मम्मा मुरली मधुबन


कर्मभोग समाप्त करने की विधि

एक दु:ख होता है, जो हम कर्म भोगनाएं भोगते हैं, उसी दु:ख से तो छूटना है ना । यह जो गीत है, यह भी समझने का है । ऐसे नहीं है कि कांटो से क्या डरेंगे तो इसका मतलब है कि हम पांच विकार और दु:ख से क्या डरेंगे, नहीं! यह दु:ख तो हमें भोगना ही है ना, हाँ उसी से अपने को छुड़ाने के लिए कोई कष्ट भी उठाना पड़े तो उसी कष्ट से क्या डरेंगे, समझा । जैसे गीता में भी कहा है ना, कि अभी जो तुमको अमृत लगता है वह अंत में जहर है, उसी जहर से तो डरना चाहिए ना और जो अभी तुमको जहर लगता है या कठिन लगता है वह अंते अमृत है तो उस जहर से नहीं डरना है क्योंकि इसमें अंते सुखदाई है समझा । पहले डिफिकल्ट लगता है, परीक्षाएं आती हैं, थोड़ा बहुत सितम सहन करना पड़ता है, वह तो जो भी आए हैं उन्होंने भी तो कष्ट सहन किए हैं ना लेकिन वो कष्ट और वो जो हम अपने दु:ख में कष्ट भोगते हैं उसमें फर्क है ना । गांधी था, गांधी को गोली लगी, कष्ट तो है लेकिन यह कष्ट तो उसका अपना हो गया ना । भाई देश की सेवा के लिए, तो देश के लिए जिसमें उसने अपना जीवन जितना भी सफल किया तो कहेंगे ना की उसके सदके उसकी जान भी गई या कोई सितम सहन किया तो कोई बड़ी बात नहीं । तो यह कष्ट और वह कष्ट में जो हम दुःख भोगते हैं, उसमें और उसमें फर्क है ना । तो यह जो गीत है इसका भी अर्थ समझना है की कांटो से क्या डरेंगे, तो ऐसे नहीं है की इसमें यह तकलीफ है, इसमें यह मुसीबत, इसमें यह सितम सहन करने से डर के हम ऐसे ही रह जाएं, नहीं! इसमें तो हमको हिम्मत रखनी चाहिए । अगर इसके लिए हमको कुछ सहन भी करना पड़े तो मैदान पर आना है क्योंकि इससे तो हमारी जीवन बनती है ना । दूसरी तरफ देखो हद की सेवाओं में भी जान देते हैं, गांधी ने जान दी ना परवाह नहीं की । चलो कहा जाग जाएंगे बहुत परंतु वह हद का काम रहा, उससे कोई कंप्लीट प्राप्ति तो नहीं रही ना । तो जब कोई हद की सेवा में भी इतना रखते हैं ये तो फिर कम्पलीट प्राप्ति है न । इसके लिए अगर थोड़ा बहुत गाली खानी पड़े, सुनना पड़े, कोई कष्ट सहना पड़े, दुनिया कुछ बुरा भला करें या कुछ भी सहन करना पड़े तो उस से नहीं डरना है । समझा! तो यह बातें भी समझने की है, बाकी ऐसे नहीं है कि दु:ख आए तेरा भाड़ा मीठा लागे । ऐसे बहुत है ना वो कहते हैं क्या ऐसे ही चढ़ना है दु:ख आया, रोग आया, यह आया नहीं! उसका उपाय है तो क्यों नहीं लेना चाहिए । उसी से हम छूट सकते हैं, उसके लिए अगर हमको कुछ सहन करना पड़े तो फिर दूसरी बात है तो यह सभी चीजें समझने की है । बेचारे कई इन बातों का ज्ञान ना होने के कारण ऐसे समझ लेते हैं कि दुःख तो ईश्वर ने दिया है ना, तो उसको भी मीठा समझ के भोगना चाहिए, फिर चाहे सुख दे, चाहे दु:ख दे वह भक्ति मार्ग में इन्होंने फिर यह मार्ग दिखला दिए हैं तसल्ली देने के लिए की देखो ये दु:ख आया है अगर उसको दु:खी होकर भोगेंगे तो फिर दु:ख ही होगा इसीलिए ईश्वर ने अगर दु:ख भी दिया है तो चलो यह भी मीठा है, भार थोड़ा हल्का हो जाएगा तो इस तरह दिल को थोड़ी तसल्ली में लाने के लिए, भार हल्का करने के लिए , टेंपरेरी तरीके बैठकर के बनाए है परंतु ऐसे तो नहीं ना, उसका कोई भाड़ा है, उसने कोई हम को दु:ख दिया है या उसने कोई हमको दु:खी बनाया है जो हम उसका दिया हुआ दु:ख समझ करके मीठा कह के भोगें, नहीं! ये दुःख है तो हमारे कर्म का परिणाम और हमारे भी उल्टे कर्मों का नतीजा है तो उस को तो हम को सुधारना चाहिए ना, परंतु उसको सुधारने का नॉलेज नहीं है ना कि किस तरह से उसको सुधारें इसीलिए जब दुःख आया है तो उसका भाड़ा फिर मीठा करके भोगते हैं की दु:खी होकर के भोगे इससे अच्छा तो ईश्वर का दिया हुआ है, ये समझ कर उसको भोगने में जरा ठंडा रहेगा, भोगना तीखा नहीं लगेगा इसीलिए कहते हैं ईश्वर ने दिया है, बस तो ईश्वर का दिया हुआ है तो अच्छा या बुरा, ऐसा समझकर के बुरे को भी अच्छा समझ कर चलेंगे । इसी तरह टेंपरेरी अपने मन को शांति लाने के लिए करेंगे तो यह हो गए अल्पकाल की शांति के तरीके, लेकिन बाप तो हमको बैठकर के सिखाते है की बच्चे प्रैक्टिकल सदा काल के लिए तुम्हारे पास शांति और सुख आवे, वह किस तरीके से आएंगे, उसी बातों को समझो । वो तो कहते हैं ना की यह दुःख मेरा नहीं है, यह तो तेरा है इसको तू समझ और समझ कर करके ऐसे कर्म को मत बना, जिससे तेरा दु:ख बनता है। तो यह बनता है पांच विकारों से, माया के संग से । अभी तो टोटल ही उसका संग छोड़ दो, ऐसा नहीं थोड़ा संग करो थोड़ा छोड़ो नहीं, टोटल ही उसका संग छोड़ दो, हैंड्स अप, सरेंडर, माया का एकदम संग छोड़ दो जिससे बनता ही दु:ख है । ऐसे नहीं माया से कुछ सुख बनता है नहीं! उससे बनता ही दु:ख है तो इसीलिए दु:ख का तो संग छोड़ देना चाहिए ना । इसीलिए बाप कहते हैं उसका संग छोड़ो और मेरा संग पकड़ो तो मेरे से तो कोई ऐसा नहीं है कि थोड़ा दु:ख हो थोड़ा सुख नहीं! मेरे से तो है ही सुख, मैं तो सदा सुख देता हूँ ना, मेरे को कहते ही हो सुखदाता तो अभी मेरा संग पकड़ो । जब भक्ति मार्ग में भी जाने ना जाने बिना भी तू मेरा संग पकड़ते हो, तो भी मैं तुमको अल्पकाल भी सुख देता हूँ । मैं देता हूँ, माया नहीं देती है सुख । वह ऐसा नहीं समझना है भक्ति मार्ग में यह माया सुख देती है, वह भी सुख जो है भक्ति में भी मैं ही देता हूँ क्योंकि तुम ईश्वर अर्थ करते हो ना । चलो भले कोई गरीब को दान करता है लेकिन अंदर में तो यह है ना कि गरीब को दूंगा तो भगवान राजी रहेगा, फिर भगवान हमको आशीर्वाद करेगा, भगवान कुछ देगा, अंदर में तो वही आता है ना, तो करते गरीब को है लेकिन अंदर याद में भगवान की आती है कि भाई गरीब की मदद करेंगे तो भगवान कुछ अच्छा करेंगे हमारा । कोई रोगी की सेवा करेगा - तो करेंगे तो मनुष्य की, रोगी की, परंतु अंदर में आएगा कि रोगियों की सेवा करने से भगवान हमारा भी कुछ अच्छा करेगा, कभी रोग नहीं देगा या कुछ हमारा भला करेगा । करेगा कौन - परमात्मा आता है ना बुद्धि में । सो हो गया की करते हम मनुष्य के लिए हैं लेकिन ईश्वर अर्थ तो हम भी ईश्वर को डायरेक्ट में याद करते हैं । डायरेक्ट करते मनुष्य से हैं, परंतु इनडायरेक्ट ईश्वर आता है, तो परमात्मा भी इनडायरेक्ट हमको रिटर्न करता है, चाहे मनुष्य के थ्रू, चाहे किसी के द्वारा धन की प्राप्ति होती है, चलो किसी गरीब को धन से मदद की तो दूसरे जन्म में धन मिल जाएगा, ऐसा होगा कुछ रिटर्न हो ही जाती है । जैसे रोगी का किया है, गरीबों की सेवा किया, ऐसे बहुत हॉस्पिटल्स खोलते हैं । बहुत स्कूल खोलते हैं यानी विद्या का दान तो दूसरे जन्म में क्या होगा उसको बड़ी विद्या मिलेगी, बड़ा डॉक्टर, इंजीनियर का पद पा लेगा, विद्या का दान किया है ना तो उसको दूसरे जन्म में कुछ स्टेटस अच्छी मिलेगी, धन दान किया है तो कोई धनवान के घर में जन्म मिलेगा, कोई रोगियों की सेवा की है तो चलो दूसरे जन्म में हेल्थ अच्छी मिलेगी तो इसका रिटर्न होता है लेकिन करते तो ईश्वर अर्थ है ना । इनडायरेक्ट तो बुद्धि में ईश्वर आता है ना परंतु करते मनुष्य के साथ हैं, तो फिर इनडायरेक्ट ईश्वर उसको देता है मनुष्य के थ्रू । वह भी मनुष्य के थ्रू ईश्वर को याद करते हैं ईश्वर भी मनुष्य के थ्रू उसको देता है, इसी तरह से वह भक्ति मार्ग चला, इनडायरेक्ट वे में । अभी बात कहते हैं डायरेक्ट, अभी तो मैं आया हुआ हूँ ना डायरेक्ट, तो यह अभी तुम्हारा संबंध मेरे से डायरेक्ट है इसीलिए अभी डायरेक्ट मेरे से सदा सुख की प्राप्ति करने की है और किस तरह से, वह बैठ कर के वह सारी बातें समझाते हैं तो हमारा उनसे डायरेक्ट है । अभी कोई इनडायरेक्ट मनुष्य के थ्रू नहीं है, नहीं! डायरेक्ट, अभी हमारा कनेक्शन है डायरेक्ट बाप से । यह ज्ञान मार्ग डायरेक्ट मार्ग है, भक्ति मार्ग इनडायरेक्ट मार्ग है तो डायरेक्ट और इनडायरेक्ट भी तो समझना है ना । बाप आ करके भी ज्ञान भी डायरेक्ट देता है किसके थ्रू तो मिल ही नहीं सकता है । मनुष्यों के द्वारा जो मिला उसको ज्ञान नहीं कहेंगे इसीलिए कहते हैं वह तो भक्ति हुई लेकिन ज्ञान देता ही मैं हूँ ना, ज्ञानदाता ही मैं हूँ । ज्ञान सागर भी हूँ तो ज्ञान दाता भी मैं ही हूँ ना । ऐसे तो नहीं की खाली ज्ञानसागर मैं हूँ, ज्ञानदाता मनुष्य हैं, नहीं! सागर भी मैं हूँ, अथाह ज्ञान भी मेरे पास है तो दाता भी मैं मैं हूँ । यह सभी चीजें समझने की है ना । ऐसे नहीं है कि खाली अपने लिए ज्ञानसागर हूँ, मैं अपने लिए ज्ञान रख कर क्या करूंगा, मुझे कोई अज्ञान थोड़े ही है जो मैं ज्ञान रखूं, ज्ञान में अपने पास रख कर कोई फायदा तो दूंगा तभी तो मेरे पास ज्ञान का भी कुछ नाम होगा ना । हम अपने लिए रखे खाली जानता रहूँ के की यह चोर चोरी करता है, यह खूनी खून करता है, खाली मैं जानता रहूँ तो मेरा क्या फायदा हुआ, या चोर का भी क्या फायदा हुआ । चोर फिर भी चोरी करता ही रहेगा, मैं खाली जानता रहूँ, मैं अंदर सबका जानता हूँ, नहीं! यह चोर है, यह खूनी है, यह करता है, यह बुरा करता है, खाली मैं देखता रहूँ और जानता रहूँ तो उसमें चोर का भी फायदा क्या हुआ और मेरा भी फायदा क्या हुआ, खाली सारा दिन मैं यही सोचता रहूँ ऐसा नहीं है । मैं जानता हूँ उसी जानने का फिर फायदा देता हूँ, फायदा देता हूँ तभी तो तुम मुझे याद करते हो, गाते हो हे भगवान तू ऐसा है, तू ऐसा है मेरी महिमा करते हो तो जरूर मैंने तुमको जरूर कुछ दिया है, तुमने मेरे से कुछ पाया है, तभी तो मेरी इतनी महिमा करते हो न । कभी भी कोई मनुष्य भी मनुष्य से कुछ लेते-पाते हैं तभी तो एक-दो की महिमा होती है ना, भाई गांधी था क्यों उसका इतना मान है, उसने हमारे लिए कुछ किया तभी तो उसकी हम इतनी महिमा करते हैं ना, नहीं तो उसने हमारे लिए कुछ नहीं किया होता तो हम उसको याद क्यों करते, उसका गान क्यों गाते, उसकी महिमा क्यों करते तो एक दो के प्रति कोई कुछ करता है तभी उसकी महिमा है तो परमात्मा को भी सभी याद करते हैं, प्यार करते हैं, प्रेम करते हैं और जब भी दु:ख आता है तभी याद करते हैं तो जरूर है कि उसने हमारे दु:ख के समय पर कोई ऐसी सहायता की है, तब तो हम उसको याद करते हैं कि अभी तुम हमारे सहायक हो, और गाते भी ऐसे हैं कि सहाय हो । यही अभी सहायता की जरूरत है, अभी मनुष्य की सहायता से काम नहीं चलेगा, अभी मनुष्य की सहायता नहीं चल पा सकेंगी तब फिर मुझे याद करते हो, और ऐसा होता है, देखो जब सब से दिल हट जाती है ना तो भगवान को याद करते हैं, कोई से काम नहीं होता है, बाप से, भाई से , इधर से, उधर से तो फिर भगवान याद आता है, कहते अभी तू ही है, सब से जब नहीं बनती है या फिर ऐसी कोई बात होती है तो फिर भगवान याद आता है तो उसकी माना ही है कि हमारी किसी से ना प्राप्ति रही तब फिर भगवान के द्वारा प्राप्त हुआ है तब तो वो याद आता है । तो एक ही वह सहारा है इसीलिए बाप कहते हैं की तुम मनुष्यों को मनुष्य के द्वारा वो चीज जो डायरेक्ट भगवान् से मिलने की है वो नहीं मिल पाती है इसीलिए फिर तुम मुझे याद करते हो, मैं आता हूँ । आता हूँ तो अभी मैं आया हुआ हूँ, अभी डायरेक्ट, तो ये अभी ही डायरेक्ट इसीलिए बाप कहते हैं अभी मैं डायरेक्ट तुमको यह सब समझा रहा हूँ और तुम भी मेरे से अभी संबंध, रिलेशन डायरेक्ट जोड़ और जोड़ कर करके अभी मेरे से जो डायरेक्ट प्राप्ति है वो मेरे से लो । वह लेना चाहिए ना तो यह बुद्धि में आनी चाहिए की यह हमारा कोई मनुष्य के द्वारा नहीं है, मनुष्य के द्वारा माना ऐसे नहीं समझना ब्रह्मा के द्वारा हमको मिलता है, नहीं! ब्रह्मा भी उसी से लेता है ना । वह तो फिर सिर्फ ओरगंस का टेंपरेरी परमात्मा सहारा लेता है बोलने के लिए बाकी सुनाते तो वह है ना ऐसे नहीं ब्रह्मा सुनाते हैं, ब्रह्मा के थ्रू मींस है इसके ओरगंस का आधार ले करके सुनाता है, तो वह है ना नॉलेजफुल जो गॉड है वह सुनाता है और उसके साथ वह ब्रह्मा भी सुनता है, उसकी भी सोल है ना ब्रह्मा की, वह भी सुनती है और हम भी सुनते हैं । हम भी तो आत्माएं सुनते हैं ना, यह कौन सुनता है आत्मा सुनती है तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं जैसे तुम भी शरीर के द्वारा आत्माएं सुनती हैं वैसे जिस शरीर में मैं आता हूँ उसको कान भी है ना, तो कानों से वह आत्मा सुनती है मुख से मैं आत्मा बोलता हूँ । दो सोल हैं ना, दो आत्माए हैं ना तो एक ऑर्गन में ले लेता हूँ, लेकिन किसी टाइम वह भी बोलता है किसी टाइम में भी बोलता हूँ, ऐसे भी नहीं कि सारा समय मैं बोलता हूँ, चलो घंटा डेढ़ मुरली चलाई बाबा ने तो ऐसे भी नहीं है घंटा डेढ़ घंटा बाबा ने ही बोला, शिव बाबा ने ही बोला, नहीं! कभी बीच में ब्रह्मा भी बोलते हैं जैसे हम आत्माएं भी बोल सकती है ना । अभी देखो मम्मा की आत्मा या जो भी टीचर्स हैं वह बोलती हैं ना तो जैसे वो बोलती हैं वैसे ब्रह्मा भी तो बोल सकता है ना, ऐसे थोड़ी है कि बस ब्रह्मा के तन में वही बोलेगा ब्रह्मा अपना भी तो नॉलेज जो धारण किया है वह सुना सकते हैं ना जैसे हम भी धारण करके सुनाते हैं । तो इसी तरह से डबल सोल सुनाते हैं परंतु यह समझना है कि कौन सी पॉइंट बाबा सुनाते हैं कोई नई बात होगी तो वह सुनाएगा, क्योंकि नई तो वही सुनाएगा ना, हम सुनी हुई सुना सकते हैं, तो हम सुनाएंगे सुनी हुई भले थोड़ा अपना विचार सागर मंथन भी करेंगे, कुछ ढंग से सुनाएंगे बस इतना भर लेकिन बातें तो उसकी द्वारा मिली ना, जानकारी तो उनके द्वारा मिली न जैसे - परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है, यह नई बात है, यह जानकारी कहाँ से मिली - परमात्मा से, यह थोड़ी हम जानते थे, अभी बाकी समझाना है कि परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है, हाँ उसने फिर विचार सागर मंथन हम कर सकते हैं कि अच्छा भाई यह आदमी को कैसे समझाएं, इसके बुद्धि में ये बैठा हुआ है की परमात्मा सर्वव्यापी है, इसका यह कैसे निकाले, उसकी तरकीब हम विचार सागर मंथन कर के अपने विचार से सुना सकते हैं, ऐसा हो सकता है लेकिन यह परमात्मा सर्वव्यापी है हमें थोड़ी पता था, यह तो उसने बदलाया ना, इसी तरह से जो नई बात है, नई पॉइंट है वो बाबा देगा । कभी तरकीब भी नई समझाएगा, कभी नई बात भी देगा, कभी हम भी तरकीब निकालते हैं – तो यह तो होता है, तो ब्रह्मा में भी ब्रह्मा की सोल और शिव बाबा की सोल, तो दो है ना, फिर कभी वह भी सुनाते हैं और वो भी सुनाएंगे, एक ही टाइम एक पॉइंट वह सुनाएगा तो दूसरी पॉइंट वह भी सुना देगा, वह भी कम थोड़ी है वह भी सुनाएगा, तो यह सब होता है परंतु यह ऐसी बात है जो देखने से समझ में नहीं आएगी, हाँ हम सुनेंगे बाबा के मुख से मुरली वैसे समझ में नहीं आएगा की यह शिवबाबा बोलता हैं या यह ब्रह्मा बाबा बोलते हैं, कौन बोलते हैं परंतु हाँ यह यह नॉलेज से, बुद्धि से समझा जाता है कोई देखने में कुछ नहीं आएगा । कई नए आते हैं वो समझते हैं शायद दिखाई पड़ेगा अभी शिव बाबा बोलते हैं कि ब्रह्मा बोलते है, वह देखने लग पड़ते हैं परंतु वह देखने की कोई चीज नहीं है ना जो दिखाई पड़ेगा, नहीं! यह बुद्धि से समझने की बात है । हम परमात्मा को भी देखने से नहीं समझते हैं बुद्धि से समझते हैं ना, जान करके, नॉलेज से, ज्ञान से, अगर ज्ञान नहीं है तो बतलाया ना इस चीज का हमको ज्ञान नहीं है तो भले जितना भी देखो इसको लेकिन हमको यह नॉलेज नहीं है काहे के लिए यह चीज है तो क्या करेंगे । कोई गाँव वाले हैं बेचारे कभी उन्होंने यह देखा ही नहीं है, कोई गांवडे वाले हो जिन्होंने कभी यह टेप, ये मशीन आदि न देखी हो उसके आगे जाकर रख दो तो वह कहेगा पता नहीं यह क्या चीज है, पता ही नहीं होगा ना तो उसको थोड़ी वैल्यू होगा इसका । इसी तरह से पहले नॉलेज चाहिए ना कि भाई ये क्या है, इसकी वैल्यू क्या है, इससे क्या प्राप्त होता है, तो उसका कदर रहेगा, उसका पता रहेगा तो इसी तरह से पहले ज्ञान । तो हम भी परमात्मा को पहले ज्ञान से जानते हैं, वह अपना परिचय देता है कि मैं क्या हूँ, कैसा हूँ तभी लेकिन देंगे, ऐसे तो बहुत आत्मा का, परमात्मा का साक्षात्कार तो भक्ति मार्ग में भी करते हैं फिर क्या हुआ तो साक्षात्कार से सिर्फ काम नहीं चलता है ज्ञान चाहिए ना । इसी तरह से बाप कहते हैं कि यह सब बातें ज्ञान से जानी जाती हैं सिर्फ देखने से या साक्षात्कार से पता नहीं लगता है लेकिन बुद्धि से समझा जाता है कि यह बात ऐसा लगता है की शिव बाबा का बोला हुआ है , यह ब्रह्मा का है इस तरह समझी जा सकती है तो यह सभी चीजें बहुत समझने की है और समझ करके और फिर धारण करने की है तो अभी बैठकर के बाप समझाते हैं कि अभी मेरा तुम से डायरेक्ट रिलेशन, संबंध है । अभी मैं डायरेक्ट सुनाता हूँ, तुम भी मेरे से डायरेक्ट रखो । अभी किसी मनुष्य के थ्रू तो नहीं है ना हमारा, अभी है डायरेक्ट इसीलिए हमारा लेना-देना डायरेक्ट उसके साथ है जो हम करते हैं, अभी उनके साथ करते हैं, तन से, मन से, धन से, अभी उनके साथ करते हैं । उनके साथ करते हैं तो उनके द्वारा डायरेक्ट करने में फायदा है, इनडायरेक्ट में भी हमको कुछ ना कुछ फायदा मिल ही जाता था अभी तो डायरेक्ट करते हैं तो उसका और ही इंटरेस्ट ज्यादा मिलेगा ना । 1 का 10 गुना 100 गुना 1000 गुना ज्यादा मिलेगा क्योंकि डायरेक्ट उसका हम संबंध जोड़ करके उसके साथ सौदा डायरेक्ट करते हैं, तो अभी हम सौदा डायरेक्ट करते हैं, एक्सचेंज करते हैं और बाप कहते हैं बच्चे पुराने दो और नए लो इसलिए सब एक्सचेंज, बॉडी एक्सचेंज, आत्मा भी इमप्यूरीफाइड से प्योरीफ़ाइड हो जाती है । सब, उससे हमको सारा संसार एक्सचेंज में मिलता है तो अभी उसकी एक्सचेंज में लेना देखो वह तो बड़ा धनी कहो, क्या कहो, धनी भी क्यों करें उसके पास तो सब अथाह है न इसीलिए उसके पास सब अथाह है और उसी से हम लेते हैं तो हम कितने भरपूर हो जाते हैं, इसीलिए कहते हैं झोली भरते हैं ना कि भगवान दो परंतु इस झोली में नहीं यह हमारा झोला है ना, बुद्धि झोला है ना, उसमें नॉलेज भरते हैं, उसी से फिर हम आत्माएं सदा सुख की प्रालब्ध लेते हैं । तो आत्मा का झोला यह नहीं है, यह तो शरीर का झोला है । आत्मा का झोला बुद्धि है जिस बुद्धि में हम संस्कार भरते हैं, जो संस्कार भर के जाते हैं फिर वो संस्कारों की प्रालब्ध लेते हैं, अभी उसमें भरना है ना । आत्मा में मन, बुद्धि जो है उसी में सब भर के ले जाना है । तो आत्मा में कैसे भरा जाता है वह बैठ कर के बाप अभी समझा रहे हैं कि इतनी छोटी सी आत्मा में देखो कितना सब 84 जन्मों का पार्ट और कितना यह सब भरा है, देखो है तो छोटा सा न । वो देखो कहते हैं न ये एटॉमिक बोंब्स आदि ये क्या हैं बिलकुल जरी कण , है क्या? इतनी है, बिल्कुल छोटी लेकिन पॉवर देखो उसकी कितनी है जैसे कि इतनी छोटी सी वह पावर है वैसे ही आत्मा भी है इतनी छोटी सी, लेकिन बड़ी पावर है जिसमें इतने सब जन्मों का कितना पार्ट चलता है । तो बाप बैठकर के अभी समझाते हैं कि बच्चे की यह अभी आ करके तुम्हारा लास्ट जन्म का हिसाब रहा है, अभी इसमें फिर तुम्हारे नए जन्मों सारा खाता भरना है, वह कैसे भरता है फिर अभी नया खाता को बैठकर के बाप सिखलाते हैं कि कैसे भरो । भरो तो ऐसा भरो जिसमें तुम सदा सुख पाते चलो । अभी फिर अपने को नया भरने का है तो अभी यह सब अपने को पुराना एक्सचेंज करके नया लेना है तो अभी एक्सचेंज सौदा है ना, वो एक्सचेंज सौदे करते हैं ना बहुत कि पुराने बर्तन लेते हैं नए देते हैं कई एक्सचेंज सौदे होते हैं न तो यह भी एक्सचेंज सौदा है इसीलिए कहते हैं ये देह सहित सभी सम्बन्ध जो कुछ है ये पुराना मुझे दो मैं तो मैं देह और देहं सहित सर्व सम्बन्ध नए दूंगा । तो ऐसा सौदा करने में कोई नुकसान है? बड़ा फायदा है, तो इसीलिए ऐसे फायदे को पाने के लिए आगे बढ़ना चाहिए इसमें नुकसान ही क्या पड़ता है । यह एक्सचेंज सौदा है तो एक्सचेंज करो । इस पुराणी देह में रखा ही क्या है रोगी, दु:खी, यह फलाना यह फलाना, देखो अकाले मृत्यु, हम अगर इस देह से ममत्व निकाल करके और देह सहित देह के सर्व संबंध से ममत्व निकाल के अभी हम बाप के हो जाएंगे तो फिर हमको देह भी अच्छी मिलेगी और फिर हमको सर्व संबंध भी अच्छा मिलेगा । देखो लक्ष्मी नारायण का संबंध कितना अच्छा है । ऐसा संबंध मिले, पति पत्नी और बाप बेटे और सभी ऐसे, तो ऐसे संबंध मिले तो अच्छा है ना । जिसमें हम सदा सुखी रहेंगे, इसमें तो दुखी ही सुख है न । राजा प्रजा सब सम्बन्ध अच्छा हो जाएगा ना । ऐसे मनुष्यों की हम राजा प्रजा होकर के सुख पाएं तो देखो कितना अच्छा सुख हो जाएगा, इसमें कभी ऐसा होगा कि कभी अन्न नहीं मिलेगा, कभी कोई दु:ख होगा या ऐसी बातें होंगी, ऐसा कुछ नहीं होगा । कुदरती अपदाएं भी कंट्रोल में, यानि वह भी सतोप्रधान, कोई कभी ऐसा नहीं की फ्लड्स हो जाए, फिर हमारा अन्य चला जाए नहीं! कभी नहीं, ऐसी सतोप्रधान होने और इसकी ताकत से प्रकृति भी हमारी पूरी सर्विस करती है क्योंकि हमारे कर्म श्रेष्ठ की प्रालब्ध रहती है ना तो इसीलिए बाप कहते हैं देखो तुम्हारे सब संबंध कितना अच्छा बनाता हूँ, सब सुख हैं तुमको कोई लड़ाई नहीं, कोई झगड़ा नहीं, कोई अशांति नहीं, कोई दु:ख नहीं । कोई दु:ख ना हो तो यह अच्छा है ना, ऐसे नहीं थोड़ा सुख हो फिर दु:ख हो, फिर सुख हो फिर उसमें तो सुख लगता ही नहीं है ना ।धं होगा फिर कोई शरीर का रोग होगा तो कोई सुख लगेगा थोड़ी, धन होते फिर दु:खी होगा । अच्छा धन होगा कोई बच्चा ऐसा नालायक होगा तो फिर भी दु:खी, हर तरह के तो दुःख जाते हैं ना तो बाप कहते हैं बच्चे मैं तो अभी तुमको सब कंप्लीट देता हूँ, जिसमें तुम सदा सुखी रहो कोई भी दु:ख की बात नहीं, कोई चिंता नहीं, कोई फिकरात नहीं, मरूँगा, कुछ करके जाऊं या अपना दिवा जगाऊँ या आपना कुछ करके जाऊं यह भी चिंता नहीं । फिर कर्म श्रेष्ठ की जन्म जन्मांतर की प्रालब्ध है । उसमें यह भी नहीं कि हम कुछ करके जाऊं, अभी तो बहुत जन्मों का बनाया है ना, वह चलता रहता है खाते रहते हो तो उसमें वह भी चिंता नहीं, तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं कि एक ही बार मैं तुम्हारा इतना बना देता हूँ और इतना बल देता हूँ कि जिसमें तुम बहुत जन्मों तक खाते और आराम से चलते रहो, सब तरह से । तो यह सब इतना फायदा मिल जाए तो अच्छा ही है ना तो ऐसे फायदे का भी काम अथवा ऐसा सौदा करने में फिर थोड़े ही ढीला रहना चाहिए । नहीं! उसमें सुस्त रहना चाहिए कि यह एक्सचेंज सौदा सबसे अच्छा है इसलिए परमात्मा को सौदागर भी कहते हैं, रत्नागर भी कहते हैं, जादूगर भी कहते हैं देखो कितना बड़ा जादू है ना इसका, क्या से क्या बना देता ,है कहते हैं जादूगर कागज के नोट बना देता है तो और पत्थर से पैसे बना देते हैं ऐसी कई चीजे एक्सचेंज में बना देते हैं तो यह बाप कहते हैं देखो मैं तुम पत्थर बुद्धि को पारस बुद्धि बना देता हूँ, क्या से क्या बना देता हूँ, तो ये जादूगरी हुई ना, सच्ची जादूगरी तो यह है प्रैक्टिकल, वह तो टेम्पररी और उससे क्या है, अगर ऐसे को ऐसे कोई साहूकार बने, कागज से पैसे बना लेवे तो फिर करो सिर गवर्मेंट तो उसको अच्छा फायदा रखें, सभी जादूगरों को इकट्ठा कर देवे और कह देवे कि हमारे लिए पैसा बना कर दो, काम चलता रहे परंतु ऐसा तो नहीं चलता ना, तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप से अच्छी तरह से समझाते हैं कि बच्चे ये प्रैक्टिकल तुम्हारा जो बनता है वो सदा सुख पाने के लिए तो अभी सदा सुख पाने की जो चीज मिली है उसको लेकर के और बाप से अपना सदा सुख प्राप्त करना है तो ऐसे पुरुषार्थ में लगे रहो । इसमें कोई भी सुस्ती नहीं, कोई गफलत नहीं, कोई ठंडा पुरुषार्थ नहीं, तेज पुरुषार्थ । यह रफ्तार तेज चलनी चाहिए, ये अपना ध्यान रखना चाहिए और अपने में कोई खामी हो क्रोध की लोभ की मोह की काम की, जो भी खामी हो, खानी समझते हो ना, जो भी अपने में बुराइयां हो, वो बुराइयां निकालनी चाहिए, अपने में रखनी नहीं चाहिए । अगर कुछ वीकनेस हो, नहीं निकल सकती है तो फिर उसका श्रीमत लेनी चाहिए । तो फिर उसकी राय मिलेगी की इस खामी को तुम कैसे दूर करो, जैसे कोई पेशेंट होता है तो डॉक्टर से कोई दवाई मिलती है, परंतु फायदा नहीं पड़ता तो फिर डॉक्टर को बताने से फिर एक्सचेंज कर देगा ना दवाई, तो अच्छा भाई तुमको इससे तुमको फायदा नहीं हुआ तो अभी चलो तुमको एक्सचेंज करके देते हैं, चलो लिक्विड से नहीं फायदा हुआ तो चलो इंजेक्शन देते हैं, इंजेक्शन से नहीं हुआ तो चलो यह दूसरी दवाई, तो यह एक्सचेंज करेगा तो दूसरी कोई मिल जाएगी, फिर फायदा तो उसी से ही मिलना है न और तो कहाँ से मिलेगा नहीं चलो यह डॉक्टर छोड़ो दूसरा डॉक्टर लें । उसमे तो बहुत डॉक्टर्स हैं एक छोड़ेगा चलो दूसरे से ले लेगा, इधर तो है ही एक, इसका इलाज करने वाला ही एक है और अथॉरिटी वही है उससे ही होने का है, ऐसे नहीं कि होने का नहीं है, होने का भी उससे ही है परंतु कोई उससे अच्छी तरह से अपना इलाज लेवे ना इसीलिए बाप कहते हैं कि देखो सब, मुक्ति भी मैं देने वाला हूँ, जीवनमुक्ति भी मैं देने वाला हूँ दोनो मैं देने वाला हूँ चलो मुक्ति चाहो तो भी मेरे से तो उसे मेरे से ही फायदा मिलेगा न इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे अभी मेरे से संबंध जोड़ने से तुमको फायदा ही फायदा है, नुकसान की तो बात ही नहीं है, थोड़ा भी तो भी फायदा है, बहुत तो फायदा ही है, तो फायदा तो मेरे से ही मिलना है न इसीलिए फायदा क्यों नहीं लेते हो, उसमें ढीले नहीं, उसमें पुरुषार्थ ढीला नहीं रखने का है, तो यह सभी चीजें हैं जिसको बहुत अच्छी तरह से समझते और अपने पुरुषार्थ को आगे रखने का है, इसको कहेंगे पुरुषार्थी, बाकी ऐसे नहीं है कि हम पुरुषार्थ तो थोड़ा बहुत तो करते ही रहते हैं नहीं! करना तो फिर जितना लेना है वह अपना एम रखना चाहिए हमें लेना इतना है, माल इतना है, उसमें से हमको को लेना है, ऐसे नहीं थोड़ा लिया, यह भी अच्छा, नहीं लेना तो जितना है, उसमें से हमको लेना चाहिए ना, जभी चांस है इतना लेने का तो क्यों नहीं लेवें तो उसको कहेंगे यह लेने वाला अच्छा है बाकी जरा सा ले लिया तो क्या हुआ, वह भी कहेंगे अरे माल इतना है तुम लेते इतना हो , अरे शायद तेरे किस्मत में नहीं है, उस समय ऐसा कहने में आता है किस्मत में नहीं है, तुम कोई कमबख्त हो तुम्हारे आगे इतना वक्त आया और तुमने लिया इतना, तो कहेंगे अरे तुम्हारी तो शायद किस्मत में नहीं है ,ऐसा कहा जाता है न, तो अभी बाप हमारे सामने इतना लाया और हम उससे इतना ज़रा सा लेंगे तो क्या कहेंगे कमबख्त तो ऐसा थोड़ी बनना चाहिए, लेना तो पूरा लेना और लेना ही चाहिए, ऐसा भी नहीं है कि लेना तो पूरा लेना नहीं तो नहीं लेना, कई फिर ऐसे भी महामूर्ख निकलते हैं इसको फिर कहेंगे महामूर्ख मूर्ख तो पहले ही हैं, जो समझते हैं इतना सा लेवें उससे तो अच्छा है न लेवें, ऐसे तो नहीं है न मूर्ख तो पहले ही हैं की हम मया के संग मैं खो बैठे हैं परंतु मिली हुई चीज को भी कहें चलो इतना नहीं तो थोड़ा भी , वो भी तो ठीक है परंतु बाप फिर समझाते हैं इतने में खुश नहीं होना है तो न महामूर्ख बोलो ना कमबख्त बनो समझा ऐसा भी नहीं बनना है इसीलिए अपनी समझ को अच्छी तरह से रख कर के और अपना पुरुषार्थ करो ऐसे पुरुषार्थ करते आगे बढ़ते चलो अच्छा आप लोगों का टाइम हुआ है, चलो आज देखो बाबा की टोली आई है मालूम है बाबा ने टोली भेजी बेंगलुरु वासियों के लिए दिल्ली से, दिल्ली से एक आया है वह भोग ले आया है तो देखो बेंगलुरु वासियों को बापदादा कितना याद करते हैं कितना प्यार करते हैं आप लोगों के लिए टोली भेजी है इसीलिए आज हम खिलाते हैं आप लोगों को बाबा की टोली है ना बाबा ने प्यार से भेजी है फिर हम भी प्यार से खिलाएंगे ना आज हम खिलाते हैं, ठीक है न, चलो