मम्मा मुरली मधुबन             

014. Gruhastha Me Rahte Karmon Ko Achcha Banane Ki Vidhi


रिकॉर्ड:

माता माता माता तू सबकी भाग्य विधाता........
ओम शांति, कई मनुष्य समझते हैं, क्योंकि घर गृहस्थ का है ना, यह तो जरूरी है लेकिन हां भगवान का कुछ भी करना, जानना यह तो थोड़ा बहुत कर दिया तो कर दिया, इसी तरीके से कि हां अगर भगवान को भी राजी ना करेंगे तो कहीं नाराज होकर के हमारे घर गृहस्थी में कुछ अशांति, दुःख ना आवे इसीलिए भगवान को मेहरबानी कहो, थोड़ा बहुत कुछ उनको भी राजी रखें इसीलिए कुछ ना कुछ थोड़ा बहुत कर लेते हैं ऐसे कई समझते हैं। वह भी अपने घर गृहस्थ की लालसा के लिए कि हमारे घर गृहस्थ में कोई रोड़ा न डाले भगवान, कोई ऐसी अशांति और दुःख की बात ना आवे इसलिए थोड़ा बहुत भगवान को भी राजी करते रहें तो हमारे घर में कोई अशांति और दुःख की बात ना लावे बाकी घर गृहस्थ का तो बहुत जरूरी ही है । लेकिन यह तो बात ठीक की घर गृहस्थी का तो बहुत जरूरी ही है लेकिन यह तो है कि वह कोई हम भगवान के लिए तो नहीं करते हैं ना, जो कुछ करते हैं तो अपने लिए करते हैं, अपने घर गृहस्थ के लिए करते हैं तो यह तो बात है कि घर गृहस्थ का बनना बिगड़ना कहां से है, पहले तो उसका भी पता होना चाहिए ना । यह तो कॉमन सभी जानते हैं, जो कर्म की फिलॉसफी को मानने वाले हैं वह इतना तो जानते हैं कि जो मनुष्य कर्म करते हैं सो पाता है तो माना हमारे घर गृहस्थ में दुःख अशांति या जो भी बातें आती हैं वह हमारे कर्म का ही फल है । तो जब कर्म का फल है और वही हम खाते हैं फिर चाहे दुःख अशांति में खाएं और चाहे सुख और शांति में खाएं तो हमको पहले उस चीज का भी ज्ञान होना जरूरी है ना कि जो हम गृहस्थ में अथवा प्रवृत्ति में खाते हैं अथवा भोगते हैं उनको बनाने की जो चीज है पहली पहली कर्म उसके ऊपर भी अटेंशन और उसका नॉलेज होना जरूरी है कि हमारी गृहस्थी हमारा यह सब संसार की जो भी बनावट है वह बनती है कर्मों से तो जिस चीज से बनती है उसको पहले बनाने में क्या साधन चाहिए जिस साधन से हमारी प्रवृत्ति अच्छी बने, सदा सुख की बने तो उसी चीज को जानना और उसको बनाने का प्रयत्न भी लेना चाहिए ना क्योंकि यह चीज कोई भगवान को जानना या आत्मा को जानना या यह सृष्टि चक्र को जानना कोई अलग चीजें नहीं है यह हमारी कर्म की गति है चलने की उसी के ऊपर ही तो इन सब बातों का भी आधार है ना। भगवान का आधार भी हमारे कर्म बनाने में है उसका हाथ हमारे कर्म बनाने में है। अगर उसको ना समझे और उसको ना जाने और उससे बल न ले तो हमारे कर्म कैसे बने । तो हमको जो मदद करने वाला है उससे तो हमको मिलना है, उसे नहीं कुछ मिलना है, हमको मिलना है उससे । तो उससे हमको प्राप्त करना है कुछ बाकी हमारे से थोड़ी ही कुछ उसको प्राप्त होने का है जो हम उसकी तरह से उनसे चलें कि जैसे कि भाई हम उसके ऊपर कोई मेहरबानी करते हैं । नहीं, उससे हमको प्राप्त करना है और अपनी आत्मा यानी खुद को जानना यह भी हम अपने को जानेंगे तभी तो हमें क्या करना है, क्या ना करना है, हम हैं कौन सी चीज तब तो हमको अपने चलने में अथवा कर्म करने में राइट अथवा रॉन्ग का पता पड़ेगा ना। तो आत्मा को जानना या परमात्मा को जानना और यह सारी सृष्टि चक्र की बातों को जानना ये ऐसे ही आवश्यक है जैसे गृहस्थी समझते हैं ना गृहस्थी में चलने में हमारा कर्म का है सारा तो अगर इन बातों को ना जाने की कर्म करने वाला कौन है और हमारे कर्म की निर्बलता क्यों आई है हमारे में और अच्छा भला अब आ चुकी है तो उसको मिटाए कैसे , निर्बलता को निकाल करके अपने कर्मों में ताकत लाए कैसे, उसके लिए भला अभी क्या करें तो उसका बल चाहिए अभी तो जरूर है कि उसको भी जाना पड़े जिससे लेना है अभी क्योंकि परमात्मा को भी जानना पड़ेगा ना। तो यह सभी जानने की बातें इतनी ही जरूरी हैं जैसे कोई समझता है ना गृहस्थी जरूरी है बच्चे संभालना उसको खिलाना पिलाना इनका यह सब कुछ करना जैसे वह जरूरी है जैसे तो क्या बल्कि उनसे पहले जरूरी है क्योंकि इन्हीं के बल के बिना और इन बातों की जानकारी के बिना हमारा गृहस्थ नहीं चल सकता है । तो इन सभी बातों का ताल्लुक परमात्मा को जानना, आत्मा को जानना, यह सृष्टि चक्र को जानना, इन सब बातों को समझना अपने गृहस्थ को ही बनाने की चीज है और इनके बिना ऐसे ही गृहस्थी चलाना वह तो जनावर पशु-पक्षी भी चलाते हैं जैसे उसको ज्ञान थोड़ी है परमात्मा क्या मैं क्या, क्या करना है जैसे जानवरों को पता नहीं है लेकिन अपनी गृहस्थी तो चलाते हैं ना । चिड़िया देखो अपना घर बनाती हैं, बच्चे पैदा करती है, उसको खिलाने पिलाने का काम अच्छी तरह से बिजनेस भी करती हैं, जाती हैं वह ले आती हैं खाना और उन बच्चों को आ करके खिलाती है और उनकी पालना पोषणा कर करके जब उनको पंख आ जाते हैं पूरा करके अपनी ड्यूटी पूरी समझती हैं , इतना काम तो वह भी कर लेती हैं फिर मनुष्य ने भी इतना ही किया तो यह कोई समझे कि मैं ड्यूटी पालन करता हूं गृहस्थ या हम... यह फर्ज तो पहले करने हैं ना गृहस्थ के। यह भगवान को जानना ना जानना, जान लेंगे कभी भी। अभी थोड़े ही जब बूढ़े होंगे ना तब जानेंगे या तो कोई आफत आएगी तो कहेंगे हे भगवान अभी खैर करो, भगवान भी कहेगा अभी काहे का खैर करूंगा अभी तो जो तुमने करम बनाए हैं अभी तो तुमको भोगना ही है , क्यों नहीं कर्म करने के पहले ही तुम समझ लेते हो कि हमको कर्म ही कौन से करने हैं जिससे तुम्हारी ऐसी दुःख भोगने की तुम्हारी घड़ी ही ना आवे ना । तो बाप तो ऐसे कहेंगे ना कि बच्चे पहले उन्हीं बातों को पहले समझो और अपने कर्म को उसी श्रेष्ठता से बनाओ जिसमें तुमको सदा सुख प्राप्त रहे इसीलिए तो कहते हैं ना मेरी जरूरत है , मैं आता हूं वह समझ देने के लिए और मैंने खुद भी कहा है कि जब जब ऐसा अज्ञान अंधेरा हो जाता है जिसको ही अधर्म कहा है, जब जब मनुष्य से यह सारी समझ निकल जाती है तब तक तो मैं आकर के यह समझ देता हूं तो मेरा देखा जरूरी काम है ना । इसीलिए तो मुझे भी जानना पड़ेगा ना कि मैं हूं कौन और तेरा और मेरा क्या रिलेशन है, मेरे से तुम को मिलना क्या है । तो मेरे से तो मिलना ही है , तेरे से मुझे नहीं मिलना है कुछ , बाप तो ऐसे कहेगा ना। तेरे से क्या मिलेगा मुझे, तेरे पास है ही क्या , क्या देंगे मुझे। तो तेरे से मुझे कुछ नहीं मिलने का है, मेरे से तुमको सब कुछ मिलना है इसीलिए मुझे ना जानेंगे तो दूंगा कैसे, ऐसे ही थोड़ी मुफ्त में दूंगा । ना, जब जानेंगे, समझेंगे, मुझे भी और अपने को भी तभी समझेंगे कि मैं कौन हूं । जब तलक मुझे ना जानो तब तलक अपने को भी ना जानो क्योंकि मेरे द्वारा ही तो तुमको अपना भी पता चलेगा ना कि तू चीज क्या है। यह तुम्हारा गृहस्थ वगैरह जो प्रवृत्ति बनी है वह कैसे बनी है । इसमें जो भी दुःख आया या कुछ भी बात आई वह कैसे आई । अभी इसमें सुख कैसे आवे । इन सभी बातों की जानकारी सिवाय मेरे और तो कोई दे भी नहीं सकता है इसीलिए तो मेरे से तुमको अपना संबंध जोड़ना ही पड़ेगा कैसे भी। तो इन सब बातों को समझना बिल्कुल जरूरी है। बाकी है ऐसे नहीं है कि यह गृहस्थ से अलग चीज है, कभी समझ लिया समझ लिया या बूढ़े होंगे फिर पीछे समझ लेंगे या कभी इस जन्म में ना समझे तो कोई दूसरे जन्म में समझ लेंगे। नहीं, बाप कहते हैं यह भी समझने की बात है कि मैं जो समझाने के लिए आता हूं वह आता ही हूं उस जन्म पर हूं जिस जन्म पर ही समझने का टाइम है। उसके बाद कोई टाइम ही नहीं है, मैं इसके पहले इसीलिए तो नहीं आता हूं। इतना टाइम तो तुम मनुष्यों की सुनते थे, मेरी थोड़ी ही सुनते थे। मैं आया ही अभी हूं सुनाने वाला तो आप इसके पहले मेरी बातें कहां सुनते थे । मेरे नाम पर दूसरे मनुष्यों ने बैठकर जो शास्त्र, ग्रंथ आदि यह सभी यादगारो की बनाई है उन्हीं की बातें सुनते आए लेकिन अभी डायरेक्ट मेरी बात , मैं क्या समझाता हूं, मैं हूं क्या और तुम क्या हो और तेरी यह कर्म का सारा चक्कर कैसे चलता है, इन सब बातों की यथार्थ जो नॉलेज है वह तो अभी मैं आया हुआ हूं अभी मैं समझाता हूं। मैं आया ही अभी हूं समझाने के लिए । इतना समय में आया ही नहीं था समझाने के लिए तो मैं आया ही नहीं तो तुम को समझ कहां से मिली । तो इसीलिए कहते हैं अभी मैं समझाता हूं, अगर अब भी नहीं समझेंगे तो फिर सदा के लिए बेसमझ भी रह जाएंगे और बेसमझ रहने के कारण तुम्हारे को वह जो समझ की प्राप्ति मिले, वह नहीं मिलेगी इसीलिए बाप कहते हैं यह टाइम है, यह समय है, जो कुछ अभी मैं बतला रहा हूं और उसी को समझ करके अपने गृहस्थ को ही तो बनाना है । यह तुम्हारे ही घर गृहस्थ को बल देने के लिए और तुम्हारे ही गृहस्थ को ऊंच आदर्श पर लाने के लिए, तुम्हारे ही संसार को ऊंच बनाने के लिए , स्वर्ग बनाने के लिए ही तो मैं भी माथा खोटी करता हूं, नहीं तो मुझे भी क्या पड़ी है । मैं तो तुम बच्चों को दुखी देख करके और अशांत देख करके तभी तो मैं आता हूं और आकर के तुम बच्चे जिस राह पर भूले हो और तुमने क्या भूल की है वह भूल आ करके करेक्ट कराता हूं और बतलाता हूं कि किस तरह से अपनी भूल को करेक्ट करके और अपने को उसी चीज पर ले आओ तो फिर तुम सदा सुखी रहेंगे। कैसे सुखी रहेंगे वह भी बतलाते हैं तुम सुखी रहेंगे कैसे लेकिन भूल गए हो इसीलिए तुमने आस ही छोड़ दी है । तुम समझते हो मनुष्य जीवन में कभी मनुष्य सुखी होता ही नहीं है इसीलिए तुमको किसी ने बतला दिया कि भाई तुम जाकर के तुम कहां ज्योति ज्योत समाएंगे या वहां कहां जाएंगे जहां से फिर दुनिया में आएंगे नहीं वहां तुमको सुख मिलेगा परंतु ऐसा नहीं है इसी संसार में सुख था । संसार में ही सुख था तो संसार में सुख कैसा था, उसकी क्या बायोग्राफी है और क्या है वह बातें बैठकर