मम्मा मुरली मधुबन


 विनाश से पहले पूरा वर्सा लेने की विधि ओर भगवान् की श्रीमत क्या है
 

बच्चों के लिए सुख शांति की दुनिया बनाऊँगा, तो वह तो अपने वायदों को पूरा करने का पार्ट बजा रहा है, ऐक्ट कर रहा है कि आया है और बच्चों के लिए सुख शांति की दुनिया बनाने का काम चालू किया है । किया है ना काम चालू । और दुख अशांति की दुनिया को नाश करने का भी काम चालू किया है। दिखाई पड़ते हैं अच्छी तरह से? चारों ओर नजर फिरा करके देखो अच्छी तरह से कि दुनिया की हालात भी कंडीशन भी अभी साफ़ है कि ये दुनिया अभी दु:ख अशांति की ओर जा रही है और इसको ही कहा जाएगा धर्म ग्लानि का समा । दुनिया ऐसा नहीं समझती है वह समझती है कलयुग तो अभी बच्चा है। अभी तो इसको बहुत हजारों लाखों वर्ष पड़े हैं जवान होगा , बुड्ढा होगा , अभी तो और इसकी आयु है। परंतु नहीं, यह उनकी लास्ट स्टेज है बाकी कुछ थोड़े समय की है यह अभी अपन जानते हैं । तो इसीलिए तो बाप कहते हैं कि मनुष्यों ने एक-दो की बुद्धि को मेरे से और मेरे कर्तव्य से कि मैं किस टाइम आ करके ये काम करता हूँ उससे बुद्धि को दूर हटा दिया है। और मैं आ कर के फिर अपनी सभी बातों का अपना, अपने कर्तव्य का और अपने टाइम का सब बतलाता हूँ कि बच्चे बहुत काल नहीं है अभी, समय बहुत नहीं है । अभी बच्चा नहीं है कलयुग, अभी बुड्ढा है। इसकी आयु अभी पूरे होने पर है । इसको अभी कहा जाएगा जड़जड़ीभूत अवस्था। मनुष्य सृष्टि रूपी वृक्ष जो है वह अभी जड़जड़ीभूत अवस्था को प्राप्त हुआ है। अभी जड़जड़ीभूत अवस्था वाले की तो मृत्यु की स्टेज है ना। इसीलिए अभी वो टाइम आया हुआ है तब तो यह मृत्यु के लिए तैयारियाँ है ना । ऐसे थोड़ी है कि यह चीजें कोई बहुत हजारों लाखों वर्ष चलती रहेंगी। आज वो चीजें भी बनी है ना अगर कोई चीजों से भी अंदाज लगाए ना कि यह चीजें कोई अब से लाखो वर्ष तक रखी रहें और यह लाखो बरस तक रहने की चीजें हो, ऐसा है ही नहीं। यह चीजें अपना काम करके ही रहेंगी । इसलिए आज जो इतने एटॉमिक बॉम्ब हाइड्रोजन बॉम्ब यह मिसाइल यह सभी चीजें जो बनी है ये चीजें ही ऐसी किस्म की हैं कि अगर ऐसा समझे कि आज से लाखों वर्ष तक करोड़ों वर्ष या और भी आगे तक रखी रहें और चलती रहे और इसकी इन्वेंशन ऐसे ही बढ़ती रहे तो बढ़ती क्या खाली इन्वेंशन बढ़ती रहे तो उससे क्या इसको खामी करना है ना। चीज तो आ गई है बाहर। कैसे दुनिया का नाश हो अब इसके उपाय खोजने की तो कोई दरकार नहीं। अभी वह चीज तो आ गई है बाकी काम में लानी है। थोड़ी एक्सपेरिमेंट जो भी है उसकी वह अभी कर रहे हैं थोड़ा रिफाइन । देखो हिरोशिमा में ट्रायल की न। यह ट्रायल की तो देखा कि इसमें बहुत बिचारे मनुष्य बीमार पड़ गए , रोगी हो गया है फिर उसको हॉस्पिटल में अभी तक भी कोई कोई बीमार पड़े हैं तो समझते हैं । नहीं तो ऐसे हो जाए तो जल्दी से हो जाए सब, पर फिर बीमारों को कौन संभालेगा । उसके लिए भी फिर हॉस्पिटल्स डॉक्टर्स चाहिए ना । यह तो ऐसा चाहिए कि एकदम खत्म, जो पीछे ये भी ना रहे जिनके लिए बेचारों को कुछ उनके लिए इलाज का रखना पड़े। तो वो रिफाइन कर रहे हैं और अभी रिफाइन होता ही जा रहा है और समझते हैं आज ऐसी चीजें कोई इतने लाखों करोड़ों वर्ष थोड़ी ही चलेंगी और संख्या से भी हम अंदाजा लगा सकते हैं यह संख्या बढ़ती जा रही है । तो ऐसा नहीं है की संख्या भी बढती ही रहेगी। बढ़ते बढ़ते आखिर एंड भी तो आनी चाहिए ना । और देखो संख्या की स्पीड बिचारे खुद भी संभाल नहीं पा रहे हैं । समझते हैं ऐसे बढ़ते जाए तो वह बिचारे नहीं समझ पा रहे हैं कि किस तरह से इन को संभाला जा सकेगा । तो यह सभी बातें दिखा रही है यह मामले अभी-अभी क्रिएट होते जा रहे हैं ना जोर से तो यह सब इतना कैसे होगा तो अभी यह सब हालात दिखाई पड़ते हैं । ऐसे मत समझो कोई इधर भी कोई ऐसा ना हो कि समझे कि नहीं अभी तो काफी टाइम पड़ा है जैसे दूसरे विकार में पड़े हैं तो ऐसा नहीं। अब टाइम बहुत निकट आता जा रहा है इसीलिए इस समय को पूरी तरह से समझते और दुनिया की हालात और यह कंडीशन अभी आसार भी चिन्ह जिसको कहेंगे अभी दिखाई दे रहे हैं। यह दुनिया के अंत का समय है। और ऐसे भी नहीं है कि यह मनुष्य सृष्टि का चक्कर कोई अरबों वर्षों का चला हुआ है । अगर अरबों वर्ष का होता ना तो आज पता नहीं कितनी संख्या होती। यह तो कहते हैं अभी यह क्राइस्ट आया ना , क्राइस्ट को देखो 1965 हुआ अभी तो वह कहते हैं क्राइस्ट के बिफोर यानी आगे उस समय लाखों के अंदाज में वर्ल्ड की सेंसस थी । सेन्सस भी लेते हैं ना कितने वर्षों से दुनिया की कितनी सेन्सस रही। तो वह बतलाते हैं की क्राइस्ट से पहले दुनिया की सेन्सस बहुत थोड़ी थी लाखों में गिनते थे । तो क्राइस्ट की पहले कि इतनी थी अभी 2000 वर्ष में अभी जाकर के करोड़ों में लगी है अगर यह अरबों वर्षों का होता तो हिसाब लगाने की बात है कि कितनी होनी चाहिए । फिर तो इतना जितना टाइम हुआ है इतने टाइम के अंदाज के अनुसार तो बहुत संख्या बढ़ जाती , पता नहीं क्या हो जाता , अभी ही खाने के लिए बेचारे तंग हो गए हैं तो तब तो ना मालूम क्या हो जाता। तो ऐसे नहीं है कि यह चक्कर कोई अरबों वर्षों का चला आया है । यह है ही 5000 वर्ष का जो बैठकर के बाप समझाते हैं कि 2000 वर्ष में भी यह क्राइस्ट के पहले की बात है 2020 में जब इतनी संख्या करोड़ों के अंदाज में आ चुकी है तो सोचने की बात है अगर यह अरबों और लाखों वर्षों का कल्प होता तो क्या होता अभी बैठने की जगह तक कम पड़ गई है खाने के लिए तंग पड़ गए हैं अभी हर बातों में तंग पड़ गए हैं । ना मालूम अभी कितनी संख्या और आगे होती तो ऐसे नहीं है यह 5000 वर्ष का ही चक्कर है और हिस्ट्री भी हमको कोई इतनी अरबों वर्षों की या करोड़ों वर्षों की कोई हिस्ट्री भी नहीं मिलेंगी और है ही नहीं हिस्ट्री । बस आगे में अच्छे से अच्छे मनुष्यों की हिस्ट्री यह देवताओं की मिलती है और देवताओं के टाइम को अगर गिनते हैं तो भी 5000 वर्ष की बात है बाकी इसके आगे कोई दूसरी दुनिया थी या ऐसे कहीं कुछ न कुछ अपना समझते हैं पर ऐसी बात ही नहीं है। अगर आगे की आगे हिस्ट्री भी लेंगे तो यह देवताओं की मिलेगी और देवताओं की लाइफ से ही पता लगता है कि पहले लाइफ संसार की ऊँची थी। यह जो कई समझते हैं कि पहले लाइफ नीचे थी और अभी फिर यह सिविलाइज्ड दुनिया होती गई है तो यह अभी दुनिया बहुत ऊँची चढ़ी है तो यह ऐसे नहीं है । वह आगे दुनिया ऊँची थी जिसमें संसार सुखी थी, कभी रोग नहीं, कभी अकाले मृत्यु