मम्मा मुरली मधुबन           

   001.Raju Bhai - Mama Ka Veshashta - 24-06-05

 


आज 24 जून हमारी मीठी जगदंबा मां का स्मृति दिवस है । हम सबने कल मम्मा का संदेश भी सुना, योग भी किया लेकिन सारे भारत में सभी सेवा केंद्रों पर आज का विशेष दिन मम्मा की स्मृति में योग की भट्टियां और कुछ माताओं के लिए कार्यक्रम चल रहे हैं। कुछ स्थानों से मेरी बात हुई फोन पर तो कहीं प्रोग्राम में माताओं के ग्रुप बुलाए हुए थे, कहीं योग की भट्टियां चल रही थी। मीठी मम्मा की विशेषताएं हम दादियों के द्वारा सुनते रहते हैं। जिन्होंने साकार में पालना ली है उनके सामने तो मम्मा की मूर्ति, वह चेहरा, वह पालना के सब दृश्य आ ही जाते हैं लेकिन हम सबने उनकी विशेषताओं को उनके महावाक्यों को सुना है, जानते हैं। यही छोटा हॉल जिसमें दोनों ही मात-पिता जब सामने बैठकर मुरली चलाते थे। उस समय की मुरलिया भी जो अभी कभी-कभी रिवाइज होती हैं, क्या मम्मा की विशेषताएं थी तो कल सब चारों तरफ से फोन करने लगे की मम्मा की विशेषताएं इस बार मधुबन से नहीं आई है जो हर साल भेजी जाती हैं । मम्मा की मुरली तो सब जगह पहुंच ही गई है लेकिन विशेषताएं नहीं भेजी थी। कल मम्मा की इकत्तीस विशेषताएं सबके पास भेजी हैं। आप सुनना चाहेंगे? अच्छा। तो हम सभी को एडवांस पार्टी के समाचारों का विशेष ध्यान रहता है क्या समाचार है उनके पास क्योंकि सभी ब्राह्मणों की बुद्धि में है कि अब वह एडवांस में गई हुई आत्माएं जो श्रीकृष्ण को जन्म देंगी, जो देवी देवताओं को इस धरती पर उतारेंगी। कौन उतारेंगे? जो एडवांस में ब्राह्मण आत्माएं, योगी आत्माएं गई हैं । बाबा ने हम सब को बहुत ही स्पष्ट बातें बताई हैं कुछ छिपाया नहीं है। कैसे यह योगी आत्माओं के घरों में फर्स्ट आत्माएं सतयुग की अवतरित होंगी, जन्म लेंगी और फिर यह वापस जाएंगी, जन्म दे करके वापस घर जाएंगी। तो हर एक ब्राह्मण के अंदर ये रहता है की एडवांस पार्टी का क्या पार्ट चल रहा है तो इस बार ये गुप्त रीति से इशारा मिल गया। वो सभी एवररेडी हैं अपने आप को प्रत्यक्ष करने के लिए, तुम सिर्फ एवररेडी हो जाओ। अपने आप को संपन्न और संपूर्ण बना लो तो एडवांस पार्टी अभी स्टेज पर प्रत्यक्ष हो जाएगी और जय जयकार का जो दृश्य है, एक और हाहाकार होगा दुनिया के अंदर और दूसरी और जय-जयकार होगा। हम देख रहे हैं, सुन रहे हैं सभी समाचार, कैसे अभी चारों ओर बाबा की बेहद की सेवाएं हो रही हैं और बाबा कहते हैं अभी कितना भी ब्रेक लगाओ लेकिन एक बार तो इस मधुबन धरनी पर हर एक आएगा ही । ये तीर्थ स्थान है, यह प्रसिद्ध होना ही है तो चारों तरफ से लोग भी भाग भाग करके आ रहे हैं,आते रहेंगे । एडवांस पार्टी की आत्माएं भी अभी अपनी फुल एज में आ रही हैं । दीदी को भी कितने साल हो गए? 83 से आज कितना हुआ है 2005, सत्रह पांच कितना हो गया, बाइस