मम्मा मुरली मधुबन           

    004. Alankardhari Banane Kee Vidhi

 


रिकॉर्ड :

]\एकमात सहायक स्वामी सखा, तुम ही सबके रखवारे हो
ओम शांति। मात पिता को समझा है ना? यह महिमा है उनकी, उनकी किसकी? अपने परम पूज्य, पूज्य एक ही है ना, जो एवर पूज्य है, एवर प्योर है। जो एवर प्योर है वही तो पूज्य लायक रहेगा ना और बाकी हम मनुष्य पूज्य और पुजारी भी बनते हैं ना। अपने ही बैठकर के चित्रों को और पूजते हैं, नहीं तो यह देवताएं, मनुष्य भी जो पूज्य गिने गए हैं वह तो एवर पूज्य हैं यह पुजारी से पूज्य, परंतु जो मनुष्य भी पूज्य गिने गए हैं फिर वही पुजारी बनते हैं और पूज्य बनते हैं। वो कहते हैं ना आप ही पूजा आप ही पुजारी, वह परमात्मा के लिए नहीं। कई ऐसे समझते हैं कि सर्वव्यापी के हिसाब से पुजारी में भी परमात्मा पूज्य में भी परमात्मा इसीलिए वह समझते हैं आप ही पूछिए आप ही पुजारी, ऐसे कैसे, नहीं, आप ही पूज्य आप ही पुजारी का अर्थ है कि हम ही आत्माएं, यह आत्मा से लगता है कि हम आत्माएं सो पूज्य थी अर्थात पवित्र थी, फिर अपवित्र बनी तो अपने ही पवित्र आत्मा और एवर प्योर परमात्मा को पूजने लगी। है ना, देवताओं को भी पूजने लगे तो परमात्मा को भी पूजने लगे तो पुजारी हम बने, उसको तो नहीं कहेंगे ना आप ही पूज्य आप ही पुजारी, रॉन्ग हो जाता है। तो परमात्मा की स्तुति और महिमा कौन सी होनी चाहिए यह भी समझने की बात है। ऐसे नहीं जो उलट-पुलट आए आप ही पूजा आप ही पुजारी या परमात्मा को भी आगे जा करके कह देंगे, सबको कहेंगे आप सर्व गुण संपूर्ण 16 कला संपूर्ण, नहीं परमात्मा को कभी सर्वगुण भी नहीं, यह इंसल्ट है उसकी क्योंकि वह कभी अवगुण में आता ही नहीं है जो उनको सर्वगुण कहें, वह तो एवर, सभी बातों में एवर है ना, उसमें कोई परिवर्तन या उनकी चेंज चेंज नहीं आ सकती है । जो चेंज में आती है, उनकी महिमा अलग है तो मनुष्य आत्मा चेंज में आती है वह गोल्डन सिल्वर कॉपर एंड आयरन सतोप्रधान, सदो रजो तमो इन सभी में आते हैं तो जो चंजेस में आते हैं उनकी महिमा अलग और जो आता ही नहीं है उनकी महिमा अलग होनी चाहिए ना । तो हम सभी एक ही एक जैसे जो भी यहां हैं जैसे मिनिस्टर भी एक, गवर्नर भी एक तो राजा भी एक तो फलाना भी एक, सब एक ही एक? सबका एक नहीं, हर एक की पोजीशन, हर एक की पोस्ट, हर एक का कर्तव्य अपना-अपना है ना। मिनिस्टर में भी यह फाइनेंसमिनिस्टर, यह फलाना मिनिस्टर, हर एक की पोजीशन अलग है न। अगर हमको कोई काम किसी किसी मिनिस्टर का निकालना है तो हम गवर्नर के पास थोड़ी ही जाएंगे, हर एक की पोस्ट हर एक की बात अपनी-अपनी है। तो सबसे ऊंचा परमात्मा तो यह सभी जानने की बातें हैं ना तो ऐसा नहीं है कि सब मिल मिलाकर एक ही एक, देवता को देवता, परमात्मा को परमात्मा, यह सभी चीजें समझने की है। तो देवता मनुष्य जो प्यूरीफाइड है उन्हीं को देवता कहते हैं बाकी परमात्मा को फिर देवता नहीं कहेंगे इसीलिए ब्रह्मा, विष्णु, शंकर इन्हीं को देवता कहेंगे। देखो यह है ना ब्रह्मा, विष्णु, शंकर ये तीन इनको देवता कहेंगे, इनको गॉड नहीं कह सकते हैं। इसी तरह से कृष्ण, राम, यह फिर साकार में, कॉरपोरियल देवताएं, जो फॉर्म में आए हुए हैं वर्ल्ड पर अब यह चार भुजाएं वाला तो वर्ल्ड पर नहीं है ना, यह तो सिंबल है सिर्फ साक्षात्कार में देखने के लिए, इसको कहेंगे फिर आकारी देवता, आकारी समझते हो? आकार माना जिसका फॉर्म साकार कॉरपोरियल नहीं है सिर्फ दिव्य दृष्टि से देखने में आता है। तो यह चतुर्भुज, इनको कहेंगे आकारी देवता और राम और कृष्ण इनको कहेंगे साकारी देवता । तो साकारी माना जो कॉरपोरियल फॉर्म में यहां आए हुए हैं वर्ल्ड में, तो यह लक्ष्मीनारायण जो है इनको साकारी देवता कहेंगे, देवी और देवता आए हैं फॉर्म में, यहां इनका राज्य चला है यानी मनुष्य, जो प्योर मनुष्य थे उनका देवी देवता धर्म था इधर, जैसे क्रिश्चियन बुद्धिस्म यह सभी है ना वैसे परमात्मा के द्वारा जो अभी यह प्योरिटी की जनरेशन चली है उसका नाम देवी देवता तो वह साकारी देवता है इनको कहेंगे आकारी देवता क्योंकि यह कोई पृथ्वी पर नहीं आए हैं, चार भुजा धारी आदि यह तो सिर्फ दिव्य दृष्टि के देखने का सिंबल है जो सिर्फ परमात्मा द्वारा साक्षात्कार कराया जाता है कि नर नारी ऐसे हैं परन्तु नर नारी जो साकार में आए हैं तो लक्ष्मी नारायण को साकारी देवता, इनको आकारी देवता परंतु यह सिर्फ मनुष्य के स्टेटस है लेकिन परमात्मा फिर भी निराकार को कहेंगे। तो यह सभी चीजें समझने की है ना निराकार, फिर साकार, फिर आकार। आकार माना जिसका फॉर्म है मनुष्य जैसा परंतु इस साकार हड्डी मास का नहीं। यह हड्डी मास का है, वह सूक्ष्म दिखाई पड़ते हैं बाकी वह हड्डी मास नहीं है। ऐसे उसको स्पर्स करो, नहीं वह आकार में खाली दिव्य दृष्टि में आते हैं। तो यह चीजें समझने की है सब तो वह आकारी देवता और वह साकारी देवता लेकिन परमात्मा इन सब से ऊपर, निराकार। निराकार माना उसका मनुष्य जैसा आकार नहीं है उनका लाइट की बिंदी कहो, बिंदी सदृश्य, इधर भी बड़ा दिखाया है चित्रों में क्योंकि इतनी छोटी बिंदी दे कैसे जो देखने में आए। इधर इतनी छोटी छोटी बिंदी दी है समझ में आती है देखने में आती है तो इसलिए थोड़ा बड़ा दिया है, नहीं तो है तो बिल्कुल स्टार लाइट जैसे एक टीका, बिंदी बस ज्योति सा परंतु इतनी छोटी चीज कैसे दिखलाने में आवे इसीलिए थोड़ा बड़ा दिखाया है कि भाई ज्योति का, लाइट का, तो हम आत्मा भी ऐसी चीज है और परमात्मा भी ऐसी चीज है लेकिन हां वह एवर प्योर है हम इमप्योर, प्योर, हमारी आत्मा के ऊपर मैल चढ़ती है जैसे चंद्रमा को ग्रहण लगता है ना। ग्रहण देखा है कभी चंद्रमा का, तो चंद्रमा को ग्रहण आ जाता है, सूर्य को ग्रहण आ जाता है, तो आत्मा को ग्रहण लगता है परमात्मा को ग्रहण नहीं लगता है। उसी सोल के ऊपर, सुप्रीम सौल के ऊपर यह माया का, पांचों विकारों का आवरण नहीं चढ़ता है लेकिन हम आत्माएं सोल्स के ऊपर वह चढ़ता है तो मानो ग्रहण लग जाता है जैसे जब फिर ग्रहण हट जाता है तो चंद्रमा खिल जाता है। इसी तरह से आत्मा है ज्योति रूप परंतु उसके ऊपर मेल कहो, ग्रहण कहो माया का, आवरण कहो या ऐसे कहो जैसे वो नीडल होती है ना, उसके ऊपर कट चल जाती है। कट समझते हो? जंक, हाँ वह जंक चढ़ जाती है ना तो फिर हां उसको उतारी जाती है तो मानो आत्मा के ऊपर जंक चढ़ गई है, काहे की? पांच विकार की। अभी जैसे वह तेल से, घासलेट या किसी और चीज से उनको साफ किया जाता है, वैसे इसको यह ज्ञान रूपी, ये योग रूपी घासलेट, इसको घासलेट कहो, इसको तेल कहो, इसको घृत कहो तो इसी तेज को जगाना है, साफ करना है। तो यह ज्ञान और योग है उसका घृत कहो या तेल कहो, उनको यह देना है जिससे उसकी कट कहो, ग्रहण कहो, आवरण कहो, यह सब फिर है माया का जो चढ़ा है, तो यह चढ़ा किसके ऊपर है? आत्मा के ऊपर, आत्मा के ऊपर चढ़ा है तो फिर बाती भी ऐसी और फिर हमारे सारे रिश्ते भी ऐसे, फिर सारे संसार की बनावट भी ऐसी सब हमारी कर्म बंधन यानी सब हमारे दुःख के बन गए हैं इस माया के संग से। जब माया का संग नहीं था हम प्योर आत्मा थे तो शरीर भी प्योर थे और हमारे संबंध भी प्योर थे और संसार की सारी जो बनावट थी वह भी प्योर थी, इसी को कहा जाता था जब ऐसी प्योर थी सब कुछ तो उसको सतयुग, हेवन और देवी-देवताओं का राज्य कहा जाता था, मनुष्य देवी देवता । तो वह लाइफ हमारी जो थी ऊंची थी, अब हमारी लाइफ जंक चढ़ी हुई है, समझा, ग्रहण लगी हुई है। तो अभी यह सारी दुनिया के ऊपर ग्रहण है, कोई एक के ऊपर नहीं है यह सारी दुनिया के ऊपर अभी ग्रहण है। अब यह ग्रहण सारी दुनिया के कौन उतारे ? तो दुनिया का मालिक चाहिए ना, इसीलिए कहते हैं वर्ल्ड क्रिएटर उनको क्योंकि यह ग्रहण, यह बॉन्डेज इसको बॉन्डेज कहो माया का, ये ग्रहण या बाँडेज माया का यह उतारना, इससे लिब्रेट करना, यह उस लिब्रेटर का काम है। लिब्रेटर इज वन, इस जंक को उतारने का, इस ग्रहण को उतारने का, लिब्रेटर इज वन। जैसे गॉड इज वन, तो गॉड ही लिब्रेटर है। मनुष्य में इससे सेलिब्रेट करने की पावर नहीं है क्योंकि ग्रहण तो सभी मनुष्य के ऊपर है ना, किसी के ऊपर बहुत, किसी के ऊपर थोड़ा है सबके ऊपर परंतु ग्रहण में सब हैं। सन्यासी, साधू भी ग्रहण में हैं क्योंकि बैठे हैं ना विकारी दुनिया में। जन्मते हैं तो कहां से जन्मते हैं विकारों से, जन्मेंगे, छोटापन होगा तो विकारियों के संग में रहेंगे ना, पीछे बड़े होंगे तो पीछे संन्यास लेंगे तो यह भी तो कर्म का हिसाब है ना। तो यह है ही विकारी दुनिया उनको भी देखो सन्यासियों को क्या रोग नहीं होता है? तो कोई तो कर्म का हिसाब है ना, तो कोई तो हिसाब है जो उसको भी भोगना पड़ता है तो जरूर है कि कोई विकारी खातों का हिसाब है तो विकारों का उसमें भी खाता है तो सब अभी सब कहेंगे, इसीलिए यह सारी दुनिया सब आत्माएं अभी ग्रहण लगी हुई है। तो सारी दुनिया के ऊपर ग्रहण है तो सारी दुनिया का ग्रहण उतारना दुनिया का मालिक, तो दुनिया का मालिक कहते हैं यदा यदा ही जब सारे पूरे ग्रहण में आ जाते हैं ना तब फिर मैं आकर के उसी ग्रहण से छुड़ाता हूं, फिर कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण जैसे जब ग्रहण होता है ना तो दान लेने आते हैं। यहां पर भी होता होगा जब ग्रहण लगता होगा तो । तो कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण तो क्या दान देना है? पांच विकार, तो अभी बाप भी कहते हैं बच्चे दो दान तो छूटे ग्रहण। अभी दान देने के लिए कौन तैयार है तो दो दान तो छूटे ग्रहण तो यह दान देना है। कहते हैं अभी यह दान मेरी भेंटा मेरी दान मेरा जो कुछ है अभी ये पाँच विकार दान दो तो छूटे ग्रहण। फिर ग्रहण उतर जाएगा फिर आत्मा भी प्यूरीफाइड, शरीर भी प्यूरीफाइड फिर सब, एवरीथिंग तुमको प्यूरीफाइड मिलेगी तब, सदा सुखी रहेंगे। तो यह जो अभी चढ़ी है ना मैल ती इसी मेल को धोने वाला इसका धोबी स्पेशल एक ही हैं इसीलिए कहते हैं मैं धोबी भी हूं। गॉड कहते हैं मैं धोबी बनके आता हूं क्योंकि यह माल उतारना इसके लिए यह तो देखो धोभी बहुत हैं, अच्छा इससे ना बनी तो दूसरा, दूसरे से ना बनी तो तीसरा, इधर तो कहते हैं ही मैं एक धोबी, इसको धोने वाला, इसकी मैल कैसे उतरे, इसका जो सामान है ना वह हमारे पास है, दूसरे किसी के पास नहीं है, इसका ज्ञान इसका योग, इसको साफ करने का और तो दूसरी चीजों के लिए एक से ना हुआ तो दूसरे से कर देंगे लेकिन इनका हमारे पास है। इसकी धोने की चीज जो है योग और ज्ञान की क्योंकि इसमें चाहिए मेरा योग, तो मेरा योग, मेरे साथ वह मैं ही आकर के सिखाता हूं । मेरे योग के लिए मैं ही चाहिए, यानि मेरा होना चाहिए, मेरा योग कोई तीसरा थर्ड पर्सन बैठकरके तुमको बताए तो नहीं बता सकेंगे, इसके लिए मेरी जरूरत है। मेरा नॉलेज, मेरा परिचय, क्योंकि मेरा परिचय भी मैं जानता हूं, तेरा परिचय भी मैं जानता क्योंकि तू मेरी क्रिएशन हो ना तो क्रिएशन का नॉलेज कौन देगा ? क्रिएटर। जैसे बाप है बच्चे की नॉलेज कौन देगा? बाप देगा न, बाप को पता है कि यह बच्चा कैसे पैदा हुआ क्या हुआ सारी चीज लेकिन जानता तो बाप है ना, जैसे क्रिएटर बाप अपनी क्रिएशन को जानता है, इसी तरह हम क्रिएशन को कौन जानेगा बाप ही जानेगा ना। तो क्रिएटर इज वन, नोट क्रिएटर्स बहुत हैं नहीं, वह तो हर एक का अपना अपना बाप है लेकिन हर एक का एक बाप है ना। ऐसे थोड़ी कहेंगे बहुत भले अडॉप्ट करे वह बात अलग परंतु एक है ना, कहेंगे तो एक ना, पैदा तो एक से हैं न तो इसी तरह से यह सारी चीजें समझने की हैं कि हमारा क्रिएटर, आत्माओं का, हम आत्माओं का, बॉडी का क्रिएटर तो हर एक का अपना-अपना है ही लेकिन हम आत्मा का क्रिएटर तो इसलिए उसको क्रिएटर कहेंगे। वह क्रिएटर ही हम क्रिएशन को जानता है क्योंकि हम उसकी क्रिएशन, हम अच्छे बच्चे थे तो उस हमारी अच्छाई को भी क्रिएटर जानेगा ना कि हम कैसे अच्छे थे तो बाप कहते हैं मैंने तो तुमको अच्छा क्रिएट किया और मैंने तुमको अच्छा इस दुनिया में छोड़ा लेकिन तुम इतने गंदे हो गए। यह ग्रहण चला चढ़ा लिया अपने ऊपर और माया का संग पड़ा तभी तुम दु:खी हुए हो। अभी इसके लिए मैं आता हूँ, मेरा काम है मैं बाप हूँ ना फिर भी इसीलिए बाप को तो तरस पड़ता है, बाप तो रहमदिल गाए हुए हैं इसीलिए फिर मैं आता हूं और आ करके तुम्हारी फिर ये ग्रहण कहो, जंक कहो कुछ भी कहो यह उतारता हूं। तो धोबी भी बनता हूं इसीलिए कहते हैं कि यह हॉस्पिटल भी है, वह कहते हैं ना आई स्पेशलिस्ट तो यह है थर्ड आई ऑफ विजडम, नॉलेज तो इसको हॉस्पिटल भी कह सकते हैं जिसमें हमको पूरी सफा मिलती है काहे की, एवर हेल्दी, एवरवेल्थी, जिस्मानी भी हेल्थ रूहानी के साथ है ना तो आत्मा प्योर हो जाती है तो मानो आत्मा प्योर है तो शरीर को कोई रोग नहीं हो सकता है शरीर भी प्योर परंतु अभी तो तत्व पुराने हैं ना। यह जो बना हुआ शरीर है यह अगले हिसाब का बना हुआ शरीर है। यह जो मां-बाप विकारी थे उनका बनाया हुआ है। अभी तो आत्मा प्योर हो रही है ना। अभी यहां शरीर तो नहीं बदली हो जाएगा ना, न शरीर भी हमारा यह बना है जो यह हमने जो शरीर लिया है वह हमने पिछले खाते का लिया है तो हमारा पिछला खाता तो खराब है ना, रॉन्ग है ना। अभी हम करेक्ट कर रहे हैं तो फिर वह आत्मा करेक्ट आत्मा जो शरीर लेगी ना तो उसको शरीर भी जो है ना वह करेक्ट मिलेगा, उसने फिर कोई रोग आदि नहीं होंगे इसीलिए उसको है कि वह पांच तत्व का शरीर भी जो है ना वह प्योर इसीलिए फिर हमको सब प्योर होने के कारण से सदा सुख। अभी तो यह रॉन्ग उससे बना हुआ है ना शरीर, यह किसने बनाया बॉडी के मदर फादर ने जिसने बनाया है तो वह कर्म का खाता तो हमारा रॉन्ग एक्शंस का है ना, अभी हम राइट कर रहे हैं। तो अभी आत्मा राइट करती है उस राइट किए हुए हमारे कर्म का जो हमको शरीर मिलेगा वह हमारा प्योर होगा। इसीलिए बाप कहते हैं कि बच्चे वह तुम्हें अब कैसे मिले इसके लिए तो फिर माता-पिता प्योर, सब प्योर सारी दुनिया तत्व आदि सब प्योर थे उसके लिए देखो यह सारी दुनिया बना रहा हूं, पीछे तुम्हारी जेनरेशंस भी प्योर रहेंगी जैसे अभी जेनरेशंस इम्प्योर है वैसे फिर जेनरेशंस भी प्योर रहेंगी, उसमें तुम सदा सुखी रहेंगे। तो एवर हेल्दी एवर हैप्पी वैली देखो कैसा हो जाएगा तो इसीलिए कहते हैं यह देखो तुमको मैं हेल्थ पूरी दे देता हूं, जिसमें फिर तुम्हारे को कोई कभी कोई डॉक्टर की आवश्यकता नहीं, कभी कोई हॉस्पिटल नहीं, कुछ नहीं, रोग ही नहीं होगा तो काहे के लिए होंगे यह, दरकार ही नहीं। तो कहते हैं यह देखो मैं तुम्हारी कौन सी हेल्थ बनाता हूं तो देखो यह हॉस्पिटल हो गई ना, एवर हेल्दी बनाने की हॉस्पिटल, ऐसी कभी हॉस्पिटल सुनी? एवरहेल्दी बनाने की हॉस्पिटल। तो यह है एवरहेल्दी बनाने की हॉस्पिटल। तो हॉस्पिटल भी कहो, उसको सर्जन भी कहो, उसको डॉक्टर कहो या धोबी कहो या इनको विद्यालय कहो, यह विद्यालय भी है। टीचर भी है ना बड़ा, इस टीचर के पढ़ाने से कौन सी स्टेटस मिलती है, यह इंजीनियरी डॉक्टरी मनुष्य, मनुष्य से इंजीनियर, मनुष्य से डॉक्टर ये ऐसा नहीं, यह स्टेटस है मनुष्य से देवता, देवता मींस एवर हेल्दी वेल्थी वेल्दी एवर हैप्पी यह लाइफ की स्टेज, तो यह है विद्यालय मनुष्य को देवी देवता बनाने का, इसकी स्टेटस सबसे ऊंची। तो ऐसे विद्यालय में पढ़ना चाहिए ना? ऐसे टीचर से पढ़ना चाहिए और ऐसी स्टेटस पानी चाहिए जिस स्टेटस में हम सदा सुखी। देवता और दु:खी तो शब्द बनता ही नहीं है। देवता सुखी असुर दु:खी, दुःख देते दुःख लेते तो आसुरी संप्रदाय, दैवीय संप्रदाय देखो गीता में है, यह दोनों शब्द है। यह आसुरी संप्रदाय के भी लक्षण सुनाएं हैं और दैवीय संप्रदाय की भी लक्षण उसमें हैं तो कहा है दैवीय संप्रदाय के लक्षण ऐसे होते हैं, उनको देवता कहा जाता है और आसुरी संप्रदाय वाले के लक्षण यह होते हैं तो लक्षणों के ऊपर है ना, लक्षण है तो देवता है लक्षण नहीं है तो फिर असुर है। तो अभी मनुष्य क्या है असुर, हम सब असुर अभी देवता बनने का यत्न कर रहे हैं। तो यत्न कर रहे हैं अभी परमात्मा के बन करके तो अभी असुर से, शूद्र से अभी ब्राह्मण। बीच का है अभी, अब ब्राह्मण है, अभी ब्राह्मण फिर देवता जाकर के बनेंगे। अभी प्योरिटी का फाउंडेशन डाल रहे हैं इसीलिए जिन्होंने प्योरिटी का फाउंडेशन डाला है उनको कहेंगे ब्राह्मण, फिर ब्राह्मण सो देवता बनेंगे फिर हमको शरीर भी पवित्र मिलेगा आत्मा भी पवित्र होगी तो उसको कहेंगे देवता समझा। यह हैं सब बातें जिनको समझ करके और बाप से अभी वो जन्मसिद्ध अधिकार लेना है तो अभी इसमें क्या डिफिकल्टी है, बस बाप समझना है और बाप से रिलेशन जोड़ना है, उसी के संबंध में और उसी की मत पर वह करके चलना है, बाकी हां कोई संस्कार हैं पुराने, जानते हैं कोई भाव स्वभाव कोई किसी का उन्हीं सभी बातों से अपने को नीचा ऊंचा थोड़ी ही करना है, भाव स्वभाव से, नहीं। अच्छा कोई ने कुछ कह दिया, कुछ कर दिया, कुछ हो गया उसमें अपने को क्यों, हम क्यों उसमें आ जाएं, वह हमारा विक्रम बनता है ना इसलिए बड़ी खबरदारी रखने की है। चलो जो करेगा सो पाएगा, हम अगर किसी बात में आ जाते हैं तो हमने भी कर लिया ना, तो हमने कर लिया तो उस पाप का बोझा का तो हम भी भागी बन गए ना, हम क्यों बने। हमको कोई क्या भी करें तो हम तो कहेंगे ठीक है, यह उसने अपने लिए किया। जो करता है वो अपने लिए करते हैं मेरे लिए कुछ बिगाड़ा, मेरा तो नहीं बिगड़ा न। जिसने बिगाड़ा बिगड़ा उसका तो हमारा क्या बिगड़ता है, हमको तो अडोल रहना चाहिए ना। हम अडोल, अचल तभी तो देखो अचलघर होते हैं ना माउंट आबू पर, वो अचलघर है यह हमारी गुणों की धारणा से वह गुणों की स्टेटस जो है वह उसकी यादगार बनाए हुए हैं अचलघर पर भाई अचल, स्थिर और अचल स्थिर की तो अभी बात है ना, देवताओं को स्थिर रहने की दरकार ही नहीं है क्योंकि वहां तो कोई हिलाने वाला है ही नहीं। माया ही नहीं है तो हिलाने डुलाने की बात ही नहीं है अभी तो है ना। यह हमारी क्वालीफिकेशंस है ना अचल अडोल तो हिलना नहीं, कोई भी हमको भी हिलाए। थोड़ा कोई ऐसा करें तो हिलना थोड़ी ना चाहिए, कोई किसी ने आंख दिखाई, कोई किसी ने चलो हाथ भी कोई चला दे, चला दे क्या है, उसका बिगड़ेगा। उसको विकर्म होगा, हमारा क्या बिगड़ा, कुछ नहीं इसलिए अपनी तो अवस्था को अचल अडोल, स्थिर यही है तो इसीलिए अचल नाम पड़ा है। फिर अचल देवता, नाम रख दिया है क्योंकि क्वालीफिकेशंस हुई है ना तो नाम रख दिया है, वह अभी कि सब बातें हैं। तो अचल देवता अडोल देवता ऐसे ऐसे सबी नाम रखकर वो देवताएं बनाकर रख दिए हैं, हैं तो अभी की क्वालीफिकेशंस की बातें । तो यह तो यह हमारी क्वालीफिकेशंस है क्योंकि अभी है ना। यह माया के तूफान वगैरह की बातें तो अभी है ना, इसीमें हमको कैसा रहना है और इन सभी बातों से जब हम क्रॉस करेंगे तभी तो फिर देवता बनेंगे ना। यह है क्रॉस करना, अभी यही रास्ता है, अभी यही बातें हैं जिसमें हमको सहनशील बनना है । इससे देखो कितनी सहनशीलता आती है क्योंकि हम जानते हैं ना हम किस पर हैं किस सत्यता के ऊपर हैं हमको तो अपना डोल रहना है न । हमको कोई डोले, हमको ऐसे ऐसे करे तो बस हम हिल जाए, वाह! वाह! ये भी कोई बात है ? हम बाप को भूल जाए ? हम क्यों अपनी हैप्पीनेस, हम क्यों अपने अडोलता, हम क्यों अपनी स्थेरियमता छोड़ें। वह अंगद का मिसाल है ना उसने कहा हमारा पांव कोई हिलाके तो दिखलाएं, उसने कहा हिलाए कोई, कभी नहीं । तो कौन सा, यह पाँव थोड़ी यह हमारी बुद्धि का हमको कोई लाए तो इसका मतलब यह थोड़ी है हम ऐसे ऐसे हो जाए कोई बात की फीलिंग आ जाए, कोई बात फील हो जाए उसमें ऐसे ऐसे हो जाएं, फिर कहे हम अडोल हैं बाबा के तो हैं न, बाबा को ये ठगना नहीं है ? यह तो फिर ठगने की बात हो जाए ना, बाबा के है तो फिर अडोल हैं ना, हैं तो फिर हम क्यों डोलें कुछ भी है बाबा के बच्चे हैं चलो किसी ने कुछ कह दिया, कोई जैसे मां-बाप होते हैं ना बड़े, कुछ करते हैं छोटे बच्चे तो कहते हैं बछा है न , क्या है इसने थोड़ा बहुत कर दिया तो, बछा ही है हमारे लिए भी कोई थोड़ा बहुत नीचा ऊँचा करे न तो हम तो ऊपर खड़े हैं ना अपने बाप की स्टेज पर तो हम तो कहेंगे ना कि यह तो बच्चे हैं बिचारे इसने कुछ कर दिया तो क्या है । भले बड़े ने किया परंतु हम बड़ा थोड़ी ही देखते हैं, तो कहते हैं बेचारे को ज्ञान है नहीं भले इसका शरीर बड़ा है लेकिन आत्मा तो इसकी बिचारी को ज्ञान है नहीं न, समझो, डोंट माइंड, हम एक बात कहते हैं कहते हैं । हम ऐसे बात कहते हैं समझो किसी ने कुछ कर दिया तो हम क्या कहेंगे शरीर तो भले इसका बड़ा है, अच्छा हमको तो गाली दि,या यह कर दिया तो क्या हुआ । बेचारा जानता नहीं, इसको पता नहीं है, बच्चा भी नहीं है बाप को भी नहीं जानता है और हां भूला हुआ है ना उस टाइम, और अपने बाप को भी नहीं जानता है, तो जो बिचारा बाप को भी नहीं जानता है वो क्या रहा तो बेचारा नहीं जानता है चलो उसने कुछ कह दिया तो क्या हुआ । हां हमारा काम है इसका भी रिलेशन बाप से जुट्वाना, तो इसको कहे कि अरे तुम कौन हो देख लो ना । यह क्या, तुम्हारे में ये भूत आ गया तुमने ऐसा कर दिया, नहीं तुम बाप को समझो, बाप से अपना रिलेशन जोड़ो और बाप का हो करके रहो, देखो तुमको वर्सा मिलेगा, उसको बाप की टेंप्टेशन दिलानी चाहिए, और रियल, टेंपटेशन ऐसी नहीं झूठी मूठी है, प्रैक्टिकल है ना । उससे हम देखो क्या प्राप्त करते हैं, उसको दिखलाना चाहिए, देना चाहिए समझाना चाहिए । तो हमको तो और ही शौक होगा ना समझाने का । ऐसे थोड़ी ही ना कि हम उसमें हां उसने ऐसा किया हां चलो हम रूठ गए, नहीं तो यह तो अपनी अडोलता, अपनी अवस्था चाहिए ना, ना, तो यह सभी चीजों को बहुत संभालना । हमारी एक एक कदम को एक एक बात को हमको बहुत संभालना है । जब हम ऐसे संभालें और संभल के चले तभी तो हम अपने कर्म में राइटियस रहे, नहीं तो फिर अनराइटियस हो जाते हैं ना, फिर वही हमारा विक्रम बनता है और विकर्मों से ही तो हम दु:खी हुए हैं तो विकर्म और कर्म श्रेष्ठ बनाने की हमारी हर वक्त हर समय वह अपनी सावधानी रखनी चाहिए तब हम अपने में अच्छी ऊंचाई और अच्छी धारणाएं ला सकते हैं और इन्हीं धारणाओं से तो हमारी लाइफ बनेगी ना, बाकी बनाने का नहीं तो क्या है, यही तो बनाने की चीज है इसी कर्म से तो हम बन रहे हैं । कर्म से बिगड़े हैं, हमारी जीवन गिरी है और कर्म से हम सुधरेंगे तो कर्मों को तो संभालना है ना । अभी संभलना है इन बातों में, बाकी ऐसे नहीं लड़ाई झगड़े पकडे बाकी बैठ करके हमने आपको बतालाया था ना । कई कई ऐसे नियम का पालन करते हैं खाली नियम को पालन किया या कहीं बैठकर के हठयोग साधनाएं करते हैं बाकी उनसे क्या फायदा होगा । नहीं, हमको प्रैक्टिकल लाइफ जो हमारी दिनचर्या है, रोज में जो कर्म चलते हैं, उसी कर्मों में ही तो हमको संभलना है ना । उसमें हमारी कोई एक्शन रॉंग तो नहीं होती है जो हम बना रहे हैं बाकी इसके लिए हमने कितना भी माला फेरी, फलाना किया, फलाना किया, वह बताया था ना एक मिसाल, एक ने बैठकर इतना माला फेरने का, राम-राम राम-राम करने का जाप की प्रैक्टिस की थी तो वह तो उस बेचारी के कंठ से यहां से उसका राम-राम राम-राम आवाज निकलता रहता था । ऐसे बंद भी करता था ना तो भी, हमको आता नहीं है वह प्रैक्टिस हमारी तो नहीं है लेकिन उसका मुंह बंद रहता था लेकिन उसके अंदर से राम-राम राम-राम राम-राम राम-राम ऐसा हम सुनते थे, यानि यह मुख बंद था लेकिन उसने ऐसी प्रैक्टिस बनाई थी जैसे उनके यहां से उनके कंठ से राम-राम का आवाज चलता रहता था । वह आया था हमारे से मिलने के लिए कानपुर में अपना सेंटर है ना तो उधर आया था मिलने के लिए तो खड़ा था तो हमने भी सुना उसका वह राम-राम फिर चलता ही था । तो बेचारे को वह औरत को बहुत मारता पीटता था तो दूसरे दिन उसकी विचारी औरत भी आती थी तो दूसरे दिन जब औरत बिचारी रोटी रोटी आई उसको निशान हो गए थे, ऐसा मारा था, वह निशान हो जाते हैं ना खून के जैसा वह पड़ गया तो आया देखो राम-राम तो कहता है देखो अभी हम को मारा है बहुत गाली दी है अब हमको इससे छुडाओ, यह बहुत ऐसा है । तो देखो मुंह से गाली और इधर से राम-राम किया तो क्या हुआ और वह मुख जिससे कर्म बनते हैं उससे गाली और इधर यह हठयोग से उसको अभिमान था बहुत कि देखो हमने कैसा प्रैक्टिस की है हमारा तो राम नाम चलता ही रहता है, ना जबते हुए भी जपता रहता है, देखो हमारा राम नाम कैसा चलता है । तो उसको बहुत उसका अभिमान था लेकिन उस बात से हुआ ही क्या । इतनी प्रैक्टिस की, अभ्यास किया वह राम-राम चला, लेकिन मुख से जो काम करता है उससे गाली बकता है, मुंह से गाली देता है औरत को मारता है और यह करता है तो हाथ से और मुख से जो विक्रम बना उससे तो पाप का भागी हो गया ना । तो उससे क्या हुआ, तो यह तो नहीं है ना खाली, यह तो हमारी कर्मों को हमको संभालना है, जो हमारी एक्शंस हैं जिसके ऊपर ही हमारा आधार है उसी से ही तो हमको संभलना है ना । मनसा वाचा कर्मणा इन्हीं बातों से संभलना है तो इसीलिए बाप कहते हैं अभी मनसा को तो मेरे में लगा दो, मेरा काम दे दो उसको तो वो फालतू नहीं घूमेगी । जब देखो इधर-उधर फालतू जाती है झट से उसको ब्रेक दो जैसे मोटर को ब्रेक दी जाती है ना तो बुद्धि को भी ब्रेक देने की है हैबिट डालो, अभी यह हैबिट पड़ी हुई है ना तो उसको छोड़ देते हो, जहां मोटर चली जाए चली जाए ये बुद्धि की और वह फालतू चली जाती है तो उसको ब्रेक देना सीखो, फिर ब्रेक दे करके झट बाप से लगा लो आई एम सोल सन ऑफ सुप्रीम सोल । यह कोई कहने की बात नहीं है लेकिन अपना बुद्धि की याद में अपने को ऐसा समझना है तो समझ करके हम उनकी संतान हैं तो हमारे एक्शंस कैसे होने चाहिए राइट, हमारे बोल कैसे होने चाहिए हम किससे बोलते हैं आत्मा से, यह दूसरा भी जो है ना आत्मा से, हम उसको बोलते हैं कोई काम बोलते हैं कुछ भी है तो हमको किस तरीके से बोलना चाहिए तो वह हमारा नेचुरल है आत्मा को देख करके बोलने से हमारी भावनाएं शुद्ध रहेंगी उनके प्रति और बोल चाल हमारा रॉयल रहेगा, हम कोई ऐसे नहीं, हां कहां काम के लिए या कुछ भी कहीं हमको थोड़ा किसी को समझाना पड़े या कुछ , कई आदमी तो जैसे आप लोगों का तो बहुतों से गुजारा होता है ना, सब थोड़े ही ज्ञानी होंगे, कहीं पैसों में तो कहीं, तो चलो कहां हमको कुछ भी तो भी हम तो साथ ही रहेंगे ना । ऐसे नहीं की हमारा से टेम्पर लूज हो जाए या हम अपना टेम्पर छोड़ बैठे । तो टेंपरेचर अपना यूज नहीं करना चाहिए, उसमें कंट्रोलिंग पावर होनी चाहिए अपने में कंट्रोल । तो यह हमारी मोटर हैं न गाड़ी है न तो इसका सारा कंट्रोल हमारे में होना चाहिए । हम इसे डिटेच हो जाए या हमको काम लेना है तो सिर्फ ऑर्गन का अटैचमेंट लेकर करके हम काम लेवे, फिर डिटेच हो जाए ना, तो डिटेच और अटैच, डिटैच और अटैच इसकी प्रैक्टिस होनी चाहिए ना । फिर यह हमारे में धारणा होनी चाहिए कि हम चाहें तो इससे डिटेच, अभी डिटेच हो जाते हैं अशरीरी गीता में भी कहा ना, अशरीरी भव हे अर्जुन तू अशरीरी हो जा, शरीर से निकल जा, लेकिन कैसे इस शरीर में होते तू डिटैच हो जा कि इसको मैंने आधार लिया है, अभी मैं इसका इससे काम नहीं लेता हूं अच्छा, डिटेच हो करके बैठ जाओ बस हम, आत्मा ।