मम्मा मुरली मधुबन           

    010. Bhakti Aur Gyan

 


ओम शांति । भक्ति और ज्ञान, दो शब्द तो सुने होंगे। इनको भी यथार्थ समझना है। भगत तो हम सब हैं ही, किसके ? भगवान के । भगत कहा ही उसको जाता है जो हम याद करते हैं भगवान को अथवा परमात्मा को, परमपिता को । तो जो याद करते हैं तो याद करने वाले हो गए भगत और जिसको याद करते हैं वह है भगवान, परमपिता परमात्मा। अभी इसमें एक बात समझने की है फिर जो कहा जाता है भक्ति और ज्ञान तो उसका फर्क क्या है। ज्ञान का मतलब है कॉमन तौर में ज्ञान शब्द का अर्थ है समझ, तो समझ बहुत प्रकार की है जैसे डॉक्टरी नॉलेज, डॉक्टरी की समझ है यानी शरीर की, जिस्म की, इसको कैसे बनाना है, कहां से बिगड़ता है, क्या करना है यह है डॉक्टरी ज्ञान और जैसे बैरिस्टरी नॉलेज को बैरिस्टरी ज्ञान कहेंगे, भाई लॉ पॉइंट्स को जानता है, किसको फांसी से कैसे उतारे, किसको फांसी कैसे चढ़ाएं। यह लॉ पॉइंट्स का नॉलेज, ज्ञान तो इसको कहेंगे भाई लॉ का ज्ञान यानी लॉ पॉइंट्स का ज्ञान । इसी तरह से जो जो चीज का जिसके पास नॉलेज है तो नॉलेज कहो या ज्ञान कहो परंतु जिसको जिस चीज का ज्ञान है उसको कहेंगे उसी चीज का ज्ञान, परंतु यह जो मशहूर नाम है कि भाई ज्ञान बिना गति नहीं है तो उसका मतलब यह नहीं है कि डॉक्टरी के ज्ञान के बिना गति नहीं है या बैरिस्टरी के ज्ञान के बिना गति नहीं है। वह कौन सा ज्ञान है जिसके लिए गाते आते हैं कि ज्ञान के बिना गति नहीं है। वह ज्ञान उसी की समझ यानी उसी का नॉलेज तो परमात्मा क्या है, और हम जो याद करने वाले हैं वह कौन हैं और क्यों करते हैं उसको याद, उससे हमें क्या प्राप्त होना है, इन्हीं सब बातों की यथार्थ नॉलेज को फिर ज्ञान कहा जाता है, इस ज्ञान के बिना गति नहीं है । तो गति सद्गति का जो ज्ञान है ना, उसको ही कहा जाता है ज्ञान बिना गति नहीं है । तो वो जो ज्ञान है ना उसी का हमको यथार्थ नॉलेज चाहिए कि हम जिसको याद करते हैं वह लगता है क्या है हमारा । हमारा और उनका आपस में रिलेशन क्या है । हम क्यों उसको याद करते हैं । उससे हमें क्या मिलने का है । खाली याद ही करना है या याद से हमको कुछ प्राप्त होना है । जो प्राप्त होना है वह क्या प्राप्त होना है, उस प्राप्ति का भी तो हमको नॉलेज होना चाहिए ना । तो इन्हीं सभी बातों के नॉलेज को ही ज्ञान कहा जाता है । तो यह ज्ञान सहित भक्ति हो गई तो इसको कहा जाएगा यथार्थ भक्ति । ये तो गीता में भी है वर्शंस भगवान के कि जो मुझे यथार्थ रीति से जानते हैं अथवा जो मुझे यथार्थ रीती से जान करके और मुझे याद रखते हैं, उनको मैं यथार्थ प्राप्त होता हूं । तो इसको, ये ज्ञान सहित भक्ति को ज्ञान कहेंगे। वैसे ऐसे भक्ति तो बहुत हैं जिसको जो आया, जिसको जैसे आया, वह वैसी मानता को मानते चले आए हैं तो उसको कहा जाएगा अयथार्थ भक्ति, यथार्थ भक्ति को ज्ञान कहेंगे। अयथार्थ भक्ति को अयथार्थ भक्ति कहेंगे यानी अंधविश्वास में यानी जहां विश्वास हो जिसमें विश्वास हो तेरा उसको ही परमात्मा मान या जिसमें तुम्हारा प्रेम हो । ऐसे कई गुरु भी हैं जो ऐसे मंत्र भी दे देंगे या कहेंगे जिसमें तुम्हारा प्रेम है, जैसे तुम्हारा बच्चे में प्रेम है ना तू उसको भगवान समझ, तुम्हारा इसमें प्रेम है ना इस मूर्ति में तुम इसको भगवान