मम्मा मुरली मधुबन           

  मुक्ति और जीवनमुक्तिपाने की विधि - ट्रांस

 


कहा है ना पापों को दग्ध करने वाला मैं हूँ और मेरी याद । मैं कैसा हूँ वह भी बतलाते हैं इसीलिए कहा है ना मनमनाभव । देखो गीता में भी है इसी मंत्र महामंत्र कि मनमनाभव यह गीता के शब्द हैं यह निरंतर चाहिए । मन मनमनाभव का मतलब ही है कि मन को मेरे में लगाओ, बुद्धि को मेरे में लगाओ तो पाप दग्ध होगा और फिर पापों को दग्ध करके हम ऐसे अधिकार को प्राप्त करेंगे । तो यह सारा बुद्धि में रखने की बात है और इसी को ही कहा जाता है मुक्ति जीवनमुक्ति । मुक्ति को भी समझते हैं जीवन मुक्ति को भी अभी समझते हैं । आना सबको है । सबकी स्टेज है जीवनमुक्ति की इसीलिए देखो दिखलाई हुई है ना । दिखलाने में सहजें है सबको । पहले पहले जब आते हैं तभी सब जीवनमुक्त हैं । जीवनमुक्त का अर्थ है की पहले-पहले जब आते हैं तब दुःख का कोई बंधन नहीं है फिर नीचे आ करके बनाते हैं न जब पार्ट में आते हैं । तो जब आते हैं सब, तो सब जीवनमुक्ति हैं परंतु वह जीवनमुक्त भी सतोगुणी रजोगुणी तमोगुणी स्टेजिस में, हम जो जीवन मुक्ति प्राप्त करते हैं वह सतोगुण । आना तो है ही, आना जरूर है । कोई कहे नहीं आए, हो ही नहीं सकता । आना जरूर है । तो जब आना है तो क्यों नहीं स्टेज ऊंची में आना चाहिए यह अक्ल का काम है ना । भाई कोई काम ऐसा बनना है यह होना ही है तो अकलमंद का क्या काम है? क्यों नहीं सतोगुण गोल्डन जीवन मुक्ति । एक है गोल्डन, सिल्वर सिर्फ है कॉपर रजोगुणी फिर तमोगुणी तो जो पीछे आएंगे । आएंगे भले वह जीवनमुक्त में आएंगे यानी पहले दुःख का जीवन में बंधन नहीं होगा परंतु वह तमोगुण में आएंगे ना या रजोगुण में आएँगे न । ये तो है सतोगुण, सदा का सुख । तो बाप कहते हैं मुक्त तो सबको होना है, मुक्त माना पार्ट से मुक्त तो अभी तो सबको पार्ट से मुक्त होना ही है, वह तो मिलना ही है सबको । कोई चाहे या ना चाहे, मिलना ही है और जीवनमुक्त भी होना ही है परंतु सिर्फ पुरुषार्थ से क्या फायदा होता है कि मुक्ति में हम सजाओ से छूट के जाते हैं । फायदा देखो क्या है, मुक्ति और जीवन मुक्ति का तो अनादि है ही । मुक्त भी सभी को होना है और जीवनमुक्त में भी सबको आना है, समझा । जीवनमुक्त का अर्थ समझते हो कि भाई जीवन मैं दु:ख का बंधन न हो तो जो पीछे भी आते हैं ना पहले तो नहीं है ना, पीछे फिर जन्म लेकर यहां दुखी हो जाते हैं । तो पहले तो कहेंगे सब जीवनमुक्त और मुक्त हैं परन्तु ये तो होना ही है उसमें पुरुषार्थ का क्या फायदा है तो पुरुषार्थ से हमारी स्टेज बनती है, मुक्ति में भी स्टेज है, क्या स्टेज है कि हम अगर सजाओं से छूट करके अभी जाएंगे तो हमारी मुक्ति की भी स्टेज ऊँची है और मुक्ति की ऊंची है तो फिर हमारी जीवन मुक्ति की भी ऊंची है साथ ही है क्योंकि हम सजाओं से मुक्त हैं तो फिर आएंगे फर्स्ट जीवनमुक्ति में यानी गोल्डन एजेड जीवनमुक्ति में । तो यह हमारे पुरुषार्थ से ताल्लुक की बातें हैं बाकी जाना और आना यह तो चक्कर बंधा हुआ है । बाकि ये किसके साथ बंधा हुआ है गोल्डन सिल्वर और ये सभी स्टेजिस तो ये हमारे पुरुषार्थ से । इसी के लिए बाप कहते हैं अभी स्टेज बनाने के लिए तुमको पुरुषार्थ रखना है बाकि तो कोई कहे की हाँ मुक्त होना है तो उसके लिए कोई पुरुषार्थ नहीं वो तो जाना ही है जबरदस्ती भी जाना ही है नाक से दम निकल के भी ले ही जाएंगे । तो जाना ही है न सबको देखो ये अभी दम निकालने की तैयारियाँ कर रहें हैं न यह सब डिस्ट्रक्शन की तैयारियां है न । तो यह सभी अभी छोटा बड़ा बूढा सबको इसीलिए कहते हैं सभी आत्माएं, मौत का भी ऐसा तरीका बनता जा रहा है जिससे सबको जाना है, सब आत्माओं को । अभी ऐसा नहीं है कि नहीं हम छोटे हैं, बड़े होंगे फिर बुड्ढे होंगे पीछे की बात है यह नहीं, बाप कहते हैं अभी सबका मौत है सभी वानप्रस्थी हैं । छोटा बछा भी है न, अभी वो भी वानप्रस्थी है । वानप्रस्थ का अर्थ है कि वाणी से परे स्थान जो है निराकारी दुनिया का अभी उसमें जाने का टाइम है तो सब का टाइम है ना । छोटे बच्चे का भी अभी टाइम है । तो बाप बैठ के समझाते हैं कि बच्चे अभी सब वानप्रस्थी हैं इसीलिए ये नॉलेज का अधिकार सबको है ये छोटे बड़े बुड्ढे सबको । इसीलिए कहते हैं परिवार के परिवार इस नॉलेज को उठा सकते हैं क्योंकि हर एक आत्मा का अभी वानप्रस्थ है । ऐसे नहीं है यह तो छोटा बच्चा है, इसकी तो अभी आयु पड़ी है, अभी तो खा पी ले अभी तो दुनिया यह कर ले तो बाप कहते हैं नहीं बच्चे अभी सबका, छोटे बच्चे का भी अभी एंड है ना । तो यह चीजें समझने की है इसीलिए कहते हैं अभी सबको अधिकार है बाप से अपना जन्मसिद्ध अधिकार लेना । तो जाना है ना अभी सबको इसीलिए कहते हैं देखो ये अभी मैं तैयारी कर रहां हूँ की आत्माएं जब शरीर से निकले तब तो फिर जाए ना, तो ऐसे ही थोड़ी सब मर जाएंगे कोई ऐसा काम चाहिए ना डिस्ट्रक्शन जिससे यह शरीर सभी का फट फूट जाए और फिर आत्माएं फिर चले । ऐसे नहीं है इतने सब मरेंगे तो फिर इतने ही सब जन्म लेंगे । नहीं, तो यह सब मर करके अभी इनको वापस जाना है इसीलिए यह डिस्ट्रक्शन का भी रखा हुआ है । भले लड़ाइयां तो समय प्रति समय होती रही हैं, बहुत मरते भी हैं यह सब स्पार्क होता है लेकिन यह है वर्ल्ड डिस्ट्रक्शन । ये तो हाँ कभी तूफ़ान हुआ जैसे देखो अभी रामेश्वर पर भी तूफान हुआ, कई सारे मरे कई, लाखों मरते तो है