मम्मा मुरली मधुबन           

   009. Bap Sikshak And Sadguru Se Varsa Lene Ki Vidhi

 


ओम शांति, सत बाप, सत टीचर और सतगुरु, अभी जानते हो ना? एक ही है जिसको सत कहने में आता है । बाकी तो सभी बाप, टीचर, गुरु जन्म मरण में आने वाले हैं इसीलिए उनको सत नहीं कह सकते हैं । सत बाप, सत टीचर, सतगुरु एक ही है जो सभी गुरुओं का गुरु, पिताओं का पिता, जिसकी महिमा सबसे ऊपर की है और सबका वह एक ही है और दुनिया भी कहती है परमात्मा एक है, यह तो सब मानेंगे। तो यह अभी अपनी बुद्धि में है तो जो एक है वह एक अपने को मिला है, नशा बैठता है कि हम किसके बने हैं? यह कौन हमारा टीचर बना है? हमको अभी कौन पढ़ा रहा है? यह पढ़ाई किसकी है? अभी उसकी स्वयं, वह नशा बैठना चाहिए अच्छी तरह से तो ऐसे बेहद बाप से अभी हम पढ़ रहे हैं । उसकी पढ़ाई की स्टेटस जरूर है कि ऊंची रहेगी तो पढ़ने वालों को कितना नशा रहना चाहिए, कितना फखुर रहना चाहिए और उस पढ़ाई के लिए कितना पुरुषार्थ रहना चाहिए। तो ऐसे पुरुषार्थी भी होना चाहिए क्योंकि वो तो पढ़ाई, चलो न पढ़ी इधर-उधर से पढ़ भी ली जाए परंतु यह पढ़ाई का चांस अभी ही है इसीलिए इस पढ़ाई का चांस अभी खोया तो मानो सदा के लिए खोया, खोया रहेगा। यह चांस अभी लिया तो सदा के लिए हो जाएगा और अभी नहीं लिया तो फिर सदा के लिए खोए खोए रहेंगे तो खोना तो अच्छा नहीं है ना। अनेक जन्म तो दुःख पाते आए हैं, उसे तो अनुभव किया, अभी जब बाप मिला है और जिसको पुकारते आए थे, भक्ति मार्ग में पुकारते थे ना, अभी मिला है तो मिला है तो बाप से ले लेना चाहिए ना । ना मिला था, ना आया था तो पुकारते रहते थे, अभी आया है, बाप स्वयं कह रहा है कि बच्चे मैं आया हुआ हूं और अभी मेरे से क्या चाहते हो, जो चाहते हो वह देने के लिए अभी उपस्थित हूं अभी लो । लो तो कोई ऐसी चीज तो नहीं है कि बनी बनाई चीज ऐसे ही दे देंगे । वह फिर हमारे कर्म से हम से ही बनवाते हैं तो फिर हमको अपने कर्मों का और अपने पुरुषार्थ का पूरा अटेंशन होना चाहिए, तब तो हम बाप से अपना जन्मसिद्ध अधिकार पूरा पा सकेंगे तो इसके ऊपर पूरा अटेंशन । यह पढ़ाई मानो सभी पढ़ाइयों का सार है और इसी पढ़ाई से ही हम मानो सभी पढ़ाइयों का बल ले लेते हैं ना, इसमें सब कुछ आ जाता है । तो जब ऐसी चीज मिली है, सो भी ऐसे भी नहीं है कुछ छोड़ना पड़ता है । कोई ऐसे भी नहीं है कि काम धंधे का टाइम निकालना पड़ता है, नहीं वह तो करना ही है । सिर्फ हां, थोड़ा टाइम जो भी सहज बनता है इसीलिए देखो सुबह का अमृतवेला, उस टाइम पर तो भगवान का नाम लेने का ही टाइम है या तो मनुष्य सोते और खोते हैं, दो बातें हैं । तो यही है, जब कमाई का दिन है तो फिर उसमें थोड़ा चुस्त होना अच्छा ही है तो उससे क्या होगा, कमाई है । इस कमाई पर अभी हमारे सारे जीवन और सभी जन्मों का आधार है इसके