मम्मा मुरली मधुबन


परमात्मा का परिचय

 ओम शांति ।

सत् है बाप, वो ही सत् टीचर और सद्गुरु, अभी यह नशा बैठा है ना अच्छी तरह से कि हम ऐसे सत बाप, सत् टीचर और सतगुरु जो है, उनके बने हैं । उनका फिर कोई बाप, टीचर, गुरु है ही नहीं । बाकी तो सब का बाप, टीचर, गुरु है ही । इसीलिए जो बेहद का बाप है, उसके ऊपर तो कोई नहीं है ना । क्रियेटर का कोई क्रिएटर नहीं, तो हमारा क्रिएटर, डायरेक्टर अभी कौन है ? वह है, जिसके ऊपर कोई क्रिएटर, डायरेक्टर की बात ही नहीं है । तो उससे अभी प्रैक्टिकल में संबंध है । बातें नहीं है सिर्फ, अभी उससे प्रैक्टिकल रिलेशन यानी संबंध जोड़ा है और वह भी अभी आए हैं और आ करके हमारे को अपना रिलेशन प्रैक्टिकल में दे रहा है । और उसका कहना भी है कि यदा यदा ही यानी जब-जब ऐसा टाइम होता है, तब-तब मैं आता हूँ, तो जरूर है कि कहीं से आता है ना , कोई ठिकाने से आता है । अगर यहाँ बैठा हुआ होता ओमनीप्रेजेंट, तो ‘आता हूँ क्यों कहता ? आता और जाता, उसी चीज के लिए कहने में आता है जहाँ ना है तभी कहने में आता है 'आता' । अगर ओमनीप्रेजेंट है, तो फिर 'आता' यह बात बनती नहीं, तो यह भी समझने की बातें हैं ना । उसने भी कहा है कि यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत तब तब मैं आता, आता कहा है ना, तो आता हूँ । आएँगे तो जरूर है कि कोई और ठिकाने का रहवासी है, जहाँ से आते हैं और हम सब भी किसी और ठिकाने के रहवासी हैं । हम कहाँ के रहवासी हैं ? निराकारी दुनिया के । हम आत्माओं का अपना निवास स्थान है निराकारी दुनिया जिसको अंग्रेजी में इनकॉरपोरियल वर्ल्ड कहेंगे । तो उसकी माना इनकॉरपोरियल वर्ल्ड में ऐसा नहीं है कि खाली एक ही परमात्मा रहता है । अगर एक ही रहता तो फिर वर्ल्ड क्यों कहते । वर्ल्ड माना उसमें बहुत रहते हैं । वर्ल्ड शब्द आता ही तभी है जब बहुतों की बात हो । देखो यहाँ इतने मनुष्य हैं तभी उसको कहाँ जाता है मनुष्यों की वर्ल्ड अर्थात दुनिया । एक आदमी होता तो फिर उसको दुनिया कहते? दुनिया नहीं कहते ना । दुनिया माना बहुत हैं तो इसको भी वर्ल्ड कहते हैं, इनकॉरपोरियल भी वर्ल्ड है । निराकारी भी दुनिया है । निराकारी एक नहीं है, निराकारी दुनिया है । तो कोई बहुत निराकारियों का रहने का स्थान है तो बहुत निराकारी कौन है ? आत्माएँ । तो यह भी समझना है इसीलिए हमारा भी ठिकाना उधर का ही है । लेकिन हम इधर पार्ट बजाने आते हैं तो हम अनेक जन्मों में चल पड़ते हैं । वह आता है तो उनको कोई अनेक जन्मों में चलने की आवश्यकता नहीं । वह कोई अपना कर्मों का शरीर नहीं लेते हैं । हम सब आत्माएँ अपना पार्ट अपने संस्कार, कर्म के हिसाब से लेते चलते हैं और वह जो है, उनका पार्ट फिर ऐसा है कि उनको टेंपरेरी शरीर लेना है दूसरे का, अपना कोई कर्म का शरीर नहीं लेना है, उनका फिर हिसाब ही ऐसा है । उसका पार्ट समझो ऐसा है, टेंप्ररी प्रवेश, जिसको कहा जाता है परकाया प्रवेश होते हैं । इसी तरह से आकर के शरीर का आधार लेकर के वह भी थोड़े टाइम के लिए, उनको आकर के नॉलेज सुनाया । ऐसे नहीं बच्चे के शरीर में आवे, जैसे समझते हैं कृष्ण के छोटे शरीर में तो कृष्ण के छोटेपन के छोटे शरीर में कैसे बैठकर सुनाएगा । शरीर तो ऐसा चाहिए ना, जिसमें बैठ के समझाए तो समझाने में भी अच्छा लगे । देखो आता है बेहद का बाप, वह बैठ करके बच्चों को समझाते हैं, अगर छोटे शरीर में आवे और कहे बच्चे तो ये छोटे शरीर से शोभा भी नहीं देगा, शोभा देगा ? वो छोटा शरीर से कहे बच्चे मैं आया हुआ हूँ. अब चलना है तुम्हे परमधाम तो शोभा देगा ? छोटा बच्चा कोई यहाँ अगर बैठा हुआ है, उसमें बैठ के परमात्मा अगर कहे बच्चे तो अच्छा लगेगा ? तो जब वो आवे तो कोई बुजुर्ग शरीर भी तो कोई ठाऊ का होवे । जैसे ड्रेस पहनते हो तो रहता है न की हाँ भाई जरा फिटिंग ठीक चाहिए तो उसके भी आत्मा के मुताबिक कोई फिट चाहिए न शरीर । तो जरूर कोई ऐसा बुजुर्ग शरीर हो जिसमें बच्चा कहना अच्छा लगे । और आते हैं तो हमारे साकार में भी गुरु, टीचर बनते हैं तो कहने में भी उसको शोभा रहे और साकार में भी मिलने में लगे की हाँ भाई बाप है । बाप तो बुजुर्ग होते हैं न, बाकि छोटे शरीर में आवे और कहे बच्चे तो शोभा भी नहीं देगा । इसीलिए उसमें कहते कैसे बनेगा इसीलिए बाप आते हैं बुजुर्ग शरीर में । तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं कि मैं आता हूँ और मैं आते ही काम करता हूँ । ऐसा नहीं है कि पहले छोटा हूँ तो पालना लूँ पीछे बैठकर के ज्ञान दूँ, ऐसे भी नहीं है । नहीं, मैं आता हूँ और आकर के अपना काम चालू करता हूँ । मुझे आना ही काम करने के लिए है । मुझे कोई आ करके तुम्हारे सदृश्य माँ की पालना थोड़ी लेनी है, जो मैं पलूँ, बढूँ, फिर बैठ करके ज्ञान दूँ, यह भी कोई बात नहीं है । मुझे क्या पालना लेने की दरकार है । तुम मुझे क्या पालोगे, वो तो बात ही नहीं है न । ऐसे भी नहीं है कि मुझे कोई पालना लेनी है या कोई माँ का दूध लेना है । ऐसा तो नहीं है न कि पल कर के बड़ा होऊं । मैं तो आता ही हूँ नॉलेज देने के लिए । नॉलेज देने के लिए तो मुझे बस टाइम पर आना है, नॉलेज देना है और टाइम भी जब मेरा पूरा होता है मैं फिर चला जाता हूँ । ऐसे भी नहीं कि मुझे बैठ ही जाना है । इसीलिए कहते हैं कि मैं आता ही उसी टाइम पर हूँ और तन भी ऐसा लेता हूँ, जिसमें सब बातें हो । देखो उसमें अनुभव. एक्सपीरिएंस आदि सब हो । समझाना के लिए तो शरीर ज़रा फिट चाहिए न, जो की समझाने में भी सभी बातें अच्छी लगे । कॉमन भी तुम लोग ड्रेस पहनते हो तो समझते हो जरा ठीक लगे, ऐसे तो नहीं न । सबका अपना देखो रसम रिवाज है उसी अनुसार पहनते हो ना । वो भी अपने रसम अनुसार पहनेगा ना । उसकी रसम कौन सी है, वह भी अपने रसम का शरीर लेता है । कौन सा लेता है, वह बैठ करके समझाते हैं तो मैं भी तो अपनी ड्रेस लूँगा, शरीर लूँगा अपने रसम का, अपने काम का करने लायक । तो बैठकर के समझाते हैं कि इसी तरीके से आता हूँ और आ करके ये नॉलेज सुनाता हूँ और बैठकर के समझाता हूँ । तो उस आत्मा में भी क्यों आता हूँ सो भी बैठकर के समझाता हूँ की उस आत्मा का भी बहुत जन्मों का चक्कर लगाया हुआ है । कौन सा ? आप लोगों ने एक चित्र देखा होगा जिसमें दिखलाते हैं की विष्णु के नाभी कमल से ब्रह्मा निकला है, वह चित्र बहुत कॉमन है । आजकल तो उसका भी दिखलाते हैं गांधी का । गांधी के नाभि से नेहरू निकला है, ऐसा चित्र रखा था आज कल बनाए थे । उसमें गांधी विष्णु की तरह से लेटा पड़ा है, उसकी नाभि से नेहरू को निकाला था तो आजकल ऐसे बनाये हैं । तो असल है विष्णु का । फिर विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्मा दिखलाते हैं अभी इसका भी रहस्य है कि हाँ यह विष्णु सो ब्रह्मा, ब्रह्मा सो विष्णु । अभी इनका ही 84 जन्म, ये विष्णु लक्ष्मीनारायण कंबाइंड है ना तो देखो ये विष्णु लक्ष्मीनारायण कंबाइंड, ये देखो जन्म शुरू का था विष्णु, सर्वगुण संपन्न, 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी फिर जन्म लेते लेते उसका लास्ट जन्म जो हुआ वह ब्रह्मा । फिर ब्रह्मा सो फिर विष्णु तो अभी इनके ही 84 जन्मों का, जो मनुष्य पहले आया, जिसका पहले पहले जन्म हुआ उसका ही जो फिर अंतिम जन्म है, उसी में मैं आता हूँ । तो विष्णु का जो अंतिम जन्म है मैं उस में आता हूँ । तो विष्णु का अंतिम जन्म कौन सा हुआ ब्रह्मा । विष्णु सो ब्रह्मा, ब्रह्मा सो विष्णु और यह दिखलाया है और इसी कारण गाया है ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात, गीता में है ना, अभी विष्णु का दिन, विष्णु की रात नहीं कहा क्योंकि परमात्मा जब आता है, तब आता है अंत में और वह आता है ब्रह्मा के शरीर में इसीलिए ब्रह्मा की रात कहने में आएगी क्योंकि उसकी रात पूरी करके जिसकी पूरी करता है और जिसका दिन चालू करता है तो उनका ही नाम आएगा ना इसीलिए विष्णु का दिन विष्णु की रात नहीं परंतु ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात क्योंकि उसमें आता है परमात्मा और आकर के सैप्लिंग लगाता है । विष्णु से सैप्लिंग नहीं लगती है, सैप्लिंग उधर से लगती है ब्रह्मा से इसीलिए जहाँ से सैप्लिंग लगती है तो वहाँ से बताएँगे ना कि उनकी रात और उनका दिन जब पूरा होता है तब फिर मैं आकर के रात के अंत में उनका रात का अंत और दिन का फिर आरंभ करता हूँ । तो यह सारी चीजें समझने की हैं, जो बैठ कर के बाप समझाते हैं । तो मैं आऊंगा भी उसमें ना, इसीलिए मैं ब्रह्मा के तन में आता हूँ, दूसरे किसी के तन की बात ही नहीं रहती है । मैं आता हूँ वो वंशावली बनाने के लिए, कौन सी? विष्णु वाली यानी देवी देवताओं की तो एक धर्म एक राज्य जब था संसार में, तो मैं वह देवी-देवता धर्म स्थापन करने के लिए आता हूँ ना । कहते तो हैं गीता गाने वाले बतलाते हैं कि हाँ भाई भगवान आया यदा यदा ही धर्मस्य जब अधर्म हुआ, तब आया और धर्म स्थापन किया । परंतु किसी से अगर पूँछा जाए कि भगवान ने कौन सा धर्म स्थापन किया, बता सकेंगे? यह विष्णु वंशावली अर्थात श्री लक्ष्मी श्री नारायण वंशावली यह धर्म की स्थापना परमात्मा ने की, यह कोई नहीं जानता है । उनमें भी जाके फिर कोई से पोंछे की भाई क्राइस्ट ने कौन सा धर्म स्थापन किया, तो क्रिश्चियन लोग बता देंगे कि क्राइस्ट के द्वारा यह क्रिश्चन धर्म स्थापन हुआ । बुद्धिज्म वाले से भी अगर पूँछे तो कहेंगे बुद्ध के द्वारा यह बुद्ध धर्म स्थापन हुआ, मुसलमान भी बतला देंगे सभी अपने-अपने धर्म स्थापक के नाम से बताएँगे कि उन्हीं के नाम से यह धर्म स्थापन हुआ है, लेकिन भारतवासियों से अगर पूँछा जाए कि अपना धर्म कौन सा है और स्वयं गीता के भगवान ने खुद कहा है कि जब-जब अधर्म होता है तब-तब मैं आता हूँ धर्म स्थापन करने के लिए, तो वह कौन सा धर्म है, उसका नाम कौन सा है, बताए तो सही कोई । भारतवासियों को अपने धर्म का भी नाम का पता नहीं है । अगर सुनाते हैं तो कहते हैं हिंदू । किसी से भी पूछेंगे तो कहते हैं हमारा धर्म हिंदू है । अभी हिंदू कोई धर्म नहीं है, हिंदू तो हिंदुस्तान में रहने के कारण अपने को हिंदवासी या हिंदुस्तान में रहने वाले समझते हैं इसीलिए अपने को हिंदू कहते हैं बाकी हिंदू कोई धर्म तो नहीं न । तो यह बातें देखो अभी बाप बैठकर समझाते हैं । अभी यूरोप देश में रहने वाले अपने को यूरोपियन कहते हैं, परंतु यूरोपियन कोई धर्म नहीं है उनसे अगर पूछेंगे कि तुम्हारा धर्म कौनसा है, वो यह नहीं कहेंगे यूरोपियन धर्म है वह तो यूरोप में रहते हैं इसी लिए यूरोपियन है, बाकी धर्म पूछेंगे तो क्राइस्ट के नाम पर कहेंगे क्रिश्चियन धर्म । (एक भाई बोला) मम्मा यह हिंदू नाम जो है यूरोपियन लैंग्वेज में ठाकुरों को बोला जाता है, आपने देखा होगा यह कोई धर्म नहीं है । नहीं, यह जब मुसलमान लोग आए थे न तभी, तभी के बाद वह सब नाम पड़े हैं । उनको ये फिर काफिर यह सब झगडे जब हुए थे तभी यह सब नाम पड़े थे परंतु वास्तव में यहाँ कोई धर्म की तो बात ही नहीं है ना । तो वही बैठ कर के बाप समझाते हैं की यह तो यहाँ का नाम हो गया, यहाँ के रहने वालों का जिसने भी डाला मुसलमान आए, मतलब पड़ा तो यहाँ देशवासियों के ऊपर ना, यानी देश के ऊपर हिंदुस्तान के ऊपर हिंदुस्तान नाम डाला इसीलिए वह हिंदवासी कहने लगे । बाकी वह अपना कोई धर्म तो नहीं हुआ ना इसीलिए बाप कहते हैं अपना जो सनातनी असुल भारतवासियों का धर्म है वह कोई जानता नहीं है । भारतवासी भी नहीं जानते हैं, कोई भी जानते नहीं है । तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं तो हमारा असुल आदि सनातनी धर्म था देवी देवता विष्णु कहो, देवी देवता लक्ष्मी नारायण । यह जो राजधानी सूर्यवंशी चंद्रवंशी चली है, हम असुल देवी देवता थे परंतु आज देवी-देवताओं जैसे लक्षण नहीं रहे हैं ना इसीलिए बेचारे कहें कैसे अपने को देवी देवता । तो देवी-देवता कहने का वह क्वालिफिकेशन चाहिए ना । कहें देवी देवता और लड़ते झगड़ते मरते मारते रहते हैं यह देवी-देवताओं के लक्षण हैं ? यह तो लक्षण ही नहीं है न, परंतु असूल ऐसी क्वालिफिकेशन वाले और इतना हमारे में बल था, ताकत थी, कभी हम अकाले नहीं मरते थे, कभी कोई रोग आदि नहीं होता था, यह सभी हमारे कर्म श्रेष्ठता का हमारे पास बल था तो इसीलिए बाप कहते हैं मंग आता हूँ उसी में आऊँगा ना जो पहला पहला उसी राजधानी का किंग था । तो मैं आता हूँ तो उसी में इसीलिए कहा है कि विष्णु सो ब्रह्मा और ब्रह्मा फिर सो विष्णु हम सो । विष्णु क्या कहेगा हम सो और ब्रह्मा कहेगा हम सो, हम सो हम । तो वह है एंड का जन्म यह शुरू का जन्म इसीलिए परमात्मा एंड वाले जन्म में आएगा ना । तो अभी विष्णु का 84वां जन्म कौन सा हुआ । वो नाभी से दिखलाता है ना. वह 84वां लास्ट ब्रह्मा और फिर ब्रह्मा जाकर के विष्णु बनते हैं अथवा श्री नारायण बनता है तो यह चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं कि यह इनके ही 84 जन्मों की नॉलेज हैं । ये नाभि दिखलाते हैं ना, इनके ही 84 जन्मों चक्कर है । इसी चक्कर में सभी और धर्मों का बाय प्लाट चलता है । जब इसके जन्म कुछ नीचे आते हैं, सूर्यवंशी चंद्रवंशी पूरे होते हैं तो पीछे दूसरे धर्म मानो चालू होते हैं । पीछे सभी धर्म और इनका भी जब अंत जन्म होता है तभी फिर मैं आता हूँ और फिर इनके द्वारा फिर आ करके नई दुनिया की सैप्लिंग लगाता हूँ तो यह भी जैसे झाड़ है ना । देखो गोल्डन, सिल्वर कॉपर यह सारा है मानो यह नाभी है, यह है ब्रह्मा की सारी नॉलेज, विष्णु सो ब्रह्मा ऊपर है अंत में देखो ऊपर है ना, देखते हो ना? नीचे विष्णु सो ब्रह्मा, अभी ब्रह्मा सो फिर विष्णु, वो है नाभी जैसे बैठा है और वह जैसे अंत में । वह फॉर्म दूसरा है पिक्चर का, ये झाड़ के सूरत में है तो यह विष्णु और विष्णु की नाभि से वह ब्रह्मा तो अभी उसका 84 वाँ जन्म है । अभी परमात्मा को आना है आकर के नॉलेज देना है । तो कहाँ आएगा इधर थोड़ी आएगा, यह तो उसको बनाना है ना, आएगा उधर इसीलिए ब्रह्मा के तन में आते हैं और आ करके उनको भी जगाते हैं । वह भी जो 84वें जन्म में पतित बना है । उनको भी पावन बनाते हैं, उसके साथ उसकी वंशावली को भी पावन बनाते हैं । फिर वो ही वंशावली फिर दूसरे जन्म में जाकर के यह विष्णु बनता है और देवी देवताओं का सूर्यवंशी राजा महाराजाओं का राज्य बनता है तो विष्णु सो ब्रह्मा, ब्रह्मा सो विष्णु । अभी देखो सैप्लिंग हो रही है ना, तो देखो ब्रह्मा इधर बैठा है ना, इधर भी बैठा है उधर भी है तो देखो अभी यह ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा । नाभि में दिखलाया है, यह इधर इसी फॉर्म में समझाया हुआ है तो अभी उसमें क्यों आता है क्योंकि इनका ही तो यह लास्ट जन्म है ना । इन सभी बातों को समझने का है इसीलिए कहते हैं लास्ट सो फास्ट इसीलिए जो लास्ट है एकदम, कहते हैं मैं लास्ट में आऊंगा तो लास्ट मनुष्यों में कौन है और फिर सबसे फर्स्ट मनुष्य कौन है यानी पहला पहला आदमी या पहला पहला मनुष्य तो सतयुग का पहला तो उनको रखेंगे और लास्ट में फिर इसको रखेंगे । तो लास्ट में मैं आकर के सैप्लिंग लगाता हूँ जिससे यह सभी चलता है । बाकी बीच में भी सभी बाय प्लांट यह सभी दूसरे धर्म जो हैं वह इनके बीच में आते हैं । देखो जब कॉपर एज आती है, शुरू होती है तो यह सभी कॉपर एज के बाद शुरू हुए हैं ना । देखो इसमें भी लगाया है ना, यहाँ यह नहीं है सिल्वर एज से नहीं डार निकली है, गोल्डन एज से नहीं निकले हैं, ये गोल्डन एंड सिल्वर इनका ही चला है देवी देवताओं का । फिर जब देवी देवताओं का टाइम पूरा हुआ है उनकी ताकत कम हुई है तब फिर दूसरे कुछ अपनी-अपनी ताकत के कॉपर एज में आए हैं जब मानो ब्रहमा की रात शुरू हुई है । कॉपर एज से रात शुरू हुई है ना, दो युग दिन के जब रात शुरू हुई अभी तब मानो दूसरे आने लगे हैं फिर उनका भी कुछ कुछ अपना अपना उनकी भी देखो गोल्डन सिल्वर कोपर एंड आयरन । हर एक का भी अपना-अपना टाइम होता है । पहले उनका फ़ोर्स होता है, उनकी ताकत का ऐसा प्रभाव होता है पीछे उनके भी प्रभाव कम पड़ते जाते हैं । अभी सब आयरन एजेड, देखो सब काले आयरन में हैं ना, अभी तो सब अभी आयरन एज है और उनकी भी आयरन एज है लास्ट इसीलिए कहते हैं मैं इस आयरन एज वाले में आऊँ या उसमें आऊँ, किसमें आऊँ, क्योंकि इनको डाल तो नहीं बनाना है ना, बनाना है फिर ये सैप्लिंग ये फाउंडेशन इसीलिए मुझे फाउंडेशन वाले में आना पड़ता है तो कई कहते हैं की क्यों नहीं, कोई क्रिश्चियन धर्म वाले में या कोई बुद्ध धर्म वाले में या कोई और धर्म वाले में । और में किसमे, क्योंकि यह धर्म आते ही पीछे हैं तो यह जो धर्म पीछे आते हैं तो इनको पीछे वाले धर्मों को तो स्थापन नहीं करना है ना, उनको करना है वह पहले वाला, इसीलिए पहले वाले धर्म को स्थापन करने के लिए उनके पहले वाले में आना पड़ेगा ना सोल में । तो यह सभी हिसाब समझने का है इसीलिए कहा है विष्णु सो ब्रह्मा और ब्रह्मा सो विष्णु, यह है चित्र में, देखो यह चित्र कोई हमारा बनाया हुआ नहीं है ना ब्रह्मा विष्णु का । आपको बतलाया न वो दिखलाते हैं कमल के फूल से और कहाँ दिखलाते भी हैं वो लक्ष्मी बैठकर के चापी कर रही है बैठी और वो विष्णु उसके नाभि से ब्रह्मा निकला हुआ है, तो ऐसा ऐसा चित्र दिखलाते हैं परंतु यह सभी चित्रकारों ने बनाए हैं । पिताश्री हमें सुनाते हैं की जब हमने ये चित्र देखा था कि लक्ष्मी बैठे विष्णु को पैर दबाती हैं तो कहा ये तो स्त्री जाति का अपमान है तो मैंने चित्र वालों को कहा की ये लक्ष्मी को काट के, जैसे फोटो से किसी को निकल देते हैं जैसे आपने लक्ष्मी को निकाल दिया था न, तो बाबा कहते थे की हमने उसको कहा की लक्ष्मी को हटा के चित्र से खाली विष्णु रख दो क्योंकि बाबा भक्ति मार्ग में विष्णु का भक्त था न वो तो भक्ति मार्ग में बहुतों का होता है ना जैसे किसी का कृष्ण में प्रेम किसको राम में प्रेम तो बाबा को विष्णु में बड़ा प्रेम था । जभी भक्त था तो बहुत उसका पूजन करता था तो उसको विष्णु का चित्र बहुत अच्छा लगा लेकिन लक्ष्मी दासी बनी बैठी थी तो वो बाबा को अच्छा नहीं लगा । तो कहा लक्ष्मी को निकाल दो, उसको मुक्त कर दो खाली हम को विष्णु का फोटो बना कर दो उसका पूजन करता था । तो वो भगत विष्णु का था देखो उसको उस समय तो पता ही नहीं था कि मैं ही विष्णु हूँ, मैं ही विष्णु था अभी मैं ही अंतिम जन्म में आया हूँ, और भक्ति करता हूँ । कहते हैं जो बहुत गिरा वो आपे ही पूज्य आपे ही पुजारी देखो बना न । तो उनका बहुत पूजन करता था । बाबा अपना हिस्ट्री में सुनाते हैं मैं जाता था अपने दुकान पर, ट्रेन में होता था, कहाँ उनको दूसरी जगह जाना पड़ता तो ट्रेन में भी उसका चित्र वह ,पोकेट में रहता था, घड़ी-घड़ी देखता था, घड़ी घड़ी देखता था ऐसे जैसे उस चित्र को जैसे कोई पागल देखता है ना वैसे इतना प्रेम था उसमें, परंतु यह तो पता ही नहीं था कि यह कोई मैं ही हूँ, मेरे ही जन्म का कुछ यह है उसको पता ही नहीं था । इतना प्रेम था उसका चित्र पॉकेट में रखता था बहुत विष्णु के चित्र बनाएं एक तकिये के नीचे रात को सोए तो देख के सोए, जब खटिया पर आए तो एक खटिया पर रखा हुआ होता था, एक पॉकेट में रखा होता, एक दूकान पर रखा होता था तो जहाँ जहाँ जाते वहाँ वहाँ विष्णु का चित्र, तो जहाँ-जहाँ जाए वहाँ विष्णु ही विष्णु ऐसा तो भक्त था तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप अभी समझाते हैं । अभी वो निराकार परमात्मा बैठकर के समझाते हैं की ये तू था लेकिन बहुत जन्म लेते लेते अभी तुम्हारा यह लास्ट जन्म है तो लास्ट जन्म तो कोई दूसरा होगा ना इसीलिए कहते हैं उसका नाम पहले था लखीराज पीछे जब मैंने आकर के ज्ञान दिया एडोप्ट किया ना उसको अपना बनाया तो मैंने उसका नाम रखा है ब्रह्मा । ब्रह्मा अभी नाम पड़ा है नहीं तो वैसे तो साधारण जैसे किसका कुछ नाम है तो उनको लखिराज कहते थे । तो यह सभी बातें बैठकर के बाप समझाते हैं की मैं इसीलिए उनके तन में आता हूँ क्योंकि ये वही आत्मा है जो अपने जन्म लेते लेते अभी इसका ये 84वाँ जन्म है तो उसी में आकर के मैं फिर सेप्लिंग लगा रहा हूँ । फिर वो ही विष्णु अथवा सूर्यवंशी चंद्रवंशी राज्य के अधिकारी बनते हैं तो यह है अपना भारत का जो प्राचीन अपना धर्म था और हम जिस धर्म वाले थे वह अभी सैप्लिंग बाप लगा रहे हैं इसीलिए कहते हैं अभी जो दूसरे धर्म हैं अभी उनका एंड और दूसरे धर्म वाले भी मानते हैं मुसलमान भी मानते हैं कि हमारी चौदहवीं सदी में कयामत होगी उनका भी अभी-अभी हिसाब पूरा होता है । उनका 1382 या 83 कुछ ऐसा टाइम है उसके भी 15-16 वर्ष हिसाब है और क्रिश्चियन भी कहते हमारी सीग्रीगेशन 2000 वर्ष की है । हम जब हॉस्पिटल गए थे तो एक बड़ी नर्स थी । वह कुछ धर्म की नॉलेज को अच्छा जानती थी तो उसने हमसे भी बात की । हमने कहा आपका, आपके इसका कितना एज है क्रिश्चियनिटी का? कहा 2000 वर्ष । मैंने कहा अभी तो 1964 तो अभी तो आपके बाकी थोड़ी वर्ष हैं । कहा हाँ अभी सीग्रीगेशन होगा उनका । तो वह मानते हैं कि हमारे इस क्रिश्चियनिटी की 2000 वर्ष की आयु है । उसमें अभी उस समय 1964 था तो उसने कहा कि बस बाकि अभी थोड़े वर्ष हैं तो हमने कहा कि चलो फिर आपकी क्रिश्चेनिटी का एंड, तो फिर क्या होगा तो उसने कहा वह तो गॉड जाने, गॉड नोज । वह बेचारी बहुत तो नहीं बता सकी न लेकिन गॉड नोज, जो गॉड जनता है वो अभी बतलाते हैं कि क्या खबर है अब मैं बताता हूँ कि क्रिश्चेनिटी की भी सीग्रीगेशन और मुसलमानों की भी कयामत और हिंदू भी तो प्रलय मानते हैं ना तो हिंदू धर्म की भी अभी प्रलय । फिर वो ही देवी देवता आदि सनातनी धर्म जो एक धर्म और एक राज्य अभी उनका अपना चलने का है तो वह बैठकर के बाप समझाते हैं कि सभी धर्मों का फिर एंड होन है इसीलिए ये डिस्ट्रक्शन की तैयारियां है कि इसी में ये जो इतनी जनसंख्या इतने धर्म कैसे नष्ट होंगे तो उसके लिए कोई भारी डिस्ट्रक्शन चाहिए ना, बात भी कोई भारी चाहिए ना इसीलिए उसकी यह सब तैयारियां हैं जिसमें इतनी मनुष्य सृष्टि की ये संख्या अभी देखो 500-550 करोड़ की संख्या यह भी नष्ट होनी चाहिए ना । कैसे हो, उसका कोई तरीका भी अच्छा चाहिए ना । तो अच्छा क्या होगा, खाली एटॉमिक बम से भी काम नहीं, कुछ नेचुरल कैलेमिटीज भी काम करेंगे इसीलिए बाप कहते हैं मेरी नेचुरल कैलेमिटीज भी अपने अच्छी तरह से फ़ोर्स में काम करेगी और यह बोम्ब्स से फिर सिविलवार के जरिए इसी इसी तरीके से इन जनसँख्या का इन धर्मों का अभी नष्ट हो करके, अभी साथ-साथ फिर सैप्लिंग भी लगा रहा हूँ क्योंकि सैप्लिंग भी साथ-साथ चाहिए ना । डिस्ट्रक्शन के टाइम पर ही तो चाहिए । ऐसे थोड़ी हो जाएगा पीछे से, नहीं उसके साथ क्योंकि ये अनादी सृष्टि है न तो सैप्लिंग साथ ही चाहिए पुराने में ही सैप्लिंग चाहिए इसीलिए कहते हैं मैं पुराने में, अति पुराने के टाइम पर आता हूँ औ अभी आता हूँ तो सेप्लिंग का भी काम चल रहा है उधर डिस्ट्रक्शन की तैयारियाँ हो रही है । अभी डिस्ट्रक्शन भी होगा और सैप्लिंग का काम भी पूरा होगा और सैप्लिंग मजबूत हो जाएगी तो डिस्ट्रक्शन । इसीलिए गीता में भी है कि मेरे इस यज्ञ के बल से यह विनाश ज्वाला प्रज्वलित होती जाएग । जितना जितना हम ताकत में आते जाएँगे ज्ञान और योग के उतना उतना उसकी पावर से ये विनाश ज्वाला प्रज्वलित होती जाएगी क्योंकि उनको डिस्ट्रक्शन करना है ना तो उसी से यह दुनिया का अंत हो करके फिर ये नई दुनिया बनेगी । तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं कि बच्चे अभी यह टाइम वह है इसीलिए इस टाइम पर अपना इंडीविजुअली क्या करने का है यह तो है गॉड का प्लान और गॉड बैठकर के समझाते हैं की मेरा प्लान क्या है और मैं किस तरह से इस प्लान को एक्ट में लाता हूँ । उसमें हर एक को इंडिविजुअली अभी क्या करना है वह इंडिविजुअली बैठ करके समझाते हैं कि तुम भी अपने में नई दुनिया की सैप्लिंग लगाओ अर्थात अपने को प्योर बनाओ । प्योर दुनिया के लिए तो प्योर चाहिए ना । प्योरिटी को अपनाएंगे तभी प्योर दुनिया में आएँगे प्योरिटी नहीं अपनाएंगे तो प्योर दुनिया में कैसे आएँगे, इम्प्योर थोड़ी प्योर दुनिया में आएगा । नहीं, दुनिया कोई दूसरी नहीं है यही दुनिया है लेकिन चेंज में आती है तो अपने में ही चेंज लानी है ना, बाकी कोई दुनिया और नहीं दुनिया यही है लेकिन दुनिया बदलती है तो बदलती है तो पहले अपने को इंडीविजुअली बदलना है ना । कैसे बदलना है, बदलना बैठ करके सिखाते हैं तो अभी देखो हम बदल रहे हैं ना । हम पहले बदल रहे हैं हमारे बदलने से फिर दुनिया बदलेगी तो अभी कैसे बदलते हो, बदलते जा रहे हो ना । चेंज मालूम होती है कि हम चेंज होते जा रहे हैं । चेंज में कोई बड़ी चेंज नहीं होगी, सोल इम्प्योरीफाईड से प्योरीफाईड में सोल को आना है तो प्योरीफाईड सोल बनता है इसीसे हम प्योरीफाईड बनते जाते हैं तो यह है हमारी चेंज । संस्कार को चेंज करना है जैसा जैसा संस्कार वैसा वैसा जन्म मिलता है । तो हमको जन्म किस आधार पर मिलता है संस्कारों के आधार से तो हम पहले संस्कार बना रहे हैं ना अपना आत्म संस्कार को लेती है बनाती है फिर वह जाकर के जैसा संस्कार वैसा जन्म मिलता है । तो हमको अभी अपनी आत्मा के संस्कारों को बदलना है तो अभी बदल रहे हैं हम बदल रहे हैं दुनिया बदलेगी जरूर इसीलिए परमात्मा अभी बाप कहते हैं अभी बदलो, अपने को चेंज करो तो अभी चेंज करना है और चेंज भी चेंज थोड़ा चेंज नहीं थोड़ा चेंज तो फिर थोड़े चेंज के हिसाब से थोड़ा बीच में आएँगे चंद्र्वंशी में और फिर उनके कम कला में आएँगे नहीं तो फिर चंद्रवंशी के भी लास्ट में आएँगे । फिर जल्दी पुरानी दुनिया में जाना पड़ेगा इसीलिए कहते हैं जितना जितना अपने को कंप्लीट बनाएँगे तो कंप्लीट आएँगे । पहली-पहली न्यू वर्ल्ड नए घर में अर्थात जब पूरा सुख है तभी आएँगे तो अभी कंप्लीट चेंज । तो यह कंप्लीट चेंज में फायदा है की आएँ भी नई दुनिया में और फिर हमको जाने में भी डंडे नहीं खाने पड़ेंगे धर्मराज के । नहीं तो फिर हमको अंत में इसी सभी जन्मों का फिर अपना भोगना पड़ेगा सजाएँ जैसे स्वप्न में भी देखो कई स्वपन आते हैं ना फिर बहुत दुःख महसूस होता है । समझते हैं आदमी कोई मर गया या हमको किसी ने कष्ट दिया उसी समय है तो स्वपन परंतु भासता तो है ना, तो इसी तरह से तो हमको भी भले शरीर तो अभी लेना नहीं हैं क्योंकि शरीरों की तो एंड है क्योंकि अभी डिस्ट्रक्शन है तो इस डिस्ट्रक्शन में शरीर को नाश होना है । लेकिन आत्मा के कर्मों के हिसाब को नाश करने का कौन सा तरीका है तो फिर वह फिर सजाओं के द्वारा तो उन सजाओं से अन्दर आत्मा को पीड़ा रहेगी । जितने-जितने बुरे कर्म किए होंगे न वो भोगेंगे वो महसूस करेंगे कि मैं बहुत दु:खी हूँ । इसलिए बाप कहते हैं उसी दुःख से छूटने के लिए मैं तुमको अभी ज्ञान योग का बल देता हूँ तो वह भी तुम्हारे पाप नष्ट हो जाए । तुम आत्मा धर्मराज की सजाएँ भी ना खाओ तुमको पीड़ा भी न भोगना पड़े इसीलिए जाने के समय में भी तुम अच्छी तरह से सुख से जाओ और आने के समय पर भी तुम सुख में आओ । इसीलिए यह तुम्हारा जाने और आने का रास्ता साफ करता हूँ । तो यह साफ करना चाहिए ना आने की जाने के रास्ते को । तो अभी जाना और आना साफ रास्ते से चाहिए वह बैठ कर के बाप समझाते हैं । नहीं तो कहते हैं सजाएँ खाते जाएँगे । फिर उसी से साफ होना सजाओ से वह बहुत कड़ी है । अभी का दुःख शरीर का भोगना और भी कुछ सुख का है क्योंकि अभी ज्ञान है ना । कुछ दुःख होता है तो कहते हैं कि भाई कर्म भोग है इतनी उसकी पीड़ा नहीं है । परंतु वो सजाओ की पीड़ा बहुत कड़ी है इसलिए बाप कहते हैं कि अभी उसका ख्याल रखने का है । तो इसी सभी बातों को बैठकर के बाप समझाते हैं कि इन्हीं सभी सजाओं से छूटना है और फिर आना भी इज्जत से है इसे कहते हैं विथ ऑनर पास होना, वह है डिसओनर, सजाएँ तो खाते जाएँगे । भाई सजाएँ भी ना खाएँ और आएँ भी हम अच्छी स्टेज पर तो यह तब होगा जब अभी इसी ज्ञान और योग से हम अपने पापों को दग्ध करेंगे तो यह है विथ ऑनर पास होना। जो विथ ऑनर पास हो जाएँगे वो अच्छी दुनिया में आएँगे या पहले टाइम में आएँगे और जो डिस ऑनर से होंगे वो पीछे पीछे आएँगे जाना तो देखो सबको है न, राम गयो रावण गयो जेक साबू परिवार कहते है न जाना तो सबको है ऐसे नहीं हमको भी कोई बैठ जाना है । जाना तो है लेकिन हर एक जाने का अपना है न, हम विथ ऑनर कोशिश कर रहे हैं विथ ऑनर पास हो जाए और जो डिस ऑनर होकर के जाएँगे वो फिर डिस ऑनर वर्ल्ड में आएँगे, टाइम पर पीछे आएँगे और जो विथ ऑनर जाएँगे वो फिर ऑनरफुली आएँगे नीचे भी पीछे ऑनरफुली दुनिया में आएँगे और वो टाइम अपना सुख का पास करेंगे । तो यह सारी चीजें हैं जिसको हमें समझना है तो वर्ल्ड को भी समझना है अपने लाइफ के जन्मों को भी समझना है और उसी अनुसार हमको अभी क्या प्राप्त करना है इसको जान करके उसी का पुरुषार्थ रखना है तो यह सभी बातें हैं ना जिसको समझना है अच्छी तरह से। तो ज्ञान का मतलब ही है समझ। समझ का मतलब यह नहीं है कि खाली शास्त्र, ग्रंथ, वेद बैठकर के समझना। नहीं, हमको अपना नॉलेज, व्हाट एम् आई अपने रचता का नॉलेज हमारे सभी जन्मों का नॉलेज और उसमें अच्छे जन्म कौन से हैं उसका नॉलेज और यह सब कैसे बनाएँ उसका नॉलेज इसको ज्ञान कहा जाता है। बाकी ऐसे नहीं हम विद्वान वेद पढ़कर के विद्वान या शास्त्र पढ़कर शास्त्री बना तो ज्ञानी हो गया, नहीं ज्ञानी मीन्स हम को इन चीजों का ज्ञान और प्रैक्टिकल में उसी चीज को हम अपनाएँ, इस को कहा जाता है ज्ञान, इसीलिए बाप कहते हैं वह प्रैक्टिकल बनाना और प्रैक्टिकल का नॉलेज मैं देता हूँ इसीलिए ज्ञान का सागर भी मैं हूँ और फिर बनाता भी मैं ही आकर के हूँ । कैसे बनाता हूँ, तो देखो बन रहे हो न, प्रैक्टिकल देखते जा रहे हो कैसे बनाता है । इसमें कोई क्वेश्चन पूँछने की क्या बात है, कैसे बनाता है, भगवान ने दुनिया कैसे रची, अब देख लो ना तो अपने को रचना में ला कर देख लो कैसे रची, ऐसे रची। बाकी ऐसे नहीं कि कभी मनुष्य था ही नहीं, जो बैठकर के पुतला बनाया । अभी देखो यह बना रहे हैं कैसा बना रहे हैं आत्मा में भी प्योरिटी फूँक रहा है तो देखो यह पंप कर रहा है ना । तो देखो इसी तरीके से बाकी ऐसे नहीं हवा फूँकी जैसे उसमें हवा फूँकते हैं साइकिल में या मोटर में कोई ऐसा बैठके तो हवा नहीं फूकना है न जो बैठके स्वांस फूँका । ये ऐसे जैसे अभी देखो प्योरिटी फूंक रहे हैं हमारे में प्योरिटी धारणा का दे रहे हैं उससे हम फिर प्योरिटी में आ कर के फिर अपने जनरेशन इसी तरीके से पाते हैं । तो भगवान ने दुनिया कैसे रची वह अभी देखो प्रैक्टिकल उसकी रचना में आकर के देखो कि भगवान ने दुनिया कैसे रची । बाकी कैसे रची खाली पूछने वाले तो कोई कहेगा उसको कि पहले तो दुनिया आग का लाल गोला थी । पहले बंदर ही बंदर थे फिर बंदर से मनुष्य बना, फिर भगवान ने मनुष्य को बन्दर कर दिया ऐसा मनुष्य को रचा वाह! । पहले बंदर अच्छे रहे तो पहले बंदर पीछे मनुष्य वाह! नहीं, बाप कहते हैं ऐसी बातें ही नहीं है । मनुष्य अनादि है । ऐसे नहीं कहेंगे कि मनुष्य कभी थे ही नहीं । हाँ, संख्या कभी थोड़ी है कभी बहुत होती है इसका डिफरेंस पड़ता है । संख्या बढ़ती है घटती है इसका चेंज होता है । चेंज होता है लेकिन मनुष्य था ही नहीं, नहीं मनुष्य अनादि है लेकिन फिर उसको आ करके न्यूमैन बनाते हैं तो जरूर ओल्डमैन होगा उसको न्यूमैन बनाएँगे ना । न्यूमैन का मतलब ही क्या है, उसका माना ओल्डमैन है, मैन तो जरूर है ना । खाली ओल्ड है उसको न्यू बनाते हैं , न्यूमैन का मतलब यह नहीं मैंन ही नहीं है यानी मनुष्य ही नहीं है । नहीं, न्यूमैन का मतलब है कि ओल्ड यानी तमो प्रधान है और दु:खी हो गए हैं, उन्हीं को आकर के न्यूमैन बनाते हैं अर्थात उनमें नई लाइफ अथवा सुख का यह सब भरते हैं । वह कैसे भरते हैं इसीलिए उसको क्रिएटर कहते हैं यह सारी चीजों को समझना है और इसी बात को बैठ कर के बाप स्पष्ट रीति से समझाते हैं तो अभी समझते हो ना अच्छी तरह से कि परमात्मा कौन और परमात्मा ने दुनिया कैसे रची । उस दुनिया के पहले पहले मनुष्य कौन हैं तो पहली रचना जो डायरेक्ट उसने रची उन्हों को क्या कहेंगे ब्राह्मण मुखवंशावली जिसको बैठकर मुख से रचा । मुख से ऐसे नहीं कि आदमी निकल आएँगे, हम ऐसे कोई मुख से थोड़ी निकल आए हैं सारे के सारे, नहीं । हम मुख के द्वारा जो नॉलेज सुनाया है उसी नॉलेज से हम देखो प्रकट हुए हैं यानी उसी समझ से ज्ञान से हम प्योरिफाइड बने हैं तो हम हो गए उसकी मुख वंशावली परंतु कई बिचारे वो ब्राह्मण है ना, ब्राह्मण लोग वह कहेंगे हाँ, हम ब्रह्मा की मुखवंशावली । उन्हों से पूछेंगे तो कहेंगे ऐसा, परंतु कहेंगे मुख वंशावली कैसे रची वह उनको पता थोड़ी है कुछ बता नहीं सकेंगे । लेकिन नहीं, वह तो एक जात का नाम रख दिया नहीं तो असल में अभी प्रैक्टिकल में यह हम ब्राम्हण अथवा ब्रह्मनियाँ हैं । यह हैं प्रजापिता ब्रह्मा इसको कहा जाता है प्रजापिता, यानी इसी मनुष्य द्वारा बैठ कर के यह नए मनुष्यों की रचना करते हैं । वह परमात्मा तो निराकार है ना । निराकार भी रचेगा तो वह मनुष्य सृष्टि रचता है तो मनुष्य के थ्रू ही तो रचेगा ना । तो थ्रू ब्रह्मा वो बैठ कर के देखो रचना इसी तरह से बैठ कर के हम ब्राह्मणों को फिर सो देवता बनाते हैं । तो ब्रह्मा सो विष्णु तो हम भी ब्राह्मण सो देवता । विष्णु वंश में आएँगे ना । विष्णु कुल में आएँगे, देवी देवता पद पाएँगे तो ब्रह्मा सो विष्णु हम भी फिर ब्रह्मण सो देवता । इसी तरीके से फी देवी-देवताओं पद पा करके रहेंगे फिर सदा सुख पाएंगे तो अभी ऐसे लायक बनना है और अपना ऐसा पुरुषार्थ करना है । कहते हैं परमात्मा जानी जाननहार है तो जो जानी जानकार है वही तो हमको सब जान पहचान सुनाएगे ना । जानी जाननहार का मतलब कई ऐसे समझते हैं वह जानते हैं कि उसके अंदर क्या चल रहा है, क्या बेकरी याद है या दुकान याद है या क्या याद है वह रीड करे । वह थॉट रीडर थोड़ी है वह खाली बैठकर थॉट रीड करेगा, उससे क्या । ऐसे तो थॉट रीडर्स बहुत है थॉट रीड करते हैं इसके अंदर क्या थॉट है, वो एक नॉलेज है, विद्या है जो वो भी सीखते फिर वो थॉट रीड कर सकते हैं ऐसे बहुत हैं परन्तु वो कोई थॉट रीडर नहीं है । गॉड की जो महिमा है तो इसका मतलब यह नहीं की वो थॉट रीड करता हैं । कोई चोर है उसको अन्दर चोरी का ख्याल चल रहा है, मैं अभी जाउँगा, ऐसा चोरी करूँगा, तो क्या है उसको अगर किसी ने जाना । अगर भगवान जानता है इसके अंदर में यह चल रहा है तो उससे फायदा क्या हुआ, तो क्या चोर तो चोरी कर लेता है । जानते भी वह तो कर रहा है ना, खुनी खून कर रहा है और फिर वह जानता है, वह जानता है, ऐसे ही मुफ्त का वो जानता रहे और चोर चोरी करता रहे तो उसकी जानने से फायदा ही क्या हुआ । उसके जानने का तो कोई महत्व ही नहीं हुआ ना । नहीं, उसके जानने से कोई महत्वता का कर्तव्य हुआ हो तभी तो कहें भाई वो जानी जाननहार है वो बात उसी पर है की वो हमारी सारी कर्मगति को जानता है कि तुम कहाँ थे ऊँचे और कहाँ से गिरे हो वो हमारे इसी करमगति को जानता है । खुद बैठकर समझाता है और फिर हम को ऊँचा बनाता है इसीलिए उसको कहते हैं, देखो वो हमारी ऊंची स्टेज को जानता है और कहते हैं कि तुम कैसे हो ऊँची स्टेज पर चढ़ो तो हमको देखो, अभी चढ़ा रहा है न । तो हमारे को कुछ ऊंचा उठाया है तभी तो उसका नाम है, बाकी हम चोरी करते रहे, हम पाप करते रहे और वह जानता है, तो जानता है तो अपने घर में रखे जानकर, हमारा क्या फायदा हुआ । हमको कुछ फायदा दिया हुआ होता तब तो हम उसकी महिमा करे ना । तो हम उसकी महिमा करते हैं इसी आधार पर कि वह हमारी गिरावट और हमारी चढ़ावट दोनों को जानता है इसीलिए अभी आ करके हमको चढ़ाता है । हमारे कर्मों को श्रेष्ठ बनाता है इसीलिए उसने बैठकर के हम को उठाया है तभी हम उसकी महिमा करते हैं और कहते हैं कि देखो यह हमारी जानने वाला है और तब हम महिला करते हैं तू जानी जाननाहार है तू ऐसा है तू ऐसा है । किसकी भी स्तुति करते हैं तो कभी उसने कुछ किया है तभी ना, परंतु खाली स्तुति नहीं करने का बाप कहते हैं कि अभी स्तुति करते-करते, पता नहीं है खाली स्तुति करते हो ना, उससे क्या हुआ अभी देखो पता भी पड़ता है और अभी फिर देखो प्रैक्टिकल में आओ तो प्रैक्टिकल में जो तुम एक्संस में आएँगे उससे मेरा शो करेंगे तो बच्चे हैं तो बच्चों का काम है प्रैक्टिकल में बाप का शो करना कहते हैं ना सन शोज फादर स्टूडेंट् शोज मास्टर तो अभी बा कहते हैं कि अभी मेरा शो करो अपनी पढ़ाई से और अपना फॉलो कर करके, फॉलो करो फादर को अच्छी तरह से तो इससे मेरा शो करेंगे भाई बच्चा किसका है कोई बच्चा अच्छा काम करता है तो कहते हैं यह किसका बच्चा है बच्चा ऐसा है तो बाप क्या होगा तो ऑटोमेटिक बाप की शो हो जाती है ना तो स्तुति हो गई ना वह कहते हैं कि मेरी स्तुति ऐसे करो प्रैक्टिकल में बाकी ऐसे नहीं तू ऐसा, तू ऐसा, मैं पापी, तू ऐसा ऐसा, मैं नीचे, मैं कपटी, मैं दास आदि अपने को नीचे कहना और उसकी खली महिमा ही करना, उससे क्या हुआ । अज्ञान में भी अगर कोई बच्चा हो न, कहे मेरा बाप बहुत अच्छा अच्छा, मैं तो बहुत खुनी हूँ, डाकू हूँ ऐसा हूँ, बाप के सामने बैठ कर के खाली बाप की स्तुति करें और अपने को ऐसा कहे तो बाप क्या कहेगा, नालायक बच्चा तू मेरी इज्जत गँवाते हो, नहीं कहेगा ? तो कहेगा एकदम, तो बाप भी कहते हैं तुम खाली मेरी ऐसे ही स्तुति करते हो, इससे क्या हुआ । ऐसी स्तुति से फायदा ही क्या । तू प्रैक्टिकल में एक्शंस को सुधार, प्रेक्टिकल में अपनी एक्टिविटी को ठीक कर तो उससे फिर मेरी स्तुति आपे ही होगी तुमको करने की दरकार नहीं है । तुम्हारे एक्टिविटी से सब कहेंगे कि हाँ भाई ये किसका बच्चा है, किसने पढाया इसको, यह कौन है, इसको किसने सिखाया तो उससे अपने आप होगा, खाली कहने की क्या बात है । तो यह सब बाप बैठ के अभी प्रेक्टिकल में समझाते हैं और कहते हैं कि अभी प्रैक्टिकल अपने में ऐसी चेंज ले आओ, तो फिर दुनिया भी चेंज रहेगी, समझा अभी, इन बातों को समझते हो ना अच्छी तरह से । अच्छा अभी आज संडे है, हाँ इसको बिचारे को टोली दे दो । तो ऐसा बाप जो बेहद का बाप है, वह बैठ करके अभी हमको यह नॉलेज दे रहा है । तो ऐसे बाप से ऐसी नॉलेज को धारण करके और अपने को हम भी तो देखो मास्टर नॉलेजफुल, वह हमारे फादर है नॉलेजफुल और हम हैं मास्टर नॉलेजफुल, मास्टर बच्चे को कहा जाता है, तो हम हैं मास्टर नालेजफुल तो हम भी कोई कम थोड़ी ही है । हमको भी अभी बाप ने बैठकर के जो नॉलेज दी है उससे हमारी आँख खुल गई है तो हम भी अभी मास्टर नॉलेजफुल बने हैं और फिर बने हैं तो हमको भी इसी ज्ञान से अपना पूरा अधिकार पाने का और पाकर के सदा सुख को प्राप्त करना है हम अपने सुख के लिए ही तो करते हैं ना । सुख कहाँ से होता है कैसे होगा इस बातों से दु:ख है मनुष्य बिचारे जानते ही नहीं हैं । खाली दुःख होता है तो दु:खी होकर के रोता है या चिल्लाता है या हे भगवान, हे भगवान ऐसे-ऐसे पुकारता है । यह बिचारे जानते नहीं है इतना कि खाली हे भगवान् कहने से तो कुछ नहीं है ना । दुःख कहाँ से हुआ, किस बात से हुआ उसका ज्ञान होना चाहिए न । अभी देखो अपने साथ रोशनी है कि ये पाँच विकार हैं, विकारों के कारण हमारे कर्म जो है बुरे हुए हैं और बुराई के कारण हमारा दुःख बना है । अभी दुःख हमको होता है जभी रोग होता है, कोई अकाले मरता है, लड़ाई झगड़े होते हैं, निर्धनता होती है यह सभी बातें हमको दुःख देती हैं । अभी यह दुःख की बातें हमारी बनी कहाँ से, हम निर्धनी कहाँ से बने या हमारे में रोग कहाँ से आया, किसने बनाया, क्या भगवान ने बनाया? नहीं, हमने अपने बुरे कर्मों में बनाया । तो अभी हमको नॉलेज होना चाहिए कि हम बुरे कर्म में ना करें, जिससे हमारा रोग बने । तो रोग बनाने वाला अथवा निर्धनी अपने को बनाने वाला, अकाले मृत्यु में आने वाला, हम अपने को आपे ही अपने को बनाया । यह भगवान ने नहीं दिया है वह कई समझते हैं भगवान ने रोग भी भगवान ने दिया है, यह सब भगवान करते हैं, यह सब तो भगवान के ऊपर दोष है । भगवान कहते हैं मैं बच्चों को दु:खी थोड़े ही करूँगा । मैं कैसे । लौकिक बाप भी होता है ना, तो कभी बच्चों को दु:खी रखने का ख्याल भी नहीं करता । आप पिता हो, आप अपने बच्चों को कभी दुःख देने का सोंचते हो हाँ मैं इसको दुःख दूँगा ऐसा करूँगा, कभी ख्याल करते हो? कभी नहीं । जब आप लौकिक पिता भी नहीं करते हो तो वह तो पारलौकिक पिता है । यह तो महिमा ही करते हो तू सदा सुख दाता, तू दुःखहर्ता सुखकर्ता, महिमा करते हो ना । ऐसे थोड़ी कहते हो हे भगवान तू दुःखकर्ता, तू सुखकर्ता कभी महिमा करते हो ऐसे? कभी नहीं करते हो । आप उसको कहते हो दुःखहर्ता, हरने वाला है तभी तो दुःख में उसको याद करते हो ना । अगर दुःख देने वाला हो तो याद क्यों करते हो । ऐसे थोड़ी है दुःख देता हो तो उसको कहें तू दुःखहर्ता नहीं, दुःख हमने अपनी भूल से, अपने विकारोंवश हो करके बनाया इसलिए बाप कहते हैं, अब इन्हीं सभी बातों को समझ करके इन विकारों का संग छोड़ो तो फिर तुम्हारे दुःख छूट जाएँगे समझा । तो अभी उससे कैसे छूटें, उसका उपाय क्या है इसीलिए कहते हैं दुःख छुड़ाने वाला तू दुःखहर्ता क्योंकि उसकी तरकीब तुम बतलाते हो, तुम्हारे पास उसकी तरकीब है । हम तो फंस गए, अभी उससे हम छूटें कैसे हो वो तरकीब तुम ही जानते हो, गॉड नोज इसीलिए कहते हैं तुम जानते हो । उसकी सच्ची-सच्ची बात तुम बताएँगे । कहते हैं गॉड इज ट्रुथ, भाई तुम उसकी सच्ची बातें क्या है, वह यथार्थ तुम बताएँगे । अभी बताओ तो हम छूटें उससे इसीलिए हम याद करते हैं उसको । तो अभी बाप आया है, बतलाते हैं कि किस तरह से तुम इन दुखों से छुटो और अपने को सुखी बनाओ वह बैठ करके समझा रहे हैं । तो अभी बनना चाहिए ना, सीखना चाहिए और सदा सुख पाना चाहिए, समझा । आती है कुछ समझ में बातें ? अच्छा । अभी बहुत समझदार बनते जाते हो ना, तो अभी समझदार, हम समझदार बाप के समझदार बनते हैं तो समझदार खाली ऐसा नहीं समझदार बने हैं परंतु समझदार के ऊपर बहुत रिस्पांसिबिलिटी है । जितने बच्चे बड़े होते हैं तो रिस्पांसिबिलिटी आती है सर पर तो अभी रिस्पांसिबल रहना है । कौनसी रिस्पांसिबिलिटी की हम बने हैं तो अभी दूसरे को भी बनाना है और ऐसे नहीं कि बन करके भी उनसे कोई भूल होती है न तो उसके ऊपर और दंड पड़ता है । समझदार कोई बुरा काम करता है ना तो कहते हैं अभी तुम इतना अच्छा समझदार तुमने ऐसा काम किया तो उसके ऊपर और ही मेहनत पड़ेगी इसीलिए समझदार बनते हो तो कोई बुरी बात फिर करने की नहीं है । अगर करें तो फिर उसके ऊपर नैलत यानि उसकी सजा भारी हो जाएँगी, डबल हो जाएगी । पहले सिंगल थी अभी डबल होगी इसीलिए संभलना है तो इन्हीं सभी बातों को अच्छी तरह से समझते अब चलो । अच्छा ऐसा बाप और दादा, अभी देखा ना अभी बापदादा को समझते जाते हो ना अच्छी तरह से, तो बाप दादा और माँ की मीठे-मीठे बहुत अच्छे समझदार बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग । अच्छा अभी टोली दो । कौन देगा? अच्छा । आज करुणा को टर्न नहीं मिलता है ना, संडे का ही मिलता है तो खिलाओ । बड़ी थाली है तो उठाने की मेहनत है । शिव बाबा को याद करते हो? पहले तो याद नहीं था । थैंक्स क्या करनी है, कितनी थैंक्स करेंगे, बताओ । याद करो और याद करते, देते जाओ और दृष्टि भी देते जाओ मानो याद कराते जाओ । देखो अपना योग कैसा है? अटेंशन देखो जैसे किसी को कहा जाता ना अटेंशन, जो ड्रिल टीचर होते हैं तो कहते हैं अटेंशन । अटेंशन कहाँ? अटेंशन कहाँ ? ऐसे नहीं अटेंशन हमारे में , बुध्ही बाप की याद में, अटेंशन । तो अटेंशन, तो यह भी अपना योग में बिठाते हैं तो अटेंशन खिंचवाने के लिए, उसमें आँखे बंद नहीं, अटेंशन हो और आंखें क्यों बंद करें, अंदर थोड़ी कुछ देखने का है । बंद नहीं, खुला । तो अपने सब कायदे, कभी उबासी नहीं देना, कभी-कभी क्लास में बैठे-बैठे कोई उबासी देते हैं ना, तो समझते हैं शायद यह पढ़ने में सुस्त है । जो इस पढ़ाई भी चुस्त होते हैं ना वह कभी उबासी नहीं लेते । स्कूल में बच्चा जाए और उबासी देते रहे तो क्या कहेंगे उसको यह सुस्त है, नहीं चुस्त, यह पढ़ाई का है तो पढ़ाई में बड़े चुस्त रहना चाहिए और कभी झुठके नहीं, वह नींद के झुटके, इसमें तो आंखें खुल जानी चाहिए । पढ़ाई है ना, नॉलेज है तो आँखें खुल जानी चाहिए और उबासी भी नहीं, यह भी नहीं, यह भी सभी जैसे डांस करता है । हमारे बाबा हमारे पास मधुबन में आएँगे ना तो किसी ने उबासी दे दी क्लास के समय तो कहेंगे कि यह कोई काम का नहीं है, इसको कमाई का शौक नहीं है खाली खाने वाला है ऐसे ही, कमाई करके नहीं जाने का है । जो कमाई वाले हैं उसकी तो नींद खुल जाती है और सुस्ती वुस्ती चली जाती है तो हम बतला देते हैं कि फिर आएँगे उधर तो फिर अच्छी तरह से सब मैनर्स और सब बातें ध्यान में रखनी हैं । रूहानी मैनर्स और ये सभी बातें अपने को ऊँची-ऊँची उठा देती हैं न और रॉयल मैनर्स रखने हैं, अभी हम बहुत रॉयल बनते हैं । अभी बाप पढ़ाने वाला हमको बाप, हम किस के स्टूडेंट हैं, कोई ऐसे वैसे कॉमन टीचर के नहीं हैं, हमारा टीचर वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी है, नॉलेज फुल गॉड हम कहते हैं । तो अभी जब हम उसके स्टूडेंट है तो हम को कितना नशा होना चाहिए और इस पढ़ाई की स्टेटस कितनी ऊँची है तो ऐसी लेनी चाहिए ना । सबको दिया ? कोई भूला है, कोई भूला हो तो हाथ उठाए । क्यों इसमें हमको चने वने नहीं दिया है दादी ने । दादी के चने खलास हो गए । दादी देगरा थोड़ा बनाती है, अच्छा, हम थोड़ा दे देते हैं, दादी.... दादी क्या हाल तेरा हुआ आज? अपना ले आई है, अभी उसको चलने वाला देना होगा । कुछ तो हमेशा ज्यादा बनाना चाहिए, ज्यादा चीज होए फिर दिन है न तो काम में आ जाएँगे । पीछे बचेगा तो काम में आएगा भाई रात का है तो दूसरे दिन खाने में जरा हो जाता है । बचा तो भी क्या हुआ फिर दूसरी बार खाना है क्या है इसमें । ज्यादा बना लिया तो क्या, बड़ी दिल करनी चाहिए, छोटी दिल नहीं । देखो, हमको बड़ा बाप मिला है ना, अच्छा! नहीं बेचारी मेहनत करी है, छोटा देगरा बनाया है, बड़ा बड़ा बनाने में वो जरा बड़ा- बड़ा करना पड़ता है ना, घुमाना पड़ता है । हमारे पास मधुबन में तो देखो पौने चार सौ इकट्ठे रहते थे । पौने चार सौ का खाना इकट्ठा, तो उनके लिए कितना चढ़ाना पड़ता, चावल चढ़ाना पड़े तो देखो कितना और पौने चार सौ का चावल कितना बनेगा बताओ और दाल चढ़ाने के लिए कितना तो इतने-इतने इतने-इतने, तवा इतना मानी रोटी पकाने का, जिसमें दस-दस बारह-बारह रोटी आए फिर वह थोड़ा जल्दी-जल्दी पकाए ऐसे, तो वह प्रैक्टिस हैं न । इन बिचारो को बड़े बड़े ठांव से बनाने की प्रेक्टिस नहीं है न । तो छोटे ठांव में दो जनी बैठती है और खाना बनाने की प्रेक्टिस है । नहीं तो बड़े-बड़े की तो थक जाए । और बनाना है अपने हाथ से । उधर तो वो बीमार पड़ जाएगा वो हार्ड वर्कर का । वो देखो हमारी एक ही भंडारी है शुरू से चली आती है, भोली आएँगे न मधुबन, हम दिखलाएंगे, यहाँ पहले हिर्द्या थी परंतु यह भी मददगार थी बहुत समय से, बहुत समय से चली आई है । अभी तक भी चलती रहती है और इतना इतना डेग बनाती है उसका रोज का काम है जैसे घर में शादी होती है ना, शादी में बड़े-बड़े थांव में बनाए तो हमारे पास रोज शादी । बाबा कहते हमको बहुत कन्याएँ है, इन सब की शादी करानी है ना शिवबाबा से । उसके साथ उसको सगाई तो हमारे पास रोज शादी है । रोज हम सबकी सगाई कराते हैं शिव बाबा से, उससे अपना कनेक्शन तोड़ दिया है वह उसका हथियाला बाँधते हैं, रोज उसका बुद्धि लगाओ, बुद्धि बाँधना उससे या हाँथ बाँधना तो हाँथ ऐसा नहीं बाँधना, उसका तो हाथ ही नहीं है ना तो बाँधना है बुद्धि तो इसलिए बुद्धि का कनेक्शन जुटाना है तो हम तो रोज शादियाँ करते हैं बच्चों की बुद्धि लगाओ, बुद्धि लगाओ, बुद्धि का हथियाला बाँधते हैं, हमारे पास रोज शादी तो रोज डेगियाँ चढ़ती हैं इसीलिए देखो अपना रोज शादियाँ । अभी यह सच्ची इसमें से कभी हमारा कोई दुःख नहीं । शादी माना शादमाना शादी माना दुःख का थोड़ी । वह तो बिचारी जाती है विकारों में गिरती है फिर उसको कहते हैं हनीमून । हनीमून है, हनीमून माना विकार में गिरना और पाप का भागी बनना उसको थोड़ी हनीमून कहेंगे । हनीमून तो देखो वो देव्ताएँ थे जिनका सच-सच पवित्रता के बल से संतान पैदा करते थे । उनकी संतान पवित्रता के बल से इसीलिए तो उन्हों के पास कभी कोई दुःख अकाल मृत्यु ये सब नहीं था । अभी तो है ही विकारों से । यह है भोगबल की दुनिया, वह है योग बल की दुनिया, पवित्र दुनिया । अच्छा खाओ ।