मम्मा मुरली मधुबन             

013. Gruhastha Me Rahte Kamalpushpa Samaan Jeevan


हेलो, आज रविवार है, जून की सात तारीख है । प्रातः क्लास में मम्मा की मुरली सुनते हैं ।
रिकॉर्ड:

माता माता माता तू सबकी भाग्य विधाता
ओम शांति, जब अपने परम पूज्य बाप की महिमा को जाना है तो साथ-साथ अपने भी महत्व को समझा है, समझा है ना हर एक ने अपने अपने महत्व को? ऐसे नहीं है कि जिस बाप के अभी हम बने हैं उनकी महिमा और साथ-साथ अपने महत्व को भी हम उनकी महिमा के साथ-साथ जानते हैं । तो अपना भी नशा चढ़ना चाहिए कि हम भी ऐसे बाप से अपना हक लेने वाले वंशावली हैं । उनकी वंशावली है तो उनकी वंशावली को कम नशा होना चाहिए? तो वंशावली, हम किसकी वंशावली हैं तो हम वंशावली को भी अपना नशा रहना चाहिए कि हम उस बाप के हैं जिसके द्वारा सर्व प्राप्तियां अभी प्राप्त करते हैं फिर कोई भी प्राप्ति की आवश्यकता नहीं रहती है । ऐसी कोई भी प्राप्त वस्तु नहीं रहती जिसको फिर प्राप्त करने के लिए कुछ ख्वाहिश भी रहे । भगवान को भी याद करने की जरूरत नहीं रहती है । तो इतना हम इस बाप से अपना हक कहें, अपना वर्सा कहें, पा करके ऐसे हम ऊँच बनते हैं । तो अपना भी नशा दिमाग में रहना चाहिए कि हम इस बाप के द्वारा अपना इतना ऊंचा हक पाने वाली वंशावली है तो कम नहीं है । सब जितने भी वंशावली आए हैं, जितनी भी होती आई हैं उनमें सबमें अभी हम ऊँचे क्योंकि ऊँचे ते ऊँच भगवन की हम वंशावली तो हम भी तो ऊँच हो गए ना । तो ऊंचे ते ऊँच भगवन सिर्फ यह बैठकर महिमा नहीं गानी है सुननी है लेकिन साथ-साथ अपने भी महत्व को समझना है लेकिन महत्त्व समझने के पहले अपने को देखना भी है की बरोबर हम उनके फरमान और आज्ञाओं के ऊपर पालन करने वाले हैं तभी तो नशा चढ़ेगा ना । अगर हम प्रैक्टिकली जो आपका फरमान है और जो उसकी आज्ञाए हैं उनका पालन करते रहते होंगे तो नशा बैठेगा और वंशावली कहने का भी हक भी तभी रहेगा । बाकी ऐसे ही नहीं है कि खाली यहां बैठे तो बस हो गए । नहीं, प्रैक्टिकल चाहिए ना । हम हैं सच्चे बादशाह के सच्चे बच्चे तो हमारी फिर प्रैक्टिकल जीवन भी उनके फरमान और आज्ञा के अनुसार प्रैक्टिकल चाहिए । तो प्रैक्टिकल जो होंगे उन्हों को अंदर से लगेगा और नशा भी उनको बैठेगा की सच-सच हम उस बाप के अभी सच्चे हैं, उनके पूरे फरमान और आज्ञाओं के ऊपर चल रहे हैं । तो यह तो हर एक के दिल की शायदी हर एक को अपने से आती होगी और हर एक को अपने से पूछना है, लगती है कि बरोबर जो बाप के फरमान और अज्ञाएं हैं उनके ऊपर हम अपना पूरा पूरा अटेंशन दे करके अपनी पैरवी करने का पूरा प्रयत्न रख रहे हैं और रखना चाहिए । और ऐसा भी नहीं है कि कोई डिफिकल्ट है, कोई मुश्किल है? बहुत मुश्किल क्या है बताओ । क्या कहता है कोई मुसीबत की बातें थोड़े ही कहता है । उनकी महिमा ही है मुश्किल को आसान करने वाला ऐसे गाते थे ना भक्ति मार्ग में । जबकि वह मुश्किल को आसान करने वाला है तो फिर वह क्या हमको मुश्किल देगा कि मुश्किल ऐसे करो । कोई मुश्किल बात नहीं है बिल्कुल आसान और कमल फूल समान, यही है बाप जो हमको बिल्कुल घर गृहस्थ में रहकर के और हम अपना इतना ऊँच स्टेटस बनाएं उसकी बैठकर के युक्ति बतलाते हैं । ऐसी किसी ने नहीं बतलाई, बतलाई? जो भी मार्ग बतलाने वाले हैं देखो सन्यास मार्ग है तो भी घरबार छोड़ने की बात रही लेकिन इसमें तो कोई ऐसी बात नहीं है । इसमें हमको कंप्लीट भी बनाते हैं बाप और फिर सहज ही सहज, कुछ छोड़ने का नहीं है । बाकी छोड़ना, गंदगी छोड़ना, कोई छोड़ना थोड़ी ही कहा जाता है । पांचों विकारों को छोड़ना गंदगी छोड़ना तो गंद किचड़ा तो घर से बाहर निकाला जाता है ना, रोज सफाई नहीं करते हो घर की? किचड़ा निकालते हो, घर का किचड़ा गंद जो होता है साफ सूफ करना उनको थोड़ी ही कहेंगे कि ये चीज हमने कोई बहुत अच्छी खोई या हमने कोई छोड़ी, उसको छोड़ना तो कहेंगे नहीं, तो यह भी तो एक्स्ट्रा चीज हमारे में गंदगी आई हुई है ना । तो अगर बाप भी कहते हैं हमको निकालने के लिए अथवा छुटकारा पाने के लिए तो हमारी कोई काम की चीज या हमारी कोई ऐसी चीज है जिसके बिना हमारा गुजारा नहीं हो सकता है ऐसी तो बातें है ही नहीं । यह तो एक्स्ट्रा आई, थी नहीं । हम बड़े स्वच्छ थे और यह चीजें हमारे में थी ही नहीं । ऐसे नहीं कहेंगे कि यह अनादि थे, सदा से चले आए हैं आज कैसे छूटेंगे ऐसे भी नहीं कोई सोचे । कई सोचते हैं यह तो सदा से ही, यह तो देवताओं में भी चली आई तो आज कैसे छूटेगी परंतु यह बड़ी मूर्खता हो जाएगी अगर कोई अभी भी ऐसे समझते हैं तो ऐसा नहीं था । यह हमारे जीवन में, मनुष्य जीवन में जिन्हों का नाम देवता था, देवता कोई खास तो नहीं थे ना, हम ही मनुष्य थे । कोई तीन आंखों वाले, या अठारह भुजाओं वाले मनुष्य नहीं थे जिन्हों को देवता कहने में आता था नहीं, हम ही मनुष्य देवता कहलाते तब जब यह विकार नहीं थे, स्वच्छ थे हम । स्वच्छ थे तो देवता कहलाते थे अभी स्वच्छ नहीं तो असुर कहलाते हैं बस फर्क है ना इसी का । तो यह तो एक्स्ट्रा चीज़ आई ना हमारे में, तो आई अभी उसी को निकालना है । तो कोई काम की चीज नहीं निकालते हैं, कोई काम की चीज छोड़ते नहीं है, न बाप का फरमान कोई काम की चीज को छोड़ने का है । वह तो कहते हैं घर गृहस्थ, यह तो अनादि हैं । घर गृहस्थ में तो देवताएं भी थे, वो तो मैं छुड़ाता भी नहीं हूं । अगर छुड़ाता हूं तो उसमें जो गंद किचड़ा आया ना उसकी मैं स्वच्छता ले आने के लिए फरमान करता हूं । यह जो गंद किचड़ा एक्स्ट्रा है इसी से तुम्हारा घर गृहस्थ बिगड़ा है, नहीं तो तुम्हारा घर गृहस्थ तो बहुत अच्छा था, उनका नाम ही गृहस्थ था । उनका नाम ही गृहस्थ व्यवहार प्रवृत्ति जिसका नाम था तो प्रवृत्ति में पवित्रता थी तभी प्रवृत्ति नाम था । अभी प्रवृत्ति थोड़ी ही है, ऐसी प्रवृत्ति तो जनावर भी चलाते हैं । बच्चे पैदा करना, उसको खिलाना पिलाना, बिजनेस धंधा करना, वह चिड़िया नहीं करती है, देखी है ना । जाएगी, ले आएगी, अपने बच्चों को खिलाएगी, सब करेगी इतना काम धंधे तो वह भी जानते हैं । अपने बच्चों की पालना करना, यह करना, वह करना इतना काम तो जनावर, पशु-पक्षी भी कर देते हैं । तो यही प्रवृत्ति समझते हो कि बच्चे पैदा करना, उनको खिलाना-पिलाना, उनकी पालन करके बस जीवन निभाई, बस इतना ही हमने काम किया तो यह प्रवृत्ति का फर्ज अदा किया । ऐसे समझते हैं ना कि यह फर्ज है । बाप कहते हैं बच्चे इतना ही थोड़ी ही फर्ज है, इतना फर्क तो पशु पक्षी जानवर भी कर लेते हैं फिर क्यों उनका गाया नहीं करते हो कि वह फर्ज अदा करते हैं, यह तो सब करते हैं । यह तो हर एक चीज का चलता ही है तो तुमने भी इतना ही काम किया तो इन्हों को ही थोड़ी समझना है कि फर्ज अदा । फर्ज अदा तब थे जब प्रवृत्ति की लॉ मुजीम जिसको ईश्वरीय नियम कहा जाए और प्रवृत्ति का जो आदर्श था, उसी के लॉ मुजीम जो तुम फर्ज अदा करते थे ना वह फर्ज अदा था । जभी तो तुम सदा सुखी भी थे । अभी फर्ज अदा पूरा नहीं करते हो तो दुखी हो, अशांत हो और कई बातें जो हमारी प्रवृत्ति में होनी चाहिए ना होने के कारण दु:ख और अशांति आता है । तो यह सभी कारण है इसीलिए बाप कहते हैं कि मैं तुम्हारी प्रवृत्ति को ही बनाने की युक्ति बतलाता हूं और प्रवृत्ति का ही आदर्श क्या है, वही बनाने का में लक्ष्य देता हूं इसलिए मैं कुछ बिगड़ता थोड़ी हूं । कुछ बिगाड़ा है? कुछ नहीं, लेकिन वही चीज हमारी लायक बनाता है जो हमारी अभी लायक नहीं है, गिर चुकी हुई है, उसको बैठकर के बाप अभी लायक बनाता है तो ऐसे बाप के द्वारा अपनी प्रवृत्ति का आदर्श ऊँच बनाना और उनकी पूरी जो कुछ है आज्ञा या फरमान उसी को ही पूरा पालन करना । हमारी प्रवृत्ति बिगड़ी है कोई उसकी प्रवृत्ति नहीं बिगड़ी है । बिगड़ी भी हमारी है, हमारी ही बिगड़ी को संवारने के लिए वो बैठ करके यह यत्न बतलाते हैं इसीलिए कहते हैं आप अपने बनाने के लिए क्यों नहीं कोशिश रखते हो । बिगड़ी भी आपकी ही है, मैं तो और आया हुआ हूं तुम्हारी बनाने के लिए, कोई मेरा तो कुछ नहीं बिगड़ा है । मेरे में तो कोई फर्क नहीं पड़ता है । ना मैं बिगड़ी में आता हूं ना संवरी में मुझे आना है । बिगड़ा भी तेरा है, संवरना भी तेरा ही है और मैं हूं सवारने वाला इसीलिए तू ही जो बिगड़ी है जिसकी वह अपने संवारने के लिए क्यों नहीं यह ऊँच पुरुषार्थ करते हो तो करना चाहिए ना और बड़ी सहज बातें हैं इसीलिए ऐसी सहज बातों को अच्छी तरह से प्रैक्टिकल में लाने के लिए पूरा चलना चाहिए । बाकी इतना ही समझना कि बस हमने बच्चे पैदा किया, उनको खिलाया पिलाया, लायक किया, शादी किया फलाना किया, उनको लायक लगाया बस यह तो सबके लग जाते हैं । जानवर, पशु-पक्षी सब लग जाते हैं तो यह कोई फर्ज अदा थोड़े ही है । इसमें अपना मान या इसी में ही अपना यह समझना कि हमने बहुत कुछ कर लिया, हमने सब कुछ अदा किया या हमने सब कुछ गृहस्थ की पालना पूरी की, इन्हीं को ही थोड़ी कहा जाता है । नहीं, वह तो तभी थी जब उनमें कोई भी ऐसी दुःख और अशांति की या कोई भी हमारी जो ईश्वरीय नियम के मुताबिक हमारे में पूर्ण होना चाहिए, उनमें कोई ऐसी बातें नहीं होती इसीलिए बाप कहते हैं अभी वह चीज बनाने के लिए अभी मैं प्रयत्न बतलाता हूं । तो मैंने कंप्लीट जो तुमको बनाया, तुम्हारी प्रवृत्ति अथवा तुम्हारा गृहस्थी व्यवहार जिसको कहा जाता है वह जो मैंने आदर्श रूप में पूर्ण बनाया था, वह कैसे बनाया था उसकी बैठ करके अभी शिक्षा दे रहे हैं और उसको ही बनाना है, तभी हम भी अपने प्रवृत्ति में पूर्ण सेटिस्फाई रहेंगे । अभी सेटिस्फाई नहीं है ना? हैं ? कोई ना कोई बातों की अशांति और दुःख आता ही है इसीलिए बाप कहते हैं कि कंप्लीट यथा राजा रानी तथा प्रजा सब, सारे संसार की तत्व आदि भी, जानवर पशु-पक्षी किसका भी हम दुःख कभी ना सुने, ना देखें ऐसा संसार मैं बनाता हूं और ऐसे संसार में ही तुम सदा सुखी कैसे रहो उन्हीं की ही मैं बैठ करके यह यत्न दे रहा हूं । तो यह लगता है ना, कुछ आता है ना ख्याल में अच्छी तरह से? भूलते तो नहीं हो? ऐसे तो नहीं कि अभी तक किन्हों को कोई संशय हो ऐसी बातों में कि यह इंपॉसिबल है, जैसे कई समझते हैं कि यह तो कभी ऐसा संसार, दुनिया हो ही नहीं सकती है जिसमें पूर्ण, सदा के लिए सुख हो । ऐसे कई समझते हैं कि यह इंपॉसिबल है लेकिन इंपॉसिबल अगर है तो फिर ऐसी आशा क्यों रखते आते हैं कि हम सदा सुखी हैं । फिर तो समझना चाहिए ये आस भी फिजूल है । जो चीज इंपॉसिबल है, कभी हुई नहीं है तो फिर आज भी हम होने के लिए ऐसी आस क्यों रखते हैं । इतने बिचारे माथा खोटी करते हैं, दुनिया के इतने नेताए, दुनिया के इतने बड़े-बड़े यह सब, इतनी माथा खुटी करते चले जा रहे हैं तो उसी आस में जा रहे हैं ना कि विश्व की शांति हो, विश्व पर सुख हो, विश्व पर सब कुछ अच्छी तरह से हो, सब खाने-पीने रहने, चलने में सब में सुख ही हों, यह सब प्रयत्न काहे के लिए हैं जिसके ही प्रयत्नों में ही सब चले जा रहे हैं लेकिन कभी तो कंप्लीट भी होनी चाहिए न कि खाली करते-करते ही चले जाएंगे यही दुनिया होगी । कभी दुनिया कंप्लीट भी होनी चाहिए जिसमें फिर हमको इन बातों के यत्न करने की आवश्यकता ही ना हो, ऐसी भी कभी दुनिया की स्टेज होनी चाहिए ना । तो बाप कहते हैं का है, ऐसे नहीं कहेंगे नहीं है । इन्हीं का नाम हेवन, इन्हीं का नाम स्वर्ग, सभी भाषाओं में कहते हैं ना । हेवन कहते हैं, स्वर्ग कहते हैं, विश्व कहते हैं सभी भाषा वाले अपने अपने भाषा में कहते हैं तो चीज है जरूर ओई लेकिन कब, कैसे, किसने बनाई, किस तरह से बनती है, वह अभी अपन जानते हैं और उसका प्रेक्टिकल अभी अनुभव करते जा रहे हैं और उसी के लिए अपना पुरुषार्थ रखते हैं । तो नई बात है ना, भले सब कहते आते हैं उसी के भेंट में नई नहीं हैं लेकिन वह प्रैक्टिकल चीज किसी ने नहीं बनाई इसीलिए कहते हैं अभी यह बनाने वाला स्वयं सर्व समर्थ बाप आया हुआ है इसीलिए कहते हैं ऐसा काम और किसी नें नहीं किया इसीलिए उसके भेंट में कहते हैं कि ये अलग है । ऐसे मत समझो जो दुनिया काम करती आई है या जो दुनिया में कई करते आए हैं ये भी उन्हीं में से ही एक है, ऐसा ख्याल ना करें कोई । यह बिल्कुल नई बात है और नया बनाने वाला है । वह आया ही अभी है बनाने के लिए, आया ही नहीं था आज से पहले कभी बनाने के लिए । आया था तो इसी टाइम पर कल्प पहले ही आया था और ऐसे ही उसने, जब आता है तब ऐसे बनाता है उनका और कोई तरीका है ही नहीं । इसलिए कहते हैं मैं जब-जब आता हूं, तब-तब ऐसा ही बनाता हूं मेरे बनाने का तरीका यही है और इसी तरीके के कारण ही मेरा यह तरीका गुप्त रहता है । गुप्त है ना, अभी बनाते प्रैक्टिकल भी कोई जान नहीं सकता है । परंतु मैं जब आता हूं तभी ऐसा ही काम करता हूं इसीलिए मेरा यह काम का पार्ट ही गुप्त रहता है इसलिए कोई शास्त्रकार भी इस चीज को प्रेक्टिकल में कैसे रखें और क्या करें उन्हें आती ही नहीं है तो फिर जो शास्त्र पढ़ते हैं ना तो वह भी ऐसे ही ऐसे पढ़ते आते हैं । तो प्रैक्टिकल तो कोई इस चीज को जानते ही नहीं है कि मैंने कैसे प्रैक्टिकल चीज बनाई थी वह तो मैंने ही बनाई मैंने ही देखी, मैंने ही समझी और मेरे पास ही रहती है इसीलिए और कोई इस चीज को जानते ही नहीं हैं । तो ऐसे ही बनाते हैं उनका और कोई नमूना नहीं है । उनका और क्या नमूना हो सकता है । बनाना मनुष्य को है, उनको खुद अपने को नहीं बनाना है, बनाना हमको है, हमारे लिए ही उनको इतना तरीके यह सब लेने पड़ते हैं इसीलिए उनको तरीका लेना है हमारे को बनाने के लिए तो हमारे नमूने से बनाएंगे ना । अपने नमूने से, सर्व समर्थ है तो अपने शक्ति या अपने तरीके से थोड़े ही बनाएंगे, बनाएंगे हमारे तरीके से क्योंकि हमको कर्मों से ही बनना है इसीलिए उनको हमारे नमूने से बनाना पड़ता है कि कैसे, मनुष्य कैसे बनता है तो हमारे नमूने से बनाते हैं क्योंकि हम तो कर्म के आधार पर बनने वाली चीज है, हम दूसरे तरीके से बन ही नहीं सकते हैं । ऊपर से ऐसे ही बनके आएं या कहां से कैसे ही बन जाए, नहीं हमारा नमूना ही ऐसे बनने का है कर्मों से क्योंकि हम कर्म क्षेत्र पर आने वाली आत्माएं जो जीव के साथ संबंध रखती है, जीवात्माएं, वो बनती ही कर्मों से हैं । वह बिगडती भी कर्म से हैं, बनती भी कर्म से ही हैं, हमारा है ही कर्म का चक्कर इसीलिए हम कर्म के चक्कर में आने वाली आत्माओं अथवा जीवात्माओं को बनाने के लिए उसको उसी नमूने से बनाना पड़ेगा और कोई तो तरीका है नहीं । इसीलिए कहते हैं कि यही नमूना है मेरा और यही तरीका है और कोई तरीका है ही नहीं और उसी में ही जो जानते हैं जो समझते हैं जो मेरे द्वारा बनते हैं, वही बन करके अपना सौभाग्य लेते हैं । तो लेने वाले हो ना सौभाग्य, भूलते तो नहीं हो न ? देखना, यहां तो हां हां करते हो, फिर यहां से बाहर थोड़ा जूता पहनेंगे न, बस वहां तक वो नशा गिरने लग जाएगा, सीढ़ी की जितनी- जितनी वो उतरते जाएंगे, वह नशा भी उतना उतना कम होता जाएगा । ऐसा होता है बहुतों का बतलाते हैं । ऐसे नहीं कहते हैं खास कोई किसी के लिए लेकिन ऐसा होता है कि हां बैठते हैं, सुनते हैं, तब तो जरा पारा चढ़ता है फिर पारा उतरता भी जल्दी ही है परंतु ऐसा होना नहीं चाहिए । होता है, क्यों होता है क्योंकि ये माया का भी थोड़ा है ना अभी । अभी तो माया के बीच में बैठे हैं इसीलिए माया जरा वो पारा चढ़ा रहने में जरा अपोजिशन करती है और करना उनका भी फर्ज है जरूर । वह ना करें तो फिर युद्ध कैसी गाई जाए हमारी भी युद्ध, हम किसके साथ हैं तो भी हमारी अपोजीशन तो जरूर होगी, लेकिन इसका मतलब होगी तो हम हारते ही रहे यह भी बात नहीं है ना, हमको उससे ऊपर अभी विन भी करनी है । यह ख्याल रखना है कि जितना भी अभी है, अगर हम हार खाते रहेंगे तो हारे ही जाएंगे इसीलिए जीतने की बाजी भी अभी ही लगानी है तो अपनी जीत प्राप्त करने के लिए पूरा पूरा पुरुषार्थ रखना है, समझा । इसलिए ऐसा यत्न करते हिम्मत रखते कुछ भी आए विघ्न उनकी कोई परवाह न करते अपना चलते चलना । एक भरोसा एक बल गाया हुआ है ना इसीलिए अपना ऐसी रफ्तार से चलते चलने में ही कल्याण है । अच्छा, कल्याणकारी बाप को याद करते, सदा आशिक रहते हो ना? खुश और राजी रहते हो ना? बताओ । सब राजी खुशी में हो ना, खुश शराफत पूछते हैं । अच्छा, मुंबई की फुलवारी । यह तो हमारे लखनऊ के हैं । अच्छा, सब राजी खुशी में हो गोप और गोपियां, नहीं तो गोपियां कहेंगी क्यों मम्मा खाली एक तरफ देखती है । नहीं, आपसे पूछते हैं, हमजींस से, तो देखो अभी बेहद बाप से अपना पूरा-पूरा हक लेने के लिए पूरा पुरुषार्थ रखते रहो और रखते चलो । ऐसा बाप फिर नहीं मिलेगा । ये प्राप्ति फिर नहीं होगी, होने का टाइम अभी है इसीलिए अपना लगाते चलो । नुकसान क्या पड़ता है यह तो बताओ भला । नुकसान ही क्या पड़ता है, फायदे की ही बातें ही मिलती हैं फिर क्यों अपना उसमें क्यों अपना वहम संशय लाते अपना क्यों टाइम वेस्ट करना चाहिए इसीलिए जब आया है बाप तो उससे अपना लेने में पूरा पुरुषार्थ रखते रहो । कहीं बिचारे मूंझते हैं, पता नहीं कहते हैं परमात्मा आया है, कैसे समझे क्या है, शक्ल वकल क्या है, क्या है, शक्ल तो मनुष्य की उसमें आता भी साधारण अति साधारण तन में है इसीलिए बेचारे मूंझते हैं, हमतो उनको कहते हैं चलो समझो परमात्मा आया है नहीं आया है, चलो विनाश होगा या नहीं होगा, चलो जो कुछ होने का है या नहीं होने का है लेकिन तुम्हारा बिगड़ता क्या है? जो कुछ तुमको मिलता है उसमें ही तो बताओ तुम्हारा बिगड़ता क्या है? अगर कुछ बिगड़ती हो तो ख्याल करो कि पता नहीं परमात्मा है या वह बोलता है या नहीं, फिर हम माने उसकी या ना माने । वो इतना विचार भी उसमें किया जाता है जिसमें हमारा नुकसान भी कुछ होता हो लेकिन हमारा बिगड़ता क्या है । हम अपने प्रैक्टिकल जीवन को देखें तो हमारा बिगड़ा क्या है बताओ कोई । किसी ने भी बनाई है, जिसकी भी नॉलेज से बनी है, जिससे भी हमारी जीवन बनी है अच्छी बनी है ना, फायदा हुआ है ना, अच्छी बातें मिली है ना, लाइफ अच्छी रही है ना, तो नुकसान क्या पड़ा है । किसी ने भी बनाई है, चलो परमात्मा है या नहीं है, किसी ने भी बनाई है हमारा बिगड़ा ही क्या है, तो अभी इस पर तुम्हें मूंझने की क्या बात है । इसी में ही मूंझ करके हट जाना यह तो बड़ा महामूर्ख गिना जाएगा । भाई तुम्हारा बिगड़ता क्या है यह तो कोई बतलाए । हम अपने जीवन को देखें तो हमारा बिगड़ा ही क्या है तो हम हटे ही क्यों । कौन भी हो, चलो परमात्मा नहीं है, थोड़े समय के लिए सारा ज्ञान भुला दो, ना परमात्मा है, ना विनाश होगा, ना कुछ होगा कुछ नहीं है, चलो थोड़े समय के लिए सब ज्ञान भूल जाओ फिर देखो क्या रहता है, जो रहता है वह खोने की चीज है? जो बाकी जा करके रहता है, चलो परमात्मा नहीं है, विनाश नहीं होगा, कुछ नहीं, यह सब बातें झूठी है, चलो थोड़े समय के लिए एक सेकंड सारा ज्ञान भुलाके फिर भी देखो तो ज्यादा क्या है? मिलता ही है, लाइफ कितनी अच्छी बन गई है, लाइफ में क्या मिला है, लाइफ हमारी जरूर इसी जीवन में अगर इतना है और इसी जीवन में हमको इतना आधार और सहारा मिला है जिस चीज से तो इसका जरूर है कि हम जो करते हैं उसका भविष्य भी जरूर होगा । चलो हम भविष्य में वह ना माने की देवता होंगे, लक्ष्मी होंगे, नारायण होंगे ना होंगे, कुछ नहीं, चलो लेकिन जो करते हैं उसकी रिजल्ट तो जरूर होगी ना । तो भी हमारा बिगड़ता क्या है । हमें तो आश्चर्य लगता है जब इसी तरह की छोटी-छोटी बातों में कि पता नहीं कैसे समझे, यह होगा, विनाश होगा, परमात्मा है या नहीं है इसी बातों से अपने को क्यों हटाते हैं यह मुझे आश्चर्य लगता है । हमारा बिगड़ा ही क्या है? हमारा जाता ही क्या है? हमें तो और ही मिलता है ना, तो जो चीज मिलती है जो प्रैक्टिकल लाइफ में चीज आती है उसमें तो हमको दृढ़ रहना चाहिए ना । उसी के कारण हम हट जाए तो उसको क्या कहेंगे महामूर्ख । मूर्ख तो पहले ही हैं लेकिन फिर भी इतना प्रैक्टिकल चीज देखते, कहते हैं कुछ आंखों से देखें, कुछ प्रैक्टिकल देखें तो प्रैक्टिकल देखो ना, प्रैक्टिकल जो जीवन में चीज आती है, आप हरेक अपने अनुभव से पूछो, कुछ तो जीवन में समझते हो ना पहले क्या कहते थे अभी क्या हैं, देख लो फलाने फलाने फलाने किसके नाम कितने लें तो देख लो जो जो जिन्हों के जीवन में परिवर्तन आए हैं और सच सच आए हैं वो अपना देखें, जिन्होंने सच पाया है बाकी तो जो आते हैं खाली ऐसे ही थोड़ा बहुत उसकी तो बात ही नहीं है लेकिन सच सच । हम तो अपने अनुभव के आधार से कहेंगे ना तो हमारा क्या बिगड़ा है, हम अपने से पूछते हैं कि हमारा गया ही क्या है, हमारा बिगड़ा ही क्या है । बहुत अच्छे हैं, बहुत अच्छे जीवन, बहुत अच्छे जीवन में रोशनी मिली है, अच्छी जीवन बनी है, उसका असर आया है और प्रैक्टिकल आया है तो हमारा बिगड़ा ही क्या है । तो क्यों हम फिर ऐसी बातों से फिर हटने की कोई बात आती है? चलो भगवान ने ना बनाई किसी ने भी बनाई, बनाई ना? बनाई ना मतलब बनाई फिर बनाई तो फिर बाकी क्या है । उसी में मूंझना या फिर उसी में हटना या उसी में थकना या उसी पुरुषार्थ ढीला करना ऐसी बातें क्यों होनी चाहिए । इसी पर आश्चर्य लगता है जब कई ऐसे हट जाते हैं न चलते चलते तभी उसी के ऊपर तरस पड़ता है कि हाय, ऐसी अपनी ऊँच में ऊँच तकदीर बनाने का यह सब तरीका जो मिल रहा है इससे ऐसे क्यों हटते हैं । कौन भी हो बनाने वाला, कुछ हो न हो लेकिन हमारी जीवन तो बनती जा रही है और बनती है उसका यह तो जरूर है कि जो हम करते हैं सो पाएंगे भी जरूर, इसमें हमारा जाता ही क्या है । तो भी पता नहीं क्यों हट जाते हैं, ठंडे हो जाते हैं, कभी यह हो जाते हैं, हाँ, होते हैं ना? कैसे? ठंडे होने वाले जरा सोच लो, थकने वाले जरा सोच लो, संशय में आने वाले जरा सोच लो, मूंझने वाले जरा सोच लो तो इसमें क्या बिगड़ता है इसीलिए जरा सावधान हो जाओ और अपने बाप से पूरा-पूरा लेने में पूरा रहो । अच्छा, अभी टाइम हुआ है आप लोग भी सवेर में आते हो बहुत बैठते हो, थक जाते हो, जाने में भी तेरी पड़ती होंगी । अगर कोई ऐसी दिक्कत हो, टाइम वाईम कुछ हो तो सवेर कर सकते हो, हम तो सवेरे आ सकते हैं कोई ऐसी बात नहीं है इसलिए जिसको जिस तरह से क्योंकि अपना है ही सहज मार्ग और घर गृहस्थ में रहते सब, तू भी सबकी क्योंकि मेजॉरिटी होती है ना इन सब बात में । एक दो की तो बात को तो , सो भी जो सहज सबकी बने, ऐसा कुछ हो तो बताओ बाकी यह पढ़ाई बड़ी अच्छी है । इसकी स्टेटस बड़ी अच्छी है, इससे बड़ा बल यह अच्छा मिलता है यह तो अनुभव के आधार से देखते जा रहे हैं । देखने वाले आते हैं दिखाई ना? बाबूराम नाम है न ? अच्छा यह बाबुराम, यह तो हमारा फूल राम है ये जयपुर ये लखनऊ । बोम्बे भी ऐसा स्थान है जहां कहां से कुछ ना कुछ आते जाते रहते हैं यह भी बड़ा स्थान है, आना जाना बहुत करके होता है । यह भी अच्छा है एक दो के भाई बहनों से यह देवी परिवार हो गया ना, उन्हों के द्वारा एक दो का अनुभव लेना देना, यह अच्छा है । इससे और भी तरक्की होती है फिर आते हो कुछ सुनते कुछ सुनाते भी होगे है ना? अच्छा, हम बहुत राजी खुशी में है । खुश, खैराफत सुनाने के लिए आते हैं कि कहीं इंतजार ना करें, हम बहुत राजी खुशी में हैं, अपनी नब्ज सबको दिखाने के लिए आते हैं । देखने भी आते हैं, दिखाने भी आते हैं कि हम बहुत खुशराजी में हैं कोई फिक्र नहीं और आप सब राजी खुशी में रहते चलते अपना कदम आगे बढ़ाते चलो । बाकी तो यह सब खाता भी तो चुक्तू करते ही चलना है कुछ योगबल से कुछ कर्म भोग से, कुछ किसी तरीके से किसी तरीके से कई जन्मों का खाता है इसीलिए उनको चुकाने में हर तरह से कोशिश करनी है इसीलिए कोशिश करते अपना खाता चुकाते क्योंकि आगे खाता ले ना जाए । वो डंडों से चुकाना वो बड़ा इंसल्ट की बात है इसीलिए यह विचार है कि डाँडो से ना चुकाएं , यह भोगना भी अच्छी है बजाय डंडों के । डंडा तो इंसल्ट है न, इन्सल्ट से अचा है ये भोगें क्योंकि भोगने में फिर भी सहारा बल उसमें हिम्मत आती है भोगने में तो नहीं आएगी ना, सजाओ से भोगने में तो जरा कठिन होता है और इंसल्ट फील तो इसीलिए समझते हैं कि कुछ योग बल से कुछ पुरुषार्थ से मतलब यहां ही चुकाएं तो इसीलिए यहां चुकाने में अच्छा है बजाय आगे ले जाने से । ले जाने में फिर इंसल्ट, डंडों से फिर डंडे खाना और मारपीट से अच्छी बातें थोड़े ही हैं इसीलिए इंसल्ट कभी अच्छी थोड़ी ही होती है । उसको कहेंगे इन्सल्ट, यह है विद ऑनर, चलते अपना चुकाते रहना तो ऐसा चुकाते आगे बढ़ते रहना है इसीलिए कुछ है समझानी तो सब मिलती रहती है । जितना जितना योग को बढ़ाते रहेंगे तो योग का भी बल मिलता जाएगा । ज्ञान का भी बल, योग का भी पल, प्रैक्टिकल धारणाओं का भी सब बल यह सब जमा होते फिर जमा करना है । अभी जमा करते रहो, जमा का भी ख्याल अच्छा रखो कि हर तरफ से जमा होता जाता है , खाली बैठा हूं तो भी याद से सहज है ना तरीका, उससे भी कमाई है जमा करो । ज्ञान से भी किसी को धन दान करते हो, ये सेवा करते हो, सर्विस करते हो तो भी कमाई, जितनी कमाई कमाई कमाई और कमाई अभी सहज है । अपना खाली अटेंशन रखना है और कुछ बात नहीं है अच्छा