ऊपर तो हमको सोचना चाहिए कि इसके लिए कितना हमारा होना चाहिए नहीं तो टोटा भी पड़ेगा न सभी जन्मों का टोटा, फायदा तो सभी जन्मों का फायदा, तो अगर अभी हम इसमें नुकसान करते हैं तो नुकसान भी भारी है तो इसका नुकसान भी सोचना है । तो ऐसा अभी अपना थोड़ा अटेंशन रखते और पुरुषार्थ को आगे करते रहेंगे और अपना हर बात के ऊपर ध्यान रखते रहेंगे तो फिर सत बाप, सत टीचर और सतगुरु से अपना पूरा-पूरा अधिकार पाते पाने का लायक बनेंगे । बाप तो देखेंगे ना बच्चे लायक कौन है, किस तरह से अपना पा रहे हैं, तो वह देखे ना देखे लेकिन जो करता है सो तो पाता ही है ना । उसके भी देखने की कोई बात नहीं, यह तो जो करेगा यह अपने को देखना है । अपने को भी कोई देखे ना देखे परंतु जो करेगा सो पाएगा तो जरूर ना । तो अगर हम रॉन्ग करते हैं तो रॉन्ग पाएंगे, राइट करते हैं तो राइट पाएंगे, जितना करेंगे उतने का एक का दस गुना सौ गुना तो हमको अपने पर ऐसा अटेंशन होना चाहिए । ऐसा भी नहीं है फलाना देखेगा या दूसरे देखेंगे, दूसरे को दिखाऊ कुछ यह पुरुषार्थ तो नहीं है ना, यह तो अपने लिए हैं । तो जो अपने पर हैं वह तो समझेंगे कि यह हमारे लिए है तो हमारे लिए जो समझते हैं वो तो अपना जी जान लगा करके उसके लिए कुछ भी हो जाए वह अपना पुरुषार्थ पूरा रखेंगे । तो उसके लिए थोड़ी तकलीफ लेनी पड़े थोड़ा कुछ तो इन बातों में वो तकलीफ कोई तकलीफ नहीं । वैसे भी तकलीफ के बिना तो कुछ काम होता भी नहीं है । सारा दिन धंधा धोरी करते हो फिर काहे के लिए, करते हो ना? तो जैसे वह भी सब कुछ करने का होता ही है, तो यह भी पुरुषार्थ ही है । इसी पुरुषार्थ में अपना अच्छी तरीके से अपना अटेंशन देते और अपने को आगे बढ़ाना चाहिए क्योंकि अभी बाप मिला है । इतना समय भक्ति मार्ग में तो मनुष्यों के द्वारा भक्ति करते कराते चलता आया । अभी स्वयं परमपिता परमात्मा आ करके अभी यह सिखा रहे हैं । अभी हम उनका सीखा हुआ अभी करते हैं । तो उनके सिखाए हुए में से तो हमारा गफलत नहीं होनी चाहिए न । उसके सिखाएं हुए में गफलत का फिर नुकसान है क्योंकि डायरेक्ट शिक्षा दे रहे हैं ना । तो अभी हम उसके डायरेक्ट सन्मुख वह हमारे सम्मुख हुए हैं हम उनके सम्मुख होकर के बाप से अपना बाप का, टीचर का, सतगुरु का ले रहे हैं तो कोई मनुष्य की बात तो नहीं है ना । मनुष्य के साथ हमारी कोई गफलत चल भी जाए लेकिन यह है अभी डायरेक्ट स्वयं परमपिता परमात्मा तो उसके साथ तो हमारा बहुत अटेंशन होना चाहिए और उसी अटेंशन से हम अपना सौभाग्य पा सकेंगे और चांस भी अभी है । देखते हैं कि बाप कहता है कि मैं आता भी हूं तो वृद्ध तन में आता हूं तो उससे भी अंदाजा लगाओ कि हमारा रहने का कितना टाइम होगा, थोड़ा टाइम होगा । अगर हमको बहुत टाइम होता तो मैं फिर शरीर कोई यंग लेता या कोई छोटा लेता । नहीं, मेरा मीटर भी समझ सकते हो, मैं लेता ही हूं आता ही हूं उस तन में जिसकी आयु साथ बरस, उसी आयु वाले मनुष्य तन में तो आता हूँ । तो साठ बरस की आयु वाले का बाकी कितना होगा तो मुझे उसी शरीर में ही काम करना है । ऐसे भी नहीं एक शरीर छोडूंगा फिर दूसरा शरीर ले लूंगा, फिर दूसरे शरीर में बैठ करके काम करूंगा । नहीं, इसी एक ही शरीर में मुझे विनाश और स्थापना और पालना के लिए लायक बना करके जाना ही है । तो इतना काम करना ही है तो इसके लिए मैं आता ही हूं ऐसे टाइम पर ही समझ सकते हो कि अब कितना थोड़ा टाइम मैं होउंगा । और काम कितना भारी है परंतु काम कोई मेरा तो नहीं है ना । बिगड़ा तेरा है और तुम्हे ही सुधारना है इसीलिए उसी सुधार के लिए तुम्हें इतनी मेहनत करनी चाहिए । देखो संस्कार कितने बहुत जन्मों के पुराने हैं, कड़े हैं तो उन्हीं सभी बातों के ऊपर भी अपना अटेंशन पूरा होना चाहिए । यह भी तो बहुत बारी समझाया हुआ है कि कोई भी कर्म करते हो संभलना कर्म को है । भले कोई संकल्प, विकल्प, माया के तूफान आएंगे परंतु उनकी इतनी परवाह नहीं है जितनी कर्म की है । कोई कर्म अगर उल्टा हो गया, रॉन्ग एक्शंस हुआ तो एक्शंस का बनता है, बुरे का चाहे अच्छे का, लेकिन मन से कोई संकल्प हुआ या कोई स्वप्न उल्टा आया या कोई भी ऐसी बातें तो वह तो मन की हो गई ना तो उनका इतना नहीं है । हां वह भी छूटेगी तभी, जब’ जितना जितना तुम्हारे एक्शंस राइटियस होते जाएंगे तो फिर यह संकल्प आदि उल्टे सब हैं, वह भी राइटियस होते जाएंगे क्योंकि वह ज्ञान की पराकाष्ठा और योग की पराकाष्ठा जितनी बढ़ती जाएगी ना तो उनका प्रभाव माइंड के ऊपर, फिर वह भी स्थेरियम होती जाएंगी और फिर सारा दिन इन विचारों में भी रहने से ज्ञान के किसी को समझाना, करना, जितना इसमें बिजी रहेंगे, नेचुरल है सारा दिन जो मनुष्य काम करते हैं बुद्धि उधर जरूर जाएगी, फिर कैसा भी करें । देखो धंधा करते हो यह बनाना है, वह बनाना है, जैसा जिसका बिजनेस है न तो नेचुरल है बुद्धि उसमें भी चली जाएगी न । बैठे होंगे इधर बुद्धि उधर भागती रहेगी क्योंकि सारा दिन जो बहुत समय जो काम करने का होता है तो उसमें बुद्धि चली जाएगी । तो इसीलिए बाप कहते हैं जितना, बहुत समय का मतलब यह नहीं है, अगर समझो आपको धंधा 8 घंटे करना पड़ता है लेकिन करना पड़ता है, परंतु अगर बुद्धि की उसी तरफ है तो फिर लग्न की और बुद्धि मन भागेगा । भले आठ घंटे उसमें देते हो तो उसका मतलब यह नहीं की टाइम उसमें देते हो इतना इसीलिए परंतु हाँ जितना तुम्हारी लगन उस तरफ होगी, हां वह तो करना ही है, निमित्य हो करके करना है परंतु जिस तरफ लगन होगी बुद्धि उधर खींची जाएगी । इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे जितना-जितना अपना इस बात का महत्व अपने में रखेंगे और अपना पुरुषार्थ उसी तरह करेंगे तो उस पुरुषार्थ की ऐसी प्रालब्ध भी ऐसी बनाएंगे और अपने कर्मों की संभाल रखते रहो । कोई भी ऐसा एक्शन या कोई ऐसा कर्म उल्टा ना हो जिसके भागी बनें, फिर उसकी चोंट भारी लगती है क्योंकि ज्ञान में आकर के समझ करके कोई उल्टा करता है ना तो उसके फिर दोष के भागी भी बहुत बनते हैं और फिर उसकी सूक्ष्म अपने आप में ही सजा फिर कई प्रकार की । ऐसे भी नहीं हैं जो हम अभी करते हैं उसकी भोगना अभी भी पाते हैं, ऐसे नहीं है कि अभी जो करेंगे वह पीछे ही पाएंगे, नहीं बहुत कुछ हम अभी भी पाते हैं, बहुत कुछ रह जाता है तो पीछे भी पाते हैं । तो जो करते हैं वह पाते भी है ना तो यहां की यहां भी सजा हो सकती है इसीलिए संभलना है सभी बातों में संभलना है । और बाकी भी यह जानते हैं यह तो है ही अंतिम जन्म, हमको सब कुछ हिसाब किताब को यहां ही चुकाना है इसीलिए यह सभी बातें जब नॉलेज है सभी कर्मों का तो उसको अच्छी तरह से बुद्धि में रखते अपने कर्मों को संभालना है और बाकी भी अपना ज्ञान और योग ये अंदर-अंदर का पुरुषार्थ है ना, बाहर से तो कुछ करने का है नहीं कि भाई जाओ, तुम आठ बार यह माला सिमरो या यह करो या यह मंत्र जाप करो । कोई बाहर की तो आपको कुछ देने की बात ही नहीं है । बाप कहते हैं बस निरंतर मेरे हो करके रहो । मेरे होकर के रहने से तुम्हारे कर्म अच्छे रहेंगे और मेरी ही याद रहेगी और मेरे होकर रहने से जिनके होते हैं तो उनका ही तो सारा रहता है ना तो बस मेरे सारे होकर के रहो बस बाकी क्या है । मैं कहूं नहीं थोड़ा टाइम दो, आठ माला फेरो, पचास यह करो या मंत्र जाप करो, सौ बार यह मंत्र का जाप करो, ऐसी भी बातें नहीं है, मेरे सारे होकर के रहो । सारे का मतलब है कि मेरी ही हो करके, जैसे जिसके प्रति जीवन होती है, बच्चों के प्रति जीवन है तो जीवन का सारा ही उनके प्रति चलता है, स्त्री पति का हो जाती है तो फिर जीवन ही सारी एक-दो के लिए हो जाती है, पति की स्त्री के लिए स्त्री की पति के लिए, बाप बनता है तो फिर बच्चों के लिए तो जीवन सारी हो जाती है ना । तन से, धन से, मन से समझते हैं यही अपना जीवन है परंतु अभी बाप कहते हैं मेरे हो जा, मेरे हो करके फिर यह करो ट्रस्टी होकर के, जिसको बाप कहते हैं ट्रस्टी हो करके रहो । तो ऐसे नहीं अपनी आशक्ति, फिर मैं कहता हूं जो अपनी क्रिएशन रची है उसको संभालना है परंतु ट्रस्टी होकर के । ट्रस्टी की अपनी आसक्ति नहीं होती है ममत्व नहीं होता है । तो उसी तरीके से रहकर के और मेरे बन करके चलने से फिर तुम्हारी तकरीर ऊंची बनती जाएगी । तो ऐसी अपनी तकदीर को बनाने के लिए पूरा पुरुषार्थ रखना और पुरुषार्थ को अच्छी तरह से अटेंशन में रखना और चलना यही कमाई है । नहीं, तो फिर कमाई को खोते रहना । कमाई का चांस भी बहुत हो और फिर उसमें से हम थोड़ा लें तो वह भी कहेंगे कमबख्त । मिले चीज बहुत और लें उसमें से थोड़ा, तू भी क्या कहेंगे, भाई तुम्हारी किस्मत में नहीं है शायद, फिर ऐसा कहने में आएगा तो फिर ऐसा थोड़ी ही बनना चाहिए । ऐसा पुरुषार्थ करने के लिए अपना पुरुषार्थ आगे करते रहो क्योंकि देखो बेंगलुर वासी हो ना, रहतेतो बहुत सेंटर से दूर हो, किनारे पर हो इसीलिए आप लोगों को बहुत देरी-देरी से यह संग अथवा यह सभी बातों का मिलता है तो उसका लाभ भी आप लोगों को लेना ही चाहिए । ऐसे भी नहीं है जल्दी-जल्दी कोई कोई महारथी या बाबा या मम्मा इधर जल्दी-जल्दी आते हैं तो इसलिए आप लोगों को जो चांस मिलता है उस चांस का भी अच्छी तरह से ध्यान देकर के लेना चाहिए, फिर जैसे गाय होती है ना, गाय समझते हो, गाय घास ले लेती है पीछे बैठ के उगारती रहती है । उगारती समझते हो न फिर घास को उगारती है, आपकी भाषा में कुछ और कहते होंगे, हाँ थोड़ा-थोड़ा खाती है । तो अभी तो आप लोगों को मिलता है यह डोज तो यह डोज ले लो । पीछे हां, इसको उगारना भी है अच्छी तरह से, तो पहले तो डोज ले लो ना । अभी घास का टाइम मिला है तो ज्ञान घास है ना यह भी । वह है ना कृष्ण की गऊ दिखलाते हैं ना, वह गौएँ नहीं है इनह्यूमन, यह ह्यूमन की बात है कि परमात्मा आए हैं तो आ करके यह ज्ञान का घास कहो या इसको अमृत कहो, इनको यह सभी बातें नाम दिया हुआ है तो यह अभी की बातें हैं ना । यह मिलता है तो इसको खाना है, देखो बहुत जन्मों की प्यासी है ना, यह मिला नहीं था, यह खुराक नहीं मिली थी इतना समय, तो आत्मा बिरा खुराक के वीक हो गई थी । वीक हो गई ना? इंप्योरिटी में वीक हो गई, अभी इनको यह विटामिन कहो, या खुराक कहो, मिलती है तो यह है विटामिन पूरा । आत्मा का विटामिन क्या है, आत्मा की खुराक क्या है, वह तो अभी बाप आ करके समझाते हैं ना क्योंकि उनकी खुराक वही जानता है और वही दे सकता है । उनकी खुराक और कोई आत्मा आत्मा को नहीं दे सकती है । मनुष्य मनुष्य को एक्यूरेट वह पूरी खुराक जो है तो पूरी खुराक वो कहते हैं मैं जानता हूं ना की आत्मा की खुराक क्या है, उसको चाहिए क्या । वह तो अभी मैं ही समझाता हूं और मैं ही आ करके देता हूं । तो बाप कहते हैं मेरे से योग रखो, मेरे से संबंध रखो तो मेरे से तुमको वह मिलेगी, बल मिलेगा और उसी बल से फिर तुम ताकत वाले बनते जाएंगे और आत्मा ताकत वाली रही तो फिर शरीर, फिर सब रुष्ट पुष्ट । आत्मा रुष्ट पुष्ट तो शरीर भी रुष्ट पुष्ट सब रुष्ट पुष्ट मिलेगी यानी सब तंदुरुस्त और मन दुरुस्त । अभी तो देखो सब मन भी दुरुस्त नहीं, तन भी दुरुस्त नहीं, कुछ दुरुस्त नहीं है, पीछे फिर दुरुस्त सब मिलेगा । तो यह सभी चीजें हैं जिसको अच्छी तरह से अपने में समझ करके और बाप से अपना जन्मसिद्ध अधिकार पाने का पूरा पूरा ख्याल रखना है । उसमें भी यह जो टाइम है आप लोगों का ये एक घंटा सारे दिन का यह खुराक समझो । जैसे खाना जरूरी है ना, आप अगर दो-चार दिन खाना ना खाओ तो क्या हो जाएगा, कमजोर पड़ जाएंगे ना तो जैसे खाना जरूरी है शरीर के लिए वैसे ही यह खाना । तो यह सुबह का ज्ञान स्नान एक बार दिन में जरूर होना चाहिए, कम से कम तो एक बार जरूर । दो बार हो तो बहुत अच्छा ही है परंतु हां बिचारे धंधे धोरी वाले, कई काम वाले हैं तो उनको थोड़ा हल्का छोड़ा जाता है परंतु एक बार तो जरूर, उसमें भी सुबह का टाइम ये ऐसा है जिसमें कोई बिजी होने का कारण नहीं है । बहुत थोड़े ऐसे होंगे जो मुश्किल से सवेर जाते होंगे कहां सर्विस पर । कोई-कोई की है, कोई छह, साढ़े छ: बजे जाना पड़ता है उनके लिए हो जाता है तो भी अगर कोई शौकीन है ना वह समझे हमारा क्लास सवेल हो परंतु हां शायद आप लोग दूर हैं, कहां बस वस् में आने के कारण से कुछ होता होगा परंतु फिर भी जितना बन सके जितना टाइम है तो उतना टाइम का फायदा ले लेना चाहिए । बहुत जन्म सोए और खोए, अभी तो बाप आया है कुछ दिन तो थोड़े, उसके दिन जितने हैं उतने तो थोड़ा जाग और चुस्ती से अपना कमाई ले लियो न । वह सोते खोते तो आए बहुत जन्म जन्मांतर सोते खोते आए, अभी बाप कहते हैं अभी मैं आया हूँ तो भी सोते खोते रहेंगे तो काम कैसे बनेगा । मैं कोई बहुत समय थोड़ी बैठा हूं मैं चला जाऊंगा । मैं अपना अभी ऐसा नहीं है कि अभी बाप आया है बैठा ही रहेगा, हमारा करता रहेगा, भले अभी हमने नहीं किया कभी करेंगे । नहीं, उनका चांस बहुत थोड़ा है इसीलिए जैसे सीजन होती है ना कमाई की, कमाई कोई सीजन पर होती है तो सीजन के तीन मास कमाई होती है, फिर हां हमको नौ मास बैठकर के खाना है तो फिर तीन मास में वह समझेंगे बारह मास का स्टॉक हमको जमा करना है ना फिर तो हमको खाना ही है उसमें तो यह भी सीजन की कमाई है । यह अभी सीजन में कमाया, कमाया फिर तो हमको खाना ही है तो अगर अभी नहीं कमाई की तो फिर खाएंगे कहां से । फिर खाएंगे नहीं, तो फिर यह सीजन की कमाई है ना इसलिए अपने सीजन को अच्छी तरह से समझते और पुरुषार्थ रखते चलो तो अपना सौभाग्य ऊंचा बनाओ । हम तो आपके प्रति शुभचिंतक ही रहेंगे ना की कमाई करे, बहुत कमाई करे, बहुत सहूकार बने, बैंगलोर वाले बहुत साहूकार बने । बेंगलुरु वाले पता नहीं क्यों साहूकार नहीं बनते हैं । साहूकार समझते हो ना? सब कुछ प्राप्त, सच्ची कमाई की सच्ची साहूकारी, जिसमें सब आता है फिर संपत्ति भी आ जाती है, सब प्राप्त होता है ना सदा सुख मिल जाता है । तो क्यों नहीं हम बाप से ऐसी प्राप्ति के लिए अपना पूरा बल लगाएं । इसीलिए थको मत, चलते-चलते थको मत, आएंगे विघ्न आएंगे, कभी कभी सुस्तीपन आएगा, कभी कभी कई गफलतें में भी रहेंगी परंतु नहीं, खबरदार रहना है ना । अब का टोटा बहुत टोटा इसीलिए संभलते रहो । अच्छा आज कुछ लोग भी हैं इसीलिए उनको भी टाइम देना है । तो इन सब बातों को अच्छी तरह से समझते अपने पुरुषार्थ को आगे रखो । बाप आया है और बाप से पुरा ना ले तो फिर बाकी क्या किया, तो कुछ भी नहीं किया समझो । यह जन्म खोया ना बाप से लेने का तो मानो सभी जन्म वैसे तो खोए हुए हैं परंतु बाकी सदा के लिए खो गए । अभी फिर भी चांस है ना, बाप कहते हैं यही तो चांस है अभी तो उसी एक ही जन्म का तो अपना चांस बना लो ना, उसमें देखो तुम्हारी प्रालब्ध का सारा चांस है । भविष्य अनेक जन्मों की प्रालब्ध इसी से तो बनती है ना । इस जन्म के लिए कहा हुआ है दुर्लभ है, कहते हैं ना मनुष्य जन्म दुर्लभ । मनुष्य जन्म तो बहुत हैं लेकिन बहुत जन्मों में भी कौन-सा दुर्लभ क्यों कहा हुआ है यह जन्म क्योंकि इस जन्म में हम अपने भविष्य अनेक जन्मों का ऊँच बनाते हैं, पिछले भी जन्मों का जो बुरा किया है उस बिगड़ी को भी अभी संवारते हैं । तो हमारे पिछले बिगड़े हुए जन्मों का भी अभी संवारने का चांस है, आगे भविष्य ऊँच जन्मों के बनाने का भी अभी चांस है इसीलिए मानो सभी जन्मों का आधार इसी एक जन्म के के ऊपर है तो क्यों नहीं हम अपने इस एक जन्म को ठीक कर देवें । इसको ठीक करना माना हमारे सभी जन्मों का ठीक हो जाने का चांस है परंतु ऐसा जब कोई करें, इतना पुरुषार्थ रखें । तो ऐसे पुरुषार्थ को अच्छी तरह से अपने में लगाते और करते रहो । (अच्छा, किसको बैठना है?) तो हमको तो बाप देखो दोनों के मालिक बनाते हैं और बाप एक का मालिक, ब्रह्मांड का । विश्व का तो बनता ही नहीं है इसलिए कहते हैं देखो तुम मेरे से भी ऊँचे, देखो मैं तुमको इतना ऊंचा बनाता हूं कि तुम मेरे से भी ऊंचे बन जाते हो, तुम दो के मालिक मैं एक का । मैं खाली निरंकारी दुनिया का और फिर तुम यहां विश्व का भी मालिक तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं कि बच्चों को मैं कितना ऊँच बनाता हूं तो इतना नशा रहना चाहिए ना । यह खुशी है अंदर की, यह अंदर की खुशी रखनी चाहिए उस खुशी से अपनी एक्टिविटी रॉयल रखनी चाहिए क्योंकि अपने खानदान और अपने कुल की रॉयल्टी का अभी मालूम है ना तो यह सभी अपना कुल और खानदान की रॉयल्टी बुद्धि में होनी चाहिए अच्छी तरह से, तब फिर एक्टिविटी एक्शंस रॉयल रहेंगे । रॉयल मनोर पवित्र, पवित्रता ही तो ऊंच रॉयलिटी है ना । वह देवताएं देखो रॉयल है तभी तो सब उनको नमन करते हैं ना । भले कितना डॉक्टर, इंजीनियर, बैरिस्टर बड़े-बड़े हो परंतु एक बार उसके आगे तो फिर भी नमन करते हैं, उसकी माना है कि वह रॉयलिटी, उस रॉयल्टी से बड़ी है इसीलिए देखो इनके स्टेचूज अथवा इनके जो कुछ चित्र हैं वो मंदिरों में रहते हैं और पूजे जाते हैं और दूसरे जो बड़े-बड़े, बतलाया था ना उस दिन दूसरे जो बड़े मिलते हैं उनके स्टेचूज बाहर खड़े करते हैं और इनके मंदिर बनते हैं, उनके बाहर रखते हैं, भले बड़े बड़े आदमी हो गए फलाना फलाना इतने मर्तबे वाले ये वो परंतु उनके स्टेचूज बाहर रहते हैं, यह मंदिर बनते हैं इनकी पूजा होती है तो फर्क है ना उस मर्तबा में इस मर्तबा में । इस मर्तबे की ज्यादा सेवा इसको प्योरिटी के कारण । भले किंग एंड क्वीन यह भी है परंतु वह किंग क्वीन देखो है ना एलिजाबेथ या वो अपनी कौन सी क्वीन हो गई है विक्टोरिया, देखो विक्टोरिया क्वीन के वो तो बाहर रखते हैं कोई मंदिरों में थोड़ी पूजे जाते हैं और यह लक्ष्मी क्वीन और श्री नारायण इनके देखो मंदिर हैं न । क्यों हैं क्योंकि उनके अंदर प्योरिटी थी उनमें सिर्फ वह किंगडम पावर रही लेकिन प्योरिटी नहीं । अभी भी देखो एलिजाबेथ है तो पॉपकॉर्न नमन करेगी, करेंगे ना? भाई जीते जागते भी वह क्वीन है लेकिन पोप के आगे झुकेगी क्यों झुकेंगी क्योंकि वह प्योरिटी है तो प्योरिटी को अभी भी, जीते भी मान करते हैं ना । तो देखो क्वीन को भी झुकना पड़ेगा तो उसका मतलब है मनुष्य तो वह भी है, नहीं तो क्वीन है, अभी अथॉरिटी है दुनिया के अपने राज्य में परंतु फिर भी उसको ब्लेसिंग्स लेने के लिए उनको नमन करना पड़ेगा । तो क्यों पोप को नमन करती है? उसने क्या अधिक है? यह अधिक है कि प्योरिटी है । तो प्योरिटी की इज्जत है ना, मान है तो इस प्योरिटी को लेना चाहिए इसीलिए बाप हमको डबल प्योरिटी रिलीजो पॉलीटिकल दोनों पावर्स दे रहे हैं तो यह दोनों पावर्स को लेकर करके बाप से अपना अधिकार पाना चाहिए । तो रिलीजो पॉलीटिकल दोनों पावर अभी बाप देते हैं इसीलिए देखो देवताओं को दोनों पावर की निशानी दिखाते हैं । लक्ष्मी नारायण को देखो तो टाज भी है किंगडम की निशानी और लाइट का भी है इसको कहा जाता है डबल क्राउन किंगडम, रिलीज ओं पॉलीटिकल दोनों पावर तो यह अभी बाप हमको दोनों पावर का यह देता है । तो इतना पाने के लिए उठाना चाहिए । शायद उठा नहीं सकते हो, बहुत मिला है ना और ऐसे ही मिला है ना बहुत सहज तो बहुत कोई चीज ऐसी मिल जाएगा तो उसका कदर कम हो जाता है तो शायद और अच्छी ऐसे-ऐसे होकर के मिले तो शायद कद्र और बढे । नहीं, उठाओ अच्छी तरह से, उनके लेने के लिए अपना दिमाग और जो कुछ है वह अच्छी तरह से दो और प्रैक्टिकल में लाओ । अच्छा, बाबा खातिरी तो बहुत करता है लेकिन बच्चे अपनी खातिरी अपने आप करने में पता नहीं ढीले क्यों रहते हैं । बाबा कहते हैं कि बच्चे बेंगलुरु वालों की खातिरी करो । बाबा ने फल दिया है भेजे हैं परंतु बच्चे तो अभी पूरे पूरे सच्चे फल बनते नहीं हैं मतलब सच्चा फल माना कौन सा है? यह फल देखो यह फल है ना, जो अभी पुरुषार्थ करते हैं उसका फल तो सच्चे हैं ना ये, तो अभी ऐसा सच्चा बनना इसके लिए अपना पूरा पुरुषार्थ करना है । तो बाप से ऐसी प्राप्ति के लिए पूरा पूरा पुरुषार्थ रखो । अच्छा, यह किसका है मास्टर? इनका है? अच्छा, आइए, आते जाइए, आते जाइए, वाह! करुणा । करुणा तो, नाम ही है करुणा । अच्छा है यह बच्चा, सर्विस का शौक है इसको यह किसका बच्चा है?