मम्मा मुरली मधुबन

सतयुग का स्थापक कौन है
 


आज गुरुवार है भोग लग रहा है
रिकॉर्ड :-

तुम छोड़ो ना मुझको अकेला कभी……….
ओम शांति । त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव, माँ भी सुनते हो ना गीत में तो माँ उस माँ को, मेरी माँ को कहते हैं समझा, उसको याद करना है । हम भी तो उसको याद करेंगे ना । तो इसको नहीं याद करना है, कोई मनुष्य को नहीं याद करना है । उन्हीं को, जिसकी महिमा है कि त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव । तो अभी तो उससे रिश्ता, संबंध जोड़ना है ना । जोड़ा है कि जोड़ना है ? जोड़ा है । जोड़ ही देना चाहिए । जोड़ने में देरी थोड़ी लगती है । कोई साहूकार हो धनवान हो और उसको बच्चा ना हो और कोई गोद का बच्चा उसको लेना हो तो कोई बच्चा उसका कितने समय में बनेगा? अभी-अभी बनेगा या सोचेगा कि लखपति हो जाऊंगा, करोड़पति हो जाऊंगा तब ? तो कोई ना करेगा बच्चा बनने के लिए ? नहीं । भोपालम समझते हैं ना ? तो कोई लखपति हो और कहे हमको अडॉप्ट करना है बच्चे को, हम को बच्चा नहीं है, प्रॉपर्टी कौन संभालेगा । प्रॉपर्टी का हकदार चाहिए तो हमको किसी को गोद का बच्चा बनाना है तो किसी को बनाए तो कितने में बनेगा ? इतने में और बना और उसी घड़ी वह प्रॉपर्टी का मालिक हो गया जायदाद का । तो अभी देखो कौन कहता है सर्व समर्थ वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी, वह अथॉरिटी कहती है कि अभी मैं आया हुआ हूँ । अभी मेरे बच्चे बनेंगे, वैसे तो बच्चे सारी दुनिया है वह तो बात ही नहीं है लेकिन यह अभी बनना है ना, उससे संबंध जोड़ना है ना, उसके कहे प्रमाण चलना है, उनका हो करके रहना है, उसकी डायरेक्संस पर, उसके मत पर प्रैक्टिकल चलना है ना तो अभी कहते हैं मेरे बच्चे बनो । तो ऐसे के बच्चे बनने में क्यों देरी । जब कोई लखपति करोड़पति का बच्चा बनने में देरी नहीं करते जबकि विनाशी है और यहाँ तो गारंटी है इसकी और यह तो शहंशाह, कहते भी हैं उसको शहंशाह बनाने वाला है एकदम, तो उसका बच्चा बनने में देरी क्यों, जिसकी जायदाद हैवेन, हैवेन में सबकुछ संपत्ति, हेल्थ एवरीथिंग सब प्राप्त, तो हैवेन के मालिक बन जाए, हैवेन के भी मालिक, हैवेन में भी ऊँचा पद तो अगर ऐसी प्राप्ति मिले तो उसे लेने के लिए क्यों अपने को पीछे रखना चाहिए ? झट से दाव तो लगा देना चाहिए हाँ फिर पीछे है बच्चे बनकर के जितना पुरुषार्थ करेंगे, फिर उतना ही स्टेटस को पाएंगे लेकिन पहले बच्चे तो बन जाए जायदाद के ऊपर हक तो लगा ले ना । तो जहाँ अपने लिए स्वर्ग का अधिकार मिल जाए फिर तो उसका बच्चा हो जाना चाहिए न । बच्चे का मतलब ही है जो बाप का फरमान है, आज्ञा है उसी पर चलना बाकी तो और कुछ बात नहीं है ना । वह स्थापन करता है पवित्र दुनिया, इंप्योरिटी की दुनिया नहीं, वो पवित्र, प्योरिटी की मालिक भी तो प्योरिटी की दुनिया को बनाएगा ना इंप्योरिटी का थोड़े ही । नहीं, इंप्योरिटी का विनाश, प्योरिटी की स्थापना । अधर्म नाश, धर्म स्थापना तो इसका मतलब यही है ना कि इंप्योरिटी का नाश और प्योरिटी की स्थापना तो जो चीज स्थापन करता है उसी का ही तो मालिक बनाएगा ना । तो प्योरिटी की वर्ल्ड है ना, प्योरिटी कोई ऐसी ही चीज थोड़े ही है, प्योरिटी की वर्ल्ड है जैसे इंप्योरिटी की वर्ल्ड है तो वह भी बनाता है प्योरिटी की वर्ल्ड । तो उसी वर्ल्ड का मालिक जिस प्योरिटी वर्ल्ड को ही हैवेन कहा जाता है । कई बिचारे समझते नहीं है कि हैवेन क्या चीज है । हैवेन माना ही प्योरिटी वर्ल्ड । यही वर्ल्ड प्योरिटी वाला और प्योरिटी से फिर पीस एंड प्रोस्पेरिटी है ही । जहाँ प्योरिटी है, वह पीस एंड प्रोस्पेरिटी जरूर है क्योंकि कर्म श्रेष्ठ होते हैं ना प्योरिटी से तो कर्म श्रेष्ठ की प्रारब्ध जरूर है । प्योरिटी नहीं है तो तभी यह सब नो पीस नो प्रोस्पेरिटी यह सब है । आज हमारा भारत हमारा देश जो देखो कितना ऊंचा था, जिसको कहते हैं सोने की चिड़िया थी । भारत को गोल्डन स्पैरो कहते थे ना आज देखो कंगाल, मोहताज भीख मांगते हैं दूसरों से, अन्न के लिए, पैसों के लिए मदद, सब मदद नहीं तो इसके पास कितना अथाह सब था । तो अब यह क्यों हुआ है क्योंकि यहाँ से प्योरिटी चली जाने के कारण प्रकृति भी पीछे पाओं करके चली गई है इसीलिए यह सब हाल है । तो अभी तो बाप समझाते हैं ना बच्चे वही चीज फिर मैं बना रहा हूँ जिसमें तुम सदा सुख को प्राप्त करो । इसी को ही गांधीजी भी कहता था रामराज्य, इसी को ही सब कहते हैं नई दुनिया, नया भारत । भले ही दिल्ली बनाते हैं न्यू दिल्ली, अभी न्यू दिल्ली थोड़ी ही है, ओल्ड वर्ल्ड में न्यू दिल्ली कहाँ से आई । न्यू तो न्यू वर्ल्ड में होगी न । यह तो है ही ओल्ड वर्ल्ड, इसमें जो भी नया बनाते हो वह भी पुराना क्योंकि जो बनता है वह अभी डिस्ट्रक्शन होना है । यह सब इतने जो बनाए हैं महल मारियां देखो अशोका होटल आदि आदि ये कितनी इमारतें बनाई है अच्छी-अच्छी, यह अभी-अभी बनी है यह है हिरण के पानी मिसल । हिरण के पानी समझते हो मृगतृष्णा । इसको अंग्रेजी में भी कोई शब्द कहते हैं मृगतृष्णा को, तो मृगतृष्णा वह मिसाल बतलाते हैं ना जैसे मृग होता है ना हिरण, देखा है हाँ क्या कहते हैं? मिरेज, उनको कहा जाता है मृगतृष्णा, अंग्रेजी में कहते हैं मिरेज यानी उसका मतलब है कि वह हिरण जो होता है ना, वह रेत पर घूमते हैं तो वह दूर से देखते हैं तो वह रेत जो सूर्य के उसमें चमकती है उसको जैसे पानी दिखाई पड़ता है परंतु आगे जाता है तो पानी नहीं है लेकिन वह रेत है तो इसको कहा जाता है मृगतृष्णा वह दृष्टांत है बड़ा मशहूर है । तो यह भी मृगतृष्णा यानी यह समझते हैं कि हमने वह गोल्डन स्पैरो वाली भारत का स्वराज्य लिया है परंतु दैट इज नॉट गोल्डन स्पैरो वह स्वराज स्वराज कह करके वह समझते हैं अभी हमको वह स्वराज मिला है लेकिन वह स्वराज्य तो नहीं है ना । स्वराज्य तभी जब पहले सेल्फ रूल, आत्मा का पहले सेल्फ रूल अर्थात अपने इस कर्म की श्रेष्ठता में होना चाहिए । पहले यहाँ कहाँ है सेल्फ रूल? इधर ही सेल्फ रूल चलाने की पावर नहीं है तो फिर बाकी रूल चलाने की पावर कैसे होगी, वह तो लड़ेंगे झगड़ेगे जो अभी हो रहा है । तो बाप कहते हैं बच्चे पहले तो यही पावर प्राप्त करो । आत्मा को सेल्फ रूल चलाने की, अपने कर्म के ऊपर सेल्फ रूल चलाने की ताकत होनी चाहिए जिसको कहा जाता है स्वराज, तो स्वराज पहले इधर । इधर तो पहले मरो तो मरो, रोगी बनो तो रोगी बनो सेल्फ रूल कहाँ है? तो पहले यहाँ पावर आनी चाहिए, उस पावर के आधार से फिर वह पावर आएगी । यह है रिलीजोपॉलीटिकल, देखो दोनों है ना रिलीजोपॉलीटिकल, तो अभी हम यह जो प्राप्त कर रहे हैं दोनों पावर्स रिलीजो भी पॉलिटिकल भी जिससे हम अपना सेल्फ रूल पा करके फिर उससे हम रूल करेंगे, कहाँ? स्वर्ग का, स्वर्ग का अधिकार तो रिलीजोपॉलीटिकल दोनों पावर आती है । अभी तो ना रिलीजो पावर है ना पॉलीटिकल पावर है । फर्स्ट रिलीजो चाहिए ना । रिलीजो पावर है तो पॉलिटिकल । अभी देखो पॉलिटिकल अलग है रिलीजन अलग है इसीलिए सब पावर्स अलग-अलग परंतु आज रिलीजन की रिलीजन पावर नहीं रही है पॉलिटिकल्स की पॉलीटिकल पावर नहीं रही है । दोनों की पावर चली गई है क्योंकि वह जो हमारी सुप्रीम सौल है ना उससे कनेक्शन नहीं है, संबंध नहीं है इसीलिए पावर कहाँ से मिले, शक्ति कहाँ से मिले, बल कहाँ से मिले, इस तरह से यह काम चले इसलिए आज संसार की हालत लड़ाई-झगड़े, दुख-अशांति कोई नहीं किसी की सुनता, कोई नहीं किसी की मानता यह सब बातें बनी है इसीलिए बाप कहते हैं यह दुनिया कहाँ तक चलेगी । ऐसी दुनिया कहाँ तक चलेगी, अभी ऐसी दुनिया का करता हूँ डिस्ट्रक्शन इसीलिए कहते हैं अभी बच्चे तुम अपनी प्योरिटी को अपनाओ तो फिर इसी कर्म की श्रेष्ठता की प्रारब्ध तुम नहीं दुनिया में पाएंगे फिर डबल पावर, यह जो देवताएं हैं देखो डबल पावर है ना । रिलीजो पॉलीटिकल दोनों पावर्स की निशानी है । वह किंगडम का ताज भी है और प्योरिटी का भी दिखलाते हैं ना लाइट का चक्र तो यह है प्योरिटी की पावर, तो इनके पास डबल पावर थी इसलिए इनको कहते हैं डबल क्राउन किंगडम यानी दोनों पावर्स प्योरिटी की भी और किंगडम की भी दोनों पावर्स है ना तो देखो किंगडम भी है और प्योरिटी भी है क्योंकि प्योरिटी का पावर था । परंतु फर्स्ट प्योरिटी देन प्रोस्पेरिटी और ये सब [पावर्स । और लॉ भी है कि राजा रानी और प्रजा । अभी तो है प्रजा का प्रजा पर राज्य, तो प्रजा का प्रजा पर राज्य क्या करेगा । प्रजा प्रजा पर राज्य कर सकती है ? लॉ है असुल जैसे घर में भी होता है एक बाप एक माँ फिर बच्चे तो मां-बाप और बच्चे । आगे भी ऐसा होता था आजकल राजाओं का नाम खराब कर दिया है क्योंकि वो राजाओं का तो उठा लिया है ना तो वह राजाओं का नाम सुनते हैं ना कि हाँ भाई सतयुग के क्या बनेंगे, भाई महाराजा बनेंगे या महारानी तो वो समझते हैं राजा क्या, राजाओं तो तो उठा दिया कांग्रेश गवर्मेंट ने इसीलिए राजाओं का नाम खराब कर दिया है परंतु वह राजाई है नहीं । ये राजाई है वो राजाई जिसमें इन विकारी राजाओं ने जैसे राज चलाया वैसे नहीं, वो हैं की जैसे घर में माँ बाप होते हैं न, बच्चों की संभाल करते हैं वैसे राजे महाराजें प्रजा की संभाल रखते थे तो सबमें माँ बाप की पलना बच्चों के लिए श्रेष्ठ गिनी जाती है न । जो पालना मां-बाप देते हैं वैसे कोई और पाल सकता है वैसे ही प्रजा के लिए राजा रानी भी जरूरी है तो प्रजा की पालना तभी हो सकती है जब राजा रानी परंतु कौन से राजा रानी? वह निर्विकारी वो पालते थे मां-बाप के सदृश्य। वह प्रजा प्रजा नहीं, बाकी अक्षर तो प्रजा कहने में आता है लेकिन वो प्रजा राजा, आज के प्रजा राजा की तरह नहीं थे। वह देखा है ना तो बेचारे ह्रास में आ जाते हैं यह तो हमको चाहिए ही नहीं। वह तो इन विकारी राजाओं को उठा लिया है ना इसीलिए यह जो प्रजा का प्रजा पर राज्य है यह सिस्टम पसंद करते हैं इसीलिए कि सबको अधिकार रहे, हर एक को परंतु इनमें फिर इनका आपस में धनी धोरी तो कोई हुआ ही नहीं । यह तो आपस में सब का धनी इसीलिए देखो कोई किसी का है? आज मिनिस्टर है कल उतारो, मारो लात । आज यहां कल वहां, देखो ना कोई किसी का ना किसी का, देखो लगा क्या पड़ा है। आज कोई छोटा भी हो ना दो पैसे वाला वह भी किसी को लात मारे न बड़े को तो मार सकता है। तो आज देखो हाल क्या हो गया है इसीलिए बाप कहते हैं यह प्रजा पर प्रजा का राज्य, यह कोई राज्य थोड़े ही है। इसी राज्य को कहा है मृगतृष्णा मिसल दिखता तो है कि हां इससे हमको बहुत स्वराज्य मिला है लेकिन यह स्वराज थोड़े ही है । स्वराज तो वह था जिसमें पावर थी और जिससे तुमने सुख भोगा। तो यह तो अभी अभी हुआ है अभी अभी खत्म होगा। इसको देखो कितना सोलह, सत्रह, अठारह बरस हुआ मेरे ख्याल में अभी तो अभी बस बाकी थोड़ा समय है। इसमें ये कांग्रेस राज्य का अभी फिर एंड ही आना है । यह थोड़े समय का स है इसीलिए बाप कहते हैं इसको कहा जाता है मृगतृष्णा मिसल जैसे वहां पानी है नहीं परंतु वह समझते हैं पानी है तो यह सभी मिसाल है । इसी पर एक द्रोपदी का भी मिसाल है ना, वह द्रौपदी के महल में दुर्योधन गया था एक अखानी है शास्त्रों में की द्रोपदी ने दुर्योधन को, हां दुर्योधन था शायद तो उसको बुलाया था , मेहमानी दी थी। तो वह जब आया ना उनके महल में तो उनके महल में एक टेंट की तरह से कुछ बना हुआ था परंतु बना था एक पत्थर सा था जिसको कहा जाता है सप्तक मणी, वह चमकती है दूर से तो जैसे दूर से पानी दिखाई पड़ता था । तो वह समझा यह पानी है, नहाने का कोई तालाब है तो कपड़े वपड़े उतार कर के नहाने की तैयारी की उसमें। तो वह जो द्रौपदी खड़ी थी ना सखियों के साथ उनको हंसी आ गई, उसने कहा देखो तो सही, बिचारा कपड़े वपडे उतार के नहाने को लगे हैं परंतु देखता नहीं है कि यह पानी नहीं है और कूदने को तैयार हुआ है। तो उसको हंसी आई और उसको जरा लज्जा जाए देखा ऊपर क्या है । अरे देखा ये तो पानी नहीं ये तो पत्थर है सप्तक मणि, चमकती है ना वैसा होता है तो दूर से जैसा चमकता है पानी जैसा लगता है तो उसको लज्जा आ गई। तो यह दृष्टांत है उसमें यह समझते हैं कि हां यह हमको माल मिल गया है, तो सारा अपना समझते हैं ये ही स्वराज है पानी समझ के कपड़े कपड़े उतार के उसमें लग गए हैं परंतु यह चीज वह तो चीज नहीं है ना, यह सब दृष्टांत हैं। सिद्धांत इन का जो है प्रैक्टिकली वह यह अभी की जो सब चल रही है ना तो यह तो समझ रहे हैं ही हमको जो स्वराज और वह जो चीज है वह यही है परंतु यह चीज नहीं है । वह तो जो था स्वराज वह स्वराज तो प्योरिटी के पावर वाला था। इसमें प्योरिटी की पावर है नहीं इसीलिए बेचारे मोरालिटी और भ्रष्टाचार फलाना यह सब चीजें उठा रहे हैं ना। अभी उसी में कहाँ से यह स्वराज का सुख पा सकेंगे, ये नहीं पा सकेंगे । स्वराज तभी है जब प्योरिटी है । अभी वह प्योरिटी वाला स्वराज परमात्मा के द्वारा बन रहा है । यह है राम के द्वारा बना हुआ राज्य, राम माना परमात्मा जिसने बैठकर के यह राज्य बनाया जिसको सूर्यवंशी चंद्रवंशी राजाओं ने फिर प्राप्त रखा है तो वो ही बैठ करके देखो बना रहे हैं । ये राजधानी बना रहे हैं ना, यह परमात्मा के द्वारा अभी राजधानी इस्टैबलिश्ड हो रही है परंतु गुप्त वेश में। अभी जो कर्म करते हैं इसके द्वारा फिर यह जेनरेशंस में चलेंगे वह राजधानी । तो यह अभी परमात्मा यह हेवेनली किंगडम, वह अंग्रेजी में भी कहते हैं ना हेवेनली किंगडम, तो यह देखो अभी हेवेनली किंगडम परमात्मा बना रहा है तो यह अभी हैवेन के लिए किंगडम तैयार हो रही है अर्थात यह एक जन्म की बात है, बस इसी जन्म के बाद उसी किंगडम में । तो बनना तो अभी है ना। जब कर्म करेंगे तभी तो उसमें प्रॉब्लम पाएंगे ना वह किंगडम प्रालब्ध की है ना। वह कोई लड़ाई से प्राप्त नहीं होने की है या कोई किसी और तरीके से नहीं है। वह है अपने कर्म श्रेष्ठ से प्रालब्ध बनाने की किंगडम। तो वह प्रालब्ध की ताकत चले हुए हैं तो यह देखो अभी बन रही है। यह अभी परमात्मा के द्वारा उस हेवेनली किंगडम स्थापन हो रही है अर्थात वह इस्टैबलिश्ड हो रहा है । तो यह बातें सभी समझने की है कि यह काम कौन सा है और कौन कर रहा है और यह अभी टाइम कौनसा है । यह वही टाइम है जिसमें एक ही हवेनली किंगडम जब थी ना तब दूसरी किंगडम नहीं थी तो ऐसी ब्रह्मचर्य का स्कूल भी खोला था । आज भी बहुत है जो गांधी जी के बहुत पक्के फॉलोअर्स हैं वह ब्रह्मचारी रहते हैं। उसने भी उठाया था, कुछ कुछ बातें उठाई थी परंतु फिर भी मनुष्य का काम हो गया ना । यह तो परमात्मा की अथॉरिटी है जो इस तरह से काम करा रहा है, नहीं तो और किसी से यह होना नहीं है। देखो साधु सन्यासी हैं, भले वह खुद घर बार छोड़कर जाते हैं समझते हैं ना ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी है तभी तो घर छोड़ कर चले जाते हैं, स्त्री को छोड़ कर चले जाते हैं समझते हैं स्त्री नागिन है। वह ऐसे नहीं कहते हैं एक नारी सो ब्रह्मचारी, अगर एक नारी कहते हैं शास्त्रों में परंतु अगर एक नारी सो ब्रह्मचारी तो नारी के साथ रहे ना, अपनी नारी क्यों छोड़ कर जाते हैं। अगर एक नारी सो ब्रह्मचारी, अगर ऐसा ही होता तो अपनी नारी क्यों छोड़ कर जाते हैं । वह तो कहते हैं ना अपनी नारी से तो कुछ भी विकार में जाए वह विकार नहीं है, हां पर स्त्री गमन करना यह विकार है परंतु वह सन्यासी तो अपनी स्त्री छोड़कर जाते हैं फिर क्यों छोड़ कर जाते हैं। वह तो हमारे सामने जीता मिसाल है ना। जीते जागते बैठे हैं ना सन्यासी लोग। पूछो उनसे कि आप लोग कहते हो शास्त्रों के आधार पर कि भाई एक नारी सो ब्रह्मचारी फिर आप अपनी एक नारी क्यों छोड़ कर चले जाते हो? बैठो नारी से और करते एक नारी रख कर के फिर ब्रह्मचारी हो करके रहो ना, फिर भागते काहे के लिए हो ? फिर क्यों यह सन्यास धारण करते हो और घर छोड़ते हो तो कहनी एक और करनी दूसरी यह कहाँ की रीत है? जहाँ जो अगर है हिम्मत तो एक नारी रख के दिखाओ परंतु नहीं ब्रम्हचर्य का जरूर है परंतु उनका कमजोरी का सन्यास है । वो नहीं हिम्मत करते हैं कि उनके सामने रह करके जीता जा सकता है और यहाँ देखो, हम यह दावा रखते हैं कि हम सामने रह करके जीत सकते हैं, क्योंकि हमको बल किसका है , सर्व समर्थ परमात्मा के साथ योग है ना इसीलिए उसकी ताकत यह काम कर सकती है। उनको बिचारों को कोई यह योग का और उसके बल का पता ही नहीं है, किससे बल मिले? तो वह नहीं है ना। यहाँ तो प्रैक्टिकल बाप कहते हैं मेरे बच्चे हो , तो हम उनके बच्चे, वह भी कहेगा मैं भी उनका बच्चा, स्त्री भी कहेगी मैं भी उनका बच्चा, तो फिर बच्चा बच्चा आपस में भाई भाई हो गए ना, आत्मा के हिसाब से । फिर भाई भाई में विकार की क्रिमिनल आई कहाँ से आई अथवा भाई-बहन भी कहो, ब्रह्मा की औलाद के हिसाब से तो भी भाई-बहन हो गए। फिर भाई बहन के हिसाब से भी फिर क्रिमिनल आई कैसे लगाएंगे। फिर वह विकारी दृष्टि जा नहीं सकती है ना भाई बहन में । तो देखो बाप प्रैक्टिकल आ करके वह संबंध जुटाता है ना। इसी हेल्प से फिर निर्विकारी रहने का बल मिलता है तो यह सभी चीजें हैं बाकी ऐसे ही कोई का रहना तो बड़ा मुश्किल है ना इसीलिए परमात्मा कहते हैं इसमें मेरा बल चाहिए । मैं ही आकर के अपनी ताकत से, अपने बल से यह धारणा कराता हूं । तो यह सभी चीजों को समझना है और समझ करके अभी बाप से अपना अधिकार लेना है क्योंकि पवित्र दुनिया का अधिकार है ना तो उसके लिए पवित्र रहना बिल्कुल जरूरी है। वैसे भी देखो बच्चे पढ़ते हैं तो ब्रह्मचारी बच्चे पढ़ते हैं ना, पढ़ाई के समय तो यह भी पढ़ाई है ना। तो बाप कहते हैं अभी यह मैं पढ़ा रहा हूं ना , यह जितना समय पढ़ाई का है पवित्र रहो। कम से कम घर में शुभ कार्य भी होता है, ऐसे कई कार्य होते हैं तो उस टाइम में ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। कभी कोई घर में पाठ रखाते हैं या कुछ करते हैं ऐसा शुभ कार्य होता है तो वह ब्रम्हचर्य का पालन रखते हैं। तो रखते हैं उसका माना अच्छा है ना, जैसे मंदिर में जाते हैं भाई नहा धोकर स्वच्छ होकर जाना है तो घर में भी कुछ ऐसा होता है तो वह उसी समय स्वच्छता की यह पालना करते हैं तो मानो अस्वच्छता है ना यह , तब तो उसकी पालना करते हैं ना कि भाई ब्रम्हचर्य में रहना है और साथ-साथ अभी भी बाप कहता है कि अभी तो बच्चे मैं आया हुआ हूं। अभी तो मेरा पाठ चल रहा है यह नॉलेज का, तो मैं उपस्थित हूं। मेरी प्रेजेंट में अभी थोड़े समय जितना मैं हूं उतना तक तो अपनी पवित्रता को पालन करो ना और वह है ही इतना टाइम, यह काम करा कर ही उसको जाना है इसीलिए कहते हैं अभी भगवान आया है तो घर में कोई ऐसा गीता पाठ लगाते हो या कोई ऐसा शुभ कार्य शास्त्र का भी रखते हो तो भी शुद्ध रहते हो। अभी तो मैं स्वयं चैतन्य आया हुआ हूं ना तो मेरे आने पर तुम विकारों में गोते लगाते रहेंगे ? नहीं, इसीलिए कहते हैं मैं आया हूं कम से कम इतना तो अपना रखो और अभी आया है, यह तो रहेगा ही अंत तक। वह तो जानते हैं कि हां अभी डिस्ट्रक्शन और कंस्ट्रक्शन का काम तो मेरे होते ही होने का है इसीलिए अभी पवित्र रहा तो उसकी जेनरेशंस की प्रलब्ध बन ही जाएगी इसीलिए बाप का फरमान है कि बच्चे अब पवित्र रहो । तो सब बातें हैं एक तो मौत हैं, मौत के समय थोड़ी विकारों का ख्याल किया जाता है, मौत के समय भगवान को । दूसरा तो अभी भगवान आया है तो भगवान आया है तो स्वच्छ रखना चाहिए ना । उसके आगे थोड़े ही ऐसे रहेंगे वह कहते हैं अभी स्वच्छ रहो। और यह हिसाब भी है कि पवित्र दुनिया के लिए पवित्र रहना ही है । तो सभी बातों में, यह योग लगाने के लिए भी इसकी आवश्यकता है । तो अभी सभी बातें दिखलाती हैं कि हमको पवित्र रहना चाहिए, यह अंतिम जीवन है। अभी मानो यह अंतिम श्वास है, यह जीवन है लास्ट एकदम तो इसमें हमको अपने बाप को याद रखना है और पवित्र भी रहना है । तो यह जरूरी चीजें हैं जिससे हम अपने जीवन को आगे कर सकते हैं । और आज तो हालत में भी ऐसी ही हैं , गवर्नमेंट भी कहती है बर्थ कंट्रोल, अभी तो उनका हिसाब भी तंग हो गया है इसीलिए अभी बाप भी कहते हैं कि विकार कंट्रोल इसीलिए इन सभी बातों को बाप बैठकर के समझाते हैं तो इन सब बातों को समझ करके अभी अपने बेहद बाप से पूरा पूरा वर्सा पाना है। तो वर्सा पाने वाले को अपना यह ध्यान रखना है तो पांचों विकारों से पवित्र उसने भी काम, पहला जो शत्रु है । पहला पहला सबसे तो देह अभिमान, जिसको बॉडी कॉन्शियस कहते हैं। अपने को पहले देह ना समझ के आत्मा समझना। तो पहला तो वह है , उसके साथ फिर फर्स्ट यह विकार है । इसके साथ पीछे क्रोध, लोभ यह सभी तो हां यह चीज को पकड़ने से पहली पहली से फिर बाकी जो है ना वो ठंडे पड़ जाएंगे क्योंकि हमारा हेड पकड़ गया, हेड को जीत लिया तो पीछे लश्कर कहेंगे फिर हमारी क्या दाल गलेगी तो वह ऑटोमेटिक ठंडे पड़ जाएंगे । तो यह है पुरुषार्थ जो अपने में लाना है । खान-पान की भी परहेज रखनी है क्योंकि इसमें खानपान भी पवित्र शुद्ध जिसको कहा जाए वह खानपान चाहिए इसीलिए कोशिश करते हैं कि बाप को याद करके अपने हाथ से बनाया हुआ खाना तो उसमें हेल्प रहती है। कहा हुआ है ना जैसा आना वैसा मन, खानपान का भी बुद्धि के ऊपर असर आता है इसीलिए यह सभी परहेज है जिसको भी प्रैक्टिकल में लाना है और उसके आधार से जैसे डॉक्टर लोग होते हैं ना रोगी को कहेंगे कि भाई तुम्हारे लिए यह दवाई भी है उसके साथ यह परहेज भी रखना है खट्टा नहीं खाना, मीठा नहीं खाना तुमको शुगर की शिकायत है तुमको यह संभाल रखने की है, देगा ना परहेज भी देगा तो यह भी रूहानी परहेज है। तो यह इलाज भी करना है, योग भी रखना है और उसके साथ यह परहेज भी सब है , तो परहेज से क्योंकि अभी धारणा बना रहे हैं ना तो यह मुख्य मुख्य जो है धारणाएं परहेज की वह रखने की है जिससे क्या है हमको हेल्प मिलेगी, इसकी भी हेल्प मिलती है इन सब बातों से, नहीं तो फिर अन्न दोष उससे भी सही बुद्धि जो है ना वह उल्टी हो जाती है यह शास्त्रों में भी बहुत मिसाल है कि एक ने किसी के हाथ का खाया, फिर उसकी बुद्धि ऐसी उल्टी हुई तो कहीं जाकर चोरी की फिर उसने सोचा कि भाई क्यों हमने आज चोरी की हमारे मन में क्यों आया चोरी का ख्याल तो उसने ख्याल किया कि हां मैंने आज ये खाया ना इनका तो उसे हमारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई तो यह सब शास्त्रों में भी है कि उसका खाया तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई ऐसी ऐसी बातें तो यह सभी है । अन्न दोष जो कहा हुआ है संग दोष, संग का भी है जैसा संग वैसा रंग इसीलिए संग की भी संभाल रखनी पड़ती है इसीलिए कहते हैं जितना हो सके इस संग को अपने साथ रखेंगे तो उसके लिए युक्तियां दी जाती हैं, सर्विस करो, यह करो, वह करो तो बुद्धि इसमें ही होगी ना वह संग बना रहेगा, इससे क्या होगा बचे रहेंगे, उससे कोई ऐसा आयुक्त, अयोग्य कार्य नहीं होगा जिसको बुरा कहा जाए। तो बुराई से छूटे रहेंगे तो यह सभी धारणाएं हैं जिन बातों के ऊपर भी अटेंशन देना है । अच्छा आज थोड़ा भोग का है इसीलिए वाणी थोड़ी छोटी सुनाते हैं फिर इसको भी टाइम देना है। अच्छा आज यह नई बैठी है ? फिर क्या बाबा को याद करती हो? किसी ने मोह तो नहीं है ? परमधाम में ? अच्छा कोई बच्चे बच्चे में ? नहीं? अच्छा यह तो सर्टिफिकेट दोनों का लेना पड़ेगा इनसे भी पूछना पड़ेगा कि यह ठीक कहती है या रॉन्ग कहती है, अच्छा फिर आप दोनों की कचहरी करेंगे। अच्छा बहुत अच्छा अगर एक में मोह है ना? किस में मोह है ? शिव बाबा में? अच्छा। अच्छा देखेंगे । देखना, शिव बाबा सुन रहा है । नहीं तो बाबा कहेगा नहीं देखो झूठ बोलती है, इसका किसी और में मोह है, ऐसा तो नहीं है ना? एक में है ना ?अच्छा! तब ठीक है। अच्छा! चलो अभी जाओ, जिसमें मोह है उसके पास, याद करो उसको, चलो हां बाबा बहलाएंगे तुमको। फिर हां गौ सून कम सून । खेल पल में बैठ नहीं जाना है, बच्चे जो पढ़ने वाले होते हैं उसको कहा जाता है बहुत खेलकूद में अटेंशन नहीं, पढ़ाई में भी अटेंशन देना है। ऐसे ही फिर बहुत जाते हैं ना वहां, मजे देखते हैं तो फिर बैठ जाते हैं इसीलिए यहाँ कहते हैं गो सून कम सून। याद प्यार देना सबका, कहना एक भूपालम आता है और देखो वो अच्छी तरह से बाबा पूछना कि भूपालम चलेगा स्वर्ग में कि हां यही बैठ जाएगा । वह तो बाबा कहेंगे जो करेगा सो पाएगा । बाबा कोई ऐसा नहीं है जन्मपत्री ऐसे ही देखकर बताएगा, कभी नहीं बताएगा । भले जानता है पर किसी को बताएगा थोड़ी, हार्टफेल्ट थोड़ी करेगा किसी का । अगर किसी को कहेगा कि भाई यह नहीं उठेगा , वह तो बिचारा हार्ट फेल हो जाएगा कि हां भाई भगवान कहता है कि नहीं उठेगा फिर क्या उठेगा । ऐसे थोड़ी कहेगा वह तो कहेगा कैसा भी है ना हां उठेगा, बहुत अच्छा करेगा, बाप को तो पुल करना है ना । वो ऐसी बातें थोड़ी ही सुनाएगा, वह कहेगा नहीं उठना चाहिए पुरुषार्थ रखना है और जो करेगा तो पाएगा। बाकी आप थोड़ा समझो अच्छी तरह से, आप थोड़ा टाइम लेकर के आइए कोई घंटा। आप इंग्लिश में, क्योंकी हिंदी भाषा शायद आपको इतनी ना भी समझ में आए तो आपको इंग्लिश में देंगे । अच्छी तरह से आपको समझाएंगे और इसी पर सारा तो यह नॉलेज की सारी आइडिया आपके पास हो जाएगी, उससे फिर औरों को भी आप समझा सकेंगे और अपने जीवन में भी इसका पूरा लाभ ले सकेंगे तो यह सभी बातें आपके ख्याल में होनी चाहिए आत्मा क्या परमात्मा क्या किससे योग रखना है, यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, ये वर्ल्ड हिस्ट्री का कैसा है यह सभी बातों को समझना चाहिए। अभी कौन सा पीरियड है टाइम प्रेजेंट, ये कैसा अभी चेंज होने का टाइम है यह सभी बातों का नॉलेज होना चाहिए तो फिर आप आएंगे अच्छी तरह से थोड़ा अकेले, अभी तो क्लासेस के टाइम पर आते हो परंतु कोई ऐसा टाइम भी रखो एक घंटा या तो क्लास के थोड़ा पहले आओ आधा घंटा सवेल में तो पहले आपको थोड़ा समझाएं आधा घंटा पौना घंटा, पीछे फिर क्लास में बैठेंगे। सवेल आता है तो ऐसे फिर कोई समझाए। इनको इंग्लिश वाले दो जिसमें इनको सहज होता हो समझने में क्योंकि बुद्धि को खींचना पड़ता है ना हिंदी भाषा नहीं इतनी जानते होंगे तो बेचारे कोई अक्षर समझेंगे कोई नहीं समझेंगे तो इसको सीधी तरह से या कन्नड़ी या जो भी जानते हो उसको देना है। अच्छा चलो, याद प्यार देना मम्मा की भी देना। अच्छा चलो।( रिकॉर्ड बजा ) घर जाएंगे, अभी प्रेम के सागर, उसको लवफुल भी कहा जाता है ना गॉड को। तो अभी कहते हैं जरूर उसने कभी आ करके हमको लव किया है ना हम बच्चों को कभी आ करके उसने लव किया है। ऐसे नहीं हम ऐसे ही लवफुल कहते हैं, हम दुखी बैठे हैं और वह लवफुल है। नहीं, उसने जरूर कोई हमको प्यार किया है तो प्यार का कोई सबूत होगा ना। बाकी यह प्यार थोड़े ही है कहे कि हां गॉड लवफुल है गॉड ब्लिसफुल है गॉड ऐसा है। गॉड से क्या लव मिल रहा है दुख अशांति में दुखी हो रहे हैं यह लव है? नहीं, लव कैसा उसने आ करके हमको जो पवित्रता की धारणा करा करके हमको सर्व सुखों का दिया है तो लव सबसे श्रेष्ठ हो गया ना। उसके जैसा लव हमको और कोई थोड़े ही कर सकता है इसीलिए उसको लवफुल कहते हैं कि लव का भी सागर है ओसियन ऑफ लव, ओसियन ऑफ नॉलेज, उसको ओसियन, सबका ओसियन कहते हैं ना क्योंकि वह बेहद, हद नहीं वह है बेहद, सबसे ऊंचा। तो देखो अभी वह बाप आ करके हम बच्चों को इतना सुखी बनाने का यह साधन बतला रहा है, कंप्लीट सुख का साधन। तो ऐसा साधन और कोई बतला नहीं सकते हैं इसीलिए कहते हैं यह तरीका , यह जो है इससे तुमको कंप्लीट सब कुछ प्राप्त रहेगा तो ऐसे बाप से प्रेम रखना चाहिए ना । तो अभी बाप कहते हैं मेरे से प्रेम रखो, मेरे से संबंध रखो तो फिर मेरे लव से, तभी तो मेरे से पाएंगे ना । ऐसे थोड़े ही खाली मैं लव करूंगा तुम ना करेंगे यह तो ऐसा भी नहीं बनेगा। तो यह तो फिर जब दोनों तरफ से तुम भी मेरे संबंध में आएंगे तब तो, ऐसे तो मैं सबको लव करता ही हूं ऐसे तो मेरे बच्चे हैं सब ऐसे तो जनरली तो हैं ही लेकिन फिर भी तुम खास मेरे आगे सपूत बनेंगे तब तो होगा ना । लौकिक में भी सपूत बच्चे के ऊपर बाप का प्रेम ज्यादा रहता है कि भाई यह सपूत है लौकिक में भी होता है ना। जैसे कहा है ना गीता में भी कहा है इसमें ऐसे नहीं परमात्मा की दो आंखें हैं नहीं कहा है ज्ञानी तू आत्मा मुझे प्रिय हैं यह खुद भगवान के वर्संस हैं। गीता में पढ़ा होगा ना कहा है ज्ञानी तू आत्मा मुझे प्रिय है तो उसका माना ज्ञानी आत्मा मुझे प्रिय है अंडरस्टूड अज्ञानी आत्मा नॉट प्रिय। अंडरस्टूड हुआ ना, कहा भले नहीं है परंतु कहना कि ज्ञानी आत्मा मुझे प्रिय है तो उससे सिद्ध हो जाता है ना। तो जरूर है कि वह मुझे जो ना है ज्ञानी वह मुझे प्रिय नहीं है । तो भगवान को दो आंख थोड़ी ही है, द्वैत थोड़ी हुआ। नहीं, द्वैत नहीं है यह तो लॉ है ना। जरूर है जो जितना अपना पुरुषार्थ रखते हैं, वो अपने प्रारब्ध को पाते हैं।( थोड़ा भोग का बताइए यह नए हैं) अभी जरा इसके ऊपर समझाते हैं क्योंकि नए-नए है ना उनको उठेगा कि यह क्या है तो यह समझने की चीज है। अभी देखो पहले हम अपना अनुभव सुनाते हैं अभी इसको कहा जाता है यह तो कॉमन नाम भी सुने होंगे ट्रांस, ध्यान । अभी यह दिव्य दृष्टि से इनको मानो बाबा , गॉड कहो परमात्मा कहो वह दिव्यदृष्टि दाता वही है । अभी यह तो उनका काम है ऐसे नहीं है कि हमने कुछ इसको भेजा या अगर भेजने का होता तो पहले तो हम जाते, हमारे में कुछ उसका, नहीं। यह तो बाबा है जिसको भी ले जाते हैं। वह गीता में भी है एक परोक्ष एक अपरोक्ष पढ़ा है न, एक देखे हुए एक बिना देखे हुए । अभी देखो यह देखती है, हम बिना देखे, हम कभी नहीं जाते हैं परंतु कहा है देखे हुए से भी बिना देखे जो है ना वह आगे जा सकते हैं क्योंकि हमको तो फिर भी देखी हुई चीज का ज्ञान चाहिए न। अभी हमारे सामने यह रखा है हमको पता नहीं यह क्या है तो नॉलेज चाहिए ना, फर्स्ट नॉलेज तभी हमको होगा कि नहीं भाई यह माइक्रोफोन है, इसमें आवाज करने की चीज है मानो हम केवल देखें और पता ना हो तो हम क्या कहेंगे, पता नहीं यह क्या चीज है , पता ही नहीं इससे क्या होता है तो फर्स्ट नॉलेज नॉलेज से वैल्यू होती है किसी चीज की। तो यह भी चीज ऐसी है कि हमको ज्ञान चाहिए और कहा भी हुआ है ज्ञान बिना गति नहीं है , ऐसे भी नहीं कहा है ध्यान बिना, देखे बिना गति नहीं है नहीं, ज्ञान बिना । जो देखते हैं उसका नॉलेज चाहिए ना तो अभी यह नॉलेज के ऊपर सारा है। तो है चीज वह भी परंतु यह भी कोई बुरी तो चीज नहीं है। यह भी फिर देखना है ना तो अभी यह है । कोई-कोई जाती है , जैसे मीरा थी। आप लोगों ने मीरा का तो बड़ा सुना होगा ना वह मीरा जाती थी ट्रांस में, कृष्ण को देखती थी उसके साथ रास करती थी, उससे चॉपर खेलती थी चौपर समझते हो ना, वो चौपर का खेला होता है न वह खेलती थी दूसरे समझते थे इसके साथ तो कोई है नहीं क्योंकि दूसरों को तो दिखाई नहीं पड़ता था , कहते थे यह तो पागल है। यह पगली हो गई है । उनको पागल समझते थे लेकिन वह देखती थी दिव्य दृष्टि से । उनको कृष्ण से रास करना बोलना हंसना यह सब करती थी । वो दूसरे को तो दिखाई नहीं देता था तो समझते थे अकेली हंसती है , ये ऐसा करती है तो पगली हो गई है परंतु उनको तो अंदर अंदर से सब दिखाई पड़ता था तो इसको कहा जाता है दिव्य दृष्टि तो यह दिव्य दृष्टि मिलती है। जैसे हम रात को सपने देखते हैं ना, स्वप्न में नहीं देखते हैं कभी खेलते भी हैं कभी हंसते भी हैं बाहर हंसना निकल आता है, कभी-कभी नींद में कोई हंस पड़ता है तो समझते हैं कि ऐसा कभी रो भी पड़ते हैं ऐसा होता है क्योंकि स्वप्न देखते हैं ना कभी उसमें फिर रोना या हंसना आया तो ऐसा कभी हो जाता है। तो जैसा स्वपन है वैसा हो जाते हैं परंतु वो तमोगुण नींद में यह जागते तो इस जागते हुए सपना को कहा जाता है ट्रांस। तो अभी ये ट्रांस में यानी इसको अभी बाबा दिखाएंगे की क्योंकि हमको अभी खिलाने वाला अभी वह है ना तो यह भी हम क्यों करते हैं कि बाबा की याद रहे। हैं सब यह याद की युक्तियां और कुछ नहीं है। ऐसे नहीं है कि यह जरूरी है करना या कुछ भी परंतु जैसे दूसरा कोर्स दिया जाता है ना समझाने के लिए वैसे यह भी कि बाबा के घर से खाते हो बाबा को याद करो उठते बैठते बाबा को याद करो तो यह सभी बाबा की याद की युक्तियां हैं इसीलिए कि हां बाबा को भूलना नहीं है, पिता को भूलना नहीं है क्योंकि अभी हमको वह खिलाते हैं ना प्रैक्टिकल क्योंकि अभी हम उनके हैं और उनके ही द्वारा अभी हम को जो मिलता है जैसे उनका। कोई मनुष्य के द्वारा नहीं, अभी उनका डायरेक्टर तो उनकी याद रखने की है ना तो जो खिलाता है उसको ऑफर करनी चाहिए ना। जैसे होता है ना कोई देता है तो कहते हैं ना फर्स्ट टेक यू, लॉ है ना जैसे जो खिलाता है उसको स्वीकार करा कर के फिर खाते हैं परंतु यह आज खाली गुरुवार के दिन नहीं है, यह तो हमेशा होना चाहिए जब भी आप भोजन पर बैठते हो ना तो उनको याद रखना चाहिए क्योंकि वह खाली टाइम है। खाते भी रहो बुद्धि से उसको याद करो टाइम मिलता है। तो इजी भी टाइम निकल सकता है और उससे फिर हमको भोजन में भी बल मिलेगा । फिर जो खाएंगे ना वह बल का भोजन खाएंगे, उससे हमको बल मिलेगा । उससे हमको प्योरीफिकेशन की ताकत मिलेगी तो यह है सब युक्तियां अपने को प्यूरीफाइड बनाने की तो जितना हम याद करेंगे हमको पुरीफिकेशन का बल मिलेगा ताकत मिलेगी। तो यह सब युक्तियां है इसीलिए यह सब रखी जाती है। यह क्लास है ना तो स्टूडेंट को तो सब तरह की शिक्षा दी जाती है देखो कभी नेष्टा में भी बिठाते हैं दिखाते हैं ना कि आज निष्ठा का। क्यों है वास्तव में उनको बैठने की जरूरत नहीं है, नहीं ऐसा नहीं है कि बैठना ही है एक घंटा या दो घंटा । नहीं , यह तो चलते फिरते है न, परंतु जब तलक पक्के हो अभ्यास हो तो हां कच्चों के हिसाब से बिठाना होता है कि उनको अभ्यास पड़े, आदत पड़े ये समझें, इनको भी अनुभव होगा ना सुख का तो फिर चलते फिरते इनकी ऐसी बुद्धि रहेगी तो वह बुद्धि को जरा ठिकाने लगाने का अभ्यास कराया जाता है। तो यह भी सब अभ्यास के लिए बातें हैं बाकी ऐसे नहीं है कि यह कोई जरूरी है परंतु यह आदत कैसे पड़े तो आदत डालने के लिए स्कूल है ना तो जैसे स्कूल में सब सब्जेक्ट पढ़ाई जाती है तो यह भी एक सब्जेक्ट है। तो निष्ठा की भी सब्जेक्ट है , वाचा की भी सब्जेक्ट है प्रैक्टिस कराई जाती है भाषण की, प्रैक्टिस कराई जाती है बोलने की, जैसे यह सब है वैसे यह भी प्रैक्टिस कराई जाती है परंतु है सब इसमें ज्ञान । तो यह सब जो जाती है ना ट्रांस में तो यह सब देखती हैं इनको यहाँ का पता ही नहीं रहता है। उसमें भी स्टेज होती है हर एक की, अभी हमको इनका मालूम नहीं है क्योंकि आज ही यह बैठी है , फिर इससे पूछेंगे परंतु इसमें सब का स्टेजिस है और ऐसे भी है कोई टाइम कैसा कोई टाइम कैसा। इसको हम कहते हैं सैमी, सेमी समझते हो ना? कभी फुल चली जाती है बिल्कुल पता नहीं पड़ता है कभी कुछ यहाँ का पता भी होता है, कुछ वहां का जैसे कभी कच्चा स्वप्न होता है कभी पक्का स्वप्न होता है कभी कोई भूल भी जाता है , कभी कोई याद पड़ता है ऐसे स्वपन में भी स्टेजिस होती हैं न तो इसमें भी कभी सेमी जाती है इसको हम सेमी कहते हैं थोड़ा, कभी फुल चली जाती है यह सब है। परंतु इन्हीं सभी बातों में भी अभी यह देखेंगे इसको जो भी बाबा दिखाएगा कोई सीन भी। दिखलाए, जो भी दिखलाए , वह तो अभी यह आएंगी फिर बताएंगी क्या देखा। यह बताएंगे ना प्रैक्टिकल तो इनका परंतु यह सब है, उनको दिखाएंगे भाई यह आया भोग, फिर कैसे वो देवता इमर्ज करेंगे, उसको दिखलाएंगे फिर उन्होंने भई भोग स्वीकार किया फिर ये देख करके फिर चली जाएंगी । कभी-कभी फिर वो रास रचाते हैं खेल करते हैं जैसे वह मीरा मस्त हो जाती थी, ध्यान में मगन हो जाती थी ना तो कभी-कभी यह लोग भी उधर मगन हो जाते हैं तभी हम इसको कहते हैं गो सून कम सून , ऐसे नहीं मगन हो जाओ और हम बैठे रहे हैं। तुम तो वहां देखती रहेगी हम तो यहाँ बैठे ही रहेंगे । तो ऐसे भले इनको उधर ये ख्याल नहीं रहेगा। यहाँ से गई तो यहाँ का ख्याल नहीं रहेगा परंतु यह कह देते हैं फिर बाबा तो हमारा है ना तो वो कह देंगे की हां भई विचारों का टाइम खोटी न हो तो फिर चली आती हैं तो यह सभी बातें है । अपना तो रिश्ता उससे ऐसा है ना जैसे घर का। जैसे बाबा होता है ना डैडी, हां जाओ डैडी के पास, चलो चक्कर लगा कर आओ, जैसे फादर होता है ना, कोई लवली फादर्स होते हैं ना तो बाप बच्चों का बहुत हेल मेल होता है , अच्छा, गया , बाप से हंसी गुली करके फिर चला आया तो अपना तो रिश्ता जैसे उससे ऐसा ही है । बहुत जाती हैं, कुछ पूछना होता है, हमारा सब काम डायरेक्शन ऊपर से ही चलता है। अभी हम बेंगलुरु आए, अभी हम बैंगलोर से जाएंगे, कोई भी ऐसी बात होगी ना तो ऊपर से पूछेंगे। तो यहां से कोई जाएंगी ,जाओ ये पूछो , ऊपर से पूछ कर आओ, अभी कैसा है, हमारी कोई सर्विस है इधर, बेंगलुरु वाले कुछ है उठने वाले तो फिर हमको जैसी आज्ञा मिलेगी हम उसी पर चलेंगे फरमान पर । तो हम सब ऊपर की डायरेक्शंस पर चलते हैं। ऐसे नहीं अपनी मत पर, जो आया । नहीं, ऊपर पूछना है उससे डायरेक्शन लेना है । उसी के डायरेक्शन पर चलते हैं तो फिर वह गॉड आएगा, सुप्रीम सौल आकार में यहाँ ब्रह्मा के तन में इमर्ज होएंगा। फिर वह कुछ सुनाएंगे क्योंकि बोलेंगे तो ना मूवी में । वहां कोई आवाज नहीं होता है तो इनको मूवी में, यह कैच करेंगे। फिर किसकी बुद्धि कैसी होती है, कभी कैचिंग में भूल भी कर देती हैं, कभी मैसेज लाने में भूल कर देती है, फिर वेरीफाई कराना पड़ता है । बहुत ऐसे होते हैं , ऐसे नहीं इसके ही आधार पर चलते हैं, बड़ी खबरदारी क्योंकि उसके बीच में माया भी आ सकती हैं ना । अब मैसेज में मिक्स भी हो जाता है जैसे लड़ाई के समय में वह मैसेज ले जाने वाले होते हैं ना तो कभी-कभी दुश्मन लोग जो है ना, वह वायरलेस में वो कट करके अपना मैसेज डाल देते हैं। ऐसे भी होते हैं दुश्मन अपना मैसेज दे देते हैं फिर रॉन्ग मैसेज हो जाता है । तो यहाँ भी हमारी माया दुश्मन है ना फिर कोई रॉन्ग मैसेज ऐड कर देगी बीच में, उसका बुद्धि वहां से कट करके कभी-कभी ऐसे हो जाते हैं। फिर हम वेरिफाई करते हैं। भेजते हैं दूसरी संदेशी फिर तीसरी संदेशी। फिर अपनी भी बुद्धि, होता है ना अपना भी तो होता है ना । अपरोक्ष योग के बल से भी हम उसी बातों को जान सकते हैं न। तो ये ऐसा नहीं है कि बस ऐसे ही चले बड़ी खबरदारी से इसमें बड़ी बुद्धि का भी काम रहता है । तो यह सभी चीजें हैं जिसको बहुत समझना होता है बाकी है कॉमन। यह तो भक्ति मार्ग में भी बहुत जाती हैं, आपको अनुभव भी हो भक्ति मार्ग में भी कभी राम का, कभी कृष्ण का कइयों को साक्षात्कार हो जाता है तो ऐसी कोई बड़ी बात नहीं है । यह नई बात नहीं है यह कॉमन है इसीलिए हम इनको इतना महत्व नहीं देते हैं। इससे ज्यादा महत्व ज्ञान को देते हैं क्योंकि नॉलेज से हमको जो कुछ अपना योग, योग दूसरी चीज है इसको योग नहीं कहेंगे । अभी यह बिचारी तो वहां खेलपाल में अभी स्वप्न देख रही है ना, हमारा योग तो अपनी बुद्धि से है ना। अभी याद में बैठ करके उसको याद रखना चलते फिरते वह अपनी मेहनत का है और यह तो गई अभी देखा जैसे स्वप्न था, अभी इसको योग और ज्ञान की स्टेज नहीं कहेंगे इसे ध्यान कहेंगे । यह ध्यान अलग चीज है और ज्ञान और योग अलग चीज है , इसको योग नहीं कहेंगे । कई इसके लिए बिचारे इच्छा रखते हैं न कि हम देखें, हम आत्मा को देखें, दीदार करें । वह समझते हैं दीदार किया नहीं हमारा योग हो गया। नहीं, दीदार से योग का कनेक्शन नहीं है यह भूल है रोंग है इसीलिए कई समझते हैं हम देखें तो चाहना रखते हैं कि हमको दर्शन हो इसका तो देखने से कोई योग का कनेक्शन नहीं है क्योंकि वह तो हमारी बुद्धि योग से है ना । हमको जानना भी पड़े न, हमने जो चीज देखी अभी बताया ना कि हमने देखी पर हमको इसका नॉलेज नहीं है कि व्हाट इज दिस, फिर हम समझ नहीं सकेंगे कि देखकर भी क्या चीज है इससे क्या होता है तो इसकी वैल्यू नहीं होगी। हमको नॉलेज चाहिए हमको नॉलेज होगी तभी तो हम उस चीज की फिर कदर कर सकेंगे ना तो हमको फर्स्ट नॉलेज चाहिए। तो इसीलिए कहीं देखने की इच्छा रखते हैं कि हम देखें, उसका दर्शन करें हमको मिले तो यह रॉन्ग है । हम अपना बतलाते हैं ना हमने कभी नहीं देखा है। हमने इतना भी नहीं देखा है परंतु यह नॉलेज की है ना ।( शिव बाबा नहीं देखा है ?)नहीं , वो तो है हम उसके हैं वह हमारा है रिलेशन है उससे तो वह तो जानते हैं बुद्धि से एकदम , हमारे से कहाँ अलग हो सकते हैं। उनसे हम हो करके रह रहे हैं परंतु कई कई आशा रखते हैं कि हम भी देखें परंतु यह तो बाबा है ना जिसको चाहे जिसका कोई पार्ट होगा, जिससे कोई सर्विस लेनी होगी तो हां बाबा करेंगे। कई नई भी आते हैं ना चले जाते हैं ऐसे भी नहीं है कि पुराने ही जाते हैं खाली । यहाँ कई नए भी आते हैं ना अनायास बाबा को कोई टेम्पटेशन बिठानी होगी ना किसी को तो दिखा देंगे। वो टेंप्टेशन है ना तो कभी-कभी टेंप्टेशन से पकड़ लेता है परंतु वह तो देखेगा कोई टेम्पटेशन से पकड़ेगा। तो ऐसा नहीं है कभी-कभी बाबा नए को भी उठा लेता है । कभी आते हैं अचानक चले जाते हैं ऐसे हमारे बहुत केंद्र हैं न सेंटर्स फिर ऐसे हो जाते हैं । फिर कई तो समझते हैं यह मिसमेरिज्म है जादू है फिर ऐसे समझ लेते हैं।( धनलक्ष्मी जाती हैं) हां बहुत हैं यहाँ तो, यहाँ भी नए-नए, अब देखो अभी यह नईं है इधर धनलक्ष्मी जो आती है जयकिशन कि वह नई है और वह भी जाती है। बैठी थी ना उस दिन, नहीं तो है तो थोड़े समय की । ऐसे हैं परंतु कभी-कभी अचानक बिल्कुल नए नए आते हैं तो भी चले जाते हैं। एकदम खो जाते हैं यह तो उनकी है दिव्य बुद्धि परंतु यह तो कॉमन चीज है । यह तो ज्ञान में भक्ति मार्ग में भी बहुत जाते हैं। बहुत खेलते हैं, रास करते हैं धुन में चढ़ जाते हैं यह बहुत होता है लेकिन इन सब चीजों से फिर भी हमको अपना सारा, अपने पवित्र रहने का कनेक्शन फिर भी ज्ञान से है । अभी देखो ध्यान में बहुत जाती है परंतु अगर अवस्था नहीं होगी ना तो फिर कोई काम का नहीं होगा, फिर कहीं मोह होगा कहां कुछ होगा फिर वह तो हमारा ज्ञान से कटेगा ना। ध्यान से कोई मोह नहीं कटेगा, ध्यान से कोई क्रोध नहीं कटेगा, उसका कनेक्शन ज्ञान से है इस नॉलेज से है इसीलिए योग और ज्ञान का महत्व है तो यह सभी चीजों को भी समझना है और इसमें भी कुछ मूंझने की बातें नहीं है यह तो कॉमन है सब। अच्छा! मतलब है मुख्य बाप को याद करने से और याद करना और उससे अपना जन्मसिद्ध अधिकार पाने के लिए अपनी प्रैक्टिकल लाइफ को बनाना तो वह सब चीजें रखने की है। (हम लोग भी जा सकते हैं ?) कोई भी , यहाँ एक गोप जाता है ना, एक गोप जाता है। (मम्मा इसने दो तीन बारी देखा है।) अच्छा आप गए हो? आपको अनुभव है? अच्छा! अब देखो ये हमारे से भी तीखा हो गया ना । वही तो टेम्पटेशन दिया ना बाबा ने। देखो यह सब खाने वाला उसको पकड़ने के लिए फिर उसको टेंप्टेशन दिया ना बाबा ने की यह कुछ देखेगा तो इसका विश्वास बैठेगा। (एक बार देखा बैकुंठ, बैकुंठ का महल देखा तो मस्त हो गया दो तीन दिन के लिए। हां होनकोंग बुलाने के लिए बाबा ने फिर हवेनली हांगकांग दिखलाइ उसको । तो जब ऊंची चीज दिखलाएगा तभी तो कोई नीची चीज छोड़ेगा ना, नहीं तो यह समझ बैठा है कि वह है वन है ना। आज की हैवेन तो यही है ना विकारी दुनिया की, हेल की हेवेन । वह है हैवेन की हैवेन तो बाबा ने उसको वह हेवेन दिखलाया की ऐसा नहीं की तुम होनकोंग को अपना जीवन समझ के बैठो। बैठा था ना समझ कर, उसी में मस्त था बहुत। इसका अनुभव कभी सुना है ना? तो बहुत खाना-पीना सब करता था, जैसी होती है दुनिया की लाइफ । खाना पीना खाओ पियो मौज करो बस यही और डांस करना यह करना बहुत, इसकी लाइफ ऐसी थी। अब तो जब से चला है तो बिलकुल, बाबा को भी ऐसों को पकड़ने के लिए कुछ दिखाना पड़े न ऐसा तब तो टेंपटेशन बैठे तो फिर कुछ दिखाया। हमें मालूम नहीं है इनका इतना तो नए-नए जो है ना, अभी नया ग्रुप आया है उसको भी आप सुनाओ अच्छी तरह से अपना अनुभव क्योंकि अनुभव से आता है न कि भाई ऐसे ऐसे भी अपना जीवन बनाने में अब देखो पवित्र रहते हैं चलते हैं बहुत अच्छा। हमने भी अभी देखा है इसको। हमारा भी इससे भी कांटेक्ट हुआ है नहीं तो हमारा इतना मिलना करना, तो देखते हैं बहुत अच्छी अवस्था में एकदम सिगरेट विगरेट सब छूट गया। सिगरेट , रोज कितने सिगरेट पीते थे ? कितने सिगरेट पीते थे? एक दिन में सौ सिगरेट , देखो तो ऐसा सिगरेट एक सौ रोज पीने वाला और फिर छोड़ दे तो आफरीन है ना और छोड़ा भी एक ही दिन में । छोड़ा तो छोड़ा फिर ऐसे नहीं थोड़ा थोड़ा पहले पचास पीछे साठ, ऐसे थोड़ा थोड़ा नहीं एक दिन में। तो देखो आफरीन है ना तो इसको फिर बड़ा इनाम मिलेगा ना, बाबा भी इतना करेगा।( बाबा को याद किया मदद उससे मांगी, मदद आप दो हिम्मत हम रखते हैं)अब देखो तबीयत भी अच्छी रहती है। कई तो समझते हमारी तबीयत सिगरेट छोड़ने से तबीयत खराब हो जाएगी, अभी डबल खाना खाता है। हैप्पी रहता है। आगे से इसका भी देखेंगे चेहरा भी अच्छा, हैप्पी खुशी है ना। ये खुशी का पारा चढ़ता है तो कहते हैं खुशी जैसी खुराक नहीं है और कितनी भी खुराक हो लेकिन हैप्पीनेस। तो अभी बड़ा खुश रहता है। इसकी तबीयत खुश मिजाज है और अच्छा है। और बहुत इसकी आदत ऐसी थी मीट खाना, यह खाना, कुकर खाना, ये मुर्गी खाना ये कॉमन चीज थी, अब देखो वो सब छूट गई, मुर्गी बुर्गी सब छूट गई। डांस करना यह करना वह तो बाहर की लाइफ ऐसी होती है न। अब देखो तो यह ध्यान की ज्ञान में तो ऐसा कोई चेंज होता है और ऐसे बहुत है हमारे पास बहुत शराब की आदत आदि लेकिन अभी जब आए हैं तो बहुत हैप्पी लाइफ हो गई है। बहुत है यह तो यहाँ है बेंगलुरु में लेकिन अपने बहुत हैं जिनकी लाइफ में बहुत परिवर्तन और कैसा वो अपनी लाइफ को देखते हैं बड़े-बड़े।( एक दुरंदर दास का हिस्ट्री बोलता है, बहुत गरीब था। गुरु के पास जाने का मुश्किल था , गुरु के पास जाता तो पैसे मंगता था, बहुत जगह गया, तभी भगवान का साक्षात्कार जोरों से होया) हां ये तो बहुतों को होते भी हैं परंतु यह तो फिर प्रैक्टिकल में आकर के यह सब रहकर के साथ में स्त्री पति बाल बच्चे यह तो फिर उसमें चल करके फिर दूसरों को चलाना यह तो फिर बात अलग हो जाती है। बाकी ऐसे तो बहुत चलते भी हैं परंतु यहां तो है ही वह कोर्स और यह तो है ही अपना बाप से अपना वर्सा पाकर के हेवेन के लिए अपना अधिकार बनाना तो ऐसे बाप से अपना पुरुषार्थ रखने का है। अच्छा साढ़े आठ हो गया है ना, जल्दी जाना होगा बिचारों को देरी होगा । आज छुट्टी तो नहीं होगी। पपैया को देरी होती है ऑफिस के लिए । दो जल्दी जल्दी , हां शाबाश। हां क्या देख, बाबा मिला ? (परमधाम पूछो कहां गई) खाली परमधाम का सुनाएगी ? नहीं, ( वो भाषा.... क्योंकि हिंदी भाषा में बात नहीं करती है)। अच्छा यही परेशानी है इन बेचारियों की कि हिंदी भाषा नहीं जानती।( मगर समझती है)। अच्छा बापदादा और मां की मीठे मीठे बहुत सबूत बच्चों को याद प्यार और गुड मॉर्निंग।