मम्मा मुरली मधुबन           

   007. Bap Se Varsa Lene Ki Vidhi - 1

 


रिकॉर्ड:

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो।
ओम शांति। अपने परम पूज्य मात-पिता को तो अभी जान चुके हो ना, कि अभी ऐसे कहेंगे कि अभी जानने की कोशिश कर रहे हैं? माता-पिता को जानने की तो कोशिश नहीं कर रहे हो ना , उसको तो जान चुके हो। हां बाकी ऐसे कह सकते हैं कि बाकी पुरुषार्थ किसके लिए है वो इसी के लिए है कि बाप से जो पूरा पूरा, वैसे तो बच्चे भी हैं, मात-पिता है तो जरूर उनके बच्चे भी हैं ऐसे नहीं बच्चे बनने की कोशिश कर रहे हैं या मात पिता को जानने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसा कोई समझने की भूल ना करें बाकी हमारी कोशिश पुरुषार्थ किसके लिए है यह उसी के लिए है कि जो मात-पिता है जिसकी हम संतान हैं, प्रैक्टिकल हैं, कहने वाले भी बातें नहीं है जैसे भक्ति मार्ग में हां तुम मात पिता हम बालक तेरे, गाते तो आए हैं ना, नई बात तो नहीं है लेकिन वह तो खाली गाने की बातें थी, ऐसे ही कहने की। कहने से कोई मुख मीठा नहीं होता है, प्रैक्टिकल चाहिए। तो अभी तो माता-पिता को प्रैक्टिकल जानते हैं और प्रैक्टिकल उनकी संतान बन करके अपना हक भी उसके ऊपर रखते हैं बाकी पुरुषार्थ इसीलिए हैं कि हां, जो उनके द्वारा प्राप्ति होने की है उसमें जो कंप्लीट प्राप्ति है वो उनके द्वारा पूर्ण करना है कौन सी स्वर्ग की पूरी जो राजधानी है उसमें पूरा पूरा अपना स्टेटस प्राप्त करना। उसी स्टेटस को प्राप्त करने के लिए अर्थात पद प्राप्त करने के लिए पूरा बाकी उसी के लिए यह पुरुषार्थ कर रहे हैं। यह पिछले विकर्मों का खाता और आगे के लिए अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाने का यह सारा पुरुषार्थ चल रहा है। जितना जितना हम पुरुषार्थ में तेज होंगे उतना हम सजाओं से भी छुटकारा पाएंगे और आगे भविष्य प्रालब्ध में भी ऊंचा स्टेटस को प्राप्त करेंगे। तो बाकी भी जो पुरुषार्थ है वह अभी इसीलिए पुरुषार्थ हो रहा है कि हमारे पिछला हमारे पापों का या विक्रम का जो खाता है जिससे हम सजाए खाते हुए ना जाए इसीलिए उन सजाओ से भी छुटकारा हो जाए और आगे भविष्य प्रालब्ध में भी ऊँच स्टेटस को प्राप्त करें, इसी प्राप्ति के लिए बाकी पुरुषार्थ है। बाकी ऐसे ना कहना कोई या ऐसे भी कोई न समझे कि मात पिता को जानने के लिएया उनका बच्चा बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। कोई बच्चा बनने का पुरुषार्थ थोड़ी होता है। लौकिक रीति में भी कोई बच्चा माता-पिता का बच्चा बनने के लिए पुरुषार्थ थोड़ी ही करता है कि भाई बच्चा बनने का पुरुषार्थ कर रहे हैं, ऐसा कभी कोई कहता है बच्चा? बस जन्म हुआ और बच्चा हुआ और बच्चा हुआ तो उसका हेयर पेरेंट्स हो ही गया यानी बाप की प्रॉपर्टी के ऊपर उसका हक हो ही गया। तो हक लगाने के लिए और बच्चे बनने के लिए कोई पुरुषार्थ की बात नहीं होती है बाकी पुरुषार्थ की बात है कि उस बाप के द्वारा जो हमारा कंप्लीट स्टेटस है नई दुनिया में और हमारे उसको पाना और हमारे विक्रम जो पिछले खाते का है वो भी इस बाप से बल ले करके हमको पूरे पापों को बैठ करके दग्ध करने का अभी बल लेना है जो हम सजाएं ना खाएं इसलिए उससे छुटकारा पाने का, उससे पूरी कंप्लीट शक्ति कहो या बल कहो लेना है। इसी बल को लेने के लिए बाप का भी फरमान है कि बच्चे निरंतर मेरी याद में रहने का पुरुषार्थ करो अर्थात जितना जितना मेरे योग में अथवा याद में स्थित रहेंगे उतना उतना मेरे याद से तुमको बल मिलेगा और उसी बल से फिर तुम पापों से छुटकारा पाएंगे और पाप तेरे दग्ध होंगे तो फिर भविष्य प्रालब्ध को भी ऊँच में प्राप्त करेंगे। तो बाकी जो पुरुषार्थ है वो इसी के लिए है बाकि कोई ऐसा ना कभी कहे, ऐसा कहने से से तो अभी मात पिता को ही नहीं जाना और उसका बच्चा ही नहीं बना तो बाकी योग भी नहीं रह सकता है। योग भी उसी का लगेगा, ज्ञान भी उसी की बुद्धि में बैठ सकेगा ये भी एक पॉइंट है समझने की कि जब टॉक मात पिता को समझा नहीं है और उनका संतान प्रेक्टिकल बना नहीं है तो ज्ञान और योग भी बुद्धि में बैठ नहीं सकता । ऐसे नहीं कहेंगे कि ज्ञान और योग ले रहे हैं, नहीं पहले तो ज्ञान और योग जिससे ले रहे हैं, उनका परिचय चाहिए न कि किससे ले रहे हैं । ये कोई साधारण मनुष्य से तो नहीं ले रहे हैं ना तो कोई ऐसा ख्याल ना करें कि जैसे हम मनुष्यों से इतना काल सुनते आए अनेक जन्मों से तो यह भी हम कोई मनुष्य के द्वारा सुन रहे हैं नहीं, यह तो वही नॉलेजफुल की नॉलेज है जो जानी जाननहार है, जिसके पास ही नॉलेज है और जो इस नॉलेज जानने का हकदार है तो वही जान सकता है ना। सबकी करमगति को जान ही कौन सकता है सिवाय परमपिता परमात्मा के मनुष्य आत्माओं की करम गति कोई जान भी नहीं सकता है, मनुष्य मनुष्य की कर्मगति नहीं जान सकता है इसीलिए ही जो हकदार है जानने का, जिसको ही नॉलेजफुल जानी जाननहार कहा जाता है, जो इसी महिमा का लायक है और हकदार है उन्हीं के द्वारा ही अभी डायरेक्ट जान रहे हैं। तो यह तो पहली बातें अपनी बुद्धि में अच्छी तरह से होनी चाहिए कि हम उनके द्वारा सुन रहे हैं और उनकी ही सुनी हुई बातों में अभी प्रैक्टिकल धारणा करके चलने का पुरुषार्थ करना है। तो कोई कॉमन मनुष्य की नॉलेज या कोई मनुष्य के द्वारा जैसे सुनते आए, जैसे रोज सुनते हो, ऐसी बातें का ख्याल करके नहीं चलना है। यह जो बाप है जो सर्व समर्थ हैं, भले इन आंखों से देखने में नहीं आता है इसीलिए बहुत मूंझते हैं। ना इन आंखों से देखने वाली चीज है ना कोई उनकी शक्ति कुछ जो है, जो उनका कोई ऐसा चमत्कार हो जिससे कुछ ऐसे दिखाई दे, जिससे मनुष्य समझे, तो यह कोई शक्ति उस सर्व शक्तिमान की शक्ति कोई ऐसी नहीं होती है कि मुर्दे को जिंदा करना या कोई ऐसी शक्ति दिखा दे, नहीं सर्वशक्तिमान की शक्ति ऐसी नहीं होती। वो सर्वशक्तिमान गाया इसी पर है, उसकी शक्ति क्या काम करती है जो कोई मनुष्य चला नहीं सकता है वह कौन सी, कि हमारे कर्मों को कंप्लीट श्रेष्ठ बनाना। तो वो कर्म तो हमारे पुरुषार्थ से बनाएंगे ना, कर्म कोई जादूगरी से थोड़ी बनाएंगे या मुर्दे को जिंदा करने से हमारा कर्म क्या बनेगा। कर्मों को तो हमको अपने पुरुषार्थ से ही बनाना है वह हमको पुरुषार्थ सिखाएं,गे टीचिंग्स देंगे, जिस टीचिंग को हम लेकर के अपने पुरुषार्थ से अपने कर्मों को बनाएंगे बाकी कोई जादूगरी से वो हमारे कर्म थोड़े ही बनाएंगे। देखो कर्मभोग को तो भोगना पड़ता है ना इसीलिए इन कर्मों को काटना और इन पापों को दग्ध करना, यह तो फिर हमारे पुरुषार्थ का काम हो जाता है क्योंकि बनाया भी तो हमने है ना। यह सारी चीजें समझने की है इसीलिए सर्व शक्तिमान की शक्ति कौन सी है, जो कोई मनुष्य इस शक्ति का काम नहीं कर सकता है यानी हमारे कर्मों में यह बल नहीं ला सकता है जो वह ला सकता है। इसलिए उनको सर्वशक्तिमान कहा बाकी ऐसे नहीं मुर्दे को जिंदा करें या कोई ताकत दिखलाए या कोई ऐसी बात कर देवें तभी समझे कि वह सर्वशक्तिमान है। अगर उसको सर्वशक्तिमान को हमको उसकी ये शक्ति से समझना है तो हमारा इसमें क्या हुआ, हमको तो अपने कर्मों से शक्ति में आना है ना क्योंकि हमारी शक्ति गई भी हमारे कर्मों से है तो हमको बनना भी तो अब अपने कर्मों से है ना तो इसीलिए हमारे कर्मों में शक्ति कैसे भरें वह इसी नॉलेज के द्वारा। इसीलिए बाप बैठ करके इस नॉलेज की यह धारणा दे रहे हैं और इसी को धारण करके अपना भविष्य प्रालब्ध ऊँच बनाने का पुरुषार्थ करना है। तो अभी समझा ना? यह बातें तो अभी समझते भी हो रोज सुनते भी हो कि हमको पुरुषार्थ किस बात के ऊपर अटेंशन रखकर के करना है। तो यह बात है जिसके लिए बहुत अच्छी तरह से अपना पुरुषार्थ करके आगे बढ़ना है। अच्छा अब आप लोगों का टाइम हुआ है आप सवेरे से क्लास में आए हुए हो इसलिए बहुत आप लोगों का टाइम नहीं लेते हैं। आज तो आए थे सबके मुखड़े देखने के लिए और खुश खेराफत लेने के लिए और खुशखेरा फल देने के लिए। आप सब तकलीफ लेते हो इसीसे हमने कहा हम भी जाएंगे, सबके मुखड़े भी देख लेंगे और अपनी खुश शराफत भी बता देंगे और सबकी खुशखेराफत भी देख लेंगे। मुखड़ों से देखनी है ना? मुखड़ा कौन सा? यह शरीर का नहीं, नहीं यह तो जानते हो कि हमारे मुखड़े अभी कौन से हैं। हमारा मुखड़ा कौन सा है, आत्मा को, हमको आत्मा अपने को भी अभी आत्मा ही मानना है, अपने को आत्मा मानने से ही हम परमपिता परमात्मा की संतान अपने को मान सकते हैं इसीलिए अपना भी मुखड़ा उसी में स्थित होना है, बुद्धि को उसी में ही स्थित करना है और फिर देखना है जो भी बॉडी नहीं, सोल, ये भी मुखड़े कैसे खिलते जा रहे हैं क्योंकि यह शरीर तो पिछले खाते का है ना । उसमें तो देखो यह सभी कर्म भोगना, खिट-खिट होते यह सब चलते रहेंगे लेकिन अभी आगे के लिए जो हम बना रहे हैं तो मुखड़ा उसका देखना है कि उसका परिवर्तन कितना आता जाता है, वह मुखडे कितने खेलते जा रहे हैं क्योंकि उसको अभी कंप्लीट खिलाना है। इस शरीर में ही उसको कंप्लीट करना है आत्मा को। तो आत्मा कंप्लीट होगी तो फिर जो शरीर मिलेंगे सदा निरोगी, सदा सुख के मिलेंगे, ठीक है ना। तो अभी कंप्लीट पुरुषार्थ करने का यत्न करते रहना है। अच्छा और क्या बताएं, सब राजी खुशी तो हो ही न, हाँ? मजे में हो ना? तारु छे ना? तो अभी राजी और खुशी का भी अर्थ अभी समझते हो कि राजी किसमें रहना है। अभी तो देखो खुश किस्मत बनाने वाला बाप मिला है जो हमारी सच सच किस्मत बहुत ऊंच बनाता है और हम सदा खुश, नहीं तो बाकी कुछ खुशकिस्मती है थोड़ी ही। मनुष्य तो समझते हैं कि धनवान है तो हां धन है तो यह खुशकिस्मती है, पति है, पुत्र है जो भी सांसारिक है सभी बातें हैं, उनमें समझते हैं खुश किस्मती हैं लेकिन अपन जानते हैं यह तो सब दुःख के ही देने वाले हैं और देख ही रहे हैं तो इन सब में अल्पकाल का विनाशी हो गया ना सुख। अभी तो हम सब चाहते हैं अविनाशी, जो गारंटी जिसमें कभी डर ना हो, कभी दुःख की, कभी यह ना हो तो कभी वह ना हो, इसमें तो होता ही है ना, हे भगवान खैर करना, हे भगवान यह करना, फिर कुछ हो जाता है तो कहते हैं हे भगवान यह क्या किया या हे भगवान अभी यह कर, तो करना पड़ता है ना, कहना पड़ता है। तो अभी तो इसमें यह पुरुषार्थ है जिसमें हमको गारंटी रहे और जब कभी कोई ऐसी दुःख की प्राप्ति की बातें होवें ही नहीं। तो ऐसे पुरुषार्थ में अभी लगे रहना है इसीलिए अभी इस पुरानी दुनिया की यह सब इच्छाएं और तमन्नाएं और यह सब जो बातें हैं उससे अभी दिल को हटाते जा रहे हैं कि ये अल्पकाल काल का ले करके करेंगे ही क्या और वह भी अभी विनाश होने का है, टाइम आकर के अभी उसका भी पूरा हुआ है इसलिए अभी दिल लगानी है तो उसमें, नई दुनिया में जिसमें हमारा सब कुछ प्राप्त होने का अभी पूरा मिलने का है इसीलिए दिल ले गए हैं उधर तब हम पुरानी दुनिया के सभी बंधनों से अपनी बुद्धि हटाते जा रहे हैं। अच्छा और क्या आपकी सेवा करें? सब राजी खुशी में हो ही और बाप और बाप के खजाने को अच्छी तरह से जानते और पाते जा रहे हो, यह तो बहुत अच्छा है। टोली वोली मिली है? मिलेंगी ? दो। अच्छा । सब अपने पुरुषार्थ में ठीक हो ना? कहाँ चलते चलते कोई माया तो नहीं सताती है ना? नहीं, अभी पता लग गया है कि हमको गिराने वाली और हमको दुःख देने वाली अथवा हमारा दुःख बनाने वाली कौन सी चीज है तो अभी इन पांच विकार वाली चीजों के ऊपर पूरा-पूरा अटेंशन रखते रहना इसीलिए संभलते चलते रहना, कोई माया का वार खाना नहीं । ना काम, न क्रोध, न लोभ का, न मोह का, अहंकार की तो पहले ही बात नहीं है इसीलिए यह सब बातों को अच्छी तरह से संभलते आगे बढ़ते रहना है, हिम्मत रखते रहना है। आएंगे, माया के विघ्न, तूफान, कभी-कभी कई बातें आ भी जाएंगी इसीलिए ध्यान अपना