मम्मा मुरली मधुबन

श्रेष्ठाचारी बनने का ज्ञान-2
 


रिकॉर्ड:
नई उमर की कलियों तुमको देख रही दुनिया सारी तुम पर बड़ी जिम्मेदारी.....
ओम शांति। यह याद में बैठे हो। जिसकी याद में बैठे हो उसको जानते हो ना? क्योंकि अपना है ज्ञान सहित। जो भी अपन कर्म करते हैं पहले उसका ज्ञान होना चाहिए। ज्ञान मतलब ही है समझ और कॉमन तरह से भी कहने में आता है भाई समझ के काम करो, ऐसे नहीं कहने में आता है काम करके फिर समझो। नहीं, समझ के काम करो तो पहले ज्ञान पीछे काम । तो ज्ञान का मतलब ही है समझ लेकिन समझ तो बहुत प्रकार की है ना, डॉक्टरी भी एक डॉक्टरी की समझ है, इंजीनियरिंग भी एक इंजीनियरी की समझ है वैसे तो कई प्रकार की समझे हैं लेकिन ज्ञान नाम जिस बात में मशहूर है की ज्ञान बिना गति नहीं है, वह कौन से ज्ञान बिना, किस समझ के बिना, तो वह भी समझने की बात है कि कौन से ज्ञान के बिना गति सद्गति नहीं है, वह गति सद्गति की समझ कौन सी है। वह कोई डॉक्टरी बैरीस्टरी इंजीनियरी या यह साइंस आदि इन सब चीजों से भी तो कोई गति सद्गति का ताल्लुक नहीं है ना। गति सद्गति का ज्ञान अथवा समझ कौन सी है और उसी समय समझ को देने वाला भी सर्व समर्थ स्वयं परमपिता परमात्मा ही है इसीलिए कहते हैं कि वह समझ, उसका ज्ञान गति सद्गति का दाता मैं हूं और उस ज्ञान को देने वाला भी मैं हूं, मैं उसका नॉलेजफुल हूं। अभी गति सद्गति क्या चीज है, कई बेचारे इस चीज को नहीं समझते हैं। कई समझते हैं वह चीज शायद ऐसी है कि बस शरीर में ना आवे, कोई ऐसा स्थान है जहां बैठ जाना होता है इसीलिए वह समझते हैं कि मोक्ष या गति सद्गति । नहीं, ऐसी चीज नहीं है जो शरीर में ना आना हो, शरीर में तो आने का है ही । यह मनुष्य सृष्टि तो अनादि है ना । अगर शरीर में ना आना हो तो फिर तो सृष्टि चले ही ना, जो मरे, जाते रहे जाते रहे फिर तो यह खत्म हो जाए परंतु नहीं, ऐसी बात नहीं है। यह सृष्टि अनादि है, आत्मा को इस चक्कर में आना ही है लेकिन इन्हीं बातों को समझना है कि ये चक्र में चलने वाली मनुष्य सृष्टि के भी स्टेजिस हैं। तो सृष्टि की भी स्टेजिस हैं, यह भी समझने की बात है ऐसे नहीं सृष्टि कोई बिना हिसाब से चलती है। कई समझते हैं यह दुनिया जो है ना यह दुनिया चलती ही रहती है परंतु इसका भी हिसाब है। जैसे शरीर का भी हिसाब है ना कि भई पहले बाल, पीछे युवा, पीछे वृद्ध हिसाब है ना? ऐसे तो नहीं ऐसे ही शरीर चलता है कोई इसका नियम ही नहीं है। हर चीज का अपना अपना नियम है जैसे शरीर का भी नियम है पहले बाल होगा, पीछे युवा, पीछे वृद्ध, ऐसे तो नहीं है बाल से फिर वृद्ध हो जाएगा, नहीं बीच में युवा पीछे वृद्धि फिर वृद्ध के बाद भाई मृत्यु, मृत्यु से फिर जन्म तो स्टेजिस बाय स्टेजिस है ना । ऐसे तो नहीं कहेंगे वृद्ध फिर ऐसे ही बाल हो जाएगा। नहीं मृत्यु, स्टेज है बीच में । ऐसे भी नहीं वृद्ध फिर युवा होगा, ऐसे उल्टा लौटेगा, फिर वृद्ध से युवा युवा से बाल ऐसा होगा, नहीं हर चीज का नियम है । तो जिस तरह से इस शरीर के स्टेजिस का नियम है वैसे आत्मा की भी स्टेजिस हैं उनका भी गोल्डन, सिल्वर, कॉपर एंड आयरन एज और हिंदी में अगर कहेंगे सतो, रजो और तमो यह स्टेजिस हैं। तो आत्मा को भी जो बहुत जन्मों में चलती है तो जन्म की भी स्टेजिस हैं तो मानो आत्मा अपने स्टेजिस अनुसार जन्मों को लेती है पहले सतोप्रधान है तो उनके जन्म ऐसे हैं पीछे सतो तो कम, पीछे रजो, फिर रजोप्रधान, पीछे तमो फिर तमोप्रधान, इसी तरह से फिर उनकी स्टेज बाय स्टेज यह जन्मों का भी हिसाब है। तो जैसे एक जीवन में भी बाल, युवा, वृद्ध और यह सब स्टेजिस एक ही जीवन से पता लगता है इसी तरह से अनेक जन्मों का भी फिर स्टेजिस हैं तो जैसे जन्मों का स्टेजिस है तो फिर उसमें संसार का भी दुनिया की भी स्टेजिस होती है। तो यह सभी चीजों को समझना है कि दुनिया का भी फिर गोल्डन, सिल्वर कॉपर एंड आईरन एज जिसको सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग फिर उनका चक्कर होता है। तो ऐसे नहीं कहेंगे कि यह दुनिया एक ही तरीके से या बस ऐसे ही कोई बिना हिसाब से चलती रहती है। नहीं, इसका हिसाब है जैसे शरीर का हिसाब है कि भाई नियम है कि यह बाल अभी युवा होगा, फिर वृद्ध होगा हिसाब है ना, इसी तरह से यह सृष्टि का भी बाल, युवा, वृद्ध ऐसी स्टेजिस हैं तो समझना चाहिए अभी कौन सी स्टेज है। यह वृद्ध अवस्था है सृष्टि की या इसको युवा अवस्था कहेंगे या बाल अवस्था कहेंगे ? तो इस सृष्टि की भी बाल युवा वृद्ध स्टेजिस हैं। अच्छा, अभी बताइए कि अभी कौन सी स्टेज है? वृद्ध। हां, वृद्ध में भी जड़जड़ी, लास्ट। इसको कहा जाएगा जड़जड़ीभूत अवस्था । यह गीता के भी वर्संश हैं कि यह मनुष्य सृष्टि रूपी वृक्ष अभी जड़जड़ीभूत अवस्था को प्राप्त हो चुका है अर्थात अति पुराना। अभी अति पुराने के बाद में फिर डिस्ट्रक्शन। फिर डिस्ट्रक्शन चाहिए तो फिर साथ-साथ कंस्ट्रक्शन क्योंकि सृष्टि अनादि है। तो यह भी सब हिसाब समझने के हैं न कि यह सृष्टि की भी स्टेजिस नंबरवार है। तो यह सृष्टि हमारी जेनरेशंस की, अनेक जन्मों की हिसाब से चलती है, अभी उनकी आ करके यह वृद्ध अथवा बिल्कुल जर्जरीभूत अवस्था पहुंची है। अभी ऐसी अवस्था के बाद तो फिर जरूर डिस्ट्रक्शन चाहिए ना यानी मृत्यु, तो दुनिया की भी मृत्यु। मृत्यु का मतलब यह नहीं है कि जैसे कई समझते हैं कि प्रलय हो जाएगी। प्रलय नहीं हो जाएगी जैसे मृत्यु से फिर जन्म तो इस सृष्टि का भी साथ-साथ फिर कंस्ट्रक्शन अथवा इसका फिर भी चलना होता ही है क्योंकि अनादि है। ऐसे नहीं कहेंगे कभी सृष्टि थी ही नहीं। नहीं, सृष्टि अनादि है ऐसे नहीं है कि पहले मनुष्य थे ही नहीं जैसे किसी हिस्टोरिज में या कई शास्त्रों में कई बातें बैठ करके सुना रखी है कि भाई पहले दुनिया थी ही नहीं, जल ही जल था या कई समझते हैं कि दुनिया थी ही नहीं पहले पहले मनुष्य थे ही नहीं एक बुत बनाया फिर उसमें स्वांस फूंका, फिर वह चला, फिर मनुष्य से मनुष्य, मनुष्य से मनुष्य फिर ऐसे बहुत हो गए या कहीं कहीं ऐसी बातें रखी है या कह देते हैं ये आग का गोला था पहले कुछ और था ही नहीं पीछे उससे ऐसे दुनिया निकली फिर ऐसे ऐसे हिसाब बतलाते हैं या कई तो समझते हैं पहले बंदर था, बंदर से मनुष्य हुआ है ऐसे ऐसे हिसाब बतलाते हैं परंतु यह सभी चीजें नहीं है कि पहले बंदर थे, पहले जनावर थे फिर मनुष्य हुआ, नहीं मनुष्य अनादि है ही परंतु हां इतना जरूर है कि यह संख्या पहले कम थी पीछे वृद्धि को पाती जाती है। अभी देखो वृद्धि को चली जा रही है ना। अभी वृद्धि भी कम कम होगी ना । ऐसे वृद्धि होते होते बढ़ते बढ़ते आख़िर उसकी एंड भी चाहिए, तो वह एंड कैसे होती है तो उसके लिए फिर डिस्ट्रक्शन चाहिए । तो फिर डिस्ट्रक्शन माना वह जो वृद्धि है उस संख्या का कम करना। पीछे कम होकर के फिर नई जेनरेशंस फिर उसको कहेंगे सतयुग तो यह फिर उसका आरंभ होता है डिस्ट्रक्शन के बाद में। तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप इस सृष्टि की भी स्टेजिस समझाते हैं तो हर चीज अपने नियमों में चलती है जिस नियमों को जानना उसका नाम है ज्ञान। तो यथार्थ यह सृष्टि जिसमें हम हैं वह कैसे चलती है, जिस जीवन में हम हैं उसकी जेनरेशंस कैसे चलती है जिसमें हमारा यह कर्म का खाता है वह कैसे चलता है इन सभी बातों को यथार्थ रीति से जानना इन्हीं का नाम है ज्ञान और इसी ज्ञान को जानने से ही हम अपनी पहली जो ओरिजिनल स्टेज है उसको कैसे प्राप्त करें उसका नॉलेज आता है क्योंकि आपको जब समझ मिलेगी ना कि भाई हां पहले बाल, पीछे युवा, पीछे वृद्ध, पीछे मृत्यु, जानेंगे तो अभी हमको क्या चाहिए हम चाहते हैं कि हमारी जो पहली सदा सुख की जो स्टेज थी जिसको गोल्डन एज कहेंगे तो गोल्डन एज में सुख था, पीछे-पीछे आस्ते आस्ते सिल्वर एज भई उसमें थोड़ा कम, पीछे कॉपर पीछे आयरन, अभी देखो बिल्कुल तमोप्रधान तो उसमें हमारे सुख-दुख का संबंध आता है ना तो उस जेनरेशंस में सुख था जब गोल्डन एंड सिल्वर एज थी। पीछे कॉपर एंड आयरन एज में दुःख शुरू हुआ परंतु कॉपर में थोड़ा दुःख था, पीछे बढ़ते बढ़ते आयरन एज फिर आयरन एज की भी अभी बिल्कुल तमोप्रधान लास्ट स्टेज तो अभी दुख बढ़ते जा रहे हैं तो यह भी सुख और दुख का संबंध हमारे इसी स्टेजिस के ऊपर है। तो जेनरेशंस में कैसा सुख कैसा दुख भी चलता है जेनरेशंस का भी सुख दुःख। एक जीवन में भी दुख सुख है लेकिन फिर हमारे जेनरेशंस का भी हिसाब में बहुत जन्म हमारे सुख के भी हैं और फिर बहुत जन्म हमारे दुःख के भी हैं तो बहुत जन्मों का भी हिसाब है । तो यह सभी हिसाब भी समझना है और हमारे सभी जन्मों का कितना हिसाब है फिर यह पूरा हो करके फिर हमारे सुख के जन्म कैसे रिपीट होते हैं तो इन सभी बातों को भी जानना है ना । अभी यह जिसमें हम चल रहे हैं तो मनुष्य को इन सभी बातों का नॉलेज होना चाहिए । बाकी ऐसे नहीं बस मैं मनुष्य हूं, भाई तू क्या है मैं मनुष्य हूं, वह तो देखते नहीं मैं मनुष्य हूं, यह कोई समझ थोड़े ही है । नहीं, मनुष्य क्या है, उनके कर्म का यह सब हिसाब कैसे चलता है, यह संसार का चलना कैसे होता है, यह सृष्टि सारी कैसे चलती है इसका भी स्टेज बाय स्टेज कैसे होता है, अभी कौन सा टाइम है, अभी इस टाइम के बाद फिर क्या टाइम आने का है तो इन सभी बातों का यथार्थ नॉलेज होना इसको कहा जाता है ज्ञान। अभी इसी ज्ञान के बिना गति सद्गति नहीं है। जब यह जाने तब उसके जानने से फिर हमारी जो कंप्लीट स्टेज है उसको फिर हम अभी पाएंगे । भाई कैसे पाएंगे इसीलिए फिर परमपिता परमात्मा कहते हैं कि वह फिर मेरे पावर से, उसके लिए तेरा मेरे से योग चाहिए। क्यों, योग क्यों चाहिए इसीलिए क्योंकि मेरे से तुम को ताकत लेने की है। अभी तो तुम निर्बल हो गए हो ना और निर्बल तो उस स्टेज पर आ नहीं सकते हैं। निर्बल को बल देने वाला, गाते हो ना, तो बल देने वाला चाहिए ना तो इसीलिए फिर सुप्रीम सौल, जो वह पावरफुल है उनके द्वारा अभी तुम्हें पावर लेने की है इसीलिए फिर उसको भी जानना पड़े, जिसको फिर गॉड कहो परमात्मा कहो तो परमात्मा को भी जानना पड़े जिससे हमारा संबंध है। उससे हमको वह ताकत अथवा बल लेने का है जिसके आधार से फिर हम ऊंचे उठें। ऊंचा हमको वह उठाएगा जिसका फिर गायन भी है भई पतित को पावन करने वाला। तो पतित हो गए नीचे, निर्बल और वो उसको पावन करने वाला, ऊंचा उठाने वाला। पावन माना पवित्र पवित्र माना ही वह ऊंची स्टेज अथवा सुख की स्टेज तो यह सभी चीजें भी समझने की है ना। बाकी ऐसे नहीं है कि बस पतित पावन ऐसे ही ऐसे । नहीं, पावन माना सुख, पतित माना दुख ऐसे नहीं पतित माना सुख। तो अभी है ही पतित दुनिया तो ऐसे नहीं कह सकते हैं कि अभी दुनिया सिविलाइज्ड होती जाती है, अभी दुनिया बहुत सुधरती जाती है यह भी दुनिया बहुत सुखी होती जाती है, भाई जब है ही पतित दुनिया तो वह सुख कहां से आया। पतित में सुख नहीं है और पावन में फिर दुःख नहीं है, यह भी तो समझने की बात है। ऐसे नहीं है कि जब पावन है तभी भी दुःख है, जब पतित है तभी भी दुःख है ऐसा भी नहीं है । पावन तो फिर दुःख नहीं पतित तो फिर सुख नहीं तो यह भी हिसाब सभी समझने के है ना। भले इस दुनिया में सुख है परंतु वह उस पावन दुनिया की भेंट में सुख नहीं है दुख है क्योंकि पावन दुनिया का जो सुख है उसमें कोई दुख का नाम निशान नहीं है और इस दुनिया के अभी पतित दुनिया के यानी पतित दुनिया के सुख में दुःख है बहुत इसीलिए वह सुख भी दुःख बराबर हो जाता है। इसीलिए बाप कहते हैं वह पावन दुनिया का जो सुख है ना उसमें सदा सुख है उसमें कोई ऐसी दुख की बात नहीं है इसीलिए उसको सुख की दुनिया कहेंगे तो सुख और दुख को भी समझना चाहिए ना। बाकी ऐसे नहीं है कि बस सुख और दुःख यह ऐसे ही चलते रहते हैं, यह सदा से ही चला आया है, सदा से ही होता रहता है, सब सदा से है । नहीं, सदा से यह सभी स्टेजिज कैसे चली है, यह स्टेज बाय स्टेज सृष्टि की भी है। सदा से ही ऐसे थोड़ी कहेंगे यह सदा से ही वृद्ध है या सदा से ही बाल है, नहीं स्टेजीज बदलती रही है। तो यह भी सब समझना है ना कि हम पहले बाल थे, उससे फिर अभी युवा या वृद्ध स्टेज पर आया हूं तो वह जो बदली है उस बदली का भी हमे फिर सभी हिसाब किताब, नॉलेज होना चाहिए ना। अभी हमको फिर उसी स्टेज पर जाना है जो हमारे वह जेनरेशंस थे सदा सुख की तो यह सभी चीजों को बहुत अच्छी तरह से समझने का है इसीलिए बाप कहते हैं कि यह समझ जो है ना इस समझ को ज्ञान कहा जाता है जिसका नाम मशहूर है ना कि भाई ज्ञान बिना गत नहीं है तो इसी ज्ञान बिना, इसी समझ के बिना जिसके जानने से तुम सदा सुखी हो जाएंगे। उसमें सब आएगा ना एवर हेल्थी, एवर हैप्पी सब आ गया फिर उसमें कोई डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, बैरिस्टरी इन सब बातों की कोई दरकार नहीं । फिर कोई बैरिस्टरी की दरकार रहेगी? ना कोई चोर होगा, ना चकारी होगी, ना कोई ऐसी बात होगी, ना कोई फिर जज होए ना कोई बैरिस्टर बनने की दरकार ही नहीं रहेगी। ना रोग होगा, ना डॉक्टर होंगे, ना फिर हॉस्पिटल्स होंगे, क्यों होंगे तो कहते हैं तुम्हारी देखो मैं ऐसी स्टेज बनाता हूं जिसमें तुमको सदा सुख हो। फिर तुमको कोई भी ऐसी बातों की जरूरत नहीं रहेगी। तो यह सभी बैठ करके बाप समझाते हैं कि तुम मनुष्य की क्या असुल स्टेज है और वह स्टेज कब आती है, अभी वो टाइम है इसी टाइम पर ही मैं आ करके तुमको समझाता हूं क्योंकि मैं इसके बीच में भी आकर के समझाऊं, नहीं, जो ऐसे समझते हैं कि द्वापर के अंत में आया था परमात्मा, यदा यदा ही, लिखा है ना वह गीता में तो वह समझते हैं की द्वापर के अंत में आया था और आ करके उसने अधर्म नाश और धर्म स्थापना का काम किया था। अभी द्वापर के अंत में तो अधर्म हुआ ही नहीं ना, अधर्म का नाश करने का टाइम कब है जब कलयुग हो और कलयुग की भी पिछाड़ी हो तो अधर्म नाश भी तभी होगा न। द्वापर के अंत के बाद तो अधर्म बढ़ता है, कलयुग शुरू होता है तो जब अधर्म शुरू होने का टाइम है तब क्यों आएगा, अधर्म तो अभी बढ़ता है उस समय, द्वापर के बाद तो और ही कलयुग होना है, कलयुग को फिर तो और ही घोर कलयुग होना है और ही वृद्धि में जाना है तो जो चीज अधर्म की वृद्धि की ओर जानी है तो उसके बीच में आकर क्या करेगा। इसीलिए ना टाइम कौन सा है इसीलिए कहते हैं कि जब डिस्ट्रक्शन का टाइम हो ना । तो डिस्ट्रक्शन का टाइम है जबकि कलयुग के अंत का समय है इसीलिए कहते हैं मैं आता तब हूं और मैं आ करके फिर इस दुनिया का डिस्ट्रक्शन और कंस्ट्रक्शन का काम और कंस्ट्रक्शन का काम ऐसे करता हूं। तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं इसीलिए मेरा आना और मेरे ज्ञान देने का भी कौन सा टाइम है तो जब चक्कर भी पूरा हो तभी तो सारा चक्कर भी समझाऊं ना। अभी चक्कर चलता ही रहता है बीच में क्या समझाऊं? आधा समझाऊं? नहीं, मैं सारा समझाता हूं कि भाई पहले शुरू कहां से हुआ, अभी पूरा यहां आ करके हुआ है अभी फिर से शुरू होने का है, फिर यह रिपीट होने का है। वह कैसे होता है तो कहते हैं जब पूरा होने पर है तभी आ करके समझाता हूं कि कहां से यह शुरू हुआ था, अभी कहां तुम्हारी जेनरेशंस अभी पूरी होती है । अभी फिर वही जेनरेशंस चलेंगी जो पहले थी। तो हिसाब भी समझाने में आएगा जब सारा हिसाब पूरा होगा ना। तो हर चीज अपने नियम पर देखो यह मकान, मकान भी कहेंगे भाई पहले यह नया बना, पीछे आहिस्ते आहिस्ते नए से फिर.... एकदम तो पुराना नहीं हो जाएगा ना, नया था, पीछे आहिस्ते आहिस्ते काफी टाइम के बाद फिर पुरानापन चलेगा। फिर पुराना भी ऐसे नहीं है झट से पुराना, आहिस्ते आहिस्ते पुराना होगाl लास्ट में आकर ऐसी कंडीशन हो जाती है जो उसको गिराना पड़ेगा या तो गिर जाएगा। तो यह सभी चीजें समझने है कि हर चीज में अपना नियम है ना नया फिर पुराना अपने अपने टाइम पर तो यह सृष्टि के लिए भी पहले नई कहेंगे पीछे पुरानी । ऐसे नहीं कहेंगे अभी नई हुई है। नहीं, यह पुरानी है तो पुरानी को पतित कहेंगे और पतित को दुखी कहेंगे और नई को सतयुग कहेंगे और सुख कहेंगे तो यह भी हिसाब समझने के हैं ना । तो ऐसे नहीं कहेंगे कि आगे दुनिया कुछ थी नहीं या आगे कुछ जानते नहीं थे। नहीं, आगे जो थी पहले, तो वह सुख की थी, अभी इसको दुःख की कहेंगे। तो यह भी सभी चीजें हिसाब को समझना है कि नया कौन सा, पुराना कौन सा। इस दुनिया का भी नया और पुराना भाग है इसीलिए सतयुग और त्रेता को नया कहेंगे, द्वापर और कलयुग को पुराना कहेंगे। ऐसा नहीं है कि द्वापर कलयुग को नया कहेंगे और सतयुग त्रेता को पुराना कहेंगे, नहीं तो फिर उसको गोल्डन एज सिल्वर एज क्यों कहते हैं । तो यह सभी चीजों को समझना है कि यह हमारी सृष्टि का भी नियम कैसा है और जो नया है तो नए में जरा नयापन होगा, पुराने में पुरानापन होगा और पुरानी में जरूर दुख होगा नई में ही जरूर सुख होगा, नहीं तो नई क्यों कहते हैं। तो अर्थ सहित बातें चाहिए ना। तो यह सभी चीजों को समझना है बाकी ऐसे नहीं दुनिया ऐसे ही चलती है या दुनिया बिना हिसाब से चलती है। नहीं, दुनिया का भी अभी जो टाइम है तो उसी पर ही बैठ करके बाप अभी यह ज्ञान अथवा समझ देता है कि अभी यह समझो कि अभी यह पुराना अभी इसकी एज अथवा समय आ करके पहुंचा है डिस्ट्रक्शन का तो अभी इसके लिए डिस्ट्रक्शन चाहिए। वृद्ध के बाद फिर मृत्यु की स्टेज तो अभी फिर इसका मृत्यु। मृत्यु कैसे होगा दुनिया का तो डिस्ट्रक्शन इसी तरीके से । आत्मा तो इम्मोर्टल चीज है ना, तो वह भी बैठकर समझाते हैं कि आत्मा को तो नाश करने का सवाल ही नहीं है आत्मा तो काटे काटी नहीं जा सकती, जलाए जल नहीं सकती डुबाए डुबोई नहीं जा सकती। आत्मा तो इम्मोर्टल है लेकिन आत्मा के ऊपर जो यह आवरण कहो या मेलापन चढ़ा है उनको साफ होना है बाकी है तो इम्मोर्टल चीज ना। ऐसा नहीं है कि वह कोई विनाशी चीज है, है इम्मोर्टल परंतु उनके ऊपर सिर्फ यह मैल चढ़ा है। अभी उसकी मेल को साफ करने का है और फिर यह जो शरीर है जो इतना सब वृद्धि हुआ है उन शरीरों को फिर नाश करने के लिए यह डिस्ट्रक्शन का, तो उससे शरीर नाश होंगे और आत्माएं फिर प्यूरीफाइड होंगी और फिर प्यूरीफाइड हो करके फिर अपने समय पर जिस जिस का पार्ट है उसका अपना पार्ट नंबरवार चलेगा। बाकी आत्माएं फिर अपने स्टॉक घर में होंगी तो वह भी बैठ करके सारा सर्कल समझाते हैं कि कैसे आत्माएं जाती है फिर आती हैं । यह इतनी संख्या जो बढ़ती है यह इतनी आत्माएं कहां से आती है जरूर है कि कोई सोल्स का स्टॉक घर है जहां से ये आत्माएं आती हैं । जो मरते हैं वह भी जन्म लेते हैं दूसरी स्टॉक भी आती है। जरूर आती है तभी तो वृद्धि है ना, नहीं तो यह संख्या कहां से बढ़ती है, इतनी सोल्स कहां से आती हैं। तो यह भी सभी चीजें हिसाब समझने का है कि कोई स्टॉक घर है जिसको इनकॉरपोरियल वर्ल्ड भी कहा जाता है परंतु वह वर्ल्ड कोई ऐसी नहीं है जैसे कई समझते हैं कि वहां शायद कारोबार चलती है या रूह या आत्माऐं आपस में कुछ बोलती है या कुछ वहां दुनिया चलती है। नहीं, वह तो डेड साइलेंस एकदम बस आत्माएं निवास करती हैं साइलेंस में । बाकी ऐसे नहीं है कि कहीं रूहों की दुनिया है जिसमें घूमते हैं फिरते हैं, बात करते हैं, हंसते हैं या कुछ उनका धंधा व्यापार या ऐसे दुनिया कुछ चलती है नहीं। दुनिया का मतलब है वहां स्टॉक बहुत है, आत्माएं, सोल्स बहुत है। बाकी ऐसे नहीं दुनिया का मतलब है यह कामकाज चलता है जैसा यहां चलता है, नहीं। वह तो एक ही मनुष्य सृष्टि। तो यह भी सभी चीजें समझने की है नहीं तो कई समझते हैं रूहों की भी दुनिया है, जहां यह रूह आपस में बोलते हैं यह करते हैं, वह करते हैं। नहीं, वहां बोलने की बात नहीं, बोलना तो शरीर के आधार से होता है बाकी आत्माएं वहां बैठकर के कुछ आपस में करती हैं ऐसी कोई बात नहीं है। वह बस साइलेंस बस, नो पार्ट, यानी की पार्ट नहीं तब तलक साइलेंट। इसको कहा ही जाएगा साइलेंस वर्ल्ड। इनकॉरपोरियल वर्ल्ड कहो या साइलेंस वर्ल्ड कहो। अभी यह है टॉकी वर्ल्ड। देखो यह है ना टोकी, यह भी टॉकी वर्ल्ड कहा जाएगा जिसमें हम आकर के शरीर का आधार लेकर के फिर यह टॉक में आते हैं और फिर वहां जहां देवताओं का साक्षात्कार होता है उसको कहेंगे मूवी या सबल वर्ल्ड कहो या मूवी। तो साइलेंस एंड मूवी एंड टॉकी। तो यह सभी हिसाब बैठकर के बाप समझाते हैं अभी कहते हैं कि इस दुनिया का अभी आकर के परिवर्तन का टाइम हुआ है। परिवर्तन का, चेंज का, बाकी ऐसे नहीं दुनिया एकदम खत्म, दुनिया ही ना हो। नहीं, यह जो कलयुगी तमोप्रधान दुनिया है उसके खत्म होने का यानी इस स्टेज के खत्म होने का बाकी इसका माना यह नहीं कि दुनिया के खत्म होने का । दुनिया की अभी जो स्टेज है आयरन उस स्टेज के खत्म होने का अभी टाइम है। तो आयरन एज खत्म हो करके फिर क्या होगा? इसी दुनिया पर गोल्डन एज । तो गोल्डन एज में भी तो मनुष्य होंगे ना । गोल्डन एज माना थोड़ी ही कुछ ना हो। नहीं, मनुष्य, वो मनुष्य की लाइफ की स्टेज बहुत ऊंची रहेगी और जिसमें फिर वह जेनरेशंस ऊंची स्टेज के चलेंगे जिसमें फिर सदा सुख होगा । तो ये सभी लाइफ और लाइफ की जेनरेशंस और फिर मनुष्य का यह सभी हिसाब किताब को भी समझना है ना। तो बाप बैठकर के यह सभी बातों को समझ जाते हैं और समझा करके फिर कहते हैं कि अभी कौन सी स्टेज है अभी उसके लिए प्रिपेयर होने का है। अभी यह तुम्हारी दुनिया के अथवा संसार के मृत्यु कहो या डिस्ट्रक्शन कहो, अभी उसका टाइम है इसीलिए कहते हैं अभी फिर जो नई जेनरेशंस चलेंगे उसके लिए अपना सेपलिंग लगाओ। लगाना अभी है ना, तो उसके लिए क्या करो क्योंकि यह कर्म क्षेत्र है, कर्म भूमि है इसमें जो बोएंगे, सो पाएंगे यह भी इसका नियम है। इसमें मैं भी कोई लॉ ब्रेक करूं मैं भी नहीं कर सकता हूं। मैं वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी का मतलब यह नहीं है कि मैं चाहूं तो आसमान को नीचे करूं या धरती को ऊपर करूं। वह समझते हैं भगवान है ना, भगवान तो कुछ भी कर सकता है। हां वह तो मुर्दा पड़ा है ना उसको जिंदा करके दिखलावे, परंतु वो कहते हैं कि मेरे भगवान होने का या शक्ति का कोई यह अर्थ नहीं है कि मुर्दा पड़ा है तो जिंदा करूं तो मेरी शक्ति है । मुर्दा पड़ा है तो जिंदा कर दो तो क्या फिर मुर्दा नहीं बनेगा? बनेगा ना । वह तो आत्मा को तो शरीर छोड़ने का ही है वह तो बात ही नहीं है ना । अच्छा उसको जिंदा करूं भला फिर क्या हुआ? फिर क्या मुर्दा नहीं बनेगा ? फिर भी बनेगा, तो जो नियम है हर चीज का वह तो चलेगा ही ना। इसीलिए उनमें कोई महत्वता मेरी थोड़ी ही है कि मैं यह शक्ति दिखलाऊं। या कोई कहेगा कि भगवान है तो आसमान को नीचे करें धरती को ऊपर करें, ये उल्टा पुल्टा करे कुछ। यह तो मेरा काम नहीं है ना। वह तो हर तत्व का भी अपना नियम है। यह तत्व भी जो पांच तत्व है उसका भी अपना नियम है। वह भी अपने गोल्डन सिल्वर कॉपर एंड आयरन एज अनुसार वह भी स्टेजिस में आते हैं । अभी देखो यह भी आयरन एज वाले हैं ना यह तत्व। यह अर्थक्वेक होता है, यह फ्लड्स होती है, यह तूफान होते हैं यह सभी होते हैं तो देखो यह भी अभी डिसऑर्डर में हो गए हैं ना । यह भी अभी तमोप्रधान हो गए हैं । हर चीज में अभी तमोप्रधानता है। तो यह सभी चीजें बैठकर के बाद समझाते हैं अभी हर चीज बिगड़ चुकी है और फिर मैं आता हूं तो हर चीज को सुधारता हूं। मनुष्य आत्मा को सुधारता हूं उससे फिर सब चीजें सुधरती है। फिर संसार सुधरा हुआ फिर उसमें सदा सुख है । फिर कोई चीज एक दो को दुख नहीं देती है। अभी सब चीजों से दुख मिलता है। तो यह सभी बातों को समझना और किस तरह से यह संसार अथवा सृष्टि का यह सब चलता है इन्हीं का नाम ज्ञान है । इसी का में नोलेजफुल हूं । मेरे पास इसकी फुल नॉलेज है, यह सारे कर्म का कैसे खाता चलता है, कैसे नंबरवार आते हैं, यह सब क्या है इन सभी बातों को मैं जानता हूं। इसीलिए कहते हैं इस ज्ञान को कोई मनुष्य यथार्थ रीति से नहीं समझा सकता है क्योंकि सभी मनुष्य तो इसी चक्कर में आने वाले हैं ना। जो चक्र में आने वाले हैं वह इन बातों को नहीं जानेंगे, जो इस चक्र से बाहर है तो वह बाहर वाला उसके पास ही यह सब नॉलेज रहती है। वह मैं हूं ही एक इसीलिए मैं जानता हूं और इसीलिए ही मैं आ कर के फिर सुनाता हूं। क्योंकि वह जानकारी रहती ही मेरे पास है और सबसे भूल जाती है। और तो आते हैं चक्र में भूल जाते हैं तो इसीलिए कहते हैं मुझे आना पड़ता है और मैं आकर की फिर ये नॉलेज समझाता हूं। तो सुनाने वाला, समझाने वाला मैं एक ही हो गया ना इस बात का। और मेरे द्वारा ही बल मिलने का है क्योंकि बल देने वाला भी मैं हूं। मेरे में ही वह पावर रहती है और तो सब अपना पावर इस जन्म मरण के चक्कर में आकर के खो देते हैं। मेरे पास ही रहता है इसीलिए फिर मैं आता हूं वह अपना बल देने के लिए। तो यह तो सीधी बातें है ना इसमें कोई मूंझने की बात है ही नहीं। इसीलिए मुझे परमात्मा, इसीलिए मुझे सर्वशक्तिमान, इसीलिए मुझे जानी जाननहार, इसीलिए मुझे ज्ञान का सागर, इसीलिए मुझे सब यह जो महिमा करते हो। मेरी महिमा कोई मुफ्त की थोड़ी ही है मैंने काम किया है और मेरा कुछ कर्तव्य है । मैंने यहां बहुत ऊंचा काम किया है इसीलिए महिमा है। जैसे मनुष्य की भी महिमा क्यों होती है भाई गांधी गांधी गांधी सब करते हैं देखो, भाई बड़ा आदमी, अच्छा था, ऊंचा था ऐसा। ऊंचा तो माना यह नहीं कि बड़ा बड़ा था एकदम, ऐसा तो बड़ा नहीं था ना। बड़ा माना अपने कर्तव्य में बड़ा था। उसने कुछ कर्तव्य अच्छे किए इसीलिए उनको सब याद करते हैं, उसकी सब महिमा करते हैं। तो मनुष्य की हिस्ट्रीज में भी जो बातें आती हैं भाई फलाने मनुष्य ने यह काम किया, इसने अच्छा किया तो देखते हैं जिन्होंने भी अच्छा काम किया तो उनका नाम आता है कि हां भाई इसने ऐसा ऐसा किया। इसमें फिर उन आदमियों की फिर हिस्ट्री आदि में नाम लेते हैं उनकी हिस्ट्री बनती है। तो परमात्मा की भी जो महिमा है इतनी तो उसने भी हमारे लिए कुछ काम किया होगा ना। बाकी ऐसे थोड़ी ही है कि बस हां ऊंचा बैठा ही है, बस उसकी शक्ति चलती रहती है या उसका यह काम सब होता ही रहता है तो ऐसी तो नहीं है न। नहीं, उसने आकर के कुछ किया है, वह क्या किया है, हम मनुष्य को ऐसा ऊंचा उठाया है और इस तरीके से उठाया है इसीलिए उसकी महिमा है। तो अभी समझना है ना कि परमात्मा की महिमा और परमात्मा का कर्तव्य कैसा है और उसी के ही कर्तव्य के ऊपर उसकी महिमा है जो अभी फिर से आकर के कर रहा है । और सबने महिमा गाई है देखो जो भी धर्म पिताऐं भी आए हैं ना उन्होंने उनकी महिमा गाई है। गुरु नानक देव ने भी उसकी महिमा, क्राइस्ट बुद्ध उन्होंने भी तो इशारा उसकी तरफ उठाया है ना । क्राइस्ट को थोड़ी ही कहेंगे हेवेनली गॉडफादर। हेवेनली गॉडफादर वह भी कहेंगे तो उसको निराकार परमपिता परमात्मा को । परंतु वह कई समझते हैं हेवेनली गॉडफादर उसका माना वो हेवेन में बैठा है। नहीं उसने हेवेन दुनिया को बनाया है। हेवेन एंड हेल इस दुनिया का नाम है बाकी हेवेन कोई बना नहीं रखा है जहां बैठे हैं। नहीं हेवेन भी बनना इधर ही है ना। हेल भी इधर ही है हेवेन भी इधर ही है। हेल ये बना है, हेवेन से हेल बना है, अभी हेल से फिर हेवेन होने का है बाकी ऐसे नहीं है हेवेन कोई बनी बनाई दुनिया रखी है जिसमें जाना है । नहीं, इसको बनना है। तो अभी इसको बनना है तो जिस चीज को बनना है उसको बनाने वाला भी तो पावरफुल चाहिए ना । इसलिए बाप कहते हैं मैं आता हूं इसको हेवेन बनाने के लिए। कैसे बनाता हूं वो बैठ करके समझाते हैं इसीलिए फिर मेरा नाम क्रिएटर क्योंकि मैं बनाता हूं ना। यानी है तो बनी बनाई, दुनिया तो अनादि है, परंतु मैं आकर के हेल से हेवेन करता हूं उसकी पावर देता हूं इसीलिए मेरा नाम हो जाता है भाई क्रिएटर। बाकी ऐसे नहीं कभी दुनिया है ही नहीं, मनुष्य है ही नहीं, जिसको मैं क्रिएट करता हूं परंतु इसी तरह से क्रिएट करता हूं। तो यह सभी चीजें बैठ करके समझाते हैं । तो यह सभी बातें कोई डिफिकल्ट थोड़े ही हैं या कुछ मूंझने की तो नहीं हैं न। यह तो बहुत साफ बातें हैं जिसको समझ करके और उसी पर पुरुषार्थ रखने का है । अभी ऐसे बाप से..., अभी वह फरमान करते हैं कि मुझे याद करो और मैं जो फरमान करता हूं अपने कर्मों को अच्छा पवित्र रखो तो उसी से तुम्हारा यह अधिकार जो है हेवेन का वो तुमको प्राप्त होगा, इसमें दूसरी क्या बात है। तुम वैसे भी तो कर्म करते ही हो परंतु वह कर्म तुम्हारे रोंग होते जाते हैं। उससे तुम्हारा दुख बनता जाता है इसीलिए बाप कहते हैं अभी समझ से करो। मैं जो समझ देता हूं उसको लेकर के अच्छी तरह से करो, मेरे डायरेक्शंस पर रहो, मेरी मत पर चलो तो फिर तुम्हारे जो एक्शन वह राइट रहेंगे और उसकी आधार से तुम सुखी रहेंगे और क्या है। हमको अपने एक्शंस से ही तो बनना, बिगड़ना यह सारा हमारा उसी पर आधार है। उसको हम क्या बनाएं, कैसे बनाएं उसको उसकी हमको समझ चाहिए, वह अभी समझ दे रहा है, उस पर चलना है। तो इसमें बाकी क्या मूंझना है ? तो ऐसी बातों को समझ कर करके और अपना ऐसा पुरुषार्थ रखना है। अच्छा। देखो कितनी सिंपल है, कितनी सहज है और इसके लिए देखो कितने वेद, शास्त्र, ग्रंथ, पुराण और कितने हठयोग, प्राणायाम फलाने फलाने कितनी बातें बनाई हुई है। नहीं तो है तो बिल्कुल सिंपल। मनुष्य को बनना, किससे है मनुष्य नीचे ऊंचा होता है वह बातें साफ कर कर के बाप समझाते हैं कि चलना तो उसको कर्म से ही है लेकिन कर्म को खाली सुधारते चलो । सुधारों कैसे, वह चीज समझाते हैं। उसके लिए तुमको कोई विद्वान, उसके लिए तुमको कोई पंडित, उसके लिए तुम को कोई आचार्य बनने की ऐसी तो बात ही नहीं है ना। तुमको अपने कर्म को स्वच्छ बनाने का है तुमको उससे बनना है । तो स्वच्छता क्या है, पवित्रता क्या है वह बैठ करके स्पष्ट समझाते हैं कि मेरे बिना तुम पवित्र बन ही नहीं सकते हो मेरे योग के बिना । इसीलिए कहते हैं भले तू कोई देवता का योग कर, भले कोई मनुष्य का योग कर किसी के भी योग से तू पवित्र नहीं बन सकता। पापों को दग्ध करने का बल मेरा बल देगा तो इसीलिए बाप कहते हैं मेरा योग अथवा मेरे से कनेक्शन। जब तक मेरे से कनेक्शन नहीं है जैसे बत्तियों का कनेक्शन मेन पावर हाउस से है न, अगर वहां न हो तो बत्ती में लाइट नहीं आएगा, बल नहीं आएगा ना वो। इसी तरह से तेरा कनेक्शन मेरे से है। मैं हूं मेन पावर हाउस तो उससे कनेक्शन चाहिए ना। अगर उससे कनेक्शन ना होगा तो वो ताकत नहीं मिलेगी और ताकत ना मिलेगी तो पाप दग्ध ना होंगे और पाप दग्ध नहीं होंगे तो तू आगे नहीं चढ़ेगा इसीलिए कहते हैं मेरे से। समझा। कहते हैं मेरे योग बिना यह गति सद्गति होगी नहीं। जानते हो ना ऐसे बाप को और दादा को ? अभी बाप दादा में कोई मूंझता तो नहीं है ना? कैसे वह परमपिता, परमात्मा इसके तन में क्यों आता है या इसमें ही कैसे आता है कोई मूंझता हो तो बताए । यह क्या गीत सुनाना चाहता है?