मम्मा मुरली मधुबन


सतयुग का स्थापक कौन है

हेलो, ब्राह्मण कुलभूषणों सभी सेंटर निवासी, आज आप सभी को मुबारक दे रहे हैं की आज बेंगलुरु के दूसरे सेंटर पर मम्मा की पदरामिनी हुई है । सभी गोप गोपियों को निमंत्रण देकर बुलाया है । अभी मम्मा की मुरली चलेगी, आप सब सुन लेंगे । कैसे ? ठीक है ना । दूर से जैसे हम मम्मा की मुरली सुन रहे हैं आप भी दूर से साक्षात्कार कर लो, कैसे मम्मा हम सब बच्चों को बहलाती है, हँसाती है, कुदाती है, ज्ञान का श्रृंगार कराती है । ठीक है मधुबन निवासी, अच्छा, अब छुट्टी । अब मम्मा आ रही है ।

रिकॉर्ड :-
एकमात्र सहायक स्वामी सखा, तुम ही सब के रखवारे हो.......
परमपिता, देखो परमात्मा को पिता कहने से मजा आता है । खाली परमात्मा कहने से या भगवान कहने से फीका-फीका लगता है । परमपिता , पिता में रिलेशन यानी संबंध दिखाई पड़ता है कि वह हमारे पिता लगते हैं तो पिता और पुत्र अथवा पुत्रियाँ । आत्मा के हिसाब से तो सब पुत्र हो गए ना, तो हम हैं उसकी संतान, वह है हमारे पिता । अभी पिता से बच्चों को क्या लेना चाहिए? वह जो हमारे पिता हैं, तो पिता के पास हमारा हक है । हक समझते हो ना, उसके पास हमारा बर्थ राइट, इनहेरिटेंस है, जिसको वर्सा कहा जाता है । जैसे बच्चे का हक होता है ना बाप के पास जायदाद का, प्रॉपर्टी का, वैसे उस पिता के पास भी हमारी प्रॉपर्टी है । क्या प्रॉपर्टी है मालूम है ? वह प्रॉपर्टी है, उनके पास स्वर्ग, जिस स्वर्ग के अधिकारी हम बच्चे हैं । उनको तो स्वर्ग को भोगने का दरकार नहीं क्योंकि वह तो स्वर्ग नर्क से ऊपर है ना, लेकिन स्वर्ग को, जो हम ही नर्क में आए हुए हैं तो उन्हों को ही स्वर्ग का अधिकार मिलने का है । तो उस पिता से हमको स्वर्ग का हक मिलना है । वह हमारी जो प्रॉपर्टी है स्वर्ग की, वह उस बाप के पास है तो ऐसे बाप से रिलेशन रखना चाहिए ना । रखेंगे तभी तो हमको वह स्वर्ग का अधिकार देगा ना, अगर रखेंगे नहीं संबंध, तो कैसे मिलेगा इसलिए उस बाप से संबंध रखना है और उससे स्वर्ग का अधिकार लेना है । स्वर्ग का मतलब क्या है, समझते हो? स्वर्ग माना जिसमें हमारी जीवन सदा सुखी रहे । सदा सुख किसको कहा जाता है, देखो हमको आज दुःख किसमें है ? हमारे शरीर को रोग होता है तो हम दु:खी होते हैं, कोई अकाले मरता है, अकाले समझते हो ना है बिगर टाइम के, तो कोई अकाले मरता है तो दुःख होता है कोई लड़ाई झगड़े जो भी अशांति के कारण हैं यह सब होते हैं तो दुःख होता है लेकिन अगर यह हमारे जीवन में बातें ना होवें फिर तो जीवन अच्छी है ना, कभी रोग ना होवे और कभी कोई अकाले मरे ना, हमारे मरने जीने का हमारे पास कंट्रोल होवे, कंट्रोल होने का मतलब है हमारे वश की बात होवे जैसे कपड़े पुराने होते हैं टाइम पर उतारे जाते हैं, वैसे हम टाइम पर शरीर को उतारे और शरीर लेवें, इसका बल हमारे पास होवे, यह सब बातों का हमारे पास बल होवे, फिर तो ठीक है ना, तो यह हमारे पास था, इन्हीं को ही कहा जाता है हमारी जीवन स्वर्ग लाइफ थी अर्थात हम स्वर्गवासी थे अर्थात् हमारी जीवन सुखी थी। यह सब बल हमारे पास था। आप लोग सब सुन सकते हो पीछे वाले? आवाज नहीं आए तो आगे आ सकते हैं। तो हमारे पास यह स्वर्ग का अधिकार था, लेकिन आज नहीं है। तो अभी उस बाप से अभी अपना रिलेशन, संबंध रखना है और उससे फिर अपना जन्मसिद्ध अधिकार यह पवित्रता, सुख, शांति का लेना है । उसका दाता एक है, कोई मनुष्य के द्वारा यह नहीं मिलेगा, कोई देवता के द्वारा भी य़ह नहीं मिलेगा, यह मिलेगा परमपिता परमात्मा के द्वारा। तो परमात्मा तो एक है ना। परमात्मा के सब रूप परमात्मा के नहीं है, यह समझना भूल है। परमात्मा परमात्मा है, यह तो सब आत्माएं हैं, हम सब उसकी संतान हैं तो सब रूप परमात्मा के कैसे कहेंगे, वह परमात्मा तो निराकार है ना। तो यह सभी चीजों को समझना है। अभी उसी निराकार पिता से परमपिता से हमको अपना हक लेना है लेकिन हक मिलेगा तभी जब हम उसकी आज्ञा का पालन करेंगे। उसकी आज्ञा कौन सी है? उसकी आज्ञा है तुम पवित्र रहो । पवित्र माना पाँच विकार जो है ना, उनको छोड़ो तो फिर तुम पवित्र रहेंगे तो तुम्हारे कर्म अच्छे बनेंगे और अच्छे कर्म से फिर तुम मेरे स्वर्ग के लायक बनेंगे। लायक भी बनना चाहिए ना, ऐसे थोड़ी स्वर्ग का ऐसे ही सुख प्राप्त होगा। उसके लिए लायक बनना पड़ेगा तो लायक का मतलब है कि हमको पाँच विकारों को छोड़ना पड़ेगा। फिर विकारों को छोड़ने के लिए तैयार हो ? स्वर्ग का वर्सा लेने के लिए तो कहा हाँ, अभी विकार भी छोड़ना पड़े ना। लेने के लिए तो तैयार हो गए और छोड़ने को? तो कुछ तो छोड़ना पड़ेगा ना, बाकी ऐसा नहीं कहता है कि तुम घर बार छोड़ो, पति छोड़ो, बच्चे छोड़ो, वह नहीं, वह नहीं छोड़ना है बच्चे विकार नहीं है, पति विकार की बात नहीं है, उसमें जो विकार है, विकार कौन से हैं? मालूम है काम, क्रोध, लोभ, मोह, अशुद्ध अहंकार यह हैं पाँच विकार। तो देखो देवताएँ भी तो घर गृहस्ती में थे ना। देवता है ना लक्ष्मी नारायण, मंदिर देखे हैं ना। तो देखो जोड़ी है ना, मर्द भी है, स्त्री भी है, दोनों थे, परंतु दोनों निर्विकारी थे। बाल बच्चे भी थे परंतु निर्विकारी थे। तो अभी बाप कहते हैं कि ऐसे पवित्र रहने का अभी प्रतिज्ञा करो। अपना जीवन पवित्र बनाओ तो पवित्र रहेंगे और मुझे याद करेंगे तो मैं आपको स्वर्ग का अधिकार दूँगा, तो अभी वह प्रतिज्ञा पालन करेंगे ? जब ऐसा पवित्र बनेंगे, तब फिर उस बाप का उसकी जायदाद पा सकेंगे, तो यह तभी मिलेगा तो अभी क्या ख्याल है? अभी पवित्रता धारण करने का यह फिर अपने को पुरुषार्थ रखना पड़ेगा । अभी उसके लिए कहते हैं मैं जो बैठ के शिक्षा का ये कॉलेज खोला है ना, उसमें आओ और आ करके सीखो कि कैसे हम घर गृहस्थ में रहकर के पवित्र रहें, उसके सिखाने के लिए मैंने स्कूल खोला है । कौन बोलता है, परमात्मा । हमको भी वह पढ़ा रहा है ना, हम भी पढ़ रहे हैं तो हमको सिखाने वाला कौन है? परमपिता परमात्मा, निराकार, तो वह अभी सिखा रहा है, उसने यह कॉलेज खोला है, कहते हैं उसमें आ करके यह कॉलेजखोला तुम यह सीखो, कर्म योग, राजयोग । कहा है ना राजयोग, तो राजयोग का मतलब है कि मैं यह जो योग और ज्ञान सिखा रहा हूँ, पढ़ा रहा हूँ, उससे तुम ऐसे राजा बनेंगे। कैसे? लक्ष्मी नारायण सीताराम जैसे, ऐसी राजधानी का अधिकार पाएंगे अर्थात सदा सुख का। तो अभी बाप बैठ करके समझा रहे हैं कि बच्चे इस कॉलेज में पढ़ो। यह उसकी कॉलेज है, उसने यह खोला है। वह बैठ करके सिखा रहा है और फिर यह सीख कर के फिर उस बाप का अधिकार पाना है । तो अभी सीखना पड़े ना, समझना पड़े ना इन बातों को। तो उसके लिए फिर थोड़ा टाइम देना पड़े, तब हमारा जो गृहस्थाश्रम, गृहस्थ धर्म ऐसा कहते हैं ना, आप में भी कहते होंगे गृहस्थ आश्रम, गृहस्थ धर्म। पति को भी कहा जाता है धर्म पति और पत्नी को कहा जाता है धर्मपत्नी परंतु धर्म अभी कहाँ है, पति पत्नी में धर्म कहाँ है, अभी तो विकार में है तो विकार को धर्म थोड़ी कहेंगे। विकार को क्या कहेंगे अधर्म, ठीक है ना। तो अभी है पति पत्नी का संबंध अधर्म का । अभी बदलकर के धर्म का नाता बनाना है। धर्म का मतलब है पवित्र नाता इसीलिए कहते हैं पवित्र बनाने से फिर तुम्हारा अनेक जन्म पवित्र चलेगा, जिसको जेनरेशंस कहा जाता है। फिर तुम्हारे पवित्रता के बल से संतान भी जो पैदा होगी ना, वह पवित्रता के बल से पैदा होती है । अभी देखो विकारों से संतान पैदा करते हो तो संतानों में अभी वह बल नहीं रहा है इसीलिए संसार दुःख और अशांति में नीचे गिरता जा रहा है तो अभी कहते हैं अभी पहले पवित्र बल लाओ अपने में फिर पीछे उस पवित्रता से जो संतान पैदा करेंगे उस ताकत से तो वह संतान सुख का होगा। देखो कृष्ण, राम कितने अच्छे संतान थे। वह कैसे पैदा हुए, पवित्रता के बल से। तो कहते हैं अभी ऐसे संतान पैदा करो परंतु ऐसे संतान पैदा करने के लिए पहले अपने मैं बल चाहिए ना, ताकत चाहिए ना। ऐसी अभी ताकत कहाँ है, इसीलिए कहते हैं भगवान, परमात्मा, परमपिता की अभी ऐसी पवित्र जीवन बनाओ और अभी संसार में ऐसी प्रवृत्ति रखो और पवित्र संतान पैदा करो। फिर पवित्र संतान का संसार जो होगा वह सदा सुख का होगा इसलिए आज गवर्नमेंट भी कहती है ना, बर्थ कंट्रोल। अभी वह भी संभाल नहीं सकती है। अब वह भी गवर्मेंट हाई गवर्मेंट आलमाईटी गवर्मेंट वह भी कहती है बर्थ कंट्रोल। तो अभी काहे के लिए, अभी दुनिया बदलती है। अभी यह दुःख की दुनिया बना करके दु:खी हो गए हैं तो इसीलिए बाप कहते हैं अभी बाकी उसके लिए मौत की तैयारियां भी हो रही है। अभी यह दुनिया का बहुत संख्या बढ़ गई है ना, अभी यह संख्या कैसे कम होगी तो उसके लिए देखो अभी मौत की भी तैयारियाँ है, कुछ कुदरती आपदाओं से जैसे यह अर्थक्वेक फ्लड्स उसको भी यह लोग कुछ अपनी भाषा में कहते होंगे भूकंप, यह सब होते हैं ना एक साथ जिससे भी देखो बहुत मौत होता है तो यह अभी बहुत जोर से होने के हैं सब कुछ इसीलिए अभी परमात्मा कहते हैं अपने को अभी पवित्र बनाओ तो फिर जो तुम्हारी दुनिया रहेगी ना, सदा सुख की रहेगी । तो अभी अपने को सुखी बनाने का साधन समझा कि कौन सा है, कैसे हम अपने को सुखी रखें, पवित्र रह के तो अभी अपने को पवित्र कैसे रखें। अपनी गृहस्थी में रहकर के किस तरह से हम पाँच विकारों को छोड़ें। उसके लिए देखो यह रोज यहाँ उसकी शिक्षा मिलती है और उसके लिए यह नॉलेज है तो उसके लिए फिर जब आप आएँगे थोड़ा सुनेंगे, समझेंगे तो तभी तो फिर उसी प्रैक्टिकल जीवन को बना सकेंगे ना। तो ऐसी जीवन बनाने का यह पुरुषार्थ है और इसमें क्या डिफिकल्ट है बताओ, कोई है डिफिकल्ट बात? कुछ नहीं है। बाकी सहज है और अपने जीवन को उसी तरह से रखते चलना है तो ऐसी सहज बातों को क्यों नहीं धारण करते हो। फिर क्या है, क्या डिफिकल्टी आती है? नहीं तो सुनाओ कि हाँ मम्मा हमको ऐसी डिफिकल्टी है, हम इसी कारण नहीं कर सकते हैं तो आपको रास्ता बता देंगे, राय देंगे कि कैसे करो, बाकी उसमें है नहीं कुछ । आ करके समझना है और ऐसे हमारे बहुत हैं, घर गृहस्थ में रह करके अपनी जीवन बना भी रहे हैं। जो यहाँ आते हो रोज उन्हों को मालूम है कि कैसे घर गृहस्ती में रह करके जीवन को पवित्र बनाएँ। बहुत है यहाँ बैंगलोर में थोड़े हैं, दूसरे भी अपने केंद्र बहुत है जहाँ आते हैं और बहुत अपनी जीवन बना रहे हैं, इसमें डरने की कोई बात नहीं है कि हम को कोई घर बार छोड़ना पड़ेगा, बच्चे कैसे संभाले, बच्चों को तो संभालना ही है, इन बिचारों का भी तो कल्याण करना है ना । तो माता-पिता में ज्ञान होगा तो बच्चों का भी कल्याण होगा, माता-पिता में ज्ञान नहीं होगा तो बच्चों का क्या होगा तो यह तो और अच्छी बात हो जाएगी न । यह तो और अच्छा ही है, परंतु यह सब ज्ञान कैसे धारण करें, उसको तो आकर के समझना पड़ेगा ना। तो इस बातों को समझो और फिर अपना जीवन बनाओ, बाकि तो ऐसे ही बच्चे पैदा करना, घर गृहस्ती संभालना, वह तो जनावर भी काम करते हैं, करते हैं ना। चिड़ियाएँ हैं, चिड़ियाएँ भी घर बनाते हैं, बच्चे पैदा करती हैं, उसको खिलाती है, पिलाते हैं, जाती हैं बिजनेस करती है, ले आती है खाना फिर खिलाती हैं, नहीं करती है, इतना काम तो वह भी करती हैं, मनुष्य ने भी इतना ही काम किया तो क्या बड़ी बात है तो कोई बड़ी बात है नहीं। तो जितना जनावर काम करें मनुष्य भी इतना ही काम करे तो क्या फायदा तो वह तो जानवर से भी बदतर है। मनुष्य को जो बुद्धि मिली है उससे ऊँचा काम लेना चाहिए ना कहते हैं। मनुष्य जन्म बहुत ऊँचा है तो ऊँचे से ऊँचा काम लेना चाहिए ना कि सादा काम लेना चाहिए, जनावरों वाला, वह भी कर लेते हैं ना तो खाली इतना ही काम नहीं है जिंदगी का, जीवन का। जीवन बहुत ऊँची चीज है और उससे ऊँचा काम लेना चाहिए। गृहस्थ के फर्ज जो है, वह खाली इतने ही नहीं हैं। वह समझते हैं हम फर्ज का पालन करते हैं, यह फर्ज तो चिड़ियाएँ भी पालन करती है, मनुष्य ने पालन किया तो क्या बड़ी बात है। हमारी जिंदगी के अथवा जीवन के फर्ज कितने ऊँचे हैं, उसको समझना चाहिए और उसको पालन करना चाहिए। फिर क्या विचार है? खाली सुनेंगे, खाली समझेंगे, दर्शन करें, देखें बस देखने से कोई हो जाएगा? कोई डॉक्टर को देखने से डॉक्टर हो जाएगा? नहीं, उसको समझना है ना, वह तो डॉक्टरी नॉलेज पढ़ना है, समझना है तो फिर ऐसा बनेंगे। तो बनने के लिए तो फिर समझना पड़ेगा, इन बातों को समझ करके पुरुषार्थ करना पड़े और दोनों ही नर-नारी दोनों ही समझ सकते हैं बाल बच्चे सभी, सब आत्माओं को अधिकार है कि पिता से अपना जन्मसिद्ध अधिकार लेना । यह बच्चे भी अपना बाप से वर्सा पा सकते हैं यह तो इतना इजी ज्ञान है तो बच्चे को भी अपने पिता का पता देना है कि तुम्हारा असली पिता कौन है । जैसे यह बच्चे को सुनाया, यह तुम्हारी माँ है तो पता लग जाता है कि यह हमारी माँ है, यह हमारा डैडी है, यह हमारी मम्मी है जल्दी बैठ जाता है तो हमारा वह हमारा असली डैडी कौन है, वह है परमपिता तो उनको अगर पता पड़ेगी मैं आत्मा हूँ, मेरा पिता वह है तो देखो उसकी बुद्धि भी उसमें लग जाए । उसका भी कल्याण हो जाए। तो इतना इजी ज्ञान है कि बच्चा भी समझ सकता है, बुड्ढा भी समझ सकता है, कोई भी समझ सकता है। तो इतनी इजी बात को समझने के लिए और तो कोई मेहनत नहीं करनी है, ना कोई आसन लगाना है, ना कोई कुछ आंखें बंद करके बैठना है, कुछ नहीं, खाली काम करते और बुद्धि की याद रखने की है, बहुत इजी । खाली उनको समझना है, फिर पता नहीं क्या है, अभी क्यों ऐसी सहज बात में क्यों नहीं समझते हैं । यह सब भाषा समझते हैं आप लोग? हिंदी भाषा समझते हो? कुंज कुंज, थोड़ी-थोड़ी, थोड़ी-थोड़ी समझते हैं । हिंदी भाषा समझते हो? नहीं? ओहो! देखो हम क्या अभी बिचारी भाषाएँ भी कितनी सीखें । बहुत भाषाएँ हैं इसीलिए भाषा का भी आप लोगों में से कोई समझ जाए तो फिर अपनी भाषा में समझा सकें। अभी आओ, थोड़ा थोड़ा समझो फिर आपकी भाषा, अपनी भाषा समझ कर फिर दूसरों को समझाओ तो फिर आप लोग देखो अच्छी सेवा करेंगे । अभी देखो इंदिरा नेहरू, विजयलक्ष्मी नेहरू भी हैं ना । वह नाम तो सुनते होंगे अखबारों में, तो देखो वह लोग देश की सेवा करते हैं ना। बच्चे तो उन्हों की भी हैं, बच्चे को भी करते हैं और देश की भी सेवा करते हैं परंतु देश की सेवा बहुतों की सेवा करने से उन्हों को इतना फल भी मिलेगा। यह भी करना चाहिए ना । खाली बच्चों की संभाल में थोड़ी जिंदगी दे देना है, उसके साथ यह भी काम करना चाहिए । अपना जीवन भी सफल बनाना चाहिए और दूसरों का भी जीवन सफल बनाना चाहिए । जैसे सोशल वर्कर होते हैं ना, तो फिर जनता की भी सेवा करते हैं तो आप लोगों की ही समझो और जनता की भी सेवा करो तो जीवन कुछ अच्छी बने, सफल होवे । बाकी ऐसा ही खाली जीवन बनाया, खाया, पिया बस, गया, बस यही काम है, यही जिंदगी है. तो थोड़ी जीवन कहेंगे । तो थोड़ा समझो इन बातों को और अपनी जीवन अच्छी बनाओ तो अच्छी जीवन से अच्छा फल मिलेगा। अच्छा आप लोगों को देरी होती होगी पता नहीं कहाँ-कहाँ से दूर जाना होता होगा । इन्हों को सवेर छुट्टी लेनी चाहिए, दूर-दूर जाएँगे परंतु हम तो कहेंगे आते रहो। खाली आज नहीं, फिर आओ, हम अभी हैं इधर थोड़े रोज, आप लोगों के लिए रहे हैं की कुछ समझें । फिर आप लोग आओ, कुछ सुनो कुछ समझो और कुछ अपना बनाओ । नहीं तो फिर वह भी टाइम आएगा अभी कहते हैं टू लेट । हम इतना मेहनत करते थे, सुनाते थे, कोई सुनते नहीं थे, पीछे बहुत समय भारी आएगा आगे चलकर के इसीलिए आप लोगों को राय देते हैं कुछ टाइम लेकर के आओ और आकर के समझो । फिर इधर कोई कहेंगे हम को इधर सहज पड़ता है, हम एक को इधर रखेंगे, फिर वह इधर समझाएँगे लेकिन कोई समझने वाले हो ना । कुछ अपना अटेंशन रखो, समझने की कोशिश करो, अच्छा । देखो, यह समझने की बातें हैं ना तो सुननी पड़ती है। बाकी ऐसा नहीं खाली दूर से ही दर्शन किया, उसमें तो कोई बात ही नहीं है। इसमें समझना है इसीलिए जरा पूछना पड़ता है की समझते हो ? खाली दर्शन वाली तो चीजें नहीं है, यहाँ तो प्रैक्टिकल समझकर के प्रैक्टिकल अपना जीवन बनाना है इसीलिए सुनना है समझना है। खाली सुनना भी नहीं है समझना है, खाली समझना भी नहीं है, समझना माना प्रैक्टिकल में लाना है, एक्शंस में लाना तो जो समझा है वह एक्शन में लाना है। एक्शन माना कर्मों में और कर्म में ला करके अपनी प्रालब्ध बनानी है, फिर कर्म में लाते हो ना। अच्छा कर्म में लाएंगे जितना आप अपना बनाएंगे और जो करेगा सो पाएंगे । ऐसे नहीं है कि यह पुराना है मैं तो पीछे आया हूँ यह पुराना का भी क्या अवस्था बनी है, तो एक दूसरे के गुण ग्रहण करना है अवगुण नहीं उठाना है कि यह पुराने में तो कम ज्ञान है हम तो पीछे आए हैं यही नहीं बना है तो हम क्या बनेंगे । ऐसा नहीं, जो करेगा सो पाएगा । हमको तो हर एक से अच्छा गुण ले करके हमको अच्छा बनना चाहिए । तो हर एक को अपने को देखना है समझा और बाप जो फरमान करता है उसका पालन करना है । स्कूल होता है देखो स्टूडेंट होते हैं ना तो स्कूल में भी देखो कोई नंबर वन आता है कोई मार्क्स कम लेता है कोई फेल भी हो जाते हैं ऐसा भी होता है ना । कोई भी स्कूल है, स्कूल में कोई नंबर आगे होगा कोई पीछे भी होगा तो हमको पीछे वालों को थोड़ी देखना चाहिए । हमको देखना चाहिए जो आगे हैं जो स्कॉलरशिप भी लेते हैं जो आगे आगे बढ़ते हैं उसको फॉलो करना चाहिए । बाकी ऐसे नहीं, भाई यह तो फेल हो गया तो इसमें क्या उठाया, नहीं । अगर हम फेल को देखेंगे तो हम भी फेल हो जाएंगे तो हम को फेल थोड़े ही होना है । तो फेल वालों को नहीं देखना चाहिए । हमको देखना है कि जो जो आगे हैं उन्होंने अपने जीवन क्या बनाई है हम भी बनाए तो स्टूडेंट्स इसको कहा जाता है बाकी ऐसे नहीं की सारा दिन में अवगुण ग्रहण करें इतने इतने बरस पढ़े इन्होंने क्या उठाया । उन्होंने नहीं उठाया समझो तो हम उठाएँगे ना । जो करेंगे सो पाएगा वह तो गीता में भी है जीवात्मा अपना शत्रु अपना मित्र है बाकी हमको औरों को क्या देखना है । तो इसी सभी बातों को समझना है और फिर भी कोई को ना समझ में आए तो फिर टाइम लेकर के आ करके समझ सकते है । कोई भी ना समझ में आए किसको तो पूँछ भी सकते हो, समझ भी सकते हो । अच्छा अभी दो मिनट साइलेंस करो, परमपिता को याद करो । दो मिनट साइलेंस करो पीछे तो इनको टोली देना नीचे । अच्छा, अभी याद करो अपने पिता को । पिता को जान के याद करना है ऐसे नहीं कैसे भी करें हनुमान के रूप से करें, गणेश के रूप से करें कैसे भी करें नहीं । वह कहते हैं मेरा जो रूप है ना, वह जान के याद करो । मैं हूँ ज्योति रूप, तो मुझे समझ के याद करो । मैं जो हूँ जैसा हूँ वह समझ के याद करो तो वह फिर आएँगे आप लोगों को समझाएँगे । पुराने तो जो सुना है उन्हों को पता है, जो नए हैं फिर उनको समझना है । अच्छा दो मिनट साइलेंस ।