मम्मा मुरली मधुबन


सौभाग्यशाली बनने की विधि - 2

रिकॉर्ड :-
आज के इस इंसान को यह क्या हो गया……...

यह है आज के भारत की दशा, परंतु अपना भारत सदा ऐसा नहीं था । यह आज की दशा है लेकिन अपना प्राचीन भारत बहुत ऊँचा था । बहुत ऊँचा का मतलब है कि मनुष्य ही बहुत ऊँचे थे । भारत का मतलब ही है हम भारतवासी तो मनुष्य की लाइफ बहुत ऊँची थी और जब भारत ऊँचा था तो हम भारतवासी ऊँचे थे और उस टाइम पर सारी दुनिया ही सुखी थी । आज भारत भी नीचे तो सारी दुनिया भी नीचे । सारी में कहेंगे आज दुःख और अशांति के आवाज के सिवाय और कोई आवाज है ही नहीं । तो यह चीज समझने की है कि आज हमारी ऐसी दशा क्यों हुई है? क्या अभी ऐसी दशा भी बदल कर के, फिर जो अपनी प्राचीन, जिसको गाँधीजी भी कहते थे ना, ये राम राज्य बने, तो राम राज्य भी तो हमारे भारत की प्राचीन जमाने की बात है ना, जिसको गाँधीजी ने भी भावना रखकर के बनाने की कोशिश की लेकिन वह प्रैक्टिकल चीज बन नहीं पाई । तो अभी वह प्रैक्टिकल चीज कैसे बनी थी, कैसे बन सकती है, उसके लिए क्या उपाय है, यह भी तो बातें समझने की है ना । तो वो रामराज्य कहो या कई जिसको कहते हैं स्वर्ग कहो, स्वर्ग का नाम तो उठाते हैं बहुत, कम से कम जब कोई मरता है, तब तो कहते ही हैं कि स्वर्गवासी हुआ, लेकिन यह पता तो होना चाहिए ना कि स्वर्ग है क्या चीज । अंग्रेजी में भी कहते हैं हेवेनली अबोड गया, लेकिन हेवेन क्या चीज है, जिसको सुख और शांति का स्थान कहा जाए, तो वह भी नॉलेज होना चाहिए कि सुख और शांति की कोई दूसरी दुनिया है, कोई ऊपर है या यही दुनिया जिसमें हम हैं, इसी दुनिया की लाइफ की स्टेज कुछ बदलने की है । तो इसका नॉलेज होना चाहिए कि इसकी स्टेज बदलनी है, दुनिया यही है । ऐसे नहीं है कि दुनिया कोई दूसरी है, दुनिया यह एक ही है । वर्ल्ड वन है, जैसे गॉड इज वन वैसे वर्ल्ड इज वन । यह मनुष्य सृष्टि एक ही है लेकिन इस मनुष्य सृष्टि की लाइफ की स्टेजिस जो हैं ना, वह बदलती जरूर हैं, इसीलिए अभी जो स्टेज है वह तो हाल सुना, क्या है हालत, कैसे रोते हैं, कैसे दु:खी हैं, क्या हाल है । लेकिन ऐसे नहीं कहेंगे कि हमारी सदा ही कोई दुनिया ऐसी थी, नहीं, वह भी दुनिया थी, जिसको स्वर्ग कहने में आता था, सुख शांति वाली दुनिया कहने में आती थी, जिसकी भावना किन्हों ने राम राज्य में रखी, किन्हों ने स्वर्ग के नाम से रखी है, किन्होंने कुछ नाम से रखी है, लेकिन वह हमारी जो स्टेज थी, जिस भारत के लिए नाम भी लेते हैं कि गोल्डन स्पैरो था, तो वह कौन सी चीज है और कैसे बनी थी । उसमें हमारी क्या लाइफ थी जो आज नहीं है, तो उन बातों को समझना चाहिए । जब समझेंगे तभी तो ऐसी लाइफ को बना सकेंगे ना । तो यह अभी रोशनी मिल रही है । आप लोगों को तो मालूम होगा, क्योंकि आज थोड़े नए कुछ भी पधारे हुए हैं इसीलिए जरा समझाया जाता है कि जहाँ आप पधारे हो, यहाँ की एम एंड ऑब्जेक्ट यही है कि हमारी प्राचीन जो लाइफ की स्टेज थी अथवा हमारी दुनिया जो सुख और शांति वाली थी, वह कैसे बनी थी और कब बनी थी। उसका अभी फिर से कैसे टाइम आया हुआ है और हम भी उसी परमपिता परमात्मा के द्वारा इन सब बातों को समझ रहे हैं क्योंकि इन बातों को जानने वाला है ही एक । सिवाय परमात्मा के हमको इन सभी बातों की रोशनी कोई मनुष्य नहीं दे सकता है इसीलिए इन बातों की रोशनी उसको ही है । उसको माना परमपिता परमात्मा को, जिसको ही कहा जाता है नॉलेजफुल । वह हमारी सारी कर्म गति को जानने वाला है तो वही तो बता सकेगा ना और उसने ही कहा है यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, जब जब अधर्म होता है तब तब मैं आता हूँ । काहे के लिए आता हूँ, इसीलिए ही कि इन बातों की समझ दे करके ऐसी दुनिया बनाने के लिए । तो अभी यह वही टाइम है और यह उनकी ही कॉलेज है परमपिता परमात्मा की, हम सब स्टूडेंट्स हैं । उनके द्वारा वह सीख रहे हैं कि किस तरह से अभी हम अपने प्रैक्टिकल लाइफ को ऊँच बनाएँ, जिसके आधार से जो दुनिया हम चाहते हैं अथवा हम अपने लाइफ में जो सुख शांति चाहते हैं, वह हमको प्राप्त हो क्योंकि मनुष्य दु:खी जो होते हैं ना, दुःख कहाँ से होता है? दुःख को भी समझना चाहिए कि दुःख किन बातों से होता है। देखो मनुष्य को रोग होता है तो दु:खी होता है, अकाले मृत्यु होता है तो दुःख होता है, निर्धनता होती है तो दुःख होता है, लड़ाई झगड़े होते हैं तो दुःख होता है, यही दुःख के कारण हैं ना । अभी अगर हमारे लाइफ में यह बातें ना हों, फिर तो ठीक है ना । फिर तो हमारी जीवन सुखी होगी। हमारे पास कभी रोग ही ना आवे, कभी अकाले मृत्यु न होवे या मरने जीने का बल हमारे पास होवे और कभी लड़ाई झगड़े और निर्धनता आदि सभी बातें ना होवें, फिर तो हमारी जीवन सुखी हो, फिर तो ठीक ही है ना। लेकिन यह होवे कैसे, ऐसे भी नहीं कहेंगे कि यह संसार का नियम है, रोग होना भी जरूरी है, अकाले मृत्यु होना भी जरूरी है, निर्धनता भी जरूरी है, यह लड़ाई झगड़े भी सदा से चले आए हैं, कई ऐसे सब समझते हैं परंतु नहीं, यह रॉन्ग है। यह समझने की बात है कि हमारी दुनिया की वह भी स्टेज थी, जिस जमाने को ही कहा जाता था स्वर्ग अथवा रामराज्य, जिसकी अपने-अपने शब्दों में, कईयों ने बिचारों ने भावना रखी तो है, परंतु वह प्रैक्टिकल चीज कैसी थी, किस तरह से बनी थी, उनका प्रैक्टिकल चित्र किसी के पास ना होने के वो यथार्थ रीति जान न सकें, तो प्रैक्टिकल तो वह जानने वाला है ना, परमात्मा । वही बता सकते हैं तो अभी वो ही बैठकर बता रहें हैं और समझा रहे हैं कि वो समय भी था, जब हमारे जीवन में कभी रोग ही नहीं था, हमारे जीवन में कभी अकाले मृत्यु यानी बिगर टाइम कभी मरते ही नहीं थे, अभी मनुष्य है, मनुष्य मर जाता है तो मनुष्य क्या कर सकते हैं, बेबस हैं ना, परंतु नहीं हमारे में वह बल था कि हम अपने शरीर को अपने टाइम पर, अपने बल से उतारते थे, उतारते का मतलब है छोड़ते थे, जब बाल, युवा, वृद्ध स्टेज कंप्लीट होती थी, तब टाइम पर मालूम पड़ता था कि अभी हमारा समय हुआ है, अभी इस शरीर को छोड़ना है और शरीर लेना है । तो वह बल था, लेकिन आज वह ताकत नहीं है । तो यह सभी ताकत हमारे में से क्यों चली गई, जरूर है कि हमारे कर्म की गिरावट हुई है, इसको कहें कर्म भ्रष्ट, तो अभी कर्म भ्रष्ट बनने के कारण हमारी वह ताकत अपने सभी बातों के प्राप्त करने की, यह रोग आदि भी क्यों होता है, यह भी तो कर्म की हीनता है ना । कोई भी दुःख होता है तो मनुष्य कहते हैं कि यह कर्म, तकदीर, किस्मत, उसी पर ही कहना पड़ता है ना, तो यह क्यों कहते हैं? जरूर है कि कर्म ऐसा बनाया है । तो यह कर्म किसने बनाया है? यह कोई भगवान ने थोड़ी बनाया है बैठकर के, हमारे दुःख के कर्म भगवान ने थोड़ी बनाए हैं। अगर भगवान ने हमारे कर्म बनाए, रोग भी भगवान देता है या हमारा दुःख भी भगवान देता है, तो भगवान को हम सुख के लिए याद क्यों करते हैं जब दुःख आता हे तो क्यों कहते हैं की भगवान अभी रहम करो, हे भगवान अभी सुख दे, अच्छी बात के लिए उसको याद करते हैं ना, ऐसे थोड़ी कहते हैं कि भगवान दुःख दे। उसने अगर हमको दुःख दिया होता तो हम उसको हम सुख के लिए क्यों याद करते हैं और महिमा भी ऐसे करते हैं, कि तू दुःखहर्ता सुखकर्ता, ऐसे नहीं उनको कहते हैं तू दुःखहर्ता सुखकर्ता, नहीं! कभी भी स्तुति में भगवान के लिए कोई ऐसे कहते हैं, हे भगवान तू दुःखकर्ता, नहीं, उनको कहते हैं तू सुखकर्ता और आप दुःखहर्ता, हरता का मतलब ही है नाश करने वाला, तो जो दुःख का हरने वाला है वह दुःख देगा कैसे? यह तो कॉमन समझने की बात है ना कि दुःख कोई भगवान ने नहीं दिया है, यह दुःख हमने अपने भूलवश, अपने विकारों के वश होने के कारण खुद बनाए हैं, विकारों के कारण दुःख बना है, इसीलिए अभी परमात्मा कहते हैं कि जब तलक इन विकारों को नहीं छोड़ा है, तब तलक तुम दुःख से छूट नहीं सकते हो । तो अभी उन विकारों से कैसे छुटकारा पाओ और तुम्हारे कर्म कैसे श्रेष्ठ बने, जिस श्रेष्ठ कर्म के आधार पर तुम्हारी प्रालब्ध श्रेष्ठ बने तो वह बैठ कर के सिखाया जाता है, तो इसी शिक्षा के लिए ही परमात्मा ने आगे भी कहा है ना, यदा यदा, जब जब ऐसा अधर्म होता है, जब इस बात की जानकारी एकदम चली जाती है और पाँच विकारों वश मनुष्य हो जाते हैं, तब मैं आता हूँ और आकर के यह ज्ञान देकर के विकारों से निवृत्त करता हूँ। तो यह है उसी का ही कॉलेज, उसने बैठकर के बस एक अर्जुन को नहीं समझाया था, यह तो गीता का शास्त्र बनाया है, वह तो पीछे शास्त्रकारों ने बैठकर के एक फोरम से शास्त्र बनाया, परंतु प्रैक्टिकल में तो कोई एक के लिए तो नहीं आया ना, वह तो नर नारियों को बैठकर के शिक्षा दी है, जैसे दे रहे हैं । हम भी तो अभी उनके द्वारा यह शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, जो सबका पिता है, आप लोगों का, हमारा, कोई अकेला हमारा थोड़ी ही है, सबका है न, सारी दुनिया का, सभी मनुष्य मात्र का, सभी धर्म का, सबका बाप तो एक ही है ना । परमात्मा तो एक को ही कहेंगे ना। इनकॉरपोरियल गॉड, निराकार परमात्मा एक को ही कहा जाता है और उसको सब मानते हैं और सब कहते हैं गॉड इज वन, तो वो वन तो एक ही चीज है ना, कोई मनुष्य की तो बात तो नहीं है ना और जो भी धर्म स्थापक आए हैं तो उन्होंने भी कहा, खुद अपने को गॉड नहीं कहा, देखो गुरु नानक देव है, उसने भी अपने को कोई परमात्मा नहीं कहा, क्राईस्ट था तो उसने भी अपने परमात्मा नहीं कहा, उसने भी कहा मैं सन ऑफ़ गॉड हूँ, नॉट गॉड बट सन ऑफ़ गॉड और जो भी आए हैं धर्म स्थापक उन्होंने कोई अपने को परमात्मा नहीं कहा, उन्होंने भी परमात्मा की तरफ उंगली उठाई अर्थात उसकी तरफ इशारा किया तो उसका मतलब है कि परमात्मा तो एक निराकार हो गया ना और उसी निराकार को सब मानेंगे । ऐसे तो नहीं है ना, जो धर्म के स्थापन करने वाले हैं, उनको सब मानेंगे। वह तो हर एक का अपने-अपने हैं, जैसे गुरु नानक है, वह सिख धर्म वाला या जिस-जिस धर्म वाले को मानते हैं, सब तो नहीं मानेंगे ना. तो वह तो हो गए धर्म स्थापक लेकिन उन्हों का भी जो पिता, निराकार परमात्मा, जिसको ही कहा जाता है वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी । अभी वह वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी हमारे सारे कर्मगति को जानता है इसीलिए उसका भी टाइम है, एक बार आकर के उसने ही कहा है जब जब ऐसा अधर्म होता है, तब-तब मैं आकर के सभी के कर्म गति का नॉलेज देता हूँ और कर्म को कैसे श्रेष्ठ बनाओ, वह आ करके समझाता हूँ। तो अभी जहाँ पर आए हो न, यह कोई हमारी कॉलेज या हमारी स्कूल नहीं है, हम भी स्टूडेंट्स हैं, लेकिन पढ़ाने वाला जो है ना, वही है जो बैठ कर के अभी समझा रहा है कि किस तरह से और हमारा यह दुःख कहाँ से हुआ है, क्यों हुआ है, हमारी आगे लाइफ क्या थी, खाली हमारे रोने या पुकारने से तो काम नहीं होगा ना, परंतु वह हमारी स्थिति कैसे बने, वह बैठकर प्रैक्टिकल बैठकर के समझाते हैं कि यह पाँच विकार ही हैं, जो मनुष्य को गिराते हैं। उसी से ही मनुष्य के कर्म भ्रष्ट बनते हैं अभी उसको कैसे सुधारो, इसी के सुधारने से तुम्हारे कर्म श्रेष्ठ बनेंगे और उसी श्रेष्ठ कर्म से तुम्हारी प्रालब्ध भी श्रेष्ठ बनेगी, जिसके आधार से फिर तुम्हारी लाइफ में सदा सुख प्राप्त होगा यानी एवर हेल्दी एवर वेल्दी एवर हैप्पी यानी सदा सुख के जो साधन हैं वो प्राप्त रहेंगे । तो वह हमको प्राप्त रहेंगे तभी जब हमारे कर्म श्रेष्ठ रहेंगे ना। बिना श्रेष्ठ कर्मों के हमको सुख की प्राप्ति हो ही नहीं सकती है तो हम खाली सुख शांति के इच्छुक रहें, उससे तो काम नहीं बनेगा ना लेकिन वह बनेगा कैसे, तो हमको उसके उपाय करना होगा। आज दुनिया बहुत उपाय करती है, वर्ल्ड पीस के लिए, वर्ल्ड शांति के लिए, विश्व शांति के लिए अथवा अनेकानेक सुख प्राप्त करने के साधन के लिए तो कई कोशिश करते हैं परंतु उन सभी कोशिशों का हमको लाभ मिल नहीं रहा है प्रैक्टिकल में उस तरीके से। आज देखो कितनी साइंस ऊँची गई है चाँद, सूर्य तक मनुष्य चले गए हैं लेकिन लाइफ हमारी नीचे चली जा रही है। तो कहेंगे हमारी लाइफ को कैसे ऊँचा उठाया जाए और हमारी लाइफ कैसे ऊँची उठे, उसका फाउंडेशन कौन सा है, तो उसका फाउंडेशन है प्योरिटी। फर्स्ट प्योरिटी देन पीस एंड प्रोस्पेरिटी। ऐसे नहीं फर्स्ट पीस एंड प्रोस्पेरिटी, नहीं, फर्स्ट प्योरिटी। जब तलक लाइफ में प्योरिटी नहीं आई है तब तलक पीस एंड प्रोस्पेरिटी आ ही नहीं सकती है तो फर्स्ट प्योरिटी। तो प्योरिटी कैसे हमारे जीवन में आए, जिससे हमारे कर्म अच्छे बने, तो कर्म का ही हम फल खा सकेंगे ना। हमारे कर्म ही ठीक नहीं होंगे तो हम खाएँगे कहाँ से, कर्म से ही तो फल बनता है ना। हम फल खाने की इच्छा रख बैठे हैं लेकिन मिले कहाँ से, उनका बीज अभी जो बोना है तो यह है कर्मक्षेत्र है, यह तो गीता में भी है कि कर्मक्षेत्र है। इसको कर्मों की खेत कहा जाता है। जो हम करते हैं सो हम पाते हैं लेकिन हमको करना क्या चाहिए, हमको उसका राइट नॉलेज होना चाहिए। ऐसे तो कॉमन कई समझते हैं इतना तो हमें भी ज्ञान हैं कि भई सच बोलना चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए, किसको धोखा नहीं देना चाहिए, किसी से कोई ऐसा पापकर्म नहीं करना चाहिए यह तो कॉमन सब समझते भी हैं, परंतु पहले पहले यह भी हमको जानना चाहिए न कि सच क्या है। सच बोलना चाहिए, परंतु सच क्या है, सच का भी तो पता होना चाहिए ना कि व्हाट इस ट्रुथ, ट्रुथ का नॉलेज होना चाहिए ना। ट्रुथ उसको कहेंगे कि हमको यथार्थ अपनी नॉलेज होनी चाहिए कि व्हाट एम आई, हम कौन हैं, सेल्फ रियलाईजेशन होना चाहिए कि हम हैं कौन। ऐसे तो कॉमन किसी से भी पूछेंगे तो आप कौन हो, तो क्या कहेंगे हम मनुष्य हैं और क्या हैं, देखते नहीं हो हम मनुष्य हैं, यह तो कॉमन परिचय, वह तो बात ही नहीं है लेकिन आई, सेल्फ, हम हैं कौन, वह चीज का पता होना चाहिए ना। तो हम हैं आत्मा। आत्मा को अपना ज्ञान होना चाहिए और हमारा कैसा कर्म के साथ संबंध है, हम किन कर्मों से श्रेष्ठ बन सकते हैं और किन कर्मों के कारण नीचे गिरे हैं, इन सब बातों का यथार्थ नॉलेज होना चाहिए ना। तो हमको अपना और अपना क्रिएटर का, परमपिता परमात्मा ,का जिससे ही हम को बल मिलेगा, ताकत मिलेगी उनका नॉलेज और हमको अपने कर्म का नॉलेज, इन्हीं सब बातों की यथार्थ नॉलेज होनी चाहिए तो यथार्थ नॉलेज को ही सच कहा जाएगा। बाकी यह कॉमन नॉलेज, वह तो सब जानते हैं सच बोलना, सच क्या है, सच क्या कहेंगे की भाई उसने जो बात सुनाई इसने भी वो ही बात सुनाई, ये सच बोला, अभी सच ये तो नहीं न। हम वास्तव में हैं कौन, हमारे ये कर्म का चक्कर कैसे चलता है, हमारी कर्म की सृष्टि का ये कैसे बना, इन बातों को जानना उसको कहेंगे सच को जानना। बाकी यह तो नहीं है ना कि इसने जो बोला, हमने भी वह बोला इसीलिए हम सच्चे हो गए, नहीं, यह है कौन, इसका पता होना चाहिए, यह कौन है तो हरेक को अपना, दूसरे का, यह कौन है, हम यह जो देखते हैं तो यह नॉलेज होना चाहिए ना कि यह क्या है, यह मनुष्य है क्या, तो इस यथार्थ नॉलेज को समझना इसको कहेंगे ट्रुथ को जानना। तो सत्यता का पता भी होना चाहिए ना कि हमारी जीवन का आधार किसके ऊपर है, हमारा कर्मों का आधार किसके ऊपर है, हमारा कर्म क्या है, हमें कर्म करना क्या चाहिए, इसके इन सब बातों की यथार्थ जानकारी को ही ज्ञान कहा जाता है और उसको ही कहेंगे सच को जानना, तो जब तलक ऐसी यथार्थ नॉलेज का पता नहीं है तो मनुष्य सत्यता से चलते ही नहीं हैं। भले मनुष्य तो समझते हैं की हमने किसी का खून तो नहीं किया है, कभी किसी का पाप तो नहीं किया है, कभी किसी को धोखा तो दिया नहीं है इसीलिए हम बड़े सत्यवादी है, बहुत अच्छे हैं परंतु पाँच विकारवश जब तलक मनुष्य है ना, तब तलक मानो उससे पाप होता ही रहता है। ऐसा तो कोई कह नहीं सकता है कि हमारे पास विकार ही नहीं है क्योंकि बिचारे को विकारों का अर्थ ही नहीं है ना, पता ही नहीं है, वह तो समझते हैं ना क्रोध के बिना दुनिया कैसे चलेगी, काम के बिना संसार की वृद्धि कैसे होगी, मोह के बिना बच्चों की पालना कैसे होगी, वह कई ऐसे समझते हैं कि पाँच विकार के बिना संसार का काम ही नहीं चलेगा। परंतु यह रॉन्ग है हमारा संसार निर्विकारों के सिवाय ही सदा सुखी था, जिसको ही कहा जाता था स्वर्ग। स्वर्ग में स्वर्गवासी मनुष्य जो थे क्या विकारी थे? हमारे पूज्य श्री लक्ष्मी श्री नारायण, श्री सीता श्री राम, गाँधीजी जी जिस रामराज्य की भावना रखता था, उसी जमाने की बात है, क्या उस समय में विकार था? अगर उन्हों में विकार था तो आज उन्हों के चित्र मंदिरों में क्यों पूजे जाते हैं । आज जब मंदिरों में जाते हो, लक्ष्मी नारायण के मंदिरों में जाते हो तो आप उनके आगे क्या कहते हो, आप सर्वगुण संपन्न, 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी कहते हो ना? या कहते हो आप सर्वगुण अपूर्ण, आप विकारी, ऐसे तो नहीं कहते हो ना? उनको निर्विकारी क्यों कहते हो, जरूर कंट्रास्ट है ना? विकार और निर्विकार का कोई तो कंट्रास्ट है ना? तो इसी सभी बातों को भी समझना है न और अपने को कहते हैं हम विकारी, हम पापी, हम नीच, हम कपटी, अपने को ऐसे कहेंगे और उनको कहेंगे आप संपूर्ण, आप सर्वगुण संपन्न, 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी, देवताओं को ऐसे कहते हैं ना तो क्यों कहते हैं? जरूर कोई कंट्रास्ट है ना और अंग्रेजी में भी कहते हैं वॉइसलेस और विषियश, तो फर्क है ना उसमें और इसमें । जिसमें वाइशेस हैं, तो वाइशेस किसको कहा जाता है, तो यह भी समझने की बात है ना। तो वाइसलेस, निर्विकार का मतलब ही है वाइसलेस तो उसकी माना वाइसेस का लेस चाहिए ना, कहते हैं वॉइसलेस तो माना वॉइसिस नहीं, तो उनको कहेंगे वाइसलेस, बाकी ऐसे नहीं है कि ये विकारों के बिना दुनिया कैसे चलेगी तो वाइसलेस वर्ड का भी तो अर्थ समझना है ना, तो यह सभी चीजों को समझना है कि हमारी दुनिया उसी बल से चली हुई है, जिसमें हमारे पास विकारों का बल नहीं, विकार कोई बल नहीं है, विकार से तो हम गिरे है ना। तो यह सभी चीजों को समझना है इसीलिए इन बातों को समझ करके हम अपने संसार को कैसे ऊँचा उठाएँ और उसके लिए हमें क्या करना चाहिए और किस तरह से हम ऊँचे हो सकते हैं उसको कहेंगे यथार्थ समझना और उसको ही कहेंगे सच को जानना। इसीलिए कहा जाता है कि गॉड इज टूथ यानी इस सत्यता को परमात्मा ही जानता है। ट्रुथ को परमात्मा ही जानता है और कोई जान ही नहीं सकता है इसीलिए तो बेचारे मनुष्य नहीं जानते हैं ना तब तो कहते हैं ना की संसार तो ऐसे ही चलेगा, परंतु संसार कैसे चलेगा, अगर ऐसे ही चलेगा तो चला के दिखाओ न । आज क्यों संसार अशांत हुआ है? ऐसे ही चलेगा तो चला रहे हैं ना संसार, फिर उसमें चिल्ला क्यों रहे हो, अशांति है, दुःख है, देखो हाहाकार हो गई है ना, यह देखा ना, सुना न, गीत में भी सुना ना, आज हमारा भारत क्या है, तो यह क्यों है, अगर हम चलाना जानते हैं तो दिखाओ ना चला के। फिर संसार क्यों हमारा दुःख और अशांति में आज चुका है। इसीलिए बाप कहते हैं मनुष्य तुम नहीं जानते हो, मैं जानता हूँ कि तुम्हारा संसार कैसे सुखी बनेगा इसीलिए सभी परमात्मा के द्वारा यह रोशनी मिल रही है कि किस तरह से हम मनुष्य अपने संसार को सुखी बनाएँ, इसका ज्ञान कोई मनुष्य के पास नहीं है। इसका ज्ञान उसी ज्ञान दाता के पास है, जिसको ही कहा जाता है नॉलेजफुल गॉड अथवा जानी जाननहार अथवा ज्ञानसागर, ये किसको कहा जाता है परमात्मा को, तो परमात्मा के पास ही हम मनुष्य का यथार्थ नॉलेज है कि मनुष्य की कंप्लीट स्टेज कौन सी है। तो हमारी कंप्लीट स्टेज कौन सी है और कैसे बने उनकी हमको नॉलेज चाहिए, उसको ही कहेंगे सत्यता को जानना, जिससे हम सचमुच सत्य बनें, और प्रैक्टिकल लाइफ हमारी वो ऊँची बने। जब तलक ऐसी ऊँची लाइफ नहीं बनी है, तब तलक मानो हम सत्यता को जानते ही नहीं हैं, बाकी यह कॉमन सत्यता, किसी ने कुछ कहा हमने भी वही सुनाया तो उसको थोड़ी सत्यता कहेंगे, सत्यता है कि हमारी लाइफ सत्यता क्या है, वास्तविकता क्या है जिसको हम जान करके उसी वास्तविकता को प्राप्त करें तो उसको कहेंगे सत्यता, कि हमारी लाइफ की जो वास्तविक एम एन ऑब्जेक्ट क्या है और कैसे हम उसको पाएँ, तो कहेंगे यह राइट को स्टेज जानता है और राइट स्टेज को प्राप्त करता है, तब तो कहेंगे ना कि सत्य को जानना। तो ये सभी ज्ञान होना चाहिए ना अभी यह ज्ञान सिवाए परमात्मा के और कोई दे नहीं सकता इसीलिए यह हम भी अभी उनके द्वारा सुन रहे हैं, नहीं तो हम भी ऐसे कहते थे, जैसे दुनिया कहती है कि हाँ भाई यह विकार है, विकारों के बिना दुनिया कैसे चलेगी, ऐसे ही चली आई है क्योंकि हमारे पूज्य देवताओं की बायोग्राफी में, कहीं-कहीं ऐसी बातें शास्त्रों में लिखी हुई हैं, जिसकी वजह से कई मनुष्य मूंझे हुए हैं जैसे श्री रामचंद्र के जमाने में भी लगाए हैं ना, रावण के साथ लड़ाई लगी तो वह समझते हैं कि उसी जमाने में भी लड़ाई हुई है ना, तो यह सभी जमानों में हुआ है, वह कृष्ण के साथ भी लड़ाई दिखाई है उसके जमाने की भी बात है, उधर सतयुग के जमाने असुर और देवताओं की लड़ाई तो सभी जमाने में लड़ाई की बातें आई हैं ना, तो मनुष्य समझते हैं कि यह तो सभी युगों में चली आई है, परंतु ऐसे है नहीं, तो यह भी तो हमें बातें समझने की है ना । जिसके लिए गाँधीजी रामराज्य कहते थे, राम राजा राम प्रजा राम साहूकार है, बसे नगरी, जिए दाता धर्म का उपकार है, यह कहावत बहुत मशहूर है तो जब ऐसे धर्म का उपकार का जमाना था तो वहाँ कैसे राम और रावण की लड़ाई हो सकती है, अभी इनका भी बैठ कर के अर्थ समझना है वह कोई त्रेतावंश राजा राम की लड़ाई की बात नहीं है, यह राम और रावण क्या हैं, यह सभी बातें फिर समझने की है, ये रावण क्या चीज है, रावण कोई दस शीश वाला कभी हुआ ही नहीं है, न कोई राजा था, आदमी ही नहीं आत्मा ही आदमी ही नहीं था तो राजा कहाँ से होगा तो यह दस शीश वाला कभी कोई आदमी था ही नहीं अभी यह किस अर्थ से बनाई है ये बातें तो वह समझने का है कि दस विकार हैं पाँच विकार स्त्री के, पाँच विकार पुरुष के, इसको अपवित्रता का सिम्बल कहेंगे, निशान है बाकी ऐसे नहीं कि कोई दस शीश वाला आदमी होता है, तो देखो इन सभी बातों का अर्थ समझना है ना तो यह है अपवित्र मनुष्यों का सिंबल यानी नर नारी दोनों जब अपवित्र होते हैं तो संसार दु:खी होता है उसको कहा जाता है रावण राज्य यानी विकारों का राज रावण विकारों का सिम्बल समझो बाकी कोई मनुष्य नहीं है दस शीश वाला नहीं दस शीश वाला कभी आदमी होता है क्या कोई जमाने में कभी हुआ नहीं है नहीं देवता थे तो दो आँखों वाले एक सिर वाले , ऐसे नहीं तीन आँखें वाले या चार सिर वाले या चार भुजाएँ वाले नहीं वो देवता तो भी दो भुजा तो इसीलिए चित्र अब करेक्ट बनाए हैं ना कि भाई यह देवता तो भी दो भुजा वाले जैसे मनुष्य जैसे होते हैं लेकिन हाँ उनकी लाइफ जरूर ऊँची थी बाकी तीसरी आंख का यह तीनों के जो दिखाते हैं इनका भी अर्थ है यह थर्ड आई ऑफ विजडम ज्ञान का नेत्र है बाकी ज्ञान का नेत्र ये जो तीन आँख दिखलाते हैं इनका भी अर्थ है ये थर्ड आई ऑफ़ विजडम ज्ञान का नेत्र है बाकि ज्ञान का नेत्र कोई ऐसा नहीं कोई इधर नेत्र निकल आएगा नहीं मनुष्य को तो दो नेत्र है जो देखने के लिए वह तो दो नेता की बात है लेकिन यह ज्ञान का नेत्र जो अभी ये ज्ञान मिल रहा है न इसको कह सकते हैं कि अभी थर्ड आई ऑफ़ विजडम है परन्तु ऐसे थोड़ी यहाँ थोड़ी कोई आँख निकल आई है निकलेंगी थोड़ी नहीं वह ज्ञान का चिन्ह है, निशान है जो चित्रकारों ने बैठ करके दिखाया है, ज्ञान कैसे दिखलाएँ भाई इस मनुष्य के पास ज्ञान है तो इधर आंख दिकहा दी है बस तो यह उसका निशान है बाकि ऐसे नहीं है कि तीन आँखें होती हैं या चार भुजाएँ होती हैं पर चार भुजाओं का भी अर्थ है जो चतुर्भुज का, दो भुजा नारी की दो भुजा नारी की यानी नर नारी जब पवित्र है तो चतुर्भुज यानी पवित्र देवी देवता है इसीलिए उसका सिंबल है, यह सभी सिंबल है यह रावण भी विकारों का सिंबल है, और यह चतुर्भुज भी पवित्र निर्विकारी मनुष्यों का सिंबल है तो यह सभी चीजों को समझना है बाकी ऐसा नहीं है कि राम रावण की लड़ाई हुई है या कुछ भी नहीं, नहीं ये राम माना परमात्मा जब परमात्मा आया है तो विकारों से लड़ाई कराई है अर्थात युद्ध कराई है पांचों विकारों के साथ, जीतने के लिए, देखो अभी हम युद्ध कर रहे हैं न हमारी लड़ाई किससे है, हम भी लड़ रहे हैं, किससे लड़ रहे हैं विकारों से, विकारों ने हमारे ऊपर जीता है ना अभी हम विकारी हो गए थे, हमारे ऊपर विकारों ने राज किया है इसीलिए हम दु:खी हुए हैं अभी फिर परमात्मा आ करके रोशनी दिया हैं कि इन विकारों से लड़ो और इन विकारों को जीतो, किससे लड़ो? रावण से, तो यह हमारी रावण के साथ लड़ाई है । अभी लड़ाई का अर्थ यह है, बाकी ऐसे नहीं है कि कोई सच-सच दस सीस वाला आदमी था । कोई राजा था, जिसके साथ राम की युद्ध हुई, ऐसी कोई बात ही नहीं है । तो यह सभी चीजों को भी समझना है ना । तो अभी यह बायोग्राफी जो राम और उसकी बनाई है और स्टोरी बनाने वालों ने इस तरह से बनाया है तो इन बातों का पूरा ना समझने के कारण यह बहुत बातें मिक्स अप हो गई हैं इसीलिए कई समझते हैं कि लड़ाई तो सदा से चली है ना । परंतु नहीं, सदा हमारे सतयुग और त्रेता के जमाने में जिसमें कहते हैं राम राजा राम प्रजा राम साहूकार है बसे नगरी दिए दाता धर्म का उपकार है, तो धर्म का उपकार जहाँ होगा वहाँ अधर्म की बातें कहाँ होगी । लड़ाई झगड़े तो अधर्म की बात है ना, वह कैसे होगी । तो यह सभी चीजों को समझने का है इसीलिए वह जमाने कोई लड़ाई के नहीं थे । यह लड़ाईयों है का जमाना द्वापर से शुरू हुआ है । सतयुग और त्रेता में ये लड़ाई के कारण या अशांति के कोई भी कारण कभी अकाले मरना या रोग आदि थे ही नहीं । वह भी जमाना था जब डॉक्टर और हॉस्पिटल्स थे ही नहीं क्योंकि रोग ही नहीं था । कभी कोई जज, वकील, कोर्ट आदि थी ही नहीं, क्योंकि चोरी चकारी थी ही नहीं, काहे के लिए होंगे, वह भी जमाना था ना । तो वह जमाने जिसमें हमारे पास ना कोई झूठ ना पाप न कोई ना कोई ऐसा कर्म, धर्मराज के डंडे भी नहीं थे क्योंकि हमारे पास ही नहीं से उसकी कोर्ट भी बंद । तो यह यहाँ की कोर्ट की तो कोई बात ही नहीं है क्योंकि वह हमारी लाइफ की स्टेज इतनी ऊँची थी, तभी हम पूर्ण सुखी थे, एवर हेल्थी, एवर वेल्थी एवर हैप्पी, जिसको कहा जाता है हमारे कर्म श्रेष्ठ देना लेकिन हम आज हमारे हमारे घरों में व्यस्तता आ गई है जिसको कहते हैं भ्रष्टाचार, तो देखो आज भ्रष्टाचार का नाम है ना, तो भ्रष्टाचार और स्रेष्ठाचार कंट्रास्ट तो चाहिए न । तो स्रेष्ठाचार अर्थात श्रेष्ठ आचरण, अभी आचरण भ्रष्ट हुआ है इसीलिए भ्रष्टाचार । तो ये सभी चीजों को भी समझना है ना इसीलिए देखो यह सभी बैठ कर के बातें अच्छी तरह से समझने की है कि यहाँ कोई लेक्चर से समझ जाएगा, नहीं! यह तो बातें आ करके इंडिविजुअली अच्छी तरह से बैठकर के टाइम दे करके कोई समझे, तभी कुछ समय समझ सकेगा और कुछ अपना प्रैक्टिकल जीवन बना सकेंगे इसीलिए बार-बार जो भी नए आते हैं, आप लोगों को यह ध्यान में दिया जाता है कि यह कुछ टाइम दे कर के समझने से समझ सकेंगे । बाकी कोई एक-दो लेक्चर्स से, आया और सुना, यह कोई कॉमन चीजें ऐसी नहीं है जो समझ में आए । यह तो अपने प्रैक्टिकल लाइफ में कैसे हम लाएँ और अपनी लाइफ में क्या करें, वह तभी बातें आकर के अच्छी तरह से सीखने और समझने की है । बाकी कुछ और ऐसी डिफिकल्ट भी बात नहीं है जो कोई डर जाए की पता नहीं कुछ ऐसी साधनाएँ या क्रियाएँ हैं, नहीं यह समझना है कुछ और समझ कर के अपने गृहस्थ व्यवहार में रह करके अपनी जीवन को पवित्र रखना है, जिसको ही कहा जाता है गृहस्थ आश्रम, कहते हैं ना गृहस्थाश्रम । तो है गृहस्थ आश्रम, गृहस्थ का नाम देखो कितना अच्छा है आश्रम, लेकिन आज कहाँ है गृहस्थ आश्रम? आश्रम होता है वह, जहाँ शांति और सुख होता है, जहाँ पवित्रता की बातें होती हैं, उसको आश्रम कहेंगे, आज कहाँ है हमारे गृहस्थ में? कहा जाता है गृहस्थ धर्म, आज कहाँ है धर्म? आज गृहस्थ धर्म को अगर अधर्म कहा जाए तो कह सकते हैं क्योंकि विकारों के साथ गृहस्थ का संबंध चल रहा है ना, जिसमें दुःख, अशांति, आज किसी से भी पूछोगे भाई गृहस्थ में क्या है, कहेंगे झंझट, जंजाल ये कॉमन कहते हैं, क्यों कहते हैं? नहीं तो गृहस्थ आश्रम उसमें झंझट और जंजाल? क्यों? परन्तु है, क्योंकि आज हमारे गृहस्थी में विकारी कर्म का जो खाता है ना वो उल्टा चल चुका है इसलिए हमारा गृहस्थ अभी गिर चुका है, नहीं तो हमारी प्रवृत्ति का आदर्श बहुत ऊँचा था, देखो देवताएँ ये हम ही थे ना, हम मनुष्य ही थे इतने ऊँचे । यह लक्ष्मी नारायण, सीताराम इनके जीवन का आदर्श क्यों ऊँचा था? उनका गृहस्थ पवित्र था, उसको कहते थे गृहस्थ धर्म । धर्म पति, धर्म पत्नी, देखो धर्म का नाम आता है ना, लेकिन आज कहाँ है धर्म का संबंध, अभी तो है विकारों का संबंध तो उसको थोड़ी धर्म कहेंगे, तो यह सभी चीजें समझनी चाहिए कि हमारा जो लाइफ का स्टेज है और हमारी जो प्रवृत्ति का स्टेज है वह बहुत ऊँचा है, उसकी वो ऊँच कैसे बनाएँ, प्रैक्टिकल में कैसे लाएँ, इन्हीं सभी बातों को समझना है और यह सभी गीता के भगवान ने भी गीता में कहा हुआ है न, कि कर्मयोग, राजयोग वो सबसे श्रेष्ठ है, ये वही चीज है, वहीं बैठ कर के परमात्मा अभी कर्मयोग यानी घर गृहस्थ में रहते और किस तरह से हम अपने पवित्र प्रवृत्ति को बनाएँ, वह बैठकर के सिखा रहे हैं तो यह है कॉलेज जैसे डॉक्टरी, बैरिस्टरी, इंजीनियरिंग कॉलेज होता है ना, मनुष्य डॉक्टरी कॉलेज से डॉक्टर बनेगा, इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियर बनेगा तो यह भी एक कॉलेज या यूनिवर्सिटी समझो, काहे की है, मनुष्य से देवता अथवा देवी बनने की, नारी से लक्ष्मी, नर से नारायण बनना हो तो फिर वेलकम, समझा! तो इसकी स्टेटस बदला देते है, एम एंड ऑब्जेक्ट, कि नर कितना ऊँचा है, नारी कितनी ऊँची है, नारी नहीं तो लक्ष्मी है, लक्ष्मी कहने की नहीं, प्रैक्टिकल चाहिए ना, लाइफ चाहिए और नर नारायण है नारायण का मतलब है पवित्र । तो मनुष्य नर नारी इतने ऊँचे हैं, अभी ऐसी प्रवृत्ति अपनी बनानी है, उसकी ये कॉलेज है, किस तरह से हम अपने घर ग्रहस्थ में रहते प्रवृत्ति को पवित्र बनाएँ, उसी को कैसे प्रैक्टिकल में लाएँ, उसी को प्रेक्टिकल बनाना है तो ये आप लोगों को एम एंड ऑब्जेक्ट सुनाते हैं, बाकी बनना और प्रैक्टिकल में आना उसके लिए तो फिर थोड़ा टाइम दे करके समझेंगे तो समझ सकेंगे । अच्छा अभी टाइम हुआ है इसलिए अभी दो मिनट साइलेंस । ऐसा हाल होता है तब मैं आता हूँ, यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति जब-जब अधर्म होता है तब-तब मैं आता हूँ, तो अभी यह हाल है, अभी बाप आ करके समझा रहा है कि अभी कैसे अपने संसार को फिर अच्छा बनाओ । बनाएँगे तो हम ही ना । बिगाड़ा भी हमने ही है, बनाना भी हमको ही है, क्योंकि हमारे कर्म से बिगड़ा है । अभी हमको अपने कर्म श्रेष्ठ से फिर सुधारना है, तो हम कैसे श्रेष्ठ कर्म बनाएँ । उसने तो अपना कॉलेज खोला है, अभी जो आ करके सीखेगा वही इस श्रेष्ठ कर्म की धारणा करके ऐसे संस्कार के लायक बनेगा क्योंकि अभी दुनिया की हालात अनुसार, यह भी समझना है कि अभी दुनिया के चेंज का टाइम आया हुआ है परंतु आएगा चेंज तभी जब हम अपने लाइफ में भी चेंज ले आएँगे न । जो लाएगा वही ऐसी चीज चेंज वर्ल्ड की, यानी जो आगे आने वाली फ्यूचरवर्ल्ड है, जिसको ही गोल्डन एजड वर्ल्ड कहा जाए कि अभी ये आयरन एजेड तो अभी इसको कैसे चेंज होना है, ये अभी कैसे वर्ल्ड डिस्ट्रक्शन का और वर्ल्ड कंस्ट्रक्शन का टाइम है तो यह सभी चीजों को समझना है इसलिए थोड़े टाइम में तो यह सभी बातें समझाई भी नहीं जा सकती हैं इसीलिए कोई नए आए हैं तो आप लोगों को राय है कि इसको कुछ टाइम दे करके आ करके समझेंगे तो बहुत अच्छा है और बहुत कुछ अपने जीवन का लाभ पा सकेंगे।