मम्मा मुरली मधुबन           

    005. Amrut Vela Ka Mahatva

 


तो अभी समझ आई है ना कि आई एम सोल, सन ऑफ सुप्रीम सोल, उससे हमें फायदा भी है और हम ऐसे रहने से हम अपना अधिकार लेंगे बाप से तो यह तो अच्छी बात है ना तो खाली हैबिट बदलने की है बस और कुछ क्या करना है। कई पूछते हैं क्या पुरुषार्थ करें, भला यह तो सुना, अब घर पर जाकर फिर क्या करें। वह समझते हैं कोई साधन दे दे, कोई मंत्र दे दें या कुछ सुना दे कि जाकर के करें। नहीं, यही निरंतर मंत्र है ना। यह महामंत्र, निरंतर जाप रखने का मतलब, जाप कोई कहने का नहीं है लेकिन ध्यान रखना है अटेंशन। तो यह हर वक्त अटेंशन रखना और इसी प्रैक्टिस में रहना इन्हीं को कहा जाता है योग और इन्ही को कहा जाता है यह योग का जो ज्ञान, जो सुन रहे हैं बाकी योग कोई ऐसा थोड़ी ही है कि आसन लगाकर बैठो या यह कर बैठो या बैठकर के कोई दिवा जगा के कहो कि भाई आई एम देट आई एम देट, आई एम देट, व्हाट? बैठकर बस माला सिमरे या राम राम राम राम राम राम क्या, बस यह ऐसे ऐसे राम-राम खाली मुख थोड़ी ही चलाना है, अपनी बुद्धि से योग रखना है जिससे हमारा योग राइटियस रहेगा ना। कहा न जब तलक बुद्धि नहीं है जिससे हमने डिटैच होकर के उसके साथ बुद्धि नहीं जोड़ी है उसमें तो फिर कितना भी राम-राम राम-राम लाखों बार भी करे ना तो क्या हुआ, यह तो खाली मुख ही चलता है ना। उसने तो बेचारे ने अपनी ऐसी अजपाजाप की प्रैक्टिस बनाई थी उसका अपने आप राम-राम चलता था। जपने की भी दरकार नहीं है अपने आप चलता था उसने ऐसा बना दिया था अपनी प्रैक्टिस। तो उससे तो फिर सब ऐसे बना देवें फिर तो राम-राम ऑटोमेटिक ही चलता रहेगा , ऑटोमेटिक मशीन। यह तो चलाना पड़ता है उसने तो बेचारे ने ऑटोमेटिक प्रैक्टिस की थी कि ऑटोमेटिक चलता ही रहता था। उसने शास्त्रों में पढ़ा है ना, अजपाजाप यानी जपे नहीं, परंतु जाप चलता ही रहे तो उसने बैठ करकेउस बात इसी तरह से बनाया। उसका अर्थ निकाला, देखो कैसा अच्छा निकाला परंतु फिर मुंह से गाली देना, यह करना, वह करना उससे तो अपना विकर्म बना ना, यह तो राइट नहीं है ना। तो यह सभी चीजें समझने की है बहुत अच्छी तरह से इसीलिए बाप कहते हैं अपने को राइटियस, अभी उसी तरीके से कैसा चलना है उसीमें चल करके और अपना बनाते रहना है। तो यह है अपना स्टेटस बनाने की अथवा अपना प्रैक्टिकल लाइफ बनाने की यह पुरुषार्थ, जिसको बना करके और ऐसी लाइफ से अपने को ऊंचा करना है क्योंकि हमारा सारा दारोमदार इन्हीं कर्मों के ऊपर है ना और सारा दिन ही हम कर्म में ही तो रहते ही हैं किसी के बोलचाल में, किसी के काम में किसी के रिश्ते में हमारा तो कांटेक्ट है, उसीमें हमको सारा दिन संभल करके चलना है। इसके लिए कोई खास थोड़ी ही बैठ करके कुछ करना है, भाई खास कोई कर्म करें या खास कोई पठन-पाठन या खास कोई पूजन कुछ नहीं, यही हमारी पूजा है हम आत्माओं को देखें, सभी आत्माएं हैं, उन्हीं आत्माओं से हमारा कैसा बर्ताव चलना चाहिए यही हमारा जो प्रैक्टिकल है उन्हीं में हम कैसे बर्ताव में रहे, इसी में ही हमको अपना कर्म श्रेष्ठ बनाना है और उसी में हमारा नेचुरल है रास्ता देवें तो हमारी यह सर्विस चलेगी इसको भी समझाएंगे। कोई मिलेगा तो क्या करेंगे, उसको भी बैठ के यही समझाएंगे। काम हुआ, फिर उसको कहेंगे अच्छा बैठो, चलो एक बात सुनाएं तुमको, तुम कौन है, चलो आपको जरा बाप का तो परिचय दें और वह बड़ा खुश हो जाएगा। किसको वह नशा चढ़ा दें और किसको बैठ करके यह दो बात भी इशारे में समझा दे न वह तो बड़ा खुश, कहेगा बड़ा, यह तो बड़ा कोई फरिश्ता है, एकदम उसके लिए भी रिकॉर्ड बैठेगा। कोई भले लड़ने झगड़ने वाले होंगे ना, किसी से ऐसे प्रेम से बैठ करके बात करें वह उनका भी मित्र बन जाएगा। यह अपने मे टेप्ट चाहिए और अपने में जरा हिम्मत और पावर भी चाहिए ना तो उससे हम दुश्मन को अपना सर्जन बना सकते हैं अपने पास सभी बातें चाहिए ना। बाकि ऐसे ही थोड़ी, बस ऐसा ऐसा बैठकर किया, वह तो करते-करते तो देखो दुनिया नीचे ही पड़ गई ना यह तो अपना उसी में आना है। यह तो रियल है ना, चैतन्य हम आत्मा है और चैतन्य पिता के साथ, बाकी कोई जड़ दिवे के साथ या जड़ मूर्ति के साथ या कोई जड़ माला के साथ, उसके साथ कोई योग की बात तो नहीं है ना। यह हमारा चैतन्य, इससे हमको चैतन्य पावर मिलता है। तो हमको जब हैं सत चित आनंद स्वरूप कहते हैं ना तो उसी चैतन्य परमात्मा के साथ हम चैतन्य आत्मा का संबंध चाहिए इसको हम संबंध, संबंध कहो या योग कहो बात एक ही है। तो हमारा रिलेशन उसके साथ, योग का मतलब ही क्या है, योग का अर्थ भी आता है कि दो चीज होनी है न, किसका किसके साथ योग। योग का मतलब है सम्बन्ध, तो सम्बन्ध में तो दो चीज होंगी न, सम्बन्ध वो अकेला सम्बन्ध क्या, और सम्बन्ध तो दो चीज है, दो चाहिए न तो बाप और हम आत्माएं, तो सम्बन्ध चाहिये, उससे रिलेशन चाहिए । इसको संबंध कहो या योग कहो बात एक ही है तो हमारा योग उससे बैठे माना उससे सम्बन्ध बैठे तो संबंध के लिए हमको नॉलेज चाहिए, परिचय चाहिए तब तो उसके साथ बैठेगा ना तो बाप बैठकर के समझाते हैं, इसीलिए यह ज्ञान देते हैं कि तेरा मेरे से यथार्थ योग कैसे बैठे वह बैठ करके समझाता हूं। तो यह सारी बातों को अच्छी तरीके से बुद्धि में रखना और फिर उसके साथ सारा चक्कर भी बाप समझाते हैं कि देखो अभी तुम्हारा यह चक्र कहां तक आ करके पहुंचा है, अभी तुमको ऊंचा कैसे उठना है, अभी टाइम भी है। टाइम हो तब बात भी हो ना, अभी टाइम पर बात है। इतना समय टाइम नहीं था तो जो बातें थी ना वह सब भक्ति मार्ग की थी, वह सिर्फ यादगार की थीं , वह यादगार का सिर्फ तुमको बल मिलता था, अभी यह है प्रैक्टिकल। वह थ्योरीकल, यह प्रैक्टिकल, अभी मैं प्रैक्टिकल में आया हूं। वह तो तुम मेरे खाली यादगार को पूजते थे, मैंने जो कुछ अभी आ करके काम किया है , उसके पीछे फिर द्वापर काल में भक्ति मार्ग में शास्त्र आदि चित्र आदि यह सब यादगारें बनाई है जिसका फिर तुम यह पठन-पाठन, पूजन करते आते हो। तो वह बात अलग है, वह डिपार्टमेंट अलग, वह साइड अलग और यह प्रैक्टिकल अभी मैं आया हुआ हूं इसलिए प्रैक्टिकल तुमको बना करके प्रैक्टिकल दुनिया बनाता हूं यह बात अलग है, इनको कहेंगे प्रैक्टिकल वह हो गया थ्योरीकल। तो अभी तो प्रैक्टिकल बात समझनी है ना, उससे