मम्मा मुरली मधुबन           

अलंकारी बनने के लिए मायाजीत कैसे बनें

 


रिकॉर्ड:
आज अंधेरे में है हम इंसान, ज्ञान का सूरज चमका दे भगवान……..


गीत में सुना हम इंसान अंधेरे में हैं, काहे का अंधेरा? आज तो दुनिया समझती है कि हम बहुत रोशनी में हैं । इतनी रोशनी हुई है कि चाँद तक जा सकते हैं, सूर्य, सितारों में घूम सकते हैं । आज मनुष्य क्या नहीं कर सकता है तो यह सभी बातों को मनुष्य समझते हैं कि बहुत रोशनी आ गई है और हमारी दुनिया तो अभी बहुत रोशनी की ओर चली जा रही है, परंतु इधर तो गीतों में कहते हैं अंधेरों में हैं, फिर अगर ऐसी बातें नहीं हैं तो फिर ऐसे गीतों को तो गवर्मेंट को बंद करा देना चाहिए कि भाई अंधेरा काहे का है, रोशनी में है बहुत । परंतु नहीं अंधेरा है किस बात का, जिस चीज के लिए इतनी इतनी खोजनाओं में जाकर के आज चाँद सितारों तक जाने की मनुष्य ने अपने में हिम्मत लगाई है, परंतु जो चीज चाहिए लाइफ में, वह नहीं पा रहे हैं। तो जो चीज चाहिए, जिसको बनाने के लिए और जिस प्राप्ति के लिए इतनी इतनी खोजनाएं है इतना इतना सब कुछ, समझते हैं मनुष्य को कोई प्राप्ति रहे सुख और शांति की, लेकिन उसी चीज को खोजते-खोजते भले मनुष्य की इतनी ताकत ऊँची गई है लेकिन लाइफ ऊँची नहीं गई है। लाइफ का मतलब जो लाइफ की सुख और शांति है उसमें तो मनुष्य ऊँचा नहीं गया है ना । लाइफ की सुख शांति की स्टेज और ही दुःख अशांति की ओर बढ़ती जा रही है तो इससे सिद्ध होता है कि जो मनुष्य को चीज चाहिए उसमें नीचे होते जाते हैं, उसका अंधकार है बाकी तो भले और ताकत में तो मनुष्य क्यों नहीं, अभी देखो घर बैठे उधर बात भी करते हैं, इधर देखते भी हैं टेलीविजन, रेडियो आदि आदि ये सभी चीजें भले कितने भी मनुष्य के सुख के यह सभी चीजें मनुष्य ने पाई हैं परंतु फिर भी वो जो लाइफ का सुख और शांति कहें वह तो चीज नहीं रही है ना, तो उसका अंधकार है । इसीलिए कहते हैं आज इंसान सब अंधेरे में हैं । किस के अंधेरे में इस चीज के अंधेरे में । उसकी अभी रोशनी, उसकी अभी इस चीज का पता नहीं लगता है कि वह चीज हमारी लाइफ में, जिसमें हम सदा सुखी रहे वह कैसे प्राप्त रहे । भले आज देखो रोगों के लिए कितने इलाज, कितनी दवाइयाँ आदि यह सभी बातें भी कितनी आगे बढ़ती जा रही है लेकिन फिर रोग भी तो सब साथ-साथ बढ़ते जा रहे हैं । तो हमारे लिए दुःख अशांति भी बढ़ता ही जा रहा है तो इससे सिद्ध होता है कि वह जो चीज है जिस चीज का अभी हमको लाइफ में चाहिए सुख की वह हमको नहीं मिल पा रहा है इसीलिए कहते हैं उसके हम अंधेरे में हैं अभी तू आ । किसको बुलाते हैं कि तू आ और उस चीज की रोशनी दे कि हमारी लाइफ में यह जो अंधकार है, अंधकार कहो या दुःख अशांति कहो, तो वह सुख शांति का अंधकार है कि हमको प्रैक्टिकली सुख शांति कैसे मिले, उस चीज की हमारे में जो अंधकार है वह आ करके हमारी दूर कर, तो देखो उसके लिए तो परमात्मा को पुकारते हैं ना । उसके लिए कोई इंसान को नहीं पुकारते हैं कि हां इंसान आ या इंसान इंसान को उस चीज के लिए कुछ देने का नहीं है, तभी तो कहते हैं ना हम सब इंसान जो कहते हैं उसमें सब आ गए जो भी साधु, संत, महात्मा जो रख बैठे हैं और जिन्हों को समझते हैं कि वह हमको पार करेंगे तो इंसानों में तो सब आ गए ना, तो सभी का अर्थ है हम सब जो भी इंसान हैं यहाँ, सब उस चीज के अंधकार में है प्रैक्टिकली जो सुख शांति की चीज है लाइफ के लिए, वह हमें नहीं मिल पा रही है, अभी तू आ । इसीलिए परमात्मा को पुकारते हैं और गाते भी हैं कि अंधे की लाठी तू है । गाते हैं ना, उसको कहते हैं अंधे की लाठी तू है, तो हम अंधे किस में है इस चीज में है, ऐसे नहीं है कि ये आंखें नहीं है देखने के लिए, इन सभी पदार्थों को देखने के लिए ये आंखें भले हैं, लेकिन वह नेत्र नहीं है जिसको ज्ञान नेत्र कहा जाता है, अंग्रेजी में भी कहा जाता है थर्ड आई ऑफ विजडम तो वह हमको किस विजडम का नेत्र नहीं है, इस नॉलेज का कि हमारे लाइफ में पूर्ण सुख शांति कैसे आवे उसका हमें ज्ञान नहीं है तो वह ज्ञान नेत्र । तो वह ज्ञान मतलब यहाँ कोई नेत्र निकल नहीं आएगा, यह जो चित्रकारों ने चित्रों में बैठकर के तीसरा नेत्र यहाँ दिखलाया है कई देवताओं के ऊपर तो कई समझते हैं शायद तीन आँखों वाले कभी मनुष्य थे ऐसे तीन आँख वाले कभी मनुष्य होते न हीं हैं, यह सभी जो चित्रों में भी अलंकार हैं इनका भी अर्थ समझना है कभी तीन आंखें मनुष्य को होती नहीं भले देवता हो, कोई भी हो । मनुष्य ही देवता है और मनुष्य ही असुर है, वह है मनुष्य की क्वालिफिकेशन बाकी ऐसे नहीं है उससे कोई मनुष्य के शरीर की बनावट जो है वो बदल जाती है, देवता होगा तो चारभुजा आ जाएंगी या तीन आँखें आ जाएंगी या असुर है तो उसमें कोई और बनावट की फर्क पड़ जाएगी, ऐसा नहीं है । मनुष्य डिसक्वालिफाइड है तो उसको कहा जाएगा असुर और क्वालीफिकेशंस में जब सर्वगुण संपन्न, 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी है तो वह क्वालीफिकेशंस की बात है तभी देवता है, बाकी शरीर की बनावट में नहीं उसके क्वालीफिकेशंस में फर्क जरूर पड़ता है जिसको पवित्र अपवित्र कहो या गुणों से संपन्न कहो या कहो की भ्रष्टाचारी श्रेष्टाचारी यह सभी जो हैं आचरण के ऊपर है । तो यह सभी चीजें भी समझने की है बाकी कभी मनुष्य को चारभुजाएँ या तीन आंखें यह सभी चीजें होती नहीं । चारभुजा का भी अर्थ है जो पुराने हो वह तो समझते हो ना चारभुजा का भी यह अर्थ है तो यह दो भुजा नारी की दो भुजा नर की, तो जब नर नारी पवित्र हैं तो फिर वह दिखलाते हैं ना चतुर्भुज का डबल क्राउन किंगडम का सिम्बल तो ऐसी रजाई थी और ऐसी राजाई में सभी नर नारी सुखी थे । तो जब पवित्र थे तो संसार ऐसा था । ऐसे संसार में सब सुखी थे तो वह दिखलाया हुआ है चतुर्भुज के रूप में और वह जो रावण का दिखलाते हैं दस शीश, उसका भी अर्थ है । इसका यह मतलब नहीं है कि दस शीश के कभी आदमी होते हैं नहीं, आदमी का नहीं है यह । यह भी एक सिंबल समझो विकारों का । जब अपवित्र प्रवृत्ति है उसमें भी नर नारी के दस शीश हैं, 5 पाँच विकार स्त्री के और पाँच विकार पुरुष के और मिलाकर के दस सर रख लिए हैं तो वह है नर नारी जब अपवित्र हैं तो संसार ऐसा दु:खी है और जब नर नारी पवित्र हैं तो संसार सुखी है तो वह पवित्र का सिंबल है चतुर्भुज और पवित्रता का सिंबल है यह रावण । तो यह सभी चीजें समझने की है यह सभी अलंकार है इसको कहा जाता है अलंकार यानी निशान है । इस बात का इनका अर्थ है बाकी ऐसे नहीं है कि मनुष्य कोई दस शीश वाले या तीन आँख वाले या चार भुजाएँ वाले या तीन सर वाले ऐसे-ऐसे जो चित्र दिखलाते हैं मनुष्य की कोई बनावट में फर्क नहीं पड़ता है । हाँ इतना जरूर है जब मनुष्य पवित्र है तो नेचुरल हैल्दी हैं और उसका बनावट, फीचर्स नेचुरल ब्यूटी आदि यह सभी इनका फर्क हो सकता है बाकी ऐसे नहीं है कि उसमें कोई तीन आंखें या कोई तीन सिर या कुछ ऐसी बनावट का है नहीं, तो यह भी सभी चीजों को समझना है । तो अभी वह कहते हैं कि देखो यह थर्ड आई ऑफ व्हिज्डम अथवा ज्ञान का नेत्र अभी उसको पुकारते हैं कि तू आ कर के दे तो ज्ञान का नेत्र दे अर्थात वह समझ दे । नॉलेज दे कि अभी हम कैसे सदा सुख शांति प्राप्त करें । हम सब इंसान अभी खोजते-खोजते थक गए हैं । जितना खोजनाओं में गए हैं, इतना और ही दुःख अशांति पाते हैं । देखो वह खोजते तो सुख के लिए हैं लेकिन उनसे फिर भी वही चीजें बनती जा रही हैं जिससे और ही हमारे दुःख प्राप्त हो देखो यह सब बोंब्स आदि यह सब क्या चीज है, नहीं तो यही साइंस अगर अच्छी तरह से उपयोग में काम में अच्छी तरीके से लगाया जाए तो इन चीजों से बहुत सुख का मिल सकता है परंतु बुद्धि है ना अभी, उस बुद्धि से काम ही उल्टा हो रहा है इसको भी कहा जाता है विनाश काले विपरीत बुद्धि । तो अभी जो विनाश का काल है यानी काल कहा जाता है समय को, तो अभी यह टाइम ही विनाश का है तो उसके द्वारा बुद्धि से काम ही उल्टा चलता है तो देखो बुद्धि से उसकी काम ही ऐसा निकलता है कि दुनिया का नाश कैसे हो । तो अभी है ही विनाश काले विपरीत बुद्धि । विपरीत किससे? यानि परमात्मा से विपरीत, यानी प्रीत नहीं । तो अभी प्रीत नहीं ऐसी बुद्धि हो गई है, तो प्रीत नहीं है तो अभी क्या हुआ, तो हुआ माया से प्रीत । परमात्मा से प्रीत नहीं है, है माया से । माया कहा जाता है पाँच विकारों को । कई बिचारे माया को भी नहीं समझते हैं, समझते हैं यह शरीर है ना, जो भी हम इन आँखों से देखते हैं यह माया है । यह शरीर भी माया है, यह संसार भी माया है, यह धन-संपत्ति भी माया है परंतु माया इसको नहीं कहेंगे । धन-संपत्ति तो माया को भी ,थी शरीर तो देवताओं को भी था और संसार में तो देवताएं ने भी थे फिर क्या वह माया थी क्या? नहीं, माया कहा जाता है पाँच विकारों को । विकार ही माया है बाकी कोई शरीर माया नहीं है । शरीर में तो देवताएँ भी थे परंतु उनको पास माया नहीं थी । धन-संपत्ति तो देवताओं को भी थी परंतु माया नहीं थी माया कहा ही जाता है विकारों को और माया ही दुःख देती है बाकी धन-संपत्ति कोई दुःख देने की चीज नहीं है । संपत्ति तो सुख का साधन है ना परंतु उस संपत्ति को भी इमप्योर अथवा शरीर को भी इमप्योर, अपवित्र किसने बनाया है पाँच विकारों ने, माया ने । तो माया के कारण, विकारों के कारण हर चीज जो है ना, वह अभी दुःख का कारण हो गई है । तो अभी धन से भी दुःख, शरीर से भी दुःख, हर चीज से अभी दुःख प्राप्त हो रहा है इसका कारण यह हो गया कि हर चीज में अभी माया प्रवेश हो गई है अर्थात पाँच विकारों की चीज हो गई है इसीलिए बाप कहते हैं अभी इस माया को निकालो पाँच विकारों को निकालो तो फिर तुमको इसी शरीर से ही और संपत्ति से और संसार से सदा सुख मिलेगा जैसे देवताओं का था । देखो संसार में भी थे और शरीर भी था, संपत्ति भी थी, सब था लेकिन एवर हेल्दी एवर वेल्दी और एवर हैप्पी तो देखो सुखी थे न । तो यह सुख तभी उन्हों के पास था जब उनके पास माया नहीं थी यानी यह रावण नहीं था, पाँच विकारों का ये नहीं था तो इसको नाश करने का है । तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं कि इस माया को नाश करो । तो माया माना यह नहीं की शरीर से ही निकल जाने का है या संसार में ही ना आवें, ऐसे-ऐसे कई समझते हैं यह संसार माया है इसीलिए कई शास्त्रों में भी लगा रखा है कि यह जगत मिथ्या है, परंतु जगत मिथ्या नहीं, जगत तो अनादि है ही । इसको कौन कहेगा मिथ्या जगह तो है ही परंतु हाँ इसको मिथ्या बनाया गया है । विकारों के कारण मनुष्य दु:खी हुए हैं बाकी ऐसे नहीं है कि जगत जो है वह है ही नहीं । जगह तो अनादि है ही ना, तो यह सभी चीजें समझनी है कि हमको कोई जगत से या संसार से निकल जाने की बात नहीं है लेकिन संसार को पवित्र बनाने की बात है । पवित्र भी संसार था, यही तो देवताओं का जो निशान है यह पवित्र संसार के मनुष्य थे न । देवताएं कोई और चीज थोड़ी है या देवताओं की दुनिया कोई ऊपर थोड़ी ही है । यही दुनिया, हम मनुष्य ही देवता थे और हम मनुष्यों का ही संसार स्वर्ग कहो, हेवेन कहो यही संसार था, जिसमें हम मनुष्य ही स्वर्गवासी थे यानी वो टाइम स्वर्ग का था और हमारे जनरेसन स्वर्ग में चलते थे । तो यह सभी चीजों को भी समझने का है इसलिए माया को भी अभी मिटाना है उसका नाश करना है इसीलिए उसका मतलब है पाँच विकारों को तो अभी माया को नाश करना अथवा माया को जीतना तो उसका मतलब है विकारों को जीतना तो माया कहीं जाती है विकार को । अभी विकारों के कारण ही यह सब चीजें हम को दुःख देती हैं क्योंकि यह धन भी अभी विकारी कर्म के अनुसार होने के कारण उससे भी दुःख होता है । शरीर भी विकारी खाते का होने के कारण उसमें रोग अकाले मृत्यु यह सभी चीजों से दुःख मिलता है । नहीं तो हमारे शरीर में भी कभी रोग नहीं था, कभी अकाले मृत्यु नहीं होता था, क्यों नहीं होता था क्योंकि निर्विकार के बल से बना हुआ था । अभी विकारों से बना हुआ है इसीलिए उसमें से दुःख मिलेगा तो हर चीज अभी विकारों के संग से बनी हुई होने के कारण हर चीज से दुःख मिलता है । तो अभी संसार ही विकारों के संबंध का हो गया ना इसीलिए सबसे दुःख तो इसको कहा जाता है माया के कारण ही अभी सब दुःख मिल रहे हैं तो अभी इसको निकालो । तो यह अभी कैसे निकले फिर हमारा संसार सुखी बने इसके लिए देखो उसको बुलाते हैं कि अभी हम इंसान, इन सभी बातों को खोजते-खोजते सुख शांति को ढूंढते-ढूंढते जितना ढूंढते जाते हैं, उतना और ही उससे दुःख क्योंकि हमारी अभी तो है ही नीचे की स्टेज आने में ना इसीलिए देखो उस बुद्धि से काम ही उल्टे चलते हैं तो इसीलिए बाप कहते हैं तेरी बुद्धि अभी उसी सत्य बाप को अभी पा नहीं सकती है, उसकी बुद्धि में आएगा नहीं, क्योंकि तेरी तो बुद्धि अभी तमोप्रधान हो चुकी है ना इसीलिए अभी मैं जब आता हूँ, तभी आ कर के फिर तुमको राइट बात बताता हूँ और वह ज्ञान का नेत्र मैं देता हूँ, ज्ञान का नेत्र माना ही समझ, वह समझ तो बुद्धि में धारण करेंगे ना कि यहाँ तो कुछ नहीं बनेगा ना बुद्धि में धारण करना है । तो अभी देखो यह समझ मिल रही है । अभी अपने को ये क्या मिला है ज्ञान ने,त्र तो अभी है ना नेत्र, तीसरा नेत्र है, तो अभी देखो हम यह थर्ड आई ऑफ विजडम पा रहें है तो ज्ञान का नेत्र अभी हमारे पास है, देवताओं के पास नहीं हमारे पास । हम माना हम ब्राम्हण, ब्राह्मण हो ना देखो अभी शुद्र थे, शुद्र माना विकारी । अभी विकारी से पवित्रता के ऊपर अपना पाँव रखा है, तो अभी मानो हो गए ब्राह्मण, अभी पवित्रता को अपनाया है ना, तो अभी हो गये ब्राह्मण । तो अभी देखो ब्राह्मणों को तीसरी आँख है और देवताएं है तो फिर प्रालब्ध है ना, वह तो हम जब जाकर के फ्यूचर में वह कंप्लीट प्रालब्ध पाएंगे । तो देवताओं को फिर ज्ञान नेत्र की जरूरत नहीं है, ज्ञान नेत्र से तो देवता बने ना । अभी जो ज्ञान मिल रहा है उससे हम क्या बनेंगे देवता, मनुष्य से देवता बनेंगे तो हमको देवताओं को तीसरा नेत्र होना चाहिए या अभी जो हम ज्ञान ले रहे हैं हमारे को, तो हम मनुष्य हो गए हैं न । अभी हम ब्राह्मण कहलाएंगे, मनुष्य पहले शुद्र थे, अभी हम शूद्र से ब्राह्मण हुए हैं यानी हम परमात्मा के मुख वशावली जो परमात्मा ब्राह्मण द्वारा बैठकर के यह मुख से नॉलेज दे रहा है उस नॉलेज से हम पैदा हुए हैं तो उसको कहा जाता है मुख वंशावली तो अभी देखो ऐसे नहीं मुझ से आदमी निकल आएँगे । आगे ऐसे समझते थे कि मुख का मतलब है शायद मुख से आदमी ऐसे निकले थे परंतु नहीं, मुख से हम अभी देखो जो मुख से नॉलेज मिल रहां हैं उससे प्यूरीफाइड बन रहे हैं तो अभी हमारा यह नया जन्म हो गया ना । अभी हुआ है ना आपका नया जन्म तो अभी क्या अभी शूद्र से ब्राह्मण हुए हैं तभी वह ब्राह्मण यह नया जन्म हो गया हमारा परमात्मा द्वारा यह मुख वंशावली । जो नॉलेज सुनाया उससे हम प्यूरीफाइड बने हैं फिर जाकर के देवता बनेंगे तो अभी तीसरा नेत्र किसको होना चाहिए ब्राह्मणों को अभी क्योंकि ज्ञान अभी की बात है ना पीछे तो ज्ञान की बात ही नहीं रहेगी । तो ब्राह्मणों को ही तीसरा नेत्र और यह सभी जो भी अलंकार हैं यह देखो दिया है ना विष्णु को शंख, चक्र, गदा, पदम् ये सभी अलंकार हैं, ऐसे नहीं है कोई इनका अर्थ है शंख माना ज्ञान का शंख, ये कोई ऐसे नहीं बजा है शंख माना ये ज्ञान का तो इसको शंख भी कह सकते हैं परंतु भक्ति मार्ग में उन्होंने यह चीजें रख दी हैं और गदा वह भी है देखो पाँच विकारों के ऊपर हमने अपना पूरा जोर लगाया है और वह चक्र भी है, यह चक्र भी है गोल्डन, सिल्वर, कॉपर, आयरन ये चार युगों का, कैसे हम पहले-पहले हम देवताएँ थे और कैसे फिर नीचे आए । अभी नीचे आ करके अभी फिर बाप आया ऊँचा उठाने के लिए, यह सारा चक्र जो हमने अभी अपना चक्र पूरा किया है, वह वही है सुदर्शन चक्र यानि स्व को अभी दर्शन अर्थात साक्षात्कार हुआ है, नॉलेज हुआ है कि हमारा सेल्फ का यह चक्र कैसे चलता है तो आत्मा को स्व का यानी सारे चक्कर का पता है, अभीपता है ना, तो सुदर्शन चक्र फिरता है बुद्धि में? चलता रहता है? खड़ा तो नहीं है ना? चलता रहता है । स्व माना सेल्फ यानि सेल्फ को अभी नॉलेज हुआ है कि ये हमारा चक्कर कैसे चलता है । हम जो देवता थे, अभी देखो क्या हो गए हैं, अभी फिर देवता बनते हैं तो यह है सारा चक्कर । गोल्डन, सिल्वर, कॉपर एंड आयरन एज इसमें हमारे अनेक जन्मों का ये चक्र चला अभी चक्र पूरा हो करके फिर सो देवता । समझा ! तो यह है स्वदर्शन चक्र, इसीको जितना –जितना याद रखेंगे कि सो थे, अभी फिर नीचे आए हैं अभी फिर ऊँचा जाना है तो जितना यह बुद्धि में फिराते रहेंगे वहां उससे तुम्हारे जो विकार हैं न वो कटते रहेंगे वो कहते हैं न विष्णु स्वदर्शन चक्र घुमाते थे तो दुश्मनों के सर कट जाते थे परन्तु दुश्मन कौन ये विकार तो जितना ये स्वदर्शन यानि सेल्फ को उसी स्टेज में रखेंगे कि आई एम असल में पवित्र सोल, पीछे इम्प्योर हुए हैं । अभी फिर हमको अपने पवित्र स्टेज पर जाना है तो आत्मा भी पवित्र शरीर भी पवित्र तो फिर हम देवता होंगे तो जितना ये चीजें बुद्धि में घूमती रहेगी यानी स्वदर्शन चक्र फिरता रहेगा तो तुम्हारे विकार जो है ना, वह नाश होते जाएंगे । तो अर्थ असूल में यह है परंतु उन्होंने बैठ कर के उसको एक अस्त्र-शस्त्र के रूप में ले गए थे, वो कहते हैं की वो चक्र घुमाते थे , कोई दुश्मन के पास भेजते थे तो उसका गला काट के आता था ऐसा-ऐसा शास्त्रों में कुछ दिया हुआ है परंतु ऐसा नहीं है वह दुश्मन है यह विकार । तो इसी नॉलेज के आधार से हमारे विकार नाश होते हैं तो स्वदर्शन चक्र का भी ये अर्थ है शंख का भी ये ही है और वह गदा का भी रखा है पाँच विकारों के ऊपर और वह जो पदम, फूल दिया है ना ये भी है प्रवृत्ति का की कमल फूल सामान प्रवृत्ति । वो कमल का फूल होता है न वो पानी में रहते भी पानी का स्पर्श उसके ऊपर नहीं लगता है तो मिसाल दिया जाता है कि कैसे घर गृहस्ती रहते भी प्रवृत्ति में रहते भी कमल फूल समान यानी उसमें कोई उसका लेप छेप में नहीं और उसमें अपने को पवित्र रखते थे । तो यह है अपना आदर्श कि हमारे लाइफ का आदर्श क्या था और कैसे हमारी प्रवृत्ति का आदर्श ऊँचा था, यह सभी इनका है, लेकिन वह भी अभी का है सब, बाकी देवताओं को यह जो गदा शंख चक्र आदि ये लेकर के कोई घूमते थे या इन्हों के हाथ में थे, नहीं, यह सभी चित्रकारों ने बैठ करके वो कैसे दिखलावें की भाई इन्हों को ज्ञान था या इन्हों कि माया के ऊपर जीत थी यह सब कैसे दिखलावें तो चित्रों में बैठ कर के वो निशान रखे हैं । बाकी ऐसे नहीं है कि ऐसे कोई देवताएं कोई चार भुजा वाले थे और वो ये सब लेकर के घूमते रहते थे ऐसी कोई बात नहीं है । तो यह सभी चीजें समझने की है कि नहीं, देवताएं भी मनुष्य थे दो बाहों वाले इसीलिए अपना करेक्ट चित्र भी बनाया है ना दो बाहें दी है. देखो नहीं तो श्री लक्ष्मी श्री नारायण को बहुत मंदिरों में देते हैं चार भुजाएँ लेकिन इन दोनों को मिलेंगे ना लक्ष्मी को पीछे कर दो तो उसकी दो बाहें दिखानी पड़ेगी । आपको दिखाया होगा कभी आप देखे हैं चतुर्भुज का चित्र दिखाएं आपको? चलो आओ, आओ अभी हम दिखाते हैं चतुर्भुज का कैसा फोटो निकाला है । उठो दोनों, एक लंबी आगे रहे, छोटी पीछे रहे । हाँ इधर आओ, हाँ देखो यह चतुर्भुज । यह देखा दो भुजाएँ लक्ष्मी की, हाँ इसी तरह से, यह दो भुजाएँ लक्ष्मी की वह दो भुजाएँ नारायण की । इनको शंख, चक्र, गदा, पद्म देदो और आप लोग फोटो निकालेंगे तो देखेंगे । अभी लक्ष्मी तू आगे जा और वह नारायण पीछे, फिर इसी तरह वो लक्ष्मी चतुर्भुज दिखाएंगे । वो नारी तो लम्बी है पीछे हो जाएँगी, आओ फिर ज़रा, हाँ तो फिर यह लक्ष्मी चतुर्भुज हो जाएँगी । तो वो नारायण चतुर्भुज वो लक्ष्मी चतुर्भुज । ये ऐसा फोटो निकला है, वह दिखलाया है ना चतुर्भुज का । तो असल में है कि लक्ष्मी चतुर्भुज और नारायण चतुर्भुज इनका चित्रकारों ने फोटो निकाला है । बाकी ऐसे नहीं कि चार भुजाएँ का कोई मनुष्य है, यह कंबाइंड लक्ष्मी और नारायण का फोटो निकला हुआ है तो इसका अर्थ है । तो यह सभी चीजें समझने की है परंतु ऐसे कंबाइंड पवित्र नर नारी कैसे बने, किन धारणाओं से, वह धारणाएँ वो चित्रों में बैठकर में दिखलाए हैं । भाई शंख, चक्र, गदा, पद्म जिन्होंने धारण किया वो ही ऐसे बने । तो अभी धारण किया है ना शंख चक्र गदा? है न ? है न शंख? शंख का मतलब है कि जो यह सुना है नॉलेज फिर सुनाना है, शंख बजाना भी है ऐसे नहीं शंख नहीं बजाना है फिर दूसरे को भी तो बनाना है ना । तो देखो यह हम क्या कर रहे हैं, जो धारणाएँ की हैं वह दूसरों को भी सुनाते हैं । ऐसे हर एक को करना है, तो हर एक को शंख चक्र गदा पदम् धारी बनना है । तो बनना अभी है ब्राह्मणों को, अभी से बनेंगे फिर तो देवता बनेंगे । जो करेंगे तो फिर पाएंगे, तो यह सभी चीजें समझने की है जिसका प्रैक्टिकल अर्थ क्या है । अच्छा, अभी टाइम हुआ है । आप लोगों को पता नहीं कहाँ-कहाँ जाना होता है, हम तो बैठे हैं, हमारे को अरज नहीं है लेकिन जाने वाले तो आप कहाँ-कहाँ होंगे तो इसीलिए आप लोगों को टाइम पर छोड़ते हैं । अच्छा दो मिनट साइलेंस।