मम्मा मुरली मधुबन           

परमात्मा का कर्तव्य और मनुष्यों की मत
 


ओम शांति । याद में बैठे हो? जिसकी याद में बैठे हो उसको जानते हो ना ? ऐसे नहीं अंधविश्वास में बस ऐसे ही याद करें । नहीं, जान करके, समझ करके, ज्ञान सहित । इसीलिए यह गीता में भी है कि मुझे मेरे अर्थ स्वरूप से, जो मुझे याद रखते हैं उसको यथार्थ रीति से मेरी प्राप्ति होती है । यथार्थ रीति से मेरे अर्थ स्वरूप में, कहा है ओम के अर्थ स्वरूप में, तो ओम उसका अर्थ स्वरूप, तो अर्थ बुद्धि में है । तो ओम, आई एम दैट , दैट व्हाट ? सोल, परंतु प्योर सोल, सन ऑफ सुप्रीम सोल तो यह बुद्धि में है । तो आई एम फर्स्ट प्योर, अभी इंप्योर हुए हैं । तो अभी इंप्योरिटी से निकलकर के प्योर सोल, सन ऑफ सुप्रीम सोल बनना है । तो प्योर बनना है तब ही सन ऑफ सुप्रीम सोल ही है । तो यह अर्थ बुद्धि में रखना है कि हम उसकी संतान, तो प्योर, और प्योर ही उसकी संतान कहलाने का अधिकारी है । तो उसकी संतान प्योर होनी चाहिए और प्योर ही उसकी संतान हो सकती है तो यह अपनी बुद्धि में रखने का है । तो यह अर्थ है उसी अर्थ सहित उसे याद रखना है । इसको कहा जाता है ज्ञान सहित । ऐसे नहीं बस ऐसे ही, कैसे भी, किसी भी रूप से नहीं, वह भी जो जैसा है, हम भी जो जैसे हैं । तो हम कैसे हैं फर्स्ट प्योर इसीलिए हम भी जो जैसे हैं, वैसे अपने को भी समझना है और वह भी जो जैसा है कि हम उसके बच्चे हैं, वह हमारे पिता है, उससे हमें प्राप्ति करनी है, उसको भी ऐसा ही समझ करके याद रखने का है । इसको कहा जाता है ज्ञान सहित, अर्थ सहित । तो अभी अर्थ तो बुद्धि में है ना । इसी को ही फिर गीता में भी कहा है कि मुझे यथार्थ रीती से, मेरे अर्थ स्वरूप को समझ करके मुझे जो याद करते हैं उसको मेरी प्राप्ति मेरे द्वारा होती है । क्योंकि मेरी प्राप्ति मेरे द्वारा ही हो सकती है , मैं ही आ करके अपना अर्थ, अपना नॉलेज यथार्थ समझाता हूँ । क्योंकि मेरे अर्थ को अथवा मेरे नॉलेज को, मेरे परिचय को, मेरे सिवा और कोई नहीं समझा सकता है इसलिए मेरा परिचय मैं देता हूँ इसलिए कहा है मेरे द्वारा । और कहा भी डायरेक्ट है ना, देखो कहा है मामेकम, मुझे याद करो तो यह किसने कहा ? परमात्मा ने स्वयं कहा तो अपनी याद के लिए भी उसने बैठ करके अपने साथ ही याद कराना सिखाया है, कोई दूसरे ने नहीं । दूसरा कहेगा तो कहेगा कि उसको याद करो । तो परमात्मा ने तो अपने साथ योग खुद सिखाया है ना । उसका माना वो सिखाने के लिए उनके पास ही नॉलेज है । मनुष्य नहीं सिखा सकता । जो उसको कहने वाले हैं न उन्हें वो यथार्थ परिचय नहीं है इसीलिए बाप कहते हैं मेरा परिचय मैं देता हूँ और मैं खुद आ करके कहता हूँ मामएकम, मुझ एक को । माम का मतलब ही मुझ और एकम तो एक को यानी मुझ एक को याद करो । तो मुझ कहने वाला तो वह अथॉरिटी स्वयं है ना । मनुष्य थोड़ी कहेगा मुझ एक को याद करो । वह ऐसा नहीं कह सकता है । तो हमको याद सिखलाने वाला वही खुद चाहिए जिसको याद करना है । तो जिसको याद करना है वही सिखाने वाला चाहिए । ऐसे नहीं करना उसको है, सिखाने वाले दूसरे हों, नहीं वो ही । तो अभी उनके द्वारा हम सीख रहे हैं । वह कह रहा है कि बच्चे मुझे याद करो और बैठकर के बच्चों को समझा रहे हैं कि किस तरह से तुम मेरी संतान हो, संतान कितनी ऊंची थी, अब क्या हो गए हो । अब फिर आया हुआ हूँ जब तुम बच्चे दुःखी होते हो, अशांत होते हो और दुःखी होकर के पुकारते हो तो फिर आता हूँ । और पुकार भी देखो बहुत काल से भक्ति मार्ग में करते ही आए हो लेकिन आता हूँ जब भक्ति का भी टाइम पूरा रहे ना । उसका भी टाइम है । पहले भक्ति की भी स्टेज थी, जिसको अव्यभिचारी भक्ति कहने में आती थी । अव्यभिचारी समझते हो ना, एक की भक्ति, सिर्फ परमात्मा की। अभी तो देखो बहुतों की हो गई हुई है ना । देवताओं की, देवताओं में भी बहुत देवताओं की और उसमें भी फिर अनेक-अनेक की देखो गणेश, हनुमान । अभी यह तो कोई, ऐसे ना कभी कोई देवताए हुए हैं, ये सूंड वाले या वह बंदर की शक्ल वाले, ऐसी ऐसी न कोई देवियां ना देवताएं, कोई ऐसे मनुष्य कभी हुए नहीं है । यह तो अपनी-अपनी भावना का, कल्पना का बैठकर के बनाए हैं । फिर इनका अर्थ बैठ करके निकाले कि हाँ भाई मनुष्य जब है देवता परंतु जनावर सदृश्य बन जाते हैं तो फिर परमात्मा ऐसे मनुष्यों को आ करके फिर देवता बनाते हैं । ऐसे जानवर जैसे परंतु जानवर जैसी शक्ल थोड़ी ही हो जाती है, सूंड थोड़ी आ जाएगी या बंदर थोड़ी ही बन जाएंगे जो जनावर दिखाए हैं परंतु हाँ बंदर मिसल । देखो अभी बंदर हो गए थे ना । पांच विकार में हम बंदर हो गए हैं । तो कहते हैं ना राम ने बंदर सेना ली । वह बतलाते हैं रामेश्वर पर कि रामसेतु पार किया तो बंदर सेना ले गया । अभी बंदर कोई इनह्यूमन बंदर थोड़े ही है । क्यों? भगवान को कोई सेना मिली नहीं? आजकल तो बहुत सेना है, और उनको बंदर की सेना की जरूरत पड़ी और वह समझते हैं कि यह शक्ति दिखलाई उसने । अभी कोई बंदर की सेना लेकर के शक्ति दिखलाने की क्या बात है । नहीं, वह बंदर का मतलब है मनुष्य जो पांच विकारवश बंदर मिसल है ना क्योंकि बंदर में विशेष विकार होते हैं । बंदर होता है ना बड़ा लोभी भी होता है । देखा है, उसको चने खिलाओ ना तो मुट्ठी में भी पकड़ेगा, मुख में भी डालेगा और पांव से भी पकड़ेगा, लोभी होता है बहुत, जो दो पकड़ता जाएगा, पकड़ता जाएगा तो लोभी होता है बहुत इसीलिए लोभ भी उसमें विशेष होता है । क्रोध भी उसमें विशेष होता है । कोई को बड़ा देखेगा न, कोई हाँथी भी देखेगा ना अपने से बड़ा तो गुर्रर । वो समझेगा नहीं की मैं इनसे छोटा हूँ यह मुझसे बड़ा है, नहीं, वह अभिमानी, क्रोधी, कामी भी और फिर मोह भी उसमें होता है । उसकी जो बंदरिया होती है न तो उनके जब बच्चे मरते हैं ना, तो वह मरे हुए बच्चे भी वह साथ में लेकर घूमती फिरती है । तो देखो मरे हुए बच्चों को भी छोड़ेगी नहीं, मोह इतना है उसका । तो इसीलिए बंदर का शास्त्रों में भी मिसाल है कि अरे! तुम्हारे में विकार तो ऐसे हैं जैसे बंदर । तो यह है करतूत कि मनुष्य तू है तो मंदिर । देखो तुम आत्मा है पवित्र और तुम्हारा शरीर पवित्र तू है तो मन्दिर, चैतन्य मंदिर, वो जड़ मंदिर नहीं मूर्ति का लेकिन तू खुद स्वयं चैतन्य मंदिर हो, परंतु अपने को न जानने से देखो बंदर बन गया है । तो यह बंदर से मुशाबत मनुष्य की करतूत से । तो वह जो राम ने सेना ली ना, तो सेना किसकी ली ? पतित मनुष्यों की । देखो अभी परमात्मा आकर के हमको, हम भी वॉरियर्स है ना । हम वॉरियर्स हैं, कौन से वॉरियर्स हैं? रूहानी वॉरियर्स । वो जिस्मानी वॉरियर्स, हम रूहानी वॉरियर्स तो यह सेना ली है ना । अभी सब बंदर सेना है किसकी ? राम की । तो है असल में यह बात कि परमात्मा ने आकर के बंदरों को मंदिर बनाया है अर्थात बंदरों से पतितो को पावन बनाया है । पावन बना करके पावन किंगडम अर्थात स्वर्ग स्थापन किया है तो है यह बंदर सेना मनुष्य की बात है । यह बंदर सेना लेकर के और फिर परमात्मा ने बैठकर के यह संसार को स्वर्ग बनाया है । बाकी ऐसे नहीं वह इनह्यूमन बंदर ले गया है और जीता है लंका को, वो बैठ करके बताते हैं ना, लंका पर जीत पाने के लिए बंदर सेना ले गए । अभी कोई बंदर सेना की तो बात नहीं है न । यह है कि अभी राम, निराकार परमात्मा हम बन्दरों की, विकारी ही कहें ना, विकारियो को ही बैठकर के मंदिर बना रहे हैं निर्विकारी इसीलिए उन्हों को लेकर के, पतितो को पावन बना करके और उनके द्वारा फिर पावन किंगडम हेवन कहो, स्वर्ग कहो या धर्म स्थापना कहो ऐसे आकर के करते हैं । तो यह सभी चीजें इनका अर्थ ऐसा है । अभी देखो शास्त्रकारो ने वो बंदर सेना लगा दी, बात देखो कितनी बदल गई । अभी बिचारे पढ़ने वाले समझते हैं कि शायद बंदर सेना ली और उधर देखो कृष्ण के साथ फिर गौएँ लगा दी कि वह गौएँ चराता था, यह करता था ऐसी बातें हैं ना । यह कई चित्रों में भी दिखलाते हैं ना तो उसके साथ गईयां दिखलाते हैं । अभी यह भी समझने की बात है की ऐसे नहीं है कि कृष्ण आया क्या यहाँ गौओं की गौशाला संभालने के लिए, ये गैयाँ संभालने के लिए ? यहाँ कोई है नहीं क्या संभालने के लिए । गौओं को संभालने के लिए आज कल तो इंवेंशंस बहुत है, अभी भगवान की क्या जरूरत है यहाँ आकर के गौएँ संभाले, क्या गंवार नहीं हैं क्या गौएँ संभालने वाले जो भगवान आकर के यह काम करें इधर । परंतु यह नहीं है, ये इनह्यूमन गौ के लिए नहीं है । यह वास्तव में ये हम सब गौ है । ये गौ क्यों कहा जाता है क्योंकि खास थोड़ा माताओं का रखा है ना और माताओं को आगे कहते भी थे ये माता तो जैसे गौ है ऐसे इसीलिए उनको गौ का नाम रख करके और गाया है ना तो भगवान ने कहा न इनको बिचारी को देखो कितना हटाया गया है बिचारी गौओं को, अबलाओं को तो कहा ये गौ तो फिर उनको वो गौ ऐसा रख दिया वो जनावर गऊ लगा ली । बाकी वो इन ह्यूमन की तो बात ही नहीं की भगवान आया बंदर और गौ और यह इन ह्यूमन संभाले आ करके । वो यह संभालने आया है क्या ? उनके संभालने वाले कोई नहीं थे क्या, जो भगवान खास आएगा यह गौ और बंदर संभालने के लिए । नहीं, उसने तो आ करके मनुष्य को, नर और नारी को श्रेष्ठ बनाया है । उनका कार्य तो मनुष्य के प्रति रहा है और मनुष्य के श्रेष्ठ होने से सब चीजें इनह्यूमन भी तो जड़ आदि भी श्रेष्ठ हो ही जाती हैं । यह तो पहला मनुष्य को चेंज होना है ना, मनुष्य की पावर से फिर सब चीजें और मनुष्य को पावर मिलती है गॉड से । तो गॉड की पावर से मनुष्य और मनुष्य की पावर से फिर सब चीजें जो है ना, वह बदलती हैं । तो यह तो बैठकर के बाप समझाते हैं इसीलिए उनको गउओ को लेने या बंदर आदि को लेने की तो कोई बात ही नहीं की उनकी बैठ करके सेवा करें या उनको बैठकर के कुछ करें, उसकी क्या दरकार है नहीं, तो यह सभी चीजें शास्त्रकारों ने कैसे फिर यह गौएँ लगा दी फिर यह तो बातें देखो बदल गई है ना अभी । तो ऐसी-ऐसी बातें लगाने से बहुत शास्त्रों को भी झूठा कर दिया है इसीलिए देखो क्रिश्चन लोग हैं ना वह जब बैठ करके जब अपना बनाते हैं ना कन्वर्ट करते हैं तो फिर यह सारी बातें सुनाते हैं कि तुम्हारा भगवान कृष्ण, अरे कृष्ण को देखो 108 रानियां थी कितना विकारी था । हमारा क्राइस्ट देखो, उसको कभी नहीं, उसको एक मेरी या कुछ ऐसा, सो भी उसको भी वर्जन से पैदा हुआ, ऐसा नहीं इसीलिए ऐसी अपनी-अपनी महिमा करके कन्वर्ट करते हैं, अरे वह तुम्हारा भगवान, रामचंद्र भगवान, देखो उसकी सीता जो औरत थी ना, वह दूसरे चुरा के ले गए तुम्हारा भगवान कितना कमजोर है जिसकी औरत ही कोई चुरा कर ले जाए, ऐसी-ऐसी बातें वह क्रिश्चियन लोग सुना करके कन्वर्ट करते हैं कि तुम्हारे भगवान देखो ना एक तो दूसरों की औरतें चुरा के आते थे कृष्ण, वह है ना रुक्मणी चुराई, सत्यभामा चुराई, ऐसी-ऐसी बातें शास्त्रों में रखी हैं तो कहते हैं एक भगवान तो तुम्हारा दूसरों की औरतें चुराता था और दूसरे भगवान की कोई औरत चुरा के ले गया यह देखो तुम्हारे भगवान । यह है तुम्हारे भगवान हिंदुस्तानियों के भगवान देखो कैसे हैं । परंतु क्या है कि शास्त्रकारों ने ऐसी-ऐसी बातें रख दी, वो द्रोपदी को पांच पति ऎसी-ऐसी बातें । आज भी पंचकाल और इधर चकराता तरफ ऐसी ऐसी सिस्टम है, वो कहते हैं ना द्रोपदी को पांच पति हैं तो वह पांच पति करती हैं । हमारे पिता श्री भी गए थे जब चकराता तो वह बतलाते थे कि हां वो रखती हैं जितने पति होते हैं ना उतना वह पहनती है रिंग । तो जितने पति होते है उतने रिंग पहनती हैं, एक होता है तो एक, दो है तो दो तीन तो तीन इससे पता लगता है इसको कितना पति है । पांच पति करती है । तो देखो आज कितना अधर्म और कितना यह सभी बातें हो गई हैं क्योंकि वो कहा है ना की द्रौपदी को पांच पति था । अभी द्रौपदी कहाँ की बात, पांच पति कहाँ की बात । वो पांच पांडव थे, पांच पांडव का अर्थ है कोई ऐसे थोड़ी ही की द्रौपदी के पति थे । ये तो बात ही नहीं है । वास्तव में द्रौपदी कोई एक की बात नहीं है, ये हैं ये सब द्रौपदिया और यह सब दुर्योधन । कहते हैं न द्रोपदी को दुर्योधन या पता नहीं दुशासन ने नंगन किया था ऐसा कुछ है शास्त्रों में । अभी इसका मतलब यही है कि विकारों में एक दो को नंगन करते हैं, तो हां पहले तो उसमें मेल आते हैं ना तो इसीलिए भाई दुशासन ने द्रौपदियों को नंगन किया तो नंगन होने से परमात्मा ने आकर के इन विकारों से बचाया । है अर्थ ये, देखो अर्थ कितना है । अभी देखो उसी अर्थ को कैसे ले गए हैं कि द्रोपदी के पांच पति फलाने-फलाने तो शास्त्रों के कारण, यह उल्टी-उल्टी बातों के कारण तो देखो कितनी बातें उल्टी हो गई है । इसलिए देखो हमारे भारत में भी कई बातें ऐसी हैं देखो वह है ना, पिताश्री भी बतलाते थे क्योंकि जवाहरी थे ना तो इन्हों का रिश्ता तो बड़े-बड़े राजा महाराजाओं से था । तो यह आगाखान था ना अपने हैदराबाद का, उसने 500 स्त्री रखी थी तो जब उनकी सेक्रेटरी से मिले थे ना तो कहा कि भाई देखो यह कैसा है 500 स्त्री रखना तो उसने कहा अरे देखो आपका हिंदुओं का जो भगवान था ना श्री कृष्ण उसको तो 108 रानियां थी । अगर भगवान ने 108 रखी तो इसने 500 रखे तो क्या बड़ी बात है । तो इसमें क्या बड़ी बात है । उसने भगवान होकर के 108 रखें तो इस मनुष्य होकर के 500 रखी तो क्या बड़ी बात है । ये तो कोई बड़ी बात ही नहीं है तो देखो कितना ऐसी बातें हैं तो ये सभी कहाँ से उठाया, शास्त्रों से । तो यह शास्त्रों से देखो मनुष्यों ने देखो जाकर के क्या-क्या किया इसीलिए तो कहते हैं देखो यह शास्त्रों में उल्टी उल्टी बातें पूरा अर्थ ना रखने के कारण लगा दी हैं । अभी है इन सब बातों का यथार्थ अर्थ । ये सभी अभी की बातें हैं । अभी देखो द्रोपदियाँ हैं एक द्रौपदी तो नहीं है ना । यह है द्रोपदियाँ और ये दुशासन कहो या दुर्योधन कहो जिन्होंने बैठ कर के एक-दो को नंगन करके विकार में रहे हैं । तो भगवान आते हैं इन विकारों से छुड़ाने के लिए, नगन होने से बचाने के लिए । अभी देखो यह विकारों की चूहेदानी में साधु संत महात्मा सब अंदर पड़े हैं, बॉन्डेज में माया के सब फंसे हुए हैं जैसे चूहे तो अभी उसमें सब फंसे हुए हैं, सब माया की बॉन्डेज में । अभी छुड़ाने वाला इसीलिए कहा है इन साधुओं का भी उद्धार करने वाला मैं हूँ क्योंकि साधु भी माया की बॉन्डेज में । हैं सब माया की बॉन्डेज में मानो सब इस चूहेदानी में फंसे हुए हैं । उसको कहते हैं ना क्या चूहेदानी को क्या कहते हैं रेट और उसको क्या कहते हैं दानी को ट्रैप । समझते हो ना चूहेदानी का मतलब है कि रेट की ट्रेप, हाँ ऐसा है ना, जिसमें वह फसाया जाता है । तो मानो हम रेट की तरह से उस ट्रेप में फंसे हुए हैं । किसकी? माया की बॉन्डेज में । हमने एग्जीबिशन में एक चित्र बनाया था उसमें चूहे को शक्ल दिया था साधु संत सन्यासियों आदि की शक्ल देकर के दिखाया था जैसे कि सब उसमें फंसे हुए हैं, चूहेदानी के अंदर फंसे हुए हैं । अभी सबको बोंडेज स कौन छुड़ाएगा, वो इस चूहेदानी से निकलेगा कौन, यह बोंडेज काटेगा कौन? काटने वाला एक ही परमात्मा और वह आकर के अपने योग और ज्ञान के बल से वह बॉन्डेज काटता है और काटकर के निकालता है तब फ्री हो सकेंगे, नहीं तो अंदर जो बॉन्डेज में पड़े हैं वह कैसे एक दो को छुड़ाएंगे । तो छुड़ा नहीं सकते हैं तो हम सब बॉन्डेज में हैं । हम एक-दूसरे को छुड़ा नहीं सकते । हमको छुड़ाने वाले कि उसकी पावर चाहिए इसीलिए वह आता है और आ करके हमको छुड़ाता है । तो अभी छूटना है ना बॉन्डेज से? तो अभी बाप कहते हैं बच्चे बोंडेज से कैसे छूटें, उसका यह है रॉयल तरीका बॉन्डेज से छूटने का । अभी सब तो ज्ञान नहीं लेते हैं ना, तो कहते हैं बाकियों को क्या करूंगा । जाना तो सबको है अभी मुझे संख्या तो कम चाहिए तो बाकियों को फिर सजा । धर्मराज के रूप में अभी कोर्ट रहेगी बड़ी जिसको कयामत, सिग्रीगेसन यह कहते हैं ना, अभी सजाओ के द्वारा अच्छी तरह से उन आत्माओं का भी उसी तरीके से बॉन्डेज काटूँगा, हिसाब किताब चुक्तु होगा । जैसे कोर्ट देखो सजा देती है ना, फिर सजा से उसका जो है हिसाब-किताब वह काट देती है की हाँ भाई पांच साल का जेल मिला या दंड मिला या कुछ ऐसा है या काले पानी का फरमान दे देते हैं तो देखो यह सब मिलते हैं न तो सजाओ के द्वारा जो उसका दोष वो हिसाब फिर पूरा कर लेते हैं । तो ये एक तरीका है सजाओ से परंतु वह कड़ा है । उसमें बहुत फीलिंग जो है ना दु:ख की कड़ी है इसीलिए वह कड़ी है बहुत सजा का तरीका और यह है रॉयल, विद ऑनर । यह है विद ऑनर पास होना, वह है डिसऑर्नर पास होना । तो अभी डिसऑर्नर पास होना अच्छा या विथ ओनर पास होना अच्छा । उस समय ताकत थी ये सभी वो शास्त्र आदि ये सभी उन्हें पढने का नहीं चाहिए क्योंकि ये शास्त्र है गृहस्थियों के लिए, प्रवृत्ति मार्ग वालों के लिए । उन्होंने तो प्रवृत्ति ख़त्म कर दी न । वो तो चले गए, उनको तो खाली तत्व याद रखना है बस उधर ही बहार से ही बाहर चला जाना है । वो तो समझते हैं हमको उधर से ही उधर चले जाना है, वो तो निकल गए न तो उनके लिए तो ये सब नहीं है न । ये तो शास्त्रों में तो है देवताओं आदि की ये सभी बातें हैं प्रवृत्ति की तो वो प्रवृत्ति को तो खंडन करते हैं न । ये देवताओं की भी प्रवृत्ति को भी नहीं मानंगे वो प्रवृत्ति ही ख़तम । वो तो पवित्र प्रवृत्ति को मानते ही नहीं हैं वो प्रवृत्ति को ही नहीं मानते वो निवृत्ति मार्ग है तो वास्तव में शास्तों में तो प्रवृत्ति पवित्रता का ये सभी आते हैं तो इन्हों को तो इन चीजों का भी लेना नहीं चाहिए । परंतु अभी देखो अंदर घुस आए हैं । अभी तो वो कंदराओं मन्द्राओं छूटी, अभी तो शहरों में फ्लेट्स, अभी देखो मुंबई में बड़े-बड़े सन्यासी बड़े-बड़े फ्लेट्स में रहते हैं । अभी तो गृहस्थियों से भी अच्छी तरह से रहते हैं मौज से चल रहे हैं स्त्रियां सेवा करती हैं और जिस नारी को लगाया, जिस नारी को छोड़ के गए उसका ख्याल नहीँ और फिर दूसरी नारियां उसकी सेवा करते हैं बहुत अच्छी तरह से खातिरी करती हैं । तो देखो दिन-ब-दिन वह जो बल था ना वह जो ताकत थी वह चलती-चलती अभी नहीं रही है । उसमें बहुत खराब भी हो जाते है । बहुत सन्यासी इधर-उधर में आ जाते हैं फिर उल्टे चक्कर में तो ऐसी सब बातें हैं इसीलिए कहते हैं अभी सबकी ताकत, हर चीज की ताकत अभी गिरी हुई है इसलिए बाप कहते हैं वह जो पहली-पहली ताकत थी भक्ति का भी जो पहला गोल्डन एज था ना जिसको अव्यभिचारी भक्ति कहा जाए, वह अभी सब गिरावट में है इसीलिए सबकी जो भी आए हैं सबकी अभी ताकत कम है इसीलिए कहते हैं जब सब ताकत में क्षीण हो जाते हैं ना, सब की ताकत निकल जाती है तब फिर मैं आता हूँ सर्व शक्तिवान और फिर मैं आकर के वो बल देता हूँ । अभी तुम्हारे को बाकी बल कौन देगा अभी किसी का बल रहा नहीं है । जो बल था ना उससे तुम्हारा थोड़ा बहुत अल्पकाल का कराते आए अभी उन्हों का बल भी खुद खत्म है तो अभी क्या है अभी इसीलिए कहते हैं कि मैं आता हूँ और जैसे मकान होता है ना तो मरम्मत करते हैं, मरम्मत समझते हो ना - रिपेयर, तो रिपेयर से थोड़ा बहुत काम चलता है तो मानो यह रिपेयर करने वाले थे सब । कोई धर्म के ताकत से, भक्ति की ताकत से, इसी ताकत से इस मकान की रिपेयर करते हैं लेकिन लेंडलार्ड का तो काम हैं न, धणी का मकान तोड़ना और नया बनाना तो वो तो धणी का काम है न तो मैं धणी हूँ । वो धणी का काम है वो करेगा, वो नहीं करेगा जो किरायदार हैं अल्पकाल के वो नहीं ये काम कर सकते हैं, धणी करेगा न, तो मैं धणी हूँ । अभी धणी की दरकार है क्योंकि यह पुराना हो गया है जड़जड़ीभूत अवस्था हो गया है संसार इसीलिए कहते हैं इसका डिस्ट्रक्शन और कंस्ट्रक्शन करना मेरा काम है । बाकी यह तो भक्ति के जरिए और यह सभी मानो यह सब थोड़ा रिपेयर का काम चलता आया है । तो अभी रिपेयर की कंडीशन नहीं रही है अभी इसकी रिपेयरिंग की कंडीशन नहीं है क्योंकि अभी तो इसकी कंडीशन है तोड़ना । जैसे गवर्मेंट देखती है न कोई मकान है अभी उसकी कंडीशन नहीं है चलने की अभी तो इसको गिराना है नहीं तो एक्सीडेंट हो पड़ेगा । तो अभी बड़ा एक्सीडेंट होने का है ना, इसे कहें विनाश की । एक्सीडेंट होना है यह तो अभी गिरना ही है इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे उससे अभी कैसे बचना है और अपना भविष्य भी कैसा बनाना है इन्हीं सभी बातों को समझना है । तो यह सभी चीजें समझने की है इसीलिए अभी मानो लैंडलॉर्ड, धणी जो है न वह आया है । मालिक आया है, अपना जो वर्ल्ड का क्रिएटर कहा जाता है ना इसको वर्ल्ड का क्रिएटर दुनिया का रचता तो दुनिया का रचता कैसा है वो अभी देखो नई दुनिया रच रहा है और नई दुनिया के लिए यह फाउंडेशन कहो या सेप्लिंग कहो लगा रहा है । तो फाउंडेशन चाहिए ना और फाउंडेशन मजबूत चाहिए । अगर मकान का फाउंडेशन मजबूत नहीं है न तो मकान के गिरने का डर है । तो फाउंडेशन है प्योरिटी इसीलिए कहते हैं प्योरिटी से ही फाउंडेशन मजबूत होगा । उसके लिए फिर मेरी ताकत चाहिए क्योंकि यह फाउंडेशन लगाना काम मेरा है क्योंकि ह्यूमेनिटी का सीड जो है ना बीज वो मैं हूँ इसीलिए उसको बीजरूप भी कहा जाता है । गीता में भी है मैं इस मनुष्य रूपी सृष्टि का बीज हूँ तो बीज कौन है? वो सीड वो है ना । ह्यूमेनिटी यानि ह्यूमन वर्ल्ड का सीड तो मैं हूँ न, में ही आकर के ह्यूमन वर्ल्ड की ये सीड कैसे लगाता हूँ या सेप्लिंग कैसे लगाता हूँ वो बैठकर के समझाते हैं । तो यह है प्योरिटी तो प्योरिटी है जो मैं आकर के प्योरिटी का बीज अथवा सेप्लिंग या फाउंडेशन जो कुछ कहो लगाता हूँ जिससे फिर तुम्हारा संसार सदा सुख का रहता है । तो यह सभी चीजें समझने की है तो देखो परमात्मा ने कैसे और किस तरह से बैठकर के समझाया, अब शास्त्रों में कैसी कैसी बातें चली गई, पीछे वालों ने बैठकर के ऐसा-ऐसा लिख दिया । तो ऐसी असुल बातें ऎसी देखो परंतु कितनी यह सभी बातें उलट-पुलट हो गई है । है सब मनुष्य के बन्दर आदि वह एक है ना कथा वो भी है लक्ष्मी नारायण का कि जब स्वयंवर हुआ है, लक्ष्मी सभा में गई है तो जा करके देखा है, स्वयंवर में लक्ष्मी निकली है वर चुनने के लिए, ऐसा शास्त्र में दिखाते हैं तो वहाँ नारद बैठा था, नाटक भी दिखलाते हैं इसके बड़े अच्छे-अच्छे । तो वो बैठा रहा बड़े ठाठ में की अभी लक्ष्मी हमें वरेंगी, तो उसको हंसी आ गई तो उसने कहा कि तू शक्ल तो देख अपनी, तू कहता है लक्ष्मी मुझे वरमाला डालेगी, तू शक्ल तो देख अपनी तू कौन है । तो उसने आइना दिया उसको तो उसने देखा तो उसको अपनी शक्ल बंदर की दिखाई पड़ी । अभी ये बंदर का अर्थ कोई इनहुमन बंदर से नहीं है वह है कि पाँच विकार का उनको दर्पण दिया यानी यह नॉलेज दिया, ये है सभी अभी की बात । कोई वहाँ की नहीं है सतयुग की, स्वयंबर सभा यह है । हमारी अभी ये सभा स्वयंवर सभा है । स्वयंवर का मतलब कि हम स्वयं को, सेल्फ को वरते हैं । वरते का मतलब है कि हम नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी स्वयं को वरते हैं । यह समझा, तो अभी यह सभा क्या है इसको स्वयंवर सभा कही जा सकती है । बाकि सतयुग में कोई लक्ष्मी निकलेगी और स्वयंबर रचेंगी, वो तो रजवाड़ी खाता है उसको तो कायदे से सगाई होगी जैसे कानून से होती है वैसे होगी बाकि ऐसे थोड़ी उसी समय बाहर निकल के ढूँढेंगी । उनको मिला ही नहीं उनका रजवाड़े में पता ही नहीं है किसके साथ है जो उसी समय बाहर निकल के ढूँढेंगी, नहीं ऐसा नहीं होता है ये हैं असुल अभी की बातें, जब परमात्मा आया है तो परमात्मा ने यह स्वयंवर सभा रची । यह सभा कहो, क्लास कहो, कुछ भी कहो लेकिन यह सभा है जिसमें हर एक को नर नारी को कहा है स्वयं को वरो । स्वयं माना सेल्फ को वरो । सेल्फ को कैसे वरो यानी सेल्फ जो असूल तुम्हारी स्टेज है तू नर नारायण है, नारी तू लक्ष्मी है असूल, अपने को भूल गए हो । अभी फिर नर से नारायण नारी से लक्ष्मी बनो, स्वयं को वरो । तो स्वयं को वरेंगे तो फिर तुम्हारा सतयुग में भी पवित्र जोड़े बनेंगे । नर-नारी पवित्र होकर रहेंगे, लेकिन अभी स्वयं को वरना है तो असूल यह है स्वयंवर बाकी उधर कोई स्वयंवर की सिस्टम ऐसी नहीं कोई सभा होगी जिसमें लड़के इकट्ठे होंगे, उसमें से फिर वह चुनेंगी या शादी करेंगी, नहीं ऐसी बातें नहीं होती हैं । वहाँ तो बड़े मर्यादा से, कायदे से, कानून से सब होता है । तो यह सभी चीजें समझने की हैं । ये तो लिखने वालो ने बैठकर के स्टोरीज आदि बनाई हैं जैसे स्टोरीज या नोवेल्स कैसे बनते हैं । बहुत अच्छे-अच्छे नोवेल्स ऐसे बनाते हैं कि पढ़ने वालों को रुला देते हैं । रुला देती हैं एकदम ऐसी-ऐसी चीजें । ये इतनी पिक्चर्स बनती है कहाँ से बनती हैं ये कोई रियल स्टोरीज थोड़ी हैं ये तो बनाते हैं न कहानियाँ, इसी-इसी तरह से यह शास्त्रकारों ने भी बैठकर के बड़े अच्छे अच्छे ढंग से बैठ करके यह सब बनाया है, परंतु उनको समझने और समझाने वाले, वह तो समझते हैं ना कि शायद ऐसी बंदर सेना थी, ऐसा शायद था, ऐसी सब बातें थी, वो ले गए हैं उसमें तो इसीलिए यह सभी बातें गड़बड़ हो गई है । इसीलिए बाप कहते हैं देखो अभी तुम सब मूंझ गए हो, अपनी ही बनाई हुई चीजों में मूंझ गए हो । अपने से ही बनाया है और अपनी ही बनाई हुई चीजों में मूंझ गए हो । अपने ही बनाई हुई चीजों में अपने को मुझाया है और मूंझ करके मेरे को भुला दिया है । मुझे ही बुला दिया है ना, परमात्मा क्या, तू क्या अपने आपको खुद को भूल गए हो । तो खुद में ही अपना रोला डाल करके और उसमें से ही अपने आपको ही मुझा दिया है और उससे देखो अभी तुम्हारा हाल क्या हुआ है । अभी इसीलिए कहते हैं इन सब को भूलो । जिसमें मूंझे हो अब इसको भूलो इसीलिए इसको कहते हैं भूल भुलैया । वह देखा है ना बारादरी में कभी देखा है उसमें ऐसे टेढ़े-मेढ़े रास्ते बनाते हैं वह लखनऊ में भी है बारादरी बारादरी कहते हैं वो रास्ता ऐसा होता है अगर कोई गाइड ना मिले ना तो बाहर निकल नहीं सके । देखेंगे सामने रास्ता है परंतु जाएंगे फिर दोबारा आ जाएंगे रास्ता बंद । वो देखा है कभी, ऐसा बनाते हैं बहुत है जब कभी एक्जीबिशन होती हैं या सर्कस होती है तो वहाँ ये बहुत बनाते हैं तो यह होते है रास्ता मूंझाने का जिसको कहते हैं भूल-भुलैया । ऐसे रास्ते हैं जब तलक कोई गाइड ना मिले ना तो पार नहीं कर सके । जाएंगे रास्ता देखेंगे आगे चलेंगे परंतु सामने दीवार आ जाएगी, किधर से निकलें मूंझ जाएंगे । बारादरी लखनऊ में भी है हम गए थे वहाँ देखने के लिए क्योंकि हमको मिसाल देना पड़ता है ना दृष्टांत समझाने के लिए तो हमने कहा देखें तो सही क्या है, कैसा है हम तो भाई मूंझ गए थे एकदम । वो गाइड क्या करता था, वो घड़ी-घड़ी गुम हो जाता था । उसको तो अपने रास्तों का पता था ना तो वह निकल जाता था, हम तो रह जाते थे । फिर कहते - अरे! इधर कहाँ आ गए, फिर उसको बुलाते थे इधर आओ तो फिर आकर के हमको फिर ले चलता था । वो समझता था देखें ये लोग कैसे हैं तो ये होते हैं लखनऊ में । आप जाएँगे न बारादरी तो देखना, जब कभी जाओ । अपना सेंटर है वहाँ । यह भी एक देखने की चीज है, एक राजा ने बनाई हुई है अपने खेलने के लिए । आगे तो वो रजवाड़े लोग तो बड़े शौकीन थे ना, तो ऐसी-ऐसी चीजें बनाते थे तो उनका बनाया हुआ है । तो यह मिसाल है कि यह सभी रास्ते तो कहते हैं कि बहुत हैं परन्तु वो रास्ते तो नहीं हैं न जो उनका रास्ता है इसीलिए बाप कहते हैं मेरा जो रास्ता है तो मैं वो आ करके बताता हूँ । तुम रास्ता समझ कर चल तो पड़े हैं की बहुत रस्ते हैं परंतु तुम्हारे पार होने के नहीं है उससे । दीवार है सामने एकदम, निकल नहीं सकते हो पार । फिर यहाँ के यहीं पड़े हो । फिर लॉक हो जाते हो यहाँ के यहाँ ही पड़े हो, सब पुनर्जन्म लेते रहते हो । रास्ता पार कराने का गाइड में हूँ । जब तलक तुमको गाइड ना मिले ना तब तलक तुम पार नहीं हो सकते हो तो वह गाइड मैं हूँ । इसका रास्ता और कहीं कोई नहीं जानता हैं । वो दुसरे रास्ते तो मनुष्य बता देते हैं परंतु इसका गाइड मैं हूँ ना इसीलिए इसका गाइड और लिब्रेटर मैं ही हूँ इसीलिए कहते हैं इसका गाइड मैं करता हूँ । मैं आता ही इसीलिए हूँ नहीं तो मुझे क्यों आना पड़े क्योंकि इसका रास्ता दिखलाना मुझे ही है । इस पार आने के लिए मुझे ही रास्ता दिखाना पड़ता है इसीलिए मुझे आना पड़ता है । नहीं तो किसी को ले आना हो तो किसी को कह दूँ की ले आओ । नीचे से कह दूँ किसी को की हाँ तू ले आ इनको । नहीं, मुझे आना पड़ता है, मुझे बुलाते हो ना और लिब्रेटर मैं ही हूँ इसीलिए कहते हैं इसकी गाइड मैं करता हूँ । मैं आता ही इसीलिए हूँ, नहीं तो मुझे क्यों आना पड़े क्योंकि इसका रास्ता दिखलाना मुझे ही है । मेरे पार आने के लिए मुझे ही रास्ता दिखलाना पड़ता है इसीलिए मुझे आना पड़ता है नहीं तो किसी और को ले आना होए तो कहो ले आओ, नीचे से कह दूँ ले आओ, तू ले आ इनको । नहीं मुझे आना पड़ता है मुझे पुकारते हो ना देखो पुकारते हैं कि छोड़ अभी आकाश, अभी धरती पर आ । अगर धरती पर है ओमनीप्रेजेंट है तो फिर बुलाते काहे के लिए हैं । बैठा है ना इसलिए उनको पुकारते हैं तू आ और आकर के अभी हमको रास्ता बतला । अंधकार में हम मूंझ गये हैं, रास्ता मिलता नहीं है । जाते हैं रास्ता समझ करके परंतु सामने बंद, फिर इधर ही पड़े हैं दुःख में अभी तू निकाल इससे, तू गाइड कर तो देखो उस गाइड को बुलाते हैं ना । तो वो अभी कहते हैं मैं हाजिर हूँ तो यह सभी बातें समझने की है । तो यह बैठकर के बाप समझाते हैं कि बच्चे अभी इन्हीं बातों को समझ करके कि मैं गाइड आया हुआ हूँ, अभी लिब्रेटर आया हुआ है । अभी तुमको लिब्रेट होने का टाइम भी है क्योंकि अभी तुम्हारे जन्म पूरे हुए हैं यह चक्कर के जन्म । ऐसे नहीं है कि फिर जन्म ना लेंगे यह चक्कर तो चलना ही है ना परंतु इस चक्कर के जन्म पूरे हुए हैं । अभी तुम्हारे सुख के, दुःख के यह सभी जन्म पूरे होते हैं । यह लास्ट जन्म है इसीलिए कहते हैं यह तुम्हारा लास्ट जन्म है, अभी सब का लास्ट जन्म । बच्चा भी है ना छोटा, उसका भी लास्ट जन्म है कैसे कि वह आत्मा को भी अभी वापस जाना है इसीलिए अभी छोटे, बड़े, बूढ़े सबका मौत है इसीलिए अभी मौत भी उसकी भी अलग-अलग किस्म से तैयारियां हो रही है । इस डिस्ट्रक्शन में इन वार्स में या एटॉमिक वार्स आदि में इन सब चीजों में ऐसे ही थोड़ी खाली बुड्ढे मरेंगे, छोटे रह जाएंगे, नहीं उसमें तो सब मरेंगे ना, छोटे-बड़े सभी नेचुरल कैलेमिटीज से और इन्हीं सभी चीजों से जो मौत के तरीके हैं सब उसमें तो सब छोटे-बड़े बुड्ढे सब मरेंगे ना इसीलिए बाप कहते हैं अभी सब की आयु वानप्रस्थ समझो यानी अभी छोटा बच्चा भी है ना वह भी वानप्रस्थ ही है । वानप्रस्थ का अर्थ है अभी उसको वाणी के स्थान, इनकॉरपोरियल साइलेंस वर्ल्ड, यह वाणी की वर्ल्ड है जिसको टॉकी वर्ल्ड माना वाणी की, वाचा’ की, तो वाचा की वर्ल्ड है अभी इसी वाणी से परे स्थान जाना है । परस्थान का मतलब है वान पर स्थान, वानप्रस्थी कहते हैं ना तो उसका मतलब ही है वहाँ माना वाणी से पर स्थान तो पर स्थान पर जाना है । पर स्थान कौन सा है इन कॉरपोरियल वर्ल्ड तो वाणी से पर स्थान जाना है । तो वह है वाणी से पर साइलेंस वर्ल्ड तो अभी सबको जाना है छोटे बड़े सबको इसीलिए कहते हैं अभी लास्ट जन्म है । अभी इन जन्मों का चक्कर पूरा होता है इसीलिए बाप कहते हैं अभी चक्कर जब पूरा होता है तो उसको पूरा करके अभी चलो, परंतु प्योर हो करके चलेंगे ना । ऐसे तो नहीं चल उधर सकते हो । इम्प्योर सोल नहीं चल सकती है । जब मैंने भेजा था, तुम आए थे तो प्योर थे ना, अभी मेरे घर के उधर चलेंगे तो प्योर ही चलेंगे ना, इम्प्योर थोड़े ही घुस सकता है नॉट अलाउड । इम्प्योर नॉट अलाउड इसीलिए यहाँ ही प्योर होना है ना तो इसीलिए इधर प्योर होने के लिए मैं ज्ञान और योग इधर देने के लिए आता हूँ । अगर मुझे उधर ही देना होता तो मैं कहता चलो आओ इम्प्योर सोल और पीछे फिर यहाँ बैठकर मैं तुमको ज्ञान दूँगा । नहीं, तुम आ ही नहीं सकते हो उधर, घुस ही नहीं सकते तो इम्प्योर इसीलिए तुमको यहाँ प्योर बनना है तो प्योर बनाने के लिए मुझे आना पड़ता है इसीलिए मेरा अवतरण होता है और मुझे पुकारते हो की तू आ । तो जब आएँगे प्योर बनाएंगे इस बोंडेज से छुड़ाएंगे सब को इस पिंजरे से निकल सकेंगे ना । ये माया का पिंजड़ा, पिंजड़ा समझते हो ना, वह चूहेदानी होती है न जिसमें चूहे फंसाते हैं तो हम चूहे के मिसल फंस गए हैं सब । सब हैं इसमें साधु-संतों महात्मा वो अपना एक मैगजीन है न वो एक अग्जिबिशन निकली थी न उसमें देखा होगा वो एक चूहेदानी में सब साधु, संत, महात्मा सब अंदर पड़े हैं माया के बोंडेज में । सब फंसे हुए हैं जैसे चूहे तो अभी उसमें सब फंसे हुए हैं तो अभी छुड़ाने वाला इसीलिए कहा इन साधुओं का भी उद्धार करने वाला मैं हूँ क्योंकि साधु भी माया की बॉन्डेज में है । सब माया की बॉन्डेज में है मानो सब इस चूहेदानी में फंसे हुए हैं । उसको कहते हैं न क्या चूहे को क्या कहते हैं रेट और उसको कहते हैं दानी को ट्रैप, समझते हो ना चूहेदानी का मतलब है रेट की ट्रेप जिसमें चूहे फंसाए जाते हैं तो मानो हम रेट की तरह से उस ट्रैप में फंसे हुए हैं किसमें माया की बॉन्डेज में तो हमने एग्जीबिशन में एक चित्र बनाया था, जैसे अन्दर चूहे बनाकर के उनको साधुओं की, संतों की इन सब की शक्ल देकर के वह सब उसमें जो है ना जैसे वह चूहेदानी में फंसे हुए हैं अभी सबको इस बोंडेज से कौन छुड़ाएगा ? वो । उस चूहेदानी से निकालेगा कौन? वो । इस बोंडेज को काटेगा कौन? काटने वाला एक ही परमात्मा और वह आ करके अपने योग और ज्ञान के बल से वह बॉन्डेज काटता है और काटकर के निकालता है तब फ्री हो सकेंगे नहीं तो अंदर जो बॉन्डेज में पड़े हैं वह कैसे एक-दो को छुड़ाएंगे । छुड़ा नही सकते हैं तो हम सब बॉन्डेज में है, हम एक-दो को छुड़ा नहीं सकते हैं । हमको छुड़ाने वाले की उसकी पावर चाहिए इसीलिए वह आता है और आ करके हमको छुड़ाता है तो अभी छूटना है ना बॉन्डेज से, तो अभी बाप कहते हैं बच्चे इस बोंडेज कैसे छूटो तो यह है रॉयल तरीका बॉन्डेज से छूटने का । अभी सब तो ज्ञान नहीं लेते हैं ना तो कहते हैं बाकियों को क्या करूंगा, जाना तो सबको है अभी, मुझे संख्या तो कम चाहिए तो बाकियों को फिर सजा । धर्मराज के रूप में अभी कोर्ट रहेगी बड़ी, जिसको क़यामत, सीग्रिगेशन यह कहते हैं ना । अभी सजाओं के द्वारा उसको अच्छी तरह से उन आत्माओं का फिर उसी तरीके से बोंडेज काटूँगा, हिसाब किताब छुक्तु करूँगा जैसे कोर्ट देखो सजा देती है ना फिर सजा से उसका जो है हिसाब वह काट देती हैं की भाई पाँच साल का जेल मिला या कुछ दंड मिला या कुछ और या फिर उसको काले पानी की सजा सुना देते हैं तो देखो यह सब सजाएं मिलती है ना, इसी तरह सजाओ के द्वारा वह हिसाब पूरा कर लेते हैं । तो एक तरीका है सजाओं का परंतु वह कड़ा है उसमें बहुत फीलिंग जो है ना दुःख की कड़ी है इसीलिए कहते है उसमें कड़ी दुःख की फीलिंग है वो कड़ा है बहुत सजाओं का तरीका, और यह रॉयल, विद ओनर । यह है विद ओनर पास होना वह है डिशऑनर पास होना । तो अभी डिस ओनर पास होना अच्छा या विद ऑनर पास होना अच्छा ?