मम्मा मुरली मधुबन           

चढ़ती कला और उतरती कला

 


रिकॉर्ड:
कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झनकार लिए…….

सबके रखवाले बनते हैं । ऐसे नहीं जैसे शास्त्रों में कहते आए हैं कभी उसका रखवाला बना, कभी उसका बना, यह अवतार लेकर के उसकी रक्षा की, यह अवतार लेकर के उसकी रक्षा की तो अवतार भी कई और रक्षा भी कभी सतयुग में तो कभी त्रेता में, कभी द्वापर में सभी जगह ले गए हैं, परंतु ऐसे नहीं । रक्षा की जरूरत भी तभी है जबकि हम पूर्ण गिरावट में आ चुके होते हैं । तो जब हम पूरे गिरते हैं तभी तो आकर के परमात्मा चढ़ाते हैं । अगर अभी हमारा गिरना ही शुरू हुआ है तो वो कैसे आकर चढ़ाएंगे, उनका भी तो टाइम है ना ऐसे तो नहीं है ना । उसका भी टाइम है, गिरने का भी अपना टाइम है । द्वापर से लेकर के कलयुग तक गिरना ही है, यह भी ड्रामा का है समझते हैं । इसमें कई मूंझते हैं, समझते हैं गिरना ही हैं तो फिर तो अपना तो कुछ नहीं हुआ ना । परंतु नहीं यह ड्रामा भी समझना है, फिर यह भी समझना है कि उस गिरावट से चढ़ने का भी टाइम है और बाप आ करके चढ़ाने की बल जो है ना, वह भी वही देता है । तो यह बातें समझने की है । गिरना ही है तो इसका मतलब गिरना ही है यह भी तो नहीं है ना । चढ़ना है तो उसका मतलब अपने आप ही चढ़ जाएँगे । नहीं, चढ़ना है, उसका टाइम है और चढ़ाने वाला भी आकर के चढ़ाते हैं परंतु वह भी हमारे से पुरुषार्थ कराके चढ़ाते हैं तो हमको अपने पुरुषार्थ से चढ़ना हो गया ना, अभी यह चीज फिर समझना । कई इसमें मूंझते हैं कि फिर इसमें पुरुषार्थ की क्या बात रही, जब गिरना ही है, चढ़ना ही है, यह बना बनाया पड़ा है तो हमको गिरने ही दो, जब चढ़ना होगा तो चढ़ ही जाएँगे अपने आप, फिर मेहनत की क्या बात है तो इसीलिए कई पुरुषार्थ को नहीं लेते, बस इसी बात में मूंझ जाते हैं । अभी मूंझने की भी बात नहीं है यह समझना है । भले गिरने चढ़ने, उतरती कला चढ़ती कला का बना बनाया ड्रामा है परंतु चढ़ने का भी जैसा नियम होगा वैसे ही चढ़ेंगे ना । नियम है अपने किए कर्मों से चढ़ना । गिरने का भी नियम तो यही है ना अपने किए कर्मों से गिरते हैं । कोई ऐसे थोड़ी है कि अपने आप गिरते हैं, हमारे कर्म से ही तो हम गिरते हैं, रिस्पांसिबिलिटी भी फिर हमारे कर्म पर आती है ना । तो बाप को भूलते हैं, विकारों में गिरते हैं तो गिरते हैं, अगर विकारों में नहीं गिरते तो नहीं गिरते । तो देखो ड्रामा में भी यह पॉइंट रखी हुई है, नियम में भी यह पॉइंट रखी हुई है की विकारों के कारण गिरे । कारण कौन सा, भई गिरे क्यों? ऐसे ही तो मुफ्त में नहीं गिर पड़े ना, अच्छे थे और गिर गए ? नहीं ! विकारों के कारण गिरे । विकार आए तब गिरे । तो देखो देवताएँ, भई सर्वगुण संपन्न 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी थे, फिर 14 कला, पीछे आहिस्ते-आहिस्ते फिर जब देवताएँ वाम मार्ग में आए न, देखो देवताओं का वाम मार्ग भी है ना, वाम मार्ग का मतलब ही है कि देवताएँ जब फिर विकार में गिरे हैं परंतु जब गिरे तब देवता थोड़ी ही थे, तब तो देवता नहीं थे ना । तो ऐसे नहीं कहेंगे देवताएँ गिरे, नहीं तब देवता है ही नहीं ना । देवता तब थे, जब सर्वगुण संपन्न थे लेकिन इनके बहुत जन्म चलते-चलते वह जो अपना सुख का कर्म बनाया, वह सभी भोग करके जब उनका पूरा हुआ तो फिर विकारी दुनिया का टाइम भी आया, फिर उन्हों में विकार प्रवेश होने लगे तो फिर वह उस समय तो विकारी हुए ना, उस समय देवता थोड़ी कहेंगे । नहीं, तो इसीलिए बिचारे कई समझते हैं इसका चित्र भी रखते हैं वह जगन्नाथ या कहाँ है, बाबा बतलाते हैं कि उनके मंदिर के बाहर दीवारों में बहुत देवताओं के गंदे-गंदे चित्र दिखलाए हुए हैं कि देवताएँ जब वाम मार्ग में गए हैं न, तो वाम मार्ग का चित्र दिखाते हैं । तो शक्ल देवता की और विकारों में चल पड़े हैं तो उनका विकारी दृश्य दिखलाए हैं परन्तु देवता वेश में तो उसी से कई ये समझते हैं कि देवता भी ऐसे गंदे थे इसीलिए समझते हैं भले ब्रह्मा भी फ़िदा हुआ फलाना भी फ़िदा हुआ तो वह देवताओं के ऊपर कलंक लगा दिया है इसीलिए सन्यासी आदि समझते हैं कि यह देवताओं का यह सुख भी विष्टा समान है, ऐसे-ऐसे कह देते हैं क्योंकि वो समझते हैं या और भी कई समझते हैं कि भई देवता पद ये कोई बड़ी बात थोड़ी ही है । देवताएँ भी गिरे इसमें क्या बड़ी बात है । ऐसा तो हमें बनना ही नहीं है । हम कहते हैं ना हमारा एम एंड ऑब्जेक्ट है मनुष्य से देवता, तो कई देवताओं से घृणा करते हैं । वो कहते हैं यह स्टेज नीचे की है । देवताओं से भी ऊपर की स्टेज है, वो फिर वह ज्योति ज्योत में समाना फिर वह ऊपर जाना, वह समझते हैं कि वो ऊँची स्टेज है हमको वो स्टेज चाहिए देवता नहीं, क्योंकि देवता बनेंगे फिर भी गिरेंगे ना, इसलिए क्यों हम ऐसी स्टेज में जाएँ । तो बिचारे जानते नहीं है न । तो वह भी तो देवताओं की दुनिया है तो देवता हैं, प्रैक्टिकल लाइफ है ना । फिर जब यह टाइम आता है तो फिर वही आत्माएँ है ना वही आत्मा जन्म लेती-लेती फिर रजो में फिर तमो में भी तो वही आती है ना । तो जब रजो शुरू होता है सतो प्रधान और सतो जब पूरा होता है तो फिर रजो आता है ना, तो फिर उस टाइम पर तो वह देवता नहीं रहे ना । फिर विकार का प्रवेश हुआ तो फिर विकारी कहें । फिर वही जो निर्विकारी राजे रानियाँ थी वही फिर विकारी राजे रानियाँ बन जाते हैं, भले उनका वह जो है ऊँचा पद वो रहता है परंतु विकारी । फिर उनके द्वारा फिर उनका वो राज्य चलता है तो इसी तरीके से बैठकर के बाप समझाते हैं तो फिर जब विकारों से भी गिरते-गिरते नीचे चल पड़ते हैं, तभी फिर मैं आता हूँ और आकर के फिर ऊँचा उठाता हूँ तो यह ड्रामा कैसे बना हुआ है नंबरवार सभी बातों को समझना है और फिर नियम को भी समझना है । बना बनाया को भी समझना है परंतु बना बनाया भी नियमों से, कानून से, कायदों से बना हुआ है उन कायदों को भी समझना है । ऐसे नहीं है बस चढ़ती कला है तो अपने आप चढ़ जाएगा, उतरती कला है तो आपे ही उतरते हैं आपे ही चढ़ेंगे । नहीं, उतरते भी अपने कर्मों से ही हैं, रखा तो वही है ना, तो भाई विकार में गिरे तभी गिरे, कारण तो देखो निकल आया ना । परंतु हाँ जानते हैं की विकारों का भी टाइम है । विकार ना होता तो निर्विकारी शब्द नहीं आता कंट्रास्ट में, रात नहीं होती तो दिन कैसे कहते हैं, दिन है तभी रात कहते हैं तो दोनों ही है । तो यह सभी चीजें जानते हैं, ऐसे कोई कहे कि रात होती ही क्यों है जो दिन होवे, फिर दिन ही ना हो रात ही ना हो फिर तू भी ना हो, फिर तो कुछ भी ना हो, वह तो बात ही नहीं है फिर तो कहने वाला भी ना हो फिर कुछ भी ना हो ना । फिर तो बात ही नहीं रहेगी तो यह सभी चीजों को समझने का है इसीलिए यह खेल कैसा है बना हुआ, किस तरह से ये बना हुआ है नियम कानून सब, तो हर चीज का नियम कानून को समझना है, इसी का ही नाम तो ज्ञान है ना । बाकी ज्ञान क्या है यह ना होता, वह ना होता तो कुछ भी नहीं होता फिर ज्ञान भी नहीं होता, फिर तू भी नहीं होता कुछ भी नहीं होता फिर तो है ही नहीं कुछ । फिर तो खेल ही खत्म है ना ये सब । तो खेल का नियम होता है, खेल का सब टाइम, पार्ट, सब वर्णन तो उसी चीज का है ना । तो अभी बैठकर के बाप समझाते हैं इसीलिए कहते हैं बच्चे अभी तुम्हारा टाइम पूरा हो तो मैं भी आकर के सब का सहारा बनता हूँ एक ही टाइम पर और मैं सबका बनता हूँ । ऐसा नहीं है कोई दूसरे धर्मों का दूसरा सहारा है, क्रिश्चियन धर्म का क्राईस्ट सहारा है, सहारा नहीं, सहारा सबका मैं हूँ । सहारे का मतलब ही है की सहारा तभी चाहता है जब मनुष्य गिरते हैं, दु:खी होते हैं तब आकर के कोई उनको सहायता देता है तो कहते हैं कि भाई इसने हम को सहारा दिया तो सहारा तभी कहने में आता है जब दु:ख में या कोई गिरावट के समय में कोई आकर के सहायता दे तब कहेंगे ना सहारा । तो ऐसे टाइम पर सहारा देने वाला एक ही परमात्मा है । तो सबको देखो पापों से मुक्ति और जीवन मुक्ति देने वाला तो एक ही है ना इसीलिए सहारा सबका है । क्राइस्ट को सहारा नहीं कहेंगे, बुद्ध को सहारा नहीं कहेंगे । वह तो आते हैं धर्म अपना स्थापन करने के लिए, वह तो और ही आत्मा को ऊपर से खींच के नीचे करते हैं । पवित्र आत्माएँ आती हैं और उन्हों को नीचे ही चलना है, खुद भी आते हैं तो खुद भी नीचे ही जाते हैं । उनके फॉलोअर्स भी जो कुछ है वह भी पवित्र आत्माएँ ऊपर से आती हैं उनकी संख्या क्रिश्चियनिटी की संख्या भी पीछे ही बढ़ती है न, तो संख्या जो उतरती है वह भी नीचे ही चलती है तो वह सहारा कैसे हुआ, वह तो और ही नीचे ले जाने वाला हुए ना । पावन आते हैं पतित बनते हैं तो वह पावन से पतित बनते हैं और बाप आकर के पतित से पावन बनाते हैं तो सहारा उसको कहेंगे जो हमको नीचे से ऊँचा बनाता है इसीलिए परमात्मा को कहेंगे पतित से पावन करने वाला, तो वह पावन बनाते हैं हमको दु:ख से छुड़ाते हैं इसीलिए उनको सहारा कहते हैं । वह धर्म स्थापको को तो दु:ख में ले ही जाना है, आते हैं पहले-पहले तब सुखी हैं पवित्र आत्माए हैं न, उस समय ताकत है उनमें बहुत, पीछे तो उनको और ही नीचे चलना ही है तो सब जाते हैं जो आती हैं आत्माएँ, जो स्थापक है उन सहित सब को नीचे ही जाना है । तो उसका मतलब यह हो गया न कि जो आते हैं धर्म स्थापक उनको तो नीचे ही ले जाना होता है क्योंकि उनको चलना ही है और हमारा बाप आते हैं तो नीचे वाली आत्माओं को ऊपर खींच ले जाते हैं तो हमको पतित से पावन बनाने वाला जो है जो धर्म स्थापन करने वाला है हम उन्ही की स्थापना में आने वाले हैं और दूसरे जो धर्म स्थापक हैं वह तो पावन से फिर पतित बनते हैं तो यह फर्क है इसलिए हमारा धर्म, इस धर्म की स्थापना जो है वह परमात्मा ने कहा हैं कि यह धर्म मैं स्थापन करता हूँ । कौन सा? जो पतित से पावन बनते हैं फिर पावन जेनरेशंस में सुख भोगते हैं और यह जो है बाकि वह पावन आते हैं और नीचे चलते हैं तो यह धर्म स्थापंना यह मनुष्यों का काम है, वह आत्माएँ यहाँ आ करके अपना धर्म ऐसे स्थापन करती हैं तो उनके धर्म स्थापन में और परमात्मा के धर्म स्थापन में रात और दिन का फर्क है क्योंकि वह अधर्म नाश करके धर्म स्थापन करते हैं इसीलिए एक धर्म, एक राज्य रहते हैं और वह जब आते हैं तो ऐसे नहीं एक धर्म एक बुद्धिज़्म, क्रिस्च्निज्म उस समय तो सभी धर्म हैं देखो इस्लामी धर्म है फिर बुद्ध आता है तो जब बौद्ध धर्म स्थापन होता है तो इस्लाम धर्म है ना । वह खत्म तो नहीं होता है न, वह है । फिर बुद्ध के बाद क्राइस्ट आता है तो फिर बुद्ध धर्म भी है फिर क्राईस्ट अपना धर्म स्थापन करता है । वह है धर्मों की वृद्धि और जब बाप आता है तो सब धर्मों का एंड करके एक धर्म स्थापन करता है । उसको कहा जाता है फिर संसार सुखी बनाता है । तो उसके कर्तव्य और मनुष्यों के कर्तव्य में रात और दिन का फर्क रहा ना इसीलिए कहते हैं सबका तू एक सहारा । तो कैसे सहारा बनते हैं कि हम सबको इस माया की बॉन्डेज से तो सब कुछ छुडाते हैं ना एकदम । एकदम से सबको माया की बॉन्डेज से छुड़ाते हैं । तो सहारा तभी है जब सभी माया के दु:ख में आए हैं तब उसकी बॉन्डेज से छुड़ाना, लिब्रेटर बनना तो इसको कहा जाएगा सहारा । तो लिब्रेटर तो एक ही है ना । क्राइस्ट को लिब्रेटर नहीं कहेंगे, बुद्ध को लिब्रेटर नहीं कहेंगे । वह तो और ही सब को साथ में लेकर के खुद भी नीचे और जो साथी हैं उनके सबको नीचे ही चलना है । तो यह सभी चीजें भी बुद्धि में रखने की है इसलिए परमात्मा का कर्तव्य स्पेशल है । वह अपने आप करने वाला है । उसके कर्तव्य को कोई मनुष्य कर भी नहीं सकता है और मनुष्य के साथ उसकी भेंट करी भी नहीं जा सकती है । हाँ, मनुष्यों की आपस में थोड़ी-बहुत भेंट चलती है जैसे भई क्राइस्ट था, बुद्ध था, इब्राहिम था जिन्होंने धर्म स्थापन किया तो हाँ यह सभी धर्म स्थापक, भले धर्म सबका अपना-अपना है परंतु सबके लिए कहेंगे तो न कि सब धर्म स्थापकों को भी अपने धर्म को स्थापन करके पालना के लिए उन सब को चलना है तो उनकी एक-दो में से भेंट हो सकती है लेकिन परमात्मा का सब कर्तव्य भिन्न, उनका पार्ट ही भिन्न है, उनका धर्म स्थापन करने का तरीका भी भिन्न है, सब भिन्नता है इसीलिए कहते हैं बस तुम्हरी गत मत तुम ही जानो, तुम सबसे न्यारा, भगवान को क्यों कहते हैं परमात्मा को, तुम सबसे न्यारा । न्यारा भी और फिर प्यारा भी तो देखो कहते हैं सबसे न्यारा काम भी करता है और अलग किसी से उसके भेंट नहीं की जा सकती हैं । तो सब से उसका न्यारा कर्तव्य भी है और फिर सबका प्यारा कर्तव्य करते हैं यानी सबके लिए जो माया की बोंडेज से छुडाने का प्यारा कर्तव्य है, वो सबका करता है लेकिन सबसे न्यारा । ये काम कोई और नहीं कर सकता है । तो उसको न्यारा कहा ही इसलिए जाता है क्योंकि वह सबसे न्यारा है, कोई से उसकी भेंट करने में नहीं आ सकती हैं । उनका कर्तव्य सबसे निराला है । कहते हैं तुम्हरे काम निराले..ये गाते हैं भक्ति मार्ग में कि तुम्हरे काम निराले । क्यों कहते हैं तुम्हारे काम निराले हैं, कौन सा काम उसका निराला है । यह उसका माया की बॉन्डेज से छुड़ाना तो उसके काम निराले । दूसरे जो आ कर के काम करते हैं वह और तरीके के काम है । वह हमको यहाँ इस दुःख में ले आते हैं, यह हमको इसी दु:ख के संसार से छुडाते हैं । माया की बोंडेज से ले जाते हैं तो फर्क हो गया न । तो यह सभी चीजें बैठ करके बाप समझाते हैं इसीलिए कहते हैं मेरा काम निराला है परंतु मेरा काम सबका प्यारा है इसीलिए सब मुझे याद करते हो ना फिर भी । धर्म स्थापक भी मुझे याद करते हैं । वह भी आ करके तुम लोगों को मेरी महिमा सुनाते हैं, परमात्मा ऐसा वैसा सब । देखो गुरु नानक है तो उनकी भी वाणी में किसकी महिमा है, परमात्मा की महिमा है । तो सभी जो भी धर्म स्थापक आए हैं, उन सब ने परमात्मा की महिमा की है और उनके कर्तव्य क्या था, लेकिन मेरी खाली महिमा से भी उसने अपना अपना धर्म स्थापन किया । उनका काम सिर्फ मेरी महिमा करना, मेरी महिमा से भी देखो उन्होंने कितना अपना धर्म स्थापन करने का ये काम कर लिया । लेकिन मैं खुद जो हूँ वह खुद आकर के काम करूंगा तो कैसा काम करूंगा, फर्क होगा ना । तो इसीलिए कहते हैं देखो मेरा काम सबसे निराला । तो यह देखो अभी निराला काम जो करने वाला है ना, उसके हम डायरेक्ट वंशावली बनते हैं और वो डायरेक्ट धर्म जो स्थापन करता है उसी धर्म वाले हम बनते हैं तो अपना नशा कितना होना चाहिए । कोई कॉमन धर्म स्थापक की तरह से हमारा धर्म स्थापन नहीं होता । हमारा धर्म स्थापन करने वाला कौन? स्वयं परमपिता परमात्मा वर्ल्ड ओलमाइटी अथॉरिटी । तो हम उसी धर्म वाले हैं जो धर्म स्वयं परमात्मा ने स्थापन किया है और वो आकर के करते हैं इसीलिए अपना धर्म का, अपने कर्म का, अपने बनाने वाले का कितना फखुर होना चाहिए कि हमारे कर्म सबसे श्रेष्ठ, हमारा धर्म सबसे श्रेष्ठ, हमें बनाने वाला सबसे श्रेष्ठ । वह है ही ऊँचे में ऊँचा, उनकी तो भेंट ही क्या करें, है ही ऊँचे ते ऊँचा, ऊँचा एक ही है । तो यह सभी चीजें बुद्धि में रहने की है इसीलिए अभी बाप कहते हैं बच्चे अभी तुम्हारा धर्म, देखो तुम्हारा धर्म सबसे पूज्य । पूजनीय देवी देवताएं वो धर्म, जिसके लिए देखो यादगार चित्र सामने हैं । गॉड एंड गोडेजिस, अंग्रेजी वाले भी अंग्रेजी में इनको गॉड एंड गोडेजिज कहते हैं । इसके चित्र बड़े पुराने पुराने मिलते हैं । तो इसी तरह से जैसे झाड़ होता है ना झाड़ बढ़ता जाता है और उसमें जो जड़ की आयु यदि गिनेंगे झाड़ में लास्ट तक तो कहेंगे भाई जड़ को पैदा हुए बहुत टाइम हुआ तो इसकी एज बहुत हुई झाड़ में और यह डार का टाइम थोड़ा कम रहा, फिर दूसरा छोटा डाल फिर टार फिर टारिया । पीछे लास्ट में भी छोटे-छोटे पत्ते निकलते हैं तो कहेंगे यह तो अभी-अभी पैदा हुआ और अभी-अभी इस झाड़ का एंड है और खत्म होना है तो अभी-अभी हुआ है तो इसकी आयु झाड़ में छोटी रही तो झाड़ में भी नंबरवार जड़ की आयु झाड़ में सबसे कम, फिर टारी की उससे कम फिर छोटी-छोटी टारियां उनकी उससे कम और फिर छोटे-छोटे पत्ते उसको कहेंगे अभी अभी निकले अभी-अभी झाड़ का एंड है तो वह सबसे कम उसकी आयु इसी तरह से इसी तरह से यह चक्कर चलता है । तो यह सभी बातों को समझने का है कि आत्मा में अपना कैसा पार्ट है जो शुरू होता है, फिर पूरा होता है फिर पूरा हो करके फिर वैसा ही शुरू होगा । ऐसे नहीं चलता चलेगा । जो चीज शुरू हुई है उसकी एंड जरूर चाहिए यह भी एक समझने की बात है जिसको कहे शुरू, तो भाई शुरू कहाँ से हुआ अगर शुरुआत है तो उसकी एंड जरूर है । तो समझना चाहिए ना इसीलिए बाप कहते हैं इस नाटक का खेल का पार्ट का शुरुआत है । बाकी यह कब शुरू हुआ कभी पूरा हुआ ये अनादी है, जिसका कोई एंड नहीं है इसको कहते हैं अनगिनत । ये एक शुरू हो करके पूरा हुआ फिर शुरू हो करके पूरा हुआ, ये अनादि चला आता है । कभी था ही नहीं न जो हुआ, तो अभी क्वेश्चन भी उठे । नहीं, ये अनादी है, उसके लिए कहेंगे अनादी, इसका कोई आदि अंत नहीं है । हाँ फिर खेल का, पार्ट का की भाई पहले कौन थे पार्टधारी एक्टर्स उन एक्टर्स का नंबरवार खेल का है कि पहले ये देवी-देवताएं पीछे फिर दूसरे- दूसरे धर्म । तो यह सभी चीजें बाप समझाते हैं । देखो इस चक्र में हैं न पहले देवी देवता है तो देखो दूसरा धर्म कोइ है इस तरफ? है ही नहीं, एक ही धर्म है । अभी जब कॉपर एज शुरू होता है तो दूसरे धर्म देखो आना शुरू होते हैं वह दिखाया है यहाँ, इसमें झाड़ में भी दिखाया है इधर । ये देखो खाली है ना सारी वर्ल्ड में, यह वर्ल्ड के ऊपर दिखलाया है की सारी वर्ल्ड में एक ही आदि सनातनी देवी देवता धर्म दिखलाया है कि सारी वर्ल्ड में एक ही आदि सनातनी देवी देवता धर्म, यह गोल्डन एंड सिल्वर ये साइड में एक ही धर्म है देवी देवता । जब ये देवी देवता धर्म है तो एक धर्म एक राज्य सारी वर्ल्ड में । उस टाइम पर दूसरा कोई धर्म नहीं है । पीछे यह नंबरवार दूसरे धर्म, धर्म स्थापक आते हैं अपना अपना धर्म चलाते है । तो एंड फिर देखो सबकी एक है । देखा है ना, सबकी एंड इसीलिए सभी का शास्त्र भी दिया है हर एक अपना अपना । देखो शास्त्र इनके पीछे शुरू होते हैं, जब धर्म का आधा भाग हर एक चलता है, उसका गोल्डन सिल्वर पूरा होता है फिर उनके भी कॉपर एज में यानी जब थोड़ा बीच का टाइम पीछे उनका चलता है शास्त्र ग्रंथ या बाइबल या जो भी उनके भक्ति मार्ग का है वो पीछे चलता है । पीछे फिर मल्टीप्लिकेशन भी होती है । तो इसी तरीके से सबका फिर एंड एक साथ तो यह सभी चीजों को बहुत अच्छी तरह से समझना है । यह चक्र बुद्धि में घूमने का है । बाबा कहते हैं ना सुदर्शन चक्र फिराओ । फिराओ क्या कि देखो हम अभी कहाँ थे । अभी चक्र पूरा करके हम फिर अपनी जगह पर आ रहे हैं । हम अपनी सीट ले रहे हैं फिर । हमारी सीट माया ने छीन ली थी अभी हम फिर अपनी जगह पर आ रहे हैं, फिर अपनी सीट पकड़नी है इसीलिए कहते हैं कि अब चक्र फिरेगा तो अपनी सीट याद आएगी कि हम इसी सीट से गिरे थे, अभी अपनी सीट फिर पकड़ते हैं । तो चक्र फिरेगा तो याद आएगा । तो फिराओ इसीलिए कहते हैं सारा दिन बुद्धि में ये स्वदर्शन चक्र फिराओ तो फिर इस चक्र से तुम्हारे पाप नाश होंगे । तभी जब याद रहेगा न हमारी सीट ऊँची है हमारी सीट ऊंची है तो अपना ख्याल रखेंगे हम ऊँची सीट वाले हैं तो हमारे से कोई ऐसा उलटा काम नहीं होना चाहिए तो देखो विकार कटते जाएंगे न । तो सीट याद करेंगे विकार कटेंगे, सीट याद करेंगे विकार कटेंगे तो अपनी पोजीशन सीट को याद करना है । तो इसको बाबा कहते हैं चक्र घुमाओ । (भाई-50 फुट का चक्र पत्थर में बना हुआ है) । हाँ यह चक्र का तो बहुत बना हुआ है, यह क्रॉस का भी है यानी स्वास्तिक भी है स्वास्तिक का भी पूजन करते हैं । जब गणेश पूजन होता है या कोई भी पूजन करते हैं ना तो पहले यह स्वास्तिक जरूर निकालते हैं । पूजन के आरंभ में पहले स्वास्तिक जरूर रखते हैं तो यह स्वास्तिक का भी चार भाग का हिसाब है यह ईक्वल चार भाग हैं । ईक्वेलिटी को कोई नहीं जानते हैं, वह समझते हैं सतयुग हैं वह बड़ा है उसकी आयु बड़ी है, फिर त्रेता है उसकी आयु थोड़ी कम है, फिर द्वापर है उसकी थोड़ी और कम कलयुग का और थोड़ी कम तो उसके भाग को छोटा छोटा करते जाते हैं । तो ये इक्वल है तो चारों की आयु इक्वल है साढ़े बारह सौ- साढ़े बारह सौ वर्ष सबकी आयु ईक्वल है । इस ईक्वेलिटी को कोई नहीं जानते हैं परन्तु इनका महत्व बहुत है । बाबा सुनाते हैं वह जगन्नाथ में चावल का डेग बनाते हैं उसमें फिर चावल के आपे ही चार भाग हो जाते हैं । वो तो ऐसे भक्ति मार्ग की भावना है न तो ये चार भाग का महत्त्व यही है । तो यह बातें अभी अपन सब जानते हैं । ये चक्र बहुत रखते हैं, अभी देखो अपनी गवर्मेंट का यह जो है उसमें भी नीचे एक चक्र हैं ना, परन्तु इस चक्र का अर्थ वह समझते हैं गांधी जी ने चरखा चलाया । तो यह चरखे का निशान दिया है । वह अपने घर पर सूत बनाते थे वह तो उसको वो चरखा बना दिया, वो बिचारे ने गाँधी जी ने वो चक्र का राज तो समझा नहीं तो चरखा लगा लिया । है तो असुल गीता की बात यह है ना यह चक्र परन्तु उसमें तो सारी बातें स्वराज वगैरह यह सब आहिंसा आदि को उस तरीके से ले गए हैं ना । अहिंसा को समझा की हथियार कमान से नहीं लड़ना, बाकी पिकेटिंग, भूख हड़ताल. सत्याग्रह इन्ही से राज्य लेना है तो उसने फिर अहिंसा को इसी तरीके से लिया, उस चक्र को फिर चरखा में लिया । वो समझे घर-घर में चरखा फिराओ । घर-घर में एक-एक चरखा, जिसको देखो वो एक-एक चरखा । वो टिकली टिकली सब निकलती थी देखो बच्चे-बच्चे, छोटे-छोटे सब, जब कांग्रेस का चलता था तो खूब ऐसे करते थे, हम भी करते थे, बहुत करके देते थे उसको । वो बनाते थे ना, तो जो बनाते थे पीछे उनको देते थे । जो ऐसे दान करेंगे ना तो समझते थे भाई ये कांग्रेस को मदद करते हैं, जितना बना के दे । रोज जितना भी बना कर दें तो यह कांग्रेस को मदद की तो हम भी ऐसे मदद करते थे, वो बना कर दे देते थे । तो यह सभी होते हैं तो गांधी जी ने भी ये समझा की यह घर-घर का चरखा सब को सुखी करेगा लेकिन यह बात कहाँ की थी कि हमारा चक्र कहाँ पूरा होता है फिर हम कहाँ जाते हैं वो अभी चक्र पूरा करके आए हैं और इसी कर्म श्रेष्ठ से अपनी वो जगह पकडनी है । तो बातें ऐसी है लेकिन बातों को ले गए हैं दूसरे-दूसरे तरह से, अभी बैठकर के बाप समझाते हैं । तो अभी सब बुद्धि में आती है ना ? तो यह सभी अभी बुद्धि में ले करके अभी फिर वैसे अपने कर्म को बनाना है तो यह सभी बातें अभी अच्छी तरह से बुद्धि में रखते जाओ । इसमें मूंझना नहीं है किसी को समझाने करने के लिए भी परंतु समझाने की समय में भी कभी भी कोई नयों को कोई ऐसी बातें नहीं ये चरखा चक्र आदि यह बातें समझाएँगे तो वह बिचारा मूंझ जाएगा । पहली- पहली बात तो सबको बाप का परिचय देना है कि तुम कौन हो, तुम्हारा पिता कौन है । तुम आत्मा, आत्मा का पिता कौन है, तो बाप से तो बुद्धि लगे । जिससे कनेक्शन कट हुआ है उससे तो पहले कनेक्शन लगे फिर उसके कनेक्शन से फिर सारी बातें आपे ही आप समझता जाएगा इसीलिए पहले पहले किस को भी बैठकर के ये चरखा और चक्कर ये सभी चीजें सुनाएंगे तो माथा खराब हो जाएगा इसीलिए कभी भी नयों को कोई इस बातों में कोई टू मच बातों में नहीं । कोई क्वेश्चन भी करे न तो कहो पहले तो यह बात समझो तुमको बाप से वर्सा लेना है, तुमको अपना जीवन बनाना है या बैठकर के यह बातें सीखने है की जनावरों की आत्मा कहाँ रहती हैं, जनावर कैसे बनते हैं । कई क्वेश्चन उल्टे उठा लेते हैं न फिर उन्हों की गति क्या होती है तो तुम जनावर हो क्या? अपनी गति तो करो पहले, मनुष्य की गति क्या होती है पीछे जनावर की गति पूंछना की उनकी क्या होती है । जनावर की गति पीछे रही, तेरी गति से सबकी गति होगी । मनुष्य की गति सद्गति से सब जनावर पशु-पक्षी सब की गति होगी तो तेरे पीछे सब है । तू पहले अपनी कर तो तेरे पीछे सब सुधर जाएंगे अपने आप । तुम जनावरों की काहे चिंता करते हो । जनावर का क्या हुआ, कैसा हुआ, कई-कई क्वेश्चन करते हैं । वो कुत्ते होते हैं ना डॉग्स, वो कई तो बिचारे राजाओं के महल में पलते हैं । राजा अपनी पलंग के पास रखते हैं । बड़े प्यारे जिसके कुत्ते होते हैं बड़े-बड़े साहूकार अपने पलंग के साथ उसकी पलंग लगाते हैं, सुलाएँगे, खिलाएंगे पिलाएंगे बहुत किसका लव होता है जनावरों से । तो कहते हैं देखो वो तो राजा से महलों में पल रहे हैं, यह भी कुत्ते का कोई भाग्य है किस्मत है, उसने भी कोई कर्म किये होंगे । फिर ऐसे-ऐसे कई क्वेश्चन करते हैं कि उसने क्या कर्म किया है । कोई कुत्ते को तो लाठी मारते हैं, आते हैं घर में तो मारो लाठी, निकालते हैं घर से बाहर, तो कोई तो बेचारे ऐसे पल रहे हैं उसकी क्या कर्म की गति है । तो ऐसे-ऐसे क्वेश्चन उठाते हैं परंतु इन्हीं बातों में अगर जाएंगे ना तो कहेंगे तुमको कुत्ता बनना है क्या? तुम अपने कुत्ते की गति पूँछ रहे हो । तू अपनी तो गति को समझ, तेरी गति से सब की गति होगी । जैसे मनुष्य में भी नीच ऊँच का है, जितना मनुष्य ऊँचा होता है तो उनका भी फिर अपना-अपना हिसाब किताब है । देखो कुत्ते-कुत्ते भी अपना आपस में लड़ते-करते हैं परंतु उसकी फिर कैटेगरी जो है ना वह अलग है । वह उनकी अपनी कैटेगरी में अपने कर्म का हिसाब का खाता है लेकिन मनुष्य की कैटेगरी अलग है यह समझना है । ऐसे नहीं मनुष्य से ही जनावर की कोई भेंट करनी है । जनावरों का जनावरों में अपना हिसाब-किताब का खाता चलता है वह बात अलग है बाकी मनुष्य की केटेगरी और जनावर की कैटेगरी को मिलाना तो नहीं है ना । यह कैटेगरी अलग वो कैटेगरी अलग, उसको अलग तो करो पहले । तो ऐसे नहीं है मिलाना है कि हमने कुछ अच्छा कर्म किया यह मनुष्य से भेंट की बात नहीं है । वह तो जनावर अपने आपस में उनका भी तो कोई हिसाब किताब अपना चलता होगा न तो यह तो जनावरों का हिसाब-किताब हुआ ना । हमको कोई जनावर तो नही बनना है न । हमको तो मनुष्य की गति क्या है, उसको समझना है और अपनी गति को पकड़ना है गति अथवा सद्गति को । तो हमको तो वो चीजें समझने की है ना । तो यह सभी बातें बुद्धि में रखनी है । तो यह कोई कभी-कभी ऐसे फ़ालतू क्वेश्चंस उठा लेते हैं तो ये क्यूँ आप लोगों को समझाते हैं क्योंकि कोई सर्विसेबल हो ना तो यह सभी पॉइंट्स दी जाती हैं । कभी भी कोई ऐसा कोई क्वेश्चन रॉन्ग वे का उठा लेवे तो कहना भाई इन्ही बातों में तुम्हारा क्या जाता है । तुमको अपना जीवन बनाना है, तुमको अपना सुख शांति चाहिए ना कि जानवरों के सुख शांति का ख्याल है । तू सुखी बनेगा जनावर अपने आप सुखी बनेंगे । तेरे बल से ही जनावर बनेंगे सुखी । तुमको अगर जानवरों के ऊपर दया है तो तू पहले अपने को बना फिर जनावर तेरे बल से अपने आप सुखी हो जाएंगे । सब सुखी हो जाएंगे, यह तत्व आदि सब आर्डर में आ जाएंगे । तो तू अपने को बना वह अपने आप बनेंगे । बाकी तू अगर समझे कि इनके ऊपर दया करके इनको बनाने से मैं बनूंगा । उसके ऊपर दया करने से उसकी दुआ हमारे ऊपर आएगी । नहीं, तू अपने ऊपर दया कर तो तेरी दया सबके ऊपर जाएगी । इसीलिए कई पशुओं की, पक्षियों की, कई चीटियों की सेवा करते हैं कि उनकी दुआ हमको मिलेगी, परंतु तू बन तो तेरी दुआ सब बिचारों को मिल जाएगी । तेरे ही कृपा से सब बेचारे हरे-भरे हो जाएंगे जनावर, पशु, पक्षी, जड़, चेतन वृक्ष आदि सब हरे-भरे हो जाएँगे । अभी देखो वृक्ष आदि में भी ताकत नहीं है ना, फल-फूल अनाज वगैरह सब बिचारे सड़ गए हैं, भले देते भी हैं परंतु देखो वह ताकत नहीं है । पीछे ये तत्व आदि सब में, तुम्हारे बल से इन तत्व आदि सब में बल आएगा इसीलिए तू अपने ऊपर दया कर तो सबके ऊपर दया तेरी हो जाएगी ऑटोमेटिक । लेकिन तू उनके ऊपर दया करेगा ऐसे करेगा तो इससे कैसे होगा । नहीं, यह अपने ऊपर कर दया । दया का मतलब ही है की अपने को पवित्र बना और मनुष्य को पवित्र बनाने का रास्ता दे तो मनुष्य के बनने से यह मनुष्य का जो भी है जैसे घर का मालिक होता है घर में कितना फर्नीचर होता है न तो किसके लिए है? मनुष्य के लिए है ना । तो यह संसार भी मनुष्य के लिए है । खाना-पीना यह सब शोभा जैसे घर में नहीं रखते हैं बहुत रखते हैं, कुत्ते बिल्ली यह सब पशु पक्षी बनाकर रखते हैं अपने घर की शोभा रखते हैं ना तो यह भी हमारे संसार में शोभा है, इन चीजों का । परंतु है किसके लिए मनुष्य के लिए, मुख्य मनुष्य है ना । तो समझो यह फर्नीचर है सजावट है तो मनुष्य अच्छा हो जाएगा तो उसके घर की सजावट अच्छी हो जाएगी और मनुष्य गिरता है तो उसके घर की सजावट गिरती है । तो अभी पहले सजावट को बनाना है या मनुष्य का बनना है । धनी का बनना है ना, तो धनी बनेगा तो उसके लिए अपने आप मकान अच्छा बनेगा, अच्छे मकान के लिए अच्छा फर्नीचर बनेगा, सब अच्छा होगा । तो पहले जिसको बनना है उसको बनने का पुरुषार्थ रखना चाहिए ना । तो पहली कोशिश करनी है अपने को बनाने की इसीलिए बाप कहते हैं पहले आत्मा मुख्य, शरीर से भी पहले मुख्य आत्मा । आत्मा बनेगी तब शरीर बनेगा, ऐसे नहीं पहले शरीर बनेगा तब आत्मा बनेगी । नहीं, शरीर पीछे किसके कर्मों के आधार से शरीर बनता है? आत्मा के, तो मेन तो आत्मा है ना और आत्मा को कौन बनाएगा- परमात्मा तो इसीलिए उसको जानना पड़ता है । तो जो बनाने वाला है उसको ना जानेंगे तो हम बनेंगे कहाँ से इसीलिए उसको भी जानना पड़ता है तो आत्मा को और परमपिता परमात्मा को यानी उसको बनाने वाले को समझना पड़ता है । जब समझेंगे तभी तो बनाने वाले के कनेक्शन में आएंगे ना । वह कहते हैं मुझे याद करो अगर हम समझे क्यों याद करें, तो जब पता लगेगा की इसको याद करने से हम बनेंगे, हमारे को उससे ताकत मिलेंगी, बल मिलेगा तो जब हम जानेंगे तब तो टेंप्टेशन रहेगी ना तो इसके लिए उनका ज्ञान जरूर चाहिए । तो हमको अपने बनने के लिए ये बातें जाननी पड़ती हैं । जानकर के उससे कनेक्शन जोड़ना पड़ता है, और जोड़कर के उससे अपना बल लेना पड़ता है तभी तो हम सुखी बनेंगे । ये तो सभी बातें एक दो के सम्बन्ध में है ही । तो ये सभी जो सम्बन्ध की बातें है वो समझने की हैं बाकि ये सब भी नटशेल में क्यूँ, आप लोग तो पुराने हो दस बरस के अथवा कुछ अभी आए हो, अच्छा समझते हो तो उन्हों को समझाया है की भाई चलो यह सभी कैसा है । मनुष्य मुख्य है उसके साथ फिर सभी का कनेक्शन है समझाने में आता है, नहीं तो बिल्कुल नए जो है ना उनको फिर बैठकर के यह बातें समझाये तो फिर मूंझ पड़ेंगे क्योंकि उनको तो खाली ये बाप का रिलेशन बाप क्या, मैं क्या और उसके साथ सम्बन्ध कैसे रखो और अपने कर्मों को स्वच्छ कैसे बनाओ, बस इतनी बातों में ले जाना है । जब वो अमझ जाएंगे, बुद्धि स्वच्छ जितनी होती जाएगी न, अपने आप बातें समझ में आती जाएँगी, क्योंकि स्वच्छ बुद्धि में ही ये बैठेगा । जिसकी बुद्धि स्वच्छ नहीं है न उसमें ये नॉलेज भी बैठ नहीं सकेगी । ये नॉलेज है बहुत ऊँच की, नॉलेजफुल का । जो नोलेज्फुल गॉड है उसका नॉलेज है तो उसका नॉलेज कोई ऐसी बुद्धि में नहीं । भले आते हैं पतितों को बिठाकर के पावन बनाने के लिए परंतु पतित भी जो उनके बच्चे बनेंगे ना, जो उनके बनेंगे उन्हों को । तो उन्हों को कहते हैं कि बैठेंगे, जो बनेंगे नहीं तो कभी बैठेंगे नहीं । तो मेरे बनेंगे तो ऐसी पतित आत्माएं भी ऐसे ज्ञान से पावन बनती हैं । तो इसीलिए कहते हैं पहले मेरे तो बनो, मेरे में तो पहले विश्वास रखो । अगर विश्वास ही ना होगा तो मेरे से प्राप्ति क्या करेंगे इसीलिए कहते हैं मेरे बन करके मेरे द्वारा फिर जो प्राप्ति होती है उसको ग्रहण करते जाएंगे, प्रैक्टिकल जीवन बनाते रहेंगे तो यह सभी चीजें अच्छी तरह से बुद्धि में रखकर के अपने भी उन्नति करनी है और दूसरों की भी उन्नति करनी है । तो करनी है दूसरों की ऐसे भी नहीं, यह भी दान करना है । दूसरों की सेवा करने से सेवा का फल होता है ना । मनुष्य ये क्यों जनता की सेवा करते हैं या कोई रोगियों की सेवा गरीबों की सेवा क्यों करते हैं । सेवा का फल होता है ना । तो ये भी हमारी सेवा का भी हमारे में होना चाहिए की दूसरों को ये सच्चा मार्ग बतलाएं, सच्चा रास्ता दें । तो ये सेवा सबसे श्रेष्ठ हैं, तो ये सेवा करने का भी सौख होना चाहिए न । इस सेवा का भी फल है, इससे मिलता है । एक हम अपना पुरुषार्थ करते हैं तो हम बनते हैं फिर सेवा करते हैं दूसरों को बनाते हैं फिर उसका भी फल हमको मिलता है । तो ये सभी अपने में जमा करने की चीजें हैं ना तरीके अपने को और और आगे धनवान अथवा ऊँच बनाने का तो ऐसा बनने के लिए पुरुषार्थ रखने का ही चाहिए । और आएगा, दिल में ऑटोमेटिक आएगा, जिसको जो चीज अच्छी मिलती है तो जरूर आएगा दूसरों को दें । ये बिचारा दु:खी है । हम तो जानते हैं न सारी दुनिया दु:खी है । भले कोई कितना भी अपने को सुखी समझे लकिन हम जानते हैं कि उस बिचारे को सुख का पता ही नहीं है कि सुख क्या चीज है । यह बेचारा जैसे वह होते हैं ना, जैसे कुत्ता होता है ना तो उस बेचारे को हड्डी मिलती है ना, तो वो उस हड्डी को समझता है कि बहुत माल मिला है तो खाता जाता है । तो जब खाता जाता है तो हड्डी घुसती है ना, लगती है तो अपना ही खून वो खाता रहता है लेकिन वो समझता है मुझे हड्डी मिली है न, उसको खाता रहता है बड़ा मजा है, मजे से खाता रहता है लेकिन अपना ही ख़ून करता है वह पता नहीं चलता है । यह मिसाल देते हैं कुत्ते का । तो वो हड्डी खाते हैं तो उसको हड्डी लगती है अपने मुख से उनका ही खून निकलता है वो चूसता जाता है तो वो समझता है हमको हड्डी मिली है तो ये भी दुनिया वाले समझते हैं ये जो हमको सुख मिला है न, है हड्डी, है नहीं कुछ उसमें परन्तु वो समझते हैं बस हमको सुख मिला है परन्तु हम तो जानते हैं न की वो अपना ही जैसे उससे और ही दु:खी हो रहे हैं और ही अपने को खराब कर रहे हैं इसीलिए हम तो जानते हैं न तो उसको फिर छुड़ाना है कि अरे भाई तुम अपना खराब कर रहे हो इसीलिए ये अपना और ही हानि कर रहे हो । ये तुम्हारा सुख नहीं है ये हानि है । तो हम तो जानते हैं न तो हमारा फर्स्ट धर्म है उसको उससे छुड़ाना । हम जो देखते हैं कि वह अपना हानि कर रहा है उनको पता नहीं लगता है वह अपनी हानि में ही खुश है । वह समझते हैं हम बहुत ही सुखी हैं । हमको कोई दरकार नहीं है तो हम तो भले उस समय थोड़े वो देखो जैसे कई पेशेंट होते हैं न, वो डॉक्टर्स से अपनी दवाई कराने से डरते हैं, ऑपरेशन कराने से डरते हैं लेकिन डॉक्टर तो जानता है ना कि बेचारे की ऑपरेशन ना किया जाए तो उसकी लाइफ चली जाएगी तो वह किसी ना किसी तरीके से जो अच्छे होते हैं वो कोशिश रखेंगे कि नहीं, बिचारे का किसी न किसी तरीके से जान बच जाए । माँ भी होती है न बच्चे को दवा पिलाती है तो बच्चा तो चिल्लाएगा कड़वी दवा पीने में परंतु वह नाक बंद करके भी दवा मुंह में डालेगी तो फायदा है ना । तो हम अभी जगत के बड़े जैसे हमारे से अभी जगत रचता है, भले बाबा हमको रचता है तो हम भी फिर करें हमारा काम है । कोई नही दवाई लेते हैं ना तो जैसे कोई मां भी होती है ना तो वो कहेगी कि नहीं बच्चे का इसमें कल्याण है तो हमको भी कोशिश करनी चाहिए । उसमें अभिमान नहीं होना चाहिए जैसे बच्चा होता है ना वो लात भी मारेगा, होता है ना मां दवाई पिलाती है तो वह लात भी मारेगा, हाथ भी करेंगे ऐसे-ऐसे तो कोई लात भी लगाएंगे, ऐसे भी करेंगे, कोई गाली भी देंगे परन्तु हमको वो इन्सल्ट नहीं समझनी चाहिए परन्तु ऐसे भी नहीं किसी को नाक पकड़ के दो । ये हम समझाते हैं क्योंकि कई डरते हैं यहाँ । वो समझते हैं, कैसा श्री राम ? श्री राम डरता है कोई इन्सल्ट करते हैं ऐसे करते हैं तो । तो इसमें देह अभिमान की बात नहीं है । नहीं, इसमें तो हमारा काम है जैसे माँ होती है, देखा है कभी, बच्चे होते हैं ना तो वो दवाई लेने में बहुत ऐसे-ऐसे होते हैं फिर मां-बाप जो होते हैं ना वो देते है । तो देख-देख करके देना है । ऐसे को भी नहीं दो जो कोई तिरस्कार करे ज्ञान का । नहीं, समझो भाई उठाने जैसा है, परंतु पहले इसको थोड़ा थोड़ा ऐसा लगता है परंतु ये उठाने जैसा है उसको थोड़ा तरीके से देना चाहिए तो वो कहते हैं तिरस्कार भी नहीं कराओ । ऐसे भी नहीं है जो ऐसे को दो जो ज्ञान का तिरस्कार कराए । उसका दोष फिर तेरे सिर पर चढ़ेगा । तो तिरस्कार भी नहीं करना है देना भी है इसलिए युक्ति से चलना है, समझा! तो इन दोनों बातों को समझना है । यह दोनों बातों की ही खबरदारी है । ऐसे भी नहीं देह अभिमान में अपने को डरना है । अपने को भी देह अभिमान में डरना भी नहीं है और तिरस्कार भी नहीं कराना है । दोनों बातों को संभाल करके सर्विस में रहना है, चलना है तो यह सभी चीजें समझते अपना बनाते अपना पुरुषार्थ करते चलना है, इनको कहेंगे पुरुषार्थी बाकी ऐसे नहीं बस समझ लिया बाबा आया है, हम बाबा के हैं, हम आत्मा है वह परमात्मा है, यह चक्र ऐसे घूमता है बस हमको ज्ञान है, ऐसा नहीं है । ऐसा समझ के बस अपने को ज्ञानी समझ के बैठ जाओ । इसी पर मिसाल है हम कहते हैं सिंधी में ऐसे कहते हैं आप लोगों में भी कुछ ऐसा होगा कुए लदी डेग गारी आव पसारी परन्तु आप की भाषा में कहते हैं कुछ । वो चूहा होता है न, उसका एक मिसाल देते हैं । एक कहानी है कि चूहे को एक हल्दी का, हल्दी होती है ना सब्जी में डालते हैं, चूहे को एक हल्दी की गांठ मिली तो उसने समझा कि मैं भी बड़ा दुकान वाला हो गया हूँ, दुकान वाला हो गया हूँ तो उसको थोड़ा सा मिला तो उसने समझा कि मैं सारा दुकान वाला हो गया । तो ऐसा नहीं है कि थोड़ा मिला है तो समझना है हाँ अब हम बस हो गए यह मिसाल है । ऐसे मिसाल आप लोगों में भी होगा लेकिन हमको भाषा नहीं आती है ना, तभी हम आपकी भाषा में कुछ नहीं बोल सकते हैं । तो यह सभी बातें हैं तो यह सभी बातों को समझ कर के अपना पुरुषार्थ रखने का है । तो ऐसे-ऐसे रखते रहेंगे और शौक भी रखते रहेंगे अपना जीवन भी अच्छा करेंगे दूसरों का भी अच्छा करेंगे तो जरूर है कि दूसरों की आशीर्वाद मिलेंगी जो बनेगा जिसको सुख मिलेगा । देखो आप लोगों के जीवन में शांति और सुख आया है तो ऑटोमेटिक मन से दुआएं निकलती हैं देखो हमर जीवन कौन बनाने वाला है तो ऑटोमेटिक उसके प्रति हमारी शुभ इच्छाएं अथवा शुभ भावनाएं उठती हैं । ये ऑटोमेटिक होता ही है तो यह भी चीज ऐसे ही है । जितना-जितना हम दूसरों को बनाएंगे उसकी शुभकामनाएं और शुभ इच्छाएं हमको भी उनकी मदद मिलती है तो ये ऑटोमेटिक है । इसमें कोई ऐसे नहीं किसी से दया मांगने की है या कृपा मांगने की है या दया करने की है या कृपा वह तो एक आर्टिफीसिअल तरीका बना लिया है ऐसा दया कृपा ब्लेस ब्लेस्सिंग्स । यह ब्लेस करना है ये ब्लेस ऐसी ऐसी थोड़ी होती है । नहीं, ब्लेस तो प्रैक्टिकल है ना जो हम कर्म बनाते हैं और जो करेंगे उसका ब्लेसिंग हो ही जाता है । बुरा करेंगे तो बुरा होगा अच्छा करेंगे उसका फिर अच्छा होगा । वह समझते हैं कि ऑटोमेटिक होती है परन्तु ये तो एक भक्ति मार्ग का आडम्बर जैसे वो आया पॉप भाई ब्लेस किया सबको ऐसे ऐसे करता था, वो खुश होते थे, भाई ऐसे ऐसे किया परन्तु ये एक रिवाज भक्ति मार्ग का वास्तव में जो अच्छे कर्म करते हैं उसका ब्लेस्सिंग पाते ही हैं । उसको ऑटोमेटिक ब्लेस होती है परन्तु ये कॉमन चल गया है न तो इसमें बहुत मनुष्य ठहर गए हैं । वो समझेंगे ऐसे करेंगे तो हमारा कुछ भला होगा । भले भावना अनुसार जब पत्थर से भी कुछ मिल जाता है तो कुछ ऐसा करेगा मनुष्य तो मनुष्य से भी कुछ हो सकता है परन्तु अल्पकाल के लिए न । भाई चलो ऐसे-ऐसे किया । चलो पॉप आया, कोई रोगी को ऐसा किया वो थोड़ा ठीक हो गया तो समझेंगे नहीं भाई ये देखो इसके ऐसे करने से हुआ हैं तो वो हुई अल्पकाल की भावना । उसकी भावना रही न की भाई ये भगवान् है कुछ तो भावना रखी तो उसकी भावना का रिटर्न फिर भी कुछ मिल भी जाए परन्तु अल्पकाल में फिर कोई रोग होगा, फिर कुछ और बात होंगी फिर क्या हुआ भला क्या हुआ । चलो थोड़े समय के लिए शफा हुई फिर और कोई बिमारी हो जाएगी या कोई और बात होगी फिर? ये तो है हम सदा के लिए इन बातों से छूटने का यत्न लेते हैं इसीलिए उसको अल्पकाल यह सदा काल । यह है फर्क । इन बातों को समझ करके और अपना पुरुषार्थ आगे बढ़ाने का है । तो ऐसे पुरुषार्थ में लगे रहना है । इसको कहेंगे पुरुषार्थ । बाकी यह ज्ञान अभी बुद्धि में आया, खाली अभी घर बैठ जाना है ऐसा नहीं अभी देखो हम भी अट्ठाईस बरस से समझते रहते हैं जरूर कोई पढ़ाई है दिन-ब-दिन रोज सभी पढ़ते हैं, नहीं तो हमने अठाईस बीस बरस से पढ़ा है क्या ज्ञान नहीं बुद्धि में आया है क्या, परंतु अभी तक भी कहते हैं ना सुनना है, अभी तक सुनते हैं देखो । देखते हैं रोज के वर्संस सुनते हैं । सुनते हैं ना तो ज्ञान स्नान करना रोज का यह भी अच्छा है । इससे बुद्धि रिफ्रेश होती है और फिर इसमें बुद्धि अच्छी चलती है तो फिर फालतू संकल्प इधर उधर के नहीं आते हैं और अपने कर्मों के ऊपर भी अच्छे संकल्प रहते हैं तो कर्म भी अच्छे रहते हैं । कर्म अच्छे हैं तो वो भी अच्छा है तो सब अच्छे-अच्छे होते चलते है तो यह हेल्प है ना । तो उसी हेल्प को पकड़ते चलना चाहिए । ऐसा नहीं है अभी हमको हेल्प की दरकार नहीं है, हम अपने आप कर लेंगे । कितना चलेंगे? दस दिन बैठ कर देखो लो घर में क्या हाल हो जाता है । वो हो जाएगा सोडा वाटर । वो सोडा वाटर होता है न फुर्र्रर्रर्र.... आता भी जल्दी है.... तो चढ़ाएंगे एकदम फिर सोडा खोलेंगे तो एकदम फुस्स्शह्ह..,.. गीला हो जाएगा पानी हो जाएंगा एकदम । फिर ये जो नशा चढ़ा है ना वह फिर पानी हो जाएगा एकदम तो इसको कहेंगे सोडा वाटर । तो ऐसा तो नहीं है ना सोडा वाटर वाला नशा नहीं चढ़ाना है फिर चढ़े भी फुस्श और उतरे तो एकदम तो अपना नशा कायम रखने का है अच्छी तरह से तो ऐसा अपना पुरुषार्थ कायम रखने का है । अच्छा, बोलते नहीं है । चिट चैट अच्छी लगती है ना । फिर याद करेंगे ना, भूल तो नहीं जाएँगी ना । तुम किसी से नाराज तो नहीं होती ना । क्या नाराज होंगी हाँ, अभी नाराजी के ऊपर राजी करने वाला मिला । अभी उनके ऊपर नाराज रहें तो कहाँ जाएंगे, किधर के रहेंगे, कोई ठिकाना नहीं इसीलिए जिसका ठिकाना है, जो ठिकाना देने वाला है उसको तो पकड़ के रखो । और पकड़ रखने का मतलब यह नहीं इसको हमने पकड़ रखा है तो इसके ऊपर हम नाराज रहें यह पकड़ना नहीं है । हम इसके ऊपर राजी रहें वो तब ही है पकड़ा हुआ । ये कौन है? ये भी तो उनका संतान है न । तो ऐसे नहीं इसके ऊपर हम नाराज हैं, उसके ऊपर थोड़ी हम नाराज हैं, ऐसे ठग भी बहुत हैं यहाँ चलते हैं । वो समझते हैं हम इसके ऊपर नाराज हैं न, उसको तो हमने पकड़ रखा है न, उसको तो हम याद करते हैं न । याद ही नहीं है, इसके ऊपर नाराज हो तो ये अंडरस्टुड है । नाराजगी शो की उसके ऊपर नाराज क्योंकि अगर वो याद होता तो उसके ऊपर नाराज क्यूँ । ये दो गाली दी न तो भी इसके ऊपर हम नाराज नहीं, इसके ऊपर ही हम राजी हैं तो अंडरस्टुड है की हमको वो याद है तो उसकी याद हमको इससे पता लगेगा । ऐसा नहीं है की इसके ऊपर हम नाराज हैं लेकिन उसके ऊपर तो हम राजी हैं वो तो हमारा है ही न, ऐसे ठग बहुत हैं यहाँ । ये ठगते हैं अपने को ये सूक्ष्म बातें हैं बहुत तो ऐसे ही कई समझते हैं हम बाबा से थोड़ी रूठते हैं हम दादी से रूठते हैं । नहीं, हम ऐसे ही कह रहे हैं ऐसे ही, नाम तो किसका लेना पडेगा ना जरूर । जैसे कहेंगे न हनाधि के एक सिंधी में बात है वो कहते हैं कहो लड़की को सीखेंगी बहु । ठीक है ऐसी कहावत होती है । बहु नहीं सुनती है क्योंकि दूसरे घर की है न । बाहर के घर की है वो नहीं सुन सकेगी । उसको देह अभिमान है । वो अपनी लड़की है तो उसको कुछ भी लगाओ वो सुन लेगी । तो कहते हैं कहो लड़की को सीखेंगी बहू ऐसी कहावते हैं । तो अच्छा, कुछ भी है चलना है । अच्छा आओ, टोली लो, टोली लो, आओ टोली दें । तुमको डबल देंगे । आज मम्मा के हाथ से, तुमको देखो मम्मा ने दिया है । अच्छा, शाबाश! अभी किसी ने टोली नहीं खिलाया, बाकी थोड़े दिन है देखो रह न जाए कोई । अच्छा, यह गोपीनाथ देखना, यह हाथ उठाते हो । ये हाथ कहाँ उठाया? धर्मराज के दरबार में खड़ा हो गया तेरा । बाबा कहेगा तू ही था ना, तूने हाथ उठाया था । ठीक है ना । चलना है, निभाना है । आओ, मैदान पर । अभी तो जोरू से मिले हो, ज्ञान के बाद मिलना है, परीक्षा है पीछे । (भाई:- यह बात बोलना है) यह बात बोलना है ? फिर ना मालूम तुमको वह कुछ बोले फिर तू उनका हो जावे (भाई:- नहीं, नहीं, नहीं होगा नहीं होगा ) नहीं होगा? पक्का ? अपना बनाएगा उसको? तू नहीं बनेगा उसका? देखेंगे अभी यह रंग चढ़ाता है, भाई कहता है हिम्मत रखता है हम तो शुभ भावना रखेंगे न । हम क्यों कहे कि नहीं । हम कहेंगे हाँ और ही हिम्मत बढ़ाएंगे । हमारा फर्ज है । अगर अपना कुछ कमजोरी करेगा तो फिर इसकी रेस्पोंसिब्लिटी हो जाएगी परंतु दिखाई अच्छा पड़ता है । अभी के चार्ट अनुसार दिखाई अच्छा पड़ता है । हिम्मतवान है थोड़ा, हिम्मत का रखता जरूर है । शाबाश, दो । शिव बाबा को याद करो और तुम भी मैं कौन हूँ, आपसे पूछते हैं कि आपको पता लगा है कि मैं कौन हूँ । मैं कौन हूँ । मैं शिव बाबा का बच्चा अच्छा । शिव बाबा का बच्चा और सच्चा । बच्चा-बच्चा मीन्स सच्चा, पक्का, कच्चा नहीं । शाबाश! शाबाश! ऐसे अगर निकलते रहें देखो एक भी निकले ऐसे और निकले सच्चे तो कहेंगे न अच्छा । अभी देखेंगे, मम्मा आई है उसके बाद जो आए हैं देखो हमारे ये श्यामसुंदर और जो-जो हैं कितने नाम लें । ये राजपूत और भी हैं देखो ये हमारा अभी आता है, इसका क्या नाम था, हमारा ये लक्ष्मण । देखो अभी लक्ष्मण । तो दादी तो नाम नहीं याद रखती है । तुमको अपने स्टूडेंट का नाम ध्यान में रखना चाहिए । देखो वो बोलती है, तुम भी बोलो न, उसको बुलाओ टोली वोली खिलाओ, सब खातिरी करो अच्छी तरह से । पूँछो अच्छे से तो पता तो चले न हाँ कौन है । इतना तो लेना चाहिए जो संभाल भी सको न । संभाल नहीं सकेगी तो काम कैसे चलेगा । ऐसे नहीं हमारे पीछे बिचारों को इधर उधर करदो हाँ । नहीं, हम इससे बड़े चिट-चेट करते हैं । अच्छी है आपकी दादी और ये भी दादी दादी सुन्दरी ये दोनों दादियाँ अच्छी हैं न ? ये भी दादियाँ, ये दादा सब अच्छा, देखो तभी हमें यहाँ ढाई मास हो गये, रह गये । नहीं तो हम कहाँ नहीं इतना रहते हैं । हाँ, ये आप लोगों के प्रेम में हम फंस गए (एक बहन:- मम्मा ये आपकी प्रजा है या दादी की प्रजा है ) अरे! किसकी प्रजा, ये सब बाबा की प्रजा है, हम सब बाबा के हम भी उसके हैं तो फिर हमारा क्या है । हम खुद ही उसके हैं (बहन – मम्मा आपके ही द्वारा फाउंडेशन लगा न ये गोपीनाथ और इनका ) अरे निमित्त कोई बनते हैं लेकिन है तो सबके पीछे बाबा न, बड़ाई तो बाबा की है न । अच्छा शाबाश, ये इनका है खुश मिजाज बच्चा है । मिजाज इसका खुश अच्छा है । ऐसे मीठे बच्चे रेस कर सकते हैं । हाँ, फिर आना मधुबन, जोरू को ले करके आना कम्पलीट उसको बना करके । फिर कहना मम्मा देखो हम जीते खड़े हैं ऐसा आ करके दिखाना । मम्मा जीते खड़े हैं देखो, बहादुर हो कर के देखो आग और कापूस पवित्र रह रहे हैं । जीते खड़े हैं ऐसा हिम्मत । शाबाश! आयेंगे माया थोड़ा करती हैं, विघ्न आएँगे परन्तु उसकी परवाह नहीं । जो खड़े हैं न अच्छे, वो कहेंगे रे इनको तो अभी समझ लिया है । अभी इसको ठीक करके रहना है । शाबाश! फिर भी कोई मुश्किल पड़े, कोई ऐसी डिफिकल्ट बात आवे, चिट्ठी डालना, राय लेना फिर उसमें तुमको सब डायरेक्संस मिलेंगे । सबके लिए है, किसी एक के लिए नहीं ये सबके लिए है । कोई भी बात में मूंझो, चिट्ठी पत्र लिखो और चिट्ठी पत्र हफ्ते में लिखना ही चाहिए । ओके हैं तो पता चलेगा बच्चे जीते हैं, चल रहे हैं । तो कुछ कनेक्शन में आना चाहिए न । आपको अगर बच्चे का पात्र न आवे तो न फ़िक्र हो जावे कितना दिन हुआ है चिट्ठी नहीं लिखा, न पता क्या है तो हाँ ये फ़िक्र हो जाए । तो यहाँ भी देखो आप किसके बच्चे हो । तो बहुत प्रिय बच्चे हो न । अपने को प्रिय समझते हो न । तो हाँ फिर नशा रखो तो आप लोगों की कितना चिंता रहती है की बच्चे जीते हैं, पता नहीं कोई माया तो नहीं । किसी ने न पता संभाल की, न की । खुद माया भी आ जाएगी तो दादी नाक से पकड़ लेगी ।