के समझाते हैं कि यह जो हमारे पूज्य देवताए थे, उन्हीं के जीवन का ही तो यह आदर्श है ना लेकिन लिखने वालों ने उनकी बायोग्राफी में ऐसी ऐसी बातें लगा दी हैं जो मनुष्यों की श्रद्धा उसमें भी कम पड़ जाती है, समझते हैं भाई राम के जमाने में भी रावण से लड़ाई हुई थी , उसकी भी सीता चुराई गई थी उसके साथ भी ऐसी ऐसी बातें हुई थी । अरे भाई ऐसों से नहीं चली तो हमारे जैसों से क्या बात होगी। हां, तो ऐसी ऐसी बातें रखी है ना और कहीं कहीं बातें शास्त्रों में भी ऐसी रख दी हैं कि हां भाई ब्रह्मा भी अपनी बेटी के ऊपर फिदा हुआ अरे शंकर, महादेव वो भी मोहिनी के ऊपर फिदा हुआ, ऐसी ऐसी शास्त्रों में बातें रखी है तो वह समझते हैं तो वो समझते हैं इन्हों से भी नहीं चली तो आज के मनुष्यों से क्या होगा। वह मनुष्य क्या इस चीज को पाकर के अपना कुछ कर सकेंगे तो वह शास्त्रकारो ने जो अपने बायोग्राफी में ऐसी ऐसी बातें लगा रखी हैं तो और ही उनका मान कम कर दिया है इसीलिए कई समझते हैं कि भाई यह बात हमारे लिए थोड़े ही है। ऐसों ऐसों से नहीं चली तो हम क्या कर सकेंगे। यह हमारे लिए नहीं है, यह तो देवताओं से भी नहीं चली फलानो से भी नहीं हुई तो हम क्या इसको पा सकेंगे तो हमारे लिए इतना ही ठीक है । हमारे लिए यह घर गृहस्थ का चलना यही सब भगवान का है। हां, फिर ऐसी ऐसी बातें मान करके फिर चल पड़ते हैं। परंतु नहीं, यह समझने की बातें हैं बहुत जरूरी कि जिस चीज में हम चल रहे हैं, बिना कर्म के तो चला नहीं जा रहा है । कर्म से सब बंधे हुए हैं और उसमें चल भी रहे हैं तो जब चल रहे हैं तो उस बात की नॉलेज होना भी जरूरी है कि उसका रॉन्ग ओर राइट एक्शंस का नतीजा जो हम भोगते हैं, इसको हम कैसे बनाएं जो हमको दुःख रूप में ना भोगना पड़े और सदा सुख रूप में भोगना पड़े । तो उसके लिए क्या उपाय है , उसके लिए क्या समझ है, उसकी नॉलेज क्या है वह जानना भी जरूरी है। बाकी ऐसे नहीं ऐसी ऐसी बातों में मूंझ करके और हम अपना ऊंच तकदीर जबकि अभी चांस है और बाप आ करके समझा रहा है तो हम उस चांस को खोते रहें और फिर अपना वही दुःख का दुःख है सदा के लिए दुःख पाते रहें क्योंकि अभी नहीं समझेंगे और अपना यह तकदीर नहीं बनाएंगे तो फिर जब जब दुःख की दुनिया होगी ना, तब तब फिर आकर के दुःख को ही पाएंगे । इसीलिए बाप कहते हैं कि जब अब मैं दुःख की दुनिया बना रहा हूं और तेरा ही संसार स्वर्ग बना रहा हूं तो क्यों नहीं उस बातों को समझ करके और अपने जीवन अथवा गृहस्थी को सुखरूप बनाओ। तो यह है भी गृहस्थी के बनाने की चीज इसीलिए कोई ऐसा समझने में भूल ना करें तो यह बातें भी समझानी पड़ती है कि ईश्वर को समझना या आत्मा को समझना या यह सृष्टि चक्र को समझना यह कोई अलग बातें नहीं है । यह मानो अपने गृहस्थी को समझना है। बाकी नहीं तो गृहस्थी जो चलाते हैं ना, कई तो कहेंगे ना हमको तो गृहस्थी चलानी आती है, भाई कैसे आती है बच्चे नहीं पैदा कर सकता हूं, करने आता है बच्चे पैदा, उसको खिलाना पिलाना आता है, उसके लिए धंधा धोरी करने आता है, उसको कैसे चलाना है, यह तो आता है, इतना तो कोई चिड़ियों को भी आता है ना । तो यही थोड़ी बात है कि यही कोई गृहस्थी है। गृहस्थी तो उसको कहा जाएगा जिस गृहस्थी में कर्म की बल थी। अभी बाप बैठा है, कुछ भी हो जाएगा बच्चे को बाप क्या कर सकेगा। जितना कर्म का हिसाब होगा, भले धनवान होगा, पैसा होगा करके उसके लिए कुछ थोड़ा बहुत उपाय करेगा, जो कुछ करने का है। चलो उसको पढ़ाएगा, लिखाएगा या कोई थोड़ा दुःख सुख होगा उसका थोड़ा इलाज आदि करेगा बस ना लेकिन कर्म का हिसाब कुछ ऐसा होगा तो उसमें बाप हो कर भी क्या करेगा तो वह निर्बलता है ना। वह कहेंगे ना बाप होते भी कुछ नहीं कर सकता है कोई कर्म की ऐसी बात आ जाती है तो। तो उसका मतलब है कि वो कर्म बलवान है। जो हमने किया है वही पाना पड़ता है फिर चाहे कोई बाप हो, मां हो, क्या भी हो, कुछ भी हो, क्या भी करे, वो हो नहीं पा सकता है । तो जब हम देख रहे हैं कि कोई चीज दूसरी है जो अपने ताकत में चलती है तो उसमें बाप होते भी कुछ नहीं कर सकता है, उसमें मां होते भी कुछ नहीं कर सकता है, कोई होते भी कुछ नहीं कर सकता है , भगवान कहते हैं मैं भी कुछ नहीं कर सकता हूं। तेरे कर्म अगर ऐसे होंगे तो मैं भी क्या करूंगा । भगवान कहते हैं उसमें तो मेरा भी बल नहीं चलेगा तो तेरे बाप का क्या चलेगा। मैं , जो सर्व समर्थ जिसको सर्वशक्तिमान कहते हो तुमने जो अपने कर्म बनाए हैं तुमको ही भोगना है । उसमें मेरा भी अभी काम कुछ नहीं कर सकता है । परंतु तो भी मैं बाप हूं इसीलिए फिर भी अथॉरिटी हूं तो थोड़ी बहुत राय वह भी तरीके से आ करके देता हूं जो कर्म की फिलॉसफी है उसके अनुसार कि हां तुम अपने कर्मों को अभी पापों को भी कैसे नाश करो , चलो मुझे याद करो, मेरे उसने रहो , अपने कर्म पवित्र बनाऊं तो तेरे जो पाप है ना वह दग्ध होते जाएंगे। हां, इसी तरीके से मैं फिर तुमको हेल्प करता हूं । वह भी मुझे तुमसे तुम्हारे कर्मों से कराना पड़ता है ना ऐसे ही थोड़ी तुमको ऐसे ही माफ कर देंगे । तो मैं अथॉरिटी हूं मैं भी नहीं कर सकता हूं । तेरे कर्म को भी तेरे से बनवा करके तेरे से सुधार करके तेरे से बनवाना पड़ता है। तो भगवान होते भी कुछ नहीं कर सकता है तो मनुष्य क्या करेगा, बताओ। तो इसीलिए भगवान कहते हैं मैं भगवान भी तभी गाया हुआ हूं कि मैं आकर के फिर तुम्हारे कर्म को सुधार करके इसी तरीके से तुम्हारे कर्मों को बलवान बनाता हूं । तो बनाने की नॉलेज और उसका बल देना मेरा काम है इसीलिए मुझे भगवान कहते हैं, बाप कहते हो, सर्वशक्तिमान कहते हो इसीलिए । बाकी मनुष्य तो कुछ नहीं कर सकता है ना । मैं फिर भी यह कर सकता हूं इसी तरीके से क्योंकि इसकी समझ मेरे पास है, तुम तो सभी कर्म के चक्कर में वह भूल गए हो। मेरे पास उसका नॉलेज है इसीलिए मैं तुमको समझाता हूं , उस रोशनी से फिर तुमसे अच्छे काम कराता हूं, उसका तुमको हिम्मत और बल देता हूं, उसी आधार से तुझे चला करके तेरे कर्म अच्छे बना करके फिर तेरा गृहस्थाश्रम या संसार स्वर्ग बनाता हूं इसीलिए फिर तुम मुझे कहते हो हां तू बनाने वाला है तू बिगड़ी को संवारने वाला है तू पतितों को पावन करने वाला है, तू दुःखहर्ता सुखकर्ता है वही मेरी महिमा करते हो, क्यों करते हो इसीलिए करते हो । तो मैं भी तो तुम्हारे कर्मों से ही तेरे कर्म बनाता हूं ना, बाकी ऐसे नहीं ऐसे ही बना लूं बिना कुछ मेहनत के मुझे भी तो आ करके तेरे से कर्म करा करके ही तो बनाना पड़ेगा बाकी ऐसे नहीं भगवान है तो ऐसे ही बना देवें । भगवान के गले थोड़ी ही पड़ना है । कई तो ऐसे ऐसे समझते हैं भगवान है तो भगवान ऐसे ही कर देवे ना। यह तो है जैसे भगवान के गले पड़ना । कोई किसी के गले पड़ते हैं ना तो उसकी सारी ले लेते हैं कहते हैं कि भगवान है ना अभी हमारा सब कुछ आप ही ठीक कर देवें । अरे भगवान कहते हैं आप ही क्यों करूंगा। इसीलिए ही मैं भगवान थोड़ी हूं आपे ही करूंगा करूंगा । कराऊंगा तेरे से ही, करन करावनहार। मैं कराऊंगा तो तेरे से ही कराऊंगा ना । तेरे ही कर्म से तेरे ही कर्म को सुधार करके उन्हीं कर्म का फिर तुमको फल अच्छा मिलेगा ही । बाकी ऐसे नहीं तेरा कर्म मैं करूंगा या मैं अपने आप करूंगा , नहीं । बाकी हां, उनकी समझ देना, उसको बैठ करके समझा करके फिर उनको हिम्मत देना, बल देना, हर तरह का सहारा देना, तेरा मां-बाप सब मैं बनता हूं इसी लिए कि हां तू मेरा अभी संग पकड़, अभी सब तरफ से अपना बुद्धि हटा, अभी मन को मेरे में लगा, यह सभी मैं इतनी हिम्मत, इतना साहस, इतना यह बल, यह सभी बातें मैं देता हूं। बाकी क्या करूंगा, बाकी तो करना जो कुछ है वह तुमको करना है ना परंतु हां तुमको अभी वह समझ नहीं है इसीलिए मेरे समझ लेने का तुमको सहारा लेना ही पड़ेगा , मेरी मत लेनी पड़ेगी। ऐसे नहीं है यह तो हमको है ज्ञान , अपने ही कर्म को अपने आप ठीक करना , आपे ही करो, देखो । नहीं, इसीलिए कहते हैं मेरी मत लेनी पड़ेगी। बिना मेरी मत लिए अथवा ज्ञान के लिए और मेरे साथ योग रखना ही पड़ेगा, उनके लगाए बिना तुमको बल नहीं मिलेगा इसीलिए तुमको मेरा सहारा पकड़ना ही पड़ेगा। बाकी ऐसे नहीं है अपने आप , नहीं लेना ही पड़ेगा। तो लेना ही पड़ेगा इसीलिए मैं आकर के समझाता हूं कि कैसे लो, किस तरीके से लो इसीलिए तुमको मुझे जानना पड़ेगा, अपने को जानना पड़ेगा, यह सारा चक्कर को समझना पड़ेगा और समझ करके फिर हम कैसे ऊंचे जा सकते हैं उन्हीं सभी बातों को समझ करके ऊंचा उठना पड़ेगा। पड़ेगा ना , करना पड़ेगा ना। कैसे भी करना पड़ेगा । ना करेंगे तो फिर ना पाएंगे यह तो कॉमन कहावत है। जो करेगा सो पाएगा ना करेगा तो फिर ना पाएगा लेकिन है गृहस्थ के लिए ही, है अपने ही जीवन के बनाने की चीज । गृहस्थ क्या है, प्रवृत्ति क्या है, यह कर्मों का ही तो है ना कोई पति बना , कोई पत्नी बनी, कोई बाप बना, कोई बेटा बना, कोई कुछ बना, कोई कुछ बना, यह क्या बना, काहे से बना यह बनावट कहां से बनी, कर्म के हिसाब से ना। तो यह बनावट भी तो पति पत्नी तो कर्म से ही बने ना । तो जिससे बने हो उसको बनाना सीखो ना । कर्मों से पति-पत्नी बने , पत्नी पति बनाया कर्मों ने, कर्मों ने बाप बेटा बनाया लेकिन कर्म को कैसे बनाया जाए जो अच्छे बाप बेटे बने, जो अच्छे पति पत्नी बने। बने तो ऐसे पति-पत्नी बने, बने तो ऐसे बाप बेटे बने, तो उसको बनाने की तरकीब चाहिए ना । तो पति-पत्नी कर्मों ने बनाया और कर्म को किसने बनाया। तो वो आकर हमारे कर्म को श्रेष्ठ बनाने की नॉलेज देता है, बल देता है इसी कर्म से फिर हम ऐसे पति-पत्नी बनते हैं। ऐसे समझते हो ना सब, सदा सुखदाई इन्हों के पास कभी कोई दुःख नहीं, कभी ऐसे नहीं कि हां स्त्री को छोड़कर पति चला जाए कभी विडो नहीं, कभी कोई दुःख नहीं, कभी अकाले मृत्यु नहीं, कभी कोई रोग नहीं, कभी कोई बात नहीं सदा सुख की। तो सदा सुख की जो बात है और सदा सुखदाई जो कहा जाए ऐसे सुख की प्रवृत्ति बनाना उसके लिए कहते हैं क्या चीज चाहिए उसको अभी समझो । तो देखो यही प्रवृत्ति गृहस्थ बनाने का ढंग बाप आकर बनाना सिखाते हैं बाकी कोई थोड़ी और कुछ सिखाता है । वो ऐसे नहीं कहते हैं की प्रवृत्ति गृहस्थ तुम्हारा है नही। है, परंतु जिस ढंग से होनी चाहिए अभी तुम्हारी बेढंग सी हो गई है। देखो उसमें अभी मजा नहीं रहा है इसीलिए यह तुम्हारी गृहस्थी अभी बे ढंग की हो गई है । अभी मैं ढंग वाला बनाता हूं अर्थात उसको कायदे से, ईश्वरीय नियम के मुताबिक यह कैसी प्रवृत्ति होनी चाहिए वही तो बनाता हूं ना। तो उसको कैसे बनाओ वही तो बाप समझाते हैं बाकी दूसरी थोड़ी कोई बात है इसलिए उसको दूसरा मत समझो। समझा तो समझा, नहीं समझा तो कोई हर्ज नहीं है । हां, चलो थोड़ा बहुत भगवान को थोड़ा ऐसे ऐसे करते रहेंगे जिससे वह खुश रहे, जिससे कहीं हमारी गृहस्थी में कुछ ना गड़बड़ डाल देवे इसीलिए उसको करते हैं, नहीं हम करते हैं अपने ही लिए। वह नहीं हमारी गृहस्थी में कोई दुःख लाता है तो इसीलिए हमारे में दुःख लाने के हम ही निमित्त है ना, सुख लाने के भी हम ही निमित्त हैं लेकिन किस चीज से, कैसे उसकी सभी बातों को समझो इसलिए यह बड़ी आवश्यकता चीज है । इसी आवश्यक चीज के ऊपर ऐसे अटेंशन देना चाहिए जैसा गृहस्थ की दूसरी बातों को अटेंशन देते हो । समझते हैं कमाएंगे नहीं तो खाएंगे कहां से, जरूरी समझते हो ना तो जैसे वह जरूरी समझते हो उससे पहले यह जरूरी है क्योंकि कमाते हो कर्म के हिसाब से । अगला किया है वह खा रहे हो ठीक है ना । परंतु कोई कर्म की भी ऊंची नीची है तो फिर नींचा ऊंचा भी है लेकिन हम सदा के लिए निश्चिंत और सुख पाते रहे वह तो चीज नहीं है ना । यह तो पुण्य से सब चलता है । परंतु बाप कहते हैं निश्चिंत तुम्हारी लाइफ और सदा सुख ही चलती रहे, गारंटी से सुख की चलती रहे । ऐसे नहीं जो होना होगा, नहीं। ये ऐसे नहीं कहते जो होना होगा वह गारंटी है कि हमको सुख प्राप्त होना ही है । जो होना होगा, होगा ही नहीं ऐसा कुछ। इसमें तो कोई ऐसी ग्रारंटी नहीं रहती है ना जीवन में। वह कहेंगे कोई भले इसमें भी कुछ ऐसा कुछ रहता, जो होना होगा देख लेंगे, जो होना होगा ऐसी ऐसी भी रख करके बिचारे कई चलते हैं परंतु नहीं, इसमें गारंटी है कि कुछ होना ही नहीं होगा, कोई ऐसी दुःख की बात ही नहीं है तो ऐसी अगर जीवन हो जाए तो अच्छी बात है ना। तो ऐसी जीवन के लिए और ऐसी अपनी प्रवृत्ति और आदर्श बनाने के लिए अगर ये उपाय मिलता है तो उसको आवश्यक समझना चाहिए। बाकी किया ना किया, थोड़ा सुना ना सुना, या कुछ धारण किया ना किया ऐसी बातें नहीं है। उसकी लगन होनी चाहिए और उसी लगन से चलना चाहिए क्योंकि यह अपने बनाने की लगन है । जैसे ये भी लगन रखते हो कमाने की, बच्चों को संभालने की लगन रखते हो ना, लेकिन वह तुम्हारे बस की नहीं है , कर्म के वश अनुसार है । जितने कर्म किए हैं उसी के अनुसार चलेगा बस, उसमें आप एक जरा सा भी आगे पीछे नहीं हो सकते हो तो कर्म के अंदर हो गए ना। वो है कर्म को अपने बल में ले आना, कर्म हमारे बस में । अभी आप कर्मों के वश हो । कुछ भी हो जाए नीचा ऊंचा कहेंगे हां तकदीर, किस्मत । लेकिन क्यों ना हम वो किस्मत बनाए जिसमें हम सदा निश्चिंत, सदा सुखदाई रहे वह तो लाइफ यह है ना। इसीलिए ऐसी लाइफ के लिए अपना जो कुछ धारण करने का है उसको बराबर जरूरी समझ करके लेना चाहिए और उसके लिए ऐसी लगन रखनी चाहिए और उसी लगन से चलने से ही हम कुछ पा सकेंगे । और हर बात में ही लगन से ही पाना होता है ना ? कमाने के भी लगन है, फलाने का भी है लग्न है, जब लगन है तभी तो कुछ कर सकते हैं ना, बिना लगन के हो नहीं सकता है। तो यह चीज भी लग्न रखनी चाहिए क्योंकि कई जो इसको अलग समझते हैं ना अलग ना समझो, अपना जीवन का पहला पहला इसको साथी समझो, इसकी लगन जरूरी चाहिए। बिना इसकी लगन के फिर वो हम पा भी नहीं सकते हैं। तो यह ऐसी जरूरी चीज को पूरा ध्यान देते और उसके लिए पूरा पुरुषार्थ करते चलना है । अच्छा अभी टाइम हुआ। हां टोली दो । पूरा पूरा ध्यान रखने का है, इसमें गफलत नहीं होनी चाहिए या पुरुषार्थ ठंडा नहीं होना चाहिए या किया ना किया या कुछ ऐसा नहीं। क्योंकि यह कॉमन मत समझो, क्योंकि बहुत सत्संग बहुत बातें चली है ना इसीलिए बेचारे कई समझते हैं यह तो होता रहते है, यह तो कई कुछ, कोई कुछ कहता है कोई कुछ कहता है। अच्छा यह भी कुछ कहते हैं तो इसी तरीके से यह भी कुछ है ऐसा,नहीं यह तो स्वयं, जो अथॉरिटी है परमपिता परमात्मा वह अभी हमें क्या सुना रहा है, वो सुनाता ही इधर है । उसने मुख का आधार ही जिसका लिया है उसी से सुनाएगा ना, बाकी सबके मुख का आधार नहीं लिया है या सबसे वह सुनाता है ऐसी बात नहीं है। ऐसा अगर कोई मिसअंडरस्टैंड करता हो तो हां उसे यह बात समझनी चाहिए। नहीं, वह कहता है मैं आता हूं और आकर के जिसका आधार लेता हूं वह भी हिसाब किताब समझाते हैं और वहां से ही मैं अपना नॉलेज समझाता हूं। बाकी जो सभी कुछ है वह मनुष्यों की अपनी-अपनी मत है वह भी बैठ करके समझाते हैं कि यह मनुष्य सब समझाते आए हैं यह भी भक्ति मार्ग का सब जलने का था, वह भी अभी पूरा होता है । अभी उसका भी टाइम पूरा हुआ । अब जो मैं कहता हूं मेरी सुनो और मेरी मत पर रहो, मेरी राय पर चलो । मत, श्रीमत कहा हुआ है तो अभी उसकी मत लेकर के चलने का है , जो अपना बेड़ा पार करने का है तो बाकी तो बेड़ा डूबना ही है इसीलिए बाप कहते हैं अभी पार करना है अपने को तो फिर मेरी मत पर रहकर के चलने में ही तेरा पार है अथवा कल्याण है तो कल्याणकारी बाप का पूरी पूरी मत लेनी चाहिए ना। कैसा ? मनोरम? यहां है बी होली एंड बी योगी तो फिर बात तो यही है ना तो इसके लिए हमको उनका संग भी पकड़ना पड़ता है । ऐसे नहीं है कि बस यह समझ लिया बी होली एंड भी योगी, चलते चलेंगे , नहीं संग चाहिए । जैसा संग वैसा रंग इसलिए तो बाप कहते हैं मैं आकर के ये रोज आकरके पढ़ाता हूं, सुनाता हूं, समझाता हूं, नहीं तो मुझे क्या है आ करके रोज मैं भी एक बार कह दूं बी होली बी योगी बस काम हो गया । बाबादादा, अभी बापदादा को समझते मूंझते तो नहीं हो ना ? तो ऐसा बाप दादा और मां की मीठे-मीठे बहुत सपूत बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग।