मम्मा मुरली मधुबन

रचना और रचयिता का ज्ञान - 1
 


रिकॉर्ड :-
कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झंकार लिए......
यह जो गीत सुना, सभी ने गीत सुना ना कि यह कौन आया मन के द्वारे जिसको आँख ना जाने और दिल पहचाने, ऐसी कौन सी चीज है जिसको आँखों से देखा नहीं जाता, आँख ना जाने लेकिन दिल पहचानती है तो ऐसी कौन सी चीज है? सेठ जी, बताइए ऐसी कौन सी चीज है वह जिसको आँखों से नहीं देखा जा सकता, आँख ना जाने लेकिन दिल पहचाने ऐसी कौन सी चीज है, बताओ । आत्मा , अच्छा हमारी यह, इनका नाम क्या है शुभ नाम, अच्छा आप बताइए, ऐसी कौन सी चीज है जिसको आँख नहीं जानती लेकिन दिल पहचानती है, परमपिता परमात्मा, अच्छा । श्याम सुंदर जी, आपका क्या विचार है, ऐसी कौन सी चीज है जिसको आँख ना जाने लेकिन दिल पहचानती है । कौन सी चीज है? परमपिता परमात्मा, हाँ दोनों ही हैं, आत्मा को भी तो इन आँखों से नहीं देखा जा सकता, उसको भी जाना जा सकता है और परमपिता परमात्मा को भी आँखों से नहीं देखा जा सकता लेकिन जाना जा सकता है इसीलिए गीतों में भी कहते हैं ना कौन आया मेरे मन के द्वारे, तो उनको आना ही है मन कहो या बुद्धि कहो, बुद्धि से उसे याद करना है, आँखों से कोई देखने की तो चीज नहीं है ना इसीलिए यहाँ कई जो साक्षात्कार की इच्छा रखते हैं ना कि हाँ देखें, तो देखो बाप खुद बताते हैं की मैं इन आँखों से, भले बुद्धि से देखा भी जाऊं तो भी ऐसा नहीं है कि बस देखा और काम हो गया, फिर भी उसको पहचानना है । इन आँखों से तो उसको देख ही नहीं सकते हैं परंतु दिव्य बुद्धि से भले देखा भी जाए तो भी देखने से तो कोई काम नहीं होगा ना । अभी उनको जानना होता है इसीलिए कहते हैं कि जान पहचान भी मैं आकर के देता हूँ इसीलिए कहते हैं मेरी अभी जान पहचान दूसरा कोई कैसे दे सकेगा । तो परमात्मा की जान पहचान परमात्मा ही देता है और आत्माओं की भी जान पहचान परमात्मा ही देता है क्योंकि हम तो उसकी रचना है ना, तो जो उसकी रचना है उसको तो वह जानता ही है ना कि यह क्या है कैसे मैंने इनको रचा, रचा का मतलब यह भी नहीं कई जैसे समझते हैं कि कभी आत्मा थी भी नहीं जिसको बैठ करके रचा । नहीं, आत्माएँ भी अनादि हैं यह चीजें भी बहुत अच्छी तरह से समझने की है कि आत्मा को कभी किसी ने बनाया ही नहीं है जैसे परमात्मा को कभी किसी ने बनाया ही नहीं । ऐसा भी कोई क्वेश्चन उठा सकता है कि परमात्मा का क्रिएटर कौन है, परमात्मा को किसने पैदा किया यह कोई क्वेश्चन उठा सकता है नहीं, जैसे परमात्मा का कोई रचता नहीं है वैसे आत्माओं का भी वास्तविकता में कोई रचता है ही नहीं, अनादि है ना परंतु फिर भी परमात्मा को क्रिएटर कहा तो जाता है ना, क्यों कहा जाता है वह इसी नाते कहा जाता है कि आत्माओं को प्यूरीफाइड स्टेज पर लाना, उसमें प्योरीफिकेशन क्रिएट करना और आत्माओं को ओरिजिनल स्टेज पर लाना यह परमात्मा का काम है इसीलिए उसको क्रिएटर कहा जाता है । उसके रचता होने का मतलब ही है कि वह हमारे ओरिजिनल स्टेज पर हमको ले आता है ना बाकी ऐसे नहीं है कि हम है ही नहीं, हम आत्मा कभी है ही नहीं, आत्मा तो अनादि है । तो यह चीजें भी समझने की है यह सृष्टि भी अनादि है, मनुष्य भी अनादि है, ऐसे नहीं है कि वह रचता तो कोई मनुष्य कभी था ही नहीं या यह सृष्टि कभी थी ही नहीं या कोई आत्माएँ कभी थी ही नहीं जिनको बैठकर के परमात्मा ने रचा है । नहीं, यह सब चीजें अनादि हैं लेकिन उन चीजों को प्यूरीफाइड करना, उनको अपनी ओरिजिनल स्टेज पर लाना, वह बल देना, वह ताकत दे करके उनको अपनी ओरिजिनल कंडीशन पर ले आना, वह उसका काम है । देखो, अभी हम आत्माएँ भी तमोंप्रधान, शरीर भी तमोप्रधान, संसार भी तमोप्रधान है ना लेकिन परमात्मा आ करके अभी क्रिएट करता है क्या, ऐसे तो नहीं है ना कि मनुष्य है ही नहीं जो परमात्मा आ करके उसको क्रिएट करता है परंतु मनुष्य में जो हमारी ओरिजिनल स्टेज है उसको क्रिएट करता है अर्थात उसको दूसरे शब्दों में तो यही कहेंगे ना की आत्मा को प्यूरीफाइड बनाता है तो आत्मा को प्यूरीफाइड बनाने से फिर आत्मा का शरीर भी प्यूरीफाइड होता है जैसे देवताओं का था प्योरीफाइड शरीर और आत्मा के संबंध में फिर संसार भी सब यहाँ पर जो भी पदार्थ है सब पवित्र हो जाते हैं यानी सतोप्रधान गोल्डन एजेड जिससे फिर हर चीज में सुख होता है, यह तत्व आदि भी गोल्डन एजेड हो जाते हैं बाकी ऐसे नहीं है कि कभी धरती थी ही नहीं, कभी पानी था ही नहीं, कभी आकाश था ही नहीं, यह पाँच तत्व कभी थे नहीं । नहीं, यह भी अनादि हैं तो मनुष्य भी अनादि है, यह सृष्टि भी अनादि है तो आत्माएँ भी अनादि हैं तो परमात्मा भी अनादि है इसीलिए कई कहते हैं हम पूछते हैं ना कि पहले मुर्गी या पहले अंडा ? तो अभी दोनों ही अनादि हैं, अगर मुर्गी नहीं तो अंडा नहीं है अंडा नहीं तो मुर्गी नहीं है । ऐसे नहीं कहेंगे पहले अंडा या मुर्गी कोई एक, नहीं वह दोनों ही हैं मुर्गी है तो अंडा है, अंडा है तो मुर्गी भी जरूर है । ऐसे कोई किसको कहे पहले, पहले मुर्गी या अंडा, दोनों ही अनादि हैं परंतु फिर भी मुर्गी से अंडा होता है ऐसा कहने में तो आएगा ना । तो फिर उसको क्रिएटर क्यों कहा जाता है हर चीज का अपना संबंध है इसीलिए, बाकी ऐसे नहीं है कि कभी हम आत्माएँ हैं ही नहीं, हम आत्माएँ भी अनादि हैं तो परमात्मा भी अनादी है और सृष्टि चक्र भी अनादि है परंतु फिर भी उनको क्रिएटर इसीलिए कहते हैं क्योंकि वह एक बार हम आत्माओं को उसी स्टेज पर लाने का आकर के एक्ट करता है ना वह क्रिएटर का करता है यानी हमको नई जान देता है । हमारे में नई जान फूंकता है ना । हमारे से जान निकल गई थी ना, वह आ करके हमारे में नई जान, नई लाइफ तो जैसे लाइफ दे दिया ना । भले लाइफ तो है परंतु लाइफ निकल गई थी । जीवन से सुख और शांति निकल गई थी तो जैसे हम मुर्दाबाद हो गए थे, मर गए थे, वो कहते हैं ना सागर के सौ पुत्र फिर आ करके, शास्त्रों में है कथा, उनको आ करके जिंदा किया, वह मरे पड़े थे तो अभी सागर कौन? ज्ञान सागर परमात्मा, उनके हम पुत्र एक सौ आठ का महत्व है ना, तो हाँ, हम उनके पुत्र मरे पड़े थे । देखो मर गए थे ना, माया ने हम को मार डाला था यानी दुःख अशांति में, अभी वो हम मरे हुए को आ करके जिंदा करते हैं अर्थात हमारे में नई जान कहो, नई लाइफ कहो अथवा वो प्योरीफिकेशन अभी भरते हैं तो वह क्रिएटर किसका हो गया हमारे में वह नई लाइफ अर्थात हमारे में वह हमारी ओरिजिनल जो स्टेज है वह ले आता है इसीलिए उसको क्रिएटर कहते हैं । बाकि ऐसे नहीं कभी हम है ही नहीं, जो हमको बैठकर बनाते हैं । नहीं, तो यह चीजें भी बहुत अच्छी तरह से समझने की है इसीलिए कहते हैं कि ऐसी बात नहीं है कि आत्मा कोई इन आँखों से देखने की चीज है या परमात्मा भी कोई इन आँखों से देखने की चीज है । नहीं, उनको जाना जाता है जिसकी नॉलेज, जान पहचान वह खुद आकर के परमात्मा देता है । आत्मा को भी पहचान नहीं थी, वह नॉलेज जो है वह परमात्मा देते हैं और खुद की भी, परमात्मा की भी जान पहचान वह खुद ही देते हैं क्योंकि उसका तो कोई क्रिएटर कोई है नहीं ना तो अपनी और अपनी रचना की यानी हम आत्माओं का परिचय वह देते हैं इसीलिए कहते हैं बुद्धि से जाना जाता है लेकिन इन आँखों से चाहे दिव्य दृष्टि से भी उनको देखें तो परंतु वो भी देखने के बाद फिर भी जाना जाता है ना । देखने से भी ऐसे नहीं बस देख लिया तो काम हो गया, उसको फिर भी ज्ञान से जानना पड़े कि परमात्मा क्या है, आत्मा क्या है और उनका क्या पार्ट है, कैसे-कैसे वह पार्ट में चलती हैं आत्माएँ जिनमें यह सारा पार्ट अनेक जन्मों का भरा हुआ है, परमात्मा में भी अपना जो पार्ट है वह सारा उसमें भरा हुआ है तो देखो यह ज्ञान सब समझना पड़ता है ना बाकी देखने से क्या देखेंगे । चलो दिव्य दृष्टि से भी कोई साक्षात्कार करें, उसको बिंदी का या स्टार लाइट कहो वह कुछ दिखाई भी पड़े परंतु फिर क्या हुआ । देख करके क्या उससे समझ जाएगा कि यह क्या है, नहीं उसका फिर ज्ञान चाहिए ना इसमें पार्ट भरा हुआ है वह पार्ट को भी तो समझना पड़ेगा ना, यह ज्ञान सागर है, यह ज्ञान दाता है, ये ही हमारे लिब्रेटर हैं, यह आते हैं, यह पार्ट कैसे बजाते हैं, जब यह आते हैं तभी हम को फिर वापस ले जाते हैं, तो हम आत्माओं का भी अनेक जन्मों का यह पार्ट है, वह सब तो फिर ऐसे देखने में तो नहीं आएगा ना, देखने में तो खाली बिंदी ही आएगी परंतु उसमें जो सारा पार्ट आदि वह तो ज्ञान से समझना पड़ेगा ना, कि इसमें यह पार्ट सारा कैसे भरा हुआ है जैसे रिकॉर्ड को हम देखें तो हमको क्या देखने में आएगा, खाली हो रिकॉर्ड का खली शेप देखने में आएगा चलो, बाकी इसमें कौन सा गीत है, क्या है, कहाँ से बजेगा, वह तो बजने से पता चलता है ना । इसी तरह से हमको भी यह बिंदी दिखाई पड़े, समझो देख लिया हमने फिर क्या हुआ, उसको तो फिर भी जानना पड़ेगा ना कि भाई इसमें यह सारे जन्मों का पार्ट भरा हुआ है, ये कैसे जन्म बाय जन्म मनुष्य आत्मा के पार्ट चलते हैं और हर एक का पार्ट भी अपना-अपना है, हरेक का अपना गीत भरा हुआ है, एक ना मिले दूसरे से, सब में अपना-अपना पार्ट भरा हुआ है अपने सभी जन्मों का । उसमें भी आदि के और अंत के जन्मों का कैसा-कैसा कंट्रास्ट है देखो यह सब अभी बुद्धि से जान सकते हैं । ये तो बुद्धि में रखने की चीजें हैं ना, अभी यह देखने में कैसे आएगा । वह बिंदी देखने से यह सब देख लेंगे ? यह देखने की तो चीजें नहीं है ना, यह जानने की, समझने की चीजें हैं इसीलिए कहते हैं वह ऐसी चीज है जिसको आँख ना देखें, आँख ना जाने लेकिन मन पहचाने अथवा बुद्धि से उसे जाना जाता है । तो यह है अपने परमपिता परमात्मा को हम आत्माओं को जानना लेकिन पहचान तो वह देता है ना तो मुख्य उसको रखेंगे कि परमात्मा ही तो आत्मा की पहचान देते हैं ना, आत्मा नहीं परमात्मा की पहचान देती है इसीलिए मुख्य उसको रखेंगे जो आत्मा की भी पहचान देते हैं इसीलिए कहते हैं परमपिता परमात्मा वह चीज है जिसको इन आँखों से नहीं देखा जा सकता लेकिन हाँ बुद्धि से जाना जाता है लेकिन वह बुद्धि भी तो वह देता है ना । ऐसे थोड़े ही है कि हम अपने आप ही जानते हैं, नहीं, वह बुद्धि भी वही देता है वह बुद्धि उसके पास है । जान पहचान कराने की बुद्धि उनके पास है हमारे पास नहीं है, हमारे पास से चली जाती है । जब वह आकर के पहचान देते हैं तभी अभी आई है बुद्धि । तो हमारे में कैसे आई बुद्धि, अपने आप नहीं आई, उनके द्वारा आई तो बुद्धि तो उसके पास रही ना । इसीलिए कहेंगे कि उनके द्वारा हमको जान-पहचान मिलती है तो हाँ पहचाना जाता है उनके द्वारा बाकी हम अपने द्वारा नहीं पहचान सकते । तो यह भी चीजें समझने की है तो पहले उसको रखेंगे ना इसीलिए हाँ परमपिता परमात्मा जिन्हें हम इन आँखों से नहीं देख सकते हैं लेकिन जाना जाता है परंतु वह भी उसके द्वारा यानी वह जब दे पहचान । पहचान देने की बुद्धि उसमें है । हम खो देते हैं हमारे से खो जाती है वो बुद्धि । वह तो फिर जब वह आते हैं तो देते हैं तो अभी देखो दी है बुद्धि तो बुद्धि आई है लेकिन आई कहाँ से है, उसने दी । वह ना देता तो थी थोड़े ही, नहीं, इसीलिए यह चीज भी समझने की है कि बुद्धिदाता, कहते हैं ना, बुद्धिवानों की बुद्धि अभी वह बैठ करके यह बुद्धि दे रहा है तो यह उनकी बुद्धि है । बुद्धि कहो नॉलेज कहो, ज्ञान कहो तो उनका ही है । बुद्धि में क्या है समझ, बुद्धि किसको कही जाती है समझ को कि भाई तुम्हारे में बुद्धि नहीं है क्या, जिसको समझ नहीं होती है ना तो कहते हैं कि तुम्हारे में तो बुद्धि नहीं है, ऐसे कहते हैं ना कि बुद्धि नहीं है, मानो तुमको समझ नहीं है । तो बाप कहते हैं तुम तो अभी देखो बुद्धि नहीं है तो बुद्धू हो गए हो, यानी नहीं जानते हो इसीलिए कहते हैं तुम्हार में से वह बुद्धि निकल गई है बाकि ऐसे नहीं तुम्हारे में बुद्धि नहीं है । बाकी तो बुद्धि है ना बच्चे कैसे पैदा करना है, यह घर कैसे चलाना है, फलाना कैसा है यह भी बुद्धि ना होती तो काम कैसे करते, यह तो बुद्धि है परंतु वह कहते हैं यह बुद्धि नहीं है कि हाँ मैं कौन हूँ, तू कौन है, करना क्या है, वास्तविकता क्या है लाइफ की । वह कहते हैं यह बुद्धि तुम्हारे से चली गई है, वह बुद्धि नहीं है अभी देखो क्या हो गए हो, तभी आ करके मैं बुद्धि देता हूँ । तो बुद्धि माना समझ बाकी मन बुद्धि अनादि है, आत्मा अनादि है, ऐसे नहीं आत्मा है मन बुद्धि नहीं है । आत्मा है तो मन बुद्धि भी उसके साथ है, यह चक्कर भी है बाकी अनादि है, ऐसे नहीं कभी बुद्धि है ही नहीं मन है ही नहीं । मन तो है ही, मन तो परमात्मा में भी है ही । कहते हैं न उसको भी संकल्प उठा, तो यह चीजें अनादि हैं बाकी इनमें क्या परमात्मा आकर के भरते हैं वह चीज समझनी है तो इसी का क्रिएटर कहते हैं मैं हूँ । तो अभी यह समझना है ना वह क्या भरता है । वो आ करके हमारी बुद्धि में यह नॉलेज भरता है तो फिर बुद्धि बुद्धि हो जाती है फिर कहते भी हैं ना सुमत दे । तो सुमत यानी हमको श्रेष्ठ मत से अथवा वह कंप्लीट स्वच्छ मत जो है वह आ कर के देते हैं । तो सुमत देने वाला है ना तो देखो अभी सुमत दे रहा है ना । बाकि ऐसे थोड़ी ही कि भगवान तू सुमत दे बस ऐसे ऐसे ही थोड़े ही है । नहीं, सुमत दे रहा है तो अभी ले ना । लेना तो अपना काम है ना वह तो सुमत दे रहा है ना । अब यह सुमत दे रहा है ऐसे नहीं कि अंदर-अंदर से ऐसे ही सुमत कर देवें । नहीं, अभी दे रहा है । देगा भी वह खुद आ करके ओरगंस का आधार लेकर के समझाएगा बाकी अंदर-अंदर से नहीं दे देगा, सबके अंदर-अंदर से ऐसे ही दे देवे, चलो दो अंदर-अंदर से नहीं । वह कहते हैं मैं सुमत भी कैसे लेता हूँ वह भी तो समझो ना । मैं भी आकर के सुमत देता हूँ, तो मत को समझाना पड़ेगा ना । समझाता हूँ तो वह भी समझने की बात है । कई समझते हैं की सुमत भई अंदर ही अंदर दे दे अपने आप इसीलिए कहते हैं हे भगवान इसको सुमत दे दे या कहते हैं जब भगवान को देना होगा तभी देगा देखो बहुत आते हैं इधर कहते हैं जब भगवान हुकुम करेगा, जब भगवान की कृपा होगी, उसकी कृपा के बिना थोड़ी हम इतना भी नहीं चल सकते हैं । तो कहते हैं हम इतना भी नहीं चल सकते हैं तो क्या भगवान इतने दिन तुम्हारे पर अकृपा करके बैठा था, उसकी माना तो भगवान की अकृपा थी जो जब भगवान् कृपा करे कहते हो । अभी यह सब क्या है भक्ति मार्ग का बात करने का ढंग बैठ गया है ना तो बिचारे ये बस कहते आते हैंसमझे चाहे न समझे । भई इतना समय क्या था, तुम्हारे पर आज कृपा की भगवान ने? इतना दिन उसकी अकृपा थी क्या वह अकृपालू है, उसको तो कहते हैं सदा कृपालु । गाते तो ऐसे ही महिमा तो ऐसे ही करते हैं तू सदा कृपालु है तो तुम्हारे ऊपर आज कृपा की उसने? क्यों कल अकृपा की थी क्या तुम्हारे ऊपर उसने । नहीं, यह तो देखो रॉन्ग हो जाता है ना । एक तरफ उसकी महिमा करना, मुंह पर चित्र के आगे उसकी महिमा करना और फिर बातें ऐसी करना कि जब वह कृपा करे ना । तो उसका मतलब तो वो अकृपालु हो गया जो इतना दिन तुम्हारे ऊपर अकृपा करके बैठा था । कृपा नहीं करी थी आज की है तो तुमने आज कुछ अपना करने का सोचा । तो इसका माना उसकी अकृपा रही न तेरे पर, तो वह अकृपालु है । तो क्यों कहते हो सदा कृपालु? तो सदा तो हुआ ही नहीं न तेरे ऊपर । तो यह तो रॉन्ग हो जाती है ना कहनी एक करनी दूसरी यह सभी बातों में । तो देखो समझते नहीं बेचारे खाली एक आदत पड़ गई है ना भक्ति मार्ग की कि जब वह कृपा करेगा, जब उसका हुकुम होगा, उसके हुकुम के बिना यह पत्ता है न वो भी नहीं हिलता है बस वो बैठा हुआ है न खयालात में । अभी इस पत्ते को क्या भगवान का हुक्म है पत्ता तू हिल? यह तो हवा का काम है ना । हर एक तत्व आदि का अपना जो नियम है उसी नियम के अनुसार चलता है, इसमें परमात्मा के आर्डर की क्या आवश्यकता है जो हुकुम करता है तू हिल, तो फिर तो चोर को भी चोरी करने के लिए कहेगा तू हाथ उठा, जा चोरी कर, इतना- इतना तू हिलाएगा हाथ तो, यह पत्ते को भी उसका हुक्म है तो चोर के चोरी करने को भी उसका हुकुम मानना चाहिए न फिर तो । फिर तो खुनी खून करता है तो उसको भी कहता होगा खूनी तू खून कर, तो अगर पत्ता हिला तो कहा परमात्मा ने हिलाया फिर चोर ने चोरी करने के लिए जो हाथ हिलाया, खुनी ने खून करने के लिए जो हाथ हिलाया फिर ये हठ भी उसी ने चलाया फिर तो ये काम उसका हो गया न फिर मनुष्य क्यों उसका दुःख भोगता है । फिर तो उसके लिए पाप कर्म पुण्य कर्म की बात ही नहीं रही । फिर तो सब जो कराता है वह परमात्मा ही कराता है । फिर तो हमारे से पाप भी वह कर आता है, जब पत्ते को हिलाता है तो फिर हमारे से भी कोई काम उल्टा होता है वह भी वह कराता है । तो जब वह कराता है तो हम काहे के लिए दुःख भोगते हैं? फिर तो दुःख भी उसको ही भोगना चाहिए । फिर तो सारी रिस्पांसिबिलिटी उनकी हो जानी चाहिए ना फिर हमारी क्यों है, परंतु यह रॉन्ग है । यह जो कई बातें इस तरीके से समझ बैठे हैं ना तो वह बिचारे समझते हैं उसके हुकुम के बिना ऐसे ही थोड़ी, अरे पता भी नहीं हिल सकता है । अभी पत्ता भी नहीं हिल सकता है तो चोर कैसे चलता है चोरी करने के लिए, भगवान चला रहा है उसको कि चल इधर चल, इससे लूट इससे ले फिर तो भगवान रिस्पांसिबल रहा ना? परंतु नहीं, यह तो हर एक का नियम है । हवा का नियम है पत्ते को हिलाना तो हवा हिलती है । इधर हम आत्मा हैं तो उसका काम है चलाना, ये हाथ कौन चलाता है ? ये परमात्मा थोड़ी चलाता है, पत्ते को हवा चल आती है यह इधर हम आत्मा है शरीर को चलाने के लिए यह कौन चलाती है यह परमात्मा थोड़ी ही चलाता है, यह आत्मा चलाती है ना हाथ तो । अभी इस हाथ की समझ मेरे पास है ना, आत्मा के पास कि इसको राइट एक्शंस में लाएँ या रॉन्ग एक्शंस में लाएँ । इस मुख से हम गाली देवें या राइट एक्शंस में लाएँ यह मेरी रिस्पांसिबिलिटी है, यह भगवान की थोड़े ही है । वो थोड़े ही चलाता है । हाँ पर वह अभी बुद्धि दे रहा है । उसने अभी समझ दिया है कि हाँ कैसे चलाओ । इस मुख से राइट क्या बोलो, रॉन्ग नहीं बोलो । इन हाथों को राइट कैसे चलाओ । इससे क्या राइट एक्शंस करो । ऐसा कोई काम ना करो उल्टा जिससे तुम्हारा अकल्याण हो तो वह समझ दी है बाकी ऐसे थोड़ी ही है कि वह करता है । करने को तो सब जो उल्टे एक्शंस भी करते हैं तो भगवान चलाटा है? तो नहीं, यह सब चीजें समझनी हैं, यह जो पुरानी आदतें चली आई हैं ना भक्ति मार्ग की कि उसके बिना कुछ नहीं होता, करनकरावन आप ही आप वो है एक कहावत मानस के कुछ नाही हाथ वो अर्थ उठा लिया परंतु उसका अर्थ है कि मनुष्य जो समझ बैठे हैं ना भाई देखो इसका अर्थ कितना है । सिंधी बोली में भंवर ऐसी कहावत भी है तो एक बात का दो अर्थ निकाल लेते हैं । अभी देखो इसका अर्थ मनुष्यों ने क्या निकाला और परमात्मा बैठकर के समझाते हैं कि मानुष के कुछ नाही हाथ, कारनकरावन आपे आप, ये गाते हैं, ये किसी ग्रन्थ में ये वाणी है । अच्छा, मनुष्य के कुछ नाही हाथ तो वह समझते हैं कि मनुष्य भी क्या, मनुष्य तो यहाँ से उठ करके यहाँ भी नहीं हो सकता, उसके थोड़ी कुछ हाथ में है । भक्ति मार्ग में ऐसे समझते हैं, हम भी समझते थे । यह पत्ता भी नहीं हिल सकता है उसके थोड़े ही हाथ में है भक्ति मार्ग में समझाते हैं हम भी समझते थे यहाँ से यहाँ तक भी जो हम हिलते हैं ना तो भगवान ना होता तो हम हिल भी नहीं सकते थे तो कहते यह कर्म करावन आप ही आप वही कराता है हमारी क्या ताकत है यहाँ से यहाँ तक हो सकें, अब देखो यह भी अर्थ है । अभी भक्ति मार्ग में सब ऐसे ही समझते हैं परंतु अभी ज्ञान से परमात्मा ने क्या समझाया नहीं, कारन करावन आप ही आप मनुष्य के कुछ नाही हाथ यानी मनुष्य जो समझ बैठे हैं ना की हाँ यह गति सद्गति मोक्ष करेगा, जो मेरा काम है वह अपने लिए समझ बैठे हैं । समझते हैं ना कि हाँ भाई यह गुरु द्वारा फलाने द्वारा मोक्ष होगा और वह भी कहते हैं तुम्हारा मोक्ष हुआ । तुम ऐसे करो तेरा हो गया । बहुतों का ऐसा मोक्ष हो गया, बहुत निर्वाण में चले गए हैं, ऐसे बहुत हैं । यह जो काम परमात्मा का है वह गुरु लोग कहते हैं मनुष्यों का है इसीलिए कहते हैं मनुष्य के कुछ नाही हाथ, अरे! यह मनुष्य के हाथ की बात नहीं है यह मेरे है, करन करावना आप ही आप यानी इसको करने वाला मैं हूँ बाकी मनुष्य के हाथ की यह बात नहीं है । तो वह समझना है ना मनुष्य का क्या काम, परमात्मा का क्या काम । अभी जो परमात्मा का काम है वह मनुष्य ले करके बैठ गए हैं कि यह हम करते हैं, हम कराते हैं । तो बाप कहते हैं यह मनुष्य के कुछ नाही हाथ यह उनके हाथ की बात नही है । गति सद्गति देना या आत्मा को ऊंचा ले जाना, जो ऊंचाई की स्टेज है उसी पर ले जाना यह कोई मनुष्य का काम नहीं है यह कारन करावन आप ही आप इसीलिए कहते हैं ना मैं आता हूँ तो विनाश की स्थापना और पालना उसका कारन करावनहार हूँ ना तो यह मैं आकर के काम करता हूँ इसीलिए यह करने का मैं हूँ इसीलिए देखो अर्थ कितना डबल हो गया न । अभी वह अर्थ कहाँ । भक्ति मार्ग में जो समझते हैं ना कि मनुष्य कुछ नहीं कर सकता है, यह ऐसे उंगली भी चलती है ना वह भी उसके बिना नहीं चल सकती है तो वह समझते हैं कि यह परमात्मा का काम है पर आत्मा भी तो चैतन्य है ना । आत्मा में अपनी कोई ताकत ही नहीं है क्या । जब मनुष्य मरता है तो आत्मा ही तो निकल जाती है ना कि परमात्मा निकल जाता है, आत्मा कहते हो ना तो आत्मा निकलती है ना तो आत्मा की अपनी सत्ता भी तो है ना । आत्मा भी तो चैतन्यता है ना फिर ऐसे कैसे कहेंगे करन करावन आप ही आप । वह आत्मा है ना रिस्पांसिबल अपनी । लेकिन हाँ आत्मा में वह जो ज्ञान है ना उस ज्ञान के लिए कहते हैं कि मनुष्य के कुछ नाही हाथ अर्थात ये ज्ञान मनुष्य नहीं दे सकते हैं । वह तो समझ बैठे हैं हाँ हम मोक्ष देने वाले हैं, दूसरे भी समझते हैं कि मनुष्य हमको देगा तो कहते हैं यह रॉन्ग है । यह जो काम है ना यह तुम मनुष्यों का नहीं है, यह काम मेरा है । यह तुम मनुष्यों ने अपने आप अपने पर रख लिया है करने वाले भी समझते हैं कि हम करने वाले हैं, मोक्ष देने वाले हैं और तुम भी समझते हो कि हाँ वह हमको देगा, ये जो आपस में मेरे काम को अपने लिए लगा कर बैठ गए हो, ये काम तुम्हारा नहीं है ये काम मेरा है इसीलिए कहते हैं मानस के कुछ नाही हाथ, कारन करावन आप ही आप अर्थात ये अपना काम करने के लिए वो स्वयं अपने आप समर्थ है बाकी यह सामर्थ्य कोई मनुष्य में नहीं है, इस काम के लिए कोई मनुष्य समर्थ नहीं है । यह काम उसका है तो परमात्मा के भी काम को समझना है ना अच्छी तरह से उसका काम कौन सा है । उसका काम मनुष्य भी कर सकते हैं मनुष्य का काम वह भी कर सकता है फिर तो उसका महत्त्व रहना नहीं चाहिए न । फिर तो उसको कहना की सुमत दो, उसको कहना की सद्बुद्धि दो, फिर ये सब क्यों कहना । फिर तो ठीक मनुष्य सबकर सकते हैं फिर तो मनुष्य के लिए महिमा होनी चाहिए न । नहीं, वह जो काम है ना उनके सिवा कोई कर नहीं सकता है इसलिए डिफरेंट हो गया ना । मनुष्य में बुद्धि पड़ गई है सबकी, मनुष्यों की आपस में सबकी मनुष्यों पर बुद्धि पड़ गई है इसीलिए कहते हैं मेरे से बेमुख बनाया है ना । इन सबने तुमको मेरे से बेमुख बनाया, कैसे बनाया कि यह कहना कि मैं तुमको देता हूँ, मोक्ष, फलाना, फलाना यह सब मैं तुमको देता हूँ तो देखो यह बुद्धि मनुष्यों में चली गई ना, तो परमात्मा से हटा लिया ना । तो इसीलिए कहते हैं देखो यह तो तुम एक दो को मेरे से हटाते हो । मेरे समीप नहीं करते हो मेरे से आप हटाते हो क्योंकि मनुष्य करेगा ऐसा तुम समझ गए हो न । अभी यही तो बुद्धि लगा दी है ना भक्ति मार्ग में सब क्या है? हमारे में भी यह था ना कि नहीं भाई मनुष्य करेगा तो देखो दिन-ब-दिन परमात्मा से बुद्धि हटती जाती है, अभी तो कहते हैं परमात्मा है ही नहीं, समझते हैं जो कुछ करता है वह सब मनुष्य है तो सारी बात मनुष्य पर रख दी है तो देखो बेमुख होते जा रहे हैं इसीलिए कहते हैं वह ताकत तुम्हारी खत्म होती जाती है, जैसे-जैसे मेरे से दूर होते जाते हो तो तुम्हारी ताकत जैसे खत्म होती जाती है । तुम्हारे में वह ताकत भले माया की आती जाती है लेकिन मेरे से तो बेमुख होते जाते हो ना क्योंकि मनुष्य में जाकर के बुद्धि पड़ी है और मेरे से बुद्धि दूर होती जाती है इसीलिए तो कई तो मुझे भुला कर बैठ गए हैं । वह समझते हैं बस नेचर है बस, कुछ है ही नहीं, परमात्मा है ही नहीं, जो कुछ है वो मनुष्य है, मनुष्य जो कहता है, करता है बस जो कुछ करा है वो मनुष्य ही है तो देखो कितने बेमुख हो गए हो । जिन्होंने भी शास्त्र आदि बनाए हैं उन्होंने भी तो मनुष्य को ही रख दिया है ना कि यह सब काम मनुष्य ही करते हैं तो मनुष्य में बुद्धि लगा देना इसीलिए बाप कहते हैं देखो मेरे से तुमको बेमुख बना दिया इसीलिए कहते हैं यह तो तुम लोग आपस में एक दो को मेरे से बेमुख कर रहे हो अर्थात मेरे से हटा रहे हो । तो मेरे से कैसे तुम्हारा योग रहे, तुम मेरे कैसे बनो यह यथार्थ रीति से मैं आ करके समझाता हूँ और उसी की प्राप्ति भी मैं आकर के कराता हूँ इसीलिए मैं कहता हूँ मानुष के कुछ नाही हाथ । तो देखो अर्थ कैसे हुआ, बदल गया ना अभी अक्षर तो वही है लेकिन अभी बाप बैठकर समझाते हैं इनका मतलब यह है कि मनुष्य के कुछ नाही हाथ ये जो मनुष्य दावा लगाकर बैठे हैं कि यह हम करेंगे या कराएंगे या मनुष्य भी समझते हैं कि मनुष्य करेगा, तो कहते हैं मानस के कुछ नाही हाथ कारन करावन आपे आप यानी वही स्वयं परमपिता परमात्मा वही इस काम को करने में समर्थ है बाकी मनुष्य नहीं । तो यह सभी चीजें समझने की है ना तो देखो मनुष्य क्या समझते हैं और क्या समझाते हैं और परमात्मा क्या समझाता है तो रात और दिन का फर्क हो गया ना, बात वही अर्थ में देखो कितना फर्क है । हम भी तो वही कहते हैं ना कि भाई मानुष के कुछ नाही हाथ, हम भी तो कहते हैं ना भाई मानुष के कुछ नहीं हाँथ मनुष्य जो समझते हैं कि यह हम करेंगे या मनुष्य को भगवान कहना यह रॉन्ग है, यह बड़ी भूल है, यह भी एक पाप है । देखो बाप बैठ के समझाते हैं मनुष्य को भगवान कहना यह पाप है, देखो पाप कितना गहरा समझाता है और वह कहते हैं सब परमात्मा है, सब परमात्मा के रूप हैं और बाप कहते हैं मेरा रूप सब है ही नहीं और तुम यह समझाते हो । यह पाप करते हो इसको भी पाप कहते हैं देखो कितना फर्क हो गया तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं कि बच्चे देखो मेरी बातों को यथार्थ रीति से समझो क्योंकि पाप क्यों हुआ क्योंकि तुम्हारी बुद्धि मेरे से हटकर के जाकर मनुष्यों में लग गई, मेरे से तुम्हारा कनेक्शन, योग निकल गया तो योग निकल गया तो क्या होगा, तो यह सभी बातों को भी अच्छी तरह से समझने का है इसीलिए बाप बैठकर कहते हैं कि यह नॉलेज, यह बुद्धि मेरा काम, तेरा काम क्या है जब तुम यह समझो तभी तो तुम काम ठीक कर सको ना । अभी तो समझते हैं मैं सब काम कर सकता हूँ, मनुष्य सब कर सकता है, मनुष्य से ही होगा तो फिर तुमने तो मुझे भुला दिया ना । और भुला दिया तो फिर मेरे काम का फायदा तुमको मिलेगा कैसे । जो करने वाला ही मैं हूँ और कोई कर नहीं सकता है और तुम समझ बैठे हो कि हम आपस में हम ही कर सकते हैं तो करो, देखो अभी कर रहे हो ना, करते-करते देखली है न दुनिया, बना ली है ना दुनिया, बहुत अच्छी दुनिया, बाप तो ऐसा कहेगा ना । तो देख लो ना तुम समझ बैठे थे न अपने को सब कुछ की सब हम करने वाले हैं, अभी देख लो न क्या बनाई है दुनिया । तुम हो ना सब, तुम सब परमात्मा हो ना कितने परमात्मा हो, एक परमात्मा के बदले इतने परमात्मा हुए हो तो दुनिया क्या बनाई है । सब हो गए हो परमात्मा, सर्वव्यापी के हिसाब से तो सब परमात्मा हो गए ना, तो एक के बदले इतने परमात्मा और इतने परमात्मा की दुनिया क्या, तो बाप तो कहेगा ना कि देखो बच्चे क्या कर दिया है, मुझे भुला करके तुम सब परमात्मा बन करके बैठ गए हो और सभी के परमात्मा बनने से दुनिया और क्या बनाई है और ही दुःख अशांति की, तो देखो यह क्या है, तो यह बाप तो कहेगा ना, बच्चे होते हैं ना तो जैसे बाप कहते हैं कि देखो कितने मूर्ख हो गए तो अपने को भगवान समझ बैठे हो, वाह! अभी भगवान भला इतने हुए हो तो दुनिया तेरी क्या है । एक भगवान आता है तो दुनिया को स्वर्ग बनाते हैं और तुम इतने भगवान और दुनिया नर्क, देखो कितना कंट्रास्ट सब भगवान और दुनिया नर्क हो गई है और मैं एक आता हूँ तो दुनिया स्वर्ग बनाता हूँ तो देखो ना, तुम कितने अच्छे भगवान बने हो तो बाप तो ऐसे ही कहेंगे ना, परंतु कहते हैं नहीं बच्चे देखो भूले हो । यह भूलने के कारण ही तुमको पता नहीं रहा है ना तो बाप से तुमको ताकत मिले कैसे, तुम और ही मूर्ख बनते गए हो इसीलिए नीचे गिरते गए हो, कर्म तुम्हारे भ्रष्ट होते गए हैं, तुम्हारे में ताकत नहीं रही ना, ना ताकत रहने से तुम दुःख भोग रहे हो इसीलिए कहते हैं बच्चे अभी राइट समझो कि मैं कौन, मेरा काम क्या उसको राइट समझो, तो राइट समझने से तुम्हारा काम भी राइट होगा, नहीं तो तुम समझते हो सब कुछ मैं हूँ, सब कुछ मैं हूँ, ताकत है नहीं और सब कुछ मैं हूँ, अपने को सब कुछ समझते-समझते मेरे से ताकत लेने का कनेक्शन कट ऑफ हो गया है तो मिलेगी कहाँ से ताकत, तो देखो बेताकत हो करके यानी ताकत ना रहने से तुम्हारा हाल देख लो क्या है हींया हो गये हो, हींया माना ताकत कम हो गई है तो यह सभी चीजें बाप बैठकर के समझाते हैं । आती है ना समझ में, तो मनुष्य का क्या काम, परमात्मा का क्या काम, कैसे फर्क पड़ता गया है तो यह भी समझने की बात है कि कैसे मनुष्य की बुद्धि में फर्क आया और मनुष्य क्या-क्या समझ बैठे हैं और बाप आ करके समझाते हैं कि यह मेरा काम कैसे हैं । अच्छा, आज वह है ना, गुरुवार, आओ तो यह सभी बातों को अच्छी तरह से समझते भी उसी बाप से कनेक्शन जाना है इसीलिए कहते हैं मेरे से रखो मुझे जानो, अभी देखो यह सब जानने की बातें हैं ना, देखने से थोड़ी दिखाई पड़ेगी यह सब बातें परमात्मा कैसा, आत्मा क्या, देखने में तो दोनों बिंदी दिखाई पड़ेगी आत्मा भी और परमात्मा भी, देखने से क्या होगा कैसे पता पड़ेगा नहीं कहते हैं देखने से तो सिर्फ जैसा शेप, साइज तेरा वैसा शेप साइज मेरा लेकिन ये जानने की सब बातें हैं ना परमात्मा का क्या क्वालिफिकेशन, उसका कर्तव्य, उसका और मेरा क्या रिलेशन यह सब जानना है बुद्धि से सब समझना है । अभी यह भी तो तुम्हारे में तो बुद्धि है नहीं ना, तुम्हारे से तो बुद्धि निकल गई है, अभी यह बुद्धि देवे कौन है, मैं इसीलिए मेरा महत्व, महिमा मेरी है । तो कहते हैं ना कौन आया मेरे मन के द्वारे, तो कौन कहती हैं? आत्मा कहती है परमात्मा के लिए । तो अभी मेरे मन के द्वारे यानि मेरे मन में अभी यह बात आई है, अभी जान गए हैं, अभी समझ गए हैं कि हाँ परमात्मा क्या, कभी कोई बात समझी जाती है कहते ना हाँ हाँ, अभी आ गई, समझ में, ख्याल में आ गई यह ऐसी बात है, तो हाँ मन-बुद्धि तो है परंतु मन में अभी आई है, बुद्धि में अभी आई है, समझ में अभी आई है तो हम कहते हैं हाँ अभी आई है समझ में कि हाँ वह बाप है, हम बच्चे हैं और हमारा क्या कर्तव्य है, बाप का क्या कर्तव्य है, वह बैठ कर के अभी बाप ने समझाया है तो हम समझते हैं । नहीं तो बाप के कर्तव्य को समझ बैठे थे कि हम करेंगे, हम आपे आप हैं । एक तरफ तो कहते हैं मनुष्य के कुछ नाही हाथ एक उसके सब है, परंतु उसके हाथ कैसे हैं । कहते एक है परंतु करनी ऐसी करके बैठे हैं कि जैसे सब हम करते हैं । देखो चोरी करते हैं कहते हैं आप ही आप कराता है ना, करते खुद हैं और कहते हैं आपे आप, देखो रॉन्ग हो गया ना । परमात्मा थोड़ी कराता है, सब कुछ वह कराता है तो सब कुछ में तो सब आ गया ना । यह तो हमारी बुद्धि से की यह रॉन्ग है यह राइट यह सब समझने की बातें हैं ना तो यह सभी समझ करके अभी बाप बैठकर के यह सभी रोशनी देते हैं । तो इसको कहा जाएगा रोशनी, तो यह सब रोशनी जो अभी बाप के द्वारा मिली है उसे लेकर के अभी रोशन होना है । रोशनी से फिर कभी ठोकरें नहीं खाएंगे, कभी दुःख नहीं पाएंगे । ठोकर माना दुःख, तो रोशनी से दुःख नहीं बिना रोशनी के दुःख है । तो अभी बाप रोशनी देता है सदा सुखी बनाने के लिए, तो अभी सदा सुखी बनने का है ना? तो देखो इसको कहा जाता है अर्थ को अनर्थ बनाना । अर्थ क्या है उसको बना दिया है अनर्थ तो ऐसी बातें हो गई हैं । तो ऐसे अर्थ को अनर्थ बनाया । देखो अर्थ कैसे अनर्थ हुआ अभी बाप आ करके फिर अर्थ समझाते हैं कि हाँ अभी कहते हैं की फिर अभी अपनी जगह पर ठीक हो जाओ और ठीक हो करके अभी मेरे से अपना पूरा-पूरा हक लो । नहीं तो हक भी तुम्हारा चला गया था किससे लो? संबंधी, रिलेशन सब कुछ तुम अपने आप में हो करके बैठे हो, आपस में ही सब कुछ बनाया तो बाप तो ऐसे कहेंगे ना, जैसे बच्चे होते हैं ना बच्चे आपस में ही खेल करते हैं न माँ भी तू बाप भी तू आपस में ही माँ बाप सब बन करके यह गुड़ियों का खेल करते हैं, तो ये भी चीज ऐसी है की तुम सब आपस में ही सब बन करके बैठे हो अपना गुरु, बाप, माँ सब अपने आप में । बाप कहते हैं नहीं मैं मैं हूँ, तू तू है यह भी तो समझ ना । तुम आपस में ही सब बन कर बैठ गए यह कैसे गुरु भी तू मनुष्य, मोक्ष करने वाला भी तू, सब मनुष्य आपस में बन कर बैठ गए मेरे को बुला करके तो बाप होता है तो कहते हैं ना बच्चों को कि आपस में सब कुछ बन कर बैठ गए मेरे को भुलाकर करके तो इसीलिए कहते हैं कि नहीं अभी मैं जो हूँ यथार्थ रीति से समझो और समझ करके चलो । अच्छा, चलो । चलो माना समझते हो ना? किधर, बुद्धि बल से, हाँ चलो अभी, इन टांगों से नहीं चलने का है, बुद्धि की रफ्तार से, उसको तेज करो रफ्तार, बुद्धि की रफ्तार को तेज करो । खिलाने वाला कौन है? अभी खिलाने वाला वह है परमपिता परमात्मा । भक्ति मार्ग में तो सब कहते हैं भगवान खिलाता है, जो देता है सो भगवान देता है परंतु वह तो खाली कहने की ही बात है ना । फिर तो बेचारे किसको मिलता है खाना, किसको नहीं मिलता है । जिसको नहीं मिलता है तो फिर क्या कहेंगे भगवान नहीं खिलाता है? फिर तो ऐसा भी मानना पड़ेगा । अगर सब को खिलाता है किसको नहीं खिलाता है फिर तो भगवान ही नहीं खिलाता है ऐसा कहना पड़ेगा ना । परंतु नहीं, ये खाना, खिलाना तो अपने हिसाब से । कोई बिचारे अच्छा खाते हैं, किसी को नहीं मिलता है तो कर्म का है ना । लेकिन बाप कहते हैं सच-सच अभी खिलाता हूँ क्योंकि अभी तुम मेरे हो ना। तो अभी जो उनके बने हैं यानी तन मन धन से प्रैक्टिकल उनके हैं तो अभी देखो कहते हैं जो उनके बने हैं ना तो उसकी परवरिश जैसे उनसे ही होती है बाप से । तो अभी कहते हैं हाँ, तो जो खिलाता है अभी उसको भी याद रखने का है। तो अभी हम को कौन खिलाता है? शिव बाबा। हम उनके हैं ना तो उसको याद करते हैं कि हाँ जैसे बाबा खिलाते हैं तो उनको याद करते हैं ना, तो बाबा आप स्वीकार कीजिए। परंतु स्वीकार कीजिए तो वो भोजन थोड़ी ही खाता है। वह तो सोल है ना, सुप्रीम सौल, उसको तो शरीर नहीं है । खाने पीने का तो शरीर के साथ संबंध है ना परंतु हाँ यह रिस्पेक्ट, उसकी याद। तो यह सभी याद के तरीके हैं बाकी इसमें कोई और बात नहीं है। याद रखना तो खाते भी याद रखना, चलते भी याद रखना, उसको याद रखने का है । तो यह है उसी बाप की याद जिसकी याद में रहकर के अभी हमको चलना है। तो अभी उसकी याद में रह करके चलो। चलते, फिरते, खाते, पीते, काम करते भी, कहते हैं ना कम कार डे वो कहावत है दिल यार डे । वो यार कहते हैं, यार परमात्मा को भी कहते हैं, खुदा दोस्त। तो यह सभी उसके प्रति तो कम कार डे और दिल परमात्मा की तरफ। उसको सखा भी कहा है ना, त्वमेव माता च पिता त्वमेव बंधु च सखा। देखो सखा कहो या फ्रेंड कहो या यार कहो या दोस्त । ये शायद उर्दू अक्षर है या कोई भाषा का है परंतु है, दोस्त कहो बात एक ही है। तो यह सभी है परंतु कहा परमात्मा के प्रति है । तो अभी कहते हैं मेरे से लगाओ, दोस्ती रखो। फिर हाँ दोस्त बनो अथवा बच्चा। बच्चा अक्षर अच्छा लगता है क्योंकि बच्चे से वर्सा की टेंप्टेशन रहती है ना । बच्चा तो वर्सा मिलेगा, दोस्त को थोड़ी वर्सा मिलेगा। नहीं, तो हम कहते हैं क्यों नहीं, हम बच्चा बनेंगे तो जो भी उसकी जायदाद है, उसकी सारी प्रॉपर्टी का हकदार हो जाए। तो बाप से ले लेना इसीलिए हम उसके होते हैं कि उसकी सारी प्रॉपर्टी का हमें हक है । तो बच्चा कहने से डबल फायदा है ना। उसका जायदाद का सारा हक, कोर्ट भी दिलाएगी। लॉ भी दिलाएगा । वह लॉ लग जाता है बाकी रिलेशंस में वो लॉ नहीं लगता है । सजनी कहें, साजन कहे तो उसको, सजनी को भी नहीं। बाप का बच्चा, तो बच्चे से वारिस, बच्चा ही तो वारिस बनता है ना । वारिस किसको कहेंगे? वारिस माना सजनी को थोड़ी वारिश। वारिस माना बच्चा। हेयर पेरेंट्स, हेयर पैरेंट के अर्थ से, कोई कहेगा यह इसका हेयर पैरेंट हैं तो हां भाई इनका बच्चा होगा ना, हेयर पेरेंट से दूसरा थोड़ी कहेगा दोस्त होगा या सजनी होगी। नहीं उससे कहेंगे इसका बच्चा हेयर पैरेंट। तो हेयर पैरेंट का भी नशा चाहिए की हां भाई जितनी उसकी जायदाद है उसका हेयर पैरेंट, वारिस तो फायदा है न। तो क्यों नहीं हम उसका बच्चा बने। तो बच्चा बनने से, उसको पिता कहने से दूसरा आनंद है क्योंकि उसमें आनंद आता है। पिता कहते भी हैं परमपिता परमात्मा देखो पिता कहते हैं ना। पिता से पुत्र आता है बुद्धि में और पुत्र से वर्सा का नशा चढ़ता है। वर्से से उसकी सारी जायदाद की जो पूर्ण सुख शांति की जायदाद है ना उसके ऊपर हक लगता है और हमको चाहिए उसका हक। भगवान को भी हम याद करते हैं, भगवान को भी हम चाहते हैं इसलिए क्योंकि उससे मतलब है। किसलिए उसे याद करते हैं उसमें मतलब है। कौन सा, कि उसके पास हमारी सुख शांति की जायदाद है, वह उससे हमको लेना है। हमको चाहिए सुख शांति, भगवान को नहीं चाहिए, नहीं तो भगवान को भी कौन पूछे। क्योंकि सुख शांति के लिए सब है तो हमको चाहिए अपने जीवन में, जीवन में हो या जीवन के बाहर हो, कहाँ भी हो मतलब सुख शांति चाहिए। तो उसी सुख शांति के लिए तो मोक्ष कहते हैं कि भले तू जीवन से बाहर ले जा, जीवन में न ला, किधर भी रख किधर भी हो लेकिन सुख शांति तो हो न। आनंद हो, शांति हो कहते हैं न। भले शांति से भी कई समझते हैं शांति से भी दूर होवें परंतु वह भी समझते हैं की वह महाशांत है । कुछ भी समझते हैं उसमें भी कुछ समझते हैं तभी ना। तो यह सभी चीजों को बैठकर के बाप समझाते हैं । ये भी जो भी सब चाहना है ना तो उसमें भी कोई चाहना है न। भाई शांति भी हमको नहीं, कोई कहते हैं भाई शांति भी हमको नहीं, आनंद भी नहीं, इससे भी ऊपर है परमो अधिक आनंद, कुछ तो अधिक समझते हैं ना तभी तो पर पर कहते हैं न। तभी बाप कहते हैं मैं तुमको पर से पर वो परम सुख, परम परमात्मा परम सुख देगा ना,। ऊंचा, परे यानी ऊंचे में ऊंचा सुख। ऊंचे में ऊंचा कहो या परे ते परे कहो यानी इस दुनिया के सुख से जो परे है, ऊपर है। तो हमको परम सुख, परम शांति कई कहते हैं ना यह शांति नहीं, परम शांति। परम शांति क्या? वह शांति से भी ऊपर है। परंतु शांति से ऊपर क्या यानी अल्पकाल की जो शांति है ना उस अल्पकाल की शांति से ऊपर, सदा काल की। तो सदा काल और अल्पकाल यह सभी चीजों को बैठ करके बाप समझाते हैं और बाप कहते हैं कि इन बातों को अच्छी तरह समझ कर करके उससे परम शांति और परम आनंद, तो अभी समझते हो ना अर्थ को भी ? परम आनंद को, परम शांति को, यानी जो सदाकाल का सुख है । तो सदा काल, सदा का सुख, सदा की शांति इसको कहेंगे परम आनंद परम शांति । यह है अल्पकाल की शांति, अल्पकाल का सुख, वह है सदा का। तो सदा कहो या परम कहो बात एक ही है। तो यह सभी नॉलेज अच्छी तरह से समझने का है और समझकर के बाप से अपना हक पाना है। हक लगेगा तभी जब हम रिलेशन बच्चे का रखेंगे तो पिता से हक मिलेगा। पिता के ऊपर पुत्र का हक होता है तो डबल काम होता है ना रिलेशन भी और हक भी इसीलिए हम वह अपना रिलेशन जुड़ाते हैं। अच्छा चलो (रिकॉर्ड: बजा शिव भोला भगवान) जहाँ सब जाते हैं। मालूम है तुमको, तुम भी जाती हो सब जाते हैं । बाप को याद रखना है। बाबा किसको दिखा देते हैं, हम भले ना देखते हैं, याद है ना। ये देखने में आप भूल जाते हैं हम तो याद में रहते हैं इसीलिए कहते हैं फिर भी याद रखने का है और है सभी याद के लिए। भक्ति मार्ग में दीदार आदि का बहुत महत्व है। अपने पास इन बातों का महत्व नहीं है क्योंकि अपने पास इससे ऊंची चीज है ना उसमें टेंप्टेशन है इसीलिए अपने पास महत्व है। नहीं तो है बहुत अच्छी चीज । इसको दूसरे होते हैं न कहां दर्शन दीदार के लिए जाते हैं तो देवी धन तो जाती हैं बहुत महत्व है। लेकिन अपने पास कमाई की चीज है ना यह । तो इसीलिए महत्व है इसका, कमाई का। बाकी है तो यह भी बहुत अच्छी। इसमें और तो कोई बात नहीं है फिर भी अच्छा ही है अनुभव देखना, घूमना, मज़ा है जाना, निराकारी दुनिया, बैकुंठ, सब घूमना फिरना अच्छी हैं ये भी सीन सीनरी देखना चाहिए। अच्छा परंतु सब थोड़ी ही देखेंगे। किस किस का पार्ट होता है। देखो हमने कभी नहीं देखा है। हम कहते हैं कि देखें फिर लौट आएं, ऐसा देखें तो फिर बैठ ही जाए इसीलिए वह इच्छा है कि वह काम करें जो फिर जाए तो लौटें न। यह तो जाएंगे फिर लौट आएंगे ना। फिर इसको यहाँ मेहनत पुरुषार्थ करना होगा। हम ऐसी मेहनत करके जाए तो फिर लौटे नहीं उधर ही खेलते रहे और मौज करते रहें। तो हाँ अभी वह दुनिया तैयार हो जाए तो फिर उसमें बैठी रहें इसीलिए आस वो है ना बड़ी। यह हैं स्वपन, यह सपनों में बाबा खुश करता है। वह फिर होगा प्रैक्टिकल, तो प्रैक्टिकल तो कर्म से होगा ना । यह तो बाबा स्वपन दिखलाते हैं, सींस दिखलाते हैं कि हां देख लो। जैसे होता है ना दिल्ली का दरवाजा आगरा में, वह दिखलाते हैं फिर आगरा दिखलाते हैं, वह देखा है कभी दूरबिनी, ये दिल्ली का दरवाजा देखो, आगरे का ताज देखो, फलाने का यह देखो वो देखो, बाबा भी ये दूरबीनी दिखलाते हैं बैकुंठ का दरवाजा देखो, यह सीन सीनरी देखो, यह निराकार आत्माओं का देश देखो, यह फलाना देखो, यह ब्रह्माजी देखो, यह विष्णु जी देखो यह देखो, देखा? ये जादू की डब्बी देखी है कभी ? तो आगरे का ताज देखो यह देखो दिखलाते हैं। अभी हम चाहते हैं हम प्रैक्टिकल में देखें। अच्छा चलो गो सून कम सून। (रिकॉर्ड हमने देखा हमने जाना शिव भोला भगवान) तो हमने देखा, जाना, समझा सो भी समझ उसने दी अपने जानने की। तो उससे हमने जाना, जब जाना तब पाया। तो उसको जानना है कहते हैं न दिल से पहचानना है। आँखों से नहीं देखने का है दिल पहचाना है, तो दिल से जानना है न। तो जाना और पाया, देखा और पाया नहीं। तो इसीलिए कई समझते हैं ना कि हमने देखा ना तो हमारा द्वार खुल गया, पा लिया। नहीं, देखा और पाया नहीं, जाना और पाया । तो जानने के लिए तो फिर नॉलेज है ना। कोई भी चीज जानी जाती है समझ से और समझ आ करके वह देता है जिससे हम जान करके पहचान, करके उसको पाते हैं। तो अभी देखो पाया है ना उसके द्वारा। वह तो कहता है मैं तो आकर के अभी देखो द्वार खड़ा हुआ हूँ, अभी मैंने गेट खोला है अभी उसको खोल करके और फिर अभी चलो। तो अभी उस बेहद बाप से अपना बेहद का वर्सा पाना। पाना भी क्या है उससे वह भी तो समझना है ना उसका भी तो मालूम होना चाहिए ना, नॉलेज होना चाहिए। सभी बातों का ज्ञान समझ, अभी यह बात समझ दे रहा है मैं क्या, तुम क्या, तुमको पाना क्या है। उसको पाने का भी पता थोड़ी है कि मिलेगा क्या, पाना क्या होता है इसीलिए अभी तक भी कई विश्वास नहीं करते हैं ना कि ऐसा भी कोई मनुष्य हो सकता है एवर हेल्दी एवर वेल्थी यह इंपॉसिबल है। ऐसे कभी हुआ ही नहीं है, कोई हिस्ट्री में नहीं है, कई ऐसे समझते हैं। तो मानते नहीं है, मनुष्य को पता ही नहीं है हम मनुष्य कितने ऊंचे थे। हम मनुष्य के लिए पाने की क्या चीज है, पाने का भी पता नहीं है कि हमको बाना ही क्या चाहिए वह नहीं जानते हैं। और बतलाते हैं तो भी कोई, कोटो में कोई निश्चय करके समझते हैं, नहीं तो बिचारी कई समझते भी नहीं है कि यह होता ही नहीं है इसीलिए हमको रोग ही पसंद है। यह चलना ही ऐसा है हिस्ट्री रिपीट होती है तो यह दुनिया ही ऐसी होती है। तो समझते हैं ऐसे ही दुनिया है और ऐसा ही होता है इसीलिए कई बिचारे पुरुषार्थ ही नहीं करते हैं क्योंकि वह समझ बैठे हैं ना कि बस ऐसे ही दुनिया है। वह आए होश में कि नहीं दुनिया ऐसी मनुष्य ऐसा ऊंचा हो सकता है तब तो वह काम भी चले, पुरुषार्थ भी चले । यह तो बुद्धि अभी बाप ने दी है ना और वह भी किसी थोड़ो की बुद्धि में यथार्थ रीति से बैठता है। अभी यथार्थ रीति से जानना वो बहुत थोड़े। जब जाने कि यह चीज हमें मिल सकती है तो शौक से पुरुषार्थ करें नहीं तो कहेंगे यह तो चला आया है, अच्छा थोड़ा बहुत इतना ही सही जैसे भगवान को भी थोड़ा राजा कर दो, उसको भी खुश कर दो। कैसा जीवनलाल? यह अपने को खुश करना है, उनको नहीं खुश करना है। उनको खुश करने का मतलब है अपने को खुश करना क्योंकि अपने को खुश करने के लिए ही तो हम उसके द्वारा लेते हैं ना । तो ऐसी नही उनको खाली खुश करना है, नही अपने को। अपने को तो खुश करने के लिए सारी जिंदगी करते ही रहते हैं, मनुष्य सारी जिंदगी जो करते हैं काहे के लिए । जिंदगी भर करते हो लेकिन उस से मिलता कुछ नहीं है इतना, फिर भी दुःख अशांति। ऐसा नहीं कोई करता ही नहीं है, करते हो, सारी जिंदगी अभी किसके लिए करते हो? छोटे थे तो बाबा मां-बाप के लिए, बड़े हुए तो मां-बाप बन करके बच्चों के लिए, सारी जिंदगी करते हो लेकिन करते करते करते तो रहते ही हो परन्तु उससे कुछ उससे वो थोड़े ही प्राप्त करते हो। अभी बाप कहते हैं वैसे भी करते ही हो अभी मैं तुमको यथार्थ समझाता हूँ तो क्यों नहीं यथार्थ करके मेरे से लेते हो। ये तो मिलने की आप चीज है न और करते तो ऐसे भी हो छोटे हो तो अपने मां बाप के लिए करते हो और बड़े होते हो तो मां बाप बन करके करते हो। करते तो जिंदगी भर हो। ऐसे नहीं है कि बिना करने बैठे हो, परंतु वो करना तुम्हारा ऐसा है और यह करना देखो तुमको मिलता है तो क्यों नहीं ये करना चाहिए। मैं खाली तुम्हारे करने को बदलता हूँ। करना तो वैसे भी पड़ता है, सब करना पड़ता है। तो वह करना ख़ाली मैं बदलता हूँ तो क्यों नहीं अपने को बदलते हो। अच्छा तो समझ गए हो ना। तो बाप दादा और मां की मीठे-मीठे, बहुत अच्छे सपूत सिकिलधे सयाने, समझदार, नशा चढ़ता है? ऐसे बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग। अभी गुड डे, गुड इवनिंग ये भी टाइम गुड रखने का पुरुषार्थ करने का है। गुड भी कहने मैं तभी आता है जब बेड बैठी है । सतयुग में गुड भी नहीं कहेंगे क्योंकि बेड है ही नहीं। गुड के भेद में बेड, बेड के भेद में गुड कंट्रास्ट है न।वहां कंट्रास्ट की बात ही नहीं है है ही गुड ही गुड। तो बेड भी क्यों कहेंगे, गुड भी क्यों कहेंगे। तो अभी ऐसी दुनिया में चलने का है।