हमको पूरा वर्सा लेना है और वह वर्से वाली दुनिया मैं बनाता हूं तो यह सभी चीजों को ही समझना है। अच्छा, टाइम तो हुआ है आज संडे भी है छुट्टी का थोड़ा तो फायदा लेना चाहिए ना और यह फायदा है बड़ा। यह कमाई है, यह ऐसा नहीं है। भले बैठे हो, देखो यह कमाई कैसी है चुप से, ऐसे बैठो कमाई, ऐसी कोई कमाई देखी? सब कमाई में हाथ चलाना पड़ेगा, यह चलाना पड़ेगा इसमें तो ऐसे बैठे रहो चुप, बाप की याद में और कमाई होती रहती है, कौन सी कमाई? हमारे पाप नाश, इस योग अग्नि से हम पापों का नाश करते हैं और इसी से हमारा देखो पापनाश हुआ तो हम प्यूरीफाइड होते हैं और उस पुरीफिकेशन से ही तो हमको सब कुछ मिलता है, हेल्थ, वेल्थ, एवरीथिंग तो देखो यह कमाई अच्छी नहीं है? ऐसी इजी कमाई और फिर क्यों कहते हैं फुर्सत नहीं है , यह है फिर बहाने बनाने देते हैं। इसके लिए तो फुर्सत कैसे भी निकालनी चाहिए और सो भी इसका टाइम ऐसा है सवेल सुबह का, जितना सवेरे हो अच्छा है क्योंकि अमृतवेला, सवेरे का वैसे भी देखो कोई कीर्तन करते हैं पूजा करते हैं कुछ भी ऐसा होता है सवेरे का होता है क्योंकि सवेरे में ऐसा टाइम होता है, देखो सारा दिन का टाइम है, टाइम में भी स्टेजिज हैं, सुबह का अमृतवेला कहते हैं और उसको गोल्डन टाइम कहते हैं, पीछे धीरे-धीरे जैसे दिन चढ़ता जाता है देखो सुबह के टाइम कोई भी पाठ करेंगे पूजा करेंगे सुबह को करेंगे, सब सुबह को उठेंगे तो भगवान का नाम लेंगे, कोई भी बुरा काम सुबह नहीं करेंगे, हां, रात को कोई चोर चोरी भी करेगा, रात को लोग विकार में भी जाएंगे, तो रात गंदी इसीलिए रात को चोर को चोरी भी करना है तो वाइब्रेशन जो है ना और सारे विकार में जाते हैं तो देखो यह वाइब्रेशन, हां बाकी सुबह का जो टाइम है दो बजे के बाद, तीन बजे इस समय पर सवेरे का जो टाइम है उसको अमृतवेला गिना जाए तो यह सब उसी समय कोई ना कोई भगवान का नाम लेंगे, राम का, देखो मुसलमान लोग हैं न सुबह को पाँच बजे उठेंगे, चार पाँच बजे उठेंगे वह भी खुदा की बंदगी करेंगे सब। क्रिश्चियन लोग भी हैं वह भी सवेरे देखो चर्चिज में जाते हैं कितने, तो बहुत करके जब सुबह का टाइम होता है उसमें वर्ल्ड का ही सारा वाइब्रेशन पवित्र रहता है क्योंकि उस समय कोई धंधा धोरी और इनका भी हंगामा बुद्धि में नहीं होता है और सबके अंदर में भगवान का उस समय, कोई भी उठेगा ना कैसा भी होगा उल्टा की सीधा पहले तो भगवान् को याद करेंगे, फिर दिन होता है फिर काम धंधा उसको फिर रजोगुणी स्टेज कही जाएगी क्योंकि फिर काम धंधे के वाइब्रेशन, बुद्धि फिर all-round चलते हैं और फिर ऐसी स्टेज हो जाती है । रात को तो है ही तमोप्रधान चोर को चोरी करने का टाइम आया है उसकी वाइब्रेशन और विकारों के वाइब्रेशन तो वह गंदगी का इसीलिए वो टाइम सुबह का सवेल है इसलिए हमारी ज्यादातर क्लासेज है ना पंजाब आदि में बहुत सुबह चलती हैं परंतु यहां तो आप लोगों को दिक्कत है बस से आना जाना, बस नहीं मिलती है फिर कभी ऐसी दिक्कत है आती है ऐसी दिक्कतें आजकल जहाँ तहां हैं परंतु जो है नियमी तो फिर वो तो चलते हैं, क्योंकि वहां सेंटर्स हैं दस बारह दिल्ली में, आजू बाजू के जो हैं अपने अपने सेंटर पर आते हैं जैसे आपका सेंट्रौमेट है, इधर है तो जो जहाँ है उनको नजदीक पड़ता है ना तो सवेरे भी आ सकते हैं तो यह सभी जो भी दिक्कतें भी संभालनी पड़ती है । परंतु है सुबह का टाइम, अपने घर में भी तो उठ के सवेरे बैठना, बाप को याद करना, यह सभी है, जितना जितना करेंगे उतना उतना अपने को बल मिलता है । तो यह होना चाहिए यह अभ्यास अपने में बनाना है यानी कि जो उल्टी बॉडी की प्रैक्टिस हो गई है तो अभी उसको उल्टा करना है तो वह प्रैक्टिस डालनी है ना अपने में तो हमको यह सुबह का टाइम तो मिलता ही है तो थोड़ा सा नींद जो है थोड़ा कम करेंगे न , थोड़ा उससे आधा एक घंटा निकाल करके हम सुबह-सुबह अपने में यह प्रैक्टिस डालें । यहां आते को सुनते हो है, उसमें रिमाइंड मिलता है कि हमको कैसे करना है, उसका ढंग मिलता है तो जितना जितना वो ढंग बुद्धि में बैठता जाएगा प्रेक्टिस में मदद होती जाएगी । तो यह ज्ञान मदद करता है योग में फिर हम सारा दिन काम करते भी आस्ते आस्ते फिर वह प्रैक्टिस भी होती जाएगी और खुशी भी रहेगी । यह सुबह की याद, देखो स्कूल में बच्चे भी पढ़ते हैं ना, सवेरे उठकर पढ़ते हैं क्योंकि सवेरे की बुद्धि जो होती है नींद करके उठते हैं ना फ्रेश रहती है तो उसमें जो भी धारणा बनानी होती है ना वह जल्दी हो जाती है तो इसीलिए बच्चे भी सवेरे उठकर के पढ़ते हैं । जो ज्ञान में और पढ़ाई में चुस्त होते हैं बहुत सवेरे सवेरे उठकर पढेंगे क्योंकि सुबह उठकर बढ़ने में वह याददाश्त आ जाती है, दिन के इधर-उधर में सब भूल जाता है तो इसीलिए सवेरे का महत्व हैं । अमृतवेला कहते हैं इसको कहते हैं अमृतवेला, तो यह अमृतवेला का अपना लाभ लेना चाहिए । तो ये सभी चीजें हैं, देखो हर बात की भी स्टेजिस है ना, दिन में भी देखो टाइम का है सारा तो अभी बाप कहते हैं देखो यह तो हद रोज का अमृतवेला सुबह सुबह का, यह है बेहद का । बेहद में भी अभी हम चक्कर घुमते अपनी जेनेरेशंश का अभी यह हमारा अमृतवेला चल रहा है क्योंकि हमारा अभी न्यू जेनरेशंस का फाउंडेशन और हमारी ओल्ड जो जेनरेशंस है इंप्योरिटी कि उसकी एंड । अभी कोन्फ़्लएंस हैं न तो ये हमारा अमृतवेला, देखो सवेरे जब सूर्य चढ़ता है, सवेरे अमृत पहला पहला जब सूर्य निकलता है तो देखो कैसा होता है तो इसी तरह से अभी हमारा ज्ञान का सूर्य चढ़ता है । अब चढ़ती कला होती जाएगी, अभि मानो सूर्य उदय हुआ है तो सवेरे का जो सुबह सूर्य उदय होता है तो देखो कैसा होता है तो हमारा भी ऐसे ही अभी फाउंडेशन है कलम लगा है, यह सेप्लिंग लगा है । यह मानो अभी सूर्य की सेप्लिंग और चंद्रमा की यानि रात की अभी एंड होती है और अभी वह सूर्य उदय होता है तो वहां क्या न्यू जनरेशन उदय होती है तो यह हमारा बेहद का अमृतवेला है । वह हद का है रोज का और यह अभी बेहद का तो अभी यह हमारा अमृतवेला है, तो अमृत्वेले परमात्मा कहते हैं मैं आता हूं, रात में नहीं आता हूं । वह है ना हिरण्यकश्यप और नरसिंह की बात, तो हिरण्यकश्यप ने कहा था, ना मैं रात मरूं न मैं दिन में मरू, ना अंदर मरू ना बाहर मरू, उसने वर मांगा था, तो वह बात कहां की है यह अभी की है इसीलिए कहते हैं मैं आता हूं तो जब वो अमृतवेला है, कांफ्लुएंस टाइम है रात की एंड और सुबह की शुरुआत के अन्दर का समय, इधर ना दिन में ना रात में बीच में आ करके देखो यह डिस्ट्रक्शन और कंस्ट्रक्शन का काम करता हूं । तो कहते हैं ना मैं रात में आता हूं ना मैं दिन में आता हूं । रात और दिन में ब्रह्मा की रात ना ब्रह्मा की रात में आता हूं ना ब्रह्मा के दिन में आता हूं लेकिन कहां आता हूं, जब रात पूरी होती है और दिन चढ़ता है उसको कहते हैं सैप्लिंग, कांफ्लुएंस तब फिर मैं आता हूं । तो देखो नरसिंह नर तन में सिंह परमात्मा, जो शहंशाह है वह अभी नर तन में आकर के इसलिए उसका नाम पड़ा है नरसिंह । है तो नॉलेजफुल वही ना, वह आता है इस तन में इसीलिए कहते हैं नरसिंह तो नाम रख दिया है नरसिंह । अभी नरसिंह ऐसे नहीं कि कोई शेर की शक्ल या नर का शरीर, ऐसे कैसे होगा जैसा दिखाया है ऐसा तो न कोई मनुष्य होता है, ना ऐसा कभी कोई जानवर होता है तो यह सभी चीजें समझनी है, यह सब नाम रखे हैं बैठकर के जो ये बनाए हैं । तो यह सभी चीजों को समझना है और समझकर के बाप से अपना ऐसा जन्मसिद्ध अधिकार पाना है तो अभी बुद्धि में आता है ना, पाना किससे है और हमको क्या बनना है । हमको यह नर और नारी प्यूरीफाइड बनना है, हमको मनुष्य तन में आना जरूर है, ऐसे हम कहे नहीं, उधर बैठ जाएं । नहीं, बैठने में कोई मजा नहीं है, क्या करेंगे वहां बैठ कर क्या करेंगे, वह तो जैसे रात को नींद में चले जाते हैं ना, देखो डिटैच हो जाती है रोज होते हो न डिटैच, देखो नींद करते हो बॉडी से डिटैच हो जाते हो परंतू वह नींद की है और यहां हम चलते फिरते डिटैच रहे इससे । और उधर जाकर बैठेंगे, बस बैठ गए उधर साइलेंस में क्या हुआ, वह मजा नहीं है । हम आते हैं, जागते हैं, जागते ही तो सब मजा है ना, परंतु उसमें हमको लाइफ की पूर्ण सुख चाहिए, वह हमारा कैसे बने उसी को बनाना है और उसी में हमको सदा सुख प्राप्त करना है समझा । तो ऐसी बातों को समझते हैं और अपना ऐसा पुरुषार्थ करते अपनी ऐसी प्रारब्ध बनाओ, अच्छा । देखो, यह जो हम कहते हैं, यह जो बनाते हैं ना, इसको गोरा बनाओ, सांवरा बनाया है । हम अभी गोरे बनते हैं ना, तो यह सांवरा रंग कर दिया है । सबमें हमको प्रवीण बनना है ना, सोल भी प्योरीफ़ाइड तो एवरीथिंग बनाने में भी हमको होशियार होना है न । तो यह सांवरा थोड़ा बना दिया है, लेकिन क्या अभी सांवरे हैं ना । अभी देखो सांवरे हैं फिर गोरे बनेंगे । आत्मा भी गोरी, शरीर भी गोरे, यह नहीं गोरे, यूरोपियन गोरे नहीं वो तो देखो उनकी ठंडाइश में रहते हैं न ठन्डे मुल्कों में इसीलिए उनकी चमड़ी ऐसी होती हैं परंतु क्या रोग है, बीमारियां हैं यह हैं तो उसका वह गोरापन क्या है । गोरे का मतलब हेल्थ और वेल्थ, नेचुरल ब्यूटी वहां देखो सतयुग में नो लिपस्टिक, नो पाउडर, मेकअप करने की कोई दरकार नहीं क्योंकि वह नेचुरल ब्यूटी है ना । यहां तो मेकअप करनी पड़ती है और उन गोरों को भी मेकअप करना पड़ता है वहां कुछ भी नहीं, नेचुरल और हेल्थ वेल्थ और शरीर छोड़ना, करना यह सब भी, ऐसे नहीं अकाले बैठे बैठे मर जाए, हार्ट फेल हो जाए, यह हो जाए, नहीं, कभी नहीं, वहां कभी कोई विधवा होती नहीं, क्योंकि वहां सदा सुहागिन सदा सुख की सब बातें जो हैं वह ईश्वरीय बल से प्राप्त है गारेंटी है, कोई लावारिस हो ही नहीं सकता, लावारिस समझते हो? ऐसा हो कि वहां कोई किसी को बच्चा ना हो कि हे भगवान बच्चा दो, ना, बच्चा होना ही है, गारंटी क्योंकि धन को नहीं तो कौन संभालेगा इसीलिए ये सब हमारी प्रालब्ध जो है ना, वह प्रालब्ध से हमको सब कुछ प्राप्त होना ही है, इसको कहा जाता है बर्थ राइट, जन्मसिद्ध अधिकार , लाइफ का जो सब कुछ साधन है वह पूरे मिलेंगे, उसकी कोई फिकरात ही नहीं है । खाने पीने के लिए भी सब भरपूर, आज दो दिन ना कमाए तो बेचारे को चिंता रहेगी कि अरे बीमार पड़ गया हूं, अभी कौन कमाई करेगा, घर का कौन करेगा, बच्चों का कौन करेगा, फिकरात होती है ना, तो वहां कोई ऐसी बात ही नहीं, खाने पीने के लिए सब आराम से मिलता ही रहता है । खाने को तो तुम, तुम्हारे बच्चे, बच्चों के बच्चे, बच्चों के बच्चे खाते ही रहेंगे खुटेगा नहीं । यहां तो चिंता रहती है ना, इधर चिंता से कमाया जाता है तो यह सब बातें हैं । बाप कहते हैं मैं तुमको ऐसी लाइफ देता हूं फिर बाकी क्या चाहिए । कभी लड़ाई नहीं कभी झगड़े नहीं, अभी तो देखो लड़ाई झगड़े यह सब दिक्कतें, अर्थक्वेक हुआ, यह नेचुरल कैलेमिटीज, ऐसी कुछ बातें वहां नहीं, सब आर्डर में क्योंकि तुम आर्डर में आ जाते हो, तुम गॉड को ओबे करते हो तो सब चीजें तुमको ओबे करती हैं और तुम उसको ओबे नहीं करते हो, डिसऑर्डर में आए हो तो सब चीज तुमको डिसऑर्डर में वर्क करेंगी, जरूर करेंगे पीछे वाले तुम्हारे, अच्छा । आज मालती भी आई क्योंकि बच्चे तो ऐसे ही शुद्ध होते हैं ना बहुत, और ये फिर भी शिवबाबा से प्रेम है । याद करते हो ना? भूलती तो नहीं हो ना? रोती तो नहीं हो? अच्छा! बाबा को याद कर करके फिर खिलाओ, सबको दो, शिव बाबा को, खाने वाले लेने वाले भी याद करें । देखो, याद दिलाओ आंखों से, उसको कहो, ऐसे आंखों से इशारा करो, देखो दिखाओ की आत्मा, आई एम सोल, सन ऑफ सुप्रीम सोल, दृष्टि दे करके दो, टोली को दृष्टि नहीं खाली दो, उनको भी दो । कोई बात नहीं, गिर गया हर्जा नहीं । देखो प्रसाद गिरता है ना, उठा लेते हैं, उसका सत्कार रखते हैं, यह प्रसाद की तो बात ही नहीं है यहां तो कोई वह भक्ति मार्ग की बात ही नहीं है, परंतू फिर भी देखो यह पवित्र हाथों से और जिसकी यहां कोई ऐसा भी स्वीकार नहीं किया जाता है कोई अपवित्र का धन या कुछ भी, नहीं, पेट में खाने की चीज की संभाल रखते हैं । हां बाकी कुछ ऐसे हैं, लिटरेचर आदि या कोई ऐसे बाहर का, कुछ भी है । खाने पीने की चीजों में इसलिए करते हैं क्योंकि जैसा अन्न वैसा मन, वह ऑटोमेटिक मशीन चलती है, जाएगा ही पेट में जो ऐसे पक्के हैं, मजबूत, उसके अंदर जाएगा ही बिल्कुल पवित्र इसलिए बनाने वाला प्योर और बाप को याद करेगा इसीलिए हमारी खाने पीने की ज़रा थोड़ी परहेज रखते हैं । जिस किसी का बना बनाया खाना ,नहीं क्योंकि वह फिर भी विकारी तो रहते हैं ना, पवित्र तो नहीं रहते हैं ना । पवित्रता यह नहीं भाई मैंने धोया है, नहाया है, चौका साफ किया है बर्तन वर्तन साफ किया है, अब तो हमारा बहुत शुद्ध हो गया, यह बर्तन कहां साफ किया? इधर, इधर प्योरिटी चाहिए, ये सोल, बाकी वह चौका साफ किया, यह किया, वह किया, नहाया धोया तो उसमें क्या हुआ । यह नहाना, आत्मा को नहाना है, उसके लिए तो ज्ञान पानी चाहिए, ज्ञान गंगा उसके बिना वह धोई नहीं जा सकती । पानी में कितने भी गोते लगाओ, नदी में नहाओ फिर त्रिवेणी में डुबो, किसमें भी पड़ो लेकिन उसमें कोई आत्मा थोड़ी ही साफ होगी, नहीं पावन होने के लिए ज्ञान और योग । आत्मा का ग्रहण, आत्मा का बताया ना जंक उतरेगा ही तभी, उसको उतारने का एक ही उपाय है, सो भी परमात्मा का योग । कोई तत्व का योग, कोई मूर्ति का योग, कोई दीवे का योग, दीवा भी रखते हैं न, आगे दीवा रख करके उससे कांसनट्रेट करते हैं, मेडिटेशन बहुत किस्म का दिखलाते हैं ना, तो भले कोई दीवे का योग, कोई मूर्ति का या कोई किसी का, इन्हीं का योग नहीं, परंतु डायरेक्ट परमात्मा का योग उससे पावर मिलेगी इसीलिए कहते हैं मुझे याद करो । अच्छा, तुमने मेहनत की है ना तो डबल देना चाहिए ना । डबल एक मेहनत का, एक तुम्हारा अच्छा हमको देंगी। आप दो । छोटे को कितना खिलाया जाता है, इसको बिठाएंगे तो नेष्ठा में भी, याद में अच्छी बैठती है, आज बहुत अच्छा बैठी मम्मा । किसको याद करती हो? शिव बाबा को? कैसा है शिव बाबा? अच्छा है? क्यों नहीं, जो इतना बिलवेड फादर है, जो हमको इतना प्यार करता है कि हमारी लाइफ ऐसी बना देता है, उसके प्रति क्या प्रेम नहीं हो,गा जरूर होगा । कभी कोई मनुष्य मनुष्य के ऊपर कोई एहसान करता है, कोई धन की मदद करता है, कोई समय पर कुछ हेल्प करता है तो कितना उसके लिए दिल में होता है, भाई इसने समय पर हमको बहुत मदद की । तो जब मनुष्य के प्रति इतना होता है, वह तो हमारा सदा सुख, सर्व सुख देने वाला है लेकिन जब जानते हैं ना, तब उससे लव बैठता है । नहीं तो नहीं जानते हैं तो फिर बिचारे चल रहे हैं तो ऐसे बाप को समझ करके चलना चाहिए । यह कुछ माताएं आज आई है नई, तो समझती हैं आप भाषा समझती है हिंदी ? श्याम सुन्दर की है, श्याम सुन्दर की हाँ वो तो , वो आई है गाँव वाली ? और यह आगे जो बैठी है, यह ? नए है । हां, बहुत अच्छा, यह कोई लाए हैं या अपने आप आए हैं? अपने आप । अपने आप, अच्छा ये तो अपने आप आई है, अभी इन्हों से पूछो कि समझती हो और फिर इन्हों को समझाओ तो टाइम दे करके आ करके समझे । बहुत अच्छी चीजें हैं जिसको समझना चाहिए और समझ करके अपने घर गृहस्थ में रह करके कुछ छोड़ना नहीं है, हां बाकी छोड़ना क्या है पांच विकास, भाई विकार तो छोड़ेंगे कि कहेंगे विकार भी रखे रहें? नहीं, विकार तो हमको दुःख देने की चीज है ना, उनको छोड़ना है इसीलिए उसे ही हमको घर गृहस्थ में रहते संभाल रखनी है । घर गृहस्थ कोई विकार नहीं है, विकार कौन सी चीज है पाँच विकार, तो विकार निकलने से कोई हमारी गृहस्थी नहीं छूट जाएगी, नहीं वह तो देवताए भी गृहस्थी में थे, बाल बच्चे थे, राजाई करते थे लेकिन प्योरिटी के बल से, उन्हों को योग बल था । अभी भोग बल है ना । वह योग बल था, योग बल से संतान पावरफुल, अभी वह संतान पैदा करने की ताकत नहीं है इसीलिए संसार दु:खी है जैसे संतान बिच्छू टिंडन जैसे निकालते हैं तो वो काटते ही हैं न और क्या करेंगे, इसीलिए कहते हैं यह संतान ऐसी पैदा की, उनकी बुद्धि देखो ना । तो आज दुनिया के नाश के लिए तैयारियां हो गई हैं, अब बाप कहते हैं ऐसे संसार को नष्ट करके अब फिर मैं अच्छी बुद्धि वाला संसार बनाता हूं, जिसमें स्वच्छ रहने से कितना सुखी रहोगे, फिर काटना, फाड़ना एक-दो से लड़ना-झगड़ना यह सब बातें होती नहीं, समझा । अच्छा बाप दादा और मां की मीठे मीठे सिकिलेथे, सिकीलधे हॉप न ? सिकीलधे का अर्थ है बहुत काल के बाद मिले हो, कितने काल के बाद? 5000 वर्ष, क्योंकि यह चक्र पूरा होने पर, ऐसे आगे मिले थे वो गीता में भी है ना, कल्प पहले भी मिले थे, आगे भी मिले थे, अब भी मिले हैं फिर भी मिलेंगे तो यह हमारा चक्र । आगे मिले थे इसी टाइम पर ऐसा हूबहू, ऐसा यह भूपाल बैठा था, यह सब यह 5000 वर्ष की रिपीटेशन है परंतु कहां तक बैठेगा चलेगा वह कह नहीं सकते हैं, वह आगे चल कर के देखेंगे लेकिन आज की जो है, ऐसा बैठा था । तो हां आए थे, मिले थे हम सब, ऐसे और फिर मिलेंगे, हां फिर यह राज भाग लेंगे और यह हम प्राप्त करेंगे फिर ये चक्र फिर करके ऐसे आएगा तो यह तो चलता ही रहने का है । तो अभी हमारी चढ़ती कला है इसीलिए हमको ख्याल करना है कि अभी हमारा चढ़ती कला का टाइम है इसलिए हम चढ़ जाएं । किसको ना खुशी होगी अभी हमारा नया घर बनता है तो खुशी नहीं होगी, हम नाए घर में जाएंगे, ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे, यह सजाएंगे, वह करेंगे, वह करेंगे, वह होता है ना । इसलिए हमको अभी तो ख़ुशी की बात है , इसका ख्याल नहीं करना है अभी प्ले करके फिर यह पुराना होगा ना, फिर काहे के लिए बनाएं, ऐसा कोई ख्याल थोड़ी ही करता है । एक जीवन में कोई ख्याल करता है कल को मर जाए इसीलिए क्यों हम पढ़े, क्यों हम लिखें, क्यों शादी करें, क्यों बच्चे पैदा करें,इससे तो बैठे ही रहें । कल को मर जाएं, कल को मर जाएं, ऐसा कहते कोई बैठ जाता है? नहीं, भले जानते हैं कल को मर जाए हो सकता है, पॉसिबल है, तो जो पॉसिबल बात है उसमें भी मनुष्य ऐसे चलता है जैसे किसी को सदा के लिए बैठना ही है, पढूंगा, लिखूंगा शादी करूंगा, बच्चे पैदा करूंगा, डॉक्टर बनूंगा, इंजीनियर बनूंगा, कितना मनुष्य सोच कर चलता ह, उसमें क्यों नहीं ख्याल करता है कल को अगर मर जाऊं कुछ न करूँ, ऐसा करेगा ? कभी नहीं , ऐसा कोई सोचता ही नहीं, तो जो पॉसिबल बात है उसमें कोई नहीं सोंचे, यह तो गारंटी है कि हमको अवश्य मिलना ही है तो उसके लिए तो कितना अपना पुरुषार्थ करना चाहिए बाप से । इसमें ऐसा नहीं है कि कहीं हमारा चला जाएगा नहीं, जो करता है उसका मिलेगा जरूर, जितना भी करता है । थोड़ा करता है तो थोड़ी का भी मिलेगा परंतु मिलता तो है ना, तो बहुत करेंगे तो बहुत का भी मिलेगा । तो जो अविनाशी सी चीज है उसके लिए पुरुषार्थ नहीं करते हैं और विनाशी के लिए कितना करते हैं । तो यह सभी चीजों को समझना है, तो ऐसे ही सिकिलधे और सपूत ऐसे बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग।