Murli Word Meaning  - PDF

मुरली शब्दकोष

हिन्दी मुरली में आये हिन्दी] अंग्रेजी] अरबी-फारसी भाषा व मुहावरों-कहावतों का सरलीकृत अर्थ हिन्दी भाषा में
सम्पादक की कलम से………………………………
 शब्दकोष के विभिन्न भागों में मुरलियों में आने वाले कठिन शब्दों का अर्थ सरल शब्दों में समझाने का प्रयास किया गया है। कठिन शब्द को कोई परिभाषा नहीं दी जा सकती। देशकाल] भाषा की समझ] ज्ञान -स्तर में भिन्नता होने के कारण हर किसी के लिए कठिन और सरल शब्द का मापदण्ड अलग अलग हो सकता है।अतएव शब्दों के चुनाव में सामान्यीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है।                             
अन्यथा हम अज्ञानता व भ्रमवश शब्दों के अर्थ का अनर्थ कर देते हैं। आज हिन्दी भाषा की प्रकृति और स्वरूप में निश्चय ही समय के साथ भूमंडलीकरण के दौर में बदलाव आया है। इसलिये वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मुरलियों के अर्थ व भाव को अच्छे से समझने के लिए  मुरली में आये कठिन शब्दों के भावार्थ जानना आवश्यक हो जाता है। हिन्दी मुरली की दिशा में यह प्रयास आपके लिए उपयोगी साबित हो ऐसा सम्पादक मंडल आशा करता है।
 

क्रम सं. शब्‍द  अर्थ 
1 सिकीलधे  मूल शब्द सिक से बना जिसका अर्थ अत्यन्त प्रिय, लाडले, जिस तरह लौकिक माता-पिता को  बहुत प्रतीक्षा के उपरान्त पुत्ररत्न प्राप्ति पर बच्चे से बहुत सिक- सिक (Love) होना (अतिस्नेह) होती है।उसी तरह परमात्मा को भी जब 5000 वर्षोंपरान्त बच्चों से संगम पर मिलन होता है] तो बच्चों से बहुत सिक- सिक होती है। (सिन्धी शब्द पर मूलतः फारसी भाषा का शब्द)
2 16 कला सम्पन्न मानव स्वभाव/व्यवहार की सर्वश्रेष्ठ कला (100% सर्वगुण सम्पन्न)
3 अंगद के समान अचल अडिग/कैसी भी परिस्थिति में स्थिर रहना
4 अकर्ता कर्म के खाते से दूर/निर्लिप्त/निर्बंधन
5 अकर्म जिस कर्म का खाता ही न बने  अर्थात् सत्कर्म के खाते का क्षीण होना (देवताओं का कर्म इसी कोटि में आता है।)
6 अकालमूर्त जिसका काल भी न कुछ  बिगाड़ सके/अमर/ मृत्युंजय स्वरूप/ नित्य/ अविनाशी
7 अखुट कभी न समाप्त होने वाला लगातार अनवरत 
8 अचल-अडोल जो न डिगनेवाला हो और न हिले अर्थात् हमेशा स्थिर रहे।
9 अजपाजप लगातार जाप करना वह जप जिसके मूल मंत्र हंसः का उच्चारण श्वास- प्रश्वास के गमनागमन मात्र से होता जाये इस जप की संख्या एक दिन और रात में २१,६०० मानी गर्इ है।
10 अजामिल पुराण के अनुसार एक पापी ब्राह्मण का नाम जो मरते समय अपने पुत्र 'नारायण' का नाम लेकर तर गया
11 अनन्‍य एकनिष्‍ठ/ एक ही में लीन हो
12 अनादि जिसका न कोई आदि/आरम्भ हो, न अन्त हो
13 अन्तर्मुखता आत्मिक स्थिति में रहना/भीतर की ओर उन्मुख/आंतरिक ध्यानयुक्त।
14 अन्तर्मुखी शान्त/जो शिव बाबा की याद में अन्तर्मुखी स्वभाव वाला हो जाये
15 अन्तर्यामी मन के ज्ञाता/सबकुछ जानने वाला
16 अभूल भूल न करने वाला
17 अमल आचरण, व्‍यवहार, कार्यवाही
18 अमानत एक  निश्चित  समय के लिए कोई चीज़ किसी के पास रखना
19 अलबेलापन गैर जिम्मेदाराना व्यवहार/कर्म आलस्य (पांच विकारों पर भी भारी पड़ने वाला विकार)
20 अबलाओं अन्‍याय व अत्‍याचार से पीडित वह स्‍त्री जिसमें बल न रह गया हो/ शक्तिहीन हो
21 अलाएँ खाद, विकार
22 अलाव स्वीकार करना/ज्ञान देना
23 अलौकिक जो इस लोक से परे का व्यवहार करे
24 अल्लफ एक परमात्मा
25 अविद्याभव अज्ञानता के कारण भूल जाना
26 अविनाशी बृहस्पति अविनाशी राज्यभाग (ब्रह्मा के साथ)
27 अव्यक्त सम्पूर्ण ब्रह्मा सूक्ष्म वतनवासी ब्रह्मा
28 अशरीरी शरीर में रहते हुए शरीर से अलग डिटैच/भिन्न/बिना
29 अष्टरत्न सबसे आगे का नम्बर/पास विद् आनर केवल आठ आत्माएं/आठ की माला इन्हीं से बनती है।
30 असल सही मायने में/सच/वास्तव में
31 अहम् ब्रह्मस्मि मैं ही ब्रह्म हूं
32 आत्मभिमानी देह में रहते अपने को आत्मा रूप में स्थिर रहना या अनुभव करना 
33 आत्माएं अंडेमिसल रहती परमधाम में ऊपर परमात्मा के नीचे नम्बरवार आत्माएं अण्डे की तरह/सरीखे रहती है।
34 आथत धैर्य, धीरज
35 आदम-ईव सृष्टि के शुरू में आने वाले प्रथम नर-नारी (हिन्दू धर्म में मनु-श्रद्धा)
36 आदमशुमारी बहुतायत/अति/जनगणना भी एक अर्थ में
37 आप ही पूज्य आपे पुजारी स्वयं की (अपने देव स्वरूप की) स्वयं ही पूजा करने वाली देव वंशावली की आत्माएं जो द्वापर से अपनी ही पूजा शुरू कर देती हैं।
38 आपघात  आत्‍महत्‍या
39 आपे ही तरस परोई देवताओं की बड़ाई और अपनी बुराई की भक्ति का गायन
40 आशिक प्रेम करनेवाला मनुष्य या भक्त, चित्त से चाहने वाला मनुष्य-आत्मा
41 अतीन्‍द्रिय सुख  जो इन्‍द्रियज्ञान के बाहर हो, जिस सुख का अनुभव इन्‍द्रियों द्वारा ना हो सके
42 आहिस्ते आहिस्ते धीरे धीरे
43 इत्तला देना जानकारी देना
44 उजाई माला बुझी हुई माला
45 उतरती कला उत्तरोत्तर या सतयुग से धीर धीरे 16 कलाओं में ह्रास/कमी आना
46 उपराम राम के समीप/न्यारापन निरन्तर योगयुक्त रहकर चित्त को सर्व-सम्बन्ध, सर्व प्रकृति के आकर्षण से न्यारा हो जाना ही उपराम होना है। इस सृष्टि में अपने को मेहमान समझने से उपराम अवस्था आएगी।
47 उल्हना लाहना, शिकायत, किसी की भूल या अपराध को उससे दुःखपूर्वक जताना, किसी से उसकी ऐसी भूल चूक के विषय में कहना सुनाना जिससे कुछ दुःख पहुँचा हो।
48 ऊँ शान्ति   मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ
49 ऋद्धि-सिद्धि  गणेश की पूजा यदि विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्‍नियां ऋद्धि-सिद्धि भी प्रसन्‍न हो कर घर-परिवार में सुख-शान्ति और संतान को निर्मल विद्या बद्धि देती हैा ऋद्धि-सिद्धि यशस्‍वी, वैभवशाली व प्रतिष्‍ठित बनाने वाली होती है।
50 एक ओंकार परम शक्ति एक ही है
51 एकानामी एक शिव परमात्‍मा के अलावा किसी की याद ना रहे, मन-बुद्धि में एक शिव ही याद रहे 
52 एशलम जहॉं दु:खी व अशान्‍त आत्‍माओं को शरण मिलती है।
53 ओम् मैं आत्मा
54 कखपन बुराई/अवगुण
55 कच्छ-मच्छ परमात्मा के अवतारों के पौराणिक नाम यथार्थ- मत्स्यावतार, कच्छ,वराह
56 कट विकार
57 कब्रदाखिल अकाले अवसान/मृत्यु/समाप्ति
58 कयामत कुरान के अनुसार कयामत के दिन भगवान मुर्दों में भी जान फूंक देंगे। कयामत के दिन ना बाप-बेटा, भाई-बहन का इस दुनिया की कीमती से कीमती चीज और ना ही किसी की सफारिश तब किसी इन्‍सान के काम आएगी। केवल अच्‍छे आमालों और इस्‍लाम के स्‍तंभों और सुन्‍नत तरीकों से जिंदगी गुजारने वाले इंसानों को ही जन्‍नत में भंजा जाएगा। पाप बढ़ जाएंगे, अधिकाधिक भूकंप आएंगे, औरतों की तादाद में मर्द ज्‍यादा होंगे 
59 करनकरावनहार सब कुछ करने कराने वाला परमात्मा
60 करनीघोर जिन्हें मुर्दे की बची चीजें दी जाती हैं।
61 कर्म शारीरिक अंगों द्वारा किया गया कोई भी कार्य
62 कर्मभोग विकर्मों का खाता जिसे भोगना पड़ता है या योगबल से मिटाया जा सकता है।
63 कर्मातीत कर्म के बन्धन से दूर/जीवन-मुक्त आत्मा/कलियुग अन्त तक 9 लाख आत्माएं अपने श्रेष्ठ पुरुषार्थ से कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करेंगी।
64 कलंगीधर कलंक को धारण करना
65 कलश गगरा, घागर, घड़ा।
66 कल्प 5000 वर्ष का एक चक्र का नाटक/ड्रामा
67 कल्प-कल्पान्तर हर कल्प में (सतयुग से संगमयुग तक)
68 कवच बख्तर/युद्ध में छाती की रक्षा के लिये उपयोगी आवरण
69 कशिश आकर्षण, खिंचाव, झुकाव, रुझान।
70 कागविष्ठा बहुत थोड़ा/कौए की लीद जैसा गन्दा
71 काम कटारी काम विकार में जाना
72 कामधेनु एक गाय जो पुराणानुसार समुद्र के मंथन सक निकली थी। पर चौदह रत्‍नों में से एक है, इससे जो मांगो वही मिलता है।
73 कुब्‍जाओं  जिसकी पीठ टेड़ी हो/कुबड़ा स्‍त्री 
74 कुख वंशावली गर्भ से जन्म (लौकिक)
75 कुम्भीपाक नर्क पुराणों में वर्णित एक घोर नर्क
76 कूट पीटते हैं
77 कृष्णपुरी सतयुग में श्रीकृष्ण का राज्य 
78 कौड़ी मिसल कौड़ियों के मोल/मूल्यहीन
79 कौरव दुःख देने वाले मनुष्य, 'जो ईश्वरीय नियम मर्यादाओं को न मानते है और न उनकी श्रीमत पर चलते है, कौरव कहलाते है!' भारत में कौरव वंशियों का महाविनाश के समय आपस में गृहयुद्ध होगा।
80 खग्गे/कन्धे उछालना खुशी में रहना
81 खलास खत्‍म/समाप्‍त
82 खाद विकारों का लेप हो/युक्‍त हो
83 खिदमतगार सेवाधारी 
84 खिव्वैया तारणहार/नैया पार लगाने वाला
85 खुदाई खिदमतगार ईश्वर की खिदमत या सेवा करनेवाला।
86 खैराफत  कुशल क्षेम/ राजीखुशी/ भलाई 
87 खोट दोष, अशुद्धि, किसी कार्य या व्यक्ति के प्रति मन में होने वाली बुरी भावना।
88 ख्यानत अमानत  या  धरोहर  के रूप में रखी  वस्तु  को  हड़प लेना या चुरा लेना, बुरी नीयत से किसी दूसरे की संपत्ति का गबन कर लेना बेईमानी या भ्रष्टाचार, विश्वासघात
89 ख्‍यालात विचार या भाव आदि 
90 गफलत असावधानी
91 गणिकाओं वेश्‍यावृत्ति  के धन्‍धे में लिप्‍त स्‍त्री 
92 गरीब-निवाज़ गरीबों का रहनुमा/मददगार शिव परमात्मा
93 गर्भ जेल गर्भ जेल में रहते कर्म बन्धन के हिसाब किताब चूकतू करना
94 गांवड़े  गाँव का
95 गुरूमत प्रसिद्ध गुरूओं के मत पर आधारित
96 गुंजाइश स्‍थान/ जगह/ स्‍माने भर की जगह
97 गुलशन बगीचा
98 गृहचारी  गृहों की स्‍थिति के अनुसार किसी मनुष्‍य की भली बुरी अवस्‍था/ दुर्भाग्‍य 
99 गोपीवल्लभ महाभारत में वर्णित गोप-गोपियों के अत्यन्त प्रिय श्रीकृष्ण जिनकी मुरली की धुन सुनने के लिये अपनी सुधि बुधि खोकर काम काज छोड़कर चले आते थे। वास्तव में हम बच्चे ही वही गोप-गोपियां हैं, जो नित उस परमप्रिय शिवबाबा अर्थात् गोपीबल्लभ  को याद किये और मुरली सुने बिना नहीं रह सकती हैं।
100 गोया मानो/अर्थात्
101 गोरखधंधा गड़बड़, गड़बड़ी करनेवाला, घपलेबाजी, गोलमाल करना, अनियमितता।
102 गोसाईं श्रेष्ठ, मालिक, शिव परमात्मा, स्वामी।
103 ग्रहचारी कुंडली में बुरे ग्रह बैठ जाना
104 ग्रहण स्वीकार करना,धारण,पहनना।
105 चन्द्र वंशी त्रेतायुगी देवी देवता
106 चात्रक  जिज्ञासु बने रहना, हमेशा तैयार जिस प्रकार चात्रक व पपीहा पक्षी स्‍वाति नक्षत्र की बूंद की चाहना करता हुआ उसके इंतजार में आसमान में अपनी आंखे टिकाऐ रखता है, उसी प्रकार बच्‍चे बाबा की मुरली को जिज्ञासु बन कर इंतजार करते रहते है कि बाबा मुरली में क्‍या कहने वाला है।
107 चैतन्य लाइट हाउस जैसे स्थूल लाइट हाउस सभी जहाजों को रास्ता बताता है, वैसे ही ब्राह्मण बच्चे चैतन्य रूप में अपने ज्ञान योग की आत्मिक लाइट से सभी को सही रास्ता बताते हैं।
108 चों चों का मुरब्बा किस चीज से बना ये पहचानना मुश्किल/सब कुछ मिक्स
109 छि-छि-पलीती गन्दा (नये जन्में शिशु के कपड़ों जैसा)
110 जड़जड़ीभूत होना खोखला होना
111 जानीजाननहार सर्वज्ञ/सबकुछ जानने वाला
112 जिन्न जैसी बुद्धि अथक परिश्रमी (जिन्न का अर्थ भूत)
113 जिस्मानी यात्रा शारीरिक यात्रा
114 जुत्ती शरीर
115 जूं मिसल धीरे धीरे  लगातार
116 ज्ञान की कंठी ज्ञान की माला/प्राप्ति
117 ज्‍योत ज्‍योत समाना भक्‍तिमार्ग में कहते है आत्‍मा ज्‍योति मृत्‍यु के बाद परमात्‍मा ज्‍योति में विलीन हो जाती है
118 झांझ एक वाद्ययंत्र/संगीत निकालने वाला स्थान
119 झाड़  मनुष्‍य सृष्‍टि रूपी कल्‍प वृक्ष, जिसमें बताया गया है पुरी सृष्‍टि पर आत्‍माओं का फैलाओ कैसे हुआ, सारे धर्म कैसे फैले, उनकी समय समय पर गति कैसी रही। उसके बारे में स्‍पष्‍ट दिया हुआ है। मनुष्‍य सृष्‍टि रूपी झाड़ के रूप में।
120 टाल-टालियाँ सभी धर्मों की विभिन्न शाखायें
121 टिंडन बिच्छू-टिंडन जैसे जहरीले जीव
122 टिक टिक घड़ी जैसे निरंतर टिक टिक कर चलती रहती वैसे यह ड्रामा भी सेकंड बाय सेकंड लगातार चलता रहता है।
123 टीवार्ट तिराहा/तीन रास्ते
124 टेव आदत
125 डबल सिरताज स्वर्ग में डबल सिरताज होते देवी देवता, एक लाइट अर्थात पवित्रता का ताज और दूसरा रतन जड़ित ताज
126 डोडा जवारी, ज्वारे/बाजरी कि रोटी
127 तकदीर भाग्य/प्रारब्ध/किस्मत
128 तकदीर को लकीर लगाना भाग्य बनाने का सुअवसर खो देना
129 ततत्वम् तुम भी वही हो अर्थात आत्‍मा परमात्‍मा का रूप है।
130 तत्‍ते तवे गर्म तवे
131 तत्त्वज्ञानी जीवन/संसार के सार या मूल को जाननेवाला
132 तदबीर अभीष्ट सिद्धि करने का साधन/उक्ति/तरकीब/यत्न।
133 तमोगुण गुणों में सबसे निम्न स्तर (चार कला सम्पन्न कलियुग से/भारत मे अरबों के आक्रमण से शुरू) 
134 ताउसी तख्त राज्य-भाग
135 तिजरी की कथा भक्ति मार्ग की सत्य नारायण की काल्पनिक कथा के मध्य में सुनाई जाने वाली कथा
136 त्रिलोकीनाथ तीनों लोकों का मालिक शिव परमात्मा
137 दग्ध करो खत्म करो
138 दिलरूबा वह जिसमें प्रेम किया जाए/प्‍यारा 
139 दिव्‍य चक्षु ज्ञान का तीसरा नेत्र
140 दुम पूंछ, आत्मा के निकलते ही शरीर रुपी दुम छूट जायेगा
141 दुस्‍तर जिसे पार करना कठिन हो/ विकट/कठिन
142 देवाला जिसके पास ऋण चुकाने के लिये कुछ न बच गया हो/ जो सर्वथा अभाव की स्थिति में हो 
143 देही देह को चलाने वाली/मालिक/आत्मा
144 दो ताजधारी संगमयुगी ब्राह्मण का और सतयुगी देवता दोनों के आभामंडल की लाइट का ताज धारण करना
145 दोज़ख नरक
146 धणी मालिक
147 धरिया धुरण्डी (होली के अगले दिन का एक त्यौहार)
148 नंदीगण बैल की प्रतिकृति जो शिवमन्दिर में होती है कलियुग अन्त में शिव बाबा जिन दो रथों/तन (ब्रह्मा बाबा व गुलजार दादी) का सहारा लेते हैं, यही नन्दीगण के प्रतीक
149 नट शैल सार रूप (सारांश)
150 नब्ज देखना जांच करना, सूक्ष्म चेकिंग करनी
151 नम्बरवार कोई होशियार कोई बुद्धू/क्रमोत्तर गिरती हुई स्थिति में होना।
152 नष्टोमोहा पुरानी दुनिया से मोह ममत्व का त्याग, निर्मोही स्थिति
153 नामाचार प्रसिद्ध/लोक विश्रुत
154 नामी-ग्रामी प्रसिद्ध करने वाला
155 निधनके जिसके माँ-बाप न हो
156 निराकार सो साकार साकार मे कर्म करते हुए अपने निराकार स्वरूप (stage) की स्मृति/याद में रहना
157 निर्माण चित्त जिसका मन निर्मल/साफ हो/निर्माण करने का जिसमें हृदय हो
158 निर्लेप जिस पर विकारों का लेप ना लगा हो/निर्विकारी स्थिति स्टेज
159 निर्वाणधाम आत्मा-परमात्मा का निवास स्थान/ब्रह्मलोक, मूलवतन भी कहते हैं
160 निर्विकारी विकार (बुराइयों) रहित (रजो, तमो से सम्बन्धित)
161 निवृत्ति मार्ग सांसारिक विषयों का किया जानेवाला त्याग,  प्रवित्ति का अभाव होना, सांसारिक कार्यों के लगाव से परे
162 नूँथ होना माला में पिरोया हुआ
163 नूँध पहले से लिखा हुआ
164 नेष्टा एक जगह शान्ति में बैठकर योग का अभ्‍यास कराना। वैसे नेष्‍ठा एक प्रकार की योग की अत्‍यन्‍त कठिन क्रिया है। नेष्‍ठ नेत्र और देहातीत बनाने वाली शक्‍तिशाली दृष्‍टि है।
165 नैन चैन आंख की हलचल व व्यवहार द्वारा
166 नौंधा (नवधा भक्‍ति) भक्‍तिमार्ग में भक्‍त ईश्‍वर का साक्षात्‍कार के लिये नौ प्रकार की भक्‍ति श्रवण, कीर्तन, स्‍मरण, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, संख्‍य, दास्‍य और आत्‍मनिवेदन करता हुआ सर्वस्‍व ईश्‍वर पर न्‍यौछावर कर देता है। मुरली सन्‍दर्भ में भाव यह है कि तुम अपने सारे विकारों कादान कर शिव बाबा पर न्‍यौछावर होते हो जाओ तो तुम्‍हे भी साक्षात्‍कार होगा।
167 न्यारा और प्यारा सबसे न्यारा/अलग होते हुए भी सबका प्यारा होना
168 पक्का महावीर विजयी, सफल, दृढ़, सफलतामूर्त
169 पत्थरनाथ माया/विकारों के वशीभूत
170 पत्थरपुरी कलियुगी/दिलोदिमाग पत्थर सदृश (पत्थर पूजे हरि मिले, तो.....)
171 पथ प्रदर्शक पैगम्बर/रास्ता दिखाने वाला/गाइड
172 पदमापदम, पदमगुणा a गणित में सोलहवें स्थान की संख्या (१०० नील) जो इस प्रकार लिखी जाती हैं—१००,००,००,००,००,००,००० (१ नील - सौ अरब।) संगम पर किया हुआ पुराषार्थ पदमापदम/पदमगुणा फलदाई होता है।
 
173 पद्मपति जज अखुट सम्पत्ति (ज्ञान/योग/धन) का स्वामी
174 परमधाम आत्मा-परमात्मा का निवास स्थान
175 परिस्तान फरिश्तों की दुनिया/सतयुगी दुनिया
176 पवित्रता मन-वचन-कर्म से पावन, निश्छलता, स्वछता, चतुराई रहित, सरल, साफ, शुभ वृत्ति, शुभ विचार कामना या इच्छा रहित, निस्वार्थ
177 पसारा विस्‍तार से 
178 पाण्डव जिनको ईश्वरीय नियम वा मर्यादाओं पर सम्पुर्ण निश्चय है और ईश्वरीय पार्ट को पहचान कर ईश्वरिय ज्ञान को जीवन मे धारण करते है वही सच्चे पांडव कहलाते है, परमात्मा भी इनके साथी बनते हैं।
179 पारलौकिक इस साकारी लोक या दुनिया से पार/बहुत दूर/सूक्ष्मलोक से भी ऊपर/दुनियावी रिश्तों से परे
180 पारसनाथ  परमात्मा/पारस सदृश बनाने वाला
181 पारसपुरी स्वर्ग/सतयुग दिलोदिमाग जहाँ पारस पत्थर जैसा हो
182 पित्र खिलाना परम्परा से चली आ रही भारतीय रस्म जिसमें लोग मृत व्यक्ति की आत्मा को ब्राह्मणों के शरीर में आह्वान कर पितरों की इच्छाओं को   पूरा करने का प्रयास किया जाता है ।
183 पुरूषार्थ कर्म, वह मुख्य उद्देश्य या प्रयोजन जिसकी प्राप्ति या सिद्धि के लिए प्रयत्न करना आवश्यक और कर्त्तव्य हो।
184 पैगाम सन्देश
185 पोतामेल हिसाब-किताब, रोजनिशी, आत्मा जो मन वाणी कर्म द्वारा कार्य करे उसके रोज का हिसाब-किताब
186 प्रकृति स्वभाव, तासीर,  कुदरत।
187 प्रजापिता सभी आत्माओं के पिता
188 प्रवृत्ति झुकाव, संसार के कार्यों से लगाव, भौतिक जीवन के क्रियाकलापों (activity) में  आसक्ति, मुरली के सन्दर्भ में  गृहस्थ व्यवहार में रहकर श्रीमत की युक्ति (तरकीब) से निर्विकारी बनकर परमात्मा से योगयुक्त होना।
189 प्रवृत्ति मार्ग संसार के कामों में लगाव, दुनिया के धंधे में लीन होना, भौतिक जीवन के कार्यव्यापारों में आसक्ति, जीवन-यापन का वह प्रकार जिसमें मनुष्य सांसारिक कार्यों और बंधनों में पड़ा रहकर दिन बिताता है।
190 प्रारब्ध/प्रालब्ध तीन प्रकार के कर्मो में से वह जिसका फलभोग आरंभ हो चुका हो। भाग्य, किस्मत, जैसे-जो प्रारब्ध में होगा वही मिलेगा।
191 प्लानिंग बुद्धि लक्ष्य पर सोचती बुद्धि
192 प्लेन बुद्धि साफ बुद्धि
193 फखुर/फक्र नशा/गर्व
194 फज़ीलत मैनर्स, सभ्यता, श्रेष्ठता
195 फथकाती तड़पाती, परेशान करती है
196 फरमान बरदार आज्ञाकारी होना
197 फराक दिल रहमदिल/साफ-शुद्ध चित्त वाला
198 फराखदिल बड़ा दिल
199 फानन  अचानक/तुरन्त
200 फारगति देना  छोड़ के जाना/भाग जाना/तलाक देना
201 फिकरात चिंता, सोच, खटका, ध्यान देने योग्य
202 फुरना निकलना, प्रकट होना, चमक उठना
203 फुरी फुरी अलाव भरता बूंद-बूंद से तालाब भरता है।
204 फौरन तुरन्त, फटाफट
205 बख्तावर भाग्यवान, खुशनसीब।
206 बचड़ेवाल पालन करनेवाला, सम्‍भाल या देखभाल करने वाला।
207 बनियन ट्री/बनेन ट्री प्राचीन वटवृक्ष जिसकी जड़ का पता नहीं (कोलकाता के बोटेनिक गार्डन में है), आदि सनातन देवी देवता धर्म के संस्‍थापक परमपिता परमात्‍मा शिव दोनों लोप हो जाते है।
208 बलिहार जाना न्यौछावर/समर्पित/कुर्बान कर देना
209 बल्लभ पृथ्वी के राजा के अर्थ में/इसका एक अर्थ प्रिय भी/ दुनियावी रिश्तों से पार 
210 बहिश्त स्वर्ग/सतयुग त्रेतायुग
211 बांधेलियां बन्धन युक्त आत्मायें,वो आतमाएं जो परिवार के बन्‍धन में रहते बाबा मिलन नहीं कर सकती परन्‍तु बाबा को बहुत प्रेम से याद करती हैं
212 बादशाही सतयुग की आठ गर्दिश, अष्टरत्न
213 बार्ह्यामी बाहरी/दुनियादारी का अनुभवी
214 बाला प्रसिद्ध करना
215 बीज जैसे एक वृक्ष का मूल उसका बीज होता है अर्थात बीज में ही वृक्ष का जीवन होता है उसका विस्‍तार होता है, ठीक इसी प्रकार परमात्‍मा भी इस सृष्‍टि रूपी वृक्ष के चैतन्‍य बीज हैं जो अपनी शक्‍तियों के बल से पतित सृष्‍टि को पावन बना कर उसमें नव जीवन का संचार करते है।
216 बृहस्पति की दशा श्रीमत का पालन करते हुए ज्ञान योग की पढ़ाई पर पूरा ध्यान देते रहनेवाले। जिसकी वजह से माया वार नहीं कर पाती तो वे सदा सुखी रहते।
217 बेअन्त अनादि/अन्तहीन/जिसका अन्त न हो
218 बेगर अकिंचन/भिक्षुक/दरिद्र
219 बेगर टू प्रिन्स विकारों के कारण भिखारी बनी हुई आत्माओं को ज्ञान व योग द्वारा शिव बाबा राजकुमार अर्थात् धनवान, राज्य-अधिकारी बनाते हैं।
220 बेहद इस मायावी/ सांसारिक दुनिया के हद/सीमा से पार/असीम
221 बेहद का बाप पारलौकिक पिता/ शिव परमात्मा/ प्रजापिता/ बापदादा/ सीमा से परे हो
222 बैकुण्ठनाथ स्वर्ग (सतयुग-त्रेतायुग) के मालिक/राजा
223 ब्रह्मचारी ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों को ब्रह्मचारी कहते हैं। ब्रह्मचर्य दो शब्दो ब्रह्म और चर्य से बना है। ब्रह्म का अर्थ परमधाम, चर्य का अर्थ विचरना, अर्थात परमधाम मे विचरना, सदा उसी का ध्यान करना ही ब्रह्मचर्य कहलाता है। वास्तव में ब्रह्मचर्य काम विकार से सम्पूर्ण मुक्ति। पवित्रता का आधार स्तंभ है ब्रह्मचर्य।
224 ब्रह्मज्ञानी ब्रह्म-तत्त्व को जाननेवाला
225 भंडारा खाने-पीने की वस्तुओं का संग्रह स्थल
226 भंभोर गोल दुनिया
227 भगवानुवाच शिव परमात्मा के महावाक्य/विशेषतः मुरली पूरी तरह भगवानुवाच ही है
228 भट्ठी जिसमें तपकर सोने में निखार आये/आबू जैसी पावन तपस्याभूमि में जाकर वरिष्ठों की क्लास आदि का श्रवण-चिन्तन-मनन से ब्राह्मणत्व में सुधार लाना
229 भस्मासुर एक असुर जो किसी को या स्वयं को भी भस्म कर सकता है
230 भागंती सब कुछ सुनकर फिर छोड़ने वाला
231 भागीरथी भाग्यशाली रथ ब्रह्मा का/भगीरथ की तपस्या के समान भारी/बहुत बड़ा।
232 भासना आना अनुभव होना
233 भ्रमरी मिसल भ्रमरी की तरह दीपक में भूं भूं करना
234 मंथन मथना, खूब डूबकर विचारकर तथ्‍यों पता लगाना।
235 मच्छरों सदृश वापस जाना अन्त समय एक साथ अनेक आत्माएं मच्छरों के समान परमधाम जायेंगी।
236 मत-पंथ गुरूओं के बताये मत व उनके द्वारा दिखाये गये रास्ते पर चलना
237 मदार आधार, धुरी, दायरा
238 मध्याजी भव त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्‍णु और शंकर) के मध्‍य में स्थित विष्‍णु स्‍वरूप होने से है
239 मनमनाभव  स्वयं को आत्मा समझ एक बाप परमपिता शिव को याद करना
240 मनसा मन की शक्ति से/मनसा सेवा
241 मनोनुकूल इच्छानुसार
242 मन्मत्/मनमत् स्वयं के तर्क/विवेक बुद्धि पर आधारित विचार
243 ममत्त्व रखना मोहमाया/अपनेपन के भाव में रहना
244 मर्तबा पद/पोजीशन
245 मलेच्छ पापी/भ्रष्टाचारी
246 महतत्‍व  वह स्‍थान जहां आत्‍मा व परमात्‍मा का निवास है/ब्रह्मलोक
247 माटेले जो माँ को पसन्द हो/सगा, जो सौतेला न हो
248 मामेकम् सिर्फ मुझ एक बाप परमपिता परमात्‍मा शिव को याद करो
249 माया 5 विकार (काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार) बाबा के ज्ञान से परे इसका अर्थ धन सम्पत्ति के अर्थ में रूढ़ था।
250 माया काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार रूपी पांच विकार/भक्ति मार्ग में धन-संपत्ति
251 मायाजीत जगतजीत माया पर विजय पाने वाले को जगत की बादशाही मिलेगी
252 माशूक वह जिसके साथ प्रेम किया जाय, प्रियतम, परमात्मा
253 मासी का घर जहां आसानी से आया जाया जा सके
254 मास्टर ज्ञान सूर्य ज्ञान-सूर्य (शिव बाबा) का शिष्य/ बेटा/स्वरूप
255 मिडगेट  छोटा बच्‍चा, ज्ञान में कम समय से हो, उसे मिडगेट कहते है।
256 मिस न करना कभी न छोड़ना
257 मिसाल  नमूना, उदाहरण, तुलना
258 मिसाल-राज्य राज्य का नमूना/उदाहरण
259 मिलकियत  धन सम्‍पत्ति/जायदाद/ वह धनसम्‍पत्ति जिस पर नियम अनुसार अपना स्‍वामित्‍व हो सकता 
260 मुंझना समझ में न आना
261 मुआफिक ठीक ठीक, न ज्यादा न कम,  मनोनुकूल, इच्छानुसार
262 मुक्तिदाता सर्वदुःखों से मुक्ति/आजादी दिलानेवाले, शिव बाबा
263 मुख वंशावली ब्रह्मा मुख से जन्म (अलौकिक)
264 मुजीब स्वीकार  करने  वाला,  जवाब देने वाला।
265 मुरब्बी बच्चा आज्ञाकारी/पसंदीदा/समान
266 मुरादी मृत्‍यु, पोतामेल, अभिलाषी
267 मुरीद जो किसी का अनुकरण करता या उसके आज्ञानुसार चलता हो/ अनुगामी/अनुयायी/शिष्‍य
268 मुलम्मे कमतर/निम्न बर्तन की गन्दगी करने से संबंधित
269 मूलवतन परमधाम/सर्व आत्माओं का मूल घर/आत्‍मा-परमात्‍मा का निवास स्थान
270 मूसल मिसाइल्स/अणुबम/प्रक्षेपकास्त्र जैसे अन्य विध्वंशकारी अस्त्र-शस्त्र
271 मूसलाधार लगातार/बिना रूके (संकर शब्द)
272 मृगतृष्णा/मरीचिका जो दिखाई तो देता हो पर वास्तव में होता ही नहीं (कभी कभी मैदानों में भी कड़ी धूप पड़ने के समय जल या जल की लहरों की मिथ्या प्रतीति होती है जिसे मृग जल समझकर तृष्णा बुझाने के लिये भटकता है)
273 मेहर करना मेहरबानी, कृपा, अनुग्रह, दया
274 मैं पन देह अभिमान
275 मोचरखाना मार/सजाये खाना
276 मोचरा सजायें
277 माण्‍डवे  नाटकशाला/ रंगमंच
278 मोहताज मोह के ताजधारी/माया के वशीभूत
279 मौलाना मस्ती भगवान की याद में मस्त
280 म्लेच्छ बुद्धि विकारी बुद्धि
281 यादव जिन्होंने खुद के कुल का विनाश स्वयं (बॉम्ब, मिसाईल) बनाकर करगें।  युरोप आदि पश्चिम देश  विज्ञान की शक्ति द्वारा परमाणु अस्त्र शस्त्रों द्वारा अपने ही मानव कुल का विनाश करेगें। विशेष मुरली से - शास्त्रों में दिखाते हैं– लड़ाई में यादव कौरव मारे गये। पाण्डव 5 थे। फिर हिमालय पर जाकर गल मरे। अर्थात 5% आत्माएँ तपस्या द्वारा शरीर के भान को समाप्त कर स्वर्ग अर्थात सतयुग में जाने की अधिकारी बनती हैं।
282 युग सृष्टिचक्र का एक चतुर्थांश/1250 वर्ष
283 युगल जोड़ा/दम्पत्ति/पति-पत्नी में से कोई एक भी
284 रजोगुण राजसिक/उपरोक्त दो युगों से कम गुण विशेषकर द्वापर से जहां ईर्ष्या-द्वेष रूपी रज/धूल प्रारम्भ होती हैं।
285 रडिया मारना चीखना-चिल्लाना
286 रमता जोगी एक जगह जमकर न रहनेवाला। घूमता फिरता। जैसे-रमता जोगी, बहता पानी, इनका कहीं ठिकाना नहीं।
287 रस प्राप्ति का सार/मजा/आनन्द
288 रसम, रस्म परम्परा, रिवाज
289 रसातल बुराई की अति
290 राजयोग परमात्मा को याद करने की सर्वोच्च सहज विधि, जिसमें आंखें खोलकर अपने को आत्मा समझकर परमात्मा के ज्योति स्वरूप का ध्यान किया जाता है।
291 राजाई बादशाही, (विशेषकर सतयुग व त्रेतायुग में राज्य प्राप्त करने के सन्दर्भ में)
292 रायल घराना राजाई घराना/सतयुगी देवी देवता परिवार
293 राहु की दशा श्रीमत का उल्लंघन कर ज्ञान योग की पढ़ाई में फेल होने वाले जसकी वजह से माया का वार होता रहता है जिसकी वजह से हमेशा दुखी रहते।
294 रिंचक मात्र बहुत थोड़ा
295 रूद्र-ज्ञान यज्ञ शिवबाबा ने स्वयं ज्ञान देकर जिस यज्ञ की स्थापना की हो
296 रूद्रमाला शिव की माला जिसमें 08,108,16108 की माला सम्मिलित है
297 रूप बसंत कहानी का मर्म  जब तुम बच्‍चे सतयुग में राजा बन जाओगे, तब तुम पुरानी याददाश्‍त जो अभी ईश्‍वरीय ज्ञान के रूप में है वह भूल जाओगे लेकिन तुम्‍हारे दैवी गुण संस्‍कारो में इमर्ज रहेंगे।
298 रूस्‍तम शूरवीर, माया से विजय पा रहे बच्‍चों को बाबा यह उपाधि/टाइटिल देता है। 
299 रूहरिहान आत्मा की आत्मा से/आत्मा की परमात्मा के साथ बातचीत
300 रूहानियत आत्मिक स्थिति/स्वभाव में स्थिर रहना
301 रूहानी लीला आत्माओं की लीला
302 रे़जगारी छोटे सिक्के
303 रौरव नरक नरक की अति/पुराणों में एक भीषण नरक का नाम जो २१ नरकों में    से पाँचवाँ कहा गया है।
304 लकब उपाधि/ खिताब/ पदवी 
305 लड़ाई वालों का मिसाल कोई सैनिक का उदाहरण
306 लवलीन प्यार में मस्त
307 लेप-छेप कर्मों का खाता
308 लोन लेकर किराये पर
309 लौकिक दुनियावी/सांसारिक रिश्ते/सम्बन्ध
310 वरसी किसी के मरने के बाद हर वर्ष पड़ने वाली तिथि/ मृत का वार्षिक श्राद्ध 
311 वर्सा शिवबाबा से मिलने वाले ज्ञानयोग के बल से सतयुग में प्राप्त होने वाली राजाई अर्थात् राज्याधिकार/परमात्मा/बड़ो से सम्पत्ति का स्वतः बच्चों/ छोटों को मिलना
312 वानप्रस्‍थ अवस्‍था शास्‍त्रों में गृहस्‍थ अवस्‍था के बाद की अवस्‍था जिसमें पति पत्‍नी घर की सम्‍पूर्ण जिम्‍मेदारी पुत्रों को देकर वन में साथ साथ चले जाते हैं। वहां पवित्र रह कर तपस्‍या करते हैं। शिव बाबा ब्रह्मा तन का आधार वानप्रस्‍थ अवस्‍था में लेते हैं- बाबा के ज्ञान में आने वाला व पवित्रता की धारणा करने से चाहे किसी भी उम्र का हो उसकी वानप्रस्‍थ  अवस्‍था शुरू हो जाती है। 
313 वाममार्ग जब से देवताओं ने विकर्म करना शुरू किया तब से वाममार्ग शुरू हुआ
314 वारिस वह पुरुष जो किसी के मरने के पीछे उसकी संपत्ति आदि का स्वामी और उसके ऋण आदि का देनदार हो, उत्तराधिकारी जैसे बेटा अपने पिता की संपत्ति का वारिस होता है।
315 विकर्म जिस कर्म से भविष्य में दुःख का खाता बढें
316 विकर्माजीत काम, क्रोध आदि विकर्मों से दूर/शून्य
317 विचार सागर मंथन अच्छी रीति सोचना समझना
318 विचार सागर मंथन ज्ञान का गहराई से मनन -चिन्तन करना, ज्ञान के सारतत्त्व का मथकर पता लगाना
319 विदेही बिना देह के शरीर से बिल्कुल अलग, शरीर से न्‍यारा 
320 विदेही बाप अशरीरी बाप/शिव परमात्मा
321 विशश  पतित आत्‍मा
322 विनाश काले प्रीतबुद्धि पांडव
323 विनाश काले विपरीत बुद्धि अन्त समय दुर्बुद्धि का आना/ अन्त समय भगवान को भूलना/कौरव
324 विष्णुपुरी विष्णु का निवास स्थान (सूक्ष्मलोक)
325 वृक्षपति  शिवबाबा, सृष्‍टि रूपी कल्‍पवृक्ष का बीज (मूल) परमात्‍मा होने के कारण उसे वृक्षपति कहा जाता है
326 विलायत  पराया देश/दूसरों का देश/ विशेषत: आजकल की बोलचाल में यूरोप, अमेरिका आदि देशों को कहा जाता है।
327 वैजयन्ती पताका, झण्डा, विजयमाला, ज्ञान में अष्टरत्न आत्माओं की माला।
328 वैतरणी नदी एक प्रसिद्ध पौराणिक नदी जो यम के द्वार पर मानी जाती है। यह नदी बहुत तेज बहती है, इसका जल बहूत ही गरम और बदबूदार है और उसमें  ह‍ड्डि‍यॉं, लहु और बाल आदि भरे हुए है। यह भी माना जाना है कि प्राणी को मरने पर पहले यह नदी पार करनी पड़ती, जिसमें उसे बहुत कष्‍ट होता है। परंतु यदि उसने अपनी जीवितावस्‍था में गोदान किया हो, तो वह आसानी से इस नदी के पार उतर जाता है।
329 वैराग्‍य जब मन संसार के आकर्षणों से हट जाता है। संसार की विषयवासना तुच्‍छ प्रतीत होती है और लोग संसार की झंझटे छोड़कर एकान्‍त में रहते और ईश्‍वर का भजन करते हैं। 
330 व्यक्त ब्राह्मण शरीरधारी ब्रह्मा और ब्राह्मण
331 व्यर्थ जो फायदेमंद नहीं हो/अनावश्यक
332 शंख ध्वनि ज्ञान सुनाना
333 शक्ति फर्स्ट माताओं को आगे रखना
334 शफा पाना फायदा/भला होना
335 शमा अग्नि/शिव बाबा को शमा कहा है और हम आत्माएं 'शमा' पर फिदा 'परवाने'
336 शांतिधाम आत्मा-परमात्मा का निवास स्थान
337 शान्ति का घमंड शान्ति/साइलेन्स की शक्ति
338 शायदी  गवाही 
339 शास्त्रमत वेद, पुराण, उपनिषद आदि शास्त्रों पर आधारित मत
340 शिरोमणि सर्वश्रेष्ठ/मुख्य/चोटी
341 शिरोमणि सर्वश्रेष्ठ, भक्तों में नारद और मीरा को भक्तशिरोमणि व ज्ञान में सरस्वती को शिरोमणि कहा गया है।
342 शिवपुरी शिव परमात्मा का निवास स्थान (परमधाम में सबसे ऊपर)
343 शिवोहम् मै ही शिव हूं
344 शुरूड़ तीक्ष्ण बुद्धि/प्रखर
345 शूबीरस स्वर्ग का एक पेय/अमृत
346 शैल  माना सारांश.... यानी शार्ट /सार रूप 
347 शो करना प्रदर्शन करना/ नाम बढ़ाना
348 शो करना/बाजी दिखावा/नाम मान शान के पीछे चलना/प्रसिद्धि के लिए प्रयासरत (संकर/मिश्रित शब्द)
349 श्रीमत शिव परमात्मा के द्वारा उच्चारित मत/विचार
350 संकल्प विचार, किसी विषय में विचारपूर्वक किया हुआ दृढ़ निश्चय (रिज़ोल्यूशन), कार्य करने की वह इच्छा जो मन में उत्पन्न हो, इरादा।
351 सचखण्ड सतयुग
352 सचखण्ड स्वर्ग/सतयुग
353 सतोगुण अच्छे गुणधारी, विशेष रूप से सतयुग फिर 14 कला सम्पन्न त्रेतायुग तक की यह स्थिति।
354 सत्कर्म वह पुरुषार्थी कर्म जो भविष्य/आगे के लिये सुरक्षित हो
355 सत्यं शिवम् सुन्दरम् जो अविनाशी, चिरंतन और शाश्वत है वही सत्य है। सुंदरता का तात्पर्य किसी दैहिक या प्राकृतिक सौंदर्य से नहीं है। वह तो क्षणभंगुर है। सुंदरता वास्तव में पवित्र मन, कल्याणकारी आचार और सुखमय व्यवहार है। इस सुंदरता का चिरंतन स्रोत शिव ही है। शिव शब्द का अर्थ है कल्याणकारी। जो कल्याणकारी है, वही सुंदर है और जो सुंदर है वही सत्य है। इस प्रकार सत्यम्, शिवम्, सुंदरम्, जैसे मंत्र का बीज शिव ही है अर्थात इस सृष्टि की कल्याणकारी शक्ति।
356 सदृश समान
357 सब स्टेशन शान्ति प्राप्त कर आगे भेजने वाला
358 सब्‍ज ताजे हरे भरे फल फूल
359 समजानी समझाना, राय देना, समझदारी/समझ
360 समर्थ फायदेमंद/सम्पन्न
361 समर्थी सम्पन्नता
362 सम्पूर्ण ब्रम्हा सूक्ष्म शरीरधारी वतनवासी ब्रह्मा/साकार में कर्मातीत ब्रह्मा
363 सम्पूर्ण सरस्वती सूक्ष्म शरीरधारी/वतनवासी सरस्वती
364 सर्वोदय लीडर सब पर दया करने वाला
365 साकारपुरी मनुष्यलोक (जिसमें सभी ग्रह-नक्षत्र और जीवधारी, जड़-चेतन आते हैं)
366 साकारी सो अलंकारी देवता (शरीर में रहते सर्वगुण धारी)
367 साक्षी होना गवाह, दृष्टा, देखनेवाला, आत्मा की बुद्धि रूपी आँख से मन के विचार या किसी घटना को  देखनेवाला, मन के विचारों के दृष्टा को साक्षी कहते है। जब हम निर्विचारक बन अपने विचार को देखते हैं तब हम साक्षी होते हैं, जब हम सिर्फ विचार करते है तब हम मन या विचारक होते है। शब्द रहित आत्म बोध, मैं हूँ,  के बोध को साक्षी कहते हैं। (a) उदाहरण के लिए जब आप एक फूल अथवा किसी दृश्य को निर्विचार होकर देखते है तब आप साक्षी है। (b) अथवा जब आप किसी फूल या दृश्य को देखते है तब आपके अंदर उस फूल के बारे में मन में प्रतिक्रिया उठती है की यह गुलाब
(c) का फूल है, तब आप उस प्रतिक्रिया, विचार को भी देखे तो यह हुआ साक्षी।
 
368 सालिग्राम आत्माएं/जल के बहाव से नदी-समुद्र में सबसे चिकना सुन्दर पत्थर जो हिन्दू धर्म में पूज्य
369 सालिग्राम शिव लिंग के साथ जो छोटे छोटे शिवलिंग आकर के पत्थर होते हैं। जो हम ब्राह्मण आत्माओं के प्रतीक हैं।
370 सिजरा फूलों का गुलदस्ता
371 सितम अनर्थ/ आफत/जल्‍म/अत्‍याचार
372 सिरताज बाबा के सिर के ताज/आज्ञाकारी
373 सीरत स्‍वभाव, आदत
374 सुखधाम स्वर्ग/सतयुग
375 सुबह का साई जो सुबह मिलता हो अर्थात् ईश्वर/शिव बाबा
376 सूक्ष्म बहुत छोटा, पतला या बारीक,जो अपनी बारीकी के कारण सबके ध्यान या समझ में जल्दी न आ सके।
377 सूक्ष्म-वतन/लोक स्थूल या साकारी लोक और मूलवतन या परमधाम के बीच का वह स्थान जहाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ फरिश्तों की दुनिया है।
378 सूर्यवंशी सतयुगी देवी देवता
379 सोमरस देवताओं का अमृत
380 सौगात वह वस्तु जो इष्ट जनों को देने के लिये लाई जाय, भेंट, उपहार, तोहफा।
381 सौदागर व्‍यापारी/ व्‍यवसायी/ शिव बाबा मनुष्‍य से देवता बनाने वाला सौदागर है।
382 स्थूल बड़े आकार का, जो सूक्ष्म न हो अर्थात् जो ज्ञानेन्द्रियों द्वारा स्पष्ट दिखाई या समझ में आने योग्य
383 स्वचिन्तन स्वयं का आध्यात्मिक मनन- चिन्तन/आत्मा की समझ
384 स्वदर्शन चक्र अपने सारे चक्र के 84 जन्म के पार्ट को जानने/देखने वाले कैसे एक देह छोड़ दूसरा देह लेते हैं। कभी स्त्री का तो कभी पुरुष का.... कभी उत्तर में तो कभी दक्षिण में.... अपने 84 जन्मों  की माला को देखें.... हम सब इस चक्र के अंदर हीरो पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें हैं। स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात मास्टर नोलेजफूल।
385 स्वदर्शन चक्रधारी स्वयं को आत्मा समझते हुए सृष्टि चक्र और 84 जन्मों  को स्मृति/याद में रहना
386 स्‍वमान  स्‍वयं ही स्‍वयं को सम्‍मान देना
387 हठयोग हठ करके योग लगा जिसमें शरीर को साधने के लिये बड़ी कठिन कठिन मुद्राओं और आसनों आदि का विधान है। विशेष—नेती, धौती आदि क्रियाएँ इसी योग के अंतर्गत हैं।शरीर के भीतर कुंडलिनी, अनेक प्रकार के चक्र तथा मणिपूर आदि स्थान माने गए हैं। मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ इस योग के मुख्य आचार्य हो गए है।
388 हथेली पर बहिश्त हथेली पर/हाथ में स्वर्ग की बादशाही
389 हद का पेपर स्वयं या ब्राह्मण परिवार द्वारा पेपर
390 हद का बाप लौकिक पिता
391 हप कोई वस्तु मुँह में चट से लेकर होंठ बंद करना जैसे—हप से खा गया। मुहावरा—हप कर जाना- झट से मुँह में डालकर खा जाना।
392 हम सो, सो हम भक्ति मार्ग में आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा। पर ज्ञान मार्ग में शिव बाबा ने समझाया यह अर्थ बिल्कुल गलत है। हम सो का सही अर्थ है हम देवता, क्षत्रिय, वैश्य सो शूद्र। अभी हम सो ब्राह्मण बने हैं सो फिर से देवता बनने के लिये।
393 हमजिन्स बन्धु, मित्र
394 हाज़िर संमुख, उपस्थित, सामने आया हुआ, मौजूद, विद्यमान।
395 हुजूर, हजूर बहुत बड़े लोगों के प्रति संबोधन का शब्द, मुरली में शिव परमात्मा के लिये सम्बोधन
396 हुज्जत व्यर्थ का तर्क, फजूल की दलील, तकरार, कहासुनी।
397 हुण्‍डी  इसके द्वार लेनदेन का व्‍यवहार 
398 होवनहार सम्भावित/भविष्य में होने वाला
399 दूरादेशी आत्‍मायें और परमात्‍मा दूर देश (परमधाम) की रहने वाली, दूरदर्शी