मम्मा मुरली मधुबन


                            आत्मा और परमात्मा में अंतर और परमात्मा का कर्तव्
रिकॉर्ड:-
छोड़ भी दे आकाश सिंहासन

परमपिता परमात्मा, अभी उसको जानते हो ना, कि हमारे परम प्रिय, परम पिता परमात्मा। परमात्मा अक्षर सीधा कहने से परमात्मा, परंतु परम आत्मा... अगर उसको यानि शब्द को अलग करेंगे तो फिर परम आत्मा। यानी है वह भी आत्मा परंतु परम, जैसे आत्मा में कहा जाता है कि भाई यह महान आत्मा फिर मिलाकर कहेंगे महात्मा, तो फिर उसका है तो सही महान आत्मा, पुण्य आत्मा, पाप आत्मा, देखो आत्मा के ऊपर सब आता है ना, महान भी आत्मा फिर पाप भी आत्मा तो पाप भी आत्मा के ऊपर लगता है। पुण्य आत्मा वह पुण्य करती है तो पुण्य का भी आत्मा। तो यह आत्मा के ऊपर ही पाप, पुण्य लगता है और उसी हिसाब से फिर वह महान आत्मा या पाप आत्मा बनती है। परंतु उसको कहेंगे एक ही सोल जिसको कहा ही जाता है सुप्रीम सौल अंग्रेजी में भी। उसको फिर हिंदी में कहेंगे परम आत्मा। परम आत्मा बहुत नहीं है, महान आत्माएं बहुत कह सकते हैं, भाई महान आत्माए । परमात्माए बहुत नहीं। परमात्मा एक सबसे ऊंचे से ऊंचा। तो यह भी चीज समझने की है कि परमात्मा भी है आत्मा परंतु उसको परम कहते हैं इसी हिसाब से कि हम सब आत्माओं में अथवा आत्माओं से उनका जो कुछ पार्ट है आत्मा में, वह भिन्न है। हम आत्माओं का भी भिन्न-भिन्न है, एक ना मिले दूसरे से देखो मिलता है? अगर सब कोई का मिले ना तो फिर शक्ल एक जैसी हो, सब कुछ एक जैसा हो, नहीं परंतु कोई कभी ऐसा देखा जिसका सब कुछ एक जैसा होगा, नहीं! भले कहीं कभी दो बालक इकट्ठे भी जन्मते है ना, शक्ल में थोड़ी मुसाबत होती है, परंतु तो भी संस्कारों के हिसाब से कुछ ना कुछ फर्क तो जरूर रहता ही है इसीलिए हर एक आत्मा का भिन्न-भिन्न पार्ट है ही, लेकिन आत्माओं में यह जरूर है कि सबका फिर जन्म मरण में आना है फिर भले कर करके कोई बहुत में बहुत आत्माएं 84 जन्म, फिर कोई 80 जन्म कोई 70 जन्म कोई नंबरवार जन्मों का फर्क, यह इतनी बातें हो सकती हैं लेकिन जन्म मरण में तो आती है ना, हां। तो यह सभी बातें बैठकर करके बाप समझाते हैं। तो आत्माएं सब आती है जन्म मरण में, लेकिन मैं ही एक हूं जो जन्म मरण रहित गाया जाता हूं इसीलिए कि मेरा आना जो है ना वह मनुष्यों की आत्माओं के सदृश्य नहीं है, वह अपने कर्म से जन्म मरण में आती हैं, मैं जो हूं ना वह इस तरह नहीं आता हूं, मैं आता तो प्रकृति का, कोई के शरीर का आधार लेकर करके। आ कर के फिर नॉलेज सुनाता हूं। तो मेरा आना, मेरा पार्ट बजाना और ढंग से हो गया ना सबसे। इसीलिए सब बात में मेरा कर्तव्य भी सब आत्माओं से महान है, भले क्राइस्ट आया, बुद्ध आया, सब आया, यह भी आत्माएं आई जिनको धर्म पिताएँ कहा जाता है, यानी धर्म का स्थापक, यानी धर्म का क्रिएटर, यानी धर्म अपना जैसे क्राइस्ट धर्म का क्रिएटर कौन हुआ? भाई क्राइस्ट, इसीलिए उसको कहेंगे धर्म पिता, यानी धर्म का रचता, लेकिन दुनिया का रचता नहीं कहेंगे उसको, धर्म का रचता तो क्रिएटर, किसको कहेंगे धर्म के रचयिता को नहीं कहेंगे, क्रिएटर वर्ल्ड का क्रिएटर तो फिर उसको कहेंगे ना, इसी नाते उसका काम सब में भिन्न हो गया। इसीलिए उनको गॉड या परमात्मा यह सब कहने में आता है। तो यह सभी चीजें समझने की है कि उस परमात्मा का सभी आत्माओं से भिन्न पार्ट कैसे हैं। तो यह सभी चीजें बैठ कर कर के खुद ही वह परमात्मा समझाते हैं, तभी तो देखो गीतों में कहते हैं ना कि तू आ, रूप बदल के आ, बुलाते हैं उसको कि आ अभी। आकाश सिंहासन छोड़....अभी आकाश में नहीं रहता है, परंतु ऊपर है ना बिचारे ऊपर का नॉलेज तो जानते नहीं है कि वह कहां रहने वाला है, परंतु रहने वाला है ब्रह्म महतत्व में, यह भी समझने की बात है जैसे हम आकाश तत्व में, इस इधर में हम मनुष्य रहते हैं लेकिन आकाश के पार जिसको ब्रह्म तत्व कहो या अंग्रेजी में उसको कहा जाता है इंफिनिट लाइट। तो इन्फिनेट लाइट में, जिसको फिर हिंदी में कहा जाता है अखंड ज्योति, तो उसमें फिर आत्मा और परमात्मा का निवास है, जिसको ब्रह्मांड भी कहे यानी ब्रह्मांड में यह जो अंडे सदृश्य स्टार लाइक हुए बिंदी लाइक कहो, यह आत्माएं और परमात्मा निवास करते हैं इसीलिए उसको कहते हैं निराकारी दुनिया कहो, ब्रह्मांड कहो या उनको अंग्रेजी में भी कहते हैं इनकॉरपोरियल वर्ल्ड। तो यह सभी चीजें समझने की है कि हां वह आत्मा और परमात्मा का निवास, अभी कहते हैं तू आ रूप बदल के यहां आएगा कारपोरियल में, तो जरूर कारपोरियल फॉर्म लेगा ना, इसीलिए उनको रूप बदलना पड़ेगा तो कहते हैं अभी आ, जैसे हम आत्माएं भी निरंकारी से यहां इस कारपोरियल में आया करती हैं अभी हम तो फस गए सब, अभी तू आ, तू आ कर कर के हम सभी को छुड़ा, क्योंकि बंधन मुक्त करना माया की बॉन्डेज से यह तुम ही छुड़ा सकते हो इसीलिए उसे बुलाते हैं कि तू आ, इस माया की बाँडेज से हमें छुड़ा। तो अभी छुड़ाने वाले को कहते हैं तू आ, अभी रूप बदलकर के, यहां आएगा तो ऐसे ही आएगा ना कारपोरियल में तो उसको भी कारपोरियल बनना पड़ेगा ना। यहाँ कैसे निराकार आत्मा क्या करेंगे नहीं, उसको भी कॉरपोरियल फॉर्म लेना पड़ेगा इसीलिए कहते हैं रूप बदल निराकार से साकार बन, शरीर को धारण करके तुम भी यहां आकर करके और हमारा अभी यह काम कर, क्योंकि समर्थ तो वही है ना, सर्वशक्तिमान। अभी हमारी तो शक्ति चली गई, हमारे में तो वह शक्ति रही नहीं, हमको तो माया ने पकड़ लिया। तभी बाप को कहते हैं कि अभी आ, हमको आकर के दुख और अशांति से छुड़ा। इस माया की बॉन्डेज से छुड़ा तो हम इस माया की बॉन्डेज से छूटें। तो अभी बाप आकर करके कहते हैं, की अभी आया हूं, बुलाते तो थे भक्ति मार्ग में... की आ.. आ.. ये देखो भक्ति मार्ग के गीत है ना.. तो अभी यहां मैं जो आया हूं गाया भी है कहा भी है कि जब जब ऐसा टाइम होता है तब तब ही मैं आता हूं, बाकी ऐसा नहीं कि मेरा पार्ट हमेशा ही चलता है जैसे कई समझते हैं कि परमात्मा का पार्ट,.... इस यदा यदा का फिर कहीं अर्थ ऐसे भी,.....कई गीताओं में भी ऐसे ही शायद अर्थ..... किन्होने बैठ करके एसा स्वीकार किया है... उन्होंने ऐसा समझते हैं कि यदा यदा ही धर्मस्य का अर्थ है की जब जब अधर्म होता है तो उसका मतलब है की जहां जहां, जिस जिस में, सर्वव्यापी जो बनाया न...वो कहेंगे जहां जहां, जिस जिस में अधर्म यानी पाप कर्म का होता है जभी, तभी तभी मैं आकर करके उसमें, फिर वह जो जागृति कुछ आती है या ले आता हूं तो मैं आकर के वह करता हूं क्योंकि सर्वव्यापी बनाया है ना परमात्मा को तो उसके काम को भी सर्वव्यापी रखेंगे ना वो। भाई टाइम है परमात्मा का, एक ही समय है जिस टाइम पर आकर करके,.... अधर्म का भी एक ही टाइम है ऐसे नहीं है कि जभी जभी, जहां-जहां, जिसमें जिसमें जिसमें अधर्म होता है तब तब मैं आकर करके उसमें उसमें वह जागृति लेता हूं तो वह तो जब भी, जहां, जिसमें,... वह तो चलता ही रहा परंतु नहीं, बाप कहते हैं मैं तो दुनिया का क्रिएटर हूं ना इसीलिए मेरा काम है कि जब दुनिया अधर्मी बनती है तब आकर करके मैं अधर्मी दुनिया का नाश करता हूं, एक आदमी के अधर्म की बात नहीं है, कभी किसका अधर्म नाश करूं, कभी किसका अधर्म नाश करूँ, कभी किसका करू, ऐसे तो मेरी करते करते करते करते कभी दुनिया धर्म आत्माओं की बने ही नहीं। उसकी माना सदा ही दुनिया अधरमियों की ही रहेंगी, ऐसे ही हो जाएगा ना कि कभी किसका, कभी किसका, तो इसका मतलब है अधर्मी भी चले आएँगे और दुनिया भी अधर्मी रहती चलेंगी। परंतु नहीं यह भी सब चीजें समझने की है की दुनिया भी कोई टाइम में धर्मात्मा है। यानी धर्म आत्माओं की दुनिया, जिसको ही तो स्वर्ग कहते हैं ना। यानी स्वर्ग अक्षर जो आता है हेवेन, तो हेवन वर्ल्ड को कहा जाता है, ऐसे नहीं कि एक मनुष्य हेवेन में हो तो साथ दूसरे हेल में हों। हेल एंड हेवेन एक साथ तो नहीं,.. एक मनुष्य की तो बात नहीं है ना, हेवन वर्ल्ड है, हेल वर्ल्ड है, तो उसकी माना यानी सब हेल में ही होंगे ना, ऐसे थोड़ी कहेंगे कोई हेल में, कोई हेवेन में उसको हेल् कहेंगे ना कि.... । हेल वर्ल्ड से ताल्लुक रखने की चीज आती है शब्द और हेवेन भी वर्ल्ड से। तो हेवेन्ली वर्ल्ड कहेंगे , हेवेन वर्ल्ड, उसको कहा भी जाता है हेवेन्ली गॉडफादर। तो देखो यह सभी चीजें हैं, कई इनका अर्थ समझते हैं हवेली गॉडफादर का मतलब वह भी हेवेन में रहता है ना इसीलिए हेवेनली है अरे हेवेन में रहता है तो रहने दो, हमारा क्या करता है? नहीं! वह हमारे लिए हेवेन बनाता है जो हम हेल में है ना। ऐसे थोड़ी हम हेल में और वह हेवेन में ही बैठा हो और हम हेल में ही पड़े रहे। ऐसा कभी बाप देखा, जो बाप कहे मैं तो अपना मौज करता रहूं और बच्चे दुखी रहे, क्या भी रहे, नहीं! बाप कहता है मैं बाप ही तभी हूं तुम्हारा, जभी कि तुम्हारे लिए ही तो मैं सुख बनाता हूं। मैं तो हूं ही दुख सुख से न्यारा, इसीलिए मैं दुख में आता हूं, ना मेरे लिए सुख की बात है न दुःख की । दुख में जो आते हैं उन्हों के लिए सुख की बात है। हेल में जो है उनके लिए हेवेन की बात है। मैं न हेल में आता हूं ना हेवेन की मेरे लिए बात है, लेकिन हेवेन मैं बनाता हूं इसीलिए मुझे कहते हो हवेली गॉडफादर यानी हेवेन के बनाने वाला। बाकी ऐसे नहीं हेवेन में बैठने या हेवेन को भोगने वाला नहीं है। हेवेनली गॉडफादर का अर्थ ही है हेवेन को बनाने वाला यानी हेल की दुनिया से हेवेन की दुनिया बनाया है इसिस्लिये उसको कहते हैं... बनाने वाला हैं न और काम, कर्तव्य के ऊपर,.. बाकी वह कहे की मैं बैठा हूं हेवेन में, मेरी महिमा है, तो तू बैठा है तो क्या है हां? बैठा है तो बैठने दो हम तो हेल में पड़े हैं, खाली तुम्हारे लिए गाते रहे भाई तुम तो हेवेन में बैठा है तो क्या? तू हेवन में बैठा रहे और हम हेल...... ऐसे बाप को तो कोई पूछे भी नहीं, पूछेगा कोई? अभी यहां पर भी हां लौकिक रिश्ते में भी कोई बाप बैठा हो और बच्चे को ना पूछे तो कहेंगे कि तू बैठा है सुखी तो हमारे लिए क्या किया? नहीं, परंतु उसने हमारे लिए कुछ किया है, तब तो हम उसे याद करते हैं ना। तो उसने किया है, काम किया है। क्या काम किया है कि हमारे लिए हेवेन बनाया है अपने लिए नहीं। अपने लिए तो उन को न हेवेन की न हेल की जरूरत है। तो जहां हेल है वहां ही हेवेन है तो हेल एंड हेवेन इस दुनिया में कॉरपोरियल वर्ल्ड में हम मनुष्यों के लिए बात है। बाकी वह तो बनाने वाला है ना इसलिए कहते हैं कि मैं आता हूं तुम्हारा काम करने के लिए, अपनी निराकारी दुनिया से उतरता हूँ। अवतरण गाते हो ना मेरा कि अभी अवतार ले, अभी उतर तो मुझे कहते हैं उतर,... तो कहां से उतरूँ? अवतार का मतलब ही है अवतरित यानी उतरन। अभी कहां से उतरूँ तो जरूर कोई मेरी जगह है ना अगर सर्वव्यापी बैठा होता तो मैं तो उतरा ही बैठा हूं, वहां फिर उतरने की क्या बात है? फिर अवतरित हो कहने की क्या बात है? फिर अवतार क्यों मानते हैं? नहीं, अगर मैं बैठा ही हूं सर्वव्यापी तो बैठा ही हूं ना और मेरे बैठे हुए तुम बच्चे दुखी होते जाओ होते जाओ बच्चे तो मेरे बैठने का भी कोई महत्व नहीं है। आजकल भी कॉमन तरह से कोई मिनिस्टर अपनी पोस्ट पर बैठा हो और कोई जनता को दुख होता है तो कहते हैं भाई तुम्हारे बैठे हम दुखी हैं, तुम्हारे बैठने का फायदा ही क्या है? भाई उठ, उतरो,...देखो नेहरू को कहते हैं ना जभी कुछ होते हैं हंगामें तो कहते हैं तुम्हारे रहते ये सब हो रहा है भाई तुम उतरो और बहुत नारे लगाते थे क्यों? तेरे बैठे हम इतने दुखी हैं, तू तेरी प्राइम मिनिस्टर होने का फायदा ही क्या है। तो उसी आधार से कुछ ना कुछ थोड़ा थोड़ा थमते थमते,... तो यह सब हमारे,.. हम जनता दुखी बैठी हैं तो ऐसे होता है ना। तो यह भी बाप बैठा हो सर्वव्यापी और हम उसके बैठे-बैठे दुखी होते जाएं तो हम तो उसको कहेंगे की उतरो उतरो, जानते हो कि वह बैठा ही क्यों है? यहां यह तुम्हारे बैठने से फायदा ही क्या है? हम दुखी होते जाएं और तू बैठा सर्वव्यापी, ये देखता ही रहता है क्यों बच्चे तुम्हारे दुखी होते ही जाते हैं और दुखी बढ़ते जाते हैं फिर तेरे बैठने का फायदा ही क्या है? तो जब भी कॉमन में भी कोई सीट किसी को मिलती हैं और वो उस सीट का काम नहीं करता है तो उसको कहते हैं कि उतरो उतरो तब भगवान् इतनी सीटें लेकर बैठा हुआ है सबका तो खाली देखने के लिए, यहां बच्चे दुखी होते रहे और सबकी सीट में बैठा है, बैठा है सीट में अंदर बाहर क्या करता है? हम दुखी होते रहते हैं, इसीलिए कहते हैं देखो मेरी यह इंसल्ट करते हैं तो जानते नहीं हो कि मैं बैठा नहीं हूं। मैं बैठा होता और तुम दुखी होते? कभी नहीं! मेरे बैठे और बच्चे दुखी हों ये तो इम्पॉसिबल। मैं तो जभी आता हूं तभी तो देखो तुम्हारी दुनिया सुख की बनाता हूं, मेरी प्रेजेंसी में देखो ये दुनिया सुख की बनता हूँ तभी तो देखो तुम याद करते हो अभी तू प्रेजेंट हो,... अवतरित का मतलब ही है प्रेजेंट हो तो फिर तुम कैसे समझते हो की मैं ओमनी प्रेजेंट हूँ ? अगर ओमनीप्रेजेंट होता तो तेरे पास दुख अशांति या ये पाप कर्म सभी यह बातें होती ही नहीं पाप कर्म है तो फिर दुख भी है इसीलिए यह सभी अभी है माया जिनको विकार कहेंगे तो अभी ये तेरे में मया सर्वव्यापी है सबमें मैं थोड़ी, मैं तो आता हूं तुमको इस तुम्हारे दुख से छुड़ाने के लिए अथवा इस माया की बोंडेज से छुड़ाने के लिए ऐसा नहीं है कि सब में,.. सबका स्थान मेरा स्थान है, नहीं, मैं ऐसी चीज नहीं हूं। जैसे तुम आत्मा को भी अपना अपना शरीर है ना, ऐसे थोड़ी ही आत्मा सब में बैठी हो। है? तुम आत्मा सब में हो? तुम अपने शरीर में हो, तो तुम अपने शरीर में हो, तुम अपने शरीर में हो। हर एक आत्मा को अपना शरीर है। अपने अपने शरीर के कर्म के हिसाब में,.... भले एक शरीर छोड़े फिर दूसरा लिया फिर तीसरा लिया ऐसे कई शरीर लेते हैं लेकिन वह आत्मा का अपने शरीर का हिसाब है ना। ऐसे तो नहीं है ना की एक ही आत्मा सभी में है? नहीं! एक ही आत्मा है आत्मा हर एक की अपनी-अपनी है और अपने अनेक जन्मों का अपना उनका पार्ट है। इसी तरह से बाप कहते हैं मेरा भी तो अपना पार्ट है ना, ऐसे थोड़ी सब का जो पार्ट है वह मेरा पार्ट है तो यह सभी चीजें बैठकर करके समझाते हैं इसलिए कहते हैं यह जो सर्वव्यापी की बात है ना यह बेचारे ना जानने के कारण कि भाई परमात्मा क्या है, क्या है वह न जानने के कारण उन्होंने कह दिया की सब परमात्मा है न जाना ना, कोई चीज नहीं जानी जाती है तो क्या कहते हैं की हाँ समझो यही समझ लो, तो उन्होंने भी ऐसा तुक्का लगा लिया की हाँ ये सब परमात्मा समझ लो ।अभी सब परमात्मा क्या? कीड़े मकोड़े फलाना फलाना, पत्थर पत्थर में, वो न जानने के कारण वो कहते हैं सब में परमात्मा है तो कण-कण में परमात्मा है, पत्थर पठार में परमात्मा है इसीलिए देखो सर्वव्यापी बात नहीं कितना रोड़ा कर दिया । बाप कहते हैं मुझे देखो तुमने कण-कण, पत्थर पत्थर,... अपने लिए तो फिर भी रखा 84 लाख योनियों में,.. चलो भाई जनावर, पशु, पक्षी,.. । मुझे तो 84 लाख से भी बाहर ले गए । कण कण कण कण और सब ज़रा ज़रा गिनती करो तो कितने हो जाएंगे हां 84 लाख से भी ज्यादा हो जाएंगे कर दिया एकदम, धकेल दिया सबमे पीस दिया एकदम अपने लिए फिर भी अंदाज रखा 84 लाख, है तो 84 लाख भी नहीं । 84 जन्म है तेरे बहुत में बहुत । परंतु अपने लिए फिर भी 84 लाख कहते हो आत्मा के लिए और परमात्मा के लिए तो फिर कण कण कण कण गली गली में मेरे लिए तो एकदम मुझे तो सब में ढकेल दिया एकदम । इसीलिए देखो बात लाया था एक आर्य समाजी ही मिला था उसने कहा नहीं परमात्मा सर्वव्यापी है तो यहां पर एक ब्रम्हाकुमारी मिली थी । उसने पूछा था, बातचीत हुई थी की सर्वव्यापी है तो सब में? कहा सब में एकदम? विष्टा में भी? हा कहा हां विष्टा में भी परमात्मा, देखो कहते हैं विष्टा में भी परमात्मा परन्तु याद क्यों करते हो? कहा ये बस इसको याद रखने का है, वो तो कोई भी चीज आगे रख कर के याद करो, जभी सबमे है तो देखो ख़ास बात तो रही नहीं न। तो देखो कितने मूंझे पड़े हैं बड़े बड़े विद्वान । बड़े बड़े आचार्य, बड़े बड़े पंडित देखो सब मूंझे पड़े हैं । परमात्मा के विषय के ऊपर बेचारे कैसे जान सकते हैं इसीलिए परमात्मा कहते हैं मेरी विषय जो है न, मेरी विषय कोई मनुष्य नहीं जान सकता है । मेरी विषय के ऊपर में ही आकर के समझाता हूँ। और मेरे पास ही नोलेज है । में क्या हूँ और उसके साथ फिर तू क्या है क्योंकि तू तो मेरी क्रिएशन है न, ऐसे थोड़ी है की मैं तेरी क्रिएशन हूँ, तू मुझे जानेंगा, नहीं । क्योंकि क्रिएटर ही तो क्रिएशन को जानेंगा न। बाप ही तो बच्चे को जानेगा ना। इसीलिए बाप मैं हूं और मेरा तो कोई बाप है ही नहीं। इसीलिए मैं अपने को भी और तेरे को भी,... तुझे भी मैं जानूंगा इसीलिए तेरा परिचय और मैं अपना परिचय खुद आ करके देता हूं। तो मेरी विषय और तेरी विषय पर और कोई समझा नहीं सकता है। इसीलिए तेरी विषय पर तू ही समझाए नहीं! तू तो क्रिएशन है ना। तेरा क्रिएटर,.... जैसे बाप अपने बच्चे का पूरा यथार्थ बातों का समझा सकते हैं इसीलिए जैसे कैसे जन्मा लय हुआ वगैरा सब बातों का,...तो इसीलिए बाप कहते हैं यह सभी में,.. तुम्हारी भी बातें और अपनी भी बातें,.. मैं समझाता हूं, इसीलिए क्रिएटर ही मैं हूं और मैं ही जानता हूं। और तुम गाते भी ऐसे हो कि हां तू जानी जाननहार है, नॉलेज फुल है, यह सभी महिमा मेरी करते हो ना। नॉलेज फुल सब थोड़ी होंगे, अगर सर्वव्यापी है तो सब नॉलेज फुल। उनके गुण भी सब में होने चाहिए न, बाकी बैठा है गुण है ही नहीं? बैठ के क्या करता है? परमात्मा अवगुणी थोड़ी है की भाई सब में बैठा हो, और सब मनुष्य एसे चोर चकार यह सब करें तो यह क्या यह सब अवगुण क्या? यह मनुष्य? नहीं तो फिर परमात्मा है तो फिर वह गुण भी होने चाहिए ना। परमात्मा बैठकर क्या करता है इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे यह सभी बातें समझने की है मैं अभी नहीं हूं । इसमें माया 5 विकार प्रवेश है तेरे में। की मैं नहीं हूं मैं तो आता हूं, मैं आकर करके तुमको ज्ञान देता हूं। ऐसे भी नहीं कि मैं सभी को अपने अंदर से ज्ञान दे दूंगा, ऐसा भी नहीं समझना है कि मैं आऊंगा तो सभी में प्रवेश होकर के अंदर अंदर में, सर्वव्यापी होकर ज्ञान दूंगा, नहीं! मैं आता हूं, मैं ज्ञान देता हूं इसीलिए तो भगवानुवाच हैं न, देखो शास्त्र है ना यादगार है तो भगवान ने वाच किया है, बोला है। उसने बोलकर नॉलेज सुनाया है ऐसे नहीं अंदर अंदर से सुनाया है। तो उस यादगार से कि भगवान का ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ है उसकी यादगार भी दिखाते हैं कि उसने बोला। अगर बोला नहीं होता, अंदर अंदर से होता तो प्रेरणा का क्या बनता? प्रेरणा से थोड़ी शास्त्र बनता है। यह प्रेरणा क्या? क्राइस्ट ने प्रेरणा से बोला क्या? फिर बाइबल कैसे बना? बोला न, बाइबल बोलकर बना, नॉलेज समझाया। जो कुछ जो समझाया जो कुछ किया उसका उन्होंने भाई बैठकर की बाइबिल बनाया। तो जैसे जो जो भी धर्म स्थापक आए, जो जो भी उन्होंने वर्शंस बोले तो वर्सेस बोले ना, बोला। बाकी अंदर अंदर से प्रेरणा या सर्वव्यापी हो कर करके अंदर अंदर से उसको अच्छा कर दिया तो अच्छा कर दिया तो फिर उसके लिए शास्त्र, यादगार या भगवानुवाच या इतनी ज्ञान की बैठकर करके बातों का तो कोई बात ही नहीं है ना। तो यह सभी चीजें बैठकर करके बाप समझाते हैं। इसीलिए कहते हैं अभी मेरी भी बात है, मैं भी आऊंगा समझाने के लिए तो मुझे भी कहां से तो समझाना पड़ेगा ना, तो समझाने के लिए बोलना पड़ेगा, नहीं तो कैसे समझाऊं? समझाने के लिए आंखों से तो नहीं समझाऊंगा न क्या, कैसे क्या समझाऊंगा? वह तो बोलना पड़ेगा ना, समझानी तो देनी पड़ती है ना, अभी टॉपिक, नोलेज देनी पड़ती है तो टीच करना पड़ेगा ना, समझाना पड़ेगा, डायरेक्टली नॉलेजल देनी पड़ती है तो टीच करना पड़ता है ना। तो ये भी तो मैं टीचर बनकर के करके आकर के टीच करूँगा न बाकी समझाऊंगा कैसे? क्या आंखों से या अंदर अंदर से या क्या करूं, कोई तरीका बताओ,... कोई राय दो की क्या करूं। तो समझाऊंगा तो जरूर बोल कर समझाऊंगा और दूसरे कोई समझाने का और कोई तरीका तो होता ही नहीं है और समझाना होता ही है बोलने से। और बोलने के लिए जरूर मुझे मुख लेना पड़ेगा बाकी आकाश के ऊपर से बोलूं या अंदर अंदर से बोलूँ, अंदर अन्दर से क्या बोलूँगा? अन्दर से बोलना नहीं होता है। बोलना ऐसा होता है फिर उसको सुनना होता है फिर उसको धारण करना होता है। कोई भी टीचिंग्स ऐसी ही होती है तो मैं टीच करता हूं ना। अंदर अंदर की तो बात ही नहीं। वह समझते हैं कि अंदर अंदर आवाज आती है, अंदर अंदर बोलते हैं किसी के विचारों को, कुछ अन्दर वो बोलते हैं विचार आया था, नहीं वो तो स्र्र्धि बात है और जो शाश्त्र भी बनाया है तो भगवान् ने सामने बैठकर के सुनाया है न। अन्दर अन्दर से अर्जुन को प्रेरणा हुई है क्या? बैठकर के अंदर अन्दर से आवाज दी है क्या? नॉलेज दिया न, वो तो बड़े करके फॉरेन में बनाया है शाश्त्र तो भाई एक अर्जुन को थोडी दिया वो तो उसने स्कूल जैसे बकायदे जैसे नर नारियों का समझाना होता है समझाया। तो ये सारी चीजे, जो रोज के आने वाले हो समझते हो, तो क्योंकि ये बहुत कालों की सर्वव्यापी की बात बुद्धि में पड़ी हुई है न तो इन सब बातों को अच्छी तरह से समझना है। वो तो गीत भी कहते हैं न की आ तो वो ओमनीप्रेजेंट नहीं है न ओम्निप्रेसेंत माना वो तो फिर आ खा से आए? जब प्रेजेंट बैठा है फिर आए क्यों ? फिर तो आने की बात ही नहीं, उसको कहते हैं आ तो उसकी माना नहीं है तो बरोबर बाप कहते हैं मैं आता हूँ तभी आ कर करके तुम्हे ये नॉलेज देकर के तुम्हारी दुनिया सुख शांति की बनाता हूँ । तो ये सभी बातें समझने की हैं जोअब कहते हैं की अभी मैं आया हूँ न अभी मैं आया हूँ तो मेरी टीचिंग्स लो न। तो मेरी टीचिंग्स लो, उसको सुनो और फिर उसको अमल में लाओ प्रेक्टिचा में जो कहता हूँ। ऐसे नहीं की खाली सुनने की ही हैं प्रेक्टिकल में लाना जो कहता हूँ वो करो, करो फिर तुम स्वर्ग के अधिकारी बनेंगे और ऐसे सुख को पाएँगे ठीक है न। तो अभी उसको अमल में लाने के लिए अथवा प्रेक्टिकल में लाने के लिए क्रिएशन करना है। है सारा मदार प्रेक्टिकल लाइफ के ऊपर। लाइफ में क्या लाना है उसका भी डिटेल्स समझाते रहते हैं। अच्छा आज गुरूवार है इसीलिए थोडा टाइम उसको भी देना है तो फिर आप लोगों को कोई छुटटी वुट्टी तो नहीं होंगी देरी होंगी । अच्छा ये सभी बातों को समझ कर कर के अपना पुरुषार्थ ऐसा रखो । जो बाप का फरमान है जो बाप की आज्ञा है उसका पालन करो आगया और फरमान का तो मालुम है न बी होली बी योगी, शोर्ट में इतना कहेंगे इसका टॉपिक ले करके इसका विस्तार करेंगे की होली कैसे योगी कैसे तो फिर उसका विस्तार भी है परन्तु रोज सुनते समझते हो होली कैसे योगी कैसे बस उसे प्रेक्टिकल लाइफ में उस चीज की धारणा करो। उसको कहते भी हैं होली फादर, पवित्र बनाने वाला , बनाने वाला है न तभी उसके टाईटलस हैं ये हेवेनलीगॉड फादर, नॉलेजफुल ओसियन ऑफ़ नोलेज, तो ये सब महिमा है उसकी उसके कर्तव्य की बाकि अपने लिए जानता हो अपने लिए हेवेन में बैठा हो, अपने लिए ये सब हो तो हमारा क्या है, कोई बैठा है खाली और हम उसकी महिमा करे, हमारे लिए कुछ करता है तभी महिमा है। वैसे कॉमन तरह से भी मनुष्य मनुष्य के लिए कुछ करते हैं,...भाई गाँधी ने हमारे लिए कुछ किया , देश के लिए कुछ भाई जनता के लिए किया तभी तो हम कहते हैं भाई गांधी ऐसा था वैसा था उसकी महिमा, तो जब कुछ करते हैं तभी उसकी महिमा है न, तो भगवान् ने भी कुछ किया होगा तभी तो उसकी महिआ है न, ऐसे ही थोड़े तो ये सभी चीजों को अच्छी तरह से समझना है और समझ कर कर के अपने बाप से अभी वो वर्सा पाना है। वर्सा पाना है, ये तो बुद्धि में हैं न हर एक के दो बाप हैं , तीन बाप भी कह सकते हैं। किस हिसाब से ? बताओ गोविन्द किस हिसाब से तीन बाप है। दो तो नहीं हैं। तीन, तीन बताओ कैसे हैं ? नहीं दादा को भी अभी ब्रह्मा रखेंगे न। देखो एक तो है आत्मा का पिता वो तो है निराकार परमात्मा, दूसरा तो शरीर का पिता, और तीसरा ब्रह्मा नई ह्यूमेनिटी तो उनको भी रख सकते हैं जैसे वो धर्म के पिताएं हैं न। जैसे क्राइस्ट आया, अपना अपना धर्म क्रिएट किया तो अभी यह है न्यू ह्यूमैनिटी का, इसको, मनुष्य को रखा ना। तो इसके द्वारा ब्रह्मा तन से आ कर करके यह ब्रह्मन क्रिएट किया। तो उसी हिसाब से तो कहेंगे ना, वह बाप और वह दादा उसको फिर ग्रैंडफादर कहेंगे। तो हमको वर्सा मिलता है ग्रैंडफादर का। पोत्रे का हक़ होता है न, हाँ पोत्रे का दादे के उपर होता है, दादे की मिलकियत के उपर। तो हमारा दादा हो गया, ग्रैंडफादर उसको कहेंगे और वो फादर। क्योंकि वो आ करके उनके द्वारा न्यू ह्यूमेनिटी का यह रचना रचते हैं। तो मनुष्य रखा तो उसको ऐसे कहेंगे, ब्रह्मा को भी कहते हैं ना, ब्रह्मा अभी क्रिएटर परंतु क्रिएटर उसको कहेंगे वर्ल्ड का परन्तु उनके द्वारा न्यू ह्यूमेनिटी का आरंभ कराते हैं इसीलिए उसको फादर...वो ग्रैंड फादर, दादा तो उसी हिसाब से कहेंगे की भाई हाँ हम दादे का वर्सा लेते हैं बाकी याद उनको दादे को करना है क्योंकि वर्सा तो उनसे लेना है याद उसको करना है। ये सभी थोड़ी बातें हैं जो आते हो रोज ये ज्ञान ऐसे हैं चिट चेट जैसे, बड़ी रमणीक बातें हैं मीठी बातें हैं , उनमें भी कोई मूंझने की नहीं हैं परंतु यह समझना है कि किस हिसाब से । अच्छा ये बोम्बे। अच्छा ये बोम्बे और पूना, अभी संगम हैं न। बोम्बे जाना है पूने से विदाई लेनी है। आज लास्ट गुरुवार है तो संगम बिठाया है। अच्छा चलो याद करो। चलो का मतलब है टांगे से नहीं चलने का है उसे याद करो बुद्धि को अभी उधर लगाओ, बाप की याद में। तो उसी याद में रहने से फायदा है फिर बाबा इनका जिसका भी होंगा, हो सकता है कभी किसका भी रथ खींच सकता है। रथ क्या यानि इनको दिखएंगा दिल रुपी दर्पण में कहीं खींच के नहीं ले जाएंगा। यहीं हैं, परन्तु इसको दिल रुपी दर्पण में जैसे बतलाया न आगरे का ताज देखो दिल्ली का उसमे.....बाबा हमको दिखाई दे कुछ दिखाने का होंगा तो जिसका पार्ट है। देखो आपको मालूम हैं न हमें कोई इसका एक्सपीरियंस नहीं है लेकिन हम जानते हैं और ये कोई नई बात यहाँ नहीं है भक्ति मार्ग में भी बहुत जाते हैं, कोई ऐसे होंगे जिन्हों को अपना अनुभव भी होंगा बहुत जाते हैं कृष्ण के.... अब विदाई लेना, आज लास्ट जैसे बतलाया ना आगरे का ताज देखो दिल्ली का जगह दूर-दूर बनी है तो दिखाएंगे कुछ आने कारुवार है न अब कहना पुणे वालों के लिए कुछ भी, कोई डायरेक्शन तो कोई आप लोगों का भी कोई मेसेज वेसेज हो तो बतादो कोई आस पास कुछ या कुछ, बाकी तो फरमान का मालूम ही हैं, जो जितना धारण करेंगा पालन करेंगा, वो अपना कल्याण करेंगा। अच्छा चलो गो सून,...हाँ? (याद प्यार देना है) हाँ क्यों नहीं याद प्यार तो देना ही है और एसा तो उनके धाम तक भागना है, पुरुषार्थ में अपने को उसके धाम तक पहुंचाना का ऐसा लायक ओने को बनाना है और ऐसा पुरुषार्थ तीव्र अपना रखना है। अच्छा अच्छा तो पुरुषार्थ रखेंगे वो आगे आगे फिर आते जाएँगे, पुरुसर्थ से आगे आना है न, अच्छा चलो अभी टाइम होते हैं और लो का मालूम हैं, आप लोग खेल पाल में जुट जाएँगे हम तो यहाँ झुटका खाएंगे, न तो आप तो मजे में, आप तो देखते रहेंगे हम तो भाई देखते कुछ नहीं हैं आप तो खेल में आए खाली अपना आए रिस्पेक्ट देके जैसे कोई खिलाता है न, उसको नहीं हाँ, ऑफर की जाती है न, ये रि स्पेक्ट उसको याद कर करके इसमें फायदा ही है कोई नुक्सान तो है नहीं, वो बतलाता था न हमारा वो राम की हम खाने पर बैठते हैं तो उसको याद करते हैं की हाँ तुम देते हैं तो हम करते हैं याद कर कर के तो ये रिस्पेक्ट है ।और उसको याद करके खाने से क्या होता है की हाँ उस खाने का भी हमको ताकत मिलती है खली हमारा खून नहीं बनेंन्गा, लेकिन रूहानी भी बल, वो कहते हैं न की विचारों के ऊपर भी कहां पान का असर पड़ता है, जैसा अन्न वैसा मन, तो हम उस बाप की याद से उस अन्न को पवित्र बना कर करके खाते हैं तो उसका बल हमारे आत्मा को भी मिलता है जिससे तो हम प्योरीफाईड बनते हैं। तो ये सभी बातें हैं जिसको समझना है, मूंझ्ना नहीं हैं, चलो, श्वेद, तुम्हारे बाजू मे बिठाए हैं इसलिए थोड़ा वो भी खिचेंगी, थोड़ा हम भी बाबा को कहेंगे की बाबा इनको थोडा घुमाव फिराओ। कोई बात नहीं, ये माया का देश है न कोई ओना तो नहीं है तो कहते हैं उड़ पंछी यहाँ से। ये पराया देश है, ये अपना नहीं है अपना तो स्वर्ग धाम, और शांति धाम । कल पूंछा था न गति सद्गति । एक गति धाम अर्थात शांति धाम दूसरा सद्गति धाम अथवा स्वर्ग। तो अपने धाम हैं वो, ये तो है ही दुख्धाम ये पराया ये माया का ये रावण का है हाँ तो ये पराया है न अपना नहीं है अब इस परे देश से अभी उड़ पंछी, अभी चलो अपने देश, तो आना अभी देश का ले चलने वाला अभी आया है ये अपर्य है ये रावन का है देश अभी इससे थके हैं थके हो न ? तो अभी चलो अभी उडो। उडो उडो ।(गीत बजता है ) जोगिया कोई कफनी नहीं ये ही ज्ञान की योग की जो धारणा रखी है, माया से अपने को, जो अपने देश का वेश है । अपने देश का वेश कौन सा है? बताओ, हमारे बहादुर शेर बताओ, हमारे देश का वेश कौन सा है ? वो ही कौनसा ? वो ही कौन सा ? वो ही कौन सा ? अपने देश का वेश कौन सा है ? अपना हाँ, अपना कौन ? ये अपना कौन कहती है ? आत्मा, आत्मा के देश का वेश कौन सा है? परमात्मा तो परमात्मा है, अपना वेश कौन सा है ? अपना वेश माना हम आत्मा नंगी आई थी, उस समय शरीर तो नहीं था न पहले, तो कहते हैं नंगा आए नंगा जाना है तो अभी यानी प्लेन हो जाओ आत्मा जैसे प्लेन, शरीर से डीटेच हो जाओ। तो अपना जो देश का वेश है न अभी उसी वेश में आ जाओ, ये वेश उतारो, इससे डीटेच हो जाओ ये तो यहाँ लिया न, परन्तु यहाँ पहले अच्छा था, अभी लेते लेते लेते लेते ये शरीर भी हाँ पुराना हो गया, देखो दुःख रोग जितना सब ये सब, अभी कहते हैं इससे डिटेच हो जाओ और फिर मेरे देश में चलो, जैसे नंगे थे प्लेन हो जाओ, आत्मा प्लेन पीछे फिर आएँगे तो तुमको शरीर भी जो मिलेंगा न इस देश का वेश, ये है इस देश का वेश शरीर , उस देश का तो वेश नहीं है न , उस देश का प्लेन आत्मा अभी कहते हैं उस देश का हो जाओ। अपने को ऐसा समझो जैसे नंगे आए थे अभी ऐसा, अपनी बुद्धहि उसमे रखो तो अंत मति सो गति फिर जब आएँगे तो शरीर भी अच्छा मिलेंगा, ठीक है न। तो अभी अपने शांति धाम, पहले तो शांति धाम जाना है न, पीछे सुख धाम। पहले कहाँ जाएँगे शांति में या सुख में ? कैसे ? कैसे ? नहीं अपना जो देश है पहले पहले जाना है शांतिधाम में यानी पहले आत्मा हो जाना है न, आत्मा के धाम में जाना है पीछे फिर आत्मा आ करके सुखधाम यानी शरीर फिर लेंगे जो सतयुग में, उसको फिर सुखधाम कहेंगे। वो पीछे लेंगे अभी तो पहले जाना है न वापस जहां से आए हैं अपने घर को, स्वीट होम को। तो वो स्वीट होम जहां हम साइलेंस में आत्माएं हैं तो हमको उधर जाना है तो पहले शांतिधाम जाना है यानि वाया शांति धाम से फिर सुखधाम आएँगे। अभी आते हो तो जैसे होता है न अभी बोम्बे से जाना है हमको इसी तरह से वाया शांति धाम से फिर जाएँगे सुखधाम। तो वाया होना है। शांतिधाम वाया करना है, हिसाब हैं सब हाँ ये सब चिट चेटहै परन्तु ज्ञान है इन सब में। आज आगे बैठा है न बहादुर शेर तो इसीलिए ....क्या है जीवन लाल है क्या, अच्छा.. । कैसे राम चन्द्र? ये तो देखो शांतिधाम का बहुत अच्छा निवासी है । यहाँ बैठे बैठता है... शांतिधाम... । तो ऐसे बैठे हुए आएँगे जरूर सुखधाम में, सुखधाम में भी आएँगे न? हाँ रामचंद्र जी? खाली मुक्ति तो नहीं चाहिए न? जीवन्मुक्ति भी चाहिए न ? वो तो है, वो तो जन्मसिद्ध अधिकार है। पक्का है। कई कहते हैं हम खली मुक्ति में बैठे रहें, आएं नहीं फिर, परन्तु आना भी जरुर है। उसी के पीछे होकर पहले क्यूँ नहीं आएं, जीवन मुक्ति के टाइम ये तो अकाल की बात है न, उतरना ना तो जरूर है, पीछे जभी दुनिया पुरानी होए, नए घर का क्यों नहीं सुख लेवें, अभी हमारा बाप, हमारा तुम्हारा सबका बाप, अभी अपना बाप है ऐसे कहें,.. तो हम सबका पिता अभी आया है, और अभी हमारी दुनिया सुख की बनाता है, इसीलिए कहते हैं पहले चलो मेरे धाम, जहां से आए थे, तब तलक यहाँ सफाई हो जाएगी। ये सब डिस्ट्रक्शन से सब साफ़ सूफ हो करके, फिर अच्छा यहाँ हो जाएंगा फिर आकर करके तुम अच्छी दुनिया का सुख पाना। अभी चलो, जाना तो सबको है वैसे भी ले तो जाऊंगा। परन्तु अभी आया हूँ मेरे से चलने में, कोई फ़िक्र नहीं होंगी, चल पड़ेंगे। इसीलिए कहते हैं अभी मेरे साथ चलो। में जो ये ज्ञान और योग की धारणा कराऊँ, उसी धारणा से आराम से चलेंगे। तो अच्छी बात है न बाप अच्छी राय देते हैं, और अच्छा साथ देता है, मदद करता है, खाली कहते हैं थोड़ी हिम्मत करो। हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा। तो करना चाहिए न, कैसा पारसी बाबु ? हाँ बराबर, ये जहाँगीर शेर, सबको चलना है हाँ, कोई भी हो, सबका बाप आया है हाँ, इस्लामी, बुद्धिज़्म सभी का सबका।