मम्मा मुरली मधुबन           

परमात्मा का कर्तव्य और मनुष्यों की मत
 


रिकॉर्ड:-

प्रीतम आन मिलो............
प्रियतम, कौन है? यह सभी परमपिता परमात्मा की महिमा है । प्रियतम वो है ना और हम सब हैं उसकी प्रियतमाएं अर्थात उनको प्रेम करने वाले और करते हैं उसको, तो जिसको करते हैं वह प्रीतम रहा और जो करते हैं प्रेम वह हो गई प्रियतमाएं, उनको कहा जाता है प्रियतमाएं अर्थात प्रेम करने वाले । तो हम करते हैं परन्तु करते हैं जिसको वह दूसरा हुआ ना । ऐसे नहीं हम ही प्रेम करने वाले, हम ही प्रेम लेने वाले, नहीं, प्रेम उनको करना है, करने वाले हम । तो जिसको करना है वह प्रेम कहो, लगन कहो, योग कहो बात एक ही है । योग कोई अलग चीज नहीं है । योग, तो योग शब्द से बातें बहुत बड़ी हो गई हैं । वो समझते हैं योग, योग तो पता नहीं योग क्या होगा तो इसीलिए योग के नाम से बहुत बड़ा समझते हैं, परंतु योग है तो उसके साथ लगन कहो. प्रेम कहो, उसकी याद कहो इसीलिए हम लोग योग अक्षर को इतना काम में नहीं लाते हैं, जितना याद को लाते हैं क्योंकि याद कहने से सिंपल लगता है । और है भी याद, योग दूसरी तो कोई चीज है नहीं । योग कहने से फिर कईयों ने समझा है शायद आसन लगाकर बैठने से उससे मन लगेगा, शायद आंखें बंद करके बैठने से उससे मन लगेगा, शायद ऐसे करने से उससे मन लगेगा । मन लगाने के लिए इन सभी साधनों की कोई जरूरत नहीं है । कोई चीज से हमारा मन लगता है तो कैसे लगता है, कोई जड़ चीज से यदि मन लगाना हो यानी कोई जड़ चीज से हमारा प्रेम हो, कोई चैतन्य किसी से किसी का लव हो तो लव तो एक नेचुरल चीज है, लव होता है तो फिर कहाँ भी हो कोई लंडन हो मेरा लव है समझो किसी से तो वह तो नेचुरल है वह तो यहाँ बैठे काम करेंगे, बुद्धि हर वक्त उस स्मृति में रहेगी । तो लव बुद्धि योग जिसको लव कहा जाए तो लव के जरिए वह बुद्धि खींचती रहेगी । तो हमको भी उनके साथ बुद्धि का योग रखना है, जैसे लैला-मजनू, हीर-रांझा यह सब है ना, मशहूर है तो इनके किस्से, तो ये जिस्मानी लव है वह है शारीरिक लव, इसको रुहानी नहीं कहेंगे लेकिन जिस्मानी लव की भी स्टेज है । जिस्मानी लव भी इनका प्योर था तभी इनका गायन है, महिमा है क्योंकि इनका विकारी प्रेम नहीं था । जिस्म के ऊपर जरूर था लेकिन विकारी नहीं था । परंतु यह तो फिर जिस्म का नहीं है ना, यह है रूहानी, उस बाप के साथ हमारा है रूहानी प्रेम इसीलिए उनको फिर पवित्र प्रेम कहा जाए । तो यह है हमारा उसी अपने बाप से जन्म सिद्ध अधिकार लेना तो यह अपना है रूहानी प्रेम । रूह है ना, हम आत्मा रूह हैं वो हमारा रूहों का बाप तो हमारा उस बाप से प्रेम है क्योंकि हम रूह निर्बल हो गए हैं ना, अभी उस बाप से बल लेने के लिए उसे याद रखना है । उससे अपना रिलेशन, उसके साथ अपना संबंध जोड़ना है । तो संबंध के लिए भी तो उसका साथ चाहिए ना इसीलिए कहते हैं तुम्हारे साथ संबंध जुड़वाने के लिए मुझे भी तेरे जैसे मनुष्य का आधार लेना पड़ता है । तो बैठकर के समझाते हैं कि इस मनुष्य तन का आधार लेने के ऊपर भी शास्त्रों में बहुत बातें हैं । कहाँ-कहाँ शास्त्रों में तो बहुत गुप्त उसका दिखलाया है, कहते हैं ना सत्यनारायण की कथा आप लोग सुनते होंगे, बहुत सत्यनारायण का व्रत भी रखते हैं तो वह कथा भी करते हैं । तो उस कथा में भी है कि भाई भगवान आया बूढ़े ब्राह्मण के रूप में तो उसने कहा कि यह तुम्हारी नाव में क्या है, तो उसने कहा ये क्यूं पूछते हो तो उसने कहा ये बेडा डूबना है तो इसको संभालो, तो उसने कहा भला ये क्यों हमसे पूंछता है की इसमें क्या है, उसने समझा ये कोई चोर लुटेरा है तो उसने कहा की इसमें कुछ नहीं, कुछ नहीं है चले जाओ, इसमें क्या है बस कख और पन है इसमें और कुछ थोड़ी है, चले जाओ इसमें कुछ नहीं है तो बूढ़े ब्राह्मण ने कहा तथास्तु, चलो कहते हो कखपन है तो चलो तथास्तु । तो फिर उसी समय वो बेड़ा डूब गया और कखपन हो गया यानि ख़त्म, विनाश हो गया, यह तो बैठ करके कहानी बनाई है । अभी देखो कहानी बनाई है ना यह परंतु प्रैक्टिकल कहते हैं कि इस कलयुग के अंत और सतयुग की आदि में अर्थात जब यह बेडा डूबना है यानी संसार के डिस्ट्रक्शन का टाइम है । यह बड़ा बेड़ा है ना? ये हम सब जैसे की बड़े बोट में बैठे हुए हैं न यहाँ तो यह है बड़ा बेड़ा है, तो कहते हैं जब यह डूबने का है यानी डिस्ट्रक्शन का टाइम है तब परमात्मा बुड्ढे ब्राह्मण के रूप में अर्थात बूढ़े तन में आए हैं । तो बिल्कुल साधारण, ऐसा नहीं है कि ठाठ बाट से या और कुछ, नहीं गुप्त और साधारण तन में आए हैं, ओर्र आकर के कहते हैं भाई देखो अब तो विनाश है, अब तो अपना कुछ बना लो इसीलिए तो फिर वह समझते हैं कि पता नहीं ये विनाश-विनाश कह करके बहकाती हैं । कहते हैं ना ब्रम्हाकुमारियाँ बहकाती हैं, विनाश का डराव देती हैं, यह करती हैं तो उनको भी ऐसा समझा कि यह चोर लुटेरा है, ये कुछ लूटने के लिए आया है । ये जो कहता है कि यह डूबता है तो ये लूटना चाहता है तो जैसे यह सब बातें हुई है ना । अभी देखो बातें प्रैक्टिकल कैसे हुई हैं और फिर बैठकर के शास्त्रों में कैसे इन सब बातों को लगाया है तो है यह । तब बाप कहते हैं अच्छा नहीं समझते हो तो तथास्तु । डूबेगा तो फिर तुम्हारा यह कखपन हो ही जाएगा । जो जानते हैं जिन्होंने समझा की ये क्या कहते है कुछ तो जिन्होंने सेफ किया तो सेफ हो गये । तो अभी देखो जो जानते हैं, जिन्होंने सेफ किया है अपने को तो वो अभी सेफ हो रहे हैं बाकी जिन्होंने नहीं जाना वह डूब ही मरते हैं । तो यह है इसी समय की सभी बातें, एक समय की बातों को बहुत कहानियों में यानी छोटे-छोटे बड़े-बड़े ये सब शास्त्र आदि बना दिए हैं । और उधर देखो गीता में भी है कि परमात्मा अर्जुन के रथ पर बैठा, अभी वह चित्र में दिखलाते हैं । इसके लिए बहुत से चित्रों की है, एक अहमदाबाद में भी हैं सॉरी गीता को चित्रों में दिखाया है । सारी दीवारों पर गीता के श्लोक और चित्र लगाए हुए हैं जो वहाँ गए होंगे तो शायद देखा भी सारी गीता का, एक बड़ी बिल्डिंग है उस बिल्डिंग में सारी गीता का चित्र निकाल करके जैसे अर्जुन का रथ तो वहाँ श्लोक भी लगाए हैं और फिर यह चित्र भी रखे हैं तो ऐसे बहुत हैं । और ऐसे ही गीता भी बनाते हैं, चित्र वाली गीता देखेंगे तो उसमें भी है कि अर्जुन के रथ पर बैठा है कृष्ण । अभी कोई अर्जुन के रथ या रथ पर कृष्ण बैठे ऐसी तो कोई बात ही नहीं है जो लड़ाई के मैदान पर किसी रथ में बैठ कर के कृष्ण डायरेक्शन दे ऐसी तो कोई बात ही नहीं है न, कोई लड़ाई की बात तो है नहीं, की ये लड़ाई के लिए कहा । नहीं, यह है पांचों विकारों से लड़ाई करने की बात । तो परमात्मा ने बैठकर के पांच विकार से लड़ने की युक्ति सिखलाई, उसके लिए कहा । बाकी कोई युद्ध के मैदान पर रथ में बैठ कर के ज्ञान सुनाएं उसकी तो बात ही नहीं है न की चार घोड़े की गाड़ी रखी है, फिर वह रथ रखा है बड़ा अच्छा, ऐसी बातें नहीं है । अभी रथ ये है कि परमात्मा अर्जुन के रथ में यानी साधारण मनुष्य तन जिसका नाम अर्जुन भी कहो, ब्रह्मा भी कहो, यह सब नाम है, तो यह उनका नाम रखा है । तो अभी ब्रह्मा कहो या अर्जुन कहो यह सभी है, उसको नंदीगण कहो, वह नंदीगण रखते हैं ना इधर बहुत मानते हैं बैल को, नंदीगण उसको कहते हैं जिस बैल को फिर पूजते हैं । आपने देखे होंगे यहाँ बड़े-बड़े बैल का एक मंदिर है उस दिन हम भी गए थे देखने के लिए । तो यह बैल की क्यूं इतनी महिमा है । परंतु वह समझते हैं कि वह शिव है जो वो शंकर के आगे बैल दिखलाते हैं तो इनको पूजते हैं तो इनको क्यों पूजते हैं, असल में है कि शिव निराकार नॉट शंकर, शिव और शंकर में अंतर है यह तो समझे हैं ना । तो शिव आया है जिस तन में, तो आया है तो आया है तो मनुष्य तन में ना, कोई बैल के ऊपर थोड़ी ही आया है परंतु उन्होंने समझा नहीं है ना तो उन्होंने समझा कि बैल के ऊपर चढ़कर आया है । अभी बैल के ऊपर कैसे आएगा ? दूसरी सवारी नहीं मिली जो इस बैल के ऊपर आएगा? नहीं, तो बैल के ऊपर नहीं, परंतु मनुष्य तन में आया है परन्तु उनको बैल बना दिया है क्योंकि जैसे इन ह्यूमन गैया रखी है ना, देखो कृष्ण के आगे गैया रखी है, गैया भी रखी है तो बैल भी लगा दिया है तो वह बैल वो गैय्या तो इनह्यूमन बातें लगा दी हैं परंतु ऐसे नहीं है कि कोई बैल के ऊपर आए थे । आए तो मनुष्य तन में थे ना । वह तो सोल है ना, उसकी तो बैल के ऊपर आने की कोई बात ही नहीं है, सोलको तो शरीर चाहिए ना । तो उन्होंने शरीर का आधार लिया है इसीलिए उनको वो बैल दिखाया है तो यह नंदीगड़ का जो पूजन है जिसको बैल का यहाँ मंदिर है तो वास्तव में यह भी परमात्मा जिस तन में आया है, रथ पर कहो क्योंकि शरीर को रथ भी कहा जाता है तो शरीर की बात है, रथ माना यह नहीं घोड़े-गाड़ी, घोड़ा लगाया वो गाड़ी बना दी है, नहीं, रथ शरीर को भी कहा जाता है तो ये रथ शरीर है, आत्मा का रथ कौन सा है, ये शरीर है न, तो परमात्मा भी आएगा तो कोई शरीर लेगा ना उनको अपना तो शरीर है नहीं कर्म का, उसको टेंपरेरी लेना है सुनाने के लिए नॉलेज । तो जिसको लिया है तो वह है परमात्मा का बैल कहो, नंदीगण कहो । वह भागीरथ है ना, भागीरथ का दिखलाते हैं कि जटाओं से गंगा निकली । अभी इसका भी अर्थ है, अभी ये भागीरथ क्या है, उसको कहा जाता है भागीरथ यानी भाग्यशाली रथ । इसका अर्थ है भाग्यशाली, तो भाग्यशाली रथ हुआ ना, जिसमें परमात्मा आते हैं तो उसका नाम हो गया भागीरथ । अभी उससे गंगा निकली तो गंगा ऐसा थोड़ी है यहाँ से वो ऐसे फव्वारे की तरह से जैसे निकालते हैं, दिखलाते हैं ना चित्रों में, फव्वारा समझते हो ना जैसे पानी ऊपर से बहता है तो वह दिखलाते हैं ऐसे कि उसमें से पानी निकला है परन्तु कोई ऐसे पानी वाणी थोड़ी निकला है क्योंकि वहाँ तो लिखा हैं ना की गंगा से पावन होते हैं तो इन्होंने फिर वह पानी दिखलाया है । अभी इसका अर्थ है कि उन्होंने बैठकर के बुद्धि से नॉलेज दिया है, तो असुल में बात ऐसी है कि हाँ बुद्धि से नॉलेज दिया है बाकी नॉलेज को कैसे दिखलाए तो नॉलेज के लिए पानी दिखला दिया है तो इसीलिए वो लिखा है कि उसकी जटाओं से पानी निकला है । पानी से थोड़ी पावन होंगे पावन तो नॉलेज से होंगे ना ज्ञान से । ज्ञान ही पावन बनाता है ना तो परमात्मा ने बैठकर के ज्ञान और योग सिखलाया है । तो आया है जिस तन में उस भाग्यशाली रथ का आधार लेकर के और बैठकर के नॉलेज दिया है तो देखो चित्रकारों ने उस भागीरथ का कैसा चित्र बना दिया है, यहाँ गंगा रख दी वह शक्ल भी रखते हैं माथे पर माता गंगा का फिर उसमें से पानी ऐसे बहता है । परंतु इसका अर्थ यह है कि ये ज्ञान गंगाएं निकाली है ना, यह देखो ज्ञानगंगाएं, इसको कह सकते हैं यह ज्ञान गंगाएं तो ज्ञान गंगा यानी माताओं के द्वारा फिर बैठकर के यह नॉलेज दिया है तो यह ज्ञान गंगाएं । अभी ज्ञान गंगा कहाँ की बात और देखो वह पानी की गंगाएं यह सभी बातें कैसे ले आए हैं और फिर उस मनुष्य के सर से वह पानी बहता हुआ दिखाया, उसको फव्वारा बना करके तो ऐसा थोड़े ही है कि यह मनुष्य की बात है । इस तरीके से नहीं है परंतु हाँ कैसे तन में आया तो देखो परमात्मा का तन में आना, उसके कैसे-कैसे अजीब अजीब से चित्र बनाए हैं । यह भागीरथ का चित्र देखो, फिर वो नरसिंह का देखो, वह शेर की शक्ल नर का शरीर वह कैसे-कैसे चित्र बनाएं हैं परंतु ऐसा तो नहीं है ना । वह आया है नर तन में परंतु हाँ परमात्मा शेरों का शेर कहो, शेर को किंग कहा जाता है ना जनावरों का तो वह आए हैं परंतु उन्होंने दे दिया है जनावर की शक्ल, अभी उसको जनावर की शक्ल थोड़ी लेकर के आना है पर हाँ यह है कि हाँ वह सर्व समर्थ बाप जो सर्वशक्तिमान है तो शेर की शक्ति ऊंची गिनी जाती है ना तो इसका अर्थ है कि हाँ वह सर्वशक्तिमान नर तन में आकर के ज्ञान दिया परंतु जनावर में तो नहीं आया है ना, ऐसी तो कोई बात नहीं है ना । तो बातें हैं ऐसी परंतु उनके अवतरण के लिए फिर कैसी-कैसी अजीब-अजीब सी शक्लें रख दी है । इधर नरसिंह कहाँ भागीरथ, कहाँ बैल, वह बैल को रख दिया है बेचारे को, अभी बैल की क्या बात है । तो यह इनह्यूमंस का आधार लगाया है आधा मनुष्य का आधा वो, कहाँ सारे इन्ह्यूमंस रख दिए हैं, अब देखो ये कैसे-कैसे अजीब से चित्र और यह सब बातें और उसके कितने बड़े-बड़े चित्र बनाके कितनी अच्छी तरह से पूजते आते हैं । यह कभी समझते नहीं है कि भाई बैल को क्यों पूजते हैं । बैल क्या चीज है परंतु नहीं, यह आया है क्योंकि मेल है न, ये गैया कहेंगी माताएं, ये बैल कहो तो ये इन्ह्यूंमन तो नहीं है न, ह्यूमन की बात है यानी मेल एंड फीमेल । तो आए हैं मेल के तन में इसीलिए उनको बैल की सवारी दिखलाया है । तो परमात्मा की सवारी किस पर हुई? आया है न ब्रह्मा के तन में तो देखो उसी को ब्रह्मा अथवा अर्जुन कहाँ नाम से और कहाँ फिर यह उसकी शक्लें कोई जानवर कोई कुछ ऐसी-ऐसी चीजें बना दी हैं तो देखो कितनी बातें बदल गई हैं, है तो एक ही टाइम की बात । एक ही टाइम आया है और एक ही टाइम आकर के परमात्मा ने यह नॉलेज दिया है और नॉलेज देने की बातों को देखो कहाँ बूढ़ा ब्रह्मण, कहाँ कुछ, कहाँ कुछ, यह सभी बातें बना दी हैं । तो है तो सब अभी की बात ना तो यह देखो कहानियां कितनी है । ऐसे नहीं है कभी बूढ़ा ब्राह्मण बन कर आया, कभी बैल पर आया, कभी कैसे आया ऐसी भी नहीं है, है एक ही टाइम की बात लेकिन एक ही टाइम की बातों के कितने चित्र और कितनी कथाएं और कितनी बातें और ये सभी हैं तो फिर भक्ति मार्ग के लिए बड़ा सामान चाहिए ना, एक शास्त्र से क्या मजा है इसीलिए वैरायटी चाहिए. जिसकी जो टेस्ट बने, कहा है ना जैसे दुकानदार होते हैं ना, तो अपने दुकान में वैरायटी रखते हैं जिसकी जो टेस्ट तो ग्राहक ज्यादा आएँगे, धंधा ज्यादा होगा तो यह भी भक्ति मार्ग की वैरायटी बन गई तो हर एक दुकान पर वैरायटी-वैरायटी है । देखो कहीं शिवलिंग भी रखा होगा, कृष्ण भी रखा होगा, राम भी रखा होगा सब रखेंगे क्योंकि सब वैरायटी वाले पूजने वाले आएंगे, पैसा रखेंगे तो ग्राहकी हो जाएंगी ना । एक का रखेंगे तो कोई शिव के मानने वाला नहीं होगा तो खाली शिव को रखेंगे तो कम ग्राहकी होगी और वैरायटी रखेंगे तो कोई राम का कोई कृष्ण का सब आएंगे, कहेंगे राम भी इधर बैठा है, कृष्ण भी इधर है । तो जैसे वैरायटी दुकानदार रखते हैं ना तो सब वैरायटी होगी तो किसको कुछ लेना है किसको कुछ लेना है तो ग्राहक सब आएंगे ना । तो यह सभी चीजें हैं तो यह भी एक दुकानदारी हो गई ना जैसे इसीलिए बाप कहते हैं एक तो मेरा आना एक ही टाइम का है और मैं आता ही एक ही टाइम हूँ और मेरा आना और मेरा आकर के काम करना सो मेरा इस तरीके से है बाकी मैं कोई बैल के ऊपर नहीं आया हूँ या किसी पक्षी के ऊपर बैठकर के जैसे दिखलाते हैं ना हंस के ऊपर, सरस्वती की सवारी हंस के ऊपर, ऐसी- ऐसी बहुत, वो गणेश की चूहे के ऊपर, चूहे के ऊपर कोई बैठ कर के तो दिखलाएं । तो देखो कैसी-कैसी सवारी रखी है अभी यह देखो देवताओं की सवारी ऐसी अजीब सी रखी है कोई की चूहे के ऊपर, कोई हंस के ऊपर, कोई किसी के ऊपर तो देखो ये कैसे अजीब से बनाए हैं । परंतु नहीं यह हंस, ये हंस का भी मतलब है । यह हंस है, उसका मिसाल देते हैं शास्त्रों में कि हंस होते हैं वो चुगता है तो पत्थर अलग करके मोती चुगता है यानी यह हंस का मिसाल है और उसके सामने दूध रखो तो वह दूध चुगता है पानी उससे अलग कर लेता है तो यह उसका मिसाल है तो हमको भी बाप कहते हैं तुम हंस बनो अर्थात जो गंद है उसको छोड़ो, और जो अच्छी है उसको चुगो, तो मैं जो चीज दे रहा हूँ ये अच्छी चीज को लो और गंदगी छोड़ो, किचड़ा छोड़ो । यह रतन जो दे रहा हूँ इसको पकड़ो और पत्थर को छोड़ो, है असूल ये बातें लेकिन वो हंस की सवारी तो हंस पक्षी रख दिया है ना । अभी कहाँ देखो पक्षी के ऊपर बैठने की थोड़ी बात है । तो वह तो ख्याल करते हैं कि आएगा तो कोई पक्षी के ऊपर आएगा परमात्मा, आएगा तो कोई बैल के ऊपर आएगा, आएगा तो ऐसे आएगा तो वो यह समझते हैं कि आएगा तो इसी तरीके से आएगा । अभी इस तरीके से तो न कोई मनुष्य होता है, ना कोई जनावर होता है, ना ऐसी कोई बात है, है असूल इन्ही सब बातों का । तो अर्थ देखो कैसा है बातों का और फिर चित्र बनाए हैं ना तो चित्रों में मूंझ गए हैं एकदम । वह यही ख्याल रख बैठे हैं कि ऐसा ही होता होगा परमात्मा का । तो है देखो सब यही न, यही नंदीगण, यही भागीरथ और यही कहो की अर्जुन और यही कहो कि ब्रह्मा । असुल, ओरिजिनल नाम ब्रह्मा क्योंकि ब्रह्मा द क्रिएटर क्योंकि क्रियेट किया है न दुनिया को आकर तो ब्रह्मा । अभी ब्रह्मा भी कोई तीन मुख वाला तो है नहीं ना । वो ब्रह्मा विष्णु शंकर यह तीन अलग-अलग हैं परंतु उन्होंने तीन इन तीन के लिए तीन सर रख दिया है ब्रह्मा के ऊपर । अभी ब्रह्मा के ऊपर जैसे तीन सर दिखाया है तो तीन सिर वाला मनुष्य तो कभी रहा ही नहीं है तो देखो कैसी कैसी यह सभी बातें बना दी हैं । तो इन चित्रों से यह सभी बातें मूंझ गई है ना, शास्त्रों आदि से इसीलिए बाप कहते हैं अभी इन सभी बातों को भूलो । अब जो मैं समझा रहा हूँ, मैं कैसे आता हूँ मैं आकर दिखलाता हूँ न, मेरा काम कैसे होता है मैं करके दिखालाता हूँ न । मैं अभी कर रहा हूँ, मैंने आकर दिखलाया है कि मैं कैसे आता हूँ बाकी ऐसा ख्याल नहीं करो कि मैं हंस के ऊपर बैठ कर आऊंगा या मैं कोई बैल के ऊपर बैठ कर आऊंगा या फिर मैं कोई शेर की शक्ल आदि लूंगा, आधा मनुष्य का लूंगा आधा जनावर का, ऐसे-ऐसे ख्याल नहीं करो । मैं ऐसे आता हूँ, तो मैं आकर के दिखलाता हूँ मैं कैसे आता हूँ । मैं काम कर करके दिखलाता हूँ कि मैं कैसे करता हूँ तो अभी देखो कर रहा हूँ ना । मेरा काम ऐसा ही है जैसे अभी कर रहा हूँ बस ऐसे ही मैं कल्प कल्प यदा यदा ही जब-जब अधर्म है मैं आता हूँ और ऐसे करता हूँ । और आता हूँ तो मुझे भी तो कोई यहाँ का ही तन मिलेगा । और उस तन में भी क्यों आता हूँ वो भी बैठ कर के समझाते हूँ कि वही चाहिए ना पुराने, जो पहले थे स्वर्ग के राजे महाराजे श्री लक्ष्मी श्री नारायण, वो भी अभी किसी ना किसी जन्म में होंगे ना, तो उनका कौन सा है शरीर इसीलिए मैं फिर उसमें आता हूँ क्योंकि उनकी राजधानी स्थापन करने के लिए है । इसलिए उसको भी बैठ कर के पवित्र बनाता हूँ और उसके साथ-साथ उसकी वंशावली भी जो है वह भी पवित्र बनती है फिर वह पवित्र वंशावली का फिर जनरेशन चलता है, यह सीधी सीधी बात है । तो इसमें भी अभी मूंझने की बात नहीं है कि परमात्मा क्यों इसी तन में आता है । परमात्मा को जो नॉलेज सुनाना है तो कैसे सुनाए, ऊपर से तो आकाशवाणी नहीं करेगा । ऊपर से कैसे आवाज करें, ऐसे ही आवाज फेंक दे? कैसे करे या अन्दर सेआवाज करें या अंदर प्रेरणा करें? नहीं, वह अंदर अगर प्रेरणा करे या आवाज करे फिर तो जो कहा है जो करेगा सो पाएगा तो वह सिद्ध नहीं होता क्योंकि हमको अपने कर्मों से बनना है ना । तो अगर हमको परमात्मा अंदर अंदर से ठीक करता रहेगा तो फिर तो इसमें हमारी तो कोई पुरुषार्थ की बात ही नहीं रही न । फिर तो वही बात हो जाएगी कि जब परमात्मा करें, अंदर से जब करें, फिर तो वही बात आ जाती है ना जैसे कई कहते हैं की परमात्मा सब करता है, वो ही जब अन्दर से प्रेरणा करे तब सुधरें । राईट क्या है, कोई बात को रोंग राइट समझाने में तो हम किसी की गिला तो नहीं करेंगे ना कि हां रोंग क्यों कहते हैं । इसको रॉंग नहीं कहते हैं लेकिन भाई इससे क्या हुआ, ये कैसे बनी, ये यादगार में फर्क पड़ गया जैसे गांधी की जीवन प्रैक्टिकल क्या थी, लिखने वालों ने कुछ फर्क कर दिया है, फिर बहुत समय आगे बढ़ने से बातों में बहुत डिफरेंस पड़ जाता है किसी ने क्या समझा किसी ने क्या समझा तो हो जाता है ना बहुत काल का, तो पीछे देखो उसमें हमने ग्लानी थोड़ी ही की । बात समझाना तो पड़ेगा ना भाई यह ओरिजिनल क्या बात है । तो जैसे हम कहें यह दूध है इसमें मिलावट है पानी की तो क्या हम दूधवाले की ग्लानी करते हैं क्या? है दूध में पानी तो बताना तो पड़ेगा ना भाई मीटर टेस्ट करता है भाई इसमें इतना पानी है, इसमें इतना ये है वाला तो अभी मीटर टेस्ट करने वाला बतलाता है जो धणी है न वो धणी हमको कहता है अभी मीटर बतला रहा है तो क्या है, हम भी नहीं कहते हैं ना यह तो हमको परमात्मा बतलाता है देखो वो तो टेस्ट करने वाला है ना ओरिजिनल, तो मीटर तो राइट दिखलाता है ना । उस मीटर में खराबी भी हो जाए, उस मीटर में तो खराबी नहीं होगी ना परमात्मा में, वह तो टेस्ट अच्छी तरह से करके बतलाता है ना कि झूठ क्या है सच क्या है । उसमें तो कुछ फर्क भी पड़ जाए क्योंकि विनाशी चीज है, वो तो नॉलेज फुल है ना, उसकी बुद्धि में तो सब कुछ है ना, हम सबकी कर्म गति है न, उसके समझने में तो कोई ऊंचा नीचा नहीं हो सकता है ना । अब वह समझा रहा है, बता रहा है तो हम बतलाते हैं उसी से सुन करके और विवेक से भी, अनुभव में भी आकर के वह बात समझाते हैं । तो अगर हमको किसी को समझाना है जैसे स्कूल में भी बच्चे पढ़ते हैं तो टीचर उसको सुनाएगा न यह तुम्हारा लेसन रॉन्ग है, इसको ऐसा करेक्ट करो तो हमने अगर उसे रॉंग बतलाया तो हमने उसकी ग्लानी थोड़ी ही की, वो तो बतलाना पड़ेगा न कि ये रॉंग है इसको ऐसे करेक्ट करो । तो जरूर रॉंग बतलाना तो पड़ेगा ना करेक्ट करने के लिए, अगर ना बदलाएं तो करेक्ट कैसे होगा फिर तो करैक्ट नहीं होगा ना, यह पाप है यह पुण्य है तो जरूर हमको क्लियर करना पड़ेगा कि पाप क्यों है यह, तो समझाना पड़ेगा ना इससे हमने उसकी ग्लानी थोड़ी ही करी । तो बाप भी बैठ करके बतलाते हैं कि बच्चे ये जो शास्त्र है, यह जो ग्रंथ है इसमें बातें कैसे मिक्स हो गई है इसीलिए तू उसी पर आधार रख करके, यह समझ करके कि भाई यह शास्त्र कैसे झूठे होंगे, यह सुनाने वाले कैसे झूठे होंगे, नहीं तेरी बुद्धि में यह घुसा हुआ है ना इसीलिए तुम अपनी बुद्धि को नहीं चलाते हो इसीलिए तुम उस बात को नहीं समझ रहे हो, अभी मैं जो कहता हूँ तू विवेक में तो ला ना, अपनी बुद्धि में तो ला ना । तो बाप समझाएगा न तू समझ तो सही की भला ये बात ऐसे कैसे होगी । बताओ भला ऐसे कैसे मेरा अवतरण होगा शेर की शक्ल आदि यह सब ऐसे भला कैसे होगा, बताओ? तो बाप तो यही समझाएंगे ना कि यह तो इन चित्रकारों ने ऐसे भूल की है और भला कैसे समझाए? इसी-इसी अर्थ से इन्होंने बैठ करके ऐसा रखा है, बाकी इनका अर्थ है यह अलंकार है इनको तू ऐसे समझ बाकि बात असूल क्या है वह ऐसी है, तो समझाएगा ना । अभी इसमें क्या ग्लानि करी बताओ? ग्लानि थोड़े ही है । तो हम किसी की ग्लानि नहीं करते हैं, ना शास्त्रों की, ना ग्रंथों की, न चित्रों की, पर समझाना तो पड़ेगा ना की यह सभी बातें कैसे बनी, यह भक्ति मार्ग के लिए हैं ये सब । इसीलिए किसी की ग्लानि नहीं है लेकिन समझाने के लिए यह राइट और रॉन्ग बताना होता है । यदि राइट समझाने के लिए रॉन्ग ना बताए तो राईट का कैसे पता चलेगा कि क्या राइट है, किसमें हमको बुद्धि रखनी है, कैसे हमको राइट बनना है वह कैसे समझें तो समझाने के लिए समझाना पड़ता है । तो इसमें कोई संशय लाने की या कोई भी ऎसी बात आने की जरूरत नहीं रहती है क्योंकि यह तो समझना है ना । तो बाप बैठकर के समझ देते हैं, कोई तो बात में हम मूंझें हैं, कोई तो बात में हम भूले हैं, कोई तो बात में हम रॉन्ग हुए हैं तभी तो परमात्मा को आना पड़ता है ना यहाँ । वह कहते हैं यह बात मुझे ही समझानी पड़ती है । अगर पहले से ही सब है तो यह इतने सब चित्र हैं इतने वेद शास्त्र ग्रन्थ हैं आज तो हमारे पास सब बातों की समझ होनी चाहिए न, फिर परमात्मा ने यह क्यों रखा कि यदा-यदा ही, जब-जब अधर्म होता है तो मैं आता हूँ, तो अधर्म के समय यह सब था ना । देखो परमात्मा जब आया तो अर्जुन भी था, पहले से ही था ना । वो भी था और उसके साथ-साथ वेद शास्त्र ग्रंथ आदि भी थे, तब तो गीता में कहा है ना, इन वेद, शास्त्र, ग्रंथ आदि के अध्ययन से मेरी प्राप्ति नहीं हो सकती है । तुम बड़े पंडित भी बने हो, तुमने सब वेद शास्त्र आदि बहुत पढ़े हैं, तुम्हारे इतने पढ़ाने वाले गुरु भी खड़े हैं, ये सब है, अब कहा ना इन सबको भूलो, क्यों कहा? तभी तो कहा ना कि यह सब तुम जो पढ़े हो और जिन्होंने पढ़ाया है यह सब बातें तुमने पढ़ी तो सही परंतु मेरी प्राप्ति मेरे द्वारा ही हो सकती है क्योंकि यथार्थ में ही समझाता हूँ । ये तो खुद भगवान ने कहा है न तो भगवान ने क्या ग्लानी करी? वेदों की ग्लानि करी? शास्त्रों की ग्लानि करी? अगर भगवान ने ग्लानी करी तो भगवान के शास्त्र को खत्म कर देना चाहिए, भगवान का ही शास्त्र खत्म कर देना चाहिए की भगवान भला ग्लानि क्यों करता है । नहीं, वह तो भगवान ने समझाया है ना । अगर वह भी आ करके हमको रॉन्ग राइट ना पता देवे, रॉंग राईट का पता न देवे तो हम राइट में कैसे आवे, फिर कैसे समझें । तो उसको समझाना पड़ा न तो इसीलिए यह ग्लानी की बात नहीं है । उसको समझाना पड़ेगा इसलिए बाप कहते हैं बच्चे मुझे तो आकर के रोशनी देनी पड़ेगी, रोशनी नहीं तो काहे की? किस अंधकार में पड़े हो? कैसे तुम अंधकार में आए? ये पांच विकारों के अंधकार तो पहले ही चढ़ी बाकी भी जिन्होंने तुमको रास्ते बतलाया है ना, उन्होंने भी ऐसी-ऐसी बातें रखी तो उसकी वजह से और भी तुम्हारा उन बातों में तुम ठहर गए हो । बस समझते हो यह ऐसा ही होगा, परमात्मा ऐसा होगा, यह बात ऐसी होगी, उसी में रह गए । परंतु नहीं, यथार्थ क्या है प्रैक्टिकल उसकी खोज, उसका पूरा-पूरा जो सार है, वह मैं आ करके तुमको समझाता हूँ । तो इसीलिए तुम बातों में मूंझ गए हो तो मैं आ करके समझाता हूँ बाकी उसमें मैं किसी की ग्लानि नहीं करता हूँ । कहा है ना आसुरी संप्रदाय, तू उसका संग मत कर, अब तो मैं डायरेक्ट समझाता हूँ तो क्या ग्लानि की? आसुरी सम्प्रदाय, वह भी भगवान की संताने थी ना, तो भगवान ने अपनी संतान के लिए आसुरी संप्रदाय क्यों कहा? फिर तो ऐसे तो कहो वो गिला करता है भगवान । अब भगवान् क्यूं गिला करता है? नहीं, वो कहा है क्योंकि उसको समझाना पड़े न, यह आसुरी है यह दैवीय है, तो आसुरी शब्द लेना पडा न, फिर आसुरी कहा तो क्या गिला करी क्या? और क्यों कहा इन सब को मारो । कहा है न, उसमें तो और ही कड़ी बात कही है गीता में कि मारो, यह गुरु खड़े हैं इनको मारो वो कहा है ना गीता में अर्जुन को, तो क्यों कहा मारो ? भगवान और गुरु के लिए कहे मारो, भगवान कहे यह सब करो तो भगवान के लिए तो बड़ी बात है न । तो भगवान जो ऐसा आर्डर करें, तो अगर रॉन्ग है तो उसको भगवान नहीं मानना चाहिए न । परंतु नहीं यह समझने की बातें हैं ना । इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे यह सब समझने की बात है । मैंने आ करके जरूर ऊंची बात, उन्हों से कोई नई बात, उन्हों से कोई ऊंची बात समझाई है, तब तो कहा ना कि अभी यह तू भूल जा । देखो इसीलिए कहा कि वह नदी नाले कुँए जिसमें तुम डुबकी लगाते थे ना, अभी तो तुमको सागर मिला है ना ज्ञान का सागर, तो ज्ञान का सागर यानी सागर मिला है तो अभी तुम काहे ये नदी नाले आदि की बातें कर रहे हो यह नदी ने मुझे यह सिखाया, इसने नाले में यह किया, यह वेद शास्त्रों के लिए कहा है ना, यह तो जैसे नदी नाले यह सब कुँए है । तुमको तो अभी जब ज्ञान का सागर मिला है तो इनके लिए क्यों सोचता है । अभी इन सब को भूल, इसीलिए बैठ कर के कहा कि अभी मैं जो कहता हूँ उसको समझ और समझ करके मेरी मत पर इसीलिए कहा है श्रीमद्भगवद्गीता तो इसीलिए कहते हैं मेरी शिक्षा अभी जो तुमको मिल रही है उसको धारण करके अभी उसी पर चल तो ठीक बात है ना सीधी बातें हैं ना । तो इसमें तो कोई मूंझने की बात है ही नहीं और ना कोई इसमें किसी की ग्लानि की बात है । यह तो कभी कोई ख्याल ना करें कि हम कोई किसी से घृणा से या कोई की गिला से कहते हैं । नहीं, ये तो समझाना पड़ता है ना । तो समझाया जाता है डिफरेंस तो यह भक्ति मार्ग का यह भी होना है । यह मूंझ ना हो तो फिर तो सुलझना भी ना हो, मूंझ है तो सुलझना भी है दोनों कंट्रास्ट चाहिए ना । ना हो मूंझ तो उलझने वाले और सुलझाने वाले की आने की जरूरत ही ना हो, फिर तो हम ठीक ही ठीक हैं परंतु उस ठीक की रिजल्ट भी होनी चाहिए ना । जरूर कहाँ मूंझे हैं हमारी कोई चीज पूरी नहीं है तब तो हमारी लाइफ हमको दिखलाती है ना । नहीं, तो हम अगर ठीक है तो फिर हमारी लाइफ में प्राप्ति होती सुख शांति की । तो जरूर है कि कहाँ मूंझें हैं, किसी बात में हम खोए-खोए चल रहे हैं, तो वह खोए-खोए किसमें चल रहे हैं, वह खोई हुई क्या चीज है तो यही खोई हुई चीज फिर बाप आ करके बतलाते हैं कि बच्चे यहाँ से तुम रॉन्ग हो, ये स्टेप यहाँ ठीक रखो, इन बातों को ऐसे समझो । तो ये सभी चीजें, इन सभी बातों का सार, इन सभी बातों का रहस्य पूरा आकर के बाप समझाते हैं तो उसकी नई नॉलेज हो गई ना इसीलिए कहते हैं मैं जो समझाता हूँ वह नया समझाता हूँ । जो तुम सुनते आए ना वेद और शास्त्र में बातें वह बातें दूसरी हैं, यह बात जो मैं समझाता हूँ वह दूसरी है इसीलिए मैं नई दुनिया की नई नॉलेज देता हूँ क्योंकि नई दुनिया बनाता हूँ ना, उसके लिए नई नॉलेज और नई बातें यह समझाता हूँ । मैं तुमको बतलाता हूँ कि यह दुनिया स्वर्ग होती है कैसे होती है जिस स्वर्ग के तुम मालिक बनते हो और कैसे बनते हो यह सिखा रहा हूँ समझा, तो यह नई बातें हैं ना । तो उसकी बातें ही नई है इसीलिए हम जो सुनते आए हैं, उसमें और अभी जो यह सुनने हैं रात और दिन का फर्क है क्योंकि मेरे परिचय को ही मनुष्यों ने उल्टा कर दिया है ना सर्वव्यापी रख करके । देखो उन्होंने कहा परमात्मा सर्वव्यापी है, अभी ये भी रॉन्ग है । मुझे व्यापक रखने से मेरी वैल्यू कम कर दिया । व्यापक कहा तो माना मैं कुत्ते में भी व्यापक, बिल्ली में भी व्यापक, चींटी में भी व्यापक तो मुझे तो चींटी बना दिया, कण-कण में व्यापक तो मुझे कण बना दिया, मेरी कितनी ग्लानी की है । बाप कहते हैं मेरी जितनी ग्लानी की है उतनी किसी की ग्लानि नहीं की है । मुझे तो और ही पत्थर-पत्थर में ठोंक दिया न । देवताओं को फिर भी मनुष्य शरीर में रखा है, मुझे तो और ही पत्थर बना दिया है । मुझे तो कण-कण में रख करके मुझे तो कण-कण बना दिया है मेरी तो और ही सब ग्लानि करी ना । सबसे ज्यादा ग्लानि परमात्मा की करी, देवताओं को फिर भी मनुष्य रखा कि भाई यह मनुष्य देवता हैं, उनको पत्थर तो नहीं रखा ना, मुझे तो पत्थर बना दिया मुझे तो कण-कण में रख दिया, मेरी तो वैल्यू बिल्कुल डाउन कर दी । कहते हैं सब कुछ में परमात्मा है । एक सन्यासी मिला था आप लोगों को नहीं शायद मालूम हो एक सन्यासी था उससे बात चली थी की भाई परमात्मा को आप लोग सर्वव्यापी कहते हो उससे जरा थोड़ी बात चली थी, तो उसने कहा हां सर्वव्यापी, आर्य समाजी था शायद तो कहा हाँ परमात्मा सर्वव्यापी है तो उसने कहा क्या विष्टा में भी परमात्मा है, विष्टा में भी परमात्मा है वो टट्टी में, तो उसने कहा क्या सब में परमात्मा है तो कहा हाँ विष्टा में भी परमात्मा है, देखो परमात्मा को कहाँ ले गए हैं । तो बाप कहते हैं देखो मुझे विष्टा बना दिया मुझे गंद बना दिया तो सब में तू सर्वव्यापी, तो सर्वव्यापी माना तो उस गंद में भी परमात्मा है । तो देखो तुमने मुझे गंद भी बना दिया, की गंद में परमात्मा, मुझे भी गंद कर दिया और क्या है । तो देखो मेरी कितनी ग्लानि की है, मेरी कितनी इंसल्ट की है तो सबसे ज्यादा इंसल्ट मेरी करी है इसीलिए कहते हैं तुम गिरे हो । ऑटोमेटिक गिरे हो क्योंकि मेरी ग्लानी की है ना, मुझे ना जाने के कारण तुमने मुझे उल्टा बना दिया है । तो बाप तो समझाएंगे ना बच्चे देखो ना जानने के कारण मुझे कहाँ ले गए हो इससे तो अच्छा वो पहले वह ऋषि मुनि थे ना वह कहते थे बेअंत-बेअंत-बेअंत नेति-नेति । है न वेदों में, वह कहते हैं कि ऋषि मुनि जो पहले थे वह कहते हैं कि परमात्मा और परमात्मा की रचना का अंत पाना वह नेति नेति नेति बेअंत तो कहते हैं, फिर भी अच्छे थे ना कि हम नहीं जानते हैं । कोई बात का पता ना हो तो कह देना चाहिए भाई हम नहीं जानते हैं और दावा रख कर के कहना हाँ हम जानते हैं, कैसा है भाई? हाँ कण कण में है, उल्टा बतावे तो तो वो तो कहते हैं रॉन्ग साइड लेना तो यह तो और ही रॉन्ग है उससे तो अच्छा कह दो भाई मुझे रास्ते का मालूम नहीं है हम आपको बताएं तो कहाँ पता नहीं उल्टा तुम चले जाओ इसीलिए कहदो की हमें मालूम नहीं है तो वो अच्छा है ना । मालूम नहीं है तो धोखा तो नहीं होगा ना । हां मालूम कहकर कि यह रास्ता है और किसी को उल्टा धकेल देना तो बाप तो कहेंगे ना कि देखो यह तो उल्टा रास्ता दिखलाने वाले हो गए ना । तो उल्टा रास्ता दिखाने वाले के ऊपर भी बाप आंख दिखाएंगे ना इसीलिए कहा है कि इन सब का उद्धार करने वाला मैं हूँ साधु-संतों भगत आदि सबका नाम लिया ना । तो बाप है ना अथॉरिटी है ना तो वह आँख दिखाएगा न कहेंगे देखो इससे तो अच्छा था तुम कहते कि मालूम नहीं है । तो इससे पहले जो थे वो अच्छे थे न फिर भी रजोगुणी थे न, अब तो देखो तमोगुणी हाँ कहते हो, हाँ रास्ते का पता है, ये मन्त्र जपो बेड़ा पार है, तुम पहुच जाएंगे । अरे! पहुच जाएगा, किसने देखा, कहाँ पहुचा, कहाँ गया, पडा तो फिर भी यहीं हैं, फिर मरा इधर ही जन्म लेगा और जाएगा कहाँ । जब तलक मैं दुनिया को स्वर्ग न बनाऊँ तब तलक तुम स्वर्गवासी होती ही कहाँ हो और तुम समझते हो वह स्वर्गवासी हो गया । तो ये सभी बातें बैठकर के बाप समझाते हैं, बाप है न ऑथोरिटी है न तो सब समझाते हैं क्योंकि अथोरिटी को तो हक़ है न । बाप है न, तो इसमें हम किसी की ग्लानी थोड़े ही करते हैं । वो यथार्थ बातें हैं और बाप समझाते हैं वो बातें सुनकर के विवेक में आती है अनुभव में आती है तो दूसरों को समझाने में आती हैं क्योंकि मिस गाइड हो रहे हैं न । इसको कहेंगे मिस गाइड, इससे गाइड न करना अच्छा है न । बजाय मिस गाइड करन के गाइड न करना अच्छा है इसीलिए तो कहते हैं गाइड न बनो न । गाइड भी बने हो परन्तु मिस गाइड करते हो । तो बाप कहेंगे मिस गाइड क्यों करते हो । इसीलिए कहते हैं गाइड इज वन । मैं गाइड हूँ, मैं जानता हूँ, रास्ता कौन सा है वो मैं जानता हूँ । तुम रास्ते वाले गाइड भी बनते हो परन्तु करते हो मिसगाइड तो उसका दोष भी है न । इसीलिए कहा है की अभी इन सब बातों को भूलो । तभी तो कहा है न इन गुरुओं का, इन् शास्त्रों का, इन ग्रंथों का, इन सब बातों का अभी तुम संग छोड़ करके अभी तुम मेरी मत पर रहो । तो जरूर कोई नई बात थी न, जरूर कोई बात ऐसी थी जिस पर बैठ कर बाप ने समझाया तो ये सभी चीजों को समझना है । इसीलिए अभी बाप कहते हैं की देखो पहले एक तो विकारों ने तुमको मिसगाइड किया, विकार ले गए एक तो वो ताला पडा बुद्धि को, दूसरा फिर ये गाइड करने का दावा रखने वालों ने और ही मिस गाइड किया इसीलिए कहते हैं डबल ताला, बुद्धि को डबल ताला लग गया न तो और ही बुद्धि एकदम ऐसी हो गई । वो कहते हैं भाई विद्वान, फलाने शास्त्र वाले, वो कैसे हमको रोंग बतलाएंगे या ये कैसे रॉंग होंगे तो देखो वो क्या बताते हैं और उसी में बैठकर के तुम उसी में चल पड़े, पर वो सभी बातें क्या है तो तुम देखो तो सही की मेरा ही परिचय पूरा नहीं है इसीलिए तुम मेरे से बेमुख हो गये । भले उन्होंने अनजाने में करा है लेकिन अनजाने में भी करा न । जान के भले नहीं करा परन्तु अनजाने में तो किया न, उससे तो अच्छा था कहना की हम जानते ही नहीं हैं परन्तु ये कहना की ये रास्ते चलने से मोक्ष होगा, इस रास्ते ये होगा, मोक्ष का नाम ले करके और ये सब चीजें बतलाना, वो कहते हैं ये मोक्ष देना मेरा काम है की मनुष्य का काम है । यह मेरे काम को फिर दावा करते हैं अपने के लिए, इससे अच्छा तो कहें की भाई यह जो थोड़ा बहुत तुम करते हो तो करते रहो बाकी मोक्ष तो परमात्मा जब आएंगा तब देगा, कह के कुछ न कुछ वो अपने से तो उतार दे न, अपने से तो हटा देना । इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे यह सभी बातों को अच्छी तरह से समझो और समझ करके इन सब बातों को अच्छी तरह से पकड़ो । इसमें देखो ग्लानि थोड़ी है किसकी, यह तो राइट है ना जो बैठकर के बाप समझाते हैं और उसको समझ करके चलना है । यह तो आप लोगों को मालूम है कि अपना हो रहा है हम गवर्नमेंट से भी लिखा पढी कराएं लेकिन गवर्नमेंट भी इर्रिलीजियस है ना । कौन समझे इस बात को । जब नेहरू से लिखा पढ़ी होती थी कि भाई देखो यह तो हमारे पूज्य देवताओं की ग्लानि करते हैं ना । हमारे पूज्य देवी देवताओं श्री कृष्ण के ऊपर सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण संपूर्ण निर्विकारी हमारा पूज्य देवता उनकी ग्लानि करते हैं, उसको एक सो आठ रानी थी उसको ऎसी-ऎसी बातें लगा रखी है, ऐसी ऐसी बात उनके साथ करी हैं की वो नगन करके गोपियों के कपडे चुरा के ले गए, ये ऐसी-ऐसी बातें रखी है जो क्रिश्चियन लोग भी उसका उल्टा एडवांटेज लेते हैं इसीलिए इन सब बातों को आप लोगों को देखना चाहिए परंतु सुने कौन, वो नेहरू तो बिचारा देवी देवताओं का नाम सुनकर कहता है की वह तो जानता ही नहीं है । वह कहता है देवी देवताओं आदि को हम मानते ही नहीं हैं । तो ये सभी बातें हैं क्योंकि हमारी गवर्मेंट ही इरिलिजियस है । भारत सो भी प्राचीन भारत जिसमें कितना बल था और प्राचीन भारत कितना ऊंचा था, उसमें आज वो नॉलेज की पॉवर न रहने के कारण, वो समझ ना रहने के कारण आज हमारा भारत गिर चुका है और अभी गवर्नमेंट ही इरिलिजि यस है । उनका कोई अपना धर्म तो कोई है नहीं, वो कोई धर्म को तो मानते ही नहीं, सब अपने-अपने धर्म है, यहाँ तो सब अपना बस करो । चलो, करें भी कर्म तो कर्म क्या करें, चलो कर्म को धर्म समझो तो पता तो होना चाहिए न की क्या करें, व्हाट इस कर्म, कर्म की भी नॉलेज चाहिए ना । कर्म की फिलॉसफी क्या है, कर्म की भी तो नॉलेज होना चाहिए ना । वो कर्म की नॉलेज तो कर्म की गति को जानने वाला देगा न की यथार्थ कर्म क्या है इसीलिए बाप कहते हैं इन सभी बातों को यथार्थ ना जानने के कारण बिचारे ये मूंझ पड़े हैं इसीलिए यह सभी गिरावट है क्योंकि मेरे से बेमुख हो अपने कर्म से बेमुख हो । यथार्थ कर्म को ना जानने के कारण तुम्हारे एक्शंस का तुमको पता नहीं है हमें क्या करना है इसीलिए मैं आकर किसी सिखाता हूँ कि कैसे प्योरिटी को अपना करके अपने प्योरिटी के एक्शंस को करो तो तुम्हारे एक्शंस श्रेष्ठ बने और उसी के आधार से तुम श्रेष्ठ बनो । तो यह सभी चीजें समझने की है ना जो बैठकर के बाद समझाते हैं । अच्छा, अब टाइम हो गया है । आज छुट्टी है ना? आज तो रिपब्लिक डे है, आजादी का दिन है । किससे आजादी? हाँ. माया से आजादी । हम बनाते हैं माया से आजादी । पांचों विकारों से आजाद । जब तलक पांचों विकारों से आजाद ना हुए हैं तब तलक हमारा भारत भी सच-सच आजाद नहीं हो सकता है । यह आजाद होते भी देखो कितना दुःख खाना नहीं, पीना नहीं, देखो दिन-ब-दिन ये सब बढ़ते जाता है, ये काहे के लिए है क्योंकि इसमें माया जो बैठी है ना, वो ब्रिटिश गवर्नमेंट से तो आजाद हो गए लेकिन माया से तो आजाद नहीं हुए ना । तो माया से जब तलक आजाद नहीं हुए हैं तब तलक सुखी हो ही नहीं सकते हैं इंपॉसिबल है । इसी से यह भ्रष्टाचार आदि यह सब बातें बढ़ती चलेंगे, यह कम होने की नहीं है जब तलक वह खत्म ना हो । खत्म करने का पावर चाहिए और पावर देने वाला चाहिए पावरफुल । फुल पावर वाला चाहिए अभी छोटे पावर वाले का काम नहीं है इसीलिए कहते हैं कोई मैसेंजर भेजूं या कोई पैगंबर भेजूं अभी उनका काम नहीं है । अभी तो मेरे आने का टाइम है इसीलिए कहते हैं मैं फुल पावर वाला खुद आता हूँ । इसीलिए कहते हैं ना यदा यदा जब जब अधर्म होता है तो मैं आता हूँ ऐसे नहीं मैसेंजर भेजता हूँ या पैगंबर खाली पैगाम दे जाए । नहीं, उनका भी काम नहीं उसका भी काम पूरा हुआ । अभी मेरा काम है, मैं खुद ही अभी आया हुआ हुआ हूँ । अपनी पहचान अपना सब बात समझाने के लिए मुझे आना पड़ता है इसीलिए कहते हैं अभी मैं आया हूँ और कैसे आया हूँ वह समझाते हैं । तो मुझे भी सुनाने के लिए कुछ तो जगह चाहिए ना जहाँ से सुनाऊँ मुझे भी तो तुम्हारे जैसा मुख चाहिए ना । सुनाने के लिए मुख का ही आधार चाहिए और कहाँ से सुनाऊँ, माइक्रोफोन से ? माइक्रोफोन को भी मुख चाहिए ना, सब चीज को मुख चाहिए न । मुख से तो आवाज आएगी, फिर उससे आवाज बढ़ेगी परंतु फिर भी मुझे तो मुख का आधार लेना पड़ेगा ना । मैं ऊपर से क्या माइक्रोफोन से आवाज करूँगा । वह भी आवाज कहाँ से आएगा, कैसे करूंगा और तो कोई तरीका ही नहीं है ना । कोई आकाशवाणी भी तो नहीं ना, आकाशवाणी की वाणी भी तो इधर से ही चलेगी ना । ये आकाश हैं ना पोलार , मुख का, उससे वाणी भी तो यहाँ से निकलेगी न ऑर्गन से, तो इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे इस सभी बातों को समझना है । मैं आकर के आकाशवाणी करता हूँ लेकिन आकाशवाणी के लिए मुख लूंगा तभी तो आकाश से वाणी सुनाऊंगा न तो यह सभी चीजें समझने की है । अच्छा, कैसा, पार्वती मां? पार्वती मां ने खिलाया कभी? नहीं खिलाया ना । अच्छा, इसको तकलीफ है हाँथ में । अच्छा, बैकुंठमाँ खिलाया है? आओ, आओ, कभी एक बार यह, एक बारी ये । शिव बाबा को याद करके खिलाना है, शिव बाबा को याद करके । अच्छा अभी अपने को आजाद करो, किससे आजाद करो? पांच भूतों से । बड़े भूत हैं यह तो अजगर कहो, भूत कहो, शैतान कहो, इसे असुर कहो । यही असूर है जिसने हमको आसुरी संप्रदाय बनाया है न इसीलिए बाप कहते हैं अभी इनको नाश करो । और कोई तरीका नहीं है बस एक ही तरीका है इसका । ऐसे नहीं कैसे भी करें, बहुत रास्ते हैं इसके, जैसे बतलाने वालों ने बहुत बताया हैं ऐसा भी करो, ऐसा भी करो, जैसा भी करो पहुंचेंगे वहाँ ही, परंतु कहते हैं नहीं, एक रास्ता है । गॉड इज वन, गॉड का रास्ता भी इज वन, ऐसे नहीं गॉड इज वन रास्ते बहुत है, नो, नो, नो रास्ता एक ही है । इसीलिए गाइड करने के लिए भी मैं ही हूँ क्योंकि इसका गाइड भी इज वन तो मैं ही गाइड बनता हूँ और रास्ता में ही बतलाता हूँ इसीलिए गाइड मैं हूँ और कोई गाइड हो ही नहीं सकता है । ओर्रों की गाइडेंस तुमको इधर ही ले आती है उसमें तुम अच्छा करते हो उसका थोड़ा अच्छा पाते हो इधर ही, जन्म मरण में इधर ही उसका सुख लेते हो । वो कहते हैं ना मोक्ष, कहते हैं तुमको पार ले जाएंगे, पार नहीं ले जाते हैं इधर ही उनके अच्छे कर्म का फल तुमको मिलता है । मिलता है ना, इधर ही है । तो इधर ही का फल खा खा करके अभी देखो उसका मजा रहा नहीं है ना । अब कहते हैं वह सदा सुख वह कहते हैं वह फल मैं तुझको देने आता हूँ, वह जो ऊँच में ऊँच फल है इसीलिए कहते हैं |मेरी बात, मेरी प्राप्ति सबसे ऊंची है और नई है । वो मैं आ करके समझाता हूँ और मैं ही आकरके कर देता हूँ । बाकी उन्हों का यहाँ मिलता है ऐसे नहीं है की व्यर्थ है, उसका फल है परंतु वो अल्पकाल का, जो तुम यहाँ खाते आए हो । मिलता है परंतु खाते-खाते उसका भी हाल देख लो न । फल वाले भी इधर ही है, कर्म वाले भी इधर ही हैं देखो हैं ना, कोई धनवान है. यह धन भी तो कोई कर्म का फल ही है ना, यह भी कोई अगले जन्म में अच्छा कर्म किया है ना तो उसी कर्म का फल भी देख रहे हो परंतु धनवानो का भी बिचारों का क्या हाल है । वह भी तो बिचारे ही गिने जाएंगे ना । उस फल के आगे, मेरे फल के आगे, वह भी बिचारे गिने जाएंगे । यह हमारे बैकुंठमाँ, कैसा बैकुंठ चलेंगे ना? पक्का, पक्का पक्का है तुमने मेहनत की है ना डबल तो तुमको डबल देंते हैं । अच्छा, शाबाश! हम लेते हैं, देखो । अच्छा, शाबाश! अच्छा, इसीलिए बाप से अपना पूरा पूरा वर्सा लेने के लिए पूरा-पूरा पुरुषार्थ रखो । अच्छा, बाप दादा हां अभी बाप और दादा को समझते जाते हो ना । तो बाप दादा क्योंकि इनको पहले-पहले दादा कहते थे सिंध में दादा नाम था, दादा लखीराज नाम है लेखराज पहला तो लेखराज या लखीराज, जवाहरी था ना तो बहुत व्यापारियों के साथ बड़े-बड़े राजाओं के साथ कनेक्शन होता है, जवाहरी लोगों का तो जवाहरात लेने वालों से, तो जरूर साहूकार होंगे ना, राजे लोग होंगे तो उनको लखीराज भी कहते थे । तो नाम असूल ये है परंतु जब एडोप्ट किया परमात्मा ने तो फिर नाम रखा है ब्रह्मा । ऐसे इन सब का नाम सब की लिस्ट आई थी ऊपर से देखो कितने थे तीन सौ, पता नहीं कितने थे चार सौ थे तो सब की लिस्ट आई थी नाम की एक ही दम । एकदम जैसे छत्रिवादी जाती है तो बच्चों की एक ही दिन छात्रिवे सबका नाम आया था ऊपर से । इनका पहला नाम क्या है तुम्हारा अभी क्या बाबा ने क्या रखा है? बाबा ने ह्रदय पुष्पा, देखो कितना अच्छा रखा । उसका पहले नाम है टिक्कन, इसके लौकिक बाप के घर का नाम है टिक्कन । मालूम है आपके टीचर का नाम है टिक्कन । अभी फिर रखा है बाबा ने इसका ह्रदयपुष्पा तो अभी हृदयपुष्पा पूरा बनना है न । पूरा पुष्प, ऐसे बहुतों के हैं ये तो पीछे पीछे आए न इसकी छतरी अभी हुई नहीं है ये सब पीछे आए हैं । बहुतों के नाम ऐसे रखे गए देखो हमारा पहले नाम है राधे, अभी रखा है सरस्वती । नाम है बाकी ऐसा नहीं है कि हां सरस्वती है तो कमल के फूल पर बैठेंगे वो जैसे चित्र दिखाया हंस के ऊपर बैठेंगे या सितार बजाएंगे । यही सितार है ना, ये ज्ञान की सितार तो यह गायन वहाँ रख दिया है । कहाँ अस्त्र-शस्त्र दे दिया दुर्गा को, है देखो वह तलवारे दे दी हैं, अभी कोई वह तलवारे थोड़े ही चलानी है । नहीं, यह ज्ञान की तलवार । यह ज्ञान की तलवार है ना जिससे हम विकारों को काटने का यह समझाते हैं तो यह तलवार है । तो तलवार भी कहा जाता है इसको । इसको तलवार कहो, अस्त्र-शस्त्र कहो तो भी अस्त्र-शस्त्र यह ज्ञान के और बैंजो कहो, सितार कहो तो यह है ज्ञान के । तो ज्ञान के बहुत अलंकार दे दिए हैं, कहाँ सितार रख दिया है, कहाँ मुरली रख दी है, कहाँ तलवारे रख दी है, कहाँ कुछ रख दिया है, कहाँ वह घड़ा दे दिया है वो लक्ष्मी को घड़ा देते हैं ना, वह घड़ा ले आई अमृत का । तो अमृत का कोई घड़ा थोड़ी लेकर आई, यही है ज्ञान अमृत का घड़ा जो अभी मिल रहा है ना, नॉलेज को अमृत भी कहते हैं, ये ज्ञान को अमृत भी कहते हैं । तो है सब यह नाम ज्ञान के नाम फिर कहाँ अमृत, कहाँ तलवार, कहाँ बैंजो, कहाँ मुरली कहाँ कुछ यह सब रख दिए हैं, है यह ज्ञान के अलंकार । तो ज्ञान की भी छतरी कितनी बना दी है । तो यह सभी चीजों को बैठकर के बाप समझाते हैं । अच्छा ऐसे बाप दादा और मां के मीठे मीठे बहुत सपूत बच्चों प्रित याद प्यार और गुड मॉर्निंग ।