परंतु वह जो है ना फिर भी पुनर्जन्म में चलते भी रहते हैं उनका सब लेकिन यह तो अभी वर्ल्ड डिस्ट्रक्शन है ना भारी इसीलिए कहते हैं अभी तो यह लास्ट है और इसी से फिर दुनिया बदलनी है । यह तो देखो दुनिया में इतनी लड़ाइयाँ होती हैं, मरते भी हैं सभी संख्या भी फिर भी बढ़ती जा रही है । वह तो हम अपना देख भी रहे हैं ना इधर की संख्या बढ़ती जा रही है, यह तूफान आते हैं, यह आते हैं वह आते हैं भले मरते भी इतने हैं परंतु परंतु संख्या भी तो देखो कितनी स्पीड से बढती ही जाती है । वो गवर्नमेंट निकालती है न अपना कि इसकी स्पीड कितनी हैं जन्मते कितने हैं मरते कितने हैं देखो एक हिसाब निकालते हैं एक मिनट में इतने जन्मते हैं तो इतना कम मरते हैं यानी उनका हिसाब है की संख्या बढ़ती जा रही है तो वो तो बढ़ते जा रहे हैं परन्तु यह है अभी संख्या कम होने का डिस्ट्रक्शन । तो यह डिस्ट्रक्शन भारी है जिसको हिंदू शास्त्रों में प्रलय लिखा है ना, परन्तु प्रलय का कई अर्थ समझते हैं कि एकदम खत्म भाई मनुष्य ही नहीं होंगे । तो ऐसी बात नहीं है, मनुष्य तो होंगे ना मनुष्य सृष्टि है तो परंतु कम । ये डिस्ट्रक्शन होकर के फिर थोड़े मनुष्य रहेंगे, जिस थोड़े मनुष्य का यह प्योरिटी का अभी कलम लगा है और उसी कलम से फिर जनरेशंस पीछे जो पावरफुल होंगी वह प्योरिटी वाली और उसी से फिर चलेगा । तो यह सारी चीजों को भी समझना है कि इसलिए बाप कहते हैं बच्चे अभी यह समय जो है ना अभी यह मौत का है इसीलिए कहते हैं अभी छोटा बड़ा बुड्ढा अभी सबको वापस जाना है । तो अभी सबके लिए यह अधिकार है ना कि बाप को याद करना और बाप से अपना वर्सा लेना तो मुक्ति और जीवनमुक्ति । तो आना है तो क्यों नहीं हम अपना गोल्डन एजेंड जीवनमुक्ति में आएँ । वह फिर है रजोगुणी जीवनमुक्ति जो पीछे-पीछे आते हैं और फिर तमोगुणी । हम आए तो फिर क्यों नहीं सदा सुख का प्राप्त करें तो यह है बाप का भी राय मत । देखो मत मिलती है ना यह की बच्चे अभी तुमको मत देता हूँ, राय देता हूँ जब आना है तुमको तो फिर पुरुषार्थ करके क्यों नहीं गोल्डन एजेड बनते हो इसीलिए कहते हैं वह कैसे बनो उसकी मत तुम्हे देता हूँ इसीलिए कहा है श्रीमत भगवत गीता देखो शास्त्र के ऊपर भी नाम है ना कि श्रीमद भगवत गीता तो भगवान ने जो बैठकर की नॉलेज जिसको भगवत गीता कहा जाता है, गीत नहीं गाए हैं उसने तो बैठकर के नॉलेज सुनाया ये श्लोक भी जो हैं शास्त्र में वह संस्कृत श्लोक डाले हैं ना कि भगवान ने बैठकर के संस्कृत भाषा में या संस्कृत श्लोकों में थोड़ी सुनाया है । नहीं, कोई श्लोक तो सुनाने का नहीं है ना यह तो नॉलेज है न तो समझाने की बातें हैं न । तो श्लोकों में थोड़ी नॉलेज पढ़ाई जाती है । नहीं, कोई भी नॉलेज है डॉक्टरी है, इंजीनियरी है तो बैठकर के समझाएँगे, करेंगे इसमें तो हर एक समझाने की बात होती है ना । इसमें तो श्लोकों में बस कह दिया काम हो गया नहीं, यह तो पीछे लिखने वालों ने बैठकर के गीता को श्लोकों में लिखा फिर उस श्लोकों को भी कीन्हों ने बैठ करके उसकी भी टीकाएं की जैसे गांधी गीता वह श्लोक तो ले लिया ना एक ही परंतु उसकी बैठकर के टीका की अर्थात उनका अर्थ लिखा जिसमें फिर वो गांधी गीता बन गई, तिलक गीता, टैगोर गीता देखो कितनी गीताएँ हैं । बहुत गीताएँ हैं, है गीता एक लेकिन गांधी तिलक फलाना फलाना इन्होंने अपना-अपना सबने उसका बैठकर के अर्थ निकला है तो ऐसे तो बहुत है गीत जैसे एक बताया था ना एक सन्यासी हमारे पास आया था तो उसने कहा मैंने 200 गीताएँ पढी हैं तो 200 तो पढ़ी हैं और भी होंगी । उसने पढी थी 200 गीताएँ, तो गीता एक लेकिन उनकी देखो 200 गीताएँ, तो कहा परंतु 200 गीताएँ पढ़ते भी अभी तक मैं गीता को समझ नहीं पाया हूँ और ना मुझे कोई शांति अभी मिली हुई है । अच्छा तुमने पढ़ा उससे क्या हुआ नहीं अभी पीस ऑफ माइंड अभी कोई शांति मिली नहीं है तो उसी की खोज में अभी हूँ । तो है सन्यासी, स्पीच करता है, बड़ा विद्वान्, पढ़ा-लिखा लेकिन अपने को शांति नहीं है । तो बिचारे उनको भी साधन कर रहे हैं जिसको जैसा मिला है वैसा चलाते रहते हैं, किसी ने कुछ कह दिया, किसी ने कुछ कह दिया तो उसमें चलते हैं परंतु अभी इन्हीं सभी बातों से तो शांति मिलने की नहीं है ना । शांति तो है शांति दाता के पास । मनुष्य के पास या शास्त्रों से कोई शांति का ताल्लुक नहीं है न । शांति दाता ही शांति देगा तो वह आकर के शांति कैसे देता है तो उनकी शांति देने का उपाय दूसरा है ना । वह थोड़ी कहेंगे कि तुम गीता पढ़ो, तुम यह करो, तुम वेद पढो तुम शास्त्र पढ़ो तभी तुम्हें शांति मिलेगी । वो तो अर्जुन पढ़ा हुआ था ना, विद्वान था बहुत शास्त्र आदि । तभी तो कहा ना कि देखो तुम पढ़ा तो बहुत कुछ है लेकिन तुमको शांति कहाँ है तुम्हारे विकार कहाँ गए हुए हैं, देखो मोह तुमको सता रहा है, यह तुमको हो रहा है, तब बैठ करके उनको नॉलेज सुनाया तो कहा इसी से तुम नष्टोमोहा बनेंगे । तुम्हारे विकार छूटेंगे इन ज्ञान से जो मैं सुना रहा हूँ । तो बाप ने समझाया है ना कि मेरी नॉलेज मैं ही शांति का सुख का दाता हूँ और शांति भी कैसे होगी जब इस दुनिया से यह अनेक धर्म, अनेक राज्य यह सब जाएंगे, तब शांति होगी यह आते-आते बहुत हो गए हैं तभी तो देखो यह फ्रिक्शंस है ना । यह सब अभी लड़ते-झगड़ते सभी धर्म वाले अपना-अपना, सब राज्य वाले अपना-अपना इसीलिए तो यह लड़ाई है ना इसीलिए अभी यह