी बातो से बहुत गुजरना पड़ा। स्वामी विवेकानंद को ही लिजिये, अपनी उस मंज़िल तक पहुँचने के लिए, जहाँ से उनका नाम प्रख्यात हुआ, उन्हें कितने कष्ट जेलने पड़े और नाम प्रख्यात होने के बाद भी उनका नाम बदनाम करने की कितनी कोशिशे हुई लेकिन महावीर मनुष्य जो अपनी लक्ष्य पर निरंतर अग्रेसर रहता हैं, जो इन बातो को अपने मार्ग में बाधक बनने नहीं देता, जो इन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करता वो सचमुच अपनी मंज़िल पर पहुँच जाता हैं, महान बन जाता हैं।

तो आज का दिन हम सभी प्रभुमिलन के सुंदर अनुभवो में रहेंगे। रोज़ सवेरे और शाम बाबा से मिलन का सुंदर अनुभव, उसकी दृष्टि लेने का अनुभव एक बार सवेरे और एक बार शाम को अवश्य करना हैं ताकि हमे प्रभुमिलन के सुखो का अभाव महसूस न हो। आज के लिए हम बहुत सुंदर अभ्यास करेंगे, "मैं पवित्रता का सूर्य हूँ”क्योंकि हमे इस प्रकृति को पवित्रता की सकाश देनी हैं, हमे वायुमण्डल को पवित्र बनाना हैं और इस संसार में जो काम वासना की आंधी जो चल उठी हैं कि हर मनुष्य युवक, बच्चा, बुढ़ा सब काम वासना से पीड़ित हो रहे हैं। हमे इसको समाप्त करना हैं। हम आत्माये बहुत जिम्मेदार हैं। हम पूर्वज हैं। हमारे वायब्रेशन्स का असर संसार की हर मनुष्य आत्मा तक जाता हैं। हमे यह भूलना नहीं चाहिए। हम ये न सोचे कि हमारे वायब्रेशन्स कुछ काम करेंगे या नहीं। हम जड़ो में हैं। अगर जड़ो में पानी डाला जाता हैं तो उसका परिणाम पूरे वृक्ष पर तत्काल देखा जा सकता हैं, पौधे पर देखा जा सकता हैं। हम भी पूर्वज हैं। पवित्र वायब्रेशन्स जब संसार को देंगे तो तुरंत संसार में जैसे हरियाली आ जायेगी।

तो बहुत अच्छा अभ्यास करेंगे, "मैं पवित्रता का फ़रिष्ता हूँ... मुझसे पवित्र वायब्रेशन्स निकल कर मेरे मस्तिष्क को जा रहे हैं, पूरे देह में फैल रहे हैं... कर्मेंद्रियों को शीतल कर रहे हैं... बुद्धि को दिव्य कर रहे हैं...”और फिर चलेंगे परमधाम। पवित्रता के सागर के पास कुछ देर बैठेंगे। उसकी पवित्र किरणे हम में समा जायेगी। फिर नीचे आयेंगे, भ्रकुटी सिंहासन पर बैठेंगे।

यह ड्रिल सवेरे शाम दस बार भी कर सकते हैं। लेकिन हर घंटे में दो बार सिर्फ़ एक-एक मिनट के लिए करनी हैं। इससे हम संसार को सकाश दे पायेंगे और ये हमारे लिए भी बहुत ही पुण्य की बात होगी। तो आज सभी यह अभ्यास करेंगे। हमे पूर्ण विश्वास हैं कि आज का आपका दिन पवित्र वायब्रेशन्स फैलाते हुए व्यतित होगा।

ओम शांति



 

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स्वयं भगवान ने इस संसार के खेल को एक सुंदर नाटक कहा हैं। सचमूच यह विशाल ड्रामा कितना सुंदर हैं। इसकी सुंदरता को जरा देखे..! कैसे ये सब संसार रचा गया..! सूरज, चाँद, तारे, आकाश और अनेक ग्रह इसमे निर्मित हुए। कैसे हर आत्मा अपना अपना पार्ट इस विश्व के नाटक में बजा रही हैं जो एक आत्मा का पार्ट न मिले दूसरे से, जो एक पल का पार्ट न मिले दूसरे पल से। सबकुछ बदलता जा रहा हैं। फिर भी मनुष्य पास्ट/अतीत की बहुत चिंता करता हैं, भविष्य की बहुत चिंता करता हैं। जब कि मालूम होना चाहिए कि भविष्य पूर्व निश्चित हैं। होगा वही जो ड्रामा में निश्चित हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि हम अपना पुरुषार्थ छोड़ दे और ड्रामा में जो होगा उसको केवल देखे, ऐसा भी नहीं। हमे पुरुषार्थ भी श्रेष्ठ करना हैं और निश्चित भावी पर निश्चिंत भी रहना हैं।

देखिए कितना सुंदर ये नाटक हैं..! 5000 साल में ही दोहराता हैं। जो घटना एक बार हो गई उसको पुन: आने में 5000 वर्ष लग जायेंगे इसलिए कल तक आपके साथ जो कुछ बीत गया हैं, वो पूरा हो गया..! अब उसकी चिंता से, चिंतन से उसको याद करके परेशान होने से कोई फ़ायदा नहीं क्योंकि उस दृश्य को न तो अब बदला जा सकेगा और न वो दृश्य जल्दी-जल्दी रिपिट होगा। उसको तो 5000 वर्ष चाहिए रिपिट होने में। इसलिए हम past/अतीत को बार बार खोल कर न देखा करें। जैसे कहावत हैं 'गड़े मुर्दे उखाड़्ना' अर्थात पास्ट का चिंतन करना, उन्हें याद दिलाना, उन्हें याद करना। अगर हम गड़े मुर्दे उखाड़ेंगे तो मुर्दो से बहुत ज्यादा बदबू आयेगी। पुरानी बातो में यदि बदबू हैं तो उसे वर्तमान की सुंदर बातो की सुगंध से समाप्त कर दे। देखे कितना सुंदर नाटक हैं। हर आत्मा यहाँ अपना-अपना भाग्य ले कर आई हैं। हरेक को उनकी योग्यता और शक्तियो के अनुसार पार्ट मिल गया हैं। लोग सोचते हैं कि भगवान इसको ये पार्ट क्यों दिया? भगवान ने किसी को ऐसे ही नहीं दे दिया। जैसे कोई डाइरेक्टर/निर्देशक भी एक्टर्स का चुनाव करता हैं तो उसकी योग्यताओ के अनुसार ही उसे पार्ट दिया जाता हैं। इस ड्रामा में भी कौन कितना शक्तिशाली हैं, कौन कितना पवित्र हैं, कौन कितना सदगुणो से भरपूर हैं और किसके पास कितना आत्मा विश्वास और आत्मबल हैं, कौन निर्णय लेने में परिपूर्ण हैं, किसके पास परखने की शक्ति हैं, कौन अपने कार्यो को चुस्ती के साथ करता हैं? यह सब मापदंड हैं। किसी के भी पार्ट के निश्चित होने के लिए किसके पास कितनी बुद्धि हैं, बुद्धि की श्रेष्ठता भी मनुष्य के पार्ट को निश्चित करती हैं। किसी के पास धर्म का बल हैं, किसी के पास कवित्व हैं, किसके पास लेखन शक्ति हैं। यह योग्यताये भी मनुष्य के पार्ट को निश्चित करती हैं। तो आईये हमे इस ड्रामा के खेल को साक्षी हो कर देखे और याद किया करें, कितना सुंदर खेल चल रहा हैं। कई लोग सोचते हैं कि क्या भगवान इस नाटक को बदल नहीं सकता, क्या हमारे पार्ट को बदल नहीं सकता..? लेकिन बदले क्यों? यहाँ तो सब accurate/सही चल रहा हैं। जो हो रहा हैं वो परफ़ेक्ट हैं, वही सत्य हैं और वही होना चाहिए। बदल ने की जरुरत वहाँ होती हैं जहाँ कुछ गड़बड़ हो। इसमे कुछ भी गड़बड़ नहीं हैं। तो पूर्णत: साक्षी हो जाये और अपने को ड्रामा का हीरो एक्टर जानते हुए, मानते हुए अपने पार्ट को enjoy करें।

तो आज का हम स्वमान रखेंगे, "मैं इस विशाल ड्रामा का हीरो एक्टर हूँ... मेरे पार्ट को सारा संसार देखता हैं... एक-एक क्षण का मेरा पार्ट बहुमूल्य हैं... बहुत कीमती... मुझें फ़ॉलो करने वाले करोडो मनुष्य आत्माये हैं...”अपने को वैसा जिम्मेदार समझते हुए आज इस स्मृति में रहेंगे और अभ्यास करेंगे कि, परमधाम से बाबा की शांति की किरणे मुझ पर पड़ रही हैं और सारा दिन इसका आनंद लेंगे।

ओम शांति...



 

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हम सभी संसार में पदमापदम भाग्यवान हैं, अपने भाग्य को देखकर मुसकुराओ। सोचे, इस जीवन में हमने इन आँखो से क्या क्या देखा, जो चारो युगो में कभी नहीं देखा जा सकता वो इन आँखो से देखा..! प्रभुपालना में हमारा जीवन पला, उसने बाप के रुप में हमारी पालना की, शिक्षक के रुप में ज्ञान दे कर बहुत पालना की और सदगुरु के रुप में वरदान दे कर शक्तियाँ दे कर हमे पालना में संपन्न किया। सोचने की बात हैं कि ऐसी श्रेष्ठ पालना चारो युगो में किसी को नहीं मिलेगी। कभी राजाई घर में हमारी पालना होगी तो किसी की पालना शाहूकार घर में होगी और उन लोगो के भाग्य पर विचार करें जिनकी पालना ग़रीब घरो में होती हैं, जो मनचाही बातो को नहीं कर सकते। वो पढ़्ना चाहे, बुद्धिमान हो लेकिन पढ़ नहीं सकते, अच्छा भोजन नहीं खा सकते, उनके पास साधन नहीं होते हैं। हमारी पालना हो रही हैं परमात्मा के द्वारा, राजाओ से भी बड़ी पालना जिसमे उसने हमे संपूर्ण सुख भी दे दिया हैं, शक्तियाँ भी दी हैं, अपना प्यार भी दिया और बहुत श्रेष्ठ ज्ञान दिया हैं। हम प्रभुपालना में पढ़ रहे हैं। सवेरे बाप आकर हमे उठाते हैं, रात को सुलाते हैं, फिर पढ़ाने आते हैं, ब्रह्माभोजन खीलाते हैं और बाबा ने कहा कि कोई बच्चा दुःखो में आँसू बहाये तो आकर उसके आँसू भी पोछते हैं। दुनिया वाले अगर ये सूने तो कहेंगे यह कौन हैं? भगवान इनके लिए खाली बैठा हैं क्या..! -और बाबा ने इसका स्वयं उत्तर दिया था उन्हीं के शब्दो में तुम उन्हें कह दो कि भगवान इस समय हमारे लिए खाली ही बैठा हैं।

सोच ले, जिनके लिए भगवान खाली बैठा हो उन्हें स्वयं क्या कर लेना चाहिए और बाबा का कैसे लाभ उठा लेना चाहिए, उसको यूज़/उपयोग कर लेना चाहिए। उसका आह्वान करके अपने बिगड़े हुए काम संवार लेने चाहिए, स्वयं को वरदानो से भर लेना चाहिए, उससे मनचाही शक्तियाँ प्राप्त कर लेनी चाहिए।

तो हमारे पास ऐसा ही सदविवेक हैं जिसे हम बाबा की श्रेष्ठ पालना का, इस मेहेरबानी का संपूर्ण लाभ उठा सकते हैं। तो हमे याद रखना हैं, "बाबा हम पर मेहेरबान हुआ हैं... वो हम पर बहुत खुश हुआ हैं, हमे उसकी इस मेहेरबानी का कैसे फ़ायदा उठाना चाहिए।”बाबा ने खुद कह दिया हैं कि बाप बंधा हुआ हैं, बच्चे बुलाए तो बाप को आना ही पड़े। और हम सब तो उसके लाड़्ले हैं। किसी माँ को भी कोई प्यारा बच्चा बुलाता हो रात को 12 या 1 बजे भी तो माँ दौड़ी चली जाती हैं। हम तो भगवान के प्यारे बच्चे हैं। जब हम उसको बुलायेंगे तो वो दौड़ा चला आता हैं लेकिन शर्त केवल इतनी हैं कि जब वो हमे बुलाता हो, जब वो हमे आदेश देता हो तो हम भी दौड़े चले आते हो। उसका हम पर पूर्ण अधिकार हो तो उस पर हमारा भी संपूर्ण अधिकार हो जायेगा। बस यह अंतर हम मिटा दे कि हम तो कहे बाबा को जब ही बुलायें वो आ जाये। लेकिन जब जब बाबा हमे बुलायें तो हम सोचने लगे, हम बहाने करने लगे, यह अंतर हमे मिटा देना हैं और आज सारा दिन हम बापदादा को बुलायेंगे, आह्वान करेंगे और अपने सिर पर उसके हाथ का अनुभव करेंगे। बहुत सुंदर अनुभव की ये बात हैं और बाबा ने एक अभ्यास और सिखाया हैं कि तुम्हें संसार को भिन्न-भिन्न रंगो की किरणे देनी होगी। अर्थात भिन्न-भिन्न शक्तियो की किरणे देनी होगी।

तो आज सारा दिन बापदादा को बुलाने के साथ ये अभ्यास करेंगे, "मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ... भृकुटी सिंहासन पर बिराजमान हूँ और मेरे मस्तक से शक्तिओ की रंगबेरंगी किरणे निकलकर सामने फैल रही हैं... सब पर पड़ रही हैं, वातावरण पर भी पड़ रही हैं... सब चार्ज हो रहे हैं...”एक-एक मिनट में यह दोनो अभ्यास करेंगे और आज के दिन को आनंदित बनायेंगे।

ओम शांति...



 

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कितना सुंदर समय आया... कि जिसे हम बुलाते थे, जिससे मिलने के लिए तरसते थे उसने हमारे सम्मुख आकर कहा, "बच्चे, मैं तो तुम्हारा हूँ..."- नाता जुड़ गया हमारा उनसे। हम भी अपने मन में इस संबंध को गहराई से जोड़ दे, "भगवान मेरा हैं, जिसको सारा संसार ढूँढ़ रहा हैं, वो तो मेरा हैं...”सोच ले, जो सर्वशक्तिवान हैं वो मेरा हैं, जो सभी के दुःख हरने वाला हैं वो मेरा हैं, जो सबकी बिगड़ी बनाने वाला हैं वो मेरा हैं, जो स्वर्ग को रचने वाला हैं वो मेरा हैं..! जो जैसे ही हम सच्चे दिल से यह स्वीकार करते हैं कि बाबा मेरा हैं, तो बाबा भी हमे उपर से आवाज़ देता हैं कि बच्चे, मैं भी तुम्हारा हूँ और मेरा सबकुछ तुम्हारा। हम बाबा को वारीस बनाते हैं,"बाबा मैं तुम्हारा, मेरा सबकुछ तुम्हारा।”तो उधर से भी यही आवाज़ आती हैं और यही सबसे सूक्ष्म पुरुषार्थ हैं कि बाबा मेरा हो जाये, शेष सभी 'मेरा' समाप्त हो जाये। जिसने इस तेरे-मेरे को समाप्त कर दिया उसके जीवन में सच्ची आध्यात्मिकता आ जाती हैं, दिव्यता आ जाती हैं। वह व्यक्ति सुख शांति का अधिकारी बन जाता हैं और जो 'मेरा बाबा' भी कहे और 'तेरे-मेरे' में भी रहे तो 'मेरे बाबा' का सुख उसे कदापी नहीं मिलता हैं।

"वो मेरा हैं... supreme friend (परम मित्र) हैं... खुदादोस्त हैं... उस पर हमारा संपूर्ण अधिकार हैं...”इसको बहुत गहरी अनुभूती में लाना हैं। इसलिए बाबा कहते थे कि बाप को अपने प्यार और अधिकार की रस्सीओ में बाँध लो..! प्यार भी उससे हमारा बहुत हैं क्योंकि जो हमारा अपना होता हैं उससे हमारा बहुत प्यार होता ही हैं। हमे बाबा से प्यार भी बढ़ाना हैं तो उससे अपनापन भी बहुत बढ़ाना ही पड़ेगा और अपनो पर अधिकार भी होता हैं।

रोज़ सवेरे हम स्वयं को यह याद दिलायेंगे कि, वो मेरा हैं और उस पर मेरा अधिकार हैं। परंतु ये तब होगा जब बाबा का भी हम स्वयं पर अधिकार करा दे अर्थात जो कुछ वो कहे बस हमे वही करना हैं, उसके लिए कोई बहाना नहीं, कोई कारण नहीं ऐसा अधिकार। अधिकार से बाबा कह दे यह करना हैं तो बस करना हैं..!

तो यह बहुत सुंदर उपलब्धियाँ हैं संगमयुग की, यह समय बितता जा रहा हैं और एक दिन वो दिन भी आ जायेगा, वे क्षण भी आ जायेंगे जब बाबा हमसे विदाई लेगा और हम उसके मिलने के लिए पुन: इंतज़ार करेंगे द्वापरयुग से, उसे पुन: याद करेंगे, बुलायेंगे, क्योंकि उसके प्यार का अनुभव, उसके सुखो की अनुभूती जो संगमयुग पर हमे हो गई वो फिर हमे याद आया करेगी।

तो बुद्धिमान बनकर इस संगमयुग को पूरी तरह सफ़ल कर दे और वो बाबा से सबकुछ प्राप्त कर ले जो हम प्राप्त करना चाहते हैं। सब जानते हैं ऐसा स्वर्णिम अवसर दोबारा नहीं आयेगा। चेक (निरीक्षण) कर ले, ऐसे सुंदर समय पर हम कहाँ लगे हुए हैं, हमारी संपूर्ण शक्ति कहाँ जा रही हैं, हमारी मन-बुद्धि का खिंचाव किधर हो रहा हैं। उधर से उसको हटाकर ज्ञान के बल से एक बाबा में एकाग्र करें।

तो आईये आज सारा दिन इस सुंदर खुशी और नशे में रहे कि, "जिसको हम भगवान कहते थे वो तो मेरा हैं और मेरे साथ हैं”-सारा दिन यह याद रखेंगे कि, "वो मेरे साथ हैं, सिर पर छत्रछाँया हैं और उसकी शक्तियों की किरणे निरंतर मुझमें समा रही हैं।”इस श्रेष्ठ अनुभूती के साथ आज के दिन का संपूर्ण आनंद लेंगे।

ओम शांति...



 

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हमारा दृष्टिकोण दूसरो के व्यवहार के लिए जिम्मेदार होता हैं। आज मनुष्य ने जितना दृष्टिकोण बिगाड़ लिया हैं उतना पहले कभी नहीं बिगाड़ा था। कई लोगो का दृष्टिकोण तो ऐसा हो गया हैं कि उन्हें संसार में कोई भी मनुष्य अच्छा नहीं लगता। जब कि संसार में अच्छे लोगो की तो कोई कमी नहीं हैं क्योंकि उन्हें कहीं से धोखा मिला हैं, उनको बार-बार अपमानित किया गया हैं, लोग उन्हें उनके भोलेपन, सरलता या ईमानदारी का दुरुपयोग किया हैं, फ़ायदा उठाया हैं तो उन्हें ऐसा लगता हैं कि संसार में सभी लोग बहुत ही खराब हैं।

हमारा ब्राह्मण परिवार तो बहुत श्रेष्ठ परिवार हैं। यह देवकूल की महान आत्माओ का परिवार हैं, यह भगवान का परिवार हैं..! यह वो परिवार हैं जिसमें सभी ने पवित्रता अपना ली हैं, यह वो परिवार हैं जहाँ सभी भगवान के कार्यो में लग गये हैं, जिन्हों ने अपने जीवन को परिवर्तन करने का संकल्प कर लिया हैं और जो कर रहे हैं। तो हमारे इस परिवार जैसा परिवार तो और कोई हो भी नहीं सकता। यह ठीक हैं कि सबके अपने अपने संस्कार हैं, विचार हैं, पुरुषार्थ हैं, भाग्य हैं और राजधानी भी स्थापित हो रही हैं। इसमे विविधता होगी, राजा-रानी तो गिनेचुने होंगे 108 रत्न, बाक़ी शाहुकार प्रजा होगी कुछ लाख और शेष सभी सधारण प्रजा होगी। तो विविधता होना बिलकुल निश्चित हैं, बड़ा स्वाभाविक हैं। सभी एक समान पुरुषार्थी हो भी नहीं सकते। तो हमे यह याद रखना हैं कि हम राज्य स्थापित कर रहे हैं। इसमे विविधता होना नेचरल (स्वाभाविक) हैं। दूसरी बात, हम सभी आत्माये जन्म-जन्म के साथी हैं। यहाँ वही साथी बने हैं जो जन्म-जन्म साथ रहे हैं, जिनका जन्म-जन्म का कर्मो का खाता हैं, अच्छा या बुरा। अब वो सब खाते हमारे सामने आ रहे हैं। मान लो, आपके आसपास दस लोग हैं, या बीस हैं, या पचास हैं- किसी से प्रेम हैं, किसी से टकराव हैं, किसी से घृणा हैं, किसी के लिए बदले की भावना हैं। क्योंकि यह सब हमारे पूर्वजन्मो के कर्मो का हिसाब-किताब हैं। किसी ने आपको बहुत सताया हो, उसके लिए मन में बदले की भावना अग्नि की तरह धहकती रहती हैं। पता नहीं चलता क्यों उस व्यक्ति को देखते ही मन क्रोध से भर जाता हैं। यह पूर्वजन्मो का खेल हैं।

इस समय जिनके पास श्रेष्ठ ज्ञान और योग का बल हैं उन्हें अपनी भावनाओ को बिलकुल निर्मल कर देना चाहिए। इसे स्वीकार कर लेना चाहिए कि यह विविधता तो हैं और रहेगी लेकिन इस समय हमे इससे उपर उठकर साक्षीभाव शुभभाव और क्षमाभाव के द्वारा अपने चित्त को निर्मल और शांत कर देना हैं। अब हम किसी से बदला ले कर क्या करेंगे? हमारी दुर्भावनाये हमे भी कष्ट पहुँचायेगी, दूसरो को भी कष्ट पहुँचायेगी और हम ईश्वरीय कार्य में भी सहभागी न बन के विघ्न पैदा करने वाले बन जायेंगे।

तो सभी साक्षीभाव धारण करें। कर्मो का हिसाब-किताब चुक्तु हो रहा हैं यह याद करें। आत्मायें हिसाब लेने, कर्ज़ लेने आई हैं यह याद करें और सबके लिए एक सुंदर दृष्टि रख लिया करे, "यह देवकूल की महान आत्मायें हैं, यह भगवान के बच्चे हैं, इन्हों ने भी महान त्याग किया हैं, इन्हों ने भी इस श्रेष्ठ पथ पर कदम रखा हैं।"

देखे, हम जब दूसरो को ज्ञान देते हैं तो कितनी भावनाये होती हैं कि यह बाबा का बन जायें, यह भी इस मार्ग पर आ जाये। तो जो सतमार्ग पर आ गये हैं उनके लिए मन में घृणा या ईर्ष्या-द्वेष समाप्त कर देना हैं क्योंकि यहाँ सबका अपना-अपना पार्ट भी हैं और हम उनकी महानताओ को देखेंगे। महानताये भी उनमे बहुत हैं। कम से कम पवित्र जीवन अपनाया हैं, किसी ने अपने जीवन को बाबा पर बलीहार किया हैं उनका भगवान से मिलन हुआ हैं, वो भी पुण्यात्मायें हैं। ऐसी दृष्टि यदि हम रखेंगे तो हमारा चित्त शांत रहेगा, सब से बड़ा फ़ायदा हमे यह होगा।

तो आज सारा दिन हम साक्षीभाव अपनायेंगे और सभी ब्राह्मण आत्माओ के लिए यह दृष्टि रखेंगे कि, "यह देवकूल की महान आत्माये हैं।”बाक़ी सभी के लिए, "यह भगवान के बच्चे, यह भी श्रेष्ठ हैं।”और अभ्यास करते रहेंगे कि बाबा की रंगबेरंगी किरणो का फ़व्वारा निरंतर पड़ रहा हैं।

ओम शांति...



 

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बाबा ने हम सभी को एक बहुत बड़ा काम दे दिया हैं कि, "बच्चे, तुम्हें इस संसार में शांति का साम्राज्य स्थापित करना हैं।”हम जानते हैं कि पवित्रता ही सुख शांति की जननी हैं। अगर किसी के जीवन में शांति नहीं तो अवश्य कहीं ना कहीं पवित्रता में कमी हैं।

हम ध्यान दे, हमे शांति स्थापित करनी हैं। तो अपने किसी स्वभाव, संस्कार से या अपने इरिटेशन (चिड़्चिड़ापन) और क्रोध के स्वभाव से हमे घरो में अशांति पैदा नहीं करनी हैं। हमे किसी संगठन में अपने क्रोध और अहम के कारण अशांति पैदा नहीं करनी हैं। जितना हम शांतचित्त होंगे, उतना ही हम भगवान के सहयोगी होंगे। और पवित्रता जहाँ शांति का आधार हैं वैसे एक और आधार हैं देह से न्यारेपन की स्थिति। जैसे जैसे हम देह से न्यारे होते जायेंगे, हमारी अंतर की शांति बढ़्ती जायेगी।

तो आइये आज हम सभी संकल्प करें, "मुझें क्रोध से स्वयं को मुक्त रखना हैं, छोटी-छोटी बातो में क्रोधित नहीं होना हैं और दूसरो को ऐसा भी नहीं बोलना हैं कि दूसरे भी क्रोधित हो जाए।”दोनो चीज़ो पर ध्यान रखना हैं। कोई हमारे सामने उलटा-सुलटा बोलता हैं तो हमे क्रोध आ जाता हैं, कोई हमारे सामने झूठ बोलता हैं तो हमे क्रोध आ जाता हैं। इससे हमे बचना हैं। क्योंकि क्रोध हमारी सूक्ष्म शक्तियों को नष्ट कर देता हैं। क्रोध हमारे विवेक को खाने लगता हैं। जिस मनुष्य को क्रोध आता हैं उसकी विवेक शक्ति नष्ट हो जाती हैं। उस समय उसकी पावर ऑफ़ जज़मेंट (निर्णय शक्ति) समाप्त हो जाती हैं। बोल पर भी नियंत्रण समाप्त हो जाता हैं। वो अपनो को ही कुछ भी बोल देता हैं। उसके मन से सम्मान की भावना भी समाप्त हो जाती हैं और उसकी जिह्वा से सरस्वती विदाई ले लेती हैं। क्रोध उसकी जिह्वा पर सवार हो जाता हैं, मानो भूत उसकी जिह्वा पर सवार हो गया।

तो हम सभी जो ज्ञानी हैं, योगी हैं, जिन्हें संसार अपने आदर्शरुप में देखना चाहता हैं, जिन्हें अपने चेहरे और चलन से बाबा का नाम रोशन करना हैं उन्हें क्रोधमुक्त जीवन बनाने का द्रढ़ संकल्प करना चाहिए। अपने क्रोध को मान्यता नहीं दे देनी चाहिए कि, "इस परिस्थिती में तो क्रोध आयेगा ही, मुझें तो क्रोध आता ही हैं, क्रोध तो मेरा संस्कार बन गया हैं... -नहीं, मेरा संस्कार क्रोध नहीं, मेरा संस्कार तो शांति और प्रेम हैं। यह तो रावण की संपदा हैं, मेरी नहीं... मुझें क्रोध क्यों आयेगा इन परिस्थितियों में... मुझें क्रोध आयेगा तो मुझ में और संसार के लोगो में अंतर ही क्या रहेगा..?"

तो ध्यान दे, हमे क्रोधमुक्त जीवन जीना हैं। इसके लिए स्व-परिक्षण करना हैं कि मुझें क्रोध किन परिस्थितियों में आता हैं? जिन परिस्थितियों में क्रोध आता हैं उसको अवोइड (टालने) के लिए एक ज्ञान का सुंदर महावाक्य रखना हैं और ध्यान देना हैं कि- धेर्य से ही क्रोध को जीता जाता हैं..! तुरंत react (प्रतिक्रिया) करने की आदत क्रोधित कर देती है, नो रिएक्शन। रिएक्ट करना हैं तो दस सेकण्ड बाद करना हैं। ऐसी प्रेक्टिस सभी अपने अंदर डालते चले।

दूसरा, सवेरे उठते ही 5 बार सच्चे मन से संकल्प करें, "मैं विजयरत्न हूँ... क्रोधमुक्त हूँ... मेरा चित्त शांत हो गया हैं... मैं विजयरत्न हूँ, क्रोधमुक्त हूँ, मेरा चित्त शांत हो गया हैं।”इससे सवेरे-सवेरे उठते ही अभ्यास कर लिया जायेगा तो हमारा अर्धजागृत मन इन तीनो चीज़ो को स्वीकार कर लेगा कि हम विजय हैं, हम क्रोधमुक्त हैं, हम शांत हैं। और ये तीनो चीज़े हमारे जीवन में बढ़्ती चली जायेगी।

तो आज सारा दिन हम अशरीरी होने का अभ्यास करेंगे। स्वयं को चमकती हुई मणी भृकुटी की कुटीया में देखेंगे और संकल्प देंगे, "मैं शांत स्वरुप हूँ... शांत हूँ। मेरा संस्कार शांति हैं... क्रोध मेरा संस्कार नहीं हैं।”इस तरह के अभ्यास से अपने जीवन में हम क्रोधमुक्त होंगे और गहरी शांति की अनुभूती होंगी।

ओम शांति...