समझ, जिसमें तुम्हारा प्रेम है वह तेरा भगवान, परंतु नहीं इधर परमात्मा कहते हैं कि मुझे यथार्थ रीति से जान करके तू मेरे से प्रेम लगा। ऐसे नहीं जिसके साथ तेरा प्रेम है वह तेरा भगवान है, नहीं मैं जो हूं, जैसा हूं मुझे यथार्थ रीति से जान करके तू मेरे से प्रेम अथवा मुझे याद कर, तब मेरे द्वारा तुमको बल मिलेगा, शक्ति मिलेगी बाकी ऐसे नहीं कि तू किसी को भी याद करो तो तुमको शक्ति मिलेगी, नहीं शक्ति मिलेगी मेरे को याद करने से परंतु मेरे को जान करके, ऐसे नहीं किसी को भी समझ भगवान, यह पत्थर रखा है इसको भी भगवान समझे, नहीं। भगवान कहते हैं यथार्थ मैं क्या हूं, जो हूं जैसा हूं, वो भी जानना है इसीलिए तो परमात्मा ने अर्जुन को भी कहा ना, मेरे को यथार्थ रीती से समझ तो अपना बैठ करके के परिचय दिया न, नहीं तो अगर कह देते तू जिसको भी समझ, उसको समझ करके तू मेरे को ही समझ, सब यह मेरे ही हैं, तू किसी को भी याद कर, नहीं, उसको अपना परिचय देना पड़ा न, मैं क्या हूं, कौन हूं, बैठकर समझाया ना, तू क्या है, कौन है, तू आत्मा है, तो उनको अपना परिचय और परमात्मा ने फिर अपना परिचय दोनों का दिया ना । अर्जुन को अपना भी दिया तू मेरी संतान, तुम क्या हो और मैं क्या हूं वह बैठ करके उनको समझाया और समझा करके फिर कहा अभी इसी समझ से, इसी ज्ञान से तू मुझे याद कर, तब तो कहा न मामेकम, फिर कहा ना मुझ एक को याद कर, "मनमनाभव", यह गीता के वर्शंस हैं। तो मनमनाभव अथवा मन को अथवा बुद्धि को मेरे में लगा और मुझ एक को "मामेकम" और मुझ एक को याद कर । तो ऐसे तो नहीं कहा ना कि तू किसी में भी मन लगा, कहा मुझमें और उसको अपना बैठकर के परिचय दिया, समझाया, तो यह समझने की बात है ना कुछ। समझाने के लिए ही तो परमात्मा को आना पड़ा और उसको बैठ के समझाना पड़ा। वैसे तो अर्जुन बड़ा विद्वान था, बड़े वेद शास्त्र ग्रंथ आदि पढ़े हुए थे परंतु उसको कहा ना यह सब तू भूल । अब मैं जो यथार्थ नॉलेज समझा रहा हूं ना, उसी बातों को समझ करके तू मुझे जान करके अपने को भी रियलाइज कर कि तू कौन है, मैं कौन हूं तेरा और मेरा रिलेशन क्या है, इन्हीं सभी बातों को समझ कर के अभी प्रैक्टिकल मेरे साथ रिलेशन में आ। ऐसे नहीं है कि तू कोई भी, किसी को भी समझे कि यह परमात्मा है या यह सब रूप मेरे हैं। नहीं, मेरा अपना रूप है, मेरा अपना निवास स्थान है, मेरा अपना जो कुछ क्वालीफिकेशंस मेरी है, वह मेरी यथार्थ बातों को तू समझ । ऐसा नहीं है सब मैं हूं, फिर तो चोर भी मैं हूं, डाकू भी मैं हूं, खूनी भी मैं हूं, सब मैं हूं तो उसकी माना चोरी भी मैं करता हूं, खून भी मैं करता हूं, सब मैं करता हूं, तो ऐसी तो बात ही नहीं है ना। सबमें हूं, फिर सब कुछ करता कराता मैं हूं तो फिर यह काम भी मैं करता कराता हूं, फिर बुरा भी मैं कराता हूं तो अच्छा भी मैं कराता हूं तो फिर तो किसी के कर्म की कोई रिस्पांसिबिलिटी नहीं रही ना, फिर तो अच्छा बुरा कर्म का कुछ रहा ही नहीं। तो ऐसी बात नहीं है कि यह सब कुछ परमात्मा ही कराता है या यह सब कुछ परमात्मा ही है । अगर यह मानता रखी जाए ना तो सारी दुनिया में इतना नाश के लिए यह सब, इतना खून खराबा, आज इतनी सब यह बातें हैं तो यह सब कुछ परमात्मा ही कराता है? तो कराता वह है तो फिर भोगते हम क्यों हैं, फिर भोगे भी वह न। जो करे सो पाए न, करे वो कराए वो और पाएं हम, काहे के लिए ? यह तो जुल्म की बात हो जाए। नहीं, ऐसी बात नहीं है। हम करते हैं हम पाते हैं, वह हमसे यह नहीं कराता है । तो यह समझना है कि वह हमसे क्या कराता है। इसी के लिए उसने कहा है कि मैं आता हूं । आ करके मैं शिक्षा देता हूं । वह शिक्षा देकर के जो मैंने बैठकर कर्म कराया है ना, वह मैंने कराया है बस, यह जो तुम कर रहे हो यह मेरी शिक्षा से या मेरे डायरेक्शंस पर या मेरी मत पर या मैं नहीं कराता हूं, यह तो तू आत्मा अपनी रिस्पांसिबल है तभी तो गीता में भी कहा ना जीवात्मा अपना शत्रु, अपना मित्र है, ऐसे नहीं कहा है कि जीवात्मा का शत्रु और मित्र मैं हूं, ऐसे तो नहीं कहा ना , अपना मित्र अपना शत्रु है क्योंकि तुम जो करते हो उसके रिस्पॉन्सिबल तुम हो, यह तुम कर रहे हो, यह मैं नहीं कराता हूं तुमसे, यह तू कर रही है, हे आत्मा, आत्मा से बात करता है ना, देखो यह आत्मा से हम बात कर रहे हैं, यह आत्मा ऑर्गन से सुन रही है । कानों से सुनती कौन है? आत्मा, अभी आत्मा निकल जाती है शरीर से फिर तो शरीर पड़ा है ना , बॉडी पड़ी है तो आत्मा नहीं है, फिर देखो आत्मा नहीं है फिर सुनते ही नहीं है, अभी आत्मा है तो देखो यह सुनती है, यह सुनती कौन है , आत्मा । अभी यह सुन रही है कि इसको बाप सुनाता है की हे आत्मा तू अपना शत्रु अपना मित्र तू है । जो तू करेंगे तो तू उसका रिस्पॉन्सिबल हो, यह मैं नहीं कराता हूं अभी तू कोई बुरा करता हो या अच्छा भी करता हो वो तेरा कर्म का फल बनेगा ना, इसीलिए बाप कहते हैं मैं तुमको आता हूं शिक्षा देने के लिए, बैठकर समझाता हूं कि तू कर्म अच्छे कैसे कर और अच्छा कर्म कौन सा है, वह बैठ करके समझाता हूं, उसी को ही यथार्थ जानने को ही ज्ञान कहा जाता है । इसीलिए कहते हैं मुझे आना पड़ता है, उन यथार्थ बातों को समझाने के लिए इसीलिए ही मुझे नॉलेजफुल, ओशियन ऑफ नॉलेज, पतित पावन ये सब, कहते हो ना। महिमा करते हो कि पतित पावन करने वाला माना पतितों को पावन बनाने वाला, तो पतित बने हो ना, मैंने थोड़ी ही बनाया है। मैंने बनाया है तो फिर मैं पावन बनाने वाला कैसे हुआ? फिर तो कहो पतित करने वाला, फिर तो ऐसे कहो ना। नहीं, कहते हो पतितो से पावन करने वाला तो मैं पावन बनाने वाला हूं, ना कि मैं पतित बनाने वाला हूं, नहीं। तो यह सभी चीजें समझने की है इसीलिए कैसे बनाने वाला हूं वह आ करके शिक्षा देता हूं। उसी शिक्षा को फिर जो धारण करके चलते हैं, वह पावन बनते हैं। तो मेरी शिक्षा मैं आकर के देता हूं जो पावन बनाने की यथार्थ नॉलेज है ना वह मैं देता हूं। पावन बनाने की पवित्र बनाने की यथार्थ नॉलेज और कोई मनुष्य नहीं दे सकता है इसीलिए मुझे गाते हो कि तू ही पतितो को पावन करने वाला है क्योंकि पावन का नॉलेज तेरे पास है । हम कैसे पावन बने उसका नॉलेज तेरे पास है इसीलिए कहते हैं तू ओशियन ऑफ नॉलेज आ अभी, ज्ञान का सागर आ, आ करके ये नॉलेज दे, तभी मैंनेभी कहा है कि यदा यदा ही धर्मस्य जब जब अधर्म का टाइम आता है, मेरा रेस्पोंड है मैने कहा है , प्रॉमिस है मेरा और मैंने रिस्पॉन्ड किया है कि यदा यदा ही जब जब अधर्म होता है मैं तब तब आता हूं तो अभी यह टाइम है वही, इसीलिए बाप कहते हैं मैं अभी आकर के विद्यालय अर्थात स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी जो कुछ कहो वो खोलता हूं और उसमें बैठ करके मैं समझाता हूं । तो एक अर्जुन की तो बात नहीं है ना, इसमें है जो औटे सो अर्जुन, नर नारी बहुत हैं जिन्हों को में आ करके मैं सुनाता हूं और वह सुनकर के इस नॉलेज को धारण कर करके और फिर यथार्थ नॉलेज से अपनी यथार्थ प्रालब्ध पाते हैं, उसको कहा जाएगा ज्ञान। बाकी ज्ञान कोई यह नहीं कि वेद, शास्त्र, ग्रंथ पढ़ना या पढ़ाना उसको ज्ञान कहना या पठन-पाठन, कई समझते हैं पूजन आदि करना यह शायद भक्ति है, नहीं । याद तो करते हैं ऐसे तो हम हैं ही भगत । अभी भी देखो बाप कहते हैं तू तो है ना, तुम तो हां मेरे द्वारा लेने वाले हो न, परंतु लेना कैसे हैं, क्या लेना है, जिनसे लेना है उनका भी परिचय होना चाहिए तो इन सब बातों को यथार्थ समझना इन्हीं का नाम ज्ञान है। तो यह ज्ञान यथार्थ भक्ति का भी ज्ञान मैं आकर के देता हूं कि तू मुझे कैसे याद कर इसीलिए कहा है मैं अपनी याद खुद आ करके सिखाता हूं इसीलिए योग सिखाना योगेश्वर परमात्मा का काम है इसीलिए उसको कहते हैं योगेश्वर यानी कि योग सिखाने वाला भी स्वयं ईश्वर ही है । जिससे योग लगाना है वही सिखाता है, ऐसे नहीं है लगाना उससे है सिखाएंगे दूसरे, नहीं, मनुष्य नहीं सिखा सकते। मनुष्य मनुष्य को परमात्मा के साथ कैसे योग लगाया जाए वह नहीं सिखा सकते इसलिए परमात्मा कहे इसी योग और ज्ञान के लिए मुझे आना पड़ता है, तभी तो वो गीता के भगवान ने बैठ करके यह योग और ज्ञान यह नॉलेज अर्जुन के सामने रखी है, वह तो एक स्टोरी रूप में शास्त्र बनाया है तो एक अर्जुन एक भगवान का नाम रख करके बना दिया है, नहीं तो है तो उसने बैठकर के समझाया है ये सब। तो हमको अभी पढ़ाने वाला कौन है, हम भी सब स्टूडेंट्स है ना। अब यह नॉलेज कौन दे रहा है? वह दे रहा है जिसको नॉलेज फुल सुप्रीम सोल कहा जाता है। अभी वह बैठ करके समझा रहे हैं, यह नॉलेज यथार्थ मैं क्या हूं, कौन सी चीज हूं और तू क्या है और मुझे कैसे याद करो और याद करो तो उससे तुमको क्या बल मिलेगा, तुम्हारे पास जो है ना बहुत जन्मों के किए हुए उसको जलाने की शक्ति मिलेगी, इसको कहा है योगाग्नि, गीता में भी है इस योग से, ये योग अग्नि का काम करेगा जिससे तुम्हारे पाप दग्ध होंगे, नाश होंगे तो इसको कहा है यह योग अग्नि तो इसीलिए कहा है मुझे याद करो और फिर तुम्हारे जो कर्म हैं उनको भी श्रेष्ठ करो तो फिर उससे तुम्हारा प्रालब्ध आगे के लिए अच्छी बनती चलेगी । तो उससे आगे के लिए भी अच्छी बनेगी और जो किया हुआ है उल्टा खाता उसको भी इस योग से, वह अग्नि का काम करेगी यानी भस्म होंगे। इससे तुम स्वच्छ बनते जाएंगे और फिर तुम स्वच्छ जेनरेशंस को प्राप्त करते रहेंगे । तो यह है यथार्थ नॉलेज और परमात्मा अपने साथ प्रैक्टिकल रिलेशन अथवा संबंध आ करके जुटवाते हैं और वह प्रैक्टिकल लाइफ में अपने साथ संबंध जुटवाके और कहते हैं मेरे बच्चे हो ना, कहते हो ना पिता हो तुम, तो मैं पिता हूं तुम पुत्र हो तो फिर मेरे साथ पिता और पुत्र का पूरा रिलेशन रखकर के और मेरे से जो तुमको हक मिलना है उसका पूरा अपना फॉलो करो अर्थात जो मैं कहता हूं उसी प्रमाण चल करके अपने को पवित्र बना करके मेरे से वह अपना बर्थ राइट ले ले, बर्थ राइट कहो या वर्सा कहो । तो बाप बैठ करके डायरेक्ट समझाते हैं ना, तो यह सभी चीजें समझने की है । बाकी जो मनुष्य के द्वारा हम सुनते आए न वह तो सब बातें बाप कहते हैं तभी तो अर्जुन को भी कहा ना यह मामा काका चाचा बाबा... उसने ऐसा नहीं कहा जिसमें तुम्हारा प्रेम है उसमें मन लगा, उसने कहा मेरे में लगा, कहा है मामेकम, मुझ एक में, उसको तो कहा और सब भुला, कहा ना मामा काका बाबा चाचा अथवा गुरु जिन्होंने तुमको पढ़ाया, सिखाया सबका नाम लेकर के कहा ना अभी उन सबको भूलो क्योंकि अभी मैं गुरुओं का गुरु मिला हूं ना तुमको इसीलिए कहा कि उनकी भी गति सद्गति करने वाला मैं हूं इसीलिए मैं सबका गुरु हूं। गुरुओं का भी उद्धार करने वाला, साधुओं का भी उद्धार करने वाला, सब की गति सद्गति करने वाला एक ही मैं सद्गुरु हूं। सतगुरु एक ही है इसलिए उसको कहते हैं गॉड इस ट्रुथ। क्यों ट्रुथ है क्योंकि वही सच्ची बात बतलाता है बाकी सब जो कुछ सुनाने वाले हैं ना जरूर है कि वह अनट्रुथ । उसके ट्रुथ के कंट्रास्ट में क्या हो गया, झूठ कहेंगे ना, सच और झूठ तो इसीलिए बाप कहते हैं ना कि सच बात यथार्थ क्या है, वह जानता ही मैं हूं इसीलिए यथार्थ नॉलेज मैं ही आ करके सुनाता हूं इसलिए तो तुम गाते हो कि गॉड इज ट्रुथ। क्यों कहते हो ट्रुथ का मतलब ही क्या है, ऐसे तो कोई कहे कि नहीं वह अजर अमर है, कई इस ट्रुथ का ये अर्थ निकालते हैं कि वह अजर अमर है यानी काटे काटा नहीं जा सकता, ऐसे तो आत्मा भी अजर अमर है, उसको भी काटे काटा नहीं जा सकता है, जलाए जल नहीं सकती है इस तरह तो आत्मां हम भी ट्रुथ हैं, वह तो बात ही नहीं परंतु उसको खास क्यों कहते हो गॉड इज ट्रुथ । ट्रुथ उसी नॉलेज के भेंट में है। ट्रुथ बात तो नॉलेज से लगती है कि सत्यता को तुम जानते हो इसीलिए सत्यता तुम बता सकते हो जो जानेगा वही बताएगा न। हम इन्हीं बातों की जानकारी सत्यता की जानते नहीं है कि व्हाट एम आई और तुम कौन हो, हम कौन हैं और हमारा यह सारे जन्मों का चक्कर कैसे चलता है इन सभी बातों का जो यथार्थ नॉलेज है वह हम नहीं जानते, तुम जानते हो इसीलिए कहते हो गॉड इज ट्रुथ बाकी ट्रुथ का अर्थ इससे नहीं लगता है कि वह अमर अजर है वैसे तो आत्मा भी अमर अजर है । वह भी तो काटे काटी नहीं जा सकती, जलाए जल नहीं सकती, एक शरीर लेती है फिर लेती है आत्मा थोड़े ही जलती है, शरीर जलाते हो तो आत्मा थोड़ी ही जलती है। आत्मा तो अपने कर्म के हिसाब से जा करके दूसरा शरीर लेती है तो वैसे तो वह भी अमर अजर है यानी उनको भी कोई काटे काटा नहीं जा सकता तो उसकी भेंट में तो फिर आत्मा भी ट्रुथ, फिर खाली गॉड ही ट्रुथ क्यों परंतु खास गॉड के लिए कहते हैं तो उसका संबंध नॉलेज के साथ है कि यथार्थ जानकारी जो है ना, वह जानकारी वह जानता है, कौन सी जानकारी? उसको कहते हैं ना जानी जाननहार, परमात्मा के लिए कहते हैं कि जानी जाननहार, नॉलेज फुल तो इन्हीं सभी बातों के लिए है कि कौन सी जानी जाननहार, क्या जानता है, जाननहार का भी बहुत से अर्थ नहीं समझते हैं कई ऐसे समझते हैं कि वह जानते हैं इसके अंदर में क्या है, वो परमात्मा सबके अंदर का जानता है कि भाई इसके अंदर में क्या अभी विचार चल रहे हैं, इस चोर के अंदर क्या कोई चोरी करने का ख्याल है, उस खूनी को खून करने का ख्याल है, कोई को अच्छा विचार है कोई को बुरा विचार है वो रीड कर लेता है, अरे वह तो थॉट रीडर्स का काम है। वह जाननहार का मतलब यह नहीं है कि खाली थॉट बैठकर के रीड करना, वह बातें नहीं है। उसके रीड करने से मतलब ही क्या है । अच्छा अभी किसी के अंदर बुरा ख्याल चल रहा है, उसको कोई रीड भी करें तो चलो परमात्मा उसको जाना, फिर क्या हुआ उसमें ऐसा थोड़ी है, फिर भी जाकर के चोर तो चोरी कर लेता है उसको जाना तो क्या हुआ, परंतु नहीं हमारी सारी कर्म गति को वह जानता है। जाननहार का मतलब ही है कि वह हमारी जो कुछ कर्म की गति है, उन सभी बातों को जानता है कि यह कर्मों से कैसे गिरा है, कैसे फिर यह चढ़ सकता है, इन सभी बातों को वह जानता है इसीलिए जानने वाला फिर आता है और आ करके हमको चढ़ाता है। हमारी करम गति कहां से गिरी है, क्यों गिरे हैं, क्या कारण हुआ, कैसे गिरे उन सभी बातों को वह जानता है और आकर के समझाते हैं कि अरे तुम्हारा संग जाकर के माया से हुआ न, पांच विकारों से इसीलिए तुम गिरे हो । अभी इसे समझो और इन विकारों का संग छोड़ो तो फिर तुम्हारे कर्म श्रेष्ठ हो जाएंगे और तुम फिर चढ़ जाएंगे और इसी चढ़ने का ही अभी फिर बल भी मैं देता हूं क्योंकि मेरा पावर चाहिए ना तुमको इसीलिए कहते हैं मुझे याद करो तो मेरे से तुमको शक्ति मिलेगी, बल मिलेगा इसीलिए ही मेरे साथ योग अथवा यह जो मैंने कहा है कि मुझे निरंतर याद रखो इसीलिए कि तुमको ताकत मिलेगी, शक्ति मिलेगी। तो यह सभी चीजें समझने की है बाकी ऐसे नहीं कि वह थॉट खाली रीड करता है, थॉट रीडर ऐसे तो थॉट रीडर्स तो बहुत हैं जो थॉट रीड करना जानते हैं, वह भी एक विद्या है। उसे सीखते हैं और थॉट रीड करते हैं वो भी होते हैं परंतु नहीं, जानी जाननहार उसको इसी अर्थ में कहते हैं कि वह हमारे सारे कर्म गति को जानता है और हमारे कर्मों को चेंज कराता है अर्थात श्रेष्ठ बनाता है और बुरे कर्मों का नाश कराता है इसीलिए उनको कहा जाता है जाननहार। तो यह सभी चीजों को भी समझना है ना तो उनकी महिमा उनका कर्तव्य और वह कैसे कर्तव्य करता है तो इन सभी बातों को यथार्थ समझना इसी का नाम ज्ञान है। तो यह भी सभी बातों का नॉलेज होना चाहिए न। तो हम जिसको याद करते हैं तो याद करने का भी हमको ज्ञान होना चाहिए, बाकी ज्ञान कोई ऐसी चीज नहीं है बाकी जो कुछ हम करते आए ना वह अयथार्थ था इसीलिए कहते हैं वह अयथार्थ से तुमको जो पूर्ण फल मिलना चाहिए ना वह नहीं मिलता है अल्पकाल का । हां चलो तुमने उल्टा सीधा फिर भी भगवान को याद किया है ना तो थोड़ा बहुत उसका तुमको मिल जाता है परंतु मेरी यथार्थ जो प्राप्ति है ना वह नहीं है। वह तो जब मुझे यथार्थ जानेंगे तब मेरे द्वारा होगी बाकी यह तो तुम थोड़ा बहुत तुमको किसी ने कह दिया तू इसको ही भगवान समझ करके याद कर , यही तेरा भगवान है समझो, चलो तुमने उसको याद तो किया भगवान को उल्टा कि सीधा जान करके तुमने भगवान को ही याद रखा, चलो तुमको थोड़े टाइम का कुछ ना कुछ मिल जाएगा । थोड़ा बहुत कुछ तो तुम पा लेंगे, बस ना, परंतु नहीं मेरे द्वारा जो तुमको सदा का सुख जिसमें कोई दुःख की बात ना हो, एवर हेल्दी, एवर वेल्थी, एवर हैप्पी यह है सदा का सुख। वो जो लाइफ है ना, उस लाइफ का तो फिर मेरे को यथार्थ जानने से और मेरे द्वारा यथार्थ प्राप्ति तब होगी, जब मुझे यथार्थ रीति से जान करके यथार्थ याद रखेंगे। तो अयथार्थ और यथार्थ का भी अर्थ समझना है ना कि पूरी तरह से और वह न पूरी तरह से यानी जैसे आया वैसे, तो जैसे आया वैसे वह तो चलाते आए हैं ना उससे तो जो पाते आए हो वो देख रहे हो यहां। कोई मर्तबा पाते हो, कोई धनवान हो, किसी को थोड़ा बहुत सुख है, कोई बिचारे कैसे हैं तो यह सब क्या है यह थोड़े कर्मों का फल मिला है, वह फल खा रहे हो ना परंतु उस फल में पेट नहीं भरता है। वह खाते भी मनुष्य अशांत और दुःख में है ना, धन वालों से पूछो फिर भी दुखी हैं बेचारे । सब मर्तबे वालों से पूछो जितना बड़ा होना आज की दुनिया में उतना ही दुखी होता है, कहते हैं बड़ा होना तो बड़ा दुःख पाना क्योंकि आज की संसार है ही दुःख, अशांति की। तो दुःख अशांति की दुनिया में दुःख बड़ा होना तो बड़ा दुःख पाना। दुःख अशांति की दुनिया में धनवान होना और ही मुसीबतें उठाना इसलिए बाप कहते हैं यह यहां का सुख तो अल्पकाल के लिए है, इस सुख में सार नहीं है इसीलिए मैं तुमको वह संसार बना कर देता हूं जिसको हेवेन कहा जाता है इसीलिए मुझे कहते हैं हेवेनली गॉडफादर यानी हमारा जीवन हेवेनली बनाता है। हेवनली का मतलब है सदा काल के सुख हों, बाकी हेवेन कोई और दुनिया नहीं है, ना कोई और चीज है। यही दुनिया है, हेवेन भी इधर ही थी हेल भी इधर ही थी लेकिन ऐसे नहीं कहेंगे अभी दोनों है, नहीं। अभी हेल है, जब हेवेन है तो हेल नहीं है, जब हेल है तो हेवेन नहीं है यह कंट्रास्ट समझना है। जैसे रात है तो अभी दिन नहीं है फिर दिन होगा तो रात नहीं, ऐसे नहीं दिन रात इकट्ठी होती है या सर्दी गर्मी होती है । कई ऐसे समझते हैं हेवेन भी इधर ही है हेल भी इधर ही है क्योंकि जो साहूकार है बड़े मजे में बैठे हैं, समझते हैं हेवेन में हैं परंतु पूछो उसको हेवेन में है, नहीं, वह भी दुःख अशांति में है इसीलिए यह संसार ही दुःख और अशांति का है। हेवेन, जिधर कोई भी दुःख ना हो, जब सुख है तो कोई दुःख नहीं, जब दुःख है तो कोई भी सुख नहीं तो अभी की दुनिया में सुख है ही नहीं वह जो सुख जिसको कहा जाता है । इसको कहेंगे अल्पकाल का, वह सदा काल के सुख की जो प्राप्ति है ना, उसको हेवेन कहेंगे फॉर जेनरेशंस में, शरीर छोड़ना, शरीर लेना, शरीर में रहना सदा का सुख। अभी तो देखो मरते हैं तो भी बिचारे दुखी हो करके, यहां से जाते हैं तो भी दूसरे भी रोते ही हैं। कहते भले हैं कि स्वर्गवासी हुआ, हेवेनली एबोड में गया, अरे भाई हेवेनली एबोड गया तो फिर काहे के लिए रोते हो और खुशी करनी चाहिए। अच्छा हुआ, हेवन में गया ना, नर्क से हेवेन में गया तो फिर रोने की क्या बात है । एक तरफ तो रोते हैं दूसरी तरफ कहते हैं हेवेनली अबोड में गया, देखो आश्चर्य की बात है ना। इसीलिए बाप कहते हैं कि सच सच तो गया ही नहीं ना। रोते तो सच है ना क्योंकि गया नहीं है । हेवन तो अभी मैं बनता हूँ न, हेवन है ही कहां, वह तो अभी ही मैं बनाता हूं । तो हेवेनली एबोड में गया वह कोई दूसरी दुनिया थोड़े ही है पहले मैं हेवन बनाऊँ तो सही ना । जब मैं हेवन इस वर्ल्ड को बनाऊं तभी तो हेवेनली एबोड में जाए । पहले मैं अबोड बनाऊँ न हेवन का, दुनिया बनाऊँ न तो वह तो अभी आया हूं बनाने के लिए । जब बनाउंगा तो फिर तुम्हारे जेनरेशंस सदाकाल का, तुम्हारे जो पुनर्जन्म है न वह उसी में रहेगा । अभी है ही हेल तो तुम्हारा पुनर्जन्म कहां होगा, हेल में ही होगा, तो शरीर छोड़ेंगे कहां जाएंगे, फिर हेल में ही आएँगे और कहाँ जाएंगे इसीलिए बाप कहते हैं ऐसे नहीं कोई गए हैं, बहुत गए हैं, पहुंचे हुए हैं, वह कहते हैं नहीं वर्ल्ड तो यही है ना । वर्ल्ड इज वन, गॉड इज वन, क्रिएशन इज वन बाकी ऐसे नहीं है कि कोई बहुत दुनियाए हैं, नहीं दुनिया एक है मनुष्य की कॉरपोरियल, बाकी है सोल्स की इनकॉरपोरियल जहां से हम आत्माएं उतरती हैं तो वह तो साइलेंस वर्ल्ड, जहां आत्माओं का स्टॉक है फिर वहां से हम आते हैं हम नंबरवार, यह संख्या कहां से बढ़ती है । इतनी सोल्स कहां से आती हैं, कोई तो सोल्स का स्टॉक है, क्योंकि सोल्स तो इम्मोर्टल है न, तो इम्मोर्टल् सोल्स कहां से तो आती है ना, तो यह सभी इतनी संख्या कहां बढ़ती जा रही है, यह कहां से बढ़ती है इतनी सोल्स कहां से आती हैं तो यह भी सभी चीजों को समझना है । तो सोल्स वर्ल्ड, जिसको इनकॉरपोरियल वर्ल्ड कहा जाता है दूसरी यह कॉरपोरियल इसीलिए बाप कहते हैं अभी बहुत हो गया यहां स्टॉक, नीचे इसीलिए यह लड़ना-झगड़ना दुःख-अशांति यह सब हो रहा है । फिर यहां संख्या कम करनी है फिर उधर स्टॉक भेजना है इसीलिए अभी कहते हैं यहां के स्टॉक को अभी कम करना है इसीलिए डिस्ट्रक्शन की तैयारियां हैं और कंस्ट्रक्शन । कंस्ट्रक्शन भी साथ चाहिए, क्योंकि यह अनादि है, ऐसे तो नहीं हो जाएगी तो डिस्ट्रक्शन के साथ कंस्ट्रक्शन भी चाहिए । तो पहले कंस्ट्रक्शन फिर डिस्ट्रक्शन, ऐसे नहीं डिस्ट्रक्शन करके फिर कंस्ट्रक्शन करेंगे, नहीं दोनों चाहिए, जिसको संगम कहो, कनफ्लुएंस पीरियड कही जाती है । तो इसीलिए कहता हूं अभी कर रहा हूं, कैसे यह प्योरिटी कंस्ट्रक्शन का अभी फाउंडेशन लगा रहा हूं और इधर यह डिस्ट्रक्शन की तैयारियां हैं तो यह कंस्ट्रक्शन मजबूत हो जाएगा तो डिस्ट्रक्शन काम अपना करेगा । अभी वह भी तैयारियां है, इधर भी तैयारियां हैं यह भी तैयार हो रहे हैं प्योरिटी का फाउंडेशन पड़ रहा है, यह भी मजबूत हो जाए अच्छी तरह से, इधर भी तैयारी है वह भी तैयारी हो रहे हैं । जब यह कंप्लीट तैयार हो जाएंगे तो डिस्ट्रक्शन होगा । इसीलिए कहते हैं यह दोनों का कनेक्शन है । वह गीता में भी है कि इसी ज्ञान यज्ञ से यह विनाश ज्वाला प्रज्वलित होती है जितना-जितना हम बनते जाएंगे प्योरिटी में तो उतना उतना वह विनाश ज्वाला प्रज्वलित हो करके अपना काम करेगी । तो यह सभी चीजें हैं जिसको अच्छी तरह से समझना है, यह अभी वही टाइम है जिसको कहा जाता है महाभारी महाभारत समय । इसी टाइम पर ही परमात्मा ने कहा है कि यदा यदा ही वह अभी यदा यदा वाला टाइम आया है । तो अभी आया है वह अपना काम कर रहा है अब उससे क्या अपना लेना है, वो तो जो लेंगे, हम भी उनके पीछे लगे हैं । अभी ऑफर भी करते हैं कि आओ, अभी बाप से लो, रिलेशन जोड़ो । आपका भी पिता है ना? खाली हमारा थोड़ी ही है, सारी दुनिया का पिता है ना, वह कहते हैं ना गॉड इज वन, तो गॉड ही तो पिता है न, अभी वह पिता आया है । कहते हैं अभी मेरे से अपना जन्म सिद्ध अधिकार लो और जो लेंगे वो लेंगे और जो ना लेंगे तो फिर डिस्ट्रक्शन तैयार है । या उधर होना है या उधर होना है, अभी क्या करना है वह समझो । तो यह तो हर एक को अपना समझ करके बाप से अपना जन्मसिद्ध अधिकार पाना है, अच्छा ।