पूरा रखना। पुरुषार्थ करते कोई ऐसी बातें आ भी जाएं तो हिम्मत हारना नहीं, बाकी आएंगी कई प्रकार की उलझने, विघ्न, इधर-उधर हर एक प्रकार की अपने मन से भी आएंगे, तन से भी आएंगी, बाहर से भी आएंगे, संबंध से भी आएंगे, दुनिया से भी आएंगे, कई कई बातें आएंगी, ये बतला देते हैं और आती भी हैं अनुभव में तो अभी आते जाते हो परंतु उससे थकना नहीं । ये तो अभी समझ गए हैं कि यह सब पिछले खातों के कर्मों का हिसाब किताब है, वह किसी ना किसी तरह से हमारा सामना करेंगे तो इसीलिए हमारी उससे युद्ध है बाकी नहीं तो काहे की युद्ध है। जरूर कोई अपोजिशन है ना , जिससे हमें युद्ध करना है, वह क्या है इसी कर्मों की तो युद्ध है ना। पिछले कर्म का जो है हमारा उल्टा खाता, उसके ऊपर हमको जीत पानी है तो हमें हिम्मत नहीं हारनी है । तो हिम्मत हारना नहीं, हिम्मत अच्छी तरह से रखते चलना है, गाया भी हुआ हिम्मत ए मर्दा तो मदद ए खुदा, हिम्मत ए मर्दा तो, मदद ए खुदा। ऐसे नहीं मदद ए खुदा तो हिम्मत ए मर्दा, ऐसा उल्टा नहीं चलना है। ऐसे उल्टा चलने वाले बहुत एडवांटेज लेते हैं भगवान के गले बहुत पड़ते हैं। वह कहते हैं मदद ए खुदा तो हिम्मत ए मर्दा, ऐसे कहते हैं और भगवान कहते हैं हिम्मत ए मर्दा तो मदद ए खुदा और कई समझते हैं कुछ भगवान करे, दिखाएं कुछ, तब फिर हम भी कुछ करें ऐसे कहते हैं उल्टा, तो उल्टा तोनहीं बनना है ना? एक दे तो दस पावे, ऐसे नहीं दस दे तो फिर एक दे देंगे, ऐसे हिसाब लगाने वाले नहीं। नहीं एक दे तो दस पावे इसीलिए ऐसे कानून को भी समझना है, ईश्वरीय लॉज भी है ना। तो उसी पुरुषार्थ में चलते रहना है ऐसे नहीं वह कुछ दिखाएं, कुछ करे तो कुछ होवे, कुछ हो पीछे हम भी कुछ कर लेंगे, ऐसे ख्याल कोई ना करें, ऐसे आसरे पर कोई बैठे हुए हो ना, तो ऐसा ना हो तो फिर अपना पुरुषार्थ से जो कुछ लेना है वह लेने से वंचित रह जाए इसलिए खबरदार रहना। इसीलिए अपना पुरुषार्थ चलाते रहना, अपनी हिम्मत हार नहीं है कुछ भी हो जाए। तो हिम्मत रखते चलना है क्योंकि उनका कहना है कि बच्चे हिम्मत ए मर्दा तो मदद ए खुदा। कुछ तो पुरुषार्थी की भी पॉइंट्स होंगी ना, ऐसे आसान होती तो फिर बाकी क्या, भगवान भी फिर क्यों घर बैठे मिले, और सब कुछ हमको ऐसे ही मिल जाए तो फिर बाकी क्या है फिर तो कोई बात ही नहीं रही, हमारे पुरुषार्थ की तो कोई बात ही नहीं रही। कुछ तो हमें अपना पुरुषार्थ मेहनत लगानी पड़ती है न तो लगानी चाहिए इसीलिए ऐसी हिम्मत और पुरुषार्थ में अपने को चलाते रहना ऐसे हिम्मतवान ही कुछ पा सकेंगे। ऐसे तो बाहर के कामों में भी अपना मेहनत और पुरुषार्थ करना ही पड़ता है। देखो बाहर वालों से पूछो, क्या नहीं करना पड़ता है कितनी मेहनत करनी पड़ती है। थोड़े बैठे कमाने के लिए, पेट के देखो सारा दिन मनुष्य कितना माथा लड़ाते हैं, कितना मेहनत करते हैं तो जब थोड़े काम के लिए भी, एक की आजीविका के लिए भी करना पड़ता है तो यह तो जन्म जन्मांतर के लिए बनाना है, उसके लिए क्या नहीं करना पड़ेगा, तो थोड़ी यह मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। इसीलिए हिम्मत हारना नहीं, चलते रहना है। अच्छा बाकी हम कुछ राजी में हैं, पेट भर दिया, भर गई पेट में कि हम बहुत खुशी राजी में है, सब सेंटर्स पर चले जाएंगे की अभी कोई को हुज्जत करने की बात नहीं है। अभी आपकी सेवा में कंप्लीट, आस्ते आस्ते रेगुलर सर्विस में लग जाएंगे। थोड़ा समय थोड़ा इरेगुलर हो गई ना सर्विस में, अभी रेगुलर हो जाएंगे। अपनी सब है तो सर्विस ही, वह भी सर्विस की थी। अगर हम समझे कि हमारी आगे है ही चढ़ती कला क्योंकि हमतो आगे ही जा रहे हैं ना इसलिए तो आती है बीच में कर्म भोगना, हिसाब-किताब यह सब, यह तो चलता रहेगा ना। पिछला खाता भी तो रास्ता क्रॉस करने में काटना तो पड़ेगा ही ना। तो कुछ भोगने काटने में, कुछ योग बल से, कुछ किसी तरीके से लेकिन चलना तो है ना तो उसमें भी हिम्मत रखकर चलना ही है। तो यह सभी सर्विस ही समझनी है, उसमें भी कुछ ना कुछ आत्माओं कुछ न कुछ मिलना ही है तो वह भी संबंध में मिल ही जाता है न, डॉक्टर्स, नर्सेज वगेरह कुछ ना कुछ उन्हों के भी कानों में आवाज जाती है, कुछ ना कुछ उन्हें को भी यह मिलता है तो याद रहेगा। कभी न कभी किसकी भी जाग्रता हो जाए तो यह भी एक सर्विस का चांस हो जाता है तो अपन तो समझते ही हैं कि यह सब पार्ट बजाते कोई कर्म भोग का पार्ट, कोई किसी तरीके का पार्ट ये चलते रहेंगे , बढ़ना तो आगे ही है और चलकर के अपना जो मंजिल मकसद है उसी को अवश्य प्राप्त करना है, उससे हटना नहीं है कुछ भी हो जाए। अच्छा, सबको मिल गया? अभी आप लोगों को भी टाइम हुआ है न । अच्छा, बाप को याद करते हो ना? तो ऐसा बाप और दादा, बाप और दादा को जानते हो ना अच्छी तरह से, उसमें कुछ मूंझते तो नहीं हो ना, बाप है या दादा है या बाबा है या बाप है, जानते है की वह आता है उनको अपना शरीर नहीं है इसीलिए इसमें मुझने वाली बात नहीं है तो बाप दादा को तो अच्छी तरह से समझ जाना है इसीलिए बापदादा और माँ के मीठे मीठे, मीठे मीठे हो ना? मीठे-मीठे बनते जा रहे हो ना? कड़वे तो नहीं ना? कड़वा बनाती है माया पांच विकार, तो ऐसे मीठे मीठे सिकीलधे, सिकीलधे का भी अर्थ समझ गये हो कि इतने समय बाद बाप से मिले हो उसी कल से कभी अर्थ समझ गए हो इतने समय बाद बाप से मिले हो, तो याद है ना अपना वही दाव लगाया था, लगाया था? याद में आता है? पक्का ? तो ऐसे दाव लगाने वाले, सिकीलधे जो पाँच हजार वर्ष के बाद फिर आकर के मिले हैं, मिले हो ? आगे मिले थे ? पक्का? शिवानी पक्का ? देखना । अच्छा, ऐसे सिकीलधे जो है, और बहुत सपूत भी जो अपने बाप की आज्ञा पर चल रहे हैं अच्छी तरह से, ऐसे बच्चों प्रति याद प्यार, गुड डे, गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग एवरी टाइम गुड रखना अभी फिर छुट्टी देते हैं फिर भी मिलते रहेंगे ।