नहीं, यह सभी बातें थी ही नहीं, तो उसको ही तो ऊँचा कहेंगे ना जिसमें मनुष्य एवर हेल्दी, एवर वेल्थी, एवर हैप्पी थे। तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं इसीलिए कहते हैं बच्चे अभी फिर से वो टाइम आ रहा है । इसीलिए ऐसे नहीं समझो कि यह दुनिया कोई बहुत काल का है। नहीं, 5000 वर्ष का है अभी उसका टाइम भी आ करके पूरा हुआ है। तो दुनिया नहीं जानती है, ना इसके शुरू का टाइम, ना इस के अंत का टाइम । वो शुरू समझते हैं तो भी पता नहीं कितने अरबों लाखों करोड़ों वर्षों में ले गए है । कोई शुरू समझते हैं तो भी समझते हैं पता नहीं कोई जनावर पहले थे। बंदरों से फिर मनुष्य हुए हैं या कोई कैसे समझते हैं कोई कैसे जैसे जिसको आया । तो ना इस सृष्टि के आदि को जानते हैं ना मध्य को जानते हैं। अंत ही नहीं जाना तो उसकी बायोग्राफी सारी कैसे यह वृद्धि को पाती है यह मनुष्य नहीं जान सकते। इसकी आदि और इसका अंत मैं आ करके बताता हूँ। इसीलिए बाप बैठ करके समझा रहे हैं बच्चे सारी सृष्टि का रचता तो मैं हूँ ना तो मैं ही जान सकता हूँ कि इनकी शुरुआत और अंत कैसे होता है और मध्य में यह कैसे होती है, सभी धर्मों का आना शुरू तभी से होता है इन सभी चीजों को मैं जानता हूँ इसलिए बाप कहते हैं बच्चे जो जानता है वही तो समझाएगा ना । अगर मेरे पास कोई और अधिक मनुष्य से समझ ना होती तो फिर मुझे क्यों कहते कि वह नॉलेजफुल, फिर तो कहो सब नॉलेज फुल हैं। तो मुझे क्यों आगे रखते हो, मेरी महिमा क्यों सबसे श्रेष्ठ करते हो तू ज्ञान का सागर है, तू ही पतित को पावन करने वाला है, तू ही ऐसा है, तू ही ऐसा है, मेरी महिमा करते हो, क्यों करते हो। जरूर मेरे पास अधिक है । तुम मनुष्यों से मैं अधिक जानता हूँ। जो बात तुम नहीं जानते हो वह मैं जानता हूँ तभी तो कहते हैं ना हम नहीं जानते तुम जानते हो और बाप ने भी कहा है अर्जुन को कहा है न तुम्हारे सभी जन्मों को मैं जानता हूँ। अर्जुन को भी गीता में कहा तुम नहीं अपने जन्मों को जानते हो, जन्म -मरण में आने वाले तुम हो लेकिन तुम नहीं जानते हो मैं तुम्हारे सभी जन्मों को जानता हूँ क्योंकि मैं जन्म मरण में नहीं आने वाला हूँ, तो जो नहीं आने वाला है वही तो जानेगा ना, बाकी तू तो आने वाला ही है जन्म मरण में तो जो जन्मेगा मरेगा वह कैसे जानेगा। नहीं उसको तो चक्कर में नीचे ही चलना है । उसे तो भूल जाता है ना। इसलिए बाप कहते हैं बच्चे तुम तो भूल ही जाते हो और तुमको भूलना ही है क्योंकि तुमको चक्कर में चलना है। मैं चक्कर में ही नहीं आता हूँ तो मैं भूलता भी नहीं हूँ इसलिए मेरे पास नॉलेज सबकी रहती है कि सभी कैसे-कैसे नंबरवार, कौन कौन सा धर्म पहले पीछे नंबरवार यह सभी कैसे आते हैं इन सब बातों को मैं जानता हूँ। इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे जो जानेगा वही बतलाएगा ना । जरूर मेरे पास जानकारी है इन चीजों की तभी मुझे कहते हो ज्ञान का सागर, शांति का सागर, सुख का सागर । इन चीजों से मैं आकर के सुख शांति बतलाता हूँ और देता हूँ इसीलिए मेरा गायन करते हो । तो यह सभी चीजों को समझना है न इसीलिए बाप कहते हैं गफलत में नहीं रहना है। दुनिया तो गफलत में है और हम भी पहले गफलत में थे। ऐसा नहीं