मम्मा मुरली मधुबन           

 दुखों का कारण क्या है

 


रिकॉर्ड:
तेरे द्वार खड़ा भगवान………..

ये हम बच्चों का बेहद का बाप, दर्द जानकर करके उसका इलाज करने के लिए आया है, आया है ना। हमारे पास कौन सा दर्द है । दर्द का मतलब है दुःख अशांति । आज की दुनिया में दुःख अशांति है ना । तो दुःख अशांति क्यों है, किस कारण है, उसी दुःख अशांति के दर्द को जानने वाला एक ही है । क्योंकि उसके पास ही इलाज है । वही हमें सदा सुख और शांति देने वाला बाप है । इसीलिए उसे कहते हैं सुखदाता, शांतिदाता तो उस दर्द को भी तो वही जानेगा ना। मनुष्य इसका इलाज नहीं कर सकेंगे। मनुष्य टेंपरेरी सुख शांति, टेंपरेरी के लिए कुछ थोड़ा बहुत मिल जाए वह बातें अलग है, लेकिन यह सदा काल की, सदा काल का मतलब ही है की फोर जनरेशंस, आदि मध्य अंत, आदि मध्य अंत का भी मतलब है शरीर लेते, शरीर में रहते, शरीर छोड़ते सदा सुख, उसको कहा जाता है सदा का सुख । तो ऐसा सुख फोर जनरेशंस के लिए सिवाय परमात्मा के और कोई नहीं दे सकता है । इसीलिए बाप कहते हैं कि तुम्हारे इस दर्द को कि तुम्हारी यह दुःख अशांति क्यों आई है तुम्हारे पास, किसने तुम्हारे को यह दर्द दिया है वह मैं जानता हूँ । मैंने नहीं दिया है यह भगवान के लिए ऊपर रख लेते हैं ना भगवान ने ही ये किया है, भगवान ने ही दुःख दर्द दिया है, वो कहते हैं मैं कैसे कर सकता हूँ, मैं कैसे बच्चों को दर्द दूँगा । ऐसे कोई बाप देखा कभी कि बच्चों को दुखी करे । जब ये लौकिक बाप भी कभी बच्चों को दुखी नहीं कर सकता है मैं तो परलौकिक बाप हूँ तो परलोकिक बाप कैसे बच्चों को दु:खी करेगा तो आप भी तो बाप हो । देखो कितने बाप यहाँ बैठे हैं, आप कभी अपने बच्चों को दु:खी करेंगे, करते हो? अपनी तरफ से कोशिश नहीं करेंगे दुखी करें । हाँ कर्म के हिसाब से किसी को दुःख होगा तो उसमें आप क्या करेंगे । आप तो और ही कोशिश करेंगे, बीमार पड़ेगा बच्चा इलाज करेंगे, कोई दुःख आएगा उसके निवारण का यत्न करेंगे बाकी ऐसे तो नहीं कि बाप बच्चे को दुःख देगा । तो जबकि लौकिक बाप भी, शरीर का जन्म देने वाला पिता भी कभी अपने बच्चे को दुःख देने का सोचता नहीं है । वह सदा यही सोचता है कि बच्चा सुखी बने, बच्चा लायक बने, बच्चा होशियार हो, सदा सुखी रहे ऐसे ही बाप की भावना रहती है ना । तो जभी शरीर के जन्म लेने वाले पिता भी ऐसी भावना रखते हैं तो वह तो हमारे रूहानी आत्मा का रूहानी पिता है, उसको ही कहा जाता है सच्चा पिता, वह हमारे परम पिता हम को कैसे दुःख देगा । तो वह दुःख नहीं देता है । यह हम को दुःख अथवा दर्द किसने दिया है, माया ने । अभी तो वह बुद्धि में आ गई है ना बात की हम को यह दुःख दर्द किसने दिया, माया ने । माया कौन है अभी जान गए हो ना अच्छी तरह से । माया का अर्थ भी अच्छी तरह से बुद्धि में आ गया है ये फाइव वाइसेस इसको कहेंगे माया । माया कोई शरीर को नहीं कहेंगे, माया कोई प्रकृति तत्वों को नहीं कहेंगे, पाँच प्रकृति तत्व अलग चीज है उनको माया नहीं कहेंगे । कई उनको माया समझते हैं कि जो भी इन आँखों से देखते हैं ना यह शरीर देखते हैं इस आँखों से यह भी माया और जो भी कुछ इन आँखों से दिखाई पड़ता है संसार का यह सब माया है इसीलिए कई इसको ऐसा समझते हैं कि कहीं ऐसा कोई ठिकाना हो जो इस शरीर में ही ना आवें । ऐसा कहीं लीन हो जाएँ जहाँ से लौटे ही नहीं, ऐसे-ऐसे उपाय बिचारे सोचते हैं परंतु यह बात नहीं है । यह शरीर कोई माया नहीं है । शरीर में तो देवता है भी थे । शरीर तो भगवान भी लेता है तभी तो उसका अवतरण गाया जाता है ना, तो उसको भी प्रकृति का आधार लेना पड़ता है तो आत्मा को भी शरीर का आधार लेना ही पड़ता है । तो वह तो बात ही नहीं है, इसको माया नहीं कहेंगे । माया एक अलग चीज है वह कौन सी है यह फाइव वॉयसेस । तो यह पांच विकार माया है । यह कोई ऐसी जरूरी चीज नहीं है की इनके बिना हमारा जीवन नहीं है या इनके बिना हमारी दुनिया नहीं चलेंगी, यह तो हमारे दुःख के ही कारण है । जब से माया का टाइम आया, राज चला तब से दुःख होना शुरू हुआ । बढ़ते-बढ़ते आज देखो यह रावण राज, वो रावण बढ़ता जाता है, वो रावण को बढ़ाते उसकी ऍफ़ईजी को जलाते हैं ना बड़े बड़े, तो अभी वह बरस-बरस जलाते हैं । बाप कहते हैं कि बरस-बरस जलाते रहते हैं परंतु जलता नहीं है पाँच विकार जलते नहीं है । वह तो बरस-बरस जलाते रहते हैं, परंतु नहीं यह तो प्रैक्टिकल जलाना है ना अर्थात पाँचों विकारों को खत्म करना है इसीलिए कहते हैं इसको नाश करने के लिए मैं जानता हूँ कि इसको कैसे नाश करो । तो इसका उपाय मैं आकर के बतलाता हूँ तो अभी उपाय बुद्धि में अच्छी तरीके से आ गया है ना कि इसका उपाय कौन सा है । उपाय भी सहज है इसके लिए कोई हठयोग, प्राणायाम चढ़ाना या कोई भी कुछ भी नहीं, बड़ा इजी कि बस उस बाप के हो जाओ, जैसे लौकिक तरीके से भी कोई धनवान हो और धनवान कहे कि मुझे बच्चा नहीं है मेरा बच्चा बनो तो बस जिस समय बच्चा बना तो वह भी धनवान हो जाएगा ना । बच्चा भी कहेगा मैं भी लखपति । बस कोई लखपति का बच्चा बना तो वह भी उसी सेकंड कहेगा मैं भी लखपति क्योंकि मैं भी लखपति तो देखो सेकंड में कोई गरीब का बच्चा, साहूकार का गोद का बच्चा, अडॉप्टेड चिल्ड्रन बनने से वो भी लखपति । तो बाप कहते हैं कि बच्चे मैं भी तो तुम्हारा असली पिता हूँ ना । तुमने मेरे से रिश्ता, रिलेशन छोड़ दिया है, अभी फिर मेरे से रिलेशन रखो । मेरे बच्चे बनने से, जो मेरी प्रॉपर्टी है उसका तू भी हकदार हो जाएगा और ऐसे हकदार बनने से तू सदा सुख शान्ति को प्राप्त करेंगे । क्योंकि मेरा तो हक तुम को सुख शांति का मिलेगा न, मेरा कोई दुःख का थोड़ी है सुख का है इसीलिए कहते हैं अभी मेरे से रिलेशन रखो । अभी रिलेशन रखने में कोई देरी है कि उसके लिए हठ योग प्राणायाम यह सब करना । रिलेशन का मतलब ही है कि अभी बाप का होकर के चलो तो फिर बाप देखो एवरप्योर है ना तो हमें प्योर होकर चलना चाहिए ना । तो बाप क्या है बाप की क्वालीफिकेशंस कौन-कौन सी हैं तो बच्चे की क्वालीफिकेशंस कौन सी होनी चाहिए तो हम बाप को देखें और फिर अपने को देखें तो फॉलो करे ना कि हमारा बाप है एवरप्योर है तो हम इम्प्योर से प्योर तो होएं ना । तो हमको भी ऐसा ही बाप के समान अथवा बाप से जो कुछ बल मिलता है उसी को धारण करने का है तो यह सभी चीजें हैं जो बुद्धि में रख कर के और अपनी धारणा को आगे बढ़ाना है, अभी इसमें क्या डिफिकल्टी है, कुछ भी नहीं । बाप क्या मेहनत देगा कि बच्चे हठयोग करो, आसन लगाओ, कमर सीधी करके बैठो यह करो वह करो, बाप क्या डिफिकल्टी देगा । बाप तो कहते हैं बच्चे बुद्धि तेरी टेढ़ी हो गई है उसको सीधा करो , उसको अपना मेरे में लगाओ । यह बुद्धि तेरी टेढ़ी हो गई है किधर हो गई है माया की तरफ चली गई है अथवा पाँच विकारों की तरफ चली गई है, अभी उधर से बुद्धि को निकाल करके, वह गीता में भी कहा है ना, देह सहित देह के सब संबंधों से बुद्धि हटा कर करके, यह विकारी जो भी कुछ देह है और विकारी देह का संबंध है, इन सब से बुद्धि हटा करके अभी मेरे से लगाओ तो खाली बुद्धि को हटाओ ना, कहा ना मनमनाभव, तो मनमनाभव का अर्थ क्या, कि मन को मेरे में लगाओ । तो उधर से मन को निकाल कर के मन को मेरे में लगा । तो खाली मन को बदलना है ना, उधर से निकालकर उधर लगाने की बात है । बाकी इसमें आसन या कमर या कोई प्राणायाम इन्हीं सब बातों की हठ योग साधना की कोई बात नहीं है । तो बाप कहते हैं मेरा योग, जिस योगबल से मैंने तुमको इतना ऊँच बनाया और यह तुम्हारे दुःख दर्द नाश किए, वह देखो कितना सहज है तो अभी यह सहज ज्ञान और सहज योग जिसको राजयोग कहने में आता ही है तो इसका अपना पूरा पुरुषार्थ रखते और बाप से अपना जन्मसिद्ध अधिकार पाने का पुरुषार्थ रखो । और बाप अपनी भी बायोग्राफी बहुत सहज समझाते हैं, उसको भी समझने में कोई ऐसी कठिनाई नहीं है । बाप कहते हैं मैं तो निराकार हूँ लेकिन मैं आकर के जो कर्तव्य करता हूँ तो मैं कैसे कर्तव्य करता हूँ तो वह भी तो मेरी बायोग्राफी समझो ना कि मेरे कर्तव्य क्या है । तो कर्तव्य की दुनिया यही है मुझे भी कर्तव्य करने के लिए इस दुनिया में आकर के करना पड़ेगा, ऐसा नहीं कि ऊपर बैठकर करूँ, ऊपर तो है ही साइलेंस, मैं भी सोल साइलेंस, उधर ऊपर की तो बात ही नहीं है ना । मुझे भी आकर के काम करना है । मेरी भी जो महिमा है ज्ञानदाता, ज्ञान का सागर तो इस दुनिया की बात है ना, जहाँ अज्ञान है तो मैं वहां आ करके ज्ञान दूँगा ना तो उसके लिए तो मुझे आना पड़ेगा ना मनुष्य को समझाने के लिए तो समझाने के लिए मुझे शरीर लेना पड़ेगा ना, कैसे समझाऊं, नहीं तो कोई रास्ता बतलाओ, भगवान को राय दो कैसे समझाएं, उनका कोई और तरीका आता है किसको तो बताओ । नहीं, सिवाय हम मनुष्य को समझाने के लिए क्योंकि उसको हमको समझाना है ना, हम बेसमझ बन गए हैं तो हम को समझाने के लिए भी तो मनुष्य चाहिए ना । हम को समझाने के लिए कोई कच्छ अवतार, मच्छ अवतार वह कैसे समझाएंगे, उसमें आए तो कैसे समझाएं । हम मनुष्यों को समझाना है ना, बेसमझ हम बने हैं, हमारी बेसमझी से तो हमारा सब कुछ खत्म हो गया है । इसीलिए बाप कहते हैं तुम ऊँचा बनो फिर तो तुम्हारी सारी प्रकृति ऊँची बन जाएगी इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे तुमको ही तो समझना है ना, तो तुम्हारे समझाने के लिए भी तो मुझे तुम्हारे जैसा बनना पड़ेगा ना यानि मनुष्य तन का आधार लेना पड़ेगा ना इसीलिए मनुष्य का आधार लेकर आता हूँ और आता हूँ उसी तन में जिसका नाम रखता हूँ ब्रह्मा तो उसमें भी कोई मूंझने की बात नहीं । कई बिचारे मूंझ जाते हैं कि ब्रह्मा में परमात्मा आता है, यह कैसे, तभी किस में आवे, कैसे समझावे यह भी तो बड़ा क्वेश्चन है ना । वह जो सुप्रीम सोल नॉलेजफुल है तो भला वह नॉलेज कैसे देवें । बिना ओरगंस के तो बोलना तो आत्मा बिना शरीर के तो बोल नहीं सकती है ना । आप भी आत्मा शरीर के आधार से बोलती हो ना, अगर आत्मा निकल जाए तो फिर आत्मा बोलती है? ना आत्मा बोलती है ना शरीर बोलता है । दोनों अलग होते हैं तो ना शरीर काम का है ना आत्मा काम की है । जब आत्मा शरीर का साथ लेती है तब तो देखो आत्मा जीवात्मा बनती है , जीव कहा जाता है शरीर को, बॉडी को और आत्मा आत्मा । तो जभी जीवात्मा यानी दो, जीव और आत्मा, शरीर और आत्मा मिलते हैं तभी देखो हाँ बोलते हो, चलते हो, सब कुछ करते हो तो दोनों का इकट्ठा होना चाहिए ना, तो आत्मा अलग शरीर अलग तो दोनों काम के नहीं, ना ही आत्मा कुछ अकेली बिना शरीर के क्या करेगी और ना शरीर कुछ कर सकता है, शरीर डेड बॉडी पड़ी है कुछ करती है नहीं करती है वह काम की है नहीं तभी तो उसको जला देते हैं या कब्रदाखिल कर देते हैं जो आपने रसम के मुझ में तो दो का चाहिए ना । तो परमात्मा को भी अगर नॉलेज देना है तो कैसे देंगे उसको भी तो शरीर चाहिए ना । अभी वह किसका शरीर लेवे तो यह भी समझने की बात है ना, वह भी फैसला होना चाहिए ना कि भाई किसका शरीर लेवे । तो वह कहते हैं मैं आता ही हूँ अधर्म के टाइम पर जभी पतित दुनिया है तो पतित दुनिया में मुझे कोई श्री कृष्ण जैसा सर्वगुण संपन्न, सोलह कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी शरीर कैसे मिलेगा, ऐसे मनुष्य ही नहीं है ना । आता ही हूँ यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, कि जब जब धर्म की हानि है तो उसी समय में ऐसे धर्मात्माएं देव आत्माएँ सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण है ही कहाँ, वही तो बोलते हैं मैं बनाने में आता हूँ ना, ऐसे मनुष्य तो मैं बनाने आता हूँ ना, तो जो चीज में बनाने आता हूँ वह चीज पहले कैसे होगी? होंगे ही नहीं ना ऐसे मनुष्य, इसीलिए मैं आऊँगा तो मुझे कौन सा शरीर मिलेगा जरूर पतित दुनिया में पतित शरीर वाला ही मिलेगा न इसीलिए मैं आता हूँ इसमें और उसका नाम रखता हूँ ब्रह्मा और उसको भी बैठ के पावन बनाता हूँ उसके साथ फिर दूसरों को भी पावन बनाता हूँ । तो उस मनुष्य को भी पवन बनाता हूँ जिसके तन में आता हूँ, उनकी भी तो आत्मा है ना अपनी, उसको भी प्यूरीफाइड बनाता हूँ, उसके साथ-साथ दूसरों को भी प्यूरीफाइड बनाता हूँ फिर ये इजी है न समझने में उसमें मूंझने की भी कोई बात नहीं है क्योंकि वो परमात्मा भी तो सोल है ना जैसे कहीं आपने देखा होगा इम्प्योर सोल किसमें आती है जिसको भूत कहते हैं । कोई देखे हैं, कोई पढ़े होंगे कि किसमें इम्प्योर सोल भूत प्रवेश करते हैं, बोलते हैं । तो जैसे इमप्योर सोल प्रवेश करती है, वैसे ही यह प्योर सोल एवरप्योर तो यह भी प्रवेश करके फिर आ करके नॉलेज बतलाते हैं । जब इमप्योर सोल प्रवेश कर सकती हैं तो क्या प्योर और वह भी एवरप्योर वह नहीं कर सकता है, क्यों नहीं कर सकता है । इसीलिए बाप कहते हैं मैं आता हूँ और आकर के ये नॉलेज देता हूँ लेकिन ये शरीर मेरा नहीं है । मैं टेम्पोरेरी शरीर का आधार लेता हूँ । शरीर तो उसका है न, जिस आत्मा का शरीर है । मैं खाली टेंपरेरी लोन पर, किराए पर समझो, लोन पर समझो, उधार थोड़े टाइम के लिए लेता हूँ और उसी उधार का उसको फायदा देता हूँ की यह नॉलेज जो सुनाता हूँ तो वह भी आत्मा सुनती है कानों के द्वारा, वह भी तो बैठी है ना आत्मा, मैं भी हूँ । मैं सुनाता हूँ इस ऑर्गन से वह इस ऑर्गन से सुनती है, उसी में ही । फिर मैं सुनाता हूँ वह भी सुनती है और दूसरे भी तुम भी, तुम आत्माएं सब इन ओरगंस के थ्रू, कान के थ्रू सुनते हो । इसमें मूंझने की क्या बात है । नहीं तो परमात्मा कैसे सुनावे, कोई बतलाए दूसरा कोई बुद्धि में किसको आता हो तो सुनाए कि वह कैसे सुनाएं । ऊपर से आकाशवाणी की तरह, वह समझते हैं ऊपर से ऐसे ही आवाज करें, ऊपर से कैसे आवाज करेगा, क्या आवाज कैसे ऊपर से आएगा । ऊपर से कैसे, आवाज तो मुख से होगा ना । तो इसीलिए बाप कहते हैं कि बच्चे इसी सभी बातों को समझो, इसमें मूंझने की कोई बात ही नहीं है । तो यह सभी चीजें समझने की है इसीलिए कहते हैं मैं उसी तन में आता हूँ और उसका भी हिसाब समझाते हैं कि यह आत्मा वो ही है जो पहले पहले से श्री लक्ष्मी श्री नारायण जिसको कहेंगे वही फिर अपना 84 का चक्कर पूरा करके, अभी यह फिर इसका वह 84वां जन्म है । तो यह लास्ट बर्थ है किसका, श्री नारायण का जो सर्वगुण संपन्न था, वह सतयुग त्रेता द्वापर जन्म काटते अभी ये कलयुग में यह उसका 84वां जन्म । तो अभी उसके 84वें जन्म में आ करके उसकी आत्मा को भी प्यूरीफाइड बनाता हूँ जो जा करके फिर श्री नारायण बनती है भविष्य में और फिर जो दूसरे भी जो सुनते हैं वह भी उसी प्रालब्ध को पाते हैं तो यह तो सीधी बात है यह सारा चक्कर है ना जिस सभी बातों को समझना है । तो यह बातें समझने की है अभी ऐसे भी नहीं कि विष्णु के शरीर में आवे या शंकर के आए क्योंकि शंकर तो है ही आकारी उसको तो यहाँ मनुष्य चाहिए ना, शंकर तो इधर का है ही नहीं, वह तो है आकार जो सिर्फ अभी विनाश के लिए ये उनका विनाश का रूप दिखाते हैं और विष्णु तो है ही साक्षात्कार, ये चार भुजा वाला कोई मनुष्य होता ही नहीं है, यह सिर्फ साक्षात्कार में यह सिंबल साक्षात्कार होता है दो भुजा नारी की दो भुजा नर की कि तुम ऐसे देवी-देवता बनते हो । एम एंड ऑब्जेक्ट का साक्षात्कार बाकी यह है मनुष्य क्योंकि आप देखेंगे चित्रों में भी ब्रह्मा को दाढ़ी दिखलाते है, उसको नहीं दिखलाते हैं तो उसको थोड़ा ह्यूमन का निशान देते हैं । आप देखेंगे ना वह ब्रह्मा की दाढ़ी का दिखलाते हैं । कहाँ क्लीनसेव भी रखते होंगे, कहाँ दाढ़ी भी रखते हैं लेकिन विष्णु और शंकर को कभी दाढ़ी नहीं देते हैं तो उसको ह्यूमन की कुछ निशानी देते हैं तो उसका माना है प्रजापिता ब्रह्मा, ना कि प्रजापिता विष्णु या प्रजापिता शंकर । प्रजापिता ब्रह्मा तो वह हुमन तो इसीलिए बाप कहते हैं मुझे ह्यूमन में आना है जिसका मैं नाम रखता हूँ ब्रह्मा क्योंकि उसके द्वारा न्यू ह्यूमेनिटी अथवा न्यू जेनरेशंस का आरंभ करता हूँ इसीलिए ब्रह्मा द क्रिएटर, यानी ब्रह्मा से नई रचना रचवाता हूँ इसीलिए उसका नाम ब्रह्मा रखता हूँ और ब्रह्मा तो वैसे हर एक बाप है ना वह अपने घर का ब्रह्मा है, ऐसे कहने में आता है । अर्थ के हिसाब से तो सब ब्रह्मा है जिस तरह बाप जो घर का है स्त्री को ले आया फिर बच्चे पैदा किए तो घर का ब्रह्मा हो गया है क्योंकि क्रिएटर हो गया न । क्रिएटर को ब्रम्हा कहा जाता है बाकी ब्रह्मा कोई तीन मुख वाला तीन सिर वाला या ऐसी ऐसी बातें जो बना दिया है शास्त्रकारों ने और चित्रकारों ने वह कोई बात नहीं है तो यह सभी चीजों को समझना है । वह जो त्रिमूर्ति सुनाया ना अभी त्रिमूर्ति माना ब्रह्मा विष्णु शंकर यह तीन है ना तो उन तीन को मिलाकर वह तीन सिर दे दिए हैं तो उनको समझा ब्रह्मा तो ब्रह्मा को तीन सर रख दिया तो ब्रह्मा त्रिमूर्ति कर दिया है । अभी परमात्मा है निराकार और वह आया है ब्रह्मा तन में, वह बात ना समझने के कारण वो ब्रह्मा को वो तीन सर लगा दिए हैं और त्रिमूर्ति है परमात्मा यानी तीनो रूपों से ब्रह्मा विष्णु शंकर से यह डिस्ट्रक्शन और कंस्ट्रक्शन और फिर जिस दुनिया की कंस्ट्रक्शन करता है उसकी पालना भी यह एम एंड ऑब्जेक्ट यह बैठकर के बाप ने समझाया है तो बातें ऐसी हैं लेकिन इन बातों को यथार्थ रीति से ना समझने के कारण बिचारों को फिर इन सभी बातों में जैसे आया जिसको तो उसमें भी कोई मूंझने की बात नहीं है । अभी फिर भी कोई बात नहीं समझ में आती है किसको कोई नए हैं तो फिर आकर करके समझना चाहिए । बाकी इसमें भी कोई ना होना चाहिए कि इसको क्यों ब्रह्मा बनाया है । ब्रह्मा तो ऐसे तो हर एक ब्रह्मा है वह अर्थ समझना है ना ब्रह्मा का अर्थ क्या है । ब्रह्मा कहा जाता है क्रियेटर को तो ऐसे घर का क्रिएटर तो ऐसे तो हर एक बाप है ही परन्तु ये है न्यू ह्यूमैनिटी का क्रिएटर इसी मनुष्य तन में आकर कि परमात्मा मनुष्य के द्वारा क्रिएट कराएगा ना ह्यूमैनिटी को ह्यूमन के द्वारा ही करेगा ना इसीलिए परमात्मा उसमें आ करके यह प्योरिटी का नॉलेज देता है इसीलिए उसको कहते हैं मुख वंशावली । मुख वंशावली का यह अर्थ यह नहीं है कि मुख से आदमी निकल आए वो कई ऐसे समझते हैं की ब्रह्मा के मुख से आदमी निकले हैं, मुख से आदमी कैसे निकलेगा? नहीं, मुख वंशावली का मतलब है मुख से जो नॉलेज सुनाई प्योरिटी का । तो अभी देखो हम मुख वंशावली है ना परंतु हम मुख से थोड़ी निकले हैं । नहीं, मुख वंशावली माना जो मुख द्वारा परमात्मा ने नॉलेज सुनाया उसकी धारणा से हम प्योर बने हैं तो अभी प्योरिटी की जनरेशंस में चलेंगे तो हमने प्योरिटी कहाँ से ली? मुख द्वारा नॉलेज से, इसीलिए हम प्योरिटी की संतान हो गई ना यानी प्योरिटी में आने वाले तो वो हो गई मुख वंशावली नॉलेज यानी जिस मुख से परमात्मा ने नॉलेज सुनाया नॉलेज से हम प्योर होकर के प्योरिटी के जनरेशन्स में चलते हैं तो मुख वंशावली का अर्थ यह है परन्तु वो न समझने के कारण कई समझते हैं की मुख से आदमी शायद निकले हैं इसीलिए ऐसी ऐसी बातें बहुत शास्त्रों में रखी हैं । वो कहते हैं कि एक वह था करण वो कानों से निकला था । वह करण कानों से निकला वो मुख वंशावली का अर्थ समझे की मुख से आदमी निकले । वह कहते हैं एक उसका नासिक का उसने छींकी तो उससे आदमी निकल आया ऐसी-ऐसी शास्त्रों में बातें लगाई हुई है परंतु ऐसे नहीं है कोई नाक से निकलेगा या कान से निकलेगा या मुख से, नहीं, इन सभी का अर्थ है तो यह सभी बातों को बैठ कर के बाप समझाते हैं बाकी कैसे और क्या यह सभी यथार्थ बातें अभी बाप समझाते हैं जिसको समझ कर के और प्रैक्टिकल लाइफ को बनाना है । तो अभी समझ गए हो ना सभी बातों को यथार्थ क्या है और यथार्थ हमारे जीवन के लिए क्या है इन सब बातों की रोशनी बैठकर के बाप देते हैं उसी को ले करके अपना पुरुषार्थ ऐसा रखने का है बाकी इसमें कुछ मूंझने का नहीं है अच्छा कुछ सुनाना था शायद इस बच्ची को ।
यह आप लोगों को इंग्लिश में समझाएंगी, देखो छोटी है और देखो बातें बड़ी सुनाएंगी कहते हैं ना मुख छोटा बात बड़ी तो आप लोगों को बड़ी बड़ी बातें वर्ल्ड हिस्ट्री एंड ज्योग्राफी समझाएंगी ।


He has jyotirlingam form. He lives in incorporial world. He is blissful, knowledgeful and peaceful. he create three deities. they are Brahma, Vishnu and Shankar. Through Subway deity Brahma and human Braham, God Shiva blesses knowledge, wisdom, divine law, virtue and Yoga of Geeta Fame and bliss for establishing sovereignty of satyugi world of complete purity, peace and prosperity, that is Jeevan Mukti. This is Vishnu. Through subway deity Vishnu God Shiva sustains satyugi and Tretayugi jeevanmukt Deity world called Heaven. Shri Lakshmi and Shri Narayan and Shri Sita and Shri Rama are the most most prominent sovereigns. This is Shankar. Through Subway Deity Shankar God Shiva destroys The Kalyugi irreligious unlawfull world of many violent sovereignties called hell. For destroying mukti International and civil war and natural calamities are their means. This is the Kalpa of Five Thousand Years. There are five yugas in this Kalpa. They are satyug Tretayug, Dwaparyug, Kalyug and Sangamyuga. इशारा इधर करो समझाओ उधर, सामने देखती रहो, हाँ इधर इशारा कर कर के दिस इज सतयुग, दिस इज सिल्वर, हाँ ऐसे ऐसे समझाओ शाबाश There is only one deity dynasty of complete purity peace and prosperity. This is Ibrahim, Buddha and Christ. These are three world. This is Incorporeal world, This is Subtle world and This is Corporial world and These are Brahma Kumaris. They are sitting in Yoga. यू आर, तुम भी है न, ब्रह्माकुमारीज में तुम है की नहीं ? कहो वी आर सिटींग, हम ब्रह्माकुमारी हैं कहो वी ब्रह्मकुमारीज आर सिटींग We are BrahmaKumaries sitting in Yoga. we have taken the sovereignty of half Kalpa. This is Laxmi Narayan. this is golden age and this is silver age Sitaram. There is only one deity dynasty of complete purity peace and prosperity. This is sixteen degree power and this is fourteen degree power. This is the copper age. यू आर सिक्सटीन डिग्री पावर में जाएँगी या थर्टीन में ? in copper age first we are worshipping God shiva after that we are worshipping all the deities islaamic dynasty by Ibrahim 2005 years ago. This is Buddha. Buddhist dynasty by Buddha 2500 years ago. This is Christ. Christian dynasty by Christ 2000 years ago. This is shankaraacharya, sanyas dynasty by Shankaracharya 1500 years ago and This is Iron Age. There are so many days and sins. And this is The Brahma. Last 84th birth of human brahma. After the distruction this brahma will be first Prince of satyuga. that is Shri Krishna. These are the Russians and Americans. They are fighting for the hell. Look this stands for Europian ministers one another in an International atomic war ये सभी पूंछते हैं की ये दो बिल्ले के रूप में क्यूँ रखे हैं, एक कहानी है बहुत मशहूर की दो बिल्ले आपस में लादे थे और मक्खन बीच में बन्दर खा गया था । वह दो बिल्ले कहीं से मक्खन ले आए थे और आपस में लड़ने लगे । उनमें एक बन्दर चालाक था उसने कहा आओ हम तुमको एक तरीका बताएँ तो तराजू लेकर के तौलता गया और थोड़ा थोड़ा दोनों से निकाल के खाता गया-खाता गया सारा मक्खन उसका चांट गया तो इसी तरह से वो कहानी बड़ी मशहूर है न तो इसी का उस पर रखा हुआ है । तो इसी तरह से वो बीच में मक्खन खा जाता है जैसे मिच्नु । international atomic war Mahabaharat 5000 years ago this is the rosary of 108 pearls. Almighty god shiva non violens army of bharat mother shakties which transforms the iron age irreligious world into golden age viceless world by means of the might of godly knowledge, yoga and supreme purity. कांफ्लुएंस नहीं समझाया संगम वाला । सेप्लिंग की बात तो समझाई ही नहीं जो जरूरी है । अभी सेप्लिंग लगती है वो सेप्लिंग तो बतलाई नहीं एंड ऑफ़ ओल्ड वर्ल्ड बेगिनिंग ऑफ़ न्यू वर्ल्ड end of old world amd beginning of new world this is sangamyuga and this is the golden yug . बहुत अच्छा ताली बजाओ । अच्छा भाई, इसने क्वेश्चन पूँछा, नहीं इसको पूंछना था । अच्छा, अच्छा इन दोनों कुमारियों को फिर कुछ सौगात देनी पड़ेगी, सुनाया है । अच्छा क्या सौगात लेंगे 16 डिग्री ? अच्छा, वह तो तुम जितना अपने को अच्छा बनाएंगे और धारणा रखेंगी अच्छी-अच्छी तो फिर जरूर । अभी अच्छी है । ले सकती हैं और लेने को अच्छा पुरुषार्थ रखती है कैसा ? ठीक है ना । यह भी अच्छी है, इसका नाम क्या है? वीणा, यह तो है ही सरस्वती की वीणा तो बजेंगी । अच्छा आप लोगों का टाइम हुआ है इसीलिए दो मिनट साइलेंस । साइलेंस का मतलब अपने बेहद बाप को याद करो, आई एम सोल सन ऑफ सुप्रीम सोल , ऐसा अपनी बुद्धि को हर वक्त की हम उस बाप के बच्चे हैं ऐसा समझ के हर वक्त रहो और इस बॉडी से डिटेच ऐसे समझो काम करते हो तो भी ऐसे समझो कि मैं हाथों से लिखवाता हूँ लेकिन कौन आत्मा मैं इस ऑर्गन से बोलता हूँ कौन आत्मा इस ऑर्गन से सुनता हूँ कौन आत्मा तो हर वक्त सुनने के समय-समय ऐसे समझो कि आई एम सोल इससे सुन रहा हूँ आई एम सोल इससे बोल रहा हूँ आई एम सोल इससे देख रहा हूँ यह खिड़कियाँ है तो ऐसे अपने को हर वक्त काम करते भी अपने को आत्मा कोन्सिअस अथवा सोल कॉन्शियस और गॉड कॉन्शियस समझने से तो क्या होगा हमसे कोई ऐसा बुरा कर्म नहीं होगा और इससे हम अच्छे बुरे कर्मों से भी बचे रहेंगे और फिर गॉड की याद भी रहने से और हमारे वो योग अग्नि से पाप भी दग्ध होंगे तो डबल फायदा मिलेगा । यह प्रैक्टिस चाहिए, अभी यह जो सुनाया ना इसकी प्रैक्टिस चाहिए । हर वक्त अपने को सोल कॉन्शियस और गॉड कॉन्शियस रखकर करके चलना । किस तरह से चलना है इसी तरह से, देखो, ऐसा नहीं है देखना नहीं है आँखें बंद करना है देखो परंतु देखते भी क्या देखो यह भी सोल है आई एम सोल ये भी सोल । अभी इन खिडकियों से हम किसको देखते हैं भले देखने में यह बॉडी आती है परन्तु हमारा ध्यान अटेंशन सोल के ऊपर है यह भी सोल है हम और यह एक ही बाप के बच्चे हैं परंतु इन बिचारे को पता नहीं है अभी इसको पता देना है अथवा पता है तो ये भी भाई यह भी बाप को जानकर के अपना हक ले रहे हैं हम भी उससे अपना हक ले रहे हैं इसी-इसी तरीके से बुद्धि में ऐसा रहना चाहिए इसको कहा जाएगा सोल कोन्सिअस । बाकी ऐसे नहीं है कि मन को एकदम जैसे कंट्रोल करना है कल बताया था जैसे कई बिचारे हठ बैठते हैं वो चीजें नहीं है यह हमको ज्ञान सहित तो इसका है कि कर्म करते भी सोल कोन्सिअस तो ऐसे अपनी बुद्धि को रखने का है । (म्यूजिक बजा माता ओ माता) तो समझते तो हो ना । परमात्मा का ओक्युपेशन परमात्मा की बायोग्राफी क्या है देवताओं की क्या है । तो मनुष्य देवता हो सकता है, मनुष्य परमात्मा नहीं हो सकता तो यह समझना है हमको कोशिश रखने की है मनुष्य से देवता बनने की । देवता का मतलब ही है क्वालिफाइड । कौन सी क्वालीफिकेशंस श्रेष्ठ है? सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण संपूर्ण निर्विकारी । तो इसीलिए हमें कोशिश वह करने की है जिसमें आत्मा भी प्योर और शरीर भी प्योर और बाकी वह तो एवर प्योर है । वह तो गॉड इज वन तो हमको कोशिश कौन सी करनी है क्या बनना है वह एम एंड ऑब्जेक्ट का भी नॉलेज होना चाहिए ना । तो यह सभी समझने की बातें हैं जिसको समझ कर के अपना कोशिश अथवा अपना पुरुषार्थ ऐसा रखना है । अच्छा, आप लोगों का टाइम होता है । हम तो बैठे हैं, हम तो कहेंगे बैठे रहो पर आप लोगों को जाना है तो अच्छा (मम्मा टोली देते हैं ) अच्छा ये पारवती ये लो, बैकुंथ्मान ये लो, हाँ बैकुंठ का गोला । पूर्णिमा हाँ । और ये हमारी कौन है दुर्गा हाँ दुर्गा । जानकी । अच्छा वो जानकी पकड़ो हाँ । नहीं तो झोली खोलो । देखो झोली है न, वो खोलो उसमें सहज हो जाएगा । श्यामलमा, ये पकड़ेंगी ? बेबी हाँ बेबी बेबी तो कैंच करने में ये तो स्कूल में ले लेते हैं । तुमको , तुम ठहरो । ये कौन है जमुना । सबका हो गया ? अभी बाकी है , अभी बाकि है ये कविता हाँ अंगना को भी मिला । लो सुंदरी । रचना । तुम और हम बच गए है । जमुना को भी । करुना । तुम और हम बच गए हैं न । अच्छा लो । सबको मिला ? अच्छा । देखो । इसका अर्थ है सृष्टि का गोला । बिना प्योरिफिकेशन के ये गोला तो नहीं मिलेगा न । ये सिंबॉलिक लेना । अच्छा , अपने नयों की ज़रा खातिरी करते हैं । तो देखो ये फिर नए हैं न ये रहेंगे फिर ख्याल रहेगा । डबल ये इन एडवांस । तो ये है इन एडवांस कि हमको आगे जाना है तभी तो इनको रहेगा न कि मम्मा ने हमको आगे बिठाया, काहे के लिए बिठाया । टोली मिली ? हाँ इन्हों को ढक दो । दो का । प्रवृत्ति का तो दो का ही है न । ये हमारे इनको दिया , इसको मिला ? अच्छा ये बेबी को भी दूसरा ये मालती को भी । अच्छा , नहीं पॉवर तो अभी ज्ञान से ही लेना है इससे नहीं । ऐसा नहीं समझना ये खाने से पॉवर आ जाएगी । पॉवर तो फिर भी ज्ञान और योग से ही लेना है । इसीलिए तो फिर धारणा रखनी पड़ेगी न । किचडा इधर नहीं छोड़ के जाना है । इधर रख दो किचड के लिए ।अच्छा । अच्छा अभी जो नए हैं न फिर उन्हों के साथ कभी पिकनिक । पुराने किधर गए, पुरानों ने खाया है न ? नहीं मम्मा, पुरानों ने भी नहीं खाया है । अच्छा नहीं खाया ? तो एक पिकनिक रखना । बाहर कहाँ चलेंगे । बाहर तो देखो दुनिया की आवाजों से दुनिया की निगाहों से हम दूर हैं न । हम कहते हैं यहाँ की दुनिया की कैसी भी आवाजों से दूर दूर ले चल । तो यहाँ कोई जंगल तो है नहीं, जहाँ एकांत हो तो अपना मजा भी हो । यहाँ तो देखो दुनिया की घमसान में तो इसीलिए घर में अच्छा है । (बहन- जंगल तो हैं बहुत, मंगल मानेंगे वहां ( हंसी में ) । अच्छा वो फिर देखेंगे लेकिन इन्हों को । एक ही वक़्त करें जिसमें सभी फिर आ जाए । अच्छा वो तो फिर देख लेंगे लेकिन एक बार इन्हों को ये भोजन खाने, जितना खाएँगे न, जैसा अन्न वैसा मन तो उधर फिर इनको पिकनिक कराना है । अच्छा बहुत अच्छा , कुछ भी सिंधी हो पंजाबी हो हम सब एक ही बाप के बच्चे हैं उसी को समझना है और अभी बाप के उपर हक़ लगाना है अभी हैं उसके पोत्रे, पौत्रे बनने से वर्सा मिलता है ग्रेंड फादर की प्रॉपर्टी का । तो पौत्रा बनेगा तभी जब ब्रह्मावंशी बनेगा । वैसे तो सब उसके बच्चे हैं । तो बच्चे तो है ही परन्तु उसमें वरसे की बात नहीं । पौत्रा बनेगा तो वर्सा मिलेगा इसीलिए जब ब्रह्मा बीच में आता है तब है पौत्रे की बात तो ब्रह्मा वंशी बनेगा ब्राह्मण बनेगा तब है पौत्रे की और वर्से की बात नहीं तो वैसे तो बच्चे सब हैं उसके शिव वंशी तो सब है । ब्रह्मावंशी जब तलक न बने न तब तलक पौत्र न बने और पौत्रा न बने तो वर्सा न मिले । अच्छा ऐसा बाप दादा और माँ के मीठे मीठे और बहुत अच्छे सपूत, सयाने और समझदार बच्चों प्रति याद्प्यार और गुड मोर्निंग ।