मम्मा मुरली मधुबन           

 श्रेष्ठ कर्मों का ज्ञान - 23-04-65
 

 


रिकॉर्ड:
     जो पिया के साथ है उसके लिए बरसात है........

हेलो, गुड मॉर्निंग । आज शुक्रवार, अप्रैल की 23 तारीख है । प्रातः क्लास में प्राण माँ की मुरली सुनते हैं ।
रिकार्ड:- जो पिया के साथ है उसके लिए बरसात है........
जो समझ लिया है, जो गीतों में आता है पिया, पियू, बालम, साजन, ऐसे-ऐसे जो शब्द आते हैं तो यह कोई कॉमन मनुष्य के लिए नहीं है । यह कहावत है ना जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि । भले गीत बनाने वालों ने गाने वालों ने किसी भी तरह से गाया हो लेकिन अपनी बुद्धि तो अभी उधर है ना, उनके तरफ । तो अभी बुद्धि को ले जाना है उधर, परमपिता परमात्मा की तरफ । जो ही अभी अपना मात-पिता, बंधु-सखा यह सभी कनेक्शन उसी से ही हैं । इसलिए जब ऐसे सुनते हो तो बुद्धि को तो उधर ही ले जाना है । तो अभी सुना, जो पिया के साथ है उनके लिए बरसात है, कौन सी बरसात? यह जो पानी की बरसात पड़ती है? नहीं, यह ज्ञान की बरसात । ज्ञान को बरसात भी कहा जा सकता है इस अर्थ से क्योंकि बरसात से क्या होता है, देखो पानी मिलता है, अगर बरसात ना पड़े तो खाना पीना नहीं खा सको । तो यह सरसब्ज बनाने के लिए, तो यह है ज्ञान की बरसात । हम आत्माएँ सूख गई हैं ना? सुखी हो ना? अभी तो सुखी नहीं हो ना? सूख गई थी, यह ज्ञान की बरसात ना मिलने से आत्माओं को सुखी कहो या आत्माएँ अपवित्र, तमोप्रधान हो गई थी । अभी बाप ने आ कर के फिर से इस ज्ञान बरसात से अभी उसको साफ कर रहे हैं या सरसब्ज बना रहे हैं । तो अभी हम फिर से हरे-भरे होते जा रहे हैं इस ज्ञान की बरसात से । तो इसीलिए इसको बरसात भी कहेंगे क्योंकि हम आत्माएँ जो मुरझा गई थी, सूख गई थी, अभी इस बरसात से फिर हम जागृत होकर के अभी फिर बाप से अपना वह जो कुछ भी पाने का है, वह पाने का यह पुरुषार्थ रख रहे हैं इसीलिए इसको ज्ञान की बरसात कहा जाए । ज्ञान के भी बहुत नाम हैं, जैसे परमात्मा के भी बहुत नाम हैं ना, तो इसी तरह से ज्ञान के भी बहुत नाम है । ज्ञान को बरसात कहो, ज्ञान को अंजन कहो, ज्ञान को कहाँ देखो तलवार के रूप में दिया है, जैसे शक्तियों को तलवारें आदि दिए हैं न, अभी उन्होंने तलवार आदि कोई हिंसक अस्त्र-शस्त्र तो नहीं उठाए हैं ना, यह ज्ञान है तो ज्ञान को तलवार भी कहा जाता है । कृष्ण के हाथ में देखो मुरली दी है । उसको तो भगवान समझा है ना, परंतु वह मुरली, वह कोई कांठ की मुरली की बात नहीं है । वो यह ज्ञान है जो परमात्मा ने सुनाया है इसीलिए उनको ज्ञान मुरली कहा जाता है । कहाँ देखो साज़ों के रूप में जैसे सरस्वती को सितार या बैन्जो दिया है तो ऐसा नहीं है कि उसने आ करके यह सितार बजा करके सुनाया है । नहीं, यह ज्ञान सुनाया इसीलिए उनको कहते हैं गॉडेज ऑफ नॉलेज, तो नॉलेज दिया है ना । बाकी ऐसे नहीं है बैंजो बजाया है इसीलिए कहा, क्योंकि इसी से जीवन मधुर बनती है । इससे जीवन में यह प्राप्ति आती है सुख शांति की इसीलिए कहाँ साज़ों के रूप में, कहाँ अस्त्र शस्त्रों के रूप में, कहाँ कुछ रूप में, कहाँ ये देखो ज्ञान का नेत्र दे दिया तो यह सभी ज्ञान के अलंकार और ज्ञान के सब निशान हैं । ज्ञान को भी देखो अभी कितने रूप और कितने ढंग में लाया है, कहाँ नेत्र से, कहाँ अंजन से, कहाँ बरसात के रूप में, कहाँ कुछ तो यह सभी बातें बैठ कर के बाप समझाते हैं । वह भागीरथ का देखा है ना, वो यहाँ से गंगा निकली फिर पानी बहता है, वह चित्रों में दिखलाया है तो यह भी सभी है, तो वास्तव में ज्ञान की बरसात की बात है परंतु ऐसा नहीं पानी यहाँ से निकलेगा यह तो नॉलेज है न, जिसको धारण करना है और उस परमात्मा ने भी आकर के नॉलेज सुनाया है, तो नॉलेज तो सुनाना पड़ेगा ना बाकी यहाँ से पानी थोड़ी निकलेगा माथे से । तो यह सभी चीजें अभी बुद्धि में हैं कि परमात्मा ने आकर के नॉलेज सुनाया है और हमने भी नॉलेज को धारण किया है बाकी कोई ज्ञान की बरसात या ज्ञान की गंगा या पानी बहा है या कुछ ऐसी बातें नहीं है । तो यह तो सभी अभी अच्छी तरह से जो पुराने हो जो भी आते हो, इन सब बातों को तो समझ गए होंगे । तो अभी बाप के द्वारा वह नॉलेज प्राप्त हो रहा है जिससे अभी हम हरे-भरे होते जा रहे हैं, होते जा रहे हो ना, अपने को समझते हो ना क्योंकि यह समझने की बातें हैं । तो देखो यह ड्रामा भी जो है वह भले है बना बनाया, परंतु उसका मतलब यह नहीं है, इसके भी नियमों को समझना है ना कि यह बना बनाया ड्रामा भी किस तरह से बना हुआ है । तो बाप आकर के समझाते हैं कि यह बना बनाया जो चीज है वह भी किन नियमों से बना हुआ है वह समझने की बात है । इसमें मूंझना नहीं है क्योंकि कभी-कभी कई इस ड्रामा की बात में मूंझते भी हैं कि जब यह बना बनाया है तो फिर हमारे लिए तो कोई पुरुषार्थ की बात ही नहीं है । बना बनाया पड़ा है फिर हम काहे के लिए मेहनत करें जो होना होगा वह होगा परंतु नहीं, वह होना होगा वह भी तो होगा हमारे करने से ना । तो हमको अपना आधार रखना है अपने कर्म के ऊपर । वह बात भूल जाओ जो इन बात में कोई को ना समझ में आती है ना, तो उसमें अटकना नहीं है कि बना बनाया है, और यह पॉइंट हमें समझाई भी है कि कभी भी कोई भी नयों को समझाने की नहीं है । यह तो है ड्रामा को समझना कि कैसे यह नाटक बना बनाया है और अनादि काल से यह बना बनाया ही है, इसका टाइम है शुरू होता है तो पूरा होता है फिर पूरा हो करके फिर शुरू होता है, तो यह तो एक नाटक है जो बाप बैठकर के समझाते हैं कि यह कई बार शुरू हुआ है, फिर पूरा होता है, फिर पूरा हो करके फिर शुरू होता है वह बैठकर के बाप समझाते हैं, लेकिन शुरू कैसे हुआ, मुझे भी तो आकर के देखो कर्म करना पड़ता है ना, उसमें तो मैं भी बंधा हुआ हूँ और मुझे भी आकर के नई दुनिया को रचने के लिए काम करना पड़ता है तो मेरा भी पार्ट है ना, तो हरेक का भी अपना-अपना पार्ट है जो भी नूंधा हुआ है । तो हमको अपने पार्ट के ऊपर, अपने एक्शंस के ऊपर अटेंशन देने का है । तो अभी जो हमारा टाइम है, अभी हमको क्या करना है, अभी तो हमको अपने कर्मों को श्रेष्ठ बना करके अभी हमको अपनी प्रालब्ध ऊंची करने की है । तो बाप भी तो आता है ना कर्म बनाने के लिए जब ड्रामा है तो फिर उसका आना क्यों ना हुआ होना चाहिए फिर उनको आ करके हमको ज्ञान देना उनको भी यह मेहनत करने की क्या जरूरत है । नहीं, उनका भी आना यह पार्ट है, हमको आकर के ज्ञान देना, यह पार्ट है न, तभी तो उसकी महिमा है ना नॉलेजफुल । तो नॉलेजफुल है तो अपने लिए तो नहीं है ना कि भाई उनको सब जानकारी है । जानता है, अपने लिए जानता है तो क्या हुआ लेकिन वह जो जानता है वह आ करके समझाता है और समझाता है हमको, जो हम नहीं जानते हैं तो हम नहीं जानते हैं उन्हों को आ करके समझाया है । उनकी समझ उनके पास है तभी उनकी महिमा है कि नॉलेजफुल है । बाकी ऐसे नहीं है वह हम सब को जानता है अपने लिए तो हमारे लिए क्या हुआ । नहीं, उसने हमको उसी समझ का बल दिया है, जिसके आधार से हम भी ऊँचे उठे हैं तो इसी कारण उनकी महिमा है, तो परमात्मा को भी कर्म करने की ड्रामा में ही समझो परंतु उनको भी तो अपना कर्म करने का पाबंदी है ना, वह भी तो बंधा हुआ है ना । इसी तरह से हम भी अपने कर्म करने के लिए बंधे हुए हैं, तो हमको दूसरी बात को ना समझ या उन्हीं बातों में ना मूंझ करके हमको अभी क्या करने का है, हमको अभी अपना कर्म स्वच्छ बनाने का है । तो इसीलिए ऐसा नहीं कि ड्रामा में होगा तो अपने आप ही स्वच्छ हो जाएगा नहीं, हमारा काम तो है ना करना, बनेगा भी कैसे अपने आप नहीं बनेगा वह भी हम करेंगे ना । तो हमको अपना अटेंशन जो है वो करने के ऊपर देने का है । हमको अपना कर्म करके अपने को स्वच्छ बनाना है । अभी देखो हमको समझ मिली है, हमारा काम क्या है, अभी हम ऐसे तो नहीं समझेंगे कि जो होना होगा वह अपने आप होगा । नहीं, हमारा काम है जो समझ है उस पर चल करके काम करना न । तो हमारा काम है उसी समझ को ले करके अभी अपने कर्म को स्वच्छ बनाना । हमारा अटेंशन इसी कर्म पर है कि हम अपने को स्वच्छ बनाएं । तो हमारा काम है काम करके उसको प्राप्त करना, जो करेंगे तो जरूर पाएंगे । बाकी यह तो जानते हैं कि हाँ यह ड्रामा है, यह खेल है, आदि से अंत तक है कैसे चलता है वह नॉलेज है जिसको समझने की बात है, बाकी ऐसा नहीं है कि हम उसके लिए चुप हो करके बैठें या कुछ ना करें तो इन बातों में अगर यह बात किसी को नहीं भी समझ में आती है ना, तो मूंझना नहीं है । आप उसको छोड़ कर के, यह कोई पॉइंट ऐसी भी नहीं है कि कोई जरूरी है । नहीं, यह पॉइंट ना समझ में आती है तो उसको छोड़ कर के अपना अटेंशन अपने कर्म पर रखो कि हम जो करेंगे सो पाएंगे । यह तो गीता में भी है न कि जीवात्मा अपना शत्रु अपना मित्र है तो करने के ऊपर सारा आधार है न । तो हमको अपना पुरुषार्थ करना है इसीलिए पहले पुरुषार्थ पीछे प्रालब्ध । भले पुरुषार्थ और प्रालब्ध का है बना बनाया परंतु वह बना भी कैसे हैं, जो करेगा सो पाएगा, इसी के आधार पर बना हुआ है परंतु करेंगे तब पाएंगे ना । बना हुआ भी ऐसे ढंग से है कि हम जो करेंगे सो पाएंगे । अगर करेंगे नहीं तो पाएंगे नहीं तो इसीलिए ऐसा नहीं है जो बना हुआ होगा वह आपे ही होगा । नहीं, वह भी हमारे करने से होगा ना और ऐसा भी नहीं है की करना भी हमारा अपने आप होगा, वह तो हम समझेंगे, करेंगे, ध्यान देंगे, अटेंशन देंगे तब तो करेंगे ना । तो इसीलिए हम को सारा आधार अपने करने के ऊपर रखना है और करना ही फिर पाना है । इसीलिए इन बातों में भी कोई अगर अटकता हो तो इनमें मूंझो नहीं । इनको छोड़ कर के अपने कर्म के ऊपर रहो कि हम जो करेंगे सो पाएंगे और बिना किए पा तो सकते ही नहीं है । लेकिन अभी सिर्फ रोशनी मिलती है कि करना क्या है । क्योंकि मनुष्य तो समझते हैं कि भाई अच्छा करना है । अच्छा भी क्या है, अच्छे का भी नॉलेज होना चाहिए ना की अच्छी चीज क्या है, सबसे श्रेष्ठ कर्म कौन से हैं, वह बैठ कर के भी बाप समझाते हैं कि कर्मों को श्रेष्ठ बनाना जिसके ऊपर फिर कोई कर्म करने की जरूरत ना रहे, ऐसे श्रेष्ठ कर्म कौन से हैं । तो बाप बैठ करके उसकी अभी नॉलेज देते हैं की सबसे ऊँचे में ऊँच और श्रेष्ठ में श्रेष्ठ कर्म कौन से हैं । तो श्रेष्ठ कर्म तभी हैं, जिस कर्म करने से फिर हमको कोई बात करने की दरकार ना रहे तो वह चीज अभी सीखलाते हैं कि कंप्लीट पवित्र कैसे बनो । तो अभी कम्प्लीट पवित्र बनाने की अथवा कंप्लीट अपने श्रेष्ठ कर्म बनाने की अभी नॉलेज बैठकर के बाप देते हैं जिससे हमारे कैसे पिछले पापकर्म भी दग्ध होवे और आगे के लिए भी हमारी कंप्लीट पवित्र कर्म बने, जिसके आधार से हम उसी पवित्रता की प्रालब्ध को पाएं जिसमें फिर हमारे को कोई कर्म करना ना पड़े । बाकी हम जो करते आए हैं ना वह अल्पकाल के हैं, वह श्रेष्ठ कर्म सदा के लिए नहीं है, यानी सदा की प्राप्ति के लिए नहीं है इसीलिए उनको कहेंगे अल्पकाल की प्राप्ति के कर्म । तो उनको हम श्रेष्ठ कर्म जो कंप्लीट कर्म है उसके भेंट में नहीं कहेंगे । वह है थोड़ा बहुत अच्छा करता है जैसे किसी ने दान किया मानो, अच्छा दूसरे जन्म में क्या होगा, उसको धन दान करने के एवज में उसको अच्छा धन मिलेगा, तो चलो साहूकार होगा ना, बस न, इतना ही उसको फल मिला या जो भी जितना थोड़ा बहुत अच्छा किया उसका मिला लेकिन उससे ऐसा तो नहीं है ना कंप्लीट पवित्रता का बल मिलेगा, जिससे सब कुछ प्राप्त हो । नहीं, धन मिला तो कोई रोग होगा, फिर कोई ऐसी कर्म की भी हानि होगी जिससे फिर कोई ना कोई दु:ख रहेगा, तो यह सब चीजें जो है कि सभी चीजों का सुख प्राप्त रहे उसको कहा जाएगा कर्म श्रेष्ठ । तो बाप बैठ कर के अभी वो चीज हमको सिखाते हैं जिससे हमारे सर्व कर्म अथवा श्रेष्ठ कर्म जिसको कहा जाता है, सब तरह से कर्मों की श्रेष्ठता की प्रालब्ध हमको प्राप्त रहे और जिस प्रालब्ध से फिर हम सदा सुख को प्राप्त करते रहें तो सदा सुख और सर्व सुख प्राप्त करने के लिए हमारे ऊँच में ऊँच जो कर्म है ना वह बैठकर के बाप सिखाते हैं इसीलिए कहा जाता है कि जो बाप ने बैठकर के कर्म सिखलाया न इसीलिए अपने कर्मों के लिए कहा है कि मेरा कर्मयोग सबसे श्रेष्ठ है और उसके ऊपर फिर कोई ऐसी चीज नहीं है । तो मैं तो आकर के कर्म करना सिखलाता हूँ, वह सबसे श्रेष्ठ है और उसको ही कहा कि यह कर्म योग राजयोग यानी जिस प्राप्ति का राजाई का अथवा जो मैं स्थापित करता हूँ राजाई अथवा जो मैं आकर के दुनिया बनाता हूँ उसी श्रेष्ठ दुनिया के ऊपर फिर कोई दूसरी तो बात है ही नहीं ना । तो यह सभी चीजों को समझना है कि अभी जो हमको बाप के द्वारा यह कर्म करने की जो शिक्षा मिलती है यह है सबसे ऊँच, इसीलिए इसको कहा है कि कर्म श्रेष्ठ अथवा कर्म की ऊँच प्रालब्ध अभी बैठकर के बाप सिखाते हैं । तो इन बातों में अपनी बुद्धि रख करके कि हमको अपना कर्म करना है और जो अभी बाप के द्वारा यह मत मिल रही है ये उनकी मत है ना, बाप की डायरेक्ट तो अभी जो उसकी मत मिल रही है उसे लेकर के अभी हमको अपने कर्मों में रहना है । बाकी तो बाप बैठकर समझाते हैं कि तुमने कभी अच्छा कर्म किया था और ऐसी प्रालब्ध पाई थी, इसका भी तो निशान है ना कि तुमने यह किया था तो वो ड्रामा भी समझाते हैं कि ऐसे नहीं है, जो चीज हुई है वह फिर होने की है उसी आधार पर समझाते हैं कि नहीं, तुम आगे ऊँचे थे फिर देखो कैसे तुम्हारा ये सब नीचे चले आए, अभी फिर आकर के तुम्हारा वो टाइम हुआ है । अभी फिर मैं आया हूँ तुमको ऊँचा उठाने के लिए तो ये सारा चक्कर है सृष्टि का, वह बैठ करके समझाते हैं कि कैसे तुम ऊँचे थे, अभी नीचे हुए हो फिर ऊँचे होते हो, वह चक्कर बैठकर समझाते हैं । बाकी हमको करना तो कर्म है ना । ऊँचा उठेंगे तो भी तो कर्म से ना फिर एक-दो ने भी अपने कर्म उल्टे बनाए तभी तो गिरे ना कारण तो फिर भी कर्मों का देना पड़ेगा ना । तो इसीलिए इन बातों में भी भाई ड्रामा है, ड्रामा के कारण ही हम गिरे और ड्रामा से ही हम चढ़ेंगे । लेकिन ड्रामा से भी चढ़ेंगे कैसे, उनके भी कोई नियम है ना, तो उन नियमों को भी समझना है कि हम करेंगे तो पाएंगे । अगर नहीं करेंगे तो समझेंगे इसका ड्रामा में पार्ट नहीं है । ड्रामा तभी समझेंगे कि अगर ये अच्छा पुरुषार्थ नहीं करता है तो समझेंगे हाँ इनका ड्रामा में पार्ट नहीं है, परंतु हमको करने के लिए तो करना पड़ेगा ना । पुरुषार्थ करेंगे तब तो पाएंगे ना । अगर अभी हम हैं, हम समझे कि अगर हमारा ड्रामा में होगा तो फिर हम अपने आप ही चढ़ेंगे फिर तो कुछ नहीं करें । तो फिर हमारी क्या पड़ी है इतनी मेहनत करें, ये क्यों हम करते हैं । ये इसीलिए करते हैं क्योंकि समझते हैं कि हम जो करेंगे सो पाएंगे । तो अपने करने के ऊपर ही तो पाने का आधार है न । तो यह समझने की बात है । ऐसे नहीं कि हमारे ड्रामा में होंगा तो हमारे से अपने आप ही होगा । आपे ही कैसे होगा, वह भी तो हम सोचेंगे हमको यह करना है, यह राइट एक्शन है, यह रॉन्ग है, यह करना है, यह नहीं करना है, यह तो हम समझ ले कर के अपने पुरुषार्थ से चलेंगे ना । अगर हम खाली उसी पर बैठ जाएं कि जो होना होगा वह अपने आप ही होगा हम बैठ जाते हैं, फिर तो सब में बैठो । फिर धंधा भी नहीं करो, कहो जो होना होगा, यह काम काज जो होना होगा, पैसा कमाना होगा तो आपे ही होगा और बैठ जाओ, देखो कमाते हो । तो बैठ जाओ चुप करके, फिर तो सभी बात मैं बैठो ना, सिर्फ इसी बात में क्यों, फिर तो सभी करो यह जो शरीर निर्वाह के लिए काम करते हो ना, उसमें भी ड्रामा रखकर बैठ जाओ कि नहीं, हमारा होना होगा तो अपने आप होगा, हमको पैसा कमाना होगा फिर अपने आप कमाएंगे, कर सकते हो? नहीं, जैसे उसमें सोच के, समझ के चलना पड़ता है, फिर कोई रिजल्ट हो जाती है तो वहाँ समझते हैं कि चलो इतना ही था, जो होना था वह हुआ । बाकि ऐसे नहीं है कि करने के समय हम उस पर बैठ जाएँ की होना होगा तो होगा खाना पीना सब, फिर तो कमाओ भी नहीं, फिर तो कुछ नहीं करो, होना होगा तो होगा, हम तो चुप करके बैठ जाएँ फिर तो कुछ नहीं काम कर सकेंगे, फिर तो खाना भी न खाओ, पकाओ भी नहीं, फिर तो कमाओ भी नहीं, फिर तो कुछ नहीं करो, होना होगा अपने आप होगा फिर तो चुप करके बैठ जाओ, परंतु ऐसा होता नहीं है । करना ही पड़ता है, कर्म तो चलता ही है ना । तो जो चलता है उसी में हमको समझना है और समझ कर के अपने कर्म को श्रेष्ठ बना करके चलना है जिसकी प्रालब्ध हमको श्रेष्ठ पानी है । तो वह तो हमको समझ भी देनी पड़ेगी, करम भी करना पड़ेगा, पुरुषार्थ भी रखना पड़ेगा, रॉन्ग ओर राइट को सोचना समझना और उसी पर हमको चलना भी पड़ेगा कि राईट क्या है, जो हमको करने का है । तो यह सब करने के ऊपर है इसीलिए अपना आधार सारा कर्म के ऊपर है । बाकी तो हाँ यह टोटल समझते हैं कि यह वर्ल्ड की हिस्ट्री कैसी है, ये शुरू कैसे होती है, पूरी कैसी होती है फिर इसका भी टाइम है जो बैठकर के बाप समझाते हैं । अभी वह टाइम पूरा हुआ है फिर से अपना आदि सनातनी वो जो पहली पहली दुनिया थी उसका अभी टाइम आता है तो यह वर्ल्ड हिस्ट्री रिपीट होती है । तो यह सभी हिसाब हिस्ट्री का भी समझना है, और उसमें हमारा डिटेल्स जो चलता है वह कम होता है वह डिटेल्स चलने से ही तो हमारे कर्म ऊँचे फिर हमारे कर्म नीचे उसी के आधार पर ही तो हमारी यह सारी हिस्ट्री वर्ल्ड की चलती है । हमारे नीचे के कर्म होते हैं तो हम नीचे हो जाते हैं मानो वर्ल्ड ही नीचे हो जाती है अर्थात उसकी लाइफ ही नीचे हो जाती है, हमारे कर्म ऊँचे होते हैं तो देखो वर्ल्ड ऊँची हो जाती है अर्थात दुनिया स्वर्ग हो जाती है, है तो हमारे कर्म के आधार पर न । स्वर्ग और नरक ये आधार कैसे बना, नर्क कैसे बना । बनी बनाई तो नहीं पड़ी है न, बनती है, परन्तु बनती कैसे है कर्म से । नर्क भी बनता है तो हमारे कर्म से और स्वर्ग भी बनता है हमारे कर्मों से । तो कर्म से बनता है, ऐसे नहीं स्वर्ग बना रखा है, नरक बना रखा है सब बना बनाया पड़ा है । नहीं, वो टाइम अनुसार चेंज भी होती है तो भी हमारे कर्म से होती है ना । तो यह सभी चीजों को समझना है इसीलिए जो चीज हमारे कर्म के आधार से बनने वाली है तो हमको आधार पकड़ना है कर्म का । भले बना बनाया है परंतु आधार कर्मों का है, जो हम करेंगे उससे बनेगा । बना बनाया भी उसी तरीके से बनता है हमारे कर्म से । तो नर्क और स्वर्ग भी हमारे कर्म से बनता है, वो हम बुरे कर्म करते हैं तो दुनिया देखो नर्क हो जाती है और फिर हम अच्छे कर्म करते हैं तो दुनिया स्वर्ग होती है तो दुनिया की बात है ना । तो यह दुनिया की हिस्ट्री भी है और फिर हमारे इंडिविजुअल कर्म के ऊपर भी सारा आधार भी है इसीलिए इन सभी बातों को भी अच्छी तरह से समझ कर के और अपने ऐसे पुरुषार्थ को चलाना है । बाकी इसमें ऐसा नहीं है कि होना है, दुनिया स्वर्ग होनी है तो हम अपने आप आ जाएंगे । नहीं, इसके लिए ही तो हम माथाखुटी करते हैं कि हम स्वर्ग में अपना अधिकार लगाएं और स्वर्ग में भी ऊँचा स्टेटस पाएं, उसके लिए इंडिविजुअल पुरुषार्थ करें । बाकी बाप बनाता है, अपने आप होगा तो फिर तो हम भी चुप करके बैठ जाएं । फिर तो हम खाएं पियें मौज करें, जैसे चले वैसे चले फिर तो कोई बात ही नहीं । हम तो अपने आप आ जाएंगे फिर तो कर्म का कुछ रहा ही नहीं ना । नहीं, हमारे कर्मों से ही तो होगी ना इसीलिए परमात्मा को भी तो हमारे कर्म बनाने के लिए आना पड़ता है । उसको भी मेहनत करनी पड़ती है हमारे कर्मों के लिए । लेकिन ऐसे ही अगर होना होता तो वह ऐसे ही कर लेता, तो हमारे से माथाखुटी क्यों करता । उनको भी तो हमारे से माथा लगाना पड़ता है ना और हमको भी तो अपना इंडिविजुअली मेहनत करनी पड़ती है ना । तो आधार है ना । उनको भी उसी का आधार देना पड़ता है कर्मों को आ करके और हमको भी अपना इंडिविजुअली कर्म बनाने पड़ते हैं इसीलिए हम करेंगे तब पाएंगे । भले बनेगा भी परन्तु कैसे, बनने का भी तो नियम है ना तो उसको भी उसी नियम से बनाया गया है परमात्मा को भी, देखो कर्म करा करके उसी नियम से आ करके हमको बनाना पड़ता है बाकी ऐसा नहीं है बना पड़ा है अपने आप बनेगा । नहीं, अभी मकान है, ऐसा थोड़ी छू मंत्र से बन जाएगा । बनेगा जैसा नियम होगा वैसे ना कि हाँ भाई इसका ऐसे फाउंडेशन डाला जाता है, ऐसा किया जाता है, जैसी बनाने की तरकीब होगी उसी तरकीब से बनेगा ना, तो तरकीब को तो लेना पड़ेगा ना । बाकी ऐसे थोड़े है की बना हुआ होगा तो ऐसे अपने आप ही बन जाएगा । यह चीज अगर बननी होगी तो अपने आप ही बन जाएगी । नहीं, वो जिस तरकीब से बनने की है, जिस नियम से बनने की है उसी चीज को उसी नियमों से बनाना होगा ना । तो मनुष्य की लाइफ इसी नियम से बनने की है तो उसको भी तो अपने कर्म के नियम से बनाना होगा ना । तो हमको करना होगा इसीलिए हमारा अटेंशन जो है वह अपने करने के ऊपर होना चाहिए । बाकी तो जानते ही हैं कि हाँ यह तो ड्रामा है और सृष्टि चक्र है वह कैसे होता है वो कैसे ऊँचा उठता है और कैसे ये नीचे आता है परंतु अभी तो ऊँचा उठने का टाइम है ना तो वह भी सभी बात को छोड़ करके अभी जो टाइम है हमारे उनसे ऊँचे उठने का है इसीलिए हमको ऊँच कर्म करना ही चाहिए । ड्रामा अनुसार अभी हमारी चढ़ती कला का टाइम है तो हमको चढ़ना ही चाहिए ना । अगर चढ़ती कला के समय पर हम अपने कर्मों को श्रेष्ठ ना करेंगे तो चढ़ेंगे कैसे, इसीलिए हमको अपने अपने कर्म के ऊपर यह आधार रखना है । बाकी ऐसा नहीं है कि अपने आप होगा, अपने आप कुछ होता नहीं है । कुछ होता है? खाना-पीना भी करते हो, अपने आप होता है? खाना है, हमको मिलना है तो बनके आएगा हमारे आगे? अन्दर जाना होगा, अपने आप जाएँगे? अपने आप होता है कुछ? करना होता है ना, बनाना होता है उसको खाना होता है और उनको सब तरह से चलाना होता है । हर चीज को हमको एक्शंस में लाना ही पड़ता है । तो जबकि हर चीज एक्शन से चलती है तो हमको अपना ऊँचा उठने के लिए भी तो करना है ना । उस पर फिर क्यों, हम कैसे बैठ जाएं कि नहीं होना होगा तो होगा ही । फिर तो सब बात में होना होगा । फिर तो सब के लिए कहो कि सब कुछ अपने आप होगा, चलना होगा, होना होगा सब । सब बात में ऐसे कहो बाकी बैठ जाओ, परंतु हो ही नहीं सकता है ना । तो ऐसे थोड़ी बाकी बात में करेंगे और इस बात में कहेंगे कि नहीं, होना होगा तो होगा, हमारी किस्मत में होगा, हमारे नसीब में होगा या हमारे ड्रामा में होगा तो होगा, नहीं तो फिर उसके लिए बैठ जाना है । नहीं, जैसे सब बात करते हो तभी होता है, तो यह भी तो बात करने से होगी ना । यह फिर खास ऐसी कैसे होगी कि अपने आप हो । इसका मतलब यह हो जाता है कि कई समझते नहीं है कि यह बात भी हमारी ऐसे जरूरी है जैसे हम जीवन के दूसरे जरूरी काम करते हैं खाना-पीना पकाना कमाना सब जो कुछ करते हैं जरूरी समझकर करते हैं यह भी वैसे ही चीज है । इसको भी हमको कर्म से बनाना है । बाकी ऐसे नहीं है यह अपने आप होगा । अपने आप होगी तो ड्रामा में सब अपने आप होने का होगा ना । फिर तो कमाओ भी नहीं, बैठ जाओ, होना होगा तो आपे ही करेंगे । आप ही करेंगे? नहीं, जरूर सोचेंगे क्या करना है, कैसे करना है, उसके लिए यह करना है, बच्चे हैं पालना है, रिस्पांसिबिलिटी है, यह सब सोचेंगे, करेंगे तभी तो होगा ना, उसके लिए जाएंगे और बैठे हो यहाँ, समझते हो नहीं हमको कमाने के लिए जाना होगा आपे ही जाएंगे, आपेही कैसे? उठेंगे, टाइम हुआ है, जाना है, दफ्तर है, ऑफिस है सब एक्शंस सोच के करना पड़ता है ना, तो फिर करना ही पड़ता है ना । तो जैसे सभी बात करने से होती है, यह भी तो करने की बात है ना । इसमें फिर ऐसे क्यों कि किस्मत में होगा तो होगा, इसमें किस्मत क्यों । किस्मत तो फिर सबमें करो तो खाली इसमें क्यों? नहीं, जैसे और एक्शंस में सब एक्टिविटी चलती हैं, वैसे ही इसमें भी अपनी एक्टिविटी को राईटिअस वे में चलाना है, तो यह समझना है उसी तरीके से चलाना है । हर बात में ऐसा होता है हम को डॉक्टर बनना है या इंजीनियर बनना होगा तो क्या अपने आप बन जाएगा? नहीं, उसके लिए जरूर है कि हम कोशिश रखेंगे, पुरुषार्थ रखेंगे, पढ़ेंगे, उसमें अटेंशन देंगे, वह सब करेंगे, तभी तो होंगे ना, सब बात कैसे चलती है । चलो, होती है तो कहते हैं हाँ भाई यह किस्मत में था । यह चीज नहीं हुई तो कहेंगे अच्छा, न था ड्रामा में इसीलिए किस्मत कहो, ड्रामा कहो बात एक ही है, वह तो होती है रिजल्ट में, जब किसी बात का रिजल्ट होता है । बाकी हमको करना तो हर काम तो करने की तरह से करना पड़ता है ना । तो उसमें तो हमको अपना पुरुषार्थ लगाना ही पड़ेगा, उसमें सोचना है, समझना है रोंग और राइट को और समझ करके चलना है तो अभी जो बुद्धि मिली है उसको लेकर के चलना है । उससे ऐसा नहीं है की होगा तो होगा, फिर तो सब में बैठ जाओ । फिर तो धंधे धोरी में भी कहो होगा तो आपे ही कमाई हो जाएगी, बैठ जाओ । बैठो तो सब में बैठो, उठो तो सब में उठो । बाकी ऐसे नहीं उसमें उठो उसमें सोंचो, उसमें करो फिर इसमें क्यों । इसमें क्यों बैठ जाते हो कि होगा किस्मत में तो पैसा भी कमाएंगे, बैठ जाओ घर में, देखो होगा? लव जी? नहीं, तो करना पड़ेगा ना । तो जैसे उस काम के लिए करना है, वैसे यह भी तो अपने जीवन के लिए ही तो करना है न । ऐसा समझो, हम मोटर चलाते हो और बच्चा आ गया तो उसका एक्शन तो अच्छा था मोटर चलाने का, वह बच्चा कट जाता है, देखिए वह भी तो हिसाब है ना । अभी कोई बच्चा कट गया, हम समझेंगे कि इसको कोई दु:ख दिया था या इसने हम को कोई दु:ख दिया था अभी रिटर्न उसको हमसे मिला तो वह हो गया कुछ अगले कर्मों की हिसाब-किताब की भी सब चलती है ना । हमने कभी किसको दु:ख दिया है तो हाँ हमको फिर दूसरे जन्म में उससे लेना है तो यह लेनदेन का भी जो हिसाब है कर्मों का तो वह भी तो चल रहा है, हम तो अभी सोच के अच्छे चले लेकिन हमसे कुछ उसको कुछ ऐसा पहुंचा, हमारे से कुछ किया हुआ है तो हमारे से फिर मिलना है तो फिर वह चला, तो वह तो कर्मों का हिसाब है ना तो फिर वह सारी कर्मों की फिलॉसफी है कि कितने जन्मों का हमारा खाता चलता है । ऐसा नहीं जो हमें अभी करते हैं अभी ही पाते हैं नहीं, हम जो करते हैं वह हमारे रिजर्व में बहुत कुछ खाता कई जन्मों का चलता रहता है इसीलिए हम बहुत जन्मों के हिसाब को भी पा रहे हैं । समझो इस जन्म में कोई बुरा काम नहीं किया, हम तो सोचेंगे हमने कोई बुराई नहीं की है लेकिन हमारे पास क्यों यह कर्मभोग या यह बुराई सब क्यों आती है तो हाँ यह हमारा कोई अगले जन्म का भी तो पाप है ना । कई जन्मों का बोझ है सिर पर तो हो सकता है उसकी भोगना भी तो अभी हमको भोगनी पड़ेगी ना । तो ऐसे नहीं है की एक जन्म का खाता एक ही जन्म में खत्म होता है कई जन्मों का खाता हमारा बहुत बड़ा बनता है, उसको भोगने में हमारी एक आयु पूरी भी नहीं होती है इसीलिए हमारा खाता स्टॉक में रहता चलता है कई जन्मों का इसीलिए हम उसको भोगते हैं तो उसका मतलब यह नहीं है कि हम इस जीवन को देखकर भाई इस जीवन में तो हम किसी से बुराई नहीं की है या कोई ऐसा बुरा कर्म नहीं किया है लेकिन पाते क्यों हैं बुराई । पाते है क्योंकि कोई अगले जन्मों का हिसाब है । जरूर अगले जन्म में कोई ऐसा कर्मों का हिसाब किताब है जिसको भी अभी पाने का ही है । तो कोई हिसाब अगले जन्मों का आते तो हैं न । तो यह आ गया, हमने तो सोचा नहीं कि मोटर के नीचे किसको लाऊँ लेकिन हाँ कुछ उसका दु:ख दिया हुआ है, फिर हमसे उनको मिलना है अंजानाई में । एक होता है