हद की दुनिया, हद के राज्य बन गए हैं । सब अपना-अपना, सब टुकड़े-टुकड़े लगा बैठे हैं । अभी देखो तत्वों में भी टुकड़े कर दिए हैं-पृथ्वी के भी टुकड़े, पानी के भी टुकड़े, आकाश के भी टुकड़े, सब हद में आ गए हैं ना इसीलिए बाप कहते हैं यह अभी हद की दुनिया का कहाँ तक चलेगी इसलिए अभी एक पृथ्वी, एक आकाश तो एक राज्य, एक धर्म तब फिर संसार सुखी रहे इसीलिए कहते हैं मैं आकर के यह जो न थे यानी जब सतयुग था तो ये अनेक धर्म राज्य यह नहीं थे । यह सब पीछे हुए हैं कॉर्पोर एज से । अभी बाप कहते हैं मैं फिर सतयुग बनाता हूँ अथवा स्वर्ग बनाता हूँ तो फिर स्वर्ग का एक धर्म, एक ही राज्य रहेगा ना तो इतनी संख्या कब कहाँ जाएंगी? यह सब इतनी आत्माएं इतनी सोल्स कहाँ जाएंगी? इसीलिए कहते हैं अभी शरीर तो यहीं नाश होंगे डिस्ट्रक्शन में, और फिर आतमाएँ निराकारी दुनिया में जाएंगे फिर जिसका पार्ट है बाकी सतयुग में वह फिर प्योर आत्माएं अपना यहाँ सौभाग्य पाएंगी तो यह सारी आत्माओं की भी फिलासफी और संख्या का घटना बढना ये सब इतनी आत्माएं कहाँ से आती है, यह बढ़ती जो है संख्या, इतनी सोल्स कहाँ से आती है? कोई तो उनका स्टॉक होगा ना, कहाँ तो स्टॉक में होंगी जहाँ से आती है तो यह कहाँ स्टॉक है? स्टॉक निराकारी घर को कहा जाता है, बैठ करके बाप समझाते हैं कि उनको कहा जाता है इनकॉरपोरियल वर्ल्ड, जहाँ से यह निराकारी आत्माएं आती हैं, फिर ये कॉरपोरियल वर्ल्ड । तो वह भी इन कॉरपोरियल वर्ल्ड है , ऐसे नहीं इनकॉरपोरियल वन है या कोई ऐसी चीज है जिसमें केवल एक है नहीं इन कॉरपोरियल वर्ल्ड है । वर्ल्ड या दुनिया उसी चीज को कहा जाता है जिसमें बहुत चीजें हो । तो वो है इनकॉरपोरियल्स की वर्ल्ड यानी निराकारियों की दुनिया । तो निराकारी बहुत है ना, निराकार एक तो नहीं है ना । तो इसमें यह भी क्वेश्चन नहीं आ सकता है कि आत्माएं मिलकर एक हो जाती हैं फिर तो एक निराकारी फिर तो उसको वर्ल्ड नहीं कहेंगे । अंग्रेजी में जो है इन कॉरपोरियल वर्ल्ड तो वर्ल्ड माना कॉरपोरियल्स बहुत हैं, निराकारी बहुत है परंतु निराकारी कौन? निराकारी आत्माएं और परमात्मा भी निराकारी वह भी तो सोल है ना । तो यह सभी चीजें समझने की है जैसे यह कॉरपोरियल वर्ल्ड, भाई कॉरपोरियल मनुष्य तो मनुष्य बहुत है ना, एक मनुष्य थोड़ी है तो एक हो फिर तो इसको वर्ल्ड बनहिं कहें न । नहीं बहुत हैं । तो यह सारी चीजों को समझना है इसीलिए बाप कहते हैं जितने मनुष्य हैं उतनी आत्माएँ है अभी ये वृद्धि होती है तो इतनी आत्माएँ आती कहाँ से हैं तो ये भी सब समझना है न । जो मरते हैं वह तो जन्म लेते हैं लेकिन वृद्धि भी होती है, नहीं तो वो तो एक ही अंदाज हो जाए, जो मरे सो जन्म लें फिर तो एक ही सेंसर होना चाहिए, फिर तो वृद्धि नहीं होनी चाहिए तो फिर तो वृद्धि भी होती है ना । तो वृद्धि होती है तो फिर कहाँ से जरूर है न की इनका भी कोई निराकारी आत्माओंस्टॉक यानि स्थान है । ये आत्मा तो ऐसी चीज नहीं जो वो कोई मरती है जन्म लेती है वो तो गीता में भी है उनको कटा नहीं जा सकता है जलाया नहीं जा सकता है इम्मोर्टल है, अविनाशी है अविनाशी अनादि है । तो उस अनादि अविनाशी का भी कोई ठिकाना होगा ना जहाँ से आत्माएं आती हैं इसीलिए बैठकर के बाप समझाते हैं कि निराकारी दुनिया जहाँ का मैं भी निवासी हूँ, आत्मा भी निवासी है, नंबरवार सब आते हैं और आकर के अभी तो सब संख्या उतरती आई है बाकी भी जो होंगी थोड़े समय में यह संख्या बढ़कर के इसका फिर एंड । तो एंड आना है तो इतनी संख्या का भी एंड होगा । ऐसे नहीं थोड़े-थोड़े कम होते जाएंगे, नहीं ये एकदम से ख़त्म होंगे तो एकदम से तो फिर नई दुनिया । नई दुनिया में तो फिर थोड़ी संख्या होगी ना तो उसके लिए डिस्ट्रक्शन होती है । तो यह सभी बातों को भी समझाते हैं इसीलिए कहते हैं ये मुक्ति जीवनमुक्ति यह सभी बातों को भी समझना है यह क्या चीज है । यह ऐसी चीज नहीं है यह तो है की जब हमारा अनेक जन्मों का पार्ट पूरा होता है तो मुक्त होना ही है , फिर आना है । आना भी जरूर है नहीं तो सर्किल कैसे चलेगा । हम नहीं आएँ फिर तो यह अनादी सृष्टि का चक्कर ठहर नहीं ये भी चलना है । तो ये कोई ऐसी चीज नहीं है की नहीं आना चाहें तो न आएँ । नहीं, आना है लेकिन स्टेज को बनाने के लिए हमको बाप बैठ करके समझाते हैं इसीलिए कहते हैं अभी मेरी यह मत लो । यह है श्रीमत, श्रेष्ठ । तो तमको श्रेष्ठ बनाने की मत देता हूँ कि तुम श्रेष्ठ कैसे बनों । आओ तो श्रेष्ठ बन के आओ वो कैसे वो बैठ के सिखलाय रहे है, समझा रहे हैं, उसके लिए यह पुरुषार्थ है । तो यह समझ आ जाती है ना फिर जो बहुतों को ये पुराने पुराने विचार बैठे हुए हैं न कि हमको भाई ज्योति ज्योत समाना है या हम वहाँ जाएं जहाँ से फिर लौटे नहीं क्योंकि यह बहुत दु:खी हुए हैं ना इधर बहुत इसीलिए उनको मन में ऐसा बैठ गया है कि इधर दु:ख ही है । इसीलिए वो कहते हैं उधर बैठे र्हे न, न दुःख होगा न सुख होगा । अच्छे हैं इधर परन्तु नहीं । बाप कहते हैं की नहीं बच्चे वो दुःख और सुख से अलग है जैसे इसको न दुःख है न सुख है । इसको क्या है जड़ को पता है? ये तो जड़ है ना । तो यह स्टेज थोड़े ही है वैसे आत्मा में भी दुःख सुख नहीं है साइलेंस, डेड साइलेंस एकदम । तो उनको भी कोई ना दु:ख न सुख, उसमें तो कोई बात ही नहीं, वह भी आनंद थोड़ी ही है । भाई दुःख सुख से न्यारी आनंदित अवस्था है वो आनंदित भी नहीं है । आनंद या न आनंद वो तो जड़ एकदम साइलेंस है । तो पार्ट जब तलक नहीं है तब तलक वेट करती है आत्मा वहाँ, फिर जब टाइम आता है तो फिर टाइम पर उतरती है । उतरना जरूर है पीछे टाइम में उतरना, उससे अच्छा पहले टाइम में क्यों ना उतरें जो हम सुख का चांस लें यह है अकलमंदी । इसीलिए बाप कहते हैं अक्ल सीखो अगर तुमको सुख पाना है और सुख और शांति की जो मैं दुनिया बनाता हूँ उसमें आ करके चलना है इसको कहा है जीवन मुक्त । जीवनमुक्त तो वैसे वह भी है जो पीछे भी आते हैं परंतु वो रजोगुणी, तमोगुणी । तो यह है सतोगुणी इसीलिए कहा है सतोगुणी जीवनमुक्ति को प्राप्त रखने का है । तो बाप यह बैठकर के स्टेजिस समझा करके अभी कहते हैं इस स्टेज को पाओ । उसके लिए कहा है मनमना भव मद्याजी भव, निरंतर मुझे याद करो तो फिर तुम उसी स्टेज को प्राप्त करेंगे जिसमें सदा सुख है । पीछे तो दुनिया पुरानी होगी ना, पुराने में आएँगे फिर रोग शुरू हो जाएंगे, फिर अकाले मृत्यु शुरू हो जाएगी, फिर यह सभी बातें हो जाएंगी फिर उसमें आकर के अकाले मरेंगे, रोगी बनेंगे और यह सब होंगे तो आओ और रोगी बनो और ये बनो उसमें क्या है । आओ तो उसमें आओ ना जिसमें अकाले मृत्यु ना हो, जब तुमको काल ना खा सके, उस लाइफ का भी तो सुख लेना चाहिए ना । कभी रोग ना हो, कभी अकाले ना मरे, कभी लड़ाई झगड़े ना हो, तो वह जो सदा सुख की जीवन है उसको प्राप्त करो । इसीलिए कहा है स्टेटस वह हो और उसी की प्राप्ति का पुरुषार्थ है । उसका पुरुषार्थ बैठकर के बाप समझाते हैं कराते हैं तो इजी बात है ना । इसमें कुछ मूंझना नहीं है, यह तो सारी अपनी कैसी बनावट है, आत्माओं के लिए क्या है, आत्माओं का पार्ट कैसा भरा हुआ है उसको भी समझना है । उसमें हमको उसके मुताबिक क्या पुरुषार्थ करना है वो समझ करके हमको अपना पुरुषार्थ रखने का है । हमारे पुरुषार्थ का भी चांस है हमको अभी, तो चांस लेना चाहिए न । देखो वो लोटरी लगाते हैं न फिर चांस लेते हैं की हाँ भाई अगर मिल जाएगी तो भाई लाख मिल जाएंगे, ये मिल जाएंगे तो ये भी बड़ी लॉटरी है ना, तो चांस लेना चाहिए न । तो लगाना चाहिए दाव । तो यह बड़ी लॉटरी लगती है फिर देखो हम कितना चांस ऊंचा लेते हैं इसीलिए बाप कहते हैं लगाओ और पुरुषार्थ करो । इसमें तो पुरुषार्थ की बात है कोई लक की बात नहीं है । लक के ऊपर नहीं बैठ जाना है कि जो किस्मत में होगा, जो तकदीर में होगा वह मिलेगा फिर तो तकदीर में होगा तो फिर तो सबके लिए बैठ जाओ ना । फिर तो काम भी नहीं धंधा भी नहीं करो, कुछ नहीं करो, कहो किस्मत में होगा तो रोटी मिलेगी । फिर रोटी के लिए क्यों पुरुषार्थ करते हो, सारा दिन माथा खोटी करते हो, क्यों करते हो । फिर तो सब लक तो सब लक ना । फिर क्या है, पैसे कमाने के लिए लक की बात नहीं है और इसमें लक क्यों । ये भी तो कमाई है ना, तो इस कमाई के लिए भी पुरुषार्थ रखने का है । ताकि ऐसे नहीं उसके लिए माथा खोटी करने का है, करते हो ना ? भले जो किया है कर्म उसका मिलेगा कर्मों के हिसाब से ही परंतु फिर करते तो हो ना पुरुषार्थ । ऐसे नहीं बैठ जाना होता है कि अगर किस्मत में होगा तो रोटी आपे ही आएगी । कर के देखो आती है? नहीं, ऐसा तो नहीं होगा ना, वह करना पड़ता है तो इसके लिए भी हमको पुरुषार्थ करना है न । इसीलिए बाप कहते हैं पुरुषार्थ करो और पुरुषार्थ से तुम्हारी विजय अवश्य है । कहा है ना पुरुषार्थी की विजय । तो इसीलिए पुरुषार्थ करना है तब विजय पाएंगे ना । नहीं करेंगे तो नहीं पाएंगे । तो यह सब बातें अपनी बुद्धि में रखनी है और उसके लिए पुरुषार्थ करना है । मेहनत भी कोई ऐसी तो मेहनत नहीं है ना जिसके करते तुम खाने पीने का कोई काम ना कर सको । खाना पीना तो जरूरी है ना इसीलिए कहते हैं जो तुम्हारी जरूरी बातें हैं वह खोटी नहीं करता इस काम के लिए लेकिन यह काम, तुम्हारा जो वेस्टेज है ना, वेस्टीज से मैं काम निकालता हूँ । तुम्हारी बुद्धि वेस्टेज में जाती है मैं कहता हूँ मेरे में मन लगाओ, वेस्ट क्यों गुमाते हो । उसकी प्रैक्टिस करो । कहता है कि मेरे में मन लगाओ और कर्म भी, जो कुछ टाइम है तुम्हारा फिर सेवा में लगाओ तो इससे क्या होगा तुमको फायदा मिलेगा । यह तो इजी बात है ना । इसमें ऐसी भी बात नहीं है जो कहते हो की नहीं, शरीर निर्वाह ना करो, सब छोड़ कर बैठो । नहीं, जो ऐसे लायक हैं, जो कहते हैं इसमें ही अपना सब करना है उसका फिर देखो शरीर निर्वाह भी होता है इस सेवा से, नेचुरल है । यह है पांडव गवर्मेंट सर्विस परंतु वह भी इतनी बुद्धि चाहिए ना, इतना काम करने वाला चाहिए । ऐसे थोड़े ही सबकी एक जैसी बुद्धि तो नहीं होती है ना इसीलिए बाप कहते हैं कि नहीं बच्चे वह तो है ही । बाकी है अपना यह कमाई करना और इससे हम अपनी प्रैक्टिकल लाइफ को ताकत में ले आते हैं और उससे ऊँच कमाई प्राप्त करते हैं । यह भी आजीविका के लिए है ना । इससे हमारी जेनरेशंस की आजीविका बनती है । देखो हम यह जो अभी पुरुषार्थ कर रहे हैं, इससे क्या बनता है? हम सदा सुख का खाते रहेंगे ना । हमारी आजीविका ही तो हम बना रहे हैं ना जेनरेशंस की, कि सदा सुख की रहे जिसमें कभी रोग ना हो । आप लोग भी क्या करते हो बच्चों का चलो पालन पोषण यह सभी करते हो, वही है ना । अच्छा उनको दु:ख होगा, तकलीफ होगी उसको संभाललेंगे, उनके खाने-पीने का रखते हो, अपने खाने-पीने का रखते हो, उनका कपड़ा लत्ता उनका सब, यही कर रहे