मम्मा मुरली मधुबन

याद की यात्रा


रिकॉर्ड:
कौन आया मेरे मन के द्वारे.....
कौन आया मेरे मन के द्वारे, इसका शायद कई ऐसे भी अर्थ समझते होंगे क्योंकि कॉमन तो मनुष्यों की बुद्धि में यही बात है ना परमात्मा अंदर है। बाहर भी है अंदर भी है, बैठा है परंतु कौन आया मन के द्वारे उसका मतलब यह नहीं है कि परमात्मा आया। नहीं, वह आया नहीं अंदर उसकी याद आई। किसकी याद आती है ना तो याद ऐसी चीज होती है जिसकी याद होती है तो कहने में आता है वह तो जैसे हमारे पास बैठा है, जैसे हम उनके पास बैठे हैं परंतु ऐसे नहीं है वह हमारे में आया बैठा है या हम उसमें बैठे हैं लेकिन याद, उसका एक महत्व रूप कहा जाता है भाई इसकी याद ऐसी है जैसे कि हम उससे अलग नहीं है। ऐसी याद है जैसे हम उसके साथ ही हैं तो एक याद कि वह महत्वता है परंतु है तो याद ना। ऐसे थोड़े ही कि वह चीज हमारे में अंदर बैठी है, आए बैठी है या आई है हमारे अंदर । नहीं, याद उसकी आई है । हमारे अंदर उसकी याद है । तो यह है सभी परमात्मा के प्रति क्योंकि अभी तो अपनी दृष्टि उधर है ना। कहा जाता है ना जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि तो अभी अपनी बुद्धि में है एक की ही याद । किसकी याद है? परमपिता परमात्मा की। तो इसीलिए अभी उनकी याद आई है, जाना है उसको समझा है और उसकी याद अभी रखने की है क्योंकि उसका फरमान है। याद कहो या योग कहो बात एक ही है। योग अक्षर हम बहुत काम में नहीं लाते हैं याद कहते हैं क्योंकि याद जरा सिंपल चीज है ना। योग से कई समझते हैं भाई हां योग, योग अक्षर से वह कइयों ने सुना हुआ है ना बहुत और योग के नाम पर बहुत आश्रम, बहुत ऐसी चीजें मनुष्य ने बनाई है आसन लगाना, आसन के भी कई किस्म बैठकर के बतलाते हैं ऐसा आसन, फिर ऐसा आसन, फिर ऐसा वैसा कई बातें सिखाते हैं ऐसे बहुत योग आश्रम नाम के बहुत आश्रम है। तो यह जो बहुत चीजें चली हुई है ना तो हम योग अक्षर कहेंगे तो कईयों की बुद्धि उधर चली जाएगी कि यह योग पता नहीं कोई आसन का योग है या क्या करना है इसीलिए बिचारे कई यहां आते हैं ना तो पूछते हैं कि आप का योग क्या है, क्या करना है। अभी करने को तो कोई हाथ पाव से या आंखों से या कानों से या आंख मूंदनी है या कान मूंदना है या कुछ बैठकर करना है तो करने की तो कोई चीज नहीं है ना। यह तो है बुद्धि की लगन। अभी उसी लगन को तो बुद्धि से याद रखना है चलते फिरते खाते-पीते अभी इसी याद को, फिर याद ऐसी अटल चाहिए ना। अभी वह तभी होगी जब हमको उनके साथ अपना क्या रिलेशन है जिससे हमारी याद रहेगी, किसका किसके साथ लव होता है तो भाई हां उससे हमारा क्या रिलेशन है क्या है वह तभी तो उनके प्रति हमारा लव जाएगा ना। तो यह भी चीज है जिसको हमें याद करना है उसके साथ लव चाहिए। अभी लव भी तभी बैठेगा जब हमको नॉलेज हो उसके साथ हमारा रिलेशन क्या है। वह लगता क्या है हमारा। उससे हमको प्राप्त क्या होने का है । हां प्राप्ति की कुछ टेंप्टेशन होगी तो लव भी बैठेगा, कुछ टेंप्टेशन नहीं होगी तो लव क्यों बैठेगा। देखो कोई स्त्री की या किसकी लगन किसी के साथ लग जाती है तो टेंप्टेशन है ना प्यार की, सुख की कोई टेंप्टेशन है तो उधर लव जाता है । तो हमारे को भी अपना मालूम हो ना की उसको हम लव करें अथवा प्रेम करें उसको याद करें तो हमको क्या मिलना है उससे। हमारी कोई टेंपटेशन का पता होना चाहिए ना । तो जिसमें टेंप्टेशन होती है बुद्धि उधर खींची जाती है फिर जिस्मानी प्रेम में या कोई चीज में, कोई वस्तु में वो टेंप्टेशन खींचती है। देखो पैसे में किसका लव होता है तो फिर पैसे की तरफ बुद्धि जाएगी कोई और चीज में लव होगा उधर बुद्धि जाएगी। बैठा होगा किधर बुद्धि उधर जाएगी जहां प्रेम होगा, जहां आसक्ति होगी। तो अभी हमको लगानी है उसके साथ तो उसका भी हमें पता होना चाहिए ना कि उससे हमें होना क्या है, मिलना क्या है, बस ऐसे ही याद करें खाली? तो ऐसे तो बैठेगी नहीं तो वह नॉलेज होना चाहिए। तो नॉलेज है कि हमारी तो बहुत उसके पास जायदाद यानी मिलने की चीज है । वह कौन सी मिलने की चीज़ है ? जो हमारी लाइफ की, जो लाइफ है ना लाइफ कहा जाता है पीस एंड प्रोस्पेरिटी वह जो हमारी है लाइफ की चीज जिसको ही लाइफ कहा जाए, बिना पीस एंड प्रोस्पेरिटी के यानि सुख शांति के सिवाय लाइफ इज नॉट लाइक। कहते हैं यह लाइफ ही नहीं है। जिंदा होते भी मनुष्य अगर अशांत और दुखी है तो कहते हैं ना इससे तो मरे भले यह तो जिंदे मुर्दे हैं। जब मनुष्य दुखी होता है तो कहता है ऐसे जीने से फायदा ही क्या है जब दुख आता है तो उसको माना सुख और शांति। परंतु सुख भी कंप्लीट शांति भी कंप्लीट चाहिए ना। अभी हमारी जो कंप्लीट चीज है ना वह उनके पास है तो हमको अभी वो टेंप्टेशन है कि उनसे वह लेना है। हमारे लाइफ की जो लाइफ है सुख और शांति वह उससे लेना है, अभी कैसे लेवे? तो अभी उनसे कैसे लेना है तो उसके लिए फिर हमको अभी मत मिलती है डायरेक्शंस मिलते हैं कि हां बी प्योर, पवित्र बनो तो अपने को पवित्र रखो। यह पांच विकार जो है शत्रु तेरे वह निकालो और अपने कर्मों को भी अच्छा रखो। उसका अपने में ख्याल रखो, सावधानी रखो और मुझे याद रखो तो याद से भी तुम्हारे पास जो है वह दग्ध होंगे। तो देखो उसको याद करने से भी हमको मालूम है ना क्या फायदा मिलेगा और हम अपने कर्मों को भी क्यों स्वच्छ रखें क्योंकि हमारे कर्म ऊंचे रखेंगे तभी हमको पीस एंड प्रोस्पेरिटी सुख शांति मिलेगी इसीलिए वह जो हमारी टेंप्टेशन है ना वह हमको उसी की तरफ खींचेगी। तो अभी यह है बुद्धि की याद, उसी को ही योग कहने में आता है। बाकी योग कोई और ऐसी चीज नहीं है इसीलिए हम याद ज्यादातर कहते हैं क्योंकि याद कॉमन भी है और बड़ी सिंपल चीज भी है। इसके लिए कोई बैठकर के शारीरिक क्रिया करनी है या कोई ऐसी बातें नहीं है इसीलिए इसको याद कहना और अच्छा है ईजी है क्योंकि उन्होंने योग के नाम के ऊपर बहुत ऐसी-ऐसी बातें लगा रखी है ना तो मनुष्य बिचारे मूंझे हुए हैं इसीलिए बिचारे कोई कष्ट की बात यहां दिखाई जाए ना, अगर भाई कांटों पर सोना है तो समझेगा शायद यह कोई बड़ा योग है परंतु यह कांटे कोई ऐसी बात नहीं है। कई कई बिचारे करते हैं बहुत ऐसी क्रियाएं करते हैं कहीं-कहीं तो देखो जहां आप लोग जाते होंगे यह मेले वेले होते हैं ना वहां आप लोग देखते होंगे आते हैं ऐसे कांटों पर भी सोते हैं, ऐसे खून विचारों का बेहता रहता है । बहुत हठ करते हैं इसको कहा जाता है हठयोग । तो कई हठ के तरीके हैं जिससे समझते हैं कि अपने को शायद कष्ट देंगे तभी भगवान मिलेगा। अरे! भगवान कहता है तू अपना खून बहेगा तभी मैं मिलूंगा ऐसी कोई बातें थोड़ी है। बहुत ऐसे तरीके करते हैं बिचारे कष्ट के । आप लोग जो ऐसी ऐसी बातों में अनुभवी होंगे तो देखते होंगे बहुत ऐसे ऐसे तरीके करते हैं । तो यह सभी बातें हैं जो बैठकर के बाप समझाते हैं कि बच्चे इन्हीं हठ से, यह अपने को तकलीफ देना, आपने को हठ से बैठाकर यह सब करना इससे मेरी प्राप्ति का कोई ताल्लुक नहीं है । यह मेरी प्राप्ति जो है ना वह तो जो मैं बतलाता हूं उसी तरीके से हैं। वह तो तुम्हारे कर्म जो है ना उसी को तुम को स्वच्छ बनाना है जिसके आधार से तुम्हारी प्रालब्ध बनेगी । बाकी तुम अपने को कष्ट दोगे यह करोगे यह नहीं। बाकी हां यह पांच विकार निकालना है उसी के लिए कुछ सहन करना पड़े ना तो करना है। बाकी ऐसे नहीं जान बूझकर अपने को कष्ट देना है, जानबूझकर वह तो हठ हो जाता है ना। तो जानबूझकर कोई अपने को कष्ट देने से नहीं है हां अपना जीवन बनाने में कई बातें आती हैं, देखो कई कहेंगे बुरा है, यह है देखो यह गाली वाली सुननी पड़ती है ना थोड़ी बहुत। दुनिया बुरा कहेगी यह कहेगी वह कहेगी कि इनको क्या हुआ है ऐसी कई बातें आती हैं तो यह सभी बातों को भी ना सोच कर कि इन्हीं बातों का कोई ख्याल ना करके इनको सहन करके अपने में ही, हम तो सत्य के लिए कर रहे हैं ना । सत्य के लिए देखो गांधी जी ने सत्य के लिए किया, अगर गोली भी लग गई तो उसने क्या कहा कि इसके लिए अगर हमारी जान भी गई ना तो कोई बड़ी बात थोड़ी ही है, तो देखो जो सत्य के ऊपर रहे हैं उन्होंने सितम भी सहन किए हैं। क्राइस्ट की हिस्ट्री है तो देखो वह सत्य पर रहा तो फिर उनको सितम भी मिला ना टॉर्चर्स । तो ये टॉर्चर्स उन्होंने सहन किया किसके लिए? सत् के लिए। तो हां हम अगर सत पर चलते हैं उसके लिए हमको दुनिया कुछ बुरा भला कहती है या कोई भी ऐसी बातें आती हैं उन्हीं को हमको सहन करके हमको पार होना है तो इसी चीजों में हमको हिम्मत रखनी है। हां इसी कांटों से पार होना है बाकी ऐसे नहीं जानबूझकर कांटो के ऊपर चलना है परंतु हां यह विघ्न आते हैं यह हमारे सामने बातें आएंगी क्योंकि हम युद्ध करते हैं पांचों विकारों से तो पांच विकार भी हमारी हो अपोजिशन करेंगे ना। फिर विकारी संबंध यह सभी बातें अपोजीशन करेंगे तो यह सब होगा, इसकी फिर परवाह नहीं करनी है। इसीलिए बाप कहते हैं हां इन्हीं के लिए तुमको कुछ सहन भी करना पड़े तो यह तो देखो जिन्होंने थोड़ा बहुत काम भी किया उन्हों को भी टॉर्चर्स सहन करने पड़े। किसकी हिस्ट्री में नहीं है जिन्होंने किया सब को सुनना पड़ा। किसी को गाली खानी पड़ा, किसी को क्रॉस पर चढ़ना पड़ा, किसी को कुछ होना पड़ा, कुछ ना कुछ थोड़ा बहुत सहन किया है बाकी ऐसे नहीं है और नाम भी आज उन्हों का ही है । जिन्होंने सहन किया, जिनको उस समय ना समझ करके किसी को मार दिया , किसी को कुछ किया आज नाम भी तो उन्हीं का है ना फिर जितना जितना जिसने जैसा जैसा किया । तो बाप कहते हैं हां इसी में क्योंकि सत मार्ग है इसमें तुम्हारे यह विकार का संबंध जो है ना उल्टे खाते का बना हुआ वह अपोजिशन भी करेंगे पर इसमें हिम्मत रखने की है ना इसमें घबराना नहीं है। तो यह है कांटे यह आते हैं न प्रैक्टिकल लाइफ में। प्रैक्टिकल लाइफ बनाने में तो यह सारी बातें आएंगी अभी उसी में से पार होना है । बाकी ऐसे नहीं है कि अपने को कोई कष्ट देने की बात है , बाकी यह जो आती है नेचुरल कष्ट के रूप आएंगी यह सब उसी से पार होना है। तो यह है अपना प्रैक्टिकल लाइफ बनाना और बाप कहते हैं मुझे ऐसे याद करो। बाकी ऐसे नहीं है कि इस योग के लिए या याद के लिए कोई कष्ट की बात है । याद तो फिर बाप है बाप के लिए क्या हमको कष्ट उठाना है । अरे! बाप है ना खाली बाप को ही समझे तो बाप कहने से देखो रस आता है ना। खाली परमात्मा कहने से मजा नहीं आता है फीका फीका लगता है । परमात्मा, गॉड, अब गॉड क्या भगवान, फीका ही फीका । अब कहें भगवान, भगवान हमारा पिता है अरे! भगवान , कोई मिनिस्टर का बच्चा होना तो कितना उसका करें अरे मिनिस्टर, मिनिस्टर हमारा बाप है, हम मिनिस्टर का बच्चा है, हम गवर्नर का बच्चा है, हां हम राजा का बच्चा है, हम फलाने का है , होता है ना, वह भी तो अपने पोजीशन का, बाप के खानदान का, बाप के कुल का भी नशा होता है ना तो हम किसके बच्चे हैं? परमात्मा, परमपिता के जो पिता है सब का रचता है उसी की तो हम रचना है परंतु हम प्रैक्टिकल , ऐसे नहीं कहने वाले तो सब कह देंगे कि हां हमारा वह पिता है। किसी से भी पूछेंगे कि परमात्मा तुम्हारा क्या लगता है कहने को तो कह देंगे पिता लगता है। पिता लगता है तो फिर पिता कहां पुत्र कहां पड़ा है। तो जैसा पिता तो फिर पुत्र को भी फॉलो करना चाहिए ना यह भी सभी बातें हैं ना तो देखो समझ जब फॉलो करेंगे तब तो फिर हम अपनी क्वालीफिकेशंस में श्रेष्ठ बनेंगे नहीं तो कैसे बनेंगे । तो यह सभी चीजों को समझने की बातें हैं ना तो अभी बाप बैठ करके समझाते हैं कि मैं पिता, मेरी क्वालीफिकेशंस और तुम बच्चे की क्वालीफिकेशंस भले तुम बच्चे बड़े भी बनोगे क्वालिफाइड भी बनोगे लेकिन तुमको तो फिर मनुष्य क्वालिफाइड होना है ना मैं तो कोई मनुष्य नहीं हूं ना मैं तो हूं ही निराकार। देखो उनका गुण कौन सा है नॉलेज फुल उनको कहते हैं और उनको सबका सागर कहते हैं शांति का सागर और सुख का सागर यानी सुखदाता, शांति दाता, पतित पावन अभी वह किसको कहेंगे परमात्मा को। मनुष्य को फिर पतित पावन नहीं कहेंगे, उनको क्या कहेंगे पतित से पावन होने वाला। मनुष्य पावन बनता है और बनाने वाला परमपिता परमात्मा तो बनाने वाला वो और बनने वाले तो हम हैं ना। बनाने वाला भी वह और बनने वाले भी वही वह कैसे होगा ऐसे होगा ? पतित पावन भी हम बने और बनाने वाले भी हम ही ऐसा भी नहीं है तो फिर अगर ऐसे हो तो यह बातें तो नहीं हो ना लेकिन नहीं बनाने वाला वह इसीलिए उसे कहा जाता है तू पतित पावन करने वाला। देखो गांधीजी भी गाता था न, वह कहते थे रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीताराम गाता था, बहुत गाता था। जिन्होंने भी उनके लेक्चर सुने होंगे गीता के ऊपर, जब गांधी जी थे तो बहुत सवेरे सवेरे में गीता के ऊपर सुनाते थे। उनको गीता के ऊपर बहुत प्रेम था। वह बड़े लेक्चर देते थे गीता के ऊपर तीन तीन बजे आदमी जाते थे वो सवेरे सवेरे करते थे तो जिनको शौक होता था वह तीन बजे भागते थे सुबह को , सुबह सुबह को तो वह बड़ा गाते थे अच्छी तरह से पतित पावन सीता राम रघुपति राघव राजा राम तो वह बेचारे गांधी भी पूरे पतित पावन, एक तरफ तो कहते थे पतित पावन सीताराम कि हां वह सीताओं का जो राम है वह पतित पावन है परंतु वह जो पीछे लगा दिया है न रघुपति राघव राजा राम तो सब की बुद्धि चली जाती थी वह त्रेता वंश का था ना राजाराम उसकी तरफ परंतु कोई जो वह त्रेता वंश का राजाराम था उसने कोई पतितो को पावन नहीं बनाया था वह तो खुद पावन बना था और उसको किसने बनाया था, वह त्रेता वंशी राजाई का पद उसको कहां से मिला, निराकार परमात्मा से। तो पतित पावन तो निराकार है उसको भी राम कहा जाता है। राम परमात्मा को भी कहा जाता है ना। वैसे तो ऐसे बहुत अपना नाम राम रखवाते हैं यहां भी बहुत होंगे किसी का रामचंद्र नाम होगा, किसका कैसा नाम होगा। नाम होते हैं ना किशन चंद्र, रामचंद्र यह तो नाम रखते हैं बहुत, इसी तरह से एक त्रेता वंशी राजा भी था जिसका नाम राम था और उसकी औरत का नाम सीता था परंतु कईयों ने जा करके उसी राम के लिए समझा है कि उसी ने आकर के पतितो को पावन बनाया परंतु उसने नहीं बनाया। उसको भी खुद उस त्रेता वंशी राजा को भी यह राजाई पद और ऐसा पवित्र राजा किसने बनाया ? परमात्मा ने, निराकार ने तो वह राम निराकार। तो यह सारी चीजें समझने की है ना इसीलिए पतित पावन निराकार परमात्मा । बाकी वह मनुष्य नहीं है जो एक राजा हो करके गया है त्रेता वंश का उसकी बात नहीं है । उसको भी यह प्रालेब्ध मिली, परमात्मा ने यह जो शिक्षा दी है उसी के द्वारा वो किंगडम बनी है। तो यह सभी चीजों को समझना है इसीलिए मनुष्य और परमात्मा की महिमा में फर्क है। मनुष्य ऊंचे में ऊंचा सर्व कला संपूर्ण कहेंगे, सर्वगुण संपन्न तो सर्वगुण संपन्न कैसे यही जो देवता है श्री लक्ष्मी श्री नारायण श्री सीता श्री राम, यह मनुष्य की स्टेटस है ना। तो हमको क्या बनना है? सर्वगुण संपन्न, 16 कला संपूर्ण यानी हर एक मनुष्य के लिए यह बात है नर अथवा नारी को और परमात्मा बनाने वाला जो बैठकर के यह नॉलेज दे रहा है। तो यह सभी चीजें समझना है ना इसलिए परमात्मा के ऑक्यूपेशन को और मनुष्य का ऑक्यूपेशन कि ऊंचे में ऊंचा मनुष्य कौन सा और परमात्मा का क्या कर्तव्य है इन्हीं सभी बातों को यथार्थ जानना है। ऐसे नहीं है कि परमात्मा और मनुष्य आत्मा एक ही है या उसको मिलकर एक ही हो जाना है , नहीं । मनुष्य ऊंचे में ऊंचा यह स्टेटस, उसको सर्वगुण संपन्न बनना है। और वह बनेगा तभी जब अपने विकारों से अपने को निमृत करेगा और पापों को दग्ध करेगा उसके योग से। तो यह सब चीजें समझी ना? अभी टाइम ही हुआ है इसीलिए आप लोगों को अभी छुट्टी देते हैं। थोड़ा सुनना लेकिन प्रैक्टिकल में बहुत लाना है। ऐसे नहीं सुनना बहुत काम में थोड़ा लाना है, नहीं काम में बहुत लाना है सुनना थोड़ा है । हां ऐसी धारणा को बनाओ ।अच्छा 2 मिनट साइलेंस। साइलेंस का मतलब है याद करो । आई एम सोल असुल साइलेंस है। साइलेंस से फिर टॉकी में आए हैं ना, यह टॉकी वर्ल्ड है। असुल हम साइलेंस वर्ल्ड की है, पीछे यह टॉकी में आई हैं अब फिर हमको जाना है साइलेंस वर्ल्ड और फिर टॉकी वर्ल्ड में, प्योर टॉकी वर्ल्ड में यह इम्प्योर टॉकी वर्ल्ड है। यह इम्प्योर हो गई है ना अब फिर प्योर जिसको हेवेन कहेंगे उसमें आना है। तो अभी वह हेवेन बनता है परंतु बनेगा हमारे कर्मों से ना । तो अभी साइलेंस, सन ऑफ सुप्रीम सौल उसको याद करना है । (रिकॉर्ड बजा ओम नमः शिवाय) हमारे मन में तुम्हारी भक्ति जगी, भक्ति का मतलब है याद । भक्ति का मतलब यह नहीं है पठन-पाठन पूजन माला सिमरन नहीं, यह याद। तो जिसके मन में अथवा बुद्धि में तुम्हारी याद जगी उसने ही तुमको पाया। बाकी यह तो पठन-पाठन पूजन यह तो इसको कहेंगे भक्ति मार्ग। यह तो बैठकर कुछ उल्टे सुल्टे काम करने से फिर भी अच्छा है परंतु हमारी चाहिए बुद्धि की याद ना। अगर माला फेरे और बुद्धि में काम धंधा इधर-उधर तो फिर क्या हुआ उससे। नहीं, यह बुद्धि को लगाना है जिसमें इस गीत में भी है ना हाथ के मन के छोड़ के मन का मनका अर्थात बुद्धि की याद मैं उसको लगा। ऐसे नहीं यह हाथ के मनके यह हांथ से चलता रहे और बुद्धि इधर-उधर भटकती रहे इससे फिर क्या हुआ (एक भाई ने कहा हाथ चलता रहे और बुद्धि से याद करता रहे....) हां परंतु इसकी जरूरत नहीं है। यह आधार पकड़ने की भी जरूरत नहीं है इससे हाथ रोकना पड़े ना। हमको अगर रसोई पकानी है तो क्या उसको भूल जाना चाहिए, खाली माला जब हाथ में है तभी याद करें ? सारा दिन फिर माला रखनी पड़े न। नहीं, हम रसोई पकाएं ऐसा करते रहे तो याद करते रहे। हम सब कुछ काम करते रहे तो याद करते रहे। ऑफिस दफ्तर में फिर तो हमको सारा दिन माला ही लेकर बैठना पड़े न। परमात्मा ने कहा है निरंतर याद करो तो क्या करें इसीलिए बहुत बिचारे है ना वह माला पॉकेट में रख लेते हैं । उस में हाथ डालकर ऐसे ऐसे करते ही रहते हैं परंतु यह सब तो एक आदत बन जाती है ऐसे ऐसे करने की । मुख से गाली देंगे हाथ से ऐसे ऐसे करेंगे वह एक आदत बन जाती है। नहीं, यह बात कोई ऐसी नहीं है कि बुरी है परंतु हमको तो चाहिए बुद्धि का योग ना इसीलिए हमको इन बातों की कोई जरूरत नहीं है यानी जरूरत नहीं है। एक होता है ना कि हां बस यही करना है तो कई समझते हैं बस यही करो पीछे बुद्धि कहां भी होए, क्या भी करें हम कोई भी विकारों में उल्टा काम कोई भी करें तो बस हां। और ऐसी बहुत हैं आदत हो जाती है ना, माला सिमरती है और नौकर से कहेंगे साथ में हां भैया यह काम करो राम-राम.. राम-राम राम-राम राम-राम.. यहां से ऐसे से करते ही रहेंगे और गाली भी देंगे वह बच्चा राम राम राम राम राम राम बहुत ऐसे ऐसे हैं जो आदत बन जाती है ना तो वो समझते हैं कि बस खाली राम-राम राम-राम ऐसे करना है, वो बुद्धि इसमें उसमें लगी रहती है उससे कुछ नहीं बना ना? बनाना तो बुद्धि योग से है ना। यह जो बनाई है ना यह समझाया है। इसको ऐसा नहीं है किसी सिमरने के लिए, यह अर्थ समझाया है इनका कि यह जो माला है यह यादगार है। ये जो माला सिमरते हो ना वह क्या है? वो यादगार है जो हम प्रैक्टिकल में प्यूरीफाइड बने हैं ना उनकी यादगार है . तो यह यादगार के लिए भक्ति मार्ग जैसे और चित्र रखे हैं ना परंतु यह चित्र पूजने के लिए तो खाली नहीं है ना या यह खाली सिमरने के लिए तो नहीं है ना तो देखो जैसे यह चित्र भी है ना यादगार है, वैसे यह भी यादगार है । वैसे तो शिवलिंग भी यादगार है ना परंतु इस यादगार का महत्व समझना है कि यह काहे की यादगार है । ऐसे खाली उनका बैठकर के पूजन करने की तो बात नहीं है ना, इन्होंने क्या काम किया हमको ऐसा बनना है । यह यादगार है इसीलिए हम को ऐसा बनना है समझा। तो ऐसा बनाना है ना तो यह कैसे बने ? यह खाली माला सिमरने से थोड़ी ही बने, यह बने अपने कर्म को श्रेष्ठ करने से । तो कर्म श्रेष्ठ कौन सा है उसी को समझना है कि विकारों के बिना कर्म को कर्म श्रेष्ठ कहा है बाकी जो कई समझते हैं कि यह करने से ही कर्म श्रेष्ठ है ना वह नहीं इसीलिए समझाया । बाकी ऐसे नहीं है वह कोई बुरी बात है तभी तो कहते हैं ना नास्तिक से भगत अच्छा । यह जो हमने बताया पहले पहले ही बतलाया कि नास्तिक से भगत अच्छा लेकिन भगत से फिर ज्ञानी श्रेष्ठ है क्योंकि इन सब बातों का ज्ञान चाहिए ना समझा भूपालम। जी। बाकी ऐसा नहीं है कि यह कोई बुरी बातें हैं नहीं यह तो बतलाया ना।