जानबूझ कर किसका खून करना, एक होता है अन्जानाई से तो ऐसा ही कोई हिसाब होगा । कुछ ऐसा हिसाब किताब का बना होगा जिससे कुछ उसने दु:ख दिया है उसको मिलना होगा मिला है । तो यह जो हुआ वह तो समझते हैं की ये कुछ कर्मों का हिसाब है तो यह सभी चीजें कर्म का हिसाब भी तो चलता है ना, बाकी हम सोचते हैं अच्छा चले, चलना तो है ना हमको सोचकर । लेकिन सोचकर चलने पर भी कुछ ऐसा हो गया यहाँ कहेंगे ड्रामा । समझो हो गया कोई एक्सीडेंट, चलो ऐसा कुछ हो गया जैसा आपने कहा, तो हम उसको क्या कहेंगे ड्रामा, कोई हिसाब था । कोई कर्म का ऐसा किया हुआ था मेरा उसके साथ में हिसाब किताब का था सो हुआ । फिर हाँ उसके लिए हम जितना अच्छा कर सकते हैं या जितना हमारे से उसके लिए कुछ बन सके हम करें। परन्तु हाँ उसको कहेंगे न जो हो चुका, हमने जानबूझकर तो नहीं किया ना, हो गया, लेकिन अभी तो हमको अपने कर्मों को अच्छा करना है ना, जो अभी बनाते हैं । अभी तो सोचना है, अभी तो राइटियस करो करने की है उसी राइटियस को समझना है । इसीलिए हम को अटेंशन तो देना पड़ेगा ना, ऐसा नहीं कि जो होना होगा होगा । नहीं, हमको अपने कर्म के ऊपर ध्यान देना है । तो ड्रामा और कर्म, पुरुषार्थ और प्रालब्ध का ये ऐसा बना हुआ है इसी सभी बातों को अच्छी तरह से समझना है । लेकिन करना हमको पुरुषार्थ है । हमारा अटेंशन उसी के ऊपर रहना चाहिए । तो यह सभी चीजों को समझने का है अच्छी तरह से । अच्छा टाइम हुआ है । तो इसीलिए बाप से जो कुछ अपना मिल रहा है, उसी सभी बातों को अच्छी तरह से समझ और अपना पुरुषार्थ उस पर लगाना है । हमको उसमें लगे रहना है । अगर यह ड्रामा की भी बात हमको ना समझ में आए तो उसको छोड़ दो कोई ऐसी जरूरी नहीं है । हाँ परमात्मा को जानना जरूरी है क्योंकि उससे योग लगाना है । हाँ ड्रामा है, कैसा चलता कैसा है, नहीं समझ में आता है छोड़ दो, लेकिन हमको कर्म करना है, उसको पकड़ो । यह अपने आप समझ में आ जाएगा कि यह कैसा बना बनाया है और उसमें फिर रह करके हमको कैसा पुरुषार्थ करना है । हमारा चलता ही जीवन कर्म से है तो हमको अपने कर्म के ऊपर ही अटेंशन देना है इसीलिए हम को उसी बातों को उठा करके चलना है । अभी उठा कर के रहना है क्योंकि अभी तो हमारे कर्म नीचे के हैं ना । हमको तो अभी ऊँचा उठना है तो हमको तो उस चीज को ऊंचा उठाना है इसीलिए उठा कर के हमको ऊँचा बनने का है तो हमको तो वही पुरुषार्थ रखना है न । अच्छा, टोली दो । यह भी अपनी बुद्धि की में रखने की बात है और हर बात में हम को सोच कर चलना ही चाहिए । सोच के चलते हैं तो यह तो अभी सोच मिलता है ना कि सच्चा सोच कौन सा है । राइटियस क्या है बुद्धि वह अभी मिलती है तो उस बुद्धि से काम ले करके चलना है । जो भी ग्रंथ है न देखो गुरु नानक के भी ग्रंथ हैं शास्त्र, उसमें भी है आदि युग आदि है भी सत होसि भी सत, यानी उसका मतलब है जो हो चुका है वह फिर होने का ही है परंतु उसका मतलब यह नहीं है वह वर्ल्ड हिस्ट्री का कि जो हिस्ट्री हो चुकी है वह फिर होने की है, जो स्टेज हमारी ऊँची थी, चल चुकी है, वह फिर आने की है । अभी हम फिर नीचे आए हैं परंतु उसका मतलब यह नहीं है ना कि जो होना होगा अपने आप ही होगा । अपने आप नहीं होगा, होना होगा, होगा परंतु करने से होगा न । वह भी तो हम ऊँचे उठेंगे अपने कर्म से ही ना । जब ऊँचे उठे थे तभी भी कर्म से ही उठे थे तो हमको कर्म अवश्य करना ही है । इसीलिए देखो उस अर्जुन के लिए भी है गीता ही सारी इसी के ऊपर है, उसने कहा कि नहीं, जो हमारे से होना होगा अपने आप होगा, वह सब छोड़ कर बैठ गया, कहा नहीं तुमको उठाना है, तुमको करना है । करने के बिना नहीं होगा तो अवश्य करना है । तो हमको अपने कर्म को उठाना ही है, पुरुषार्थ को उठाना ही है । तो अपने पुरुषार्थ को उठाओ । चलो उस पर । जो है ना वो ही सब्जेक्ट है । अपना मुख्य है ही यह बातें ज्ञान की और मुख्य है ही चीज की हमको चलना ही उसी के ऊपर है इसीलिए अपने कर्मों को, कर्म भी कौन सा? श्रेष्ठ बुद्धि रखकर के कर्म करना है और अभी श्रेष्ठ बुद्धि मिलती है कि हमारी ऊँची बुद्धि कौन सी है तो हमको उसको लेकर के चलना है । तभी तो परमात्मा को भी आ करके समझ देनी पड़ती है ना । अगर हमारे कर्म के ऊपर आधार नहीं होता तो वह भी कहता अपने आप ही बनेगा, तो वह भी क्यों आकर के नॉलेज देता, फिर उसको नॉलेजफुल क्यों कहते । फिर पतितों को पावन करने वाला वह भी क्यों करता, अपने आप होने वाला कहो । फिर तो भगवान की भी कोई अथॉरिटी रही नहीं, वह तो सब अपने आप होता है फिर तो भगवान् भी कोई अथोरिटी नहीं है । फिर तो उसको ऑलमाइटी कहना भगवान कहना, फिर तो नाम उतार देना चाहिए उसका भी । काहे की माईटी, ऑलमाइटी काहे की, किसकी माइटी देता है, क्या करता है । फिर तो सब ऐसा ही चलता रहता है फिर कोई किसकी माइटी है ही नहीं । ना हम कुछ कर्म करते, न परमात्मा हमको कराते हैं, ना वह कुछ है न कोई कुछ है, सब ड्रामा है, फिर तो चलता ही रहता । फिर तो किसकी बड़ाई नहीं? नहीं, परंतु ऐसे नहीं है, उनका पार्ट है, वह भी हमको आकर के उठाते हैं इसलिए उनको भी नाम है वर्ल्ड ऑलमाइटी क्योंकि हमारी ऊँची दुनिया बनाता है, वह हमको शक्ति देता है इसीलिए वह भी ऑलमाइटी गाया जाता है और हम अपने कर्म श्रेष्ठ करते हैं तो हमारी भी प्रालब्ध बनती है तो सब का है ना काम, पार्ट है । फिर अगर नहीं होता सब अपने आप होने का होता, तो फिर तो ना वर्ल्ड ऑलमाइटी है, ना हमारे कर्म है, ना हमारी प्रालब्ध है, कुछ नहीं है, फिर तो ऑटोमेटिक मशीन चलती रहती है । फिर तो कुछ बात ही नहीं है न । परंतु नहीं, भले है ऑटोमेटिक परंतु उस ऑटोमेटिक को भी किन नियमों से चलना है वह नियम भी समझने है न । तो हमको पकड़ना है नियम को । बाकी ऑटोमेटिक तो है अनादि, वह बात ही अलग है लेकिन हमको नियम को पकड़ना है । अगर नियम को नहीं पकड़ेंगे तो फिर हम राईट नहीं चलेंगे । चलेंगे ऑटोमेटिक में परन्तु ठीक नहीं चलेंगे । हमारे एक्शंस टेढ़े हो जाएंगे, चलना तो है ही जरूर परंतु क्यों नहीं हम समझ कर चलेंगे तो हमारा पोजीशन अच्छा रहेगा । तो समझ कर चलना चाहिए ना इसलिए अपने कर्म को और उसी सभी बातों को समझना है और अपने कर्म को श्रेष्ठ रखना है ये सभी चीजें समझने की हैं । देखो इतना नॉलेजफुल, सर्वशास्त्रमई शिरोमणि गीता भगवान को भी समझाना पड़ा और जो भी आए हैं धर्म स्थापक सबने अपना-अपना काम आ कर के एक्शंस से किया है ना, अपने आप थोड़ी ही होता रहा । आए हैं उन्होंने भी जितना-जितना काम किया है अपना आकर के कर्म कराकर के किया है । गांधी ने भी किया कुछ भी तो अपना थोड़ा पुरुषार्थ किया न, माथाकुटी की, कुछ किया । हर एक काम करने से होता है ना, अपने आप कैसे होगा । तो करना है उसमें समझना पड़ता है, उसमें चलना पड़ता है, करना पड़ता है न । कुछ भी करते हो तो करने की तरह से करते हो ना अपने आप कैसे होगा । दो चार बच्चे संभालते हैं तो कैसे संभालते हो । करते हो तभी संभालते हो ना । इतने छोटे काम भी बिना करने नहीं होते हैं, एक शरीर का भी अपने संभाल भी बिना करने के नहीं होता है उसके लिए भी करना पड़ता है, समझना पड़ता है, अभी खाना है, अभी यह करना है, अभी यह करना है, वह करना पड़ता है ना । चुप करके बैठो सब कुछ होता जाए, करो, देखो होता है? कभी नहीं होगा । तो ऑटोमेटिक हो तो सब ऑटोमेटिक हो ना । परन्तु ये नहीं आप कहेंगे यह भी हमसे ऐसा ही होता है, उसमें आपका सोच चलता है एक्शंस चलती है, करते हो यह करना है या नहीं करना है, सब करने की तरह से होता है न । तो फिर इसमें भी ऐसा होना चाहिए ना इसको कोई अलग क्यों करते हो, वह अपना सोच समझ कर करते हो इसको क्यों समझते होना होगा, किस्मत में होगा हम बने होंगे तो बनेंगे । इसमें क्यों ऐसे करते हो । उसमें भी ऐसे करो न हम बने होंगे तो बनेंगे, पैसा मिलना होगा तो मिलेगा, कमाना होगा तो कमाएंगे तो करेंगे, फिर चुप करके बैठ जाओ । उसमें नहीं बैठते हो फिर इसमें क्यों? तो यह तो सभी चीजों के लिए है ना । ऐसा बाप, कैसा? जो हमको ऐसी समझ दे करके ऐसा ऊँच बनाते हैं और दादा जिसको बनाया है । वह हमारे सामने आदर्श है कि मनुष्य को कैसा बनना है और और कैसे मनुष्य को क्या बनाया । तो दादा को क्या बनाया, उसको क्या बनाया है वह हमारे सामने है कि किसको और क्या बनाया वह दिखाते हैं कि मनुष्य को मैंने क्या बनाया तो बनना है ना, वह भी कर्म से बना है । ऐसे नहीं ड्रामा से बना है, कर्म से बना है कराया ना । उसको भी आकर के मुझे उठाना पड़ा ना, कराना पड़ा ना । तो उसके तन मन धन से जो उसने कर्म किया, उसका फल पाया है तो वह फल का साक्षात्कार है । बाकी बना बनाया नहीं है ऐसे ही मुफ्त का, कर्म से । तो दिखलाते हैं कि उसने भी कर्म किया है और कर रहे हैं ना हमारे सामने । तो बाप दादा, बाप को भी करना पड़ता है और दादा से भी आकर के कराया है तो उसको भी कराने का काम आ करके करना पड़ता है ना, करना ही तो पड़ेगा न । तो ऐसा बाप और दादा और माँ के बहुत मीठे-मीठे, ऐसे समझदार जो अपने सब पुरुषार्थ में पूरे तत्पर रहे हैं ऐसे बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग ।