मम्मा मुरली मधुबन             

. 012. Dukhon Ka Karan Kya Hai - 1


 

गुड इवनिंग, आज दिसम्बर की पंद्रह तारीख है, शाम को राजौरी गार्डन की सभा में आइये तो आपको मम्माजान की लास्ट मुरली सभा में सुनाएं क्योंकि कल प्रात: आठ बजे माँ की सवारी मेरठ में जा रही है तो अब सुनिए मम्मा जान की मुरली
 

रिकॉर्ड :

पितु मात सहायक स्वामी सखा तुम ही सबके रखवारे हो......
 

ओम शांति। इस जीवन से तो मनुष्य जानते हैं कि यह सुख की और दुःख की प्रालब्ध जीवन में कर्म के आधार से चलती है तो जरूर पहले कर्म है, उसकी जो प्रालब्ध है वह दुःख के या सुख के रूप से भोगनी होती है। तो सुख और दुःख का संबंध हो गया कर्म से। कर्म कोई ऐसी भी चीज नहीं है कि कर्म को कोई किस्मत कहेंगे। कई ऐसे समझते हैं कि जो किस्मत में होगा वह मिलेगा, इसीलिए यह सुख और दुःख को किस्मत समझ लेते हैं जैसे कि यह किस्मत कोई भगवान ने बनाई है या किसी और ने बनाई है इसी तरह से समझते हैं कि यह किस्मत में जो होगा। लेकिन यह भी समझना बहुत जरूरी है कि किस्मत भी किसने बनाई । किस्मत कोई परमात्मा ने या किस्मत कोई पहले से बनी पड़ी है नहीं, इनको ही तो मैंने बनाई ना। जिस सुख और दुःख को भोगता है मनुष्य उसी दुःख-सुख को बनाने वाला भी मनुष्य अपने को समझे, मैं मनुष्य। दुःख और सुख को बनाने वाला कोई परमात्मा तो नहीं कहेंगे ना। अपने कर्म और कर्म करने वाला भी मनुष्य इसीलिए यह हो गई रिस्पांसिबिलिटी अपनी। अपनी भी हर एक मनुष्य की अपनी। ऐसे नहीं कहेंगे किसी एक मनुष्य के कर्म की दूसरे पर रिस्पांसिबिलिटी नहीं, जो करनी सो भरनी यह तो कॉमन कहावत भी है और जो करेगा सो पाएगा। और गीता में भी वर्णन है की जीवात्मा, भगवान ने भी खुद कहा है जीवात्मा, ऐसे नहीं कहा है कि मैं तुम्हारा शत्रु हूं मैं तुम्हारा मित्र हूं ऐसे थोड़े ही कहा है, कहा है कि जीवात्मा अपना शत्रु अपना मित्र इसीलिए अपने साथ मित्रता और अपने साथ ही यह शत्रुता दुःख और सुख की करने वाला कौन हुआ, खुद अपने आप मनुष्य। इसीलिए जब यह बात इतनी सीधी और साफ है कि दुःख और सुख की रिस्पांसिबिलिटी भी मनुष्य खुद अपने आप है तो क्यों नहीं, कोई चाहते तो नहीं है कि हमें दुःख हो कोई चाहते हैं? चाहते ही नहीं है, दुःख आता है, जिस भी रुप में आता है उसको भगाने की कोशिश करते हैं, करते हैं ना। कोई लड़ाई झगड़ा खड़ा हो जाता है तो उसको निकालने कि मनुष्य कोशिश करते हैं। देखो हो रहे हैं ना, कोई रोग आता है देखो तो भी निकालने की कोशिश करते हैं कि यह निकले, कोई ऐसी तो चीज नहीं है कि कोई कहे आ,ए आए, रोग बैठे, बड़ा अच्छा है, इसमें कोई आनंद है। ऐसी चीजें आती है तो उनको खत्म करने की कोशिश की रखी जाती है, कोशिश उसी चीज की कि जो चाहिए कि नहीं। लगती है तो समझते हैं निकले। कोई ऐसी अकाले मृत्यु भी हो जाता है तो भी दुःख होता है, तो समझते हैं कि पता नहीं यह क्या, तभी तो देखो मनुष्य उसी आवेश में आकर के भगवान को भी गाली देने लग पड़ते हैं कि यह क्या कर दिया, भगवान ने किया। अभी किया किसने यह तुम्हारे आगे यह सब जो बातें आई तो यह भी तो समझे ना मनुष्य यह भी अकाले जो मृत्यु आया वह क्या जो भगवान ने किया? मेरे सामने जो रोग के रूप में दुख आया क्या भगवान ने किया? मेरे सामने ये जो लड़ाई झगड़े संसार के जितने भी दुःख के कारण है क्या भगवान ने किया? अरे! भगवान जिसको कहते हैं, देखो जब कोई भी दुःख आता है तो याद भी तो उसको करते हैं। कोई भी दुःख आता है, शरीर का रोग लगता है तो भी कहते हैं हे भगवान, यह दुःख को नाश करने के लिए याद भी उनको ही करते हैं। तो जब दुःख उसी ने दिया है तो जो दुःख देने वाला है उसको तो क्या करना चाहिए, बताओ...! जो अगर कोई दुःख देने वाला हो क्या उसको याद करना चाहिए? भला यह भी तो सोचना चाहिए जिसकी दुःख के समय ही याद आती है तो उनके लिए तो यह कह भी नहीं सकते हैं कि यह दुःख उसने दिया, यह भी तो समझने की बात है। याद भी उन्हीं को करते हैं तो जरूर है कि उनका संबंध हमारे साथ कोई दूसरी बात का है ना कि दुःख का। इस दुःख का कारण और उसकी रिस्पांसिबिलिटी की ये दुःख का जो कुछ है वह कोई और है ना, तो और तो कोई तीसरा तो है नहीं। एक मैं और दूसरा मेरा रचता, बस दो ही तो चीज है ना, एक मैं उनकी रचना या उनकी संतान कहो और दूसरा ठहरा बाप या तो बाप रिस्पांसिबल या तो मैं रिस्पांसिबल, लेकिन आता है जब मेरे पास दुःख तो मुझे दिखाइ ऐसे पड़ता है, दिखाई ऐसे पड़ता है, मैं भी जानता हूं लेकिन उसको पता है आत्मा को कि मेरा सुखदाता वह है, सुख के लिए उससे सहारा मांगते हैं हे भगवान, यह दुःख दूर करना भगवान, मरते हैं तो भी कहते हैं भगवान आयु बड़ी करन, देखो आयु के लिए भी मांग तो उनसे करते हैं ना तो आयु की भी, दुःख की भी, शरीर के रोग की भी और जो भी लड़ाई झगड़े कोई भी अशांति का कारण आता है तो भगवान् से , देखो कोई बच्चा ऐसा होता है थोड़ा तो भी उनको कहते हैं भगवान इसको सुमत देना, तो मत भी उनसे मांगते हैं, हर तरह की जो भी कुछ दुःख की जिससे कष्ट होता है तो कष्ट में याद भी उसको करते हैं और उनकी मांग भी उससे करते हैं। भला मांग करते हैं तो उसकी माना वही उसका दाता है ना और वही हमको सुख देने वाला है तभी मांग उससे करते हैं। तो उसकी माना कि उसकी निवृत्ति का भी जो इलाज है वह भी उनके पास है, ऐसे नहीं है कि सिर्फ ऐसे ही याद करते हैं, उसके पास इलाज है ज़रूर कुछ । तो यह सारी हमारी जो हैबिट भी चलती है, भले जानते हैं कि नहीं जानते हैं परन्तु तो भी देखो यह तो चलता है ना भगवान को दुःख के समय को याद जरूर करेंगे, ऐसे करे ना करे कोई लेकिन कभी भी देखो वो कहते थे उनको अपना वो जो गहने दिया वो मरी तो उसकी याद में वो भी मरी यही निकल न की हे गॉड ये क्या किया भगवान् ने किया तो समझो भगवान् याद आया किसी तरह से तो दुःख कोई भी आता है तो उनका नाम आता है, भले जाने ना जाने भाई गॉड है वह कौन है, क्या है पर निकलता है । तो यह भी समझने की बातें हैं कि आखिर भी जिसको हम याद करते हैं तो क्या उनका हमारे इन सभी दुखों से कौन सा, क्या वह दुःख का दाता है या उनका कोई कनेक्शन हमसे सुख का है यह तो हमारी याद से भी सिद्ध हो जाता है कि उनका कोई हमको दुःख देने का तो काम है ही नहीं । अगर देता तो याद क्यों करते हैं, जो दुःख देने वाला होता है उसके लिए क्या होता है, उसको कोई याद करना होता है? नहीं, उनके लिए तो आता है कि उनको तो पता नहीं क्या करें परंतु नहीं, भगवान के प्रति तो सदा और दुःख के समय तो खास प्रेम और वह बात उठती है कि जैसे वह हमारे बड़े मित्र कहें, क्या कहें, कह भी नहीं सकते हैं कि उनकी तो इतनी आती है दिल के अंदर । तो यह सब दिखलाते हैं कि उनका हमारे साथ सुख का संबंध जरूर है लेकिन यह दुःख के कारण कोई और है । अभी और तो कोई तीसरा तो है नहीं एक मैं और दूसरा वह तो जरूर मैं ही रिस्पांसिबल हुआ । तो जिस चीज के लिए मैं निमित्त हूं और मैं ही दुःख में दुखी होता हूं और पैदा भी मैं अपने से दुःख अपने आप करता हूं तो यह देखो कितनी बेसमझी । जिस चीज से चाहते हैं छुटकारा वह चीज में अपने लिए ही बनाता हूं, आश्चर्य की बात है ना? तो यह भी तो समझने की बात है कि जब मैं ही निमित्त हूं तो मैं अभी उनको भी क्यों मैं चाहता भी नहीं हूं कि मैं कोई दुखी होऊं, चाहना भी मेरी नहीं है लेकिन मैंने बनाया है तो जरूर मेरे बनाने में कहीं कोई भी बेसमझी है, उसका मुझे तरीके का पता नहीं है । एक तरफ चाहता नहीं हूं, दूसरी तरफ दुःख बनता भी जाता है तो यह भी तो मेरे पास कोई अनजानाई है मैं बेसमझ हूं किसी बात में जिस बात का मुझे पता नहीं लगता है । अभी ऐसी चीज का तो कैसे भी पता निकालना चाहिए ना, पहले क्या करना चाहिए? ऐसी चीज का जिसकोमैं कहता हूँ, ऐसी भी नहीं है कि मैं कहता हूं भले दुःख बैठा रहे, चाहता नहीं हूं और बनाने वाला भी मैं हूं तो भला यह कौन सी ऐसी बात है जिसको बनाता हूं, चाहता नहीं हूं तो भला क्या, वह भी तो मेरे से कुछ, मुझे नॉलेज होनी चाहिए मुझे समझ होनी चाहिए तो इसी समझ की तो पहले उनकी खोजना करनी चाहिए ना, परंतु आश्चर्य है कि आज तो देखो ऐसी बात की समझ में भी देखो कई बेचारे कितने बहाने देते हैं, फुर्सत नहीं है, समय नहीं है, टाइम नहीं है और क्या करें गृहस्थ संभालें, यह संभालें यह करें वह करें क्या करें इसीलिए वह देखते भी रहते हैं कि उसको ही संभालते ही तो उसी में तो दुखी हुए पड़े हैं और उधर जब चाहते भी हैं तो क्या उसी चीज की क्यों न खोजना करें, जिस चीज के लिए मैं ही रिस्पांसिबल हूं और मैंने ही यह अपना ये दुःख का रूप बना दिया, मेरा गृहस्थ, मेरा यह सब । तो मैंने ही अपने आप को दुःख के रूप में लाया है तो पहले तो उनकी खोजना होनी चाहिए पहले । बनाने के पहले तो उनकी जानकारी रखनी चाहिए कि यह जो चीज में बना करके जिसमें दुखी होता हूं उसके पहले मुझे उनकी समझ तो होनी चाहिए कि क्या यह बनाने से दुखी हैं सुखी है या इनमें भी कोई सुख की बात है या सुख हमारे लिए होता ही नहीं है या क्या इनका भी तो पता निकालना चाहिए ना । तो इसकी जानकारी के लिए तो हां अगर अपने आप को बिचारे जानते नहीं हैं परंतु जब भी बताया भी जाता है ना तो भाई यह चीज जो अपने दुःख का ही कारण है और दुःख मिटाने का कौन सा इलाज है, क्यों हुआ है, उस बात को जानना भी जीवन के लिए बड़ा आश्चर्य की बात है सुनाते भी, बिचारे देखो कितने अनजान, कोई भी, क्या करें, कैसे करें, तो इसी बात में क्या अपना गृहस्थ व्यवहार वगैरह फलाने ये कई फिर बहाने निकाल बैठते हैं । तो आश्चर्य लगता है कि देखो मनुष्य की बुद्धि और इतना दुखी होते भी कितनी बुद्धि एकदम इन बातों से हट गई हुई है जो समझ मिलते भी और दिखलाते भी हैं कि अपना अनुभव है, हमारा अनुभव है, हम अनुभव से उसी बात को समझ करके और धारण करके और अनुभव पा करके बतलाते हैं कि भाई ये अनुभव की चीज है । जरूर अनुभव हुआ है तब तो इतना कहने में भी आता है तो इन बात का प्रैक्टिकल में किस तरह से सुख की प्राप्ति हो सकती है जो बहुत काल की आस रखते आए हो अभी वह जानने वाला है, जो सुखदाता है वह स्वयं हमको अपना यह परिचय दे रहा है कि हे बच्चे तुम दुखी हुई हुए क्यों हो, कारण तो तुम्हारा यही है लेकिन तुम्हारे में ऐसी कौन सी ऐसी बात जिस बात का तुमको पता नहीं चलता है, जिससे तुम दुःख उठा रहे हो और तुम्हारे कर्म में दुःख का कारण बनता जा रहा है, वह कौन सी बात है वह आकर के समझो । देखो, इतनी तो ऑफर करते हैं, इतना हमको कहते हैं तो भी आश्चर्य देखो कि यह सुनते भी बिचारे कई तो ऐसे हैं कि जैसे बस यही चलना है । तो देखो यही बातें हैं जिसको कहा जाता है अहो! मम माया , देखो माया कितनी दुस्तर है जो एकदम पकड़ बैठती है और फिर चाहते भी और जिस चीज के लिए बिचारे इतना सारा दिन माथा खोटी भी करते हैं और वह चीज आ करके बाप सामने बतलाते हैं, सामने देते हैं कि बच्चे तुम्हारे सुख का कारण कैसा है और दुःख का कारण क्या है, यह सभी बातें बैठ कर करके समझाते हैं और अभी मैं आया हूँ तुम्हारे सभी दुःख को हरने और तुम को सुख प्राप्त कराने क्योंकि गाते भी उसको ऐसे ही है ना दुःखहर्ता सुखकर्ता । कभी ऐसे नहीं कहते हैं कि दुःखकरता सुखहरता नहीं, दुःखहर्ता तो जिस चीज को वह हरता है तो जबकि बाप कहते हैं कि बच्चे में आया हुआ हूं तुम्हारे दुःख हरने के लिए और हराऊंगा तो भी तो तुम्हारे से ही वह कर्म कराऊंगा ना जिससे तुम्हारे दुःख नष्ट हो जाएँ सिर्फ वो जो मैं समझाता हूँ, सिखाता हूं उसको समझ करके वह पुरुषार्थ रखो और उसी से अपने दुःख को नष्ट करो तो तुम्हारे दुःख को नष्ट करने की मैं बैठ करके शिक्षा देता हूं जिसको धारण करो तो तेरी चीज है ना, कोई मेरे लिए थोड़ी ही करते हो । तो कई तो बेचारे ऐसे कारण देते हैं जैसे कि उनके लिए करते हैं । जैसे कि भगवान के लिए करते हैं, तो भगवान के ऊपर मेहरबानी है कि कोई समय मिल गया तो कर लेंगे, कुछ टाइम निकल आया बाकि वह तो जरूर करना है ना । अरे! भाई खिलाना, पिलाना, यह सब जो बातें हैं उसी कर्म के बनाए हुए खाते में ही तो तुम मूंझ पड़े हो, उसमें ही तो दु:खी हुए पड़े हो, जबकि एक तरफ कहते भी वह दुःख से छूटे और दूसरी तरफ बच्चे जब दुःख से छूटने का तुम्हें मार्ग, रास्ता और यह सब बाप खुद बाप बैठ करके समझा रहे हैं तो भी देखो कोई की बुद्धि में बैठता है , इसी पर कहा जाता है देखो माया । ये पाँच विकार, माया भी बिचारे कई समझते नहीं हैं, वह समझते हैं यह धन, यह संपत्ति यह शरीर यह माया है इसलिए बिचारे कई समझते हैं चलो यहाँ आये ही नहीं, फिर ऐसे ऐसे उपाय परंतु बाप कहते हैं ऐसे नहीं है कि कुछ शरीर के कारण है तुम्हारा दुःख, या ये जो मेरी रचना यह तो अनादि है, वह कोई दुःख का कारण नहीं है । तुम्हारे में एक एक्स्ट्रा, अलग कोई चीज आई है जिनको ही पांच विकार, माया को कहा जाता है । माया विकारों को कहीं जाती है, कोई शरीर कोई विकार नहीं है, संसार विकार नहीं है, धन-संपत्ति विकार नहीं है, विकार एक अलग चीज है जिसके आने से फिर यह सभी चीजें जो हैं ना, वह दुःख के कारण बन चुकी हैं । नहीं तो यह सब पदार्थ, शरीर का यह पदार्थ, आत्मा के सुख के कारण है । उनके लिए संपत्ति, धन आदि यह जो संबंध आदि सब सुख के कारण हैं लेकिन उन सभी बातों का पूर्ण नॉलेज और ज्ञान ना होने के कारण यह सब चीजें दुःख में आ गई है इसीलिए बाप कहते हैं कि यह ऐसा नहीं है कि मैंने कोई ये रचना जो रची हुई है अनादि वो कोई दुःख के ही कारण है, नहीं, यह दुःख के कारण नहीं है, दुःख के कारण तुम बने हो तुम्हारे में कोई और अलग चीज आई । वह अलग चीज है यह माया पांच विकार, अभी उसी को तू निकाल तो फिर तुम्हारे यह सब कुछ जो कुछ दिया हुआ है या कहते भी हैं भाई भगवान ने दिया तो भगवान ने जो दिया वह तो सुख की चीजें दी ना । इसमें तुमने विकार डाल करके इन सभी चीजों को खराब कर दिया हैं इसीलिए बाप कहते हैं कि बच्चे अभी उस चीज को निकाल तो फिर तुम्हारा सुख का कारण हो जाएगा तो अभी यह हैं सारी बातें समझने की और इसके लिए तो फिर कोई फुर्सत कोई टाइम जो अपने लिए ही है अपना ही है कारण और अपने ही मिटाने की चीज है, कोई उनके लिए या कोई दूसरे के लिए तो नहीं है ना । अपना दुःख नाश करने की पूरी जड़ की बात और किस तरह से उसका नाश हो उनके लिए कहते भी हैं बार बार भाई आओ कुछ समझो तो भी, आज भी आए होंगे कोई नए, तो उन्हों को फिर भी देखो कहते हैं देखो कल भी आए थे, आते तो रहते ही हैं, कहते भी हैं फिर भी देखो बिचारे बस यहाँ से सुने और बात खत्म । ये नहीं जानते हैं की जिस चीज में हम छूटने के लिए सारा दिन माथा खोटी भी करते रहते हैं, काहे के लिए? सुख के पीछे तो सारा दिन, दिन रात यह सब लगे पड़े हो परंतु वह चीज हो नहीं पा रही है और अभी जबकि वह चीज है और देखते भी हैं अनुभव में, हाँ किन्हों के आ रही है चीज और वह पा रहे हैं तो भी देखो यही कहेंगे ना इसीलिए फिर भी यह इतना होते भी, आज भी फिर कह देते हैं, जो नए कोई आए हुए हों, उन्हों को खास कहते हैं क्योंकि फिर भी आए हैं ना, बाकी तो जो हैं सुनने वाले हैं, समझते रहे हैं, वह तो समझते रहे हैं तो उनको इतना जरूर कहेंगे कि कुछ अपने जीवन के लिए और अपने पूर्ण जो कुछ चाहना करते आए हो, उसी का कारण कौन सा है और किस तरह से उसका नाश हो उनके लिए कुछ आ करके अपना करो । ऐसे नहीं है कि क्या करें वह करें या यह करें, यह करना उन्हीं के लिए बिलकुल जरूरी है और उन्हीं के लिए ही है इसलिए इस करने को अलग मत समझो । यह समझते हो कि टाइम मिला, कुछ फुर्सत मिले या कुछ समझते हैं कि अभी थोड़े ही है, यह तो कोई बड़े बुड्ढे का काम है, यह खाली बूढ़ों के लिए ही है यह सब सत्संग आदि में कुछ अपना जीवन बनाने का । जीवन बनाने का बूढ़े का क्यों, जीवन तो चलती है, वो तो जो उल्टी- सीढ़ी चढ़ जाते हैं वह फिर दौड़ करके उतरे उससे अच्छा पहले ही क्यों नहीं सीढ़ी चढ़लें, पहले ही क्यों नहीं संभल जाए कि हमको जीवन कैसे चलानी चाहिए यह भी तो समझने की बात है ना । तो यह सभी बातें हैं इसीलिए उनको राय देंगे कि कुछ इस बातों को समझ करके अपने जीवन का, दुःख की जो जड़ है, दुःख का जो कारण है, उसको मिटाने का पूरा पूरा करना है । वह अभी बाप जो सबका पिता है । भगवान को तो सब अब बाप तो कहते ही है ना, अभी बाप है तो बाप के पास भी हमारा क्या है हक़ उसको भी समझना है । उनसे हक लेना है ना, खाली ऐसे ही थोड़ी ही उनको बस बाप कहने का बात है तो उससे हमको क्या हक़ मिलता है और उनके द्वारा हमें क्या प्राप्ति करनी है उसको भी तो कोई आ करके सुने और समझे तभी है बात । अभी इतना तो बताते हैं कि हाँ ये ऑफर तो करते ही रहेंगे, अभी भी देखो निमंत्रण और संदेश तो देते ही रहे हैं ना, पर जागते हैं कोटों में कोऊ, आगे भी ऐसे हुआ है तभी तो कहा है ना कोटों में कोऊ मुझे जानते हैं, भगवान ने खुद कहा है कोटों में कोऊ यानी वो आते भी अपने लिए कहता है कि मेरे आते भी मुझे कोटों में कौउ जानते हैं और वही हाल हो रहा है परंतु फिर भी कहते हैं कोई हो ना । कोई उनमें से भी कोटों में कोऊ ना मालूम कोटों में कोऊ हो तो निकल आए, तो हो सकता है कि अपना सौभाग्य बना ले । क्योंकि उनको कहते हैं कि कुछ आ करके इस चीज को समझते धारण करो । हाँ बाकी क्या समझना है क्या धारण करना है वह तो फिर आने से सभी बातों को विस्तार से समझने की है इतने थोड़े समय में तो यह सब बातें नहीं समझाने में आ सकती हैं । अच्छा अभी बहुत सुना भी है और कुछ बैठे भी हैं थोड़ा इनका टाइम भी हुआ है इसलिए अभी दो मिनट साइलेंस करके इसी बाप की याद में बैठ करके फिर भले समाप्त करो ।