साल की हो गई दीदी। जुलाई में अव्यक्त हुई थी । तो यह एडवांस पार्टी की आत्माएं जो योगी आत्माएं जो गई है वो नई दुनिया की पवित्र आत्माओं को अवतरित करेंगी, बुलाएंगी, आवाहन करेंगी। मम्मा की जो साकार में विशेषताएं थी जो दादियों ने अपने मुखारबिंदु से वर्णन की हैं समय प्रति समय, कल भी हमारे पास इंग्लिश में लंदन से ईमेल आया है जिसमें दादी जानकी ने पूरा ही क्लास मम्मा की विशेषताओं पर कराया है। मम्मा ही सरस्वती थी विद्या की देवी, इतना स्पष्ट ज्ञान मम्मा की मुरलियों से हम सबको मिलता है । बाबा की एक एक बात को मम्मा ने बहुत स्पष्ट किया है तो सरस्वती का पार्ट, दुर्गा का पार्ट, काली का पार्ट और शीतला का पार्ट यह चारों पार्ट कैसे मम्मा ने बजाए उस पर दादी जानकी ने कल लंदन में क्लास कराया। इंग्लिश में आया है अभी उसकी ट्रांसलेशन हो रही है । इस प्रकार से दादियां समय प्रति समय हम सबको इन आत्माओं की विशेषताएं सुना करके जैसे उन्होंने किया हम भी वैसे करें और वैसे बनें तो क्या क्या मम्मा ने किया। सुनते तो हम सभी हैं कि मम्मा की तीन मुख्य विशेषताएं, एक तो कुमारी होते भी मां के रूप में पालना देने के लिए फुल रूहानियत में रही, कभी भी साधारणता नहीं । मैं कुमारी हूं ये स्मृति नहीं लेकिन मैं जगत मां हूं और बाबा ने मुझे मां की सीट दी है इसलिए मां के रूप में बच्चों को देखा और उसी दृष्टि से, उसी स्वमान में, उसी रूहानियत में रही इसलिए कोई भी आत्मा मम्मा के सामने आई तो आते ही, दृष्टि पड़ते ही वो परिवर्तन हो गई, उसकी विचारधाराएं चेंज हो गई । किसी भी एज का हो, नया हो, पुराना हो, विरोधी हो, बहुत सी आत्माएं उस समय विरोध करती थीं, बहुत हंगामें करती थीं लेकिन मम्मा की दृष्टि पड़ते ही वो शांत शीतल हो जाते थे। कई मिसाल, कई उदाहरण अपने भाई बहनों ने मम्मा के सुनाएं हैं । तो एक तो था निरंतर रूहानियत की स्थिति में रहना । आज भी एक माता सुना रही थी जो मम्मा से पली हुई है कि कभी भी संगठन में मम्मा ने कभी हंसी में जोर से बात नहीं की । चार-पांच सहेलियां मिलकर के आपस में बैठे, हंसी मजाक करें लेकिन कभी भी आवाज में वो नहीं आई तो सबसे बड़ी विशेषता की मम्मा सबसे अधिक गंभीर थी, चुप रहने का एक बहुत अच्छा अभ्यास था। कुछ भी बात हो तो अंदर ही अंदर चुप हो करके समा लेना तो एक विशेषता यह थी। क्यों सुनते हैं हम सभी? हमको बाबा और मम्मा का डायरेक्शन मिला हुआ है सी फादर सी मदर, केवल मात पिता को देखना और उन्हें ही फॉलो करना है, ब्रदर और सिस्टर को नहीं इसलिए उनकी जो विशेषताएं हैं वह हमारे जीवन में आज हैं और वह विशेषताएं कैसे उन्होंने प्रैक्टिकल में करके दिखाई है, उनके जीवन में रही हैं तो एक तो मैं सुना रहा था कि बहुत अच्छी अंदर की धारणा रूहानियत की और रूहानियत के आधार से गंभीरता और दूसरा सदा ऊंचा स्वमान, बहुत ऊंचा स्वमान रखा । शिव की शक्ति हूं, अभी राधे और श्री लक्ष्मी बनने वाली हूं। बाबा ने कहा कि तुम ही राधा सो लक्ष्मी बनने वाली हो बस उसी स्वमान में स्थित हो गई, उस दातापन के स्वरूप में स्थित हो गई। विद्या की देवी सरस्वती बन करके पार्ट बजाया और भविष्य स्वरूप लक्ष्मी पद सदा याद रखा मैं ही श्रीलक्ष्मी हूं और वह लक्षण अपने आप अपने जीवन में आते गए इतना ऊंचा स्वमान रखा और साथ-साथ एक बाबा दूसरा ना कोई अंदर से बिल्कुल पाठ पक्का, बाबा ने कहा, जो बाबा कहे, बस हां जी । कैसी भी बात तो चाहे जैसी परिस्थिति हो कभी भी प्रश्न नहीं हुआ ऐसा क्यों, ऐसा कैसे या ऐसा नहीं हो सकता है। कौन कह रहा है बहुत ऊंची नशे से स्मृति से कि कहने वाला कौन है, इसके तन में कौन बैठा हुआ है, किसके ये महावाक्य हैं इसलिए कभी प्रश्न नहीं उठाया ऐसा क्यों, ऐसे नहीं हो सकता है, कैसे हो सकता है । बाबा ने कहा और मम्मा ने हां जी किया इसलिए नंबर वन चली गई, आगे चली गईं तो मैं आप को पढ़कर इकतीस विशेषताऐं सुना देता हूं क्योंकि आप सोचेंगे ये तो क्लास कराने लगे इसलिए कौन सी विशेषताएं मम्मा की सब सेंटर्स पर भेजी गई हैं आप सभी भी सुनो। मम्मा का लौकिक नाम राधे था परंतु जैसा नाम था वैसे राधे। राधे की क्या विशेषता भक्ति मार्ग में गाई हुई है ? मुरली की मस्तानी, मुरली के पीछे दीवानी वैसे राधे मुरली की मस्तानी थी। बाबा का एक-एक शब्द बड़े प्यार से सुनती समाती और उन्हें बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट करके सबको सुनाती इसलिए सरस्वती के हाथ में ज्ञान की सितार दिखाइ गई है, ज्ञान वीणा, ज्ञान के सितार बजाते हुए फोटो में सरस्वती को दिखाया हुआ है । दूसरा, कभी कुछ भी हो जाए, ड्रामा का पाठ मम्मा को बहुत पक्का था। साक्षी हो करके देखने की इतनी अच्छी आदत थी जो कोई भी दृश्य को देखकर कभी हलचल में नहीं आई, सदा एकरस मुस्कुराता हुआ चेहरा रहता था। ड्रामा की ढाल अगर मजबूत है, पक्का है तो कैसी भी हलचल की परिस्थितियां आ जाए चाहे कितना सामना करना पड़ा, कितना विरोध हुआ बाबा तो माताओं को आगे कर देता था। बहनों को सब सामना करना पड़ता था। कोर्ट में जाना है, वहां पर सब प्रकार की बातें सुननी है, उत्तर देने हैं तो मम्मा का ही सबसे आगे पार्ट रहा न । सुना होगा इतिहास में कैसे मम्मा गई कोर्ट के अंदर, कैसे वकीलों से बहस की जज के सामने और विजयी बन के आई। तो हर बात में, कैसी भी परिस्थिति आई, बेगरी पार्ट में भी मम्मा सब बच्चों की पालना करने के लिए, इतने लोगों की संभाल करने के लिए आगे थी। परिस्थितियों में अचला अडोल रहना और सदा चेहरा मुस्कुराता रहे, कोई भी प्रकार का टेंशन ना हो तो ये मम्मा की दूसरी विशेषता है। नथिंग न्यू का पाठ पढ़कर अचल अड़ोल रही। नथिंग न्यू, नई बात नहीं है और हम सब को भी यही पाठ पढ़ाया । तीसरी मम्मा के चेहरे पर कभी भी कोई फिकरात के चिन्ह नहीं दिखाई दिए। कोई शरीर भी छोड़ दे या अपने ही शरीर में कुछ हुआ बहुत सारी बीमारिया आ गई लेकिन कोई भी प्रकार का सोच नहीं, संकल्प नहीं। साधारणता में मम्मा कभी नहीं रही, मम्मा को सदा ऊंचे रूहानियत के नशे में देखा। चौथा, बाबा ने मम्मा को कहा तुम ही श्री लक्ष्मी बनोगी बस, एक बार कहने से मम्मा की सूरत और सीरत बदल गई। गुणवान बनना है, गुण देखना है और गुणदान करना है यही तीन बातें मम्मा को पक्की थी । गुणवान बनना है सब के गुण देखना है और गुणों का दान करना है इसलिए उम्र भल कम थी लेकिन धारणा में बड़ी होने के कारण उनको सभी छोटे बड़े मम्मा कहते थे। मम्मा की मां भी, लौकिक मां भी, क्या कहती थी मम्मा को ? उनको मम्मा ही कह करके पुकारती थी। सभी छोटे बड़े दिल से मम्मा कहने लगे । उस समय मम्मा की पर्सनालिटी के मुकाबले में भल और भी कुछ पर्सनेलिटी थीं फिर भी मम्मा सबसे आगे नंबर वन चली गई। मम्मा मम्मा तभी बनी पांचवी विशेषता है, जब एक बार की हुई कोई ऐसी बात दोबारा रिपीट नहीं की, कोई गलती मान लो छोटी मोटी हो भी जाए लेकिन दोबारा वो न हो ये पुरुषार्थ का एक पहला पाठ पढ़ाया, कभी भी रिपीट नहीं की गलती। मम्मा का सबसे बड़ा गुण था हां जी, हां बाबा, जी बाबा । इसके सिवाए मम्मा के मुख से कभी दूसरा शब्द सुना ही नहीं जो बाबा ने कहा हां जी बाबा, हो जाएगा, कर लेंगे। कभी श्रीमत में मनमत ऐड ही नहीं की, कभी नहीं ऐड की। हम लोग तो सोचने लगते हैं बाबा तो कह देता है, कौन करेगा, कैसे होगा, हो सकेगा नहीं हो सके, प्रश्न उठ जाते हैं ना लेकिन मम्मा ने कभी भी उसमें अपने मन की मत ऐड नहीं की। क्लास में सदा हाजिर रहना ये भी बाबा का फरमानवरदार बच्चा बनना है लेकिन न केवल रेगुलर बल्कि पंक्चुअल, जरा भी आगे पीछे नहीं । टीचर के पहले क्लास में हाजिर होना, जरा भी ऊपर नीचे ना हो ये हमें मम्मा ने सिखाया। मुरली और सवेरे का योग कभी भी मिस नहीं किया जिसको बाबा ने कहा गफलत ना करो, जिसे उड़ना होता है वह कभी गफलत नहीं करते । बाबा कहते तुम ऊपर की स्थिति में रहो नीचे की बातें क्यों करते हो, मम्मा के मुख से कभी भी ऐसी नीचे की बातें नहीं सुनी। मम्मा बिल्कुल चुप रहती थी, जितना जरूरी है उतना बोला और फिर चुप, कोई दूसरा बोल निकलेगा ही नहीं, शब्द निकलेंगे ही नहीं तो गलत कैसे होंगे। जो अधिक बोलता है तो कुछ ना कुछ गलत बोल ही देगा इसलिए चुप रहना सबसे बड़ा गुण है। मम्मा ने मर्यादाओं में एक्यूरेट रहना सिखाया। ऐसी देही अभिमानी स्थिति में रही जो मम्मा से बाबा के गुण और कर्म दिखाई देते थे, ऐसी देही अभिमानी स्थिति में मम्मा खुद रही जो बाबा के गुण उनके चेहरे से दिखाई देते थे। तो बाबा जो हमें सिखा रहा है वही हमारे से दिखाई दे और पुराने संस्कार सब खत्म हो जाए। मम्मा में तीन विशेषताएं बहुत स्पष्ट दिखाई देती थी जो अभी सुनाई आपको, एक रूहानियत, दूसरा स्वमान और तीसरा बाप से सर्व संबंध का स्नेह । हमें भी इन तीनों गुणों को स्वयं में धारण करने हैं इससे देह अभिमान सहज खत्म हो जाएगा । मम्मा के सिर पर अमृत का कलश शिव बाबा ने रखा, ज्ञान अमृत का कलश बाबा ने रखा । मम्मा उसे धारण कर सुनाने के निमित्त बनी लेकिन मम्मा हमेशा कहती थी, क्या कहती थी मम्मा के शब्द थे, मम्मा की कोई महिमा करें मम्मा आज आपने बहुत अच्छी मुरली सुनाइ, आज बहुत अच्छा भाषण किया, बहुत अच्छा क्लास कराया तो मम्मा क्या कहती थीं, नहीं पिता प्रसादे, पिता प्रसादे है। बाबा ने दिया है, भगवान का दिया हुआ आपको दे दिया। मेरा नहीं है, मेरी विशेषता यह नहीं है, पिता प्रसाद है , भगवान का प्रसाद आपको बांट दिया, उसने मुझे दिया मैंने आपको दिया। तो मम्मा हमेशा कहती थी पिता प्रसादी, बाप से मिला हुआ सुना रही हूं, स्वयं की धारणा में जो है वह सुना रही हूं, तभी वाणी में मधुरता और सच्चाई झलकती थी । मधुरता और सच्चाई मम्मा की वाणी में झलकती है । ऐसे हमारे में जितनी पवित्रता और सत्यता होगी उतना मिठास आएगी। जरा भी अपवित्रता है, मन में किसी के लिए भी ग्लानि है तो वाणी में कड़वापन आ जाएगा। किसी के लिए भी मन में अगर ग्लानि है तो वाणी में कड़वापन आ जाएगा। तो मम्मा की वाणी से मधुरता और सच्चाई झलकती थी क्योंकि किसी के प्रति भी कटु वचन नहीं थे, कोई के अवगुण नोट ही नहीं थे जो गलत शब्द निकल जाए। मीठी मां ने हम सबको बड़े प्रेम से इशारों से पाला । मम्मा का चित्र बहुत शीतल और साफ था। हर एक बच्चे की बात दिल में ऐसे समा लेती थी जैसे कोई बात हुई ही नहीं। शिक्षाऐं दीं, ऐसे नहीं शिक्षाएं भी नहीं दी शिक्षाएं देते हुए भी अंदर समा लिया। समाने की शक्ति और प्यार से उसको चेंज करने की शक्ति, समाया और फिर प्यार दे करके उसको चेंज कर दिया यह बहुत बड़ी विशेषता हम सबने मम्मा में देखी। मम्मा ने कभी भी दूसरों के अवगुणों को चित्त पे नहीं रखा । मम्मा सदा अपने स्वमान में रहती थी। उन्हें बीज रूप स्थिति बनाने का , सब संकल्प समेट लेने का, विस्तार में न जाने का एक नेचुरल आर्ट था। बहुत बड़ी विशेषता है, सब कुछ देखो, सब कुछ सुनो, लेकिन विस्तार में न जाकर के समेट लो। बीज रूप स्थिति अगर बनानी है तो समेटने की शक्ति तो मम्मा सदा अपने स्वमान में रहती और बीज रूप स्थिति बनाने का, सब संकल्प समेट लेने का, विस्तार में न जाने का नेचुरल आर्ट्, समेटना और समा लेना, कभी कोई बात विस्तार में आया हुआ नहीं देखा । कभी भी कोई बात में विस्तार में आया हुआ नहीं देखा जिस कारण मम्मा की मुरली बहुत प्रभावशाली रही। वह मम्मा की दिव्यता और सत्यता की आकर्षण चेहरे से चमकती थी । मम्मा ने अशरीरी बनने की बहुत मेहनत की। हमने आंखों से देखा , दादी सुना रहे हैं, हमने आंखों से देखा है बिगर मेहनत फल नहीं मिलता तो मेहनत से डरना नहीं और थकना नहीं। जब अथक रहते हैं तो खुशी से पुरुषार्थ करते हैं और थकावट खुशी गुम कर देती है, उदासी ले आती है फिर मजबूरी से पुरुषार्थ चलता है इसलिए खुशी-खुशी से याद करना जिससे मेहनत और थकावट का अनुभव न हो। मम्मा के चेहरे से दिखाई देता था कितना अथक बन करके अशरीरी बनने का अभ्यास दो बजे उठकर करते थे।मीठी ज्ञान चंद्र मां की शीतलता को देखकर क्रोध करने वाली कैसी भी क्रोधी आत्मा सामने आए अपने आप उसे शीतलता का अनुभव होता था उसका क्रोध शांत हो जाता है। बोलने की जरूरत नहीं थी लेकिन इतनी शीतल थी कोई भी क्रोधी सामने आ जाए वह अपने आप शीतल बन जाए। मम्मा सदा अथक रहे कितनी भी सर्विस करते उनके चेहरे पर कभी थकावट की चिन्ह नहीं दिखाई दी, फीलिंग ही नहीं महसूस करने दी। इतनी आत्माओं के संग में रहते हुए भी सभी की बातों को सुनते हुए खुद हर बात से न्यारी और प्यारी रही, कभी मम्मा की दृष्टि में किसी भी आत्मा के प्रति चेंज नहीं आई, की ये है ऐसी, वह है वैसी। सुना सबको देखा सबको, जानती सब कुछ है लेकिन दृष्टि में कभी चेंज नहीं आई। वही मीठी दृष्टि हर किसी के प्रति रही साथ-साथ उसकी कमियों पर सावधानी भी जरूर देती थी। भल कैसे भी अवगुण वाली आत्मा हो लेकिन मम्मा के मुख पर कभी किसी भी आत्मा के प्रति कोई अशुभ बोल नहीं निकले जिसका कोई फायदा ले ले, कमजोर बोल नहीं है अशुभ बोल नहीं निकले लेकिन उसकी विशेषताओं का ही वर्णन किया। सदा शीतल स्वभाव और मीठे बोल उच्चारण करने वाली मां का सदा यही लक्ष्य रहा कि सबके दुःख दूर करूं। किसी भी हालत में किसी भी बात में मम्मा को कभी क्रोध तो क्या आवेश तक भी नहीं आया, मम्मा का तेज आवाज कभी सुना ही नहीं। मम्मा शांति की अवतार और प्रेम की मूर्ति थी। गंभीरता का गुण जो सर्व गुणों की खान है, गंभीरता कानून जो सब गुणों की खान है उसका प्रत्यक्ष स्वरूप मम्मा में देखा। ममता वाली मां नहीं अच्छी मां, टीचर गुरु जैसी मां, खुद के सबूत से सिखाने वाली मां। गंभीरता के कारण मम्मा में समाने और समेटने की दोनों शक्तियां थीं। समा भी ली, बच्चों की बातों को समाया भी और विस्तार को समेट लिया, अधिक फैलाई नहीं बात, समाने और समेटने के कारण मम्मा सहनशीलता की थी, सहनशीलता के गुण से सदा शीतल और शांत बन गई। सदा शीतल और शांत वही रह सकता है जिसके अंदर सहनशीलता का गुण हो। मम्मा जब भी मिलती थी तो मम्मा का हाथ पकड़ो तो ऐसा लगता था कि मम्मा के हाथ से सकाश आ रही है, खुशी मिल रही है इतनी ताकत थी मम्मा के हाथ में वह चमत्कारी हाथ था। बाबा जो भी सुनाता मम्मा उसे इतना ध्यान से सुनती कि जैसे उसी समय एक एक बात का स्वरूप बन गई इसलिए मम्मा सदा अचल अड़ोल और एकरस स्थिति में रही मम्मा की स्थिति कभी ऊपर नीचे नहीं देखी । पुरुषार्थ भी कोई ऐसा मेहनत वाला हार्ड नहीं, मम्मी के चेहरे पर सदा प्योरिटी की रॉयल्टी नजर आती थी। इस प्योरिटी की पर्सनैलिटी के कारण जगदंबा के रूप में मम्मा का इतना गायन और पूजन आज तक है । कोई भी कैसी भी आत्मा हो मम्मा की प्योरिटी के आगे झुक गया एकदम उसको साक्षात्कार हो गया कितनी पवित्र मां है। अटल निश्चय किसको कहा जाता है, अटल निश्चय किसको कहा जाता है वो मम्मा कि सूरत से दिखाई देता था । कभी भी मामा ने श्रीमत में अपनी मत मिक्स नहीं कि मेरा विचार यह है, मैं यह समझती हूं ये मम्मा ने कभी नहीं कहा परंतु बाबा ने कहा है, बाबा ने समझाया है , वो भी बताने में ऐसा रस जो हर एक को समझ में आ जाए कि बाबा ने किस रहस्य से कहा है। मम्मा की चलन कभी साधारण नहीं देखी सदा रॉयल इसलिए मम्मा शिव बाबा की पौत्री और ब्रह्मा बाबा की बेटी बनने से सर्व की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली सरस्वती मां बन गई। मम्मा ने अपने लिए कोई कामना नहीं रखी, बाप के दिए हुए खजाने से सदा अपने को संपन्न बनाया। मम्मा कभी अपना शो नहीं किया, गुप्त पालना दी। अच्छी धरना कराने में मदद मदद दी, आज दिन तक भी देश और विदेश में बाबा के कई बच्चे हैं जिनका अनुभव है कि हम जैसे साकार मात पिता की पालना में पल रहे हैं। अनुभव करते हैं को अभी भी हमें वतन से मात पिता की गुप्त पालना मिल रही है। यही बड़ी मम्मा ब्रह्मा है, ब्रह्मा हमारी बड़ी मां है, अडॉप्ट करने वाली मां है और पालना करने वाली मां सरस्वती मां है। मम्मा के चेहरे से कभी ऐसे नहीं लगा कि मम्मा को कोई बंधन है । हम सबको भी सेकंड में फ्री करके शीतला बना दिया । मम्मा ने हम बच्चों की पालना करने में इतना सर्वोत्तम और श्रेष्ठ पार्ट बजाया इस कारण गोडेज आफ नॉलेज कहलाई ये टाइटल मम्मा का ही है और किसी को नहीं मिल सकता। कौन सा गोडेज ऑफ नॉलेज। शिव बाबा की नॉलेज को ऐसा धारण किया जो विद्या की देवी बन गई। आज तक भी विद्या के लिए सरस्वती की पूजा करते हैं इसीलिए विद्या धारण करने के लिए सरस्वती को याद करते हैं। मम्मा को स्वमान स्वधर्म में रहने का सदा नशा रहा। स्वधर्म हमारा शांत है उसमें मम्मा शक्ति अवतार रही। बाबा ने जो कहा मम्मा की बुद्धि ने माना। कभी किसी का अपमान नहीं किया, ना अपमान की फीलिंग में आई। कोई अपमान कर दे फीलिंग आ जाए मम्मा को कभी किसी के अपमान की फीलिंग नहीं आई और किसी का भी अपमान नहीं किया, सदा ज्ञान के सुमिरन में रहने के कारण हर्षित और गंभीरता की मूर्ति बन कर रही। मम्मा है ब्रह्मा की बेटी लेकिन संबंध में इतनी स्वच्छता, पवित्रता की शक्ति थी जो जगदंबा बन गई और साथ-साथ मम्मा को भविष्य का हम सो का ऐसा नशा था जो उनके नैन, चैन से, चेहरे से वो नशा दिखाई देता था जैसे सच मुच श्री लक्ष्मी है। जैसे वो संस्कारों में भर गया मैं किसकी हूं, भविष्य मेरा क्या है। मम्मा एकांत में रहती थी। रोज दो बजे सवेरे उठकर बाबा की एकांत यादों में चली जाती थी। इसी पुरुषार्थ से मम्मा का संपूर्ण स्वरूप कई बार साक्षात्कार होता था। एकांत में सवेरे सवेरे दो बजे उठ करके तपस्या करना जिससे अनेक आत्माओं को दूर बैठे भी मम्मा का साक्षात्कार होता था। मम्मा नंबरवन आज्ञाकारी रही इसीलिए मम्मा का यही स्लोगन था हुकुमी हुकुम चला रहा है । आज्ञाकारी, वफादार देखना हो तो मम्मा देखो । मम्मा ने बाबा के इशारों को समझा और हम बच्चों को बड़ा सहज और सरल करके समझाया। मम्मा के महावाक्यों में एक-एक बात का स्पष्टीकरण है, बाबा के साथ लग्न कैसे हो मम्मा की सूरत से देखा । मम्मा ने कभी नहीं कहा होगा मैंने यह किया हमेशा बाबा की तरफ इशारा किया। मैं बेटी हूं मात पिता वह है मम्मा इतनी निर्हंकारी थी। कभी मम्मा ने हाथ में लॉ नहीं उठाया, कभी ऑथोरिटी नहीं चलाई परंतु धारणा की मूरत बन करके रही। किसके लिए भी मम्मा ने कभी यह नहीं कहा होगा कि तू सुधरने वाली नहीं है। यह टोन कभी नहीं रहा कि तू सुधारने वाला नहीं है, सुधरने वाली नहीं है। एक बहुत शुभचिंतक भावना जिससे वह आत्मा सुधर जाए अपने आप, अथॉरिटी नहीं उठाई । मम्मा हमेशा कहती थी यह बहुत अच्छी बात है लास्ट, नोट करना, मम्मा हमेशा कहती थी कि शक्ति जमा करने में आप लोग कितनी मेहनत करते हो और फालतू खर्च कितना जल्दी कर लेते हो। जमा करने के लिए इतनी मेहनत करते हैं, रोज योग करेंगे, रोज पढ़ाई करेंगे, रोज क्लास करेंगे और जब खर्च करने का समय आएगा तो एक सेकंड में गुस्सा करके सारी शक्ति खत्म कर देंगे। एक सेकंड लगेगा खर्च करने में, जमा करने में सारा दिन लग गया और खर्च एक सेकंड में कर दिया। तो मम्मा हमेशा कहती थी कि शक्ति जमा करने में आप लोग कितनी मेहनत करते हो और फालतू खर्च कितनी जल्दी कर लेते हो। फालतू बातों में शक्ति खर्च करके फिर उदास और कमजोर हो जाते हो । कमाई करने में इतना टाइम नहीं देते लेकिन सारा दिन खर्चा ही खर्चा तो क्या होगा, देवाला हो जाएगा और जब कोई बात सामने आती है तो कहते हैं बहुत मुश्किल है, क्या करूं शक्ति नहीं है, ताकत नहीं है। ताकत गई कहां? जिसको इतना अच्छा संग, इतनी अच्छी पढ़ाई, इतना अच्छा वायुमंडल इतना अच्छा सब हो प्राप्त हो रहा हो, प्राप्तियां इतनी अखुट हो रही हों वो भी अगर कमजोर का कमजोर हो तो क्या कहेंगे, कहां गई तुम्हारी शक्ति? शक्ति कहीं व्यर्थ जरूर गई, देवाला मार दिया। तो ये मम्मा की विशेषताएं हम सबको आज के दिन मम्मा के समान बनने की क्या, बहुत अच्छी प्रेरणाऐं देती हैं कि हम भी बाबा के याद से, ज्ञान से, पढ़ाई से, अच्छे संग से, भोजन से, अपने अंदर ऐसी शक्तियां जमा करें , जो मन और बुद्धि हमारे कंट्रोल में आ जाए, कभी भी हमारी शक्ति व्यर्थ ना जाए तो हम सब शक्तिमान बन जाएंगे कमजोरियां समाप्त हो जाएंगी , ओम शांति।