हो ना । बाप कहते हैं मैं भी तुम्हारे कपड़े लत्ते, खाने-पीने सदा सुख का देखो तुमको अच्छा मार्ग बतला रहा हूँ, जिसमें कपड़े लत्ते खाने-पीने की तुम को फिक्रात ही ना हो । कपड़े लत्ते देवताओं के देखो, खाना-पीना उनका देखो । देवताओं के भोजन देखो मंदिरों में भी भोग लगाते हैं, आजकल भले इतना ना भी हो परन्तु वो देखो जगन्नाथ फलाने इधर श्रीनाथ जाओ, उधर कितने भोजन 36 प्रकार के कुछ भोजन ऐसे-ऐसे रखते हैं, बाबा अनुभव सुनाते हैं ना वह तो चक्कर लगाए हुए हैं सभी तीर्थ स्थानों का । तो हाँ वो 36 प्रकार के भोजन बनाते हैं यह करते हैं वो करते हैं देखो जड़ चित्रों के आगे । अभी चैतन्य होंगे तो क्या खाते होंगे । यह तो समझने की बातें हैं न, क्या पहनते होंगी । उनके घड़ी-घड़ी कपड़े बदलते हैं उन जड़ चित्रों के । अभी हम मुंबई में भी गए थे वह लक्ष्मी नारायण का मंदिर है, बड़ा उनका अच्छी तरह से कपड़े पहनाते हैं, श्रृंगार कराते हैं, उसके लिए रखते हैं मिठाइयां और यह सब जाते हैं फिर जो-जो भी आते हैं उनको प्रसाद देते हैं । फिर दुकानदार बेचारे उसका कमाई करते है वो लेते हैं चढ़ावे का सब पैसों से दुकानदारों से फिर वो ही जाकर के भोग लगाते हैं तो उनका भी पुजारियों का काम हो जाता है । तो यह सभी तो अभी बिजनेस हो गया है ना यह तो सभी धंधे के काम हो गए हैं परंतु असुल में जब चैतन्य में होंगे तो उनके आगे क्या होगा । तो सोचे तो खाने पीने की तो कोई कमी नहीं होगी तो यह सब भी सब आजीविका के लिए बना रहे हैं ना परंतु प्रालब्ध की ताकत से । इसीलिए हम प्रालब्ध अपनी जोर की बनाते हैं । देखो कुछ हो जाता है नीचा ऊंचा, रोटी का भी मुश्किलात, देखो दुनिया की स्थिति ही ऐसी है । भले पैसा भी है तो भी देखो अन्न न मिले तो क्या हो । अगर पैसा हो बहुत भले ही हीरे आदि बहुत हो लेकिन आज अन्न नहीं तो पैसे वाला क्या करेगा ? कई समय ऐसी भी आते हैं वो पानी की प्यास मनुष्य को ऐसा करती हैं वह समझते हैं कि हीरे हैं अभी वह तो पड़े हैं वह काम की चीज नहीं है पहले पानी खाना जो जीवन के लिए जरूरी है वह चाहिए । पहले वह चाहिए जिससे जीवन चले, उसमें यह क्या है । वो हालतें भी ऐसी आ जाती हैं, भले आज पैसा हो परन्तु ऐसा समय भी होता है दुक्कड़ पड़ जाता है । दुक्कड़ को क्या कहते हैं अंग्रेजी में? फेमिन हो जाए, ये हो जाए तो फिर क्या है । कितना भी पैसा रखा हो, रखा हो तो क्या होगा, पहले तो खाने की चीज चाहिए ना । यह तो सभी हालतें होने की है यह फैमिली, फ्लड्स, यह अर्थक्वेक, ये सभी जो नेचुरल कैलेमिटीज है यह सभी बातें आने की है बड़े फ़ोर्स से, इसीलिए यह सभी बातों को बाप जानते हैं ना इसीलिए कहते हैं बच्चे जरा खबरदार रहो और अपने को इतना अपने में साहस भी हो, अभी के लिए भी, सब डिफिकल्टीज आने की है बड़े फोर्स से तो उसमें अपना भी यह बल चाहिए और फिर फ्यूचर के लिए भी अपना प्रालब्ध ऊंच रखो जो आगे के लिए तुमको यह तकलीफ लेनी ना पड़े अथवा तुम्हारे सामने यह तकलीफें है आवें नहीं । इसीलिए ऐसी दुनिया का बैठ कर के अभी बाप प्रबंध रख रहा है जिसमें फिर कभी फेमिन, फ्लड्स यह सभी बातें रहेंगी नहीं । तो यह सभी बातों को समझ करके और बाप से अपना जन्मसिद्ध अधिकार पाने का पूरा पुरुषार्थ रखो । तो यह है अपने लाइफ के लिए ना और लाइफ के लिए ही तो सब कुछ है ना । बाकी ऐसे नहीं समझना है कि यह किया, ना किया चलो वह तो जरूरी है खाने पीने की । यह भी तो खाने-पीने की बंदोबस्त है और वह भी सदा के लिए ये साधन है ना । इसी साधन, इसी प्रालब्ध के सिवाय तो हमारा खाना-पीना भी नहीं होता है, हो जाती है देखो कर्म का कहीं कुछ होता है तो ऐसी बातें हो जाती हैं कि कहते हैं कि देखो यह सब कुछ होते भी परंतु इतना दु:ख यह क्यों है, वो समझते हैं भई ये कर्म का है । तो कर्म का भी हमारा सारा मदार उन्हीं के ऊपर है ना तो हमको अपने कर्मों को रखना है । वह कैसे तो उसके लिए बैठकर के बाप ये नॉलेज समझा रहे हैं । तो ये सभी बातें अभी अच्छी तरह से समझते हो ना? तो समझदार का क्या काम है समझना खली ऐसे ही थोड़ी होता ऐसे ही समझना । नहीं, समझा है तो अभी करना है । तो अभी क्या करना है उसका पुरुषार्थ रखना है । ठीक है । आज छुट्टी तो नहीं होगी ना तो क्लास को भी टाइम पर पूरा करना है, परंतु आप लोगों को इतना जरूर कहेंगे कि अपना चार्ट रखो । सारे दिन का अपना देखो अच्छी तरह से अपने कर्मों की संभाल रखो । अपना याद का भी चार्ट रखो और उसी पर अपना अटेंशन दो क्योंकि कमाई है ना, इसी से तो कमाई है । बाकी वह तो शरीर निर्वाह का काम तो करना ही है उसकी तो बात ही नहीं है लेकिन उसको करते भी साथ-साथ यह चीजें भी अपनी धारणा में लानी है ना उन सभी बातों को भी अटेंशन देना है, तो खुशी रहेगी, इस लाइफ में भी अपने को खुश समझेंगे और यह आप लोगों की लाइफ में परिवर्तन आना चाहिए, महसूसता आनी चाहिए कि आप लोग फील करते हो कि हमारी लाइफ अभी कुछ और हो गई है । दुनिया वालों से कुछ और है, भले हैं दुनिया में ही परंतु लाइफ की कोई चिंता, कोई फिकरात, कोई कुछ भी हो लेकिन कोई दु:ख की लहर ना हो क्योंकि अभी हम जानते हैं कि यह सब हमारे पिछले खाते का है । भले नीचा ऊँचा कुछ आता है और आएगा वह भी परंतु जानते हैं कि यह हमारे पिछले कर्मों की सब निचाई-उचाई है । हमने कर्म किए हैं तो उसका सामना अभी होता है लेकिन इन्हीं सभी बातों को भी अभी बनाने का यत्न रखना है ना तो कहते हैं फिर तुम्हारा वह भी सूली से कांटा हो जाएगा । आनी होगी सूली, सूली समझते हो? फांसी और फिर वो जैसे कांटा लगता है न यानी कम लगेगा क्योंकि वह खुशी खड़ी होगी ना तो वह भी सूली से कांटा लगेगा यानी भासेंगा थोड़ा और आगे के लिए भविष्य भी अच्छा रहेगा । तो अभी अपनी चढ़ती कला है, चढ़ती कला समझते हैं तभी आगे ही चढ़ते जाना है, ऊँचा उठते जाना है तो ऐसी चढ़ती कला को बढ़ाते चलना है । ऐसा पुरुषार्थ रखना है और ऐसे पुरुषार्थ में आगे होकर के बाप से अपना अधिकार पाना है । अधिकार देने वाला तो अभी है ना तो इन सभी बातों को समझो और अपने पर ध्यान दो, अपने पर अटेंशन दो । अच्छा, इनकी क्लास का क्या टाइम है? कुछ शायद दूर रहते हैं बेचारे तभी, नहीं तो इन्हीं से पूँछ लो, जो इन्हों को अपना टाइम इजी हो ना वो टाइम रखो तो सब टाइम पर हो जाए हाजिर क्योंकि यह तो समझने की बातें है ना । यह तो ऐसे नहीं है न कि खाली जैसे कोई मंदिर में गया या आगे पीछे गया तो खाली दर्शन ही करके आना है । यह तो है स्टूडेंट्स को क्लास के टाइम पर आना चाहिए, अगर लेट हो जाए तो फिर खड़े हो जाएं । ऐसा होता है ना स्कूलों में । तो जो टाइम सबको सूट करें अच्छा, वो टाइम रखो पूछ करके । कोई कारण होगा कभी बस नहीं मिलती, यहाँ की दिक्कतें भी बहुत हैं, कभी बस नहीं मिली, कभी कुछ है, कोई बिचारे कहाँ रहते हैं तो वह तो जानते हैं परंतु फिर भी कोई डिफिकल्टी हो तो उनको साल्वेशन मिलनी चाहिए । आते हैं तो फिर पूरा बिचारे अपना लाभ भी लेवें और फिर अपना पूरा पूरा जो डोज है वह लेकर के फिर सारा दिन मिजाज जो है ना वो अच्छा रहता है । नहीं तो फिर, क्योंकि दुनिया की लाइफ देखो कैसी है, मिलते भी ऐसे है, साथी भी ऐसे है, जिन्हों के साथ कांटेक्ट होता है वो भी है कोई कुछ कोई कुछ कोई कुछ तो फिर माइंड जो है वो डिस्टर्ब हो जाती है तो इसीलिए फिर यह बल है तो उसमें खुश रहेगा और कई ऐसी बातों में चलेगा नहीं । उसमें गिरेगा नहीं संभलेगा ही अच्छी तरह से । तो यह सभी बात अपने पास रखने की है तो इसीलिए कोई अगर टाइम की दिक्कत हो या आने जाने की हो तो आप लोग उसकी सहूलियत रख सकते हो । बाकी ठीक हो जैसे अगर टाइम ठीक है तो कोई हर्ज नहीं है, कभी-कभी हो जाता है कभी बस का कभी उनका ये सब है ही, देखो यह कोई रेगुलर दुनिया थोड़ी है इरेगुलर है सब । अभी ये तत्व आदि भी सब इरेगुलर है कोई आर्डर में नहीं है । तो यह तो दुनिया का है ही परंतु फिर भी जितना अपना बन सके, कोई ऐसी दिक्कत हो तो कह सकते हैं, देखो ये अपना सहज मार्ग है न कोई हठ तो है नहीं, इसीलिए उसमें सहज बाकि हाँ अपना अटेंशन रखना है, अपनी धारणा अपना पुरुषार्थ अच्छा रखना है । अच्छा! कैसा? आती है , सब भाषा समझते हो । ये जो बैठे हैं सब भाषा समझते हो? पपैया समझता है भाषा हिंदी समझते हैं ? भोपालम भी समझते हैं, हिंदी भाषा भी समझते हैं ना ठीक से ? पुरुषार्थ क्या करना है ? ऐसा? पुरुषार्थ यही करना है कि जैसे बाप कहते हैं ना कि पहले तो है पांच विकार, विकारों को समझते हो ना? काम क्रोध लोभ मोह अहंकार यह पांच विकार है । अभी हमको पुरुषार्थ में क्या रखना है कि पहले-पहले तो बाप का रिलेशन पकड़ना है समझा । पहले हम अपने को समझते थे हम बॉडी हैं । आप आगे आइए । पहले हम समझते थे हम बॉडी हैं समझा, अभी अपने को बॉडी नहीं समझना है भले काम करते हो ना अपने ऑफिस में या जहाँ भी आपका काम हो तो आपको क्या ख्याल रखना है कि आई एम सोल तो यह पुरुषार्थ है हमारे अंदर का, ये अन्दर का है, बाहर से तो कुछ करने का नहीं है ना हाथ पाव से । ये है अंदर का । तो हमको अपने को क्या समझना है, आई एम सोल, नोट बॉडी । तो पहले तो अपने को सोल समझना है । हम सोल है अभी हम सोल इन हाथों से लिखते हैं । हम ये आत्मा इन हाथों से लिखवाती हैं । इसको आर्डर करते हैं कि लिखो ये ओरगंस का आधार लेकर । हमको कुछ देखना है, हम आंखों से देखते हैं, मुख से बोलते हैं तो हम जैसे औरगन्स का आधार लेकर के, जैसे हम पेंसिल हाथ में उठा कर के हम पेंसिल से काम लेते हैं, पेन से काम लेते हैं, वैसे ही यह हमारा हाथ है । हम हाथ नहीं हैं, आई एम सोल, यह हमारा है हम इससे काम लेते हैं, हैंड से काम लेते हैं, कानों से काम लेते हैं, सब शरीर की जो ऑर्गन्स है उससे काम लेते हैं तो काम करने के समय हमको यह बुद्धि में रहना चाहिए यह है पुरुषार्थ । अभी पुरुषार्थ समझाते हैं, तो आई एम सोल लेकिन यह सब ऑर्गन्स से जो भी काम करते हैं, टांगों से चलते हैं वैसे तो हम समझते हैं कि ये हम तंग चलाने वाला मैं आत्मा तो ध्यान अपना आत्मा में रखना है । तो आत्मा में रखने से फिर हमको अपना परमात्मा पिता जो है ना उसका रिलेशन याद रहेगा । तो यह आत्मा आई एम सोल, सन ऑफ सुप्रीम सोल ये बुद्धि में हर वक़्त रखना है ये है पुरुषार्थ । तो अपनी बुद्धि का ध्यान जो है, अटेंशन जो है इसी चीज में रखना है । चलते हुए भी ध्यान कि हम आत्मा चल रहे हैं टांगों से शरीर को चला रहा हूँ, आई एम सोल चला रहा हूँ, आई एम सोल देख रहा हूँ, तो देखने समय, सुनने समय आई एम सोल सुन रहा हूँ तो अपने बुद्धि में रखना है, यह कहने का नहीं है । यह तो हम आपको समझाने के लिए कहते हैं लेकिन घड़ी-घड़ी कहना नहीं है आई ऍम सोल सुन रहा हूँ, आई एम सोल, कहने की कोई बात नहीं है । यह तो हम आप को समझाने के लिए कहते हैं, लेकिन यह हमको अपनी बुद्धि में रखना है इसको कहा जाता है सोल कॉन्शियस । सोल कॉन्शियस वह है बॉडी कॉन्शियस तो नॉट बॉडी कॉन्शियस बट सोल कॉन्शियस तो अपने को सौल कॉन्शियस रख करके आई एम सोल सन ऑफ सुप्रीम सोल यह बुद्धि में रहना चाहिए । तो इससे क्या होगा हमारे एक्शंस जो चलेंगे ना उसमें हम सेफ रहेंगे । हमसे कभी क्रोध नहीं होगा । इसी धारणा से हमारा क्रोध नहीं होगा क्योंकि जब हम को क्रोध का कोई बात आए, हमको समझो इस ने दो गाली दी तो हमारे ध्यान में क्या होगा, हम सौल कॉन्शियस होंगे ना तो क्या होगा यह भी तो आत्मा है, यह भी तो आत्मा ही है ना, हम आत्मा है तो यह नहीं है क्या । यह भी आत्मा है यह भी बुद्धि में आएगा ना, यह सब सोल्स हैं तो यह भी आत्मा है परंतु इस बेचारी आत्मा को यह ज्ञान नहीं है कि आई एम सोल तो इसको ज्ञान ना होने के कारण यह क्रोध करता है, हमको गाली देता है परंतु हम बॉडी कॉन्शियस होकर के सोंचे की इसने हमको गाली डी है तो हम दो का चार देंगे यह नहीं आएगा । हमको क्या आएगा कि यह बिचारा । बिचारा मन में आएगा की बिचारे को नॉलेज नहीं है । इसकी हानि होती है, यह देखो बॉडी को इनसे होने के कारण की हानि होती है । हमको हानि का पता है ना यह नुकसान कर रहा है तो इनको हमको क्या है इनको सोल कॉन्शियस बनाना है तो हम इसको भी बाप के साथ रिलेशन और तुम आत्मा हो ये बता दें तो यह भी बिचारे कर्म अच्छे करें । नहीं तो देखो यह क्रोध में आकर के अपनी हानि कर रहा है या गाली देता है इससे इसके विकर्म बनते हैं । तो हमको यह नॉलेज है ना तो इसी के आधार से हमको तरस पड़ेगा । किसी की हानि देख कर के तरस पड़ता है ना कि यह अपना, आपे ही अपनी हानि कर रहा है जैसे कोई अपनी हानि करता है तो नहीं उसके ऊपर तरस पड़ेगा अरे डुबोया है अपने को, ये बिचारा डुबोता है कोई बचाओ बचाओ ऐसा आएगा न तो यह भी बिचारा डुबो रहा है अपने को तो हमारे को क्या आएगा कि नहीं, इसको बचाएं । तो हम को तरस पड़ेगा, ऐसा नहीं आएगा इसने दो गाली दी है तो हम भी दो गाली दें । नहीं, तो क्या होगा, माइंड चेंज हो जाएगी इससे चेंज हो जाएंगे । हम क्रोध से काम ना ले करके, उससे प्रेम से काम लेंगे उसको भी बनाएंगे । हाँ बाकी कहीं हमको जरूरत पड़े कि नहीं, यह आदमी या कोई ऐसी कड़ी बातें भी होती है देखो बच्चा है, छोटा है, नहीं समझते हैं भाई बच्चे हैं छोटे हैं वह थोड़ी इतना ज्ञान समझेगा तो हाँ बच्चे को जरा मूड से । वह तो जैसे एक्टर्स होते हैं ना, बाहर बाहर से ऐसे ही मूड बनाकर के, परन्तु अंदर से तो फीलिंग नहीं होती है ना । अंदर नहीं होगा वो सिर्फ बाहर से जैसे एक्टिंग तो वह कहाँ हमको काम चलाने के लिए तो उसी तरीके से बाकी अपनी माइंड जो है ना वह सेफ रखनी है । तो वो हमारा रहने से, यह पुरुषार्थ है । अंदर हमको क्या करना है ये अंदर का पुरुषार्थ है । तो यह पुरुषार्थ रखने से हमारी एक्शंस जो है ना वह राइटियस रहेंगे, रोंग नहीं होंगे । राइटियस एक्सपेंस रहेंगे जिससे हमारे कर्म क्या है श्रेष्ठ बनेंगे और बाप की याद वो भी अपने में हर वक्त रहे कि हम उनकी संतान हैं । तो उनकी संतान हैं तो जैसा बाप वैसी हमको भी क्वालीफिकेशंस रखनी चाहिए ना जैसे कोई बच्चा किसी बड़े खानदान का बच्चा हो, उसका बाप कोई पोजीशन वाला हो तो उसको ध्यान तो रहेगा ना कि हमारा फादर बड़ा मिनिस्टर है, हमारा फादर बड़ा है । हम जो काम करेंगे तो सन शोज फादर इसीलिए हम जो कोई ऐसा काम करेंगे तो बाप के ऊपर कलंक लगेगा । तो हमको कोई ऐसा काम नहीं करना है जो हमारे बाप के ऊपर ग्लानि पड़े तो ध्यान रखेंगे । तो हमको हर तरह से अपने एक्शंस का ध्यान रखना है इससे क्या होगा कि हमारे कर्म अच्छे रहेंगे और हमने जो पाप किए हुए हैं पिछले भी, उनके ऊपर भी बल मिलेगा । वह भी हमारे दग्ध रहेंगे और इसी तरह से चलने से सदा हमारी हैप्पी लाइफ रहेगी । सब कुछ अच्छा रहेगा । कोई मरेगा न तो भी हम समझेंगे की आत्मा बिचारी एक शरीर छोड़ा और दूसरा लिया जाकर कर्म से तो उसका हमको उसी तरीके से दुःख नहीं होगा । अगर दु:ख होगा तो यही होगा कि बेचारा देखो कुछ अपना बनाकर नहीं गया तो हमारा काम है हम उसको रोशनी दे करके कुछ बनाए । तो अगर दुःख होता है तो यही कि देखो बिचारे ऐसे ही चले गए, बिचारे ने कुछ बनाया ही नहीं । अपने कर्म का खाता जो उल्टा किया या जो किया वही ले गया । तो हमारा अभी काम है दूसरे के ऊपर तरस करना, दूसरे के ऊपर हितकारी बनना, इसी में रहेंगे कि उसको राइट रास्ता दिखाएं । तो है अपनी और अपने भी एक्शंस को ठीक रखना, अपना अटेंशन रखना, उसी पुरुषार्थ में चलना । बाकी कोई हाथ से कुछ करना या माला सिमरनी है या कोई आसन लगाना है बाहर से कुछ नहीं । बाकी याद रखना है इसीलिए कहा है ना दो बातें बी प्योर एंड बी योगी । प्योर रखना है अपने को और अपने एक्शंस को और फिर याद रखना है बाप को, यह है दो बातें जिसको अपने में धारण करना है और अपनी प्रैक्टिकल लाइफ उसी पर चलानी है तो हमारी प्रैक्टिकल लाइफ में हमारी जो जरूरी एक्शंस है और राइट एक्शंस है वह चलेंगे रॉन्ग निकल जाएंगे फिर हमारी सेफ्टी होती जाएगी और हम सेफ होते हैं तो फिर दूसरों को भी सेफ करेंगे । फिर हमारी सेवा कौन सी चलेगी? हमको अन्दर में आएगा कि हम अगर समझते हैं कि ये गिरता है, ये मरता है ये बिचारा अपनी हानि कर रहा है तो हमारे दिल में जरूर आएगा की इनको भी बचाएं । तो ऑटोमेटिक हमारे मन में भी कि दूसरों को भी ऐसा बनाना, उसको भी सावधान करना कि नहीं तुम भी आत्मा हो, अपने पिता को याद करो, यह चलेगा । उसको भी रास्ता बतलाना, अगर हम किसी रास्ते पर लगे हैं और हम समझे कि नहीं विचार है उल्टा जा रहा है तो आएगा ना दिल में कि इसको भी रास्ते पर लगाएं भाई इधर रास्ता है, इधर नहीं है तू उल्टा जा रहा है । जहाँ तुमको जाना है वहाँ जाने का रास्ता यह नहीं है, तू उल्टा जा रहा है, उसको रास्ता देना है । तो आएगा तो फिर हमारी सेवा भी वो ही चलेगी । नहीं तो आप लोगों से हमारी क्या पड़ी है हम जानते हैं आपको? कोई रिलेशन तो नहीं है ना, लेकिन अभी आत्मा का रिलेशन है इसीलिए तरस पड़ता है की ये बिचारी आत्माएं इस चीज को समझ करके अपनी लाइफ को ये भी हैप्पी बनाएं और सदा के लिए अपने जेनरेशंस की ऊँचे करें तो उसी के लिए । और अभी यह भी जानते हैं कि टाइम भी अभी बहुत खराब आ रहा है । दुनिया की हालतें अब दिन-ब-दिन बहुत खराब आने की है और जानते हैं कि गॉड के द्वारा परमात्मा के द्वारा अभी यह वर्ल्ड हिस्ट्री का सारा पता चला है कि ये अभी वर्ल्ड के एंड का टाइम है इसीलिए अभी हमें क्या करना चाहिए, उसके लिए भी हमको प्रिपेयर रहना क्योंकि हालतें बड़ी सीरियस आएंगी । इसी समय हमको अपने को भी ठीक रखना और फिर हमारा भविष्य बने अच्छी तरह तो फिर अंत मते सो गते ऐसी अपनी अवस्था को बनाना है । तो यह सभी अपना ध्यान रखने की बात है बाकी तो हाँ अपना शरीर निर्वाह का काम करना है, बच्चे हैं, बच्चों को संभालना है और जो बच्चे भी इसी राह में चले उसको भी अपने पवित्रता और उसकी बातों पर चलाना है । ना चले तो दूसरी रास्ते चलना चाहे चलाओ उसमें क्या है जो करेगा तो पाएगा लेकिन हमारा काम तो है ना कि हम देखते हैं यह गिरना है, यह मरने की चीज है तो उसको बचाना तो हमारा काम है ना । कोई गिरता रहे और हम देखे तो कहेंगे भले गिरे हाँ? नहीं, कोशिश करना अपना धर्म है बाकि कोई कहे नहीं, हम गिरेंगे ही तो कहो गिरेंगे तो गिरे फिर क्या करें, बाकि कोशिश करना तो अपना धर्म है ना । तो इनको फिर यह पुरुषार्थ अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी । तो यह है कर्म, कर्म अच्छे का मतलब यही है तो इसी से ही फिर हम सदा काल के सुख को अपना भी बनाते हैं और दूसरों का भी बनाते हैं । तो यह है चीज बाकी याद रखना है इसीलिए यह सब अभ्यास फिर इसी के लिए प्रैक्टिस क्योंकि सारा दिन आप लोग काम धंधे में रहते हो, बुद्धि उसमें रहती है इसीलिए आप लोगों को रोज का यह लेसन दिया जाता है इससे रिमाइंड मिलती है ना बुद्धि में घड़ी-घड़ी रिमाइंड किया जाता है जैसे कोई चीज याद कराई जाती है न भाई याद है, याद है तो रिमाइंड, रखते हैं ना, तो यह भी आप लोगों को जैसे रिमाइंड किया कराया जाता है । आते हो तो यह डोज मिलने से बुद्धि रिफ्रेश रहती है । अगर आप 10 रोज नहीं आकर के देखो फिर यह सारा नशा उतर जाएगा । ये देख लो आप एक हफ्ता ना आओ इधर तो फिर देखो क्या हाल हो जाता है । वो जैसे खाली-खाली लगता है एकदम । वह नेचुरल है न , एटमॉस्फेयर जो है बाहर का, उसी का वातावरण वह सब बातें, फिर वह सब खत्म कर देती हैं । अगर इसी वातावरण में रोज का डोज मिलता है फिर इसी वातावरण का सारा दिन नशा रहता है आज हमने यह सुना, यह बातें ऐसी है, तो मन्थन भी रहता है बुद्धि में, राइटियस तरफ बुद्धि रहेगी, नहीं तो फालतू बुद्धि काम करती रहेगी फिर फालतू- फालतू संकल्प । नहीं, बुद्धि को यह वर्क मिलता है । काम चाहिए ना उनको । उनको भी राइटियस काम चाहिए । उनको राइटियस काम नहीं मिलेगा तो कुछ न क्कुह उल्टा पुल्टा बुद्धि में चलाती रहेंगी । मन वचन और कर्म जिसको कहा जाता है थॉट वर्ड और डीड ऐसे कहते हैं ना तो थॉट वर्ड और डीड यह तीनों को स्वच्छ बनाना है । तो थॉट को परमात्मा के साथ लगाना है उसके ही विचारों में, जो ये सुना रहे हैं और वर्ड, वर्ड भी उसके जो अभी वर्ड सुना रहे हैं ना वह सुनाना है बुद्धि में अपना, बाकी काम काज तो अपना करना ही है । धंधा धोरी है उसका तो बोलना ही है ना, जो जरूरी है वह तो करना ही है बाकी कोई अनुचित नहीं बोलना है । आगे तो अनुचित बोल देते थे, तो हम बोल देते थे गाली या कोई भी अनुचित बात कह देते थे, अभी समझ से इसलिए थॉट वर्ड और डीड, अपना एक्शन सभी । इन सभी के ऊपर पूरा अटेंशन देना है । अटेंशन आएगा जब हम वह याद रखेंगे आई एम सोल सन ऑफ सुप्रीम सौल, फर्स्ट इसी को याद रखना है समझा । यह है पुरुषार्थ, अंदर का है ना बाकी बाहर से तो कुछ करने का नहीं है । बाहर से तो काम काज जो भी है वो करना ही है और यही अपना करना है फिर बाकि अपना जो टाइम बचता है तो यही आर्टिकल लिखो दूसरी दुनिया को भी रोशनी देने के लिए यह करो, वह करो, जैसा जिसका दिमाग है । जितना काम कर सकते हो उसी तरीके से करो । कुछ दिमाग है तो लिखो, लिखत से किसी को समझाओ, कई तरीकों से हम सेवा कर सकते हैं न तो करो, तो यह है ऐसा । अच्छा टोली दो अभी । अच्छा आप कौन हैं हाँ जो धारणा में पवित्रता को अपनाया है । अपनी प्रैक्टिकल लाइफ को पवित्र रखकर के चल रहे हैं तो जो पवित्र रहते हैं उन्हें के ही हाँथ का खाना है और पवित्रता में रहकर के पकाना है खाना है तो बल मिलता है न ताकत मिलती है । कैसा हो परमधाम ? परमधाम में रहते हो न ? हाँ ये तो युगल है जोड़ी है । आओ । अच्छा ऐसा बाप दादा, दादा को जानते हो ना अभी? बापदादा और माँ के मीठे-मीठे बहुत सपूत बच्चों प्रति यादप्यार और गुड मॉर्निंग ।