मम्मा मुरली मधुबन           

 परमात्मा और धर्मात्मा में अन्तर और उनके कर्तव्य

 


दुनिया यह तो मानेगी ही कि परमात्मा एक है । अभी सारी दुनिया का परमपिता परमात्मा जो एक है तो उनको ही कहा जाता है निराकार परमात्मा और निराकार परमात्मा के लिए ही सारी दुनिया परमात्मा एक कहती है । तो यह भी समझने की बात है कि परमात्मा तो एक ही है ना । ऐसे तो नहीं है ना कि सभी धर्म का परमात्मा अलग अलग है। सभी धर्मों के धर्म पिता अलग-अलग कह सकते हैं जैसे क्राइस्ट है क्रिश्चियन धर्म स्थापन करने वाला, बुद्ध बुद्धिज्म धर्म स्थापन करने वाला परंतु खुद क्राइस्ट अथवा बुद्ध अथवा इस्लाम धर्म स्थापन करने वाले ने भी अपने को ऐसा नहीं कहा कि मैं परमपिता परमात्मा हूँ या भगवान हूँ । नहीं, उन्होंने भी उस निराकार परमात्मा की ओर इशारा रखा कि परमात्मा वो है । जैसे क्राइस्ट ने भी अपने को सन ऑफ गॉड कहा ऐसे नहीं कहा आई एम गॉड, नहीं सन ऑफ गॉड और परमात्मा उसी निराकार को कहा तो जो खुद धर्म स्थापक है उन्होंने भी अपने को गॉड ना मान करके उसी निराकार को कहा । गुरु नानक देव ने भी उसको ऊपर रखा कि ऊंचे से ऊंचा भगवन तो वह निराकार को रखा ना। अपने को नहीं कहा कि मैं परमात्मा हूँ अपने को और ही नीचे रखा । तो यह सभी चीजें समझने की है कि जिन धर्म स्थापन करने वालों धर्म पिताओं ने भी अपने को परमात्मा परमपिता नहीं कहा उन्होंने भी उनको अपना पिता रखा तो वह उनकी संतान हो गई ना। तो यह सभी बातें समझने की है कि सबका पिता एक है। अभी सबका पिता एक जिसको निराकार कहा जाता है तो उसकी भी तो जानकारी होनी चाहिए ना कि वह परमपिता परमात्मा कौन है । अभी हम भारतवासी भी जो कृष्ण अथवा राम को मानते हैं तो यह भी तो समझने की बात है ना कि कृष्ण और राम उनको परमात्मा कहें या उन्हें भी परमात्मा की संतान कहें क्योंकि कृष्ण और राम यह तो सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजे महाराजाएं सतयुग और त्रेता के होकर के हुए हैं और यह देवी देवता तो इनको देवता कहेंगे । इन देवताओं को ऐसा देवता बनाने वाला भी वह परमपिता परमात्मा है तो परमात्मा तो अलग हो गया ना इसीलिए भारतवासियों में ही यह चित्र भी हैं रामेश्वर का या कृष्ण का, सभी देवताओं का जिसमें सभी देवताएं शिवलिंग की जो प्रतिमा है ना उनका बैठकर के पूजन करते हैं। तो वह दिखाते हैं जैसे रामेश्वर का दिखलाया है कि राम ने शिव का पूजन किया है। ऐसे कृष्ण का भी दिखाते हैं और सभी देवताओं का मिला हुआ चित्र भी दिखलाते हैं ब्रह्मा विष्णु शंकर सब शिवलिंग के आगे हाथ जोड़कर खड़े हैं। तो वह शिवलिंग प्रतिमा वह निराकार परमात्मा की जिसको ज्योति रुप या ज्योतिर्लिंगम निराकार परमात्मा कहा जाता है उनकी प्रतिमा है जिसको चित्रों में दिखलाते हैं कि सभी देवताए भी उसकी मान्यता करते हैं कृष्ण राम आदि भी । तो यह समझने की बात है कि वह जो निराकार है जिसको शिव कहा जाता है परंतु कई भारतवासी शिव और शंकर को भी नहीं समझते हैं ना इसीलिए वह समझते हैं कि शिव और शंकर एक हैं। अभी ऐसा नहीं है शिव कहा जाएगा निराकार को ना तो शंकर जो चित्रों में दिखाते हैं ना कि उनके गले में साँप आदि पड़े हैं, अभी यह भी उनका बच्चा है । उसे भी देवता कहेंगे, शंकर को देवता कहेंगे । शंकर को परमात्मा नहीं कहेंगे शिव को परमात्मा कहेंगे तो शिव और शंकर के भी अंतर को समझना है ना। तो शंकर हो गया शिव का बच्चा और सभी देवता है शिव के बच्चे । धर्म स्थापक धर्म पिता भी शिव के बच्चे। तो शिव निराकार उनको कहा जाएगा ज्योतिर्लिंगम शिव परमात्मा उन्हीं को ही परमात्मा कहा जाता है। तो अभी सबका पिता तो एक हो गया ना इसलिए हर एक के ऑक्यूपेशन को समझने की बात है कि परमात्मा क्या देवता क्या और मनुष्य क्या बन सकता है। मनुष्य परमात्मा बन सकता है या मनुष्य को देवता बनना है तो ये सभी चीजें भी तो समझने की है ना। हर एक चीज से हर एक का ऑक्यूपेशन अच्छी तरह से समझना है। सब मिल मिलाकर के एक ही तो नहीं कहने का है ना । अभी मिनिस्टर, गवर्नर, कलेक्टर सब की पोस्ट अलग है और हर एक का ऑक्यूपेशन और कर्तव्य अलग है। ऐसे तो नहीं कहेंगे ना कि सब एक है। इसी तरह से परम आत्मा और परमात्मा का कर्तव्य अलग है और देवता और देवताओं के गुण, ऑक्यूपेशन अलग है। तो हर चीज को समझने की बात है इसीलिए देवता और परमात्मा को मिलाकर एक कह देना यह बड़ी भारी भूल हो जाती है । तो जिसको हम मानते हैं परमपिता सारी दुनिया एक को कहती है तो वह एक कौन है। तो एक है यह ज्योतिर्लिंगम निराकार परमात्मा जिसको स्टार लाइट कहो या बिंदी कहो लेकिन है तो छोटी सी ही यह तो चित्र में बड़ा दिखाया है लेकिन है तो छोटी सी बिंदी। तो आत्मा भी ऐसी ही चीज है परंतु आत्मा हर एक की अपनी अपनी अलग अलग है। जितने मनुष्य हैं उतनी आत्माएं हैं ऐसे नहीं कहेंगे सब की आत्मा एक ही है नहीं तो हर एक आत्मा अलग-अलग है। जितने मनुष्य उतनी ही आत्माएं हैं, सोल्स हैं एक सोल नहीं है । सोल सुप्रीम सोल जिसको गॉड कहा जाता है वह एक है तो सभी आत्माओं में उनको ऊंचा कहेंगे क्योंकि वह जन्म मरण रहित हैं तो गॉड को सुप्रीम सोल कहेंगे । आई एम सोल यानी हम मनुष्य आत्माएं आत्मा है। तो अपने को कहेंगे आई एम सोल सन ऑफ सुप्रीम सोल। तो गॉड को सुप्रीम क्यों कहा जाता है, है वह भी सोल परंतु सुप्रीम क्यों कहते हैं इसीलिए कहते हैं क्योंकि वह जन्म मरण में नहीं आते हैं और हम सब आत्माएं शरीरधारी जन्म मरण में आते हैं इस कॉरपोरियल वर्ल्ड में अनेक जन्मों में हम पार्ट बजाने आते हैं लेकिन हम आत्माएं आती कहाँ से हैं निराकारी दुनिया का मतलब ही है इनकॉरपोरियल वर्ल्ड । तो वर्ल्ड है यानी इनकॉरपोरियल एक नहीं है इनकॉरपोरियल की भी वर्ल्ड है यानी बहुत है। वर्ल्ड कहा जाता है उसी चीज को जिसमें बहुत हो। देखो यह मनुष्य सृष्टि अथवा मनुष्य की वर्ल्ड यानी उसको कहा जाता है कॉरपोरियल वर्ल्ड तो यह कॉरपोरियल बहुत है ना, एक थोड़ी है एक मनुष्य होता तो फिर इसको वर्ल्ड थोड़ी कहते। तो यह बहुत है इसलिए उसको कहा जाता है कॉरपोरियल वर्ल्ड। कॉरपोरियल वर्ल्ड यानी साकार शरीर धारण करने वाले मनुष्यों की दुनिया तो शरीर धारण करने वाली मनुष्य आत्माएं बहुत है एक नहीं है एक होता तो फिर उसको दुनिया नहीं कहते। दुनिया माना इसमें बहुत होते हैं उनको मिलाकर दुनिया कहने में आती है। इसी तरह से निराकारी भी दुनिया है माना निराकारी बहुत है एक नहीं है, तो बहुत कौन आत्माएं और परमात्मा भी वहाँ का निवासी । तो यह सभी चीजें समझने की है कि यह सभी सोल उनको कहा जाता है इनकॉरपोरियल वर्ल्ड, हिंदी में कहेंगे निराकारी दुनिया और अंग्रेजी में कहेंगे इनकॉरपोरियल वर्ल्ड और इस साकार दुनिया को कहेंगे कॉरपोरियल वर्ल्ड और हिंदी में कहते हैं साकार दुनिया । तो यह सभी चीजें समझने की है ना इसीलिए हमारा पिता सारी दुनिया का एक उन्हीं को कहा जाएगा। अभी यह जो कई भारतवासी भी समझते हैं कि परमात्मा का अवतरण हुआ अभी उनके अवतरण को भी समझना है कि हाँ सुप्रीम सोल भी जो निराकार है ना अभी उसका अवतरण हुआ है । अवतरण का मतलब है जैसे हम आत्माएं ऊपर से निराकारी दुनिया से यहां आती हैं ना साकार में यानी शरीर को लेते हैं तो परमात्मा भी जो सुप्रीम सोल है वह भी एक बार आता है परंतु वह कहते हैं मैं मनुष्य सदृश्य प्रकृति के वश होकर के कर्म के हिसाब से शरीर नहीं लेता हूँ मैं आता हूँ प्रकृति को अधीन करके यानी शरीर का आधार लेकर के यह गीता की भी वर्शन है कि मैं प्रकृति का आधार लेता हूँ यानी टेंपरेरी आकर के मनुष्य तन का सहारा लेता हूँ बाकी मेरा कोई अपना तन अपने कर्मों के हिसाब से ऐसा नहीं है परंतु मैं क्यों आता हूँ मुझे भी आना पड़ता है यह मनुष्य आत्माएँ जो पाँच विकारों के वश हो करके माया की बॉन्डेज में बंध गई है ना ऐसी जब दुख अशांति में आ जाती हैं आत्माएँ अथवा मनुष्य तभी मैं फिर आ करके उन्हों को उससे छुड़ाता हूँ । कहा भी है ना यदा यदा ही देखो गीत भी अभी सुना कि हाँ छोड़ दे आकाश सिंहासन, अभी कोई आकाश में तो नहीं बैठा है ना। आकाश से पार जिसको कहा जाएगा इनफिनिट लाइट तो आकाश यानी पांच तत्वों से भी पार इंफिनिट लाइट में जहाँ आत्माएँ भी निवास करती हैं और जहाँ परमात्मा भी निवास करते हैं जैसे स्थल में आकाश में तो इस स्थल में मनुष्य रहते हैं इसी तरह से इंफिनिट लाइट में आत्माओं का और परमात्मा का निवास है तो आत्माएँ वहाँ पर आती है लेकिन एक बार परमात्मा कहते हैं जब सब आत्माएँ जन्म मरण के चक्कर में आकर के फिर पाँच विकारों के बस में फंस जाती हैं तब फिर मैं उनको छुड़ाने आता हूँ । तो कहा है ना गीत में भी सुना कि यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत की जब-जब अधर्म की वृद्धि होती है अर्थात धर्म की हानि होती है तब तक मैं आता हूँ अथवा जब पाप बढ़ जाता है तब तब मैं आता हूँ । तो आते हैं काहे के लिए, आते हैं पापों से छुड़ाने के लिए तो वह उनका पावर शक्ति काम करती है पापों के ऊपर क्योंकि सुप्रीम सोल है ना वह जन्म मरण रहित है एवर प्योर है तो उनको कहा जाएगा परमात्मा । तो वह है एवर प्योर और हम आत्माएँ जन्म मरण में आती हैं इसीलिए हम आत्माएँ जो है ना पाप आत्माएँ बनती है देखो कहते भी है ना पाप आत्मा, पुण्य आत्मा तो पाप और पुण्य तो आत्मा के ऊपर लगता है ना ऐसे नहीं जैसे कई समझते हैं आत्मा निर्लेप है, आत्मा को कोई लेप छेप नहीं लगता है, नहीं आत्मा को ही तो लगता है ना । अगर आत्मा को नहीं लगता तो मनुष्य एक शरीर छोड़कर के दूसरा कौन लेते हैं, आत्मा ही तो लेती है ना। आत्मा ही तो यह बॉडी का कवर छोड़ कर के जा करके दूसरा लेती है तो आत्मा ही तो अपने कर्मों का हिसाब ले जाती है ना अच्छा बुरा। तो अच्छा बुरा आत्मा के साथ रहा तभी तो आत्मा जाती है और जा कर के फिर जो कर्म का हिसाब है दूसरे जन्म में पाती है तो वह कौन पाती है, आत्मा ही तो पाती है ना। अगर शरीर को पाना हो तो शरीर जावे । नहीं, शरीर तो इधर छोड़ा जाती है जाती है आत्मा तो उसका मतलब है रिस्पांसिबल आत्मा है ना। आत्मा अपने कर्म के अच्छे बुरे का हिसाब लेकर के दूसरे शरीर को जाकर के लेती है। तो लेती और छोड़ती कौन है आत्मा, शरीर एक छोड़ती है दूसरा लेती है और कर्मों का हिसाब उसके साथ रहा तो अच्छा चाहे बुरा वह आत्मा के साथ रहा ना लेप छेप यानी आत्मा के ऊपर ही तो रिस्पांसिबिलिटी रही ना। तो यह सभी चीजों को समझना है इसीलिए परमात्मा कहते हैं मैं तभी आता हूँ जब आत्माओं के ऊपर यह मेल, आवरण कहो या अंग्रेजी में इसको डस्ट यह सब चढ़ती है तो आता हूँ उनको फिर उतारने के लिए। जैसे देखो सूर्य होता है ना चंद्रमा होता है उसके ऊपर ग्रहण लगता है तो फिर कहते हैं ना दे दान तो छूटे ग्रहण तो अभी आत्मा के ऊपर भी यह माया का, पांच विकारों का ग्रहण लगा हुआ है तो बाप कहते हैं अभी दे दान यानी यह विकारों को छोड़ो तो फिर तुम्हारा यह ग्रहण उतर जाएगा। फिर तुम आत्मा जो असुल प्यूरीफाइड थी वह प्यूरीफाइड हो करके तुमको फिर शरीर भी प्यूरीफाइड मिलेगा जिनको फिर देवता कहते थे, अभी श्री कृष्णा और श्रीराम इन्हों को देवता कहते हैं क्योंकि इनकी आत्मा भी पवित्र थी और शरीर भी पवित्र था तो इन्हों को देवता कहा जाता है तो ऐसे मनुष्य जिनकी आत्मा भी पवित्र शरीर भी पवित्र ऐसे सिर्फ सतयुग और त्रेता के मनुष्य थे यानी देवताएं भी मनुष्य को ही कहेंगे ना। मनुष्य भी क्वालिफाइड जिनको कहा जाता है सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण संपूर्ण निर्विकारी, तो यह मनुष्य निर्विकारी थे, सर्वगुण संपन्न थे, कंपलीट थे तो कंप्लीट मनुष्य को देवता कहा जाता है इसीलिए वह आत्मा भी पवित्र शरीर भी पवित्र तो यह सभी चीजें समझने की है क्योंकि भारतवासी श्रीकृष्ण को तो मानते हैं परंतु वह जो सुना है ना कि श्री कृष्ण फिर भगवान कह दिया क्यों क्योंकि उन्होंने गीता का भगवान कृष्ण को रख दिया है। वह समझते हैं द्वापर के समय में कृष्ण आया और उसने ही आकर के ज्ञान दिया, अभी ज्ञान दिया निराकार परमात्मा ने जिसको शिव कहते हैं शंकर नहीं यह भी समझने की बात है । शिव, ज्योतिर्लिंग वह आया और उन्होंने ही आकर के ज्ञान दिया उनको ही कहा जाता है ना नॉलेजफुल। नॉलेजफुल किसको कहेंगे निराकार परमात्मा को, जानी जाननहार, ज्ञान का सागर, शांति का सागर, सुख का सागर, अंग्रेजी में भी कहते हैं ब्लिस्फुल, पीसफुल यह सब उनको ही कहा जाता है ना, ओसियन ऑफ नॉलेज देखो यह महिमा किसकी है तो यह ओसियन ऑफ नॉलेज या नॉलेजफुल उनको ही कहा जाता है ना ओसियन ऑफ पीस यह सभी उनके लिए हैं तो यह है सारी परमात्मा की महिमा यह देवता या मनुष्य के लिए तो नहीं कहा जा सकता ना । अभी उसने आकर के जो ज्ञान दिया और मनुष्य को क्या बनाया फिर मनुष्य को कंप्लीट कैसे बनाया वह फिर कंप्लीट मनुष्यों में यह देवता श्री कृष्ण, श्री राम। तो यह है मनुष्य का आदर्श कि मनुष्य भगवान ने कैसा बनाया, ऐसा कंप्लीट। इसीलिए कहते हैं यदा यदा ही जब-जब अधर्म होता है तब तब मैं आता हूँ ऐसे मनुष्य बनाने के लिए तो परमात्मा जो आते हैं जिन्होंने अधर्म नाश करके सत्य धर्म जो स्थापन किया तो सत धर्म की मीनिंग क्या है, उनका मतलब यही है कि सब धर्म माना धर्मात्माएं मनुष्य तो धर्मात्माएं मनुष्य कौन थे जो देवी देवता थे इन्हों को ही महान आत्माएं धर्मात्मा इन्हों को ही कहा जा सकता है। आज की दुनिया में किसी को भी महान नहीं कहा जा सकता है । महान माना सबसे श्रेष्ठ जिसके ऊपर कोई श्रेष्ठ नहीं तो देवताओं के ऊपर कोई श्रेष्ठ नहीं है यानी मनुष्य, बाकी परमात्मा तो सबसे ऊपर है ही वह तो बात अलग रही परमात्मा के साथ तो किसी की भेंट की नहीं जा सकती वह तो गॉड इज वन, वन के साथ दूसरा हो ही नहीं सकता है नहीं, गॉड एंड गॉडेजिस भी जो अंग्रेजी में कहते हैं तो वह भी देवी देवताओं को है परंतु वास्तव में निराकार परमात्मा को तो कोई गॉडेस नहीं है ना, उनको तो गॉड कहेंगे परंतु यह क्यों कहा है गॉड एंड गॉडेस यानी परमात्मा ने जो गॉड है उसने जो धर्म स्थापन किया है ना वह देवताओं का धर्म है जो कहा है ना मैं आता हूँ सतधर्म स्थापन करने तो सतधर्म कौन सा? यह देवी-देवता वाला धर्म स्थापन किया है तो उस धर्म का नाम पड़ गया है गॉड एंड गॉडेज जैसे हिंदी में भी कहते हैं भगवती भगवान। अभी वास्तव में मनुष्य को भगवती भगवान कह नहीं सकते हैं परंतु वह नाम हुआ जैसे क्राइस्ट ने धर्म स्थापन किया तो फिर क्राइस्ट के धर्म का नाम क्या हो गया क्रिश्चियन यानी क्राइस्ट के नाम के ऊपर इसी तरह से यह गॉड ने जो धर्म स्थापन किया तो उसके धर्म का नाम हो गया गॉड एंड गॉडेज बाकी ऐसे नहीं है की मनुष्य गॉड एंड गॉडेज कहलाए जा सकते हैं परंतु उनको भगवती भगवान कहते हैं यानी भगवान के द्वारा जो मनुष्य ऊंचे बने तो भाई भगवान के द्वारा यह भगवती और भगवान । बाकी ऐसे नहीं है कि भगवान और भगवती कोई बहुत थे गॉड इज वन परंतु जैसे क्राइस्ट के नाम से क्रिश्चियन, बहुत हो गए ना तो क्रिश्चियंस नाम कहाँ से हुआ, क्राइस्ट के नाम से। जैसे बुद्धिस्म, बुद्धिस्म किस नाम से कहते हैं बुद्ध के नाम से, इसी तरह से भगवती भगवान किस नाम से करते हैं भगवान के नाम से, तो भगवान ने वह धर्म बनाया ना इसलिए उस धर्म का नाम भगवती भगवान कहा गया । बाकी ऐसे नहीं है क्योंकि भगवान तो एक ही है ना। तो यह सारी चीजों को अच्छी तरह से समझना है क्योंकि हर एक बात को यथार्थ रीति से समझना इसी का नाम ज्ञान है।बाकी ज्ञान का मतलब यह नहीं है खाली वेद शास्त्र ग्रंथ आदि बैठकर के अध्ययन करो कराओ नहीं , हमको अपना, सेल्फ का तो सेल्फ रियलाइजेशन कि व्हाट एम आई, सेल्फ का यथार्थ नॉलेज होना चाहिए कि हम कौन हैं कहाँ से आए हैं, किधर जाएंगे, क्या करने का है, गॉड क्या है, और हम मनुष्य कहाँ तक पहुंच सकते हैं, हमारी लाइफ की एज क्या है, नॉलेज क्या है, मनुष्य क्या है और मनुष्य क्या हो सकता है तो इन सब बातों की यथार्थ नॉलेज होनी चाहिए ना । तो अभी देखो परमात्मा के द्वारा वह नॉलेज मिल रही है क्योंकि उसने कहा है ना कि यदा यदा जब-जब धर्म होता है तब आता हूँ। तो अभी देखो यह वही टाइम है और आकर के वही समझा रहे हैं और यह कॉलेज भी तो उन्हीं की है ना यह जहाँ हम पढ़ रहे हैं । हम सब स्टूडेंट्स है ।हमको पढ़ाने वाला हमारा टीचर कौन? परमपिता परमात्मा वो नॉलेजफुल । अभी यह भी समझने की बात है ना कि परमात्मा को अगर आकर के नॉलेज सुनाना पड़े वह तो है सोल, सुप्रीम सोल तो निराकार ऊपर से ऐसे ही तो नहीं बोलेगी ना उनको ऑर्गन चाहिए शरीर चाहिए तो परमात्मा आ करके शरीर लेगा। वो आता है अधर्म के टाइम पर, अभी अधर्म के टाइम पर कृष्ण जैसा शरीर कहाँ होगा। कृष्ण जैसे सर्वगुण संपन्न और सोलह कला संपूर्ण संपूर्ण निर्विकार ऐसे शरीर तो सतयुग में थे ना। अभी परमात्मा को सतयुग में तो आना ही नहीं है, सतयुग में क्या करेगा आकर के सतयुग तो है ही सतयुग। उनको आकर के अधर्म नाश करके सतयुग बनाना है तो जो चीज परमात्मा को बनानी है तो जब वह बनी हुई है उसी समय पर कैसे आएगा। उसको आना है अधर्म के टाइम पर यानी कलयुग के टाइम पर। कलयुग के भी अंत में इसीलिए बाप कहते हैं मैं कलयुग के भी पिछाड़ी में आऊंगा तो मुझे मनुष्य कैसा मिलेगा । मैं शरीर का आधार लूँगा तो मुझे मनुष्य भी ऐसा ही मिलेगा यानी अधर्म के टाइम पर अधर्मी यानी ऐसा तमोप्रधान, ऐसा मनुष्य मिलेगा वेतन में आकर उसको भी पवित्र बना लूँगा जिसके तन मैं आकर के उसको भी पवित्र बनाऊंगा, उसके साथ दूसरे भी जो ज्ञान सुनेंगे वह भी पवित्र बनेंगे। तो उनको श्री कृष्ण जैसा सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण संपूर्ण निर्विकार कैसे शरीर मिलेगा। ऐसे अधर्म के टाइम पर ऐसा शरीर और ऐसी पवित्र आत्मा है ही कहाँ। ऐसा तो बनाने के लिए आते हैं ना। तो जो चीज बनाने के लिए आया वह चीज पहले कैसे होगी। जैसे क्राइस्ट आया क्राइस्ट आया तो क्रिश्चियन धर्म पीछे हुआ ना, क्राइस्ट के बाद में। क्राइस्ट आया तो बाइबल भी पीछे हुआ उसने जो[ ] वर्संस बोले फिर उसका बैठ करके लिखने वालों ने जो किताब बनाया उसका नाम रखा बाइबल, परंतु ऐसे तो नहीं ना क्राइस्ट आया तो पहले बाइबल था या पहले यह क्रिश्चियन धर्म था नहीं पीछे । इसी तरह से परमात्मा आया तो परमात्मा के पीछे ही तो ऐसे देवी-देवताओं जैसे मनुष्य बने ना । अभी श्रीकृष्ण को तो ऊंचा गिना जाएगा ना देखो उनकी कितनी महिमा है। वास्तव में श्रीकृष्ण सतयुग का पहला-पहला प्रिंस और पीछे फिर बढ़ा हुआ है तो उनको श्री नारायण कहेंगे । तो यह भी चीजें समझने की है कि वही श्री कृष्ण सो ही फिर श्री नारायण यानी बड़ेपन में जब उनका स्वयंवर हुआ है तो उसका नाम श्री नारायण। तो छोटेपन में राधे कृष्ण और पीछे फिर बड़े होते हैं तो लक्ष्मी नारायण राधे का नाम लक्ष्मी और उनका नाम नारायण लेकिन यह सतयुग के हो गए ना । तो यह भारतवासी इन बातों को ना समझने के कारण तो सब यानी बाप और बेटे को मिला रखा है। जैसे कोई अगर गांधी की बायोग्राफी के ऊपर नेहरू का नाम लगा दे तो फिर ना नेहरू की बायोग्राफी सिद्ध होगी ना गांधी की बायोग्राफी सिद्ध होगी तो इन्होंने मानो निराकार परमात्मा की बायोग्राफी के ऊपर श्री कृष्ण का नाम रख दिया है, बाप की बायोग्राफी के ऊपर बेटे का नाम रख दिया है तो न बेटे की बायोग्राफी सिद्ध हुई ना बाप की बायोग्राफी सिद्ध होती है, ना कृष्ण की बायोग्राफी सिद्ध हुई ना निराकार परमात्मा की बायोग्राफी सिद्ध होती है तो दोनों मिक्स हो गई है ना । तो यह सभी चीजें समझने की है कि निराकार परमात्मा जिसको शिव कहा जाता है और कहते भी हैं ना कि शिवलिंग, यह जो मंदिरों में पूजे जाते हैं शिवलिंग, तो यह सब समझने की चीजें हैं शंकर नहीं यह बार-बार समझने का है कि शंकर और शिव में अंतर है इसीलिए शिव, तो शिव को जो अभी मानते हैं ज्योतिर्लिंग निराकार और इसी प्रतिमा को फॉरेन में भी मानते हैं, मुसलमान भी मानते हैं मक्का के मदीने में भी इनकी यह प्रतिमा है । आप लोगों को बताया था ना हमारी पार्टी जब यहाँ से जापान में गई थी तो जापान में भी एक संस्था में गए थे जिस संस्था में उनके पास भी ऐसा शिवलिंग के सदृश्य छोटे-छोटे पत्थर पॉकेट में पड़े थे । फिर वह पॉकेट से पत्थर निकाल कर उनका जब क्लास होता था या स्टूडेंट्स बैठकर के योग आदि सीखते थे तो अपने ज्योत के आगे वो डीला रख करके उसका ध्यान करते थे। तभी इन लोगों ने उनसे पूछा कि यह जो आप ध्यान करते हो यह पत्थर रख कर के इसका मतलब क्या है तो वह बेचारे तो पूरा समझा नहीं सके। उन्होंने कहा खाली हमको सिखाने वाले हैं उन्होंने हमको कह दिया है कि यह रख करके आप उनका ध्यान करो परंतु उनसे पूछा गया कि अगर ध्यान भी करने का है तो फिर तो कोई भी चीज रख करके उसका ध्यान करो, फिर खास यह पत्थर और सो भी उसी लिंग आकार का ये ही क्यों । तो वो बेचारे अधिक तो कुछ समझा नहीं सके। फिर इन्होंने बैठ करके उनको समझाया कि यह जो है यह प्रतिमा उस परमात्मा की है और तुम हर एक आत्मा का भी पिता यही है तो यह आत्मा का अथवा परमात्मा का जो शेप है वह उनको दे दिया है परंतु इनका ज्ञान ना होने के कारण आप लोगों को यह पता नहीं है । खाली आप लोग यह समझते हो कि खाली इस पत्थर को देखते रहने से हमारा ध्यान उसमें लगेगा फिर किधर भी बुद्धि नहीं जाएगी तो कंसंट्रेट खाली इनको लगाकर के करते हो, परंतु वास्तव में यह है क्या उसको भी तो जाना चाहिए ना इसका ज्ञान चाहिए । तो खाली बैठकर के कोई चीज रख करके उसका ध्यान करना फिर तो कोई भी चीज रखो उसका बैठकर के अटेंशन दो तो दूसरी तरफ बुद्धि नहीं जाएगी तो यह तो खाली ऐसा नहीं है ना कि किसी चीज को ध्यान लगा कर के उसको कहेंगे ध्यान। नहीं, यह तो हमको सेल्फ रियलाईजेशन हर वक्त अपने में रखना है कि आई एम सोल सन ऑफ सुप्रीम सोल । चलते-फिरते इस बॉडी से डिटेच रहने का है ना इस बॉडी से और इन ऑर्गन से जैसे देखो हम यह हाथ से लिखते हैं, यह मुख से हम बोलते हैं, आँखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं लेकिन कौन ? आई एम सोल तो अपने को हर वक्त सोल समझना तो इसको कहेंगे सोल कॉन्शियस । तो सुन कॉन्शियस एंड गॉड कॉन्शियस तो जितना सौल कॉन्शियस रहेंगे उतना ही गॉड कॉन्शियस भी रहेंगे तो कहेंगे सोल तो सन ऑफ सुप्रीम सौल है ना, उसको गॉड कॉन्शियस जरूर आएगा बुद्धि में कि हम उसकी संतान हैं की हम उसकी संतान है। तो गॉड की संतान है, ऐसे नहीं है आई एम गॉड, आई एम सोल आई एम गॉड, नो, आई एम सोल सन ऑफ सुप्रीम सोल। तो यह सारी चीजें समझने की है कि आत्मा और परमात्मा उस परमात्मा को कहा ही जाता है परमपिता और हम हैं उसकी संतान तो यह रामकृष्ण आदि भी परमात्मा की संतान है बच्चे हैं लेकिन श्रेष्ठ महान आत्माएँ धर्म आत्माएँ संपूर्ण उनको कहेंगे कंप्लीट सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण तो परमात्मा ने आकर के जो दुनिया बनाई अथवा धर्म स्थापन किया कहा ना यदा यदा ही अधर्म होता है तब मैं आकर के धर्म स्थापन करता हूँ तो कौन सा धर्म स्थापन किया । भारतवासी यह थोड़ी जानते हैं कि भगवान ने कौन सा धर्म स्थापन किया । अगर किसी से पूछा भी जाएं क्राइस्ट आया तो क्राइस्ट ने कौन सा धर्म स्थापन किया तो सुना देंगे कि देखो यह क्रिश्चियन धर्म है ना यह किसने स्थापन किया, किसी से अगर पूछा भी जाए कि बुद्ध आया तो उसने कौन सा धर्म स्थापन किया तो सुना देंगे कि यह बुद्धिज्म धर्म परंतु अगर यह पूछा जाए भारतवासियों से कि भगवान ने कहा है कि यदा यदा ही धर्मस्य यानी जब जब मैं आता हूँ तब आ करके मैं सतधर्म स्थापन करता हूँ वह सतधर्म कौन सा है उसका तो नाम कोई बतलाए, कोई नहीं बता सकेंगे । बहुत बार देखो आप पूछते हैं ना तो देखो पता है ? खाली सत धर्म, यानी सत्य का सत धर्म लेकिन वह कौन सा उसका नाम क्या है कहाँ है वह सतधर्म । तो यह सभी चीजें समझने की है कि अभी सत धर्म देखो यह भारतवासियों का जो प्राचीन देवी देवता धर्म था ना वह, अभी देवी-देवता धर्म वाले तो भारतवासी अपने को मानते नहीं है, अभी उन्होंने तो अपना नाम हिंदू रख दिया है ना। वास्तव में हिंदू कोई धर्म नहीं है । हिंदू तो हिंदुस्तान में रहने के कारण अपने को हिंदवासी कहलाते हैं जैसे यूरोप में रहने वाले अपने को यूरोपियन कहते हैं परंतु अगर उनसे धर्म पूछा जाएगा तो वह ऐसे थोड़ी कहेंगे कि हम यूरोपियन धर्म वाले हैं। नहीं, धर्म नाम पर वह क्राइस्ट के नाम पर कहेंगे कि हम क्रिश्चियन धर्म के हैं बाकी अगर पूछेंगे कि रहने वाले कहाँ के हैं तो कहेंगे हम यूरोप के रहने वाले हैं यूरोपीयंस है बाकी धर्म क्रिश्चन है। इसी तरह से भारतवासी हिंदुस्तानी या हिंदवासी यानी भारत व में रहते हैं तो वह तो इस देश का नाम है ना बाकी हिंदू कोई धर्म थोड़े ही है। धर्म तो भारतवासियों का देवी देवता है परंतु आज वह लक्षण नहीं रहे हैं ना इसीलिए बिचारे वह देवी देवता कह नहीं सकते हैं। देवी देवता कहा जाता है कोई अच्छा आदमी या अच्छी माता होती है तो कहते हैं भाई यह तो जैसे देवी है जैसे देवता है, लक्षणों के ऊपर कहा जाता है लेकिन आज वह लक्षण रहे नहीं है इसीलिए कहने में लज्जा आती है कहते नहीं है कि देवी देवता। तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप जो नॉलेजफुल है वह बैठ करके समझाते हैं लेकिन वह कहते हैं मैं आता हूँ समझाने के लिए जब दुनिया अधर्मी पतित है ना तो वहाँ मुझे सर्वगुण संपन्न ऐसा शरीर कैसे मिलेगा इसीलिए कहते हैं ना मैं कोई द्वापर में आया हुआ हूँ क्योंकि द्वापर के बाद तो कलयुग हुआ ना। अभी द्वापर में भी सर्वगुण संपन्ना सोलह कला संपूर्ण श्री कृष्ण जैसे मनुष्य कहाँ से हुए, उस टाइम भी नहीं थे । नहीं, वह तो है सतयुग और मैं आता हूँ कलयुग में। कलयुग के भी अंत में आकर के सतयुग बनाता हूँ पूरी दुनिया को तो यह सभी चीजें समझने की है। इसीलिये बाप कहते हैं मैं आता हूँ कलयुग के समय पर तो मुझे ऐसा ही मिलेगा ना। उसी मनुष्य के तन में आता हूँ जिसका नाम फिर मैं रखता हूँ ब्रह्मा। तो मैं ब्रह्मा के तन में आता हूँ ऐसे नहीं कि कृष्ण के तन में नहीं ब्रह्मा के तन में आकर के वह ब्रह्मा जिसका नाम रखता हूँ मैं उनको बैठकर के पवित्र बनाता हूँ फिर उनका जाकर के भविष्य में सेकंड जन्म फिर उनका श्री कृष्ण बनता है । श्री कृष्ण का पहला जन्म जो है ना वह कौन सा। भाई श्री कृष्ण भी सर्वगुण संपन्न बना वह कहाँ से बना, ऐसे तो नहीं बने बनाए ऊपर से आए नहीं, वह भी तो कर्म का फल है ना तो यह सभी चीजों को समझना है। कई तो समझते हैं नहीं यह कृष्ण और राम आदि ऊपर से ऐसे ही बने बनाए आए हैं जैसे कई नाटकों में भी दिखा देते हैं यानी ब्रह्मा फिर दूसरे जन्म में कृष्ण बना तो कृष्ण का पिछला जन्म जो है ना वह ब्रह्मा तो यह सारी चीजें समझने की हैं की ब्रह्मा सो कृष्ण देखो दिखलाते भी हैं ना वो विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्मा निकला तो विष्णु कौन है लक्ष्मी नारायण फिर उन्हें छोटेपन में राधे कृष्ण कहो तो उसको विष्णु । तो यह विष्णु से लक्ष्मीनारायण सो ब्रह्म यानी सतयुग के लक्ष्मी नारायण से जन्म लेते लेते अंत में जाकर फिर ब्रह्मा सो विष्णु तो परमात्मा जब आते हैं तो ब्रह्मा के तन में आएगा या विष्णु के यानी लक्ष्मी नारायण के। नहीं, वो आएगा ब्रह्मा तन में लक्ष्मी नारायण में आके क्या करेगा वह तो उसे बनाना है ना । नहीं वो आएगा लास्ट में ब्रह्मा के तन में आ कर के फिर परमात्मा निराकार उसको ऐसा बनाता है । तो ब्रह्मा सो विष्णु अर्थात लक्ष्मी नारायण, वह पवित्र देवी देवताए और यह गाते भी हैं कि प्रजापिता ब्रह्मा देखो कहते भी हैं ना कि प्रजापिता ब्रह्मा अर्थात ब्रह्मा द्वारा आकर के प्रजा रची तो कौन सी प्रजा? ये ही नई दुनिया । तो परमात्मा आ करके ब्रह्मा के तन में से बैठ करके ब्रह्मा के द्वारा क्रिएट कराते हैं। ब्रह्मा को कहते भी हैं ब्रह्मा द क्रिएटर यानी ब्रह्मा के द्वारा परमात्मा ने नई दुनिया करके रचाई थी इसीलिए कहते हैं उनके द्वारा बैठकर के मनुष्य को पवित्रता का नॉलेज देकर के पवित्र बनाता हूँ जिनको फिर ब्राह्मण कहते हैं। तो ब्राह्मण सो देवता। एक जन्म पहले ब्राह्मण उन्हों को बनाता हूँ आकर के शूद्र से ब्राह्मण फिर ब्राह्मण सो देवता यह सभी चीजें समझने की है ना। अब तो यह कोई अच्छे से आकर के समझे सुने और तभी कोई समझ सके बाकी कोई भले ऐसे ही टेप सुने या ऐसे ही लिटरेचर पढ़े, ऐसे ही इन तरीकों से नहीं समझ पाएंगे। यह तो जब कोई रूबरू सम्मुख आ करके समझे सन्मुख कोई बात नहीं समझ आए और फिर पूछ भी सके और समझ भी सके और यह तो सन्मुख समझने की बातें हैं अगर सन्मुख का महत्व ना होता तो परमात्मा भी क्यों आता अवतरित क्यों होता । उनको भी उतर के सन्मुख आकर के समझाने की जरूरत पड़ती है ना तभी तो वह भी कहते हैं मैं भी आता हूँ । मैं भी अवतरण इसीलिए लेता हूँ, नहीं तो मैं भी अंदर-अंदर से ऐसे ही प्रेरणा द्वारा ऐसे ही ऐसे समझा लेता न । नहीं, वह कहते हैं मुझे आकर के समझाना पड़ता है तो मुझे भी आना पड़ता है ना। तो यह सभी बातें हैं सन्मुख समझने की और समझकर के उसी पर चलने की और चलना क्या है वह भी देखो अभी बाप बैठ करके हमको सिखा रहे हैं ना ये हमारा कॉलेज किस लिए है बाप बैठ करके समझाते हैं, यह बाप की कॉलेज है ना। इसका नाम ही है ईश्वरीय विश्वविद्यालय यानी ईश्वर का विश्वविद्यालय है। पढ़ाता कौन हैं स्वयं ईश्वर, इसका टीचर कौन है स्वयं ईश्वर यानी परमात्मा । क्या पढ़ा रहा है मनुष्य को देवता बनने की पढ़ाई, नारी को लक्ष्मी नर को नारायण बनाने की पढ़ाई तो अभी देखो पढ़ा रहे हैं। तो हम क्या बन रहे हैं नर से नारायण नारी से लक्ष्मी यानी हम जो नर नारायण थे अभी देखो क्या हो गए हैं । अब फिर हमको ऐसा बनने का है । कैसे बनेंगे? बाप कहते हैं बच्चे भी होली एंड बी योगी अर्थात पवित्र रहो पांच विकारों को छोड़ो, इन विकारों को ही रावण कहा जाता है। ये जो रावण का दस शीश का भी दिखाते हैं ना यह भी सिंबल है पांच विकार स्त्री के पांच विकार पुरुष के बाकी दस शीश कभी किसी जमाने में किसी को हुआ ही नहीं । मनुष्य को तो सिर्फ एक ही सिर है ना। देवताए भी थे तो भी एक ही सिर है ऐसे नहीं कभी किसी को तीन सिर चार भुजाएं ये तो सभी अलंकार हैं, अलंकार का मतलब निशानियां है अर्थ है इनका। बाकी ऐसे नहीं है मनुष्य ऐसे होते हैं चार भुजाओं वाले तीन आंखों वाले तीन सिर वाले नहीं । तो ये सब समझना है तो का भी अर्थ है स्त्री के पांच विकार और पुरुष के पांच विकार उसको मिलाकर कहा जाता है अपवित्र प्रवृत्ति का संसार अथवा राज्य । तो अभी देखो राज्य किसका है विकारों का इसलिए इसको कहा जाता है रावण राज्य तो इसीलिए परमात्मा कहते हैं अभी रावण को नाश करो अर्थात विकारों को नाश करो तो यह सभी बातों को समझना है ना और यह जो चतुर्भुज देखो चार भुजाओं का दिखाते हैं इनका भी मीनिंग है की दो भुजा नारी की दो भुजा नर की यानी पवित्र नर नारी वह चतुर्भुज देवता का रूप दिखाते हैं ना और रावण का भयंकर रूप दिखाते हैं तो यह विकारों का सिंबल और वह देवताओं का कि ऐसा नर-नारी बनना है। लक्ष्मी चतुर्भुज भी दिखाते हैं तो दो भुजा है नारायण की, नारायण पीछे हैं लक्ष्मी आगे हैं और वो फिर विष्णु का दिखाते हैं तो नारायण आगे हैं लक्ष्मी पीछे हैं परंतु है दोनों कंबाइंड, तो कंबाइंड का फिर फोटो निकाला हुआ है तो यह सब चीजों को समझने का है। तो देखो हर बात के अर्थ को समझना है । अर्थ को यथार्थ जानने को ही ज्ञान कहा जाता है । गीता में भी कहां है मुझे अर्थ स्वरूप परमात्मा को जानने से ही तुम्हें मेरी यथार्थ जो ताकत है वह कर सकेंगे बाकी ऐसे नहीं है जैसे कि समझो सब परमात्मा ही परमात्मा है, नहीं , परमात्मा खुद ही परमात्मा है बाकी हम सब मनुष्य है परंतु मनुष्यों में भी वो देवता है हम देखो अभी नीचे गिर आए हैं तो यह सभी चीजें समझने की है तो सबकी स्टेज समझने की है ना । सब मिल मिलाकर एक ही कैसे होगा। एक ही एक मिनिस्टर भी एक गवर्नमेंट भी एक तो कलेक्टर भी एक तब एक ही एक, जब एक ही एक है तो अलग पोस्ट क्यों है अलग ऑक्यूपेशन क्यों है फिर तो मिनिस्टर का काम गवर्नर गवर्नर का काम कलेक्टर करता रहे परंतु नहीं, तो यह सभी चीजें समझने की है ना इसीलिए बाप कहते हैं मेरा ऑक्यूपेशन की मैं भी क्या हूँ मुझे भी यथार्थ समझो । तू क्या है हे आत्मा तू अपने को भी समझ, अभी तुम मेरा इंसल्ट क्यों करते हो। मानो परमात्मा गिरा ऐसा हो गया है ना। तो मैं थोड़ी गिरा हूँ । मैं कभी गिरता नहीं, कभी चलता नहीं मैं तो एवर प्योर हूँ बाकी तू आत्मा इमप्योर फिर प्योर आत्मा इमप्योर से प्योर बनती है और उसको बनना है। बाकी ऐसे नहीं है कि मैं कोई इमप्योर और प्योर बनता हूँ मैं तो हूँ ही एवर प्योर तो इन सभी बातों को अच्छी तरह से समझना है ना इसीलिए हमारे भारत का देखो श्री कृष्ण बहुत लाडला और प्रिय है भारत वासियों को क्योंकि यह मनुष्यों की एम एंड ऑब्जेक्ट है यानी हम मनुष्य इतने उच्चतम थे लेकिन अभी उनसे गिरे हैं। अभी हमको फिर ऐसा ऊंचा बनने का है लेकिन बनाने वाला कौन परमपिता परमात्मा, जिसने कहा है यदा यदा ही यानी जब जब ऐसा अधर्म होता है यानी तुम गिर पड़ते हो तभी मैं आता हूँ तुम को चढ़ाने के लिए । तो तुम्हारी चढ़ी हुई स्थिति कौन सी है? यही सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी तो समझना चाहिए ना कि मनुष्य को आखिर क्या बनने का है और बनाने वाला कौन। तो बनाने वाला अलग, बनाने वाला नहीं गिरा है या उनको चढ़ना है नहीं, बनाने वाला तो एवर प्योर है ना बाकी गिरे हैं तो हम मनुष्य, जो दुर्गति में आए हैं उन्हीं को ही सद्गति मिलनी है तो सद्गति की बायोग्राफी को भी समझना है ना की सद्गति वाले कौन से मनुष्य हैं। अभी देखो दुर्गति वाले कौन से मनुष्य हैं, भाई देख लो सामने बैठे हो ना, यह है दुर्गति पाए हुए मनुष्य। तो दुर्गति की दुनिया और दुर्गति पाए हुए मनुष्य की बायोग्राफी जो सामने है कि भाई आज की दुनिया कलयुगी तमोप्रधान, दुःख अशांति वाली जो मनुष्य की लाइफ देख रहे हो। तो जरुर सद्गति भी तो कोई दुनिया होगी ना। ऐसे तो नहीं है ना सद्गति बस कोई नाम हो गया । नहीं, सद्गति की भी दुनिया थी जिसको स्वर्ग भी कहते हैं । तो स्वर्ग को भी दुनिया कहा जाता है लेकिन अभी नहीं है। कई समझते हैं स्वर्ग भी इधर नर्क भी इधर जो कहीं देखते हैं ना धनवान है तो समझते हैं कि यह सुखी है लेकिन नहीं यह नर्क का स्वर्ग है । इस रावण का स्वर्ग इसको कहेंगे रावण का स्वर्ग यानी विकारों का । वह स्वर्ग जो परमपिता परमात्मा ने बनाया ना वह तो स्वर्ग स्वर्ग था तो उसमे कोई दुःख का नाम निशान नहीं था । यह तो रावण का स्वर्ग है रावण की थोड़ा बहुत उसका सुख उसको थोड़ी स्वर्ग कहेंगे नहीं तो यह सभी चीजों को समझने का है ना इसीलिए बाप कहते हैं मेरा जो स्वर्ग था ना, राम ने आकर के जो दुनिया को स्वर्ग बनाया। राम कहा जाता है निराकार परमात्मा को लेकिन त्रेता का एक राजा जो था ना राम उसका भी नाम था जैसे यहां भी बहुत रामचंद्र कृष्ण चंद्र आदि नाम रख लेते हैं तो वह भी त्रेता का एक राजा था जिसका नाम था राम परंतु वह तो महिमा है निराकार परमात्मा की, राम उसको कहा जाता है तो उसने आ करके रावण को मरवाया यानी अधर्म को नाश करवाया। तो अधर्म नाश कहो या रावण नाच कहो बात एक ही है। परंतु यह सभी बायोग्राफी हिस्ट्री आदि लिखने वालों ने बना दी है कि भई राम आया रावण को मारा तो राम कोई त्रेता वंश वाला नहीं । नहीं राम निराकार परमात्मा जिसने आ करके अधर्म का नाश किया यानी रावण को नाश किया बाकी ऐसा नहीं दस शीश वाला कोई आदमी था या राजा था जिसको मारा । नहीं मारा यानी विकारों को मरवाया, अधर्म का नाश किया, यह अधर्म की सिंबल है। अधर्म नाश कहो या रावण नाश कहो बात एक ही है । यह सभी चीजों को समझना है ना तो नाश करके अधर्म फिर परमात्मा ने क्या बनाया संसार को भई ऐसा राम कृष्ण जैसे देवता। ऐसे मनुष्य अथवा देवताओं का संसार बनाया फिर ऐसे संसार में सदा सुख था। कहते हैं ना राम राजा राम प्रजा राम साहूकार है बसे नगरी जिये दाता धर्म का उपकार है। कहते हैं उस समय में शेर बकरी एक घाट पर पानी पी सकते थे। कभी कोई लड़ाई झगड़े नहीं थे तो यह सभी चीजें समझने की है। बाकी यह तो बहुत बातें लगा दी है ना राम की सीता चुराई गई अभी राम कि वह राजाराम की सीता थोड़ी चुराई गई । ये हम सीताएं देखो सीताएं हैं ना निराकार परमात्मा की जो उसको याद करते हैं हम चुराई गई हैं । हमें किसने चुराया है विकारों ने, रावण ने, तो हमको रावण ने चुराया है। बाकी वह सीता उस राजा की थोड़ी चुराई गई थी । अभी देखो यह उल्टी बात हो गई ना तो उन्होंने जाकर के राजा के ऊपर लगा दिया है कि राम की सीता चुराई गई और वहाँ ले गए अभी वहाँ की यह बात थोड़ी है जहाँ कहते हैं राम राजा राम प्रजा राम साहुकार बसे नगरी जिये दाता धर्म का उपकार है, ऐसी जगह पर ऐसा अधर्म हो कि खुद राजा की कोई औरत चुरा के ले जाए आज राजा की या किसी मिनिस्टर की कोई औरत लेकर जाए कितनी बड़ी बात हो जाए तो उस जमाने में अगर राजा राम की कोई सीता चुराई जाए यह कैसे हो सकता है, ऐसा अधर्म का जमाना और नहीं होगा । तो यह तो बात ही नहीं है ना वह उस टाइम की बातें नहीं है। तो यह सभी चीजें समझने की है तो वह समझते हैं कि यह फिर भगवान ने मर्यादा दिखलाई है । मर्यादा इस तरीके से थोड़ी, भगवान तो निराकार है उसने आकर के इंसान को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाया है। कैसे बनाया है पांच विकारों से छुड़ा करके फिर ऐसा सर्वगुण संपन्न देवता बनाया है। तो मनुष्य को देवता बनाया है और ग्रंथों में भी कहते हैं ना गुरु नानक देव जी के ग्रंथ में भी है मानस से देवता किए करत न लागी वार, उसका अर्थ ही है मनुष्य को देवता बनाने में परमात्मा को समय नहीं लगा। तो मनुष्य को देवता बनना है मनुष्य को परमात्मा नहीं बनना है। परमात्मा तो परमात्मा ही है ना तो यह सभी चीजों को समझना है इसीलिए शिव और श्री कृष्ण का संबंध क्या है यह बातें समझने की है की श्री कृष्ण शिव का बच्चा था अर्थात शिव निराकार को कहा जाता है ना कि शंकर को। शंकर भी उसका बच्चा था शिव का। तो यह सभी चीजें समझने की है तो शिव ज्योतिर्लिंगम निराकार परमात्मा। गीता में भी कहा है ना, जब परमात्म साक्षात्कार अर्जुन को कराया तो कहा है कि उसका तेज हज़ारों सूर्यों से भी अधिक तीखा है वह किसका ? वह वही ज्योतिर्लिंगम निराकार परमात्मा का । तो देखो सामने खड़े होकर भी उनको दिखलाया अपना निराकार परमात्म रूप। तो देखो उसमे कहा ना कि उनका तेज हजार सूर्य से भी तीखा है। तो उसमें तो लगा दिया है परंतु उसका मतलब निराकार स्टार लाइट बिंदी उसका साक्षात्कार हुआ। तो यह सभी चीजें समझने की है कि निराकार को ही परमात्मा कहा जाता है लेकिन बैठ कर के जो ज्ञान दिया ना वह ब्रह्मा तन से दिया और फिर उसी को ही ऐसा सर्वगुण संपन्न श्रीराम श्री कृष्ण जैसा बैठ करके बनाया । तो इसीलिए हम भारतवासियों का श्री कृष्ण इतना लाडला है क्योंकि हम मनुष्य ही इतने ऊंचे थे और ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण थे। परंतु यह सभी ना जाने के कारण उसके ऊपर भगवान नाम देने से अभी भगवान का महत्व हटा दिया है और देवता का भी महत्व हटा दिया है भाई मनुष्य इतना ऊंचा हो सकते हैं वह चीज हट गई और भगवान निराकार है वह भी बात नहीं रही । अगर आज देखो भारतवासी ऐसा समझते कि यह भारत का भगवान निराकार परमात्मा आया था तो देखो हमारी जो भगवद्गीता है ना, कहते हैं ना भगवत गीता देखो नाम भी है तो ज्ञान गीता का मान भी बड़ा हो जाता क्योंकि वह भगवान ने बतलाया है ना। अभी कृष्ण को तो सभी धर्म वाले भगवान नहीं समझेंगे ना वह तो खाली भारतवासी ही समझेंगे तो भगवान तो निराकार है ना लेकिन उसने आ करके ऐसा सर्वगुण संपन्न बनाया। तो यह सभी बातों को अच्छी तरह से समझने का है और हर एक बात को यथार्थ समझने को ही ज्ञान कहा जाता है। बाकी ऐसे नहीं सब मिला करके एक ही एक, एक ही एक। वह तो ज्ञान कोई ज्ञान ही नहीं है ना। तो यह सभी चीजों को समझना है और समझ करके यथार्थ रीति से और उसको फिर यथार्थ पाना है। तो यह सभी बातें हैं जिस को अच्छी तरह से बुद्धि में रखना है। ये क्यों समझाई जाती है क्योंकि बहुत इन्हीं बातों में बिचारे मूंझे पड़े हैं। ऐसे भी नहीं है कि जैसे बहुत ऐसे समझते हैं कि यह शायद खाली शिव को मानते हैं। अभी शिव और शंकर को भी बहुत नहीं समझते हैं ना तो समझते हैं यह शंकर के पुजारी हैं। शंकर भी बच्चा था शिव का। शिव कहा जाता है उस ज्योतिर्लिंगम को तो यह सभी चीजें समझने की है ना। इसीलिए वह निराकार परमात्मा और परमात्मा ने जो काम किया उसकी सिद्धि क्या उसकी सिद्धि यह सर्वगुण संपन्न श्री कृष्ण जैसे श्री राम जैसे मनुष्य को बनाया जिसके लिए कहा मैं आता हूँ सतयुगी सतधर्म की दुनिया बनाता हूँ । तो सतधर्म वाले मनुष्य कौन से थे उन्हों की कोई बायोग्राफी तो चाहिए ना वो ये परंतु उन देवताओं की भी बायोग्राफी को यथार्थ ना समझने के कारण श्री कृष्ण को भी 108 रानियाँ आदि बातें लगा दी है। नहीं तो 108 रानियां श्रीकृष्ण को नहीं थी । यह सभी बातें समझने की है वह श्रीकृष्ण तो मर्यादा पुरुषोत्तम था बहुत ऊंचा था । उस जैसा मनुष्य ऊंचे से ऊंचा कोई है नहीं । सबसे ऊंचे में ऊंचा मनुष्य देवता उनकी महिमा तो बहुत ऊंची है । तो ऐसे के ऊपर ऐसी बातें रखना इसीलिए देखो क्रिश्चन लोग भी हैं ना वह अपने धर्म में कन्वर्ट करने के लिए फिर ऐसी एसी ग्लानी की बातें बताते हैं देखो आपका भगवान कैसा था जिसको 108 रानियाँ थी। आपके भगवान की औरत चुराई गई और दूसरा भगवान तुम्हारा दूसरों की औरत चुराता था। वो कहते हैं रुकमणी श्री कृष्ण ने चुराई तो वह बैठकर के उन्होंने देखो यह भगवान तुम्हारा दूसरों की औरत चुराते थे और दूसरे भगवान की औरत कोई खुद चुरा कर ले गया देखो तुम्हारे भगवान कैसे भगवान थे परंतु क्या है कि भारतवासियों ने अपने पूज्य देवता अर्थात पूजनीय देवताओं के ऊपर भी ऐसी बातें लगा रखी है ना इसीलिए नहीं तो इसका अर्थ है कि सीता चुराई गई तो उस राम की थोड़े ही। यह निराकार परमात्मा कहते हैं मेरी तुम सीताएं यानी आत्माएं तुम चुराई गई हो यानी तुम को रावण ले गया है यानी पांच विकार और मैंने भगवान कहते हैं मैंने आ करके तुमको आ करके कॉलेज में पढ़ाया है जिसमें से एक सो आठ नंबर मुख्य जो पास हुए हैं मुख्य एक सो आठ की वैजयंती माला सिमरते हैं तो यह एक सो आठ नंबर है जिन्होंने बैठकर के पांच विकारों इस ज्ञान से पूर्ण जीता है और जिन्होंने जीता है उन्हों को देखो वो मनुष्य सतयुगी में राजा महाराजा बनें हैं तो वो फिर अभी की बात है जब परमात्मा आया है । बाकी ऐसे नहीं श्रीकृष्ण को एक सो आठ रानियाँ थी । ये एक सो आठ मेरे बच्चे थे तो कहाँ भगवान के बच्चे जिन्होंने विन किया है, जिन्होंने बैठकर के ये पांच विकारों को जीता है उसका यह नंबर है और कहाँ फिर ये कृष्ण के साथ लगा दिया तो देखो वही बात हो गई ना । वही बात हो गई के जैसे गाँधी के बायोग्राफी के ऊपर अगर नेहरू का नाम दिया जाए तो कितना रोला आ जाए। ना नेहरू की बायोग्राफी सिद्ध होगी ना गांधी की तो ये भी बात है कि भगवान की बायोग्राफी के ऊपर उसके बच्चे का नाम दे दिया है बच्चे की भी बायोग्राफी सिद्ध नहीं होती है श्रीकृष्ण की और ना भगवान की । तो यह सभी समझना है ना तो इसका मतलब ye नहीं कई शायद समझते हैं कि ये शायद श्रीकृष्ण को मानते नहीं । श्री कृष्ण को हम जितना मानते हैं ना इतना कोई मान नहीं सकता क्योंकि हम हम वही तो बनने का अर्थात हम वही संपूर्ण सर्वगुण संपन्न बनने का प्रयत्न रखते हैं। हम उनको पूजनीय समझते हैं ना तो हम पूजनीय इतने ऊंचे थे अभी देखो पुजारी खुद ही कहते है ना आपे ही पूज्य आपे ही पुजारी और वो है एवर पूज्य। मनुष्य पूजनीय लायक बने, बनाया किसने ? परमात्मा ने। तो यह सभी चीजों को समझने का है ना। तो बाप बैठ करके अभी समझाते हैं तो हर एक बात को भी समझना है। बाकी ऐसे नहीं है कि बस देखो हमारे पास तो देखो यह श्री कृष्ण का कितना मान है। बतलाते हैं समझाते हैं कि देखो यही फिर कितना ऊंचा सतयुग का मुख्य यही था। यही तो अभी परमात्मा आके ऐसा संसार बनाते हैं। तो यह मनुष्य की स्टैटस है लेकिन परमात्मा निराकार की स्टैटस तो निराकार की हुई ना । यह सभी चीजों को समझना है और समझ कर फिर इसी मुताबिक चलने का है तो अभी क्या करना है । बी होली एंड बी योगी अर्थात पांच विकारों को छोड़ने का है और जो पापों का बोझ है उसके ऊपर वह भी परमात्मा कहता है अभी मुझे याद करो जिसको राजयोग और उसी द्वारा फिर तुम्हारे योग के पावर से तुम्हारे पाप दग्ध होंगे यह सभी चीजों को समझने का है ना । तो अभी उसे याद करना है । योग का मतलब है याद बाकी ऐसे नहीं आसन लगाना है, यह करना है नहीं, याद चलते-फिरते घर गृहस्थी में रहते, जिसको कर्म योग कहा । इसके लिए कोई घर बार छोड़ने का नहीं है । भगवान ने आ करके वही शिक्षा दी है की गृहस्थ आश्रम गृहस्थ धर्म । लाते में भी कहते हैं धर्मपति धर्मपत्नी ये सब हैं ना । ये सभी चीजें समझने की हैं अच्छी तरीके से । अच्छा, बापदादा अभी समझ गए हैं ना बाप कौन दादा कौन, यह सभी समझना है । तो बाप दादा और माँ के मीठे मीठे बहुत अच्छे सपूत बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग ।