मम्मा मुरली मधुबन           

    003. Sowbhagyashali Banane Ki Vidhi - 19-04-65

 


आज 19 अप्रैल है जगदंबा मां की मुरली सुनते हैं
रिकॉर्ड:-

बनवारी रे जीने का सहारा तेरा नाम रे............
ओम शांति। यह जो ऐसे गीत हैं, अभी सुना ना कि दुनिया वालों से क्या काम है, तो दुनिया तो कहती है दुनिया से काम है, आप ऐसे कहती हो दुनिया वालों से क्या काम है, आप तो कहते हो दुनिया से तो काम है फिर यह जो गीत है, ठीक नहीं है ना? फिर ऐसे गीतों को तो बंद करा देना चाहिए कि बनवारी तेरे से काम है दुनिया वालों से क्या काम है। दुनिया वाले तो कहते हैं दुनिया से ना काम लेंगे तो दुनिया में कैसे रहेंगे। तो दुनिया वाले तो ऐसे कहते हैं अभी क्या होना चाहिए? अभी यह है समझने की बातें कि हां दुनिया से तो काम है लेकिन यह जो अब की दुनिया है ना, यह अब की दुनिया जो है जिसमें दु:ख और अशांति ही उठा रहे हैं तो अभी उसके लिए है कि इस दुनिया में अभी कुछ रहा नहीं है, कोई सार नहीं रहा है इसीलिए अभी जो तेरी दुनिया थी बनाई हुई तेरी दुनिया, ख्याल में है ना, उनकी भी दुनिया है, उनमें भी पति-पत्नी बाप बेटा संसार है सारे का सारा, राजा प्रजा सब कुछ है लेकिन हां, तेरी जो दुनिया है ना उसमें कुछ माल था, कुछ सार था, कुछ तो क्या पूरा सार था और अभी जो यह संसार है ना यह तो है झूठी काया, झूठी माया, झूठा सब संसार। अब इस झूठे से क्या काम रखें इसीलिए कहते हैं अब इस झूठे संसार से अभी क्या मेरा काम रहा क्योंकि अभी इसमें है ही नहीं कुछ माल, कोई सार ही नहीं रहा है तो फिर इससे काम क्या रहा इसलिए अभी तेरे से दिल लगाते हैं इसीलिए कि अभी तेरी जो दुनिया है ना उसमें से कुछ माल मिलेगा। तो दुनिया तो है ही परंतु दुनिया सुख की जो है, वह तेरे से प्राप्त रहेगी इसलिए अभी तेरे से काम है। क्योंकि तेरे द्वारा जो हमें दुनिया प्राप्त रही है अथवा तुमने जो हमारी दुनिया बनाई है, वह बहुत अच्छी बनाई। उसमें कभी हमको दुःख नहीं था और कोई दुःख की बात नहीं थी। सब था लेकिन दु:ख नहीं था। और हम चाहते भी यह है ना कि दुनिया हो लेकिन उसमें दुःख ना हो दुःख तो कोई चाहता ही नहीं है इसीलिए अभी यह जो दुनिया है जिस\में अभी बैठे हैं तो इसमें तो अभी दुःख और अशांति के सिवा और कुछ है ही नहीं इसीलिए कहते हैं कि हां अब यह दुनिया झूठी हो गई है, इसमें कोई सार नहीं रहा है। इसको कहते भी हैं असार संसार इसीलिए अभी इसी असार संसार से हमको निकालो। अभी फिर जो तुमने सार वाला संसार बनाया जिसमें कुछ मालपानी था अच्छा, अभी उस संसार का हमें फिर से हक दो। तो जो हक देने वाला है तो अभी तो उससे काम है ना तो फिर तो यह छोड़ना चाहिए ना, इससे फिर तो दिल हटानी चाहिए। तो वह बाप कहते हैं अगर मेरी दुनिया के अभी बनना चाहते हो और मैं आया भी हूँ वह नई दुनिया बनाने के लिए अभी टाइम है तो अगर उसी दुनिया में अपना हक बनाना चाहते हो तो अभी फिर जैसे मैं कहूं तो यह जो रावण की दुनिया है ना यह तो उनकी है पांच विकारों की तो फिर इस विकारी दुनिया को तो छोड़ना पड़ेगा ना, नहीं तो विकारी दुनिया वाले क्या कहेगी तुमको कि बिना विकारों के तो काम नहीं चलेगा, यह क्या तुमको मंडली वाले, तुमको ब्रम्हाकुमारियाँ, तुमको फलाने क्या सिखलाते हैं वह तो ऐसी-ऐसी बातें कहेंगे कि इनके बिना काम नहीं चलेगा, मोह के बिना काम नहीं चलेगा, क्रोध के बिना काम नहीं चलेगा, काम के बिना दुनिया नहीं उत्पत्ति होगी, यह नहीं होगा, वह नहीं होगा वह तो ऐसी बातें सुनाएंगे क्योंकि है ही विकारी दुनिया, उन बिचारों को यह पता ही नहीं है कि कोई निर्विकारी दुनिया भी है। निर्विकारीपन से भी कोई दुनिया चली हुई है, वह नहीं जानते हैं इसीलिए यह विकारी दुनिया तो तुमको यह राय देंगे, यह सलाह देंगे, यह बातें कहेंगे इसीलिए बाप कहता है अभी इनका संग, इनकी मत छोड़ो। इनके मत में है ही कि विकारों से दुनिया चलने की है तो तुमको मत भी ऎसी ही देंगी, राय भी ऐसी ही देंगे, सलाह भी ऐसे ही देंगे और चलाएंगे भी ऐसे तो यह तो दुनिया तुमको उस तरफ खींचेगी ना इसीलिए बाप कहते हैं अभी इसका यह सभी संग छोड़ करके अभी मेरा संग पकड़ो तो मेरा संग पकड़ने से फिर तुमको जो नया संसार मैं बनाता हूं, वह भी संसार बनाता हूं, मैं कोई ऐसा नहीं है तुमको कोई संसार से कहीं और, नहीं संसार ही बना देता हूँ परंतु उस संसार में सार, सुख कुछ जिसमें कोई ऐसी दुःख की बात रहती नहीं है इसीलिए कहते हैं अभी मेरी मत पर चलना पड़ेगा ना। तो अभी किसकी मत पर रहना है? यह तो कहेंगे कि विकारों पर चलो, यह संसार वाले अथवा यह जो है वह तो रावण की मत हो गई ना इसीलिए बाप कहते हैं अभी रावण की मत पर मत चलो, अभी चलो मेरी मत पर, राम की, राम माना निराकार परमपिता परमात्मा। वो अभी कहते हैं मेरी मत पर रहो, तो अभी उसकी मत से सुख पाएंगे और रावण की मत से दुःख पाएंगे, अभी क्या करना चाहिए? तो इसीलिए है कि अभी इनकी है इन सभी बातों से बुद्धि हटा करके अभी मेरे में लगाओ और जो मैं कहूं वह करो तो अभी करना चाहिए जो अगर सुख चाहते हैं। नहीं तो यह विकारी दुनिया भी अभी-अभी खत्म होने की है। भले कोई कहे चलो हम इसकी मत पर ही सही, जैसा होगा वैसा परंतु कहते हैं वह भी अभी खत्म होने पर है। इनका भी अभी टाइम पूरा हुआ है यह भी समझने की बात है कि ऐसे नहीं यह दुनिया अभी आगे और चलने की है, इनका भी अभी आ करके टाइम पूरा हुआ है। जभी इसका भी नाश होने का है तो नाश भई हुई दुनिया में अभी तुम काहे के लिए अपना मन लगाकर बैठे हो, इसमें क्या मिलेगा। इस दुनिया का भी अभी कुछ मिलने का नहीं है क्योंकि इनका भी अभी स्टेज आ करके पूरा हुआ है ऐसे भी नहीं है कि चलो इसका भी आगे कुछ टाइम है इसमें भी अभी कुछ जो भी है, जैसा भी है अच्छा वह भी तो लेवें, नहीं बाप कहते हैं अभी उसका भी टाइम पूरा हुआ है इसको मुझे विनाश करना ही है क्योंकि इनकी अभी जड़जड़ीभूत अवस्था अथवा लास्ट स्टेज आ चुकी है इसलिए जबकि अभी इसी राज्य का खत्म होने का टाइम आया हुआ है यानी रावण के राज्य का, इस विकारी दुनिया के समय का अभी टाइम आ करके पूरा हुआ है और उसका डिस्ट्रक्शन, देखो मौत की भी निशानियां आ चुकी हैम, तो अभी जबकि उसके नाश का टाइम आया है तो क्यों नहीं अभी जो दुनिया आने वाली है सुख की तो क्यों नहीं अपना उसमें बना लेना चाहिए तो अकलमंदी तो यही है ना। एक तो जो चीज है वह एक खत्म होने की है, भले कोई कहे कि चलो हमको स्वर्ग के सुख नहीं चाहिए, हमको यही अच्छे हैं, हम इधर ही पड़े रहे परंतु बाप कहते हैं वह भी तो नहीं रहने का है ना। वह भी रहने का नहीं है क्योंकि उनका भी अभी टाइम पूरा हुआ है तो जबकि उसका टाइम भी पूरा है और उसमें कोई सार भी नहीं है तो जब ऐसी बात है तो क्यों नहीं जिसमें सार भी है और उसका टाइम भी आया हुआ है तो उसमें हक लगाने का समय है क्योंकि वह दुनिया अभी आ रही है, वह बताया ना आ रही है दुनिया। तो जबकि आ रही है दुनिया और अभी उस दुनिया की बारी है तो क्यों नहीं उसमें अपना अभी लगा देना चाहिए सेप्लिंग, कलम तो फिर हम उसमें अपना फल पाएंगे इसलिए बाप कहते हैं अभी समझ का अगर काम है और समझदार बनना है तो अभी यह विनाश भई हुई, अभी-अभी बाकी थोड़ा टाइम है तो अभी जो खत्म होने पर है उसको अभी से ही खत्म कर दो, पहले से ही, जरा पहले से उसको खत्म कर दो, होनी तो है ही। तू ना करेंगे तो ऐसा नहीं है कि यह खत्म होने की नहीं है, तू ना करेंगे तो भी होने की है तो क्यों नहीं पहले से ही अपना उससे पहले से ही आशक्ति अथवा ममत्व निकाल देते हो तो उसका तुमको फायदा मिलेगा, तो मैं खाली कहता हूं तू पहले से जरा, मरनी तो ऐसे भी है , ख़त्म तो ऐसे भी होनी है तो जबकि ऐसे भी तुम्हारे से छूटना है सब कुछ, तो क्यों नहीं तुम पहले से ही अपना जरा दिल से आशक्ति अगर तोडेंगे तो उसका फल तुम्हारा देखो उस आशक्ति तोड़ने की सेप्लिंग लग जाएगी। तुम खाली आशक्ति तोड़ रहे हो, यह जो तुम कहते हो देह सहित देह के सर्व संबंधों से बुद्धि हटाते हो, बस उसी मेहनत का ही तुम्हारा सेप्लिंग लग जाती है, तो क्यों नहीं तुम इतना अपना नई दुनिया के लिए बना लेते हो, छूटनी तो वैसे भी है। ऐसे नहीं कोई कहे नहीं हम नहीं छोड़ेंगे, नहीं छोड़ेंगे तो हां देखो उसका विनाश खड़ा है सामने। तो यह है सारी बातें इसीलिए बाप कहते हैं जबकि अभी यह सारा राज मैंने समझाया है और समझा रहा हूं और बुद्धि में आता भी है तो फिर उसके मुताबिक काम करना चाहिए ना, बाकी मेरा संसार ही मेरी दुनिया देखो कितनी सुखदाई है इसीलिए है कि हाँ अभी इसमें कुछ रहा नहीं है, कोई सार नहीं किसी में भी सार नहीं, सब कुछ बन के इस दुनिया का भी बड़े-बड़े बन कर भी देख लिया मर्तबे वाले, धनवान, बड़े-बड़े सब बनकर देख लिया इसमें भी सार नहीं है, सब अनुभवी हो ना, इस दुनिया का अनुभव देखते चलते आए हो तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप अभी समझाते हैं इसीलिए कहते हैं जबकि अभी यह दुनिया का टाइम पूरा होने पर आ चुका है, अभी कोई कहे हम कैसे माने कि दुनिया का टाइम पूरा हुआ है तो अभी क्या इसमें अभी तक भी आंखें नहीं खुलती हैं, अभी तक यह ध्यान में नहीं आता है कि दुनिया का टाइम पूरा होने का यह सब दिखाई दे रहा है, यह दुनिया के आसार या दुनिया की जो भी अभी हालात हैं वह क्या अभी महसूस नहीं कराती है कि दुनिया किस ओर जा रही है। तो ऐसे कोई ना समझे कि नहीं अभी कोई हजार या लाखों बरस, वह कई समझते हैं ना कि कलयुग अभी तो बच्चा है, अभी तो इसको बड़ा, बुड्ढा होने में हजारों कई लाखों वर्ष पड़े हैं परंतु नहीं, अगर हजारों लाखों वर्ष पड़े हुए होते ना तो आज ही जितनी संख्या है वही संभालना दुनिया के लिए बड़ा एक मुसीबत की बात हो गई है कि आगे फिर चलते चलते यह संख्या और घटती चले और यह सब दुनिया का तो ऐसा ही चले तो हजारों लाखों वर्ष में क्या हो जाएगा, और है ही नहीं इतने टाइम का जबकि हम देखते हैं अभी-अभी थोड़े देखो यह क्रिश्चियेनिटी को 1965 वर्ष कहेंगे, उसके अंदर भी देखो कितनी संख्या बढ़ गई है। जब क्राइस्ट था उसने क्रिश्चियनिटी धर्म की स्थापना की उसी समय की संख्या काफी लो और अभी तो 2000 वर्ष भी नहीं हुआ है तो उसके अंदर अंदर इतनी संख्या बढ़ती जा रही है तो सोचने की बात है कि अभी कोई हजारों या लाखों वर्ष कहे की पड़े हैं तो उसमें जाकर क्या होगा। अभी ही तंग हो गए हैं, अभी अपनी संख्या को कोई संभाल नहीं पा सकता है, खाने पीने रहने और सब बातों में देखो कितने तंग पड़ जाते हैं। तंग पड़ जाते हैं तभी तो लड़ते हैं ना, वह समझते हैं कि नहीं हमारे को ज्यादा जमीन मिलनी चाहिए, हमारे को ज्यादा यह होना चाहिए, हमारे को यह सब लड़ाई झगड़ा क्यों होता है। तो यह सब बातें बाप बैठकर के समझाते हैं कि जबकि अभी 2000 वर्ष के अंदर की संख्या भी सोचो तो जब पहले अभी क्रिस्चियन घराने की स्थापना की थी तभी कितनी थी और अभी उसके 2000 वर्ष भी नहीं हुए हैं तो कितनी संख्या हो गई है। तो सोचने की बात है कि जबकि समझते हैं कि ऐसी स्पीड संख्या की होती जा रही है तो हजार लाखो वर्ष और आगे हो तो क्या हो जाएगा फिर तो एक दो के ऊपर बैठेंगे क्या, क्या रहेगा तो इसीलिए बाप कहते हैं ऐसा है ही नहीं, अभी यह सब टाइम निशानियां है कि अभी यह टाइम आकर के लास्ट पहुंचा है। बाकी भी जो कहते हैं ना कि घोर कलयुग बहुत जबकि मनुष्य बहुत पीड़ा, तो वह भी तो टाइम बहुत निकट है, जब यह विनाश का चलेगा तो वह है पीड़ा का टाइम परंतु वह पीड़ा का टाइम बहुतकाल नहीं चलता है। बहुत दुःख का समय फिर बहुतकाल नहीं चलता है क्योंकि अगर बहुत समय चले तो बहुत पीड़ा में और बहुत समय अगर मनुष्य चलते रहे तो न मालूम क्या हो जाए, देखो पाकिस्तान और हिंदुस्तान का जो मामला हुआ तो ऐसा थोड़ी ना है कि बहुत काल चलता चले, नहीं चला थोड़ा टाइम चला परंतु वह टाइम तो था, वो घड़ी जो थी वह समय जो थे वो कितने दर्दनाक थे। अगर यह दर्दनाक समय बहुत काल चलटा ही चले, चलता ही चले ऐसे मनुष्य एक दो को काटते फाड़ते चलते ही रहे तो ऐसा अगर लगातार चलता ही रहे तो कितना क्या हो जाए, तो नहीं वो पीड़ा का असली पीड़ा का टाइम थोड़ा टाइम चलता है लेकिन होती पीड़ा का है। तो यह भी विनाश का चलेगा लेकिन ऐसा थोड़ी है कि वह भी कोई हजारों लाखों वर्ष चलने की बातें है तो यह सभी चीजों को भी बहुत अच्छी तरह से समझने की बातें हैं कि हाँ टाइम आया हुआ है और यह भी जो बाकी टाइम है जिसको कहते हैं अति पीड़ा का समय वो भी आने का है। परंतु उसी टाइम पर तो अपना जो कुछ बनाना है वह उसी टाइम तो नहीं बनाएंगे ना बनाना है पहले, जो कुछ करना है तो पहले करना है वह करने का अभी समय है। पीछे तो है मौत, उसी टाइम पर जैसे मनुष्य मरने पर थोड़ी ही कुछ कर सकता है, मरने से पहले। कहते हैं ना घड़ी, आधी घड़ी, आधी की पुन: आधी के कुछ पहले, बाकी ऐसे थोड़ी है फिर मरने के समय मनुष्य क्या करेगा। मरने के समय मनुष्य मरने में ही होगा बाकी उसी टाइम तो कुछ नहीं कर सकता है ना करना है तो पहले। तो इसीलिए बाप कहते हैं यह मरने की मानो एक घड़ी पहले है, आधी घड़ी आधी की पुनः आधी इतना टाइम समझो इसीलिए जबकि अभी टाइम ही इतना रहा है तो उसके पहले कुछ कर लेना चाहिए ना। तो यह है थोड़ा टाइम पहले का जिसमें बैठ कर के हम बाप के द्वारा उसकी मत ले करके और अपना उच्च सौभाग्य बनाते हैं और सौभाग्य भी क्या बनाते हैं उसकी भी हमारे बुद्धि में सारा साक्षात्कार ज्ञान से बैठकर के कराते हैं। समझाते हैं कि अभी क्या है फ्यूचर और किसलिए तुमको मैं बैठकर के यह मत दे रहा हूं, उससे तुम्हारा क्या बनेगा, क्या होने का है वह सारी इस फिल्म की भावी जो है ना वह बैठ करके बतलाते हैं। तो वह अभी बुद्धि में है ना अच्छी तरह से ? जबकि बुद्धि में है और रोशनी है अभी तो फिर उसके मुताबिक काम करना चाहिए ना। और है बहुत सहज, कोई और भी ऐसी कोई बात नहीं है कि क्या करना है, कोई ऐसे नहीं है कि मुश्किल है कोई क्या करें, कहते हैं कोई भी हो, नारी हो नर हो दोनों कर सकते हैं। बच्चा हो बूढ़ा हो कोई भी कर सकता है क्योंकि बाप को याद करना है और बाप के फरमान के ऊपर चलना है तो वह कोई ऐसी डिफिकल्ट बात नहीं जो बच्चा भी ना कर सके। बच्चे को भी अगर छोटे को कहो कि यह तेरी मां है तेरा बाप है तो बुद्धि में नहीं बैठ जाता है, बैठ जाता है ना? तो जो बच्चा भी धारण कर सकता है यह इतनी इजी बात है। तो इसीलिए ऐसे भी नहीं कोई कह सकते हैं कि नहीं भाई सभी आत्माएं कैसे उसको पा सकेंगी, नहीं कोई बच्चा हो बूढ़ा हो सबको अधिकार है और इसीलिए बाप कहते हैं देखो मैं आता हूं तो मैं तो सबको बैठकर के बच्चे को, बूढ़े को देखो इस स्कूल में सब है ना, बच्चे भी हैं, बूढ़े भी हैं, ऐसा कोई स्कूल देखा? और स्कूलों में तो देखेंगे कि हां उसमें तो एक ही एज के या थोड़ा कुछ वर्षों का इधर उधर हो, परंतु इधर तो देखो बुड्ढा भी, बच्चा भी, यंग भी सब के लिए और नर और नारी कोई भी हो और किसी जात का भी हो और कैसा भी हो। भले कहते हैं बीमार भी हो ना तो भी ऐसी बात नहीं है कि मैं बीमार हूं नहीं कर पा सकता हूं, ऐसी कोई बात नहीं है कि तुमको आसन लगाकर के, कमर सीधे करके बैठने की है इसलिए हमारा मुश्किल है, नहीं ऐसी भी कोई बात नहीं है बड़ा सिंपल है भले लेटे रहो, भले सोए पड़े रहो परंतु याद रखने का है, तो याद तो बुद्धि से रखने का है ना। तो उसमें ऐसे भी कोई डिफिकल्टी नहीं है कि कोई कहे कि हम कैसे कर सकते हैं इसीलिए बाप कहते हैं कि मैं बात ऐसी सहज बतलाता हूं कि कोई भी करके अपना भविष्य ऊँच बना सकता है इसीलिए कोई ऐसी डिफिकल्ट की बात नहीं है किसी के लिए भी नहीं। और सबको हक है क्योंकि आत्माएं तो सब मेरी संतान है ना, परंतु जानती नहीं है बिचारी भूल गई है। अभी फिर यथार्थ रीति से मुझे जान करके और मेरे द्वारा वह अपना हक पाने का पुरुषार्थ रखने का है। तो यह तो अभी सब बुद्धि में है ना कैसे उसको याद रखने का है और याद का भी सहज तरीका बतलाते हैं, कल बतलाया न सहज तरीका, ऐसा भी नहीं है कि काम करें तो भूल जाएं क्योंकि हमारे सामने तो कोई चित्र ही चाहिए, हमारे सामने तो क्या उसकी सूरत ही चाहिए, पीछे हम काम करेंगे तो फिर सुरत कैसे आएगी, नहीं वह कहते हैं ऐसी भी नहीं है कि मेरी शक्ल देखते रहो। नहीं मैं ऐसा नहीं कहता हूं कि मेरी बस मेरी सूरत के ऊपर तुम प्रेम लगाओ, मेरी सूरत, सूरत ही मेरी क्या है, मैं तो हूं ही बिंदी स्टरलाइट, वह तो तू भी बिंदी स्टार लाइट है एकदम। तो मेरी सूरत के ऊपर थोड़ी ही आशिक होना है, वह तो आशिक माशूक होते हैं तो भी एक दो के शरीर के ऊपर उनका प्रेम जाता है, यह तो कहते हैं कि नहीं तुम्हारा मेरे पर प्रेम कोई सूरत के ऊपर नहीं है कि तुम मेरी सूरत देखते रहो या कोई मूर्ति चाहिए तुमको उसके लिए, नहीं मैं क्या हूं तेरा बाप हूं मेरा रिलेशन है तेरे से । हां तो बाप भी किसमें हूं, बाप भी क्यों कहा जाता है क्योंकि बाप से हक मिलता है तभी उसको बाप कहा जाता है। बाप क्रिएटर है और बाप से वर्सा मिलता है इसीलिए तो मैं कैसे क्रिएटर हूं और कैसे मेरे से क्या वर्सा तुम्हे में मिलता है वह तो मेरा रिलेशन समझो। तो वो जो प्राप्ति है ना तुमको मुझसे उसी प्राप्ति के लिए तुम मुझसे प्रेम करते हो कि वही हमारे सुखदाता है, वही हमारे शांति के दाता है। किसी से कुछ मिलता है तभी तो उससे प्रेम होता है ना, तो तुमको कोई मेरी सूरत नहीं मिली है, जो उसके ऊपर तुम्हारा प्रेम हो, तुम आशिक माशूक की तरह से मेरा चित्र ही देखते रहो या मेरा तुमको फोटो चाहिए या तुम मेरा साक्षात्कार करो या सूरत को देखते रहो, मेरी सूरत के ऊपर थोड़ी ही तुम फिदा हो, तुम फिदा हो उसी पर कि हां मैं जो तुमको देता हूं ना, मेरे द्वारा तुमको मिलता है, क्या मिलता है सदा का सुख, वह बल मिलता है, शक्ति मिलती है तो वह जो चीज तुमको मिलती है जो मैं तुमको देता हूं उसी का ज्ञान तुमको चाहिए कि उसको याद रखने से अथवा उसका होकर के रहने से मेरे द्वारा तुम्हें क्या प्राप्त होगा उसको समझो। तो समझने से तुमको बैठेगा कि यह हमारा दाता है, देने वाला है इससे कुछ मिलने का है, कुछ तो क्या सब कुछ और सब कुछ क्या उसका तो दिखलाता है कि सब कुछ क्या। सब कुछ में सब कुछ है ना, हेल्थ वेल्थ एवरीथिंग। मनुष्य को चाहिए क्या, आज जीवन में क्या-क्या चाहिए बताओ। जीवन में यही तो चीजें चाहिए ना अगर यह चीजें हो तो फिर तो वाह! फिर कोई कहेगा थोड़ी कि संसार ऐसा क्यों, ऐसे संसार में तो होते ही नहीं, यह तभी मनुष्य को होता है जब दुःख आता है। कोई रोग आता है, कोई अकाले मरता है या कोई ऐसी निर्धनता या कई ऐसी बातें होती हैं तो मनुष्य दु:खी हो करके कहते हैं कि ऐसा संसार भगवान ने रचा ही क्यों, ऐसा भगवान ने बनाया ही क्यों, फिर भगवान को भी कई गाली दे देते हैं कि भगवान तुमने तो संसार अपना हेल समझकर बनाया और हमारे लिए पीड़ा और दुःख रचा, परंतु बाप कहते हैं मैंने वह नहीं रचा, यह तो तुमने बनाया है, मैंने कैसे रचाया जो तुम सदा उसमें सुखी थे वह बैठ करके समझाते हैं कि मैंने तुम्हारी जीवन कैसी बनाई। इसीलिए तो कहते हैं मैं आया हूं और तुम्हारे लिए अभी वह जीवन फिर से बना रहा हूं तो अभी बनाना चाहिए ना। तो यह तो अभी कंट्रास्ट बुद्धि में है ना इसीलिए कहते हैं गीतों में की हाँ यह दुनिया अभी झूठी, माया झूठी काया, झूठा सब संसार इसमें अब सब झूठ हो गया है, सच निकल गया है अभी फिर तू आया है सच्चा संसार, जिसको संसार कहें, अभी संसार थोड़े ही है इसको नर्क। तो अभी कहते हैं सच्चा संसार जिसमें सूख था, कुछ सार था वह अभी कहते हैं सार वाला संसार अभी बनाते हैं। तो अभी बनाता हूं तो उसमें तुम भी अपना लगाएंगे कर्म का बल, तभी तो तुम उसमें आएंगे ना, नहीं तो ऐसी प्रालब्ध कौन पा सकेगा। सिवाय कर्म के प्रालब्ध तो नहीं मिल सकती है ना तो उसी प्रारब्ध को पाने के लिए तुम्हारे कर्म में भी ताकत चाहिए इसीलिए कहते मैं आता हूं तुमको वह बल देने के लिए। तो यह तो बात सीधी और साफ है ना ? तो ऐसी साफ बातों को समझ करके और बाप से अपना ऐसा अधिकार लेने का पूरा पूरा पुरुषार्थ करना है इसीलिए कहते हैं अभी बनवारी, बनवारी वह लगाया हुआ है ना वह ले गए हैं रामचंद्र को भी भगवान बनाया, कृष्ण को भी भगवान बनाया ले गए हैं उसी हिसाब से ऐसे ऐसे, बाकी कोई बन में नहीं गए हैं या कोई जाकर के बनवास लिया या किया, नहीं यही है हम इस दुनिया से वनवास लेते हैं अथवा इसका हम त्याग करते हैं। हमारा है सारी दुनिया का त्याग हम कोई घर बार का त्याग नहीं करते हैं, हम इस पुरानी झूठी सारी दुनिया का त्याग करते हैं। यह दुनिया, यह दुनिया ही नहीं चाहिए हमको, हमको चाहिए वह दुनिया तो हमारा त्याग बड़ा है सबसे। वह घर बार का खाली नहीं, वो सन्यासी तो खाली घर बार का सन्यास करके फिर भी जाते तो इसी दुनिया में है ना, कहाँ जंगल जाएंगे या कहां भी जाएंगे तो फिर जाते तो इधर ही है ना, हमतो कहते हैं हमको यह दुनिया ही नहीं चाहिए। कौन सी दुनिया, दुनिया तो इधर ही रहेगी लेकिन परंतु फिर यह दुनिया परिवर्तन में, चेंज में आकर के जिसको सुख की दुनिया अथवा स्वर्ग कहा जाता है फिर उस दुनिया का सुख पाएंगे इसीलिए बुद्धि में अभी वह चीज है न । तो अभी बुद्धि में वह चीज रख कर के अभी उसी का प्रयत्न करना है तो ऐसे प्रयत्न कर करके अपना सौभाग्य बनाना है। अच्छा सौभाग्यशाली और भाग्यशाली भाग्यशाली का मतलब है जिन्होंने अपने परम पूज्य बाप से यह वर्सा पाने के लिए पूरा पूरा अपना पांव लगाया है। पांव लगाने का मतलब है जिन्होंने पवित्रता को अपनाया है तो इतना तो है भाग्यशाली बाकी फिर उसमें भी अपना ऊँच स्टेटस पाने का बैठ करके पुरुषार्थ करना उसको फिर कहेंगे सौभाग्यशाली क्योंकि उसमें भी दर्जे है ना। उसमें भी राजा प्रजा नंबरवार है । प्रजा भी तो पवित्र दुनिया में ही है, राजा भी तो पवित्र दुनिया में ही है, तो उसमें भी स्टेटस है ना नंबरवार तो फिर उसमें स्टेटस पाने का पुरुषार्थ रखना उसको कहेंगे सौभाग्यशाली। बाकी भाग्यशाली तो जरूर हो यहां तक जो आए हो, बैठे हो सुनते हो, रोज सुन रहे हो और जरूर पवित्र दुनिया में पवित्रता को भी अपनाया होगा, तभी तो फिर पवित्र दुनिया में चल सकेंगे ना बाकी उसमें भी अपना ऊँच मर्तबा पाना उसके लिए है यह सारा पुरुषार्थ तो जरूर उसमें भी नंबरवार अपना पुरुषार्थ तेजी से करते रहते होंगे। कैसे लव जी? क्या बनने का है? डबल क्राउन? हां.... अच्छा! डबल क्राउन। और बनना ही चाहिए डबल क्राउन सो भी सूर्यवंशी। सूर्यवंशियों में भी पहला सूर्यवंशी भी आठ गद्दी हैं, किस गद्दी में? पहला, कोशिश तो ऐसा रखना है ना? पहला का मतलब अभी पहला तो कोई कहे सेकंड, थर्ड मतलब पहले पहले नंबर तो कोशिश रखने की है । देखो स्कूल में बच्चे भी पढ़ते हैं तो हमेशा यही तो रखते हैं ना जो पढना जानते हैं और जिनकी तेज बुद्धि है उनको अपने दिमाग का भी नशा रहता है ना, वह समझते हैं हम जब कर सकते हैं तो क्यों नहीं, तो अगर नंबर भी थोड़ा कम आएंगे ना तो कई बच्चे जो पढ़कर जाते हैं जन्हों को पढ़ाई का और बुद्धि का नशा है तो एक नंबर से भी विचारे ऐसे हो जाते हैं कि एक नंबर भी क्यों हुआ, पास तो हुआ परंतु नंबर भी क्यों वह समझते हैं नंबर भी हम लें ना । तो यह भी तो है ना, खाली पास मार्क में पास होना, यह भी नहीं, परंतु इसमें हम अपना नंबर भी आगे करें ऐसा पुरुषार्थ रखने का है तो ऐसे पुरुषार्थी जो है ना, वह तेजी से अच्छी तरह से अपना ध्यान रखकर के अपना अपना बनाएंगे। अच्छा, टोली दो। बाप से अपना पूरा पूरा आने का पूरा वर्सा भी पूरा, इसमें ऐसे नहीं है कि वह बाप है तो बस हमको मिल ही जाएगा ऐसा कोई ख्याल ना करे। जैसे वह बाप लौकिक में ऐसे हो जाए भाई बच्चे को, कैसा भी बच्चा होगा लेकिन बाप का वर्सा तो मी ही जाएगा लेकिन यहां तो है बच्चे को लायक बनना। लायकी के ऊपर है सारा काम, लायक नहीं बनेंगे तो वर्सा नहीं मिलेगा, ऐसा नहीं समझना कि चलो हां वर्सा तो मिल ही जाएगा । हां हां भले पाएंगे थोड़ा बहुत जो कुछ जो किया है, आकर के वहां कुछ पा लेंगे परंतु वो जो है पूर्ण प्राप्ति की स्टेज वह तो अपनी मेहनत से होगा ना, तो उसके लिए तो पुरुषार्थ करना है। तो ऐसा ख्याल रख कर के पुरुषार्थ रख कर के अपने को आगे करते रहो जितना हो सके। ऐसे नहीं है कि हमारा सारा समय बुद्धि जो है ऐसी बिजी रहती है जो हम अटेंशन इसमें नहीं दे सकते हैं नहीं, बहुत फालतू बुद्धि चलती है, अगर अटेंशन देवें तो फालतू से हम बहुत काम ले सकते हैं बुद्धि को इस प्रैक्टिस में अथवा इसमें लगा करके हम अपना फायदा निकाल सकते हैं। तो फालतू बुद्धि इधर उधर ना जाए उसकी हमको संभाल रखने की है। जितना हो सके बाप की याद में रह करके उससे अपना बल लेने का है। इसलिए बाप कहते हैं मैं तुम्हारा काम भी देखो, तुम्हारा कोई काम करके नहीं करता हूं, तुम्हारा जो फालतू है ना मैं कहता हूं तुम्हारी फालतू बुद्धि इधर-उधर जाती है उससे तुम मेरे में मन लगाओ फालतू की उधर उधर बेस्ट करते हो। तो मैं तुम्हारा काम इतना ऊँच तुम्हारी जो वेस्टेज है उससे निकालता हूं बाकी तुम्हारा कोई जरूरी काम थोड़ी ही खोटी आठ घंटे या छ; घंटे सात घंटे देते हो की जरूरी है बुद्धि उसमें लगे, नहीं उसमें कई ऐसे समय मिलती है जिसमें तुम यह भी काम करो और वह भी काम करो, कर सकते हो। तो भी आठ घंटे भी कहते हैं तुमको छूट है, दिन में चौबीस घंटे हैं, फिर भी सोलह घंटा बच जाता है तो सोलह घंटा क्या करते हो? चलो उसमें आठ घंटे और भी छोड़ देता हूं, नींद करो, आराम करो, जो करो चलो, बाकी भी आठ घंटे सीधे बच जाते हैं तो बाकी क्या ,है चलो आठ न तो चार घंटे का कुछ कर दो, आधी घड़ी, घड़ी की भी आधी, आधी की भी आधी, तो थोड़ा तो कुछ टाइम का यहां करने से जितना बन जाएगा। तो अपना टाइम कैसे सफल करना चाहिए और किस तरह से उसका पूरा अटेंशन रखने का है। बुद्धि टिक सकती है ना? जैसे हमारी टिकी हुई थी बॉडी कॉन्शियस में कि हम फलाना हैं, उसमें कैसे टिकी थी, अभी बॉडी ना समझ करके अपने को सोल समझना है तो फिर उसमें टिक जाएंगे। खाली चीज को बदलना है बस, बुद्धि तो टिकती है किसी ना किसी भी टिकती है। हां, पति के सामने होगा तो टिकेगी कि हाँ मैं इनकी स्त्री हूं, देखो टिकी हुई है ना बुद्धि, बच्चों के सामने होगा कि मैं इसकी मां हूं, देखो टिकी हुई है ना बुद्धि, तो जैसे यह बुद्धि टिकाई है, पहले तो माँ नहीं थी ना, पहले तो किसी का बच्चा बच्ची थी, पीछे मां बनी तो देखो टिक गई ना, तो उसी बातों में जल्दी-जल्दी टिकती है ना माँ बने तो मां के ऊपर टिक गई, स्त्री बन गई तो स्त्री के ऊपर टिक गई, कन्या थी तो हाँ मैं किसकी बच्ची हूँ उसमें टिकी तो फिर उसमें कैसे जल्दी-जल्दी टिक गई, वह कैसे बुद्धि में जल्दी आ जाता है। बैठ जाती है ना बुद्धि में, तो वह बुद्धि जल्दी-जल्दी यह ग्रहण कर लेती है, इसमें भी बाप कहते हैं अभी यह सब देह के जो कुछ हैं, जिसमें पहले से टिकी हुई बुद्धि है उसमें से निकाल करके अभी मेरे में मन लगाओ, तो अभी इसमें बदली करने में क्या मुसीबत पड़ती है हां? (प्रैक्टिस चाहिए) हाँ प्रेक्टिस चाहिए क्योंकि वैसे भी प्रैक्टिस है, देखो छोटा देखो था तो उसी समय इसको थोड़े था कि मैं बाप हूं, न अभी देखो बड़ा हुआ, बच्चे पैदा किया तो अभी बुद्धि टिक गई है कि मैं बाप हूं, तो वह भी बुद्धि बदलती है ना। वह स्टेज से इस स्टेज में आया तो यह बुद्धि बैठ गई अभी मैं बाप हूँ, बच्चे हैं, मुझे संभालनना है, यह करना है, वह करना है, तो इसमें बुद्धि बदलती है और उसमें बुद्धि टिक जाती है जो भी स्टेज आती है उसमें बुद्धि टिक जाती है, अभी बाप कहते हैं उस स्टेज में टिक जाओ और क्या है। अभी बॉडी कॉन्शियस निकलकर के सोल कॉन्शियस में आ जाओ, बस उसी स्टेज में चले जाओ, इसमें क्या है। कुछ नहीं है, तो खाली अपनी प्रैक्टिस और समझ की बात है कि उसमें रखकर के लगना है। (बेटे से बाप है लेकिन बाप फिर अपने को बेटा समझना मुश्किल होता है) नहीं, यह भी सहज है, बच्चे को देखो छोटा बच्चा होता है ना, उसको अगर कोई गोद का बच्चा ले लेते हैं तो क्या वह रिलेशन नहीं उधर चला जाएगा? बहुत छोटे बच्चे को भी हो सकते हैं, भले बड़ा भी हो समझो आप कोई बच्चे को कोई गोद का बच्चा बनाता है तो क्या नहीं चाहेगा, कोई धनवान है, साहूकार है, लखपति है, करोड़पति है वह कहता है मुझे बच्चा नहीं है, कोई तुमको गोद का बच्चा लेगा, क्या बदली नहीं हो जाएगा? अरे! मैं इसका बच्चा हूं, क्योंकि समझेगा न, नहीं तो बच्चा ना समझूंगा तो लक नहीं मिलेगा, हां पहले नहीं मिलेगा, तो झट से बुद्धि चली जाएगी, क्यों नहीं जाएगी टेंप्टेशन कोई है तो जाएगी और यह टेंप्टेशन कोई कम थोड़ी ही है, बहुत बड़ी टेंप्टेशन है तो ऐसे नहीं है कि बुद्धि नहीं जा सकती है, जा सकती है (ये कहते हैं ये दम से दिलासे हैं कैसे होगा ) ओहो ये दम के दिलासे नहीं है, जो उसमें दम है ना वो अभी सब झूठ हो जाने का है, देखो कहते हैं ना झूठी काया झूठी माया, जीते हुए भी झूठा कह रहे हो क्योंकि अभी सार नहीं है, निकलता जाता है बाकी मरने में देरी थोड़े ही है। इसकी हालत तो देखते जाते हो अभी हालत देखते भी नहीं समझते हो मरने पर है, ऐसे ना हो तो फिर जब समय आए फिर तो कुछ नहीं कर सकेंगे ना करना पहले हैं। अच्छा, कुछ भी है जीवन ऐसी ही चलती है, आप जब छोटे थे आपको तो यह दिलासा था ना खाली कि मैं बाप बनूंगा, पढ़ाऊंगा लिखूंगा पढ़ूंगा, बच्चे पैदा करूंगा तो वो शास्त्र में कैसे चले, उसका फ्यूचर कैसे बनाया, वह भी तो फ्यूचर सोचा ना? छोटा था तो कहा मैं पढूंगा, लिखूंगा, हां इंजीनियर बनूंगा, तो पहले थोड़ी इंजीनियर थे लेकिन फ्यूचर सोचा ना? वह एक जीवन का सोचा, यह है दूसरी जन्म का सोचना, फर्क सिर्फ इतना है लेकिन वह भी तो फ्यूचर सोचना है ना, तो फिर जैसे उसमें सोचते हो वैसे फिर इसमें सोचना है, यह भी तो दम के दिलासे थे ना। पता था कुछ अभी मर जाऊं तो, कोई पक्का थोड़े ही है कि हां बचे रहूंगा, नहीं उसमें भी तो ऐसा ही था ना, जिसको कहते हैं दम के दिलासे तो वह भी तो ऐसा ही था फिर उसमें कैसे चले आए? अभी इसमें भी क्या है ये आत्मा तो जन्म लेती रहती है उनका पुनर्जनम है यह तो सभी बातें मानते ही हैं ना, तो फिर बाकी क्या है, तो इसमें क्यों भूलना चाहिए। अच्छा! ऐसा बाप और दादा और मां की मीठे मीठे बहुत अच्छे और ऐसे निश्चयबुद्धि बच्चे हैं ऐसे बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग।