मम्मा मुरली मधुबन           

 ज्ञान क्या है और ज्ञानदाता कौन है

 


रिकॉर्ड:
रात भर का है मेहमान अंधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा……

ओम शांति । यह रोज अंधेरा और सवेरा अर्थात रात और दिन होता है वह तो सब देखते हैं जानते हैं । लेकिन इस सृष्टि चक्र का भी, हमारे अनेक जन्मों का भी एक रात और एक दिन का चक्र है जेनरेशंस का तो उसको भी समझना चाहिए । हमारे अनेक जन्मों का रात और दिन का, रात का मतलब ही है हमारी दु:ख के जेनरेशंस और फिर सुख के जेनरेशंस । यह तो गीता में भी है कि शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष, अंधियारा मार्ग और रोशनी मार्ग यह गीता के वर्संस हैं और ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन यह गीता के वर्संस है । तो यह समझना है कि ब्रह्मा की रात और ब्रह्मा का दिन जब पूरा होता है एक रात एक दिन ब्रह्मा का तो एक कल्प बनता है और ऐसे ही कहें कि यह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष पूरा होता है तो उसको एक कल्प कहा जाता है तो यह सभी बातें समझने की है । जैसे यह चार युग हैं तो युग किसको कहा जाता है साढ़े बारह सौ वर्ष एक युग का टाइम है और इसी तरह से चार युग को मिलाकर के 5000 वर्ष का एक कल्प है तो चार युगों को मिलाकर के पूरा होने में 5000 वर्ष लगते हैं जिसका एक कल्प बनता है । इसमें दो युग दिन में दो युग रात में तो सभी युगों का ईक्वल टाइम है । ऐसा नहीं कहेंगे कि सतयुग का ज्यादा टाइम है, जैसे कई शास्त्रकार समझते हैं कि सतयुग की आयु ज्यादा है, त्रेता की कुछ उससे कम, द्वापर की उससे कुछ कम और फिर कलयुग की उससे कम, परंतु ऐसा नहीं है । सभी युगों का जो टाइम है वो एक ही है । तो सतयुग भी साढ़े बारह सौ वर्ष तो त्रेता भी साढ़े बारह सौ वर्ष, चारों युगों में हर एक युग साढ़े बारह सौ वर्ष का है । इसी हिसाब से 5000 वर्ष का तो ढाई हजार वर्ष में एक दिन और ढाई हजार वर्ष में रात । अभी यह जो टाइम है इस समय प्रेजेंट यह कौन सा है, इसको क्या कहेंगे । इस को कहा जाएगा कृष्ण पक्ष अथवा ब्रह्मा की रात । अभी ब्रह्मा की रात पूरी होती है अभी फिर ब्रह्मा का दिन अर्थात हमारी सुख की जेनरेशंस चलती है । तो इन्हीं बातों को समझना है कि यह हमारे सृष्टि चक्र का भी कैसा नियम है और किस तरह से चलता है तो यह रात और दिन यानी दो युग दिन में दो युग रात में । अभी दिन भी पूरा हुआ और रात भी अभी पूरे होने पर है फिर रात के बाद फिर दिन आना है । ऐसे नहीं है फिर खत्म प्रलय हो जाए, फिर रात के बाद दिन दिन के बाद रात यह फिर चलने का है । तो अभी रात पूरी हो करके अभी दिन आने का है । दिन माना हमारे सुख का समय जन्म जन्मांतर हमारा सुख का अर्थात हमारी सुख की जेनरेशंस तो अभी यह है संगम तो अभी इस प्रेजेंट टाइम को संगम कहेंगे । ये संगम युग है जिसको पांचवा युग भी कहा जाता है । इस युग का फिर महत्व है । इसकी आयु छोटी है यह साढ़े बारह सौ वर्ष नहीं चलने का है । संगम का पीरियड, टाइम थोड़ा है । इसको युग ना कहना अच्छा है परंतु वो गीता में लगाया है ना युगे युगे मैं आता हूँ तो कई शायद यह समझते हैं की सतयुगे, त्रेतायुगे, द्वापरयुगे, कलयुगे सभी युगों में आता है परमात्मा परंतु ऐसा नहीं है । युगे युगे आता हूँ तो मतलब है सभी युगों में आता हूँ नहीं, युगे युगे का मतलब ही है यह संगम के टाइम पर यानि यह संगम जब-जब आता है क्योंकि यह संगम का टाइम फिर-फिर रिपीट हो करके आता है ना इसीलिए युगे-युगे कहा । परन्तु युगे-युगे ऐसा दो बार युगे कहने का मतलब यह नहीं है कि सभी युगों में आता है लेकिन संगमयुगे यानि जब-जब ये कल्प पूरा होकर के कल्प का अंत और आदि का टाइम आता है तब-तक मैं आता हूँ तो कहने में तो आएगा ना की जब-जब, जैसे कहें कि रात पूरी होकर के दिन आता है फिर दिन पूरा होकर के रात आती है तो कहने में आएगा ना कि जब-जब रात आती है क्योंकि फिर-फिर रिपीट होती है ना तो कहने में तो आएगा न जब-जब रात आती है तब-तब ऐसा होता है कहने में आता है । इसी तरह से फिर-फिर रिपीट हो करके यह टाइम आता है इसीलिए उसको कहा हुआ है कि जब-जब यह युग आता है संगम का, तब-तब उसी संगम युगे-युगे आता हूँ तो इन्हीं सभी बातों को भी समझना है । तो अभी यह है संगम । चार युग तो कॉमन सब बता भी देंगे, किसी से अगर पूछा जाए कि कितने युग है तो बता भी देंगे भई सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग लेकिन यह पाँचवा युग जिसको संगम टाइम कहा जाता है, यह कोई नहीं जानता है । इसको परमात्मा आ करके अपना खास टाइम बतलाता है कि मेरा टाइम आने का जो है वह रात का अंत और दिन का आरंभ होने का जब टाइम है तभी मैं आता हूँ । तो अभी यह रात और दिन के संगम का टाइम है ये टाइम अभी जो प्रेजेंट चल रहा है इसीलिए परमात्मा कहते हैं इस टाइम पर आकर के अभी ये अंधियारे का टाइम ख़त्म करता हूँ और फिर दिन का टाइम आगे जेनरेशंस में चलने का है । फिर उसके लिए तुम्हारे कर्म श्रेष्ठ बनें तभी तुम अपने श्रेष्ठ कर्मों की प्रालब्ध अभी उस दिन में यानि सुख के दिनों में प्राप्त करो तो उसके लिए फिर आ करके यह कर्म श्रेष्ठ की सेपलिंग लगाते हैं अर्थात हमारे में प्योरिटी धारण कराते है अर्थात हमारे कर्म को ऊँच कराते हैं । हमारे कर्म को ऊँच कराने के लिए हमको प्योरिटी चाहिए । बिना प्यूरिटी के हमारे कर्म जो हैं न वो स्वच्छ नहीं हो सकते । स्वच्छ का मतलब यह नहीं है कि नहाया धोया अथवा सच बोलते हैं, झूठ नहीं बोलते हैं इसी से हमारी यह स्वच्छता है । हमको सच का भी नॉलेज चाहिए ना । सच क्या है उसका भी ज्ञान चाहिए । सच यह नहीं है कि हाँ बस हम जानते हैं की यह परमात्मा है, यह संसार है यह नहीं । परमात्मा यथार्थ क्या है, हम भी यथार्थ क्या है, हमारे कर्मों का यह चक्र यथार्थ कैसे चलता है तो इन यथार्थ बातों को जानना जो जैसी चीज है, उसको यथार्थ समझना उसको कहा जाता है सच को जानना । जब तक मनुष्य यथार्थ बात को नहीं जानते हैं तो उनको सच थोड़े ही कहेंगे । तो यह सभी चीजों को समझने का है इसीलिए यथार्थ नॉलेज सच की नॉलेज सिवाय परमात्मा के और कोई दे नहीं सकता है इसीलिए तो कहते हैं न की गॉड इस ट्रुथ क्योंकि ट्रुथ को जानने वाला वह है । उनके सिवाय और कोई सत्यता जान ही नहीं सकता है इसीलिए बताता भी वही है कि सत्यता क्या है, मैं कौन हूँ, तुम मनुष्य क्या हो, तुम मनुष्यों के कर्मों का यह चक्र कैसा चलता है तो यह सभी चीजें समझने की है इसीलिए अभी परमात्मा के द्वारा जिन बातों की रोशनी मिली है कि हम कौन हैं, अभी हमारा यह कौन सा टाइम है वह अभी हम समझ करके फिर दूसरों को अपने अनुभव के आधार से समझाते हैं कि अभी यह टाइम कौन सा है । इस टाइम के मुताबिक अभी क्या करना चाहिए क्योंकि हम तो यह बातें भूल गए हैं ना । यही हमारे से भूल हुई है । इसी भूल के कारण ही हम दु:खी हुए हैं । हम नहीं जानते हैं, अपने को भी नहीं जानते हैं, अपने पिता को भी नहीं जानते हैं और हमारा यह सृष्टि का चक्र दिन और रात का कैसे चलता है इसको भी नहीं जानते हैं इसीलिए हम दु:खी हुए हैं । अगर अभी जानते हैं अपने कर्मों को अच्छा बनाते हैं, जानने से ही हमारे कर्म अच्छे बनते हैं ना । नहीं जानने से हमारे कर्म अच्छे नहीं थे तो यह सभी चीजों को समझना है इसीलिए बाप कहते हैं कि इनको जानने से ही तुम्हारे कर्म अच्छे होंगे और उन अच्छे कर्मों की फिर प्रालब्ध भी जरूर है की अच्छी प्राप्ति रहेगी । तो अभी देखो यह है वह ज्ञान । बाकी ज्ञान का कोई मतलब यह नहीं है कि उसके लिए हम बैठकर के चार वेद पढ़ें, अठारह पुराण पढ़ें, ये सभी शास्त्र, ग्रंथ, वेद पढ़े तभी हम ज्ञानी बने । नहीं, ज्ञान के लिए कोई शास्त्र पढ़कर के ज्ञानी बनना नहीं । ज्ञान जो चीज है वह यह है की हमको यथार्थ अपनी और अपने पिता की और अपने सारे कर्मगति इन सभी बातों की नॉलेज चाहिए ना तो इसकी नॉलेज सिवाय परमात्मा के और कोई दे नहीं सकता है और वह बाप देखो बाप जो बैठ समझाते हैं बड़ी सिंपल । वो थोड़ी कहते हैं इतने शास्त्र पढो, ग्रन्थ पढो तभी तुमको ज्ञान प्राप्त होगा, वो तो कहते हैं ज्ञान क्या है- मैं बाप हूँ तुम बच्चे हो ये खाली समझना है और फिर जैसा बाप है वैसा ही फिर बच्चों को बनना है । मेरे द्वारा तुमको क्या प्राप्ति करनी है, उसको समझ करके उसमें चलना है इसमें डिफिकल्टी क्या है, या इसके लिए बैठ करके कोई बहुत शास्त्र या ग्रन्थ करना इनकी क्या बात है । तो कोई डिफिकल्टी नहीं है न, तो यह सभी बैठकर के बाप समझाते हैं कि ज्ञान कोई लंबी चौड़ी चीज नहीं है परंतु भूले हो न, भूल हो गई है तुम्हारे से । तुम मेरे से रिलेशन को भूल गए हो, और अपने को भी भुला दिया है इसीलिए अपने से जो भूल हुई है उसको करेक्ट करो बस ज्ञान इतना ही है अपनी भूल को करेक्ट करना । तो भूल हुई है एक । एक ही भूल हुई है जिससे हम सारे देखो दु:खी हो गए हैं और भूल देखो है कितनी बड़ी से बड़ी । अपने को भूल जाए कोई, व्हाट एम आई, किसी से पूछे तुम कौन हो, वो कहे हमको पता ही नहीं हैं तो उसको क्या कहा जाए । वैसे तो किसी से भी पूछो भाई तुम कौन हो तो कहेंगे हाँ देखते नहीं हो, मनुष्य हैं । हम कौन हैं, तो क्या हैं मनुष्य हैं परंतु नहीं, मनुष्य क्या ? मनुष्य किसको कहते हो? कौन मनुष्य, ये कहता कौन है, तो यह सभी चीजें यथार्थ समझनी चाहिए न । ऐसे तो देखो मनुष्य मरता है बॉडी पड़ी है फिर कौन सी चीज निकल गई, मनुष्य क्या है मनुष्य वह जो निकल गया या यह जो बॉडी पड़ी है, किसको कहेंगे । तो कौन है क्या है इन सभी बातों की यथार्थ नॉलेज चाहिए ना । बाकी ऐसे तो सब कहेंगे हम मनुष्य है, देखते नहीं हो मनुष्य हैं, परन्तु मनुष्य का इतना ही तो परिचय नहीं है ना । परिचय हमको अपना यथार्थ होना चाहिए कि हम क्या चीज हैं, हम कौन हैं तो अपनी चीज अपने को पता होने से कि मैं कौन हूँ तो हमको अपने कर्तव्य और अपने कर्मों का भी यथार्थ नॉलेज आएगा कि हम कौन हैं । इसीलिए बाप बैठकर के अभी समझाते हैं की असूल में तुम कौन सी चीज हो और तुम जो चीज हो उसकी पोजीशन कितनी ऊँची है । फर्स्ट आत्मा प्योर है ना, तो भले आत्मा हो परन्तु फर्स्ट आत्मा प्योर है, पीछे इम्प्योर हुई है । ऐसे नहीं है पहले इम्प्योर है पीछे प्योर हुई है नहीं, पहले प्योर पीछे इम्प्योर हुई है अभी फिर इम्प्योर से फिर प्योर बनने का है इसीलिए इंप्योरिटी उसके ऊपर चढ़ी है । ओरिजिनल आत्मा की स्टेज प्योर है, ये इंप्योरिटी पीछे चढ़ी है इसीलिए अभी उस इंप्योरिटी को निकालो तो फिर प्योर बनो । तो प्योर बनने से फिर तुम सुख को प्राप्त करेंगे । तो यह ज्ञान आने से ही तो हमारे कर्मों में परिवर्तन आएगा ना । यह नॉलेज से होगा ना । अभी हम जानेंगे ही नहीं कि हम कौन हैं हमारा क्या कर्तव्य है तो कैसे पता रहेगा । अभी जिस-जिस की जो ड्यूटी है कि भई हमारा क्या काम है, क्या है, उसका भी समझ होगी तभी तो करेंगे ना । नॉलेज, कि भई हम मिनिस्टर हैं हमारा यह ड्यूटी है । हम गवर्नर हैं , हमारा क्या काम है, हमको कौन सा काम करना है, हमको क्या करना है वह हरेक को अपना अपना नॉलेज होता है ना । डॉक्टर है उसको पता है मैं डॉक्टर हूँ मुझे ये जिस्म का काटना कूटना या जो भी कुछ है उसको बनाना है, उसका इलाज देना है तो वो सबका अपना-अपना काम है । तो व्हाट ऍम आई मेरा क्या कर्तव्य है वो अपने का भी तो मालूम होना चाहिए ना । वह मालूम ही ना हो बस चलते ही रहो तो उससे मनुष्य क्या कर सकेगा । मनुष्य सिर्फ इतना ही तो नहीं है ना कि मैं डॉक्टर हूँ बस ये मनुष्य है, मैं इंजीनियर हूँ बस इतना ही तो मनुष्य नहीं है ना । नहीं, वास्तविकता में हम कौन हैं, यह सभी बातों को जानना चाहिए ना, इतना ही तो परिचय नहीं है ना यह तो हुआ जिस्मानी परिचय, बाहर का कि भाई मैं डॉक्टर, इंजीनियर बैरिस्टर हूँ । इतना ही तो ऑक्यूपेशन नहीं है ना । हमारा पहला फर्स्ट परिचय की व्हाट एम आई तो सेल्फ की नॉलेज चाहिए ना जिसको सेल्फ रिलाइजेशन कहा जाता है । तो इन सभी बातों की यथार्थ नॉलेज भी होनी चाहिए और उसी की नॉलेज को ही कहा जाएगा ज्ञान और यही ज्ञान न होने के कारण यही भूल है तो यह भूल सारी दुनिया की है । सब इसी बात को भूले हुए हैं । यथार्थ रीति से कोई जानता नहीं है कि हम कौन हैं तो जब यह नहीं जानते कि हम कौन हैं तो करना क्या है यह भी नहीं जानते इसीलिए सबकी रॉन्ग एक्शंस होने के कारण मनुष्य दु:खी और अशांत हैं । इसी का ही कारण है दु:ख अशांति । आज हमारी दुनिया दुःख और अशांति में है यह सिर्फ एक भूल के कारण है । सब भूले हैं, नहीं जानते हैं कि हम हैं क्या, हमें करना क्या है । अभी आकर के बाप यथार्थ रीति से समझा रहे हैं और उसी भूल को करेक्ट करा रहे हैं कि किस तरह से इस भूल को करेक्ट करो और समझ करके अभी उसी पर चलो । तो अभी तो सब जो रोज आते हो इन बातों को सुनते हो और समझते हो उन्हों कि तो बुद्धि में आती है न कि हम क्या हैं, कौन हैं, हमें क्या करना है तो अभी उसी प्रैक्टिस में प्रैक्टिकल चलने का है तभी हमारी प्रैक्टिकल प्रैक्टिस से ही हमारे श्रेष्ठ कर्म बनेंगे । ऐसे नहीं खाली सुनने से होगा । नहीं, आएंगे प्रैक्टिकल एक्शंस को अपने में परिवर्तन में लाएंगे अर्थात प्योरिटी को प्रैक्टिकल में लाएंगे बाकी खाली सुनने से अथवा हमारा टाइम अच्छा पास हुआ या सुनने से हमने कुछ सफलता पाई, नहीं, हम जब तलक अपने एक्शंस में ना लाएं तब तलक हमारे में प्योरिटी आ नहीं सकेगी । तो यह है ही सारा अपने कर्मों के ऊपर आधार रखने की चीज क्योंकि हमारा जो भी बुरा अच्छा बनता है और जिससे हम दु:ख अशांति पाते हैं वह सब कर्मों से है तो हमको फिर लाना भी तो कर्मों में है ना अच्छी को भी हमको अपने कर्मों में लाना है । बाकी हमने सुना तो बस हम अच्छे हो गए ऐसे तो नहीं है ना या कोई देखने से बस हम अब ऐसे हो गए, कोई डॉक्टर को देखने से डॉक्टर नहीं हो जाएगा या सुनने से तो खाली नहीं हो जाएगा ना । प्रैक्टिकल प्रैक्टिस में आएगा तब डॉक्टर बनेगा । खाली बैठकर के लेक्चर्स सुने तो उससे क्या होगा । प्रैक्टिकल में आएगा तभी तो प्रैक्टिकल में वो स्टेज प्राप्त कर सकेगा न तो यह भी चीज ऐसी है । इसको भी प्रैक्टिकल में प्रैक्टिस में लाना होता है इसीलिए ही यहाँ सबसे पूछा जाता है कि हाँ यह समझते हो, प्रैक्टिकल में ले आते हो, उनका प्रेक्टिकल एक्शंस अपने में धारण करते जाते हो । तो देखो ये नॉलेज और ये जो पढ़ाई है इसमें तो जैसे पढ़ाई होती है ना स्कूल में, हर एक बच्चे को देखा जाता है कि बरोबर यह पढता है, इसकी बुद्धि में बैठता है, यह समझता है, प्रैक्टिकल में धारण करता है, तो एक-एक स्टूडेंट को देखा जाता है । ऐसे नहीं खाली आए सुने, नहीं इसीलिए इसको स्कूल कहा जाता है । इसको कॉमन सत्संग नहीं कहा जाता है जैसे कई आए, बस सुना फिर चले गए, किसी ने समझा या ना समझा, वो समझेंगे अच्छा हमने घंटा, आधा घंटा पास किया, हमारा भी अच्छा हो गया और हमने दर्शन भी कर लिया । बस हो गया । ऐसी बातें नहीं है । इससे होता नहीं है कुछ भी । ये एक भावना बहुत काल की बनी आई है न इसीलिए मनुष्य बिचारे बहुत अंधश्रद्धा में चलते रहते हैं । उसको कहेंगे अंधश्रद्धा ब्लाइंड फेथ । परन्तु नहीं, यहाँ तो कोई ब्लाइंड फेथ में नहीं बिठाना है न कि बस इतना ही तुम फेथ रखो दर्शन किया या दो वचन सुना तो काम हो गया नहीं, ब्लाइंड फेथ को निकालना है । अभी अपने को सच-सच जानकर के, रियलिटी को जानकर के उसी रियलिटी में आना है इसीलिए यहाँ प्रैक्टिकल एक्टिविटी के ऊपर सारा मदार है और इसीलिए उसी पर ही जोर दिया जाता है कि अपने एक्शंस को परिवर्तन में लाओ । देखो पूछते हैं ना इसीलिए पूछते हैं कि पवित्रता को धारण करते हो, अपने में परिवर्तन महसूस करते हो । ये फाइव वाइसेस जो है, यह समझते हो कि उसमें चेंज आती जाती है । अगर नहीं आती है तो फिर उसका इलाज लेना चाहिए । वह रिपोर्ट करेगा बताएगा तभी तो पता चलेगा ना । ऐसे नहीं है कि यहाँ बस अपने आप जानी जाननहार है जानते रहेंगे । नहीं, यह पढ़ाई है तो जैसे कोई किसी सब्जेक्ट में कम होता है तो देखो टीचर को उसका पता भी रहेगा ना । वह देखेगा तो हर एक के ऊपर और ऐसा भी है स्टूडेंट्स का भी काम है कि सबको अपना रिपोर्ट देना है कि हमारी क्या वीकनेस है फिर उसको उसके ऊपर सावधानी मिलेगी, शिक्षा मिलेगी और उन्हीं शिक्षाओं में फिर आगे बढ़ते चलेंगे । तो प्रैक्टिकली अपने में देखना चाहिए कि हमारे में चेंज है, नहीं आई है तो समझना चाहिए कि अभी तक हम कहाँ भूले हुए हैं तो फिर उस भूल को करेक्ट करना चाहिए, तभी हम अपना कुछ लाभ जिसको कहें और प्रैक्टिकल लाइफ जिसको बनाना कहें बना सकें तो समझें कि हमने कुछ पाया है । नहीं तो बाकी ऐसे ही नहीं कि बस हाँ बैठने से कुछ हो जाएगा । ये होगा प्रैक्टिकल में आने से और प्रैक्टिकल एक्शंस वाला कोई छिप नहीं सकता है । जो एक्शंस में है अच्छे तो उसका सबूत तो बाहर आता है । उसके एक्शंस कोई छिपने वाली चीज तो नहीं है ना । कोई बुरा करता है तो भी प्रत्यक्ष हो जाता है, अच्छे का अच्छा भी प्रत्यक्ष हो ही जाता है तो इसीलिए अपने सारा प्रैक्टिकल के ऊपर मदार है इसीलिए उस प्रैक्टिकल लाइफ का पूरा अटेंशन रखते और अपने कर्मों को स्वच्छ बनाते चलना है । बाकी तो अभी पता चला है ना भूल कौन सी रही, किस भूल को करेक्ट करना है वह तो अभी बुद्धि में बात आई है । तो जो रोज आते हैं उनको तो इन बातों में कोई मूंझने की बात नहीं रही होगी कि हम कौन हैं, हमारा पिता कौन है हमें बाप से क्या लेना है । एम एंड ऑब्जेक्ट अभी बुद्धि में पूरी है और होनी चाहिए तब तो पुरुषार्थ भी चलेगा न । अगर एम नहीं होगी कि हमको क्या बनना है तो क्या पुरुषार्थ करेंगे तो एम चाहिए । जो कॉमन सत्संग हैं उसमें कोई एम नहीं है । वो समझते हैं खाली जाना है, दो वचन सुनना है, बस उसी से ही काम हो गया । परन्तु नहीं, ये पढ़ाई है, नॉलेज है, जैसे स्कूल में जाते हैं, भाई हमको इंजीनियर बनना है, तो एम है न तो एम पर चल करके हमको वो स्टेटस प्राप्त करने का है । तो सत्संग में कोई एम नहीं है न, खाली समझने हैं इससे हम मुक्त जीवनमुक्त हो जाएंगे । ऐसे सुनते-सुनते या यह शास्त्र ग्रन्थ पढ़ते-पढ़ते बहुत मुक्त हो गए हैं यह समझ बैठे हैं और हम भी हो जाएंगे । हुए या ना हुए या क्या होने का है इन सब बातों का पता होना चाहिए न यथार्थ । तो यह सभी अपनी प्रैक्टिकल लाइफ में परिवर्तन लाना है और प्रैक्टिकल हमारे में वो प्रैक्टिस आती जाती है उससे पता चलेगा ना । हम अपने जीवन से महसूस करते हैं ना कि भई हमारी आगे क्या जीवन थी, अभी क्या जीवन है फर्क आता जाता है तो समझते हैं की हाँ फायदा पड़ता जा रहा है । बाकी ऐसे नहीं कि हाँ हम जाके ज्योति ज्योत समाएंगे तो हो जाएगा बस, यहाँ ऐसे के ऐसे ही । नहीं, ये सभी प्रैक्टिकल लाइफ में आना चाहिए । यहाँ पर ही परिवर्तन आना चाहिए न तब फिर उसी के आधार से हम समझेंगे की हमारा भविष्य भी उस आधार से ऊंचा बनता जाता है । तो ये सभी बातें अच्छी तरह से बुद्धि में रखने की है और प्रेक्टिकल अपनी धारणाओं में भी आगे बढ़ने का है । अच्छा दो मिनट साइलेंस । लेकिन बाप कहने से बाप तो कॉमन बात हो जाती है नाम भी चाहिए न । तो एक ही है परमात्मा जिस आत्मा के ऊपर नाम है शिव । निराकार के ऊपर नाम है ना कोई शक्ल वाला मनुष्य तो नहीं है ना । बाकी आत्माओं के ऊपर जब शरीर लेती हैं आत्माएँ तभी नाम पड़ता है, देखो भाई शिवराज, तोलाराम आदि ये सभी नाम तो शरीर लेते हैं फिर नाम होता है । नहीं तो कॉमन तो कहेंगे सब आत्मा । आत्मा के ऊपर नाम क्या है आत्मा । आत्मा ही कहेंगे । लेकिन वो ही एक परमात्मा है, जिसका नाम है शिव । तो वह आत्मा के ऊपर नाम है शिव । बाकी हम शरीरधारियों के ऊपर शरीर पर नाम है । देखो शंकर है तो भी आकारी शरीरधारी है ब्रह्मा, विष्णु, राम अथवा श्री नारायण तो भी शरीरधारी है न । बाकी एक ही है निराकार परमात्मा बाप जिसके आत्मा के ऊपर नाम है बाकी हम सब मनुष्यों का शरीरधारियों के ऊपर नाम है । तो उनका नाम शिव है । कई ऐसे समझते हैं कि निराकार परमात्मा तो सबका पिता है ना, तो शिव नाम तो भारतवासियों का है तो वह तो सबका पिता है ना । दूसरे देश वाले उसको शिव नाम से कैसे समझेंगे । ऐसे कई क्वेश्चंस उठाते हैं । परंतु यह भी समझने की बात है कि परमात्मा यहाँ आए हैं ना । निराकार परमात्मा कहाँ आए हैं भारत में आए हैं । वहाँ आ करके उन्होंने नॉलेज दिया है, कर्तव्य किया है इसीलिए नाम भी जो पड़ा है तो भारतवासियों का पड़ेगा ना । जैसे शरीर भी भारतवासियों का लिया है तो नाम भी जो है उनके कर्तव्य के ऊपर तो इधर ही पड़ा है ना । तो इसीलिए यहाँ का नाम है और भारत में उसका जन्म स्थान है यानि परमात्मा का अंतरण भारत में हुआ है, ऐसे नहीं दूसरे देशों में, इसीलिए क्योंकि ये भारत अविनाशी खंड है । तो यह सभी चीजें भी समझने की है इसलिए परमात्मा को शिव नाम डाला हुआ है तो भारतवासी डालेंगे ना । भाई शिव का अवतरण भारत में तो भारतवासियों का ही नाम पड़ेगा ना । तो अभी कृष्ण पक्ष का अभी लास्ट टाइम है अभी फिर शुक्ल पक्ष चलना है तो चलना है ना उसमें । तो अभी कृष्ण पक्ष यानी अँधियारा मार्ग का टाइम अभी बहुत थोड़ा है । अब लगाना तो सेप्लिंग उसमें ही है । तो ये सारी चीजों को समझ करके अभी अपना पुरुषार्थ रखो । अच्छा टाइम हुआ है । अभी दो मिनट साइलेंस । साइलेंस का मतलब आई एम सोल । फर्स्ट साइलेंस पीछे टॉकी में आते हैं अब बाप कहते हैं फिर चलो साइलेंस वर्ल्ड हमारा असूल साइलेंस शांति अपना स्वधर्म है आत्मा का । अब फिर साइलेंस में चलने के लिए कहते हैं इस देह का और देह सहित देह के संबंधों का अभी अटैचमेंट छोड़ो इसे डिटेच हो जाओ और अपना मन अभी मेरे में लगाओ और तुम हो सन ऑफ सुप्रीम सोल । अब मुझे याद करो और मेरे धाम में आओ । मेरा धाम कौन सा है? मेरा भी वही है लेकिन तू भूल गया है इसलिए अभी अपने धाम को याद करो । तो साइलेंस का मतलब यह है इसीलिए ऐसा साइलेंस में बैठने का है अर्थात निरंतर अपने को ऐसी अवस्था में रखना है कि आई एम सोल परंतु नॉट ओनली सोल, साइलेंस्ड सोल अथवा फर्स्ट प्योर सोल । तो सोल के साथ आई एम फर्स्ट प्योर सोल, वह भी ख्याल में रखने का है कि आई एम फर्स्ट प्योर । नोट ओनली सोल बट प्योर सोल । और प्योर सोल फर्स्ट साइलेंस्ड थे पीछे फिर टाकी में आए तो प्योर सोल भी और बॉडी भी प्योर । अभी बाप कहते है अभी तो तुमको चलना है वहाँ, पीछे आएँगे तो अभी चलने का ध्यान रखो । अभी आने का नहीं ख्याल करो अभी बस चलने का । तो आने का नहीं अभी ख़याल करना है । पीछे आएंगे तो प्योर हो करके फिर बॉडी भी प्योर मिलेगी तुमको परन्तु अभी तो चलने का है न तो अभी तो चलने का ख्याल करो तो अंत मते सो गते तो फिर ऐसी गति को पाएंगे तो अभी चलने का ख्याल करो । इसीलिए चलना है तो डिटेच होके चलना है । अभी कोई भी अटैचमेंट नहीं , वो प्योर सोल और बॉडी अभी उसकी भी अटैचमेंट नहीं । अभी शरीर की अटैचमेंट छोड़ दो । अभी वह बुद्धि में रखो तो ऑटोमेटिक है कि तुमको प्योर सोल को फिर शरीर भी प्योर मिलेगा । समझा । तो ऐसी अपनी धारणा बनाने की है । अच्छा अब बैठो साइलेंस में । ऐसा नहीं खाली थोड़ा टाइम, यह फिर प्रैक्टिस हर वक़्त रखने की है, चलते भी साइलेंस में, बोलते भी साइलेंस । बोलते कैसे साइलेंस होती है, मालूम है? बोलते भी हमको बुद्धियोग अपने उसी आई एम सोल, फर्स्ट प्योर सोल अथवा साइलेंस सोल तो यह याद रखना । यह मानो देखो अभी हम आप से बोल रहे हैं ना, लेकिन बोलते भी हम अगर उसी याद में है तो आई एम साइलेंट । और बोलते हैं तो हमारे में यह नॉलेज उसी समय रहना चाहिए आई ऍम सोल, इस ऑर्गन से बोलते हैं टॉक करते हैं नहीं तो फर्स्ट आई एम साइलेंस । अभी चलो बोलना है इनको समझाना है तो बोलो । ओरगंस का आधार लेकर के हम बोलते हैं, नहीं तो फर्स्ट आई एम साइलेंस । नहीं बोलते हैं अभी तो साइलेंस । अभी अपने को आर्डर करते हैं की मुख से बोलो तो बोलते हैं, सुनते हैं और करते हैं, नहीं तो बस अच्छा, नहीं तो नहीं बोलते हैं । तो यह अपना प्रेक्टिस होनी चाहिए जैसे हम इसका आधार ले कर के बोलते हैं । ना आधार लें तो चलो साइलेंस में । अच्छा कान का आधार खाली लेते हैं सुनते हैं, चलो आँखों का आधार लेते हैं देखते हैं तो जिसकी जरूरत है उसका आधार लेकर के काम करते हैं और क्या । ऐसा काम रहने से खुशी रहेगी और कोई ऐसा बुरा काम नहीं होगा अगर इसी प्रैक्टिस और इसी सभी बातों में रहेंगे तो । अच्छा ।