है कि हम कोई ऊपर से आए हैं हम भी यहाँ के ही ऐसे ही थे । जैसे अभी दुनिया समझती है हम भी ऐसे ही समझते थे पहले । लेकिन अभी जब बाप ने रोशनी दी हैं तो अभी उसी रोशनी के आधार से जानते हैं यथार्थ बातों को । तो अभी जब बाप यथार्थ बातों को सुना रहा है तो उसके ऊपर अटेंशन देना है । सुनते और समझते भी और फिर गफलत में रहना यह तो फिर महामूर्ख वाली बात बतलाई ना, मूर्ख भी नहीं महामूर्ख। तो ऐसा नहीं बनना है कि समझते जानते और फिर हम, मूर्ख तो थे ही परंतु अभी समझते भी अगर मूर्ख रहा तो उसको कहेंगे महामूर्ख। तो ऐसा तो नहीं बनने का है ना इसीलिए ऐसे महामूर्ख अथवा जानते समझते अपना ना कुछ करना इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे इन सभी बातों को अच्छी तरह से समझते अपना पुरुषार्थ रखते रहो क्योंकि टाइम अभी थोड़ा है इसीलिए थोड़े में भी थोड़ा होता जा रहा है। जितने जितने दिन कटते हैं उतना उतना जैसे मनुष्य होता है ना भक्ति मार्ग में भी मिसाल देते हैं कि मनुष्य समझता है कि मैं बड़ा होता जाता हूँ परंतु यह नहीं जानते हैं कि आयु कम होती जाती है। यह भक्ति मार्ग मैं भी मिसाल होते हैं वह समझते हैं मैं बच्चे से बड़ा हुआ, बड़े से अभी बुड्ढा होऊंगा वह समझते हैं मैं बड़ा होता जाता हूँ परंतु यह नहीं समझते हैं कि आयु कम होती जाती हैं तो छोटा होता जाता है यानी आयु कम पड़ती जाती है। तो भक्ति मार्ग में भी मिसाल देते हैं कि देखो मनुष्य कितने मूर्ख है। वह समझते हैं कि मैं बड़ा होता जाता हूँ परंतु यह नहीं समझते हैं की आयु छोटी होती जाती है । जितना बड़ा होता जाएगा तो आयु छोटी होती जाएगी ना। तो इसी तरह से यह भी बाप बैठकर के समझाते हैं कि बच्चे जितने दिन बीतते जा रहे हैं, टाइम थोड़ा रहता जा रहा है तो ऐसे नहीं समझना कि अभी बहुत टाइम प़डा है । दिन तो कटते जा रहे हैं न, समय बीतता जा रहा है इसीलिए ऐसे समय का पूरा-पूरा खबरदार रहना है और सावधान रहना है और उस विनाश से पहले कोई अपना ही ना विनाश हो जाए तो भी छोटा पड़ेगा ना। तो ख्याल रखना है कि जितना जितना हम अपने जीवन में बना रहे हैं, इतना प्रीपेयर रहना है कि भले आज सांस निकल जाए तो अपने को देखना है कि मैं रेडी हूँ । ऐसा है कि मैंने कुछ कमाई कर ली है, मैं जाऊं अभी, अभी मेरा स्वांस निकल जाए तो मेरे पास क्या है, मैंने कमाई का स्टॉक क्या जमा किया है तो अपना स्टॉक संभालो। अभी स्वांस निकल जाए तो मेरे पास क्या है, मैं क्या ले जाऊंगा क्योंकि अभी ऐसे तो नहीं है ना कि मरूंगा फिर जन्म लूंगा फिर बड़ा हो करके फिर थोड़ा ज्ञान लूंगा, इतना टाइम नहीं है इसीलिए बाप कहते हैं अभी लेना है तो इस जीवन में लेना है । ऐसे भी नहीं है अभी मरेगा फिर कहाँ जन्मेगा तो भी जरूर थोड़ा बड़ा हो पंद्रह-सोलह बरस का जब थोड़ा ज्ञान अच्छी तरह से सुन सके, समझ सके नहीं तो छोटा बच्चा होगा वह क्या समझ सकेगा । तो अभी इतने बरस थोड़ी हैं आ करके ज्ञान ले फिर उसको धारण करे फिर इतना करमातीत अवस्था बनाए, तो मेहनत चाहिए ना । हमको भी देखो 28 बरस लेते हो गया है ज्ञान में तभी भी कहते हैं अभी भी पुरुषार्थ करते हैं पुरुषार्थी हैं । तो देखो मेहनत है ना, कुछ तो मेहनत है जिसमें हमको 28 बरस लगते भी अभी कहते हैं पुरुषार्थ करते हैं । तो फिर लग कर के भी टाइम चाहिए ना, ऐसे थोड़ी बस आया एक दिन में चल पड़ेगा । नहीं, उसमें भी फिर टाइम चाहिए, अपनी कर्मातीत अवस्था बनाए जो पापों का बोझा है आत्मा पर बहुत जन्मों का उसको साफ करना तो अभी इतना तो टाइम नहीं रहा है ना कि वह मरे फिर जन्म लेवे फिर बड़ा होवे फिर आवे फिर इतना टाइम देकर के ज्ञान लेवे फिर अपनी कर्मातीत अवस्था बनावे इतना टाइम कहाँ है? इतना समय नहीं है इसीलिए बात कहते हैं कि ये अंतिम जन्म है । यह लास्ट जन्म है तुम्हारे ज्ञान लेने का तो इसमें तुमको प्रिपेयर रहना है कि कहीं उस विनाश के पहले मेरा ही विनाश हो जाए तो मेरे जीवन में इतना स्टॉक है कि मैं जाऊं तो अपना जो बाप से पूरा लेने का अधिकार है वह पा लूंगा । तो पाने का तो अभी समय हो गया ना, इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे यह लेने का यह अंतिम जन्म है इसीलिए पुरुषार्थ अपना अच्छा करो और अच्छी तरह से पुरुषार्थ में ध्यान देकर के बाप से जो अपना अधिकार पाने का है वह पाओ । तो उसमें अच्छी तरह से करो, गफलत में नहीं आओ । गफलत में दुनिया पड़ी है परंतु बाप ने तो हमको अभी सुजाग किया है ना, जगाया है, आंख खोली है, तो हमको थोड़ी फिर नींद में सोए रहना है । हम जागे हैं तो जाकर के बाप से पूरा पूरा अधिकार, इसीलिए बाप कहते हैं की बच्चे जो जागे हो, जिसको बैठ जगाया है जिनकी आँख खुली है अभी, तीसरा नेत्र जिन्होंने धारण किया है, जिनके पास यह सब रोशनी है उनको बहुत खबरदार रहना है और ऐसा को तो खबरदार रहना ही चाहिए तो यह सभी बातों को अच्छी तरह से समझते और अपना पुरुषार्थ अच्छा रखो तो अच्छे पुरुषार्थ का फल भी जरूर अच्छा ही पाएंगे । करेगा अच्छा पाएगा नहीं, ऐसा कभी होगा? नहीं । अच्छा करेगा अच्छा पाएगा, बुरा करता है तो बुरा ही पाएगा तो अभी अच्छाई और बुराई का ज्ञान तो बुद्धि में अच्छा है ना । बुराई किसको कहते हैं, अच्छाई किसको कहते हैं इनकी सारी अभी रोशनी है इसीलिए अब बुराइयों को निकालो और अच्छाई उसकी जगह पर रखो । प्यूरीफाइड करो । देखो कल गये थे ना तो देखा भाई वाटर प्यूरीफाई कैसे किया जाता है । पानी को साफ करना तो वह वाटर को साफ करना हो गया, यह सोल प्योरीफाईड करना है । पहला तो सोल चाहिए ना । वहाँ देखो इम्प्योरीफाईड वाटर से जीवाणु जाएंगे, भाई मनुष्य बीमार पड़ेंगे तभी तो पानी को साफ करके हमको पीने के लिए अभी काम में लगाने के लिए मिलता है । तो देखो साफ करते हैं ना, अगर गंदा ही पानी आ जाए तो फिर बीमार पड़ जाए इसीलिए उनको साफ करने का देखो कितनी मशीनें, कितनी स्टेप्स करते हैं, कितने स्टेजिस से पानी को निकलते हैं, इसका पानी इसमें फिर इसमें का इसमें फिर उसका पानी दूसरे में ऐसे वो साफ करते हैं । तो यह भी सब हमारी भी स्टेज है न, तो बाप कहते हैं यह सोल को भी प्योरीफाइड करना है, गंदा नहीं चलेगा, उससे काम नहीं बनेगा । तो इसको प्यूरीफाइड करो । अभी उसकी मशीनरी कौन सी है - यह ज्ञान और योग । बड़ा इजी, इसके लिए देखो कुछ खर्चा है ? उस पानी के लिए देखो उन्हों को कितना खर्चा लगाना पड़ता है इसके लिए कोई खर्चा है? बिगर खर्चे चीज मिलती है, जिससे हमारी सब प्यूरीफाइड होगा । तख्त भी प्यूरीफाइड हो जाएगा पृथ्वी, जल, अग्नि सब । तख़्त आदि भी आर्डर में आ जाएगा सब कुछ । ऐसी चीज बाप हमको दे रहा है बिना खर्चे । तो देखो बिना खर्च और बिना कोई बहुत भारी मेहनत नहीं है, लेकिन ऐसी इजी चीज और बाप दे रहा है जिससे जड़ से हमारी सोल प्यूरीफाइड होने से हमारा सब कुछ प्यूरीफायर हो जाएगा तो ऐसी चीज लेने में क्यों इतनी ढीले पड़े हो, क्या सस्ती मिली है बहुत तभी? कहते हैं ना, कोई बहुत बड़ी चीज होती है जो कहते हैं भाई बहुत ऊँची है, वह कोई बहुत सस्ते में मिल जाए तो वैल्यू नहीं रहती है । तो यहाँ भी शायद बहुत इजी मिला है न तो तभी शायद वैल्यू नहीं देते हो इसीलिए ढीले-ढाले और सुस्त लेजी और ऐसे चलते हैं जैसे कि भगवान को गरज है, इनको गरज ही नहीं है, ऐसे चलते हैं । ऐसे नहीं चलना है, नहीं, हमारी गरज है न । तो अपनी गरज को पूर्ण रीति से चलाना चाहिए कि यह हमारे लिए है इसीलिए बहुत इजी मिली है ना, परंतु नहीं यह भले बाप है ना तो बाप बच्चों से क्या मेहनत कराएगा । दूसरों ने तो बहुत मेहनत के रास्ते बतलाए लेकिन होना फिर भी उससे कुछ नहीं था । वह तो फ़ालतू यानि फालतू का मतलब यह नहीं, माना जो चीज लेने की है उसमें फालतू, बाकी थोड़ा बहुत फिर भी ईश्वर के प्रति करते थे न, तो भगवान कहते मेरे प्रति उल्टी भी करते हो ना कुछ मेहनत तो भी उसका फल दे देता हूँ अल्पकाल के लिए । उसका व्यर्थ नहीं जाता है, भले उलटे भी करते थे, हनुमान को भगवान समझा तो भी ठीक फिर भी भगवान समझा न । चलो, फिर उसका भी दे देता हूँ कुछ ना कुछ मनोकामना पूर्ण कर देता हूँ परंतु जो यथार्थ गति सद्गति प्राप्ति है वह नहीं देता हूँ । वह तो मेरे द्वारा मिलेगी ना उसके लिए तो जो यथार्थ पुरुषार्थ होगा, उसके लिए तो चाहिए पूरा पापों का दग्ध । तो पूरे पापों का नाश करने के लिए पहले मेरे से जब बल लेंगे तभी तो तुम गति सद्गति को पाएंगे ना । उसके लिए तो चाहिए पूरी प्योरीफिकेशन, तो पूरा प्यूरीफाइड चाहिए ना । तो पूरा प्यूरीफाइड तो सिवाय मेरे ज्ञान और योग के बन नहीं सकते इसीलिए मुझे बनाने के लिए आना पड़ता है । तो इसीलिए बाप कहते हैं पूरी पूरी बातों को समझ कर के अभी उसका पुरुषार्थ रखो और उससे अपनी सोल को प्यूरीफाइड करो । तो सोल को पॉलिश करो, कोई कुछ कहते हैं कोई कुछ कहते हैं लेकिन है कैसे करें कैसे वपो तरकीब सिवाय एक के और कोई नहीं बताएगा । भले कहते बहुत है की सोल को प्यूरीफाइड या कई तो कहते हैं सोल तो है ही न्यारी, लेप छेप नहीं लगता है उसके ऊपर । और लगता ही तो सारा लेप छेप उसके ऊपर ही । ऐसे थोड़ी है कि सोल के ऊपर ना लगता हो तो सोल क्यों भोगती है, भोगती तो आत्मा है ना । आत्मा ही तो एक शरीर छोड़कर के दूसरे शरीर में जाती है न तो कौन भोगती है । रिसपॉसिबल जो है वही तो जाता है ना । अगर आत्मा रिस्पांसिबल नहीं है तो फिर शरीर जाए ना, फिर आत्मा क्यों जाती है, फिर तो शरीर को जाना चाहिए । तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं इसीलिए कहते हैं बच्चे इन सब बातों को अच्छी तरह से समझ करके और बाप से अपना पूरा-पूरा जन्मसिद्ध अधिकार ले लो । और अभी टाइम है, अभी ना लिया तो अभी खोया माना सदा के लिए खोया । ड्रामा में इसकी नूंध ही नहीं रहेगी न तो ऐसा मत करो । अब का खोया माना सदा के लिए खोया और अब का पाया माना सदा के लिए पाया । कल्प-कल्प पाते रहेंगे । तो ऐसे पाने के लिए पूरा पुरुषार्थ रखकर के बाप से अपना जन्मसिद्ध अधिकार पाने का पूरा पुरुषार्थ रखना है । अच्छा, आज तो गुरुवार भी है और हमारे भी जाने का आज का ही दिन है, कल तो चले जाने का विदाई का दिन होगा, छुट्टी लेने का । आज लास्ट डे है, कल जाने का दिन गिनती में आएगा । देखो हमारे लेने वाला भी आया है पूने से, तो अभी संगम हो गया न, ले जाने वाले और आप लोगों से छुट्टी लेने वाले, तो अभी संगम पर पहुँच गए हैं जाने आने के संगम पर । अभी वहाँ फिर पुणे वालों के यहाँ आने की तैयारियाँ हैं यहाँ जाने की तैयारी है, देखो यही तो आना और जाना, सृष्टि के नियम का चक्कर है । यह सब है हद की बातें, वह है बेहद का आना जाना । तो अभी हम आत्माओं को भी यह चक्कर पूरा करके अभी अपने बेहद बाप के घर को जाना है उसी का ध्यान रखना । इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे उसको ख्याल रखते अपना पुरुषार्थ रखो । अच्छा जिसको बैठना है बैठो । विचारों को छुट्टी तो नहीं है इसलिए टाइम पर छोड़ना अच्छा है । ऐसे बेहद बाप से अपना पूरा पूरा वर्सा पाने का पूरा पुरुषार्थ रखो । और अच्छी तरह से बाप से जो कुछ मिल रहा है उसी खजाने से पॉकेट भरते जाओ । यह पॉकेट नहीं, ये पॉकेट, तो इस पॉकेट को भरो । जितना भरेंगे उतना यह पॉकेट चलेगा, यह पॉकेट नहीं चलेगा, यह पॉकेट तो छोड़ना होगा । इसीलिए बाप कहते हैं यह पॉकेट जो मन बुद्धि सहित आत्मा है, आत्मा मन बुद्धि के तो साथ में ही रहेगा ना तो उसमें जो भरेंगे वह ले जाएंगे । तो अगर भरना है पॉकेट में तो बुद्धि रूपी पॉकेट में भरो संस्कार। तो संस्कार तो आत्मा ले जाती है ना । बुद्धि से क्या बनता है संस्कार। जो जो हम करते हैं उसका संस्कार बनता है। तो आत्मा संस्कार सहित है तो वह जाती है अपने संस्कार ले जाती है। तो अगर हमको पॉकेट भर कर जाना है तो पॉकेट संस्कार से, शुद्ध संस्कार तो उससे हम जितना भरेंगे वह हमारा पॉकेट चलेगा । तो हम तन को, मन को, धन को भरकर ले जा सकते हैं परंतु धन ऐसे नहीं कोई नए पैसे हाँथ में चलेंगे, नहीं, परंतु उसका हम जो करेंगे वो अपने कर्तव्य से वह भरते हैं। देखो कोई साहूकार के घर में जन्म लेता है, तो हाथ में तो धन नहीं लेकर आता है ना । लेकिन ऐसे घर में जन्म उसको मिलता है । लेकिन वह कैसे ले आया, अगले जन्म में कुछ अच्छा काम किया है, कर्मों का तो देखो धन ले आया ना । वो अपना हक ले आया न । उसको ऐसे घर में जन्म मिलता है तो धन उसका पहले से ही तैयार है । ले आता है तो ले आए न परंतु ऐसे सीधा नहीं लेकर आता है हाँथ में पैसे लेकिन वह कर्मों से अपना बनाते हैं । तो हम भी अपने कर्मों को श्रेष्ठ करते हैं तो अपने तन मन धन को प्यूरीफाइड लेवे । तो कहाँ ? नई दुनिया में, सुख की दुनिया में । तो यह सभी क्योंकि इस पुरानी दुनिया में लेने में धन में मजा नहीं है । अभी धन वालों का हाल पूछो ना इसीलिए कहते हैं इस दुनिया का हमको धन भी नहीं चाहिए, इस दुनिया का हमको मर्तबा भी नहीं चाहिए इस दुनिया का हमको कुछ भी नहीं चाहिए। इस दुनिया से तो हमारी दिल भर गई है । हम कहते हैं हमको मिले तो नई दुनिया में, जिसमें मजा हो न, आनंद हो, खुशी हो और सब कुछ पाने में मौज हो । धन भी हो तो मौज का हो ना, शरीर भी हो तो फिर मौज का, ऐसे नहीं शरीर को तो फिर रोगी हो, धन हो तो किट-किट हो, ऐसी कोई बात ही, नहीं हो सब सुख, इसीलिए अभी उसका पुरुषार्थ रख रहे हैं । तो ऐसे पुरुषार्थ में अपने को अच्छी तरह से रखते और अपने को आगे बढ़ाते चलो । अच्छा, चलो, चलो सबकी याद प्यार भी देना और हमारी याद प्यार विदाई लेना, ठीक । चलो, चलो के बाबा के पास । यह बेचारी को प्रेम आता है कि आज मम्मा के साथ हमारा अंतिम मुलाकात है । कोई बात थोड़ी ही है, हम तो मिले हैं ना अभी । अभी तो मिले हैं, अभी विदाई थोड़ी होती है हमारी । हमारी विदाई थोड़ी है । विदाई हुई थी पहले, हम एक दो से बिछड़ गए थे, अभी तो मिले हैं । देखो कहां-कहाँ से, यह कहाँ का, वह कहाँ का, हम जानते हैं आपको? देखो कोई है कल्प पहले का संबंध तभी तो देखो आकर के मिले हो ना, यह बाप से हक लेने के लिए अब आए हो । तो यह मिलन अभी थोड़ी खत्म होगा, यह मिलन अभी जन्म-जन्म का चलने का है क्योंकि यह अब हम बाप से हक ले रहे हैं ना वो अपने प्रालब्ध में फिर मिलकर भागेंगे, तो अभी उसी में हम स्टेटस ऊँची पाएँ, उसका अभी ये पुरुषार्थ रखना है । तो अभी तो हमारा मिलन हुआ है ना अभी विदाई थोड़ी होती है । अभी तो विदाई पूरी हुई, विदाई हो गई थी, हम छूट गए थे एक दो से, कोई कहाँ, कोई कहाँ, कोई कहाँ, अभी तो मिले हैं तो अभी हम कोई बिछड़ते थोड़ी हैं । विदाई नहीं है हमारी, अभी मिलन ही मिलन है । सभी मिलकर रहेंगे । इस जन्म में मिले हैं अनेक जन्मों के संबंध में मिलते रहेंगे इसीलिए अपना मिलना ही मिलना है समझा । अच्छा चलो बाबा के पास, बाबा कहेगा ये देखो क्या, अच्छा शाबाश , चलो भागो, (रिकॉर्ड बजा- इकमात सहायक बंधू सखा) बाबा को याद करो । कोई देहधारी को थोड़ी याद करना है बाबा को याद करो । ये बाबा के धन को याद रखती है बेचारी, समझती है ना हाँ बाबा का खजाना, हमको बाबा मम्मा से खजाना मिलता है, तो खजाने का लोभ तो सबको रहता है ना । यह तो बड़ा खजाना है । इससे तो हम बड़े साहूकार बनते हैं । जिस्मानी, रूहानी दोनों ताकत मिलती है लेकिन खजाना तो फिर देखो मुरलियों में आप लोगों को मिलता है लेकिन वह है थोड़ा थोड़ा पारुखा हो जाता है, वह डायरेक्टर टेस्ट और होता है सुनने का और वह जैसे रोटी पकाई जाए ताजी-ताजी खाई जाए, उसी समय निकले और उसे खाएं तो गरम-गरम का स्वाद अच्छा होता है और फिर रोटी को थोड़ा रख दो तो वह पारूती हो जाती है तो वह आपको मुरली में डाल के लिख कर के भेजते हैं वो जरा पारुति होके आती तो पारूती का स्वाद और ताज़ी का स्वाद का फर्क तो होता ही है, इतना फर्क तो जरूर पड़ता है लेकिन हाँ फिर भी जो टेस्ट लेने वाले हैं, ताजी खाने वाले, भागना, चले आना, ताजी रोटी खाने के लिए वहाँ, उसी से निकले उसी समय खाओ, गरम गरम । और बता देना कोई आए मम्मा का कल है प्रोग्राम अनुसार, सब समाचार तो अपने आप ही सुनाना चाहिए, चलो! अच्छा ऐसा बाप दादा और माँ के मीठे-मीठे बहुत अच्छे सपूत सयाने और समझदार बच्चों को याद प्यार और गुड मॉर्निंग ।
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